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Thriller आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07
#61
सुपर हॉट
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#62

  1. गुरुजी के आश्रम में सावित्री


औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

परिधान'

Update -10


बेहोशी का नाटक 





अभी तक दीपू ने मेरी पीठ को सहारा दिया हुआ था वैसे इसकी कोई ज़रूरत नहीं थी क्यूंकी गोपालजी मुझे ऑक्टोपस के जैसे जकड़े हुए था. 60 बरस की उमर में भी उस टेलर ने बड़ी मजबूती से मुझे पकड़ रखा था. अब दीपू बेड ठीक करने गया तो मुझे लगा की एक बार आँखें खोलकर देखने में कोई ख़तरा नहीं है. मैंने देखा की दीपू मेरे बेड से कपड़ों को हटा रहा है , लेकिन मैं एक पल के लिए ही उसे देख पाई क्यूंकी अब गोपालजी मुझे अपने आलिंगन में ऐसे दबा रहा था जैसे की अपनी पत्नी को आलिंगन कर रहा हो. उसका मुँह मेरी गर्दन और कंधों पर था और दीपू का ध्यान दूसरी तरफ होने का फायदा उठाते हुए उसने अपने दाएं हाथ से मेरी चूचियों को दबाना शुरू कर दिया. बड़ी मुश्किल से मैंने अपनी सिसकारियाँ रोकी और चुपचाप चूची दबवाने का मज़ा लिया.

दीपू – जी हो गया. मैडम को होश आ गया ?

उसकी आवाज़ सुनते ही मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और गोपालजी के कंधों में सर रख दिया. गोपालजी ने भी तुरंत मेरी चूचियों से हाथ हटा लिए. मेरी साड़ी का पल्लू अभी भी फर्श में गिरा हुआ था.

गोपालजी – नहीं आया. चलो मैडम को बेड में ले जाते हैं.

मैंने देखा तो नहीं पर दीपू मेरे नज़दीक आ गया. मैं सोचने लगी ये दोनों मुझे बेड में कैसे ले जाएँगे ? गोपालजी की उमर और उसके शरीर को देखते हुए वो मुझ जैसी गदराये बदन वाली जवान औरत को गोद में तो नहीं उठा सकता था. जो भी हो , लेकिन इस नाटकबाजी में मुझे बहुत रोमांच आ रहा था और मैं बेशरम बनकर सोच रही थी की ऐसे थोड़ा मज़ा लेने में हर्ज़ ही क्या है.

दीपू – हम मैडम को कैसे ले जाएँगे ?

गोपालजी – ऐसा करो पहले तो मैडम की साड़ी उतार दो ये फर्श में मेरे पैरों में लिपट जा रही है.

उउऊऊह ……मैं मन ही मन बुदबुदाई.

दीपू ने तुरंत मेरी कमर से साड़ी उतार दी. वैसे भी जल्दी ही उसकी शादी होने वाली थी तो उसे अपनी पत्नी की साड़ी उतारना तो आना ही चाहिए. जब दीपू मेरी साड़ी उतार रहा था तो मुझे बड़ा अजीब लग रहा था क्यूंकी आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ था की मेरी आँखें बंद करके किसी ने मेरी साड़ी उतारी हो. शादी के शुरू के दिनों में जब मेरे पति बेड में मेरी पैंटी उतारते थे तब मैं शरम से आँखें बंद कर लेती थी. लेकिन धीरे धीरे आदत हो गयी और बाद में मुझे इतनी शरम नहीं महसूस होती थी. लेकिन ऐसा तो कभी नहीं हुआ था.

गोपालजी ने भी दीपू की तेज़ी पर गौर किया और गंदा कमेंट कर डाला.

गोपालजी – दीपू बेटा, आराम से खोलो. इतनी तेज़ी क्यों दिखा रहे हो ?

दीपू ने कोई जवाब नहीं दिया. शायद वो इसलिए जल्दबाज़ी दिखा रहा था क्यूंकी मुझे बेहोश देखकर जल्दी से बेड में लिटाना चाह रहा था.

गोपालजी – अरे … इतनी तेज़ी से साड़ी क्यूँ उतार रहे हो. ये तुम्हारी घरवाली थोड़े ही है जो तुम्हें पेटीकोट भी उठाने को मिलेगा …हा हा हा….

दीपू – हा हा हा…..

गोपालजी – मैडम की साड़ी कुर्सी में रख दो.

अब मैं गोपालजी की बाँहों में सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी थी और फिर गोपालजी ने पेटीकोट के ऊपर से मेरे सुडौल नितंबों पर हाथ रख दिए और उनकी गोलाई का एहसास करने लगा , मैं समझ गयी की अभी दीपू मेरी साड़ी कुर्सी में रख रहा होगा. हमेशा की तरह मेरी पैंटी मेरे नितंबों की दरार में सिकुड चुकी थी और गोपालजी को पेटीकोट के बाहर से मेरे मांसल नितंबों का पूरा मज़ा मिल रहा होगा. मुझे भी एक मर्द के हाथों से अपने नितंबों को सहलाने का मज़ा मिल रहा था.

मैंने फिर से एक पल के लिए आँखें खोली और देखा की दीपू वापस आ रहा है , गोपालजी ने तुरंत अपने हाथ मेरी कमर में रख लिए. मेरी पैंटी पूरी गीली हो चुकी थी और अब मैं बहुत कामोत्तेजित हो चुकी थी.

दीपू – अब ले चलें.

गोपालजी – हाँ. तुम इसकी टाँगें पकड़ो और मैं कंधे पकड़ता हूँ.

दीपू ने मेरी टाँगें पकड़ लीं और गोपालजी ने कंधे पकड़े और मुझे फर्श से उठा लिया. ऐसे पकड़े हुए वो मुझे बेड में ले जाने लगे. दीपू ने मेरी नंगी टाँगें पकड़ रखी थीं तो मेरा पेटीकोट थोड़ा ऊपर उठ गया और उसका निचला हिस्सा हवा में लटक गया. वो तो अच्छा था की बेड पास में ही था वरना ऐसे पेटीकोट लटकने से तो नीचे से अंदर का सब दिख जाता. फिर उन्होंने मुझे बेड में लिटा दिया और मेरे सर के नीचे तकिया लगा दिया.

गोपालजी – दीपू, अब क्या करें ? कुछ समझ नहीं आ रहा . गुरुजी को बुलाऊँ क्या ?

दीपू – जी , मैंने अपने गांव में बहुत बार मामी को बेहोश होते देखा है. मेरे ख्याल से अगर मैडम के चेहरे पर पानी छिड़का जाए तो इसे होश आ सकता है.

गोपालजी – तो फिर पानी ले आओ. तुम्हारी मामी को बेहोशी के दौरे पड़ते हैं क्या ?

दीपू – जी हाँ. बेहोश होकर गिरने से उसे कई बार चोट भी लग चुकी है. लेकिन वो तो बेहोश होकर गिर जाती है पर मैडम तो खड़ी रही , कुछ अलग बीमारी मालूम होती है.

मैं आँखें बंद किए हुए उनकी बातें सुन रही थी और अपने चेहरे पर पानी पड़ने का इंतज़ार कर रही थी. दीपू पानी ले आया और उन दोनों में से पता नहीं कौन मेरे चेहरे पर पानी छिड़क रहा था, पर मैंने पूरी कोशिश करी की ठंडा पानी पड़ने पर भी ना हिलूं.

दीपू – मैडम पर तो कोई असर नहीं पड़ रहा.

गोपालजी – हाँ. तुम्हारी मामी जब बेहोश होती है तो उसके घरवाले क्या करते हैं ?

दीपू – सांस ठीक से ले रही है या नहीं ? एक बार चेक कर लीजिए.

गोपालजी ने मेरी नाक के आगे हाथ लगाया.

गोपालजी – बहुत हल्की चल रही है.

कहानी जारी रहेगी







NOTE welcome





1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .



2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.



3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .



जब मैंने ये कहानी यहाँ डालनी शुरू की थी तो मैंने भी इसका अधूरा भाग पढ़ा था और मैंने कुछ आगे लिखने का प्रयास किया और बाद में मालूम चला यह कहानी अंग्रेजी में "समितभाई" द्वारा "गुरु जी का (सेक्स) ट्रीटमेंट" शीर्षक से लिखी गई थी और अधूरी छोड़ दी गई थी। बाद में 2017 में समीर द्वारा हिंदी अनुवाद शुरू किया गया, जिसका शीर्षक था "एक खूबसूरत हाउस वाइफ, गुरुजी के आश्रम में" और लगभग 33% अनुवाद "Xossip" पर किया गया था। अभी तक की कहानी मुलता उन्ही की कहानी पर आधारित है या उसका अनुवाद है और अब कुछ हिस्सों का अनुवाद मैंने किया है ।

कहानी काफी लम्बी है और मेरा प्रयास जारी है इसको पूरा करने का ।




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#63
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

‘ परिधान'

Update -11


बेहोशी का इलाज 





ये सुनकर मैंने भी सांस रोक ली ताकि अगर दीपू भी चेक करना चाहे तो उसे भी यही लगे. इस नाटक में मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था.

दीपू – ऐसा है, तब तो एक काम करना होगा जो की मैंने मामी के साथ देखा है.

गोपालजी – क्या करना होगा ?

दीपू – जब मेरी मामी की हल्की सांस आती थी तो उसकी छाती ज़ोर से दबाकर पंप करते थे और तलवों की मालिश करते थे.

गोपालजी – हाँ ये अच्छा सुझाव है. चलो ऐसा ही करते हैं. तुम मैडम के तलवों की मालिश करो.

एक पल के लिए मेरे दिल ने धड़कना बंद कर दिया. ये अच्छा सुझाव नहीं बहुत बढ़िया सुझाव है. मुझे तो कामोत्तेजना से बड़ी बेताबी हो रखी थी की कोई मर्द मेरी कसी हुई चूचियों को अच्छे से दबाए. अब इस बेहोशी के बहाने गोपालजी मेरी छाती को पंप करेगा. इस ख्याल से ही मेरे निप्पल ब्रा के अंदर कड़क हो गये.

गोपालजी ने बिल्कुल वक़्त बर्बाद नहीं किया और ब्लाउज के बाहर से मेरी चूचियाँ पकड़ लीं और दबाने लगा. जल्दी ही उत्तेजना में भरकर वो बुड्ढा टेलर मेरी जवान चूचियों को दोनों हथेलियों में दबोचकर मसलने लगा. मेरी साँसें उखड़ने लगीं और स्वाभाविक उत्तेजना से मेरी टाँगें अलग हो गयीं और मेरे नितंब भी कसमसाने लगे.

एक मर्द मेरी जवानी को आटे की तरह गूथ रहा था और मैं ज़्यादा हिल डुल भी नहीं सकती थी सिर्फ़ अपने होंठ काट रही थी. सच कहूँ तो मेरे नाटक करने से और गोपालजी की चतुर चालों से मेरे दिल को एक अजीब रोमांच और बदन को संतुष्टि और आनंद का एहसास हो रहा था.

दीपू – जी मुझे लगता है की मैडम के बदन में हरकत होने लगी है. मुझे इसकी टाँगें हिलती हुई महसूस हो रही हैं.

ये सुनकर मैंने जैसे तैसे अपनी कामोत्तेजना पर काबू पाया और एक पत्थर की तरह से पड़ी रही. गोपालजी को भी समझ आया और उसने मेरी चूचियों पर पकड़ ढीली कर दी.

गोपालजी – ठीक है तो फिर एक बार और सांस चेक कर लेता हूँ.

फिर से गोपालजी ने मेरी नाक के आगे हाथ लगाया. जाहिर था की अब मैं गहरी साँसें लेने लगी थी पर गोपालजी ने फिर से वही कहा.

गोपालजी – ना दीपू बेटा. सांस अभी भी वैसी ही है. इसके तलवे ठंडे हो रखे हैं क्या ?

दीपू – जी, लग तो रहे हैं.

गोपालजी – तो फिर अब क्या करना है ?

दीपू – जी , मैंने देखा था की अगर ऐसे होश नहीं आता तो गांव में मामी के मुँह में मुँह लगाकर सांस देते थे. आपसे हो पाएगा ऐसा ?

मुँह में मुँह लगाकर सांस देगा. हे भगवान. मेरा टेलर मेरे साथ ऐसा करेगा ? मेरे साथ तो ये होठों का होठों से चुंबन ही होगा. मैं इसे अपना चुंबन लेने दूँ या नहीं ? एक गांव का टेलर मेरा चुंबन लेगा. और वो भी 60 बरस की उमर का. ऐसे बुड्ढे का चुंबन कैसा महसूस होगा ?

ये सभी सवाल मेरे मन में आए. लेकिन इनका जवाब भी मेरे मन ने ही दिया.

क्यूँ नहीं ले सकता ? इसमें हर्ज़ ही क्या है ? इसने मुझे इतना मज़ा दिया है तो इसको अपने होठों का रस भी पीने देती हूँ. ये सिर्फ़ एक टेलर ही है पर पहले ही मुझे मेरे पति की तरह आलिंगन कर चुका है और वैसे भी सिर्फ़ एक चुंबन से मेरा क्या नुकसान होने वाला है ? जब नाटक कर ही रही हूँ तो क्यूँ ना इसका पूरा मज़ा लूँ.

इस तरह मैंने अपने को उस बुड्ढे टेलर के चुंबन के लिए तैयार कर लिया.

गोपालजी – हाँ क्यूँ नहीं ? मैं कोशिश तो कर ही सकता हूँ और अगर ऐसा करने से मैडम को होश आ जाता है तो बहुत बढ़िया. वैसे तुमने देखा तो होगा कि ऐसा करते कैसे हैं ?

मैंने महसूस किया की गोपालजी मेरे चेहरे के करीब आ गया.

दीपू – आप मैडम का मुँह खोलो और उसके मुँह से हवा खींचकर अपने मुँह से हवा भर दो.

गोपालजी – ठीक है. मैं कोशिश करता हूँ.

दीपू – लेकिन मुँह से सांस देते समय छाती को भी पंप करते रहना. मामी को भी ऐसा ही करते थे.

गोपालजी – अच्छा, ठीक है.

अब तो जैसे उस 60 बरस के आदमी के मन की मुराद पूरी हो गयी. कुछ ही पलों में उसके ठंडे होठों ने मेरे होठों को छुआ. वो उत्तेजना से कांप रहा था और उसके दिल की धड़कनें तेज हो गयी थीं. गोपालजी ने अपने हाथ से मेरे मुँह को खोला और मुँह में हवा देने के बहाने मेरे निचले होंठ को अपने होठों के बीच दबाकर महसूस किया. फिर उसने मेरा चुंबन लेना शुरू किया और उसकी गरम जीभ मैंने अपने मुँह के अंदर घूमती हुई महसूस की. उसकी लार मेरी लार से मिल गयी और मैंने भी चुंबन में उसका साथ दिया. कुछ पलों बाद गोपालजी ने मेरी चूचियाँ पकड़ लीं और उन्हें निचोड़ने लगा. जिस तरह से वो उन्हें मसल रहा था उससे मुझे लगा की इस बार तो मेरे ब्लाउज के हुक टूट ही जाएँगे. मेरे होठों को चूमने के साथ साथ वो मेरी बड़ी चूचियों को मनमर्ज़ी से दबोच रहा था और उनके बीच तने हुए कड़क निपल्स को अपने अंगूठे से महसूस कर रहा था.


कहानी जारी रहेगी
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#64
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

‘ परिधान'

Update -12

बेहोशी का इलाज - दुर्गंध वाली चीज़



अब चीजें हद से पार और मेरे नियंत्रण से बाहर जा चुकी थीं. मेरा पूरा बदन जल रहा था और मेरी साँसें उखड़ गयी थीं. मुझे यकीन था की दीपू को मेरी टाँगें स्थिर रखने में मुश्किल हो रही होगी क्यूंकी उत्तेजना से वो अपनेआप अलग हो जा रही थीं. क्या उसे अंदाज हो गया होगा की मैं नाटक कर रही हूँ ? नहीं ऐसा नहीं था, क्यूंकी उसने ज़रूर कुछ कहा होता. मैंने अपने बदन को कम से कम हिलाने डुलाने की कोशिश की लेकिन मेरे चेहरे पर गोपालजी की भारी साँसों, उसके दातों का मेरे नरम होठों को काटना और मेरे मुँह में घूमती उसकी जीभ मुझे बहुत कामोत्तेजित कर दे रहे थे. मैं तकिया पे सर रखे बिस्तर पर सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में आँखें बंद किए लेटी थी और मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरे पति के साथ मेरी कामक्रीड़ा चल रही है.

दीपू – जी , मैडम में कोई फ़र्क पड़ा ?

गोपालजी – हाँ …दीपू. ये हल्का हल्का रेस्पॉन्स दे रही है.

दीपू – मुझे भी इसकी टाँगें हिलती हुई महसूस हो रही हैं.

गोपालजी – लेकिन ये अभी पूरी तरह से होश में नहीं आई है.

गोपालजी जब बोल रहा था तो उसके होंठ मेरे होठों को छू रहे थे और इससे मुझे ऐसी सेक्सी फीलिंग आ रही थी की मैं बयान नहीं कर सकती. अब गोपालजी ने मेरे चेहरे से अपना चेहरा हटा लिया और मेरी चूचियों से अपने हाथ भी हटा लिए. गोपालजी ने ब्रा और ब्लाउज के बाहर से मेरी चूचियों को इतना मसला था की वो अब दर्द करने लगी थीं.

दीपू – जी , एक और उपाय है जो गांव में मैंने देखा है , कोई भी दुर्गंध वाली चीज़ सुंघाते थे.

दुर्गंध वाली चीज़ , क्या होगी मैं सोचने लगी लेकिन मैं अनुमान लगा ही नहीं सकती थी की उस चालाक बुड्ढे के मन में क्या है.

गोपालजी – आहा….ये तो बहुत बढ़िया उपाय है. ये मेरे दिमाग़ में पहले क्यूँ नहीं आया ?

अब मुझे ऐसा लगा की दीपू जो की मेरे पैरों के पास बैठा था अब खड़ा हो गया है.

दीपू – जी, मेरी मामी जब हल्का सा होश में आने लगती थी तो उसको कुछ सुंघाते थे.

गोपालजी – क्या सुंघाते थे ?

दीपू – कोई भी चीज़ जिससे तेज दुर्गंध आए. अक्सर चप्पल सुंघाते थे.

गोपालजी – अपनी चप्पल दो.

छी.. छी.. छी …..अब मुझे इसकी चप्पल सूंघनी होंगी. एक बार तो मेरा मन किया की नाटकबाजी छोड़कर उठ जाऊँ ताकि इसकी चप्पल ना सूंघनी पड़े लेकिन गोपालजी ने उठने का कोई इशारा नहीं किया था इसलिए मैं वैसे ही लेटी रही.

गोपालजी – चलो , ये भी करके देखते हैं.

वो दीपू की चप्पल को मेरी नाक के पास लाया. शुक्र था की उसने मेरी नाक से छुआया नहीं. मैंने बदबू सहन कर ली और आँखें नहीं खोली.

दीपू – जी, कुछ ऐसी चीज़ चाहिए जिससे दुर्गंध आए.

गोपालजी – मेरे पास एक उपाय है, पर वो शालीन नहीं लगेगा.

दीपू – क्या उपाय ?

गोपालजी – रहने दो.

दीपू – जी, अभी शालीनता की फिकर करने का समय नहीं है. मैडम को कैसे भी जल्दी से होश में लाना है.

गोपालजी – रूको फिर.

फिर मुझे कोई आवाज़ नहीं आई और मुझे उत्सुकता होने लगी की हो क्या रहा है. लेकिन आँखें बंद होने से मुझे कुछ पता नहीं लग पा रहा था. गोपालजी मुझे क्या सुंघाने वाला है ?

अचानक मुझे दीपू के हंसने की आवाज़ सुनाई दी.

दीपू – हा..हा..हा……ये सही सोचा आपने.

गोपालजी – मैं चार दिन से इस बनियान (बंडी) को पहने हूँ, इसलिए इसमें ……

वाक….जैसे ही गोपालजी अपनी बनियान को मेरी नाक के पास लाया उसकी बदबू से मेरा सांस लेना मुश्किल हो गया. उससे पसीने की तेज बदबू आ रही थी पर मैंने आँखें नहीं खोली. लेकिन मैंने मन बना लिया की अब बहुत हो गया और अब जो भी चीज़ ये दोनों मुझे सुंघाएँगे मैं नाटक बंद कर होश में आ जाऊँगी.

दीपू – नहीं….इससे भी कुछ नहीं हुआ.

गोपालजी – एक बार देखो तो दरवाज़े पे कुण्डी लगी है ?

दीपू – जी क्यूँ ?

गोपालजी – जो कह रहा हूँ वो करो.

दीपू की तरह मेरे मन में भी ये सवाल आया की गोपालजी ऐसा क्यूँ कह रहा है लेकिन मैंने ये सोचा की अगर दरवाज़ा बंद है तो ये तो मेरे लिए अच्छा है वरना अगर कोई आ जाए तो सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में दो मर्दों के सामने ऐसे आँखें बंद किए हुए लेटी देखकर मेरे बारे में क्या सोचेगा . ये तो मेरे लिए बदनामी वाली बात होगी.

दीपू – जी दरवाज़े पे कुण्डी लगी है.

गोपालजी – ठीक है फिर. अब आखिरी उपाय है. लेकिन मुझे पूरा यकीन है की इसको सूँघकर मैडम होश में आ जाएगी.


कहानी जारी रहेगी
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#65
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

‘ परिधान'

Update -13

होश आया.




वो हल्के से हंसा लेकिन मेरी आँखें बंद होने से मैं अंदाज़ा नहीं लगा पाई की क्यूँ हंसा. फिर मुझे दीपू के भी हँसने की आवाज़ आई. अब मुझे बड़ी उत्सुकता होने लगी की ये ठरकी बुड्ढा करने क्या वाला है ?

दीपू – हाँ, ये तो मैडम को होश में ला देगा.

मुझे कुछ अजीब गंध सी आई पर क्या था पता नहीं चला लेकिन गंध कुछ पहचानी सी भी लग रही थी.

गोपालजी – दीपू बेटा, हर शादीशुदा औरत इसकी गंध पहचानती है.

दीपू – वो कैसे ?

गोपालजी – बेटा, जब तुम्हारी शादी हो जाएगी तुम्हें पता चल जाएगा. एक बार अपनी घरवाली को चुसाओगे तो याद रखेगी.


