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Thriller आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07
#16
गुरुजी के आश्रम में सावित्री

CHAPTER 4 तीसरा दिन

दर्शन

Update 1


लाइन में धक्कामुक्की

उसके बाद मैं कमरे से बाहर आ गयी. मुझे आज फिर से ऐसा महसूस हुआ की ज़मीन में बैठे हुए गुरुजी की नज़रें पीछे से मेरे लहराते हुए बड़े नितंबों पर हैं. मैंने आज पैंटी नही पहनी थी , शायद इसलिए थोड़ी सतर्क थी.

फिर मैं अपने कमरे में आ गयी. आज पूजा के लिए जाना था इसलिए मैंने नाश्ता नही किया. कुछ देर बाद मैं कमरे से बाहर आ गयी और आश्रम में टहलने लगी. थोड़ी देर मंजू से गप मारी , फिर मंदिर जाने के लिए तैयार होने कमरे में आ गयी.

मैंने बाहर जाने से पहले दवाई खा ली और पैंटी के अंदर नया पैड लगा लिया.

तभी विकास आ गया.

विकास – मैडम , आप तैयार हो ?

“हाँ . मंदिर कितना दूर है ?

कल की घटना के बावज़ूद हम दोनों एक दूसरे के साथ नॉर्मली बिहेव करने की कोशिश कर रहे थे. आज विकास शेव करके आया था. हैंडसम लग रहा था. कल मैं काफ़ी देर तक उसके साथ थी. अब मुझे उसका साथ अच्छा लगने लगा था. आश्रम में एक वही था जिसके साथ मैं इतना घुल मिल गयी थी.

विकास – ज़्यादा दूर नही है . हम बस से जाएँगे. 10 मिनट लगेंगे.

हम खेतों के बीच पैदल रास्ते से जाने लगे. आज विकास मेरे काफ़ी नज़दीक़ चल रहा था. कभी कभी जब मेरी चाल धीमी हो जाती थी तो मैं उसके साथ चलने के लिए उसका हाथ पकड़ ले रही थी. मुझे पता नही क्या हो रहा था लेकिन उसका साथ मुझे अच्छा लग रहा था. उसके साथ होने से मन में एक खुशी सी होती थी.

फिर हम मेन रोड में पहुँच गये और वहाँ से हमें बस मिल गयी. बस में थोड़ी भीड़भाड़ थी. हम बस में चढ़ गये और विकास मेरे पीछे खड़ा हो गया. विकास आज सही मायनों में मुझे प्रोटेक्ट कर रहा था. और मैं भी ज़रूरत से ज़्यादा ही उसकी मदद ले रही थी. जैसे की जब हम भीड़ के बीच लोगों को हटाते हुए अपने लिए जगह बना रहे थे तो मैं उसका हाथ पकड़े हुए थी.

मैंने सपोर्ट के लिए अपने सर के ऊपर रॉड को एक हाथ से पकड़ा हुआ था. विकास ने भी वहीं पर पकड़ा हुआ था उसका हाथ मेरे हाथ से बार बार छू जा रहा था. बस के झटकों से बचने के लिए मैंने उसके गठीले बदन का सहारा लिया हुआ था. मेरे बड़े नितंब उसके पैंट पर दब रहे थे. लेकिन आज विकास बहुत तमीज़ से पेश आ रहा था. शायद सफ़र छोटा होने की वजह से. क्यूंकी जल्दी ही मंदिर आ गया.

मंदिर में और भी लोग बस से उतरे. अब उतरते समय विकास मेरे आगे था मेरी बड़ी चूचियाँ उसकी पीठ से दब गयीं. मैंने भी कोई संकोच नही किया और उसकी पीठ से अपनी छाती चिपका दी. विकास थोड़ा पीछे को मुड़ा और मुझे देखकर मुस्कुराया. शायद वो समझ गया होगा मैं उसे अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए ऐसा कर रही हूँ.

बस से उतरने के बाद मेरा मन विकास के साथ समय बिताने को हो रहा था , मंदिर जाने को मैं उत्सुक नही थी. लेकिन विकास सीधे मंदिर की तरफ बढ़ रहा था.

