03-02-2022, 09:21 AM
औलाद की चाह
CHAPTER 5- चौथा दिन
मालिश
Update 3
खट खट से मैं हड़बड़ा गयी. मुझे याद आया की कैसे सुबह दरवाज़े पर खट खट से विकास मुझे अधूरी उत्तेजित करके छोड़ गया था , मैं फिर से वही सब नहीं होने देना चाहती थी. मैं इतना रिलैक्स फील कर रही थी की मैं वहाँ से उठना ही नहीं चाह रही थी. लेकिन मुझे कुछ तो जवाब देना ही था पर राजकमल ने पहले पूछ लिया.
राजकमल – कौन है ?
परिमल – राजकमल, कोई मैडम से मिलने आया है.
मुझसे मिलने ? यहाँ आश्रम में ? मैं हैरान हुई. लेकिन मैं राजकमल की मालिश से इतनी रोमांचित थी की परिमल की बात का जवाब नहीं दे सकी.
परिमल – राजकमल, मैडम की मालिश हो गयी क्या ?
राजकमल – वो …. हाँ.
परिमल – ठीक है फिर . मैडम को भेज दो , उनका इंतज़ार हो रहा है.
अब तो मुझे कुछ बोलना ही पड़ा. मैंने काँपती आवाज़ में पूछा.
“ कौन है परिमल ? मेरा मतलब आदमी है या औरत ?”
परिमल – कोई बड़ी उमर का आदमी है मैडम. आप आ जाना , मैं जा रहा हूँ.
कौन हो सकता है ? मैं सोचने लगी. मैं चटाई में नंगी लेटी हुई थी और अब मुझे उठना ही पड़ रहा था. व्यवधान पड़ जाने से राजकमल का हाल अब एक गूंगे की तरह हो गया था क्यूंकी उसकी आँखों में बेताबी को मैं देख सकती थी और उसकी धोती में खड़ा लंड उसकी हालत बयान कर रहा था. मैं कन्फ्यूज्ड थी की क्या करूँ ?
जब मैं चटाई में उठकर बैठ गयी तो मैंने देखा चटाई में गीले धब्बे लगे हैं जो मेरे चूतरस से लगे थे. राजकमल भी उनको ही देख रहा था. शर्मिंदगी से मैंने अपनी नज़रें झुका ली जबकि मैं बेशर्मी से उसके सामने नंगी बैठी हुई थी और मैंने अपनी जवानी को ढकने की कोई कोशिश नहीं की थी.
काम वासना से मेरा बदन तप रहा था और राजकमल भली भाँति ये बात समझ रहा था. लेकिन हम दोनों ही थोड़ी शालीनता बनाए रखने की कोशिश कर रहे थे ना की एकदम से भोंडा व्यवहार . लेकिन मुझे लगा की ऐसे तो मेरी यौन इच्छा पूरी नहीं होने वाली . आज सुबह से ये तीसरा मौका है जब मैं बिना चुदे इतनी ज़्यादा कामोत्तेजित हो गयी हूँ. पिछले दो दिन तो मैं जड़ी बूटी के प्रभाव में थी इसलिए कामोत्तेजित होने के बावजूद मुझे अपनी चूत में लंड लेने की इतनी तीव्र इच्छा नहीं हुई थी.
अब मैंने अपनी सारी शरम , संकोच , अंतर्बाधा और शालीनता के पर्दों को फाड़ डाला और राजकमल के नज़दीक़ खिसक गयी.
राजकमल – मैडम , कोई आपका इंतज़ार…………
“अपना मुँह बंद रखो और मेरी मालिश पूरी करो. तुम मुझे ऐसे छोड़ के नहीं जा सकते.”
मैं उस जवान लड़के को अपने नियंत्रण में लेने की कोशिश कर रही थी.
राजकमल – लेकिन मैडम , आपकी मालिश तो पूरी हो गयी है इसलिए …….
“मैंने कहा ना की अपना मुँह बंद रखो वरना मैं तुम्हारे होंठ सिल दूँगी समझे.”
मैं बोल्ड होते जा रही थी और ना जाने कहाँ से मुझमें इतनी हिम्मत आ गयी थी की मैं उस जवान लड़के को अपने काबू में करने की कोशिश कर रही थी और बेशर्मी की नयी ऊँचाइयों को छू रही थी. मैं बैठे बैठे ही उसके एकदम करीब आ गयी और उसको अपने आलिंगन में लेकर उसके होठों पे अपने होंठ रख दिए. अब मैंने उसके होंठ चूसने शुरू कर दिए पर वो मेरे आलिंगन से छूटने की कोशिश करने लगा. मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ.
राजकमल – मैडम , ये ठीक नहीं है. मैं गुरुजी के निर्देशों से नहीं भटक सकता.
मैं उस लड़के के रवैये से (एटिट्यूड ) इतना गुस्सा हो गयी की अपने ऊपर काबू नहीं रख पाई.
“ तुम्हारे गुरुजी ने तुम्हें क्या सिखाया है ? यही की एक औरत को नंगा करो और फिर उसके बदन की मालिश करो और फिर वैसी हालत में उसको छोड़कर चले जाओ ?”
राजकमल – मैडम , प्लीज़ धैर्य रखो.
“तो फिर ये क्यूँ खड़ा हो गया है ?”
मैंने सीधे उसका तना हुआ लंड पकड़ लिया और खींच दिया. वो दर्द से चिल्ला पड़ा. फिर उसने मुझे धक्का दिया और खड़ा हो गया. मैं अभी भी चटाई पर नंगी बैठी थी , मेरा पूरा बदन तेल से चमक रहा था. अब मैं निराशा से गुस्सा छोड़कर विनती करने लगी.