हे भगवान. ये दोनों क्या बातें कर रहे हैं. अब मेरी नाक में कुछ सख़्त चीज़ महसूस हुई और हो ना हो ये गोपालजी का लंड था. गोपालजी के लंड की गंध अपनी नाक में महसूस करके पहले तो मैंने गिल्टी फील किया लेकिन उस समय तक मेरा बदन पूरी तरह उत्तेजित हो रखा था इसलिए जल्दी ही उस गिल्टी फीलिंग को भूलकर मैं उसके लंड की गंध को सूंघने लगी.

मैं अब अपनी आँखें खोल सकती थी लेकिन एक मर्द के लंड को अपने इतने नज़दीक पाकर मंत्रमुग्ध हो गयी. उसके सुपाड़े से निकलते प्री-कम का गीलापन मेरी नाक में महसूस हो रहा था.

उम्म्म्मम…..उसके लंड की गंध और उसकी छुअन से मैं और भी ज़्यादा कामोत्तेजित हो गयी. ये बात सही है की मुझे अपनी पति का लंड चूसना पसंद नहीं था पर अभी गोपालजी ने मुझे कामोत्तेजित करके इतना तड़पा दिया था की कैसा भी लंड मेरे लिए स्वागतयोग्य था. गोपालजी शायद मेरी मनोदशा समझ गया और अपने तने हुए लंड को मेरी नाक और गालों में दबाने लगा. मैं भी अपना चेहरा हिला रही थी पर अभी भी आँखें बंद ही थी.

दीपू – अरे……आपने बिल्कुल सही कहा था. मैडम रेस्पॉन्स दे रही है.

शायद गोपालजी भी अपने ऊपर नियंत्रण खो रहा था और उसकी उमर को देखते हुए इतना ज़्यादा फोरप्ले करने के बाद उसके लिए अपना पानी रोकना मुश्किल हो गया होगा. गोपालजी ने अपनी अंगुलियों से मेरे होंठ खोल दिए और अपना खड़ा लंड मेरे मुँह में घुसा दिया. मुझे एहसास था की ये तो ज़्यादा ही हो गया और मैं बेशर्मी की सभी हदें आज पार कर चुकी हूँ लेकिन एक मर्द के लंड को चूसने का अवसर मैं गवाना नहीं चाहती थी और वैसे भी इस पूरे घटनाक्रम के दौरान मैंने अपनी आँखें बंद ही रखी थी तो सच ये था की मुझे ज़्यादा शरम भी महसूस नहीं हो रही थी.

गोपालजी – आह….आह……आअहह…..चूस … चूस…..और चूस साली.

गोपालजी मेरे मुँह में अपना लंड वैसे ही अंदर बाहर कर रहा था जैसा मेरे पति चुदाई करते समय मेरी चूत में करते थे. मैंने उसका पूरा लंड अपने मुँह में ले लिया और पूरे जोश से चूस रही थी. उसका लंड मेरे पति से पतला और छोटा था. लेकिन मुझे ओर्गास्म दिलाने के लिए काफ़ी था. मुझे एहसास हुआ की उत्तेजना से मैं अपनी बड़ी गांड हवा में ऐसे उठा रही हूँ जैसे की चुद रही हूँ. लेकिन सच कहूँ तो उस समय मुझे शालीनता की बिल्कुल भी परवाह नहीं थी और मेरा पूरा ध्यान मज़े लेने पर था.

मैं सिसकियाँ ले रही थी और मेरी पैंटी चूतरस से पूरी गीली हो चुकी थी. और ऐसा लग रहा था की मेरी चिकनी जांघों में भी रस बहने लगा था. मुझे ओर्गास्म आ गया और मैं काम संतुष्ट हो गयी. दीपू के सामने कुछ देर तक मेरा मुख चोदन चलता रहा और फिर गोपालजी ने मेरा मुँह अपने वीर्य से भर दिया. असल में मैं इसके लिए तैयार नहीं थी और वीर्य को मुँह से बाहर उगल दिया पर इसके बावजूद उसका थोड़ा सा गरम वीर्य मुझे निगलना भी पड़ा.

अब मैं और ज़्यादा बर्दाश्त नहीं कर पायी और अब मुझे विरोध करना ही था. मैंने अपनी जीभ से गोपालजी के लंड को मुँह से बाहर धकेला और आँखें खोल दी. जैसे ही मैंने आँखें खोली तो मुझे वास्तविकता का एहसास हुआ. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या करूँ , कैसे रियेक्ट करूँ. गोपालजी मेरे मुँह के पास अपना लंड हाथ में लिए खड़ा था और उसकी लुँगी फर्श में पड़ी थी. मैं तुरंत बेड में बैठ गयी.

दीपू – ओह मैडम, आपको होश आ गया. बहुत बढ़िया.

मैं उन दोनों मर्दों के सामने हक्की बक्की बैठी थी. मैंने अपने ब्लाउज को देखा उसमें मेरी गोल चूचियाँ आधी बाहर निकली हुई थीं . मैंने अपनी ब्रा और ब्लाउज को एडजस्ट करके अपनी जवानी को छुपाने की कोशिश की और वो दोनों मर्द बेशर्मी से मुझे ऐसा करते देखते रहे. मेरे चेहरे में टेलर का वीर्य लगा हुआ था.

दीपू – मैडम , जब आप अचानक बेहोश हो गयी तो हम डर ही गये थे. बड़ी मुश्किल से आपको होश में लाए हैं.

“हम्म्म….…”

गोपालजी – दीपू बेटा, मैडम को मुँह पोछने के लिए कोई कपड़ा दो. मैं भी अपने को बाथरूम जाकर साफ करता हूँ.

मुझे भी तुरंत बाथरूम जाकर अपने को धोना था, मेरे चेहरे को, मेरी चूत को और मेरी गीली पैंटी को भी बदलना था.

“गोपालजी, पहले मैं जाऊँ ?”

गोपालजी – मैडम , आपको तो समय लगेगा. मैं बस पेशाब करूँगा और एक मिनट में आ जाऊँगा.

मैं अनिच्छा से राज़ी हो गयी पर मुझे भी ज़ोर की पेशाब लगी थी.

दीपू – मैं भी पेशाब करूँगा.

गोपालजी – हम साथ चले जाते हैं. मैडम , आप एक मिनट रुकिए.

वो दोनों बाथरूम चले गये और दरवाज़ा बंद करने की ज़हमत भी नहीं उठाई. उनके पेशाब करने की आवाज़ मुझे सुनाई दे रही थी. मुझे एहसास हुआ की हालात मेरे काबू से बाहर जा चुके हैं और अब शालीन दिखने का कोई मतलब नहीं. थोड़ी देर में वो दोनों बाथरूम से वापस आ गये.

गोपालजी – मैडम, अब आप जाओ.

जब तक वो दोनों बाथरूम में थे तब तक मैंने अपने चेहरे और मुँह से वीर्य को पोंछ दिया था और नॉर्मल दिखने की कोशिश की. लेकिन अभी भी मेरे दिल की धड़कनें तेज हो रखी थी. जैसे ही मैंने बेड से उठने की कोशिश की…..



कहानी जारी रहेगी
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#66
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

परिधान'

Update -14



टॉयलेट




दीपू – मैडम, मैडम, ये क्या कर रही हो ?

“क्यूँ ? क्या हुआ ?”

उसके ऐसे बोलने से मुझे आश्चर्य हुआ और मैंने उसकी तरफ देखा.

दीपू – मैडम, अभी तो आपको होश आया है. 15 – 20 मिनट तो आप बेहोश थीं.

मुझे ध्यान ही नहीं रहा की मैं बेहोश होने का नाटक कर रही थी और अब मैं तुरंत सीधे खड़े होकर चलना फिरना नहीं कर सकती थी.

दीपू – मेरी मामी ने भी एक बार होश में आते ही चलना फिरना शुरू कर दिया लेकिन कुछ ही देर में गिर पड़ी और उसे चोट लग गयी. मैडम, आप को भी ध्यान रखना होगा.

गोपालजी – मैडम, दीपू सही कह रहा है.

मैंने गुस्से से गोपालजी को देखा, क्यूंकी वो तो जानता था की मैं नाटक कर रही हूँ. लेकिन दीपू के सामने मैं कुछ कह नहीं सकती थी.

दीपू – मैडम, मैं आपको सहारा देता हूँ और आप चलने की कोशिश कीजिए.

मुझे उसकी बात पर राज़ी होना पड़ा और उसने मेरी बाँह और कमर पकड़ ली. मुझे भी थोड़ा कमज़ोरी का नाटक करना पड़ा ताकि उसे असली लगे. मैं सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज में थी. वो मेरी कमर को पकड़कर सहारा दिए हुए था लेकिन मुझे अंदाज आ रहा था की वो सिर्फ सहारा ही नहीं दे रहा बल्कि मेरे बदन को महसूस भी कर रहा है. मुझे गीली पैंटी और मेरे पेटीकोट के अंदर जांघों पर चूतरस के लगे होने से बहुत असहज महसूस हो रहा था इसलिए मैं छोटे छोटे कदमों से बाथरूम की तरफ जा रही थी.

“रूको. मुझे अपनी पैंटी बदलनी है ….अर्ररर…..मेरा मतलब……. मुझे टॉवेल ले जाना है.”

मुझे मालूम था की कपड़ों की अलमारी में एक नया टॉवेल है इसलिए मैंने सोचा की उसके अंदर एक नयी पैंटी डाल कर बाथरूम ले जाऊँगी ताकि दीपू के सामने हाथ में पैंटी लेकर ना जाना पड़े. दीपू मेरी बाँह और कमर पकड़े हुआ था और अब मुझे लगा की उसने मुझे और कसके पकड़ लिया है. मैंने सोचा की इस जवान लड़के का कोई दोष नहीं क्यूंकी गोपालजी की वजह से इसने अभी अपनी आँखों के सामने इतना कामुक दृश्य देखा है तो कुछ असर तो पड़ेगा ही.

जब मैं अलमारी से टॉवेल और पैंटी निकालने के लिए झुकी तो दीपू ने मेरी बाँह छोड़ दी पर उस हाथ को भी मेरी कमर पर रख दिया. अब वो दोनो हाथों से मेरी कमर पकड़े हुए था. मैं इस लड़के को ऐसे मनमर्ज़ी से मुझे छूने देना नहीं चाहती थी. लेकिन सिचुयेशन ऐसी थी की मैं सहारे के लिए मना नहीं कर सकती थी और अब गोपालजी के बाद मेरे बदन को छूने की बारी इस जवान लड़के की थी. मैंने जल्दी से कपड़े निकाले और बाथरूम को चल दी ताकि जितना जल्दी हो सके इस लड़के से मेरा पीछा छूटे.

“दीपू, अब मुझे ठीक लग रहा है. तुम रहने दो.”

दीपू – ना मैडम. मुझे याद है मेरी मामी गिर पड़ी थी और उसके माथे से खून निकलने लगा था. उस दिन वो भी ज़िद कर रही थी की मैं ठीक हूँ , खुद कर सकती हूँ, नतीजा क्या हुआ ? चोट लग गयी ना.

अब इस बेवकूफ़ को कौन समझाए की मैं इसकी मामी की तरह बीमार नहीं हूँ जिसे अक्सर चक्कर आते रहते हैं. लेकिन मुझे उसकी बात माननी पड़ी क्यूंकी मेरे लिए उसका डर वास्तविक था जैसा की उसने अपनी मामी को गिरते हुए देखा था, वो डर रहा था की कहीं मैडम भी ना गिर जाए.

“ठीक है. तुम क्या चाहते हो ?”

दीपू – मैडम, खुद से रिस्क मत लीजिए. मैं आपको फर्श में बैठा दूँगा और दरवाज़ा बंद कर दूँगा. जब आपका हो जाएगा तो मुझे आवाज़ दे देना और ……

उसकी बात से शरम से मेरी आँखें झुक गयीं पर मेरे पास और कोई चारा नहीं था. मैंने हाँ में सर हिला दिया. दीपू ने मेरी बाँह पकड़कर मुझे टॉयलेट के फर्श में बिठा दिया. एक मर्द के सामने उस पोज़ में बैठना बड़ा अजीब लग रहा था और ऊपर से देखने वाले के लिए मेरी रसीली चूचियों के बीच की घाटी का नज़ारा कुछ ज़्यादा ही खुला था. मैंने ऐसे बैठे हुए पोज़ से नजरें ऊपर उठाकर दीपू को देखा, उसकी नजरें मेरे ब्लाउज में ही थी. स्वाभाविक था, कौन मर्द ऐसे मौके को छोड़ता है , एक बैठी हुई औरत की चूचियाँ और क्लीवेज ज़्यादा ही गहराई तक दिखती हैं.

“शुक्रिया. अब तुम दरवाज़ा बंद कर दो.”

दीपू – मैडम, खुद से उठने की कोशिश मत करना. मुझे बुला लेना.

मैं एक मर्द के सामने टॉयलेट में उस पोज़ में बैठी हुई बहुत बेचारी लग रही हूँगी और मेरे बदन में साड़ी भी नहीं थी.

“ठीक है, अब जाओ.”

मेरा धैर्य खत्म होने लगा था और पेशाब भी आने वाली थी. दीपू टॉयलेट से बाहर चला गया और दरवाज़ा बंद कर दिया. मैंने पीछे मुड़कर देखा की उसने दरवाज़ा ठीक से बंद किया है या नहीं.

हे भगवान. दरवाज़ा आधा खुला था. लेकिन मैंने तो दरवाज़ा बंद करने की आवाज़ सुनी थी.

दीपू – मैडम, दरवाज़े में कुछ दिक्कत है. ये बिना कुण्डी चढ़ाये बंद नहीं हो रहा. क्या करूँ ? ऐसे ही रहने दूँ ?

“क्या ?? ऐसे कैसे होगा ?”

दीपू – मैडम, घबराओ नहीं. जब तक आप बुलाओगी नहीं मैं अंदर नहीं आऊँगा.

वो आधा दरवाज़ा खोलकर मुझसे पेशाब करने को कह रहा था.

“ना ना. मैं दरवाज़ा बंद करती हूँ.”

दीपू दरवाज़ा खोलकर फिर से टॉयलेट के अंदर आ गया.

दीपू – मैडम , ज़्यादा जोश में आकर खुद से उठने की कोशिश मत करो.

उसने मेरे कंधे दबा दिए ताकि मैं बैठी रहूं. मैंने उसकी तरफ ऊपर देखा तो उसकी नजरें मेरे ब्लाउज पर थीं और मुझे एहसास हुआ की उस एंगल से मेरी ब्रा का कप भी दिख रहा था. ऐसा लगा की वो अपनी आँखों से ही मुझसे छेड़छाड़ कर रहा है.

दीपू – ठीक है मैडम, एक काम करता हूँ. मैं दरवाज़ा बंद करके हाथ से पकड़े रहता हूँ , जब आपका हो जाएगा तो मुझे बुला लेना.

“हम्म्म …ठीक है, लेकिन….”

दीपू – मैडम, आप दरवाज़े पर नज़र रखना, बस ?

मैं बेचारगी से मुस्कुरा दी और दीपू फिर से टॉयलेट से बाहर चला गया. इस बार दरवाज़ा बंद करके उसने दरवाज़े का हैंडल पकड़ लिया.

दीपू – मैडम, आप करो. मैंने दरवाज़े का हैंडल पकड़ लिया है और ये अब नहीं खुलेगा.

“ठीक है…”

ये मेरी जिंदगी की सबसे अजीब सिचुयेशन्स में से एक थी. मेरे टॉयलेट के दरवाज़े पे एक मर्द दरवाज़ा पकड़े खड़ा था और मुझे अपने कपड़े ऊपर उठाकर पेशाब करनी थी. मैं जल्दी से उठ खड़ी हुई और चुपचाप दरवाज़े के पास जाकर देख आई की दरवाज़ा ठीक से बंद भी है या नहीं. दरवाज़ा ठीक से बंद पाकर मैंने सुरक्षित महसूस किया. मैं फिर से टॉयलेट में गयी और पेटीकोट ऊपर उठाकर पैंटी उतारने लगी. पैंटी पूरी गीली हो रखी थी और मेरी गोल चिकनी जांघों पे चिपक जा रही थी. जैसे तैसे मैंने पैंटी उतारी और तुरंत पेशाब करने के लिए बैठ गयी. सुर्र्र्र्र्ररर…की आवाज़ शुरू हो गयी और मुझे बहुत राहत हुई. अंतिम बूँद टपकने के बाद मैं उठ खड़ी हुई. मैं कमर तक पेटीकोट ऊपर उठाकर पकड़े हुए थी इसलिए मेरे नितंब और चूत नंगे थे.

“आआहह…”

एक पल के लिए मैंने आँखें बंद कर ली. बहुत राहत महसूस हो रही थी. तभी मुझे ध्यान आया की दरवाज़े पे तो दीपू खड़ा है और मैं जल्दी से नयी पैंटी पहनने लगी. मैं चुपचाप पैंटी पहन रही थी ताकि दीपू को शक़ ना हो. बल्कि मैंने तो टॉयलेट में पानी भी नहीं डाला ताकि कहीं मैं उठ खड़ी हुई हूँ सोचकर दीपू अंदर ना आ जाए.

दीपू – हो गया मैडम ?

कहानी जारी रहेगी
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#67
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

‘ परिधान'

Update -15


स्कर्ट की नाप




मैं जल्दी से बैठ गयी जैसे की पेशाब कर रही हूँ और उसे हाँ में जवाब दे दिया. दीपू ने दरवाज़ा खोला और अंदर आ गया.

दीपू – ठीक है मैडम. मैं आपको सहारा देता हूँ और आप उठने की कोशिश करो.

मैं कमज़ोरी का बहाना करते हुए उठ खड़ी हुई. मुझे खड़ा करते हुए दीपू ने चतुराई से मेरी चूचियों को साइड्स से छू लिया. मैं उसे रोक तो नहीं सकती थी पर उससे ज़्यादा कुछ करने का उसे मौका नहीं दिया. मैंने अपना चेहरा और हाथ धोए और दीपू अभी भी मेरी कमर पकड़े हुए खड़ा था. वैसे तो मैं सावधान थी पर जब मैं मुँह धो रही थी तो उसकी अँगुलियाँ मेरी कमर में फिसलती हुई महसूस हुई. मैंने जल्दी से मुँह धोया और बाथरूम से बाहर आ गयी. मैं सोच रही थी की इतनी देर तक गोपालजी क्या कर रहा होगा.

दीपू – मैडम, ये बीमारी तो बहुत खराब है ख़ासकर औरतों के लिए.

मैं छोटे छोटे कदमों से बाथरूम से बाहर आ रही थी ताकि दीपू को वास्तविक लगे.

“ऐसा क्यूँ कह रहे हो ?

दीपू – मैडम, आज आप खुशकिस्मत थी की हमारे सामने बेहोश हुई. ज़रा सोचो अगर अंजान आदमियों के सामने बेहोश होती तो ? आप कभी लोगों के सामने भी बेहोश हुई हो ?

मैं खुशकिस्मत थी ? वाह जी वाह. मेरे टेलर ने मेरे मुँह में अपना लंड दिया और मेरी चूचियों को इतना मसला की अभी भी दर्द कर रही हैं. और ये लड़का कहता है की मैं खुशकिस्मत हूँ ? मैं मन ही मन मुस्कुरायी और एक गहरी सांस ली.

“मैं ऐसे बेहोश नहीं होती. आज ही हुई हूँ.”

गोपालजी – मैडम, देर हो रही है. अभी आपकी और भी नाप लेनी हैं.

दीपू – जी मेरे ख्याल से मैडम को थोड़ा आराम की ज़रूरत है. उसके बाद हम फिर शुरू करेंगे.

फिर शुरू करेंगे ? इस बेवकूफ़ का मतलब क्या है ? लेकिन मुझे दीपू का आराम का सुझाव पसंद आया क्यूंकी वास्तव में मुझे इसकी ज़रूरत थी.

गोपालजी – ठीक है फिर. आप बेड में आराम करो. तब तक मैं आपकी चोली का कपड़ा काटता हूँ.

“शुक्रिया गोपालजी.”

दीपू अभी भी मुझे सहारा दिए हुए था और उसने मुझे बेड में बिठा दिया. मैं एक बेशरम औरत की तरह इन दोनों मर्दों के सामने सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में घूम रही थी . सच कहूँ तो मुझे इसकी आदत पड़ने लगी थी.

दीपू – मैडम , आप की किस्मत अच्छी है जो आपको ये बीमारी नहीं है. जिन औरतों को ये बीमारी होती है उन्हें बहुत भुगतना पड़ता है.

“दीपू सिर्फ औरतें ही नहीं, जिस किसी को भी बेहोशी के दौरे पड़ते हैं , उन्हें भुगतना ही पड़ता है.”

दीपू – सही बात है मैडम. लेकिन मेरी मामी को देखने के बाद मुझे विश्वास है की औरतों को ज़्यादा भुगतना पड़ता है.

“क्यों ? तुम्हारी मामी को ऐसा क्या हुआ ?”

दीपू अपनी मामी का किस्सा सुनाने लगा की किस तरह उसके पड़ोसी ने एक दिन उसकी बेहोशी का फायदा उठा लिया.

गोपालजी – बहुत बातें हो गयी. मैडम अब काम शुरू करें ?

“जी गोपालजी. मैं तैयार हूँ.”

तब तक गोपालजी ने चोली का कपड़ा काट दिया था और अब टेप लिए तैयार था. दीपू भी नाप लिखने के लिए कॉपी पेन्सिल लेकर खड़ा हो गया. मैं बेड से उठी और पहले की तरह लाइट के पास जाकर खड़ी हो गयी.

गोपालजी – ठीक है मैडम, अब महायज्ञ के लिए स्कर्ट की नाप लेता हूँ.

गोपालजी की बात सुनकर एक पल के लिए मेरी धड़कनें रुक गयीं क्यूंकी मुझे मालूम था की अब ये टेलर मेरी जांघों और टाँगों पर हाथ फिराएगा. लेकिन उसकी उमर को देखते हुए मुझे उससे ज़्यादा डर नहीं लग रहा था.

गोपालजी – मैडम, गुरुजी के निर्देशानुसार आपकी स्कर्ट चुन्नटदार होगी. मुझे उम्मीद है की आपको चुन्नटदार स्कर्ट और प्लेन स्कर्ट के बीच अंतर मालूम होगा.

“हाँ मुझे मालूम है. प्लेन स्कर्ट की बजाय इसमें चुन्नट होंगे फोल्ड जैसे.”

