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Thriller आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07
#21
गुरुजी के आश्रम में सावित्री

CHAPTER 4 तीसरा दिन

पुरानी यादें - Flashback

Update 1

मनस्थिति


विकास – मैडम , तुम्हें याद है उस दिन तुम्हारी मनस्थिति कैसी थी ? तब तुम मेरी मनस्थिति समझ पाओगी.

“हम्म्म …….विकास मेरे जीवन में भी एक ऐसी घटना हुई है, पर तब मैं छोटी थी.”

विकास – उम्र से कोई फरक नही पड़ता मैडम, बात भावनाओं की है. मुझे बताओ क्या हुआ था तुम्हारे साथ ?

मैंने गहरी सांस ली, विकास ने मेरे पुराने दिनों की घटना को याद करने पर मजबूर कर दिया था.

“लेकिन विकास, ये कोई ऐसी घटना नही है जिसे मैं गर्व से सुनाऊँ. वो तो मेरे ह्युमिलिएशन की कहानी है पर उस उम्र में मैं नासमझ थी और इस बात को नही समझ पाई थी.”

विकास – देखो मैडम , कुछ हो जाने के बाद ही समझ आती है. तुम्हारी घटना में , उस दिन हो सकता है तुम्हारी कुछ विवशता रही होगी. वही मेरे साथ भी हुआ. आज सुबह अगर तुमने मुझ पर ज़ोर नही डाला होता तो शायद मैं गुरुजी के निर्देशों की अवहेलना करने की हिम्मत नही कर पाता.

“हम्म्म ……ठीक है अगर तुम इतने ही उत्सुक हो तो मैं तुम्हें सब कुछ बताने की कोशिश करती हूँ की उस दिन क्या हुआ था….”


फ्लॅशबॅक (Flashback) :-

तरुण लड़की की मनस्थिति

मुझे आज भी अच्छी तरह से वो दिन याद है, तब मैं 18 बरस की थी और कॉलेज में पढ़ती थी. वो शनिवार का दिन था. सीतापुर में हमारा संयुक्त परिवार था. मेरे पिताजी और चाचजी का परिवार एक ही साथ रहता था. मेरी दादीजी भी तब जिंदा थी. इतने लोग होने से घर में हर समय कोई ना कोई रहता था. पर उस दिन कुछ अलग था. मेरी मा के एक रिस्त्ेदार की मृत्यु हो गयी थी तो मेरी मा, पिताजी, चाचिजी और मेरी दीदी नेहा सब उस रिस्त्ेदार के घर चले गये. मेरी दादीजी भी उनके साथ चली गयी. मैं घर में अकेली रह गयी. मेरे चाचू नाइट ड्यूटी पर थे , जब वो ड्यूटी से वापस आए तक तक सब लोग जा चुके थे.

चाचू अपनी नाइट ड्यूटी से सुबह 8 बजे वापस आते थे और फिर नाश्ता करके अपने कमरे में सोने चले जाते थे फिर दोपहर में उठते थे. हमारे घर में रोज़ सुबह 6 बजे आया आती थी , वो खाना बनती थी, कपड़े धोती थी और झाड़ू पोछा करके चली जाती थी. उस दिन मेरी छुट्टी थी , चाचू सोने चले गये तो मैं अकेली बोर होने लगी. फिर मैंने सोचा नेहा दीदी की अलमारी में से कहानियाँ या फिल्मी कितबे निकालकर पड़ती हूँ. वो मुझे कभी अपनी किताबों में हाथ नही लगाने देती थी. ‘तेरे मतलब की नही हैं’ कहती थी इसलिए मुझे बड़ी इक्चा होती थी की उन किताबों में क्या है . आज मेरे पास अक्चा मौका था. हमारे घर में रदिवादी माहौल था और मुझे लड़कियों के कॉलेज में पदाया गया , मैं उस समय मासूम थी, उत्सुकता होती थी पर जानती कुछ नही थी.

