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Thriller आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07
#13
 गुरुजी के आश्रम में सावित्री

CHAPTER 3 दूसरा दिन

मेले से वापसी


Update 2


औटो में मोती





शर्माजी – मोती , क्या कर रहा है ?

लेकिन मोती अपने मालिक की बात नही सुन रहा था. साड़ी के अंदर मेरी टाँगों पर उसकी गीली नाक मैंने महसूस की.

“आउच….”

शर्माजी – क्या हुआ बेटी ?

मुझे कुछ जवाब देने की ज़रूरत नही थी , मोती ने अपना सर मेरी दोनों टाँगों के बीच साड़ी के अंदर घुसा दिया था ये सबको पता था. मोती अब मेरी जांघों पर जीभ लगाकर पसीने की बूंदे चाट रहा था. उसकी खुरदूरी गीली जीभ से मुझे गुदगुदी और अजीब सी सनसनी हो रही थी.

“ऊऊहह……आआहह…..प्लीज़ इसे बाहर निकालो. “

शर्माजी – बेटी , घबराओ नही. मैं इसे बाहर निकलता हूँ.

विकास – मैडम , हिलो नही, मोती वहाँ काट भी सकता है.

शर्माजी – मोती , मोती चल बाहर आजा …..आजा…..

लेकिन मोती शर्माजी की नही सुन रहा था. वो पेटीकोट के अंदर मेरी नंगी जांघों के निचले हिस्से पर अपनी गीली नाक और जीभ लगाने में व्यस्त था. अपनी त्वचा पर उसकी नाक और जीभ लगने से मेरे बदन में कंपकपी हो रही थी और उत्तेजना आ रही थी. मेरी चूत से रस बहने लगा था.

शर्माजी – बेटी , मोती मेरी नही सुन रहा. तुम अपनी साड़ी थोड़ी ऊपर करो तो मैं इसका सर बाहर निकालूँ.

“प्लीज़ कुछ भी करो पर इसे जल्दी बाहर निकालो…..ऊऊओह…….”

मोती अपनी नाक ऊपर को खिसकाते जा रहा था. उसकी जीभ लगने से मेरी जांघें गीली हो गयी थीं. और ठंडी नाक लगने से अजीब गुदगुदी हो रही थी.

शर्माजी – ठीक है. तुम शांत रहो बेटी. मैं तुम्हारी साड़ी उठाकर मोती को बाहर निकाल देता हूँ.

वो ऐसे कह रहा था जैसे मैंने उसे अपनी साड़ी उठाने की अनुमति दे दी हो.

अब उन दोनों मर्दों के सामने मेरी हालत खराब हो गयी थी. मेरा सीट पर बैठना मुश्किल हो गया था. बदमाश मोती की हरकतों से मेरे बदन में कंपकपी दौड़ जा रही थी. ऊऊहह…..आअहह……करते हुए मैं अपना बदन इधर से उधर हिला रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे कोई मर्द मेरी जांघों को चाट रहा हो और मैं सिसकारियाँ ले रही हूँ. बिल्कुल वैसी ही हालत थी मेरी.

फिर शर्माजी थोड़ा झुका और साड़ी के साथ पेटीकोट को ऊपर उठाने लगा. मेरी हालत देखकर विकास ने अपने बाएं हाथ से मेरा बायां हाथ पकड़ लिया और दाएं हाथ को पीछे से ले जाकर मेरा दायां कंधा पकड़ लिया. उसकी बाँहों का सहारा मिलने से मैं पीछे को उसके बदन पर ढल गयी . इस बात का उसने पूरा फायदा उठाया और मेरी दायीं चूची पर हथेली रख दी. शर्माजी ना देख पाए इसलिए उसने साड़ी के पल्लू के अंदर हाथ डाला और ब्लाउज के बाहर से मेरी चूची सहलाने लगा.

शर्माजी ने मेरी गोरी टाँगों को नंगा करने में ज़रा भी देर नही की और साड़ी को पेटीकोट के साथ घुटनों तक उठा दिया. शर्माजी के साड़ी ऊपर उठाने से मोती और भी ऊपर नाक घुसाने को कोशिश करने लगा. शर्माजी भी अब अपनी उमर का लिहाज भूलकर मौके का फायदा उठाने में लगा था. मेरी साड़ी उठाने के बहाने वो मेरी टाँगों पर हाथ फिराने लगा. मोती को बाहर निकालने में उसकी कोई दिलचस्पी नही थी. अब वो मेरी नंगी जांघों को देखने के लिए जबरदस्ती मेरी साड़ी को घुटनों से ऊपर उठाने लगा.

