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Thriller आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07
#37
गुरुजी के आश्रम में सावित्री

औलाद की चाह

CHAPTER 5 - चौथा दिन -कुंवारी लड़की

Update-2

माध्यम



शुरू में करीब 20 मिनट तक मंत्रोचार और पूजा पाठ होता रहा. मुझे कुछ नहीं करना पड़ा.कमरा छोटा था इसलिए अगरबत्ती के धुएं और यज्ञ की आग से धुएं से भरने लगा. मैं अग्नि के नज़दीक़ बैठी थी तो मुझे पसीना आने लगा और मेरी कांख और पीठ पसीने से गीले हो गये.

गुरुजी – अब मैं काजल के लिए व्यक्तिगत अनुष्ठान शुरू करूँगा. माता पिता दोनों को इसमें एक एक कर भाग लेना होगा. उसके बाद मुख्य अनुष्ठान में सिर्फ़ काजल बेटी को ही भाग लेना होगा.

गुरुजी – अब मैं काजल के लिए व्यक्तिगत अनुष्ठान शुरू करूँगा. माता पिता दोनों को इसमें एक एक कर भाग लेना होगा. उसके बाद मुख्य यज्ञ में सिर्फ़ काजल बेटी को ही भाग लेना होगा.

कुमार – गुरुजी, अगर आप मुझसे शुरू करें तो ….

गुरुजी – हाँ कुमार, मैं तुमको बेवजह कष्ट नहीं देना चाहता. मैं तुमसे ही शुरू करूँगा और फिर तुम आराम कर सकते हो.

कुमार – धन्यवाद गुरुजी.

नंदिनी – गुरुजी , जब कुमार का काम पूरा हो जाए तो मुझे बुला लेना.

गुरुजी ने सर हिलाकर हामी भर दी. नंदिनी और काजल पूजाघर से चले गये और समीर ने कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया.

कुमार फिर से मुझे घूर रहा था लेकिन मेरा ध्यान अपने पसीने पर ज़्यादा था. मेरा ब्लाउज भीग कर गीला हो गया था. मैंने अपने पल्लू से गर्दन और पीठ का पसीना पोंछ दिया. तभी पहली बार कुमार ने मुझसे बात की.

कुमार – गुरुजी , मुझे लगता है रश्मि को गर्मी लग रही है. हम ये दरवाज़ा खुला नहीं रख सकते क्या ?

मुझे हैरानी हुई की उसने सीधे मेरे नाम से मुझे संबोधित किया. मैं समझ गयी थी की वो मुझे बड़े गौर से देख रहा था की मुझे पसीना आ रहा है , इससे मुझे थोड़ी इरिटेशन हुई.

गुरुजी – नहीं कुमार. उससे ध्यान भटकेगा.

कुमार – जी. सही कहा.

गुरुजी – रश्मि , अब यज्ञ में तुम कुमार का माध्यम बनोगी.

मैं बेवकूफ की तरह पलकें झपका रही थी क्यूंकि मुझे पता ही नहीं था की माध्यम बनकर मुझे करना क्या होगा ?

गुरुजी – कुमार और रश्मि मेरी बायीं तरफ आओ. समीर तुम भोग तैयार करो.

समीर भोग तैयार करने लगा. अब मुझे कुमार को खड़े होने में मदद करने जाना पड़ा. मैं अपनी जगह से उठ कर खड़ी हो गयी . बैठने से मेरी पेटीकोट और साड़ी मेरे नितंबों में फँस गयी थी तो मुझे उन तीन मर्दों के सामने अपने हाथ पीछे ले जाकर कपड़े ठीक करने पड़े. फिर मैं सामने बैठे कुमार के पास गयी.

“गुप्ताजी आप खुद से खड़े हो जाओगे ?”

कुमार – नहीं रश्मि, मुझे तुम्हारी सहायता चाहिए.

