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Thriller आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07
#60
 औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन


तैयारी-

‘ परिधान'

Update -9

लेडीज टेलर की बदमाशी




गोपालजी – बस अब चोली की लास्ट नाप लेता हूँ , कंधे से छाती तक.

अब मैं गोपालजी की अंगुलियों का स्पर्श बर्दाश्त करने की हालत में नहीं थी. मैं उत्तेजना से कांप रही थी और शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत कमज़ोर पड़ चुकी थी. अब गोपालजी मुझे छुएगा तो ना जाने मैं क्या कर बैठूँगी.

गोपालजी – दीपू , कॉपी यहाँ लाओ.

दीपू कॉपी लेकर मेरे पास आया. गोपालजी उसकी लिखी हुई नाप देख रहा था तभी दीपू ने कुछ ऐसा कहा की कमरे का माहौल ही बदल गया.

दीपू – मैडम, आप कांप क्यूँ रही हो ? ठीक तो हो ?

मेरे कुछ कहने से पहले ही टेलर बोल पड़ा.

गोपालजी – हाँ, मैडम, मुझे भी लगा की आप कांप रही हो. मैं देखता हूँ.

उसने मेरे माथे पर हाथ लगाया.

दीपू – मैडम, आपको तो बहुत पसीना भी आ रहा है.

मैं कुछ नहीं बोल पाई.

गोपालजी – मैडम, आपका माथा तो ठंडा लग रहा है. आपको क्या हो रहा है ? मैडम , मैं आपको सहारा दूं क्या ?

उसने मेरे जवाब का इंतज़ार किए बिना मेरी बाँह पकड़ ली.

“मैं ठीक…….आउच….”

मैं कहना चाह रही थी की मैं ठीक हूँ पर मेरी बाँह में टेलर ने चिकोटी काट दी.

गोपालजी – क्या हुआ मैडम ? दीपू, मैडम के लिए एक ग्लास पानी लाओ.

“लेकिन….”

दीपू कमरे के कोने में पानी लाने गया तो गोपालजी ने कस के मेरी बाँह पकड़ ली और मेरे कान के पास अपना मुँह लाया.

गोपालजी – अगर आपको और चाहिए तो जैसा मैं कहूँ वैसा बहाना बनाओ.

उसकी फुसफुसाहट पर मैंने गोपालजी को जिज्ञासु निगाहों से देखा. लेकिन उसकी बात पर सोचने का समय नहीं था क्यूंकी दीपू पानी ले आया था. दीपू को सच में यह लग रहा था की मेरी हालत ठीक नहीं है.

गोपालजी – बताओ मैडम, कैसा लग रहा है ? आपको चक्कर आ रहा है क्या ?

गोपालजी ने मेरी बाँह ऐसे पकड़ी हुई थी की मेरी अँगुलियाँ उसकी लुंगी से ढकी हुई जांघों को छू रही थीं. दीपू ने मुझे पानी का ग्लास दिया और जब मैं पानी पी रही थी तो गोपालजी ने लुंगी के अंदर खड़े लंड से मेरा हाथ छुआ दिया.

मैंने पानी गटका और एक पल के लिए अपनी आँखें बंद कर ली और फिर झूठ बोल दिया.

“ओह्ह …मेरा सर….घूम रहा है….”

मैंने ऐसा दिखाया की मुझे ठीक नहीं लग रहा है. दीपू को मेरी बात पर विश्वास हो गया था.

दीपू – मैडम को ठीक से पकड़ लीजिए. कुर्सी लाऊँ मैडम ?

गोपालजी इसी अवसर का इंतज़ार कर रहा था और अब उसे मालूम था की मैं बहाना बना रही हूँ और दीपू को भी भरोसा हो गया है , अब उसके लिए कोई रुकावट नहीं थी. गोपालजी ने अब मेरी दोनों बाँहें पकड़ लीं.

गोपालजी – मैडम, फिकर मत करो , कुछ देर में ठीक हो जाएगा. बस अपने बदन को ढीला छोड़ दो.

मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और अपने सर को थोड़ा हिलाया ताकि लगे की चक्कर आ रहा है.

दीपू – मैडम , ये आपको चक्कर अक्सर आते हैं क्या ? कोई दवाई लेती हो ?

गोपालजी ने मुझे इन सवालों का जवाब देने से बचा लिया.

गोपालजी – दीपू, लगता है ये बेहोश होने वाली है. क्या करें ?

ऐसा कहते हुए उसने फिर से मेरी बाँह में चिकोटी काटी ताकि मैं बेहोश होने का नाटक करूँ.

मेरे पास इसके सिवा कोई चारा नहीं था और मैंने बेहोश होने का नाटक करते हुए अपना सर गोपालजी के बदन की तरफ झुकाया.

दीपू – अरे … अरे …. कस के पकड़ लीजिए. मैं भी पकड़ता हूँ.

ऐसा कहते हुए दीपू ने पीछे से मेरी कमर पकड़ ली. गोपालजी ने मुझे गिरने से बचाने के बहाने अपने आलिंगन में ले लिया और एक मर्द के टाइट आलिंगन की मेरी काम इच्छा पूरी हुई. मेरी आँखें बंद थीं और मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था. गोपालजी के टाइट आलिंगन से मेरी चूचियाँ उसकी छाती में दबी हुई थीं और उसकी बाँहें मेरी कमर में थी. सच बताऊँ तो गोपालजी से ज़्यादा मैं खुद ही अपनी सुडौल चूचियों को उसकी छाती में दबा रही थी.

आआआहह…..”

मैंने उत्तेजना में धीरे से सिसकी ली.

दीपू – मैडम को बेड में ले चलिए.

गोपालजी अपने बदन में मेरी कोमल चूचियों का दबाव महसूस कर रहा था इसलिए वो मुझे अपने आलिंगन से छोड़ने के लिए अनिच्छुक था.

गोपालजी – रूको अभी. कुछ पल देखता हूँ, क्या पता मैडम ऐसे ही होश में आ जाए. तब तक तुम बेड से कपड़े हटाओ और चादर ठीक से बिछा दो.

दीपू – जी अच्छा.

कहानी जारी रहेगी


[b]NOTE welcome


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1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .



2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.



3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .



जब मैंने ये कहानी यहाँ डालनी शुरू की थी तो मैंने भी इसका अधूरा भाग पढ़ा था और मैंने कुछ आगे लिखने का प्रयास किया और बाद में मालूम चला यह कहानी अंग्रेजी में "समितभाई" द्वारा "गुरु जी का (सेक्स) ट्रीटमेंट" शीर्षक से लिखी गई थी और अधूरी छोड़ दी गई थी। बाद में 2017 में समीर द्वारा हिंदी अनुवाद शुरू किया गया, जिसका शीर्षक था "एक खूबसूरत हाउस वाइफ, गुरुजी के आश्रम में" और लगभग 33% अनुवाद "Xossip" पर किया गया था। अभी तक की कहानी मुलता उन्ही की कहानी पर आधारित है या उसका अनुवाद है और अब कुछ हिस्सों का अनुवाद मैंने किया है ।

कहानी काफी लम्बी है और मेरा प्रयास जारी है इसको पूरा करने का ।




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RE: आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07 - by aamirhydkhan1 - 19-08-2022, 08:09 PM



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