Thread Rating:
  • 16 Vote(s) - 2 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Thriller आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07
#9
गुरुजी के आश्रम में सावित्री

CHAPTER 3 दूसरा दिन

मेला

Update 1 




उसके बाद कुछ खास नही हुआ. गोपालजी ने मेरी नाप का ब्लाउज मुझे दिया. मैंने दीवार की तरफ मुँह करके पुराना ब्लाउज उतारा. गोपालजी और मंगल को मेरी गोरी नंगी पीठ के दर्शन हुए जिसमे सिर्फ़ ब्रा का स्ट्रैप था. फिर मैंने नया ब्लाउज पहन लिया , जिसके सभी हुक लग रहे थे , और फिटिंग सही थी.

उसके बाद मैंने साड़ी पहन ली. अब जाकर मुझे चैन आया , साड़ी उतारते समय मैंने ये थोड़ी सोचा था की इतनी देर तक मुझे इन दो मर्दों के सामने सिर्फ़ ब्लाउज पेटीकोट में रहना पड़ेगा.

गोपालजी – ठीक है मैडम. हम साँपों से बच गये. सहयोग करने के लिए आपका शुक्रिया. चलो अंत भला तो सब भला. मैडम , अगर आपको इस ब्लाउज में कोई परेशानी हुई तो मुझे बता देना.

“शुक्रिया गोपालजी.”

गोपालजी – और हाँ मैडम , अगर शाम को आपको समय मिले तो यहाँ आ जाना. मैं आपकी पैंटी की समस्या भी दूर कर दूँगा.

मैंने सर हिला दिया और उस कमरे से बाहर आ गयी. मैं बहुत थक गयी थी और जो कुछ उस कमरे में हुआ उससे बहुत शर्मिंदगी महसूस कर रही थी . मैं जल्दी से जल्दी वहाँ से जाना चाहती थी पर मुझे विकास का इंतज़ार करना पड़ा. करीब 10 मिनट बाद विकास गांव से वापस लौटा तब तक मुझे अपने बदन पर मंगल की घूरती नजरों को सहन करना पड़ा.

आश्रम में आने के बाद सबसे पहले मैंने जड़ी बूटी वाले पानी से नहाया. उससे मुझे फिर से तरो ताज़गी महसूस हुई. नहाने से पहले परिमल आकर मेरा पैड ले गया था, जो मैंने पैंटी में पहना हुआ था.. उसने बताया की आश्रम से हर ‘आउटडोर विज़िट’ के बाद गुरुजी मेरा पैड बदलकर नया पैड देंगे.

दोपहर बाद लंच लेकर मैंने थोड़ी देर बेड में लेटकर आराम किया. लेटे हुए मेरे मन में वही दृश्य घूम रहे थे जो टेलर की दुकान में घटित हुए थे. गोपालजी का मेरे ब्लाउज की नाप लेना,मंगल के मुठ मारने के लिए मेरा वो अश्लील नृत्य करना और फिर मंगल के खुरदुरे हाथों द्वारा मेरे नितंबों और जांघों को मसला जाना.

ये सब सोचते हुए मेरा चेहरा शरम से लाल हो गया. इन सब कामुक दृश्यों को सोचते हुए मुझे ठीक से नींद नही आई.

शाम करीब 5 बजे मंजू ने मेरा दरवाज़ा खटखटाया.

मंजू – मैडम , बहुत थक गयी हो क्या ?

“नही नही. बल्कि मैं तो……”

क्या मंजू जानती है की टेलर की दुकान में क्या हुआ ? विकास ने तो लौटते वक़्त मुझसे कुछ नही पूछा. मंजू से ये बात सीधे सीधे पूछने में मुझे शरम आ रही थी की उसे मालूम है या नही .

मंजू – ठीक है मैडम. तब तो आप मेला देखने जा सकती हो. थोड़ी दूरी पर है , लेकिन अगर आप अभी चली जाओ तो टाइम पर वापस आ जाओगी.

“कौन सा मेला ?”

मंजू – मैडम, ये मेला पास के गांव में लगा है. मेले में आस पास के गांववाले खरीदारी करने जाते हैं. बहुत फेमस है यहाँ. हम लोग तो अपने काम में बिज़ी रहेंगे आप बोर हो जाओगी. इसलिए मेला देख आओ.

मैंने सोचा मंजू ठीक ही तो कह रही है , आश्रम में अभी मेरा कोई काम नही है. अभी ये लोग भी यहाँ बिज़ी रहेंगे , क्यूंकी अभी गुरुजी का ‘दर्शन’ का समय है तो आश्रम में थोड़ी बहुत भीड़ भाड़ होगी . मैं मेला जाने को राज़ी हो गयी.