वो फिर से सीधा मेरा नाम ले रहा था तो मेरी खीझ बढ़ रही थी लेकिन गुरुजी के सामने मैं उसे टोक भी नहीं सकती थी. मेरे कुछ करने से पहले ही उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और दूसरे हाथ से अपनी छड़ी टेककर खड़ा होने लगा. मैंने उसका हाथ और कंधा पकड़कर उसे उठने में मदद की. चलते समय वो बहुत काँप रहा था , उसकी विकलांगता देखकर मुझे बुरा लगा. मैंने देखा था की उसने नंदिनी के कंधे का सहारा लिया हुआ था तो मैंने भी अपना कंधा आगे कर दिया. मेरे कंधे में हाथ रखकर वो थोड़ा ठीक से चलने लगा.

गुरुजी – रश्मि इस थाली को पकड़ो और इसे अग्निदेव को चढ़ाओ. कुमार तुम रश्मि को पीछे से पकड़ो और जो मंत्र मैं बताऊंगा , उसे रश्मि के कान में धीमे से बोलो. रश्मि माध्यम के रूप में तुम्हें उस मंत्र को ज़ोर से अग्निदेव के समक्ष बोलना है. ठीक है ?

“जी गुरुजी.”

मैंने गुरुजी से थाली ले ली और अग्नि के सामने खड़ी हो गयी. अब मैं गुरुजी के ठीक सामने अग्निकुण्ड के दूसरी तरफ खड़ी थी. मैंने देखा कुमार मेरे पीछे छड़ी के सहारे खड़ा था.

गुरुजी – कुमार , छड़ी को रख दो और एक हाथ में इस किताब को पकड़ो.

मैंने तुरंत ही अपनी कमर में उसकी गरम अंगुलियों की पकड़ महसूस की. उसकी अंगुलियां थोड़ी मेरी साड़ी के ऊपर थीं और थोड़ी मेरे नंगे पेट पर. मुझे समझ आ रहा था की छड़ी हटाने के बाद उसे किसी सहारे की ज़रूरत पड़ेगी, लेकिन उसके ऐसे पकड़ने से मेरे पूरे बदन में कंपकपी दौड़ गयी. मुझे अजीब लगा और मैंने प्रश्नवाचक निगाहों से गुरुजी को देखा. शुक्र है की गुरुजी समझ गये की मैं क्या कहना चाह रही हूँ.

गुरुजी – कुमार , रश्मि का कंधा पकड़ो और किताब में जहाँ पर निशान लगा है उस मंत्र को रश्मि के कान में बोलना शुरू करो.

कुमार – जी गुरुजी.

उसने मेरी कमर से हाथ हटा लिया और मेरे कंधे को पकड़ लिया.

गुरुजी – रश्मि तुम मंत्र को ज़ोर से अग्निदेव के समक्ष बोलोगी और मैं उसे लिंगा महाराज के समक्ष दोहराऊंगा. तुम दोनों आँखें बंद कर लो. जय लिंगा महाराज.

मैंने आँखें बंद कर ली और अपने कंधे पर कुमार की गरम साँसें महसूस की. वो मेरे कान में मंत्र बोलने लगा और मैंने ज़ोर से उस मंत्र का जाप कर दिया और फिर गुरुजी ने और ज़ोर से उसे दोहरा दिया. शुरू में कुछ देर तक ऐसे चलता रहा फिर मुझे लगा की मेरे कान में मंत्र बोलते वक़्त कुमार मेरे और नज़दीक़ आ रहा है. मैंने पहले तो उसकी विकलांगता की वजह से इस पर ध्यान नहीं दिया. मैंने उसके घुटने अपनी जांघों को छूते हुए महसूस किए फिर उसका लंड मेरे नितंबों को छूने लगा. मैंने थोड़ा आगे खिसकने की कोशिश की लेकिन आगे अग्निकुण्ड था. धीरे धीरे मैंने साफ तौर पर महसूस किया की वो मेरे सुडौल नितंबों पर अपने लंड को दबाने की कोशिश कर रहा था.