गोपालजी – हाँ ऐसा ही. मुझे स्कर्ट के कपड़े में चुन्नट सिलने होंगे. मैडम ये बहुत मेहनत का काम है.

वो मुस्कुराया और मैं भी मुस्कुरा दी.

गोपालजी – लेकिन मैडम, हो सकता है की आपको असहज महसूस हो ….मेरा मतलब……

टेलर को हकलाते हुए देखकर मुझे थोड़ी हैरानी हुई और मुझे समझ नहीं आया की वो क्या कहना चाह रहा है ? मुझे असहज क्यूँ महसूस होगा ? मैंने उलझन भरी निगाहों से उसे देखा.

गोपालजी – मैडम बात ये है की स्कर्ट पूरी लंबाई की नहीं होगी. ये थोड़ी छोटी होगी.

मैंने गले में थूक गटका. मैं सोचने लगी…..छोटी ? कितनी छोटी ? घुटनों तक ?

“गोपालजी कितनी छोटी ?”

गोपालजी – मैडम , ये मिनी स्कर्ट जैसी होगी.

“क्या ?????”

गोपालजी – मुझे मालूम था की आपको असहज महसूस होगा. इसीलिए मैं ये बात बोलने से हिचकिचा रहा था.

“अब इस उमर में मैं मिनी स्कर्ट पहनूँगी ? हो ही नहीं सकता.”

मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था. मैं 28 बरस की गदराये बदन वाली शादीशुदा औरत अगर मिनी स्कर्ट पहनूँगी तो बहुत उत्तेजक और अश्लील लगूंगी.

गोपालजी – मैडम घबराओ नहीं. ये उतनी छोटी नहीं होगी जितनी आप सोच रही हो.

“यही तो मैं आपसे पूछ रही हूँ. कितनी छोटी ?”

गोपालजी – मैं ऐसे नहीं बता सकता. वैसे तो मिनी स्कर्ट 12 इंच की होती है पर आप समझ सकती हैं की सही नाप औरत की लंबाई और उसके बदन पर निर्भर करती है.

“हम्म्म …मैं समझ रही हूँ पर 12 इंच तो कुछ भी नहीं है.”

मैं तेज आवाज़ में बोली लगभग चिल्ला कर.

गोपालजी – मैडम, मैडम……मैं इसमें कुछ नहीं कर सकता. गुरुजी के निर्देशों की अवहेलना कोई नहीं कर सकता.

“हाँ वो मुझे भी मालूम है लेकिन….”

मैं हक्की बक्की खड़ी थी. ये बुड्ढा क्या कह रहा है ? मैं 12 इंच लंबी स्कर्ट पहनूँगी ? मेरे 36 “ के नितंबों पर इतनी छोटी स्कर्ट . मैं अचंभित थी.

गोपालजी – मैडम, इस बात पर समय बर्बाद करने के बजाय नाप ले लेते हैं. मैं आपको भरोसा दे सकता हूँ की मेरी कोशिश रहेगी की आपकी स्कर्ट की फिटिंग जितनी शालीन हो सकती है उतनी रखूं.

“मुझे मालूम है की आप कोशिश करोगे पर गोपालजी प्लीज़ समझो …..मैं एक हाउसवाइफ हूँ और मेरी जिंदगी में मैंने कभी इतनी छोटी स्कर्ट नहीं पहनी.”

गोपालजी – मैं समझ सकता हूँ मैडम. मुझ पर भरोसा रखो और मैं कोशिश करूँगा की आपको थोड़ा सहज महसूस हो.

“वो कैसे गोपालजी ?”

गोपालजी – मैडम, देखो, ये स्कर्ट सिर्फ आपके गुप्तांगों को ही ढकेगी. लेकिन अगर आप कुछ बातों का ध्यान करो तो आपको उतना असहज नहीं महसूस होगा.

“मतलब ?”

गोपालजी – मैडम, मिनी स्कर्ट में दिक्कत क्या है ? यही की इसमें पूरी टाँगें दिखती हैं. लेकिन अगर कोई औरत इसे लगातार पहने रखे तो उसको उतनी शरम नहीं महसूस होगी. है की नहीं ?

“हाँ ये तो है.”

गोपालजी – मैडम ये बात बिल्कुल सही है. देखो जैसे अभी. आप अपने घर में बिना साड़ी पहने ऐसे तो नहीं घूमती हो ना ? लेकिन अभी आप बहुत देर से ऐसे ही हो और अब आपको उतनी शरम नहीं लग रही है जितनी साड़ी उतारते समय लगी होगी, है ना ?

उसकी बात सुनकर मैंने शरम से आँखें झुका लीं और हाँ में सर हिला दिया. क्यूंकी उस टेलर ने मुझे याद दिला दिया की मैं दो मदों के सामने सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी हूँ.

गोपालजी – मैडम, ऐसा ही स्कर्ट के लिए भी है. लेकिन आपको ध्यान रखना होगा की आस पास के लोग आपकी स्कर्ट के अंदर झाँक ना पाएँ.

“हम्म्म …”

मैंने बेशरम औरत की तरह जवाब दिया.

गोपालजी – मैडम, अगर आप लोगों के सामने ध्यान से ना बैठो तो मिनी स्कर्ट के अंदर भी दिख सकता है. जैसे सीढ़ियाँ चढ़ते समय आपको अपना बदन सीधा रखना पड़ेगा ताकि आपके पीछे चलने वाले आदमी को आपके नितंबों का नज़ारा ना दिखे. लेकिन अगर आप झुक के सीढ़ियाँ चढ़ोगी तो उसे सब कुछ दिख जाएगा.

मैं टेलर के चेहरे पर नज़रें गड़ाए उसकी बात सुन रही थी पर उसके अंतिम वाक्य को सुनकर मुझे अपनी आँखें फेरनी पड़ी.

“गोपालजी , मैं आपकी बात समझ गयी.”

मैं इस बुड्ढे के ऐसे समझाने से असहज महसूस कर रही थी और अब इन बातों को खत्म करना चाहती थी. मैंने देखा की दीपू हल्के से मुस्कुरा रहा है और इससे मुझे और भी शर्मिंदगी महसूस हुई.

गोपालजी – ठीक है मैडम, काम शुरू करूँ फिर ?

“हाँ.”

गोपालजी मेरे नज़दीक आया और मेरी कमर और जांघों को देखने लगा. वैसे तो कुछ ही समय पहले मुझे ओर्गास्म आया था पर ये टेलर मेरी कमर से नीचे हाथ फिराएगा सोचकर मेरी चूत में खुजली होने लगी. मुझे भरोसा नहीं था की मैं उसके हाथों का फिराना सहन भी कर पाऊँगी या नहीं ख़ासकर की मेरी कमर, जांघों और टाँगों में.

अब वो मेरे सामने झुका और टेप के एक सिरे को मेरी कमर में पेटीकोट के थोड़ा ऊपर लगाया और मेरी मांसल और चिकनी जांघों पर अँगुलियाँ फिराते हुए अपना दूसरा हाथ नीचे ले गया और 12 “ नापा.

गोपालजी – मैडम, स्कर्ट इतनी लंबी होगी.

गोपालजी की अँगुलियाँ मेरी ऊपरी जांघों पर थीं.

“बस इतनी …?”

मेरे मुँह से अपनेआप ये शब्द निकल गये क्यूंकी इतनी छोटी लंबाई देखकर मैं शॉक्ड रह गयी.

“लेकिन गोपालजी ये तो…..मैं ऐसी ड्रेस कैसे पहन सकती हूँ ?”

गोपालजी – लेकिन मैडम, मैंने आपको बताया था की ये मिनी स्कर्ट है. आप इससे ये अपेक्षा नहीं रख सकती हो की ये आपकी पूरी जांघों को ढक देगी , है ना ?

“हाँ वो तो ठीक है पर इतनी छोटी ? ये तो मेरी आधी जांघों को भी नहीं ढक रही. इससे बढ़िया तो कुछ भी नहीं पहनूं.”

गोपालजी – लेकिन मैडम, मैं कर ही क्या सकता हूँ. जैसा बताया है मुझे तो वैसा ही करना होगा.

दीपू – मेरे ख्याल से मैडम की चिंता जायज है. अगर इसकी स्कर्ट जांघों में इतनी ऊपर है जहाँ पर आपकी अंगुली है तो सोचो अगर मैडम बैठेगी तो क्या होगा ?

गोपालजी – दीपू तुम अच्छी तरह जानते हो की मैं स्कर्ट की लंबाई नहीं बदल सकता.

मैंने बहुत असहाय महसूस किया और असहायता से दीपू की तरफ देखा.

दीपू – एक तरीका है मैडम.

उसकी बात सुनकर जैसे मुझमें जान आ गयी.

“कौन सा तरीका ? जल्दी बताओ ?”

दीपू मेरे पास आया. गोपालजी मेरे आगे बैठकर मेरी जांघों और कमर पर हाथ रखे हुए था. दीपू ने सीधे मेरी नाभि को छू दिया जहाँ पर मेरा पेटीकोट बँधा हुआ था.

दीपू – मैडम, आप हमेशा यहीं पर पेटीकोट बाँधती हो ?

“हाँ, अक्सर…मेरा मतलब हमेशा नहीं पर ज़्यादातर. पर क्यूँ ?”

दीपू – मैडम, गोपालजी ने यहाँ से नापा है. पर अगर आप कमर से नीचे स्कर्ट पहनोगी तो मेरे ख्याल से आपकी जांघें थोड़ी ज़्यादा ढक जाएँगी.

गोपालजी – हाँ मैडम, अगर आप राज़ी हो तो ऐसा हो सकता है.

वास्तव में और कोई चारा नहीं था , अगर मुझे थोड़ी इज़्ज़त बचानी है तो इस लड़के की बात माननी ही पड़ेगी. मैंने सोचा अगर मैं अपनी नाभि से कुछ इंच नीचे स्कर्ट पहनूं तो इससे मेरी गोरी मांसल जांघों का कुछ हिस्सा ढक जाएगा , वरना तो मर्दों के सामने अपनी गोरी सुडौल जांघों के नंगी रहने से मुझे बड़ा अनकंफर्टेबल फील होगा.

गोपालजी – मैडम, मेरे ख्याल से आपको अभी एक ट्रायल कर लेना चाहिए ताकि आपको पक्का हो जाए की कहाँ पर स्कर्ट बाँधनी है और ये आपको कितना ढकेगी.

दीपू – हाँ , ट्रायल से मैडम को अंदाज़ा हो जाएगा और चुन्नट में किसी एडजस्टमेंट की ज़रूरत होगी तो मैडम बता सकती है.

गोपालजी – हाँ सही है. मैडम चुन्नट भी एडजस्ट किए जा सकते हैं ताकि आपकी स्कर्ट ज़्यादा फड़फड़ ना करे.

इस बार मैं टेलर और उसके सहायक से वास्तव में इंप्रेस हुई क्यूंकी ऐसा लग रहा था की ये दोनो इस एंबरेसिंग सिचुयेशन में मेरी मदद करना चाहते हैं.

“हाँ ट्राइ कर सकती हूँ.”

गोपालजी – दीपू मेरे बैग में देखो. मैं ट्रायल के लिए एक चोली और स्कर्ट लाया हूँ.”

दीपू गोपालजी के बैग में देखने लगा.

गोपालजी – मैडम , मैंने आपसे चोली के ट्रायल के लिए नहीं कहा क्यूंकी इसका साइज़ 30” है जो की आपको फिट नहीं आएगी. असल में ये महायज्ञ परिधान मैंने गुरुजी को दिखाने के लिए दो साल पहले सिला था.

“अच्छा …”

दीपू बैग से स्कर्ट निकालकर ले आया. ये वास्तव में मिनी स्कर्ट थी ख़ासकर की मेरी भारी जांघों और बड़े गोल नितंबों के लिए.


कहानी जारी रहेगी
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#68
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

‘ परिधान'

Update -16

मिनी स्कर्ट





गोपालजी ने दीपू से स्कर्ट ले ली और उसमें कुछ देखने लगा. मुझे समझ नहीं आया की टेलर क्या चेक कर रहा है ?

गोपालजी – हम्म्म …ठीक है. मैडम आप ट्राइ कर सकती हो.

“कमर ठीक है ?”

ये एक बेवकूफी भरा सवाल था क्यूंकी कोई भी देख सकता था की स्कर्ट की कमर में इलास्टिक बैंड है.

गोपालजी – ये फ्री साइज़ है मैडम. कोई भी औरत इसे पहन सकती है. इसमें इलास्टिक बैंड है.

“हाँ हाँ. मैंने देख लिया.”

ऐसा कहते हुए मैंने टेलर से स्कर्ट ले ली और मेरा गला अभी से सूखने लगा था. ये इतना छोटा कपड़ा था की मेरी जांघों की तो बात ही नहीं मुझे तो आशंका थी की इससे मेरी बड़ी गांड भी ढकेगी या नहीं.

मेरे हाथों में मिनी स्कर्ट देखकर दीपू और गोपालजी की आँखों में चमक आ गयी. क्यूंकी मैं अपना पेटीकोट उतारकर इसे पहनूँगी तो ये मर्दों के लिए देखने लायक नज़ारा होगा. मैं बाथरूम की और जाने लगी तभी……

गोपालजी – मैडम, अगर आपको बुरा ना लगे तो यहीं पर पहन लो. बाथरूम जाने की ज़रूरत नहीं.

“क्या मतलब ?”

गोपालजी – मैडम, बुरा मत मानिए. अगर आप ध्यान से देखो तो स्कर्ट की कमर में में एक हुक है जिसे आप खोल सकती हो. इससे स्कर्ट टॉवेल की तरह खुल जाएगी. फिर आप इसको कमर में लपेट लेना और फिर पेटीकोट खोल देना.

मैंने स्कर्ट को देखा. वो सही था लेकिन मुझे लगा की पेटीकोट के ऊपर स्कर्ट को लपेटकर फिर पेटीकोट को उतारने में दिक्कत भी हो सकती है, ख़ासकर की जब दो मर्द सामने खड़े मुझे घूर रहे होंगे.

“गोपालजी , मेरे लिए बाथरूम में चेंज करना ही कंफर्टेबल रहेगा.”

गोपालजी – ठीक है मैडम, जैसी आपकी मर्ज़ी.

मैं बाथरूम की तरफ जाने लगी लेकिन मुझे महसूस हुआ की चलते समय दो जोड़ी आँखें मेरी मटकती हुई गांड पर टिकी हुई हैं.

दीपू – मैडम, ध्यान रखना. आपको थोड़ी देर पहले ही होश आया है.

“हाँ. शुक्रिया.”

मैंने बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया और उस आदमकद शीशे के आगे खड़ी हो गयी.

मैंने बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया और उस आदमकद शीशे के आगे खड़ी हो गयी. मेरा दिल तेज तेज धड़क रहा था. मुझे एक अजीब सी भावना का एहसास हो रहा था, जिसमें शरम से ज़्यादा मेरे बदन के एक्सपोज होने का रोमांच था. मैंने जिंदगी में कभी इतनी छोटी स्कर्ट नहीं पहनी थी. मुझे याद था की काजल के बाथरूम में उस कमीने नौकर के सामने मैंने जो काजल की स्कर्ट पहनी थी उससे मेरे घुटनों तक ढका हुआ था पर ये वाली स्कर्ट तो कुछ भी नहीं ढकेगी. मैंने अपने पेटीकोट का नाड़ा खोला और पेटीकोट मेरे पैरों में फर्श पर गिर गया. मेरी जाँघें और टाँगें नंगी हो गयीं , मेरी साँसें तेज चलने लगीं और ब्रा के अंदर मेरे निप्पल टाइट हो गये.

मैंने केले के पेड़ के तने की तरह सुडौल और गोरी गोरी अपनी जांघों को देखा और उस छोटे से कपड़े को पहनने का रोमांच बढ़ने लगा. मैंने शीशे में अपनी पैंटी को देखा और खुशकिस्मती से उसमें कोई गीला धब्बा नहीं दिख रहा था. मैंने स्कर्ट का हुक खोला और उसको अपनी कमर पर लपेटकर फिर से हुक लगा दिया. हुक लगाने के बाद मेरी कमर पर स्कर्ट का इलास्टिक बैंड टाइट महसूस हो रहा था. मैंने शीशे में देखा की मैं कैसी लग रही हूँ और मैं शॉक्ड रह गयी.

“उउउउउउ………..”

मेरा मुँह खुला का खुला रह गया. स्कर्ट के नीचे मेरी गोरी मांसल जांघों का अधिकतर भाग नंगा दिख रहा था और मेरी नाभि से नीचे का हिस्सा भी नंगा था , इससे मैं बहुत उत्तेजक और कामुक लग रही थी.

ये स्कर्ट तो किसी मर्द के सामने पहनी ही नहीं जा सकती थी. ये इतनी छोटी थी की इसे बंद दरवाजों के भीतर सिर्फ अपने बेडरूम में ही पहना जा सकता था. वैसे तो मुझे भी यहाँ आश्रम में बंद दरवाजों के भीतर ही इसे पहनना था पर गुरुजी और अन्य मर्दों के सामने. और महायज्ञ के लिए मुझे ऐसी स्कर्ट पहननी ही थी. इसलिए मैंने अपने मन को बिल्कुल ही बेशरम बनने के लिए तैयार करने की कोशिश की और अपना फोकस सिर्फ अपने गर्भवती होने पर रखा. मैंने सोचा अगर मेरी संतान हो जाती है तो फिर मुझे भगवान से और कुछ नहीं चाहिए. मैंने अपने मन को दिलासा देने की कोशिश की मेरे पति को कभी पता नहीं चलेगा की यहाँ आश्रम में मेरे साथ क्या क्या हुआ था और एक बार मैं अपने घर वापस चली गयी तो आश्रम के इन मर्दों से मेरा कभी वास्ता नहीं पड़ेगा.

मैंने फर्श से पेटीकोट उठाया और हुक में लटका दिया और बाथरूम का दरवाज़ा खोल दिया. मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था क्यूंकी मैं दो मर्दों के सामने छोटी सी स्कर्ट में जाने वाली थी. बाथरूम से कमरे में आते ही मुझे देखकर दीपू के मुँह से वाह निकल गया. मैं उन दोनों से नजरें नहीं मिला सकी और स्वाभाविक शरम से मेरी आँखें झुक गयीं. मुझे मालूम था की उन दोनों मर्दों की निगाहें मेरी चिकनी जांघों को घूर रही होंगी.

गोपालजी – मैडम, आप तो अप्सरा लग रही हो. इस स्कर्ट में बहुत ही खूबसूरत दिख रही हो.

मैंने सोचा की गोपालजी ने मेरे लिए सेक्सी की बजाय खूबसूरत शब्द का इस्तेमाल किया इसके लिए उसका शुक्रिया. मैं मन ही मन मुस्कुरायी और उस छोटी स्कर्ट को पहनकर नॉर्मल रहने की कोशिश की. मैंने ख्याल किया की मेरी केले जैसी मांसल जांघों को देखकर दीपू का जबड़ा खुला रह गया है. गोपालजी की नजरें मेरे सबसे खास अंग पर टिकी हुई थी और शुक्र था की स्कर्ट ने उसे ढक रखा था.

“गोपालजी ये स्कर्ट कमर में बड़ी टाइट हो रही है.”

मैंने अपनी कमर की तरफ इशारा करते हुए कहा. बिना वक़्त गवाए बुड्ढा तुरंत मेरे पास आ गया और मेरी स्कर्ट के इलास्टिक बैंड में अंगुली डालकर देखने लगा की कितनी टाइट हो रखी है. गोपालजी स्कर्ट के एलास्टिक को खींचकर देखने लगा की कितनी जगह है. मुझे मालूम था की एलास्टिक को खींचकर वो मेरी सफेद पैंटी को देख रहा होगा. एक तो उस छोटी सी बदन दिखाऊ ड्रेस को पहनकर वैसे ही मैं रोमांचित हो रखी थी और अब एक मर्द का हाथ लगने से मेरा सर घूमने लगा. मेरा चेहरा लाल होने लगा और मेरे होंठ सूखने लगे.

गोपालजी – हाँ मैडम, आप सही हो. कमर में ¾ “ एक्सट्रा कपड़ा लगाकर ठीक से फिटिंग आएगी. मैं हुक को भी ½ “ खिसका दूँगा. दीपू नोट करो.

दीपू – जी नोट कर लिया.

गोपालजी – लेकिन मैडम क्या आप यहाँ पर साड़ी बाँधती हो ?

“क्यूँ ?”

गोपालजी – असल में मुझे लग रहा है की आपने स्कर्ट थोड़ी ऊपर बाँधी है.

“लेकिन मैं तो अक्सर अपनी साड़ी को नाभि पर बाँधती हूँ और स्कर्ट तो मैंने नीचे बाँधी है.

मैंने दिखाया की स्कर्ट मेरी नाभि से डेढ़ इंच नीचे है.

गोपालजी – ना मैडम, आपको थोड़ी और नीचे बांधनी पड़ेगी. मैं एडजस्ट करूँ ?

मुझे अच्छी तरह मालूम था की एडजस्ट करने के लिए इसे मेरी स्कर्ट का हुक खोलना होगा और फिर स्कर्ट नीचे होगी. मैंने गले में थूक गटका.

“ठी….ठीक है……”

गोपालजी ने तुरंत मेरी स्कर्ट का हुक खोल दिया और अब मेरी इज़्ज़त उसके हाथों में थी. वो टेलर मेरे बदन पर झुका हुआ था और एक दो बार मेरी चूचियाँ उसके बदन से छू गयीं. उसने धीरे धीरे स्कर्ट को नीचे करना शुरू किया और अब मुझे लगा की मेरी पैंटी दिखने लगी है.

“गोपालजी प्लीज. इतना नीचे मत करिए.”

गोपालजी – मैडम, प्लीज आप मेरे काम में दखल मत दीजिए.

स्कर्ट को एडजस्ट करते हुए गोपालजी की अँगुलियाँ मेरी पैंटी के इलास्टिक बैंड को छू रही थीं और एक बार तो मुझे ऐसा लगा की उसने एक अंगुली मेरी पैंटी के एलास्टिक के अंदर घुसा दी है.

“आउच……आआहह…”

मेरी सांस रुक गयी और मेरे मुँह से अपनेआप निकल गया.

