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Thriller आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07
#81
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

महायज्ञ की तैयारी-

‘महायज्ञ परिधान'

Update -27

तंत्र ज्ञान





मैं काफ़ी लंबे समय तक पुस्तक से चिपकी रही सबसे पहले पुस्तक में तांत्रिक क्रियाओ के बारे में संक्षेप में बताया था की लिंग पुराण में सृष्टि के नैसर्गिक सामंजस्य का तात्विक ज्ञान भगवान् शिव ने दिया है। सभी ग्रन्थ मनुष्य मात्र के लिए ध्यान योग के अभ्यास से ही आत्मज्ञान पाने का सहज मार्ग दिखलाते हैं ।

  लिंग देव गुरु-जी ने कहा है कि क्रिया की साधना के द्वारा गृहस्थ भी साधू है, और धारण न करने योग्य कर्म ही अधर्म है । मैं लिंग में ही ध्यान करने योग्य हूँ । मुझ से उत्पन्न यह स्त्री जगत की योनी है, प्रकृति है । लिंग  वेदी महा स्त्री  हैं और लिंग स्वयं  लिंग  लिंग देव हैं। पुर अर्थात देह में शयन करने के कारण पुरुष कहा जाता है। मैं पुरुष रूप हूँ और स्त्री प्रकृति है, सब नरों के शरीर में दिव्य रूप से लिंग देव विराजमान हैं, इसमें संदेह नहीं करना चाहिए. सब मनुष्यों का शरीर लिंग देव का दिव्य शरीर है ।शुभ भावना से युक्त योगियों का शरीर तो लिंग देव का साक्षात् शरीर है। जब समरस में स्थित योगी ध्यान यज्ञ में रत होता है तो लिंग देव उसके समीप ही होते हैं" ।

योनी तंत्र के अनुसार (जो माता और लिंग देव का संवाद है)  तीनों शक्तियों का निवास प्रत्येक नारी की योनी में है क्योंकि हर स्त्री  योनी का ही अंश है । दश महाविद्या अर्थात स्त्री के दस पूजनीय रूप भी योनी में निहित है। अतः पुरुष को अपना आध्यात्मिक उत्थान करने के लिए मन्त्र उच्चारण के साथ स्त्री के दस रूपों की अर्चना योनी पूजा द्वारा करनी चाहिए ।

योनी तंत्र में लिंग देव ने स्पष्ट कहा है कि  लिंग देव स्वयं भी योनी पूजा से ही शक्तिमान हुए हैं ।   लिंग देव भी योनी पूजा कर योनी तत्त्व को सादर मस्तक पर धारण करते थे ऐसा योनी तंत्र में कहा गया है क्योंकि बिना योनी की दिव्य उपासना के पुरुष की आध्यात्मिक उन्नति संभव नहीं है । सभी स्त्रियाँ योनी का अंश होने के कारण इस सम्मान की अधिकारिणी हैं" । अतः अपना भविष्य उज्ज्वल चाहने वाले पुरुषों को कभी भी स्त्रियों का तिरस्कार या अपमान नहीं करना चाहिए ।

यह वैज्ञानिक सत्य है कि पुरुष शरीर में निर्मित होने वाले शुक्राणु किसी अज्ञात शक्ति से चालित होकर अंडाणु से संयोग करने के लिए गुरुत्वाकर्षण के नियम का उल्लंघन करके आगे बढ़ते हैं। योग और अध्यात्म विज्ञान के अनुसार शुक्राणु जीव आत्मा होते हैं जो शरीर पाने के लिए अंडाणु से संयोग करने के लिए भागते हैं। इस सत्य से यह सिद्ध होता है कि अरबों खरबों शुक्राणुओं में से किसी दुर्लभ को ही मनुष्य शरीर प्राप्त होता है । इस भयानक संग्राम में विजयी होना निश्चय ही जीव आत्मा की सब से बड़ी उपलब्धि है जो हमारी समरण शक्ति में नहीं टिकती।

योग के अनुसार मानव शरीर प्रकृति के चौबीस तत्वों से बना है जो हैं-पांच ज्ञानेन्द्रियाँ (आँख, नाक, कान, जीभ व त्वचा) , पांच कर्मेन्द्रियाँ (हाथ, पैर, जननेद्रिय, मलमूत्र द्वार और मूंह) , पञ्च कोष (अन्नमय, प्राण मय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय) , पञ्च प्राण (पान, अपान, सामान, उदान, व्यादान) , मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार । आत्मा इनका आधार और दृष्टा है और ईश्वर का ही प्रतिबिम्ब है जो दिव्य प्रकाश स्वरूप है जिसका दर्शन ध्यान और समाधि में किसी को भी हो सकता है।

जब तक कोई भी व्यक्ति स्वयं आत्मज्ञान पाने के लिए आत्म ध्यान नहीं करता तब तक कोई ग्रन्थ और गुरु उसका कल्याण नहीं कर सकते यह  लिंग देव ने स्पष्ट रूप से ज्ञान संकलिनी तंत्र में कहा है, -"यह तीर्थ है वह तीर्थ है, ऐसा मान कर पृथ्वी के तीर्थों में केवल तामसी व्यक्ति ही भ्रमण करते हैं। आत्म तीर्थ को जाने बिना मोक्ष कहाँ संभव है?" युद्ध में शर शैय्या पर  यही उपदेश दिया की सब से श्रेष्ठ तीर्थ मनुष्य का अंतःकरण और सब से पवित्र जल आत्मज्ञान ही है ।

इस ज्ञान को धारण कर जब पति पत्नी आध्यात्मिक तादात्म्य स्थापित कर दैहिक सम्बन्ध द्वारा किसी अन्य जीव आत्मा का आव्हान संतान के रूप में करते हैं तो वह सृष्टि के कल्याण के लिए महान यग्य संपन्न करते हैं । इसी ज्ञान को चरितार्थ करने के लिए भगवान् लिंग देव  के पुत्र ने जब विश्व की परिक्रमा करने का आदेश अपने पिताश्री से पाया तो चुप चाप अपने मूषक पर बैठ कर माता-पिता की परिक्रमा कर ली क्योंकि आध्यात्मिक ज्ञान के अनुसार माता पृथ्वी से अधिक गौरवशालिनी और पिता आकाश के सामान व्यापक कहा जाता है ।

 लिंग देव ने ज्ञान दिया है और मनुष्य देह में स्थित चक्रों और आत्मज्योति रूपी परमात्मा के साक्षात्कार का मार्ग बताया है ।स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर प्रत्येक मनुष्य के अस्तित्व में हैं ।सूक्ष्म शारीर में मन और बुद्धि हैं ।मन सदा संकल्प-विकल्प में लगा रहता है; बुद्धि अपने लाभ के लिए मन के सुझावों को तर्क-वितर्क से विश्लेषण करती रहती है । कारण या लिंग शरीर ह्रदय में स्थित होता है जिसमें अहंकार और चित्त मंडल के रूप में दिखाई देते हैं ।

अहंकार अपने को श्रेष्ठ और दूसरों के नीचा दिखने का प्रयास करता है और चित्त पिछले अनेक जन्मोंके घनीभूत अनुभवों, को संस्कार के रूप में संचित रखता है ।आत्मा जो एक ज्योति है इससे परे है किन्तु आत्मा के निकलते ही स्थूल शरीर से सूक्ष्म और कारण शरीर अलग हो जाते हैं ।कारण शरीर को लिंग शरीर भी कहा गया हैं क्योंकि इसमें निहित संस्कार ही आत्मा के अगले शरीर का निर्धारण करते हैं ।

आत्मा से आकाश; आकाश से वायु; वायु से अग्नि ' अग्नि से जल और जल से पृथ्वी की उत्पत्ति शिवजी ने बतायी है ।पिछले कर्म द्वारा प्रेरित जीव आत्मा, वीर्य जो की खाए गए भोजन का सूक्ष्मतम तत्व है, के र्रूप में परिणत हो कर माता के गर्भ में प्रवेश करता है जहाँ मान के स्वभाव के अनुसार उसके नए व्यक्तित्व का निर्माण होता ह। गर्भ में स्थित शिशु अपने हाथों से कानों को बंद करके अपने पूर्व कर्मों को याद करके पीड़ित होता और-और अपने को धिक्कार कर गर्भ से मुक्त होने का प्रयास करता है ।

जन्म लेते ही बाहर की वायु का पान करते ही वह अपने पिछले संस्कार से युक्त होकर पुरानी स्मृतियों को भूल जाता है । शरीर में सात धातु हैं त्वचा, रक्त, मांस, वसा, हड्डी, मज्जा और वीर्य (नर शरीर में) या रज (नारी शरीर में) । देह में नो छिद्र हैं, -दो कान, दो नेत्र, दो नासिका, मुख, गुदा और लिंग ।स्त्री शरीर में दो स्तन और एक भग यानी गर्भ का छिद्र अतिरिक्त छिद्र हैं ।स्त्रियों में बीस पेशियाँ पुरुषों से अधिक होती हैं । उनके वक्ष में दस और भग में दस और पेशियाँ होती हैं ।

योनी में तीन चक्र होते हैं, तीसरे चक्र में गर्भ शैय्या स्थित होती है ।लाल रंग की पेशी वीर्य को जीवन देती है ।शरीर में एक सो सात मर्म स्थान और तीन करोड़ पचास लाख रोम कूप होते हैं ।जो व्यक्ति योग अभ्यास में निरत रहता है वह नाद और तीनों लोकों को सुखपूर्वक जानता और भोगता है । मूल आधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा और सहस्त्रार नामक साथ ऊर्जा केंद्र शरीर में हैं जिन पर ध्यान का अभ्यास करने से  शक्ति प्राप्त होती है ।

सहस्रार में प्रकाश दीखने पर वहाँ से अमृत वर्षा का-सा आनंद प्राप्त होता है जो मनुष्य शरीर की परम उपलब्धि है । जिसको अपने शरीर में दिव्य आनंद मिलने लगता है वह फिर चाहे भीड़ में रहे या अकेले में; चाहे इन्द्रियों से विषयों को भोगे या आत्म ध्यान का अभ्यास करे उसे सदा परम आनंद और मोह से मुक्ति का अनुभव होता है ।

मनुष्य का शरीर अनु-परमाणुओं के संघटन से बना है । जिस तरह इलेक्ट्रौन, प्रोटोन, सदा गति शील रहते हैं किन्तु प्रकाश एक ऊर्जा मात्र है जो कभी तरंग और कभी कण की तरह व्यवहार करता है उसी तरह आत्म सूर्य के प्रकाश से भी अधिक सूक्ष्म और व्यापक है । यह इस तरह सिद्ध होता है कि सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक आने में कुछ मिनट लगे हैं जब की मनुष्य उसे आँख खोलते ही देख लेता है ।अतः आत्मा प्रकाश से भी सूक्ष्म है जिसका अनुभव और दर्शन केवल ध्यान के माध्यम से होता है ।

जब तक मन उस आत्मा का साक्षात्कार नहीं कर लेता उसे मोह से मुक्ति नहीं मिल सकती । मोह मनुष्य को भय भीत करता है क्योंकि जो पाया है उसके खोने का भय उसे सताता रहता है जबकि आत्म दर्शन से दिव्य प्रेम की अनुभूति होती है जो व्यक्ति को निर्भय करती है क्योंकि उसे सब के अस्तित्व में उसी दिव्य ज्योति का दर्शन होने लगता है।


[b]जिन्हे इस विषय पर कोई भी आपत्ति है वो इस अंश के लिए योनि तंत्र नामक पुस्तक पढ़े उसे बाद पुस्तक में  पूरी विधि और नियम और गर्भदान की कहानिया विस्तार से समझायी हुई है


कहानी जारी रहेगी[/b]
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#82
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

महायज्ञ की तैयारी-

‘महायज्ञ परिधान'

Update -27A


योनि (वेजाइना) के बारे में जानकारी

महिला के यौनांग शरीर के अन्दर एवं बाहर होते हैं। ’योनि‘ शब्द का प्रयोग अक्सर महिला के जननांग या यौनांग के लिए किया जाता है जबकी योनि यौनांगों का सिर्फ एक भाग है। योनि एक नली या द्वार है जो बाहरी यौनांगों को भीतरी यौनांगों से जोड़ती है।


योनी
योनी बाहर के यौन अंग और बच्चादानी (गर्भाशय) के बीच का रास्ता है। यह वह जगह है जहां मासिक धर्म का खून शरीर से निकलता है, जहां से पुरूष का लिंग संभोग के दौरान अंदर जाता है, और जहां से पैदा होने पर बच्चा बाहर निकलता है।

योनी की दीवारों पर चिपचिपी झिल्ली होती है - जो आपके मुंह के अंदर जैसी नमी पैदा करती है। यह नमी संभोग के लिए चिकनाई देती है, जिससे संभोग ज़्यादा आरामदायक और सुखद हो जाता है, और यह बिमारी से भी बचाती है।
जब आप यौन के लिए उत्तेजित होती हैं, तो आपकी योनी गीली हो कर ढीली पड़ जाती है। इससे आपको योनी के अंदर एक उंगली या लिंग घुसाने में मदद मिलती है। चूंकि योनी एक मांस पेशी है, यह कड़ी या ढीली हो सकती है, और आप इसे कुछ क़ाबू में रख सकती हैं।

[Image: vagina-and-more.jpg?itok=7Gy6NfE3]

अपने लिए खुद महसूस करें
• पेशाब करते वक्त अपनी मांसपेशियों को निचोड़ें और छोड़ दें। आप अपने पेशाब की गति और मात्रा पर कुछ क़ाबू कर सकती हैं। ये वही मांस पेशियां हैं जो योनी को कसते हैं। आप संभोग के दौरान भी उनका इस्तेमाल कर सकती हैं।
• एक आईना लें और अपनी योनी के मुख को देखें। छू कर महसूस करें कि आपकी योनी कैसी है।
[Image: vagina-internal.jpg?itok=kjpOGB8P]

• अपनी योनी के अंदर एक उंगली डालें। अंदर आपके गालों की तरह मुलायम लगता है, और आपके मुंह के ऊपर के जैसा थोड़ा ऊबड़-खाबड़ भी महसूस होता है।
• अपनी योनी को सहलाएं। देखें कि आपको क्या अच्छा लगता है और कैसे उत्तेजित महसूस होता है। इस तरह आप संभोग के चरम तक पहुँच सकती हैं। हस्तमैथुन करना - अपने आप पर संभोग - अपनी पसंद को जानने का एक अच्छा तरीका है। जितना बेहतर आप जानेंगी कि आपको क्या उत्तेजित करता है, उतना ही आपके लिए किसी दूसरे इंसान के साथ संभोग का आनंद लेना आसान होगा।
एक महिला के शरीर के बारे में और जानने के लिए हमारा वीडियो देखें।


पेलविक फ्लोर
आपके मलद्वार, योनी और मूत्रमार्ग के छेद के आसपास की मांस पेशियों को पेलविक फ्लोर की मांस पेशियां कहते हैं। मूत्रमार्ग का छेद आपके जांघों की हड्डियों (प्यूबिक बोन) और रीढ़ की आखिरी, निचले हिस्से (कोक्सीक्स, या टेलबोन) के बीच होता है।
जांघों की हड्डी आपके पेट के नीचे होती है, ठीक योनी के ऊपर। कोक्सीक्स, या टेलबोन आपकी राढ़ की हड्डी के नीचे होता है जो कि आपके गुदा ठीक ऊपर होता है।


• अपने पेलविक फ्लोर की मांस पेशियों को कसें और ढीला छोड़ें। ऐसा करने से पेशाब को बीच में रोक कर जैसा लगता है, वैसा महसूस होगा।
• आप अपनी योनी के आस पास की मांस पेशियों में खिंचाव को एक उंगली से महसूस कर सकती हैं। अपनी योनी के अंदर एक उंगली डालें, फिर उसके के चारों ओर के मांस पेशियों को निचोड़ें।
[Image: pelvic.jpg?itok=2kmos1Mb]

बच्चादानी
गर्भ, बच्चादानी या गर्भाशय, वह जगह है जहां एक बच्चा आपके अंदर बढ़ सकता है। यह मजबूत मांस पेशियों से बने एक थैले की तरह है, जो आपके पेट में काफी नीचे होता है।
जब आप गर्भवती नहीं होती हैं तो इसकी लंबाई 7.5 और 10 सेमी (3 और 4 इंच) के बीच रहती है। यह उल्टे नाशपाती के आकार का होता है।
गर्भ की आंतरिक दीवार वह जगह है जहां एक उपजाऊ अंडे एक बच्चे में विकसित हो सकता है। बढ़ते हुए बच्चे को पकड़े रहने के लिए, गर्भाशय की लंबाई 31 सेमी (12 इंच) तक बढ़ सकती है।
आपके मासिक धर्म का खून भी गर्भ से ही आता है। यदि कोई उपजाऊ अंडा गर्भ की दीवार से खुद को नहीं जोड़ पाता है, गर्भाशय अपनी परत को गिरा देता है जो योनी से रक्त के रूप में शरीर से बाहर आता है।
[Image: womb.jpg?itok=rY7SgcdO]

