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Thriller आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07
#18
 गुरुजी के आश्रम में सावित्री

CHAPTER 4 तीसरा दिन

नौका विहार

Update 1


नदी के किनारे


बिस्तर में लेटे हुए मेरे दिमाग़ में मंदिर के वही दृश्य घूम रहे थे. और इन सब में वो दृश्य सबसे शर्मिंदगी भरा था जब पांडेजी ने मुझे लाइन में अधनंगी चलने पर मजबूर किया था, मेरी साड़ी और पेटीकोट कमर तक उठा रखी थी. वो दृश्य याद आते ही मैं बहुत ही अपमानित महसूस कर रही थी. पांडेजी ने बहुत ही बेशर्म होने पर मजबूर किया. मैंने कभी इतना ह्युमिलिएटेड नही महसूस किया था.

यही सब सोचते हुए पता नही कब मुझे नींद आ गयी. परिमल ने जब दरवाज़ा खटखटाया तो मेरी नींद खुली. वो चाय और बिस्किट्स लेकर आया था. परिमल ने ट्रे रख दी और उसकी नज़रें मेरी चूचियों पर ही थी. मैं सो रही थी इसलिए मैंने ब्रा नही पहनी हुई थी , इसलिए मेरी बड़ी चूचियाँ इधर उधर हिल रही थी.

मुझे आश्चर्य हुआ की बिना ब्रा के भी ऐसे एक मर्द के सामने खड़े होकर मुझे शरम नही महसूस हो रही थी. मैंने अपनी चूचियों को देखा तो पाया की ब्लाउज में मेरे निप्पल साफ दिख रहे हैं , तभी परिमल की नज़रें बार बार उन पर जा रही थी. मैं जल्दी से पीछे मुड़ी और ब्रा पहनने के लिए बाथरूम जाने लगी.

परिमल – मैडम, जब आप आरती देखने मुक्तेश्वरी मंदिर जाओगी , उससे पहले मैं आपके लिए नया पैड ले आऊँगा.

“ठीक है. प्लीज़ जाते समय दरवाज़ा बंद कर देना.”

परिमल चला गया और मैं बाथरूम चली गयी. मैं 15 मिनट में तैयार हो गयी. फिर पैंटी में पैड लगा लिया और आश्रम से बाहर जाने से पहले दवा खा ली. जब मैं कमरे से बाहर आई तो देखा अंधेरा होने लगा था. मैं काफ़ी देर तक सो गयी थी. पर अच्छी नींद आने से अब मैं बहुत ताज़गी महसूस कर रही थी.

विकास मुझे ले जाने के लिए नही आया था मैं उसे ढूंढने लगी. आश्रम के प्रांगण में मुझे वो खो खो खेलते हुए दिख गया. उसके साथ समीर, राजकमल , मंजू और कुछ लड़के लड़कियाँ खेल रहे थे. विकास ने मुझे देखकर हाथ हिलाया और इंतज़ार करने का इशारा किया. खेलते हुए वो इधर उधर दौड़ रहा था, मैं सिर्फ़ उसको ही देख रही थी.

उसका मजबूत बदन दौड़ते हुए मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. ये साफ था की मैं विकास की तरफ आकर्षित होने लगी थी. मुझे अपने दिल की धड़कनें तेज होती हुई महसूस हुई ठीक वैसे जब कॉलेज के दिनों में मैं पहली बार एक लड़के की तरफ आकर्षित हुई थी. वो मेरा पहला और अंतिम अफेयर था.

जल्दी ही उनका खेल खत्म हो गया. विकास ने अपने हाथ पैर धोए और हम आश्रम से बाहर आ गये. आज फिर बैलगाड़ी से जाना था.

विकास – मैडम, सुबह मंदिर की घटनाओ के लिए तुम मुझसे नाराज़ हो ?

“हाँ बिल्कुल हूँ. तुम मुझे उस लफंगे के पास छोड़कर चले गये. ”

मैंने ऐसा दिखाया जैसे मैं विकास से नाराज़ हूँ. मैं चाहती थी की विकास मुझे मनाए , मुझसे विनती करे.

विकास – मैडम, मेरा विश्वास करो. मेरा इसमे कोई रोल नही है. ये तो गुरुजी का आदेश था .

