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Thriller आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07
यह कहानी बहुत उत्तेजक है और बहुत अच्छी है लेखक की जितनी तारीफ की जाए पर कम है मन करता है कभी कहानी खत्म हो अब अगले पोस्ट का इंतजार है।
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औलाद की चाह


CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

अपडेट-17

उत्तेजक गैंगबैंग अनुभव


गुरु जी: जय लिंग महाराज! रश्मि! तुम बहुत अच्छा कर रही हो बेटी! एक बात बताओ, क्या तुम अब भी वहाँ पूरी तरह से भीगी हुई हो?

मुझे उम्मीद थी गुरूजी अब फिर ऐसा ही सवाल पूछेंगे लेकिन फिर भी मैं इसका कोई जवाब नहीं दे सकी।


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गुरु जी: बेटी, मैं पूछ रहा हूँ कि निर्मल और राजकमल की इस प्रेममयी खुराक के बाद क्या तुम वहाँ भीगी हुई हो?

मैं: ये... ये... हाँ गुरु-जी... वे... बहुत।

गुरु जी: अच्छा। आपकी ऐसा ही होना चाहिए था। अब मंत्र दान का अंतिम भाग आपको इससे भी अधिक उत्तेजक और अनूठा अनुभव प्रदान करेगा।

गुरु जी रुक गए, शायद वे चाहते थे कि मैं उसके बारे में पूछूं। मेरी सांस फूल रही थी क्योंकि नसों से मेरा खून तेजी से बह रहा था और मैं उत्साहित महसूस कर रही थी क्योंकि मैं तो चाहती थी की निर्मल और राजकमल के साथ वाला सत्र ही चलता रहे और गुरूजी कुछ उसके आगे को बात कर रहे थे।

मैं: अब और इससे आगे क्या है गुरु जी? मैंने चकित होकर पुछा । मुझे लगा पता नहीं अब मेरे लिए कौन-सा सरप्राइज बाकी है ।

गुरु जी: रश्मि देखि जब तुम्हारा पति तुमसे प्रेम करता है, तो वह अकेला पुरुष होता है जो तुम्हारे शरीर को सहलाता है, और बहुत संभव है इसमें आपके कुछ अंग उत्तेजना प्राप्त करने से वंचित रह जाए लेकिन मंत्र दान के पिछले दोनों भागो में दो पुरुषो ने तुम्हें मजे दिए हैं और निश्चित ही उन सत्रों में तुम्हे एक पुरुष के साथ संसर्ग से अधिक ाँद मिला होगा और अब इसके बाद तुम्हे मेरे चारो शिष्यों एक साथ मजे देंगे इसलिए अब तुम्हे और अधिक आनद आएगा और तुम्हारा पूरा बदन उन आनन्दो को महसूस करेगा जो संसर्ग में महसूस हो सकते हैं।


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मैं क्या?

गुरु-जी: हाँ बेटी। मैं शर्त लगा सकता हूँ-आपको यह बहुत ज्यादा पसंद आएगा। आपने सुना होगा की पुरुष पहले समय में अनेको पत्निया रखते थे और उनके साथ आननद लेते थे और अभी तक आपने बस इस तरह से कल्पना की होंगी हैं कि आपको अनेक मर्द एक साथ प्यार करना चाहते हैं! हा-हा हा... अब निर्मल के साथ उदय, राजकमल, और संजीव एक साथ आपसे प्यार करेंगे। मुझे पूरा विश्वास है इस तरह आपका आननद चार गुना या उससे भी कई अधिक गुना बढ़ जाएगा।

मुझे तुरंत उस समय उन अश्लील वीडियो और ब्लू फिल्मो का ध्यान हो आया जो मैंने अपने पति अनिल के साथ अपने बैडरूम में देखि थी जिनमे नायिका के साथ कई पुरष एक साथ गैंग बेन्ग करते हैं।




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उस समय मैं स्तब्ध होकर उन अश्लील वीडियो को देख चुप हो कर रह जाती थी और मुझे सब कुछ नकली-सा लगता था। लेकिन अब तक के दो पुरुषो के साथ एक साथ सेक्स के बाद से मुझे आभास हो गया था कि ये सब वास्तविकता में भी हो सकता है और इस अशोभनीय प्रस्ताव से मैं सुन्न हो गयी! मैं अपना मुँह आधा खुला रखकर वहाँ खड़ी रह गयी और विश्वास ही नहीं कर पायी की मैं आश्रम में गुरु-जी जैसे व्यक्ति के मुख से ये क्या सुन रही हूँ! मेरा सिर गुरुजी की ऐसी अश्लील बातों को सुनकर घूम रहा था।


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गुरु-जी: रश्मि, मुझे यकीन है कि आपने उस दोहरे प्रेम प्रसंग का भरपूर आनंद लिया है और अब इन चारो प्रेमियों के साथ भी आप आनद ले। जय लिंग महाराज!

अब इस पर मेरा कोई नियंत्रण नहीं था और मैं बेशर्मी से मुस्कुरायी और सिर हिलाया।

राजकमल: जय लिंग महाराज!

संजीव: जय लिंग महाराज!

उदय: जय लिंग महाराज!

निर्मल: जय लिंग महाराज!

अब मुझे गुरु जी के पीछे-पीछे इस मन्त्र को दोहराने की इतनी आदत पद गयी थी की मेरे भी मुँह से अनायास ही निकल गया: जय लिंग महाराज!

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इससे पहले कि कुछ और प्रतिक्रिया कर पाती, संजीव के साथ उदय तेजी से आगे बढ़ा और वह मुझे छूते उससे पहल ही मेरे आगे खड़े निर्मल और पीछे खड़े राजकमल ने मुझे लगा और उदय और संजीव ने मुझे मेरी दायी और बायीं साइड से मेरे बदन को सहलाना शुरू कर दिया ान एक ने सामने से और दूसरा पीछे से मुझे गले लगा रहा था ायर दो मेरे दोनों साइड में मेरे साथ चिपके हुए थे। यह एक अद्भुत एहसास था क्योंकि अब आठ हाथों ने मुझे पकड़ लिया और मुझे गले लगा लिया और मैं प्यार की गरमी से उनके भीतर पिघल गयी!

निर्मल स्टूल पर खड़ा हुआ मुझे सामने से गले लगा रहा था और अपने लंड को मेरी जनघो पर दबा रहा था जबकि राजकमल अपना खड़ा लंड मेरी गांड की दरार को बहुत जोर से दबा रहा था। संजीव मुझे दाए से कसकर गले लगा रहा था और मैं अपने दाए हाथ से संजीव और बाए हाथ से उदय के लिंग को पकड़ कर उसे सहला रही थी और मेरे स्तनो का उदय ने भरपूर फायदा उठाया।

संजीव के हाथ पीछे से मेरी जाँघों से ऊपर ओर मेरे कूल्हों की ओर और फिर मेरे नितम्बो पर गए और राजकमल के हाथ पीछे से मेरे लटकते हुए स्तनों को दबा रहे थे। कुछ देर उसने मेरे स्तनों को पकड़कर उन्हें दबाते हुए निचोड़ लिया। मैं इस से उत्तेजित हो गई और संजीव ने तुरंत मुझे उत्तेजित महसूस किया और वह मेरे मुँह को अपनी और घुमा कर चूमने लगा और मैं भी उसके होंठों को काटने और चूसने लगी और हम जल्द ही लिप-लॉक हो गए।



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छोटे कद का निर्मल। मेरे खुले स्तनों को दबा रहा था! संजीव ने चुम्बन करते हुए अपना समय लिया और धीरे-धीरे पूरी तस्सली के साथ मेरे होठों पर दबाव डाला और वह मेरे ओंठो को चूसने लगा। राजकमल उस समय बिल्कुल खली नहीं रहा! उसने मेरी पीठ और फिर मेरे नितम्ब गालों को मसलना जारी रखा और अपने लंड से मेरी गांड की दरार को ट्रेस करना शुरू कर दिया! साथ ही ब निर्दयता से मेरे नितम्बो के गालों को दोनों हाथों से सहला रहा था। निर्मल स्टूल से नीचे उतरा और मेरे पेट और मेरे स्तनों को चूम रहा था और उसके हाथ मेरी योनि पर चले गए थे और मेरी योनि के होंठों के बीच उँगली की नोक डालते हुए, उसकी चूत के दाने को ढूँढ लियाl और उसने मेरी योनि के दाने को इतनी अच्छी तरह से छेड़ा कि मैं उत्तेजना से अपनी जगह पर उछलने लगी, मैं इसे अब बर्दाश्त नहीं कर सकती थी। मैं आग पर थी; मेरी नसों में से खून उबल रहा था। मेरे बदन पर चुभ रहा उन चारो का लंड भी फूल टाइट था।



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अब चारो घूमे और उन्होंने अपने जगहे बदल ली निर्मल से जगह संजीव मेरे सामने आ गया, संजीव की जगह राजकमल और राजकमल की जगह उदय मेरे पीछे और निर्मल मेरे दाए आ गया संजीव ने मेरे होठों को अपने मुंह में लिया और उन्हें चूसने लगा। उदय पीछे की तरफ था और मेरी पीठ सहलाने के बाद उसने मेरे नितम्बो को पकड़ लिया और उसे वहाँ बहुत जोर से दबा दिया। उसकी हथेलियाँ काफी बड़ी थीं और मेरे बड़े गोल नितम्ब उसकी हथेलियों में अच्छी तरह समा गए थे। साथ ही वह अपना बहुत लंबा लंड मेरी गांड की दरार में डाल रहा था, जिससे मेरे पूरे शरीर को जोर से झटका लग रहा था। मेरे निप्पल स्तन से ऐसे निकल रहे थे जैसे दो बड़े गोल अंगूर चूसे और रस निकालने के लिए तैयार हों और उन्हें एक तरफ से निर्मल चूस रहा था और दूसरी तरफ से राजकमल मेरे स्तन दबाते हुए मेरे स्तनों को चूम रहा था । और निर्मल ने मेरी योनि के दाने को छेड़ान जारी रखा और मैं उत्तेजना से अपनी जगह पर उछलटी रही मैं इसे अब बर्दाश्त नहीं कर सकती थी। मैं आग पर थी; मेरी नसों में से खून उबल रहा था। मेरे बदन पर चुभ रहा उन चारो का लंड भी फूल टाइट था। मेरा बदन गर्म हो गया था । तभी चारो फिर से दाए घूमे और अब राजकमल मेफ़े सामने था, निर्मल पीछे और संजीव बाए और उदय दाए था और उन चारो ने मेरे शरीर के अंगो के साथ खेलना जारी रखा और अब मेरे नाखे बंद थी और मुझे इस बात का कुछ अंदाजा नहीं था कि मेरे बदन के किस अंग पर किसका हाथ है और मेरे हाथो में किसके लंड हैं  क्योंकि मैं उत्तेजना से कांप रही थी।

जब मैं दो लोगों के साथ एक साथ सेक्स कर रही थी यो मुझे लग रहा था कि मैं इस पूजा-घर में रंडी-गिरी के सारे रिकॉर्ड तोड़ रही हूँ! लेकिन अब इस गानागबानग में टी मैं नए रिकॉर्ड स्थापित कर रही थी और आधे घंटे में चार आदमी मुझे एक साथ चूम रहे थे उनके आठ हाथ मेरे-मेरे गोल सुडोल और सख्त स्तनों और नितम्बो को मसल रहे थे और उसके लंड मेरे बदन के हर अंग प्रत्यंग को स्पर्श कर रहे थे कोई मुझे चाट रहा था और कोई चूम रहा था तो कोई चूस रहा था और मेरी योनि में पता नहीं किस-किस की उंगलिया बारी-बारी से घुस रही थी और मेरे मगनासा को उनके अंगूठे जोर से दबा रहे थे।




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में:  आअह्ह्ह  उउउ आआआआ  उउउ ररररर ीीीी ......अब  उउउ ...अब प्लीज रुक जाओ! प्लीज रुको!

गुरु जी: गुरु जी: ओम ऐ, क... चा... वि, नमः! ओम ऐं...! आखिरी कुछ सेकंड... !

मैं मन्त्र दोहराने लगी तभी मैंने महसूस किया, एक जीभ मेरे मुँह के अंदर तक चली गई और मेरे पूरे मुंह के अंदर की तरफ चाट रही थी। फिर दूसरी ने होठों और जीभ को मेरे पूरे चेहरे पर घुमाया और फिर मुझे चूमता हुआ मेरी गर्दन और कंधे पर चला गया और तीसरा जीभ घूमा-घूमा कर मेरे स्तन चूस रहा था और चौथा अपनी जीभ से चाटने के बाद मेरी पीठ और नितम्बो को चूम रहा था।

फिर एक मेरे निपल जो की काफी सूज गए थे, उन्हें अच्छी तरह से घुमा कर निचोड़ रहा था एक बार फिर इस चौतर्फी पुरुष अंतरंग सत्र ने मुझे अपने उत्कर्ष और स्खलन के कगार पर धकेल दिया और में पुरुष स्पर्श प्राप्त करने के लिए इतना उत्साहित ही गयी थी कि मैंने ाननखे खोल कर उदय को ढूँढा और उसकी और घूमी और उदय के सीधे लिंग को पकड़ लिया और इसे अपनी योनि में धकेलने की कोशिश की!

मैं मुश्किल से मंत्र को दोहरा सकी, मुझे मेरा सिर चक्र रहा था और चारो ने मेरी इस हालत का पूरा फायदा उठाया और मेरी जवानी के आकर्षणों पर आक्रमण करने के लिए स्वतंत्रता से मेरे बदन के साथ खिलवाड़ कर मुझे उत्तेजित किया और चारो में मेरे शरीर का एक इंच भी अनदेखा और अनछुआ नहीं छोड़ा और मैं इस सत्र में स्खलित हुई और मेरी पूरी टांगी मेरे योनि रस से भीग गयी ।

गुरु जी: जय लिंग महाराज! अद्भुत, शानदार रश्मि! आप सचमुच आज तक आयी सभी महिलाओं से श्रेष्ट सिद्ध हुई हैं और तालियों की गड़गड़ाहट की पात्र हैं!

गुरु जी और उनके चारों शिष्यों ने ताली बजाकर मेरा गर्मजोशी से स्वागत किया।

गुरु-जी: बेटी, आपने मंत्र दान को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है और अब आप लिंग पूजा करोगी और फिर मैं योनि पूजा पूरी करूंगा। ` जय लिंग महाराज!

आगे योनि पूजा में  लिंग पूजा की कहानी जारी रहेगी

NOTE :
1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .


2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.


3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .

जब मैंने ये कहानी यहाँ डालनी शुरू की थी तो मैंने भी इसका अधूरा भाग पढ़ा था और मैंने कुछ आगे लिखने का प्रयास किया और बाद में मालूम चला यह कहानी अंग्रेजी में "समितभाई" द्वारा "गुरु जी का (सेक्स) ट्रीटमेंट" शीर्षक से लिखी गई थी और अधूरी छोड़ दी गई थी। बाद में 2017 में समीर द्वारा हिंदी अनुवाद शुरू किया गया, जिसका शीर्षक था "एक खूबसूरत हाउस वाइफ, गुरुजी के आश्रम में" और लगभग 33% अनुवाद "Xossip" पर किया गया था। अभी तक की कहानी मुलता उन्ही की कहानी पर आधारित है या उसका अनुवाद है और अब कुछ हिस्सों का अनुवाद मैंने किया है ।

कहानी काफी लम्बी है और मेरा प्रयास जारी है इसको पूरा करने का ।




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लेखक महोदय आपसे निवेदन है कि आप इस कहानी का अगला भाग जल्द से जल्द पोस्ट करें कहानी पढ़े बिना रहा नहीं जा रहा है आगे क्या होगा यह सोच सोच कर परेशान हो गया इसलिए निवेदन है जल्द से जल्द अपडेट करें।
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औलाद की चाह


CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

अपडेट-18

उत्तेजक गैंगबैंग का कारण


मैं: गुरु जी… कृपया मुझ पर दया करें….

मैं इतना बेताब थी  कि अब मैं वस्तुतः चुदाई के लिए भीख माँग रही थी ! 

हालाँकि गुरूजी ने पहले ही मेरी आँखो  से पट्टी हटा देने की आज्ञा राजकमल को दे दी थी परन्तु उस समय वो चारो  भी इतने उत्तेजित थे की मेरे उस मात्रा दान सत्र के आखिरी भाग में वो मेरी आँखों से पट्टी हटाना  ही भूल गए थे . 

गुरूजी : राजकमल,  अब रश्मि की आँखें खोल दो आप  इसे खोलना भूल गए थे ।

मैंने महसूस किया कि हाथों का एक जोड़ा मेरी आंखों के ऊपर से मेरे कपड़े की पट्टी खोल रहा है। एक पल के लिए तो सब कुछ धुंधला सा लग रहा था, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, मुझे सब कुछ साफ-साफ दिखाई देने लगा। जैसे ही मेरी आँखें गुरु-जी के प्रत्येक शिष्य से मिलीं, मेरी पलकें स्वतः ही झुक गईं। मैं उनमें से किसी को भी अभी एक हफ्ते पहले नहीं जानती थी और आज उन सभी ने मुझे चूमा और मेरे अंतरंग शरीर के  सबसे अंतरंग अंगों को सहलाया, और मैंने भी उनके अन्तरंगज अंग को महसूस किया और उत्तेजित हो कर सहलाया था  जिसे केवल एक महिला ही अपने पति को साझा कर सकती है।

गुरुजी : रश्मि ! बेटी आमतौर पर सेक्स के दौरान पार्टनर अपने साथी के एक या दो हिस्सों को छूते हैं और अधिकतर यही सोचते हैं कि सेक्स योनि और लिंग में ही होता है। लेकिन रश्मि अब आपने खुद अनुभव किया है की सेक्स केवल उन  सेक्स ऑर्गन्स से परे  है। लिंग और योनि मूल रूप से पुनर्जनन अंग हैं। सेक्स की शुरुआत या  अनुभव एक स्पर्श, या देखने या सोचने से भी हो सकती है। तो अब आप जानती  हैं कि शरीर के लगभग किसी भी हिस्से को छूने से आप यौन आवेश महसूस कर सकती  हैं। और यही इस मल्टी पार्टनर मंत्र दान का पूरा उद्देश्य था। 


गुरुजी:- रश्मि ! ये बातें सुनने में काफी सरल लग सकती हैं, लेकिन वास्तव में यह आपको और अधिक प्रेम के द्वार खोलने में मदद करती हैं। प्यार बिस्तर में  या जब आप प्यार करने का इरादा रखते हैं तो प्यार बेशर्मी की मांग करता है। अगर आप बोल्ड और क्रिएटिव हैं तो आपके पति अपने आप आपसे चिपके रहेंगे। उन्हें आपमें हमेशा कुछ नयापन  मिलेगा और जब मैं इन तकनीकों  की  चर्चा करता हूं, और अब तो आप खुद भी  जान  गयी होंगे  कि एक बार जब आपके पति को यह प्यार महसूस होगा, तो वह आपके लिए यौन रूप से अधिक खुले रहेंगे और आपके साथ अधिक बार और बार बार  प्यार करना चाहेंगे। मुझे  पूरा विश्वास है रश्मि!  अब सेक्स के बारे में आपकी काफी भ्रांतिया दूर गयी होंगी ।

 

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मैं उनकी व्याख्याओं से मंत्रमुग्ध हो गयी थी .  मुझे उनके समझाने का तरीका पसंद आया और निश्चित रूप से और मैं और जानने के लिए उत्सुक हो रही थी लेकिन उस समय मैं इतनी उत्तेजित थी कि  अब मुझे सेक्स पर व्याख्यान के बजाय वास्तविक सेक्स चाहिए था।

लेकिन मैं अभी  जिस सत्र से गजरी थी  और  जैसा कि मैं सब कुछ जोर से और स्पष्ट रूप से देख पा रही  थी   की मैं लगभग नग्न थी और गुरूजी के चार शिष्य जो की मुझसे कुछ गज दूर खड़े थे वो भी नग्न थे और उनके लिंग खड़े हुए  मेरे और चिह्नित  थे और उन्हें देख मुझे बहुत शर्म आ रही थी!

गुरु-जी : रश्मि क्या आप इस बीच मंत्र को दोहरा पायी ?

स्वाभाविक सवाल, मैंने सोचा! 

मैं: अह्ह्ह . हाँ... हाँ गुरु जी मैंने पूरा प्रयास किया ।

गुरु जी : बहुत बढ़िया ! यह बहुत महत्वपूर्ण है। और सच्चो अगर  ये सत्र आपने अपनी पति के साथ किया होता तो वो इस समय  आप  उसके साथ बिस्तर पर होतीं,  और वो ऐसे ऐसे हालात में आपके  चुत ड्रिल कर रहा होता  ! हा हा हा..

