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Thriller आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07
#38
गुरुजी के आश्रम में सावित्री

CHAPTER 5 - चौथा दिन -कुंवारी लड़की

Update-4


दिल की धड़कनें 





बिल्कुल वैसा ही हुआ. हम मुस्किल से दस कदम चले होंगे कि समीर हमारे पास लौट आया. उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि हम ना तो गॅलरी में मिले, ना बाथरूम में, तो हम थे कहाँ ? मैं तो कुछ नही बोली , गुप्ता जी ने ही बात संभाल ली और हम पूजा घर के अंदर आ गये.

गुरुजी – अरे तुम लोगो ने इतनी देर लगा दी. मुझे तो चिंता हुई की ….

कुमार – नही गुरुजी. मैं गिरा नही लेकिन बाथरूम में मुझे थोड़ा समय लग गया.

गुरुजी – ठीक है. अब यज्ञ में ध्यान लगाओ और बचे हुए अनुष्ठान को पूरा करो.

कुमार – जी गुरुजी.

गुरुजी – हम ने अग्निदेव और लिंगा महाराज की पूजा कर ली है. अब हम काजल बेटी के लिए ध्यान करेंगे.

हम दोनो अग्निकुण्ड के सामने खड़े थे और गुरुजी हमारे सामने बैठे थे. मैने देखा समीर ने भोग तय्यार कर लिया था और अब वो भी हमारे पीछे खड़ा था.

गुरुजी – रश्मि तुम पहले के जैसे प्रणाम की मुद्रा में लेट जाओ.

मैं घुटने के बल बैठ गयी और पल्लू को अपनी कमर में खोसा ताकि जब मैं पेट के बल उल्टी लेट जाउ तो इन तीन मर्दों के सामने मेरी पीठ धकि रहे. फिर पेट के बल लेट कर मैने प्रणाम की मुद्रा में अपनी दोनो बाँहे सर के आगे कर ली. मेरे फर्श में लेटते समय समीर ने गुप्ता जी को पकड़ा हुआ था.

गुरुजी – कुमार तुम भी पहले के जैसे माध्यम के उपर लेट जाओ.

मैने फिर से अपने उपर गुप्ता जी के बदन का भार और उसका खड़ा लंड मेरे मुलायम नितंबों में महसूस किया. अब मैने पैंटी उतार दी थी तो ज़्यादा अच्छी तरह से महसूस हो रहा था. मुझे याद आया कि मेरे बेडरूम में मेरे पति लूँगी में ऐसे ही मेरे उपर लेटते थे और मैं सिर्फ़ नाइटी पहने रहती थी और अंदर से कुछ नही. मैने अपने उपर काबू रखने की कोशिश की और लिंगा महाराज के उपर ध्यान लगाने की कोशिश की पर कोई फ़ायदा नही हुआ.

गुरुजी – समीर ये कटोरा लो और कुमार के पास रख दो.

मैने देखा समीर एक छोटा सा कटोरा लेकर आया और मेरे सर के पास रख दिया. उसमे कुछ सफेद दूध जैसा था और एक चम्मच भी थी.

गुरुजी – कुमार तुम काजल बेटी के लिए पूरे ध्यान से प्रार्थना करो और उसको रश्मि के कान में बोलो. फिर एक चम्मच यज्ञ रस रश्मि को पिलाओ. ठीक है ?

कुमार – जी गुरुजी.

गुरुजी – रश्मि इस बार पहले से थोड़ा अलग करना है.

“क्या गुरुजी ?”

मैने लेटे लेटे ही गुरुजी की तरफ सर घुमाया और देखा कि उनकी आँखे पहाड़ की तरह उपर को उठे मेरे नितंबों पर हैं. जैसे ही हमारी नज़रें मिली गुरुजी ने मेरी गान्ड से अपनी नज़रें हटा ली.

गुरुजी – कुमार के रस पिलाने के बाद तुम अपने मन में लिंगा महाराज को प्रार्थना दोहराओगी और फिर पलट जाओगी. ऐसा 6 बार करना है. 3 बार उपर की तरफ और 3 बार नीचे की तरफ. ठीक है ?

गुरुजी की बात समझने में मुझे कुछ समय लगा और तभी समीर ने बेहद खुली भाषा में मुझे समझाया कि अब मुझे कितनी बेशर्मी दिखानी होगी.

समीर – मेडम , बड़ी सीधी सी बात है. गुरुजी के कहने का मतलब है कि अभी तुम उल्टी लेटी हो. गुप्ता जी को पहली प्रार्थना इसी पोज़िशन में करनी है. फिर आप सीधी लेट जाओगी जैसे कि हम बेड पर लेटते हैं. गुप्ता जी को दूसरी प्रार्थना उस पोज़िशन में करनी होगी. ऐसे ही कुल 6 बार प्रार्थना करनी होगी. बस इतना ही. ज़य लिंगा महाराज.