“विकास , मैं कुछ बोलूँ ?”

विकास – ज़रूर मैडम.

“मेरा मंदिर जाना ज़रूरी है क्या ? मेरा मतलब अगर ना जाऊँ तो ?”

विकास – हाँ मैडम. आपको मंदिर जाना होगा. ये गुरुजी का आदेश है. और उनके हर आदेश का कोई उद्देश्य और लक्ष्य होता है. ये बात तो अब आप भी जानती हो.

“हाँ मैं जानती हूँ. लेकिन मेरा मतलब…..अगर हम ….. मैं ये कहना चाह रही हूँ की …..”

विकास – मैडम , आपको कुछ कहने की ज़रूरत नही. आप मंदिर में जाओ और पूजा करके आओ.

“लेकिन विकास . मैं चाहती हूँ की…….मैं कैसे कहूँ ?”

विकास – मैडम, आपको कहने की ज़रूरत नही. मैं समझ रहा हूँ.

“तुम बिल्कुल बुद्धू हो. अगर तुम समझते तो अभी मुझे मंदिर जाने को नही कहते.”

विकास – मैडम, अभी आप पूजा करो. शाम को गुरुजी ने आपको मुक्तेश्वरी मंदिर ले जाने को कहा है, मैं आपको वहाँ नही ले जाऊँगा.

“पक्का ? वादा करो ?”

विकास – हाँ मैडम. वादा रहा.

अब मैं खुश थी की विकास मेरी मर्ज़ी के आगे कुछ तो झुका. आज मुझे गुरुजी के आदेशानुसार दो बार ओर्गास्म लाने थे और सच बताऊँ तो मैं चाहती थी की उनमें से एक तो विकास से आए.

फिर हम मंदिर पहुँच गये.

“हे भगवान ! इतनी लंबी लाइन !”

विकास – हाँ मैडम. यहाँ लंबी लाइन लगी है. ‘गर्भ गृह’में देवता के दर्शन में काफ़ी समय लगेगा.

विकास और मैं लाइन में नही लगे. विकास मुझे मंदिर के पीछे ले गया. वहाँ एक आदमी हमारा इंतज़ार कर रहा था. विकास ने उससे कुछ बात की और फिर मेरा परिचय कराया.

विकास – ये पांडे जी हैं.

पांडे जी – मैडम आप लाइन की चिंता मत करो. असल में नियम ये है की एक बार में एक ही व्यक्ति गर्भ गृह के अंदर पूजा कर सकता है , इसलिए ज़्यादा समय लग जाता है.

“अच्छा.”

फिर विकास वहाँ से चला गया.

पांडे जी करीब 40 बरस का होगा. मजबूत बदन , बिना शेव किया हुआ चेहरा , हाथों में भी उसके बहुत बाल थे. मुझे लगा ज़रूर इसका बदन ज़्यादा बालों वाला होगा. साफ कहूं तो मुझे बालों वाले मर्द पसंद हैं. खुशकिस्मती से मेरे पति के भी ऐसी ही बाल हैं.

पांडे जी सफेद धोती और सफेद कमीज़ पहने था. एक लड़का भी वहीं पर खड़े होकर हमारी बात सुन रहा था. 18 बरस का रहा होगा.

पांडे जी – छोटू , तू लाइन को सम्हालना और फिर जल्दी नहा भी लेना. मैडम , आप मेरे साथ आओ. धूप में लाइन में खड़े होने की ज़रूरत नही है. जब लाइन मंदिर के अंदर पहुँच जाएगी फिर लग जाना.

छोटू चला गया और मैं पांडे जी के पीछे चली गयी. वहाँ छोटी झोपड़ीनुमा ढाँचे मंदिर के पंडों के लिए बने हुए थे.

पांडे जी मुझे एक झोपड़ी के आँगन में ले गया. वहाँ एक पेड़ से दो गाय बँधी हुई थीं. धूप से आकर वहाँ छाया में मुझे राहत महसूस हुई. पांडे जी ने मुझसे वहाँ रखी खटिया में बैठने को कहा.

