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Thriller आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07
#20
गुरुजी के आश्रम में सावित्री

CHAPTER 4 तीसरा दिन

नौका विहार

Update 3

अपराध बोध


“आआआआहह……” मैं उत्तेजना से सिसकने लगी. विकास मेरी पूरी बायीं चूची को जीभ लगाकर छत रहा था और दायीं चूची को हाथों से सहला रहा था. मैं हाथ नीचे ले जाकर उसके खड़े लंड को सहलाने लगी. फिर वो मेरी दायीं चूची के निप्पल को ज़ोर से चूसने लगा जैसे उसमें से दूध निकालना चाह रहा हो. और बायीं चूची को ज़ोर से मसल रहा था , इससे मुझे बहुत आनंद मिल रहा था. जब उसने मेरी चूचियों को छोड़ दिया तो मैंने देखा चाँद की रोशनी में मेरी चूचियाँ विकास की लार से पूरी गीली होकर चमक रही थीं. मेरे निपल्स उसने सूज़ा दिए थे. शरम से मैंने आँखें बंद कर ली.

विकास अब मेरे चेहरे और गर्दन को चाट रहा था. पहली बार मेरे पति की बजाय कोई गैर मर्द मेरे बदन पर इस तरह से चढ़ा हुआ था. पर जो आनंद मेरे पति ने दिया था निश्चित ही उससे ज़्यादा मुझे अभी मिल रहा था. विकास के हाथ मेरी चूचियों पर थे और हमारे होंठ एक दूसरे से चिपके हुए थे. हम दोनों एक दूसरे के होंठ चबा रहे थे और एक दूसरे की लार का स्वाद ले रहे थे. फिर विकास खड़ा हो गया और मेरे निचले बदन पर उसका ध्यान गया.

विकास – मैडम , प्लीज़ ज़रा पलट जाओ.

मैं नाव के फर्श पर लेटी हुई थी और अब नीचे को मुँह करके पलट गयी. मेरी पैंटी सिर्फ़ मेरे नितंबों के बीच की दरार को ही ढक रही थी , इसलिए विकास की आँखों के सामने मेरी बड़ी गांड नंगी ही थी. पैंटी उतरने से मेरी चूत के आगे लगा पैड गिर जाता इसलिए विकास ने नितंबों के बीच की दरार से पैंटी के कपड़े को उठाया और दाएं नितंब के ऊपर खिसका दिया. फिर उसने मेरी जांघों को फैलाया और मेरी गांड की दरार में मुँह लगाकर जीभ से चाटने लगा.

“उूउऊहह……”

मैं कामोत्तेजना से काँपने लगी. मेरी नंगी गांड को चाटते हुए विकास भी बहुत कामोत्तेजित हो गया था. पहले उसने मेरे दोनों नितंबों को एक एक करके चाटा फिर दोनों नितंबों को अपनी अंगुलियों से अलग करके मेरी गांड की दरार को चाटने लगा. वो मेरी गांड के मुलायम माँस पर दाँत गड़ाने लगा और मेरी गांड के छेद को चाटने लगा. उसके बाद विकास मेरी गांड के छेद में धीरे से अंगुली करने लगा.

“आआआअहह…… ओह्ह ….”

उसकी अंगुली के अंदर बाहर होने से मेरी सांस रुकने लगी. उसने छेद में अंगुली की और उसे इतना चाटा की मुझे लगा छेद थोड़ा खुल रहा है और अब थोड़ा बड़ा दिख रहा होगा. मैंने भी अपनी गांड को थोड़ा फैलाया ताकि छेद थोड़ा और खुल जाए.

विकास – बाबूलाल , नाव में तेल है क्या ?

मैं विकास के अचानक किए गये सवाल से काँप गयी. कामोत्तेजना में मैं तो भूल ही गयी थी की नाव में कोई और भी है जो हमारी कामक्रीड़ा देख रहा है.

बाबूलाल – हाँ विकास भैय्या. मैं ला के दूँ क्या ?

विकास ने हाँ में सर हिलाया और वो एक छोटी तेल की शीशी ले आया. मैं नीचे को मुँह किए लेटी थी इसलिए मुझे बाबूलाल के सिर्फ़ पैर दिख रहे थे. वो मेरे नंगे बदन से सिर्फ़ एक फीट दूर खड़ा था. तेल देकर बाबूलाल चला गया. विकास ने अपने खड़े लंड पर तेल लगाकर उसे चिकना किया.

