23-12-2021, 08:14 PM
गुरुजी के आश्रम में सावित्री
CHAPTER 4 तीसरा दिन
पुरानी यादें - Flashback
Update 3
पुरानी यादें - Flashback
Update 3
अब मुझे चाचू का हुकुम मानना ही पड़ा. मैंने चाचू से नाइटी ली और अपने कमरे में जाकर दरवाज़ा बंद कर दिया. उन दिनों मेरी लंबाई तेज़ी से बढ़ रही थी और मैं मम्मी से भी थोड़ी लंबी हो गयी थी. आज मैंने और दिनों की अपेक्षा कुछ छोटी स्कर्ट पहनी हुई थी पर ये नाइटी तो और भी छोटी थी. मुझे लगा इस ड्रेस में तो मैं बहुत एक्सपोज हो जाऊँगी.
मैंने अपने सर के ऊपर से टॉप उतार दिया और फिर स्कर्ट को फर्श पे गिरा दिया. मैंने दोनों को हुक पर टाँग दिया. अब मैं सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी. मेरी कसी हुई चूचियाँ सफेद ब्रा में गर्व से तनी हुई थीं. मेरी पैंटी मेरे नितंबों का ज़्यादातर हिस्सा ढके हुए थी. मैंने वो नाइटी अपने बदन के आगे लगा कर देखी तो मुझे लगा की ये तो मेरे नितंबों तक ही पहुँचेगी. मैंने कभी भी इतनी छोटी ड्रेस नहीं पहनी थी. मेरी छोटी से छोटी स्कर्ट भी मेरी आधी जांघों तक आती थी. स्वाभाविक शरम से मेरा हाथ अपनेआप मेरे नितंबों पर पहुँच गया और मैंने पैंटी के कपड़े को खींचकर अपने नितंबों पर फैलाने की कोशिश की ताकि मेरे मांसल नितंब ज़्यादा से ज़्यादा ढक जाए, पर पैंटी जितनी हो सकती थी उतनी फैली हुई थी और अब उससे ज़्यादा बिल्कुल नहीं खिंच रही थी.
चाचू – सावित्री सो गयी क्या ? एक सिंपल सी ड्रेस पहनने में तू कितना टाइम लेगी ?
“चाचू जरा सब्र तो कीजिए.”
मैंने मम्मी की नाइटी अपने सर से नीचे को डाल ली. खुशकिस्मती से ड्रेस मेरी चूचियों को ठीक से ढक रही थी लेकिन कंधों पर बड़ा कट था. इससे मेरी सफेद ब्रा के स्ट्रैप दोनों कंधों पर खुले में दिख रहे थे. ये बहुत भद्दा लग रहा था पर उस नाइटी के कंधे ऐसी ही थे. नाइटी की लंबाई कम होने से वो सिर्फ मेरे गोल नितंबों को ही ढक पा रही थी.
उस नाइटी का बीच वाला हिस्सा बहुत झीना था. इस बात पर पहले मेरा ध्यान नहीं गया था. पर पहनने के बाद मैंने देखा , इस पतली नाइटी में तो मेरी नाभि और पेट का कुछ हिस्सा दिख रहा है. मैं सोचने लगी,” मम्मी ऐसी ड्रेस कैसे पहन लेती है ? इस उमर में भी वो इतनी बेशरम कैसे बन जाती है ?”
मैंने अपने को शीशे में देखा और मुझे बहुत लज्जा आई , मेरा मुँह शरम से लाल हो गया. मैं ऐसी बनके चाचू के पास जाऊँ या नहीं ? मैं दुविधा में पड़ गयी.
खट …खट …..चाचू दरवाज़ा खटखटाने लगे.
चाचू – सावित्री जल्दी आ.
अब मेरे पास कोई चारा नहीं था सिवाय इसके की मैं दरवाज़ा खोलूं और उस बदन दिखाऊ नाइटी में चाचू के सामने आऊं.
खट …खट …..चाचू दरवाज़ा खटखटाने लगे.
चाचू – सावित्री जल्दी आ.
अब मेरे पास कोई चारा नहीं था सिवाय इसके की मैं दरवाज़ा खोलूं और उस बदन दिखाऊ नाइटी में चाचू के सामने आऊं. हिचकिचाते हुए मैंने दरवाज़ा खोल दिया पर शरम की वजह से मैं कमरे से बाहर नहीं आ पाई. दरवाज़ा खुलते ही चाचू अंदर आ गये और मुझे देखने लगे. मैं सर झुकाए और अपनी टाँगों को चिपकाए हुए खड़ी थी. चाचू की आँखों के सामने मेरी गोरी जाँघें और टाँगें पूरी नंगी थीं.