मैं मन ही मन अपने को कोसने लगी की कुछ ही मिनट पहले मैं इस आदमी की विकलांगता पर दुखी हो रही थी और अब ये अपना खड़ा लंड मेरे नितंबों में चुभो रहा है. मैं सोच रही थी की अब क्या करूँ ? क्या मैं इसको एक थप्पड़ मार दूं और सबक सीखा दूं ? लेकिन मैं वहाँ यज्ञ के दौरान कोई बखेड़ा खड़ा करना नहीं चाहती थी. इसलिए मैं चुप रही और यज्ञ में ध्यान लगाने की कोशिश करने लगी. लेकिन वो कमीना इतने में ही नहीं रुका. अब मंत्र पढ़ते समय वो मेरे कान को अपने होठों से छूने लगा. मुझे अनकंफर्टबल फील होने लगा और मैं कामोत्तेजित होने लगी क्यूंकी उसका कड़ा लंड मेरी मुलायम गांड में लगातार चुभ रहा था और उसके होंठ मेरे कान को छू रहे थे. स्वाभाविक रूप से मेरे बदन की गर्मी बढ़ने लगी.

खुशकिस्मती से कुछ मिनट बाद मंत्र पढ़ने का काम पूरा हो गया. मैंने राहत की साँस ली. लेकिन वो राहत ज़्यादा देर तक नहीं रही.

गुरुजी – धन्यवाद रश्मि. तुमने बहुत अच्छे से किया. अब ये थाली मुझे दे दो. ये कटोरा पकड़ लो और इसमें से बहुत धीरे धीरे तेल अग्नि में चढ़ाओ. कुमार तुम भी इसके साथ ही कटोरा पकड़ लो.

मैं गुरुजी से कटोरा लेने झुकी और उस चक्कर में ये भूल गयी की सहारे के लिए कुमार ने मेरे कंधे पर हाथ रखा हुआ है. मेरे आगे झुकने से उसका हाथ मेरे कंधे से छूट गया और उसका संतुलन गड़बड़ा गया.

गुरुजी – रश्मि, उसे पकड़ो.

गुरुजी एकदम से चिल्लाए. मुझे अपनी ग़लती का एहसास हुआ और मैं तुरंत पीछे मुड़ने को हुई. लेकिन मैं पूरी तरह पीछे मुड़ कर उसे पकड़ पाती उससे पहले ही वो मेरी पीठ में गिर गया. मैंने उसे चलते समय काँपते हुए देखा था इसलिए मुझे सावधान रहना चाहिए था. कुमार मेरे जवान बदन के ऊपर झुक गया और उसका चेहरा मेरी गर्दन के पास आ गिरा. गिरने से बचने के लिए उसने मुझे पीछे से आलिंगन कर लिया.

“आउच…….”

जब वो मेरे ऊपर गिरा तो मेरे मुँह से खुद ही आउच निकल गया. वैसे देखने वाले को ये लगेगा की वो मेरे ऊपर गिर गया और अब सहारे के लिए मेरी कमर पकड़े हुए है लेकिन असलियत मुझे मालूम पड़ रही थी. कुछ देर से मैं उसका घूरना और उसकी छेड़छाड़ सहन कर रही थी पर इस बार तो उसने सारी हदें पार कर दी. मेरी पीठ में ब्लाउज के U कट के ऊपर उसकी जीभ और होंठ मुझे महसूस हुए और उसकी नाक मेरी गर्दन के निचले हिस्से पर छू रही थी. जब सहारे के लिए उसने मुझे पकड़ लिया तो उसके दाएं हाथ ने मेरी बाँह पकड़ ली लेकिन उसके बाएं हाथ ने मुझे पीछे से आलिंगन करके मेरी पैंटी के पास पकड़ लिया. मैं जल्दी से कुछ ही सेकेंड्स में संभल गयी लेकिन तब तक मैंने साड़ी के ऊपर से अपनी पैंटी के अंदर चूत पर उसके हाथ का दबाव महसूस किया और मेरे ब्लाउज के ऊपर नंगी पीठ को उसने अपनी जीभ से चाट लिया.

कुमार – सॉरी रश्मि. तुम अचानक झुक गयी और मैं संतुलन खो बैठा.

मुझे उसके व्यवहार से बहुत इरिटेशन हो रही थी फिर भी मुझे माफी माँगनी पड़ी. वो इतनी बड़ी उमर का था और ऊपर से विकलांग भी था और ऐसा अशिष्ट व्यवहार कर रहा था. मैं गुरुजी की वजह से कुछ बोल नहीं पाई वरना मन तो कर रहा था इस कमीने को कस के झापड़ लगा दूं.

गुरुजी – कुमार तुम ठीक हो ?

कुमार – हाँ गुरुजी. मैंने सही समय पर रश्मि को पकड़ लिया था.