क्षण भर में मेरे अंदर जो ग्लानि और शर्म के भाव उतपन्न हुए उन्होंने यौन इच्छा  को मेरी तर्कसंगत इंद्रियों  ने दबा दिया, हालांकि यह बहुत ही अल्पकालिक था। संक्षेप में मैंने अपने घर, अपने परिवार, अपने पति, अपने पड़ोस की छवियों की कल्पना की - मेरी आंखों के सामने उन सबके   चित्र  आये  और मैंने अपनी पलकों को कुछ झपका। अपने ससुर को परदे में चाय पिलाते हुए, अपनी सास के साथ पूजा करते हुए, पड़ोसी के घर जाते समय शालीनता से ढके हुए कपड़े, पति राजेश का प्यार…। सब कुछ जैसे मेरी आंखों ने घूम गया ।

और, जब मैंने अपने आप को यहां पूजा-घर में देखा  तो  मैंने अपने आप को उस आश्चर्यजनक अंतर्विरोध को महसूस करते हुए मुझे खुद पर  भरोसा  ही नहीं हुआ  की मैं  वो सब कर पायी जो मैंने अभी कुछ देर पहले किया था . जिससे मैं गुजरी हूँ ! मैं लगभग नग्न अवस्था में पाँच पुरुषों के सामने खड़ी  हूँ - बिना पैंटी के  और , चोली-रहित और  मुझे टटोलते हुए, चूमा गया , और उन सभी द्वारा मुझे जोर से सहलाया गया  और उन्होंने मेरे गुपतनगो के साथ खिलवाड़ किया  था और अपने  नग्न गुप्तांग  को मेरे बदन पर जोर से बार बार रगड़ा था !  और इसन चारो ने मेरे लगभग नग्न शरीर का एक इंच भी अनदेखा और अनछुआ नहीं छोड़ा था । मैंने  इसकी अनुमति कैसे दे  दी थी ये  मुझे भी नहीं समझ आ रहा था ? क्या मैं अपने नियंत्रण को खो चुकी थी ?


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मेरे शुरुआती बहुत मजबूत विचारों के बावजूद मैं धीरे-धीरे अपनी उत्तेजित शारीरिक स्थिति  में  मेरी उत्तेजना मेरे  संयम  के  विचारो पर हावी हो गयी  । मेरे भीतर की यौन इच्छा (मेरे लिए अज्ञात  मेरी नशे की हालत के कारण,) धीरे-धीरे मेरे सभी सकारात्मक विचारों पर हावी हो रही थी।

गुरु जी : जय लिंग महाराज!  बहुत बढ़िया  रश्मि! आपने यहाँ आयी  सभी महिलाओं से  इस मंत्र दान   सत्र में अधिक  सहयोग किया इस कारण  आप सभी से तालियों की गड़गड़ाहट की पात्र हैं! इसके साथ  ही गुरु जी के चारों शिष्यों ने ताली बजाकर मेरा गर्मजोशी से स्वागत किया।

मैं मानो गुरु-जी की तेज गड़गड़ाहट और तालियों की की आवाज से जाग गयी ।

गुरु जी : बेटी, शरमाओ मत। इस योनि पूजा से गुजरने वाली हर महिला को इससे गुजरना पड़ता है। मैंने बहुत सी विवाहित महिलाओं को मंत्र दान के दौरान उत्साह में अपने अंतिम कपड़े खुद ही निकालते  हुए  देखा है। वास्तव में, एक युवा गृहिणी होने के नाते, आपने उनसे बहुत बेहतर किया है!

मैं अभी भी गुरु-जी सहित वहाँ मौजूद किसी भी पुरुष से नज़रें नहीं मिला पा रही थी।

गुरु जी : बेटी! अब  तांत्रिक लिंग और फिर तांत्रिक  योनि  पूजा  करने  पर  तुम  जल्द  ही  संतान  प्राप्त  कर  लोगी.  चलो  पूजा  प्रारम्भ  करते  है , जय लिंग महाराज ... ॐ ….!


आगे योनि पूजा में लिंग पूजा की कहानी जारी रहेगी
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CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

अपडेट-19

लिंग पूजा-1


गुरु जी : बेटी! अब तांत्रिक लिंग और फिर तांत्रिक योनि पूजा करने पर तुम जल्द ही संतान प्राप्त कर लोगी। चलो पूजा प्रारम्भ करते है , जय लिंग महाराज ..। ॐ ….!

उसके बाद यज्ञ के लिए सब तैयारी पहले से ही थी । कमरे के बीच में अग्नि कुंड में आग जला रही थी। उसके पीछे लिंग की स्थपना की गयी थी और उसके पीछे लिंग महाराज का चित्र रखा हुआ था। यज्ञ के लिए बहुत सी सामग्री वहाँ पर बड़े करीने से रखी हुई थी। मैंने मन ही मन उस सारे अरेंजमेंट की तारीफ की।

गुरु-जी: बेटी, लिंग महाराज को स्थापित किया गया है । ये लिंग देव जिनकी स्थपना की गयी थी वो लिंग की की प्रतिकृति थी और यह एक पुरुष लिंग की तरह दिखने वाली थी और बहुत अजीब लग रही थी! यह शायद मोम से बना था और इसका रंग को त्वचा के रंग से मिलता-जुलता देखकर मैं चौंक गयी थी और वास्तव में इसकी लंबाई के चारों ओर नसें थीं और इसलिए लिंग की तरह लग रहा था! बिलकुल नकली डिलडो के तरह लग रहा था ! और इसके ऊपर भी कुछ था, जो भी चमड़ी जैसा ही था!

गुरु-जी: बेटी, पूरी योनि पूजा लिंग महाराज को ही संतुष्ट करने के लिए होती है। इसलिए अपनी सारी प्रार्थनाएं और कर्म उसके प्रति समर्पित कर दें। यदि आप उसे संतुष्ट कर सकते हैं, तो वह निश्चित रूप से आपकी बहुत आपका मन चाहा वरदान आपको उपहार में देगा। जय लिंग महाराज! जय हो!


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हम सभी ने "जय लिंग महाराज!" और मैंने अपने मन में लिंग महाराज से प्रार्थना की "मैं आपको संतुष्ट करने के लिए अपनी पूरी कोशिश करूंगी और मैं सिवाय एक बच्चे के कभी कुछ नहीं चाहती , । कृप्या…"


फिर गुरुजी ने यज्ञ शुरू कर दिया। उस समय रात के 9 बजे थे। यज्ञ के लिए चंदन की अगरबत्तियाँ जलाई गयी थीं। गुरुजी अग्नि कुंड के सामने बैठे थे , समीर उनके बाएं तरफ और मैं दायीं तरफ बैठी थी। गुरुजी के ज़ोर ज़ोर से मंत्र पढ़ने से कमरे का माहौल बदल गया।

लेकिन मुझे लगा चारो शिष्य मुझे ही घूर रहे थे और मैं पसीना पसीना हो गयी थी और मेरा ध्यान अपने पसीने पर ज़्यादा था।

गुरुजी – रश्मि । सभी धार्मिक कार्यो को पति पत्नी को एक साथ करना चाहिए इसलिए अब इस पूजा में उदय तुम्हारा पति का पार्ट ऐडा करेगा । उदय! इस थाली को पकड़ो और रश्मि तुम इसे अग्निदेव को हवन कुंड में अर्पित करो कुमार तुम रश्मि को पीछे से पकड़ो और जो मंत्र मैं बताऊंगा , उसे रश्मि के कान में धीमे से बोलो। रश्मि तुम्हे पता है तांत्रिक पूजा में माध्यम का कितना महत्व है इसलिए तुम यहाँ पर माध्यम हो और रश्मि माध्यम के रूप में तुम्हें उस मंत्र को ज़ोर से अग्निदेव के समक्ष बोलना है। ठीक है ?

“जी गुरुजी.”


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गुरुजी – रश्मि तुम मंत्र को ज़ोर से अग्निदेव के समक्ष बोलोगी और मैं उसे लिंगा महाराज के समक्ष दोहराऊंगा। तुम दोनों आँखें बंद कर लो। जय लिंगा महाराज.

मैंने आँखें बंद कर ली और अपने कंधे पर उदय की गरम साँसें महसूस की। वो मेरे कान में मंत्र बोलने लगा और मैंने ज़ोर से उस मंत्र का जाप कर दिया और फिर गुरुजी ने और ज़ोर से उसे दोहरा दिया। शुरू में कुछ देर तक ऐसे चलता रहा फिर मुझे लगा की मेरे कान में मंत्र बोलते वक़्त उदय मेरे और नज़दीक़ आ रहा है। मुझे उसके घुटने अपनी जांघों को छूते हुए महसूस किए फिर उसका लंड मेरे नग्न नितंबों को छूने लगा क्योंकि उस समय मैं वहां बिलकुल नग्न थी । मैंने थोड़ा आगे खिसकने की कोशिश की लेकिन आगे अग्निकुण्ड था। धीरे धीरे मैंने साफ तौर पर महसूस किया की वो मेरे सुडौल नितंबों पर अपने लंड को दबाने की कोशिश कर रहा था। काहिर उदय मुझे पसंद था और उसकी हरकत मुझे बुरी भी नहीं लगी और मुझे अच्छा लगा रहा था।

फिर उदय अपना खड़ा लंड मेरे नितंबों में चुभो रहा था लेकिन अपने लक्ष के और ध्यान राखंते हुए मैं चुप ही रही और यज्ञ में ध्यान लगाने की कोशिश करती रही फिर उदय मंत्र पढ़ते समय मेरे कान को अपने होठों से चूमने लगा। और मैं कामोत्तेजित होने लगी और उसका कड़ा लंड मेरी मुलायम गांड में लगातार चुभ रहा था और उसके होंठ मेरे कान को छू रहे थे। स्वाभाविक रूप से मेरे बदन की गर्मी बढ़ने लगी। कुछ मिनट बाद मंत्र पढ़ने का काम पूरा हो गया। और मुझे कुमार साहब के घर जो पूजा हुई थी जिसमे गुरूजी ने उसका ध्यान आया जब कुमार जिनकी बेटी काजल के लिए की गयी पूजा के दौरान मेरे साथ छेड़ छाड़ की थी।

गुरुजी – शाबाश रश्मि। तुमने अच्छे से किया। अब ये थाली मुझे दे दो। ये कटोरा पकड़ लो और इसमें से बहुत धीरे धीरे तेल अग्नि में चढ़ाओ। उदय तुम भी इसके साथ ही कटोरा पकड़ लो। मैं गुरुजी से कटोरा लेने झुकी और डे मेरे ऊपर झुका हुआ था और वो असंतुलित हो गया ।


[Image: PUJA2.jpg]
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गुरुजी – रश्मि, उसे पकड़ो.

गुरुजी एकदम से चिल्लाए। मुझे अपनी ग़लती का एहसास हुआ और मैं तुरंत पीछे मुड़ने को हुई। लेकिन मैं पूरी तरह पीछे मुड़ कर उसे पकड़ पाती उससे पहले ही उदय मेरी पीठ में गिर गया। उदय मेरे जवान बदन के ऊपर झुक गया और उसका चेहरा मेरी गर्दन के पास आ गिरा। गिरने से बचने के लिए उसने मुझे पीछे से आलिंगन कर लिया। और अब सहारे के लिए मेरी कमर पकड़े हुए चिपक कर खड़ा हो गया है मेरी पीठ के ऊपर उसकी जीभ और होंठ मुझे महसूस हुए और उसकी नाक मेरी गर्दन के निचले हिस्से पर छू रही थी। जब सहारे के लिए उसने दाए हाथ मेरे कमर में डाल कर मेरे स्तन को पकड़ लिया और उसके बाएं हाथ ने मुझे पीछे से आलिंगन करके मेरी जांघ को पकड़ लिया.और मैंने अपनी चूत पर उसके हाथ का दबाव महसूस किया और उसने पीछे से मेरी नंगी पीठ को उसने अपनी जीभ से चाट लिया.

गुरूजी : उदय ठीक से खड़े हो जाओ और और रश्मि तुम याद रखो पूजा के इस भाग में उदय ही तुम्हारे पति का पार्ट कर रहा है और इसका बुरा मत मानो पति पत्नी में तो ऐसी छोटी छोटी शरारते तो चलती रहती है मुझे उदय से कोई दिक्कत नहीं थी और थोड़ी देर पहल मंत्र दान के दौरान जो कुछ मेरे साथ हुआ था उसके सामने ये कुछ भी नहीं था । लेकिन इस लगातार हो रही छेद चाँद से मैं उत्तेजित हो रही थी ।

गुरुजी – उदय तुम ठीक हो ?

उदय – जी गुरुजी..

गुरुजी – चलो कोई बात नहीं। रश्मि, मैं मंत्र पढूंगा और तुम तेल चढ़ाना। रश्मि को संतान की प्राप्ति के लिए हम पहले अग्निदेव की पूजा करेंगे और फिर लिंगा महाराज की.


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हमने हामी भर दी और उदय फिर से मेरे नज़दीक़ आ गया और मेरे पीछे से कटोरा पकड़ लिया। इस बार उसके पूरे बदन का भार मेरे ऊपर पड़ रहा था और उसकी अंगुलियां मेरी अंगुलियों को छू रही थीं उसका लिंग मेरे नितम्बो पर था । गुरुजी ने ज़ोर ज़ोर से मंत्र पढ़ने शुरू किए और मैं यज्ञ की अग्नि में घी चढ़ाने लगी। । मुझे साफ महसूस हो रहा था की अब उदय बिना किसी रुकावट और डर के के पीछे से मेरे पूरे बदन को महसूस कर रहा है। मेरे सुडौल नितंबों पर वो हल्के से धक्के भी लगा रहा था। उस की इन हरकतों से मैं कामोत्तेजित होने लगी थी.

जब मैं अग्निकुण्ड में घी डालने लगी तो उसमे तेज लपटें उठने लगी इसलिए मुझे थोड़ा सा पीछे को खिसकना पड़ा। इससे उदय के और भी मज़े आ गये और वो मेरी अपना सख़्त लंड चुभाने लगा। उसने मेरे पीछे से कटोरा पकड़ा हुआ था तो उसकी कोहनियां मुझे साइड्स से दबा रही थी, एक तरह से उसने मुझे पीछे से आलिंगन करके मेरे स्तनों के दबाते हुए कटोरा पकड़ा हुआ था और उसका सारा वज़न मुझ पर पड़ रहा था। गुरुजी मंत्र पढ़ते रहे और मैं बहुत धीरे से अग्नि में तेल डालती रही। तेल चढ़ाने का ये काम लंबा खिंच रहा था.

मौका देखकर उदय ने कटोरे में अपनी अंगुलियों को मेरी अंगुलियों को कस लिया और उसने अपने कूल्हे हिला कर अपना लंड मेरे गनद की दरार में दबा दिया और साथ में अपने दुसरे हाथ से मेरे स्तनों और निप्पलों को मसलने लगा और अब उसके मर्दाने टच से मुझे कामानंद मिल रहा था। मैंने गुरुजी को देखा पर वो आँख बंद कर मंत्र पढ़ रहे थे और संजीव एक कोने में भोग बना रहा था और राजकमल कुछ और सामन त्यार कर रहा था और निर्मल पूजा की थाली सजा रहा था और इस तरह किसी का ध्यान हम पर नहीं था। तभी वो मेरे कान में फुसफुसाया……

उदय – रश्मि , मैं कटोरे से एक हाथ हटा रहा हूँ। मुझे खुजली लग रही है.

मैं समझ गयी उसे कहाँ पर खुजली लग रही है। उसने अपना दांया हाथ कटोरे से हटा लिया और मेरा बायां हाथ लेकर पाने लंड पर ले गया और अपने लंड को मेरे हाथ से खुज़लाने लगा। मुझे ये बात जानने के लिए पीछे मुड़ के देखने की ज़रूरत नहीं थी क्यूंकी मेरा हाथ मुझे अपने नितंबों और उसके लंड के बीच महसूस हो रहा था। वो बेशरम मेरे हाथ से अपने लंड पर खुज़ला रहा था इस बीच जब मैं मजे लेकर उसका लंड खुज़लाने लगी तो वो अपना हाथ कटोरे पर वापस नहीं लाया और अपने हाथ को मेरे बड़े नितंबों पर फिराने लगा.

उसने मेरे सुडौल नितंबों को अपने हाथ में पकड़कर दबाया तो मेरे निपल तनकर कड़क हो गये। मेरी चूचियां तन गयीं। मैंने एक हाथ से तेल का कटोरा पकड़ा हुआ था , मैंने पीछे मूड कर गुस्से से उसे घूरा तो उसने तुरंत अपना हाथ मेरे नितंबों से हटा लिया और फिर से कटोरा पकड़ लिया। उसके एक दो मिनट बाद तेल चढ़ाने का वो काम खत्म हो गया। यज्ञ की अग्नि के साथ साथ उदय की मेरे बदन से छेड़छाड़ से अब मुझे बहुत पसीना आने लगा था.

गुरुजी – अग्निदेव की पूजा पूरी हो चुकी है। अब हम लिंगा महाराज की पूजा करेंगे। जय लिंगा महाराज.

उदय और मैंने भी जय लिंगा महाराज बोला। गुरुजी मंत्र पढ़ते हुए विभिन्न प्रकार की यज्ञ सामग्री को अग्निकुण्ड में चढ़ाने लगे। करीब 5 मिनट तक ऐसा चलता रहा। संजीव अभी भी भोग को तैयार करने में व्यस्त था.

गुरुजी – रश्मि, मैंअब तुम्हे लिंगा महाराज की पूजा करनी होगी। और इसमें अब तुम्हारा माध्यम होगा राजकमल

मैं : जी मुझे मालूम हैं मैंने आपके साथ कुमार के घर में माध्यम के रूप में लिंगा महाराज की पूजा की थी .

गुरुजी – रश्मि अब तुम माध्यम के रूप में तुम राजकमल को साथ लेकर फर्श पर लेटकर लिंगा महाराज को प्रणाम करोगी। राजकमल तुम्हे मंत्र देगा , तुम्हारी नाभि और घुटने फर्श को छूने चाहिए। फिर तुम वो मन्त्र तुम मुझे देना । फिर गुरुजी ने गंगा जल से मेरे हाथ धुलाए और मुझे वो जगह बताई जहाँ पर मुझे प्रणाम करना था। मैं वहाँ पर गयी और घुटनों के बल बैठ गयी। फिर मैं पेट के बल फर्श पर लेट गयी.

गुरुजी – प्रणाम के लिए अपने हाथ सर के आगे लंबे करो। तुम्हारी नाभि फर्श को छू रही है या नहीं ? मैं देखता हूँ.

गुरुजी ने मुझे कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया और मेरे पेट पर नाभि के पास अपनी एक अंगुली डालकर देखने लगे की मेरी नाभि फर्श को छू रही है या नहीं ? मैंने अपने नितंबों को थोड़ा सा ऊपर को उठाया ताकि गुरुजी मेरे पेट के नीचे अंगुली से चेक कर सकें। उनकी अंगुली मेरी नाभि पर लगी तो मुझे गुदगुदी होने लगी लेकिन मैंने जैसे तैसे अपने को काबू में रखा.

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गुरुजी – हाँ, ठीक है.

ऐसा कहते हुए उन्होने मेरे पेट के नीचे से अंगुली निकाल ली और मेरे नितंबों पर थपथपा दिया। मैंने उनका इशारा समझकर अपने नितंब नीचे कर लिए। मैंने दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में सर के आगे लंबे किए हुए थे। उन मर्दों के सामने मुझे ऐसे उल्टे लेटना भद्दा लग रहा था। फिर मैंने राजकमल आगे आ गया था .

गुरुजी – रश्मि अब तुम पूजा को लिंगा महाराज तक ले जाओगी.

“कैसे गुरुजी ?”

गुरुजी – रश्मि , मैंने तुम्हें बताया तो था। राजकमल तुम्हे माध्यम बनाएगा और फिर तुम्हे पूजा करनी है.

गुरुजी – राजकमल तुम रश्मि की पीठ पर लेट जाओ और इस किताब में से रश्मि के कान में मंत्र पढ़ो.

रश्मि, ये यज्ञ का नियम है और माध्यम को इसे ऐसे ही करना होता है.

राजकमल – जी गुरुजी.

“लेकिन गुरुजी, एक अंजान आदमी को इस तरह………….”

गुरुजी – रश्मि , जैसा मैं कह रहा हूँ वैसा ही करो। उसे अनजान नहीं अपने पति समझो !


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गुरुजी तेज आवाज़ में आदेश देते हुए बोले। एकदम से उनके बोलने का अंदाज़ बदल गया था। अब कुछ और बोलने का साहस मुझमें नहीं था और मैंने चुपचाप जो हो रहा था उसे होने दिया.