मंजू – ठीक है मैडम , ये लो नया पैड. और हाँ जाते समय दवाई खाना मत भूलना. जब भी आश्रम से बाहर जाओगी तो वो दवाई खानी है. आप तैयार हो जाओ , मैं 5 मिनट बाद विकास को भेज दूँगी.

मंजू अपने बड़े नितंबों को मटकाते हुए चली गयी. उसको जाते हुए देखती हुई मैं सोचने लगी , वास्तव में इसके नितंब आकर्षित करते हैं.

फिर मैंने दरवाज़ा बंद कर दिया और बाथरूम में चली गयी. ये हर बार पैड बदलना भी बबाल था. पैंटी नीचे करो फिर चूत के छेद पर पैड फिट करो. खैर , ऐसा करना तो था ही. मैंने पैंटी में ठीक से पैड लगाया और हाथ मुँह धोकर कमरे में आ गयी. फिर नाइटगाउन उतारकर साड़ी ब्लाउज पहन लिया.

तब तक विकास आ गया था.

विकास – मैडम , मेला तो थोड़ा दूर है , पैदल नही जा सकते.

“फिर कैसे जाएँगे ?”

विकास – मैडम, हम बैलगाड़ी से जाएँगे. मैंने बैलगाड़ीवाले को बुलाया है वो आता ही होगा.

“ठीक है. कितना समय लगेगा जाने में ?”

मैं कभी बैलगाड़ी में नही बैठी थी , इसलिए उसमें बैठने को उत्सुक थी.

विकास – मैडम, बैलगाड़ी से जाने में थोड़ा समय तो लगेगा पर आप गांव के दृश्य, हरे भरे खेत इन सब को देखने का मज़ा ले सकती हो.

कुछ ही देर में बैलगाड़ी आ गयी और हम उसमें बैठ गये.

गांव के खेतों के बीच बने रास्ते से बैलगाड़ी बहुत धीरे धीरे चल रही रही थी. बहुत सुंदर हरियाली थी हर तरफ, ठंडी हवा भी चल रही थी. विकास मुझे मेले के बारे में बताने लगा.

करीब आधा घंटा ऐसे ही गुजर गया , पर हम अभी तक नही पहुचे थे. मुझे बेचैनी होने लगी.

“विकास, कितना समय और लगेगा ?”

विकास – मैडम, अभी तो हमने आधा रास्ता तय किया है, इतना ही और जाना है. बैलगाड़ी धीरे चल रही है इसलिए टाइम लग रहा है.

शुरू शुरू में तो बैलगाड़ी में बैठना अच्छा लग रहा था पर अब मेरे घुटने दुखने लगे थे. गांव की सड़क भी कच्ची थी तो बैलगाड़ी में बहुत हिचकोले लग रहे थे. मेरी कमर भी दर्द करने लगी थी. बैलगाड़ी में ज़्यादा जगह भी नही थी इसलिए विकास भी सट के बैठा था और मेरे हिलने डुलने को जगह भी नही थी. हिचकोलो से मेरी चूचियाँ भी ब्रा में बहुत उछल रही थीं , शरम से मैंने साड़ी का पल्लू अच्छे से अपने ब्लाउज के ऊपर लपेट लिया.

आख़िर एक घंटे बाद हम मेले में पहुँच ही गये. बैलगाड़ी से उतरने के बाद मेरी कमर, नितंब और घुटने दर्द कर रहे थे. विकास का भी यही हाल हो रहा होगा क्यूंकी उतरने के बाद वो अपने हाथ पैरों की एक्सरसाइज करने लगा. लेकिन मैं तो औरत थी ऐसे सबके सामने हाथ पैर कैसे फैलाती. मैंने सोचा पहले टॉयलेट हो आती हूँ , वहीं हाथ पैर की एक्सरसाइज कर लूँगी.

“विकास, मुझे टॉयलेट जाना है.”

विकास – ठीक है मैडम, लेकिन ये तो गांव का मेला है. यहाँ टॉयलेट शायद ही होगा. अभी पता करता हूँ.

विकास पूछताछ करने चला गया.

विकास – मैडम ,यहाँ कोई टॉयलेट नही है. मर्द तो कहीं पर भी किनारे में कर लेते हैं. औरतें दुकानो के पीछे जाती हैं.

मैं दुविधा में थी क्यूंकी विकास से कैसे कहती की मुझे पेशाब नही करनी है. मुझे तो हाथ पैर की थोड़ी स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज करनी थी.