सर्विक्स या गर्भाशय का गला - खुद महसूस करें
बच्चेदानी के प्रवेश द्वार को सर्विक्स या गर्भाशय का गला कहते हैं। आप अपनी योनी के अंदर एक उंगली डाल कर इसे खुद महसूस कर सकती हैं। यह आपकी नाक की नोक की तरह चिकना और सख्त होता है। जब आप उत्तेजित होती हैं तो इस तक पहुंचने में परेशानी हो सकती है, क्योंकि तब यह योनी को लंबा बनाने के लिए ऊपर चली जाता है।
[Image: womb_labels.jpg?itok=r9X-cWJ-]

अंडाशय के बारे में और
अंडाशय
अंडाशय गर्भ के दोनों तरफ होते हैं। वे अंडा कोशिकाओं और एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का उत्पादन करते हैं। एस्ट्रोजेन हार्मोन आपके शरीर को युवावस्था के दौरान बदलने में मदद करता है,  जिससे आपका स्तन बनता है और आपका शरीर यौन संबंध के लिए तैयार होता है। एस्ट्रोजेन के साथ मिलकर, प्रोजेस्टेरोन हार्मोन मासिक धर्म और गर्भावस्था के दौरान बच्चेदानी की दीवारों को मोटा बनाता है।
[Image: cervix_0.jpg?itok=kQUD3dfB]

गर्भाशय नाल या फैलोपियन ट्यूब
फैलोपियन ट्यूब, बच्चेदानी के प्रत्येक तरफ होते हैं। यह अंडाशय को बच्चादानी से जोड़ते हैं। यह उन अंडों को अंडाशय से गर्भ ले जाते हैं, जो कि उपजाऊ नहीं हैं।
[Image: ovaries.jpg?itok=xjU8h13P]

अंडों की कोशिकाएं
 
हर महिला अपने अंडाशय में लगभग 250,000 अंडे के साथ पैदा होती हैं। इसका मतलब है कि जब आप पैदा होती हैं तो वह अंडा जो आपके बेटे या बेटी बनने के लिए एक दिन बढ़ सकता है, पहले से ही आपके अंडाशय के अंदर मौजूद होता है! अंडे एक बहुत छोटे पिन के सिरे के आकार के होते हैं।
 
[Image: fallopian-tubes-and-more.jpg?itok=8u1dgCeq]

स्त्री बीज जनन या ओव्यलैशन
जब आप युवावस्था पाती हैं, तो हार्मोन अंडाशयों को हर महीने - लगभग 28 दिनों पर – एक अंडा निकालने के लिए संकेत देना शुरू करते हैं। इसे स्त्री बीज जनन या ओव्यलैशन कहा जाता है। अंडे फिर फैलोपियन ट्यूब से बच्चादानी तक पहुँचते हैं।
यदि एक शुक्राणु कोशिका अंडे को उपजाऊ कर पाता है, तो अंडा खुद को गर्भ की दीवार में गड़ा कर, एक बच्चे के रुप में बढ़ने लगता है। अगर अंडा शुक्राणु कोशिका से उपजाऊ नहीं होता है,  तो वह आपके मासिक धर्म के दौरान आपकी योनी से खून के साथ बाहर निकल जाएगा।
ओव्यलैशन के समय, आपके गर्भवती होने की सबसे ज़्यादा उम्मीद होती है। इस दौरान आपका शरीर सबसे ज़्यादा उपजाऊ होता है। इसका मतलब है कि आपके ओव्यलैशन के पांच दिन पहले या एक दिन बाद।



जिन्हे इस विषय पर कोई भी आपत्ति है वो इस अंश के लिए योनि तंत्र नामक पुस्तक पढ़े उसे बाद पुस्तक में पूरी विधि और नियम और गर्भदान की कहानिया विस्तार से समझायी हुई है

कहानी जारी रहेगी


[b]NOTE welcome


[/b]

1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .



2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.



3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .



जब मैंने ये कहानी यहाँ डालनी शुरू की थी तो मैंने भी इसका अधूरा भाग पढ़ा था और मैंने कुछ आगे लिखने का प्रयास किया और बाद में मालूम चला यह कहानी अंग्रेजी में "समितभाई" द्वारा "गुरु जी का (सेक्स) ट्रीटमेंट" शीर्षक से लिखी गई थी और अधूरी छोड़ दी गई थी। बाद में 2017 में समीर द्वारा हिंदी अनुवाद शुरू किया गया, जिसका शीर्षक था "एक खूबसूरत हाउस वाइफ, गुरुजी के आश्रम में" और लगभग 33% अनुवाद "Xossip" पर किया गया था। अभी तक की कहानी मुलता उन्ही की कहानी पर आधारित है या उसका अनुवाद है और अब कुछ हिस्सों का अनुवाद मैंने किया है ।

कहानी काफी लम्बी है और मेरा प्रयास जारी है इसको पूरा करने का ।




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#83
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CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

परिधान'

Update -27B


ज्ञान





मैं काफ़ी लंबे समय तक पुस्तक से चिपकी रही सबसे पहले पुस्तक में तांत्रिक क्रियाओ के बारे में संक्षेप में बताया था की लिंग पुराण में सृष्टि के नैसर्गिक सामंजस्य का तात्विक ज्ञान भगवान् शिव ने दिया है। सभी ग्रन्थ मनुष्य मात्र के लिए ध्यान योग के अभ्यास से ही आत्मज्ञान पाने का सहज मार्ग दिखलाते हैं ।


पुस्तक में स्पष्ट लिखा था कि क्रिया की साधना के द्वारा गृहस्थ भी साधू है, धारण करने योग्य कर्म ही धर्म है और धारण न करने योग्य कर्म ही अधर्म है । मैं लिंग में ही ध्यान करने योग्य हूँ ।मुझ से उत्पन्न यह जगत की योनी है, प्रकृति है । लिंग वेदी हैं और लिंग ही पुरुष है हैं। पुर अर्थात देह में शयन करने के कारण पुरुष कहा जाता है। लिंग पुरुष रूप हूँ और योनि प्रकृति का रूप है, सब नरों के शरीर में दिव्य रूप विराजमान हैं, इसमें संदेह नहीं करना चाहिए. सब मनुष्यों का शरीर दिव्य शरीर है । युक्त योगियों का शरीर शुभ भावना से है।

हर स्त्री में योनि का अंश है । दसो पूजनीय रूप भी योनी में निहित है। अतः पुरुष को अपना आध्यात्मिक उत्थान करने के लिए मन्त्र उच्चारण के साथ देवी के दस रूपों की अर्चना योनी पूजा द्वारा करनी चाहिए ।

सभी योगेश्वर भी योनी पूजा कर योनी तत्त्व को सादर मस्तक पर धारण करते थे ऐसा योनी तंत्र में कहा गया है क्योंकि बिना योनी की दिव्य उपासना के पुरुष की आध्यात्मिक उन्नति संभव नहीं है । सभी स्त्रियाँ में योनि का अंश होने के कारण इस सम्मान की अधिकारिणी हैं" । अतः अपना भविष्य उज्ज्वल चाहने वाले पुरुषों को कभी भी स्त्रियों का तिरस्कार या अपमान नहीं करना चाहिए ।

यह वैज्ञानिक सत्य है कि पुरुष शरीर में निर्मित होने वाले शुक्राणु किसी अज्ञात शक्ति से चालित होकर अंडाणु से संयोग करने के लिए गुरुत्वाकर्षण के नियम का उल्लंघन करके आगे बढ़ते हैं। योग और अध्यात्म विज्ञान के अनुसार शुक्राणु जीव आत्मा होते हैं जो शरीर पाने के लिए अंडाणु से संयोग करने के लिए भागते हैं। इस सत्य से यह सिद्ध होता है कि अरबों खरबों शुक्राणुओं में से किसी दुर्लभ को ही मनुष्य शरीर प्राप्त होता है । इस भयानक संग्राम में विजयी होना निश्चय ही जीव आत्मा की सब से बड़ी उपलब्धि है जो हमारी समरण शक्ति में नहीं टिकती।

मानव शरीर प्रकृति के चौबीस तत्वों से बना है जो हैं-पांच ज्ञानेन्द्रियाँ (आँख, नाक, कान, जीभ व त्वचा) , पांच कर्मेन्द्रियाँ (हाथ, पैर, जननेद्रिय, मलमूत्र द्वार और मूंह) , पञ्च कोष (अन्नमय, प्राण मय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय) , पञ्च प्राण (पान, अपान, सामान, उदान, व्यादान) , मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार । आत्मा इनका आधार और दृष्टा है और ईश्वर का ही प्रतिबिम्ब है जो दिव्य प्रकाश स्वरूप है जिसका दर्शन ध्यान और समाधि में किसी को भी हो सकता है।

सहस्रार में प्रकाश दीखने पर वहाँ से अमृत वर्षा का-सा आनंद प्राप्त होता है जो मनुष्य शरीर की परम उपलब्धि है । जिसको अपने शरीर में दिव्य आनंद मिलने लगता है वह फिर चाहे भीड़ में रहे या अकेले में; चाहे इन्द्रियों से विषयों को भोगे या आत्म ध्यान का अभ्यास करे उसे सदा परम आनंद और मोह से मुक्ति का अनुभव होता है ।

मनुष्य का शरीर अनु-परमाणुओं के संघटन से बना है । जिस तरह इलेक्ट्रौन, प्रोटोन, सदा गति शील रहते हैं किन्तु प्रकाश एक ऊर्जा मात्र है जो कभी तरंग और कभी कण की तरह व्यवहार करता है उसी तरह आत्म सूर्य के प्रकाश से भी अधिक सूक्ष्म और व्यापक है । यह इस तरह सिद्ध होता है कि सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक आने में कुछ मिनट लगे हैं जब की मनुष्य उसे आँख खोलते ही देख लेता है ।अतः आत्मा प्रकाश से भी सूक्ष्म है जिसका अनुभव और दर्शन केवल ध्यान के माध्यम से होता है ।

जब तक मन उस आत्मा का साक्षात्कार नहीं कर लेता उसे मोह से मुक्ति नहीं मिल सकती । मोह मनुष्य को भय भीत करता है क्योंकि जो पाया है उसके खोने का भय उसे सताता रहता है जबकि आत्म दर्शन से दिव्य प्रेम की अनुभूति होती है जो व्यक्ति को निर्भय करती है क्योंकि उसे सब के अस्तित्व में उसी दिव्य ज्योति का दर्शन होने लगता है।

इस ज्ञान को धारण कर जब पति पत्नी आध्यात्मिक तादात्म्य स्थापित कर दैहिक सम्बन्ध द्वारा किसी अन्य जीव आत्मा का आव्हान संतान के रूप में करते हैं तो वह सृष्टि के कल्याण और संरचना के लिए महान यग्य संपन्न करते हैं।



[b][b]पुस्तक में स्पष्ट [/b] कहा गया है कि क्रिया की साधना के द्वारा गृहस्थ भी साधू है, धारण करने योग्य कर्म ही धर्म है और धारण न करने योग्य कर्म ही अधर्म है । मैं लिंग में ही ध्यान करने योग्य हूँ ।मुझ से उत्पन्न यह  जगत की योनी है, प्रकृति है । 

योनी तंत्र में कहा गया है क्योंकि बिना योनी की दिव्य उपासना के पुरुष की आध्यात्मिक उन्नति संभव नहीं है । सभी स्त्रियाँ परमेश्वरी भगवती का अंश होने के कारण इस सम्मान की अधिकारिणी हैं" । अतः अपना भविष्य उज्ज्वल चाहने वाले पुरुषों को कभी भी स्त्रियों का तिरस्कार या अपमान नहीं करना चाहिए ।

यह वैज्ञानिक सत्य है कि पुरुष शरीर में निर्मित होने वाले शुक्राणु किसी अज्ञात शक्ति से चालित होकर अंडाणु से संयोग करने के लिए गुरुत्वाकर्षण के नियम का उल्लंघन करके आगे बढ़ते हैं। योग और अध्यात्म विज्ञान के अनुसार शुक्राणु जीव आत्मा होते हैं जो शरीर पाने के लिए अंडाणु से संयोग करने के लिए भागते हैं। इस सत्य से यह सिद्ध होता है कि अरबों खरबों शुक्राणुओं में से किसी दुर्लभ को ही मनुष्य शरीर प्राप्त होता है । इस भयानक संग्राम में विजयी होना निश्चय ही जीव आत्मा की सब से बड़ी उपलब्धि है जो हमारी समरण शक्ति में नहीं टिकती।

[/b]
[b][b]योनी तंत्र [/b]के अनुसार मानव शरीर प्रकृति के चौबीस तत्वों से बना है जो हैं-पांच ज्ञानेन्द्रियाँ (आँख, नाक, कान, जीभ व त्वचा) , पांच कर्मेन्द्रियाँ (हाथ, पैर, जननेद्रिय, मलमूत्र द्वार और मूंह) , पञ्च कोष (अन्नमय, प्राण मय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय) , पञ्च प्राण (पान, अपान, सामान, उदान, व्यादान) , मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार । आत्मा इनका आधार और दृष्टा है और  दिव्य प्रकाश स्वरूप है जिसका दर्शन ध्यान और समाधि में किसी को भी हो सकता है।[/b]


जब तक कोई भी व्यक्ति स्वयं आत्मज्ञान पाने के लिए आत्म ध्यान नहीं करता तब तक कोई ग्रन्थ और गुरु उसका कल्याण नहीं कर सकते [b]। 
योनी तंत्र में कहा है, -"यह तीर्थ है वह तीर्थ है, ऐसा मान कर पृथ्वी के तीर्थों में केवल तामसी व्यक्ति ही भ्रमण करते हैं। आत्म तीर्थ को जाने बिना मोक्ष कहाँ संभव है?" सब से श्रेष्ठ तीर्थ मनुष्य का अंतःकरण और सब से पवित्र जल आत्मज्ञान ही है ।

जो व्यक्ति योग अभ्यास में निरत रहता है सुखपूर्वक जानता और भोगता है । मूल आधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा और सहस्त्रार नामक साथ ऊर्जा केंद्र शरीर में हैं जिन पर ध्यान का अभ्यास करने से  शक्ति प्राप्त होती है ।

सहस्रार में प्रकाश दीखने पर वहाँ से अमृत वर्षा का-सा आनंद प्राप्त होता है जो मनुष्य शरीर की परम उपलब्धि है । जिसको अपने शरीर में दिव्य आनंद मिलने लगता है वह फिर चाहे भीड़ में रहे या अकेले में; चाहे इन्द्रियों से विषयों को भोगे या आत्म ध्यान का अभ्यास करे उसे सदा परम आनंद और मोह से मुक्ति का अनुभव होता है ।

मनुष्य का शरीर अनु-परमाणुओं के संघटन से बना है । जिस तरह इलेक्ट्रौन, प्रोटोन, सदा गति शील रहते हैं किन्तु प्रकाश एक ऊर्जा मात्र है जो कभी तरंग और कभी कण की तरह व्यवहार करता है उसी तरह आत्म सूर्य के प्रकाश से भी अधिक सूक्ष्म और व्यापक है । यह इस तरह सिद्ध होता है कि सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक आने में कुछ मिनट लगे हैं जब की मनुष्य उसे आँख खोलते ही देख लेता है ।अतः आत्मा प्रकाश से भी सूक्ष्म है जिसका अनुभव और दर्शन केवल ध्यान के माध्यम से होता है ।

आत्म दर्शन से दिव्य प्रेम की अनुभूति होती है जो व्यक्ति को निर्भय करती है क्योंकि उसे सब के अस्तित्व में उसी का दर्शन होने लगता है।

कहानी जारी रहेगी

NOTE welcome


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1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .



2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.



3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .



जब मैंने ये कहानी यहाँ डालनी शुरू की थी तो मैंने भी इसका अधूरा भाग पढ़ा था और मैंने कुछ आगे लिखने का प्रयास किया और बाद में मालूम चला यह कहानी अंग्रेजी में "समितभाई" द्वारा "गुरु जी का (सेक्स) ट्रीटमेंट" शीर्षक से लिखी गई थी और अधूरी छोड़ दी गई थी। बाद में 2017 में समीर द्वारा हिंदी अनुवाद शुरू किया गया, जिसका शीर्षक था "एक खूबसूरत हाउस वाइफ, गुरुजी के आश्रम में" और लगभग 33% अनुवाद "Xossip" पर किया गया था। अभी तक की कहानी मुलता उन्ही की कहानी पर आधारित है या उसका अनुवाद है और अब कुछ हिस्सों का अनुवाद मैंने किया है ।

कहानी काफी लम्बी है और मेरा प्रयास जारी है इसको पूरा करने का ।




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  1. मजे - लूट लो जितने मिले

  2. दिल्ली में सुलतान V रफीक के बीच युद्ध

  3. अंतरंग हमसफ़र

  4. पड़ोसियों और अन्य महिलाओ के साथ एक नौजवान के कारनामे

  5. गुरुजी के आश्रम में सावित्री

  6. छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता एव उभरता प्रेम

  7.  मेरे निकाह मेरी कजिन के 

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#84
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

परिधान'

Update -28


मुद्रा



सचाई को जनना ज़रूरी होता हे। तंत्र को योग को भी कहते है। योग भी कई प्रकार के होता हे जैसे शरीर द्वारा व्यायाम, ध्यान और औषधियाँ के मिश्रण को नक्षत्र में लाकर रोगो कि चिकित्सा करना तथा मंत्र सक्ति से सुद्ध करना ही तंत्र हे। तंत्र और योग पूर्णतया वैज्ञानिक है ।

हमारा हिन्दू तंत्र मंत्र सनातन और बडा विज्ञान मय हे। तंत्र मंत्र योग आदि सब का स्थान विशेष हे।

तंत्र में मुद्रा का विशेष महत्त्व हे यह हमारे अंगो के मोड ने से बनती हे जिस के द्वारा देवता को द्रवित और प्रसंन्न करना हे।

देवता को खुस करने को शरीर से द्रवित और प्रसन्न करना आवश्यक है। जिसके लिए उस मुद्रा में योनि मुद्रा दरशायी गयी है,



[Image: MUDRA.jpg]

योनि मुद्रा-ये मुद्रा कामवासना पर काबु करती हे।



योनी तंत्र जैसे सामाजिक रूप से कलंकित और जटिल तंत्र के बारे कहते हैं की-भारत के ऋषियों नें जो भी मनुष्य को दिया वो अत्यंत श्रेष्ठ और उच्चकोटि का ज्ञान ही था. जिसमें तंत्र भी एक है. तंत्र में एक दिव्य शब्द है 'योनी पूजा' जिसका बड़ा ही गूढ़ और तात्विक अर्थ है. किन्तु कालान्तर में अज्ञानी पुरुषों व वासना और भोग की इच्छा रखने वाले कथित धर्म पुरोधाओं ने स्त्री शोषण के लिए तंत्र के महान रहस्यों को निगुरों की भांति स्त्री शरीर तक सीमित कर दिया. हालांकि स्त्री शरीर भी पुरुष की भांति ही सामान रूप से पवित्र है. लेकिन तंत्र की योनी पूजा सृष्टि उत्पत्ति के बिंदु को 'योनी' यानि के सृजन करने वाली कह कर संबोधित करता है.

कहानी जारी रहेगी


NOTE welcome


1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .



2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.



3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .



जब मैंने ये कहानी यहाँ डालनी शुरू की थी तो मैंने भी इसका अधूरा भाग पढ़ा था और मैंने कुछ आगे लिखने का प्रयास किया और बाद में मालूम चला यह कहानी अंग्रेजी में "समितभाई" द्वारा "गुरु जी का (सेक्स) ट्रीटमेंट" शीर्षक से लिखी गई थी और अधूरी छोड़ दी गई थी। बाद में 2017 में समीर द्वारा हिंदी अनुवाद शुरू किया गया, जिसका शीर्षक था "एक खूबसूरत हाउस वाइफ, गुरुजी के आश्रम में" और लगभग 33% अनुवाद "Xossip" पर किया गया था। अभी तक की कहानी मुलता उन्ही की कहानी पर आधारित है या उसका अनुवाद है और अब कुछ हिस्सों का अनुवाद मैंने किया है ।

कहानी काफी लम्बी है और मेरा प्रयास जारी है इसको पूरा करने का ।




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  7.  मेरे निकाह मेरी कजिन के 
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#85
guruji kisi m*slim aurat ko pregnant kare jisko baccha ni ho raha ho fir woh apni rishte dar ko bhi laye aisa scene ho
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#86
very erotic
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#87
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

परिधान'

Update -29


योनि पूजा



पुस्तक में योनि पूजा के बारे में और भी बहुत सारा ज्ञान था तो मैंने कुछ पन्ने पलटे तो उसमे योनि पूजा के बारे में बहुत सारा ज्ञान था उसमे से कुछ हिस्सा जो मुझे काफी रोचक लगा

योनि पूजा

निश्चित तौर पर योनि तंत्र काफ़ी रह्स्य पूर्ण है और गुप्त विद्या है और इसे बिना गुरु की आज्ञा, समर्पण के बिना और सहायता के नहीं करना चाहिए. योनि तंत्र साधना सम्पूर्ण तौर पर योनि पूजा पर ही आधारित है ।

योनि तंत्र-सृष्टि का प्रथम बीज रूप उत्पत्ति योनि से ही होने के कारण तंत्र मार्ग के सभी साधक 'योनि' को आद्याशक्ति मानते हैं। लिंग का अवतरण इसकी ही प्रतिक्रिया में होता है। लिंग और योनि के घर्षण से ही सृष्टि आदि का परमाणु रूप उत्पन्न होता है। इन दोनों संरचनाओं के मिलने से ही इस ब्रह्माण्ड और सम्पुर्ण इकाई का शरीर बनता है और इनकी क्रिया से ही उसमें जीवन और प्राणतत्व ऊर्जा का संरचना होता है। यह योनि एवं लिंग का संगम प्रत्येक के शरीर में चल रहा है।

[Image: 41A6ndB3-fL._SX336_BO1,204,203,200_.jpg]

योनी तंत्र के अनुसार शक्तियों का निवास प्रत्येक नारी की योनी में है। क्योंकि हर स्त्री योनि का ही अंश है। दस पूज्नीय रूप भी योनी में निहित है। अतः पुरुष को अपना आध्यात्मिक उत्थान करने के लिए मन्त्र उच्चारण के साथ योनी पूजन द्वारा करनी चाहिए।

योनी तंत्र में कहा गया है क्योंकि बिना योनी की दिव्य उपासना के पुरुषकीआध्यात्मिक उन्नति संभव नहीं है।

सभी स्त्रियाँ इस सम्मान की अधिकारिणी हैं। अतः तंत्र साधक हो या आम मनुष्य कभी भी स्त्रियों का तिरस्कार या अपमान नहीं करना चाहिए [

मैं काफ़ी लंबे समय के लिए पुस्तक से चिपके हुए थी और विस्तृत यज्ञ प्रक्रियाओं में तल्लीन थी और उत्सुकता से पुराण से निकाले गए अंशो और छंदों को पढ़ रही थी निम्न अंश मुझे दिलचस्प लगे:

योनी की पूजा करके एक निश्चित रूप से नारी शक्ति की ही पूजा की जाती है। तंत्र और मंत्र की तैयारी योनी की पूजा के बिना सिद्धि नहीं देती है।

योगी को तीन बार फूलो के साथ योनी के सामने झुक कर प्रणाम करना चाहिए।

रजस्वला योनी के साथ ही युगल होना चाहिए (अर्थात जिसे मासिक धर्म होता हो ऐसी योनि के साथ ही युगल करना चाहिए)



अगर सौभाग्य से कोई ब्राह्मण लड़की का साथी है, तो उस व्यक्ति को उस ब्राह्मण कन्या या स्त्री के योनी तत्व की पूजा करनी चाहिए। अन्यथा, अन्य योनियों की पूजा करें। बिना योनी पूजा के, सभी फल रहित हैं।



इस महान रहस्य को वैसे तो मुझे इसे छुपाना चाहिए। मंत्र पीठ यन्त्र सभी की उत्पत्ति योनी में हुई है और इसी से वे शक्तिशाली हुए हैं । योनी की पूजा करने से व्यक्ति को मुक्ति मिलती है।

[Image: IMG_0207.jpg]

यदि कोई व्यक्ति मासिक धर्म के फूलों के साथ पूजा करता है, तो उसके भाग्य पर भी उसका अधिकार होता है। इस तरह से अधिक से अधिक पूजा करने से वह मुक्त हो सकता है। इस प्रकार की मासिक धर्म के फूलो वाली योनी की पूजा करने का फल, दुख के सागर से मुक्ति देने वाला, जीवन और उन्नत जीवन शक्ति है। जिस योनी से मासिक धर्म का रक्त निकलता है वह पूजा के लिए सर्वथा उपयुक्त है।

एक ऐसी योनी की पूजा न करें, जिसमें कभी मासिक धर्म नहीं हुआ है। अगर हर बार एक कुंवारी कन्या की योनि (जिसका कौमार्य भंग) नहीं हुआ है कि पूजा करना संभव न हो तो ऐसे योनि की अनुपस्थिति में किसी युवती या किसी सुंदर महिला की धोनी की, बहन की या महिला की योनि या पुतली की पूजा करें। प्रतिदिन योनी की पूजा करें, अन्यथा मंत्र का उच्चारण करें। योनी पूजा के बिना बेकार पूजा न करें।

एक योनी की पूजा करने की इच्छा रखने वाला साधक को स्तंभन होना चाहिए और योनी जो कि शक्ति है उसमे प्रवेश करना चाहिए। इन पर फूल आदि चढ़ाने चाहिए, यदि इसमें असमर्थ हैं, तो शराब के साथ पूजा करें।

[Image: yoni-puja-tantric-rituals-hridaya-yoga.jpg]

एक को अपनी संगिनी की योनी में, उसकी अनुपस्थिति में ही किसी दूसरी युवती की योनि या फिर किसी कुंवारी की योनि और उसकी अनुपस्थिति में अपनी शिष्य की योनि पर श्रद्धा से टकटकी लगानी चाहिए। योनि के माध्यम से ही आनद और मुक्ति मिलती है। भोग के माध्यम से सुख प्राप्त होता है। इसलिए, हर प्रयास से, एक साधक को भोगी होना पड़ता है।

बुद्धिमान व्यक्ति को हमेशा योनी के दोष, घृणा या शर्म से बचना चाहिए। योनी के किनारे पर अमृत चाटना चाहिए, जिससे किसी के शरीर या निवास स्थान में बुराई निश्चित रूप से नष्ट हो जाती है। इससे सब पाप भी नष्ट हो जाते हैं और अभीष्ट फल प्राप्त होता है

योनि साधना के बिना, सभी साधना व्यर्थ है इसलिए, योनी पूजा करें। और गुरु के प्रति समर्पण के बिना कोई सिद्धि नहीं है।

इस ज्ञान में तंत्र भी एक है। तंत्र में एक दिव्य शब्द है 'योनी पूजा' जिसका बड़ा ही गूढ़ और तात्विक अर्थ है। किन्तु कालान्तर में अज्ञानी पुरुषों व वासना और भोग की इच्छा रखने वाले पुरोधाओं ने स्त्री शोषण के लिए तंत्र के महान रहस्यों को निगुरों की भांति स्त्री शरीर तक सीमित कर दिया। हालांकि स्त्री शरीर भी पुरुष की भांति ही सामान रूप से पवित्र है। लेकिन तंत्र की योनी पूजा सृष्टि उत्पत्ति के बिंदु को 'योनी' यानी के सर्जन करने वाली कह कर सम्बोधित करता है।



मुझे पता ही नहीं चला पुस्तक पढ़ते हुए समय कैसे बीता,

लगभग पौने नौ बजे जब मैं अपना मुँह धो रही थी तब मास्टर-जी और दीपू फिर से प्रकट हुए ।

कहानी जारी रहेगी
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#88
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

परिधान'

Update -30


सुसन्तति की प्राप्ति 




उसे बाद पुस्तक में ने पूरी विधि और नियम और गर्भदान की कहानिया विस्तार से समझायी हुई थी



योनि (वेजाइना) के बारे में जानकारी


महिला के यौनांग शरीर के अन्दर एवं बाहर होते हैं। ’योनि‘ शब्द का प्रयोग अक्सर महिला के जननांग या यौनांग के लिए किया जाता है जबकी योनि यौनांगों का सिर्फ एक भाग है। योनि एक नली या द्वार है जो बाहरी यौनांगों को भीतरी यौनांगों से जोड़ती है।

योनी
योनी बाहर के यौन अंग और बच्चादानी (गर्भाशय) के बीच का रास्ता है। यह वह जगह है जहां मासिक धर्म का खून शरीर से निकलता है, जहां से पुरूष का लिंग संभोग के दौरान अंदर जाता है, और जहां से पैदा होने पर बच्चा बाहर निकलता है।

योनी की दीवारों पर चिपचिपी झिल्ली होती है - जो आपके मुंह के अंदर जैसी नमी पैदा करती है। यह नमी संभोग के लिए चिकनाई देती है, जिससे संभोग ज़्यादा आरामदायक और सुखद हो जाता है, और यह बिमारी से भी बचाती है।
जब आप यौन के लिए उत्तेजित होती हैं, तो आपकी योनी गीली हो कर ढीली पड़ जाती है। इससे आपको योनी के अंदर एक उंगली या लिंग घुसाने में मदद मिलती है। चूंकि योनी एक मांस पेशी है, यह कड़ी या ढीली हो सकती है, और आप इसे कुछ क़ाबू में रख सकती हैं।

[Image: vagina-and-more.jpg?itok=7Gy6NfE3]


अपने लिए खुद महसूस करें
• पेशाब करते वक्त अपनी मांसपेशियों को निचोड़ें और छोड़ दें। आप अपने पेशाब की गति और मात्रा पर कुछ क़ाबू कर सकती हैं। ये वही मांस पेशियां हैं जो योनी को कसते हैं। आप संभोग के दौरान भी उनका इस्तेमाल कर सकती हैं।
• एक आईना लें और अपनी योनी के मुख को देखें। छू कर महसूस करें कि आपकी योनी कैसी है।
[Image: vagina-internal.jpg?itok=kjpOGB8P]


• अपनी योनी के अंदर एक उंगली डालें। अंदर आपके गालों की तरह मुलायम लगता है, और आपके मुंह के ऊपर के जैसा थोड़ा ऊबड़-खाबड़ भी महसूस होता है।
• अपनी योनी को सहलाएं। देखें कि आपको क्या अच्छा लगता है और कैसे उत्तेजित महसूस होता है। इस तरह आप संभोग के चरम तक पहुँच सकती हैं। हस्तमैथुन करना - अपने आप पर संभोग - अपनी पसंद को जानने का एक अच्छा तरीका है। जितना बेहतर आप जानेंगी कि आपको क्या उत्तेजित करता है, उतना ही आपके लिए किसी दूसरे इंसान के साथ संभोग का आनंद लेना आसान होगा।
एक महिला के शरीर के बारे में और जानने के लिए हमारा वीडियो देखें।


पेलविक फ्लोर
आपके मलद्वार, योनी और मूत्रमार्ग के छेद के आसपास की मांस पेशियों को पेलविक फ्लोर की मांस पेशियां कहते हैं। मूत्रमार्ग का छेद आपके जांघों की हड्डियों (प्यूबिक बोन) और रीढ़ की आखिरी, निचले हिस्से (कोक्सीक्स, या टेलबोन) के बीच होता है।
जांघों की हड्डी आपके पेट के नीचे होती है, ठीक योनी के ऊपर। कोक्सीक्स, या टेलबोन आपकी राढ़ की हड्डी के नीचे होता है जो कि आपके गुदा ठीक ऊपर होता है।


• अपने पेलविक फ्लोर की मांस पेशियों को कसें और ढीला छोड़ें। ऐसा करने से पेशाब को बीच में रोक कर जैसा लगता है, वैसा महसूस होगा।
• आप अपनी योनी के आस पास की मांस पेशियों में खिंचाव को एक उंगली से महसूस कर सकती हैं। अपनी योनी के अंदर एक उंगली डालें, फिर उसके के चारों ओर के मांस पेशियों को निचोड़ें।
[Image: pelvic.jpg?itok=2kmos1Mb]


बच्चादानी
गर्भ, बच्चादानी या गर्भाशय, वह जगह है जहां एक बच्चा आपके अंदर बढ़ सकता है। यह मजबूत मांस पेशियों से बने एक थैले की तरह है, जो आपके पेट में काफी नीचे होता है।
जब आप गर्भवती नहीं होती हैं तो इसकी लंबाई 7.5 और 10 सेमी (3 और 4 इंच) के बीच रहती है। यह उल्टे नाशपाती के आकार का होता है।
गर्भ की आंतरिक दीवार वह जगह है जहां एक उपजाऊ अंडे एक बच्चे में विकसित हो सकता है। बढ़ते हुए बच्चे को पकड़े रहने के लिए, गर्भाशय की लंबाई 31 सेमी (12 इंच) तक बढ़ सकती है।
आपके मासिक धर्म का खून भी गर्भ से ही आता है। यदि कोई उपजाऊ अंडा गर्भ की दीवार से खुद को नहीं जोड़ पाता है, गर्भाशय अपनी परत को गिरा देता है जो योनी से रक्त के रूप में शरीर से बाहर आता है।
[Image: womb.jpg?itok=rY7SgcdO]


सर्विक्स या गर्भाशय का गला - खुद महसूस करें
बच्चेदानी के प्रवेश द्वार को सर्विक्स या गर्भाशय का गला कहते हैं। आप अपनी योनी के अंदर एक उंगली डाल कर इसे खुद महसूस कर सकती हैं। यह आपकी नाक की नोक की तरह चिकना और सख्त होता है। जब आप उत्तेजित होती हैं तो इस तक पहुंचने में परेशानी हो सकती है, क्योंकि तब यह योनी को लंबा बनाने के लिए ऊपर चली जाता है।
[Image: womb_labels.jpg?itok=r9X-cWJ-]


