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Thriller आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07
#10
 गुरुजी के आश्रम में सावित्री 

CHAPTER 3 दूसरा दिन

मेला

Update 2



मेले में टॉयलेट





“विकास मुझे टॉयलेट जाना है. उस समय मैं नही जा पाई थी………”

विकास ने मेरी चूची पर से हाथ हटा लिया और मुझे एक गली से होते हुए दुकानों के पीछे ले गया. मेले में बल्ब जले हुए थे लेकिन दुकानों के पीछे थोड़ा अंधेरा था . दूर खड़े लोगों के लिए साफ देख पाना मुश्किल था. पर मैं अभी भी हिचक रही थी क्यूंकी वहाँ कोई झाड़ी नही थी जिसके पीछे मैं बैठ सकूँ.

विकास – मैडम , अब क्या दिक्कत है ?

“देख नही रहे , यहाँ कोई झाड़ी नही है. कैसे करूँ ?”

विकास – लेकिन मैडम, यहाँ अंधेरे में कौन देख रहा है. उस कोने में जाओ और कर लो.

“इतना अंधेरा भी नही है. मैं तो तुम्हें साफ देख सकती हूँ.”

विकास – मैडम , आप भी ….. ठीक है , मैं आपकी तरफ नही देखूँगा.

वो शरारत से मुस्कुराया लेकिन मैंने उसकी तरफ ध्यान नही दिया. मुझे तो यही फिकर थी की कैसे करूँ.

“कोई आ गया तो ….?”

विकास – मैडम , इसमें टाइम ही कितना लगना है. कुछ ही सेकेंड्स में तो हो जाएगा.

मुझे तो ज़्यादा समय लगना था , क्यूंकी ऐसा तो था नहीं की साड़ी कमर तक उठाओ ,फिर बैठ जाओ और कर लो. मुझे तो पैंटी भी नीचे करनी थी और उसमे लगे पैड को भी सम्हालना था.

विकास – मैडम , अगर आप ऐसे ही देर करोगी तो कोई ना कोई आ जाएगा. इसलिए उस कोने में जाओ और कर लो , मैं यहाँ खड़े होकर ख्याल रखूँगा , कोई आएगा तो बता दूँगा.

विकास ऐसे बोल रहा था जैसे उसकी मौजूदगी से मुझे कोई फरक नही पड़ता. अरे कोई आए ना आए वो खुद भी तो एक मर्द ही है ना.

मैंने फिर से एक नज़र हर तरफ दौड़ाई. वहाँ थोड़ा अंधेरा ज़रूर था पर वो जगह तीन तरफ से खुली थी क्यूंकी एक तरफ दुकानों का पिछला हिस्सा था. और अगर कोई वहाँ आ जाता तो मुझे साफ देख सकता था. लेकिन मेरे पास कोई चारा नही था . मुझे बहुत शरम आ रही थी पर मुझे उस खुली जगह में ही करना पड़ रहा था.

“ विकास, प्लीज़ इस तरफ पीठ कर लो और कोई आए तो मुझे बता देना.”

विकास – मैडम , अगर मैं इस तरफ पीठ करूँगा तो मुझे कैसे पता चलेगा , कोई उस तरफ से आ रहा है या नही ?

मैं सब समझ रही थी की विकास मुझे देखने का मौका हाथ से जाने नही देगा. मगर मजबूरी थी की उसका यहाँ खड़ा रहना भी ज़रूरी था क्यूंकी कोई आएगा तो कम से कम बता तो देगा.

कोई और चारा ना देख मैं राज़ी हो गयी. मैंने देखा मुझे कोने में जाते देख विकास की आँखों में चमक आ गयी है. मैं विकास से 10 – 12 फीट की दूरी पर दुकानों के पीछे चली गयी. उससे आगे जाने जैसा नही था क्यूंकी वहाँ पर दुकानों से लाइट पड़ रही थी.

मैंने विकास की तरफ पीठ कर ली पर मुझे वहाँ बैठने में शरम आ रही थी. पता नही विकास को कितना दिख रहा होगा. मैं थोड़ा सा झुकी और दोनों हाथों से साड़ी और पेटीकोट को अपने नितंबों तक ऊपर उठाया. मेरी नंगी जांघों पर ठंडी हवा का झोंका लगते ही बदन में कंपकपी दौड़ गयी. मुझसे रहा नही गया और मैंने एक नज़र पीछे मुड़कर विकास को देखा.