गुरुजी –राजकमल जल्दी करो ? समय बर्बाद मत करो। अभी हमे लिंग पूजा और फिर योनी पूजा भी करनी है समय कम है राजकमल शीघ्रता करो .

मुझे अपनी पीठ पर राजकमल चढते हुए महसूस हुआ। अब एक बार फिर मैं शर्मिंदगी महसूस कर रही थी। मैं सोचने लगी अगर मेरे पति ये दृश्य देख लेते तो ज़रूर बेहोश हो जाते। मैंने साफ तौर पर महसूस किया की राजकमल अपने लंड को मेरी गांड की दरार में फिट करने के लिए एडजस्ट कर रहा है। फिर मैंने उसके हाथ अपने कंधों को पकड़ते हुए महसूस किए , उसके पूरे बदन का भार मेरे ऊपर था। एक जवान शादीशुदा गदरायी हुई औरत के ऊपर ऐसे लेटने में उसे बहुत मज़ा आ रहा होगा.

गुरुजी – जय लिंगा महाराज। राजकमल अब शुरू करो। रश्मि तुम ध्यान से मंत्र सुनो और ज़ोर से लिंगा महाराज के सामने बोलना.

मैंने देखा गुरुजी ने अपनी आँखें बंद कर ली। अब कुमार ने मेरे कान में मंत्र पढ़ना शुरू किया। लेकिन मैं ध्यान नहीं लगा पा रही थी। कौन औरत ध्यान लगा पाएगी जब ऐसी नग्न हालत में ऐसे उसके ऊपर कोई आदमी नग्न लेटा हो। मेरे ऊपर लेटने से राजकमल के मज़े हो गये , उसने तुरंत मेरी उस हालत का फायदा उठाना शुरू कर दिया। अब वो मेरे मुलायम नितंबों पर ज़्यादा ज़ोर डाल रहा था और अपने लंड को मेरी गांड की दरार में दबा रहा था। शुक्र था की उसका लंड दरार में ज़्यादा अंदर नहीं जा पा रहा था.

मेरे कान में मंत्र पढ़ते हुए उसकी आवाज़ काँप रही थी क्यूंकी वो धीरे से मेरी गांड पर धक्के लगा रहा था जैसे की मुझे चोद रहा हो। मुझे ज़ोर से मंत्र दोहराने पड़ रहे थे इसलिए मैंने अपनी आवाज़ को काबू में रखने की कोशिश की। गुरुजी ने अपनी आँखें बंद कर रखी थी और संजीव हमारी तरफ पीठ करके भोग तैयार कर रहा था और उदय लिंग पूजा के लिए सामग्री व्यवस्थित कर रहा था और निर्मल पूजा की थाली सजा रहा था और इस तरह किसी का ध्यान हम पर नहीं था। इसलिए राजकमल पूरे मजे ले रहा था । उसका लंड मेरे नितम्बो और गांड पर महसूस हो रहा था.उसकी धक्के लगाने की उसकी स्पीड बढ़ने लगी थी और उसके लंड का कड़कपन भी.

अब मंत्र पढ़ने के बीच में गैप के दौरान राजकमल मेरे कान और गालों पर अपनी जीभ और होंठ लगा रहा था। मैं जानती थी की मुझे उसे ये सब नहीं करने देना चाहिए लेकिन जिस तरह से गुरुजी ने थोड़ी देर पहले तेज आवाज़ में बोला था, उससे अनुष्ठान में बाधा डालने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी। अब मैं गहरी साँसें ले रही थी और राजकमल भी हाँफने लगा था।


आगे योनि पूजा में लिंग पूजा की कहानी जारी रहेगी
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भाई अब अपडेट दे दे इतना भी ना तरसाए।
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औलाद की चाह

CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

अपडेट-20

लिंग पूजा-2


मैंने उसके घुटने अपनी जांघों को छूते हुए महसूस किए फिर उसका लंड मेरे नितंबों को छूने लगा। मैंने राजकमल ने थोड़ा आगे खिसकने की कोशिश की लेकिन आगे अग्निकुण्ड था। धीरे-धीरे मैंने साफ़ तौर पर महसूस किया की वह मेरे सुडौल नितंबों पर अपने लंड को दबाने की कोशिश कर रहा था।

मैं सोच रही थी की अब क्या करूँ? क्या मैं इसको एक थप्पड़ मार दूं और सबक सीखा दूं? लेकिन मैं वहाँ यज्ञ के दौरान कोई बखेड़ा खड़ा करना नहीं चाहती थी। इसलिए मैं चुप रही और यज्ञ में ध्यान लगाने की कोशिश करने लगी। लेकिन वह कमीना इतने में ही नहीं रुका। अब मंत्र पढ़ते समय वह मेरे कान को अपने होठों से छूने लगा। मुझे अनकंफर्टबल फील होने लगा और मैं कामोत्तेजित होने लगी क्यूंकी उसका कड़ा लंड मेरी मुलायम गांड में लगातार चुभ रहा था और उसके होंठ मेरे कान को छू रहे थे। स्वाभाविक रूप से मेरे बदन की गर्मी बढ़ने लगी।

खुशकिस्मती से कुछ मिनट बाद मंत्र पढ़ने का काम पूरा हो गया। मैंने राहत की साँस ली।

गुरुजी--माध्यम के रूप में तुम अब संजीव को साथ लेकर फ़र्श पर लेटकर लिंगा महाराज को प्रणाम करोगी। तुम्हारी नाभि और घुटने फ़र्श को छूने चाहिए।

मैंने हामी भर दी जबकि मुझे अभी भी ठीक से बात समझ नहीं आई थी।  गुरुजी ने गंगा जल से मेरे हाथ धुलाए और मुझे वह जगह बताई जहाँ पर मुझे प्रणाम करना था। मैं वहाँ पर गयी और घुटनों के बल बैठ गयी। फिर मैं पेट के बल फ़र्श पर लेट गयी।



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गुरुजी--प्रणाम के लिए अपने हाथ सर के आगे लंबे करो। तुम्हारी नाभि फ़र्श को छू रही है? मैं देखता हूँ।

गुरुजी ने मुझे कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया और मेरे पेट  के बीच में अपनी एक अंगुली डालकर देखने लगे की मेरी नाभि फ़र्श को छू रही है या नहीं? मैंने अपने नितंबों को थोड़ा-सा ऊपर को उठाया ताकि गुरुजी मेरे पेट के नीचे अंगुली से चेक कर सकें। उनकी अंगुली मेरी नाभि पर लगी तो मुझे गुदगुदी होने लगी लेकिन मैंने जैसे तैसे अपने को काबू में रखा।

गुरुजी--हाँ, ठीक है।

ऐसा कहते हुए उन्होने मेरे पेट के नीचे से अंगुली निकाल ली और मेरे नितंबों पर थपथपा दिया। मैंने उनका इशारा समझकर अपने नितंब नीचे कर लिए। मैंने दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में सर के आगे लंबे किए हुए थे। उन मर्दों के सामने नंगी हालत में मुझे ऐसे उल्टे लेटना भद्दा लग रहा था। फिर मैंने देखा गुरुजी ने संजीव को मेरे पास आने  के लिए इशारा किया था ।

गुरुजी- संजीव अब तुम रश्मि को पूजा को लिंगा महाराज तक ले जाओ।

"मैंने पुछा कैसे गुरुजी?"

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि इसमें मुझे करना क्या है? मैंने देखा गुरुजी  ने संजीव को मेरे पास बैठने का इशारा किया था ।

गुरुजी--रश्मि, मैंने तुम्हें बताया तो था। तुम्हें अब संजीव को साथ लेकर पूजा करनी है।

गुरुजी को दुबारा बताना पड़ा इसलिए वह थोड़े चिड़चिड़ा से गये थे लेकिन मैं उलझन में थी की करना क्या है? साथ लेकर मतलब?

गुरुजी--संजीव  तुम रश्मि की पीठ पर लेट जाओ और इस किताब में से रश्मि के कान में मंत्र पढ़ो।

संजीव --जी गुरुजी।

हे भगवान! अब तो मुझे कुछ न कुछ कहना ही था। गुरुजी इस आदमी को मेरी पीठ में लेटने को कह रहे थे। ये ऐसा ही था जैसे मैं बेड पर उल्टी लेटी हूँ और मेरे पति मेरे ऊपर लेटकर मुझसे मज़ा ले रहे हों।

"गुरुजी, लेकिन ये!"

गुरुजी--रश्मि, ये यज्ञ का नियम है और माध्यम को इसे ऐसे ही करना होता है।

"लेकिन गुरुजी,  इस तरह!"




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गुरुजी--रश्मि, भूलो मत इस समय तुम संजीव को अपने पति के रूप में समझो  और जैसा मैं कह रहा हूँ वैसा ही करो।

गुरुजी तेज आवाज़ में आदेश देते हुए बोले। एकदम से उनके बोलने का अंदाज़ बदल गया था। अब कुछ और बोलने का साहस मुझमें नहीं था और मैंने चुपचाप जो हो रहा था उसे होने दिया।

गुरुजी- संजीव तुम किसका इंतज़ार कर रहे हो? समय बर्बाद मत करो। यज्ञ के लिए शुभ समय मध्यरात्रि  ही है।

मुझे अपनी पीठ पर संजीव चढते हुए महसूस हुआ। मैं बहुत शर्मिंदगी महसूस कर रही थी। गुरुजी ने उसको मेरे जवान बदन के ऊपर ठीक से लेटने में मदद की। कितनी शरम की बात थी वो। मैं सोचने लगी अगर मेरे पति ये दृश्य देख लेते तो ज़रूर बेहोश हो जाते। मैंने साफ़ तौर पर महसूस किया की संजीव अपने लंड को मेरी गांड की दरार में फिट करने के लिए एडजस्ट कर रहा है। फिर मैंने उसके हाथ अपने कंधों को पकड़ते हुए महसूस किए, उसके पूरे बदन का भार मेरे ऊपर था। एक जवान  मोठे नितम्ब वाली शादीशुदा औरत के ऊपर ऐसे लेटने में उसे बहुत मज़ा आ रहा होगा।

गुरुजी--जय लिंगा महाराज। संजीव अब शुरू करो। रश्मि तुम ध्यान से मंत्र सुनो और ज़ोर से लिंगा महाराज के सामने बोलना।

मैंने देखा गुरुजी ने अपनी आँखें बंद कर ली। अब संजीव  ने मेरे कान में मंत्र पढ़ना शुरू किया। लेकिन मैं ध्यान नहीं लगा पा रही थी। कौन औरत ध्यान लगा पाएगी जब ऐसे उसके ऊपर कोई आदमी लेटा हो। मेरे ऊपर लेटने से  संजीव के तो मज़े हो गये, उसने तुरंत मेरी उस हालत का फायदा उठाना शुरू कर दिया। अब वह मेरे मुलायम नितंबों पर ज़्यादा ज़ोर डाल रहा था और अपने लंड को मेरी गांड की दरार में दबा रहा था। शुक्र यही था  की वो खुल कर मुझे छोड़ नहीं रहा था जिससे  उसका लंड दरार में ज़्यादा अंदर नहीं जा पा रहा था।


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मेरे कान में मंत्र पढ़ते हुए उसकी आवाज़ काँप रही थी क्यूंकी वह धीरे से मेरी गांड पर हलके धक्के लगा रहा था जैसे कि मुझे चोद रहा हो। मुझे ज़ोर से मंत्र दोहराने पड़ रहे थे इसलिए मैंने अपनी आवाज़ को काबू में रखने की कोशिश की। गुरुजी ने अपनी आँखें बंद कर रखी थी और बाको लोग  हमारी तरफ़ पीठ करके अभिषेक और  भोग तैयार कर रहे थे  इसलिए संजीव की मौज  हो गयी थी । धीरे धीरे  धक्के लगाने की उसकी स्पीड बढ़ने लगी थी और उसके लंड का कड़कपन भी।

अब मंत्र पढ़ने के बीच में गैप के दौरान संजीव मेरे कान और गालों पर अपनी जीभ और होंठ लगा रहा था। मैं जानती थी की मुझे उसे ये सब नहीं करने देना चाहिए लेकिन जिस तरह से गुरुजी ने थोड़ी देर पहले तेज आवाज़ में बोला था, उससे अनुष्ठान में बाधा डालने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी। अब मैं गहरी साँसें ले रही थी और संजीव तो हाँफने लगा था। इस उमर में इतना आनंद उसके लिए काफ़ी था। तभी उसने कुछ ऐसा किया की मेरे दिल की धड़कनें रुक गयीं।

मैं अपनी बाँहें सर के आगे किए हुए प्रणाम की मुद्रा में लेटी हुई थी। मेरी चूचियाँ  फ़र्श में दबी हुई थी। संजीव मेरे ऊपर लेटा हुआ था और उसने एक हाथ में किताब और दूसरे हाथ से मेरा कंधा पकड़ा हुआ था। संजीव ने देखा की गुरुजी की आँखें बंद हैं। अब उसने किताब फ़र्श में रख दी और अपने हाथ मेरे कंधे से हटाकर मेरे अगल बगल फ़र्श में रख दिए। अब उसके बदन का कुछ भार उसके हाथों पर पड़ने लगा, इससे मुझे थोड़ी राहत हुई क्यूंकी पहले उसका पूरा भार मेरे ऊपर पड़ रहा था। लेकिन ये राहत कुछ ही पल टिकी। कुछ ही पल बाद उसने अपने हाथों को अंदर की तरफ़ खिसकाया और मेरी चूचियों को छुआ।

शरम, गुस्से और कामोत्तेजना से मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं। अब संजीव मेरे बदन से छेड़छाड़ कर रहा था और अब तक मैं भी कामोत्तेजित हो चुकी थी इसलिए उसके इस दुस्साहस का मैंने विरोध नहीं किया और मंत्र पढ़ने में व्यस्त होने का दिखावा किया। पहले तो वह हल्के से मेरी चूचियों को छू रहा था लेकिन जब उसने देखा की मैंने कोई रिएक्शन नहीं दिया और ज़ोर से मंत्र पढ़ने में व्यस्त हूँ तो उसकी हिम्मत बढ़ गयी।

उसके बदन के भार से वैसे ही मेरी चूचियाँ फ़र्श में दबी हुई थी अब उसने दोनों हाथों से उन्हें दबाना शुरू किया। कहीं ना कहीं मेरे मन के किसी कोने में मैं भी यही चाहती थी क्यूंकी अब मैं भी कामोत्तेजना महसूस कर रही थी। उसने मेरे बदन के ऊपरी हिस्से में अपने वज़न को अपने हाथों पर डालकर मेरे ऊपर भार थोड़ा कम किया मैंने जैसे ही राहत के लिए अपना बदन थोड़ा ढीला किया उसने दोनों हाथों से साइड्स से मेरी बड़ी चूचियाँ दबोच लीं और उनकी सुडौलता और गोलाई का अंदाज़ा करने लगा।

उस समय मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरा पति राजेश मेरे ऊपर लेटा हुआ है और मेरी जवान चूचियों को निचोड़ रहा है। घर पर राजेश अक्सर मेरे साथ ऐसा करता था और मुझे भी उसके ऐसे प्यार करने में बड़ा मज़ा आता था। राजेश दोनों हाथों को मेरे बदन के नीचे घुसा लेता था और फिर मेरी चूचियों को दोनों हथेलियों में दबोच लेता था और मेरे निपल्स को तब तक मरोड़ते रहता था जब तक की मैं नीचे से पूरी गीली ना हो जाऊँ।

शुक्र था कि संजीव ने उतनी हिम्मत नहीं दिखाई शायद इसलिए क्यूंकी मैं किसी दूसरे की पत्नी थी। लेकिन साइड्स से मेरी चूचियों को दबाकर उसने अपने तो पूरे मज़े ले ही लिए। अब तो उत्तेजना से मेरी आवाज़ भी काँपने लगी थी और मुझे ख़ुद ही नहीं मालूम था कि मैं क्या जाप कर रही हूँ।

गुरुजी--जय लिंगा महाराज।

गुरुजी जैसे नींद से जागे हों और संजीव  ने जल्दी से मेरी चूचियों से हाथ हटा लिए। उसकी गरम साँसें मेरी गर्दन, कंधे और कान में महसूस हो रही थी और मुझे और ज़्यादा कामोत्तेजित कर दे रही थीं। तभी मुझे एहसास हुआ की अब मंत्र पढ़ने का कार्य पूरा हो चुका है।

गुरुजी-- संजीव  ऐसे ही लेटे रहो और रश्मि तुम जो चाहती हो  उसे एक लाइन में मेरे कान में बोलो। और वो अपना कान मेरे पास ले आये ।


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मैं --गुरुजी मैं बस ये चाहती  हूँ की  मुझे मेरी संतान प्राप्त हो ।

गुरुजी--ठीक है। संजीव रश्मि के कान में इसे पाँच बार बोलो और रश्मि तुम लिंगा महाराज के सामने दोहरा देना। तुम्हारे बाद मैं भी तुम्हारे लिए  प्रार्थना करूँगा और फिर मेरे बाद तुम बोलना। आया समझ में?





मैंने और संजीव ने सहमति में सर हिला दिया।

गुरुजी--सब आँखें बंद कर लो और प्रार्थना करो।

ऐसा बोलकर गुरुजी ने आँखें बंद कर ली और फिर मैंने भी अपनी आँखें बंद कर ली।

संजीव--लिंगा महाराज,  रश्मि को संतान प्रदान करे ।

संजीव जो मेरे पति राजेश की जगह  था  उसने  मेरे कान में ऐसा फुसफुसा के कह दिया। उसने ये बात कहते हुए अपने होंठ मेरे कान और गर्दन से छुआ दिए और मेरे सुडौल नितंबों को अपने बदन से दबा दिया। उसकी इस हरकत से लग रहा था की वो मुझसे कुछ और भी चाहता था। मैं समझ रही थी की उसको अब और क्या चाहिए , उसको मेरी चूचियाँ चाहिए थी। मैं तब तक बहुत गरम हो चुकी थी। मैंने अपनी बाँहों को थोड़ा अंदर को खींचा और कोहनी के बल थोड़ा सा उठी ताकि संजीव  मेरी चूचियों को पकड़ सके। मैंने लिंगा से  प्रार्थना को ज़ोर से बोल रही थी और गुरुजी उस प्रार्थना के साथ कुछ मंत्र पढ़ रहे थे।

मेरी आँखें बंद थी और तभी संजीव ने दोनों हाथों से मेरी चूचियाँ दबा दी। वो गहरी साँसें ले रहा था और पीछे से ऐसे धक्के लगा रहा था जैसे मुझे चोद रहा हो। मेरी उभरी हुई गांड में लगते हर धक्के से मेरी योनि गीली होती जा रही थी। मैंने ख्याल किया जब हम दोनों चुप होते थे और गुरुजी मंत्र पढ़ रहे होते थे उस समय संजीव  के हाथ मेरी चूचियों को दबा रहे होते थे। मैं भी उसकी इस छेड़छाड़ का जवाब देने लगी थी और धीरे से अपने नितंबों को हिलाकर उसके लंड को महसूस कर रही थी।

जल्दी ही पाँच बार  प्रार्थना पूरी हो गयी । मैं सोच रही थी की अब क्या होने वाला है?

गुरुजी -- जय लिंगा महाराज!

संजीव ने मेरी गांड को चोदना बंद कर दिया और मेरे ऊपर चुपचाप लेटे रहा। मुझे अपनी गांड में उसका लंड साफ महसूस हो रहा था और अब तो मेरा मन हो रहा था की की अब मेरी चुदाई हो जाए क्योंकि उसका लंड मेरी गांड की दरार या योनि  में अंदर नहीं जा पा रहा था और इससे मुझे पूरा मज़ा नहीं मिल पा रहा था।


गुरुजी -- जय लिंगा महाराज!


गुरूजी : बेटी आपको याद रखना चाहिए कि यह एक पवित्र अनुष्ठान है। इसे किसी भी 'सांसारिक' इच्छाओं के साथ भ्रमित नहीं होना है।"

"मैं समझती  हूँ गुरुजी।

गुरूजी ने  आंखें बंद करके मुझे भी आंखें बंद करके बैठ जाने को कहा। मैं आंखें बंद करके चटाई पर बैठ गयी । यज्ञ के लिए बहुत-सी सामग्री वहाँ पर बड़े करीने से रखी हुई थी।

तभी गुरूजी ने मेरे ऊपर पुष्प से  कुछ जल  फेंका और मंत्र बोलै .


