21-11-2021, 10:04 PM
(20-11-2021, 01:53 PM)aamirhydkhan1 Wrote:गुरुजी के आश्रम में सावित्री
CHAPTER 4 तीसरा दिन
मुलाकात
Update 1
फिर हम आश्रम पहुँच गये. शर्माजी और उसके मोती से मेरा पीछा छूटा. लेकिन ऑटो से उतरते समय मुझे उतरने में मदद के बहाने उसने एक आखिरी बार अपने हाथ से , साड़ी के बाहर से मेरे नितंबों को दबा दिया.
ऑटो के जाने के बाद मैं और विकास अकेले रह गये. ऑटो में जो हुआ उसकी शरम से मैं विकास से आँखें नही मिला पा रही थी और तुरंत अपने कमरे में चली गयी. मुझे नहाने की सख्त ज़रूरत थी , पूरा बदन चिपचिपा हो रखा था. मैं सीधे बाथरूम में घुसी और फटाफट अपने कपड़े उतार दिए. मेरी पैंटी हमेशा की तरह नितंबों की दरार में फंसी हुई थी उसे भी निकाल फेंका.
तभी मैंने देखा मेरे ब्लाउज का तीसरा हुक टूट कर लटक गया है. वहाँ पर थोड़ा कपड़ा भी फट गया था. ऑटो में मुझे दिखा नही था. ज़रूर विकास के लगातार चूची दबाने से ब्लाउज फटा होगा. इतना मेरी चूचियों को तो किसी ने नही निचोड़ा जितना उस ऑटो में विकास ने निचोड़ा था. ब्लाउज तो फटना ही था. गोपालजी से ठीक करवाना पड़ेगा. मेरी ब्रा भी पसीने से भीग गयी थी. ब्रा का स्ट्रैप सही सलामत है यही गनीमत रही वरना इसको भी बहुत निचोड़ा था उन दोनों ने.
सब कपडे फटाफट उतारकर मैं नंगी हो गयी. पैंटी से गीला पैड निकालकर मैंने एक कोने में रख दिया और नहाने लगी. दिन भर जो मेरे साथ हुआ था , पहले टेलर की दुकान में , फिर मेले में और फिर ऑटो में , उससे मेरे मन में एक अपराधबोध हो रहा था. मैंने देर तक नहाया जैसे उस गिल्ट फीलिंग को बहा देना चाहती हूँ.
उसके बाद कुछ खास नही हुआ. परिमल मेरे कमरे में आया और पैड ले गया. बाद में डिनर भी लाया. मंजू भी आई और मेले के बारे में पूछने लगी. उसके चेहरे की मुस्कुराहट बता रही थी की जो कुछ मेरे साथ हुआ उसे सब पता है. समीर गोपालजी के भेजे हुए दो एक्सट्रा ब्लाउज लेकर आया और ये भी बता गया की सुबह 6:30 पर गुरुजी के पास जाना होगा.
एक ही दिन में इतना सब कुछ होने के बाद मैं बुरी तरह थक गयी थी. दो दो बार मैंने पैड पूरे गीले कर दिए थे. तीन मर्दों ने मेरे बदन को हर जगह पर निचोड़ा था.
डिनर के बाद गुरु माता द्वारा दी गई क्रीम का उपयोग करने की याद आई और अपने पूरे शरीर पर क्रीम लगा दी जिसमें मेरी योनि, स्तन, कमर, कूल्हों और गुदा शामिल थे, मैं सीधे बेड पर लेट गयी. मुझे अपने बदन में इतनी गर्मी महसूस हो रही थी की मैंने अपनी नाइटी पेट तक उठा रखी थी , अंदर से ब्रा पैंटी कुछ नही पहना था. ऐसे ही आधी नंगी लेटी हुई जल्दी ही मुझे गहरी नींद आ गयी. रात में मुझे अजीब से सपने आए , साँप दिखे , शर्माजी और उसका मोती भी सपने में दिखे.
सुबह किसी के दरवाज़ा खटखटाने से मेरी नींद खुली. मैंने अपनी नाइटी नीचे को खींची और बेड से उठ गयी. दरवाज़ा खोला तो बाहर मंजू खड़ी थी. उसने कहा, तैयार होकर आधे घंटे में गुरुजी के कमरे में आ जाओ.