चूँकि मोती मेरी टाँगों के बीच था इसलिए मेरी टाँगें फैली हुई थीं. अब साड़ी को और ऊपर करना शर्माजी के लिए मुश्किल हो रहा था. लेकिन बुड्ढे को जोश चढ़ा हुआ था. उसने मेरे नितंबों के नीचे हाथ डाला और दायीं जाँघ को थोड़ा ऊपर उठाकर साड़ी ऊपर करने के लिए पूरी जान लगा दी.

“आउच…..प्लीज़ मत करो….”

अब उस हरामी बुड्ढे की वजह से मेरी दायीं जाँघ बिल्कुल नंगी हो गयी थी. मोती अब साड़ी उठने से ढका हुआ नही था पर शर्माजी ने मुझे कोई मौका नही दिया और विकास की तरफ से भी साड़ी ऊपर उठा दी. अब मेरी साड़ी और पेटीकोट पूरी ऊपर हो चुकी थी. वो तो मैंने पैंटी पहनी हुई थी वरना उस चलते हुए ऑटो में मेरी नंगी चूत दिख गयी होती.

मैं मत करो कहती रही , लेकिन ना विकास रुका , ना शर्माजी और ना ही मोती.

साड़ी पूरी ऊपर हो जाने से मोती मेरी पैंटी को सूंघ रहा था. मेरी जांघें उसकी लार से गीली हो गयी थीं. मैं अपने दाएं हाथ से अपनी जांघों को पोंछने लगी क्यूंकी बायां हाथ विकास ने पकड़ा हुआ था. शर्माजी ने मुझे एक बेशरम औरत की तरह कमर तक नंगा कर दिया था. मैं औरत होने की वजह से स्वाभाविक रूप से मत करो कह रही थी पर उन तीनो की हरकतों से मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी. मेरी चूत से रस बह रहा था. मोती मेरे घुटनों पर पैर रखकर पैंटी में नाक लगाकर रस सूंघ रहा था.

विकास पहले साड़ी के पल्लू के अंदर हाथ डालकर धीरे से मेरी चूची सहला रहा था. पर अब मुझे उस हालत में देखकर वो भी पूरा फायदा उठाने लगा. उसने अपने दाएं हाथ से मेरी दायीं चूची को अंगुलियों में पकड़ लिया और ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा. मैं उसके बदन पर सहारे के लिए ढली हुई थी. उसके ज़ोर ज़ोर से चूची दबाने से मेरे लिए सांस लेना मुश्किल हो गया. मेरा बायां हाथ उसने अपने हाथ में पकड़ा हुआ था , मैं उस हालत में उत्तेजना से तड़प रही थी.

शर्माजी उस चलते हुए ऑटो में मुझे नंगा करने पर तुला हुआ था. सब शरम लिहाज छोड़कर वो बुड्ढा अब मेरी नंगी मांसल जांघों को अपने हाथों से मसल रहा था. मैं अपने दाएं हाथ से मोती की लार अपनी जांघों से पोंछने की कोशिश कर रही थी. शर्माजी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और अपने दूसरे हाथ से मेरी जांघों को पोंछने लगा. उसके खुरदुरे हाथों का मेरी मुलायम और चिकनी जांघों पर स्पर्श मुझे पागल कर दे रहा था. वो अपने हाथ को मेरे घुटनों से पैंटी तक लार पोंछने के बहाने से फिरा रहा था.

उसकी अंगुलियां मेरी पैंटी को छू रही थीं. मोती की ठंडी नाक भी मुझे अपनी पैंटी के ऊपर महसूस हो रही थी. वो तो गुरुजी का पैड चूत के ऊपर लगा हुआ था वरना शर्माजी की अंगुलियां और मोती की नाक मेरी चूत को छू देती.

ऑटो धीमे चल रहा था और अंदर तीनो ने मेरा बुरा हाल कर रखा था. अब मैं कोई विरोध भी नही कर सकती थी क्यूंकी एक एक हाथ दोनों ने पकड़ रखा था. मोती अब मेरी नंगी जांघों पर बैठकर पैंटी सूंघ रहा था और कभी नाक ऊपर उठाकर मेरी चूचियों पर लगा देता.