गुरुजी – चलो कोई बात नहीं. रश्मि, मैं मंत्र पढूंगा और तुम तेल चढ़ाना. काजल की पढ़ाई के लिए हम पहले अग्निदेव की पूजा करेंगे और फिर लिंगा महाराज की.

हमने हामी भर दी और कुमार फिर से मेरे नज़दीक़ आ गया और मेरे पीछे से कटोरा पकड़ लिया. इस बार उसके पूरे बदन का भार मेरे ऊपर पड़ रहा था और उसकी अंगुलियां मेरी अंगुलियों को छू रही थीं. गुरुजी ने ज़ोर ज़ोर से मंत्र पढ़ने शुरू किए और मैं कटोरे से यज्ञ की अग्नि में तेल चढ़ाने लगी. . मुझे साफ महसूस हो रहा था की अब कुमार बिना किसी रुकावट के पीछे से मेरे पूरे बदन को महसूस कर रहा है. मेरे सुडौल नितंबों पर वो हल्के से धक्के भी लगा रहा था. उस कमीने की इन हरकतों से मैं कामोत्तेजित होने लगी थी.

जब मैं अग्निकुण्ड में तेल डालने लगी तो उसमे तेज लपटें उठने लगी इसलिए मुझे थोड़ा सा पीछे को खिसकना पड़ा. इससे कुमार के और भी मज़े आ गये और वो मेरी साड़ी के बाहर से अपना सख़्त लंड चुभाने लगा. उसने मेरे पीछे से कटोरा पकड़ा हुआ था तो उसकी कोहनियां मुझे साइड्स से दबा रही थी, एक तरह से उसने मुझे पीछे से आलिंगन करके कटोरा पकड़ा हुआ था और उसका सारा वज़न मुझ पर पड़ रहा था. गुरुजी मंत्र पढ़ते रहे और मैं बहुत धीरे से अग्नि में तेल डालती रही. तेल चढ़ाने का ये काम लंबा खिंच रहा था.

मौका देखकर कुमार ने कटोरे में अपनी अंगुलियों को मेरी अंगुलियों पर इतनी ज़ोर से कस लिया की मुझे थोड़ा पीछे मुड़ के गुस्से से उसको घूरना पड़ा. वो कमीनेपन से मुस्कुराया और मेरी खीझ और भी बढ़ गयी जबकि वास्तव में मर्दाने टच से मुझे कामानंद मिल रहा था. मैंने गुरुजी को देखा पर वो आँख बंद कर मंत्र पढ़ रहे थे और समीर एक कोने में भोग बना रहा था इस तरह किसी का ध्यान हम पर नहीं था. तभी वो मेरे कान में फुसफुसाया……

कुमार – रश्मि , मैं कटोरे से एक हाथ हटा रहा हूँ. मुझे खुजली लग रही है.

मुझे क्या मालूम की उसे कहाँ पर खुजली लग रही है. उसने अपना दांया हाथ कटोरे से हटा लिया और अपने लंड को खुज़लाने लगा. मुझे ये बात जानने के लिए पीछे मुड़ के देखने की ज़रूरत नहीं थी क्यूंकी उसका हाथ मुझे अपने नितंबों और उसके लंड के बीच महसूस हो रहा था. वो बेशरम बुड्ढा अपने लंड पर खुज़ला रहा था और अब मैं समझ गयी थी की उसे कहाँ खुजली लगी थी. खुज़लाने के बाद वो अपना हाथ कटोरे पर वापस नहीं लाया और अपने हाथ को मेरे बड़े नितंबों पर फिराने लगा.

उसने मेरे सुडौल नितंबों को अपने हाथ में पकड़कर दबाया तो मेरे निपल तनकर कड़क हो गये. मेरी चूचियां ब्रा में तन गयीं. मैंने दोनों हाथों से तेल का कटोरा पकड़ा हुआ था , उसकी इस अश्लील हरकत को बंद करवाने के लिए मुझे पीछे मूड कर गुस्से से उसे घूरना पड़ा. उसने तुरंत अपना हाथ मेरे नितंबों से हटा लिया और फिर से कटोरा पकड़ लिया. उसके एक दो मिनट बाद तेल चढ़ाने का वो काम खत्म हो गया. यज्ञ की अग्नि के साथ साथ कुमार की मेरे बदन से छेड़छाड़ से अब मुझे बहुत पसीना आने लगा था.