गोपालजी ने सर उठाकर ऊपर को देखा और उसका सर ब्लाउज से ढकी हुई मेरी बायीं चूची से टकरा गया. अब मैं आँखें बंद करके जोर से धड़कते हुए दिल से खड़ी थी क्यूंकी मुझे मालूम था की मेरी स्कर्ट का हुक अभी भी खुला है. मेरी आँखें बंद देखकर गोपालजी स्कर्ट को एडजस्ट करने के बहाने दोनों हाथों से मेरी कमर को पैंटी के पास छूते रहा और बीच बीच में अपने सर को मेरी बायीं चूची पर दबाते रहा. उसके ऐसा करने से ऐसी इरोटिक फीलिंग आ रही थी की क्या बताऊँ.

शुक्र था की आख़िरकार उसने स्कर्ट का हुक लगा ही दिया.

गोपालजी – मैडम अब ठीक लग रहा है. देख लीजिए.

मैंने आँखें खोली और अपनी उत्तेजना को दबाने के लिए एक गहरी सांस ली और फिर नीचे देखा.

“ईईईईई…..”

कुछ इस तरह की आवाज मेरे मुँह से निकली, गोपालजी ने स्कर्ट इतनी नीचे कर दी थी की मेरी नाभि और उसके आस पास का पूरा हिस्सा नंगा था और स्कर्ट का एलास्टिक ठीक मेरी पैंटी के एलास्टिक के ऊपर आ गया था.


कहानी जारी रहेगी
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#69
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

‘ परिधान'

Update -17


मिनी स्कर्ट एक्सपोजर





गोपालजी – मैडम, देखो, मैंने बहुत सी औरतों के लिए ड्रेस सिली हैं और मैं आपको बता सकता हूँ की ज़्यादातर औरतें अपने पेट से ज़्यादा जांघों को ढकना पसंद करती हैं. इसलिए….

“गोपालजी ये बात तो सही है पर ….”

गोपालजी – गुस्ताख़ी माफ़ मैडम, लेकिन आपकी जाँघें बहुत गोरी और आकर्षक हैं. इसलिए मुझे लगता है की लोगों के सामने इन्हें जितना ढकोगी उतना ही आपके लिए अच्छा रहेगा.

बातों के दौरान मैं ये अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रही थी की मेरे नितंबों को स्कर्ट कितना ढक रही है. मुझे लगा की जहाँ से कमर का घुमाव शुरू होता है वो हिस्सा दिख रहा होगा क्यूंकी स्कर्ट उससे नीचे बँधी थी. इतनी नीचे स्कर्ट पहनकर मैं बहुत कामुक लग रही हूंगी और जब मैंने दीपू की ओर देखा तो उसकी हवसभरी आँखें यही बता रही थी.

“ठीक है फिर. मैं यहीं पर बाधूंगी.

गोपालजी – मैडम, मैं एक बार चुन्नट भी देख लूँ फिर आपकी स्कर्ट फाइनल करता हूँ.

मैंने सर हिला दिया और वो बुड्ढा फिर से मेरी नंगी टाँगों के आगे बैठ गया. उसका चेहरा ठीक मेरी चूत के सामने था.

गोपालजी – मैडम चुन्नट बाहर से तो ठीक हैं. एक बार जल्दी से अंदर से भी देख लेता हूँ.

मुझे रियेक्ट करने का वक़्त दिए बिना उस टेलर ने चुन्नट चेक करने के बहाने से तुरंत अपने दोनों हाथ मेरी स्कर्ट के अंदर डाल दिए. क्यूंकी स्कर्ट टाइट थी इसलिए उसकी हथेलियों का पिछला हिस्सा मेरी नंगी जांघों को छूने लगा. स्वाभाविक था की मैं इसके लिए तैयार नहीं थी और थोड़ा पीछे हट गयी. मेरी स्कर्ट के अंदर पैंटी के पास एक मर्द का हाथ देखकर अपनेआप ही मेरी टाँगें चिपक गयीं. फिर उसके हाथ मैंने स्कर्ट के अंदर ऊपर को बढ़ते महसूस किए अब तो मुझे बोलना ही था.

“अरे… गोपालजी ये क्या कर रहे हो ?”

मैंने अपने होंठ दबा लिए क्यूंकी गोपालजी के हाथ मेरी स्कर्ट के अंदर एक लय में चुन्नट के साथ ऊपर नीचे जा रहे थे. वो एक एक करके हर चुन्नट को चेक कर रहा था. अब मैं उसकी ये हरकत और बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी. मेरे बदन में सिहरन सी दौड़ने लगी थी. मैंने स्कर्ट के बाहर से उसका एक हाथ पकड़ लिया. वो दृश्य बहुत कामुक लग रहा था, मैं एक मर्द के सामने खड़ी थी और उसने मेरे पैरों में बैठ के मेरी स्कर्ट के अंदर अपने हाथ घुसा रखे थे और अब मैंने उसका एक हाथ स्कर्ट के बाहर से पकड़ा हुआ था.

गोपालजी – क्या…क्या हुआ मैडम ?

“मेरा मतलब….प्लीज अब बस करो…”

गोपालजी – लेकिन मैडम, मैं तो ऐसे ही अंदर के चुन्नट चेक करता हूँ वरना मुझे आपकी स्कर्ट ऊपर को उठाकर पलटकर अंदर से चुन्नट चेक करनी पड़ेगी जो की और भी ज़्यादा…….

“ना ना, पहले आप अपने हाथ बाहर निकालो…प्लीज……”

गोपालजी बड़ा आश्चर्यचकित लग रहा था पर उसने धीरे से अपने हाथ स्कर्ट से बाहर निकाल लिए.

“गोपालजी माफ कीजिएगा, लेकिन मुझे अजीब सा ….. मेरा मतलब गुदगुदी सी हो रही थी…”

गोपालजी – ओह …..मैंने सोचा…..चलो ठीक है. मैडम , आप पहली बार स्कर्ट की नाप दे रही हो इसलिए ऐसा हो गया होगा.

वो हल्के से हंसा , उसके साथ दीपू भी हंस दिया और शरमाते हुए मैं भी मुस्कुरा दी.

दीपू – मेरे ख्याल से एक काम हो सकता है. जब मैडम साड़ी पहन लेगी तब हम स्कर्ट के अंदर के चुन्नट चेक कर सकते हैं.

गोपालजी – दीपू , मेरे नाप लेने के तरीके में हर चीज का कुछ ना कुछ मतलब होता है. अगर ऐसा हो सकता जैसा की तुम सुझाव दे रहे हो तो मैंने मैडम को ऐसे शर्मिंदा नहीं किया होता. है की नहीं ?

दीपू – जी , माफी चाहता हूँ.

गोपालजी – दीपू, अगर अंदर से चुन्नट बराबर नहीं होंगी तो ये मैडम की जांघों को छूएंगी और उसे अनकंफर्टेबल फील होगा. इसलिए मैं इन्हें तभी चेक कर रहा हूँ जब मैडम ने इसे पहना है.

अब मुझे भी बात साफ हो गयी. टेलर का इरादा तो नेक था पर उसकी इस हरकत से मुझे बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था.

गोपालजी – कोई बात नहीं , मैडम को असहज महसूस हो रहा है इसलिए इसे मैं बाद में ठीक करूँगा.

वो थोड़ा रुका. मैं एक बेशरम औरत की तरह उस छोटी सी स्कर्ट और ब्लाउज में उनके सामने खड़ी थी.

गोपालजी – अब मैडम, अगर आप चाहो तो मैं कुछ और चीज़ें चेक कर लूँ सिर्फ आपकी इज़्ज़त बचाने के लिए. लेकिन सिर्फ तभी जब आप चाहोगी….

“गोपालजी , लगता है की आप मुझसे नाराज हो गये हो. लेकिन मैं तो सिर्फ…”

गोपालजी – ना ना मैडम, ऐसी कोई बात नहीं . मुझे खुशी है की आपने साफ साफ बता दिया की आपको असहज महसूस हो रहा है. लेकिन मैं ये कहना चाहता हूँ की इसका मेरे नाप लेने से कोई मतलब नहीं . देखो मैडम, आप पहली बार मिनी स्कर्ट पहन रही हो, इसलिए आपको ध्यान रखना चाहिए की आप अपनी पैंटी..…मेरा मतलब आपकी पैंटी लोगों को दिख ना जाए इसका ध्यान रखना होगा.

ये बात तो मेरे दिमाग़ में भी थी पर मुझे कैसे पता चलेगा की लोगों को मेरी पैंटी दिख रही है या नहीं .

“हम्म्म ….. हाँ ये तो है . पर इसे चेक कैसे करुँगी ?”

गोपालजी – मैडम, आपको कुछ भी नहीं करना है. मैं हूँ ना आपको गाइड करने के लिए.

उसके आश्वासन से मुझे राहत हुई और मैं उस अनुभवी टेलर के निर्देशों का इंतज़ार करने लगी.

गोपालजी – मैडम, अब आपकी स्कर्ट सही जगह पर बँधी है और मैं आपके बैठने के पोज चेक करूँगा. अगर कुछ एडजस्ट करना होगा तो बताऊँगा , ठीक है ?

गोपालजी – ठीक है गोपालजी.

गोपालजी – मैडम, आपको समझ आ रहा होगा की मिनी स्कर्ट पहनने में सबसे बड़ी समस्या इसके अंदर दिखने की है और इसके लिए आपको बहुत सावधानी बरतनी पड़ेगी. अगर आप मेरे बताए निर्देशों का पालन करोगी तो ज़्यादा एक्सपोजर नहीं होगा.

जिस तरह से वो टेलर मेरी मदद करने की कोशिश कर रहा था उससे मुझे अच्छा लगा और मैंने उसकी बात पर सर हिला दिया.

गोपालजी – दीपू, क्या तुम बता सकते हो की वो कौन से पोज हैं जिसमें मैडम को अलर्ट रहना चाहिए.

दीपू – जी, 6 ख़ास पोज हैं, खड़े होना, बैठना, झुकना, पैरों पर बैठना, लेटना और चढ़ना.

कहानी जारी रहेगी
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#70
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

‘ परिधान'

Update -18


मिनी स्कर्ट -खड़े होना




गोपालजी – बहुत अच्छे. देखो मैडम, इसने मेरे साथ रहकर काफ़ी कुछ सीख लिया है.

वो दोनों मुस्कुराने लगे और मैं उनके सामने एक सेक्सी मॉडल की तरह खड़ी रही. वैसे मैंने मन ही मन गोपालजी के सिखाने के तरीके की तारीफ़ की.

गोपालजी – ठीक है फिर. मैडम, एक एक करके हर पोज देख लेते हैं ताकि आपको क्लियर आइडिया हो जाए की क्या करना है और क्या नहीं करना है.

“जैसा आप कहो गोपालजी.”

मुझे अच्छा लग रहा था की गोपालजी मुझे अच्छे से गाइड कर रहा था. मैंने सोचा की कई तरह के पोज में बैठाकर गोपालजी मुझे गाइड करेगा की क्या करना है और क्या नहीं. पर मुझे क्या पता था की गाइड करने के दौरान मेरे साथ क्या होने वाला है.

गोपालजी – मैडम, जब आप ये स्कर्ट पहनकर महायज्ञ में बैठोगी तो वहीं पर बांधना जहाँ पर अभी मैंने बांधी है, पैंटी के एलास्टिक से एक अंगुली ऊपर. और स्कर्ट के कपड़े को आगे और पीछे से ऐसे खींच लेना.

गोपालजी ने ऐसे दिखाया जैसे वो स्कर्ट पहने है और अपने आगे पीछे से कपड़े को नीचे खींच रहा है.

गोपालजी – सबसे पहला पोज खड़े होना है और ये सबसे सेफ पोज है.

वो मुस्कुराया. दीपू भी मुस्कुरा रहा था और मैं बेवकूफ़ के जैसे उस टेलर के निर्देशों का इंतज़ार कर रही थी.

गोपालजी – दीपू, क्या मैडम ठीक से खड़ी है ?

दीपू – जी नहीं.

मुझे आश्चर्य हुआ क्यूंकी मैं तो हमेशा जैसे खड़ी होती हूँ वैसे ही खड़ी थी चाहे साड़ी पहनी हो चाहे सलवार कमीज.

“क्यूँ ? क्या समस्या है ?”

गोपालजी – दीपू, क्या तुम….

दीपू – जी जरूर.

दीपू मेरे पास आया और मेरी नंगी टाँगों के सामने पैरों पर बैठ गया. उसका मुँह मेरी चूत के पास था, उसे अपने इतने नजदीक बैठा देखकर जैसे ही मैं पीछे हटने को हुई……

दीपू – मैडम, आप हिलना मत. मैं आपको बताऊँगा की ग़लत क्या है.

दीपू ने मेरी नंगी टाँगों को घुटनों से थोड़ा ऊपर पकड़ लिया और मुझे इशारा किया की मैं अपनी टाँगों को और चिपका लूँ. एक मर्द के मेरी नंगी टाँगों को पकड़ने से मेरे बदन में सिहरन दौड़ गयी फिर मैंने अपने को कंट्रोल किया और टाँगों को थोड़ा और चिपका लिया.

“अब ठीक है ?”

दीपू – ना मैडम. अभी भी आपकी जांघों के बीच गैप दिख रहा है जो की नहीं होना चाहिए.

ऐसा कहते हुए उसने अपनी अंगुली को मेरी जांघों में उस गैप पर फिराया. उसके बाद उसने दोनों हाथों से मेरी जांघों के पीछे के भाग को पकड़ लिया और उस गैप को भरने के बहाने उन पर हाथ फिराने लगा और उन्हें दबाने लगा. उसकी इस हरकत से मेरी चिकनी जांघों में सनसनाहट होने लगी जो टाँगों से होती हुई चूत तक पहुँच गयी. मैं शरमा गयी और अपने सूखे हुए होठों को जीभ से गीला करके नॉर्मल बिहेव करने की कोशिश करने लगी.

“ओह्ह……ओके दीपू, मैं समझ गयी.”

गोपालजी – ठीक है मैडम. जब भी आप स्कर्ट पहनकर खड़ी होगी तो अपनी जांघें चिपकाकर खड़ी होना. जब आप साड़ी, सलवार कमीज या नाइटी पहनती हो तो आपकी टाँगें ढकी रहती हैं इसलिए अगर आप टाँगें अलग करके भी खड़ी रहती हो तो अजीब नहीं लगता. पर ये वेस्टर्न ड्रेस है इसलिए ये अंतर ध्यान में रखना.

“हम्म्म, सही है.”

दीपू – मैडम, आपकी टाँगें बहुत मांसल और खूबसूरत हैं. सच बताऊँ मैडम, केले के पेड़ की तरह दिखती हैं.

गोपालजी – हाँ मैडम. ये तो आप भी मानोगी.

मुझे उस लड़के से अपनी टाँगों पर ऐसे डाइरेक्ट कमेंट की उम्मीद नहीं थी और मुझे कुछ समझ नहीं आया की कैसे रियेक्ट करूँ. मुझे तुरंत अपनी शादी के शुरुवाती दिनों की एक घटना याद आ गयी जब मेरे पति राजेश ने मेरी चूचियों को सेब जैसी कहा था. उस रात को राजेश बहुत देर से मेरी नंगी चूचियों को मसल रहे थे. मेरी कामोत्तेजना से और उनके मसलने से चूचियों लाल हो गयीं. फिर राजेश बोले, “अब तुम्हारी चूचियाँ सेब जैसी दिख रही हैं गोल और लाल.”

अब दीपू मेरे आगे बैठी हुई पोजीशन से खड़ा हो गया. मैंने ख्याल किया उसकी आँखें ऐसी हो रखी थीं की जैसे मेरे पूरे बदन को चाट रही हों. मेरी चूचियाँ थोड़ा तेज़ी से ऊपर नीचे होने लगीं और ब्लाउज के अंदर ब्रा कप में टाइट होने लगीं. मैंने ऐसे दिखाया जैसे की मेरे कंधे में खुजली लगी हो और इस बहाने ब्लाउज को थोड़ा एडजस्ट कर लिया.


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#71
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

‘ परिधान'

Update -19


मिनी स्कर्ट - बैठना




गोपालजी – मैडम इसके बाद आता है बैठने का पोज. इसमें दो खास पोज हैं , एक कुर्सी पर बैठना और दूसरा फर्श पर बैठना. दीपू वो कुर्सी यहाँ लाओ.

दीपू ने कुर्सी लाकर मेरे आगे रख दी.

गोपालजी – मैडम, औरत होने के नाते आपको मालूम होगा की स्कर्ट पहनकर बैठने के दो तरीके होते हैं.

मैंने उसे उलझन भरी निगाहों से देखा क्यूंकी मुझे समझ नहीं आया की वो क्या कहना चाह रहा है.

गोपालजी – एक तरीका ये है की दोनों हाथों से स्कर्ट को नीचे को खींचो और बैठ जाओ. दूसरा तरीका ये है की थोड़ा सा स्कर्ट को ऊपर करो और जांघों पर गोल फैलाकर पैंटी पर बैठ जाओ.

मैं इस अनुभवी टेलर की जानकारी से हैरान थी.

गोपालजी – लेकिन मैडम, मिनीस्कर्ट में दूसरा तरीका काम नहीं करेगा क्यूंकी अगर आप अपनी स्कर्ट ऊपर करोगी तो आपकी …….

दीपू – बड़ी गांड दिख जाएगी मैडम.

दीपू ने टेलर का अधूरा वाक्य पूरा कर दिया. मैं ख्याल कर रही थी की इस लड़के का दुस्साहस बढ़ते जा रहा है. लेकिन इसके लिए मैं ही ज़िम्मेदार थी क्यूंकी उन दोनों मर्दों के सामने सिर्फ़ ब्लाउज और एक छोटी सी स्कर्ट में खड़ी थी.

गोपालजी – हाँ मैडम, इसलिए सिर्फ़ पहला तरीका ही है.

मुझे कुछ जवाब देने का मन नहीं हुआ.

गोपालजी – दीपू , मैडम की मदद करो……

दीपू की मदद क्यूँ चाहिए , मैं खुद बैठ सकती हूँ, मैंने सोचा.

“मैं खुद बैठ जाऊँगी, गोपालजी.”

गोपालजी – मुझे मालूम है मैडम. लेकिन आपको सही तरीका आना चाहिए वरना दुबारा से सही पोज बनाना पड़ेगा. इसलिए मैं दीपू से कह रहा था….

मुझे लगा की टेलर सही कह रहा है और सही पोज के लिए मुझे दीपू की मदद लेनी होगी.

“हाँ ये सही है पर…..ठीक है दीपू.”

मैंने अनिच्छा से दीपू को मदद के लिए कहा.

दीपू – ठीक है मैडम. आप कुर्सी में बैठो. लेकिन धीरे से बैठना ताकि मैं आपको दिखा सकूँ की स्कर्ट को कब और कैसे पकड़ना है.

दीपू ने बड़े आराम से कह दिया लेकिन मुझे मालूम था की असल में मेरे लिए ये आसान नहीं होगा. मैं अब कुर्सी के आगे खड़ी थी और दीपू कुर्सी के पीछे. इस पोज में मेरी स्कर्ट से ढकी हुई बड़ी गांड उसके सामने थी और मैं ऐसे उसके सामने खड़ी होकर असहज महसूस कर रही थी. गोपालजी ठीक मेरे सामने खड़ा था.

दीपू – मैडम, आपको अपनी स्कर्ट को जांघों के पास ऐसे पकड़ना है.

उसने मेरी स्कर्ट दोनों हाथों से पकड़ ली और उसके हाथ मेरी ऊपरी जांघों को छू रहे थे. वैसे तो वो स्कर्ट के कोने पकड़े हुए था पर उसकी अँगुलियाँ मेरी नंगी मांसल जांघों को महसूस कर रही थीं.

दीपू – अब धीरे से बैठो, मैडम.

जैसे ही मैंने कुर्सी में बैठने को अपनी कमर झुकाई तो मेरे भारी नितंबों पर स्कर्ट उठ गयी और स्कर्ट के साथ साथ दीपू की अँगुलियाँ भी ऊपर की ओर बढ़ने लगीं. जब मैं कुर्सी पर बैठी तो शरम से मेरा मुँह सुर्ख लाल हो गया क्यूंकी कुछ भी छिपाने को नहीं था, मेरी टाँगों और जांघों का एक एक इंच नंगा था. मुझे अंदाज आ रहा था की स्कर्ट मेरी आधी गांड तक ऊपर उठ चुकी है. अपने को इतना एक्सपोज मैंने कभी नहीं फील किया. मुझे लग रहा था की दीपू की अँगुलियाँ मेरे नितंबों को छू रही हैं. उसका चेहरा मेरे कंधों के पास था और मेरी गर्दन पर उसकी भारी साँसों को मैं महसूस कर रही थी. फिर उसने अपनी अँगुलियाँ हटा ली.

दीपू – मैडम, इतनी तेज नहीं. मैंने आपसे कहा था की धीरे से बैठना. मैं आपको ठीक से दिखा नहीं सका …….

गोपालजी – एक मिनट दीपू. मैडम, क्या आप हमेशा ऐसे ही बैठती हो ?

मैंने अपनी नंगी टाँगों को देखा. मेरी गोरी गोरी मांसल जाँघें बहुत उत्तेजक लग रही थीं. मैंने इतना शर्मिंदा महसूस किया की मैं टेलर से आँखें भी नहीं मिला पाई.

गोपालजी – मैडम, अगर आप ऐसे बैठोगी तो जल्दी ही आपके सामने लोगों की भीड़ लग जाएगी.

अब मैंने नजरें उठाकर उसे देखा. वो कहना क्या चाहता है ? हाँ, मेरी नंगी जाँघें बहुत अश्लील लग रही हैं, पर गोपालजी का इशारा किस तरफ है ?

“लेकिन क्यूँ, गोपालजी ?”

गोपालजी – मैडम, अगर आप ऐसे टाँगें अलग करके बैठोगी तो सामने वाले हर आदमी को, यहाँ तक की जो खड़े भी होंगे, उनको भी आपकी पैंटी दिख जाएगी.

“ऊप्स……”

मैंने जल्दी से अपनी टाँगें चिपका लीं. मुझे बड़ी शर्मिंदगी हुई की मैंने टेलर को अपनी पैंटी दिखा दी. मैं बेआबरू होकर फर्श को देखने लगी.

गोपालजी – मैडम, प्लीज बुरा मत फील कीजिए क्यूंकी यहाँ कोई नहीं है पर आपको ध्यान रखना होगा. वैसे मज़ेदार बात ये है की मैंने ख्याल किया है की बैठते समय टाँगें फैलाने की आदत शादीशुदा औरतों में ज़्यादा होती है. मैडम आप भी उन में से ही हो.