पांडे जी मुझे एक झोपड़ी के आँगन में ले गया. वहाँ एक पेड़ से दो गाय बँधी हुई थीं. धूप से आकर वहाँ छाया में मुझे राहत महसूस हुई. पांडे जी ने मुझसे वहाँ रखी खटिया में बैठने को कहा.

खटिया रस्सियों से बनी हुई थी. मैं खटिया में बैठ गयी. बैठने के कुछ ही देर में वो सख़्त रस्सियां मेरे मुलायम नितंबों में चुभने लगीं. मुझे अनकंफर्टेबल फील होने लगा और मैंने साड़ी के अंदर पैंटी को नितंबों पर फैलाने की कोशिश की पर उस बैठी पोज़िशन में पैंटी खिंच नही रही थी. थोड़ी राहत पाने के लिए मैं अपने वजन को कभी एक नितंब कभी दूसरे नितंब में डालने लगी. इससे एक नितंब दबता और दूसरे में आराम हो रहा था. खटिया की रस्सी इतनी सख़्त थी की मेरी साड़ी और पेटीकोट के बाहर से भी चुभ रही थी. मैं शरम की वजह से पांडेज़ी से भी कुछ नही कह पा रही थी.

पांडे जी – मैडम , खटिया में ठीक से नही बैठ पा रही हो क्या ?

मैंने बता दिया की रस्सी चुभ रही है.

पांडे जी – मैडम , मैं आपकी परेशानी समझ सकता हूँ. आपको खटिया में बैठने की आदत नही है ना इसलिए रस्सी आपके मुलायम बदन में चुभ रही है.

पांडेज़ी ने मेरे बदन के ऊपर कमेंट कर दिया , मैं चुप रही.

वो एक चादर ले आया. खटिया नीची थी और मेरे बैठने से रस्सियां और भी नीचे झूल गयी थीं. जब पांडेज़ी चादर ले आया तो मैं खटिया से उठने लगी. नीचे को धँसी रस्सियों से उठते समय मेरा पल्लू कंधे से गिर गया . मैंने जल्दी से अपनी छाती को पल्लू से ढक दिया फिर भी तब तक पांडेज़ी को मेरी बड़ी चूचियों के ऊपरी हिस्से और क्लीवेज का नज़ारा दिख गया.

क्यूंकी वो ठीक मेरे सामने खड़ा था और मैं झुकी पोज़िशन से ऊपर को उठ रही थी तो उसे ऊपर से साफ दिख रहा होगा. पल्लू ब्लाउज के ऊपर करते समय मैंने देखा की मेरी बायीं चूची के ऊपर का ब्रा का स्ट्रैप दिख रहा है. मैंने ब्लाउज के अंदर अँगुलियाँ डालकर स्ट्रैप को ब्लाउज से ढक दिया . ये सब मुझे एक अंजाने मर्द के सामने करना पड़ा. और इस दौरान स्वाभाविक रूप से पांडेज़ी की निगाहें मेरी चूचियों पर ही थी.

जब पांडेज़ी खटिया में चादर बिछा रहा था , तब मैंने अपनी पैंटी को नितंबों पर खींच लिया. मेरे नितंब रस्सी चुभने से दर्द कर रहे थे, इसलिए दोनों हाथों से नितंबों को थोड़ा मला और दबा दिया , ताकि उनमें रक्त संचार ठीक से हो जाए. मैंने सोचा मुझे कोई नही देख रहा है क्यूंकी पांडेज़ी तो चादर बिछा रहा था पर मुझे पता नही चला की वो लड़का छोटू वापस आ गया है और ठीक मेरे पीछे खड़ा है.

जब मेरी नज़र उस पर पड़ी तो मुझे बड़ी शरम महसूस हुई. मैं अपने नितंबों को दबा रही थी और इसने सब देख लिया वो भी ठीक मेरे पीछे खड़े होकर. मैंने देखा वो मुझे देखकर मुस्कुरा रहा था और बार बार मेरे उभरे हुए नितंबों को ही देख रहा था. वैसे तो वो 18 बरस का छोटा लड़का था पर शरम से मैं उससे आँखें नही मिला पा रही थी.