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गुरूजी : अब रश्मि  अब  तुम इस अभिमंत्रित जल के प्रभाव से पवित्र हो गयी हो   फिर तुम लिंगा महाराज का ध्यान करो और  अब आँखे खोलो  अब निर्मल अगले भाग में तुम्हारा पति होगा  अब निर्मल तुम्हे सामग्री देता रहेगा  और  तुम  वैसे ही कर्ति रहना जैसा मैं कहूंगा और  अब आदरपूर्वक लिंगा  को सफेद कपड़े के एक नए टुकड़े से ढकी  हुई  चौकी (एक लकड़ी का मंच) पर रखें। और तेल का दीपक जलाएं।  मैंने  लिंग का जो प्रतिरूप वहां रखा था उसे  उस चौकी पर रख दिया .

इस बीच उस बौने निर्मल  ने अपनी कोह्नो से मेरे  स्तन दबाने शुरू कर दिए क्योंकि वो मेरे साथ सट कर बैठा हुआ था .
 
गुरूजी : रश्मि  अब पद्य - भगवान लिंगा पर  जल चढ़ाएं।

निर्मल ने जल का लौटा मेरा हाथ में दे दिया  और मेरा हाथ पकड़ लिया  और मैंने लिंगा पर जल  चढ़ा दिया 

गुरूजी : रश्मि  अब अर्घ्य - भगवान को जल अर्पित करें।

निर्मल ने जल का लौटा मेरा हाथ में दे दिया  और मेरा हाथ पकड़ लिया  और  मैंने लिंगा पर जल अर्पित  कर दिया.
 
गुरूजी : रश्मि  अब  आचमन  करो - अपनी दाहिनी हथेली पर उदरनी के साथ थोड़ा पानी डालें और इसे पिएं। फिर अपना हाथ धो लें।

निर्मल ने मेरी  दाहिनी हथेली पर उदरनी के साथ थोड़ा पानी डाला  और इसे पिया । फिर अपना हाथ धो लिया ।

गुरूजी : रश्मि इस सामग्री में दूध में  चावल मिले हुए हैं  जो लोग भगवान् लिंगा को  चावल  अर्पित करते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। और इसके साथ ही  कामनाओं की पूर्ति होने के साथ घर की सुख समृद्धि भी बनी रहेगी। ज्योतिष में चन्द्रमा  का उर्वरता का देवता माना जाता है और दूध के साथ कच्चे चावल मिलाकर लिंग पर चढ़ाने से चन्द्रमा भी प्रसन्न  होते हैं । साथ में दूध में काले तिल मिलाकर लिंगा महाराज को चढ़ाने से आपकी सभी परेशानियां दूर होंगी तथा आपका परिवार और आपका जीवन सुख, शांति और समृद्धि से भर जाएगा। इसमें साथ ही में चीनीभी मिली हुई है दूध और चीनी के मिश्रण को चन्द्रमा का कारक माना जाता है इसलिए लिंगा  पर ये मिश्रण चढ़ाने से चंद्रमा भी मजबूत होता है जिससे पापों से मुक्ति मिलती है। लिंगा को दही से अभिषेक करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। दही से रुद्राभिषेक करने से भवन-वाहन की भी प्राप्ति होती है। लिंगा का शहद से अभिषेक करने से धन वृद्धि होती है। इसके साथ ही शहद से अभिषेक करने से पुरानी बीमारियां भी नष्ट हो जाती हैं।  शादीशुदा जीवन  में  लिंगा का इत्र से अभिषेक करें। ऐसा करने से आपके अपने पति के साथ संबंध मधुर बनेंगे।और लिंगा  पर गन्ने के रस से अभिषेक करने पर अपार लक्ष्मी मिलती है और  दूध लिंगा महाराज को शीतलता प्रदान करता है


गुरूजी : रश्मि  अब लिंगा को स्नान  करवाओ - लिंग देवता पर थोड़ा जल छिड़कें और इस विशेष  दूध पंचामृत  से  अभिषेक करो और कपडे से साफ़ करो ।

निर्मल ने मुझे अभिषेक  का  बर्तन दिया ओर मैंने अभिषेक करने के लिए  विशेष  सामग्री  को लिया  जो  कच्चे  दूध, गंगाजल, शहद, दही, घी चावल , टिल से बनी हुई थी और फिर धीरे से लिंगा के प्रतिरूप को  ताजे कपड़े के टुकड़े से पोंछ लिया।

गुरूजी  : रश्मि  अब वस्त्र  लिंग  देवता को सफेद कपड़े का एक ताजा टुकड़ा या एक कलावा चढ़ाएं। निर्मल ने मुझे  कलावा दिया जिसे मैंने लिंग पर कलाव चढ़ाया


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गुरूजी  : रश्मि  अब  गंधा:  - चंदन का पेस्ट या प्राकृतिक इत्र चढ़ाएं 

इसी तरह निर्मल मुझे सामग्री देता रहा   और मैंने लिंग पर चंदन की पेस्ट लगा दी  और उस पर पुष्पा - धतूरे के फूल, बेल पत्र आदि चढ़ाने के बाद  धूप - अगरबत्ती  चढ़ायी और  तेल का दीपक अर्पित किया और लिंगा को  भगवान को भोग अर्पित किया  जिसमे  इसमें फल और मिठाई  शामिल थी उसके बाद तंबूलम भी चढ़ाया  जिसमें पान, सुपारी, एक भूरा नारियल, दक्षिणा, केला और/या कुछ फल शामिल थे  और फिर प्रदक्षिणा या परिक्रमा की और पुष्पांजलि कर - फूल चढ़ाए और प्रणाम किया . इस बीच वो बदमाश  चुपके से मेरे स्तन दबाता रहा

गुरुजी--जय लिंगा महाराज।


गुरूजी :  रश्मि  अब तुमने जैसे लिंगा के प्रतिरूप की पूजा की  है  उसी तरह  तुमने अब साक्षात् लिंग की पूजा करनी है  और ये बोलकर गुरूजी खड़े हो गए और मैंने देखा गुरूजी ने  अपनी लुंगी हटाते हुए और गुलाबी टिप के साथ उनके मूसल  लिंग को पूरी तरह से सीधा देखकर हैरान रह गयी । फिर गुरूजी  इसे और अधिक सीधा बनाने के लिए  मुझे देखते हुए इसे कई बार स्ट्रोक किया।

कहानी जारी रहेगी

आगे योनि पूजा में लिंग पूजा की कहानी जारी रहेगी

दीपक कुमार
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tooooooo good bro  yourock
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औलाद की चाह


CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

अपडेट-21

लिंग पूजा-3

रश्मि, एक बात कहना चाहता हूँ। तुम्हारा बदन बहुत मादक है। तुम्हारा पति बहुत ही खुसकिस्मत इंसान है। शादीशुदा औरतों को तुम्हारे बदन से जलन होती होगी।

मैं मुस्कुराइ और  मंत्रमुग्ध हो गुरु जी के लिंग को देखती रही ।

गुरुजी--रश्मि तुम पहले के जैसे प्रणाम की मुद्रा में लेट जाओl

मैं घुटने के बल बैठ गयी और  जब मैं पेट के बल उल्टी लेट जाउ तो मर्दों के सामने मेरी पीठ और नितम्ब नंगे थे । फिर पेट के बल लेट कर मैने प्रणाम की मुद्रा में अपनी दोनों बाँहे सर के आगे कर ली। मेरे फ़र्श में लेटते समय  वो बौना निर्मल मेरे पास ही खड़ा था ।

गुरुजी--अब निर्मल तुम भी  माध्यम यानि रश्मि के उपर लेट जाओl

मैने फिर से अपने उपर निर्मल के बदन का भार और उसका खड़ा लंड मेरे मुलायम नितंबों में महसूस किया। मुझे याद आया  कि मेरे बेडरूम में मेरे पति लूँगी में ऐसे ही मेरे उपर लेटते थे और मैं सिर्फ़ नाइटी पहने रहती थी और अंदर से कुछ नही। मैने अपने उपर काबू रखने की कोशिश की और लिंगा महाराज के उपर ध्यान लगाने की कोशिश की पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ।


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गुरुजी--संजीव ये कटोरा लो और निर्मल के पास रख दो।

मैने देखा संजीव एक छोटा-सा कटोरा लेकर आया और मेरे सर के पास रख दिया। उसमे कुछ सफेद दूध जैसा था और एक चम्मच भी था ।

गुरुजी-- निर्मल तुम रश्मि के लिए पूरे ध्यान से प्रार्थना करो और उसको रश्मि के कान में बोलो। फिर एक चम्मच  यज्ञ रस रश्मि को पिलाओ. ठीक है?

कुमार--जी गुरुजी!

गुरुजी--रश्मि इस बार पहले से थोड़ा अलग करना है।

"क्या गुरुजी?"

मैने लेटे-लेटे ही गुरुजी की तरफ़ सर घुमाया और देखा कि उनकी आँखे पहाड़ की तरह उपर को उठे मेरे नितंबों पर हैं और वो अपने   मूसल लंड को धीरे धीरे सहला रहे हैं । जैसे ही हमारी नज़रें मिली गुरुजी ने मेरी गान्ड से अपनी नज़रें हटा ली।

गुरुजी-- रश्मि निर्मल के रस पिलाने के बाद तुम अपने मन में लिंगा महाराज को प्रार्थना दोहराओगी और फिर पलट जाओगी। ऐसा 6 बार करना है। 3 बार उपर की तरफ़ और 3 बार नीचे की तरफ। ठीक है?

गुरुजी की बात समझने में मुझे कुछ समय लगा और तभी संजीव ने बेहद खुली भाषा में मुझे समझाया कि अब मुझे कितनी बेशर्मी दिखानी होगी।

समीर--मेडम, बड़ी सीधी-सी बात है। गुरुजी के कहने का मतलब है कि अभी तुम उल्टी लेटी हो। निर्मल  को पहली प्रार्थना इसी पोज़िशन में करनी है। फिर आप सीधी पीठ के बल  लेट जाओगी जैसे कि हम बेड पर लेटते हैं। निर्मल को दूसरी प्रार्थना उस पोज़िशन में करनी होगी। ऐसे ही कुल 6 बार प्रार्थना करनी होगी। बस इतना ही। ज़य लिंगा महाराज।

गुरुजी--ज़य लिंगा महाराज। रश्मि मैं जानता हूँ कि एक औरत के लिए ऐसा करना थोडा अभद्र लग सकता है, लेकिन यज्ञ के नियम तो नियम है। मैं इसे बदल नहीं सकता।

गुरुजी की अग्या मानने के सिवा मेरे पास कोई चारा नहीं था। लेकिन उस दृश्य की कल्पना करके मेरे कान लाल हो गये। दूसरी प्रार्थना के लिए मुझे सीधा लेटना होगा और वो बदमाश बौना निर्मल मेरे उपर लेटेगा। पहले भी वह मेरे उपर लेटा था लेकिन तब कम से कम ये तो था कि मेरा मुँह फ़र्श की तरफ़ था। लेकिन अब तो ये ऐसा होगा जैसे कि मैं बेड में सीधी लेटी हूँ और मेरे पति मेरे उपर लेट कर मुझे आलिंगन कर रहे हो और उपर से चार आदमी भी मुझे इस बेशरम हरकत को करते हुए देख रहे होंगे। मेरी नज़रें झुक गयी और मैने प्रणाम की मुद्रा में हाथ आगे करते हुए सर नीचे झुका लिया।


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गुरुजी--ठीक है। निर्मल अब तुम पहली प्रार्थना शुरू करो। सभी लोग ध्यान लगाओ. जय लिंगा महाराज।

निर्मल ने मेरे कान में प्रार्थना कहनी शुरू की। उसका  खड़ा लंड मुझे अपने नितंबों में चुभ रहा था। मैंने नीचे कुछ भी नहीं पहना हुआ था  तो उसका लिंग ज़्यादा अच्छी तरह से महसूस हो रहा था। शायद ऐसा ही निर्मल को भी लग रहा होगा। धीरे-धीरे वह मेरे नितंबों पर ज़्यादा दबाव डालने लगा और हल्के से धक्के लगाने लगा। मैं सोच रही थी की ये इस अवस्था में भी प्रार्थना कैसे कर पा रहा है।

प्रार्थना कहने के बाद अब  निर्मल ने कटोरे में से एक चम्मच यज्ञ रस मुझे पिलाया। मेरी पीठ में उसकी हरकतों से मेरे होंठ खुले हुए ही थे। निर्मल  ने  जो  रस मुझे पिलाया उस रस का स्वाद अच्छा था। उसके बाद मैंने आँखें बंद की और प्रार्थना को लिंगा महाराज का ध्यान करते हुए मन ही मन दोहरा दिया।

संजीव --मैडम, अब निर्मल उतरेगा तो  आप सीधी हो कर  पीठ के बल लेट जाना।

 फिर निर्मल  मेरी पीठ से उतर गया l

अब मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। मुझे सीधा लेटकर ऊपर की तरफ़ मुँह करना था। जब मैं पलटी तो मुझे समझ आ रहा था कि इस हाल में मैं बहुत मादक दिख रही हूँ। मैंने ख़्याल किया की अब संजीव , निर्मल , उदय और राजकमल चारो  मेरे जवान बदन को ललचाई नज़रों से देख रहे थे। मैंने नज़रें उठाई तो देखा की गुरुजी भी मुस्कुराते हुए मुझे ही देख रहे थे।

गुरुजी-- निर्मल अब तुम दूसरी प्रार्थना करोगे। रश्मि, माध्यम के रूप में तुम  निर्मल को पूरी तरह से अपने बदन के ऊपर चढ़ाओगी। विधान ये है कि माध्यम को भक्त के दिल की धड़कनें सुनाई देनी चाहिएl

इन तीन मर्दों के सामने ऐसे लेटे हुए मुझे इतनी शर्मिंदगी महसूस हो रही थी की क्या बताऊँ। मैंने गुरुजी की बात में सर हिलाकर हामी भर दी। निर्मल मेरे ऊपर चढ़ने को बेताब था और जैसे ही वह मेरे ऊपर चढ़ने लगा मैंने शरम से आँखें बंद कर लीं। मुझे बहुत  निरादर और शर्म महसूस हो रही थी । औरत होने की स्वाभाविक शरम से मैंने अपनी छाती के ऊपर बाँहें आड़ी करके रखी हुई थीं।

संजीव --मैडम, प्लीज़ अपने हाथ प्रणाम की मुद्रा में सर के आगे लंबे करो।

"वैसे करने में मुझे अनकंफर्टेबल फील हो रहा है।"

मैंने कह तो दिया लेकिन बाद में मुझे लगा की मैंने बेकार ही कहा क्यूंकी गुरुजी ने अपने शब्दों से मुझे और भी ह्युमिलियेट कर दिया।

समीर--लेकिन मैडम...।


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गुरुजी--रश्मि, हम सबको मालूम है कि अगर एक मर्द तुम्हारे बदन के ऊपर चढ़ेगा तो तुम अनकंफर्टेबल फील करोगी। लेकिन हर कार्य का एक उद्देश्य होता है। अगर तुम अपनी छाती के ऊपर बाँहें रखोगी तो तुम निर्मल के दिल की धड़कनें कैसे महसूस करोगी? अगर तुम्हारी छाती उसकी छाती से नहीं मिलेगी तो एक माध्यम के रूप में उसकी प्रार्थना के आवेग को कैसे महसूस करोगी?

वो थोड़ा रुके. पूजा घर के उस कमरे में एकदम चुप्पी छा गयी थी। वह तीनो मर्द मेरी उठती गिरती चूचियों के ऊपर रखी हुई मेरी बाँहों को देख रहे थे।

गुरुजी--अगर ये तंत्र यज्ञ होता और तुम माध्यम के रूप में होती तो मैं तुम्हारे कपड़े उतरवा लेता क्यूंकी उसका यही नियम है।

उन मर्दों के सामने ये सब सुनते हुए मैं बहुत अपमानित महसूस कर रही थी और अपने को कोस रही थी की मैंने चुपचाप हाथ आगे को क्यूँ नहीं कर दिए. ये सब तो नहीं सुनना पड़ता। अब और ज़्यादा समय बर्बाद ना करते हुए मैंने अपने हाथ सर के आगे प्रणाम की मुद्रा में कर दिए. अब बाँहें ऐसे लंबी करने से मेरी  चूचियाँ ऊपर को उठकर तन गयीं और भी ज़्यादा आकर्षक लगने लगीं।

जल्दी ही  निर्मल मेरे ऊपर चढ़ गया और मैंने शरम से अपने जबड़े भींच लिए. मेरे बेडरूम में जब मैं ऐसे लेटी रहती थी और मेरे पति मेरे ऊपर चढ़ते थे तो पहले वह मेरी गर्दन को चूमते थे, फिर कंधे पर और फिर मेरे होठों का चुंबन लेते थे। उनका एक हाथ मेरी नाइटी या ब्लाउज के ऊपर से मेरी चूचियों पर रहता था और मेरे निपल्स को मरोड़ता था। उसके बाद वह मेरी नाइटी या पेटीकोट जो भी मैंने पहना हो, उसको ऊपर करके मेरी गोरी टाँगों और जाँघों को नंगी कर देते थे, चाहे उनका मन संभोग करने का नहीं हो और सिर्फ़ थोड़ा बहुत प्यार करने का हो तब भी। अभी  निर्मल  मेरे ऊपर चढ़ने से मुझे अपने पति के साथ बिताए ऐसे ही लम्हों की याद आ गयी।

मेरी बाँहें सर के पीछे लंबी थीं इसलिए निर्मल के लिए कोई रोक टोक नहीं थी और उसने मेरे बदन के ऊपर अपने को एडजस्ट करते समय मेरी दायीं चूची को अपनी कोहनी से दो बार दबा दिया और यहाँ तक की अपनी टाँग एडजस्ट करने के बहाने  ऊपर से मेरी चूत को भी छू दिया। उसने अपने को मेरे ऊपर ऐसे एडजस्ट कर लिया जैसे चुदाई का परफेक्ट पोज़ हो । कमरे में चार मर्द और भी थे जो हम दोनों को देख रहे थे और मैं उनकी आँखों के सामने ऐसे लेटी हुई बहुत अपमानित महसूस कर रही थी।

अब निर्मल ने मेरे कान में प्रार्थना कहनी शुरू की और इसी बहाने मेरे कान को चूम और चाट लिया। वैसे तो मैंने शरम से अपनी आँखें बंद कर रखी थी लेकिन मैं समझ रही थी की संजीव  जो मेरे इतना पास बैठा हुआ था उसने इस बौने की बेशर्म हरकतें ज़रूर देख ली होंगी।

अब निर्मल ने मुझे चम्मच से यज्ञ रस पिलाया और पिलाते समय उसने अपना दायाँ हाथ मेरी बायीं चूची के ऊपर टिकाया हुआ था और वह अपनी बाँह से मेरे निप्पल को दबा रहा था। निर्मल  ने फिर से रस पिलाने में उसकी मदद की और फिर मैंने लिंगा महाराज को उसकी प्रार्थना दोहरा दी। मैं ही जानती थी की मैंने लिंगा महाराज से क्या कहा क्यूंकी प्रार्थना के नाम पर वह बौना खुलेआम  मेरे बदन से जो छेड़छाड़ कर रहा था उससे मैं फिर से कामोत्तेजित होने लगी थी।

ऐसे करके कुल 6 बार प्रार्थना हुई और हर बार मुझे ऊपर नीचे को पलटना पड़ा और निर्मल आगे से और पीछे से मेरे ऊपर चढ़ते रहा। अंत में ना सिर्फ़ मैं पसीने से लथपथ हो गयी बल्कि मुझे बहुत तेज ओर्गास्म भी आ गया। बाद-बाद में तो निर्मल कुछ ज़्यादा ही कस के आलिंगन करने लगा था और एक बार तो उसने मेरे नरम होठों से अपने मोटे होंठ भी रगड़ दिए और चुंबन लेने की कोशिश की। लेकिन मैंने अपना चेहरा हटाकर उसे चुंबन नहीं लेने दिया। वह मेरे ऊपर धक्के भी लगाने लगा था और मेरे पूरे बदन को उसने अच्छी तरह से फील कर लिया और मेरे बदन पर निर्मल को चढ़ाते उतारते समय  संजीव  ने मेरे निचले बदन पर जी भरके हाथ फिरा लिए. निर्मल की मदद के बहाने उसने कम से कम दो या तीन बार मेरे नितंबों को पकड़ा और मेरी जाँघों पर और मेरे स्तनों पर  तो ना जाने कितनी बार अपना हाथ फिराया।

मैंने  पैंटी नहीं पहनी थी तो तेज ओर्गास्म आने के बाद मेरी चूत का रस मेरी जांघों के अंदरूनी हिस्से में बहने लगा और वो आसान और  मेरी टाँगे गीली  हो गयी । प्रार्थना पूरी होने के बाद गुरुजी और संजीव  ने जय लिंगा महाराज का जाप किया और आख़िरकार निर्मल मेरे बदन से उतर गया।


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समीर--गुरुजी कमरा बहुत गरम हो गया है। हम सब को पसीना आ रहा है। थोड़ा विराम कर लेते हैं गुरुजीl

गुरुजी--हाँ थोड़ा विराम ले सकते हैं लेकिन मध्यरात्रि तक ही शुभ समय है तब तक यज्ञ पूरा हो जाना चाहिएl

तब तक मैं फ़र्श से उठ के बैठ गयी थी

"गुरुजी, एक बार बाथरूम जाना चाहती हूँ।"

गुरुजी--ज़रूर जाओ रश्मि। लेकिन 5 मिनट में आ जाना। अब अनुष्ठान में लिंगपूजा  की बारी है।

मैं बाथरूम गयी और मुँह धोया। फिर अपनी चूत जांघों और टांगो को भी धो लिया, जो मेरे चूतरस से चिपचिपी हो रखी थी ।

गुरुजी--अब हम यज्ञ के आख़िरी पड़ाव पर हैं और रश्मि बेटी को इसे पूरा करना है।

मैं -जी गुरुजीl

गुरुजी--संजीव, रश्मि  को भोग  दो। नियम ये है कि रश्मि के  यज्ञ में बैठने से पहले भोग गृहण करना होगा।

संजीव --जी गुरुजीl

गुरुजी- संजीव अब तुम चारो की जर्रोरत नहीं है , तुम अब थोड़ी देर आराम कर सकते हो!