विकास – मैडम अब आपको थोड़ा सा दर्द होगा पर उसके बाद बहुत मज़ा आएगा.

अब तेल से भीगे हुए लंड को उसने मेरी गांड के छेद पर लगाया.

“विकास प्लीज़ धीरे से करना….”

मैंने विकास से विनती की. विकास ने धीरे से झटका दिया , उसके तेल से चिकने लंड का सुपाड़ा मेरी गांड के छेद में घुसने लगा. लंड को गांड में अंदर घुस नहीं पाया. मैंने नाव के फर्श को पकड़ लिया . विकास ने मेरे बदन के नीचे हाथ घुसाकर मेरी चूचियों को पकड़ लिया और उन्हें दबाने लगा.

“ओह्ह …..बहुत मज़ा आ रहा है……”

मैंने विकास को और ज़्यादा मज़ा देने के लिए अपनी गांड को थोड़ा ऊपर को धकेला और अपनी कोहनियों के बल लेट गयी . इससे मेरी चूचियाँ हवा में उठ गयी और दो आमों की तरह विकास ने उन्हें पकड़ लिया. सच कहूँ तो मुझे थोड़ा दर्द हो रहा था पर शुक्र था की विकास ने तेल लगाकर चिकनाई से थोड़ा आसान कर दिया था. और वैसे भी वो किसी हड़बड़ाहट में नही था बल्कि बड़े आराम आराम से मेरी गांड पर टकरा रहा था. हम दोनों ही धीरे धीरे से कामक्रीड़ा कर रहे थे. वो धीरे धीरे अपना लंड घुसा रहा था और मैं अपनी गांड पीछे को धकेल रही थी , अब उसने धक्के लगाने शुरू किए और मैं उसके हर धक्के के साथ कामोन्माद में डूबती चली गयी.

मेरे पति ने पहले कई बार मेरी गांड मरी थी पर आज गांड टाइट हो गयी थी या विकास का लंड बड़ा था पर विकास का लंड अंदर नहीं घुस रहा था.

कुछ देर तक वो धक्के लगाते रहा और मैं काम सुख लेती रही. कुछ देर बाद मैं चरम पर पहुँच गयी और मुझे ओर्गास्म आ गया.

“आआआअहह……ओह्ह ….”

पैंटी में लगे पैड को मैंने चूतरस से पूरा भिगो दिया. मेरे साथ ही विकास भी झड़ गया. हम दोनों कुछ देर तक वैसे ही लेटे रहे और ठंडी हवा और नदी की पानी के आवाज़ को सुनते हुए नाव में उस प्यारी रात का आनंद लेते रहे. फिर विकास उठा और अपने अंडरवियर से मेरी गांड में लगा हुआ अपना वीर्य साफ किया. मुझे पता भी नही चला था की कब उसने अपना अंडरवियर उतार दिया था और वो पूरा नंगा कब हुआ. मेरी गांड पोंछने के बाद उसने मेरी पैंटी के सिरों को पकड़कर मेरे दोनों नितंबों के ऊपर फैला दिया. अब मैं कोई शरम नही महसूस कर रही थी , वैसे भी मुझे लगने लगा था की अब मुझमें थोड़ी सी ही शरम बची थी. फिर मैं सीधी हुई और बैठ गयी , मेरा मुँह बाबूलाल की तरफ था. वो मेरी नंगी चूचियों को घूर रहा था. लेकिन मैंने उन्हें छुपाने की कोशिश नही की बल्कि बाबूलाल की तरफ पीठ कर दी. मैंने विकास के लंड को देखा जो अब सारा रस निकलने के बाद केले की तरह नीचे को लटक रहा था.


“विकास , प्लीज़ मेरे कपड़े दो. मैं ऐसी हालत में अब और नही रह सकती.”

विकास – बाबूलाल , मैडम के कपड़े ले आओ. मैडम , अब तुम नदी के किनारे की तरफ जाना चाहोगी या कुछ देर और नदी में ही ?

“यहीं थोड़ा और वक़्त बिताते हैं.”

विकास – ठीक है मैडम, अभी बैलगाड़ी के मंदिर में आने में कुछ और वक़्त बाकी है.

