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Thriller आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07
#35
गुरुजी के आश्रम में सावित्री

CHAPTER 5- चौथा दिन

बिमारी के निदान


Update 2



उस कमरे से बाहर आकर मैंने राहत की साँस ली. भारी साँसों और शरम से लाल मुँह लेकर मैं अपने कमरे में वापस आ गयी. ऐसा लग रहा था जैसे गुरुजी और समीर की बातचीत अभी भी मेरे कानों में गूँज रही है. मैंने बहुत अपमानित महसूस किया. मैंने थोड़ी देर बेड में बैठकर आराम किया फिर सोने के लिए लेट गयी. लेकिन मेरे मन में बहुत सी बातें घूम रही थीं. गुरुजी ने कहा था की दो दिन तक महायज्ञ चलेगा और इससे मेरे योनिमार्ग की रुकावट दूर हो जाएगी. लेकिन कैसे ? दो दिन तक मुझे क्या करना होगा ? उन्होंने ऐसा क्यूँ कहा की यज्ञ थका देने वाला होगा ? लेकिन इन सवालों का मेरे पास कोई जवाब नहीं था.

मेरे मन में ससुरजी की बातें भी घूम रही थीं. उन्होंने कहा था की दुबारा आऊँगा. सच कहूँ तो मैं उनके बारे में कोई राय नहीं बना पा रही थी. मेरे जवान बदन को उन्होंने जैसे छुआ था वो मुझे अजीब सा लगा था. पहले जब भी उनसे मुलाकात हुई थी तो उनका व्यवहार ऐसा नहीं था लेकिन हम अकेले कभी नहीं मिले थे. ससुराल में कोई ना कोई होता था. लेकिन मुझे उनकी उमर को देखते हुए दुविधा भी हो रही थी की वो ऐसा कैसे कर सकते हैं. यही सब सोचते हुए ना जाने कब मुझे गहरी नींद आ गयी.

“खट , खट ….”

“मैडम, उठिए प्लीज़.”

मैं बेड से उठी और दरवाज़ा खोलने को बढ़ी तभी मुझे ध्यान आया की मैंने साड़ी तो पहनी ही नहीं है. दरअसल बेड में लेटते समय मैंने साड़ी उतार दी थी. मैं दरवाज़े से वापस आई और जल्दी से साड़ी को पल्लू के जैसे अपने ब्लाउज के ऊपर डाल लिया और दरवाज़ा खोला. दरवाज़े में परिमल खड़ा था. लेकिन मुझे उठाने की उसे इतनी जल्दी क्यूँ पड़ी थी ?

“क्या हुआ …?”

परिमल – मैडम आपको गुरुजी ने तुरंत बुलाया है.

“क्यूँ ? क्या बात है ?”

परिमल – मुझे नहीं मालूम मैडम.

“ठीक है . तुम जाओ और गुरुजी को बताओ की मैं अभी आ रही हूँ.”

परिमल की नज़रें मेरे पेटीकोट से ढके निचले बदन पर थी. मैंने दोनों हाथों में साड़ी पकड़ी हुई थी और ब्लाउज के ऊपर पल्लू की तरह डाली हुई थी पर नीचे सिर्फ़ पेटीकोट था. परिमल को इतनी जल्दी थी की मुझे ठीक से साड़ी पहनने का वक़्त नहीं मिला था. फिर परिमल चला गया. मैंने दरवाज़ा बंद किया और बाथरूम चली गयी. फिर ठीक से साड़ी पहनी , बाल बनाए और गुरुजी के कमरे की तरफ चल दी. क्या हुआ होगा ? अभी तो उनके कमरे से आई थी फिर क्यूँ बुलाया ? मैं सोच रही थी.

“गुरुजी , आपने मुझे बुलाया ?”

गुरुजी – हाँ रश्मि. एक समस्या आ गयी है और मुझे तुम्हारी मदद चाहिए.

गुरुजी को मेरी मदद की क्या आवश्यकता पड़ गयी ?

“ऐसा मत कहिए गुरुजी. आज्ञा दीजिए.”

गुरुजी – रश्मि तुम्हें तो मालूम है की मुझे यज्ञ के लिए शहर जाना है. समीर और मंजू भी मेरे साथ जानेवाले थे लेकिन मंजू को तेज बुखार आ गया है.

“ओह……अरे….”

गुरुजी – मैंने उसको दवाई दे दी है लेकिन वो मेरे साथ आने की हालत में नहीं है. लेकिन यज्ञ में गुप्ताजी का माध्यम बनने के लिए मुझे एक औरत की ज़रूरत पड़ेगी. इसलिए…..

“ जी गुरुजी ..?”

गुरुजी हिचकिचा रहे थे.

गुरुजी – मेरा मतलब अगर तुम मेरे साथ आ सको.

“कोई परेशानी नहीं है गुरुजी. आप इतना हिचकिचा क्यूँ रहे हैं ? अगर मैं आपकी कोई सहायता कर सकी तो ये मेरे लिए बड़ी खुशी की बात होगी.”