“मुझे नही मालूम , क्या सच है. पर वो आदमी मुझसे बहुत बदतमीज़ी से पेश आया.”

विकास – मैडम, अगर उसने कोई बदतमीज़ी की तो ये आकस्मिक रूप से हो गया होगा. शायद तुम्हारी खूबसूरती देखकर वो अपने ऊपर काबू नही रख पाया होगा.

मैं चुप रही और विकास की तरफ से मुँह मोड़ लिया. मैं उसका रिएक्शन देखना चाहती थी की मुझे कैसे मनाता है. उसने मेरी कोहनी पकड़ी और मुझे मनाने लगा.

विकास – मैडम, प्लीज़ बुरा मत मानो. प्लीज़ मैडम.

मैं उसकी तरफ मुड़ी और मुस्कुरा दी. इस तरह से मैंने ये जता दिया की मेरे ओर्गास्म निकलने के बाद भी पांडेजी ने मेरे साथ जो किया , अब मैं उसका बुरा नही मान रही हूँ. विकास भी मुस्कुराया और बड़ी बेशर्मी से मेरी दायीं चूची को अपने अंगूठे से दबा दिया. मैं शरमा गयी पर बिल्कुल बुरा नही माना. एक ऐसा आदमी जिसे मैं सिर्फ़ दो दिनों से जानती थी , उसके ऐसे अभद्र व्यवहार का भी मैं बुरा नही मान रही थी. मैं खुद ही हैरान होने लगी थी की हर गुज़रते पल के साथ मैं बेशर्मी की नयी ऊंचाइयों को छू रही हूँ.

जल्दी ही बैलगाड़ी आ गयी. विकास ने कहा की पहले मुक्तेश्वरी मंदिर ही जाना पड़ेगा वरना बैलगाड़ीवाला आश्रम में बता भी सकता है. विकास ने मुझसे वादा किया था की शाम को वो मंदिर नही ले जाएगा पर उसकी बात भी सही थी. आश्रम में किसी के पूछने पर बैलगाड़ीवाला बता भी सकता था की हम मंदिर नही गये.

मैं बैलगाड़ी में बैठ गयी और विकास मुझसे सट के बैठ गया. हमारी तरफ बैलगाड़ीवाले की पीठ थी और बाहर भी अंधेरा होने लगा था , इससे मैं एक कम उम्र की लड़की के जैसे रोमांचित थी . मेले को जाते वक़्त बैलगाड़ी का सफ़र बोरियत भरा था पर आज का सफ़र मज़ेदार होने वाला था.

विकास – मैडम, रोड पर नज़र रखना. लोगों को हम बहुत नज़दीक़ बैठे हुए नही दिखने चाहिए.

विकास मेरे कान में फुसफुसाया. उसके मोटे होंठ मेरे कान को छू रहे थे और उसने अपनी बाँह पीछे से डालकर मुझे हल्के से आलिंगन में लिया हुआ था. इस रोमांटिक हरकत से मेरे बदन में कंपकपी दौड़ गयी और मैं बहुत शरमा गयी. मुझे ऐसा लग रहा था की जैसे मैं एक कॉलेज की लड़की हूँ और अपनी पहली डेट पर जा रही हूँ.

बैलगाड़ी में हमारी सीट के ऊपर गोलाई में मुड़ा हुआ कवर था , जो पीछे से खुला हुआ था. कोई भी पीछे से आता आदमी हमें देख सकता था इसलिए विकास ने जल्दी ही मेरी पीठ से हाथ हटा लिया. हमारी टाँगें एक दूसरे से सटी हुई थीं . बैलगाड़ी में झटके बहुत लगते थे और जब भी ऐसा कोई झटका लगता तो मैं विकास को टाँगों से छूने की कोशिश करती. मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था और मेरी भावनायें बिल्कुल वैसी ही थी जैसे कॉलेज के दिनों में डेटिंग पर जाते हुए हुआ करती थीं.


मैं विकास का हाथ पकड़े हुए थी और वो मेरी पतली अंगुलियों से खेल रहा था. उसकी हथेली गरम महसूस हो रही थी और इससे मुझे और भी उत्तेजना आ रही थी. हम गांव की रोड में धीमे धीमे आगे बढ़ रहे थे. एक जगह पर सुनसानी देखकर विकास ने मेरी साड़ी के पल्लू के अंदर हाथ डाल दिया और मेरी मुलायम चूचियों को सहलाने लगा.

