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Thriller आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07
#25
गुरुजी के आश्रम में सावित्री

CHAPTER 4 चौथा दिन

सुबह सुबह

Update 1



“विकास ये थी मेरी कहानी. उस दिन को याद करके मुझे बाद के दिनों में भी शर्मिंदगी महसूस होती थी. मैंने उस दिन इतना अपमानित महसूस किया की दिन भर रोती रही. “

विकास – सही बात है मैडम. कैसे हमारे अपने रिश्तेदार हमारा शोषण करते हैं और हम कुछ नहीं कर पाते. मेरी भावनाएँ तुम्हारी भावनाओं जैसी ही हैं.

हमने इस बारे में कुछ और बातें की . कुछ देर बाद हमारी नाव नदी किनारे आ गयी और वहाँ से हम वापस मंदिर आ गये. बैलगाड़ी पहले से मंदिर के पास खड़ी थी. मैं आधी संतुष्ट (विकास के साथ ओर्गास्म से) और आधी डिप्रेस्ड ( बचपन की उस घटना को याद करने से) अवस्था में आश्रम लौट आई

आश्रम पहुँचते पहुँचते काफ़ी देर हो चुकी थी. मैं अपने कमरे में आकर सीधे बाथरूम गयी और नहाने लगी. अपने सभी ओर्गास्म के बाद मेरा यही रुटीन था, दो दिनों में ये चौथी बार मुझे ओर्गास्म आया था. मेरा मन बहुत प्रफुल्लित था क्यूंकी पिछले 48 घंटो में मैं बहुत बार कामोत्तेजना के चरम पर पहुंची थी.

मुझे इतना अच्छा महसूस हो रहा था की मेरी बेशर्मी से की गयी हरकतों पर भी मुझे कोई अपराधबोध नहीं हो रहा था. मेरी शादीशुदा जिंदगी में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था की इतने कम समय में इतनी ज़्यादा बार चरम उत्तेजना से कामसुख मिला हो. मन ही मन मैंने इसके लिए गुरुजी को धन्यवाद दिया और मुझे आशा थी की उनके उपचार से मेरी गर्भवती होने की चाह ज़रूर पूरी होगी.

जब मैं नहाते समय नीचे झुकी तो मुझे गांड के छेद में दर्द हुआ . विकास ने तेल लगाकर मुझे बहुत ज़ोर से चोदा था पर शायद कामोत्तेजना की वजह से उस समय मुझे ज़्यादा दर्द नहीं महसूस हुआ था. पर अब मुझे गांड में थोड़ा दर्द महसूस हो रहा था. मैंने सोचा रात में अच्छी नींद आ जाएगी तो सुबह तक दर्द ठीक हो जाएगा. इसलिए मैंने जल्दी से डिनर किया और फिर सो गयी.

डिनर से पहले मंजू मेरा पैड लेने आई थी. उसने याद दिलाया की सुबह 6: 30 बजे गुरुजी के पास जाना होगा और फिर वो मुझे देखकर मुस्कुराते हुए चली गयी. मैं शरमा गयी , ऐसा लग रहा था जैसे मंजू मेरी आँखों में झाँककर सब जान चुकी है. डिनर करने के बाद मैंने गुरु माता द्वारा दी गई क्रीम का उपयोग अपने पूरे शरीर जिसमें मेरी योनि, स्तन, कमर, कूल्हों और गुदा शामिल थे पर किया मैंने नाइटी पहन ली और लाइट ऑफ करके सो गयी.

“खट……..खट…….खट ….”

सुबह किसी के दरवाज़ा खटखटाने से मेरी नींद खुली. मैं थोड़ी देर और सोना चाह रही थी. मैंने चिड़चिड़ाते हुए जवाब दिया.

“ठीक है. मैं उठ गयी हूँ. आधे घंटे बाद गुरुजी के पास आती हूँ.”

वो लोग मुझे आधा घंटा पहले उठा देते थे, ताकि गुरुजी के पास जाने से पहले तब तक मैं बाथरूम जाकर फ्रेश हो जाऊँ. इसलिए मैंने वही समझा और बिना पूछे की दरवाज़े पर कौन है, जवाब दे दिया.

“खट……..खट…….खट ….”

“अरे बोल तो दिया अभी आ रही हूँ.”

“खट……..खट…….खट ….”

अब मैं हैरान हुई. ये कौन है जो मेरी बात नहीं सुन रहा है ? अब मुझे बेड से उठना ही पड़ा. मैंने नाइटी के अंदर कुछ भी नहीं पहना हुआ था. मैंने सोचा मंजू या परिमल मुझे उठाने आया होगा . मैंने ब्रा और पैंटी पहनने की ज़रूरत नहीं समझी और नाइटी को नीचे को खींचकर सीधा कर लिया.