गुरुजी – ज़य लिंगा महाराज. रश्मि मैं जानता हूँ कि एक औरत के लिए ऐसा करना थोडा अभद्र लग सकता है , लेकिन यज्ञ के नियम तो नियम है. मैं इसे बदल नही सकता.

गुरुजी की अग्या मानने के सिवा मेरे पास कोई चारा नही था. लेकिन उस दृश्य की कल्पना करके मेरे कान लाल हो गये. दूसरी प्रार्थना के लिए मुझे सीधा लेटना होगा और गुप्ता जी मेरे उपर लेटेगा. पहले भी वो मेरे उपर लेटा था लेकिन तब कम से कम ये तो था कि मेरा मुँह फर्श की तरफ था. लेकिन अब तो ये ऐसा होगा जैसे की मैं बेड में सीधी लेटी हूँ और मेरे पति मेरे उपर लेट कर मुझे आलिंगन कर रहे हो. और उपर से दो आदमी भी मुझे इस बेशरम हरकत को करते हुए देख रहे होंगे. मेरी नज़रें झुक गयी और मैने प्रणाम की मुद्रा में हाथ आगे करते हुए सर नीचे झुका लिया.

गुरुजी – समीर तुम कुमार के पास खड़े रहो और उसे उपर नीचे उतरने में मदद करना.

समीर मेरे पास आकर बैठ गया.

गुरुजी – ठीक है. कुमार अब तुम पहली प्रार्थना शुरू करो. सभी लोग ध्यान लगाओ. जय लिंगा महाराज.

गुप्ताजी ने मेरे कान में प्रार्थना कहनी शुरू की. उसका पैजामे में खड़ा लंड मुझे अपने नितंबों में चुभ रहा था. इस बार मैंने पैंटी उतार दी थी तो ज़्यादा अच्छी तरह से महसूस हो रहा था. शायद ऐसा ही गुप्ताजी को भी लग रहा होगा. धीरे धीरे वो मेरे नितंबों पर ज़्यादा दबाव डालने लगा और हल्के से धक्के लगाने लगा. मैं सोच रही थी की ये अपनी लड़की के लिए प्रार्थना कैसे कर पा रहा है.

प्रार्थना कहने के बाद अब गुप्ताजी ने कटोरे में से एक चम्मच यज्ञ रस मुझे पिलाया. मेरी पीठ में उसकी हरकतों से मेरे होंठ खुले हुए ही थे. समीर ने रस पिलाने में गुप्ताजी की मदद की. रस का स्वाद अच्छा था. उसके बाद मैंने आँखें बंद की और प्रार्थना को लिंगा महाराज का ध्यान करते हुए मन ही मन दोहरा दिया.

समीर – मैडम, अब मैं गुप्ताजी को नीचे उतारूँगा और आप सीधी लेट जाना.

समीर मेरे ऊपर से गुप्ताजी को नीचे उतारने में मदद कर रहा था. समीर का हाथ मैंने अपने बाएं नितंब के ऊपर टेका हुआ महसूस किया, फिर गुप्ताजी के पैर मुझे अपने पैरों से हटते हुए महसूस हुए. गुप्ताजी ने सहारे के लिए मेरे कंधों को पकड़ा हुआ था. दो दो मर्दों के हाथ मेरे बदन पर थे. मेरी टाँगों के ऊपर से गुप्ताजी के विकलांग पैर को हटाने के बजाय समीर मेरी मांसल जाँघों के ऊपर हाथ रखे हुए था और साड़ी के बाहर से उन्हें महसूस कर रहा था. मेरी ऐसी हालत थी की मैं पीछे मुड़ के देख भी नहीं सकती थी . फिर गुप्ताजी मेरी पीठ से उतर गया और समीर ने मेरी जाँघों से अपने हाथ हटा लिए.

अब मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था. मुझे सीधा लेटकर ऊपर की तरफ मुँह करना था. जब मैं पलटी तो मुझे समझ आ रहा था की इस हाल में मैं बहुत मादक दिख रही हूँ. मैंने ख्याल किया की गुप्ताजी और समीर मेरे जवान बदन को ललचाई नज़रों से देख रहे थे. मैंने नज़रें उठाई तो देखा की गुरुजी भी मुस्कुराते हुए मुझे ही देख रहे थे.