अगर कोई मर्द ऐसे देख ले तो कोई भी औरत बहुत शर्मिंदगी महसूस करेगी. मेरे दिमाग़ में वो सीन दोहराने लगा की इस लड़के को क्या नज़ारा दिखा होगा. सबसे पहले मैंने नितंबों पर साड़ी फैलाई थी जो बैठने से दब गयी थी. फिर मैंने अपनी अंगुलियों से पैंटी के कोने ढूंढे जो नितंबों की दरार में सिकुड गये थे , और फिर पैंटी को नितंबों पर फैलाने की कोशिश की. ऐसा करने के लिए मैं थोड़ा आगे को झुक गयी थी और मेरे गोल नितंब पीछे को उभर गये थे, उसके बाद मैंने दोनों नितंबों को हाथों से थोड़ा मल दिया था. ये सब उस लड़के ने मेरे पीछे खड़े होकर देख लिया.

फिर मैं चादर बिछी खटिया में बैठ गयी. पांडेज़ी झोपड़ी के अंदर गया और कुछ देर बाद एक थाली लेकर आया जिसमें पूजा का समान था.

पांडे जी – छोटू तू जल्दी से नहा ले , तब तक मैं मैडम की थाली के लिए दूध लेकर आता हूँ.

खटिया से कुछ ही फीट दूर एक नल लगा था , छोटू वहाँ नहाने की तैयारी करने लगा. पांडेज़ी भी पेड़ के पास गाय से दूध लाने चला गया , वो पेड़ खटिया से तकरीबन 10 – 12 फीट दूर होगा. छोटू एक शर्ट और निक्कर ( हाफ पैंट ) पहने था. उसने शर्ट उतार दी और कमर में एक तौलिया लपेट कर निक्कर उतार दिया.

पांडे जी – छोटू तौलिया गीला मत कर.

छोटू – फिर नहाऊँ कैसे ?

पांडे जी –ऐसे ही नहा ले. मैडम से क्यूँ शरमा रहा है ?

छोटू चुप रहा.

पांडे जी – मैडम देखो छोटा ही तो है. आपके सामने नहाने में शरमा रहा है.

मैं धीरे से हँसी और कुछ कहने वाली थी तभी……

पांडे जी – अरे यार मैडम क्या छोटी लड़की है तेरी दोस्त रूपा की जैसी , जो तू शरमा रहा है ? मैडम ने तो तेरे जैसे कितने लड़के अपने सामने नहाते हुए देखे होंगे. है ना मैडम ?

मैंने उसकी बकवास को इग्नोर कर दिया और चुप रही. फिर पांडेज़ी एक बर्तन में गाय से दूध निकालने लगा.

“छोटू तुम नहा लो. मुझे कोई प्राब्लम नही है.”

मैंने छोटू से नहाने को कह दिया पर मैं छोटू और पांडेजी के बीच बातचीत को ठीक से समझी नही थी. ये तो मैं सपने में भी नही सोच सकती थी की पांडेज़ी छोटू से मेरे सामने नंगा नहाने को कह रहा है. मुझे क्या पता था की उसने निक्कर के अंदर अंडरवियर ही नही पहना है.

छोटू – ठीक है मैडम , आपको कोई दिक्कत नही तो मैं नहा लेता हूँ. पर रूपा आई तो मुझे बता देना.

“ये रूपा कौन है ?”

पांडे जी – रूपा पास वाले झोपडे में रहती है मैडम. इसकी दोस्त है.

पांडेज़ी और मैं हल्का सा हंस पड़े.

अब छोटू ने बेधड़क अपना तौलिया उतार दिया. वो मुझसे कुछ ही फीट दूर था और शायद जानबूझकर अब उसने मेरी तरफ मुँह कर लिया था. उसको नंगा देखकर मैं हैरान रह गयी. उसका लंड तना हुआ था, शायद जब मेरे पीछे खड़ा होकर मेरे नितंबों को देख रहा होगा तभी से तन गया होगा. अब मेरा ध्यान बार बार उसके लंड पर ही जाए. इधर उधर देखूं तो भी नज़र फिर वही चली जा रही थी. वो अपने बदन में पानी डालने लगा. उसका लंड केले के जैसे हवा में खड़ा था. लंड के आस पास बहुत कम बाल थे.