“कौन है ?”

बिना लाइट्स ऑन किए हुए दरवाज़ा खोलते हुए मैं बुदबुदाई. मेरे कुछ समझने से पहले ही मैं किसी के आलिंगन में थी और उसने मेरे होठों का चुंबन ले लिया. अब मेरी नींद पूरी तरह से खुल गयी, बाहर अभी भी हल्का अंधेरा था इसलिए मैं देख नहीं पाई की कौन था. मैं अभी अभी गहरी नींद से उठी थी इसलिए कमज़ोरी महसूस कर रही थी. इससे पहले की मैं कुछ विरोध कर पाती उस आदमी ने अपने दाएं हाथ से मेरी कमर पकड़ ली और बाएं हाथ से मेरी दायीं चूची को पकड़ लिया. नाइटी के अंदर मैंने ब्रा नहीं पहनी थी इसलिए मेरी चूचियाँ हिल रही थीं. उसने मेरी चूची को दबाना शुरू कर दिया. वो जो भी था मजबूत बदन वाला था.

“आहह…….. ..कौन हो तुम. रूको……..”

विकास – मैडम , मैं हूँ. विकास. तुमने मुझे नहीं पहचाना ?

विकास के वहां होने की तो मैं सोच भी नहीं सकती थी क्यूंकी वो तो आश्रम से बाहर ले जाने ही आता था. मुझे हैरानी भी हुई पर साथ ही साथ मैं रोमांचित भी हुई. दरवाज़ा खोलते ही जैसे उसने मुझे आलिंगन कर लिया था और मेरा चुंबन ले लिया , उससे मुझे ये देखने का भी मौका नहीं मिला था की कौन है. विकास है जानकर मैंने राहत की सांस ली.

“अभी तो बाहर अंधेरा है. वो लोग तो मुझे 6 बजे उठाने आते हैं.”

विकास – हाँ मैडम. अभी सिर्फ़ 5 बजा है. मुझे बेचैनी हो रही थी इसलिए मैं तुम्हारे पास आ गया.

“अच्छा. तो ये तरीका है तुम्हारा किसी औरत से मिलने का ?”

अब हम दोनों मेरे कमरे में एक दूसरे के आलिंगन में थे और कमरे की लाइट्स अभी भी ऑफ ही थी. विकास के होंठ मेरे चेहरे के करीब थे और उसके हाथ मेरी कमर और पीठ पर थे. कभी कभी वो मेरे नितंबों को नाइटी के ऊपर से सहला रहा था.

“नहीं. सिर्फ़ तुमसे मिलने का. तुम मेरे लिए ख़ास हो.”

“हम्म्म ……..तुम भी मेरे लिए खास हो डियर…..”

हम दोनों ने एक दूसरे का देर तक चुंबन लिया. हमारी जीभों ने एक दूसरे के मुँह का स्वाद लिया. मैंने उसको कसकर अपने आलिंगन में लिया हुआ था और उसके हाथ मेरे बड़े नितंबों को दबा रहे थे.

विकास – मैडम, नाव में एक चीज़ अधूरी रह गयी . मैं उसे पूरा करना चाहता हूँ.

“क्या चीज़ ..?”

मैं विकास के कान में फुसफुसाई. मुझे समझ नहीं आया वो क्या चाहता है.

विकास – मैडम, नाव में बाबूलाल भी था इसलिए मैं तुम्हें पूरी नंगी नहीं देख पाया.

विकास के मेरे बदन से छेड़छाड़ करने से मैं उत्तेजना महसूस कर रही थी. मैं उसके साथ और वक़्त बिताना चाहती थी. उसकी इच्छा सुनकर मैं खुश हुई पर ये बात मैंने उस पर जाहिर नहीं होने दी.

“लेकिन विकास तुमने नाव में मेरा पूरा बदन देख तो लिया था.”

विकास – नहीं मैडम, बाबूलाल की वजह से मैंने तुम्हारी पैंटी नहीं उतारी थी. लेकिन अभी यहाँ कोई नहीं है, मैं तुम्हें पूरी नंगी देखना चाहता हूँ. तुमने अभी पैंटी पहनी है, मैडम ?

उसने मेरे जवाब का इंतज़ार नहीं किया और दोनों हाथों से मेरी नाइटी के ऊपर से मेरे नितंबों पर हाथ फेरा, उन्हें सहलाया और दबाया , जैसे अंदाज़ कर रहा हो की पैंटी पहनी है या नहीं.

