Thread Rating:
  • 16 Vote(s) - 2 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Thriller आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07
#12
गुरुजी के आश्रम में सावित्री

CHAPTER 3 दूसरा दिन

मेले से वापसी

Update 1




विकास – मैडम, आपकी किस्मत अच्छी है , बैलगाड़ी में नही जाना पड़ेगा.

मैं बड़ी खुश हुई लेकिन मुझे मालूम नही था की आगे मेरे साथ क्या होनेवाला है.

“शुक्रिया विकास. क्या जुगाड़ किया तुमने ?”

विकास – मैडम , ऑटो मिल गया.

“भगवान का शुक्र है.”

विकास – लेकिन मैडम यहाँ लोग ऑटो से सफ़र नही करते हैं. यहाँ ऑटो सामान ले जाने के काम आता है. उसमें सामान भरा होने से आपको थोड़ी दिक्कत हो सकती है.

"फिर भी उस बैलगाड़ी से तो दस गुना अच्छा ही होगा और जल्दी भी पहुँचा देगा.”

विकास – हाँ मैडम , ये तो है. बैलगाड़ी में एक घंटा लग गया था , ऑटो में 15 मिनट लगेंगे.

फिर हम मेले से बाहर आ गये . ऑटो कुछ दूरी पर खड़ा था. मैंने देखा ऑटो की छत और साइड्स पर रस्सियों से सामान बँधा हुआ था.

ऑटो के पास एक मोटा , गंजा आदमी खड़ा था जो 50 से तो ऊपर का होगा. वो धोती और हाफ कमीज़ पहने हुआ था.

विकास – मैडम ,ये शर्माजी हैं. ये ऑटो इन्ही का है. हमारी किस्मत अच्छी है की ये भी आश्रम की तरफ ही जा रहे हैं.

शर्माजी – बेटी , तुम्हें थोड़ी दिक्कत होगी क्यूंकी सामान भरा होने से ऑटो में जगह कम है. लेकिन 15 मिनट की परेशानी है फिर तो आश्रम पहुँच ही जाओगी.

मैं उसकी तरफ देखकर मुस्कुरा दी. वो मुझसे बेटी कहकर बात कर रहा था तो मुझे राहत हुई की अच्छा आदमी है , और बुजुर्ग भी है.

ऑटो में आगे की सीट पर भी सामान भरा हुआ था. इसलिए मैं , विकास और शर्माजी पीछे की सीट पर बैठा गये.

ऑटो में बैठने के बाद मुझे एक छोटा कुत्ता दिखा जो शर्माजी के पैरों में बैठा हुआ था.

शर्माजी – ये मोती है , मेरे साथ ही रहता है. बहुत शांत कुत्ता है , कुछ नही करेगा.

मैं शर्माजी के बगल में बैठी थी और मोती मुझे ही देख रहा था . अंजान लोगों को देख कर भी नही भौंका , शांत स्वभाव का ही लग रहा था.

शर्माजी – बेटी , मेरे शरीर को तो देख ही रही हो. इस छोटी सी जगह में आधी जगह तो मैंने ही घेर ली है, तुम्हें परेशानी तो होगी इसलिए मुझे खूब कोसना. क्या पता तुम्हारे कोसने से मैं थोड़ा पतला हो जाऊँ.

उसकी बात पर हम सब हंस पड़े. वास्तव में उस ऑटो में बहुत कम जगह थी. शर्माजी के बगल में मैं बैठी थी और विकास के लिए जगह ही नही थी. मैं थोड़ा शर्माजी की तरफ खिसकी और जैसे तैसे विकास भी बैठ गया. थोड़ी जगह बनाने के लिए शर्माजी ने अपनी बाई बाँह मेरे पीछे सीट के ऊपर रख दी. मेरा चेहरा उसकी कांख के इतना पास था की उसके पसीने की बदबू मेरी नाक में आ रही थी.

शर्माजी – बेटी , अब जगह हो रही है ?

मैंने हाँ बोल दिया. विकास के लिए सबसे कम जगह थी. उसकी दायीं कोहनी मेरी बायीं चूची को छू रही थी. शर्माजी के सामने मैं विकास की कोई ग़लत हरकत नही चाहती थी इसलिए मैंने अपने हाथ से उसकी कोहनी को धकेल दिया.

शर्माजी – हम तीनो को कार पार्क करने के लिए बड़े गेराज की ज़रूरत है.

उसकी बात पर विकास हंस पड़ा पर मुझे समझ नही आया.

“शर्माजी , मैं समझी नही.”