दीपू – पर ऐसा क्यूँ ? कोई खास वजह ?

गोपालजी – मैडम से पूछो, वो तुम्हें बेहतर बता सकती है.

गोपालजी और दीपू दोनों मेरी तरफ देखने लगे और मैं इस बेहूदा सवाल का जवाब देना नहीं चाहती थी.

“वजह….मेरा मतलब…ऐसी कोई बात नहीं…..”

गोपालजी – मैडम, असल बात ये है की शादी के बाद औरतों को टाँगें फैलाने की आदत हो जाती है. वैसे घर में साड़ी पहनकर ऐसे बैठने में कोई हर्ज़ नहीं. ठीक है ना मैडम ?

अब इसका मैं क्या जवाब देती .

गोपालजी – चलो बहुत बातें हो गयी. फिर से बैठने का पोज बनाओ.

मैं कुर्सी से खड़े हो गयी और दीपू ऐसे जल्दी में था जैसे मेरी स्कर्ट को पकड़ने को उतावला हो.

दीपू – मैडम, इस बार धीरे से बैठना.

“ठीक है.”

दीपू – देखो, पहले तो स्कर्ट को साइड्स से पकड़ना और फिर जब बैठने लगो तो ऐसे अपने नितंबों पर स्कर्ट पे हाथ फेरना और फिर बैठना.

ऐसा कहते हुए उसने जो किया वो शायद कभी किसी ने भीड़ भरी बस में भी मेरे साथ नहीं किया था. पहले तो उसने मेरी स्कर्ट के कोने पकड़े हुए थे और फिर वो अपने हाथों को मेरे गोल नितंबों पर ले गया और अपनी अंगुलियों और हथेलियों से मेरी गांड की गोलाई का एहसास करते हुए पूरी गांड पर हाथ फिराकार स्कर्ट के अंतिम छोर तक ले गया.

मुझे लगा की समझाने के बाद वो मेरी स्कर्ट से हाथ हटा लेगा. लेकिन जैसे ही मैं कुर्सी पर बैठी उसने अपने हाथ नहीं हटाए और मेरे भारी नितंब उसकी हथेलियों के ऊपर आ गये. उसकी हथेलियां मेरे गोल नितंबों से दब गयी और तुरंत मुझे अंदाज आ गया की वो मेरे नितंबों को हथेलियों में पकड़ने की कोशिश कर रहा है.

“अरे ….”

स्वाभाविक रूप से मैं उछल पड़ी.

दीपू – सॉरी मैडम, आपने हाथ हटाने का वक़्त ही नहीं दिया. फिर से सॉरी मैडम.

मुझे मालूम था की उसने मेरी स्कर्ट से ढके हुए गोल नितंबों को अपनी हथेलियों में भरने की कोशिश की थी और अब बहाना बना रहा है पर मैं कोई तमाशा नहीं करना चाहती थी. मैंने उसकी माफी स्वीकार कर ली और कुर्सी में बैठ गयी. दीपू अब कुर्सी के पीछे से मेरे सामने आ गया.

गोपालजी – वाह. मैडम, इस बार आपने बिल्कुल सही तरीके से किया. और जैसा की मैंने कहा ध्यान रखना की टाँगें हमेशा चिपकी हों.

“ठीक है गोपालजी.”

गोपालजी – बैठने का दूसरा पोज फर्श पर बैठना है. इसमें पैंटी को ढके रखने के लिए ऐसे बैठना.

ऐसा कहते हुए टेलर अपने घुटनों पर बैठ गया और अपने नितंबों को एड़ियों पर टिका दिया.

गोपालजी – मेरे ख्याल से महायज्ञ में ज़्यादातर ऐसे ही बैठना होगा. एक बार करके देखो मैडम.

मैंने गोपालजी के पोज की नकल की और आगे झुककर अपने घुटने फर्श पर रख दिए और गांड एड़ियों पर टिका दी. इस पोज में मुझे कंफर्टेबल फील हुआ क्यूंकी स्कर्ट ऊपर नहीं उठी और ज़्यादा एक्सपोज भी नहीं हुआ.

गोपालजी – बहुत बढ़िया मैडम. अब उठ जाओ.

जैसे ही मैंने उठने की कोशिश की तो मुझे समझ आया की दीपू को मेरी स्कर्ट में दिख जाएगा जो की मेरी साइड में खड़ा था. मैंने फर्श से ऊपर उठते हुए ख्याल रखा लेकिन मेरी स्कर्ट इतनी छोटी थी की मेरी चिकनी जांघों पर ऊपर उठ गयी और मुझे यकीन है की दीपू को स्कर्ट के अंदर मेरी पैंटी दिख गयी होगी.

जिंदगी में कभी मैंने किसी मर्द के साने ऐसे अश्लील तरीके से एक्सपोज नहीं किया था. मेरे पति के सामने भी नहीं. मुझे बहुत बुरा लग रहा था और शरम से मैं पूरी लाल हो गयी थी. सिर्फ़ एक अच्छी बात हुई थी की गोपालजी ने किसी भी पोज को ज़्यादा लंबा नहीं खींचा और मुझे ज़्यादा देर तक शर्मिंदा नहीं होना पड़ा.


गोपालजी – अगला पोज है झुकना. मैडम, ये इम्पोर्टेन्ट पोज है इसका ख्याल रखना.


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#72
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

‘ परिधान'

Update -20


मिनी स्कर्ट *झुकना



मैंने सोचा इज़्ज़त ढकने के लिए तो (अगर कुछ बची हुई है तो) सभी पोज इम्पोर्टेन्ट हैं. इसमें ऐसा क्या ख़ास है.

गोपालजी – क्यूंकी इसमें आपको पता होना चाहिए की कैसे और कितना झुकना है.

मैं अनिश्चय से उसकी तरफ देख रही थी और वो अनुभवी आदमी समझ गया.

गोपालजी – मैडम देखो. एक उदाहरण देता हूँ.

उसने टेप को फर्श में गिरा दिया.

गोपालजी – मैडम अगर मैं बोलूँ की इस टेप को उठा दो तो आप इसे उठाने के लिए झुकोगी. लेकिन अभी आपने मिनी स्कर्ट पहनी है इसलिए आपको झुकने के तरीके में बदलाव करना होगा. कल्पना करो की आपने साड़ी पहनी है तो आप ऐसे उठाओगी ….

ऐसा कहते हुए वो आगे झुका और हाथ आगे बढ़ाकर टेप को पकड़ा और फिर नजरें ऊपर करके मुझे देखा.

“हाँ, मैं ऐसे ही करूँगी.”

गोपालजी – मैडम यही तो बात है. अगर आप ऐसे करोगी तो ज़रा सोचो अगर कोई आपके पीछे बैठा होगा या खड़ा होगा तो उसको आपकी मिनी स्कर्ट में क्या नजारा दिखेगा.

मैं समझ गयी की वो कहना क्या चाहता है.

गोपालजी – मैडम, कोई भी औरत जानबूझकर ऐसा नहीं करेगी. आपको अपनी टाँगें चिपकाकर घुटने मोड़ने हैं और फिर ऐसे टेप उठाना है.

गोपालजी ने करके दिखाया.

“हाँ सही है.”

मैंने भी गोपालजी की तरह पोज़ बनाकर फर्श से टेप उठाकर दिखाया. सच कहूँ तो मैं अपने मन में उस टेलर को धन्यवाद दे रही थी क्यूंकी इस बारे में मैंने इतनी बारीकी से नहीं सोचा था.

गोपालजी – ठीक है मैडम. लेकिन आपको ये भी मालूम होना चाहिए की बिना कुछ दिखाए आप अपनी कमर को कितना झुका सकती हो. क्यूंकी यज्ञ के दौरान हो सकता है की आपको ऐसे झुकना पड़े.

मैंने सोचा ये तो बुड्ढा सही कह रहा है. अब वो टेलर से ज़्यादा एक गाइड की भूमिका में था.

गोपालजी – दीपू, मैं यहाँ पर बैठता हूँ और तुम्हें गाइड करूँगा की क्या करना है. ठीक है ?

दीपू – जी ठीक है.

ऐसा कहते हुए गोपालजी कुर्सी में बैठ गया.

गोपालजी – मैडम, आप मुझसे थोड़ी दूर दीवार की तरफ मुँह करके खड़ी हो जाओ …..4-5 फीट . वहाँ पर.

उसने उस जगह के लिए इशारा किया और मैं टेलर से करीब 4-5 फीट की दूरी पर दीवार के करीब जाकर खड़ी हो गयी. दीपू भी मेरे पीछे आ गया और गोपालजी की तरफ मेरी पीठ थी.

गोपालजी – मैडम, अपनी टाँगें फैला लो. दोनों पैरों के बीच एक फीट से कुछ ज़्यादा गैप होना चाहिए.

मैंने टाँगें थोड़ी फैला लीं. दीपू नीचे झुका और उसने मेरी ऐड़ियों को पकड़कर थोड़ी और फैला दिया. मैं सोच रही थी की अब मेरे साथ और क्या क्या होनेवाला है. ऐसे टाँगें अलग करने से मेरे निप्पल्स में एक अजीब सी फीलिंग आ रही थी. मैं अपना दायां हाथ ब्लाउज पर ले गयी और मेरी चूचियों को ब्रा में एडजस्ट कर लिया. गोपालजी की तरफ मेरी पीठ थी और दीपू नीचे झुका हुआ था इसलिए वो दोनों ये देख नहीं पाए.

दीपू – जी अब ठीक है ?

गोपालजी – हाँ बिल्कुल सही. मैडम, अब धीरे से कमर को आगे को झुकाओ.

“कैसे ?”

गोपालजी – मैडम, अपनी टाँगें सीधी रखो और आगे को झुको. मैं आपको बताऊँगा की कहाँ पर रुकना है. इससे आपको क्लियर आइडिया हो जाएगा की लोगों के सामने कितना झुकना है.

अब मुझे बात करने के लिए उस टेलर की तरफ मुड़ना पड़ा.

“लेकिन गोपालजी अगर मैं ऐसे झुकी तो ये बहुत भद्दा लगेगा.”

मैं बहुत कामुक लग रही हूँगी क्यूंकी मैंने देखा गोपालजी की आँखें मेरे जवान बदन पर टिकी हुई हैं. मैं उसकी तरफ गांड करके टाँगें फैला के खड़ी हुई थी और बातें करने के लिए मैंने सिर्फ अपना चेहरा पीछे को मोड़ा हुआ था.

गोपालजी – क्या भद्दा मैडम ? यहाँ आपको कौन देख रहा है ?

“नहीं , लेकिन…”

गोपालजी ऐसे बात कर रहा था जैसे दीपू और वो खुद उस कमरें में हैं ही नहीं. लेकिन मैं उन दो मर्दों को नज़र अंदाज़ कैसे कर देती.

गोपालजी – मैडम, ये तो आपकी मदद के लिए हम कर रहे हैं वरना तो आप लोगों के सामने अपनी पैंटी दिखाती रहोगी.

मैं उस टेलर से बहस नहीं कर सकती थी. क्यूंकी सच तो ये था की वो स्कर्ट बहुत छोटी थी और मुझे मालूम नहीं था की उस छोटी स्कर्ट में मेरे बड़े नितंब चलते समय या झुकते समय कैसे दिख रहे हैं.

“ठीक है, जैसा आप कहो.”

मैं अनिच्छा से राज़ी हो गयी और अपना मुँह दीवार की तरफ कर लिया. दीपू मेरे पास खड़ा हो गया.

गोपालजी – तो फिर जैसा मैं कह रहा हूँ वैसा करो. धीरे से अपने बदन को आगे को झुकाओ. दीपू मैडम की टाँगें पकड़े रहना ताकि वो टाँगों को ना मोड़े.

दीपू ने तुरंत पीछे से मेरी टाँगें पकड़ ली और मुड़ने से रोकने के लिए घुटनों पर पकड़ने के बजाय उसने मेरी नंगी जांघों को पकड़ लिया. मुझे अंदाज़ा हो रहा था की वो मेरी मांसल जांघों पर हाथ फिराने का मज़ा ले रहा है.

मैंने अपने बदन को आगे को झुकाना शुरू किया. खुशकिस्मती थी की मेरे आगे कोई नहीं था क्यूंकी ऐसे आगे को झुकने से मेरे ब्लाउज में गैप बनने लगा और मेरी बड़ी चूचियों का ऊपरी भाग दिखने लगा था.

गोपालजी – मैडम, धीरे से बदन को झुकाओ. जब तक की मैं रुकने को ना बोलूँ. ठीक है ?

“ठीक है…”

मैं धीरे से आगे को झुकती रही और मुझे अंदाज़ा हो रहा था की स्कर्ट मेरी जांघों पर ऊपर उठ रही है. अब मेरा सर नीचे को झुक गया था तो मुझे पीछे बैठा दीपू दिखने लगा और जब मैंने देखा की वो बदमाश क्या कर रहा है तो मैं जड़वत हो गयी.

वो मेरे पीछे मेरे पैरों के पास बैठा हुआ था और उसका चेहरा मेरी जांघों के करीब था. मैं झुकी हुई पोजीशन में थी और वो बदमाश इसका फायदा उठाकर मेरी स्कर्ट के अंदर झाँकने की कोशिश कर रहा था. वो अंदर झाँकने को इतना उतावला हो रखा था की सर ऊपर करके सीधे स्कर्ट में देख रहा था. उसकी आँखें मेरी पैंटी से कुछ ही दूर थी और वो बिना किसी रोक टोक के मेरी पूरी गांड का नज़ारा देख सकता था.

जैसे ही उसकी नजरें मुझसे मिली, जल्दी से उसने अपना मुँह नीचे को कर लिया और मेरी जांघों पर उसकी पकड़ टाइट हो गयी. मेरा मन हुआ की इस बदमाश छोकरे को एक कस के थप्पड़ लगा दूँ पर मैंने अपने को काबू में रखा. मुझे समझ आ रहा था की इस पोज़ में मैं बहुत ही कामुक लग रही हूँगी. मैंने पीछे गोपालजी को देखा और वो अपने हाथ से अपने पैंट को वहाँ पर खुजा रहा था और उसकी नजरें मेरे पीछे को उभरे हुए नितंबों पर टिकी हुई थी.

गोपालजी – मैडम, बस रुक जाओ. इस एंगल से मुझे आपकी पैंटी दिखने लगी है.

अब मेरा दिमाग़ घूमने लगा था. अभी अभी मैंने टेलर के साथी को अपनी स्कर्ट के अंदर झाँकते हुए रंगे हाथों पकड़ा था और अब टेलर कह रहा था की उसे मेरी पैंटी दिख रही है.

गोपालजी – मैडम, इस पोज़ में आपकी गांड ऐसे लग रही है जैसे स्कर्ट के अंदर दो कद्दू रखे हों.

मैं उसके कमेंट पर ज़्यादा ध्यान ना दे सकी क्यूंकी दीपू के हाथ मेरी नंगी जांघों पर ऊपर को बढ़ने लगे थे और एक मर्द के मेरी नंगी जांघों को छूने से मुझपे नशा सा चढ़ रहा था. वो मेरी जांघों के एक एक इंच को महसूस कर रहा था और अब उसके हाथ मेरी स्कर्ट के पास पहुँच गये थे.

गोपालजी – मैडम, इसी पोज़ में रहो. दीपू मैडम की मदद करो ताकि मैडम और ज़्यादा ना झुके.

मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था. दीपू ने मुझे उस पोज़ में रोकने के बहाने अपने हाथ स्कर्ट के अंदर डाल दिए और उसकी अँगुलियाँ मेरे नितंबों के निचले भाग की छूने लगी.

गोपालजी कुर्सी से उठकर मेरे पास आने लगा. मैंने एक नज़र अपनी छाती पर डाली और ये देखकर शॉक्ड रह गयी की मेरी गोल चूचियों का ज़्यादातर हिस्सा ब्लाउज से बाहर लटक रहा है.

गोपालजी – ठीक है मैडम. अब आप सीधी हो जाओ. मैंने पोजीशन नोट कर ली है.

मैं उस समय तक उत्तेजना से काँपने लगी थी क्यूंकी दीपू की अँगुलियाँ मेरी स्कर्ट के अंदर मनमर्ज़ी से घूम रही थी और एक दो बार तो उसने पैंटी के ऊपर से मेरे भारी नितंबों को मसल भी दिया था. मेरी साँसें उखड़ने लगी थी तभी गोपालजी ने मुझे सीधे होने को कहा.

दीपू को अब अपनी हरकतें रोकनी पड़ी. उसने एक आख़िरी बार अपनी दोनों हथेलियों को मेरी स्कर्ट के अंदर फैलाया और मेरी गांड की पूरी गोलाई का अंदाज़ा किया. मैं सीधी खड़ी तो हो गयी पर मुझे असहज महसूस हो रहा था क्यूंकी दीपू ने मेरी काम भावनाओं को भड़का दिया था. मैंने अपने दाएं हाथ से अपनी गांड के ऊपर स्कर्ट को सीधा किया और ब्लाउज के अंदर चूचियों को एडजस्ट कर लिया.

अब जो अनुभव मुझे अभी हुआ था उससे मेरे मन में एक डर था की यज्ञ के दौरान पीछे से मेरी स्कर्ट के अंदर लोगों को दिख सकता है.

गोपालजी – मैडम, अगला पोज़ है ऐड़ियों पर बैठना (स्क्वाटिंग). लेकिन इस स्कर्ट में आप ऐसे नहीं बैठ सकती हो. है ना ?


कहानी जारी रहेगी
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#73
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

‘ परिधान'

Update -20


मिनी स्कर्ट - ऐड़ियों पर बैठना




गोपालजी शरारत से मुस्कुरा रहा था. मैंने सिर्फ सर हिला दिया.

दीपू – मैडम, अगर आपको ऐसे बैठना ही पड़े तो बेहतर है की आप अपनी स्कर्ट खोल दो और फिर अपनी ऐड़ियों पर बैठ जाओ.

उसकी इस बेहूदी बात पर वो दोनों ठहाका लगाकर हंसने लगे. मैं गूंगी गुड़िया की तरह खड़ी रही और बेशर्मी से व्यवहार करती रही जैसे की उस कमरे में फँस गयी हूँ.

गोपालजी – मैडम, सीढ़ियों पर चढ़ते समय भी ध्यान रखना होगा. क्यूंकी इस स्कर्ट को पहनकर अगर आप सीढ़ियां चढ़ोगी तो पीछे आ रहे आदमी को फ्री शो दिखेगा……

“हाँ गोपालजी मुझे मालूम है. आशा करती हूँ की ऐसी सिचुयेशन नहीं आएगी.”

दीपू – हाँ मैडम. पता है क्यों ?

मैंने उलझन भरी निगाहों से दीपू को देखा.

दीपू – क्यूंकी आश्रम में सीढ़ियां हैं ही नहीं……हा हा हा……

इस बार हम सभी हंस पड़े. मेरी साँसें भी अब नॉर्मल होने लगी थी.

गोपालजी – मैडम, आख़िरी पोज़ है लेटना. अब आपको बहुत कुछ मालूम हो गया है, मैं चाहता हूँ की आप अपनेआप बेड में लेटो.

“ठीक है..”

गोपालजी – मैडम, हम इस तरफ खड़े हो जाते हैं.

वो दोनों उस तरफ खड़े हो गये जहाँ पर लेटने के बाद मेरी टाँगें आती. मैं बेड में बैठ गयी और तुरंत मुझे अंदाज़ा हुआ की ठंडी चादर मेरी नंगी गांड के उस हिस्से को छू रही है जो की पैंटी के बाहर है, वो स्कर्ट इतनी छोटी थी. मैंने अपनी टाँगें सीधी रखी और चिपका ली और उन्हें उठाकर बेड में रख दिया. गोपालजी और दीपू की नजरें मेरी कमर पर थी और मैं जितना हो सके अपनी इज़्ज़त को बचाने की कोशिश कर रही थी. लेकिन मुझे समझ आ गया की पैंटी को ढकना असंभव है. मेरी स्कर्ट चिकनी जांघों पर ऊपर उठने लगी और मैंने जल्दी से उसे नीचे को खींचा. लेकिन जैसे ही मैं बेड में लेटी तो मुझे थोड़ी सी अपनी टाँगें मोडनी पड़ी और उन दोनों मर्दों को मेरी स्कर्ट के अंदर पैंटी का मस्त नज़ारा दिख गया होगा.

कितनी शरम की बात थी.

मैं एक हाउसवाइफ हूँ……….मैं कर क्या रही हूँ. बार बार अपनी पैंटी इन टेलर्स को दिखा रही हूँ. मेरे पति को ज़रूर हार्ट अटैक आ जाएगा अगर वो ये देख लेगा की मैं बिस्तर पे इतनी छोटी स्कर्ट पहन कर लेटी हुई हूँ और दो मर्द मेरी पैंटी में झाँकने की कोशिश कर रहे हैं.

गोपालजी – बहुत बढ़िया मैडम. अब तो महायज्ञ में इस ड्रेस को पहनकर जाने के लिए आप पूरी तरह से तैयार हो.

मैं बेड से उठी और सोच रही थी की जल्दी से इस स्कर्ट को उतारकर अपनी साड़ी पहन लूँ क्यूंकी मैंने सोचा टेलर की नाप जोख और ये एक्सट्रा गाइडिंग सेशन खत्म हो गया है.

लेकिन मैं कुछ भूल गयी थी……. जो की बहुत महत्वपूर्ण चीज थी.

गोपालजी – मैडम , अब आपकी नाप का ज़्यादातर काम पूरा हो गया है. बस थोड़ा सा काम बचा है फिर हम चले जाएँगे.

“अब क्या बचा है ?”

खट खट ………

दरवाजे पर खट खट हुई और हमारी बात अधूरी रह गयी क्यूंकी मैं जल्दी से अपनी स्कर्ट के ऊपर साड़ी लपेटकर अपने नंगे बदन को ढकने की कोशिश करने लगी.

गोपालजी – मैडम, फिकर मत करो. मैं देखता हूँ.

वो दरवाजे पर गया और थोड़ा सा दरवाजा खोलकर बाहर झाँका. मैंने परिमल की आवाज़ सुनी की मैडम के लिए फोन आया है.

गोपालजी – ठीक है, मैं अभी मैडम को भेजता हूँ.

परिमल ‘ठीक है’ कहकर चला गया और मैं अपनी साड़ी और पेटीकोट लेकर बाथरूम चली गयी. मैं सोच रही थी की किसका फोन आया होगा और कहाँ से ? मेरे घर से ? कहीं अनिल के मामाजी का तो नहीं जो मुझसे मिलने आश्रम आए थे ?. यही सोचते हुए मैंने स्कर्ट उतार दी और पेटीकोट बांधकर साड़ी पहन ली.