विकास – मैडम, पैंटी के बिना तुम्हारी गांड मसलने में बहुत अच्छा लग रहा है.

वो मेरे कान में फुसफुसाया. मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और उसकी हरकतों का मज़ा लेती रही. मेरे नितंबों को मलते हुए उसने मेरी नाइटी को मेरे नितंबों तक ऊपर उठा दिया. नाइटी छोटी थी और उसके ऐसे ऊपर उठाने से मेरी टाँगें और जाँघें पूरी नंगी हो गयीं , मैं उस पोज़ में बहुत नटखट लग रही थी.

विकास थोड़ा झुका और मुझे अपनी गोद में उठा लिया , मेरी दोनों टाँगें उसकी कमर के दोनों तरफ थीं. मुझे ऐसे गोद में उठाकर उसने गोल गोल घुमाया जैसे फिल्मों में हीरो हीरोइन को घुमाता है. मुझे बहुत मज़ा आ रहा था . मेरे पति ने कभी मुझे ऐसे गोद में लेकर प्यार नहीं किया, ना हनीमून में और ना ही घर में. विकास अच्छी तरह से जानता था की एक औरत को कैसे खुश करना है.

“विकास, प्लीज़ मुझे नीचे उतारो.”

विकास – मैडम , नीचे कहाँ ? बेड में ?

हम दोनों हँसे. उसने मुझे थोड़ी देर अपनी गोद में बिठाये रखा. अपने हाथों और चेहरे से मेरे अंगों को महसूस करता रहा. फिर मुझे नीचे उतार दिया. अब वो मेरे होठों को चूमने लगा और उसके हाथ मेरी नाइटी को ऊपर उठाने लगे. मुझे महसूस हुआ की नाइटी मेरे नितंबों तक उठ गयी है और मेरे नितंब खुली हवा में नंगे हो गये हैं. उन पर विकास के हाथों का स्पर्श मैंने महसूस किया . मैंने विकास के होठों से अपने होंठ अलग किए और उसे रोकने की कोशिश की.

“विकास, प्लीज़……”

विकास – हाँ मैडम , मैं तुम्हें खुश ही तो कर रहा हूँ.

उसने मेरी नाइटी को पेट तक उठा दिया और मेरी चूत देखने के लिए झुक गया. फिर उसने मेरी नंगी चूत के पास मुँह लगाया और उसे चूमने लगा. मैं शरमाने के बावज़ूद उत्तेजना से कांप रही थी. वो मेरे प्यूबिक हेयर्स में अपनी नाक रगड़ रहा था और वहाँ की तीखी गंध को गहरी साँसें लेकर अपने नथुनों में भर रहा था. अब उसकी जीभ मेरी चूत के होठों को छेड़ने लगी , मेरी चूत बहुत गीली हो चुकी थी.

दोनों हाथों से उसने मेरे सुडौल नितंबों को पकड़ा हुआ था. मेरे पति ने भी मेरी चूत को चूमा था पर हमेशा बेड पर. मैं बिना पैंटी के नाइटी में थी और नाइटी मेरी कमर तक उठी हुई थी और एक मर्द जो की मेरा पति नहीं था , मेरी चूत को चूम रहा था , ऐसा तो मेरी जिंदगी में पहली बार हुआ था.

कुछ ही देर में मुझे ओर्गास्म आ गया और मेरे रस से विकास का चेहरा भीग गया. मेरी चूत को चूसने के बाद वो उठ खड़ा हुआ . फिर उसने अपने दाएं हाथ की बड़ी अंगुली को मेरी चूत में डाल दिया और अंदर बाहर करने लगा. मैंने भी मौका देखकर उसकी धोती में मोटा कड़ा लंड पकड़ लिया और अपने हाथों से उसे सहलाने और उसके कड़ेपन का एहसास करने लगी .

विकास मुझे बहुत काम सुख दे रहा था , अब मैं उसके साथ चुदाई का आनंद लेना चाहती थी. कल मैं जड़ी बूटियों के प्रभाव में थी लेकिन आज तो मैं अपने होशोहवास में थी और मेरा मन हो रहा था की विकास मुझे रगड़कर चोदे. मेरे मन के किसी कोने में ये बात जरूर थी की मैं शादीशुदा औरत हूँ और मुझे विकास के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए. लेकिन मुझे इतना मज़ा आ रहा था की मैंने अपनी सारी शरम एक तरफ रख दी और एक रंडी की तरह विकास से चुदाई के लिए विनती की.