अंडाशय के बारे में और
अंडाशय
अंडाशय गर्भ के दोनों तरफ होते हैं। वे अंडा कोशिकाओं और एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का उत्पादन करते हैं। एस्ट्रोजेन हार्मोन आपके शरीर को युवावस्था के दौरान बदलने में मदद करता है, जिससे आपका स्तन बनता है और आपका शरीर यौन संबंध के लिए तैयार होता है। एस्ट्रोजेन के साथ मिलकर, प्रोजेस्टेरोन हार्मोन मासिक धर्म और गर्भावस्था के दौरान बच्चेदानी की दीवारों को मोटा बनाता है।
[Image: cervix_0.jpg?itok=kQUD3dfB]


गर्भाशय नाल या फैलोपियन ट्यूब
फैलोपियन ट्यूब, बच्चेदानी के प्रत्येक तरफ होते हैं। यह अंडाशय को बच्चादानी से जोड़ते हैं। यह उन अंडों को अंडाशय से गर्भ ले जाते हैं, जो कि उपजाऊ नहीं हैं।
[Image: ovaries.jpg?itok=xjU8h13P]


अंडों की कोशिकाएं

हर महिला अपने अंडाशय में लगभग 250,000 अंडे के साथ पैदा होती हैं। इसका मतलब है कि जब आप पैदा होती हैं तो वह अंडा जो आपके बेटे या बेटी बनने के लिए एक दिन बढ़ सकता है, पहले से ही आपके अंडाशय के अंदर मौजूद होता है! अंडे एक बहुत छोटे पिन के सिरे के आकार के होते हैं।

[Image: fallopian-tubes-and-more.jpg?itok=8u1dgCeq]


स्त्री बीज जनन या ओव्यलैशन
जब आप युवावस्था पाती हैं, तो हार्मोन अंडाशयों को हर महीने - लगभग 28 दिनों पर – एक अंडा निकालने के लिए संकेत देना शुरू करते हैं। इसे स्त्री बीज जनन या ओव्यलैशन कहा जाता है। अंडे फिर फैलोपियन ट्यूब से बच्चादानी तक पहुँचते हैं।
यदि एक शुक्राणु कोशिका अंडे को उपजाऊ कर पाता है, तो अंडा खुद को गर्भ की दीवार में गड़ा कर, एक बच्चे के रुप में बढ़ने लगता है। अगर अंडा शुक्राणु कोशिका से उपजाऊ नहीं होता है, तो वह आपके मासिक धर्म के दौरान आपकी योनी से खून के साथ बाहर निकल जाएगा।
ओव्यलैशन के समय, आपके गर्भवती होने की सबसे ज़्यादा उम्मीद होती है। इस दौरान आपका शरीर सबसे ज़्यादा उपजाऊ होता है। इसका मतलब है कि आपके ओव्यलैशन के पांच दिन पहले या एक दिन बाद।


कहानी जारी रहेगी
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#89
औलाद की चाह


CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

परिधान'

Update -32


स्ट्रैप के बिना वाली ब्रा की आजमाईश 



मास्टर-जी: मैडम, आपकी सभी  ड्रेस  तैयार हैं।

मैंने अपना चेहरा तौलिये से पूछ कर सूखा लिया , अपने बालों को हल्के से कंघी किया और फिर मास्टर जी के हाथ से ड्रेस का पैकेट लिया और उसे देखने के लिए बिस्तर पर बैठ गई।

मास्टर-जी भी आगे आकर मेरे बिस्तर पर बैठ गए,  दीपू हमारे सामने खड़ा था। मैं अपने भीतर कुछ अजीब महसूस कर रही थी  क्योंकि मैंने  अपनी साड़ी के नीचे पैंटी  नहीं पहनी थी  और वो दोनो जिन्होंने मुझे थोड़ी देर पहले मेरे साथ और मेरे नितम्बो के साथ खूब छेड़खानी की थी अब मेरे साथ आ गए थे, हालांकि फिलहाल उन्हें मेरे तथ्य को जानने का कोई मौका नहीं था। मैंने पैकेट खोला तो उसमे अलग रखा हुआ और एक  छोटा पारदर्शी पैकेट था।

मैंने चोली और स्कर्ट को निकाला ; दोनों सफ़ेद रंग के थे और कपड़े में वास्तव में मखमली  थे l कपड़ो की  गुणवत्ता उत्तम थी  और मुझे  उन्हें छू कर  अच्छा लगा। जैसा कि उम्मीद थी कि दोनों मेरे विकसित 28- साल की आयु की  फिगर के लिए बहुत छोटे लग रहे थे और  साथ ही सभी   देख कर मुझे अंदाजा हो गया की मैं उस मिनी पोशाक में बहुत सेक्सी दिखूंगी ।

फिर मैंने दूसरा  छोटा पैकेट खोले और जैसा मैंने अनुमानित किया था उसमे मेरे अंडरगारमेंट्स थे। मुझे विशेष रूप से ब्रा में दिलचस्पी थी, क्योंकि यह एक स्ट्रैपलेस किस्म थी, जिसे मैंने पहले कभी नहीं पहना था, लेकिन उनके सामने उस ब्रा को  जांचने में मुझे थोड़ी शर्म महसूस हुई।


[Image: STRAP1.jpg]

मास्टर-जी: मैडम, बेहतर होगा यदि आप आप हर चीज का  ट्रायल  और आजमाईश कर ले हालाँकि जिस तरह से मैंने माप लिया है मुझे लगता है कि सब ठीक होना चाहिए  और कपडे आप पर बिलकुल  फिट आएंगे ।

मास्टर जी ने " जिस तरह से मैंने माप लिया है "  शब्द मेरी आँखों में देखते हुए कहा। मुझे एक बार फिर याद आ गया मास्टरजी ने कैसे मेरा माप लेते हुए मेरे शरीर के साथ खिलवाड़ किया था. मैंने शर्म  के मारे  जल्दी से अपनी टकटकी  मास्टर जी से हटा दी और टॉयलेट की तरफ चल पडी । चूँकि मैं पेंटीलेस थी , मैंने तेजी से चलने की कोशिश की और मुझे महसूस हुआ  कि मेरी भारी गाँड मेरी साड़ी के अंदर ज्यादा ही हिल  रही थी ।

मैं: प्लीज़ रुको मास्टर जी।

मास्टर-जी: ज़रूर मैडम।

मैंने शौचालय के दरवाजे को बंद कर दिया और पहले दिन जब समीर मेरे पहने हुए कपडे लेने आया था  उसी समस्या का सामना  किया था  मैंने तुरंत वही समस्या फिर  महसूस की। उस दिन मुझे उसे अपने घर से लाये हुए कपड़े देने पड़े थे । चूँकि कपड़े रखने के लिए बाथरूम में कोई हुक या डंडा नहीं था, इसलिए मुझे उन्हें दरवाजे के ऊपर रखना पड़ा था , और मुझे  लगा केवल इस उद्देश्य के लिए दरवाजे  को फ्रेम (चौखट )  से छोटा बनाया गया था   मैंने सोचा ओह्ह फिर से नहीं! ।


[Image: STRAP2.jpg]

जब मैंने अपनी साड़ी को खोलना शुरू किया  तो चूँकि कोई और वैकल्पिक व्यवस्था तो थी नहीं इसलिए  मुझे अपनी नई महा-यज्ञ पोशाक को दरवाजे के ऊपर ही रखना पड़ा । टॉयलेट का फर्श  गीला था इसलिए मुझे दरवाजे के बहुत पास खड़ा होना पड़ा। मैंने साड़ी को  खोल कर और निकाल कर  दरवाजे के ऊपर  रखा और मैंने लगा   कि मास्टर जी और दीपक डोर टॉप देख रहे होंगे। वे अब निश्चित रूप से जानते थे कि साडी निकालने के बाद अब मैं केवल शौचालय के अंदर केवल अपने ब्लाउज और पेटीकोट पहने  हुई थी।

इसक बाद  मैंने जल्दो जल्दी अपने ब्लाउज को खोलना शुरू किया और फिर अपने ब्रा को भी खोल दिया। मेरे बड़े, गोल, युवा स्तन मेरी ब्रा से थोड़ा बाहर निकले और फिर मुक्त हुए। क्योंकि मेरे स्तन अब पूरी तरह से नंगे थे तो स्वाभाविक रूप से मेरे निपल्स कठोर होने लगे।

मैंने अपनी सांस रोक कर दरवाजे की ऊपर रखी हुई अपनी साड़ी के ऊपर अपनी पहनी हुई  ब्रा और ब्लाउज को उतार कर रख दिया, जबकि मैं  यह अच्छी तरह से जानती थी कि इससे  दोनों पुरुषों को अब पता चल जाएगा कि मैं अब टॉपलेस अवस्था में शौचालय में खड़ी थी। तभी !



मास्टर-जी: मैडम, क्या वे कपडे ठीक हैं? क्या आपने उन्हें आजमाया है?

मुझे इस अतिश्योक्तिपूर्ण प्रश्न पर इतनी चिढ़ हुई क्योंकि मैं पूरी तरह से  जानती थी  कि वे बाहर बैठे देख रहे है  कि मैंने दरवाजे के ऊपर से अभी तक कोई नया सिला हुआ कपड़ा नहीं लिया है, इसलिए उन्हें आजमाने का कोई सवाल ही नहीं उठता। मैं इस समय चुप रही  और मैंने एक दूसरी पुकार सुनी, अब दीपक!

दीपक: मैडम, कोई दिक्कत?

मैंने महसूस किया कि वे चाहते थे मैं उन्हें बाथरूम के अंदर से अपनी टॉपलेस हालत में जवाब दू ।

मैं: कृपया मुझे एक मिनट दीजिए।

जैसे ही  मैंने जवाब दिया, स्वाभिक प्रतिक्रिया  (रिफ्लेक्स  एक्शन) के तौर पर , मेरा दाहिना हाथ मेरे दृढ  नग्न स्तनो  पर एक सुरक्षा कवच के रूप में चला गया।

मास्टर-जी: ठीक है, ठीक है मैडम। पर्याप्त समय लीजिये । मैं आपसे  ज्यादा चिंतित और उत्सुक हूं। हा हा हा…

अब मुझे अपने स्तन को ढकने की जल्दी थी और इस जल्दी में  मैंने ब्रा और पैंटी को एक तरफ खींचा, जो दरवाजे के ऊपर रखी हुई थी। हालाँकि मैं शौचालय के भीतर काफी सुरक्षित थी , फिर भी मैंने उस अवस्था में मौन रहना ही बेहतर समझा।  क्योंकि नयी सिली पैंटी को बाथरूम में  रखने की कोई जगह या हुक नहीं थी मैंने अपने दांतों के बीच में नई सिली पैंटी को पकड़ने का फैसला किया, और ब्रा पहनने लगी। 

चुकी मैंने आज से पहले कभी भी  स्ट्रैप के बिना वाली ब्रा नहीं पहनी तो तो स्ट्रैप के बिना सफ़ेद रंग की ब्रा बिना किसी नियमित पट्टियों के साथ मुझे बहुत अजीब  लग रही थी, और ये दर भी सता रहा रहा था कही ये  नीचे को लटक कर उतर ना जाए  पर चुकी आज तक दत्रे के बिना वाली ब्रा पहनी नहीं थी तो उसे पहनने को इच्छा और उत्सुकता भी बहुत थी और इसलिए मैंने पेटीकोट पहने हुए मेंने  केवल पैंटी को अपने मुंह से पकडे रखा और स्ट्रैप के बिना वाली  ब्रा को उलट पलट कर देखा ! 

मैं शुरू में अनिश्चित थी  कि इस स्ट्रैपलेस को कैसे पहना जाए, लेकिन यह महसूस किया कि मुझे अपने स्तनों के ऊपर कप को ठीक से फिट करना है और फिर नीचे के हुक को प्लग करना है।

इसमें कुछ समय लगा, लेकिन मैंने अपने दृढ  स्तन के ऊपर इस ब्रा की लम्बाई को ठीक से फिट करने में कामयाबी हासिल की और पीछे के तीन हुक लगा दिए । मैंने देखा ब्रा मेरे स्तनों पर पूरी तरह से फिट थी और मैंने उसे खींच कर भी देखा  पर वो ढीली हो हैकर अपने जगह से नहीं हिली l

मास्टरजी ने अच्छी क्वालिटी के कपडे और इलास्टिक का प्रयोग किया था और बहुत कुशलता से इसे सिया था .. मैंने मन ही मास्टर मास्टर जी की तारीफ़ की .. और सोचा इस छोटी सी जगह में मास्टर जी निश्चित ही अपनी  काबलियत बेकार कर रहे हैं . शहर में वो इस तरह की फिटिंग कपडे और सिलाई के लिए अच्छी कमाई कर सकते हैं .  ये उनका निर्णय है उन्हें कहाँ क्या करना है l

फिर मैंने  अपने को शीशे में देखा तो मैंने पाया कि मेरे पूरे कंधे  स्तनों के ऊपर की ऊपरी छाती और  स्तनों के बीच की दरार (क्लीवेज)  दिखाई दे रही थीं, लेकिन साथ ही साथ  मुझे इस बात पर खुशी हुई कि कपों ने मेरे बड़े गोल दूध-कलशो को इस नयी ब्रा ने पर्याप्त रूप से ढक दिया था।


[Image: bra1.webp]

मुझे इस ब्रा के फैब्रिक से भी बहुत आराम महसूस हुआ, जो बेहद चिकनी और मुलायम थी। मैंने अब जल्दी से अपनी  कमर पर से पेटीकोट की गाँठ को खोल दिया और उसे फर्श पर गिरा दिया, और चूँकि मैंने नीचे पैंटी नहीं पहनी हुई थी, मैं अब नीचे  पूरी तरह से नग्न हो गई थी ।

मैंने जल्दी से पैंटी को अपने दाँतों से निकाल कर हाथ में  लिया और एक-एक करके अपने पैरों को उसमें घुसा दिया। बस, फिर!

मास्टर- जी: मैडम, सॉरी टू इंटरप्ट, लेकिन क्या आप ब्रा को मैनेज कर पायी ? चूंकि यह एक नई किस्म है  तो आपको कोई मदद तो नहीं ... l

मैं: हाँ, हाँ।  बिलकुल ठीक है।

मास्टर-जी: अच्छा, अच्छा। और क्या  आपने  पैंटी भी आजमा ली है?

कहानी जारी रहेगी
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#90
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

परिधान'

Update -33

परिधान की आजमाईश




संभवत: पहली बार इस नई पैंटी को पहनकर मेरी आवाज में ख़ुशी झलक रही थी। मुझे और सम्बहव्टा मास्टरजी और दीपू को भी पता था कि मैंने उस समय मैंने अंतर्वस्त्रो के अलावा कुछ भी नहीं पहना हुआ था और उन्हें पहने हुए ही मैं मास्टर-जी को उत्तर दे रही थी ।

इसलिए, मैंने दरवाज़े के ऊपर से महायज्ञ में पहने जाने वाली मिनी स्कर्ट को ज़ोर से खींच कर उतार लिया वो आशा के अनुसार बहुत छोटा थी और उसे पहने के बाद मैंने देखा मेरी संगमरमर जैसी गोरी और केते के तने जैसी चिकनी जांघें पूरी तरह से उजागर हो गईं।

मास्टर-जी: स्कर्ट की फिटिंग कैसी है? ठीक है क्या ?

मुझे पता था कि वो देख रहे थे कि स्कर्ट टॉयलेट के दरवाजे के ऊपर से गायब हो गई थी और मास्टरजी और दीपू ने अनुमान लगाया था कि अब मैंने स्कर्ट पहन ली होगी।



[Image: choli.jpg]

मैं: हम्म।

मास्टर जी: मैडम आप बहुत संतुष्ट लग नहीं रहे हो । विशेष रूप से स्कर्ट के साथ कोई समस्या है क्या ?

मैं: नहीं, नहीं। फिटिंग ठीक है। मैं अभी भी इसकी छोटी लंबाई इसके बारे में चिंतित हूँ ...।

मास्टर-जी: ओहो! मुझे पता है लेकिन इसके बजाय आपको भाग्यशाली महसूस करना चाहिए मैडम।

मैं - ऐसा क्यूँ?



[Image: STRAP3.webp]
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जब मैंने जवाब दिया तब मैं अपनी स्ट्रैपलेस ब्रा के ऊपर चोली पहनने वाली थी ।

मास्टर-जी: महोदया, कुछ साल पहले तक महा-यज्ञ में भाग लेने वाली महिलाओं को ... बिलकुल नंगी रहना पड़ता था!

दीपू: सच में मास्टर-जी?