गुरुजी – कुमार अब तुम दूसरी प्रार्थना करोगे. रश्मि, माध्यम के रूप में तुम कुमार को पूरी तरह से अपने बदन के ऊपर चढ़ाओगी. विधान ये है की माध्यम को भक्त के दिल की धड़कनें सुनाई देनी चाहिए.

इन तीन मर्दों के सामने ऐसे लेटे हुए मुझे इतनी शर्मिंदगी महसूस हो रही थी की क्या बताऊँ. मैंने गुरुजी की बात में सर हिलाकर हामी भर दी. गुप्ताजी मेरे ऊपर चढ़ने को बेताब था और जैसे ही वो मेरे ऊपर चढ़ने लगा मैंने शरम से आँखें बंद कर लीं. मुझे बहुत ह्युमिलिएशन फील हो रहा था. औरत होने की स्वाभाविक शरम से मैंने अपनी छाती के ऊपर बाँहें आड़ी करके रखी हुई थीं.

समीर – मैडम, प्लीज़ अपने हाथ प्रणाम की मुद्रा में सर के आगे लंबे करो.

“वैसे करने में मुझे अनकंफर्टेबल फील हो रहा है.”

मैंने कह तो दिया लेकिन बाद में मुझे लगा की मैंने बेकार ही कहा क्यूंकी गुरुजी ने अपने शब्दों से मुझे और भी ह्युमिलियेट कर दिया.

समीर – लेकिन मैडम…….

गुरुजी – रश्मि , हम सबको मालूम है की अगर एक मर्द तुम्हारे बदन के ऊपर चढ़ेगा तो तुम अनकंफर्टेबल फील करोगी. लेकिन हर कार्य का एक उद्देश्य होता है. अगर तुम अपनी छाती के ऊपर बाँहें रखोगी तो तुम कुमार के दिल की धड़कनें कैसे महसूस करोगी ? अगर तुम्हारी छाती उसकी छाती से नहीं मिलेगी तो एक माध्यम के रूप में उसकी प्रार्थना के आवेग को कैसे महसूस करोगी ?

वो थोड़ा रुके. पूजा घर के उस कमरे में एकदम चुप्पी छा गयी थी. वो तीनो मर्द मेरी उठती गिरती चूचियों के ऊपर रखी हुई मेरी बाँहों को देख रहे थे.

गुरुजी – अगर ये तंत्र यज्ञ होता और तुम माध्यम के रूप में होती तो मैं तुम्हारे कपड़े उतरवा लेता क्यूंकी उसका यही नियम है.

उन मर्दों के सामने ये सब सुनते हुए मैं बहुत अपमानित महसूस कर रही थी और अपने को कोस रही थी की मैंने चुपचाप हाथ आगे को क्यूँ नहीं कर दिए. ये सब तो नहीं सुनना पड़ता. अब और ज़्यादा समय बर्बाद ना करते हुए मैंने अपने हाथ सर के आगे प्रणाम की मुद्रा में कर दिए. अब बाँहें ऐसे लंबी करने से मेरा ब्लाउज थोड़ा ऊपर को खींच गया और चूचियाँ ऊपर को उठकर तन गयीं , और भी ज्यादा आकर्षक लगने लगीं.

जल्दी ही गुप्ताजी मेरे ऊपर चढ़ गया और मैंने शरम से अपने जबड़े भींच लिए. मेरे बेडरूम में जब मैं ऐसे लेटी रहती थी और मेरे पति मेरे ऊपर चढ़ते थे तो पहले वो मेरी गर्दन को चूमते थे , फिर कंधे पर और फिर मेरे होठों का चुंबन लेते थे. उनका एक हाथ मेरी नाइटी या ब्लाउज के ऊपर से मेरी चूचियों पर रहता था और मेरे निपल्स को मरोड़ता था. उसके बाद वो मेरी नाइटी या पेटीकोट जो भी मैंने पहना हो , उसको ऊपर करके मेरी गोरी टाँगों और जाँघों को नंगी कर देते थे , चाहे उनका मन संभोग करने का नहीं हो और सिर्फ़ थोड़ा बहुत प्यार करने का हो तब भी. अभी गुप्ताजी के मेरे ऊपर चढ़ने से मुझे अपने पति के साथ बिताए ऐसे ही लम्हों की याद आ गयी.

मेरी बाँहें सर के पीछे लंबी थीं इसलिए गुप्ताजी के लिए कोई रोक टोक नहीं थी और उसने मेरे बदन के ऊपर अपने को एडजस्ट करते समय मेरी दायीं चूची को अपनी कोहनी से दो बार दबा दिया और यहाँ तक की अपनी टाँग एडजस्ट करने के बहाने साड़ी के ऊपर से मेरी चूत को भी छू दिया. उसने अपने को मेरे ऊपर ऐसे एडजस्ट कर लिया जैसे चुदाई का परफेक्ट पोज़ हो . कमरे में दो मर्द और भी थे जो हम दोनों को देख रहे थे और मैं उनकी आँखों के सामने ऐसे लेटी हुई बहुत अपमानित महसूस कर रही थी.