मैं बाथरूम चली गयी और नहा लिया. आश्रम से मिली हुई नयी साड़ी पहन ली और गोपालजी का भेजा हुआ ब्लाउज पहन लिया. ये वाला ब्लाउज फिट आ रहा था. मैंने पेटीकोट के अंदर पैंटी नही पहनी . पैड लगाने के लिए फिर से नीचे करनी पड़ती है, बाद में पहनूँगी. नहा धो के मैं तरोताजा महसूस कर रही थी. फिर मैं गुरुजी के कमरे में चली गयी.
गुरुजी पूजा कर रहे थे. उस कमरे में अगरबत्तियों के जलने से थोड़ा धुआँ हो रखा था. गुरुजी अभी अकेले ही थे. मुझे उनकी पूजा खत्म होने तक 5 मिनट इंतज़ार करना पड़ा.
गुरुजी – जय लिंगा महाराज. सावित्री, मुझे बताओ तुम्हारा कल का दिन कैसा रहा ?
“जय लिंगा महाराज. जी वो ….मेरा मतलब……”
मैं क्या बोलती ? यही की अंजाने मर्दों ने मेरे बदन को मसला , मेरी चूचियों को जी भरके दबाया , मेरी नंगी जांघों और नितंबों पर खूब हाथ फिराए और मैंने एक बेशरम औरत की तरह से इन सब का मज़ा लिया ?
गुरुजी शायद मेरी झिझक समझ गये.
गुरुजी – ठीक है सावित्री. मैं समझता हूँ की तुम एक हाउसवाइफ हो और नैतिक रूप से तुम्हारे लिए इन हरकतों को स्वीकार करना बहुत कष्टदायी रहा होगा. तुम्हें ये सब ग़लत लगा होगा और अपराधबोध भी हुआ होगा. लेकिन तुम्हारे गीले पैड देखकर मुझे अंदाज़ा हो गया की तुमने इसका कितना लुत्फ़ उठाया.
“जी , मुझे दोनों बार ज़्यादा स्खलन हुआ था.”
गुरुजी – ये तो अच्छी बात है सावित्री. देखो , मैं चाहता हूँ की तुम इस बारे में कुछ मत सोचो. अभी नैतिक अनैतिक सब भूल जाओ और जो मैंने तुम्हें लक्ष्य दिया है , दिन में दो बार स्खलन का , सिर्फ़ उस पर ध्यान दो. आज भी कल के ही जैसे , जो परिस्थिति तुम्हारे सामने आए तुमने उसी के अनुसार अपना रेस्पॉन्स देना है. जो हो रहा है, उसे होने देना, कहाँ हूँ , किसके साथ हूँ , ये मत सोचना. दिमाग़ को भटकने मत देना और खुद को परिस्थिति के हवाले कर देना.
“गुरुजी , मैं कुछ पूछ सकती हूँ ?”
गुरुजी – मुझे मालूम है तुम क्या पूछना चाहती हो. यही की तुम्हें कामस्खलन हुआ लेकिन संभोग की तीव्र इच्छा नही हुई. यही पूछना चाहती थी ना तुम ?
मैंने अपना सर हिला दिया क्यूंकी बिल्कुल यही प्रश्न मेरे दिमाग़ में था.
गुरुजी – ये जड़ी बूटी जो मैंने तुम्हें दवाई के रूप में दी हैं उसी की वजह से तुम्हें बहुत कामोत्तेजित होते हुए भी संभोग की तीव्र इच्छा नही हुई. मुझे बस तुम्हारे स्खलन की मात्रा मापनी है और कुछ नही. उसके लिए तुम्हें थोड़ा कम्प्रोमाइज ज़रूर करना पड़ रहा है , बस इतना ही.
“गुरुजी ‘थोड़ा’मत कहिए. मुझे इसके लिए बहुत ही बेशरम बनना पड़ रहा है.”
गुरुजी – हाँ , मैं समझ रहा हूँ सावित्री! लेकिन तुम्हारे उपचार के लिए मेरा ये जानना भी तो ज़रूरी है ना. स्खलन की मात्रा से तुम्हारे गर्भवती होने की संभावना के बारे में पता लगेगा.
गुरुजी कुछ पल चुप रहे.
गुरुजी – मैं चाहता हूँ की आज तुम शिरायण मंदिर में पूजा के लिए जाओ. विकास तुम्हें वहाँ ले जाएगा. शाम को आरती के लिए मुक्तेश्वरी मंदिर चली जाना.
“ ठीक है गुरुजी.”
गुरुजी – जय लिंगा महाराज.
“जय लिंग महाराज.”
कहानी जारी रहेगी
NOTE
1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब अलग होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा कही पर भी संभव है .
2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा जी स्वामी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.
3. इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने अन्यत्र नहीं पढ़ी है .
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