मैंने सुना कि दीपू अपनी नाक से इस में मजे दार मसाले सूंघ रहा है।

मास्टर-जी: दीपू बेटा, यह एक पवित्र जगह है और आपको इसे अलग कोण से नहीं देखना चाहिए।

दीपक: सॉरी मास्टर-जी।

मास्टर-जी: मुझे भी महा-यज्ञ में आने या उपस्तिथ होने की अनुमति नहीं है, लेकिन मैंने कुछ साल पहले एक महिला को पवित्र कुंड से बाहर आते देखा था क्योंकि उस समय मैं किसी काम के लिए आश्रम आया हुआ था.

दीपू: नंगी?

क्या ? ये नंगी शब्द सुन कर मुझे मिनाक्षी की बात याद आ गयी . ईमानदारी से अब मैं भी अपने भीतर जिज्ञासा महसूस कर रही थी. मैं सोचने लगी, मेरे लिए भविष्य के गर्भ में और क्या क्या है



[Image: BRA2.webp]
मास्टर-जी: हाँ दीपू।

दीपू: आपके कहने का मतलब है कि आपने आश्रम के मध्य में मैडम जैसी विवाहित महिला को उस टब से निकलते देखा है? और वो भी बिलकुल नग्न

मास्टर-जी: मैंने तुमसे कहा था दीपू…

दीपू: नहीं, नहीं, मैं तो बस ... उत्सुकतावश पूछ रहा था मास्टर-जी!

मास्टर-जी: मैडम, क्या आपने चोली को आजमाने या पहनने की कोशिश की है?

मास्टर जी की बात सुन कर जैसे मैं अचानक नींद से जाएगी और मैंने चोली पहनना शुरू किया और इस बार मैं काफी चकित थी ब्लाउज मेरे आधे स्तन को उजागर कर रहा था। जैसा कि मैंने ब्लाउज को पहना तो देखा मेरे ब्लाउज की चकोर नेकलाइन ने मेरे दोनों स्तनों को उस तरह से ऊपर से उजागर किया था मानो वो उछल कर बाहर आना चाहते हो. ब्लाउज की ऊपरी खुले हुए चकोर ने मेरी छाती और स्तनों के ऊपरी हिस्सों को खोलकर उजागर कर दिया था और जब मैंने पूरी चोली पहन ली तो मैं यह नोट करते हुए चौंक गयी कि नेकलाइन मेरे ब्रा कप के ठीक ऊपर तक गहरी थी।

इसके अलावा, मेरे ब्लाउज का सबसे ऊपरी हुक भी ठीक से बंद नहीं नहीं हो रहा था, क्योंकि थ्रेड लूप बहुत छोटा था। इसलिए मेरे सफ़ेद स्ट्रैपलेस चोली का एक हिस्सा मेरे ब्लाउज के ऊपर भी दिखाई दे रहा था और साथ ही एक इंच से अधिक स्तनों के बीच की दरार भी ढकी हुई न होकर उजागर थी ।

मैं: मास्टर-जी…

मुझे अपनी समस्या व्यक्त करने के लिए पर्याप्त शब्द नहीं मिले।




[Image: STRAP4.webp]
मैं: बस एक मिनट।

मास्टर-जी: हां, मैडम?

मैंने बाथरूम से बाहर निकलने का फैसला किया और फिर मास्टर-जी के साथ बातचीत की। ऐसा करने से पहले मैंने टॉयलेट में लगे लाइफ साइज मिरर में अपनी छवि को देखा। कम से कम कहें तो उस पोशाक में बहुत सेक्सी लग रही थी।

मैंने अपने ब्लाउज को थोड़ा समायोजित करने की कोशिश की, लेकिन असफल रही , क्योंकि यह मेरे बड़े प्रचुर ग्लोब पर पूरी तरह से फिट था। मैंने टॉयलेट का दरवाजा खोला और बाहर निकल आयी । उम्मीद के मुताबिक दीपू उस सेक्सी ड्रेस में मुझे देख कर खुश हो गया।


दीपक: ऐ आयी ला! मैडम, आप इस सफेद पोशाक में बहुत अच्छी लग रही हैं।

मैंने उसकी टिप्पणी को नजरअंदाज किया और मास्टर-जी को अपने ब्लाउज के शीर्ष हुक की ओर इशारा किया।

मैं: मास्टर जी, मैं इसे बंद नहीं कर सकी

मास्टर-जी: क्यों? क्या हुआ मैडम?

मैंने उनके सामने ही अपने दोनों हाथों को मेरे वक्षस्थल मध्य तक ले आयी और हुक को हुक के पाश में डालने की कोशिश की, लेकिन फिर से विफल हो गयी , क्योंकि धागे का लूप बहुत छोटा था। ( चोली आगे से बंद होती थी )

मास्टर-जी मेरे पास आए।

कहानी जारी रहेगी
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#91
कृपया जारी रखें।
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#92
Yeh dil maange more . . . . .
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#93
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

Update -34


परिधान



मास्टर-जी मेरे पास आए।

मास्टर-जी: मैडम, ज्यादा जोर मत लगाओ, धागा टूट जाएगा।

मैंने देखा मास्टरजी मेरे उभरे हुए क्रीम रंग के क्लीवेज और साथ ही साथ उस छोटी सी चोली से मेरे ऊपर को निकलते हुए बूब्स को मेरी टाइट ब्रा के ऊपर से घूर रहे थे ।

मास्टर-जी: मैडम मुझे कोशिश करने दो।

इसके बाद मैंने अपने ब्लाउज के ऊपर से अपने हाथों को हटा दिया, मास्टर-जी के हाथों ने उस छोटे चोली में फसे हुए मेरे आमों को थोड़ा दबाया और मास्टर-जी ने हुक को लूप में डाल दिया और मेरे ब्लाउज के ऊपर के लूप के हुक को बंद कर दिया।

मैं: धन्यवाद मास्टर जी।




[Image: AUL1.gif]
मुझे अब थोड़ा बेहतर मह्सूस हुआ क्योंकि मेरी ब्रा अब दिखाई नहीं दे रही थी, हालांकि मेरे बूब्स बहुत ऊपर की तरफ थे ।

मास्टर-जी: मैडम, क्या आपकी ब्रा फिटिंग ठीक है ?

मैं: हाँ ठीक है।

मास्टर-जी: चूंकि यह पट्टियों से रहित ब्रा है आप थोड़ा टाइट महसूस कर रहे होंगी ?
इसलिए यह स्वाभाविक रूप से आप को टाइट लग रही होगी ।

वह मुझे सीधे संकेत दे रहा की यह ब्रा मेरे स्तनों पर टाइट रहनी चाहिए .

मैं : नहीं, मेरा मतलब है ... हाँ, लेकिन ठीक है। लेकिन क्यों ?

मास्टर जी: अगर ढीली होगी तो पट्टियों से रहित ब्रा कभी भी गिर ...
4
मैं : टाइट ही ठीक है

मास्टर-जी: वैसे भी, दीपू, मैडम को उसका एक्स्ट्रा कवर दे दो।

मुझे कुछ हटकर लगा। एक्स्ट्रा कवर? वह क्या होता है ? मुझे याद है कि मैंने क्रिकेट कमेंट्री में उस शब्द को सुना था, लेकिन यहाँ किसी भी तरह से क्या करना है, मुझे कुछ ज्यादा समझ नहीं आया। उसके बाद दीपु ने अपनी जेब से लाल कपड़े के दो छोटे गोल टुकड़े निकाल कर मुझे सौंप दिए।

मैं: यह क्या है? मास्टर-जी: मैडम, देखिए। चूँकि आपकी चोली का कपड़ा और ब्रा बहुत मोटी नहीं है, इसलिए यह आपके अंतरंग भागों के लिए अतिरिक्त आवरण का काम करेगा। मैं "अंतरंग भागों" से निश्चित था कि इसका मतलब मेरे स्तन होना चाहिए। लेकिन ... मैंने फिर से अपने हाथों को देखा।

अतिरिक्त कप होने के लिए दो लाल कपड़े का आकार काफी छोटा था
मेरी ब्रा के अंदर सालने के लिए अतिरिक्त कवर। ? मैं हैरान थी और पुष्टि करने की कोशिश की।

में : मास्टर-जी ... मेरा मतलब है ... मुझे लगता है कि ये अंदर डालने के होगा ।

मास्टर-जी: जाहिर है मैडम।

म e: लेकिन ... लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि वे बहुत छोटे हैं?

मास्टर-जी: क्या आपको बड़े आकार की ज़रूरत है ?!

मास्टरजी ने आश्चर्य से मेरी तरफ देखा।



[Image: STRAP4.webp]

मैं: हां। मैंने काफी सशक्त ढंग से टिप्पणी की।

मास्टर-जी: लेकिन मैडम, क्या आपको पूरा यकीन है?

मैं अब अच्छी तरह से महसूस कर रही थी कि हमारे संवाद में कुछ लिंक गायब हो गए है ये मेरे समजगने में कुछ रह गया है ।

मैं: मास्टर जी, साफ-साफ बताइए, इनका मतलब क्या है?

मास्टर-जी: मैडम, वास्तव में जैसा कि मैंने कहा, चूंकि आपका ब्रा का फैब्रिक काफी पतला है, इसलिए मैंने आपको वो एक्स्ट्रा कवर दिए हैं जो निप्पल ढकने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं ताकि आप किसी भी समय अभद्र न दिखें।

मैं मास्टर की बात से सुनकर विशुद्ध रूप से दंग रह गयी । मैं दो पुरुषो के सामने हाथो में निप्पल कवर ले कर जब वो मेरे स्तनों को मेरे कड़े हो चुके निप्पलों को घूर रहे थे और उनके साथ मेरे स्तनों और चुचकों के बारे में साफ तौर पर बात करते हुए इतनी शर्म महसूस हुई कि मैं बस फर्श पर देखती रह गयी ।

मास्टर-जी: मैडम, जब आप ने कहा की आपको अभी और भी बड़े आकार के कवर की आवश्यकता है तो मुझे आश्चर्य हुआ था । हा हा हा ...

मैं अपनी मूर्खता पर तुरन्त टमाटर की तरह लाल हो गयी थी ।

दीपू: मैडम, ये इन्हे चिपकाने वाला पदाथ है, जो अतिरिक्त कवर को अपनेी जगह पर स्थिर रखेगा.

यह कहते हुए कि उसने मुझे एक छोटी होमियोपैथी की शीशे की बोतल दी, जिसमें एक पारदर्शी तरल पदार्थ था।

मास्टर-जी: मैडम, यह चिपचिपा नहीं है, इसलिए आप असहज महसूस नहीं करेंगी , लेकिन इससे अतिरिक्त कवर आपके निप्पल से चिपक जाएगा।

मैं अब केवल एक कमजोर "ठीक" ही बड़बड़ा सकती थी ।

मास्टर-जी: मैडम, तो आपकी स्कर्ट और पैंटी में तो की कोई दिक्कत नहीं है ?

मैंने अपने सिर को संकेत दिया कि वे ठीक हैं।

मास्टर-जी: ठीक है हम चलेंगे फिर मैडम।

मैं: ठीक है मास्टर जी।

मास्टर-जी: मैडम हम आपके सफल महा-यज्ञ की कामना करते हैं।

मैं: धन्यवाद।

मास्टर-जी: मैं दीपू के माध्यम से आपकी अतिरिक्त पैंटी भेजूंगा जिन्हे मैं आपके लिए सिलाई करूंगा।

मैं : अच्छा जी?



[Image: boobs1.gif]

मैं: ठीक है। बाय मास्टर-जी।

दीपू और मास्टर-जी विदा हो गए और मैं उस सुपर-हॉट ड्रेस को पहन कर कमरे में खड़ा हो गयी जिसमे मैं किसी हिंदी फिल्म की वैम्प या सेक्सी डांस करने वाली आइटम गर्ल जैसी लग रही थी। मैंने दरवाज़ा बंद किया और वापस टॉयलेट में गयी क्योंकि वहाँ दर्पण था। जैसा कि मैंने अपने उजागर शरीर को देखा,

मैंने अपने मन को आश्रम के पुरुषों के सामने जाने के लिए त्यार करने की कोशिश की।

मैंने एक पल के लिए ये भी सोचा कि अगर मेरा पति अनिल मुझे इस तरह की ड्रेस में देखता तो उस पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा । मुझे यकीन था कि ऐसा होने पर उसके साथ चुदाई का एक गर्म सत्र होगा

महा-यज्ञ का भय मुझ पर अभी भी मंडरा रहा था, उसी के परिणाम से मेरा भाग्य तय होगा। मेरी सास, मेरे पति, मेरे अन्य रिश्तेदार - सभी को सकारात्मक परिणाम का इंतजार है और इसलिए मैं यहाँ आयी थी ।

मैंने सभी कोणों से अपने शरीर को जांचा कीमेरे शरीर कितना ढका हुआ है और कितना ढका हुआ नहीं है और मुझे महसूस हुआ कि उस तरह की पोशाक के साथ खुद को ठीक से ढंकना एक निरर्थक कवायद थी। मैं बेडरूम में वापस चला गयाी और अभी भी निराशाजनक रूप से ये जान्ने की कोशिश कर रही थी था कि अगर मैं बैठती हूं या खड़ी होती हूं तो मैं कैसी लगूंगी और देखने वालो को कैसा लगेगा ।

मुझे लगा इस ड्रेस में मैं केवल अश्लीलता और कामुकता का या फिर किसी कामसूत्र जैसे कंडोम का विज्ञापन कर रही थी और यह महा-यज्ञ परिधान मेरे हिलने डुलने के साथ कामुकता को निश्चित रूप से बढ़ा रहा था। मैं आखिरकार इस परिधान से बाहर निकली और फिर से अपनी साड़ी पहनी।




[Image: hoti.jpg]
मैंने अपना रात्रि भोजन किया और बीच में निर्मल आकर मेरी महा-यज्ञ पोशाक (बेशक ब्रा और पैंटी सहित ) को शुद्धिकरण के लिए ले गया . उसने मुझे गुरूजी के पास जानेके लिए रात के 10-30 का समय दिया

कहानी जारी रहेगी
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#94
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी

Update -35




रात 10:30:00 बजे। जब मैंने गुरु-जी के कमरे में कदम रखना शुरू किया तो मेरा दिल पहले से ही तेज़ धड़क रहा था और स्वाभाविक रूप से मैं बहुत चिंतित थी , । गुरु-जी के कमरे में प्रवेश करते हुए मैं अपने सामान्य आश्रम के ड्रेस वाली की साड़ी में लिपटी हुई थी। जैसे ही मैंने कमरे का दरवाजा खोला, अंदर धुँआ फैला हुआ था। मैंने देखा गुरु-जी को ध्यान मुद्रा में बैठे हुए थे और वहां कोई और नहीं था।

गुरु-जी: आओ रश्मि । आपके इलाज का आखिरी चरमोत्कर्ष आ गया है।

मैं: जी मतलब गुरु-जी

गुरू-जी : ये सम्भवता आपके इलाज का आखिरी पड़ाव होगा

गुरु जी की भारी आवाज मानो कमरे में गूंज रही थी। उन्होंने पूरी तरह से लाल पोशाक पहन रखी थी; ईमानदारी से मुझे उस सेटिंग में मेरे भीतर डर की अनुभूति हो रही थी।

गुरु-जी: रश्मि , आप लिंग महाराज पर विश्वास रखेो और आत्म-विश्वास रखें ताकि आप इस महा-यज्ञ के फल और प्रसाद के रूप में आपको संतान सुख मिले और आप धन्य हो। मैं इसमें सिर्फ माध्यम बेटी हूँ; महामहिम निश्चित ही आपको अभीष्ट फल प्रदान करेंगे और आपका यज्ञ सफल होगा जय लिंग महाराज!




[Image: LP2.jpg]
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मैं: जय लिंग महाराज!

मैं कमजोर आवाज में बोली शायद जिसे गुरु-जी ने नोट किया।

गुरु-जी: रश्मि , इतना कमजोर क्यों लग रही हो? आपने अपने उपचार के अधिकांश भाग को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। आपको निश्चित रूप से अधिक सशक्त हो बोलना चाहिए।

मैं: जी गुरु-जी।

गुरु-जी: फिर से कहो, जय लिंग महाराज!