अब गुप्ताजी ने मेरे कान में प्रार्थना कहनी शुरू की और इसी बहाने मेरे कान को चूम और चाट लिया. वैसे तो मैंने शरम से अपनी आँखें बंद कर रखी थी लेकिन मैं समझ रही थी की समीर जो मेरे इतना पास बैठा हुआ था उसने इस बुड्ढे की हरकतें ज़रूर देख ली होंगी.

अब गुप्ताजी ने मुझे चम्मच से यज्ञ रस पिलाया और पिलाते समय उसने अपना दायां हाथ मेरी बायीं चूची के ऊपर टिकाया हुआ था और वो अपनी बाँह से मेरे निप्पल को दबा रहा था. समीर ने फिर से रस पिलाने में उसकी मदद की और फिर मैंने लिंगा महाराज को उसकी प्रार्थना दोहरा दी. मैं ही जानती थी की मैंने लिंगा महाराज से क्या कहा क्यूंकी प्रार्थना के नाम पर वो बुड्ढा मेरे बदन से जो छेड़छाड़ कर रहा था उससे मैं फिर से कामोत्तेजित होने लगी थी.

ऐसे करके कुल 6 बार प्रार्थना हुई और हर बार मुझे ऊपर नीचे को पलटना पड़ा और गुप्ताजी आगे से और पीछे से मेरे ऊपर चढ़ते रहा. अंत में ना सिर्फ़ मैं पसीने से लथपथ हो गयी बल्कि मुझे बहुत तेज ओर्गास्म भी आ गया. बाद बाद में तो गुप्ताजी कुछ ज़्यादा ही कस के आलिंगन करने लगा था और एक बार तो उसने मेरे नरम होठों से अपने मोटे होंठ भी रगड़ दिए और चुंबन लेने की कोशिश की. लेकिन मैंने अपना चेहरा हटाकर उसे चुंबन नहीं लेने दिया. वो मेरे ऊपर धक्के भी लगाने लगा था और मेरे पूरे बदन को उसने अच्छी तरह से फील कर लिया. और मेरे बदन पर गुप्ताजी को चढ़ाते उतारते समय समीर ने मेरे निचले बदन पर जी भरके हाथ फिरा लिए. गुप्ताजी की मदद के बहाने उसने कम से कम दो या तीन बार मेरे नितंबों को पकड़ा और मेरी जाँघों पर तो ना जाने कितनी बार अपना हाथ फिराया.

मैंने पैंटी नहीं पहनी थी तो तेज ओर्गास्म आने के बाद मेरी चूत का रस मेरी जांघों के अंदरूनी हिस्से में बहने लगा और मेरा पेटीकोट गीला हो गया. उस समय मैं सोच रही थी की पैंटी उतारकर ग़लती की. प्रार्थना पूरी होने के बाद गुरुजी और समीर ने जय लिंगा महाराज का जाप किया और आख़िरकार गुप्ताजी मेरे बदन से उतर गया.

समीर – गुरुजी कमरा बहुत गरम हो गया है. हम सब को पसीना आ रहा है. थोड़ा विराम कर लेते हैं गुरुजी.

गुरुजी – हाँ थोड़ा विराम ले सकते हैं लेकिन मध्यरात्रि तक ही शुभ समय है तब तक यज्ञ पूरा हो जाना चाहिए.

तब तक मैं फर्श से उठ के बैठ गयी थी और मुझे पता चला की मेरा बायां निप्पल ब्रा कप से बाहर आ गया है जो की गुप्ताजी के मेरी छाती को लगातार दबाने से हुआ था तो मुझे ब्रा एडजस्ट करनी थी. लेकिन इन मर्दों के सामने मैं अपनी ब्रा एडजस्ट नहीं कर सकती थी इसलिए बाथरूम जाने की सोच रही थी. पर अभी तो मेरा और भी ह्युमिलिएशन होना था , रही सही कसर भी पूरी हो गयी.

समीर – ठीक है गुरुजी. गुप्ताजी एक बार अपना रुमाल दे सकते हैं ? मुझे बहुत पसीना आ रहा है.

गुप्ताजी उलझन में पड़ गया. मैं तुरंत समझ गयी की समीर जिसे गुप्ताजी का रुमाल समझ रहा है वो तो मेरी पैंटी है जो की उसके कुर्ते की जेब में मुड़ी तुड़ी रखी थी.