गुरुजी ने आगे पूजा के बारे में बताना शुरू कर दिया।

गुरुजी--रश्मि बेटी, अब हम लिंगा महाराज की पूजा करेंगे। इस पूजा के लिए माध्यम की ज़रूरत पड़ती है। अब तुम्हारे लिए माध्यम मैं बनूंगा। ठीक है?

मैं --जी गुरुजीl

गुरुजी- रश्मी, तुम्हारा ध्यान सिर्फ़ और सिर्फ़ पूजा में होना चाहिए. तुम्हें ध्यान नहीं भटकाना है। इसलिए सिर्फ़ पूजा पर ध्यान लगाना। जय लिंगा महाराज।

मैं  सर हिलाकर हामी भरी और खड़ी हो गयी। अब क्या करना है उसे मालूम नहीं था। गुरुजी ने मुझे कुछ समझाया  और इशारा किया। गुरूजी मुझे  वहाँ पर ले  गए जहाँ पर मैं माध्यम के रूप में फ़र्श पर लेटी थी और वो खुद  फ़र्श में  पीठ के बल लेट गए । और मैं उनके ऊपर  पेट के बल लेट गयी  मेरे छाती उनकी छाती पर चिपक गयी और उनका बड़ा मूसल लंड उनकी धोती के अंदर  मेरे योनि से टकरा रहा था और अब मेरे नितंब ऊपर को उठे हुए बहुत आकर्षक लग रहे थे।  गुरूजी  मुझे पूजा के लिए फूल लेले हो कहा   तो मुझे अपने ऊपर  बहुत लज्जा आयी और मेरे चेहरा  शरम से लाल हो  गया । गुरूजी  में मुझे  प्रणाम की मुद्रा में हाथ आगे को करने को कहा।

गुरुजी--रश्मि अब  मैं तुम्हारे कान  में पाँच बार मंत्र बोलूँगा और तुम उसे ज़ोर से लिंगा महाराज के सामने बोल देना। उसके बाद तुम मुझे अपनी इच्छा बताओगी और मैं उसे लिंगा महाराज को बोल दूँगा। ठीक है?

मैं -जी गुरुजीl

अब गुरुजी ने जय लिंगा महाराज का जाप किया और  मैं उनक ऊपर लेट गयी । गुरुजी का लंबा चौड़ा शरीर था, उनके शरीर से पूरी तरह समा गयी। मैं सोचने लगी की माध्यम के रूप में मैं फ़र्श में लेटी थी और निर्मल ने मेरे ऊपर चढ़कर मुझसे मज़े लिए थे। लेकिन अब अलग ही हो रहा था। गुरुजी फ़र्श पर  लेते हुए थे  और  मैं उनके   ऊपर  थी  मेरे मन में आया की गुरुजी से पूछूं की ऐसा क्यूँ? पर पूछने की मेरी हिम्मत नहीं हुईl

गुरुजी-- रश्मि  बेटी तुम्हें अजीब लगेगा, पर यज्ञ का यही नियम है। मैं अपना वज़न तुम पर नहीं डालूँगा। तुम बस पूजा में ध्यान लगाओl

आगे योनि पूजा में लिंग पूजा की कहानी जारी रहेगी


दीपक कुमार
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खूबसूरत वर्णन।
अपडेट की प्रतीक्षा में।
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औलाद की चाह

CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

अपडेट-22

लिंग पूजा-4

अब गुरुजी ने जय लिंगा महाराज का जाप किया और मैं उनक ऊपर लेट गयी। गुरुजी का लंबा चौड़ा शरीर था, उनके शरीर से पूरी तरह समा गयी। मैं सोचने लगी की माध्यम के रूप में मैं फ़र्श में लेटी थी और निर्मल ने मेरे ऊपर चढ़कर मुझसे मज़े लिए थे। लेकिन अब अलग ही हो रहा था। गुरुजी फ़र्श पर लेते हुए थे और मैं उनके ऊपर थी मेरे मन में आया की गुरुजी से पूछूं की ऐसा क्यूँ? पर पूछने की मेरी हिम्मत नहीं हुईl

गुरुजी—रश्मि बेटी तुम्हें अजीब लगेगा, पर यज्ञ का यही नियम है। मैं अपना वज़न तुम पर नहीं डालूँगा। तुम बस पूजा में ध्यान लगाओ ।

गुरुजी मेरे ऊपर लेटे हुए थे और उन्होंने अपनी धोती ठीक करने के बहाने गुरुजी ने अपने बदन को मेरे ऊपर ऐसे एडजस्ट किया की उनका श्रोणि भाग (पेल्विक एरिया) ठीक मेरे नितंबों के ऊपर आ गया। अब गुरुजी ने मेरे कान में मंत्र पढ़ना शुरू किया। मैंने देखा की वह मेरी गांड में हल्के से धक्का लगा रहे हैं।


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पूजा काल में गुरु जी और उनके शिष्य अन्य मंत्रो के अतिरिक्त साथ-साथ में ॐ नमः लिंग देव मंत्र का जाप करते रहे।

गुरु-जी: बहुत बढ़िया बेटी! अब हम लिंग से प्राथना करेंगे। प्रार्थना के लिए हाथ जोड़ो। ध्यान केंद्रित करना।

गुरु जी: हे लिंग महाराज!

मैं: हे लिंग महाराज!

गुरु जी: हे लिंगा महाराज! मैं स्वयं को आपको अर्पित करता हूँ...

मैं: हे लिंगा महाराज! मैं खुद को आपको समर्पित करती हूँ ...

गुरु जी: हे लिंगा महाराज! मेरा मन, मेरा शरीर, मेरी योनि...तुम्हें सब कुछ...समर्पित करता हूँ।

मैं: हे लिंगा महाराज! मेरा मन, मेरा शरीर, अपनी । योनि... आपको सब कुछ...आपको ।समर्पित करती हूँ।

गुरु-जी: हे लिंगा महाराज! कृपया इस पूजा को स्वीकार करें!

मैं: हे लिंगा महाराज! कृपया आप मेरी इस योनि पूजा को स्वीकार करें!

गुरु-जी: हे लिंगा महाराज! मैं, रश्मि सिंह पत्नी अनिल सिंह, इस प्रकार आपके पवित्र आशीर्वाद के लिए आपके सामने आत्मसमर्पण कर रहा हूँ। कृपया मुझे निराश न करें। जय लिंग महाराज!



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मैं: हे लिंगा महाराज! मैं, रश्मि  सिंह, अनिल सिंह की पत्नी-इस प्रकार आपके पवित्र आशीर्वाद के लिए खुद को आपके सामने आत्मसमर्पण कर रही हूँ। कृपया मुझे निराश न करें। जय लिंग महाराज!

उसके बाद मैं ये देखकर शॉक्ड हो गयी की गुरुजी भी मेरे बदन से आकर्षित होकर उनका लिंग कड़ा हो गया था और वह भी मेरे नितम्बो पर लंड से हलके धक्क्के मार रहे थे, फिर मुझे लगा शायद ये मेरा वहाँ है और मैंने गुरुजी का बताया हुआ मंत्र ज़ोर से बोल दिया। ऐसा पाँच बार करना था। दो बार मन्त्र बोलने के बाद में तो मेरे नितंबों पर गुरुजी का धक्का लगाना भी साफ महसूस होने लगा।

मंत्र जाप खत्म होने के बाद अब मुझे अपनी इच्छा गुरुजी को बतानी थी। गुरुजी अपने चेहरे को मेरे चेहरे के बिल्कुल नज़दीक़ ले गये, उनके मोटे होंठ मेरे गालों को छू रहे थे। गुरुजी ने अपने दोनों हाथ मेरी दोनों तरफ फर्श में रखे हुए थे। अब उन्होंने अपना दायाँ हाथ मेरे कंधे में रख दिया और अपना मुँह उसके चेहरे से चिपका कर मेरी इच्छा सुनने लगे।

मैं: लिंग महाराज कृपया मुझे उर्वर बनाएँ और मुझे मेरे गर्भ से उत्पन्न एक बच्चे का आशीर्वाद दें...

लिंगा महाराज से मेरी इच्छा कह देने के बाद गुरुजी मेरे बदन से उठ गये। मैंने उसकी तरफ देखा तो मैंने साफ-साफ देखा की उनका खड़ा लंड धोती को बाहर तना हुआ खड़ा था । मेरे उठने से पहले ही उन्होंने जल्दी से अपने लंड को धोती में पुनः एडजस्ट कर लिया।

गुरुजी–रश्मि बेटी, तुमने पूजा करते समय अपना पूरा ध्यान लगाया?

मैं–हाँ गुरुजी. मैंने गहरी सांस लेते हुए बोला!

मैंने ख्याल किया मेरी आवाज़ कामोत्तेजना की वजह से। कांप रही थी, शायद! लेकिन मैं गहरी साँसे ले रही थी

गुरुजी–तो फिर तुम्हारी आवाज़ में कंपन क्यूँ है?

मैं गहरी साँसें ले रही थी, जैसे कि अगर कोई आदमी उसके ऊपर लेटे तो कोई भी औरत अघरि सांस लेती। लेकिन गुरुजी का स्वर कठोर था।

मैं–मेरा विश्वास कीजिए गुरुजी. मैं सिर्फ अपनी पूजा के बारे में सोच रही थी।

गुरुजी–तुम झूठ क्यूँ बोल रही हो बेटी?

कमरे में बिल्कुल चुप्पी छा गयी। मैं भी हैरान थी की ये हो क्या रहा है?

गुरुजी–रश्मि मैंने तुम्हे कितनी बार बोला है तुम्हे अपना मन अपने लक्ष्य की और लगाना हैं और दूसरी बातो को नजर नदाज करना है परन्तु अभी भी तुम भटक जाती हो और यही तुम्हारी असफलता का मुख्य कारण है। तुम्हारा मन स्थिर नहीं रहता और अन्य चीज़ों में ज़्यादा उत्सुक रहता है। वही यहाँ पर भी हुआ। तुम्हारा मन पूजा की बजाय मेरे बदन के तुम्हारे बदन को छूने पर लगा हुआ था।

मैं –गुरुजी मेरा विश्वास कीजिए. मैं सिर्फ प्रार्थना पर ध्यान लगा रही थी परन्तु जब आप मुझे छू रहे थे तो मुझे छूने का एहसास हो रहा था जिसे मैं नजरअंदाज करने का पूरा प्रयास कर रही थी । अगर मुझ से कोई भूल हुई है तो आप कृपया मुझे क्षमा करे!

गुरुजी–रश्मि यहाँ आओ और मुझे पता करना होगा की तुम्हारा मन भटका हुआ था कि नहीं। अगर तुम्हारा मन भटका हुआ था नहीं तो हमे ये प्रक्रिया दोहरानी होगी!

मैं हैरान थी। गुरुजी ये कैसे पता करेंगे? मैं सर झुकाए खड़ी थी क्योंकि मेरा ध्यान एक मर्द के अपने बदन को छूने पर था।

"लेकिन गुरुजी कैसे? मेरा मतलब।कैसे?"

गुरुजी–ये तो आसान है। मैं तुम्हारे निप्पल चेक करूँगा और मुझे पता चल जाएगा की तुम कामोत्तेजित हुई थी या नहीं।

एक मर्द के मुँह से ऐसी बात सुनकर हम दोनों हक्की बक्की रह गयीं। लेकिन फिर मुझे समझ आया की गुरुजी ने अपने अनुभव से एकदम सही निशाना लगाया है। क्यूंकी अगर किसी अगर ये पता लगाना हो की औरत की वह कामोत्तेजित है या नहीं तो ये बात उसके निप्पल सही-सही बता सकते हैं।

मैं शरम से लाल हो गयी थी। अब मुझे भी समझ आ गया था की गुरुजी को बेवक़ूफ़ नहीं बना सकती क्यूंकी वह बहुत अनुभवी और बुद्धिमान थे।

में–क्षमा चाहती हूँ गुरुजी. आप सही हैं।

गुरुजी–हम्म्म ......देख लिया बेटी तुमने, लोगों को बहलाने का कोई मतलब नहीं है। हमेशा सच बताओ. ठीक है?

अब मैंने सिर्फ सर हिला दिया। मैं समझ गयी थी की गुरुजी जैसे प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले आदमी के सामने इस मेरी क्या हालत हो जाती और उनके सामने मेरा झूठ कुछ पल भी नहीं ठहर पाता ।

हमने एक बार फिर फूरी मन्त्र बोलने की प्रक्रिया दोहराई और इस बार मैंने पूजा पर ध्यान दिया नाकि गुरूजी के धक्को पर ।


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गुरूजी: रश्मि आपको याद रखना चाहिए कि यह एक पवित्र अनुष्ठान है। इसे किसी 'सांसारिक' इच्छाओं के साथ भ्रमित नहीं होना चाहिए। "

"मैं समझ गयी गुरुजी मैं..." गुरुजी ने धीरे से अपना हाथ उठाकर और मुझे रुकने का इशारा करते हुए मेरे वाक्य बीच में काट दिया।

गुरूजी: रश्मि अब अप्प आप लिंगम पूजा की शक्तियों को अनुभव करेंगी तो अब हम लिंगा पूजा करेंगे। " उन्होंने मुझे कुछ आश्वासन के लिए देखा, मेरा दिमाग भारी था ।

मुझे जवाब देने की जल्दी थी, मुझे ठीक-ठीक पता था कि मुझे क्या चाहिए।

"मैं जैसा आप कहेंगे वैसा करुँगी गुरुजी मैं आपकी शिक्षाओं से प्रभावित हूँ। योनि पूजा अनुष्ठानों ने मुझे उत्साहित किया है।"


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गुरुजी मेरे उत्साह पर मुस्कुराए बिना नहीं रह पाए।

गुरूजी- रश्मि अब मेरे पीछे दोहराओ कृपया इस लिंग पूजा को स्वीकार करें और मुझे उपजाऊ बनाएँ और मेरे गर्भ को एक बच्चे के रूप में आशीर्वाद दें...

मैं:-कृपया इस लिंग पूजा को स्वीकार करें और मुझे उपजाऊ बनाएँ और मेरे गर्भ को एक बच्चे के रूप में आशीर्वाद दें...

गुरु-जी: मैं, रश्मि सिंह पत्नी अनिल सिंह, इस प्रकार आपके पवित्र आशीर्वाद के लिए आपके सामने आत्मसमर्पण कर रहा हूँ। कृपया मुझे निराश न करें। जय लिंग महाराज!

मैं: मैं, रश्मि  सिंह, अनिल सिंह की पत्नी-इस प्रकार आपके पवित्र आशीर्वाद के लिए खुद को आपके सामने आत्मसमर्पण कर रही हूँ। कृपया मुझे निराश न करें। जय लिंग महाराज!

अब गुरुजी ने अपने बैग से लिंगा महाराज के दो प्रतिरूप निकाले। वह दिखने में बिल्कुल वैसे ही थे जिसकी हम यहाँ पूजा कर रहे थे।

गुरुजी–संजीव बेल के पत्ते, दूध, गुलाब जल और शहद रश्मि को दो और रश्मि अग्नि कुंड में थोड़ा घी डाल दो।

मैंने वैसा ही किया और गुरुजी उनसे कुछ मिश्रण बनाने लगे। उन्होंने बेल के पत्तों को कूटकर शहद में मिलाया और उसमें बाकी चीज़ें मिलाकर एक गाढ़ा द्रव्य तैयार किया। फिर लिंगा महाराज के एक प्रतिरूप पर वह द्रव्य चढ़ाने लगे। उन्होंने उस प्रतिरूप को द्रव्य से नहलाकर हाथ से उसमें सब जगह मल दिया। फिर दूसरे प्रतिरूप को उन्होंने अग्नि में शुद्ध किया और गुलाब जल से धो दिया। उसके बाद दोनों प्रतिरूपों की पूजा की। मैं चुपचाप ये सब देख रही थी ।

गुरुजी–रश्मि, यहाँ आओ और अग्नि के पास खड़ी रहो। अपनी आँखें बंद कर लो और मैं जो मंत्र पढ़ूँ, अग्निदेव के सम्मुख उनका जाप करो।

घी डालने से अग्निकुण्ड में लपटें तेज हो गयी थीं। गुरुजी ज़ोर-ज़ोर से मंत्र पढ़ने लगे। मैं मंत्रों को दोहरा रही थी। पांच मिनट तक यही चलता रहा।

गुरुजी–रश्मि अब ये यज्ञ का बहुत महत्त्वपूर्ण भाग है। तुम अपना पूरा ध्यान इस पर लगाओ. लिंगा महाराज के ये दोनों प्रतिरूप टूयमहरे अंदर की योनि को जाग्रत करेंगे। इसे 'जागरण क्रिया' कहते हैं। तुम्हें इस प्रतिरूप से पवित्र द्रव्य को पीना है और साथ ही साथ मैं दूसरे प्रतिरूप को तुम्हारे बदन में घुमाकर तुम्हें ऊर्जित करूँगा।

मैंने सर हिला दिया पर मेरे चेहरे से साफ पता लग रहा था कि मुझे कुछ समझ नहीं आया। लेकिन गुरुजी से पूछने की उसकी हिम्मत नहीं थी।

मैं यज्ञ के अग्निकुण्ड के सामने हाथ जोड़े खड़ी थी, उसने आँखें बंद की हुई थीं। गुरुजी उसके बगल में खड़े थे।

गुरुजी ज़ोर से मंत्रों का उच्चारण कर रहे थे। अब उन्होंने लिंगा महाराज के पवित्र द्रव्य से भीगे हुए प्रतिरूप को मेरे मुँह में लगाया। मैंने पहले तो थोड़े से ही होंठ खोले, लेकिन लिंगा प्रतिरूप की गोलाई ज़्यादा होने से उसे थोड़ा और मुँह खोलना पड़ा। गुरुजी ने लिंगा प्रतिरूप को मेरे मुँह में डाल दिया और मैं उसे चूसने लगी। प्रतिरूप में लगे हुए द्रव्य का स्वाद अच्छा लग रहा था जिससे मैं उसे तेज़ी से चूस रही थी। गुरुजी ने लिंगा प्रतिरूप को धीरे-धीरे मेरे मुँह में और अंदर घुसा दिया और अब वह मुझे बड़ा अश्लील लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे कोई औरत किसी मर्द का लंड चूस रही हो।

गुरुजी–रश्मि! लिंगा को अपने हाथों से पकड़ो और ध्यान रहे इस 'जागरण क्रिया' के दौरान ये तुम्हारे मुँह में ही रहना चाहिए.