कहानी जारी रहेगी
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#74
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

‘ परिधान'

Update -21


पति का फोन आया




मैं अपने कमरे से बाहर आकर अपना पल्लू ठीक करते हुए फोन रिसीव करने आश्रम के ऑफिस की तरफ जाने लगी. ऑफिस गेस्ट रूम के पास था. और मैं जैसे ही अंदर गयी , फोन के पास परिमल खड़ा था. उस बौने आदमी और उसके मजाकिया चेहरे को देखते ही मेरे होठों पे मुस्कुराहट आ जाती थी.

मैं अपने कमरे से बाहर आकर अपना पल्लू ठीक करते हुए फोन रिसीव करने आश्रम के ऑफिस की तरफ जाने लगी. ऑफिस गेस्ट रूम के पास था. और मैं जैसे ही अंदर गयी , फोन के पास परिमल खड़ा था. उस बौने आदमी और उसके मजाकिया चेहरे को देखते ही मेरे होठों पे मुस्कुराहट आ जाती थी.

“किसका फोन है?”

परिमल – आपके पति का, मैडम.

“ओह….”

मैं बहुत खुश हो गयी और मुझे आश्चर्य भी हुआ की अनिल ने फोन किया है.

“हेलो..”

अनिल – हेलो रश्मि, मैं अनिल बोल रहा हूँ.

“कैसे हो आप ? आज इतने बाद मेरी याद आई.”

अपने पल्लू को अंगुलियों में घुमाते हुए मैंने बनावटी गुस्सा दिखाया.

अनिल – तुम्हें तो मालूम ही है रश्मि की मैं गांव गया था और कल ही वापस लौटा हूँ. तुम्हें फोन कैसे करता ?

मुझे याद आया की अनिल को किसी काम से हमारे गांव जाना पड़ गया था इसीलिए वो मुझे आश्रम तक छोड़ने नही आ पाए थे.

“हम्म्म …मालूम है. अब बहाने मत बनाओ.”

अनिल – जान, वहाँ कैसा चल रहा है ?

इस सवाल से मेरे दिल की धड़कनें रुक गयी और मैंने थूक निगलते हुए जवाब दिया.

“सब ठीक है . मेरा उपचार चल रहा है.”

अनिल – जान, तुम्हें बहुत सी जड़ी बूटियाँ लेनी पड़ रही होंगी.

क्या क्या लेना पड़ रहा है, तुम क्या जानो, मैंने सोचा.

“हाँ …बहुत सी जड़ी बूटियाँ, पूजा, यज्ञ, वगैरह. तुम्हारा तो इनमें विश्वास नही है.

अनिल – अगर अच्छा परिणाम मिलेगा तो मैं विश्वास करने लग जाऊँगा. पर ये तो बताओ तुम कैसी हो ? दवाइयों का कोई साइड एफेक्ट तो नही है ?

“ना…ना ..मैं बिल्कुल ठीक हूँ.”

पता नही कितने मर्दों ने मेरी जवानी से छेड़छाड़ की है यहाँ, मैं सोच रही थी.

अनिल – अच्छी बात है. यहाँ घर पे भी सब ठीक है, तुम फिकर मत करना.

“तुम्हें मालूम है मामाजी मुझसे मिलने आए थे.”

अनिल – हाँ ….मम्मी ने बताया था. क्या कहा उन्होंने ?

“कुछ ख़ास नही. बस मेरा हाल चाल पूछ रहे थे.”

अनिल – बहुत अच्छे आदमी हैं.

हाँ बहुत अच्छे हैं. जिस तरह से उन्होने मेरे माथे को चूमा था, मेरे कंधों पर ब्रा के स्ट्रैप को छुआ था , मेरी चूचियों को अपनी छाती पे दबाया था और मेरे नितंबों पर थप्पड़ मारा था….मुझे सब याद आया. बहुत अच्छे या बहुत बदमाश ?

“ह्म्म्म्म …”

अनिल – रश्मि, कोई आस पास है तुम्हारे ?

मुझे हैरानी हुई की ऐसा क्यों पूछ रहे हैं. मैंने इधर उधर देखा तो ऑफिस के कमरे में कोई नही था. परिमल मुझे फोन पकड़ाकर चला गया था.

“ना , मैं अकेली हूँ. पर क्यों पूछ रहे हो ?”

अनिल – उम्म्म…जान , तुम्हें मिस कर रहा हूँ……बेड में.

अंतिम दो शब्द अनिल ने फुसफुसाते हुए कहे थे. मेरी नंगी जांघों पर दीपू के छूने से मुझे गर्मी चढ़ी थी और अब मेरे पति का फोन पे प्यार, मैं पिघलने लगी.

“उम्म्म…मैं भी आपको मिस कर रही हूँ.”

अनिल – एक बार मुझे किस करो ना.

“ये आश्रम है , आपको ऐसा नही…..”

अनिल – उफ …एक बार किस करो ना. तुम्हें मेरी याद नही आती ?

“हम्म्म …मैं तुम्हें बहुत मिस करती हूँ.”

अनिल – अच्छा, ये बताओ अभी तुम साड़ी पहनी हो ?

“क्यूँ पूछ रहे हो ?”

अनिल – असल में फिर मुझे तुम्हारा ब्लाउज खोलना होगा.

“बदमाश…”

अनिल – रश्मि सुनो ना.

“क्या ?”

अनिल की प्यार भरी आवाज़ सुनकर मैं कमज़ोर पड़ने लगी थी और मेरा मन कर रहा था की अभी दौड़कर उसकी बाँहों में समा जाऊँ.

अनिल – जान, अपने होंठ खोलो.

मैंने फोन के आगे अपने होंठ खोल दिए.

अनिल – क्या हुआ ? खोलो ना.

“ओहो…मैंने खोल रखे हैं….सिर्फ़ तुम्हारे लिए.”

अनिल – ऐसा है तो तुमने फोन कैसे पकड़ा हुआ है ?

“ओफफो…..मैंने तुम्हारे लिए अपने होंठ खोले हैं. फोन से उसका क्या लेना देना ?”

अनिल – रश्मि डार्लिंग , मैंने तुमसे साड़ी के अंदर वाले होंठ खोलने को कहा था ताकि मैं अपना डाल सकूँ.

“तुम बहुत बदमाश हो. मैं फोन रख रही हूँ.”

मुझे अनिल की बातों में मज़ा आ रहा था लेकिन मैंने गुस्से का दिखावा किया.

अनिल – ना ना….जान. प्लीज़ फोन मत रखना. अच्छा चलो तुम्हारे होठों को चूमने तो दो.

अनिल ने फोन पे मुझे कई बार चूमा.

अनिल – रश्मि, तुम्हारे बिना बेड सूना सा लगता है.

मेरे पति की ऐसी बातों से मैं उत्तेजित होने लगी थी. मैं दाएं हाथ में फोन को पकड़े हुई थी और मेरा बायां हाथ अपनेआप साड़ी के पल्लू के अंदर चला गया और ब्लाउज के ऊपर से मैं अपनी रसीली चूचियों को दबाने लगी.

अनिल – अब अपनी आँखें बंद कर लो. एक बार मुझे अपने सेबों को दबाने दो….. आह ……..

मेरी आँखें बंद थी और मैं कल्पना कर रही थी की अनिल मेरे सेबों को पकड़े हुए है और दबा रहा है.

अनिल – उम्म्म….बहुत मिस कर रहा हूँ जान तुम्हें.

“मुझे अपनी बाँहों में ले लो…”

अनिल – उम्म्म….रश्मि, एक बार मुझे किस करो ना.

“नही. मैं यहाँ से नही कर सकती.”

अनिल – क्यूँ ? शरमाती क्यूँ हो ? तुमने कहा था की वहाँ कोई नही है . फिर ?

क्या मुझमें कुछ शरम बची भी है, मैं सोचने लगी. लेकिन मेरे पति के लिए तो मैं वही पुरानी शर्मीली रश्मि थी.

अनिल – क्या हुआ जान ?

“हम्म्म ….ठीक है बाबा.”

मेरी साँसे तेज हो गयी थी और मेरी चूचियाँ ब्लाउज के अंदर टाइट हो गयी थी. मैंने इधर उधर देखा और फोन पे ज़ोर से अनिल को किस किया.

अनिल – तुम बहुत प्यारी हो रश्मि.

“उम्म….”

अनिल – आशा करता हूँ की तुम्हारे आश्रम के उपचार से हमें फल ज़रूर मिलेगा.

“उम्म…”

अनिल – रश्मि ?

मैं अभी भी अनिल के प्यार में खोई थी.

अनिल – तुम वापस कब आओगी ?

मैंने अपने पर काबू पाने की कोशिश की.

“हाँ , शायद परसों को .”

अनिल – ठीक है . तब तक मैं तुम्हें रोज़ फोन करूँगा.

मैं घबरा गयी , क्यूंकी आज रात से महायज्ञ होना था और गुरुजी ने बताया था की दो दिन तक चलेगा.

“अरे सुनो ना. अब यहाँ फोन मत करना . मैं जल्दी ही वापस आ तो रही हूँ. गुरुजी आश्रम में ज़्यादा फोन कॉल पसंद नही करते……”

अनिल – हम्म्म …मैं समझता हूँ. वो तो पवित्र जगह है. ठीक है जान, कुछ चाहिए होगा तो बता देना.

“तुम अपना ख्याल रखना और भगवान से प्रार्थना करना की ….”

अनिल – हाँ ज़रूर, ताकि तुम्हारा उपचार सफल हो जाए. बाय.

“बाय ..”

अनिल ने फोन काट दिया और मैंने रिसीवर रख दिया. बेचारा अनिल. वो कल्पना भी नही कर सकता की यहाँ मेरे साथ क्या क्या हुआ है भले ही वो मेरे उपचार का ही एक हिस्सा था. मेरा अभी भी गुरुजी पर पूर्ण विश्वास था और मुझे उम्मीद थी की महायज्ञ से वो मुझे माँ बनने में मदद करेंगे. ये सही है की मैंने भी अपने साथ घटी कुछ घटनाओ का मज़ा लिया था ख़ासकर की विकास और गोपाल टेलर के साथ. लेकिन मैं भी तो एक इंसान हूँ, 28 बरस की जवान औरत , मर्दों के मेरे बदन से छेड़छाड़ करने पर मैं कामोत्तेजित हुए बिना कैसे रह सकती थी.

यही सब सोचते हुए मैं अपने कमरे की तरफ वापस जा रही थी.

गोपाल टेलर – मैडम, किसका फोन था ?

“अनिल का. मेरा मतलब मेरे पति का….”

कहानी जारी रहेगी
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#75
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

परिधान'

Update -22


अंतर्वस्त्र- पैंटी




कमरे में आते समय मैं ख्यालों में खोई हुई थी और मुझे ध्यान ही नही रहा की मेरा पल्लू ब्लाउज के ऊपर से खिसक गया है. जैसे ही मेरी नज़रें दीपू से मिली तो मैंने उसे अपनी चूचियों को ताकते पाया. तुरंत मैंने अपने पल्लू को ठीक किया और अपने ख़ज़ाने को ढक लिया. मेरी साँसे अभी भी तेज चल रही थी और इससे चूचियाँ तेज़ी से ऊपर नीचे गिर रही थी.

दीपू – मैडम, वो तो आपको बहुत मिस कर रहे होंगे.

दीपू शरारत से मुस्कुराया. मैं उसका इशारा समझ रही थी.

गोपाल टेलर – तब तो उनसे बात करके आपको ताज़गी महसूस हो रही होगी.

“बिल्कुल. ऐसा लग रहा था की ना जाने कितने लंबे समय से मैंने अनिल से बात नही की है.”

गोपाल टेलर – मैडम, काम शुरू करें फिर ?

“हाँ ज़रूर. अब क्या बचा है ?”

मैं अभी भी अनिल के ख्यालों में खोई हुई थी और टेलर की बातों में ध्यान नही दे रही थी. मेरे पति की प्यार भरी अंतरंग बातों से मुझमें मस्ती छाई हुई थी. गोपालजी अनुभवी आदमी था और शायद उसने मेरी भावनाओ को समझ लिया.

गोपाल टेलर – मैडम, मुझे आपके अंतर्वस्त्र भी तो सिलने हैं क्यूंकी महायज्ञ में आप अपने अंतर्वस्त्र नही पहन सकती.

“ओहो…. हाँ .”

तभी मुझे कुछ याद आया.

“गोपालजी आपको मैंने अपनी एक पुरानी समस्या बताई थी, उसे भी जरूर ठीक कर देना. आपको याद है ?”

गोपालजी – हाँ मैडम, आपकी पैंटी की समस्या. मैं उसको भी ज़रूर ठीक कर दूँगा. मैं आपके लिए कुछ और पैंटीज भी सिल दूँगा जिनको आप अपने घर वापस जाकर यूज कर सकती हो.

मैं मुस्कुरायी और हाँ में सर हिला दिया.

“गोपालजी आपका शुक्रिया. मैं काफ़ी समय से इस समस्या से परेशान हूँ.”

गोपालजी – मैडम, अपने कस्टमर्स की परेशानियों को हल करना ही मेरा काम है, है की नही ?

हम दोनो एक दूसरे को देखकर मुस्कुराए. अपने पति से बात करके मैं बहुत हल्का महसूस कर रही थी.

गोपालजी – मैडम, आपकी समस्या ये है की कुछ समय बाद आपकी पैंटी बीच की तरफ सिकुड़ने लगती है. यही है ना ?

“हाँ, यही है.”

उस समय मेरा मन ऐसा हल्का हो रखा था की अपने टेलर से पैंटी की बात करते हुए मुझे बिल्कुल भी शरम नही आ रही थी.

गोपालजी – मैडम, जैसा की मैंने आपको बताया था की आपको नॉर्मल की बजाय मेगा साइज़ की पैंटी पहननी है. इसलिए अब जब भी आप शॉपिंग करने जाओगी तो डेसी मेगा ही लेना.

मैंने बेशर्मी से उसके इस सुझाव पर सर हिलाया.

“हाँ, अब मैं वही लूँगी.”

गोपालजी – मैडम, अगर एक मुझे मिल जाती तो……

मुझे समझ नही आया की गोपालजी क्या मांग रहा है और मैं एक बेवकूफी भरा सवाल कर बैठी.

“क्या मिल जाती?”

गोपालजी – मैडम, कोई एक्सट्रा पैंटी हो तो …

“अरे …अच्छा…..एक मिनट…”

मैं जल्दी से अलमारी की तरफ गयी और एक पैंटी निकालकर टेलर को दे दी.

गोपालजी – शुक्रिया मैडम.

दीपू अब नज़दीक़ आ गया शायद मेरी पैंटी देखने के लिए.

गोपालजी – मैडम देखो, आपकी समस्या का मुख्य कारण.

ऐसा कहते हुए गोपालजी ने पैंटी के एलास्टिक को खींचा और पैंटी के पीछे का हिस्सा मुझे दिखाया. अब मुझे असहज महसूस होने लगा.

गोपालजी – देखो मैडम, यहाँ पर कपड़ा इतना छोटा है की ये आपके नितंबों को ठीक से नही ढक रहा है और एलास्टिक भी बेकार है. ग्रिप ढीली होने से ये आपके नितंबों पर फिसलकर सिकुड जा रही है.

“अच्छा…”

गोपालजी मेरी पैंटी पकड़कर दिखा रहा था और दीपू गौर से उसे देख रहा था. अब मैं अनकंफर्टेबल फील करने लगी थी.

गोपालजी – देखो मैडम, एलास्टिक इतना ढीला है.

“लेकिन गोपालजी जब मैंने ये खरीदी थी तब ठीक था , कई बार धुलने के बाद एलास्टिक ढीला हो ही जाता है.”

गोपालजी – लेकिन अगर कमर पे ठीक से ग्रिप नही बनेगी तो पैंटी अपनी जगह से खिसक जाएगी और आपको समस्या होगी.

“वो तो ठीक है पर धुलने के बाद तो कोई भी पैंटी ढीली हो ही जाएगी.”

गोपालजी – लेकिन मैडम, तब उस पैंटी को फेंक दो और नयी पैंटी यूज करो.

“अगर बार बार मुझे ऐसे ख़रीदनी पड़ेंगी तब तो मुझे किसी अंडरगार्मेंट वाले से शादी करनी पड़ेगी.”

मेरी बात पर सभी हंस पड़े. कमरे का माहौल हल्का हो जाने से मेरी असहजता भी थोड़ी कम हुई.

दीपू – गोपालजी जो पैंटी आप सिलते हो उसको भी तो कस्टमर्स मैडम के जैसे धोते होंगे. वो कितना चलती हैं ?

गोपालजी – दीपू , मैं अच्छी क्वालिटी का एलास्टिक लगाता हूँ और अगर गुनगुने पानी में धोया जाए तो 6 महीने चल जाएँगी.

दीपू – मैं शर्त लगा सकता हूँ की मैडम ठंडे पानी से पैंटी धोती होगी.

मैंने हाँ में सर हिला दिया.

गोपालजी – मैडम, ये भी आपकी समस्या का एक कारण है. आपको अपनी ब्रा भी ठंडे पानी से नही धोनी चाहिए.

“ठीक है मैं कोशिश करूँगी पर हर बार गुनगुने पानी से धोना मुश्किल है.”

गोपालजी – मैडम, आप फिकर मत करो. मैं आपकी समस्या ठीक कर दूँगा.

“ठीक है.”

गोपालजी – दीपू क्या तुम बता सकते हो की किसी औरत के लिए पैंटी में बैक कवरेज कितनी होनी चाहिए ?

दीपू – मेरे ख्याल से 50%.

गोपालजी – बिल्कुल सही. और मैडम के जैसी बड़े साइज़ वाली के लिए और भी ज़्यादा होना चाहिए. इसके बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है ?

गोपालजी ने अपने हाथ में पकड़ी हुई पैंटी की तरफ इशारा किया.

दीपू – ये तो पूरी खींचकर भी 25% से ज़्यादा नही कवर करेगी. मैडम के तो इतने बड़े हैं…..

गोपालजी – सिर्फ़ 25% ?

दीपू – जी मुझे तो यही लगता है.

गोपालजी – दीपू ऐसा कैसे हो सकता है ?

दीपू – कपड़ा तो देखिए, ये ज़्यादा खिंचेगा नही.

गोपालजी – हाँ बहुत अच्छी क्वालिटी का नही है. फिर भी सिर्फ़ 25% ? ये कोई थोंग थोड़े ही है.

थोंग ? ये क्या होता है. जो भी हो लेकिन कोई कम कपड़े वाली चीज़ है, मैं सोच रही थी.

दीपू – गोपालजी, मैडम कोई इतनी मॉडर्न थोड़े ही है जो थोंग पहनेगी. ये तो पहली बार इसका नाम सुन रही होगी….हा हा हा……

दीपू की हँसी इतनी इरिटेटिंग थी की मैंने अपने दाँत निचले होंठ में गड़ा दिए. लेकिन उसकी बात सही थी की मैं पहली बार थोंग का नाम सुन रही थी.

गोपालजी – हाँ ये तो है. मैडम मेट्रो सिटी में तो रहती नही ,तो वो कैसे जानेगी.

वो दोनो मुस्कुरा रहे थे.

गोपालजी –मैडम, दीपू ने कहा की आपकी पैंटी नितंबों को सिर्फ़ 25% ढकेगी , इसलिए मैंने थोंग का नाम लिया. मेरा अंदाज़ा है की आपको नही मालूम की थोंग क्या होता है ?

मैंने ना में सर हिला दिया.

गोपालजी – मैडम, थोंग पैंटी के जैसा ही होता है पर छोटा होता है. इसमें आगे V शेप में कपड़ा होता है और पीछे से डोरी या थोड़ा सा कपड़ा होता है. आजकल बड़े शहरों में मॉडर्न लड़कियाँ इसे पहनती हैं.

वो थोड़ा रुका और सीधे मेरी आँखों में देखा.

गोपालजी – मैडम अगर आप साड़ी या सलवार कमीज़ के अंदर थोंग पहनोगी तो कपड़ों के अंदर आपकी पूरी गांड खुली रहेगी. मुझे लगता है पैंटी सिकुड़ने से आपको सेम वही फीलिंग आती होगी.

उस टेलर की विस्तार से कही बातों से मेरा चेहरा लाल होने लगा था और अब मैं इस बात को समाप्त करना चाहती थी.

“हम्म्म …”

गोपालजी – मैडम, सही कहा ना मैंने ?

“हाँ …”

मेरे पास उसकी बात सुनने के अलावा और कोई चारा नही था.

दीपू – गोपालजी अगर मैडम थोंग पहने तो क्या नज़ारा होगा.

गोपालजी – क्यूँ ?

दीपू – मैडम की गांड देखो. कितनी बड़ी है, बिल्कुल गोल और बहुत मांसल है.

गोपालजी – हे..हे….ये तो सही है. मैडम, दीपू ग़लत नही कह रहा है.

“गोपालजी , काम पर लौटें ?”

गोपालजी – जी जी मैडम. फालतू की बातें हो गयी.

दीपू – गोपालजी एक काम करो.

गोपालजी – क्या ?

दीपू – मैडम की पैंटी ऐसे पकड़ो फिर मेरी बात समझ में आ जाएगी.

गोपालजी – देखते हैं.

गोपालजी ने मेरी पैंटी को एलास्टिक से पकड़कर अपने चेहरे के आगे पकड़ा और दीपू ने उसके कपड़े को दोनो हाथों से खींचा और दिखाया की मेरी बड़ी गांड को ये कितना ढकेगी.

मैं हैरान थी की ये दोनो कर क्या रहे हैं. इतने आराम से मेरी पैंटी के बारे में बातें कर रहे हैं और वो भी मेरे सामने. चीज़ें मेरे काबू से बाहर होते जा रही थी पर मैं कुछ नही कर सकती थी.

दीपू – देखो गोपालजी. सिर्फ़ इतना खिंच रहा है और मैडम की गांड देखो .

दोनो मर्द मेरी साड़ी से ढकी हुई गांड की तरफ देखने लगे. लेकिन मेरा मुँह उनकी तरफ था इसलिए उन्हे ठीक से नही दिखा.

गोपालजी – मैडम, थोड़ा पीछे को घूम सकती हो ? हमें देखना है की आपकी पैंटी में कितना कपड़ा और लगाने की ज़रूरत है ताकि ये ठीक से ढके और बीच में ना सिकुड़े.