शर्माजी – बेटी , मेरा मतलब था की हम तीनो के पिछवाड़े बड़े बड़े हैं तो इनको पार्क करने के लिए जगह भी बड़ी चाहिए ना.”

अबकी बार हम सब हंस पड़े. मैंने सोचा शर्माजी तो बड़े मजाकिया मालूम होते हैं. तभी मैंने देखा, ऑटो में अंधेरे का फायदा उठाकर विकास अपनी कोहनी मुझसे छुआ रहा है. इस बार मैंने उसकी कोहनी नही हटाई. मुझे विरोध ना करते देखकर विकास अपनी कोहनी से मेरी मुलायम चूची को दबाने लगा.

शर्माजी – अरे..अरे ….मेरा सर……

ऑटो ने किसी गड्ढे में तेज झटका खाया और शर्माजी का सर टकरा गया. ड्राइवर ने तुरंत स्पीड कम कर दी. मैंने शिष्टाचार के नाते शर्माजी से पूछा ज़्यादा तो नही लगी.

शर्माजी – ये रॉड से लग गयी बेटी.

शर्माजी ने अपने माथे की तरफ इशारा किया. मैं उसकी तरफ मुड़ी और उसके माथे को देखने लगी.

“आप अपना हाथ हटाइए , मैं देखती हूँ कोई कट तो नही लगा है.”

उसने अपना हाथ हटा लिया और मैं दाएं हाथ से उसके माथे को देखने लगी. उसकी कोहनी से मेरी दायीं चूची दबने लगी लेकिन मैंने ज़्यादा ध्यान नही दिया क्यूंकी वो बुजुर्ग आदमी था और मुझे बेटी भी कह रहा था. वो मुझसे लंबे कद का था इसलिए उसके माथे पर देखने के लिए मुझे अपनी बाँह उठानी पड़ रही थी. मेरी खड़ी बाँह के नीचे दायीं चूची पर शर्माजी की कोहनी का बढ़ता दबाव मैंने महसूस किया. मैंने सोचा जगह की कमी से ऐसा हो रहा होगा.

शर्माजी – कटा तो नही है ना ?

“साफ तो नही देख पा रही हूँ , लेकिन कटा तो नही दिख रहा है.”

शर्माजी – प्लीज़ थोड़ा ठीक से देख लो बेटी.

मैं अपनी अंगुलियों से उसके माथे पर देखने लगी की कहीं सूजन तो नही आ गयी है , उसकी कोहनी मेरी चूची को दबा रही थी. विकास भी मौके का फायदा उठाने में पीछे नही रहा. वो भी अपनी कोहनी से मेरी बायीं चूची को ज़ोर से दबाने लगा. अपनी कोहनी को वो मेरी चूची पर गोल गोल घुमाकर दबा रहा था. हालत ऐसी थी की ऑटो चल रहा था और दो आदमी मेरी दोनों चूचियों को अपनी कोहनी से दबा रहे थे. विकास का तो मुझे पता था की वो जानबूझकर ऐसा कर रहा है पर शर्माजी के बारे में मैं पक्का नहीं कह सकती ।

शर्माजी का माथा देख लेने के बाद मैं अपना हाथ नीचे लाने को हुई तभी उसका कुत्ता पैरों से उठकर उसकी गोद में आ गया. कुत्ते को जगह देने के चक्कर में उसकी कोहनी से मेरी चूची ज़ोर से दब गयी. अब मुझे अपनी दायीं बाँह शर्माजी के पीछे सीट पर रखनी पड़ी क्यूंकी शर्माजी ने मेरे पीछे से अपनी बाँह हटा ली थी तो जगह कम हो रही थी. पर ऐसा करने से मेरी दायीं चूची को मेरी बाँह का प्रोटेक्शन मिलना बंद हो गया.

विकास – मैडम , हाँ ये सही तरीका है. इससे थोड़ी जगह हो जाएगी. जैसे आपने शर्माजी के पीछे अपनी बाँह रखी हुई है वैसे ही मैं भी अपनी बाँह आपके पीछे रख देता हूँ, इससे आपके लिए भी थोड़ी और जगह बन जाएगी.

शर्माजी – विकास भी समझदार होते जा रहा है. है ना बेटी ?

फिर से सब हंस पड़े. तभी आगे से एक साइकिल वाला आया और हाथ हिलाकर रुकने का इशारा करने लगा. ड्राइवर ने ऑटो रोका तो उस आदमी ने बताया की आगे एक्सीडेंट हुआ है इसलिए रोड बंद है. यहाँ से बायीं रोड से जाना होगा.

विकास – मैडम , ये तो गड़बड़ हो गयी. वो तो बहुत लंबा रास्ता है.

“उस रास्ते से कितना समय लगेगा ?”