मैंने अपनी सारी उत्सुकता को छोड़ने की कोशिश करते हुए दोहराया।

गुरु-जी: ये बेहतर है रश्मि । अब मैं आपको महा-यज्ञ के बारे में जानकारी देता हूं। आपके लिए सबसे पहली बात है कि सबसे पहले आपको स्नान करना और महा-यज्ञ विधान में शामिल होना। फिर हम यज्ञ प्रारंभ करेंगे।

मैं: ठीक है गुरु-जी।



[Image: YP01A.jpg]

गुरु-जी: उसके बाद मंत्र है ! फिर आश्रम परिक्रमा ! फिर लंग पूजा ! और जैसा कि आप जानते हैं कि चंद्रमा उर्वरता के भगवान है और इसलिए फिर उनकी पूजा होगी । और अंत में हम योनी पूजा में के बाद महा यज्ञ में शामिल होंगे।

मेरा दिल फिर से धड़कने लगा क्योंकि मैंने ये शब्द सुने हुए थे ? जो किताब मैं यहाँ आने से पहले पढ़ रही थी उसमे भी इनका जिक्र था । तभी समीर और विकास कमरे में दाखिल हुए।

गुरु-जी: आओ, आओ। संपूर्ण यज्ञ प्रक्रिया में रश्मि , आज विकास और समीर आवश्यक रूप से आपके साथ होंगे। और मैं तो निश्चित रूप से वहाँ रहूँगा ही । (आपके लिए )

मैंने उनकी तरफ देखा और वे दोनों मुझे देखकर मुस्कुराए, लेकिन मुझे गुरु-जी ने अंतिम दो शब्द नहीं सुनाए - आपके लिए? तीनों आदमी मुझे देख रहे थे और मुझे उस पर थोड़ी शर्म आई।

समीर : मैडम, आपके कपड़े यहाँ हैं।

मैंने पहले ही देख लिया था कि समीर हाथ में एक पैकेट पकड़े हुए था; अब मुझे एहसास हुआ कि उस पैकेट में मेरे महा-यज्ञ परिधान थे ।

गुरु-जी: विकास आप मीनाक्षी को बुला लीजिये ?

उदय: ज़रूर गुरु-जी।

गुरु-जी: रश्मि मीनाक्षी आपको स्नान करने के लिए ले जायेगी ।



[Image: YP02A.jpg]

मुझे आश्चर्य हुआ कि गुरु-जी ने मीनाक्षी को क्यों बुलाया। मेरे स्नान से उसका क्या लेना-देना है?

मीनाक्षी: जी गुरु-जी?

गुरु-जी: मीनक्षी रश्मि को स्नान के लिए ले जाओ।

बिना और समय को बर्बाद किए मीनाक्षी ने मुझे उसका अनुसरण करने के लिए उसकी आंखों के माध्यम से संकेत दिया। मैं मीनाक्षी के पीछे पीछे अपने हाथ में ड्रेस का पैकेट लेकर गुरु-जी के पीछे बने हुए अटैच्ड टॉयलेट में घुस गयी । हालाँकि मिनाक्षी बाथरूम में जाने के लिए कुछ ही कदम चली थी फिर भी एक महिला होते हुए भी मेरी आँखें उसकी साड़ी के भीतर उसके भारी नितंबों को मटकते हुए देख आकर्षित हुईं .

फिर मेरे लिए सरप्राइज आया। मैंने देखा कि बाथरूम के अंदर दरवाजा मीनाक्षी बंद कर लिया और वो मेरे साथ बाथरूम के अंदर थी .

मैं: आप ??

मीनाक्षी: हाँ मैडम। मैं तुम्हें महा-यज्ञ के लिए स्नान कराऊँगी और तैयार करूँगी ।

मैंने अपने भाग्य को धन्यवाद दिया कि गुरु-जी ने कम से कम इस उद्देश्य के लिए मीनाक्षी को चुना और किसी पुरुष को नहीं चुना । यह वास्तव में मेरे लिए शर्मनाक होता , क्योंकि मैं गुरु के निर्देश का विरोध नहीं कर सकती थी । उच्च शक्ति के बल्बों के साथ शौचालय अत्यधिक रोशन था और अंदर सब कुछ बहुत उज्ज्वल दिखाई देता था। मैंने नोट किया कि एक बाल्टी गुलाब जल भरा हुआ रखा था और उसके बगल में एक बड़ा साबुन दान रखा हुआ था। एक तौलिया पहले से ही दरवाजे के हुक से लटका हुआ था। मीनाक्षी ने महायज्ञ परिधान का पैकेट मेरे हाथ से ले लिया और चोली, स्कर्ट और मेरे अंडरगारमेंट्स निकाल कर दूसरे हुक पर लटका दिए ।.



[Image: YP03.webp]

मीनाक्षी: क्या आपने ये पहन कर देखें हैं ?

मैं: हाँ, लेकिन वे बहुत उजागर करते हैं ...

मीनाक्षी: आप ठीक कह रही हैं मैडम, लेकिन आपको इस बात से सहमत होना चाहिए कि ये महा-यज्ञ को पूरी तरह से नग्न होकर करने से बहुत बेहतर है, जो महायज्ञ के लिए वास्तविक आदर्श है।

ये सुनकर मैं अपनी जिज्ञासा को छिपा नहीं सकी ।

मैं: क्या सच कह रही ही ? आपने देखा है ?

मीनाक्षी: बेशक मैडम, अबसे तीन-चार साल पहले यह ही प्रथा थी।

मैं: लेकिन, यह तो कुछ ज्यादा हो गया ? इतने पुरुषों के सामने?

मीनाक्षी: मैडम, आपको अपना फोकस लगातार बनाये रखना है। आपको केवल अपने लक्ष्य को देखना चाहिए न कि उसके प्राप्त करने के भौतिक पहलुओं पर। आप को ही सकता है ये लगे आप बहुत बेशर्मी से काम कर रहे थे , लेकिन जब आप मातृत्व हासिल करेंगी तो आपको कोई पछतावा नहीं होगा ये मैं आपके साथ शर्त लगा सकती हूं।

मैं मिनाक्षी को प्रणाम करते हुए बोली आप बिलकुल ठीक कह रहे है गुरु-जी! और बिलकुल उनकी ही तरह लग रही है .

कहानी जारी रहेगी



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#95
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी

Update -36

स्नान




उसने सहमति में सिर हिलाया और हम दोनों मुस्कुरायी । जब मैं बात कर रही थी, इस बीच मैंने अपनी साड़ी और ब्लाउज खोल दिया था और अपने ब्रा के हुको खोल कर रही थी। मीनाक्षी ने मेरी ब्रा के हुक पीछे से खोलने में मेरी मदद की और मेरे दोनेो आकर्षक दुग्ध कलश मुक्त हो गए। शौचालय में तेज प्रकाश व्यवस्था से निश्चित रूप से मैं हिचकिचा रही थी, क्योंकि मैं विशेष रूप से एक वयस्क के रूप में, इस तरह के प्रश्मान और उज्वल वातावरण में कभी नग्न नहीं हुई थी.

मुझे दीक्षा का समय याद आ गया जब मैंने इसी शौचालय में स्नान किया था, लेकिन तब मैं अकेली थी, लेकिन इस बार मीनाक्षी मेरे साथ थी। यही शायद मुझे और अधिक विचलित कर रहा था । मुझे तुरंत अपनी शादी के बाद हनीमून का दिन याद आ गया जहाँ होटल में संलग्न बाथरूम में मेरे पति अनिल ने ने मुझे नंगा कर दिया था और हम दोनों एक साथ शावर में नहाए थे । वहाँ भी मैंने स्नान करते समय I शौचालय में प्रकाश बंद करवा अँधेरा कर दिया था लेकिन यहाँ ऐसा प्रकाश था जिसमे जैसे किसी किसी अन्य महिला के सामने व्यापक दिन के उजाले में निर्वस्त्र होना हो।

उस समय तक पूरी तरह से नग्न हो गयी थी और मुझे मीनाक्षी की मेरे बदन पर फिरती हुई आँखों में अपने लिए तारीफ़ और वो साथ में उसको होंठो पर प्रशंसात्मक मुस्कराहट थी ।




[Image: BATH1A.jpg]
मीनाक्षी: मैडम, पहले लिंग महाराज की थोड़ी पूजा करिये और फिर आपको अपने पूरे शरीर को गीला करना पड़ेगा.

यह कहते हुए कि वह खुद प्रार्थना की मुद्रा में आ गयी थी और मैंने भी उसे देख वही किया। मेरी एकमात्र प्रार्थना और कामना निश्चित रूप से गर्भवती होने के लिए थी।

उसके बाद मैंने उसे साबुनदान को खोलते हुए देखा, जो निश्चित रूप से मेरे द्वारा इससे पहले देखे गए किसी भी साबुनदान से बड़ा था। मैंने देखा कि साबुनदान में तीन आइटम थी, एक लिंगा की प्रतिकृति जैसी दिखने वाली लम्बी संरचना, एक तेल की बोतल, और कुछछोटे चौकोर नीले कागज जो लिटमस पैर जिसे दिखते थे . जैसे ही मैंने अपने शरीर पर बाल्टी से पानी डाला, ऊऊऊऊह! यह तो बहुत ठंडा है! कहते हुए लगभग कूद गयी .

पानी बेहद ठंडा था जैसे बर्फ हो।

मीनाक्षी: मैडम, जड़ी-बूटियों और पानी में मिलाए गए रसायनों ने इसे इतना ठंडा बना दिया है, लेकिन आप इससे अन्य बहुत सारे लाभ प्राप्त करते हैं।

मैं: ठीक है, लेकिन इसकी बर्फीली ठंड। ऊऊऊऊह!


जैसे ही मैंने अपने शरीर पर पानी डालना शुरू किया, मैंने मीनाक्षी को साबुनदान से निकली सामग्री के बारे में उल्लेख किया।

मैं: वो मीनाक्षी क्या हैं?

मीनाक्षी: मैडम, यह साबुन है, जैसा कि आप देख सकते हैं ये तेल है, और ये आपके शरीर पर लगाए जाने वाले टैग हैं।

हालांकि अंतिम आइटम के बारे में मैं मुझे कुछ पूरी तरह से समझ नहीं आया , लेकिन इससे पहले कि मैं मीनाक्षी से पूछ पाती , उसने विषय को बदल दिया।

मीनाक्षी: मैडम, नीचे आपके बाल इतने घने दिख रहे हैं। आप अपनी चूत को शेव नहीं करती हो?

उसने मेरी चूत पर हाथ फेरा। अचानक उससे आये इस सवाल पर मुझे थोड़ा अजीब लगा, हालाँकि हम महिलाएँ इन मुद्दों पर आपस में काफी खुलकर चर्चा करती हैं, लेकिन चूंकि मीनाक्षी मेरी कोई दोस्त या रिश्तेदार नहीं थी, इसलिए मुझे शर्म आ रही थी।




[Image: BATH02.jpg]
मैं नहीं? मेरा मतलब है हाँ, मैं वहां शेव नहीं करती ।

मीनाक्षी: क्या आप इनको ट्रिम (छोटे या काट- छांट ) भी नहीं करती ?

मैं: हाँ, हाँ, हालांकि नियमित रूप से नहीं।

मीनाक्षी: हम्म, फिर यह इतना घना क्यों दिख रहे है!

इसके बाद हम दोनों ने मुस्कुराहट का आदान प्रदान किया।

मीनाक्षी: मैडम, आप अपने आगे के अंगो पर साबुन लगा लीजिये और मैं आपकी पीठ के पीछे लगाने में मदद करती हूँ ।

मैंने उससे साबुन लिया; यह बहुत अजीब लग रहा था, बड़े लंडमुंड के साथ लम्बी शिश्नन के आकार का साबुन ! मैंने अपने शरीर के अग्र भाग पर साबुन लगाना शुरू कर दिया।

मीनाक्षी: आपके स्तन शादी के बाद भी ढलके नहीं है, मैडम।



[Image: BATH2.jpg]

मैंने अपने शरीर को साबुन लगाते हुए थोड़ा सा शरमायी क्योंकि मीनाक्षी मेरे मदद करने के लिए थोड़ा सा पानी मेरे शरीर पर डाल दिया जिससे साबुन की झाग बनाने में आसानी हुई । मैं जब साबुन लगाने के लिए अपने बदन को हिला रही थी तो मेरे मुक्त स्तनों हिले और झूलने लगे । मिनटों के भीतर मैंने अपनी गर्दन, कंधे, स्तन, पेट और जननांगों पर साबुन लगा लिया । मुझे यह स्वीकार करना होगा कि इस साबुन की खुशबू बहुत ही दिलकश और अनोखी थी।

मीनाक्षी: मैडम मुझे आप अपनी टांगों और पैरो पर साबुन लगाने दो । अन्यथा आपकी नीचे को और झुकना पड़ेगा ।

अगर मुझे अपने पैरों पर साबुन लगाना होता, तो मेरे बड़े स्तन बहुत शर्मनाक तरीके से हवा में लटक जाते और इसलिए मैंने साबुन उसके हाथ में देते हुए अपने दिमाग में उसका शुक्रिया अदा किया। वह मेरी चिकनी, गोरी जांघों पर साबुन फिराने मलने और रगड़ने लगी. मेरी जांघ के क्षेत्र में दूसरे हाथ में स्पर्श, हालाँकि वो मादा हाथ था पर उससे मेरे शरीर के माध्यम से एक गर्म लहर गुजरी! । मेरे पहले से ही सख्त निप्पल कड़े हो गए, क्योंकि मीनाक्षी ने मेरी जाँघों के बीच अपने हाथ सरका दिए थे । उसने मेरी जाँघों, टांगों और पैरों पर पूरी तरह से साबुन लगा कर झाग बना दिया और फिर अज्ञात कारणों से उसने मेरी चूत के क्षेत्र में भी साबुन रगड़ना शुरू कर दिया, हालाँकि वहां मैंने पहले से ही साबुन लगा लिया था !

जब उसने अपनी उंगलियाँ मेरी मोटी रसीली चूत के बालों में घुसा दीं तो मैं घबरा गयी , लेकिन जब उसने मेरे जी-स्पॉट पर स्पर्श किया तो मैंने उस स्पर्श का आनंद जरूर लिया। मीनाक्षी को भी अब मजा आने लगा था और वो मेरी चूत के बालों को ऐसे सहला रही थी जैसे वो सितार बजा रही हो!

कहानी जारी रहेगी
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#96
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी

Update -37

स्नान 




मैं: ईईआई! तुम ये क्या कर रही हो ?

मीनाक्षी ने मेरी इस अभिव्यक्ति पर बेक़ाबू होकर, ही-ही करती हुई हसने लगी और वह रुक गई और हंसते हुए खड़ी हो गई।

मीनाक्षी: उह! बस उन्हें देखिये !

वो मेरे गोल स्तन के साथ बिल्कुल सट कर खड़ी हो गयी और उसने मेरे गुलाबी निप्पलों की तरफ इशारा किया, जो तब तक अपने पूरे आकार तक बढ़ कर, दो पके हुए अंगूरों की तरह लग रहे थे , और मैं शर्म से लाल हो गयी ।

मीनाक्षी: मैडम, अब आप कृपया पीछे घूमिये ।

मैंने अपनी नंगी पीठ उसकी ओर कर दी और उसने थोड़ा पानी लगाया और मेरी पीठ पर साबुन लगाना शुरू कर दिया। मैंने देखा कि घिसने पर लंग के आकार वाला साबुन बहुत जल्दी से छोटा हो रहा था और ऐसा लग रहा था जैसे कि एक खड़ा हुआ कठोर लिंग धीरे-धीरे स्खलित होता हुआ शिथिल हो रहा है



[Image: BATH-SEA.jpg]
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मीनाक्षी: मैडम , हमे साबुन को पूरा लगाना है उसके बाद ही बाहर निकालना है।

मैं: है मैं भी देख रही हूँ। यह काफी आसानी से गल रहा है इससे झाग भी बहुत ज्यादा हो बन यही है ।

मीनाक्षी: अरे! ये ऐसी ही सामग्री से बना है ? एक साबुन एक व्यक्ति के स्नान के लिए ही है।

मेरी पूरी पीठ और मम्मों पर साबुन अच्छी तरह से मसलने और मलने के बाद मीनाक्षी मेरी कमर पर पहुँची और साबुन को नीचे की तरफ रगड़ने लगी। उसके फिसलते हाथ मेरे गोल नंगे नितम्बो पर हर तरफ चले गए। मैं अपने नग्न नितंबों पर गोल गोल घूमते हुए हाथों के सहलाने के कारन तेजी से उत्तेजित हो रही थी उसकेबाद मैंने अपने स्तन और निपल्स को दबाने लगी क्योंकि उसके द्वारा मेरे नितम्बो को यो छेड़ने से मैं बहुत ज्यादा उत्तेजित हो गयी थी ।

चूँकि मैं टॉयलेट में एक महिला के साथ थी, मैंने आराम से अपने बूब्स और निप्पलों को अपने हाथों से दबाने और सहलाने में कोई संकोच महसूस नहीं किया। फिर मैंने महसूस किया की जब मीनाक्षी के हाथ मेरे चूतड़ों को सहला रहा थे तो उसकी उंगलिया नेरी गांड के छेद को भी बीच बीच में छु रही थी ।

मैं: ईसससस ?

उसके स्पर्श ने उत्कृष्ट उत्तेजना उतपन्न की ।

मीनाक्षी: मैडम, बस एक मिनट? हाँ, अब बस खत्म होने ही वाला हैं ।

वो मुझसे थोड़ा दूर हो गयी और मैंने अपने नग्न शरीर पर एक बार फिर पानी डालना शुरू कर दिया फिर मैंने अपने शरीर से झाग को पानी डाल कर हटाना और रगड़ कर निकालना शुरू कर दिया। इस तरह एक-दो मिनट के भीतर मेरा स्नान समाप्त हो गया और उसने मुझे तौलिया सौंप दिया। तौलिया में से भी अच्छी सुगंध आ रही थी और मैंने खुद को सुखाते हुए गहरी सांस ली। पूरे शौचालय उस साबुन की मनमोहक खुशबू से भर गया था और मैंने खुद को रात के उस समय (11 बजे) तरोताजा महसूस किया .