“प्लीज़, मुझे ऐसी हालत में छोड़कर मत जाओ. प्लीज़……..”
राजकमल – बाथरूम में आओ.
मैं चटाई में खड़ी हो गयी. मेरी चूत बहुत गीली थी पर अब रस नहीं टपका रही थी. मेरा बालों से भरा त्रिकोण उसकी नज़रों के सामने था. मैं उस नंगी हालत में उसके पीछे वफादार कुत्ते की तरह चलने लगी.
राजकमल – मैडम , मैं आपकी ज़रूरत समझ रहा हूँ लेकिन मैं असहाय हूँ और चाहकर भी आपकी इच्छा पूरी नहीं कर सकता. और वैसे भी कोई आपका इंतज़ार कर रहा है. मैं जल्दी से आपको कुछ राहत देने की कोशिश करता हूँ.
वो मेरे नज़दीक़ आया और पहली बार मुझे आलिंगन किया. उसका दुबला पतला शरीर मेरी इच्छा को पूरा नहीं कर पा रहा था. मेरी मुलायम चूचियाँ उसकी सपाट छाती से दब रही थीं . फिर एक झटके में उसने मुझे पलट दिया और अब मेरी गांड पर उसका लंड चुभ रहा था. अब उसने अपने दाएं हाथ की बड़ी अंगुली मेरी गीली चूत में डाल दी और अंदर बाहर करने लगा. उसकी अँगुलियाँ पतली थीं तो उसने आराम से दो अँगुलियाँ मेरी चूत के छेद में डाल दीं.
“आआआआआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह………………………..उन्न्ञननननननगगगगग………………..और करो …………आआआअहह…………….”
मैं कामोत्तेजना में बेशर्मी से ज़ोर ज़ोर से सिसकारियाँ लेने लगी . अब राजकमल ने दूसरे हाथ से मेरी चूचियों को पकड़ लिया और निप्पल को मरोड़ने लगा. सुबह से मैं कई बार कामोत्तेजित हो चुकी थी इसलिए जल्दी ही मैं चरम उत्तेजना पर पहुँच गयी और मुझे ओर्गास्म आ गया. मेरी चूत से रस बहने लगा . राजकमल अपनी अंगुलियों से मेरी चूत को चोद रहा था , उसकी अँगुलियाँ मेरे रस से सन गयी. मैं उसकी अंगुलियों को ही लंड समझकर अपनी चुदाई की प्यास को बुझाने की कोशिश कर रही थी. ओर्गास्म आने से उसकी बाँहों में मेरा बदन ऐंठ गया .
मुझे इतनी कमज़ोरी महसूस हो रही थी की मैं बाथरूम के फर्श में ही बैठ गयी. मेरा नंगा बदन तेल और पसीने से चमक कर अदभुत लग रहा था, मैंने खुद अपने मन में उसकी सराहना की. राजकमल ने मेरे ऊपर ठंडा पानी डालकर मुझे ताज़गी देने की कोशिश की. कुछ देर बाद मैं अपने पूरे होशोहवास में आ गयी और मुझे अपनी नंगी हालत का अंदाज़ा हुआ.
मैं किसी की पत्नी थी और अंगुलियों से चुदाई के बाद अब इस आश्रम के बाथरूम के फर्श में बैठी हुई थी . मेरे जवान बदन में कपड़े का एक टुकड़ा भी नहीं था , मेरी बड़ी चूचियाँ , मेरी बालों वाली चूत , मेरे बड़े नितंब, मेरी मांसल गोरी जाँघें सब कुछ एक जवान लड़के के सामने नंगा था.
हे भगवान ! मेरी होश वापस ला दो.
एक झटके में मैं बाथरूम के फर्श से उठ खड़ी हुई और जल्दी से अपने बदन को टॉवेल से ढक लिया. मैंने देखा राजकमल मेरी इस हरकत पर मुस्कुरा रहा है. वो बाथरूम से बाहर निकल गया और कमरे से मेरी साड़ी , पेटीकोट, ब्लाउज , ब्रा और पैंटी लाकर दी. फिर उसने मेरे मुँह पर बाथरूम का दरवाज़ा बंद कर दिया और मुझे और भी ज़्यादा शर्मिंदा कर दिया.
मैंने जल्दी से टॉवेल से अपने बदन से तेल को पोछा और फटाफट कपड़े पहन लिए. अब मेरी यौन इच्छा कुछ हद तक शांत हो गयी थी और ओर्गास्म आने से मैं पूरी स्खलित हो गयी थी. अब मेरा ध्यान इस बात पर गया की आख़िर इस आश्रम में मुझसे मिलने कौन आया है ?
राजकमल ने अपने बैग में तेल की बॉटल्स और चटाई रखी और मेरे बाथरूम से बाहर आने तक वो कमरे से बाहर जा चुका था. उलझन भरे मन से मैं आश्रम के गेस्ट हाउस की तरफ चल दी. मैंने अंदाज़ा लगाने की कोशिश की कौन हो सकता है ? पर ऐसा कोई भी परिचित मुझे याद नहीं आया जो यहाँ आस पास रहता हो.
कहानी जारी रहेगी
NOTE
1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब अलग होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा कही पर भी संभव है .
2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा जी स्वामी, पंडित, पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.
3. इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने अन्यत्र नहीं पढ़ी है .
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