गुरुजी – धन्यवाद रश्मि. लेकिन हमें आज रात वहीं रहना होगा क्यूंकी यज्ञ में देर हो जाएगी.

“ठीक है गुरुजी.”

समीर – मैडम, गुप्ताजी का मकान बहुत बड़ा है. और उनके गेस्ट रूम्स बहुत आरामदायक हैं . आपको कोई परेशानी नहीं होगी.

“अच्छा. गुरुजी किस समय जाना होगा ?”

गुरुजी – अभी 5:30 हुआ है. हम 7 बजे जाएँगे. रश्मि एक काम करो. मंजू के कमरे में जाओ और उससे यज्ञ के बारे में थोड़ी जानकारी ले लो क्यूंकी यज्ञ में तुम्हें मेरी मदद करनी पड़ेगी.

“ठीक है गुरुजी.”

वहाँ से मैं मंजू के कमरे में चली गयी. उसके कमरे में धीमी रोशनी थी और मंजू बेड में लेटी हुई थी. कोई उसके सिरहाने बैठा हुआ था और उसके माथे में कुछ लेप लगा रहा था. कम रोशनी की वजह से मैं ठीक से देख नहीं पाई की वो कौन है.

“कैसी हो मंजू ?”

मंजू – गुरुजी ने दवाई दी है लेकिन बुखार उतरा नहीं है.

मैं बेड के पास आई तो देखा सिरहाने पर राजकमल बैठा है. मैंने मंजू के गालों पर हाथ लगाया , वो गरम थे , वास्तव में उसको बुखार था.

“हम्म्म……..अभी भी बुखार है.”

राजकमल – 102 डिग्री है मैडम. अभी थोड़ी देर पहले चेक किया है.

मंजू – मैडम, गुरुजी ने आपसे शहर चलने को कहा ?

“हाँ. उन्होंने अभी बताया मुझे.”

मंजू – आपको परेशानी के लिए सॉरी मैडम. लेकिन मैं ऐसी हालत में जा भी तो नहीं सकती.

“कोई बात नहीं. तुम आराम करो.”

मैं बाहर से आई तो धीमी रोशनी में मेरी आँखों को एडजस्ट होने में समय लगा. लेकिन अब मैंने देखा की मंजू बेड में बड़ी लापरवाही से लेटी हुई है , जबकि वहाँ राजकमल भी था. मुझे ये देखकर बड़ी हैरानी हुई की उसका पल्लू ब्लाउज के ऊपर से पूरी तरह सरका हुआ था और उसकी बड़ी चूचियों का करीब आधा हिस्सा साफ दिख रहा था. राजकमल उसके सिरहाने बैठा हुआ था तो उसको और भी अच्छे से दिख रहा होगा. मंजू का सर तकिया पर नहीं बल्कि राजकमल की गोद में था. राजकमल उसके माथे में कोई लेप लगा रहा था और जिस तरह से मंजू गहरी साँसें ले रही थी उससे मुझे कुछ शक़ हुआ.

मंजू – मैडम, मैं गुप्ताजी के घर पहले भी गयी हूँ , वहाँ आपको कोई परेशानी नहीं होगी.

“ठीक है. पर यज्ञ में मुझे क्या करना होगा ?”

मंजू – मैडम , ज़्यादा कुछ नहीं करना है. यज्ञ के लिए सामग्री जैसे तेल, लकड़ी, फूल, और इस तरह के और भी आइटम की व्यवस्था करनी होगी. समीर आपको बता देगा और आप ये समझ लो की जैसे आप घर में पूजा करती हो वैसे ही होगा बस.

ये सुनकर मैंने राहत की साँस ली क्यूंकी मुझे यज्ञ के बारे में कुछ पता नहीं था इसलिए थोड़ी चिंता हो रही थी.

“गुरुजी कुछ माध्यम की बात कर रहे थे. वो क्या होता है ?”

मंजू – मैडम, यज्ञ में आदमी को एक माध्यम की ज़रूरत होती है जिसके द्वारा उसको यज्ञ का फल प्राप्त हो सके और गुरुजी के अनुसार अच्छे परिणामों के लिए उनके लिंग भिन्न होने चाहिए.

“भिन्न मतलब ?”

मंजू – मतलब ये की मर्द के लिए माध्यम औरत होनी चाहिए और औरत के लिए मर्द.

“अच्छा , मैं समझ गयी.”

मेरे ऐसा कहने पर मंजू बड़े अर्थपूर्ण तरीके से मुस्कुरायी. उस मुस्कुराहट की वजह मुझे समझ नहीं आई.

मंजू – मुझे प्यास लग रही है.

राजकमल – पानी लाता हूँ.