चाचू – वाउ! सावित्री तू तो बड़ी सेक्सी लग रही है इस ड्रेस में. किसी हीरोइन से कम नहीं.
चाचू के मुँह से ‘सेक्सी’शब्द सुनकर मुझे एक पल को झटका लगा . वो मुझसे काफी बड़ी उम्र के थे और मैंने पहले कभी चाचू से इस तरह के कमेंट्स नहीं सुने थे. लेकिन सच कहूँ तो उस समय अपनी तारीफ सुनकर मुझे खुशी हुई थी. वो मेरे नजदीक़ आए और मेरे पेट को ऐसे छुआ जैसे उन्हें उस ड्रेस में मैं अच्छी लगी हूँ. मैंने देखा उनकी नजरें मेरे पूरे बदन में घूम रही थीं. मैं उस कमरे में चाचू के सामने अधनंगी हालत में खड़ी थी. मैंने ख्याल किया की अब चाचू बाएं हाथ से अपनी लुंगी के आगे वाले हिस्से को रगड़ रहे हैं, बल्कि लुंगी के अंदर वो अपने लंड को सहला रहे थे, ये देखकर मैं बहुत असहज महसूस करने लगी.
चाचू – सावित्री एक काम करते हैं , मेरे कमरे में चलते हैं.
ऐसा कहते हुए चाचू ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे कमरे से बाहर खींच लिया. फिर वो अपने कमरे की तरफ जाने लगे. मेरे पास भी उनके पीछे जाने के सिवा कोई चारा नहीं था. चलते समय ड्रेस का पतला कपड़ा मेरे हर कदम के साथ ऊपर उठ जा रहा था. मुझे चिंता होने लगी की कहीं पीछे से मेरी पैंटी तो नहीं दिख जा रही है. मैं खुद अपने पीछे नहीं देख सकती थी इसलिए मुझे और भी ज़्यादा घबराहट होने लगी. पर जल्दी ही ये बात मुझे खुद चाचू से पता चल गयी.
जब हम चाचू के कमरे में पहुचे तो उन्होंने लाइट्स ऑन कर दी. कमरे में पहले से ही उजाला था इसलिए मुझे समझ नहीं आया की चाचू ट्यूबलाइट और एक तेज बल्ब को क्यूँ जला रहे हैं. कमरे में तेज रोशनी होने से मुझे ऐसा लगा जैसे मैं और भी ज़्यादा एक्सपोज हो गयी हूँ.
“चाचू, लाइट्स क्यूँ जला रहे हो ? उजाला तो वैसे ही हो रहा है.”
चाचू – क्यूँ ? तुझे क्या परेशानी है लाइट्स से ?
“नहीं चाचू परेशानी नहीं है. पर ये ड्रेस इतनी छोटी है की…….”
चाचू – की तुझे शरम आ रही है. है ना ?
मैंने हामी में सर हिला दिया.
चाचू – चल तू आधी नंगी है तो मैं भी वही हो जाता हूँ. तब चीज बराबर हो जाएगी और तुझे शरम नहीं आएगी.
“नहीं चाचू मेरा वो मतलब नहीं……..”
मैं अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी की चाचू ने अपनी लुंगी फर्श पर गिरा दी. मुझे कुछ कहने का मौका दिए बिना उन्होंने अपनी बनियान भी उतार दी. अब वो मेरे सामने सिर्फ कच्छे में खड़े थे और उसमें उभार मुझे साफ दिखाई दे रहा था. कच्छे के अंदर उनका लंड कपड़े को बाहर को ताने हुए बहुत अश्लील लग रहा था. उस समय तक मैंने कभी किसी मर्द को अपने सामने ऐसे नंग धड़ंग नहीं देखा था. मुझे अपने जवान बदन में गर्मी बढ़ती हुई महसूस हुई.
चाचू ने मुझे तेज रोशनी वाले बल्ब के नीचे खड़े होने को कहा. मैंने वैसा ही किया , मेरी आँखें चाचू के कच्छे में खड़े लंड पर टिकी हुई थीं. चाचू की नजरें मेरी गोरी टाँगों पर थी. अब वो मेरे बहुत नजदीक़ आ गये और गौर से मेरे पूरे बदन को देखने लगे.
चाचू – सावित्री, तेरी ब्रा तो दिख रही है.