शर्माजी मेरी जांघों पर हाथ फिराने के बाद फिर से मेरी साड़ी के पीछे पड़ गया. उसने मेरे नितंबों को सीट से थोड़ा ऊपर उठाकर साड़ी और पेटीकोट को मेरे नीचे से ऊपर खींच लिया. अब कमर से नीचे मैं पूरी नंगी थी सिवाय एक छोटी सी पैंटी के. पैंटी भी पीछे से सिकुड़कर नितंबो की दरार में आ गयी थी. जब साड़ी और पेटीकोट मेरे नीचे से निकल गये तो मुझे अपने नितंबों पर ऑटो की ठंडी सीट महसूस हुई. मेरे बदन में कंपकपी की लहर सी दौड़ गयी. और चूत से रस बहाते हुए मैं झड़ गयी.

“ऊऊओ…. आह…….प्लीज़……ये क्या कर रहे हो ?”

अब बहुत हो गया था. सिचुयेशन आउट ऑफ कंट्रोल होती जा रही थी. मुझे विरोध करना ही था. पर मुझे सुनने वाला कौन था.

“कम से कम मोती को तो हटा दो.”

शर्माजी और उसके मोती की वजह से मुझे ओर्गास्म आ गया. विकास ने मुझे सहारा देते हुए पकड़े रखा था लेकिन मेरी दायीं चूची पूरी निचोड़ डाली थी. मेरी साड़ी का पल्लू ब्लाउज के ऊपर दायीं तरफ को खिसक गया था. विकास ने अपना हाथ छिपाने के लिए पल्लू को दायीं चूची के ऊपर रखा था. अब मोती अपनी नाक ऊपर करके मेरी चूचियों पर लगा रहा था.

शर्माजी ने अब मेरा हाथ छोड़ दिया और अपना बायां हाथ मेरे पीछे ले गया. मैंने सोचा पीछे सीट पर हाथ रख रहा है पर वो तो नीचे मेरी पैंटी की तरफ हाथ ले गया. फिर अपने दाएं हाथ से उसने मुझे थोड़ा खिसकाया और अपनी बायीं हथेली मेरे नितंबों के नीचे डाल दी.

“आउच….”

अब मैं शर्माजी की हथेली के ऊपर बैठी थी और ऑटो को लगते हर झटके के साथ मेरे नितंबों और सीट के बीच में उसकी हथेली दब जा रही थी. ऐसा अनुभव तो मुझे कभी नही हुआ था. पर सच बताऊँ तो मुझे बहुत मज़ा आ रहा था. मेरी पैंटी बीच में सिकुड़ी हुई थी , एक तरह से पूरे नंगे नितंबों के नीचे उसकी हथेली का स्पर्श मुझे पागल कर दे रहा था. मेरी चूत से रस निकल कर पैंटी पूरी गीली हो गयी थी. मोती भी अपने मालिक की तरह मेरे पीछे पड़ा था. अब वो मेरी बायीं चूची को , जिसके ऊपर से साड़ी का पल्लू हट गया था, ब्लाउज के ऊपर से चाट रहा था.

“विकास मोती को हटाओ. मुझे वहाँ पर काट लेगा तो….”

मुझे बहुत मस्ती चढ़ी हुई थी. इन तीनो की हरकतों से मैं कामोन्माद में थी. शर्माजी की हथेली का मेरे नंगे नितंबों पर स्पर्श मुझे रोमांचित कर दे रहा था.

शर्माजी – बेटी , फिकर मत करो. मैं तुम्हें बचा लूँगा.

शर्माजी ने मोती के मुँह के आगे अपनी दूसरी हथेली लगाकर मेरी बायीं चूची ढक दी. उसके लिए तो बहाना हो गया. अब मोती की जीभ और मेरे ब्लाउज के बीच उसकी हथेली थी. उसने अपनी हाथ से मेरी चूची को पकड़ा और ज़ोर से दबाना शुरू कर दिया. अब दोनों चूचियों को दो मर्द दबा रहे थे और मोती चुपचाप देख रहा था.

“ऊऊऊहह………आआआहह……….मत करो प्लीज़ईईई…..”

मुझे एक और ओर्गास्म आ गया.

शर्माजी और विकास दोनों ने मेरी एक एक चूची पकड़ी हुई थी और शर्माजी दूसरे हाथ से मेरे नितंबों को मसल रहा था. विकास ने अब मेरा हाथ छोड़ दिया और अपना बायां हाथ आगे ले जाकर मेरी पैंटी को छूने लगा. दोनों मर्द मेरी हालत का फायदा उठाने में कोई कसर नही छोड़ रहे थे. शर्माजी की भारी साँसें मुझे अपने कंधे के पास महसूस हो रही थी , अपनी उमर के लिहाज से उसके लिए भी शायद ये बहुत ज़्यादा हो गया था.