गुरुजी – अग्निदेव की पूजा पूरी हो चुकी है. अब हम लिंगा महाराज की पूजा करेंगे. जय लिंगा महाराज.

कुमार (गुप्ताजी) और मैंने भी जय लिंगा महाराज बोला. गुरुजी मंत्र पढ़ते हुए विभिन्न प्रकार की यज्ञ सामग्री को अग्निकुण्ड में चढ़ाने लगे. करीब 5 मिनट तक ऐसा चलता रहा. समीर अभी भी भोग को तैयार करने में व्यस्त था.

गुरुजी – रश्मि, मैं जानता हूँ की यज्ञ का ये भाग तुम्हें थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन एक माध्यम को ये कष्ट उठाना ही पड़ता है. तुम्हें कुमार के लिए लिंगा महाराज की पूजा करनी होगी.

मुझे गुरुजी की बात समझ में नहीं आई की पूजा करने में अजीब क्यूँ लगेगा ? गुरुजी ने कष्ट की बात क्यूँ की ? मैंने गुरुजी की तरफ संशय से देखा.

गुरुजी – माध्यम के रूप में तुम कुमार को साथ लेकर फर्श पर लेटकर लिंगा महाराज को प्रणाम करोगी. तुम्हारी नाभि और घुटने फर्श को छूने चाहिए.

मैंने हामी भर दी जबकि मुझे अभी भी ठीक से बात समझ नहीं आई थी. मैंने कुमार को छड़ी दे दी और अब वो छड़ी के सहारे था. गुरुजी ने गंगा जल से मेरे हाथ धुलाए और मुझे वो जगह बताई जहाँ पर मुझे प्रणाम करना था. मैं वहाँ पर गयी और घुटनों के बल बैठ गयी. फिर मैं पेट के बल फर्श पर लेट गयी.

गुरुजी – प्रणाम के लिए अपने हाथ सर के आगे लंबे करो. तुम्हारी नाभि फर्श को छू रही है ? मैं देखता हूँ.

गुरुजी ने मुझे कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया और मेरे पेट से साड़ी हटाकर वहाँ अपनी एक अंगुली डालकर देखने लगे की मेरी नाभि फर्श को छू रही है या नहीं ? मैंने अपने नितंबों को थोड़ा सा ऊपर को उठाया ताकि गुरुजी मेरे पेट के नीचे अंगुली से चेक कर सकें. उनकी अंगुली मेरी नाभि पर लगी तो मुझे गुदगुदी होने लगी लेकिन मैंने जैसे तैसे अपने को काबू में रखा.

गुरुजी – हाँ, ठीक है.

ऐसा कहते हुए उन्होने मेरे पेट के नीचे से अंगुली निकाल ली और मेरे नितंबों पर थपथपा दिया. मैंने उनका इशारा समझकर अपने नितंब नीचे कर लिए. मैंने दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में सर के आगे लंबे किए हुए थे. उन मर्दों के सामने मुझे ऐसे उल्टे लेटना भद्दा लग रहा था. फिर मैंने देखा गुरुजी कुमार को मेरे पास आने में मदद कर रहे थे.

गुरुजी – रश्मि अब तुम कुमार की पूजा को लिंगा महाराज तक ले जाओगी.

“कैसे गुरुजी ?”

मुझे समझ नहीं आ रहा था की मुझे करना क्या है ? मैंने देखा गुरुजी कुमार को मेरे पास बैठने में मदद कर रहे हैं.

गुरुजी – रश्मि , मैंने तुम्हें बताया तो था. तुम्हें कुमार को साथ लेकर पूजा करनी है.

गुरुजी को दुबारा बताना पड़ा इसलिए वो थोड़े चिड़चिड़ा से गये थे लेकिन मैं उलझन में थी की करना क्या है ? साथ लेकर मतलब ?

गुरुजी – कुमार तुम रश्मि की पीठ पर लेट जाओ और इस किताब में से रश्मि के कान में मंत्र पढ़ो.

कुमार – जी गुरुजी.