उस लड़के को मेरे इतने नज़दीक़ नंगा नहाते देख , अब मेरी साँसें भारी हो गयी थीं और मेरे निप्पल तन गये थे. वो बेशरम मेरी तरफ मुँह करके अपने खड़े लंड को मल मल कर साबुन लगा रहा था. उसके ज़रा सा भी बदन हिलाने से उसका लंड हवा में नाच जैसा कर रहा था और ये देखकर मेरे दिल की धड़कनें बढ़ जा रही थी. स्वाभाविक कामोत्तेजना से मेरी टाँगें थोड़ी खुलने लगी और मुझे अपने ऊपर कंट्रोल करना पड़ा.

पांडे जी – ऐ छोटू , बदन में ठीक से साबुन लगा.

छोटू – अब इससे ठीक कैसे लगाऊँ ?

पांडे जी – रुक , मैं लगा देता हूँ.

पांडे जी ने दूध का बर्तन मेरे सामने लाकर रख दिया.

पांडे जी – मैडम ,मैं इसको ठीक से साबुन लगाता हूँ. आप अपने दूध पर नज़र रखना.

पांडेज़ी मुस्कुराते हुए बोला. मैं सोचने लगी, ‘अपने दूध’से इसका क्या मतलब है ?

फिर पांडे जी छोटू के पास गया और उसके बदन पर साबुन लगाने लगा. उसने छोटू के ऊपरी बदन पर बस थोड़ी ही देर मला और फिर उसके लंड पर आ गया. एक हाथ में उसने छोटू का लंड पकड़ा और दूसरे हाथ से उसकी गोलियों को सहलाने लगा. लंड पर साबुन क्या लगा रहा था एक तरह से मूठ मार रहा था.

ये सीन देखकर मेरे हाथ अपनेआप ही मेरी चूचियों पर चले गये और मेरी जाँघें साड़ी के अंदर अलग अलग हो गयीं. मुझे लगा अगर थोड़ी देर और पांडेज़ी वैसा करता तो छोटू पक्का झड़ जाता. शुक्र है जल्दी ही ये खत्म हो गया और फिर छोटू ने तौलिया से अपना नंगा बदन पोंछ लिया. उसने एक दूसरी शर्ट और निक्कर पहन लिया.

पांडेज़ी हाथ धोकर मेरे पास आया. उसने पूजा की थाली में रखे एक छोटे से कटोरे में दूध डाला.

पांडे जी – मैडम, देखो कितना गाढ़ा दूध है.

“हाँ, इसमें पानी नही मिला है ना, जैसे हमको शहर में मिलता है.”

पांडे जी – नही मैडम. ये बिल्कुल शुद्ध है , चूची के दूध जैसा शुद्ध .

मेरी तनी हुई चूचियों की तरफ देखते हुए उसने कहा.

मैं उसकी बात के जवाब में कुछ नही बोल पाई. कहाँ की तुलना कहाँ कर रहा था.

छोटू अब तक तैयार हो गया था. अब हम मंदिर की तरफ चल पड़े. मेरे हाथ में पूजा की थाली थी.

“पांडे जी , लाइन में खड़ी सभी औरतों के माथे पर कुमकुम क्यूँ लगा है ?”

पांडे जी – मैडम , ये मंदिर का रिवाज़ है. आपको भी लगेगा. मैडम, अब इस लंबी लाइन में खड़े होने की तकलीफ़ झेलनी पड़ेगी. यहाँ सबको लाइन में खड़ा रहना पड़ता है, हमको भी. चल छोटू लाइन में लग जा.