“लेकिन …मेरा मतलब…”

गोपालजी – मैडम , आप हिचकिचा क्यों रही हो ? आपको कुछ नही करना है, बस पीछे मुड़ जाओ.

मैं कुछ कर पाती इसे पहले ही उस टेलर ने अपने सवाल से मुझे चित्त कर दिया.

गोपालजी – मैडम, अभी आपने पैंटी पहनी है ?

“क्या ???”

गोपालजी – मेरा मतलब, अभी आप टॉयलेट गयी थी तो हो सकता है की आपने उतार दी हो….इसलिए मैं पूछ रहा हूँ.

जाहिर था की ऐसे सवाल से मैं इरिटेट हो गयी थी. मैंने फर्श की तरफ देखा और हाँ में सर हिला दिया. मुझे एक मर्द के सामने ऐसे सवाल का जवाब देते हुए इतनी शरम आई की मन हुआ दौड़कर कमरे से बाहर चली जाऊँ.

“नही , लेकिन…”


कहानी जारी रहेगी
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#76
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

परिधान'

Update -23


पैंटी की समस्या





गोपालजी – नही ? आपने नीचे कुछ नही पहना है ?

“ओह..नही नही. मैंने पहनी है.”

गोपालजी – आपने कहा नही. …चलो बढ़िया.

वो बातें करते हुए मेरी जवानी को देख रहा था. मैंने आश्चर्य से गोपालजी को देखा. मैंने पैंटी पहनी है तो इसमें बढ़िया क्या है , मुझे समझ नही आया.

गोपालजी – मैडम मैं अभी चेक करता हूँ. आपको फिर कभी पैंटी की समस्या नही होगी. प्लीज़ एक बार पीछे को मुड़ो.

मैं उलझन में थी. अब ये क्या करनेवाला है ? ये कैसे चेक करेगा ? मेरी पैंटी मेरी बड़ी गांड को कितना ढकती है ये चर्चा का विषय था पर क्या गोपालजी मेरी साड़ी को कमर तक उठाकर ये चेक करेगा ?

हे भगवान…. ऐसा नही हो सकता…

क्या वो मेरी साड़ी के अंदर हाथ डालकर ये चेक करेगा ? मेरे होंठ सूखने लगे थे और मुझे बहुत फिकर होने लगी थी.

गोपालजी – मैडम मैं अभी चेक करता हूँ. आपको फिर कभी पैंटी की समस्या नही होगी. प्लीज़ एक बार पीछे को मुड़ो.

मैं उलझन में थी. अब ये क्या करनेवाला है ? ये कैसे चेक करेगा ? मेरी पैंटी मेरी बड़ी गांड को कितना ढकती है ये चर्चा का विषय था पर क्या गोपालजी मेरी साड़ी को कमर तक उठाकर ये चेक करेगा ?

हे भगवान…. ऐसा नही हो सकता…

क्या वो मेरी साड़ी के अंदर हाथ डालकर ये चेक करेगा ? मेरे होंठ सूखने लगे थे और मुझे बहुत फिकर होने लगी थी.

खुशकिस्मती से ऐसा कुछ नही हुआ पर मेरे पति से फोन पे बात करने से जो खुशी मुझे मिली थी वो अब गायब होने लगी थी क्यूंकी मुझे डर सताने लगा था की टेलर फिर से मेरे साथ छेड़छाड़ करेगा.

गोपालजी – मैडम, जो समस्या आप बता रही हो, वो अभी इस समय भी हो रही है ?

“नही नही, अभी तो बिल्कुल ठीक है.”

मैंने कमज़ोर सी आवाज़ में जवाब दिया.

गोपालजी – हुह ….आपके कहने का मतलब है की आपकी पैंटी पूरी ढकी हुई है …..आपकी गांड को ?

मैं उन दोनो टेलर्स के मुँह से बार बार गांड शब्द सुनकर अजीब महसूस कर रही थी लेकिन मुझे अंदाज़ा था की ये लोवर क्लास के आदमी हैं और ऐसे शब्दों का प्रयोग बोलचाल में करते हैं.

“हाँ, मुझे ठीक लग रहा है…”

गोपालजी – लेकिन मैडम, अभी तो आपने बताया था की पहनने के कुछ समय बाद पैंटी नितंबों से खिसकने लगती है , है ना ?

“हाँ लेकिन …”

मेरे अंतर्वस्त्र के बारे में ऐसे डाइरेक्ट सवालों से मैं हकलाने लगी थी .

दीपू – गोपालजी, मेरे ख्याल से मैडम के कहने का मतलब है की पैंटी पहनने के कुछ समय बाद, अगर वो चलती है या कोई काम करती है तो उसे समस्या होने लगती है. सही कह रहा हूँ मैडम ?

“हाँ, हाँ. बिल्कुल यही मेरे कहने का मतलब था.”

गोपालजी – अच्छा. चूँकि आप इस कमरे में ज़्यादा हिली डुली नही हो तो आपको अभी पैंटी की समस्या नही है. मैडम ये बताओ की क्या पैंटी आपकी दरार में पूरी घुस जाती है ….मेरा मतलब गांड की दरार में ?

अब तो मुझे टोकना ही था. अब मैं और ज़्यादा बर्दाश्त नही कर पा रही थी.

“क्या मतलब है आपका ? ये कैसा सवाल है ?”

गोपालजी – मैडम, मैडम, प्लीज़ बुरा ना मानो. मुझे मालूम है की ये अंतरंग किस्म के सवाल हैं और आपको जवाब देने में शरम महसूस हो रही है. लेकिन अगर आप पूरी डिटेल नही बताओगी तो मैं समस्या को हल कैसे करूँगा ?

कहानी जारी रहेगी
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#77
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

‘ परिधान'

Update -24

ड्रेस डॉक्टर पैंटी की समस्या 






दीपू – मैडम, गोपालजी आपके डॉक्टर की तरह हैं. आपके ड्रेस डॉक्टर.

कमरे में कुछ देर चुप्पी छाई रही. दीपू और गोपालजी मुझे देख रहे थे और मैं अपने सूखे हुए होठों को गीला करके उन दोनो मर्दों के सामने अपने कॉन्फिडेंस को वापस लाने की कोशिश कर रही थी.

गोपालजी – हाँ, हाँ. मैडम, आप अपने डॉक्टर को अंतरंग बातें बताती हो की नही ?

मुझे जवाब में सर हिलाना पड़ा.

गोपालजी – ये भी उसी तरह है. मैडम हिचकिचाओ नही. मुझे बताओ की पैंटी पूरी तरह से नितंबों से फिसलकर आपकी गांड की दरार में घुस जाती है ? मेरा मतलब दोनो तरफ से ? क्या आप इसको चेक करती हो ?

मेरा चेहरा टमाटर की तरह लाल हो गया था. मेरे कान गरम होने लगे थे और मेरी साँसे तेज हो गयी थी. मेरा वर्बल ह्युमिलिएशन हो रहा था और मुझे लग रहा था की मैं फँस चुकी हूँ. मैं उनसे बहस कर सकती थी लेकिन इससे आश्रम के और लोग भी वहाँ आ सकते थे. सभी के सामने तमाशा होने से मैं बचना चाहती थी. इसलिए मैंने चुप रहना ही ठीक समझा और अपने ह्युमिलिएशन को सहन कर लिया क्यूंकी जो भी हो रहा था वो इस बंद कमरे से बाहर नही जाएगा.

“नही…मेरा मतलब ज़्यादातर हिस्सा अंदर चला जाता है…”

गोपालजी – मुझे ठीक से समझ नही आया. देखो मैडम, अगर आप साफ साफ नही बताओगी तो मैं पैंटी के लिए सही कपड़े का चुनाव नही कर पाऊँगा.

मुझे समझ आ रहा था की अगर मुझे ये किस्सा बंद करना है तो बेशरम बनना पड़ेगा.

“मेरा मतलब है की पैंटी का कपड़ा सिकुड़कर इकट्ठा हो जाता है और अंदर चला जाता है …मेरा मतलब..वहाँ…”

गोपालजी – हम्म्म …..आपका मतलब है की कपड़ा एक रस्सी की तरह लिपट जाता है और आपकी दरार में घुस जाता है , ठीक ?

मैंने सर हिला दिया.

गोपालजी – हम्म्म …मैडम, इसका मतलब आपके पेटीकोट के अंदर आपकी गांड पूरी नंगी रहती है.

मैं गूंगी की तरह चुप रही. ये तो साफ जाहिर था की अगर मेरी पैंटी सिकुड़कर दरार में घुस जाती है तो मेरे नितंब नंगे रहेंगे. वो मुझसे इसका क्या जवाब चाहता था ?

वैसे उसकी बात सही थी क्यूंकी असल में होता तो यही था.

गोपालजी – दीपू तुम्हे समस्या समझ में आई ?

दीपू – जी. ये पदमा मैडम की समस्या की तरह ही है.

गोपालजी – पदमा मैडम ? कौन पदमा ?

दीपू – जी आप उनको नही जानते. पिछले साल मैं शहर की एक दुकान में काम कर रहा था ये तब की बात है.

गोपालजी – अच्छा. मेरी एक कस्टमर भी पदमा है पर वो मुझसे सिर्फ ब्लाउज सिलवाती है.

मैं उन दोनो मर्दों की बातचीत सुन रही थी.

गोपालजी – मैडम, सुना आपने. ये सिर्फ आपकी समस्या नही है. दीपू उसकी क्या समस्या थी ?

दीपू – जी, पदमा मैडम की समस्या ये थी की चलते समय उसकी पैंटी दाहिनी साइड से सिकुड़कर बीच में आ जाती थी.

“और इस समस्या का हल कैसे निकला ?”

पहली बार मैं जवाब सुनने के लिए उत्सुक थी.

दीपू – उसकी टाँगों की लंबाई में थोड़ा सा अंतर था और ये जानने के बाद हमने उसी हिसाब से उसकी पैंटी सिल दी और उसकी समस्या दूर हो गयी.

गोपालजी – मैडम, मैंने पहले भी बताया है की सबसे पहले आपकी पैंटी में पीछे से ज़्यादा कपड़ा चाहिए. उसके अलावा थोड़ा सा मोटा कपड़ा और एक अच्छा एलास्टिक लगा देने से आपकी समस्या हल हो जाएगी.

“ठीक है गोपालजी.”

गोपालजी – दीपू नोट करो की जब मैं मैडम की पैंटीज सिलू तो ट्विल कॉटन 150 यूज करना है.

दीपू ने अपनी कॉपी में नोट कर लिया.

गोपालजी – ठीक है मैडम, अब प्लीज़ पीछे मुड़ो और मैं साबित करता हूँ की दीपू की बात ग़लत है.

मैं तो बिल्कुल भूल ही गयी थी की गोपालजी और दीपू के बीच मेरी पैंटी के बैक कवरेज को लेकर बहस हुई थी. और अब जबकि मैं इस वर्बल ह्युमिलिएशन को सहन कर रही थी तो अब फिज़िकल ह्युमिलिएशन की बारी आने वाली थी.

गोपालजी – मैडम, प्लीज़ टाइम वेस्ट मत करो.

मैंने दांतों में होंठ दबाए और धीरे से पीछे को मुड़ने लगी. मेरी पीठ और बाहर को उभरे हुए नितंब दीपू और गोपालजी को ललचा रहे थे. मैं ऐसे खड़े होकर शरम से मरी जा रही थी क्यूंकी मुझे मालूम था की उन दोनो मर्दों की निगाहें मेरी कद्दू जैसी गांड पर ही गड़ी होंगी.

गोपालजी – शुक्रिया मैडम. दीपू अब मुझे ये बताओ की मैडम की पैंटी लाइन कहाँ पर है.

दीपू – जी अभी देखकर बताता हूँ.

पैंटी लाइन ? मेरे दिल की धड़कने रुक गयी. पर इससे पहले की मैं और कुछ सोच पाती मुझे साड़ी से ढके हुए अपने नितंबों पर हाथ महसूस हुए जो की मेरे नितंबों को कसके पकड़े हुए थे. दीपू ने अपने हाथों से दो तीन बार मेरे नितंबों को दबाया और मेरे होंठ अपनेआप खुल गये. मेरा सांस लेना मुश्किल हो गया और मैंने अपनी भावनाओ पर काबू पाने की भरसक कोशिश की.

गोपालजी – मैडम के कपड़ों के बाहर से तुम्हे पैंटी महसूस हो रही है क्या ?

दीपू – जी गोपालजी.

ऐसा कहते हुए उसने मेरे मांसल नितंबों पर अपनी अँगुलियाँ फिरानी शुरू की और जल्दी ही उसको मेरी साड़ी और पेटीकोट के बाहर से पैंटी लाइन मिल गयी. मुझे महसूस हुआ की दीपू मेरी भारी गांड के सामने झुक गया है और अपने घुटनो पर बैठकर दोनो हाथों से मेरी पैंटी के कपड़े के ऊपर हाथ फिरा रहा है. इस हरकत से कोई भी औरत कामोत्तेजित हो जाती और मैं भी अपवाद नही थी.

दीपू के हाथों को मैं अपनी बड़ी गांड के ऊपर घूमते हुए महसूस कर रही थी और अब पैंटी को छोड़कर उसकी अँगुलियाँ बीच की दरार की तरफ बढ़ गयी. लगता था की दीपू को मेरे नितंबों का शेप बहुत पसंद आ रहा था और जैसे जैसे उसकी अँगुलियाँ मेरी साड़ी को बीच की दरार में धकेल रही थी वैसे वैसे मेरे नितंबों का उभार सामने आ रहा था.

गोपालजी – क्या हुआ ? लगता है तुम्हे मैडम की बड़ी गांड बहुत भा गयी है ….हा हा हा…..

टेलर की हँसी कमरे में गूँज रही थी और उन दोनो मर्दों के सामने मेरी हालत को बयान कर रही थी.

दीपू – गोपालजी चाहे आप कुछ भी कहो पर मैडम की गांड बहुत ही शानदार है. सुडौल भी है और मक्खन की तरह चिकनी और मुलायम भी है . क्या माल है.

मैं अपने दांतों से होंठ काट रही थी और उनके अश्लील कमेंट्स को नज़रअंदाज करने की कोशिश कर रही थी. लेकिन मेरा बदन इन कामुक हरकतों को नज़रअंदाज़ नही कर पा रहा था.

मुझे साफ समझ आ रहा था की पैंटी लाइन ढूंढने के बहाने दीपू मेरे नितंबों से मज़े ले रहा है. उसने मेरे बाएं नितंब पर अपना अंगूठा ज़ोर से दबा दिया और बाकी अंगुलियों से मेरी पैंटी लाइन के एलास्टिक को पकड़ लिया. मेरा बदन इतना गरम होने लगा था की मुझे हल्के से हिलना डुलना पड़ा. मुझे खीझ भी हो रही थी और कामोत्तेजना भी. दीपू मेरी बड़ी गोल गांड को दोनो हाथों से दबाने में मगन था. सच कहूँ तो उसकी इस कामुक हरकत से मैं कामोत्तेजित होने लगी थी. वो पैंटी लाइन ढूँढने के बहाने बिना किसी रोक टोक के मेरे नितंबों को मसल रहा था.

दीपू – गोपालजी, मिल गयी पैंटी लाइन , ये रही.

ऐसा कहते हुए उसने मेरी साड़ी के बाहर से मेरी पैंटी के किनारों पर अपनी अंगुली फेरी. उत्तेजना से मेरे बदन में इतनी गर्माहट हो गयी थी की मेरा मन हो रहा था की साड़ी उतार दूं और सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी रहूं.

गोपालजी – कहाँ ? मुझे देखने दो.

मुझे एहसास हुआ की अब गोपालजी भी मेरे पीछे दीपू के पास आ गया. वो भी झुक गया और मेरी उभरी हुई गांड के पास अपना चेहरा ले आया. क्यूंकी दीपू लगातार मेरे नितंबों पर हाथ फेर रहा था इसलिए मैं स्वाभाविक रूप से हल्के से अपनी गांड को हिला रही थी. मैं जानती थी की दो मर्दों के सामने इस तरह साड़ी के अंदर मेरी भारी गांड को हिलाना बड़ा भद्दा लग रहा होगा लेकिन ऐसा करने से मैं अपनेआप को रोक नही पा रही थी.

अब मुझे एहसास हुआ की गोपालजी का हाथ भी मेरी गांड को छू रहा है.

गोपालजी – हम्म्म …मैडम, मुझे पैंटी लाइन को महसूस करने दो तभी मुझे मालूम पड़ेगा की ये आपके नितंबों को कितना ढक रही है.

कहानी जारी रहेगी
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#78
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

परिधान'

Update -24


परिक्षण निरक्षण





मुझे कुछ भी बताने की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि मैंने पहले ही मास्टर जी के आगे व्यवाहरिक रूप से घुटने टेक दिए थे। मास्टर जी ने दीपु के हाथ को मेरे बाएं नितम्ब के गाल से हटा दिया और सीधे मेरे नितम्ब को अपने हाथ से वहाँ दबाया. मैंने महसूस किया कि मास्टर-जी का हाथ उनके प्रशिक्षु की तुलना में बोल्ड था। उसने तुरंत मेरी गांड पर चकोटि काट कर मुझे संकेत दिया कि यह उसका हाथ है। दीपु की उँगलियाँ अभी भी मेरे दाहिने नितम्ब पर मेरी पैंटी की लाइन पर टिकी हुई थीं।

मेरी साड़ी और पेटीकोट इन मर्दो के हाथों से मुझे सुरक्षा देने के लिए प्राप्त रूप से मोटी नहीं थी। इस प्रकार दीपक की तरह मास्टर-जी भी अपने हाथ की दो से तीन अंगुलियों से मेरी पैंटी को आसानी से पकड़ लिया । मास्टर-जी ने मेरी पैंटी लाइन के पीछे से अपनी उंगलियाँ मेरे बाएँ नितंब पर घुमाना शुरू कर दिया। इस बिंदु पर मैं यौन उत्तेजना में कांप रही थी क्योंकि और नीचे ... और नीचे ... और नीचे हाथ ले जाते हुए उसने मेरी पैंटी लाइन का पता लगाना रब ताज जारी रखा जब तक वह मेरी गांड की दरार तक नहीं पहुँच गया! मैं उस सेक्सी हॉट लहर को सहन नहीं कर सकी और मेरे शरीर को झकझोर कर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की।

मैं: आह! आउच! आप मास्टर जी क्या ... क्या कर रहे हैं?

मास्टर-जी: मैडम, मैडम बस एक पल के लिए धीरज रखिए। मेरी जाँच लगभग समाप्त हो गई है।

मैंने उसी स्थिति में खड़ी रही और मेरे पैरों और मेरी टांगों के बीच थोड़ी सी दूरी की ( ईमानदारी से कहू तो मास्टर जी का हाथ को मेरी गाण्ड तक आसानी से पहुँचने देने के लिए ) हालाँकि इससे मुझे सेक्सी बेचैनी से क्षणिक राहत तो मिली, लेकिन मास्टर-जी ने अगले ही क्षण एक नया 'निरीक्षण' शुरू किया! I

मास्टर जी ने मेरी पूरी गांड की दरार तक मेरी पैंटी लाइन को ट्रेस करते हुए मेरी गाण्ड से अपना हाथ हटा दिया। मैंने खुले मुंह के साथ राहत की सांस ली, तभी मैंने महसूस किया कि मास्टर-जी ने अपनी पूरी हथेली से मेरे बाएं नितंब पर बहुत कस कर निचोड़ दिया।



मेरे निपल्स ने तुरंत उस पर प्रतिक्रिया दी और मेरी ब्रा के भीतर पूरी तरह कठोर हो सीधे हो गए थे। स्वचालित रूप से जो कुछ भी थोड़ी बहुत शर्म मेरे अंदर रह गई थी, वह भाप बन कर उड़ गई, और मैंने अपनी साड़ी और ब्लाउज के ऊपर अपने स्तनो की मालिश करना शुरू कर दिया और साथ ही साथ अपने भारी कूल्हों को धीरे-धीरे लहराने लगी । मुझे नहीं पता था कि मास्टर-जी और दीपू ने मुझे बहुत सेक्सी कर्म करते देखा था या नहीं , लेकिन उन्होंने अपने हाथों से मेरे पूरे विकसित नितम्बो को ऐसे दबाया जैसे मधुमखियो के छत्ते से शहद निकाला जाता है ।




[Image: PL1.jpg] 
[Image: PL2.jpg] 
[Image: PL3.jpg]


मास्टर-जी: ठीक है हो गया मैंने चेक कर लिया ।

दीपू : तो, मास्टर-जी, मैं सही था या गलत?

मास्टर जी का परिक्षण निरक्षण कुछ और क्षणों के लिए चला और आखिरकार जब उन्होंने अपने हाथो को रोका तो मेरी साडी स्वाभाविक रूप से उसकी उंगली के साथ-साथ मेरी जांघों के बीच मेरी गहरी गांड की दरार में समा गयी थी ।

मास्टर-जी: हां दीपू , मुझसे गलती हो गई थी। तुम ठीक कह रहे थे।

यह कहते हुए कि उसने फिर से मेरे नितम्बो पर एक लम्बी सी चुटकी इस तरह काटी मानो वह छोटी लड़की के गालों को दो उंगलियों से निचोड़ रहे हो ! मैं परमानंद में जोर-जोर से सांस ले रही थी , लेकिन फिर भी मैंने अपने आप की नार्मल दिखाने की को वापस पाने की कोशिश की।

मास्टर-जी: मैडम, मुझे कहना होगा कि आप मेरे अन्य ग्राहकों से काफी अलग हैं! हालाँकि अभी भी मेरी साड़ी से ढँकी गाण्ड पर उनके दो हाथ थे, सौभाग्य से अब उनके हाथ ज्यादातर स्थिर थे।

मैं: क्या… मेरा मतलब है कैसे? मैंने कर्कश आवाज में पूछा। मास्टर-जी: मैडम, क्या आपने कभी पैंटी पहनने के बाद शीशे में अपनी पीठ चेक की है?

ये कैसा प्रश्न है! मैंने खुद को हो रही असुविधा को नजरअंदाज करते हुए मैंने अपने होंठों को गीला कर दिया और जवाब देने की शुरुआत की!

मैं: हम्म। बेशक, लेकिन ... लेकिन आप क्यों पूछ रहे हैं ?