विकास – मैडम , मैं यहीं खड़ा रहता हूँ , आप उस दुकान के पीछे जाकर कर लो.

मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ. ये आदमी मुझसे खुली जगह में पेशाब करने को कह रहा है, जहाँ पर सबकी नज़र पड़ रही है.

“यहाँ कैसे कर लूँ ?”

मैं कोई छोटी बच्ची तो हूँ नही जो सबके सामने फ्रॉक ऊपर करके कर लूँ. उस दुकान के पीछे एक छोटी सी झाड़ी थी जिससे कुछ भी नही ढक रहा था. वैसे तो शाम हो गयी थी लेकिन अभी अंधेरा ना होने से साफ दिखाई दे रहा था. आस पास गांववाले भी खड़े थे , उन सबके सामने मैं कैसे करती.

विकास – मैडम ये शहर नही गांव है. यहाँ सभी औरतें ऐसे ही कर लेती हैं. शरमाओ मत.

“क्या मतलब ? गांव है तो मैं शरमाऊं नही ? इन सब गांववालों के सामने अपनी साड़ी उठा दूं ?”

विकास – मैडम , मैडम , नाराज़ क्यूँ होती हो. मेरे कहने का मतलब है गांव में शहर के जैसे बंद टॉयलेट नही होते. ज़्यादा से ज़्यादा टाट लगाकर पर्दे बना देते हैं टॉयलेट के लिए, यहाँ वो भी नही है.

“विकास, यहाँ इतने लोग खड़े हैं. मैं बेशरम होकर इनके सामने तो नही बैठ सकती. गांववाली औरतें करती होंगी , मैं ऐसे नही कर सकती. चलो मेले में चलते हैं.”

मेले में धक्का मुक्की


विकास ने ज़्यादा ज़ोर नही दिया और हम दुकानों की तरफ बढ़ गये. मेले में बहुत सारी दुकानें थी और गांववालों की बहुत भीड़भाड़ थी. मेले में घूमने में हमें करीब एक घंटा लग गया. भीड़ की वजह से मुझे विकास से सट के चलना पड़ रहा था. चलते हुए मेरी चूचियों पर विकास की कोहनी कई बार छू गयी.

पहले तो मैंने इससे बचने की कोशिश की लेकिन भीड़ की वजह से उसकी बाँह मुझसे छू जा रही थी , मैंने सोचा कोई बात नही भीड़ की वजह से ऐसा हो जा रहा है.

कुछ देर बाद मुझे लगा की विकास जानबूझकर अपनी बाँह मेरी चूचियों पर रगड़ रहा है. क्यूंकी जहाँ पर कम भीड़ थी वहाँ भी उसकी कोहनी मेरी चूचियों से रगड़ खा रही थी. उसके ऐसे छूने से मुझे भी थोड़ा मज़ा आ रहा था , पर मुझे लगा इतने लोगों के सामने विकास कुछ ज़्यादा ही कर रहा है.

मैं विकास के दायीं तरफ चल रही थी और मेरी बायीं चूची पर विकास अपनी दायीं कोहनी चुभा रहा था. सामने से हमारी तरफ आते लोगों को सब दिख रहा होगा. मैं शरम से विकास से कुछ नही कह पाई , वैसे भी वो कहता भीड़ की वजह से छू जा रहा है , तो कहने से फायदा भी क्या था.

लेकिन उसके ऐसे कोहनी रगड़ने से मेरी चूचियाँ कड़क होकर तन गयीं , मैं भी गरम होने लगी थी. मुझे कुछ ना कहते देख उसकी हिम्मत और बढ़ गयी और उसने अपनी कोहनी को मेरी चूचियों पर दबा दिया. शायद उसे बहुत मज़ा आ रहा था , किसी औरत की चूचियाँ ऐसे दबाने का मौका रोज़ रोज़ थोड़े ही मिलता है.

फिर मैं एक दुकान के आगे रुक गयी और कान के झुमके देखने लगी. विकास भी मेरे से सट के खड़ा था. उसकी गरम साँसें मुझे अपने कंधों पर महसूस हो रही थी.

विकास – मैडम , ये आप पर अच्छे लगेंगे.

ऐसा कहते हुए उसने मुझे कान का झुमका और एक हार दिया. मैंने उससे सुझाव नही माँगा था पर देख लेती हूँ. मैंने वो झुमका पहन कर देखा , ठीक लग रहा था.

विकास – मैडम, हार भी ट्राइ कर लो , अच्छा लगे तो खरीद लेना, मेरे पास पैसे हैं.