“जी चाचू. कंधों पर कोई कवर नहीं है ना इसलिए ब्रा के स्ट्रैप दिख रहे हैं.”
चाचू – ये एक एडवांटेज है तेरी चाची को अगर वो ये ड्रेस पहनती है. क्यूंकी उसके बाल लंबे हैं तो कंधा उससे ढक जाएगा.
“जी चाचू.”
अब चाचू ने मेरे कंधे में ब्रा के स्ट्रैप को छुआ. मेरे कंधे नंगे थे, वहाँ पर सिर्फ ड्रेस के फीते और ब्रा के स्ट्रैप थे. चाचू के मेरी ब्रा के स्ट्रैप को छूने से मेरे बदन में कंपकपी दौड़ गयी.
चाचू – ये क्या फ्रंट ओपन ब्रा है सावित्री ?
वो मेरी ब्रा के स्ट्रैप को छूते हुए पूछ रहे थे. मेरे बहुत नजदीक़ खड़े होने से उनको मेरी थोड़ी सी क्लीवेज भी दिख रही थी. मैं उनको ऐसे अपना बदन दिखाते हुए और उनके अटपटे सवालों का जवाब देते हुए बहुत शर्मिंदगी महसूस कर रही थी.
“नहीं चाचू. ये बैक ओपन है. फ्रंट ओपन इतनी रिस्की होती है , एक बार हुक खुल गया था तो……..”
चाचू – हम्म्म ……लेकिन तेरी उमर की बहुत सारी लड़कियाँ फ्रंट ओपन ब्रा पहनती हैं क्यूंकी बैक ओपन ब्रा की हुक खोलना और लगाना आसान नहीं है.
“हाँ वो तो है. मैं भी तो कितनी बार नेहा दीदी को बोलती हूँ हुक लगाने के लिए.”
शुक्र कर आज किसी को बुलाना नहीं पड़ा, नहीं तो मुझे तेरी ब्रा का हुक लगाना पड़ता.
मैं शरमा गयी और खी खी कर हंसने लगी. वो मेरी मासूमियत से खेल रहे थे पर उस समय मुझे इतनी समझ नहीं थी.
चाचू – सावित्री, मैं यहाँ कुर्सी में बैठता हूँ. तू एकबार मेरे सामने से दरवाज़े तक जा और फिर वापस आ.
“पर क्यूँ चाचू ?”
चाचू – तू जब यहाँ आ रही थी मुझे लगा की ड्रेस के नीचे से तेरी पैंटी दिख रही है, तेरे चलने पर दिख रही है. ऐसा तो होना नहीं चाहिए.
ये सुनकर मैं अवाक रह गयी. मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा. शर्मिंदगी से मैं सर भी नहीं उठा पा रही थी.
मैंने वैसा ही किया जैसा चाचू ने हुकुम दिया था. चलने से पहले मैंने ड्रेस को नीचे खींचने की कोशिश की पर बदक़िस्मती से वो छोटी ड्रेस बिल्कुल भी नीचे नहीं खिंच रही थी.
चाचू – सावित्री तेरी पैंटी तो साफ दिख रही है ड्रेस के नीचे से. तूने सफेद रंग की पैंटी पहनी है ना ?
चाचू के कमेंट से मैंने बहुत अपमानित और शर्मिंदगी महसूस की. मुझे समझ नहीं आ रहा था की क्या करूँ , इसलिए चुपचाप सहन कर लिया. मैंने सर हिलाकर हामी भर दी की सफेद पैंटी पहनी है.
चाचू – अच्छा अब एक बार मेरे पास आ. मैं जरा देखूं इसे कुछ किया जा सकता है की नहीं.
मेरे पास कहने को कुछ नहीं था , मैं चाचू की कुर्सी के पास आ गयी. वो मेरे सामने झुक गये और अब उनकी आँखें मेरी गोरी गोरी जांघों के सामने थीं. अब दोनों हाथों से उन्होंने मेरी ड्रेस के सिरों को पकड़ा और नीचे खींचने की कोशिश की पर वो नीचे नहीं आई.
चाचू – सावित्री, ये ड्रेस तो और नीचे नहीं आएगी. लेकिन एक काम हो सकता है शायद.
मैंने चाचू को उलझन भरी निगाहों से देखा. वो खड़े हो गये.
चाचू – ये जो ड्रेस के फीते तूने कंधे पर बाँधे हैं ना , उनको थोड़ा ढीला करना पड़ेगा, तब ये ड्रेस थोड़ा नीचे आएगी.