विकास – मैडम , पीछे मत देखो. जल्दी करो.

विकास मेरी नंगी जांघों को देख रहा था और मुझसे ही कह रहा था की पीछे मत देखो. एक झलक मुझे दिखी की उसका हाथ अपने पैंट पर है. शायद एक औरत को ऐसी हालत में देखकर वो अपने लंड को सहला रहा होगा. मैंने और समय बर्बाद नही किया. जल्दी से पैंटी घुटनों तक नीचे की और पैड एक हाथ में पकड़ लिया.

पैंटी उतरने से विकास को मेरी नंगी गांड का नज़ारा दिख रहा होगा , वैसे मैंने जितना हो सके , साड़ी से उसे ढकने की कोशिश की थी. फिर जब मैं बैठ गयी तो विकास को मेरी बड़ी गांड पूरी तरह से नंगी दिख रही होगी.

मेरे पेशाब करते वक़्त निकलती …….श्ईईई……….की आवाज़ मेरी शरम को और बढ़ा रही थी. मैंने एक बार और पीछे मुड़कर देखा की कहीं कोई आ तो नही रहा है और विकास क्या कर रहा है. लेकिन मुझे हैरानी हुई विकास तो वहाँ था ही नही. उस बैठी हुई पोजीशन में मैं अपने सर को ज़्यादा नही मोड़ पा रही थी.

मेरी पेशाब पूरी होने ही वाली थी और मुझे राहत हुई क्यूंकी वो …… श्ईईई ………..की निकलती आवाज़ से मुझे ज़्यादा शरम आ रही थी. मैं सोच रही थी की विकास कहाँ गया होगा तभी…….

विकास – मैडम, बच के…..

मैं शॉक्ड रह गयी , विकास की आवाज़ बिल्कुल मेरे नजदीक से आई थी. अभी अभी पीछे मुड़कर वो मुझे नही दिखा था क्यूंकी वो तो मेरे आगे आ गया था. मैं उसको अपने सामने खड़ा देखकर सन्न रह गयी क्यूंकी आगे से मेरी चूत , मेरी टाँगें और जांघें नंगी थी और अभी भी थोड़ी पेशाब निकल रही थी. विकास मेरी चूत और उसके ऊपर के काले बाल साफ देख सकता था.

हे भगवान ! ऐसा ह्युमिलिएशन , ऐसी बेइज़्ज़ती तो मेरी कभी नही हुई थी. विकास खुलेआम मेरी नंगी चूत को देख रहा था , मेरा चेहरा बता रहा था की मुझे किस कदर शॉक लगा है और मुझे कितनी शरम आ रही है.

विकास – मैडम , मैडम घबराओ नही. असल में आप चींटियों की बांबी पर बैठ गयी हो इसलिए मैं आपको सावधान करने आ गया.

“ तुम जाओ यहाँ से.”

विकास – मैडम, आपने उनकी बांबी गीली कर दी है, अब चींटियां बाहर आ जाएँगी. संभाल कर…..

विकास एक कदम भी नही हिला और उसकी नज़र एक औरत को पेशाब करते हुए सामने से देखने के नज़ारे का मज़ा ले रही थी, शायद जिंदगी में पहली बार उसे ये मौका मिला होगा.

मैं अब उसके सामने ऐसे नही बैठ सकती थी और उठ खड़ी हुई जबकि मेरे छेद से पेशाब की बूंदे अभी भी निकल रही थीं. अपने बाएं हाथ से मैंने जल्दी से साड़ी और पेटीकोट नीचे कर ली क्यूंकी दाएं हाथ में तो पैड पकड़ा हुआ था.

विकास ने मुझे उस चींटियों की बांबी से धक्का देते हुए हटा दिया. मैंने देखा वो सही कह रहा था क्यूंकी बहुत सारी लाल चींटियां बांबी से निकल आई थीं. मेरी पेशाब से उनमें खलबली मच गयी थी.