गुरुजी के दिए पैड को मैंने चूतरस से पूरी तरह भिगो दिया था. और अब मैं निढाल पड़ गयी थी. विकास ने अपना हाथ मेरी दायीं चूची से हटा लिया. पर शर्माजी का मन अभी नही भरा था. वो अभी भी मेरी बायीं चूची को दबा रहा था. मेरे नितंबों की गोलाई नापता हुआ हाथ भी उसने नही हटाया था. आज तक किसी ने भी ऐसे मेरे नंगे नितंबों को नही मसला था.

तभी ड्राइवर ने बताया की अब हम मेन रोड पर आ गये हैं. खुशकिस्मती से वो हमें नही देख सकता था क्यूंकी उसकी सीट के पीछे भी समान भरा हुआ था.

शर्माजी – बेटी , अपनी साड़ी ठीक कर लो , नही तो सामने से आते ऑटोवालों का एक्सीडेंट हो जाएगा.

उसकी बात पर विकास हंस पड़ा. मैं भी मुस्कुरा दी , पूरी बेशरम जो बन गयी थी. मैंने अपने कपड़ों की हालत को देखकर एक लंबी सांस ली. मुझे हैरानी हो रही थी की इतनी उत्तेजना आने के बाद भी मुझे चुदाई की बहुत इच्छा नही हुई. मैंने सोचा शायद गुरुजी की जड़ी बूटी का असर हो . क्यूंकी नॉर्मल सिचुयेशन में कोई भी औरत अगर इतनी ज़्यादा एक्साइटेड होती तो बिना चुदाई किए नही रह पाती.

उत्तेजना खत्म होने के बाद मैं अब होश में आई और कपड़े ठीक करने लगी, पर साड़ी अटकी हुई थी क्यूंकी बुड्ढे का हाथ अभी भी मेरे नितंबों के नीचे था. मैं एक जवान शादीशुदा औरत , एक अंजाने आदमी की हथेली में बैठी हूँ , क्या किया मैंने ये, अब मुझे बहुत शरम आई. मैंने अपने नितंबों को थोड़ा सा ऊपर उठाया और बुड्ढे ने अपना हाथ बाहर निकाल लिया. फिर उसने मोती को मेरी गोद से नीचे उतार दिया.

मैंने जल्दी से साड़ी नीचे की और अपनी नंगी जांघों और टाँगों को ढक दिया , जो इतनी देर से खुली पड़ी थीं. फिर मैंने ब्लाउज के ऊपर साड़ी के पल्लू को ठीक किया और इन दोनों मर्दों के हाथों से बुरी तरह निचोड़ी गयी चूचियों को ढक दिया. उसी समय मैंने देखा शर्माजी अपनी धोती में लंड को एडजस्ट कर रहा है. शायद मुझे चोद ना पाने के लिए उसे सांत्वना दे रहा होगा.

शर्माजी – बेटी , तुम्हारा ब्लाउज गीला हो गया है, शायद दूध निकल आया है. रुमाल दूं पोंछने के लिए ?

“नही नही. ये दूध नही है. मोती ने जीभ से गीला कर दिया.”

विकास – मैडम को अभी बच्चा नही हुआ है. उसी के इलाज़ के लिए तो गुरुजी की शरण में आई है.

शर्माजी – ओह सॉरी बेटी. लेकिन गुरुजी की कृपा से तुम ज़रूर माँ बन जाओगी.

मैंने मन ही मन सोचा, माँ तो पता नही लेकिन अगर अंजाने मर्दों को ऐसे ही मैंने अपने बदन से छेड़छाड़ करने दी तो मैं जल्दी ही रंडी ज़रूर बन जाऊँगी.

फिर हम आश्रम पहुँच गये. शर्माजी और उसके मोती से मेरा पीछा छूटा. लेकिन ऑटो से उतरते समय मुझे उतरने में मदद के बहाने उसने एक आखिरी बार अपने हाथ से , साड़ी के बाहर से मेरे नितंबों को दबा दिया.


कहानी जारी रहेगी


NOTE

1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .

2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.

3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .

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RE: आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07 - by aamirhydkhan1 - 19-11-2021, 06:45 PM



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