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अब मैंने अपने दोनों हाथों से लिंगा प्रतिरूप को पकड़ लिया और चूसने लगी। गुरुजी की आज्ञा के अनुसार मैंने अपनी आँखें बंद ही रखी थीं। आँखें बंद करके लिंगा को चूसती हुई मैं अवश्य ही बहुत अश्लील लग रही होउंगी, शरम से मैंने अपनी गर्दन झुका ली। गुरुजी मेरी और गौर से देख रहे थे। उन्हें इस दृश्य को देखकर बहुत मज़ा आ रहा होगा की एक सुंदर महिला, तने हुए लंड की आकृति के लिंगा को मज़े से मुँह में चूस रही है। फिर मैंने अपना चेहरा ऊपर को उठाया और लिंगा से थोड़ा और द्रव्य बहकर मेरे मुँह में चला गया। लिंगा को चूसते हुए मैं बहुत कामुक आवाज़ निकाल रही थी।

कहानी जारी रहेगी
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शानदार जबरदस्त जिंदाबाद कहानी की घटनाएं इतनी अच्छी लेख की पढ़ने वाले को हिलने ना दे।
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औलाद की चाह


CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

अपडेट-23

लिंग पूजा-5- 'जागरण क्रिया"

गुरुजी ज़ोर से मंत्रों का उच्चारण कर रहे थे। अब उन्होंने लिंगा महाराज के पवित्र द्रव्य से भीगे हुए प्रतिरूप को मेरे मुँह में लगाया। मैंने पहले तो थोड़े से ही होंठ खोले, लेकिन लिंगा प्रतिरूप की गोलाई ज़्यादा होने से उसे थोड़ा और मुँह खोलना पड़ा। गुरुजी ने लिंगा प्रतिरूप को मेरे मुँह में डाल दिया और मैं उसे चूसने लगी। प्रतिरूप में लगे हुए द्रव्य का स्वाद अच्छा लग रहा था जिससे मैं उसे तेज़ी से चूस रही थी। गुरुजी ने लिंगा प्रतिरूप को धीरे-धीरे मेरे मुँह में और अंदर घुसा दिया और अब वह मुझे बड़ा अश्लील लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे कोई औरत किसी मर्द का लंड चूस रही हो।

गुरुजी–रश्मि! लिंगा को अपने हाथों से पकड़ो और ध्यान रहे इस 'जागरण क्रिया' के दौरान ये तुम्हारे मुँह में ही रहना चाहिए।


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अब मैंने अपने दोनों हाथों से लिंगा प्रतिरूप को पकड़ लिया और चूसने लगी। गुरुजी की आज्ञा के अनुसार मैंने अपनी आँखें बंद ही रखी थीं। आँखें बंद करके लिंगा को चूसती हुई मैं अवश्य ही बहुत अश्लील लग रही होउंगी, शरम से मैंने अपनी गर्दन झुका ली। गुरुजी मेरी और गौर से देख रहे थे। उन्हें इस दृश्य को देखकर बहुत मज़ा आ रहा होगा की एक सुंदर महिला, तने हुए लंड की आकृति के लिंगा को मज़े से मुँह में चूस रही है। फिर मैंने अपना चेहरा ऊपर को उठाया और लिंगा से थोड़ा और द्रव्य बहकर मेरे मुँह में चला गया। लिंगा को चूसते हुए मैं बहुत कामुक आवाज़ निकाल रही थी।

लिंगा का प्रतिरूप चूसते हुए मुझे अपनी एक पुरानी घटना याद आ गयी। मैंने अपने पति का लंड सिर्फ एक बार ही चूसा था और तब भी मैंने असहज महसूस किया था। शादी के बाद जब पहली बार जब मेरे पति ने मुझसे लंड चूसने को कहा तो मैं बहुत शरमा गयी और तुरंत मना कर दिया। फिर और भी कई दिन उन्होंने मुझसे इसके लिए कहा, पर जब देखा की मेरा मन नहीं है तो ज़्यादा ज़ोर नहीं डाला। लेकिन बारिश के एक दिन मैं एक सेक्सी नॉवेल पढ़ रही थी और पढ़ते-पढ़ते कामोत्तेजित हो गयी।


जब मेरे पति अनिल काम से घर लौटे तो मेरा सेक्स करने का बहुत मन हो रहा था। लेकिन वह थके हुए थे और उनका मूड नहीं था। उस दिन मैं जानबूझकर देर से नहाने गयी और मैंने ध्यान रखा की जब मैं बाथरूम से बाहर आऊँ तो उस समय मेरे पति बेड में हों। मैं ड्रेसिंग टेबल के पास गयी और वहाँ खड़ी होकर नाइटी के अंदर से अपनी पैंटी उतार दी। ताकि मेरे पति को कामुक नज़ारा दिखे और मैं भी शीशे में उनका रिएक्शन देख सकूँ। मेरी ये अदा काम कर गयी क्यूंकी जब मैं बेड में उनके पास आई तो देखा पाजामे में उनका लंड अधखड़ा हो गया है।


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लेकिन वह दिखने से ही थके हुए लग रहे थे और एक आध चुंबन लेकर सोना चाह रहे थे। लेकिन मैं तो चुदाई के लिए बेताब हो रखी थी। वह लेटे हुए थे और मैं उनके बालों में उंगलियाँ फिराने लगी और अपनी नाइटी भी ऐसे एडजस्ट कर ली की मेरी बड़ी चूचियाँ उनके चेहरे के सामने आधी नंगी रहें। वैसे तो मैं, ज़्यादातर औरतों की तरह बिस्तर में पहल नहीं करती थी। पर उस दिन अपने पति को कामोत्तेजित करने के लिए बेशरम हो गयी थी। अब मेरे पति भी थोड़ा एक्साइटेड होने लगे और उन्होंने मेरी नाइटी के अंदर हाथ डाल दिया।

मैं इतनी बेताब हो रखी थी की मैंने अपनी जांघों तक नाइटी उठा रखी थी। वह मेरी नंगी मांसल जांघों में हाथ फिराने लगे। लेकिन मैंने देखा की उनका लंड तन के सख़्त नहीं हो पा रहा है। फिर मेरे पति ने लाइट ऑफ कर दी, तब तक मेरे बदन में सिर्फ मंगलसूत्र रह गया था और मैं बिल्कुल नंगी हो गयी थी। मैं अपने हाथों से उनके लंड को सहलाने लगी ताकि वह तन के खड़ा हो जाए।

उन्होंने कहा की मुँह में ले के चूसो शायद तब खड़ा हो जाए. मैंने मना नहीं किया और उस दिन पहली बार लंड चूसा। सच कहूँ तो ऐसा करना मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा और दूसरे दिन मैंने अपने पति से ऐसा कह भी दिया। लेकिन उस दिन तो मेरा लंड चूसना काम कर गया क्यूंकी चूसने से उनका लंड खड़ा हो गया और फिर हमने चुदाई का मज़ा लिया।


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जैसे आज मैं लिंगा के प्रतिरूप को चूस रही थी, उस दिन मैंने भी अपने पति के लंड को चूसा और चाटा था। उसके प्री-कम से लंड चिकना हो गया था और चूसते समय मेरे मुँह से भी वैसी ही कामुक आवाज़ें निकल रही थीं। गुरुजी अब मेरे पीछे आ गये और लिंगा के दूसरे प्रतिरूप को मेरे बदन में छुआकर मंत्र पढ़ने लगे।

वो मेरे बदन में एक जगह पर लिंगा को लगाते और मंत्र पढ़ते फिर दूसरी जगह लगाते और मंत्र पढ़ते। ऐसा लग रहा था जैसे कोई जादूगर जादू कर रहा हो। सबसे पहले उन्होंने मेरे सर में लिंगा को लगाया फिर गर्दन में और फिर उसकी पीठ में। जब गुरुजी ने मेरी पीठ में लिंगा को छुआया तो मेरे बदन को एक झटका-सा लगा।

गुरुजी मेरे पीछे खड़े थे और जैसे ही लिंगा मेरी कमर में पहुँचा उन्होंने लिंगा मेरे नितम्बो की तरफ किया तो मेरी स्कर्ट नीचे को सरका दी। मैंने हड़बड़ा कर लिंगा को चूसना बंद कर दिया और अब मैं लिंगा को मुँह से बाहर निकालने ही वाली थी। तभी गुरुजी ने कहा।

गुरुजी–बेटी, जैसा की मैंने तुमसे कहा था, तुम जो कर रही हो उसी पर ध्यान दो। मैं तुम्हें बता दूँ की लिंगा से ऊर्जित करने की इस प्रक्रिया में किसी अंग के ऊपर वस्त्र नहीं होने चाहिए. उस समय मैंने केवल चोली पहनी हुई थी और मेरी पीठ पर मेरी स्कर्ट भी कमरबंद की तरह बंधी हुई थी।

ऐसा कहते हुए गुरुजी मेरा रिएक्शन देखने के लिए रुके और जब उन्होंने देखा की वह उनकी बात समझ गयी है तो उन्होंने निर्मल की तरफ देखा।

गुरुजी–निर्मल लिंगा में थोड़ा द्रव्य डाल दो।

"जी गुरुजी!"


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निर्मल साइड में था, मेरी पीठ में पीछे से रोशनी पड़ रही थी क्योंकि मेरी चाय मेरे सामने बन रही थी है। गुरुजी ने मेरी स्कर्ट कमर के नीचे मेरी जांघो पर खींच दी थी। मेरी पेंटी पहले ही उत्तरी हुई थी गुरुजी सहित सभी पांचो मर्दो को मेरी नग्न गांड और नितम्ब देखकर मज़ा आ रहा होगा।

निर्मल का ध्यान भी मेरी नग्न गांड पर था और जब उसने द्रव्य नहीं डाला तो गुरूजी ने उसे फिर से पुकारा 

गुरुजी–देर मत करो। यज्ञ का शुभ समय निकल ना जाए.  निर्मल द्रव्य डालो।

फिर नृमल ने जल्दी से द्रव्य का कटोरा लिया और मेरे पास आ गया। मैंने मुँह से लिंगा को बाहर निकाल लिया औरमैं हाँफ रही थी। मेरी आँखें अभी भी बंद थीं। उसने लिंगा में थोड़ा द्रव्य डाल दिया।

निर्मल अपनी जगह वापस गया और मैंने फिर से लिंगा को मुँह में डालकर चूसना शुरू कर दिया। इतनी देर तक गुरुजी मेरी गांड को नग्न किये हुए थे। अब मैं फिर से लिंगा को चूसने लगी तो गुरुजी ने मेरे गोल बड़े नितंबों पर लिंगा को घुमाना शुरू किया।


[Image: linga0.jpg]

गुरुजी दोनों हाथों से लिंगा पकड़कर हाथ मेरी गांड पर घूमा रहे थे और साथ-साथ मन्त्र पढ़ रहे थे और फिर कुछ देर बाद वह एक हाथ से लिंगा फिर रहे थे और दुसरे हाथ से गुरुजी मेरी गांड को सहला रहे थे और जैसे ही उन्होंने लिंगा को मेरी गुदा पर लगाया मुझे झटके लगे और मैं अपने बदन को झटक रही थी।

गुरूजी के चारो शिष्यों को ये दृश्य बहुत अश्लील लग रहा होगा और मैं असहज हो गयी थी और क्यूँ ना हो? मैं एक पारिवारिक विवाहित महिला थी और अगर कोई मर्द उसकी गांड में लिंग स्पर्श करे और साथ ही साथ उसको दूसरा लिंगा चूसना पड़े तो कोई भी औरत अवश्य कामोत्तेजित हो जाएगी। ये बिलकुल थ्रीसम जैसे हालात थे। गुरुजी मंत्र लगातार पढ़े जा रहे थे और अपनी ऊर्जित प्रक्रिया को जारी रखे हुए थे। अब वह मेरे सामने आ गये और लिंगा को मेरे घुटनों में लगाया और धीरे-धीरे ऊपर को मेरे जांघों में घुमाने लगे। जैसे-जैसे गुरुजी के हाथ ऊपर को बढ़ने लगे तो मेरे दिल की धड़कनें तेज होने लगी क्यूंकी अब गुरुजी के हाथ मेरे नाजुक अंग तक पहुँचने वाले थे। तभी अचानक गुरुजी ने कहा।


[Image: DILDO4.webp]

गुरुजी–राजकमल यहाँ आओ।

मुझे महसूस हुआ राजकमल वहाँ आ गया है।

गुरुजी–तुम रश्मि की स्कर्ट पकड़ो। मैं इसकी योनि को ऊर्जित करता हूँ।

गुरुजी के मुँह से योनि शब्द सुनकर मुझे थोड़ा झटका लगा लेकिन फिर मैंने सोचा ये तो यज्ञ की प्रक्रिया है तो इसका पालन तो करना ही पड़ेगा। किसी भी औरत के लिए ये बड़ा अपमानजनक होता की उसके कपड़े नीचे करके उन्हें पकड़कर कोई मर्द उसके गुप्तांगो को छुए लेकिन गुरुजी के अनुसार यज्ञ की प्रक्रिया होने की वजह से इसका पालन करना ही था। इसलिए मैंने भी कुछ खास रियेक्ट नहीं किया।

राजकमल ने एक हाथ से स्कर्ट पकड़ी और आगे से कमर तक ऊपर उठा दी। लेकिन गुरुजी ने उसे दोनों हाथों से पकड़कर ठीक से थोड़ा और ऊपर उठाने को कहा। राजकमल ने दोनों हाथों से स्कर्ट पकड़कर थोड़ी और ऊपर उठा दी। अब मेरी नाभि दिखने लगे।


[Image: linga01.jpg]

गुरुजी ने दोनों हाथों से लिंगा को मेरी योनि के ऊपर घुमाना शुरू किया और ज़ोर-ज़ोर से मंत्र पढ़ने लगे। उस सेन्सिटिव भाग को छूने से मेरा चेहरा लाल हो गया और मैंने लिंगा को चूसना बंद कर दिया। वैसे लिंगा अभी भी मेरे मुँह में ही था और मेरी आँखें बंद थीं। फिर मैंने महसूस किया की गुरुजी मेरी चूत की दरार में ऊपर से नीचे अंगुली फिराने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी ऊँगली के स्पर्श से मेरी चोली के अंदर निप्पल एकदम तन गये। गुरुजी की अँगुलियाँ मेरी योनि के ओंठो को छू रही थीं और अब मैंने आँखें बंद किए हुए हल्की सिसकारियाँ लेने लगी।

मैं–उम्म्म्ममम।

गुरुजी अब साफ-साफ मेरी चूत के त्रिकोणीय भाग को अपनी अंगुलियों से महसूस कर रहे थे और लिंगा को बस नाममात्र के लिए घुमा रहे थे। वह मेरी चूत के सामने झुककर इस 'जागरण क्रिया' को कर रहे थे। मैं अब उत्तेजित हो गयी थी और मेरी छूट गीली हो गयी थी और अब अपनी खड़ी पोजीशन में इधर उधर हिल रही थी और मैं असहज स्थिति में थी। कुछ देर बाद ये प्रक्रिया समाप्त हुई और गुरुजी सीधे खड़े हो गये। राजकम ने स्कर्ट नीचे कर दी और मैंने राहत की सांस ली।

गुरुजी–लिंगा में थोड़ा और द्रव्य डालो।

निर्मल ने उस गाड़े द्रव्य का कटोरा लिया और मुझे लिंगा को मुँह से बाहर निकालने को भी नहीं कहा और ऐसे ही लिंगा में थोड़ा द्रव्य डाल दिया। लिंगा में बहते हुए द्रव्य मेरे होठों में पहुँच गया और थोड़ा-सा ठुड्डी से होते हुए गर्दन में बह गया। गुरुजी ने तक-तक मेरे के सपाट पेट में लिंगा घुमा दिया था और अब ऊपर को बढ़ रहे थे।

एक मर्द के द्वारा नितंबों और चूत को सहलाने से अब मैं गहरी साँसें ले रही थी और मेरी नुकीली चूचियाँ कड़क होकरचोली में बाहर को तनी हुई थीं। निर्मल और राजकमल मेरे बिलकुल पास खड़े हुए थे मेरे स्तनों और खड़े निप्पल की शेप देख रहे होंगे और निश्चित ही उन्हें मेरी तनी हुई चूचियाँ बहुत आकर्षक लग रही होंगी।


कहानी जारी रहेगी
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CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

अपडेट-24

लिंग पूजा-6- ' लिंगा  जागरण क्रिया"


मैं अब लिंगा से द्रव्य को चूस रही थी। अब ऐसा लग रहा था कि गुरुजी भी अपनी भाव भंगिमाओं पर थोड़ा नियंत्रण खो बैठे हैं। मेरे सुंदर बदन के हर हिस्से से छेड़छाड़ करने के बाद ऐसा लगता था कि उनकी साँसे तेज हो गयी थी और वह खुद भी गहरी साँसें लेने लगे थे और जब वह मेरे पास हुए तो उनका खड़ा लंड मेरे से छू गया जिससे मुझे लगा उनका लंड धोती में खड़ा हो गया था। मंत्र पढ़ते हुए अब उनकी आवाज भी कुछ धीमी हो गयी थी।

अब गुरुजी ने मेरी चूचियों पर लिंगा को घुमाना शुरू किया। मेरी आँखें बंद थीं शायद इसलिए गुरुजी को ज़्यादा जोश आ गया। उन्होंने अपनी चार शिष्यों की मौजूदगी को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए लिंगा से अपना दायाँ हाथ हटा लिया और मेरी बायीं चूची को पकड़ लिया।

मैं–उम्म्म्मम......


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उत्तेजना की वजह से। मेरे मुँह से सिसकारी निकल गयी। मैं लिंगा प्रतिरूप को चूस रही थी और साथ में कस के आँखें बंद की हुई थी, मुझे लगा अब गुरुजी हद पार कर रहे हैं, खुलेआम वह जिसे बेटी कहकर बुला रहे थे उस महिला की (यानी मेरी) चूची दबा रहे हैं। वह अपनी हथेली से मेरी चूची की गोलाई और सुडौलता को महसूस कर रहे थे और खुलेआम ऐसा करना मुझे बहुत इतना अश्लील महसूस हो रहा था। गुरुजी इस परिस्थिति का अनुचित और पूरा लाभ उठा रहे थे और मेरे कोमल बदन को महसूस कर रहे थे। लेकिन जल्दी ही गुरुजी ने अपनी भावनाओं पर काबू पा लिया और फिर ज़ोर से मंत्र पढ़ते हुए दोनों हाथों से लिंगा पकड़कर मेरी चूचियों पर घुमाने लगे। अंत में गुरुजी ने मेरी चूचियों को लिंगा के आधार से ऐसे दबाया जैसे उनपर अपनी मोहर लगा रहे हों।

गुरुजी–रश्मि बेटी, अपनी आँखें खोलो। तुम्हारी 'जागरण क्रिया का ये भाग' पूरा हो चुका है। अपने मुँह से लिंगा निकाल लो।


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मैं: जी गुरूजी और मैंने लिंगा प्रतिरूप मुँह से निकाल लिया ।

गुरु-जी ने मेरे से वह लिंग प्रतिकृति ली जिसे मैं चूस रही थी और उसे मेरे सिर, होंठ, स्तन, कमर और मेरी जाँघों पर छुआ और उसे फूलों से सजाए गए सिंहासन जैसी संरचना पर रखा। उन्होंने कुछ संस्कृत मंत्रों के उच्चारण की शुरुआत की और इसे वहाँ रखने के लिए एक छोटी पूजा की। लिंग स्थापना की पूजा के दौरान हम सब प्रार्थना के रूप में हाथ जोड़कर प्रतीक्षा कर रहे थे।

गुरुजी—रश्मि बेटी, अब तुम्हे साक्षात लिंग पूजा करनी है । ठीक है, अब मैं शुरू करता हूँ। " लिंगम पूजा की रस्म शुरू करने के लिए तैयार होते ही गुरूजी स्टूल पर बैठ गए।

ये सुनकर मैं हक्की बक्की रह गयी और उलझन भरा चेहरा बनाकर गुरुजी को देख रही थी। स्वाभाविक था। मैं हैरान थी।

गुरूजी: रश्मि अब तुम बैठ जाओ और जिस प्रकार तुमने लिंगा के प्रतिरूप की पूजा की थी उसी प्रकार अब साक्षात लिंग की पूजा करनी होगी और फिर लिंग को वैसे ही जागृत करना होगा जैसे मैंने योनि को जागृत किया है और साथ-साथ इस पुस्तक से मन्त्र पढ़ कर राजकमल बोलता रहेगा तुम उन्ही दोहराती रहना ।

मैंने अपनी आँखें फर्श की ओर गिरा दी और गुरु-जी के अगले निर्देश की प्रतीक्षा करने लगी।



गुरु-जी: रश्मि! अब आप लिंग पूजा करेंगे। आप मन में ॐ नमः लिंग देव मन्त्र का जाप करते रहना

तब गुरुजी ने मुझे लिंग पूजा की पूजा संक्षेप में विधि समझाई । मैंने देखा गुरूजी की धोती में उनका लंड खड़ा हो गया था । पूजा विधि के अनुसार, सबसे पहले गुरुजू के लिंग का अभिषेक विभिन्न सामग्रियों से करना है अभिषेक के लिए दूध, गुलाब जल, चंदन का पेस्ट, दही, शहद, घी, चीनी और पानी का आमतौर पर उपयोग किया जाता है।

अब गुरुजी ने अपनी धोती उतार कर फ़र्श पर फेंक दी जो मेरे पास आकर गिरी। उस नारंगी रंग की धोती में मुझे कुछ गीले धब्बे दिखे जो की गुरुजी के प्री-कम के थे। उन्होंने नीचे कोई लंगोट या कच्चा भी नहीं पहना हुआ था उनके तने हुए मूसल लंड की मोटाई देखकर मेरी सांस रुक गयी।

हे भगवान! कितना मोटा है! ये तो लंड नहीं मूसल है मूसल! मैंने मन ही मन कहा। मैं बेहोश होने से बची क्योंकि मुझे एहसास था कि गुरूजी का लंड बड़ा है। मैं सोचने लगी की गुरुजी की कोई पत्नी नहीं है वरना वह हर रात को इस मस्त लंड से मज़े लेती। मैं गुरुजी के लंड से नज़रें नहीं हटा पा रही थी, इतना बड़ा और मोटा था, कम से कम 8—9 इंच लंबा होगा। आश्रम आने से पहले मैंने सिर्फ़ अपने पति का तना हुआ लंड देखा था और यहाँ आने के बाद मैंने दो तीन लंड देखे और महसूस किए थे लेकिन उन सबमें गुरुजी का लिंग ही सबसे बढ़िया था। शादीशुदा औरत जो की कई बार लंड ले चुकी है, वह ही ये जान सकती है इस मूसल जैसे लंड के क्या मायने हैं। गुरुजी के लंड को देखकर मैं स्वतः ही अपने सूख चुके होठों में जीभ फिराने लगी, लेकिन जब मुझे ध्यान आया की मैं कहाँ हूँ तो मुझे अपनी बेशर्मी पर मुझे बहुत शरम आई. मुझे डर लगा कि गुरूजी का ऐसा तगड़ा और बड़ा लिंग तो योनि फाड़ ही डालेगा।


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अब गुरुजी ने अपनी टाँगे फैला दीं । मेरे साथ-साथ गुरूजी के शिष्य भी गुरूजी का लंड देख चकित थे ।

उनके लिंग के नीचे एक कटोरा रखा था ।

गुरुजी–देर मत करो। यज्ञ का शुभ समय निकल ना जाए. राजकमल मन्त्र बोलो!