विकास – कम से कम 45 मिनट तो लगेंगे.

शर्माजी – और क्या कर सकते हैं. आगे रोड बंद है तो लंबे रास्ते से ही जाना होगा. आधा घंटा ही तो एक्सट्रा लगेगा.

ड्राइवर ने ऑटो मोड़ा और हम दूसरे रास्ते पर आ गये.

शर्माजी – और क्या कर सकते हैं. आगे रोड बंद है तो लंबे रास्ते से ही जाना होगा. आधा घंटा ही तो एक्सट्रा लगेगा.

ड्राइवर ने ऑटो मोड़ा और हम दूसरे रास्ते पर आ गये.

इस दूसरी वाली रोड की हालत खराब थी , बार बार ऑटो में झटके लग रहे थे. इन झटकों से मेरी बड़ी बड़ी चूचियाँ ब्रा में ऊपर नीचे उछलने लगी. विकास ने ये बात नोटिस की. मेरा दायां हाथ शर्माजी के पीछे सीट पर था और विकास का दायां हाथ मेरे पीछे सीट पर था. धीरे धीरे वो अपना हाथ नीचे को सरकाने लगा और मेरी उठी हुई बाँह के नीचे ले आया.

मैंने तिरछी नज़रों से शर्माजी को देखा , शुक्र था की उसका ध्यान अपनी गोद में बैठे हुए कुत्ते मोती पर था. अब विकास मेरी साड़ी के पल्लू के अंदर दायीं चूची को दबाने लगा. मेरी बाँह ऊपर होने से विकास को पूरी आज़ादी मिल गयी थी. ऑटो को लगते हर झटके के साथ विकास ज़ोर से मेरी चूची दबा देता. मुझे भी मज़ा आ रहा था , मैंने पल्लू को थोड़ा दाहिनी तरफ कर दिया ताकि विकास का हाथ ढक जाए और शर्माजी देख ना सके.

तभी ड्राइवर ने ऑटो में अचानक से ब्रेक लगाया , शायद आगे कोई गड्ढा था. लेकिन उससे मुझे शर्मिंदगी हो गयी. विकास का हाथ मेरी चूची पर था. शर्माजी ने अपना दायां हाथ मोती के सर पर रखा हुआ था , उसकी अंगुलियां मेरी दायीं चूची से कुछ ही इंच दूर थी. जब अचानक से ब्रेक लगा तो उसका हाथ मेरी चूची से टकरा गया . इससे मेरी चूची विकास और शर्माजी दोनों के हाथों से एक साथ दब गयी , एक की हथेली के ऊपर दूसरे की हथेली.

शर्माजी – ये क्या तरीका है ? ठीक से चलाओ और आगे रास्ते पर नज़र रखो. जल्दबाज़ी करने की ज़रूरत नही है.

शर्माजी ने ड्राइवर को डाँट दिया और उसने माफी माँग ली. लेकिन उस झटके में मेरी चूची दबाने के लिए किसी आदमी ने मुझसे माफी नही माँगी. शर्माजी के हाथ से टकराने के बाद विकास ने अपना हाथ मेरी चूची से हटाकर मेरे पीछे कंधे पर रख दिया था. उस झटके से मोती भी अपनी जगह से हिल गया था और उसका सर मेरी तरफ खिसक गया था. अब उसके सर के ऊपर रखी हुई शर्माजी की अंगुलियां कभी कभी मेरी चूची से छू जा रही थी.

शर्माजी – बेटी , तुम ठीक हो ? कहीं लगी तो नही ?

मैं थोड़ी कन्फ्यूज़ हुई. ये बुड्ढा मेरा हाल चाल पूछ रहा है और इसकी अंगुलियां मेरी चूची को छू रही हैं . फिर मैंने सोचा मैं इस बुजुर्ग आदमी के बारे में ग़लत सोच रही हूँ , इसे तो मेरी फिकर हो रही है.

“नही , नही. मैं बिल्कुल ठीक हूँ.”

शर्माजी के डाँटने के बाद अब ड्राइवर ऑटो धीमा चला रहा था.

विकास के अपना हाथ मेरी चूची से हटा लेने के बाद मैंने राहत की सांस ली, चलो अब ठीक से बैठेगा. लेकिन उसको चैन कहाँ. वो अपना हाथ मेरे कंधे पर ब्लाउज के ऊपर फिराने लगा. उसकी अंगुलियां मेरे कंधे पर ब्रा के स्ट्रैप को छूती हुई नीचे को जाने लगी और पीछे ब्लाउज के हुक पर आ गयी, मेरे बदन में कंपकपी सी दौड़ गयी. विकास की शरारती हरकतों पर शर्माजी का ध्यान ना जाए , इसलिए मैं मोती से बात करने लगी.