मंजू ने उसकी गोद से अपना सर उठाया और राजकमल बेड से उठकर एक ग्लास पानी ले आया. मंजू ने उठने की कोशिश की लेकिन राजकमल ने उसको वैसे ही लेटे लेटे पानी पिला दिया. थोड़ा पानी मंजू की ठुड्डी से होते हुए उसकी छाती में बहने लगा. राजकमल ने तुरंत उसकी चूचियों के ऊपरी भाग से पानी को पोछ दिया. मैं थोड़ा चौंकी लेकिन मैंने सोचा बीमार है इसलिए पोछ रहा होगा लेकिन फिर उसके बाद राजकमल ने जो किया वो मेरे लिए पचाना मुश्किल था.

राजकमल ने ग्लास बगल में टेबल में रख दिया. और फिर से सिरहाने में बैठ गया और मंजू ने उसकी गोद में सर रख दिया.

राजकमल – पानी तुम्हारे ब्लाउज में गिरा क्या ?

मंजू – मुझे नहीं मालूम. गिरा भी होगा तो मुझे नहीं पता चला.

राजकमल – ठीक है. तुम आराम से लेटी रहो मैं देखता हूँ.

मंजू – मैडम, आप कपड़े भी ले जाना क्यूंकी यज्ञ के बाद आपको नहाना पड़ेगा.

“हाँ, मैं ले जाऊँगी.”

हम दोनों बातें कर रही थीं और ब्लाउज में पानी देखने के बहाने राजकमल मंजू की चूचियों पर हर जगह हाथ फिरा रहा था. हैरानी इस बात की थी की मंजू को इससे कोई फरक नहीं पड़ रहा था और उसने अपना पल्लू तक ठीक नहीं किया. फिर मुझे तो कुछ कहना ही नहीं आया जब मैंने देखा की मंजू की क्लीवेज में चूचियों के ऊपरी भाग पर राजकमल ने अपनी अँगुलियाँ लगा कर देखा की वहाँ पर गीला तो नहीं है.

राजकमल – मैडम, अलमारी से एक कपड़ा ला दोगी ?

“कपड़ा ? क्यूँ ?”

राजकमल – असल में इसका ब्लाउज कुछ जगहों पर गीला हो गया है. मैं ब्लाउज के अंदर एक कपड़ा डालना चाह रहा हूँ ताकि इसको सर्दी ना लगे.

एक 35 बरस की भरे पूरे बदन वाली औरत के ब्लाउज के अंदर वो कपड़ा डालना चाहता था. मैं बेड से उठी और अलमारी से कपड़ा ले आई. मैंने मंजू को शर्मिंदगी से बचाने की कोशिश की.

“कहाँ पर गीला है राजकमल ? मैं डाल देती हूँ कपड़ा.”

मंजू – मैडम, आप परेशान मत हो. राजकमल कर लेगा.

उस औरत का रवैया देखकर मैं तो हैरान रह गयी. वो अपने ब्लाउज के अंदर मेरा नहीं बल्कि एक मर्द का हाथ चाहती थी. मेरे पास अब कोई चारा नहीं था और मैंने वो कपड़ा राजकमल को दे दिया.

राजकमल – धन्यवाद मैडम.

अब राजकमल ने मेरे सामने बेशर्मी से मंजू के ब्लाउज का ऊपरी हिस्सा उठा दिया और उसकी चूचियों और ब्लाउज के बीच में कपड़ा लगा दिया. मंजू की बड़ी चूचियाँ साँस लेने के साथ ऊपर नीचे को उठ रही थीं. कपड़ा घुसाने के बहाने राजकमल को मंजू की चूचियों को छूने और पकड़ने का मौका मिल गया.

उसके बाद राजकमल फिर से उसके माथे पर लेप लगाने लगा. मैंने सोचा यहाँ पर बैठकर इनकी बेशरम हरकतों को देखने का कोई मतलब नहीं है .

“ठीक है मंजू. तुम आराम करो. अब मैं जाती हूँ.”

मंजू – ठीक है मैडम.

राजकमल – बाय मैडम.

मैं अपने कमरे में वापस चली आई और गुप्ताजी के घर जाने की तैयारी करने लगी.

हानी जारी रहेगी


NOTE

1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .

2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.

3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .

जब मैंने ये कहानी यहाँ डालनी शुरू की थी तो मैंने भी इसका अधूरा भाग पढ़ा था और मैंने कुछ आगे लिखने का प्रयास किया और बाद में मालूम चला यह कहानी अंग्रेजी में "समितभाई" द्वारा "गुरु जी का (सेक्स) ट्रीटमेंट" शीर्षक से लिखी गई थी और अधूरी छोड़ दी गई थी। बाद में 2017 में समीर द्वारा हिंदी अनुवाद शुरू किया गया, जिसका शीर्षक था "एक खूबसूरत हाउस वाइफ, गुरुजी के आश्रम में" और लगभग 33% अनुवाद "Xossip" पर किया गया था। अभी तक की कहानी मुलता उन्ही की कहानी पर आधारित है या उसका अनुवाद है और अब कुछ हिस्सों का अनुवाद मैंने किया है ।

कहानी काफी लम्बी है और मेरा प्रयास जारी है इसको पूरा करने का ।



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RE: आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07 - by aamirhydkhan1 - 01-04-2022, 10:01 AM



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