दुकानदार ने भी कहा, मैचिंग हार है , झुमके के साथ पहन कर देखो. मैं गले में हार पहनने लगी तभी विकास जबरदस्ती मेरी मदद करने लगा.

विकास – मैडम , आप छोड़ दो , मैं आपके गले में हार पहना देता हूँ.

मैंने देखा विकास की बात पर वो दुकानदार मुस्कुरा रहा है. दुकान में 2-3 और ग्राहक भी थे , वो भी हमें देखने लगे. मैंने सोचा विकास से बहस करूँगी तो और लोगों का भी ध्यान हम पर चला जाएगा , इसलिए चुप रही. लेकिन विकास ने जो किया वो शालीनता की सीमा को लाँघने वाला काम था , वो भी सबके सामने.

विकास मेरे पीछे आया और हार को मेरे गले में डाला और गर्दन के पीछे हुक लगाने लगा. फिर मुझे पीछे से आलिंगन करते हुए हार को आगे से ठीक करने के बहाने से ब्लाउज के ऊपर से मेरी चूचियों पर हाथ फेर दिया.

दुकानदार और उसके ग्राहकों की नज़र भी हम पर थी और उन्होने भी विकास को मेरी चूचियों पर हाथ फेरते हुए देखा. सबके सामने मुझसे ऐसे भद्दे तरह से बिहेव करने से मुझे बुरा लगा. वो लोग मेरे बारे में क्या सोच रहे होंगे ?

अब वो दुकानदार भी मुझमें कुछ ज़्यादा ही इंटरेस्ट लेने लगा और मेरे आगे शीशा पकड़कर कुछ और झुमके , हार दिखाने लगा.

विकास – मैडम , इसको ट्राइ करो. ये भी अच्छा लग रहा है.

“नही विकास, यही ठीक है.”

मैं उसकी मंशा समझ रही थी लेकिन दुकानदार भी पीछे पड़ गया की ये वाला ट्राइ करो. मैंने दूसरा झुमका पहन लिया और विकास मुझे उसका मैचिंग हार पहनाने लगा. इस बार वो और भी ज़्यादा बोल्ड हो गया. हार पहनाने के बहाने विकास, दुकानदार के सामने ही मेरी चूचियाँ छूने लगा. ये वाला हार थोड़ा लंबा था तो मेरी चूचियों से थोड़ा नीचे तक लटक रहा था.

इससे विकास को मेरी चूचियाँ दबाने का बहाना मिल गया. उसने मेरी गर्दन के पीछे हार का हुक लगाया और आगे से हार को एडजस्ट करने के बहाने मेरी तनी हुई चूचियों के ऊपर अपनी बाँह रख दी. एक आदमी मेरे पीछे खड़ा होकर अपनी बाँह मेरी छाती से चिपका रहा है और मैं सबके सामने बेशरम बनकर चुपचाप खड़ी हूँ.

फिर विकास ने दुकानदार से शीशा ले लिया और बड़ी चालाकी से अपने बाएं हाथ में शीशा पकड़कर मेरी छाती के आगे लगा दिया , जैसे मुझे शीशे में हार दिखा रहा हो. उसके ऐसा करने से दुकानदार की आँखों के आगे शीशा लग गया और वो मेरी छाती नही देख सकता था. इस बात का फायदा उठाते हुए विकास ने अपने दाहिने हाथ से मेरी दायीं चूची को पकड़ा और ज़ोर से मसल दिया.

विकास – ये वाला हार ज़्यादा अच्छा है. आपको क्या लगता है मैडम ?

मैं कुछ बोलने की हालत में नही थी क्यूंकी उसके हाथ ने मेरी चूची को दबा रखा था. मैंने अपनी नज़रें दूसरी तरफ घुमाई तो देखा दो लड़के हमें ही देख रहे थे. विकास की नज़र उन पर नही पड़ी थी वो तो कुछ और ही काम करने में व्यस्त था.

इस बार उसने मेरी दायीं चूची को अपनी पूरी हथेली में पकड़ा और तीन चार बार ज़ोर से दबा दिया, हॉर्न के जैसे. ये सब कुछ ही सेकेंड्स की बात थी और खुलेआम सब लोगों के सामने विकास ने मुझसे ऐसे छेड़छाड़ की और मैं कुछ ना कह पायी.

फिर मैंने ये दूसरा वाला झुमके और हार का सेट ले लिया और हम उस दुकान से आगे बढ़ गये.