राजकमल मन्त्र बोलता रहा और मैं वैसे-वैसे करती रही

पहले पूजा में मैंने जल अभिषेक, फिर गुलाब जल अभिषेक, फिर दूध अभिषेक के बाद दही अभिषेक, फिर घी अभिषेक और शहद अभिषेक अन्य सामग्री के अलावा अंतिम अभिषेक मिश्रित पदार्थ से किया।

सभी पदरथ गुरूजी के लिंग से बाह कर उस कटोइरे में एकत्रित हो गए ।

अभिषेक की रस्म के बाद, गुरूजी के लिंग को बिल्वपत्र की माला से सजाया गया। ऐसा माना जाता है कि बिल्वपत्र लिंग महाराज को ठंडा करता है।

उसके बाद लिंग पर चंदन या कुमकुम लगाया तो मैंने लिंग पर हाथ लगाया । गुरूजी का लिंग मेरे हाथ की उंगलियों में पूरा नहीं आ रहा था।

जिसके बाद दीपक और धूप जलाई। लिंग को सुशोभित करने के लिए उपयोग की जाने वाली अन्य वस्तुओं में मदार का फूल चढ़ाया गया जो बहुत नशीला होता है और फिर, विभूति लगायी गयी विभूति जिसे भस्म भी कहा जाता है। विभूति पवित्र राख है जिसे सूखे गाय के गोबर से बनायीं गयी थी।

पूजा काल में गुरु जी और उनके शिष्य अन्य मंत्रो के साथ ॐ नमः लिंग देव मंत्र का जाप करते रहे।

गुरु-जी: ग्रेट बेटी! अब हम मुख्य पूजा शुरू करेंगे। प्रार्थना के लिए हाथ जोड़ो। ध्यान केंद्रित करना।

फिर जैसे ही उदय ने आग में कुछ फेंका, मैंने सिर हिलाया और आग और तेज होने लगी। पिन ड्रॉप साइलेंस था। उच्च रोशनी के साथ यज्ञ अग्नि अब पूरे कमरे में और प्रत्येक के चेहरे पर एक अजीब चमक प्रदान कर रही थी।

संजीव: हे लिंग महाराज, कृपया इस अंतिम प्रार्थना को स्वीकार करें और इस महिला को वह दें जो वह चाहती है! जय लिंग महाराज! बेटी, अब से वही दोहराना जो मैं कह रहा हूँ।

कुछ क्षण के लिए फिर सन्नाटा छा गया। मैं थोड़ा कांप रही थी और गुरूजी के बड़े लिंग के आकार के कारण मुझे एक अनजाना डर महसूस हो रहा था।


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संजीव: हे लिंग महाराज!

मैं: हे लिंग महाराज!

संजीव: मैं स्वयं को आपको अर्पित करता हूँ...

मैं: मैं खुद को आपको पेश करती हूँ ...

संजीव: मेरा मन, मेरा शरीर, मेरी योनि...तुम्हें सब कुछ।समर्पित करता हूँ ।

मैं: मेरा मन, मेरा शरीर, मेरी यो... योनि... आपको सब कुछ...समर्पित करती हूँ ।

संजीव: हे लिंग महाराज! कृपया इस योनि पूजा को स्वीकार करें और मुझे उर्वर बनाएँ और मेरे गर्भ को एक बच्चे के रूप में आशीर्वाद दें...

मैं: हे लिंग महाराज कृपया इस योनि पूजा को स्वीकार करें और मुझे उपजाऊ बनाएँ और मेरे गर्भ को एक बच्चे के रूप में आशीर्वाद दें...

संजीव: मैं, रश्मि सिंह पत्नी अनिल सिंह, इस प्रकार आपके पवित्र आशीर्वाद के लिए आपके सामने आत्मसमर्पण कर रहा हूँ। कृपया मुझे निराश न करें। जय लिंग महाराज!

मैं: मैं, अनीता सिंह, अनिल सिंह की पत्नी-इस प्रकार आपके पवित्र आशीर्वाद के लिए खुद को आपके सामने आत्मसमर्पण कर रही हूँ। कृपया मुझे निराश न करें। जय लिंग महाराज!

उदय: मैडम अब आप लिंग को जागृत करो ।

मैं अभी भी फर्श पर घुटनों के बल थी, मैं समझ गयी और तब तक आगे बढ़ी जब तक कि मेरे घुटने लगभग स्टूल को छू नहीं गए। यह एक अविश्वसनीय अहसास था, गुरूजी की टांगो के बीच वहाँ बैठे हुए मैं उनके बीच बैठी थी, मेरा मुँह गुरूजी के बड़े कठोर लंड से मात्र इंच भर दूर था। उदय ने मुझे गर्म दूध का गिलास दिया और मैंने उसमें अपनी उँगलियाँ डुबोईं, फिर उन्हें गुरूजी के स्तंभित लिंग की नोक के ठीक ऊपर रखा। गुरूजी के बैंगनी लंडमुंड पर टपकने देने से पहले मैंने ने दूध की धाराओं को निर्देशित करने के लिए अपनी उंगलियों को मोड़ा। फिर मैंने इसे कुछ बार दोहराया, अपनी सांसों के नीचे अश्रव्य प्रार्थनाओं को फुसफुसाते हुए।


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मैंने पांच बार ऐसा किया और फिर हाथों को नीचे किया और उन्हें लंड की लम्बाई के चारों ओर लपेट दिया और आगे हो होकर लिंग को चूमा और फिर आगे होकर लिंग पर अपने स्तनों और चुचकों को चुमाया, उसके बाद लिंग पर अपनी नाभि लगाई और उसके बाद अपनी घुटनो पर खड़ी हो योनि और फिर जांघो को लिंग पर लगाया और फिर घूम कर लिंग अपनी नितम्बो और फिर गांड को लिंग पर लगाया और गुरूजी के गोद में पीठ कर बैठ गयी । मेरी इस हरकत से गुरूजी का लिंग जो अभीतक आधा खड़ा था अब पूरा कठोर हो गया ।

ये बिलकुल लैप डांस जैसा था । जिसमे नाचने वाली अपने बदन की लिंग से धीरे-धीरे छुआ कर उत्तेजित करती है । मैं वैसे ही अपनी गांड और पूरा बदन हिला कर अलट कर पलट कर गुरूजी के साथ चिपक रही थी । अपने बदन अपने स्तन, अपनी गांड, अपनी योनि को उनके बदन, लिंग पर मसल और रगड़ रही थी। रंडीपैन की कोई सीमा ऐसी नहीं थी जिसे मैंने पार नहीं किया था । मुझे शर्म तो बहुत आ रही थी परन्तु मेरी स्थिति ऐसी थीऔर मैं इसमें इतना आगे आ चुकी थी की मेरे पास अब कोई विकल्प नहीं था ।


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मेरी योनि पूरी गीली हो गयी थी और मेरे चूचक तन गए थे । स्वाभिक तौर पर मैं भी अब उत्तेजित थी ।और फिर जब मुझे लगा गुरूजी का लिंग पूरी तरह से कठोर है मैं घूमी एक तेज़ गति में मैंने अपना सिरउनके लिंग पर गिरा दिया और मेरा गर्म मुँह गुरूजी के लंड के धड़कते लंडमुंड को ढँक रहा है।

गुरु जी भी अपना नियंत्रण खो बैठे थे और जोर से हांफने लगे क्योंकि गुरूजी के लिंग के चारों ओर उन्हें मेरे कोमल मखमली होंठों की रमणीय अनुभूति हुई। मैंने कई बार बेकाबू होकर सफलतापूर्वक उनके पूरे लिंग को अपने मुँह में दबा लिया। धीरे से उनके लिंग को चूसना शुरू कर दिया। राजकमल के मन्त्र उच्चारण समाप्त हो गया ।

गुरूजी: जय लिंगा महाराज!

मैं समझ गयी अब मेरे पास एक मिनट का समय और है और अपनी एक हाथ की उंगलियों के साथ लंड के शाफ्ट के चारों लपेट लिया और मुँह ऊपर और नीचे पंप करने लगी, जबकि उसके दूसरे हाथ ने गुरूजी के नडकोषो को सहलाया और उनकी मालिश की। मैंने अपने मुँह का गुरूजी के लंड पर कुशलता से इस्तेमाल किया, सिर को निगल लिया और लयबद्ध गतियों में उसे मुँह से अंदर और बाहर पंप किया।

मुझे लगता है कि गुरूजी उस समय सातवें आसमान पर थे और मैं  खुश थी की आखिरकार मैंने गुरजी के लिंग को जागृत कर दिया है और उसे चूस लिया है, यह एक अद्भुत अनुभव था।

गुरूजी: जय लिंगा महाराज!

गुरूजी: "लिंगम जीवन के बीज पैदा करता है, सभी जीवन शक्ति का स्रोत।" उसने मेरी ओर देखे बिना कहा, गुरूजी अभी भी अपने लंड को सहला रहे थे। गुरूजी के लंड पर लगे पदार्थ का स्वाद मेरे मुँह में था जो द्रव्य से मिलता जुलता था और मुझे अच्छा लग रहा था । और मेरी आँखे शर्म और आननद से बंद हो गयी थी ।

गुरुजी–रश्मि तुम्हे बहुत बढ़िया किया केवल बढ़िया नहीं बल्कि आजतक यहाँ जितनी भी महिलाये आयी हैं उनसे बेहतर किया, अपनी आँखें खोलो। 'जागरण क्रिया' पूरी हो चुकी है। अपने मुँह से लिंगा निकाल लो।

मैं वहीं हांफते हुए बैठ गयी और लिंग को मुँह से निकला लिया । मैंने देखा गुरूजी अब अपने लिंग पर हाथ फिरा रहे थे। मैंने एक बार ऊपर देखा, एक चुटीली मुस्कराहट गुरूजी की चेहरे पर थी ।

कहानी जारी रहेगी
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CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

अपडेट-25

योनि पूजा


गुरु-जी: बेटी, मेरे पास आओ। मुझे आपकी योनी पूजा पूरी करने दें!

गुरु जी के हाथों में कुछ फूल थे और अब जैसे ही मैं उनके आगे बढ़ी उन्होंने संस्कृत में मंत्रों का उच्चारण करना शुरू कर दिया। मैं अभी भी सफेद गद्दे पर खड़ी थी और गुरूजी उसके पास बैठे थे। उसने अब कुछ बहुत ही आश्चर्यजनक किया! उन्होंने जिस चबूतरे पर-पर लिंग की प्रतिकृति रखी गई थी और मुझे उस पर खड़े होने का इशारा किया!

मैं: मैं उस चबूतरे पर खड़ी हो जाऊ ... उस पर!

गुरु जी: हाँ बेटी, क्योंकि अब तुम ही वह देवी होगी जिसकी मैं पूजा करूँगा! यही योनी पूजा का नियम है और यह योनी पूजा में परिवर्तन का चरण है।

मैं: लेकिन... लेकिन...


[Image: YP-DANCE.webp]

मैं पूरी तरह से भ्रमित थी।

गुरु जी: उस पर खड़ी रहो बेटी। अब तुम ही बताओ मैं तुम्हारे अलावा और किसकी योनि पूजा करूँ? "अब आप अपना स्थान लेंगी। लिंग महाराज आपके मंत्र दान प्रस्तुति और पूजा से संतुष्ट हैं।" ठीक है, रश्मि।

मैं इसके बारे में गहराई से नहीं सोच पा रही थी और गुरु जी की आज्ञा का पालन कर रही थी। मैंने लकड़ी के अलंकृत चबूतरे पर कदम रखा!

मैं: अब लिंगा महाराज के स्थान पर योनि यानी मैं?

गुरु-जी: स्पष्ट रूप से मेरे लिए चिंतित हो रहे थे। मानो मेरे लिए पूजा अनुष्ठान करना कठिन होगा। सच्चाई से आगे कुछ भी नहीं हो सकता है!

"यह स्वाभाविक है कि यह कठिन है।" गुरु ने धैर्यपूर्वक उत्तर दिया। "योनि पूजा और वास्तव में लिंगम पूजा, बहुत पुराने और बहुत पवित्र कार्य हैं। वे कई वर्षों से किए जा रहे हैं। आधुनिक परिवारों में इन परिस्थितियों में योनि पूजा जैसे कृत्य असामान्य हैं, लेकिन यह केवल इसलिए है क्योंकि परिवार बदल गए हैं और अधिक छोटे और अलग-अलग हो गए हैं।"

गुरु जी ने अपने हाथ में रखे फूल मेरे पैरों पर फेंक दिए। फिर उसने अपनी हथेली में "कुमकुम" (= हमारे पैरों को सजाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला लाल तरल) लिया और ट्रे से फूलों के साथ मिला दिया।

मैं: आउच!

मैं उस विस्मयादिबोधक (हालांकि बहुत हल्के ढंग से) निकली आवाज को नहीं रोक पायी क्योंकि जब मैं उस आसन पर खड़ी थी, तो मेरे पैरों के पास चल रहे टेबल फैन ने मेरी चुत और गांड पर हवा फेंकी थी। मेरी मिनी स्कर्ट उड़ गयी और मेरी प्रतिक्रिया बहुत स्वाभाविक और सहज थी और यह इतनी अजीब स्थिति थी। मैंने अपने हाथ अपनी मिनी स्कर्ट पर रख कर योनि के आगे रख कर अपनी योनि छुपाने की कोशिश की ।


[Image: YP-FIG.jpg]


गुरु जी: जब तक मैं पूजा समाप्त नहीं कर देता इन फूलों को अपने हाथ में तब तक पकड़ो बेटी।

अब मैंने फूल लेने के लिए गुरुजी की ओर दोनों हाथ कर दिए ऐसा किया मेरी मिनीस्कर्ट उड़ने लगी और मेरे नग्न तलवे और चूत दिखने लगी। यह वास्तव में एक सेक्सी अपस्कर्ट दृश्य था और हर कोई इसका आनंद ले रहा होगा। मैंने फूल लिए और अपने हाथों को तुरंत अपनी स्कर्ट के ऊपर रख दिया, लेकिन गुरु जी की अगली आज्ञा ने मेरे प्रयासों को व्यर्थ साबित कर दिया।

गुरु जी: बेटी, फूलों को अपने हाथों में प्रार्थना के रूप में जोड़ो।

जैसे ही मैंने प्रार्थना के लिए अपने हाथ जोड़े, टेबल फैन ने मेरी मिनीस्कर्ट को स्वतंत्र रूप से उड़ा दिया और मेरी रसदार चुत गुरु जी के चेहरे के सामने खुल गई।


[Image: fool1.jpg]


गुरु जी: आप सभी गद्दे के चारों ओर बैठ जाएँ और यह मंत्र गुनगुनाएँ: ॐ, क्लीं ... विच्चे!

गुरु जी ने संजीव से स्टूल लाने को कहा। संजीव ने जल्दी से कमरे के कोने से गद्दीदार स्टूल खींच कर ठीक वहीं रख दिया जहाँ मैं बैठी थी और उसे लकड़ी के चबूतरे पर रख दिया। फिर, आश्चर्यजनक रूप से तेज़ गति से उसने मुझे स्टूल पर चढ़ने में मदद की और। जब मैं स्टूल पर बैठी तो उसने मेरी सूती स्कर्ट को ऊपर उठा लिया और मेरी कमर पर रख दिया। फिर उसने मेरी गांड को आगे की ओर घुमाने में मेरी मदद की ताकि स्टूल मेरी पीठ के निचले हिस्से के नीचे रहे और मेरी गांड ज्यादातर सीट से दूर रहे। उन्होंने इस कम आरामदायक स्थिति में मेरे वजन का समर्थन करने में सहायता करने के लिए मेरे दोनों ओर अपने हाथ रखे। जब तक वह संतुष्ट नहीं हो जाता तब तक मैंने खुद को स्टूल से दो बार उठाया क्योंकि उसने मेरी स्कर्ट और मेरी स्थिति को सावधानीपूर्वक समायोजित किया।

फिर गुरुजी ने मुझे देखा, मैं गुरुजी के विपरीत बैठी हुई थी, पैर खुले और फर्श पर पैरों के साथ आराम से और मेरी योनि मेरी खूबसूरत स्त्री गुफा स्त्री रस की नमी के साथ चिकनी, घुंघराले पिंकी-गेयर की भारी तह और चमकदार त्वचा, गुरुजी के सामने कुछ स्वादिष्ट व्यंजन जैसे चखने और निगलने की प्रतीक्षा कर रही थी।


[Image: YP02.jpg]

अच्छा उदय, नारियल का दूध लेने के लिए कटोरा उसके नीचे ले आओ। " उसने मेरी ओर सिर हिलाते हुए कहा।

मुझे नहीं पता कि कैसे उदय ने खुद को छलांग लगाने और मेरी उस स्नैच में अपना चेहरा छुपाने से रोक लिया। मैं उसके मुंह में बनने वाली लार को महसूस कर सकती थी जैसे वह उन स्वादिष्ट सिलवटों के बीच अपनी जीभ चलाने और मेरे स्त्री सार का स्वाद लेने के लिए तड़प रहा हो।

उसने अपनी जीभ को अपने होठों पर घुमाते हुए मुझे अपनी जीभ को भद्दी और कामुक मुद्रा में दिखाया।

हे मेरे भगवान! अगर चारों मर्द गद्दे पर बैठे हुए हैं, तो वे स्पष्ट रूप से मेरी बड़ी नंगी गांड और मेरी उड़ने वाली स्कर्ट के नीचे मेरी योनि देख पाएंगे! मैंने उत्सुकता से इधर-उधर देखा, पर कुछ न कर सकी। मैं टेबल फैन को कोस रही थी, लेकिन यह कभी महसूस नहीं हुआ कि यह पूर्व नियोजित था और जब योनी पूजा कर रही महिला मंच पर बैठती है तब इस प्रभाव को पाने के लिए ठीक उसी तरह रखा गया था।

मैंने अपनी स्थिति का आकलन करने के लिए एक पल के लिए नीचे देखा और यह देखकर चौंक गयी कि चूंकि मैं उस मंच पर (हालांकि गद्दे से एक फुट के आसपास की) ऊंचाई पर बैठी थी, गुरु जी और उनके शिष्य मेरे निचले अंगो का एक अविश्वसनीय दृश्य देख रहे थे।

मेरी स्कर्ट शरारत से फड़फड़ा रही थी। मैंने तुरंत अपनी आँखें बंद कर लीं और पूरी शर्म से नीचे नहीं देख पा रही थी, लेकिन मैं सब महसूस कर सकती थी कि मैं फिर से अपनी यौन इच्छा के आगे झुक रही थी जिसे मैंने किसी तरह अपनी मानसिक शक्ति से कुछ मिनटों तक रोक कर रखा था।


[Image: YP7.jpg]


इसके बजाय, गुरूजी किसी तरह अपने को शांत रखने में कामयाब रहे क्योंकि मैं आगे बढ़ गयी और उदय ने कटोरे को मेरी गांड के नीचे धकेल दिया-यह जानकर कि उसका हाथ मेरे शानदार सेक्स से केवल इंच की दूरी पर था मैं बहुत उत्तेजित थी।

जैसे ही मैं करीब आया वहइतने करीब थे की वह मेरी योनी को सूंघ सकता था। यह समृद्ध कस्तूरी इत्र है जो उसके नथुने भड़का रहे था और उसके मुंह से लार टपक रही थी। उन्होंने इस शानदार दिन के लिए अपने भाग्यशाली सितारों का शुक्रिया अदा करते हुए गहरी लेकिन विवेकपूर्ण तरीके से सांस ली और तभी गुरूजी मेरे करीब आ गए। उदय अपने स्थान पर चला गया ।


कहानी जारी रहेगी
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CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

अपडेट-26

योनि पूजा- जादुई उंगली 



गुरु-जी... आआहहह ... कृपया मुझ पर दया करें।

मैं अब इतनी उतावली हो गयी थी कि अब मैं वस्तुतः चुदाई की भीख माँग रही थी! मेरा मन अब चुदाई करवाने के लिए आतुर था ।

जैसे ही मेरी आँखें गुरु जी के प्रत्येक शिष्य से मिलीं, स्वतः ही मेरी पलकें झुक गईं। एक हफ्ते पहले मैं उनमें से किसी को भी नहीं जानती थी और आज उन सभी ने मुझे चूमा और मेरे सबसे अंतरंग शरीर के अंगों को सहलाया, जिसे केवल एक महिला ही अपने पति से साझा कर सकती है। मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई!