उसके प्यार से मेरी चूचियों को सहलाने से मैं मन ही मन मुस्कुरायी क्यूंकी अभी तक तो जो भी मुझे यहाँ अनुभव हुए थे उनमे सभी मर्दों ने मेरी चूचियों को कामवासना से निचोड़ा था. बैलगाड़ी की हर हलचल के साथ विकास धीरे से मेरी चूची को दबा रहा था. मुझे इतना अच्छा लग रहा था की मैंने आँखें बंद कर ली. उसकी अंगुलियों को मैं अपने ब्लाउज के ऊपर घूमती हुई महसूस कर रही थी. उसकी अँगुलियाँ ब्लाउज के ऊपर से मेरी ब्रा में निपल को ढूंढने की कोशिश कर रही थीं.

विकास – मैडम, तुमने अपने निपल्स कहाँ छुपा दिए ? मैं ढूंढ नही पा रहा.

मैंने शरमाकर बनावटी गुस्से से उसके हाथ में थप्पड़ मार दिया. अब उत्तेजना से मेरे कान गरम होने लगे थे. पर विकास कुछ और करता तब तक मुक्तेश्वरी मंदिर आ गया. ये सुबह के मंदिर के मुक़ाबले बहुत छोटा मंदिर था. विकास ने बैलगाड़ी वाले से दो घंटे बाद आने को कहा और हम मंदिर की तरफ बढ़ गये.

विकास – मैडम, हम भगवा कपड़ों में हैं इसलिए हर कोई हमें पहचान लेगा की हम आश्रम से आए हैं. पहले हमें अपने कपड़े बदलने होंगे. मैं अपने लिए और तुम्हारे लिए बैग में कुछ कपड़े लाया हूँ. चलो मंदिर के पीछे चलते हैं और कपड़े बदल लेते हैं.

मैंने सहमति में सर हिलाया और हम मंदिर के पीछे चले गये. वहाँ कोई नही था. विकास ने बैग में से एक हाफ शर्ट और पैंट निकाला . फिर वो अपने आश्रम के कपड़े बदलने के लिए पास में ही एक पेड़ के पीछे चला गया. मैं उसका बैग पकड़े वहीं पर खड़ी रही. मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था की कहीं कोई आ ना जाए . पर कुछ नही हुआ और एक मिनट में ही विकास कपड़े बदलकर आ गया.

विकास – मैडम, अब तुम अपनी साड़ी और ब्लाउज जल्दी से बदल लो.

ऐसा कहते हुए विकास ने बैग में से एक साड़ी और ब्लाउज निकाला. मैंने उससे कपड़े ले लिए और उसी पेड़ के पीछे चली गयी. मैंने जल्दी से साड़ी उतार दी और ब्लाउज उतारने से पहले इधर उधर नज़र दौड़ाई. वहाँ कोई नही था और शाम का अंधेरा भी था , इससे मेरी हिम्मत बढ़ी और मैंने अपना ब्लाउज भी खोल दिया.

अब मैं सिर्फ़ ब्रा और पेटीकोट में खड़ी थी. मैं मन ही मन अपने को दाद दे रही थी की आश्रम में आकर कुछ ही दिनों में कितनी बोल्ड हो गयी हूँ. वो ब्लाउज मेरे लिए बहुत ढीला हो रहा था. ज़रूर किसी बहुत ही बड़ी छाती वाली औरत का होगा. नयी साड़ी ब्लाउज पहनकर मैं पेड़ के पीछे से निकल आई. विकास ने मेरी आश्रम की साड़ी और ब्लाउज जल्दी से बैग में डाल दिए.

“ये किसकी साड़ी और ब्लाउज है ?”

विकास – मेरी गर्लफ्रेंड की है.

मैंने बनावटी गुस्से से विकास को देखा पर उसने जल्दी से मेरा हाथ पकड़ा और मंदिर से बाहर ले आया. रोड में गांव वाले आ जा रहे थे पर अब हम नॉर्मल कपड़ों में थे इसलिए किसी ने ज़्यादा ध्यान नही दिया.

