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Thriller आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07
#11
गुरुजी के आश्रम में सावित्री

CHAPTER 3 दूसरा दिन


मेला

Update 3


लाइव शो


“अरे , कोई आ जाएगा.”

“यहाँ कोई नही है. फिकर मत करो.”

वहाँ थोड़ा अंधेरा था इसलिए मेरी आँखों को एडजस्ट होने में कुछ समय लगा . पर अब मुझे सब साफ दिख रहा था. मुझसे कुछ ही दूरी पर एक पेड़ के पीछे एक लड़की और एक आदमी खड़े थे. वो आपस में ही मस्त थे इसलिए उन्होने मुझे नही देखा था. आदमी करीब 30-35 का होगा लेकिन लड़की 18–19 की थी. लड़की ने घाघरा चोली पहना हुआ था.

आदमी ने लड़की को अपनी बाँहों के घेरे में पकड़ा हुआ था और उसके होठों का चुंबन लेने की कोशिश कर रहा था. लड़की अपना चेहरा इधर उधर घुमाकर उसको चुंबन लेने नही दे रही थी.

फिर उस आदमी ने चोली के बाहर से लड़की की चूची को पकड़ लिया और उसे दबाने लगा. अब लड़की का विरोध धीमा पड़ने लगा. कुछ ही देर में लड़की की अंगुलियां आदमी के बालों को सहलाने लगीं और उस आदमी ने अपने होंठ लड़की के होठों से चिपका दिए. फिर चुंबन लेते हुए ही आदमी ने एक हाथ लड़की के घाघरे के बाहर से ही उसकी गांड पर रख दिया और उसे मसलने लगा.

उनकी कामुक हरकतों से मेरे निप्पल तन गये. उन्हें छुपकर देखने में मुझे बहुत मज़ा आ रहा था. लड़की की छोटी चूचियों को वो आदमी अपने हाथ से मसल रहा था , मेरा दायां हाथ अपने आप ही मेरी चूची पर चला गया.

फिर उस आदमी ने चुंबन लेना बंद कर दिया और लड़की की चूचियों को चोली के बाहर से ही दांतो से काटने लगा. उसने लड़की के घाघरे के अंदर हाथ डालकर घाघरे को उसकी जांघों तक ऊपर उठा दिया और लड़की की चिकनी जांघों पर हाथ फिराने लगा. इस लाइव शो को देखकर मैं अपने हाथ से अपनी चूची दबाने लगी और मेरी चूत गीली हो गयी.

“पारो , पारो , तुम कहाँ हो ?”

अचानक उस आवाज़ को सुनकर वो दोनों और मैं चौंक पड़े. एक बुड्ढा आदमी जो शायद उस लड़की का पिता या कोई रिश्तेदार था, आवाज़ देकर उसे ढूंढने की कोशिश कर रहा था. वो दोनों एकदम बुत बनकर चुपचाप रहे. आवाज़ देते हुए वो बुड्ढा आगे बढ़ गया. उसके कुछ दूर जाने के बाद लड़की ने अपने कपड़े ठीक किए और बुड्ढे के पीछे दौड़ गयी और वो आदमी भी वहाँ से चला गया.

मैं उस बुड्ढे को कोसने लगी, इतना मज़ा आ रहा था , ना जाने आगे वो दोनों और क्या क्या करने वाले थे , पर अब तो लाइव शो खत्म हो गया था. मैं भी वहाँ से निकल आई और झुमके की दुकान के सामने खड़ी होकर विकास का इंतज़ार करने लगी.

कुछ मिनट बाद विकास मुस्कुराते हुए आया.


कहानी जारी रहेगी



NOTE



1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .

2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.

3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी  विवेचना की गयी है  वैसी विवेचना  और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .

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RE: आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07 - by aamirhydkhan1 - 18-11-2021, 07:22 AM



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