उनके सुझाव से मेरे दिल की धड़कन एक पल के लिए बंद हो गयी.
“पर चाचू उनको ढीला करने से तो नेकलाइन डीप हो जाएगी.”
चाचू – देख सावित्री, ये ड्रेस तो तेरी मम्मी की चॉइस है. दाद देनी पड़ेगी भाभी को. या तो पैंटी एक्सपोज करो या फिर ब्रा.
अब ये तो मेरे लिए उलझन वाली स्थिति हो गयी थी. मैंने चाचू पर ही बात छोड़ दी.
“चाचू मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है. मम्मी ने ये कैसी ड्रेस खरीदी है.”
चाचू – तू सिर्फ चुपचाप खड़ी रह. मैं देखता हूँ.
अब चाचू ने मेरे कंधों पर ड्रेस के फीतों को ढीला कर दिया. फीते ढीले करते हुए चाचू ने ड्रेस के अंदर झाँककर मेरी ब्रा से ढकी हुई चूचियों को देखा जो मेरे सांस लेने से ऊपर नीचे हो रही थीं. चाचू ने शालीनता की सभी सीमाओं को लाँघते हुए मेरी ड्रेस को इतना नीचे कर दिया की मेरी आधी ब्रा दिखने लगी और ब्रा के दोनों कप्स के बीच पूरी क्लीवेज दिख रही थी. ड्रेस को इतना नीचे करके अब वो मेरे कंधों पर फीते बाँधने लगे. मैंने विनती करते हुए विरोध करने की कोशिश की .
“चाचू, प्लीज ऐसे नहीं. मेरी आधी दूध दिख रही हैं.”
चाचू – कहाँ दिख रही हैं. मैं तो सिर्फ ब्रा देख पा रहा हूँ.
“आप आज बड़े बेशरम हो गये हो चाचू.”
चाचू ने मेरे कंधों पर फीते ढीले करके बाँध दिए और अब ड्रेस मेरे नितंबों से थोड़ी नीचे तक आ गयी.
चाचू – अब जाके तेरी पैंटी सेफ हुई. एकबार घूम जा.
मैं चाचू की तरफ पीठ करके घूम गयी. वो फिर से कुर्सी में झुक गये थे , इससे मेरे बड़े नितंब उनके चेहरे के सामने हो गये. तभी चाचू ने मेरी पैंटी देखने के लिए मेरी नाइटी ऊपर उठा दी. उनकी इस हरकत से मैं स्तब्ध रह गयी और शर्मिंदगी से पीछे भी नहीं मुड़ पायी.
“आउच. चाचू क्या कर रहे हो ?”
मैंने पैंटी से ढके हुए अपने नितंबों पर चाचू की अँगुलियाँ घूमती हुई महसूस की. वो धीमे से मेरे नितंबों को दबा रहे थे. एक हाथ से उन्होंने मेरी ड्रेस को ऊपर उठाया हुआ था और दूसरा हाथ मेरे नितंबों पर घूम रहा था. उनकी इस हरकत से मैं बहुत अटपटा महसूस कर रही थी और शरम से मेरा मुँह लाल हो गया था पर सच कहूँ तो मेरी चूत से रस बहने लगा था. फिर चाचू ने अपना हाथ आगे ले जाकर पैंटी के ऊपर से मेरी चूत को छुआ और उसे सहलाया. मैं अब और बर्दाश्त नहीं कर पायी और शरम से चाचू से थोड़ी दूर छिटक गयी.
चाचू – क्या हुआ सावित्री ?
मेरे मुँह से आवाज ही नहीं निकल रही थी. मैं अपने चाचू की तरफ पीठ करके अधनंगी खड़ी थी और वो भी सिर्फ कच्छा पहने हुए थे. मेरी दोनों चूचियाँ ड्रेस नीचे करने के कारण ब्रा के ऊपर से दिख रही थीं.
अब चाचू कुर्सी से उठ गये और मेरे पास आए.
“चाचू , ये आप ठीक नहीं कर रहे हो.”
हिम्मत जुटाते हुए मैंने अपने पीछे खड़े चाचू से कहा.
चाचू – क्या ठीक नहीं किया मैंने ? मतलब क्या है तेरा ?
अचानक चाचू के बोलने का लहज़ा बदल गया और उनकी आवाज कठोर हो गयी.
चाचू – क्या बोलना चाहती है तू ?