मैं अपनी ब्रा और पैंटी दरवाजे के हुक से उतारने ही वाली थी कि तभी मीनाक्षी ने बीच में टोक दिया।

मीनाक्षी: मैडम, कृपया प्रतीक्षा करें। पहले मैं आपके शरीर को तेल लगा देती हूँ ।

हालांकि मैं तेल लगाना पूरी तरह से भूल ही चुकी थी पर मैंने कहा, ठीक है? मैं थोड़ी और देर के लिए उस उज्ज्वल प्रकाश में बिल्कुल नग्न खड़ी हुई काफी शर्म महसूस कर रही थी था इस बीच मीनाक्षी ने तेल की बोतल खोली और मैंने देखा कि वो तेल हरे रंगका कुछ जड़ी बूटियों का हर्बल अर्क था ।

मैं: मीनाक्षी, मैं तेल लगा लेती हूँ ?

मीनाक्षी: मैडम, जब मैं मौजूद हूँ तो आप परेशानी क्यों उठाएंगी ?

मीनाक्षी ने मेरे बड़े और चौड़े कंधों और लंबे हाथों पर तेल रगड़ना शुरू कर दिया। हालाँकि यह मालिश नहीं थी, लेकिन उस ठंडे पानी के स्नान के बाद यह सुखद अनुभव था और इससे निश्चित रूप से मेरे शरीर को आराम मिला ।



[Image: bath2.jpg]

मैं: मुझे आशा है कि इस समय इतने ठंडे पानी से स्नान करने से मुझे ठण्ड नहीं पड़केगी और जुकाम नहीं होगा ।

मिनाक्षी थोड़ा सा मुस्कुराई और बोतल से थोड़ा तेल लिया और उसे अपनी दोनों हथेलियों में फैला लिया और मेरे पास आ गई। मीनाक्षी को शायद एहसास हुआ कि मैं नग्न खड़े होने के कारण शर्म महसूस कर रही थी, जबकि उसने पूरे कपडे पहने हुए थे ।


मीनाक्षी: मैडम, एक काम कीजिए, आप तेल लगाते समय अपनी आँखें बंद कर लीजिए। मुझे लगता है इससे आप बेहतर महसूस करेंगी।

मैं: हम्म। लेकिन कृपया जल्दी से लगा दीजिये ।

मीनाक्षी ने सहमति में सिर हिलाया और मैंने आँखें बंद कर लीं। मीनाक्षी ने मेरे कंधों से तेल लगाना शुरू किया और फिर मेरी लंबी बाँहों पर तेल लगाने के बाद आगे स्तनों की तरफ बढ़ गई। यह निश्चित रूप से मालिश नहीं थी, लेकिन फिर भी जड़ी बूटियों से युक्त बर्फीले पानी से मेरे स्नान के बाद उसके गर्म हाथो का गर्म स्पर्श मेरे लिए राहत भरा था ।

जब उसके तैलीय हाथों ने मेरे प्रत्येक उभरे हुए स्तन को अपने हाथो में भर कर और रगड़ कर उन्हें तेल से सराबोर कर दिया और फिर सहलाने लगी तो मेरा पूरा शरीर कांप गया और झटका देने लगा यद्यपि मेरी आँखें बंद थीं, मैं उसके हाथों को मेरे स्तनों को दबाते हुए महसूस कर रही थी और फिर उसने मेरे निपल्स को दो अंगुलियों से पकड़ लिया और धीरे-धीरे उन्हें मसल दिया और इस तरह से सहलाने और मसलने के कारण मेरे चूचक एक ही क्षण के भीतर खड़े हो गए। फिर उसकी साड़ी उंगलियों ने मेरी निपल्स को अपनी उँगलियों से दबाया और उस मुझे बिल्कुल ऐसा लगा जैसे मेरे पति की जीभ मेरे निप्पलों के साथ खेल रही हो!

मैं अपना ध्यान स्थानांतरित करने की कोशिश करते हुए बोली

मैं: मीनाक्षी, क्या यह तेल मेरी ब्रा नहीं ख़राब करेगा?

मीनाक्षी: मैडम, यह गुरु-जी द्वारा स्वयं तैयार किया गया पूर्णतया चिकनायी रहित जड़ी बूटियों का मिश्रण है इसलिए आप बिलकुल चिंता मत करो?

मैं: ठीक है।

फिर मीनाक्षी ने मेरे पेट पर तेल लगाया और मेरी टांगो पर तेल लगाने लगी । वह मेरी जाँघों और टांगों पर हाथ फेर रही थी इसलिए मुझे गुदगुदी का अहसास भी हो रहा था । जब उसने मेरी टांगो पर लगा लिया तो मैंने सोचा था कि वह अब मेरी पीठ के पीछे तेल लगाबे जायेगी , लेकिन?

मीनाक्षी: मैडम, कृपया पीछे मुड़ें।

मैं: आप इस तरफ क्यों नहीं आए?



[Image: BATH9.jpg]

मीनाक्षी: नहीं, नहीं मैडम। मेरे लिए ऐसा करना आसान होगा।

हालाँकि मैं उसके इस तरफ नहीं आने से थोड़ा हैरान थी , लेकिन मैंने उस पर ज्यादा ध्यान भी नहीं दिया था । मुझे शुक हुआ कही यहाँ कोई गुप्त कैमरा तो इसी तरफ नहीं था और मैं तब तक मैं उस गुप्त कैमरे का सामना कर रही थी वो मेरे पूरी तरह से नग्न अगर भाग को रिकॉर्ड कर रहा था और अब जैसे मैंने अपनी गांड मीनाक्षी की तरफ घुमाई, तो मैं वास्तव में कैमरे को अपनी बड़ी नंगी गाँड दिखा रही थी !

कहानी जारी रहेगी
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#97
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी

Update -38


परिधान




मीनाक्षी ने मेरी पीठ, मिड्रिफ, दो गाल और मेरी जांघों की पीठ पर तेल रगड़ना जारी रखा और दो से तीन मिनट में तेल रगड़ने की प्रक्रिया पूरी कर ली। इस बीच मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं सदा बाथरूम में नंगा ही खड़ी रहूंगी और मैं पूरी तरह से कैमरे के बारे को भूल गयी ।

मीनाक्षी: मैडम, बस कुछ और सेकंड, मुझे टैग्स लगाने दीजिए।

मैं: ओह हाँ! मैं आपसे पूछने वाली थी लेकिन भूल गयी कि ये टैग किस लिए हैं?

मीनाक्षी: मैडम , ये टैग आपके शरीर पर लगाए जाएंगे और महा-यज्ञ के दौरान आवश्यक होंगे।

मैंने अपनी आँखें खोलीं और नोट किया कि मीनाक्षी ने नीले कागज ले लिए और वह मेरे पास आयी और एक टैग मेरे बाएं निप्पल पर और दूसरा मेरे दायें निप्पल पर चिपका दिया ।




[Image: 11.jpg]
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मीनाक्षी: मैडम, हमारे शरीर में छह ऑर्गेज्म पॉइंट्स हैं और मैं इन लिटमस पेपरों को वहीं चिपका दूंगी।

मैं: लेकिन मीनाक्षी? मेरा मतलब? उद्देश्य क्या है?

मेरे निपल्स के बाद, उसने मेरी नाभि पर एक चिपकाया। फिर वो मेरी चूत के सामने नीचे बैठ गयी और वहां चिपकाने से पहले मीनाक्षी ने मेरे झांटो के छोटे-छोटे बालो के टुकड़े साफ किए और मेरी चूत के छेद के ठीक बगल में बाईं ओर एक टैग चिपका दिया।

मीनाक्षी: मैडम, महा-यज्ञ में सब चीजों का एक निश्चित उद्देश्य है, सही समय आने दें, आपको इसका महत्व पता लग जाएगा । आपको थोड़ा धैर्य रखना होगा . वैसे इन छोटो छोटी महत्वहीन चीजों के बारे में आप बिलकुल चिंता मत करो और अपने मुख्या उद्देश्य पर अपना ध्यान केंद्रित रखो ।

महत्वहीन !? वह इसे महत्वहीन कह रही थी ! उसने मेरे निपल्स और चूत पर छोटे-छोटे कागज़ चिपकाए थे ? अब मैं कैसे इसकी पूरी तरह से अनदेखी कर सकती हूं?

उसके बाद उसने मेरी ऊपरी जांघों पर आखिरी दो लिटमस पेपर चिपकाए और इस तरह (निपल्स (2), नाभि, चूत, और जांघ (2)) छह ऑर्गेज्म पॉइंट पूरे किए?

मीनाक्षी: मैडम, अब आप महा-यज्ञ परिधान पहन लीजिये ।



[Image: choli.jpg]

मैंने तुरंत अपनी पैंटी को दरवाजे के हुक से निकाल लिया और पहनने लगी .

उसके सामने मुझे मेरे अंडरगारमेंट्स पहनते हुए बहुत अजीब लग रहा था, इसलिए मैं कपड़े पहनने के लिए थोड़ा दूर हो गयी ।

मीनाक्षी: मैडम, मैडम, कृपया दूर मत जाईये। और कपडे पहनते हुए कृपया इस तरफ का सामना करें। उसने दृढ़ता से आग्रह किया .

उस तरफ का सामना करने के बारे में उसकी दृढ़ता भरा आग्रह देखकर मेरी भौंहें तन गईं! उसने जल्दी से खुद को सभाला। पहली बार मुझे कुछ शक हुआ । मैंने उस तरफ की दीवार को ध्यान से देखा; लेकिन चमकते हुआ उच्च शक्ति के बल्ब और उसके नीचे वेंटीलेटर के अतरिक्त मुझे कुछ भी संदिग्ध नहीं नज़र आया । मेरा पूरा शरीर नंगा था और मैं अभी भी अपनी पैंटी को अपने दाहिने हाथ में पकड़े हुए थी .

मीनाक्षी: मैडम वास्तव में महा-यज्ञ के लिए स्नान करते समय पूर्व दिशा का सामना करना चाहिए , इसलिए मैं आपको ये सुझाव दे रहा थी ? उसने ये भांप कर के मुझे कुछ संदिग्ध लग रहा था मुझे आश्वस्त करने का प्रयास किया

मुझे कमोबेश उसकी बातों पर यकीन हो गया और सामने वेंटिलेटर को देखते हुए मैंने अपनी पैंटी पहनी। मुझे ऐसा लग रहा था कि वेंटिलेटर में कुछ ऐसा है, जो काफी गहराई तक छुपा हुआ है, लेकिन मैंने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और मैं अपने गोल नितम्बो के गालो पर मेरी पैंटी के किनारों को खींचने में व्यस्त हो गयी और ब्रा को भी जल्दी से पहन लिया । उस समय मेरी प्राथमिकता मेरे अंतरंग भागों को पहले तेजी से कवर करने की और सुरक्षित महसूस करने की थी।

लेकिन मैं कितनी सुरक्षित थी मुझे इस पर पूरा संशय है ? यदि मैं बेखबर उस समय इस पर ध्यान देती की मीनाक्षी मुझे उस दीवार का सामना करने के लिए क्यों जोर दे रही थी, कम ऊंचाई पर बने उस वेंटीलेटर की थोड़ी भी अगर जांच कर लेती तो निश्चित रूप से या तो मेरी तस्सली हो जाती के वहां कुछ नहीं था या फिर उस वेंटिलेटर के बारे में मैं ही अति उत्सुक थी या थोड़ा और ध्यान देती तो मैं आसानी से उनकी किसी गंदी हरकत को पकड़ सकती थी जिसमे मैंने कैमरे के सामने अपने 28 साल के शरीर पर एक भी धागे के बिना स्नान किया था और फिर पैंटी पहनने के लिए मैं थोड़ा नीचे झुक गयी और मेरी सुदृढ़ नंगे दूध के टैंक हवा में स्वतंत्र रूप से झूलने लगे थे, फिर उसके बाद पैंटी के अंदर ापीर डालने के लिए अपने पैरों को बारी बारी से उठा लिया था ? मैं बाद में सोच थी क्या मेरा स्नान और कपडे पहनना सब का सब कैमरे में रिकॉर्ड हो गया था !



मीनाक्षी: मैडम, आपके एक्स्ट्रा-कवर?

मीनाक्षी ने मुझे चिपकने वाली बोतल के साथ छोटे गोलाकार लाल कपड़े के टुकड़े सौंपे। मैंने चिपकने वाले तरल को छोटे गोल कवरों पर चिपकाया और उन्हें मेरी दो उभरी हुई निपल्स पर अपनी ब्रा के भीतर रख दिया।



[Image: BRA3.webp]

में : मीनाक्षी, यह ब्रा सामग्री हालांकि पहनने के लिए बहुत आरामदायक है, लेकिन पतली है।

मीनाक्षी: हाँ मैडम और उसके लिए ये अतिरिक्त कवर वास्तव में काफी अच्छे रहेंगे मैं अक्सर उनका उपयोग करता हूं क्योंकि मेरे निपल्स अक्सर बहुत अधिक बड़े हो जाते हैं।

ऐसा कहते हुए वह शर्माते हुए मुस्कुराई। मीनाक्षी एक परिपक्व महिला थी और उसके चेरी के आकार की निपल्स स्पष्ट से बड़ी थी।

मैं: लेकिन अगर आप सामान्य ब्रा पहनती हैं तो आपको उनकी आवश्यकता क्यों होगी?

मीनाक्षी: मैडम, आप एक गृहिणी हैं, आप हर समय एक नियमित रूप से ब्रा पहन सकती हैं, लेकिन आश्रम में कई पूजन, हवन आदि होते रहते हैं, जहाँ मुझे केवल ब्लाउज पहनना होता है।

मैं: ओह! फिर तो आपको बहुत शर्म आती होगी ।



[Image: STRAP5A.jpg]



मीनाक्षी: हां, मेरे शुरुआती दिनों में यही भावना थी, अब आदत हो गई है क्योंकि जैसा कि गुरु-जी हमेशा कहते हैं कि ध्यान इन क्षुद्र चीजों से ऊपर नहीं होना चाहिए।

वह थोड़ा रुकी। मैंने अब लगभग पूरी तरह से अपने शरीर पर चोली और स्कर्ट पहन ली थी।



[Image: DRS1.gif]

मीनाक्षी: लेकिन फिर भी मैडम, मैं अपनी सारी शर्म नहीं त्याग सकती। इसलिए मैं इनका उपयोग करती हूं, जो वास्तव में मेरे आसपास मौजूद अन्य लोगों के लिए ब्लाउज पर मेरे निप्पल के उभारो को छुपाते हैं । आप भी इन्हे यज्ञ के दौरान उपयोगी पाएंगे।

कहानी जारी रहेगी
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#99
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

आरंभ

Update -01


संकल्प


मैं: ठीक है मीनाक्षी। मुझे वास्तव में अपने अंतरंग अंगों के लिए कुछ विशेष सुरक्षा की आवश्यकता है।

मीनाक्षी: मैडम, आप इस ड्रेस में बहुत सेक्सी लग रही हैं क्योंकि ये आपकी सुंदर फिगर को अच्छी तरह से दर्शा रही है ।

उसकी ये बात सुनने के बाद शौचालय से स्नान करने और कपडे बदलने के बाद बाहर निकलते समय हमने परस्पर मुस्कान का आदान-प्रदान किया। गुरु जी का कमरा पहले से ज्यादा धुँआदार लग रहा था। मैंने छोटे कदम लेते हुए चल रही थी क्योंकि मैंने छोटी स्कर्ट पहनी हुई थी और साथ ही मैंने अपनी गहरी उजागर दरार को ढंकने के लिए चोली को ऊपर की तरफ खींचने की पूरी कोशिश की। पूरा कमरा तरह-तरह के सामानों से भव्य तरीके से सजाया गया था।

जब मैंने धुएं के बीच में से ध्यान से देखा तो मैंने देखा कि पूरा कमरे में कई कटोरे और पूजा के लिए फूलों वाले छोटे बर्तन, कुमकुम, चंदन पाउडर, एक कलश जिसके ऊपर एक नारियल रखा था , घी, चावल और खीर से भरा हुआ कटोरा, सुपारी, लकड़ी के छोटे टुकड़े आदि रखे हुए थे । इसके अतिरिक्त, लिंग महाराज के सामने कमरे के केंद्र में यज्ञ कुंड में अग्नि प्रज्वलित थी और इसके चारों ओर चार दीपक रखे हुए थे।

इसके अलावा, कई सुगंधित अगरबत्ती (अगरबत्ती) कमरे को नशीली गंध से भर रही थीं। गुरु-जी जोर-जोर से मंत्रों का जाप कर रहे थे और इस माहौल को बनाने के लिए हर चीज का व्यापक योगदान था? शाब्दिक अर्थ के तौर पर पूरा मौहौल आध्यात्मिक था।


[Image: YP1-YAGYA.jpg]
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वहां ऐसा वातावरण था जिसमे कोई भी व्यक्ति स्वतः ही इस आध्यात्मिक संसार में डूब जाएगा !