हे भगवान ! अब तो मुझे कुछ न कुछ कहना ही था. गुरुजी इस आदमी को मेरी पीठ में लेटने को कह रहे थे. ये ऐसा ही था जैसे मैं बेड पर उल्टी लेटी हूँ और मेरे पति मेरे ऊपर लेटकर मुझसे मज़ा ले रहे हों.

“गुरुजी, लेकिन ये…..”

गुरुजी – रश्मि, ये यज्ञ का नियम है और माध्यम को इसे ऐसे ही करना होता है.

“लेकिन गुरुजी, एक अंजान आदमी को इस तरह………….”

गुरुजी – रश्मि , जैसा मैं कह रहा हूँ वैसा ही करो.

गुरुजी तेज आवाज़ में आदेश देते हुए बोले. एकदम से उनके बोलने का अंदाज़ बदल गया था. अब कुछ और बोलने का साहस मुझमें नहीं था और मैंने चुपचाप जो हो रहा था उसे होने दिया.

गुरुजी – कुमार तुम किसका इंतज़ार कर रहे हो ? समय बर्बाद मत करो. काजल के यज्ञ के लिए शुभ समय मध्यरात्रि तक ही है.

मुझे अपनी पीठ पर कुमार चढते हुए महसूस हुआ. मैं बहुत शर्मिंदगी महसूस कर रही थी. गुरुजी ने उसको मेरे जवान बदन के ऊपर लेटने में मदद की. कितनी शरम की बात थी वो. मैं सोचने लगी अगर मेरे पति ये दृश्य देख लेते तो ज़रूर बेहोश हो जाते. मैंने साफ तौर पर महसूस किया की कुमार अपने लंड को मेरी गांड की दरार में फिट करने के लिए एडजस्ट कर रहा है. फिर मैंने उसके हाथ अपने कंधों को पकड़ते हुए महसूस किए , उसके पूरे बदन का भार मेरे ऊपर था. एक जवान शादीशुदा औरत के ऊपर ऐसे लेटने में उसे बहुत मज़ा आ रहा होगा.

गुरुजी – जय लिंगा महाराज. कुमार अब शुरू करो. रश्मि तुम ध्यान से मंत्र सुनो और ज़ोर से लिंगा महाराज के सामने बोलना.

मैंने देखा गुरुजी ने अपनी आँखें बंद कर ली. अब कुमार ने मेरे कान में मंत्र पढ़ना शुरू किया. लेकिन मैं ध्यान नहीं लगा पा रही थी. कौन औरत ध्यान लगा पाएगी जब ऐसे उसके ऊपर कोई आदमी लेटा हो. मेरे ऊपर लेटने से कुमार के तो मज़े हो गये , उसने तुरंत मेरी उस हालत का फायदा उठाना शुरू कर दिया. अब वो मेरे मुलायम नितंबों पर ज़्यादा ज़ोर डाल रहा था और अपने लंड को मेरी गांड की दरार में दबा रहा था. शुक्र था की मैंने पैंटी पहनी हुई थी जिससे उसका लंड दरार में ज़्यादा अंदर नहीं जा पा रहा था.

मेरे कान में मंत्र पढ़ते हुए उसकी आवाज़ काँप रही थी क्यूंकी वो धीरे से मेरी गांड पर धक्के लगा रहा था जैसे की मुझे चोद रहा हो. मुझे ज़ोर से मंत्र दोहराने पड़ रहे थे इसलिए मैंने अपनी आवाज़ को काबू में रखने की कोशिश की. गुरुजी ने अपनी आँखें बंद कर रखी थी और समीर हमारी तरफ पीठ करके भोग तैयार कर रहा था इसलिए उस विकलांग आदमी की मौज आ रखी थी. उसका लकड़ी वाला पैर मुझे अपने पैरों के ऊपर महसूस हो रहा था. पर उसको छोड़कर उस बुड्ढे में कोई कमी नहीं थी. धक्के लगाने की उसकी स्पीड बढ़ने लगी थी और उसके लंड का कड़कपन भी.