बाबूलाल ने विकास को मेरे कपड़े लाकर दिए और मैं जल्दी से कपड़े पहनने लगी . मैंने ब्रा पहनी और विकास ने पीछे से हुक लगा दिया. मैं इतना कमज़ोर महसूस कर रही थी की मैंने उसके ‘पति की तरह’ व्यवहार को भी मंजूर कर लिया. मेरी ब्रा का हुक लगाने के बाद वो फिर से मेरी चूचियों को सहलाने लगा.

“विकास अब मत करो. दर्द कर रहे हैं.”

विकास – लेकिन ये तो फिर से तन गये हैं मैडम.

मेरे तने हुए निपल्स को छूते हुए विकास बोला. वो ब्रा के ऊपर से ही अपने अंगूठे और अंगुली के बीच निपल्स को दबाने लगा. मैंने भी उसके मुरझाए हुए लंड को पकड़कर उसको माकूल जवाब दिया.

“लेकिन ये तो तैयार होने में वक़्त लेगा, डियर.”

हम दोनों हंस पड़े और एक दूसरे को आलिंगन किया. फिर मैंने ब्लाउज पहन लिया और पेटीकोट अपने ऊपर डाल लिया. विकास ने मुझे साड़ी नही पहनने दी और कुछ देर तक उसी हालत में बिठाए रखा.

विकास – मैडम, ऐसे तुम बहुत सेक्सी लग रही हो.

बाबूलाल को भी काफ़ी देर तक मेरे आधे ढके हुए बदन को देखने का मौका मिला और इस नाव की सैर के हर पल का उसने भरपूर लुत्फ़ उठाया होगा. समय बहुत धीरे धीरे खिसक रहा था और उस चाँदनी रात में ठंडी हवाओं के साथ नाव नदी में आगे बढ़ रही थी. हम दोनों एक दूसरे के बहुत नज़दीक़ बैठे हुए थे, एक तरह से मैं विकास की गोद में थी और उस रोमांटिक माहौल में मुझे नींद आने लगी थी. नाव चुपचाप आगे बढ़ती रही और मुझे ऐसा लग रहा था की ये सफ़र कभी खत्म ही ना हो.

नाव चुपचाप आगे बढ़ती रही और मुझे ऐसा लग रहा था की ये सफ़र कभी खत्म ही ना हो.

तभी विकास की आवाज़ ने चुप्पी तोड़ी.

विकास – मैडम , जानती हो अब मुझे अपराधबोध हो रहा है.

“तुम ऐसा क्यूँ कह रहे हो?”

विकास – मैडम , आज पहली बार मैंने गुरुजी के निर्देशों की अवहेलना की है. उन्होने मंदिर में आरती के लिए ले जाने को बोला था और हम यहाँ आकर मज़े कर रहे हैं.

वहाँ का वातावरण ही इतना शांत था की आदमी दार्शनिक बनने लग जाए. मुझे लगा विकास का भी यही हाल हो रहा है.

“लेकिन विकास, लक्ष्य तो मुझे……..”

विकास – नही नही मैडम . मैं अपने आचरण से भटक गया. अब मुझे बहुत अपराधबोध हो रहा है.

“कभी कभी जिंदगी में ऐसी बातें हो जाती हैं. विकास मुझे देखो. मैं एक शादीशुदा औरत हूँ और मैं भी तुम्हारे साथ बहक गयी.”

विकास – मैडम , तुम्हारी ग़लती नही है. तुम यहाँ अपने उपचार के लिए आई हो और गुरुजी के निदेशों के अनुसार तुम्हारा उपचार चल रहा है. मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं एक अपराधी हूँ. जो कुछ भी मैंने किया उसे मैं कभी भी गुरुजी को बता नही सकता , मुझे ये बात उनसे छुपानी पड़ेगी.

विकास कुछ देर चुप रहा . फिर बोलने लगा. वो एक दार्शनिक की तरह बोल रहा था.

विकास – मैडम , क्या कोई ऐसी घटना हुई है जिसके बाद तुम्हें गिल्टी फील हुआ हो ? जब तुमने मजबूरी या अंजाने में कुछ किया हो ? अगर नही तो फिर तुम नही समझ पाओगी की इस समय मैं कैसा महसूस कर रहा हूँ.

मैं सोचने लगी. तभी मुझे याद आया…..

“हाँ विकास, शायद तुम सही हो.”


कहानी जारी रहेगी



NOTE

1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .


2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.


3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .


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RE: आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07 - by aamirhydkhan1 - 29-11-2021, 02:15 PM



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