जैसा ही मैंने उत्तर दिया मैं तुरंत महसूस किया कि मास्टर-जी और दीपू के दोनों हाथों में हलचल हुई , हालाँकि मैंने 'निश्चित रूप से' कहा था, लेकिन असलियत में मुझे शायद ही टॉयलेट में आईने में खुद को इस तरह से जाँचने का मौका मिलता है कि मैं जब अपनी पोशाकें पहनूँ तो उसमे अपना पूरा जिस्म और पोशाक देख सकू । हमारा बाथरूम मिरर में केवल ऊपरी हिंसा दिखाई देता है और इसलिए मुझे अपना फुल फिगर चेक करने के लिए बैडरूम में आना पड़ता है, और बाथरूम से केवल अपने अंदर के कपड़े पहनना और फिर ऐसे ही बाहर आना बहुत मुश्किल है और यहां तक कि अगर मैं ऐसा करती हूं, और अगर अनिल आसपास होता है , तो वह निश्चित रूप से मुझे इस हाल में खुद को दर्पण में जांचने नहीं देगा, बल्कि मुझे अपनी बाहों में ले लेगा और निश्चित रूप से एक ही पल में में मेरे अंडरगारमेंट भी उतर जाएंगे ।

मास्टर-जी: अगर ऐसा है, तो आप अपवाद हैं, मैडम, क्योंकि मेरा कोई भी ग्राहक अपनी साड़ियों के नीचे अपने गोल नितम्बो का इतना एक्सपोज़र नहीं होने देती ।

मैं फिर से बोल्ड हो गयी ! यह बूढ़ा व्यक्ति क्या ये संकेत देने की कोशिश कर रहा है की मैं एक साहसी महिला हूँ? मैंने तुरंत अपने दर्जी के सामने अपनी स्थिति सुधारने की कोशिश की कि 'मैं ऐसी नहीं हूं'।

मैं : नहीं, नहीं मास्टर-जी, वास्तव में जब मैं इसे पहनती हूं, मैं इसे अपनी पीठ पर ठीक से फैलाना सुनिश्चित करती हूं ताकि मैं सभ्य दिखूं ... मेरा मतलब है ... ताकि मैं अपनी साड़ी के नीचे सभ्य महसूस करूं।

मास्टर-जी: लेकिन मैडम, जरा देखिए। आपकी पैंटी लाइन यहाँ है ...

यह कहते हुए कि उसने मेरी पैंटी लाइन को फिर से बाईं गांड पर खींच दिया और इस बार उसने अपनी उंगली मेरी गांड के मांस पर ज़ोर से दबाकर मुझे पैंटी की पोज़िशन देखने के लिए कहा। मास्टर-जी: मैडम, आपकी दरार से सिर्फ चार-पाँच उंगलियाँ ढक रही है और आपका पूरा का पूरा बायाँ नितम्ब इसके बाद नंगे है। मेरा मतलब है कि आपकी नितम्ब पैंटी से ढँकी नहीं हुई है ।

मैं : यह ... जरूर अपनी जगह से हिल गयी होगी

मास्टर-जी: ठीक है। लेकिन फिर भी मुझे लगता है कि मैडम आप अपने नितम्बो का का अधिकतर हिस्सा अपनी पैंटी के बाहर रखते हैं।

दीपू: मास्टर-जी, मैडम के पास इतना अच्छा खज़ाना है, इसे पूरी तरह से कवर करके क्यों रखना चाहिए?

मास्टर-जी: नहीं, नहीं। वह ठीक है। लेकिन मैं केवल यह कह रहा था कि मेरे अन्य ग्राहक ...

मैंने दीपू की टिप्पणी पर आपत्ति की ।

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#79
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

परिधान'

Update -25

आपत्तिजनक निरक्षण



मैंने आपत्तिजनक लहजे में दीपू से कहाः

मैं: दीपू आपका क्या मतलब है? मैं ऐसा जानबूझकर करती हूं?

दीपू: नहीं नहीं मैडम। मैंने तो ऐसे ही कहा । आपने कहा था ... इसे पहनने के बाद आप इसे अपनी गाँड पर फैला देती हो ...अब आप इससे ज्यादा और क्या कर सकते हैं?

दीपू ने समझौतावादी लहजे में कहा जो मुझे अच्छा लगा ।

मास्टर-जी: ठीक है! यदि पैंटी में ही दोष है, तो पहनने वाली क्या कर सकती है।

दीपू: तो मास्टर जी तो यह मैडम की समस्या का मुख्य कारण है?

मास्टर-जी: जाहिर है। जरा तुम खुले भाग को देखो … यह कहते हुए कि मास्टर जी ने अपने अंगूठे और मध्यमा उंगली के बीच एक गैप बनाया और दीपू को मेरी गांड के मांस के ऊपर की दूरी दिखाने की कोशिश की, जो मेरे पैंटी कवर के बाहर थी।

दीपू: मास्टर जी आप इसे अपनी अंगुलियों से भी नहीं ढक पा रहे !

मेरा चेहरा फिर से लाल हो गया था और शायद यह सुनकर मास्टर-जी ने भी पूरी तरह से अपनी उँगलियों से मेरी गांड को सहलाने की कोशिश की।

मैं: आआह!




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मैंने आह सुन कर मास्टर जी ने अपनी पूरी हथेली को अपनी उंगलियों से पूरी तरह से बढ़ा दिया जिससे उनके हाथ ने मेरे दाए नितम्ब की पूरा अपनी गिरफ्त में ले लिया । मुझे भी अपनी चूत में गीलापन महसूस हो रहा था और मेरे चूतरस को बूँदें अब मेरी पैंटी में से बाहर निकालने लगीं थी । और जैसा कि उम्मीद थी, उसने अपनी पूरी हथेली के साथ मेरी बहुत गांड का मांस पकड़ कर उसे एक जोरदार तरीके से निचोड़ दिया।

मुझे अभूतपूर्व आनंद का अनुभव हुआ और दूसरी तरफ दीपू भी मेरी साड़ी के नीचे मेरे बाये गोल नितम्बो की चिकनाई महसूस कर रहा था

मैंने इसके बाद इस 'कभी न खत्म होने वाली' कपड़ो के माप की प्रक्रिया को पूर्ण विराम लगाने का प्रयास किया।

मैं : जो भी मास्टर-जी, आप बस मुझे उचित आकार की पैंटी सी कर दे दीजिये ।

मास्टर-जी: मैडम! केवल यही कारण है कि मैं जाँच कर रहा हूँ। दीपू, बस मैडम के लिए दो इंच का अतिरिक्त बैक कवर लगाना है याद रखना ।

दीपू ने अपनी उँगलियों को मेरी दाईं गांड पर थोड़ा सा घुमाया जैसे कि यह जांचने के लिए कि मेरी गांड कितनी ढकी होगी अगर वह अतिरिक्त कपडा मेरी पैंटी से जुड़ा हुआ हो।

दीपू: क्या वो काफी होगा मास्टर-जी? क्या आपने इस हिस्से की जाँच की है, यह बहुत चिकनी तंग और उछालभरी है! मुझे डर है कि पैंटी फिर से फिसल सकती है।

मास्टर-जी: कौन सा हिस्सा? मध्य? हम्म।

तंग और उछालभरी? दीपू मेरी गांड के बीच के हिस्से का जिक्र कर रहा था और मेरी गांड के मांस की लोच की जाँच करने के लिए अपनी उंगली से सहला रहा था ! मुझे ऐसा लगा मुझे शर्म से पानी में डूब जाना चाहिए ये दोनों मेरी सारी शर्म और स्वाभिमान की परीक्षा ले रहे थे।

वह रुक गया और मैंने महसूस किया की मास्टर-जी का अंगूठा मेरी बायीं नितम्ब के गाल के ऊपर था और उस बूढ़े बदमाश ने जाहिर तौर पर मेरे बड़े-बड़े गोल मांसल नितम्बो को फिर से निचोड़ने का मौका नहीं छोड़ा और वो मेरे गदराये हुए चिकने नितम्बो और गांड की चिकनाई का आनंद ले रहा था । मैं भी तेजी से गर्म हो रही थी और मेरे नितंब भी अब पर्याप्त गर्मी का उत्सर्जन कर रहे थे।

मुझे यकीन था कि मास्टर-जी और दीपक दोनों ही स्पष्ट रूप से मेरी इस हालत से वाकिफ थे । क्योंकि मैं तेजी से असहज और यौन उत्तेजित हो रही थी इसलिए थास्वाभाविक रूप से मैं अपनी गांड को और अधिक तेजी से हिला रही थी।

मास्टर-जी: मैडम, मुझे आपकी तारीफ करनी चाहिए। आपकी उम्र में और शादी के बाद भी आपके पास ऐसी चुस्त गांड और मस्त नितम्ब है।

दीपू : मास्टर-जी, अपने पति के बारे में भी सोचिए, वह कितना भाग्यशाली है।

मास्टर-जी: हा हा। बेशक दीपू ।

दीपक: इनका पति इस मस्त गांड को पूरे दिन, पूरी रात में छू सकता है ...

मास्टर-जी: एक बेवकूफ दीपू की तरह बात नहीं करते। दिन में वो ऑफिस में होता होगा या व्यवसाय करता होगा । वह इन्हे पूरे दिन कैसे छू सकता है? हा हा हा।

दीपू भी इस नीच श्रेणी के चुटकुले में हँसी की गड़गड़ाहट में शामिल हो गया और लगभग एक साथ दोनों ने मेरी गाण्ड पर कस के निचोड़ दिया और मेरी साड़ी के ऊपर से मेरे नितम्ब के मांस को सहलाने लगे तो मैं रेगिस्तान में पानी के लिए प्यासे यात्री की तरह हाफने लगी ।दर्जी के द्वारा - इस तरह की टिप्पणी! और इसके अलावा, स्वतंत्र रूप से मेरे नितम्बो के साथ छेड़ छाड़. मैं इन दोनों के साहस को देखकर चकित थी ।

मेरे कूल्हों इस समय उनकी गिरफ्त में इसलिए थे क्योंकि मैं इस समय कोई हंगामा नहीं करना चाहती थी, मैने औलाद की चाह में इसे इलाज का हिंसा मानते हुए इन हालात से समझौता कर लिया था । अगर यह आश्रम नहीं होता, तो एक तेज तंग थप्पड़ इस दीपू और मास्टर को ऐसा सबक सिखाता की सब होशियारी और बदमाशी भूल जाते और में इन्हे जेल की हवा खिलवाती । उसने यह कहने की हिम्मत कैसे की कि "वह मेरी गांड को पूरे दिन, पूरी रात छू सकता है ..." : आह! आउच!

मेरी उत्तेजना बार-बार मेरी शर्म पर हावी हो रही थी। जिस तरह से ये दोनों मर्द मुझे उस बेहद संवेदनशील जगह पर दबा रहे थे, उससे मैं लगभग एक रंडी की तरह बर्ताव कर रहा था, मैं अपने दोनों बूब्स को दबा रही थी और मेरे निगम्बो को निचोड़ रहे थे और मेरे नितम्ब झटके दे रहे थे , और वो मेरी साड़ी के नीचे मेरी भारी गाण्ड को भी सहला रहे थे।

दोनों पुरुष अब बेतरतीब ढंग अपनी उंगलियों से मेरी गांड के बीच में मेरी साड़ी और पेटीकोट के ऊपर से मेरे नितंबों के अंदर अपनी उंगलिया घुसा रहे थे और मेरे नियतमबो और गांड की दृढ़ता की जाँच कर रहे थे। मेरे होंठ अब बार बार सूख रहे थे और उन्हें गीला रखने के लिए मैं बार बार अपनी जीभ अपने होंठो पर फिरा रही थी और मेरे निप्पल बेहद तने हुए थे जो अब बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे की उन्हें भी मसला जाएl

मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं, और उस अश्लील दृश्य में मेरे द्वारा की जा रही अश्लीलता का प्रदर्शन को देखने की कल्पना करने लगी - दो पुरुष अकड़ू बैठे हुए कैसे मेरी साड़ी के ऊपर से मेरी गाण्ड को सहला रहे थे और मैं किस सेक्सी तरह से अपनी गांड को मटका रही थी और अपने बूब्स को दबा रही थी और अपनी साड़ी के पल्लू के नीचे से मेरे निप्पलों को मसल रही थी ।

ये अश्लील और असभ्य कृत्य कुछ देर ऐसे ही चला और फिर मास्टर-जी की टिप्पणी की , "ठीक है मैडम, हमारा काम लगभग पूरा हो गया है l "

मैंने सोचा शुक्र है ये खत्म हुआ ।

मास्टर-जी: दीपू , मुझे लगता है कि पैंटी के दोनों किनारों पर लोचदार सिलाई के साथ तीन इंच अतिरिक्त कपड़े मैडम की समस्या को हल करेंगे।

दीपू : जैसा आपको सही लगे मास्टर जी।

दोनों खड़े हो गए और मैंने तुरंतअपने को इस दोनों के हाथो को छुड़ाने के लिए एक कदम आगे हो गयी और तब तक ये दोनों लगातार मेरे नितम्बो को सहलाते रहे ।

मास्टर-जी: ठीक है मैडम, आखिरकार आपका माप पूरा हो गया ! मैं आपकी पोशाक और अंडरगारमेंट्स के साथ रात 09:00 बजे तक यहाँ वापस आ जाऊंगा। चूंकि महा-यज्ञ प्रारंभ समय लगभग 11:00 बजे है, इसलिए हमारे पास पर्याप्त समय होगा यदि आपको कपड़ो में में किसी और सुधार की आवश्यकता होगी तो वो भी कर सकेंगे ।

मैं: उफ्फ! ठीक है मास्टर जी।

मैंने एक गहरी साँस ली और मेरा पूरा शरीर अब दर्द कर रहा थाl

कहानी जारी रहेगी
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#80
औलाद की चाह


CHAPTER 6 - पांचवा दिन

महायज्ञ की तैयारी-

‘महायज्ञ परिधान'

Update -26

कुछ पल विश्राम 


मैंने एक गहरी सांस ली मेरा पूरा शरीर अब दर्द कर रहा था, क्योंकि मेरे नितम्बो से एक लम्बी अवधि के किये पुरुषो ने छेड़खानी और खिलवाड़ किया था और ये बहुत थकाने वाला था । मैंने अपनी साडी का पल्लू समायोजित किया और साड़ी को अपने नितंबो पर ठीक कर सभ्य दिखने की कोशिश की। दीपू को अपने बैग में सिलाई के नोट्स और टुकड़ों को इकट्ठा करने की जल्दी थी और मास्टर जी ने रात में 9 बजे तक वापस आने का वादा करते हुए मुझसे जाने की इजाजत ली ।

मेरे कमरे से दर्जी-युगल केजाने होने के बाद भी, मैं कुछ समय के लिए एक मूर्ति की तरह खड़ी हुई यह महसूस करने की कोशिश कर रही थी कि मैं पिछले एक घंटे में क्या कर रहे थी और इसके आगे मेरे साथ और क्या क्या होने वाला है । मैं शौचालय गयी और ठंडे पानी से अपना चेहरा, गर्दन और हाथ धोये और अपनी जगी हुई कामुक भावनाओंको शांत करने की असफल कोशिश की। मैंने अपना चेहरा भी नहीं पोंछा और कमरे में वापस आयी और बिस्तर में कूद कर लेट गयी ।

मेरे साथ जो हुआ था उसे याद करके मैंने अपनी चूत में ऊँगली करके अपनी वासना को शांत करने को कोशिश की जिससे मैंने अपनी योनि से अपनी पैंटी में कुछ तरल पदार्थों का निर्वहन किया और फिर खुद को इन 'गर्म' भावनाओं से बाहर निकालने का प्रयास किया।

इस हस्त मैथुन करके मैं कुछ समय बाद सफल हुई और फिर मैंने महा-यज्ञ के लिए मानसिक रूप से तैयार होने का प्रयास किया। मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और उस पर ध्यान केंद्रित किया,लेकिन ये मुझे बहुत कठिन लगा। ध्यान करते ही नींद बहुत जल्दी आती है और मेरे साथ भी यही हुआ .

एक बिंदु पर मुझे बहुत नींद आने लगी और मैंने थोड़ी देर के लिए सोने का फैसला किया। मैंने बस अपनी लेटी हुई पोज़िशन से अपनी कमर उठाई और अपनी साड़ी और पेटीकोट के अन्दर हाथ डाल कर अपनी गीली पैंटी को बाहर निकाल लिया। मैंने उसे कमरे के कोने में फेंक दिया और ततकाल झपकी ले ली । मुझे नहीं पता था कि मैं कितनी देर सोयी , लेकिन कुछ समय बाद दरवाजे पर दस्तक से मेरी नींद बाधित हुई। मैंने दरवाजा खोला तो परिमल दरवाजे पर था।

परिमल: जय लिंग देव मैडम। आप इस समय सो रही है?

मुझे हमेशा इस छोटे कद वाले परिमल को देखा कर हसी आती थी और मैंने किसी तरह से अपनी हसि को रोका । मुझे नहीं पता था कि हर बार उसे देख कर मुझे मजा क्यों आता था ।

मैं: वास्तव में मास्टर-जी को माप देने में काफी समय लग गया था इसलिए…

परिमल: हूं। वास्तव में गुरु-जी ने आपके लिए यह पुस्तक दी। मैडम, आप फ्रेश हो जाओ तब तक मैं आपके लिए चाय ले लाऊंगा। फिर आप इस पुस्तक को पढ़ लीजियेगा ।

यह एक विचार अच्छा लगा । मुझे अभी भी कुछ नींद आ रही थी और मैंने अपनी चूत के आस-पास हल्की खुजली महसूस की, मुझे तुरंत याद आया कि मैंने पैंटी नहीं पहनी हुई थी। मैंने अपनी आंख के कोने से कमरे के कोने तक देखा, ताकि यह पता लगाया जा सके कि वो कहाँ पड़ी हुई है । भगवान का शुक्र है! परिमल ने एक कोने में पड़ी हुई मेरी पैंटी पर गौर नहीं किया था। लेकिन निश्चित रूप से उसकी आँखें मेरी साड़ी के पल्लू के नीचे मेरी छाती और मेरे स्तनों पर घूम रही थीं, हालाँकि उसकी ऊँचाई इतनी ही थी कि उसकी नज़रसीढ़ी मेरे स्तनों पर ही पड़ती थी ।

निर्मल: मैडम, गुरु-जी ने भी आपको ये भी सूचित करने के लिए कहा था कि आप रात 11 बजे तक महा-यज्ञ के लिए तैयार रहें। हालाँकि अभी उसमे काफी समय है और आप आराम से त्यार हो सकती हैं , फिर भी मैंने आपको गुरु जी के आदेश से अभी ही अवगत करा दिया है ।

मैं: ठीक है, धन्यवाद ।

वह चला गया और मैंने तुरंत अपनी पैंटी लेने के लिए कमरे के कोने में भाग कर गयी और उसे उठा कर अलमारी में रख दिया। मैं पैंटी के बिना बेहतर महसूस कर रही थी और मैंने कुछ देर पेंटी ना पहनने का फैसला किया, क्योंकि अब मैं अब काफी देर तक केवल अपने कमरे तक ही सीमित रहने वाली थी । परिमल कुछ ही मिनटों में ही चाय ले कर वापस आ गया और उस समय तक मैंने शौचालय का इस्तेमाल किया। चाय खत्म होने के बाद, मैंने किताब ली और उसके पन्ने पलटे । यह तांत्रिक पूजा पर एक किताब थी। पुस्तक में लिंग पूजा, योनी पूजा, स्त्री पूजा इत्यादी के विषय और उनका विशद विवरण और व्याख्याएँ थी ।


योनि तंत्र जैसे सामाजिक रूप से कलंकित और जटिल तंत्र के बारे में 

' भारत के ऋषियों नें जो भी मनुष्य को दिया वो अत्यंत श्रेष्ठ और उच्चकोटि का ज्ञान ही था. जिसमें तंत्र भी एक है. तंत्र में एक दिव्य शब्द है 'योनी पूजा' जिसका बड़ा ही गूढ़ और तात्विक अर्थ है. किन्तु कालान्तर में अज्ञानी पुरुषों व वासना और भोग की इच्छा रखने वाले कथित धर्म पुरोधाओं ने स्त्री शोषण के लिए तंत्र के महान रहस्यों को निगुरों की भांति स्त्री शरीर तक सीमित कर दिया. हालांकि स्त्री शरीर भी पुरुष की भांति ही सामान रूप से पवित्र है. लेकिन तंत्र की योनी पूजा सृष्टि उत्पत्ति के बिंदु को 'योनी' यानि के सृजन करने वाली कह कर संबोधित करता है.   [b]स्त्री  शक्ति को 'महायोनी ' कहा जाता है. जिसका अर्थ हुआ सभी को पैदा करने वाली. उस 'दिव्य योनी' का यांत्रिक चित्र ही 'श्री यन्त्र' है. वो 'महायोनी'  हैं[/b]

 योनी तंत्र चर्चा का नहीं प्रत्यक्ष सिद्धि का क्षेत्र है. इसलिए तंत्र की खोज करने वाले रहस्य चित्रों को यथारूप न ले कर उसे 'स्वरुप रहस्यानुसार' समझें. योनी तंत्र सृष्टि उत्पत्ति का परा विज्ञान है. न की स्त्री शरीर का अवयव. 'माँ  योनी' ब्रह्माण्ड उत्तपत्ति का प्रतीक हैं व शक्ति उतपत्ति का प्रतीक....वो प्रत्यक्ष विग्रह है.


कहानी जारी रहेगी

[b]NOTE welcome


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1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .



2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.



3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .



जब मैंने ये कहानी यहाँ डालनी शुरू की थी तो मैंने भी इसका अधूरा भाग पढ़ा था और मैंने कुछ आगे लिखने का प्रयास किया और बाद में मालूम चला यह कहानी अंग्रेजी में "समितभाई" द्वारा "गुरु जी का (सेक्स) ट्रीटमेंट" शीर्षक से लिखी गई थी और अधूरी छोड़ दी गई थी। बाद में 2017 में समीर द्वारा हिंदी अनुवाद शुरू किया गया, जिसका शीर्षक था "एक खूबसूरत हाउस वाइफ, गुरुजी के आश्रम में" और लगभग 33% अनुवाद "Xossip" पर किया गया था। अभी तक की कहानी मुलता उन्ही की कहानी पर आधारित है या उसका अनुवाद है और अब कुछ हिस्सों का अनुवाद मैंने किया है ।

कहानी काफी लम्बी है और मेरा प्रयास जारी है इसको पूरा करने का ।




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