चाचू में अचानक आए इस बदलाव से मैं थोड़ी डर गयी.
“चाचू मेरा वो मतलब नहीं था.”
चाचू ने मुझे अपनी तरफ घुमाया और मुझसे जवाब माँगने लगे. उनके डर से मेरे मुँह से कोई शब्द ही नहीं निकल रहे थे.
चाचू – सावित्री मैं जानना चाहता हूँ की क्या ठीक नहीं किया मैंने ?
चाचू गुर्राते हुए बोले. मैं बहुत डर गयी थी.
चाचू – तू मेरी गोद में खेल कूद के बड़ी हुई है. तेरी हिम्मत कैसे हुई ऐसा बोलने की ?
चाचू का गुस्सा देखकर मैं इतना डर गयी की मैंने उनके आगे समर्पण कर दिया. घबराहट से मेरी आँखों में आँसू आ गये. मैं चाचू के गले लग गयी और माफी माँगने लगी.
“चाचू मुझे माफ कर दीजिए . मेरा वो मतलब नहीं था.”
मैंने नहीं समझा था की चाचू इस स्थिति का ऐसा फायदा उठाएँगे.
चाचू – क्या माफ. अभी तूने बोला की मैं ये ठीक नहीं कर रहा हूँ. तू बता मुझे क्या ग़लत किया है मैंने ? नहीं तो भाभी को आने दे , मैं उनसे बात करता हूँ.
वो थोड़ा रुके फिर…….
चाचू – भाभी को अगर पता लगा की उनकी ये प्राइवेट ड्रेस मैं देख चुका हूँ तेरे जरिए . तू सोच ले क्या हालत होगी तेरी.
मम्मी से शिकायत की बात सुनते ही मैं बहुत घबरा गयी. चाचू उल्टा मुझे फँसाने की धमकी दे रहे थे. उस समय मैं नासमझ थी और मम्मी का जिक्र आते ही डर गयी. और उस बेवक़ूफी भरे डर की वजह से कुछ ही देर बाद चाचू के हाथों मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा अपमान मुझे सहना पड़ा.
चाचू ने मुझे अपने से अलग किया और मेरे नंगे कंधों को पकड़कर कठोरता से मेरी आँखों में देखा. मम्मी का जिक्र आने से मेरी आवाज काँपने लगी.
“चाचू प्लीज , मम्मी को कुछ मत बोलना.”
चाचू – क्यूँ ? मुझे तो बोलना है भाभी को की उनकी छोटी लड़की अब इतनी बड़ी हो गयी है की अपने चाचा पर अंगुली उठा रही है.
“चाचू प्लीज. मैं बोल तो रही हूँ, आप जो बोलोगे मैं वही करूँगी. सिर्फ मम्मी को मत बोलिएगा.”
चाचू – देख रश्मि , एक बार तेरी चाची भी ग़लत इल्ज़ाम लगा रही थी मुझ पर . लेकिन अंत में उसको मेरे आगे समर्पण करना पड़ा. वो भी यही बोली थी , ‘आप जो बोलोगे मैं वही करूँगी’.
चाचू कुछ पल रुके फिर ….
चाचू – वो मेरी बीवी है जरूर लेकिन मुझ पर ग़लत इल्ज़ाम लगाने का सबक सीख गयी थी उस दिन. पूछ क्या करना पड़ा था तेरी चाची को ?
“क्या करना पड़ा था चाची को ?”
चाचू – बंद कमरे में एक गाने की धुन पर नाचना पड़ा था उसको , नंगी होकर.
“नंगी …………???”
मैंने चाची को नंगी होकर नाचते हुए कल्पना करने की कोशिश की, उसका इतना मोटा बदन था , देखने में बहुत भद्दी लग रही होगी. फिर मुझे डर लगने लगा ना जाने चाचू मुझसे क्या करने को कहेंगे. मैंने चाचू से विनती करने की कोशिश की.
“चाचू मुझ पर रहम करो प्लीज.”
चाचू – चल किया.
मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ. मैंने चाचू को विस्मित नजरों से देखा.
“सच चाचू ?”
चाचू – हाँ सच. तुझे मैं नहीं बोलूँगा की तू मेरे सामने नंगी होकर नाच.
मुझ पर जैसे बिजली गिरी. मैं चुप रही और सांस रोककर इंतज़ार करने लगी की वो मुझसे क्या चाहते हैं.