अब मंत्र पढ़ने के बीच में गैप के दौरान कुमार मेरे कान और गालों पर अपनी जीभ और होंठ लगा रहा था. मैं जानती थी की मुझे उसे ये सब नहीं करने देना चाहिए लेकिन जिस तरह से गुरुजी ने थोड़ी देर पहले तेज आवाज़ में बोला था, उससे अनुष्ठान में बाधा डालने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी. अब मैं गहरी साँसें ले रही थी और कुमार तो हाँफने लगा था. इस उमर में इतना आनंद उसके लिए काफ़ी था. तभी उसने कुछ ऐसा किया की मेरे दिल की धड़कनें रुक गयीं.

मैं अपनी बाँहें सर के आगे किए हुए प्रणाम की मुद्रा में लेटी हुई थी. मेरी चूचियाँ ब्लाउज के अंदर फर्श में दबी हुई थी. कुमार मेरे ऊपर लेटा हुआ था और उसने एक हाथ में किताब और दूसरे हाथ से मेरा कंधा पकड़ा हुआ था. कुमार ने देखा की गुरुजी की आँखें बंद हैं. अब उसने किताब फर्श में रख दी और अपने हाथ मेरे कंधे से हटाकर मेरे अगल बगल फर्श में रख दिए. अब उसके बदन का कुछ भार उसके हाथों पर पड़ने लगा , इससे मुझे थोड़ी राहत हुई क्यूंकी पहले उसका पूरा भार मेरे ऊपर पड़ रहा था. लेकिन ये राहत कुछ ही पल टिकी. कुछ ही पल बाद उसने अपने हाथों को अंदर की तरफ खिसकाया और मेरे ब्लाउज के बाहर से मेरी चूचियों को छुआ.

शरम, गुस्से और कामोत्तेजना से मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं. जबसे यज्ञ शुरू हुआ था तबसे कुमार मेरे बदन से छेड़छाड़ कर रहा था और अब तक मैं भी कामोत्तेजित हो चुकी थी इसलिए उसके इस दुस्साहस का मैंने विरोध नहीं किया और मंत्र पढ़ने में व्यस्त होने का दिखावा किया. पहले तो वो हल्के से मेरी चूचियों को छू रहा था लेकिन जब उसने देखा की मैंने कोई रिएक्शन नहीं दिया और ज़ोर से मंत्र पढ़ने में व्यस्त हूँ तो उसकी हिम्मत बढ़ गयी.

उसके बदन के भार से वैसे ही मेरी चूचियाँ फर्श में दबी हुई थी अब उसने दोनों हाथों से उन्हें दबाना शुरू किया. कहीं ना कहीं मेरे मन के किसी कोने में मैं भी यही चाहती थी क्यूंकी अब मैं भी कामोत्तेजना महसूस कर रही थी. उसने मेरे बदन के ऊपरी हिस्से में अपने वजन को अपने हाथों पर डालकर मेरे ऊपर भार थोड़ा कम किया मैंने जैसे ही राहत के लिए अपना बदन थोड़ा ढीला किया उसने दोनों हाथों से साइड्स से मेरी बड़ी चूचियाँ दबोच लीं और उनकी सुडौलता और गोलाई का अंदाज़ा करने लगा.

उस समय मुझे ऐसा महसूस हो रहा था की मेरा पति राजेश मेरे ऊपर लेटा हुआ है और मेरी जवान चूचियों को निचोड़ रहा है. घर पे राजेश अक्सर मेरे साथ ऐसा करता था और मुझे भी उसके ऐसे प्यार करने में बड़ा मज़ा आता था. राजेश दोनों हाथों को मेरे बदन के नीचे घुसा लेता था और फिर मेरी चूचियों को दोनों हथेलियों में दबोच लेता था और मेरे निपल्स को तब तक मरोड़ते रहता था जब तक की मैं नीचे से पूरी गीली ना हो जाऊँ.

शुक्र था की गुप्ताजी ने उतनी हिम्मत नहीं दिखाई शायद इसलिए क्यूंकी मैं किसी दूसरे की पत्नी थी. लेकिन साइड्स से मेरी चूचियों को दबाकर उसने अपने तो पूरे मज़े ले ही लिए. अब तो उत्तेजना से मेरी आवाज़ भी काँपने लगी थी और मुझे खुद ही नहीं मालूम था की मैं क्या जाप कर रही हूँ.

गुरुजी – जय लिंगा महाराज.