“मोती मोती , यू ….उ…… यू ……”

शर्माजी – मोती , सर हिलाओ.

मैं मोती से ये फालतू बातें कर रही थी . उधर विकास अपनी अंगुलियों से पकड़कर मेरी ब्रा के स्ट्रैप को पीछे खींच रहा था. स्ट्रैप को पीछे की ओर खींचता फिर झटके से छोड़ देता. उसका यही खेल हो रहा था. अगर किसी औरत की ब्रा से कोई ऐसे करे तो वो आराम से कैसे बैठ सकती है ? फिर भी मैं चुपचाप से बैठने की पूरी कोशिश कर रही थी. विकास की इस छेड़छाड़ से मैं उत्तेजित होने लगी थी.

कुछ समय बाद विकास बोर हो गया और उसने मेरी ब्रा के स्ट्रैप से खेलना बंद कर दिया. अब उसका हाथ मेरी पीठ पर ब्लाउज से नीचे को जाने लगा. मेरी स्पाइन को छूते हुए उसका हाथ ब्लाउज और साड़ी के बीच मेरी कमर पर आ गया.

शर्माजी का ध्यान बँटाने के लिए मैं मोती से खेल रही थी. ऑटो को लगते झटको से शर्माजी की अंगुलियां मेरी चूची से छू जा रही थी. बुजुर्ग होने की वजह से मैं ध्यान नही दे रही थी पर एक बार उसका अंगूठा मैंने अपने निप्पल के ऊपर महसूस किया. मुझे लगा ऐसा अंजाने में हो गया होगा लेकिन ऐसे छूने से मेरे निप्पल तन गये.

शर्माजी – बेटी , मोती तुम्हें अच्छा लग रहा है तो अपनी गोद में बैठा लो.

“नही नही , काट लिया तो ?”

शर्माजी – बेटी , उस पर भरोसा करो. तुम्हें दाँत नही गड़ाएगा. ये तुम्हारा पति थोड़े ही है.

उसकी बात से मैं शरमा गयी. मुझे शरमाते देख शर्माजी हंस पड़ा , शायद मुझे हंसाने के लिए.

शर्माजी – बेटी , मेरे मज़ाक से तुम बुरा तो नहीं मान रही हो ना ?

“ना ना. ऐसी कोई बात नही.”

लेकिन मैं अभी भी उसकी बात पर शरमा रही थी. मैंने शर्माजी के पीछे से अपना हाथ हटाया और दोनों हाथों से मोती को अपनी गोद में बिठाने लगी पर मोती अंजाने की गोद में जाने में घबरा रहा था.

शर्माजी – बेटी डरो मत. मोती कुछ नही करेगा. मोती उछल कूद मत करो.

शर्माजी ने मेरी तरफ मुड़कर मोती को मेरी गोद में रख दिया पर मोती उछल कूद कर रहा था इसलिए अभी भी उसने दोनों हाथों से मोती को पकड़ा हुआ था. विकास का हाथ मेरी कमर में था और वो मेरी पेटीकोट के अंदर अपनी अंगुली घुसाने की कोशिश कर रहा था. लेकिन शर्माजी को मेरी तरफ मुड़ा हुआ देखकर विकास ने अपनी हरकत रोक दी.

पर अब दूसरी मुसीबत सामने से थी. मोती को कंट्रोल करने के चक्कर में शर्माजी के हाथों से मेरी चूचियाँ दब जा रही थी. हालाँकि वो बुजुर्ग आदमी था और मुझे लगा की ये अंजाने में हो रहा है पर ऐसे छूने से मुझे उत्तेजना आ रही थी.

कुछ देर बाद मोती शांत हो गया और मेरी गोद में बैठ गया , तब तक शर्माजी की अंगुलियों से कई बार मेरी चूचियाँ दब चुकी थी. विकास ने देखा अब मोती शांत बैठ गया है. उसने फिर से अपनी अंगुली मेरी पेटीकोट में घुसानी शुरू कर दी और मेरी पैंटी छूने की कोशिश करने लगा. वो तो अच्छा था की मैंने पेटीकोट कस के बांधा हुआ था तो विकास ज़्यादा अंदर तक अंगुली नही डाल पा रहा था.

शर्माजी – बेटी , मैं एक हाथ मोती के ऊपर रखता हूँ ताकि ये अगर फिर से उछल कूद करे तो मैं सम्हाल लूँगा.