गुरु-जी: रश्मि। तुम महा-यज्ञ पोशाक में बहुत दिव्य दिख रही हो !

गुरु-जी की आंखें मुहे इस महायज्ञ परिधान में देखते हुए मेरे चेहरे से लेकर मेरे पैरो तक घूम गई। मीनाक्षी गुरु जी को प्रणाम करते हुए कमरे से निकल गई और मैं उदय, संजीव, और गुरु-जीतीनों पुरुषों के साथ उस कक्ष में बिल्कुल अकेली ामहिला रह गई।

गुरु-जी: बेटी, पहले लिंग महाराज की प्रार्थना करेंगे ! आप अपने मन को प्राथना में एकाग्र कीजिये ।

उसने मुझे कुछ फूल सौंपे और मुझे प्रार्थना की तरह हाथ जोड़कर इशारा किया। उदय ने यज्ञ कुंड में कुछ घी डाला? और जैसे ही मैंने अपनी आँखें बंद कीं गुरु-जी ने बहुत ज़ोर से मंत्रों का जाप करना शुरू कर दिया। लिंग महाराज से मेरी एकमात्र प्रार्थना इस यज्ञ की सफलता थी ताकि मैं मातृत्व के अपने लक्ष्य तक पहुंच सकूं। प्रार्थना लगभग दो मिनट तक चली और फिर जब गुरूजी ने मंत्र बंद कर दिया तो मैंने अपनी आँखें खोलीं।

गुरु जी : जय लिंग महाराज! रश्मि, यहाँ आकर मेरे सामने खड़ी हो जाओ।

मैंने गुरु जी के सामने जाने के लिए कुछ झिझकते हुए कदम उठाए क्योंकि मेरी सुडौल जांघें मेरे द्वारा पहनी गई मिनीस्कर्ट के कारण उजागर हो गई थीं। गुरु-जी फर्श पर बैठे थे, जिस कोण से वह मुझे देख रहे थे, उस वजह से मैं और अधिक असहज हो गयी थी । उस समय उदय और संजीव मेरे पीछे खड़े थे।

गुरु-जी: रश्मि, इस परिधान को पहनकर आप में कुछ संशय और घबराहट देख रहा हूँ! ऐसा क्यों है?

मैं हां? मेरा मतलब है नहीं गुरु-जी, अब ठीक है।


[Image: CHOLI1.jpg]

गुरु-जी: मुझे आशा है। फिर ऐसे क्यों खड़ी हो? रश्मि मन को आराम दो। अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आपके दिमाग को बिल्कुल बेफिक्र होना होगा।

मैं अपने पैरों को आपस में चिपकाए खड़ी थी और मैंने अपने हाथ मेरी छोटी स्कर्ट के सामने कर लिए थे । मैंने जल्दी से स्कर्ट के सामने से अपने हाथों को हटाकर उस स्थिति से उबरने की कोशिश की।

गुरु-जी: ये बेहतर है !

मेरे स्कर्ट से ढके शरीर के मध्य क्षेत्र को देखकर गुरु जी हल्के से मुस्कुराये । मैंने भी आराम से खड़े होने के लिए अपने पैरों को थोड़ा सा हिलाया। गुरु जी मेरी सूक्ष्म-मिनी स्कर्ट के नीचे मेरे शरीर के नग्न अंगो को गौर से देख रहे थे।


[Image: CHOLI00.jpg]

गुरु जी : ठीक है। अब आपको सफल महायज्ञ करने का संकल्प करना होगा । और फिर मुझे संकल्प का महत्त्व समझाते हुए बोले हिन्दू धरम शास्त्रों के अनुसार किसी भी प्रकार की पूजा से पहले संकल्प अवश्य लेना चाहिए नहीं तो उस पूजन का पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो है। हमारे देश में कोई भी कार्य होता हो चाहे वह भूमिपूजन हो, वास्तुनिर्माण का प्रारंभ हो गृह प्रवेश हो, जन्म, विवाह या कोई भी अन्य मांगलिक कार्य हो, वह करने के पहले कुछ धार्मिक विधि संपन्न की जाती उसमें सबसे पहले संकल्प कराया जाता है । यह संकल्प मंत्र यानी अनंत काल से आज तक की समय की स्थिति बताने वाला मंत्र है ।शास्त्रों के अनुसार संकल्प के बिना की गई पूजा का सारा फल इन्द्र देव को प्राप्त होता है। इसीलिए पूजा में पहले संकल्प मंत्र द्वारा संकल्प लेना चाहिए, फिर पूजा करनी चाहिए। संकल्प का मंत्र दाहिने हाथ में जल, पुष्प, सिक्का तथा अक्षत लेकर /संकल्प मंत्र/ का उच्चारण करन चाहिए

फिर गुरूजी बोले : जब तक मैं आरंभिक संकल्प पूजा पूरी नहीं कर लेता तब तक आप यहीं प्रतीक्षा करें।

मैं: जी गुरु-जी।

गुरु-जी ने संकल्प प्रक्रिया की शुरुआत पूजा की शुरुआत से की और मंत्रों का जाप करते हुए लिंग महाराज के चरणों में फूल फेंके। उदय और संजीव उसकी जरूरत का सामान पकड़ा कर गुरूजी की मदद कर रहे थे। मैं हाथ जोड़कर खड़ी प्रार्थना कर रही थी । कुछ ही मिनटों में संकल्प पूजा समाप्त हो गई।

गुरु-जी: अब यहाँ इस आसन (बैठने के लिए कढ़ाई वाला मोटा कपड़ा) पर बैठो।

मेरे दिल की धड़कन उस आसान पर बैठने के विचार से तेज हो गयी थी? जब मास्टर-जी और दीपु ने मुझे ड्रेस दी थी तो मैंने उस ड्रेस को पहनने के बाद बैठने और खड़े होने इत्यादि की कई मुद्राएँ आज़माईं थी और अब मुझे फर्श पर बैठना था। और उस छोटी स्कर्ट को पहनकर फर्श पर टाँगे मोड़ कर बैठना पड़े, तो मुझे कोई भी ऐसा तरीका नहीं समझ आया जिसमे मैं अपनी पैंटी को अपने आस-पास के लोगों के सामने आने से छिपा पाऊ ।

मैं गुरु-जी के पास आगे बढ़ी और आसन पर खड़ा हो मेरे घुटनों के बल बैठ गयी । मुझे पता था कि यह पर्याप्त नहीं होगा, लेकिन फिर भी मुझे उस समय यही उचित लगा।



गुरु-जी: क्या हुआ रश्मि? आप आधा रास्ता क्यों रुक गयी ठीक से बैठो ?

मैं उस समय केवल यही उम्मीद कर रही थी की गुरूजी यही कहेंगे

मैं: नहीं, वास्तव में?

मेरे हाव्-भाव देखकर गुरु-जी को मेरी समस्या का एहसास हुआ, लेकिन जिस तरह से उन्होंने खुले तौर पर मौखिक रूप से कहा उससे मुझे बहुत ज्यादा शर्म का एहसास हुआ।

गुरु-जी: ठीक है, मुझे लगता है कि आपको अपनी स्कर्ट के ऊपर उठने और सब कुछ दिखाने का संदेह है, क्यों रश्मि, क्या ऐसा है?

मैं शर्म से लाल हो गयी थी मैंने बस फर्श पर देखा और सिर हिलाया। संजीव और उदय की उपस्थिति ने मेरी स्थिति और खराब कर दी थी ।

गुरु-जी: रश्मि लेकिन आपने पैंटी पहनी होगी! संजीव, क्या तुमने रश्मि को पूरा स्टरलाइज्ड सेट नहीं दिया?

संजीव: निश्चित रूप से गुरु-जी। टॉयलेट में मीनाक्षी भी थी। उसने सुनिश्चित किया होगा कि मैडम ने पैंटी पहनी हुई है।

[Image: YP14.jpg]
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दीपक कुमार
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औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

आरंभ

Update -02


आरंभ





गुरु जी : ठीक है, ठीक है। तो क्यों ? फिर क्या दिक्कत है, रश्मि ?

मेरे माथे पर पसीने की बूंदें आ गयी कि क्या जवाब दूं। उदय और संजीव के साथ गुरु-जी - तीनों पुरुष मुझे ही देख रहे थे। मेरे होंठ केवल अलग हुए लेकिन मैं कोई जवाब नहीं दे सकी । मैं अभी भी अपने घुटनों पर ं बैठी हुई थी




और अब मुझे अपने नितंबों को अपने घुटनों से ऊपर उठाना था और अपने पैरों को मोड़ना था और चौकड़ी मार कर बैठना था ।


गुरु-जी: उदय, अपनी उत्तरीय ( ऊपरी वस्त्र) रश्मि को दे दो (शाल की तरह ढीला ऊपरी शरीर को ढकने का वस्त्र ) । वह इसे अपनी गोद में रख कर बैठ जायेगी ।


उदय के भगवा उत्तरीय -ऊपरी वस्त्र से अपनी नंगी जांघों को ढक कर मैं राहत महसूस कर रही थी और अपने पैरों को मोड़कर आसन पर बैठ गयी । उदय का ऊपरी हिस्सा अब नंगा था और उसका शरीर इतना आकर्षक सुदृढ़ और कसरती था कि मेरी आँखें बार-बार उसकी ओर आकर्षित हो रही थीं। उदय के लिए मेरा शुरुआती क्रश भी इसी वजह से था, लेकिन फिर मैंने यज्ञ पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश की। लेकिन यह मेरे लिए मुश्किल था क्योंकि मैं यह भी स्पष्ट रूप से समझ सकती थी कि इस तरह बैठने से मेरी मिनीस्कर्ट मेरे गोल नितम्बो के आधी ऊपर हो गई और मुझे इस स्थिति से ऊपर उठते समय काफी सतर्क रहना होगा।


[Image: YMUDRA.jpg]

गुरु जी : ठीक है, अब अपने हाथों को अपने घुटनों पर फैलाकर रखिये और मन्त्रों को मेरे पीछे पीछे जोर-जोर से दोहराइए।

उन्होंने मंत्रों के साथ शुरुआत की और मैंने अपनी बाहों को अपने मुड़े हुए घुटनों तक फैला दिया जिससे मैं थोड़ा आगे को झुक गयी । मैं गुरु जी के कहे अनुसार मन्त्र दोहरा रही थी इस बार मेरी आंखें खुली थीं, लेकिन जल्द ही मेरी छठी इंद्रिय ने मुझे सचेत कर दिया कि संजीव की नजर मुझ पर है।

शुरू में मैं गुरुजी पर ध्यान दे रही थी था, लेकिन उनकी आंखें आधी बंद देखकर मैंने अपनी आंख के कोने से संजीव की ओर देखा। मेरा अनुमान बिकुल सही था ! मैंने अपने ब्लाउज के नीचे से एक नज़र डाली और पाया कि मेरे ब्लाउज के ऊपर से मेरी दरार और स्तन का काफी भाग नजर आ रहा था क्योंकि मैं थोड़ा आगे को झुकी हुई थी ।

मैं थोड़ी सीधी हुई पर हरेक पोज़ में मेरे ब्लाउज की चौकोर गर्दन के कट के कारण, मेरे बूब का ऊपरी हिस्सा लगातार दिखाई दे रहा था, लेकिन मैंने कभी नहीं सोचा था कि यह इतना आकर्षक दिखाई देगा। मैंने तुरंत अपना पोस्चर ठीक किया और पीठ को सीधा किया .

गुरु जी : जय लिंग महाराज! तिलक लो? रश्मि ।

मैंने अपने माथे पर लाल तिलक लिया और देखा कि संजीव मुझे देख रहा था। मेरी नंगी जाँघें अब उदय के उत्तरीय से अच्छी तरह ढकी हुई थीं, लेकिन मेरे खुले हुए स्तनों की दरार को छिपाने का कोई उपाय नहीं था।

गुरु-जी: रश्मि , अब जब आपकी दीक्षा पूरी हो गई है और आपने अपनी प्रार्थना लिंग महाराज को दे दी है, तो आपको मंत्र-दान करने की आवश्यकता है? अब

मैं: क्या? वह गुरु-जी?

गुरु जी : इस महायज्ञ में सफलता पाने के लिए तीन गुप्त मंत्र हैं। इनका उच्चारण जोर से नहीं किया जा सकता क्योंकि हमारे तंत्र में इनकी मनाही है। हम में से प्रत्येक आपको एक मंत्र देगा।



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मैं: ठीक है गुरु जी।

गुरु-जी: अनीता, इस समय तक तुम्हें एहसास हो गया होगा कि अपने लक्ष्य को पाने के लिए आपकी कामेच्छा को बढ़ाना होगा।

तुम यहाँ आओ और अग्नि के पास खड़े हो जाओ। उदय, तुम उसे पहला मंत्र दो।

मैं अपने बैठने की स्थिति से उठी और अपनी स्कर्ट को अपने नितम्बो और गांड के ऊपर से सीधा कर लिया। भगवान का शुक्र है! उत्तररिया मेरी गोद में था, जिसने मुझे इन पुरुषों के सामने एक स्कर्ट के ऊपर हओने से योनि प्रदेश के उजागर होने से रोका। मैं उत्तररिया को आसन पर छोड़कर अग्नि के पास जाकर वहीं खड़ा हो गयी ।

गुरु-जी: रश्मि , उदय आपके कानों में लगातार पांच बार मंत्र का जाप करेगा और अब आप सब कुछ भूल कर मंत्र को बहुत ध्यान से सुनेंगे। छठवीं बार आपको मंत्र को खुद बुदबुदाना है। ठीक है ?

मैंने सिर हिलाया और मेरा दिल धडकने लगा, क्योंकि मुझे उस मंत्र को इतने कम समय में दिल से सीखना और याद करना था । मुझे वास्तव में संदेह था कि अगर मैं असफल हो गयी तो क्या होगा।

गुरु-जी: रश्मि बेटी, तुम्हारा चेहरा कहता है कि तुम चिंतित हो! क्यों? मंत्र बहुत छोटा है और इसमें केवल 5-6 संस्कृत के शब्द हैं। ?

मैं: ओ! इतना तो मैं कर लूंगी गुरु-जी।

उदय उस समय तक मेरे पास आ गया था।

गुरु जी : ठीक है। रश्मि , एक और बात, आपने देखा होगा कि श्री यादव के स्थान पर यज्ञ प्रक्रियाएं काफी अंतरंग थीं। तंत्र की कला भागीदारी को रेखांकित करती है। और मुझे उसी भागीदारी की जरूरत है जो मुझे आपके आश्रम प्रवास के दौरान आपसे मिलती रही है। उम्मीद है आप समझ गयी होंगी !

मैंने गुरु जी की ओर हाँ में सिर हिलाते हुए इशारा किया, ?

यहां तक कि जब मैंने पुष्टि में सिर हिलाया, तो मैं थोड़ा चिंतित थी क्योंकि जिस तरह से मैंने यादव के घर पर एक माध्यम के रूप में काम किया तब उन्होंने मेरे युवा शरीर का पूरा फायदा उठाया; मैं सच कहूं तो मैं उसका रिपीट शो नहीं चाहती थी । किसी अनजान व्यक्ति के घर के पूजा घर में इस तरह से मेरे शरीर को टटोलना मेरे लिए, विशेष रूप से विवाहित होने के कारण, एक वास्तविक शर्म की बात थी।

गुरु जी : मैं जानता हूँ रश्मि यह सुखद अनुभव नहीं था क्योंकि विवाहित होने के कारण, पति के अलावा किसी अन्य पुरुष के स्पर्श पर आपकी पहली प्रतिक्रिया नकारात्मक होती है। और मिस्टर यादव आपके लिए बिलकुल अजनबी थे।



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गुरु जी को एहसास हुआ था कि मेरे दिमाग में क्या चल रहा है? मैंने शर्म से सिर झुका लिया।

गुरु-जी: लेकिन बेटी, आपको यह भी समझना होगा कि यज्ञ का मूल सार और लिंग महाराज को संतुष्ट करने की प्रक्रिया का पालन करना होगा। कोई भी कुछ भी इस मानदंड से ऊपर नहीं है। है ना?

मैं: जी गुरु-जी।

मैं फिर से गुरु-जी के साथ आँख से संपर्क बनाए हुई थी ।

गुरु-जी: हमारा लक्ष्य है आपको अपने लक्ष्य तक पहुँचाना। तो चलिए उदय महायज्ञ के पहले गुप्त मंत्र से आपको रूबरू कराते हैं। जय लिंग महाराज!

उदय पहले से ही मेरे बगल में खड़ा था।

गुरु-जी : चूंकि यह एक गुप्त मंत्र है, आप उदय के करीब आ जाइए ताकि वह इसे आपके कान में फुसफुसा सकें

कहानी जारी रहेगी
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