“ विकास, प्लीज़ अब करो ना. मैं तुम्हें अपने अंदर लेने को मरी जा रही हूँ.”

तब तक विकास ने मेरी नाइटी को चूचियों के ऊपर उठा दिया था और अब नाइटी सिर्फ़ मेरे कंधों को ढक रही थी. मेरा बाकी सारा बदन विकास के सामने नंगा था. मेरी चूचियाँ दो बड़े गोलों की तरह थीं जो मेरे हिलने डुलने से ऊपर नीचे उछल रही थीं और विकास का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर रही थीं. मेरे गुलाबी निपल्स उत्तेजना से कड़े हो चुके थे और अंगूर की तरह बड़े दिख रहे थे. विकास ने उन्हें चूमा, चाटा और चूसा और अपनी लार से उन्हें गीला कर दिया. अब मैं इतनी गरम हो चुकी थी की मैंने खुद अपनी नाइटी सर से निकालकर फेंक दी और विकास के सामने पूरी नंगी हो गयी.

मैं पहली बार किसी गैर मर्द के सामने पूरी नंगी खड़ी थी. मुझे बिल्कुल भी शरम नहीं महसूस हो रही थी बल्कि मुझे चुदाई की बहुत इच्छा हो रही थी.

विकास – मैडम , चलो बेड में .

वो मेरे कान में फुसफुसाया और तभी जैसे वो प्यारा सपना टूट गया.

“खट……..खट…….”

विकास एक झटके से मुझसे अलग होकर दूर खड़ा हो गया और अपने होठों पर अंगुली रखकर मुझसे चुप रहने का इशारा करने लगा.

विकास – मैडम , दरवाज़ा मत खोलना. मैं परेशानी में पड़ जाऊँगा. ऐसे ही बात कर लो.

“हाँ , कौन है ?”

मैंने उनीदी आवाज़ में जवाब देकर ऐसा दिखाने की कोशिश की जैसे मैं गहरी नींद में हूँ और दरवाज़ा खटखटाने से अभी अभी मेरी नींद खुली है. मेरा दिल ज़ोरों से धड़क रहा था. मैं अभी भी पूरी नंगी खड़ी थी.

परिमल – मैडम , मैं हूँ परिमल. 6 बज गये हैं.

“ठीक है. मैं उठ रही हूँ. आधे घंटे में तैयार होकर गुरुजी के पास चली जाऊँगी. उठाने के लिए धन्यवाद.”

परिमल – ठीक है मैडम.

फिर परिमल के जाने की आवाज़ आई और हम दोनों ने राहत की सांस ली.

विकास – उफ …..बाल बाल बच गये. मैडम अब मुझे जाना चाहिए.

“लेकिन विकास मुझे इस हालत में छोड़कर ….”

मैं बहुत उत्तेजित हो रखी थी और मेरे पूरे बदन में गर्मी चढ़ी हुई थी. मैं गहरी साँसें ले रही थी और मेरी चूत से रस टपक रहा था. और विकास मुझे ऐसी हालत में छोड़कर जाने की बात कर रहा था.

विकास – मैडम समझने की कोशिश करो. अब मुझे जाना ही होगा. किसी ने यहाँ पकड़ लिया तो मैं परेशानी में पड़ जाऊँगा. क्यूंकी मैंने आश्रम का नियम तोड़ा है.

विकास ने मेरे जवाब का इंतज़ार नहीं किया और दरवाज़ा थोड़ा सा खोलकर इधर उधर देखने लगा. और फिर दरवाज़ा बंद करके चला गया. मुझे उस उत्तेजित हालत में अकेला छोड़ गया. मेरी ऐसी हालत हो रखी थी की उसके चले जाने के बाद मैं बेड में बैठकर अपनी चूचियों को दबाने लगी और अपनी चूत में अंगुली करने लगी.

कुछ देर बाद मुझे एहसास हुआ की ऐसे कब तक बैठी रहूंगी. फिर मैं बाथरूम चली गयी. अभी भी मेरी चूत से रस निकल रहा था. जैसे तैसे मैंने नहाया पर मेरे बदन की गर्मी नहीं निकल पाई. नहाने के बाद मैंने नयी साड़ी, ब्लाउज और पेटीकोट पहन लिए, अपनी दवा ली और फिर गुरुजी के कमरे में चली गयी.

कहानी जारी रहेगी


NOTE


1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .


2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.


3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .


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RE: आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07 - by aamirhydkhan1 - 02-01-2022, 06:23 AM



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