लाइन अब मंदिर की छत के नीचे थी. हम उस लंबी लाइन में लग गये. यहाँ पर जगह कम थी. एक पतले गलियारे में औरत और आदमी एक ही लंबी लाइन में खड़े थे. वो लोग बहुत देर से लाइन में खड़े थे इसलिए थके हुए , उनींदे से लग रहे थे. मेरे आगे छोटू लगा हुआ था और पांडेज़ी पीछे खड़ा था. उस छोटी जगह में भीड़भाड़ की वजह से दोनों से मेरा बदन छू जा रहा था.

लाइन अब मंदिर की छत के नीचे थी. हम उस लंबी लाइन में लग गये. यहाँ पर जगह कम थी. एक पतले गलियारे में औरत और आदमी एक ही लंबी लाइन में खड़े थे. वो लोग बहुत देर से लाइन में खड़े थे इसलिए थके हुए , उनींदे से लग रहे थे. मेरे आगे छोटू लगा हुआ था और पांडेजी पीछे खड़ा था. उस छोटी जगह में भीड़भाड़ की वजह से दोनों से मेरा बदन छू जा रहा था.

पांडेजी मुझसे लंबा था और ठीक मेरे पीछे खड़ा था. मुझे ऐसा लगा की वो मेरे ब्लाउज में झाँकने की कोशिश कर रहा है. लाइन में लगने के दौरान मेरा पल्लू थोड़ा खिसक गया था इससे मेरी गोरी छाती का ऊपरी हिस्सा दिख रहा था. मैंने पूजा की बड़ी थाली दोनों हाथों से पकड़ रखी थी तो मैं पल्लू ठीक नही कर पाई और पांडेजी की तांकझांक को रोक ना सकी.

तभी एक पंडा एक कटोरे में कुमकुम लेकर आया और मेरे माथे में कुमकुम का टीका लगा गया.

लाइन में धक्कामुक्की हो रही थी . पांडेजी इसका फायदा उठाकर मुझे पीछे से दबा दे रहा था. मेरा पल्लू भी अब कंधे से सरक गया था और कुछ हिस्सा बाँह में आ गया था. मेरे ब्लाउज का ऊपरी हिस्सा अब पल्लू से ढका नही था. मेरी बड़ी चूचियों का ऊपरी हिस्सा पांडेजी को साफ दिखाई दे रहा था. मुझे पूरा यकीन है की उसे ये नज़ारा देखकर बहुत मज़ा आ रहा होगा.

मुझे कुछ ना कहते देख , पांडेजी की हिम्मत बढ़ गयी. पहले तो जब लाइन में धक्के लग रहे थे तब पांडेजी मुझे पीछे से दबा रहा था पर अब तो वो बिना धक्का लगे भी ऐसा कर रहा था. मेरे बड़े मुलायम नितंबों में वो अपना लंड चुभा रहा था. कुछ देर बाद वो अपनी जाँघों के ऊपरी भाग को मेरी बड़ी गांड पर ऊपर नीचे घुमाने लगा.

मैं घबरा गयी और इधर उधर देखने लगी की कोई हमें देख तो नही रहा. पर उस पतले गलियारे में अगल बगल कोई ना होने से सिर्फ़ पीछे से ही किसी की नज़र पड़ सकती थी. सभी लोग दर्शन के लिए अपनी बारी आने की चिंता में थे. मेरे आगे खड़ा छोटू कोई गाना गुनगुना रहा था , उसे कोई मतलब नही था की उसके पीछे क्या चल रहा है.

पांडेजी – मैडम, आज बहुत भीड़ है. दर्शन में समय लगेगा.

“कर ही क्या सकते हैं. कम से कम धूप में तो नही खड़ा होना पड़ रहा है. यहाँ गलियारे में कुछ तो राहत है.”

पांडेजी – हाँ मैडम ये तो है.