चाचू – तुझे कुछ खास नहीं करना सावित्री. सिर्फ मेरे सामने ये ड्रेस उतार दे और अब तो मेरे लंच का टाइम हो गया है, मुझे खाना परोस दे. फिर तेरी छुट्टी.
अगले कुछ पलों तक मुझे ये विश्वास ही नहीं हो रहा था की चाचू मुझसे अपने सामने मेरी ड्रेस उतारने को कह रहे हैं. फिर मैं चाचू से विनती करने लगी पर उनपर कुछ असर नहीं हुआ. अब मैं अपनी ड्रेस उतारने के बाद होने वाली शर्मिंदगी की कल्पना करके सुबकने लगी थी. जब मुझे एहसास हुआ की मैं चाचू को अपना मन बदलने के लिए राज़ी नहीं कर सकती तब मैं कमरे के बीच में चली गयी और ड्रेस उतारने के लिए अपने मन को तैयार करने लगी.
मैंने अपने कंधों से ड्रेस के फीते खोले और मुझे कुछ और करने की जरूरत नहीं पड़ी. फीते खोलते ही ड्रेस मेरे पैरों में गिर गयी. अब मैं चाचू के सामने सिर्फ ब्रा और पैंटी में खड़ी थी. मेरे जवान गोरे बदन के उतार चढ़ाव तेज लाइट में चमक रहे थे. चाचू मुझे कामुक नजरों से देख रहे थे. शर्मिंदगी से मुझे अपना मुँह कहाँ छुपाऊँ हो गयी.
चाचू – चल अब खाना परोस दे.
“चाचू आप एक मिनट रूको, मैं जल्दी से अपने कमरे से एक मैक्सी पहन लेती हूँ . फिर आपका खाना परोस देती हूँ.”
चाचू – सावित्री मैंने क्या बोला था ? मैंने बोला था ‘मेरे सामने ये ड्रेस उतार दे और मुझे खाना परोस दे’. मतलब ये ब्रा और पैंटी पहने हुए तू किचन में जाएगी और मेरे लिए खाना परोसेगी.
मैं गूंगी गुड़िया की तरह चाचू का मुँह देख रही थी.
चाचू – सावित्री, फालतू में मेरा टाइम बर्बाद मत कर. आगे आगे चल. मुझे देखना है की तेरी गांड सिर्फ पैंटी में कैसी लगती है.
चाचू का हुकुम मानने के सिवा मेरे पास कोई चारा नहीं था. मैं सिर्फ ब्रा और पैंटी में चाचू के कमरे से बाहर आई और चाचू मेरे पीछे चल रहे थे . वो अश्लील कमेंट्स कर रहे थे और मैं शर्मिंदगी से सुबक रही थी. उसी हालत में मैं किचन में गयी और चाचू के लिए खाना गरम करने लगी. चाचू किचन के दरवाज़े में खड़े होकर मुझे देख रहे थे. किचन में जब भी मैं किसी काम से झुकती तो मेरी दोनों चूचियाँ ब्रा से बाहर निकलने को मचल उठती, उन्हें उछलते देखकर चाचू अश्लील कमेंट्स कर रहे थे.
फिर मैंने डाइनिंग टेबल में चाचू के लिए खाना लगा दिया. वो खाना खा रहे थे और मैं उनके सामने सर झुकाए हुए अधनंगी खड़ी थी. मुझे ऐसा लग रहा था की एक मर्द के सामने ऐसे अंडरगार्मेंट्स में खड़े रहने से तो नंगी होना ज़्यादा अच्छा है. आख़िरकार चाचू के खाना खा लेने के बाद मेरा ह्युमिलिएशन खत्म हुआ.
चाचू – जा सावित्री , अब अपने कमरे में जाकर स्कर्ट ब्लाउज पहन ले. दिल खट्टा मत कर. और एक बात याद रख, आज जो भी हुआ इसका जिक्र अगर तूने किसी से किया तो तेरी खैर नहीं.
मैं अपने कमरे में चली गयी और दरवाज़ा बंद कर दिया. बहुत अपमानित महसूस करके मेरी रुलाई फूट पड़ी और मैं बेड में लेटकर रोने लगी. कुछ देर बाद मैं नॉर्मल हुई और फिर मैंने स्कर्ट टॉप पहनकर अपने बदन को ढक लिया.
………………. फ्लैशबैक समाप्त ………………
कहानी जारी रहेगी
NOTE
1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब अलग होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा कही पर भी संभव है .
2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा जी स्वामी, पंडित, पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.
3. इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने अन्यत्र नहीं पढ़ी है .
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