अब मैं बहुत नर्वस हो गयी और समझ में नहीं आ रहा था की क्या करूँ ? यही हालत गुप्ताजी की भी थी.

कुमार – ये तो ….मेरा मतलब …ये मेरा रुमाल नहीं है.

समीर – तो किसी और का है क्या ?

कुमार – नहीं नहीं. मेरा मतलब ये रुमाल नहीं है.

समीर – ओह…..पर लग तो रुमाल जैसा ही रहा है. तो फिर ये क्या है ?

अब गुप्ताजी मेरा मुँह देखने लगा और मैं तो वहीं पर जम गयी.

समीर – कुछ परेशानी है क्या ? मैंने कुछ ग़लत पूछ लिया क्या?

अब गुप्ताजी को कुछ तो जवाब देना ही था.

कुमार – ना ना ऐसी कोई बात नहीं. मेरा मतलब ….

वो थोड़ा रुका, मेरी तरफ देखा और फिर बता ही दिया.

कुमार – असल में जब हम बाथरूम में गये , मेरा मतलब जब रश्मि बाथरूम गयी तो उसे कुछ असुविधा हो रही थी इसलिए उसने अपनी पैंटी उतार दी. और उसके पास इसे रखने के लिए जगह नहीं थी तो मैंने अपनी जेब में रख ली.

ऐसा कहते हुए गुप्ताजी ने अपनी जेब से मेरी पैंटी निकाली और फैलाकर समीर को दिखाई. उन मर्दों के सामने मैं शरम से मर ही गयी और मैंने अपनी नज़रें नीची कर ली. वो तीनो मर्द गौर से मेरी छोटी सी पैंटी को देख रहे थे. इतना ह्युमिलिएशन क्या कम था जो अब समीर ने एक फालतू बात कहना ज़रूरी समझा.

समीर – ओह. मैडम तब तो आप बिना पैंटी के हो अभी ?

मैंने उसके सवाल का जवाब नहीं दिया और वहाँ से जाने में ही भलाई समझी.

“गुरुजी, एक बार बाथरूम जाना चाहती हूँ.”

गुरुजी – ज़रूर जाओ रश्मि. लेकिन 5 मिनट में आ जाना. अब अनुष्ठान में नंदिनी की बारी है.

मैं फर्श से उठ खड़ी हुई और गुप्ताजी के हाथ से , सबके देखने के लिए प्रदर्शित , अपनी पैंटी छीन ली और कमरे से बाहर निकल गयी. मैंने समीर और गुप्ताजी के धीरे से हंसने की आवाज़ सुनी और बहुत अपमानित महसूस किया. मैंने खुद को बहुत कोसा की मैंने क्यूँ इस बुड्ढे को अपनी पैंटी रखने को दी. मैं बाथरूम गयी और मुँह धोया. फिर अपनी साड़ी और पेटीकोट उठाकर चूत और जांघों को भी धो लिया , जो मेरे चूतरस से चिपचिपी हो रखी थी. और फिर अपनी पैंटी पहन ली जो की थोड़ी गीली हो रखी थी. फिर मैंने अपने कपड़े ठीकठाक किए और थोड़ा शालीन दिखने की कोशिश की.

जब मैं वापस आई तो गुप्ताजी पूजा घर से चला गया था और उसकी पत्नी नंदिनी वहाँ आ गयी थी.

कहानी जारी रहेगी
NOTE


1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .

2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.

3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .

4. जब मैंने ये कहानी यहाँ डालनी शुरू की थी तो मैंने भी इसका अधूरा भाग पढ़ा था और मैंने कुछ आगे लिखने का प्रयास किया और बाद में मालूम चला यह कहानी अंग्रेजी में "समितभाई" द्वारा "गुरु जी का (सेक्स) ट्रीटमेंट" शीर्षक से लिखी गई थी और अधूरी छोड़ दी गई थी। बाद में 2017 में समीर द्वारा हिंदी अनुवाद शुरू किया गया, जिसका शीर्षक था "एक खूबसूरत हाउस वाइफ, गुरुजी के आश्रम में" और लगभग 33% अनुवाद "Xossip" पर किया गया था। अभी तक की कहानी मुलता उन्ही की कहानी पर आधारित है या उसका अनुवाद है और अब कुछ हिस्सों का अनुवाद मैंने किया है ।

कहानी काफी लम्बी है और मेरा प्रयास जारी है इसको पूरा करने का ।



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RE: आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07 - by aamirhydkhan1 - 30-04-2022, 11:52 AM



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