लाइन बहुत धीरे धीरे आगे खिसक रही थी. और अब हम जहाँ पर खड़े थे वहाँ पतले गलियारे में दोनों तरफ दीवार होने से रोशनी कम थी और लाइट का भी कोई इंतज़ाम नही था. पांडेजी ने इसका फायदा उठाने में कोई देर नही लगाई. पांडेजी का चेहरा मेरे कंधे के पास था मेरे बालों से लगभग चिपका हुआ. उसकी साँसें मुझे अपने कान के पास महसूस हो रही थी. खुशकिस्मती से मेरे ब्लाउज की पीठ में गहरा कट नही था इससे मेरी पीठ ज़्यादा एक्सपोज़ नही हो रही थी. एक पल को मुझे लगा की पांडेजी की ठुड्डी मेरे कंधे पर छू रही है. उसी समय छोटू ने भी मुझे आगे से धक्का दिया. मुझे अपनी थाली गिरने से बचाने के लिए थोड़ी ऊपर उठानी पड़ी.

छोटू – सॉरी मैडम, आगे से धक्का लग रहा है.

“कोई बात नही. अब मुझे इसकी कुछ आदत हो गयी है.”

अब छोटू मुझे पीछे को दबाने लगा और उन दोनों के बीच मेरी हालत सैंडविच जैसी हो गयी. फिर पांडेजी ने मेरे सुडौल नितंबों पर हाथ रख दिया. उसने शायद मेरा रिएक्शन देखने के लिए कुछ पल तक अपने हाथ को बिना हिलाए वहीं पर रखा. औरत की स्वाभाविक शरम से मैंने थोड़ा खिसकने की कोशिश की पर आगे से छोटू पीछे को दबा रहा था तो मेरे लिए खिसकने को जगह ही नही थी.

कुछ ही पल बाद पांडेजी के हाथ की पकड़ मजबूत हो गयी. वो मेरे नितंबों की सुडौलता और उनकी गोलाई का अंदाज़ा करने लगा. मेरी साड़ी के बाहर से ही उसको मेरे नितंबों की गोलाई का अंदाज़ा हो रहा था. उसकी अँगुलियाँ मेरे नितंबों पर घूमने लगी और जब भी पीछे से धक्का आता तो वो नितंबों को हाथों से दबा देता.

अचानक छोटू मेरी तरफ मुड़ा और फुसफुसाया.

छोटू – मैडम, ये जो आदमी मेरे आगे खड़ा है , इससे पसीने की बहुत बदबू आ रही है. मेरा मुँह इसकी कांख के पास पहुँच रहा है . मुझसे अब सहन नही हो रहा.

मैं उसकी बात पर मुस्कुरायी और उसको दिलासा दी.

“ठीक है. तुम ऐसा करो मेरी तरफ मुँह कर लो और ऐसे ही खड़े रहो. इससे तुम्हें उसके पसीने की बदबू नही आएगी.”

छोटू मेरी बात मान गया और मेरी तरफ मुँह करके खड़ा हो गया. पर इससे मेरे लिए परेशानी बढ़ गयी. क्यूंकी छोटू की हाइट कम थी तो उसका मुँह ठीक मेरी तनी हुई चूचियों के सामने पहुँच रहा था. पीछे से पांडेजी मुझे सांस भी नही लेने दे रहा था. अब वो दोनों हाथों से मेरे नितंबों को मसल रहा था. एक बार उसने बहुत ज़ोर से मेरे मांसल नितंबों को निचोड़ दिया. मेरे मुँह से ‘आउच’ निकल गया.

छोटू – क्या हुआ मैडम ?

“वो…..वो …..कुछ नही.. …लाइन में बहुत धक्कामुक्की हो रही है.”

छोटू ने सहमति में सर हिला दिया. उसके सर हिलाने से उसकी नाक मेरी बायीं चूची से छू गयी. अब आगे से धक्का आता तो उसकी नाक मेरी चूची पर छू जाती. मैंने हाथ ऊँचे करके पूजा की थाली पकड़ रखी थी ताकि धक्के लगने से गिरे नही तो मैं अपना बचाव भी नही कर पा रही थी. छोटू को शायद पता नही चल रहा होगा पर उसकी नाक मेरे ब्लाउज के अंदर चूची के निप्पल पर छू जा रही थी.


कहानी जारी रहेगी


\

NOTE


1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .


2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.


3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .


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RE: आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07 - by aamirhydkhan1 - 22-11-2021, 01:28 PM



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