शाम होने के साथ ही मेले में लोगों की भीड़ बढ़ गयी थी. दुकानों के बीच पतले रास्ते में धक्कामुक्की हो रही थी. मैंने विकास का हाथ पकड़ लिया , और कोई चारा भी नही था वरना मैं पीछे छूट जाती. दूसरा हाथ मैंने अपनी छाती के आगे लगा रखा था नही तो सामने से आने वाले लोगों की बाँहें मेरी चूचियों से छू जा रही थीं.

मैंने विकास से नार्मल बिहेव किया और जो उसने दुकान में मेरे साथ किया , उसको भूल जाना ही ठीक समझा. शायद विकास भी मेरे रिएक्शन की थाह लेने की कोशिश कर रहा था और मुझे कोई विरोध ना करते देख उसकी हिम्मत बढ़ गयी.

विकास – मैडम , ये गांववाले सभ्य नही हैं. थोड़ा बच के रहना.

“हाँ , वो तो मुझे दिख ही रहा है. धक्कामुक्की कर रहे हैं.”

विकास – मैडम , ऐसा करो. मेरा हाथ पकड़कर पीछे चलने की बजाय आप मेरी साइड में आ जाओ. उससे मैं आपको प्रोटेक्ट कर सकूँगा.

मैंने सोचा , ठीक ही कह रहा है , एक तरफ से तो सेफ हो जाऊँगी. फिर मैं उसकी दायीं तरफ आ गयी. लेकिन विकास का कुछ और ही प्लान था. मेरे आगे आते ही उसने लोगो से बचाने के बहाने मेरे दाएं कंधे में अपनी बाँह डाल दी और मुझे अपने से सटा लिया. चलते समय मेरा पूरा बदन उसके बदन से छू रहा था. उसके दाएं हाथ की अंगुलियां मेरी दायीं चूची से कुछ ही इंच ऊपर थीं.

धीरे धीरे उसका हाथ नीचे सरकने लगा और फिर उसकी अंगुलियां मेरी चूची को छूने लगीं. कुछ ही देर बाद उसने हथेली से मेरी दायीं चूची को पकड़ लिया , जैसे दुकान में किया था. अबकी बार वो बहुत कॉन्फिडेंट लग रहा था और चलते हुए आराम से अपनी अंगुलियां मेरी चूची के ऊपर रखे हुए था. उसकी अंगुलियां मेरी चूची की मसाज करने लगीं.

अपनी चूची पर विकास की अंगुलियों के मसाज करने से मैं उत्तेजित होने लगी. थोड़ी देर तक ऐसा ही चलता रहा. कुछ समय बाद विकास मेरी चूची को ज़ोर से दबाने लगा. फिर उसकी अंगुलियां ब्रा और ब्लाउज के बाहर से मेरे निप्पल को ढूंढने लगीं. मैंने देखा सामने की तरफ से आने वाले लोगों की निगाहें विकास के हाथ और मेरी चूची पर ही थी.

अब मेरी बर्दाश्त के बाहर हो गया, सब लोगों के सामने विकास मुझसे ऐसे बिहेव कर रहा था , मुझे बहुत शरम महसूस हो रही थी. उसके ऐसे छूने से मुझे मज़ा आ रहा था और मेरी चूत गीली हो चुकी थी लेकिन सबके सामने खुलेआम ऐसा करना ठीक नही था. सुबह जब टेलर की दुकान पर मैं बेशरम बन गयी थी तब भी कम से कम एक कमरे में तो थी , ये तो खुली जगह थी. मुझे विकास को रोकना ही था.

“विकास, प्लीज़ ठीक से रहो.”

विकास – सॉरी मैडम , लेकिन भीड़ से बचाने के लिए करना पड़ रहा है , वरना लोग आपके बदन से टकरा जाएँगे.

विकास ने अपना बहाना बना दिया. मैं बहस करने के मूड में नही थी. लेकिन उत्तेजित होने के बाद अब मुझे पेशाब लग गयी थी.


आगे क्या हुआ  ? कहानी आगे  जारी रहेगीl


दीपक कुमार



My Stories Running on this Forum


  1. मजे - लूट लो जितने मिले
  2. दिल्ली में सुलतान V रफीक के बीच युद्ध
  3. अंतरंग हमसफ़र
  4. पड़ोसियों और अन्य महिलाओ के साथ एक नौजवान के कारनामे
[+] 2 users Like aamirhydkhan1's post
Like Reply


Messages In This Thread
RE: आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07 - by aamirhydkhan1 - 15-11-2021, 09:01 PM



Users browsing this thread: 10 Guest(s)