क्षणिक रूप से मेरी यौन इच्छा मेरी तर्कसंगत इंद्रियों द्वारा पराजित हो गई, हालांकि यह बहुत ही अल्पकालिक थी। संक्षेप में मैंने अपने घर, अपने परिवार, अपने पति, अपने आस-पड़ोस की छवियों की कल्पना की-सभी मेरी आंखों के सामने आये। मैं घूंघट में ससुर को चाय पिलाती, सास-ससुर के साथ पूजा करवाती, शालीनता से ढके हुए जब मैं पड़ोसी के घर जाती, राजेश का प्यार। सब कुछ मानो मेरी आँखों के सामने एक चलचित्र की तरह घूम गया।


[Image: bath1.jpg]

और, जब मैं खुद को यहाँ पूजा-घर में देखती हूँ-तो मैं जिस आश्चर्यजनक विरोधाभास से गुजरी हूँ, उसे देखकर मुझे खुद पर भरोसा नहीं हुआ! मैं लगभग नग्न अवस्था में पाँच पुरुषों के सामने खड़ी-पैंटी रहित, चोली-रहित और उन सभी द्वारा मुझे बार-बार चूमा और बहुत दुलार किया गया था! मैंने उन्हें इसकी अनुमति कैसे दी? क्या मैं अपने आप से बाहर चली गयी हूँ?


[Image: guru2.jpg]

मेरे शुरुआती बहुत मजबूत विचारों के बावजूद मैं धीरे-धीरे अपनी उत्तेजित शारीरिक स्थिति में लौट आयी। मेरे भीतर की यौन इच्छा (शायद मेरी नशे की हालत के कारण, मुझे नहीं पता) धीरे-धीरे मेरे सभी सकारात्मक विचारों पर हावी हो रही थी।

मैं मानो गुरु जी की ज़ोरदार आवाज़ से जाग गयी।

गुरु जी: बेटी, शरमाओ मत। इस योनि पूजा से गुजरने वाली प्रत्येक महिला को इससे गुजरना पड़ता है। मैंने कितनी ही विवाहित स्त्रियों को मन्त्र दान के समय अति उत्साह में अपने अन्तिम वस्त्र उतारते हुए देखा है। वास्तव में, एक युवा गृहिणी होने के नाते, आपने उनसे कहीं बेहतर काम किया है!

मैं अभी भी गुरु जी सहित वहाँ मौजूद किसी भी पुरुष से आँखें नहीं मिला पा रही थी।


[Image: baba7.jpg]

गुरु जी मेरे पास आए। गुरु जी ने भी मेरे अंदर की कामुकता को और बढ़ा दिया क्योंकि उन्होंने कुमकुम को मेरे नग्न पैरों और जांघों पर मलना शुरू किया। उनके हाथ खुले तौर पर मेरी नंगी मोटी चिकनी जांघों पर घूम रहे थे और अंदर और पीछे भी जा रहे थे। मैं अपने होठों को अपने दांतों से भींच रही थी और परमानंद में लगभग कांप रही थी। गुरु जी ने दूसरे हाथ में अगरबत्ती जलाई हुई थी और मेरी चुत के आगे गोल घुमा रहे थे, मानो मेरी पूजा कर रहे हों! यह कुछ मिनटों तक चलता रहा। उनकी उंगलियाँ और हथेलियाँ जो मेरी ऊपरी जांघों को छू रही थीं वह फिर मेरी चुत को छू रही थी, मैं फिर से कचल कर अपने ओंठ काटने लगी!

मैं: उउ......आआहह!


[Image: finger2.gif]

गुरु-जी मेरे योनि क्षेत्र को धीरे-धीरे महसूस कर रहे थे, जबकि वे लगातार अपने शिष्यों के साथ गुनगुनाते हुए मंत्रों का जाप कर रहे थे, "ओम ... ह्रीं, क्लीं ... ... नमः!"

गुरु जी: बेटी, क्या तुम अपने पैरों को थोड़ा अलग कर सकती हो। हाँ! । हाँ! ठीक।

गुरु जी ने अपनी उँगलियाँ मेरी गांड में घुसाकर मेरे फैली हुए टांगो पैरों के बीच की दूरी को चेक किया! मैं उत्तेजना में काँप रही थी और रस मेरी चुत से बाहर को बह रहा था।

जब उन्होंने वास्तव में मेरी चुत में अपनी उंगली डाली तब गुरु जी स्पष्ट रूप से यह देख सकते थे और मैं अब कामुक हो पागल होने लगी थी । गुरु जी की उंगली मजबूत थी और इतनी लंबी थी कि मेरी योनि के छेद में गहराई तक जा सकती थी। वह धीरे-धीरे अपनी उँगलियों को मेरी चुत में घुमा रहे थे और मेरी तंग योनि की दीवारों को महसूस कर रहे थे और उसे मेरे रसदार प्रेम स्थान के अंदर अधिक से अधिक धकेल रहे थे। मैं कामुकता से पागल हो रही थी और अपने हाथों से अपनी तंग स्तनों को दबा रही थी और बहुत ही बेशर्मी से कराह रही थी। मैंने कभी भी एक खड़े आसन में इस तरह की लंबी छेड़खानी का अनुभव नहीं किया था और ईमानदारी से गुरु जी के पास जादुई उंगली थी-यह सीधी रही, यह मेरी चुत को बहुत अच्छी तरह से भर रही थी और इसकी सूक्ष्म गोलाकार गति मुझे इस दुनिया से बाहर स्वर्ग का ननाद दे रही थी। ।


[Image: fing1.gif]

मैं: आह

गुरु जी अपनी उंगली की आवृत्ति मेरी चुद में अंदर और बाहर बढ़ा रहे थे। उसकी उंगली स्वाभाविक रूप से मेरे गर्म योनि रस से भरी हुई थी और मैंने देखा कि उसका चेहरा अब मेरी चुत के इतना करीब था कि वह वास्तव में उसे चूम सकते थे!

मैं: ऊऊऊ... आ... आह्हः

मैं बस इसे और अधिक नहीं सहन कर सकी (शायद मंत्र दान के दौरान अलग-अलग पुरुषों द्वारा लंबे समय तक लगत्तर टटोलने के कारण मैं झड़ने लगी और कम करना शुरू कर दिया। मेरे पूरे शरीर में झटके और दर्द हुआ क्योंकि मेरी योनि की मांसपेशियाँ गुरु जी की डाली हुई उंगली पर ऐंठ गई थीं।

मैं: ऊ हहह हाय

मैं उनकी ऊँगली पर अपने रस के छींटे मार रही थी और मेरे पैर चौड़े और चौड़े होते जा रहे थे। मेरी टाँगे फ़ैल गयी थी । मेरा पूरा शरीर खड़े होने की मुद्रा में झुक गया और टेबल-पंखे ने अब मेरी स्कर्ट को मेरी कमर तक उड़ाकर वस्तुतः अस्तित्वहीन हो गयी थी!


[Image: FING1A.gif]

गुरु जी के सभी शिष्यों के लिए यह एक भव्य दृश्य रहा होगा और बेहद उत्तेजक भी! गुरु जी ने महसूस किया कि मैंने कामोत्तेजना में अपना चरमोत्कर्ष प्राप्त कर लीया है, उन्होंने धीरे से अपनी उंगली मेरी योनि से बाहर निकाली। मैं गद्दे पर लेटना चाहती थी और सौभाग्य से मेरे लिए गुरूजी जो मेरे डॉक्टर थे उस समय उन्होंने यही आदेश दिया!

गुरु जी: बेटी, तुम लेट जाओ और आराम करो। संजीव रश्मि को कुछ और चरणामृत दें। उसे प्यास लगी होगी!

इससे पहले कि मैं गद्दे पर लेटती, मैंने उत्सुकता से कुछ और चरणामृत पी लिया, क्योंकि मुझे काफी प्यास लग रही थी, यह बिल्कुल नहीं जानते हुए कि यह केवल मेरी यौन इच्छा को तेज करेगा। संजीव मेरे पास आया और मेरे घाघरे को एक हाथ से पकड़ लिया और मेरी जांघों को कपड़े से पोंछ दिया, क्योंकि मेरी जाँघे मेरे योनि रस से चिपचिपी हो गयी थी। उसने इसे इतने आकस्मिक दृष्टिकोण के साथ किया कि मैं दंग रह गयी क्योंकि मैं पूरी तरह से उंगली की चुदाई के बाद सांस लेने के लिए हांफ रही थी गा। मुझे बिल्कुल अपने बचपन के दिनों की तरह महसूस हुआ जब मैं पहली या दूसरी कक्षा में जूनियर कॉलेज में थी और अपनी कॉलेज की वर्दी में पेशाब कर दिया था और कॉलेज का एक कर्मचारी मेरी स्कर्ट खींच कर मुझे साफ कर रहा था!


[Image: finger.gif]
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संजीव ने मेरे चुत के बालों से रस की बूंदों को भी पोंछा! मैं बेशर्मी का सबसे बड़ा विज्ञापन कर अपनी योनि आगे कर सबको दिखा रही थी । मैं जो की अभी कुछ दिन पहले एक-एक भरे-पूरे शरीर वाली v, कुछ और चरणामृत दें। उसे प्यास लगी होगी!

इससे पहले कि मैं गद्दे पर लेटती, मैंने उत्सुकता से कुछ और चरणामृत पी लिया, क्योंकि मुझे काफी प्यास लग रही थी, यह बिल्कुल नहीं जानते हुए कि यह केवल मेरी यौन इच्छा को तेज करेगा। संजीव मेरे पास आया और मेरे घाघरे को एक हाथ से पकड़ लिया और मेरी जांघों को कपड़े से पोंछ दिया, क्योंकि वे मेरे योनि रस से चिपचिपे हो गए थे। उसने इसे इतने आकस्मिक दृष्टिकोण के साथ किया कि मैं दंग रह गया क्योंकि मैं पूरी तरह से उंगली की चुदाई के बाद सांस लेने के लिए हांफने लगा। मुझे बिल्कुल अपने बचपन के दिनों की तरह महसूस हुआ जब मैं पहली या दूसरी कक्षा में जूनियर कॉलेज में थी और अपनी कॉलेज की वर्दी में पेशाब कर चुकी थी और चौथी कक्षा का कर्मचारी मुझे मेरी स्कर्ट खींच कर साफ कर रहा था!

संजीव ने मेरे चुत के बालों से रस की बूंदों को भी पोंछा! मैं बेशर्मी का सबसे बड़ा विज्ञापन दिखा रही थी क्योंकि यहाँ मैं एक भरे-पूरे शरीर वाली शर्मीली महिला जो शादीशुदा थी, 30+ थी और अब उस गद्दे पर लगभग नग्न लेटी हुई थी और मेरी बालों वाली चुत पूरी तरह से खुली हुई थी!

गुरु जी: धन्यवाद संजीव।

कहानी जारी रहेगी
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Agale update Ka Intezar basebri se ho raha hai ho sake to jald Karen.
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Waiting for next part of Ritual Bhai!
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Update de do bhai
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CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

अपडेट-27

स्तनपान


इससे पहले कि मैं गद्दे पर लेटती, मैंने उत्सुकता से कुछ और चरणामृत पी लिया, क्योंकि मुझे काफी प्यास लग रही थी, यह बिल्कुल नहीं जानते हुए कि यह केवल मेरी यौन इच्छा को तेज करेगा। संजीव मेरे पास आया और मेरे घाघरे को एक हाथ से पकड़ लिया और मेरी जांघों को कपड़े से पोंछ दिया, क्योंकि वे मेरे योनि रस से चिपचिपे हो गए थे। उसने इसे इतने आकस्मिक दृष्टिकोण के साथ किया कि मैं दंग रह गया क्योंकि मैं पूरी तरह से उंगली की चुदाई के बाद सांस लेने के लिए हांफने लगा। मुझे बिल्कुल अपने बचपन के दिनों की तरह महसूस हुआ जब मैं पहली या दूसरी कक्षा में जूनियर कॉलेज में थी और अपनी कॉलेज की वर्दी में पेशाब कर चुकी थी और चौथी कक्षा का कर्मचारी मुझे मेरी स्कर्ट खींच कर साफ कर रहा था!


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संजीव ने मेरे चुत के बालों से रस की बूंदों को भी पोंछा! मैं बेशर्मी का सबसे बड़ा विज्ञापन दिखा रही थी क्योंकि यहाँ मैं एक भरे-पूरे शरीर वाली शर्मीली महिला जो शादीशुदा थी, 30+ थी और अब उस गद्दे पर लगभग नग्न लेटी हुई थी और मेरी बालों वाली चुत पूरी तरह से खुली हुई थी!

गुरु जी: धन्यवाद संजीव।

कुछ मिनटों के बाद, गुरूजी ने घोषणा की

गुरु-जी:-रश्मि अब तुम आलथी पालथी मार कर बैठ जाओ । बच्चो को स्तनपान करवाओ .  इससे तुम्हे स्तनपान करवाने का अनुभव  मिलेगा जिससे तुम्हे अपने बच्चो   को स्तनपान और दूध पिलाने में  आसानी रहेगी ।-अब माँ योनी के स्तन नग्न है। वह माँ है। वह अपने स्तनों से मनुष्यों का पोषण करती है। वैसे ही अब माँ हम सबका पालन पोषण करेगी। "


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इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती कि क्या हो रहा है...

गुरूजी:-आओ मेरे शिष्यों ... जैसे एक माँ अपने बच्चे को दूध पिलाती है और उसका पालन पोषण करती है। तुम सभी योनि से उत्पन्न हुए हो। योनि माँ तुम्हारी माँ है। ...आओ ...स्तनपान करो आओ माँ के स्तनों को चूसो।

मैंआश्चर्यचकित थी। अभी तो मेरे कोई बच्चा नहीं हुआ है मेरे स्तनों में दूध नहीं उतरा है मैं कैसे स्तनपान करवा सकती हूँ।

सबसे पहले राजकमल मेरी गोद में लेट गया। बौना निर्मल दूध का बर्तन और गिलास लेकर मेरे पीछे चला गया। धीरे से राजकमल ने अपने सर के पिछले हिस्से को उठा लिया। उन्होंने सुनिश्चित किया कि उसका मुँह मेरे स्तनों के पास हो। फिर गुरूजी ने कहा,


[Image: bs1.gif]

गुरूजी:-राजकमल अब स्तनपान करो"।

धीरे-धीरे राजकमल ने मेरे बाए स्तन को अपने मुँह में ले लिया और उन्हें चूसने लगा। पीछे से उदय ने दूध से भरे गिलास को मेरे स्तनों पर डाल दिया। दूध धीरे-धीरे स्तनों से टपकने लगा... एरोला में... और फिर राजकमल के मुंह में। गुरजी कुछ मंत्रो का उच्चारण कर रहे थे ।

इसी तरह मैंने गुरूजी के चारो शिष्यों को मैंने स्तनपान कराया... राजकमल ने दाए स्तन से दूध पिया

मैं: उउ...आआहह!

गुरूजी:-"ओम ... ह्रीं, क्लीं ... ... नमः!"

और फिर उदय ने बाए स्तन से दूध पिया और उसके बाद संजीव ने दाए स्तन से दूध पिया और मैं अब बहुत उत्तेजित हो गयी थी और मेरी चूचिया सूज गयी थी और मेरे स्तन अब कड़े हो गए थे । स्तनपान ने मेरे अंदर की कामुकता को और बढ़ा दिया। संजीव के बाद बौने निर्मल ने मेरे बाए स्तन से दूध पिया तो उसने मेरे स्तन पर काटा तो मैं चिल्ला पड़ी

रश्मी:-आअह्ह्ह्ह क्या कर रहे हो निर्मल?

तो गुरूजी उसकी शरारत भांप गये और उसे डांटा । तो वह मेरे स्तन चूसने लगा ।


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गुरूजी:-निर्मल! शरारत नहीं, चुपचाप स्तनपान करो वरना माँ योनी की नाराजगी तुम्हे झेलनी होगी।

निर्मल:-क्षमा कीजिये गुरूजी! और वह मेरे स्तन चूसने लगा ।

मैं: आह

गुरूजी:-निर्मल क्षमा मुझसे नहीं रश्मि जो इस समय योनि माँ अहइँ उनसे मांगो । बेटी रश्मि निर्मल कद के साथ-साथ आयु में भी सबसे छोटा होने के कारण थोड़ा नटखट है इसे क्षमा कर दो ।

निर्मल:-माँ योनि मुझे क्षमा कर दो!

मैं अपने होठों को अपने दांतों से भींच रही थी और परमानंद में लगभग कांप रही थी। मैं कुछ बोलती उससे पहले ही गुरूजी ने मन्त्र उच्चारण किया

गुरूजी:-"ओम ... ह्रीं, क्लीं ... ... नमः!"

फिर संजीव हाथ जोड़ कर बोला

संजीव:-गुरूजी अब आप स्तनपान कर माँ योनि का आशीर्वाद प्राप्त कीजिये "।


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गुरूजी मेरी गोद में लेट गए अब मैंने उनका सर एक बच्चे की तरह लिया। धीरे से मैंने उनके सिर के पिछले हिस्से को उठाया और अपने स्तनों के पास ले गई। गुरूजी का मुंह मेरे स्तनों के पास आ गया और धीरे-धीरे गुरूजी ने मेरे स्तन अपने मुँह में ले लिए...... वाह...स्वर्गीय अनुभूति...धीरे-धीरे गुरूजी ने स्तन को चुसना और चबाना शुरू किया। जैसे ही गुरूजी मेरे स्तन चूसना शुरू किया। पीछे से उदय ने दूध से भरे गिलास को मेरे स्तनों पर डाल दिया। दूध धीरे-धीरे स्तनों से टपकने लगा... एरोला में... और फिर गुरूजी के मुंह में। मेरी योनि लगातार रस भ रही थी और मैंने देखा गुरूजी का लंड बिलकुल कड़ा ही खड़ा हो गया था । जैसे ही उदय ने दूध डाला... यह मेरे स्तनों से गुरूजी के मुंह, चेहरे पर टपकने लगा। वास्तव में, केवल मेरे निप्पल ही नहीं, एरोला। और गुरूजी ने मेरे स्तनों को का एक हिस्सा भी अपने मुंह में डाल लिया।

मैंने आगे की ओर झुक कर अपना स्तन गुरूजी के मुँह में भर दिया और गुरुजी ने मेरा निप्पल चुमनाऔर चूसना शुरू कर दिया। मेरे पास कराहने के अलावा कोई विकल्प नहीं था राजकमल मंत्रो का उच्चारण कर रहा था ।

मैं:-हम्म... नहीं... हम्म... आह ओह्ह्ह ... हममम...

गिलास का दूध खत्म हो गया और उसी के साथ राजकमल ने मन्त्र बोला

राजकमल:-"ओम ... ह्रीं, क्लीं ... ... नमः!"

गुरूजी ने स्तनपान बंद किया और खड़े होकर बोले ।

गुरु जी: धन्यवाद राजकमल।

गुरूजी:-"ओम ... ह्रीं, क्लीं ... ... नमः!" हे माँ योनि! जिस प्रकार आपने हमे अपना स्तनपान करवाया है उसी प्रकार रश्मि को भी अपने संतान को स्तनपान करवाने का सुअवसर देने के लिए उसकी संतान की इच्छा पूर्ण कीजिये ।

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