मैं ठीक से नही चल पा रही थी क्यूंकी पैंटी अभी भी घुटने में फंसी थी. मुझे पैंटी ऊपर करने से पहले पैड भी लगाना था.

मैं शरम से विकास से आँखें नही मिला पा रही थी. मुझे अभी भी यकीन नही हो रहा था की विकास ने मुझे ऐसे पेशाब करते हुए देख लिया था. मुझे नही पता की उसके दिमाग़ में क्या चल रहा था पर वो नार्मल लग रहा था.

विकास – मैडम , अब हम लेट हो रहे हैं. हमें वापस जाना चाहिए.

“हाँ , मैं भी यहाँ अब और नही रहना चाहती हूँ.”

मैं सोच रही थी की विकास से कैसे कहूं की मुझे अपने कपड़े ठीक करने हैं ,पैड लगाना है.

विकास – ठीक है मैडम, आप यही इंतज़ार करो या दुकानों के आगे. मैं बैलगाड़ीवाले को लेकर आता हूँ.

“नही नही विकास. बैलगाड़ी में नही. मेरे घुटनों और कमर में और दर्द नही चाहिए.”

विकास – लेकिन मैडम……

मैंने उसकी बात काट दी.

“कुछ और आने जाने का साधन भी तो होगा.”

विकास – मैडम, मैंने बताया ना इस रास्ते में ज़्यादा चोइस नही है.

मेरे ज़िद करने पर विकास बैलगाड़ी के सिवा कुछ और साधन ढूँढने चला गया और मुझसे उस झुमके वाली दुकान के आगे इंतज़ार करने को कहा. मैं सोचने लगी अगर कुछ और नही मिला तो उस बैलगाड़ी में ही जाना पड़ेगा, बड़ी मुश्किल हो जाएगी. एक तो बहुत धीरे धीरे चलती है और कमर दर्द अलग से.

अब विकास चला गया तो मैं पैंटी में पैड लगाकर ऊपर करने की सोचने लगी. तभी मैंने देखा वहाँ पर कुछ लोग आ गये हैं तो मुझे उस जगह से जाना पड़ा.

मैं छोटे छोटे कदम से चल रही थी क्यूंकी पैंटी घुटनों में फंसी होने से ठीक से नही चल पा रही थी. मैंने सोचा कोई और जगह देखती हूँ. जल्दी ही मुझे एक दुकान के पीछे कुछ जगह मिल गयी , वहाँ थोड़ा अंधेरा भी था और कोई आदमी भी नही था. मुझे वो जगह सेफ लगी. मैं एक कोने में गयी और जल्दी से साड़ी और पेटीकोट को कमर तक ऊपर उठा लिया.

उसके बाद्र पैंटी को भी घुटनों से थोड़ा ऊपर खींच लिया. फिर से मैंने अपनी नंगी जांघों पर ठंडी हवा का झोंका महसूस किया. जैसे ही पैड को पैंटी में चूत के छेद के ऊपर फिट करने लगी , तभी मुझे किसी की आवाज़ सुनाई दी. मैं एकदम से घबरा गयी क्यूंकी मेरी जवानी बिल्कुल नंगी थी. मैंने इधर उधर देखा पर मुझे कोई नही दिखा.


कोई आवाज़ तो मैंने पक्का सुनी थी पर थोड़ा अंधेरा था तो कुछ पता नही चल रहा था. कुछ पल ऐसे ही ठिठकने के बाद मैंने पैड लगाकर पैंटी ऊपर कर ली और साड़ी पेटीकोट नीचे कर ली. फिर मैं अपनी चूचियों के ऊपर पल्लू ठीक से कर रही थी तो मुझे फिर से किसी की आवाज़ सुनाई दी.

फिर मैं अपनी चूचियों के ऊपर पल्लू ठीक से कर रही थी तो मुझे फिर से किसी की आवाज़ सुनाई दी.

कहानी जारी रहेगी

NOTE



1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .

2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर 10% खराब भी होते हैं. इन 10% खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.

3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी  विवेचना की गयी है  वैसी विवेचना  और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .

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RE: आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07 - by aamirhydkhan1 - 16-11-2021, 08:09 PM



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