गुरुजी जैसे नींद से जागे हों और कुमार ने जल्दी से मेरी चूचियों से हाथ हटा लिए. उसकी गरम साँसें मेरी गर्दन, कंधे और कान में महसूस हो रही थी और मुझे और ज़्यादा कामोत्तेजित कर दे रही थीं. तभी मुझे एहसास हुआ की अब मंत्र पढ़ने का कार्य पूरा हो चुका है.

गुरुजी – कुमार ऐसे ही लेटे रहो और जो तुम काजल के लिए चाहते हो उसे एक लाइन में रश्मि के कान में बोलो.

कुमार – गुरुजी मैं बस ये चाहता हूँ की काजल 12 वीं के एग्जाम्स में पास हो जाए.

गुरुजी – ठीक है. रश्मि के कान में इसे पाँच बार बोलो और रश्मि तुम लिंगा महाराज के सामने दोहरा देना. तुम्हारे बाद मैं भी काजल के लिए प्रार्थना करूँगा और फिर मेरे बाद तुम बोलना. आया समझ में ?

मैंने और गुप्ताजी ने सहमति में सर हिला दिया.

गुरुजी – सब आँखें बंद कर लो और प्रार्थना करो.

ऐसा बोलकर गुरुजी ने आँखें बंद कर ली और फिर मैंने भी अपनी आँखें बंद कर ली.

कुमार – लिंगा महाराज, काजल 12 वीं के एग्जाम्स में पास हो जाए.

गुप्ताजी ने मेरे कान में ऐसा फुसफुसा के कह दिया. उसने ये बात कहते हुए अपने होंठ मेरे कान और गर्दन से छुआ दिए और मेरे सुडौल नितंबों को अपने बदन से दबा दिया. उसकी इस हरकत से लग रहा था की वो मुझसे कुछ और भी चाहता था. मैं समझ रही थी की उसको अब और क्या चाहिए , उसको मेरी चूचियाँ चाहिए थी. मैं तब तक बहुत गरम हो चुकी थी. मैंने अपनी बाँहों को थोड़ा अंदर को खींचा और कोहनी के बल थोड़ा सा उठी ताकि कुमार मेरी चूचियों को पकड़ सके. मैं काजल के लिए प्रार्थना को ज़ोर से बोल रही थी और गुरुजी उस प्रार्थना के साथ कुछ मंत्र पढ़ रहे थे.

मेरी आँखें बंद थी और तभी कुमार ने दोनों हाथों से मेरी चूचियाँ दबा दी. वो गहरी साँसें ले रहा था और पीछे से ऐसे धक्के लगा रहा था जैसे मुझे चोद रहा हो. मेरी उभरी हुई गांड में लगते हर धक्के से मेरी पैंटी गीली होती जा रही थी. मैंने ख्याल किया जब हम दोनों चुप होते थे और गुरुजी मंत्र पढ़ रहे होते थे उस समय कुमार के हाथ मेरे ब्लाउज में चूचियों को दबा रहे होते थे. मैं भी उसकी इस छेड़छाड़ का जवाब देने लगी थी और धीरे से अपने नितंबों को हिलाकर उसके लंड को महसूस कर रही थी.

जल्दी ही पाँच बार काजल के लिए प्रार्थना पूरी हो गयी . मैं सोच रही थी की अब क्या होने वाला है ?

गुरुजी – जय लिंगा महाराज.

गुप्ताजी ने मेरी गांड को चोदना बंद कर दिया और मेरे ऊपर चुपचाप लेटे रहा. मुझे अपनी गांड में उसका लंड साफ महसूस हो रहा था और अब तो मेरा मन हो रहा था की मैं पैंटी उतार दूँ क्यूंकी पैंटी की वजह से उसका लंड मेरी गांड की दरार में अंदर नहीं जा पा रहा था और इससे मुझे पूरा मज़ा नहीं मिल पा रहा था.

गुरुजी – ठीक है. अब थोड़ा विराम लेते हैं. फिर उसके बाद अंतिम भाग में काजल बेटी के लिए ध्यान लगाना होगा.

कहानी जारी रहेगी








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RE: आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07 - by aamirhydkhan1 - 09-04-2022, 05:14 PM



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