विकास – मैडम, नदी के किनारे चलते हैं. सबसे सेफ जगह वही है. 5 मिनट में पहुँच जाएँगे.

“ठीक है. इस जगह को तुम ही बेहतर जानते हो.”

विकास – अभी इस समय वहाँ कोई नही होगा.

जल्दी ही हम नदी के किनारे पहुँच गये और वास्तव में वो बहुत ही प्यारी जगह थी.

जल्दी ही हम नदी के किनारे पहुँच गये और वास्तव में वो बहुत ही प्यारी जगह थी. हम दोनों के सिवा वहाँ कोई नही था. नदी किनारे काफ़ी घास उगी हुई थी और वहाँ ठंडी हवा चल रही थी. चाँद भी धीमी रोशनी दे रहा था और हम दोनों नदी किनारे घास पे चल रहे थे , बहुत ही रोमांटिक माहौल था.

विकास – कैसा लग रहा है मैडम ?

विकास मेरा हाथ पकड़े हुए था. फिर उसने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया. उसके पौरुष की गंध, चौड़ी छाती और मजबूत कंधों से मैं होश खोने लगी और मैंने भी उसे मजबूती से अपने आलिंगन में कस लिया. विकास मेरे जवान बदन पर अपने हाथ फिराने लगा और मेरे चेहरे से अपना चेहरा रगड़ने लगा. मैं बहुत उत्तेजित हो गयी और उसके होठों को चूमना चाहती थी.

उसके चूमने से पहले ही अपनी सारी शरम छोड़कर मैंने उसके होठों का चुंबन ले लिया. तुरंत ही उसके मोटे होंठ मेरे होठों को चूमने लगे और उसकी लार से मेरे होंठ गीले हो गये. मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे होठों का रस वो एक ही बार में निचोड़ लेना चाहता है. जब उसने मेरे होंठ कुछ पल के लिए अलग किए तो मैं बुरी तरह हाँफने लगी.

“विकास….”

मैं विकास के चूमने और बाद पर हाथ फिराने से बहुत उत्तेजित हो गयी थी और सिसकारियों में उसका नाम ले रही थी. मेरी टाँगें काँपने लगी पर उसकी मजबूत बाँहों ने मुझे थामे रखा. मेरा पल्लू कंधे से गिरकर मेरी बाँहों में आ गया था. चूँकि विकास का दिया हुआ ब्लाउज बहुत ढीला था इसलिए मेरी चूचियों का ऊपरी हिस्सा साफ दिख रहा था.

विकास ने अपना मुँह मेरी क्लीवेज पर लगा दिया और मेरी चूचियों के मुलायम ऊपरी हिस्से को चूमने और चाटने लगा. मैं उत्तेजना से पागल सी हो गयी. मैंने भी मौका देखकर अपने दाएं हाथ से उसके पैंट में खड़े लंड को पकड़ लिया.

“ऊऊऊऊहह……”

विकास के मोटे लंड को पैंट के बाहर से हाथ में पकड़कर मैंने ज़ोर से सिसकारी ली . उसके लंड को पैंट के बाहर से छूना भी बहुत अच्छा लग रहा था. उसके पैंट की ज़िप खोलने में विकास ने मेरी मदद की . उसके अंडरवियर में लंड पोले की तरह खड़ा था. मैं उसके अंडरवियर के बाहर से ही खड़े लंड को सहलाने लगी. अचानक विकास ने मेरी चूचियों से मुँह हटा लिया.

मैं कुछ समझ नही पाई की क्या हुआ . मेरा पल्लू गिरा हुआ था और बड़ी क्लीवेज दिख रही थी और एक हाथ में मैंने विकास का लंड पकड़ा हुआ था , मैं वैसी हालत में खड़ी थी. तभी मैंने देखा विकास नदी की ओर देख रहा है. मैंने भी नदी की तरफ देखा, एक नाव हमारी तरफ आ रही थी.

विकास – मैडम , लगता है आज हमारी किस्मत अच्छी है. मेरे साथ आओ.

कहानी जारी रहेगी


NOTE



1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .


2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.


3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .


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RE: आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07 - by aamirhydkhan1 - 24-11-2021, 10:38 PM



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