मैं क्या कहती ? वो मेरी हेल्प के लिए ऐसा बोल रहा था लेकिन मोती के ऊपर हाथ रखने से उसकी अंगुलियां मेरी तनी हुई चूचियों को छूने लगती. मैंने हाँ में सर हिला दिया.

शर्माजी मुझसे और भी सट गया और मोती के सर पर अपना हाथ रख दिया. मोती अपना सर इधर उधर हिला रहा था और शर्माजी की अंगुलियां मेरी चूची पर रगड़ रही थी.

शर्माजी – बेटी , मोती के ऊपर मेरा हाथ है , अब तुम्हें डरने की ज़रूरत नही.

उसके बेटी कहने से मुझे अपने ऊपर ग्लानि हो रही थी की मैं इसके बारे में ग़लत ख्याल कर रही हूँ. मैंने उसकी अंगुलियों के छूने को नज़रअंदाज़ कर दिया. विकास ने मेरी पेटीकोट में अंगुली घुसाने का खेल भी बंद कर दिया था. अब वो हाथ और नीचे ले जाकर साड़ी के बाहर से मेरे नितंबों को छू रहा था. मेरे मक्खन जैसे मुलायम बड़े नितम्बों में बहुत रस था , उन्हें दबाने में उसे बहुत मज़ा आ रहा होगा. उसका पूरा हाथ नही जा पा रहा था इसलिए मैं थोड़ा आगे खिसक गयी.

मेरे आगे खिसकने से उसके हाथ के लिए जगह हो गयी और मज़े लेते हुए मेरे नितंबों पर हाथ फिराने लगा. उसके ऐसे हाथ फिराने से मुझे भी बहुत मज़ा आ रहा था. एक ही दिन में आज ये दूसरा मर्द था जो मेरी गांड दबा रहा था.

अब अंधेरा बढ़ने लगा था. शर्माजी की हथेली भी मोती के सर से खिसक गयी थी. मोती के सर पर उसकी बाँह थी और हथेली ब्लाउज और पल्लू के बाहर से मेरी चूची के ऊपर. एक आदमी पीछे से मेरे बड़े नितंबों से मज़े ले रहा था और दूसरा आगे से चूची पर हाथ फिरा रहा था. मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी. गुरुजी की जड़ी बूटी के असर से उन दोनों के बीच मेरी हालत एक रंडी की जैसी हो गयी थी.

मोती कुछ देर शांत बैठने के बाद फिर से उछल कूद करने लगा. उसको सम्हालने के चक्कर में शर्माजी मेरी चूचियों की मालिश कर दे रहा था.

शर्माजी – बेटी , मोती को तुम्हारी गोद में चैन नही आ रहा. इसको नीचे रख दो.

“हाँ , एक पल के लिए भी ठीक से नही बैठ रहा.”

शर्माजी – शायद मोती से भी ( तुम्हारी ) गर्मी सहन नही हो रही.

उसकी बात पर विकास ज़ोर से हंस पड़ा और शर्माजी के कमेंट की दाद देने के लिए मेरे नितंबों पर ज़ोर से चिकोटी काट ली. मैं भी बेशर्मी से हंस दी.

फिर मैंने मोती को नीचे रख दिया. पर वो नीचे भी शांत नही बैठा और मेरी टांगों को सूंघने लगा. कुछ ही देर में सूंघते सूंघते उसने अपना सर मेरी साड़ी के अंदर घुसा दिया. अब ये मेरे लिए बड़ी अजीब स्थिति हो गयी थी. विकास को भी आश्चर्य हुआ और उसने मेरे नितंबों को दबाना बंद कर दिया.

फिर मैंने मोती को नीचे रख दिया. पर वो नीचे भी शांत नही बैठा और मेरी टांगों को सूंघने लगा. कुछ ही देर में सूंघते सूंघते उसने अपना सर मेरी साड़ी के अंदर घुसा दिया. अब ये मेरे लिए बड़ी अजीब स्थिति हो गयी थी. विकास को भी आश्चर्य हुआ और उसने मेरे नितंबों को दबाना बंद कर दिया.


कहानी जारी रहेगी

NOTE

1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .

2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.

3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी  विवेचना की गयी है  वैसी विवेचना  और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .

My Stories Running on this Forum

1. मजे - लूट लो जितने मिले
2. दिल्ली में सुलतान V रफीक के बीच युद्ध
3.अंतरंग हमसफ़र
4. पड़ोसियों और अन्य महिलाओ के साथ एक नौजवान के कारनामे
[+] 2 users Like aamirhydkhan1's post
Like Reply


Messages In This Thread
RE: आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07 - by aamirhydkhan1 - 18-11-2021, 09:40 PM



Users browsing this thread: 9 Guest(s)