मैंने चाचू के कमरे में झाँका, सो रहे हैं या नही. चाचू लापरवाही से सो रहे थे. उनकी लुंगी कमर तक उठी हुई थी. उनकी बालों से भारी टाँगे नंगी थी. उनका नीले रंग का कच्छा भी दिख रहा था. कच्छे में कुछ उभार सा दिख रहा था. मुझे कुछ समझ नही आया वो क्या था, मैंने धीरे से उनका दरवाज़ा बंद किया और चली आई. फिर दीदी की अलमारी खोलकर उसमें किताबें ढोँढने लगी. नेहा दीदी उन दीनो कॉलेज में पड़ती थी. मैंने देखा वो फिल्मी किताबें नही थी पर हिन्दी कहानियों की किताबें थी. उन कहानियों के नाम बड़े अजीब से थे, जैसे ‘नौकरानी बनी बीवी, रुक्मिणी पहुची मीना बेज़ार, डॉक्टर या शैतान, भाभी मेरी जान’ वगेरेह वगेरेह.

हर कहानी के साथ पिक्चर्स भी थी और उनमें कुछ पिक्चर्स बहुत कम कपड़े पहने हुए लड़कियों और औरतों की भी थी. उन पिक्चर्स को देखकर मेरे कान गरम होने लगे और मेरे बदन में कुछ होने लगा. एक कहानी में बहुत सारी पिक्चर्स थी, एक आदमी एक लड़की को होठों पर चुंबन ले रहा था, दूसरी फोटो में दोनो हाथों से उसकी चुचियाँ दबा रहा था वो लड़की सिर्फ़ ब्रा पहने थी. अगली फोटो में वो आदमी उसकी नंगी टॅंगो को चूम रहा था और लड़की से सिर्फ़ पैंटी पहनी हुई थी. लास्ट फोटो में लड़की ने ब्रा भी नही पहनी हुई थी और वो आदमी उसके निपल्स को चूस रहा था. वो फोटोस देखकर मेरी साँसे भारी हो गयी और मैंने जल्दी से किताब बंद कर दी.

“सावित्री, सावित्री….”

चाचू मुझे आवाज़ दे रहे थे.

“आ रही हूँ चाचू, एक मिनट…”

मैंने जल्दी से वो किताबें दीदी की अलमारी में रखी और चाचू के पास चली गयी. जब मैं चाचू के कमरे में पहुँची तो अभी भी मेरी साँसे भारी थी. मैंने नॉर्मल दिखने की कोशिश की पर…

चाचू – सावित्री , दो कदम चलने में तू हाँफ रही है ? क्या बात है ?

“कुछ नही चाचू, ऐसे ही.”

चाचू मेरी चुचियों की तरफ देख रहे थे. मेरे टॉप और ब्रा के अंदर चुचियाँ मेरी गहरी सांसो के साथ उपर नीचे हो रही थी. मैंने बात बदलनी चाही.

“चाचू आप मुझे बुला रहे थे , कोई काम है क्या ?”

खुसकिस्मती से चाचू ने उस बात पर ज़ोर नही दिया की मैं क्यूँ हाँफ रही थी. पर मेरे दोनो संतरों को घूरते हुए उन्होने मुझसे फल काटने वाला चाकू लाने को कहा. मैं उनके कमरे से चली आई और सबसे पहले अपने को शीशे में देखा. मैं तोड़ा हाँफ रही थी और उससे मेरा टॉप तोड़ा उठ रहा था. उस समय मेरी चुचियाँ छोटी पर कसी हुई थी एकद्ूम नुकीली. तब मैं पतली थी पर मेरे नितंब बाकी बदन के मुक़ाबले कुछ भारी थे. उन दीनो मैं घर में टॉप और स्कर्ट पहनती थी.

उन दीनो मेरी लंबाई बाद रही थी और मेरी स्कर्ट जल्दी जल्दी छोटी हो जाती थी. मेरी मम्मी बाहर के लिए लंबी और घर के लिए छोटी स्कर्ट पहेन्ने को देती थी. वो पुरानी स्कर्ट को फेंकती नही थी. घर में छोटी स्कर्ट पहनने पर मम्मी कुछ नही कहती थी पर बाहर के लिए वो ध्यान रखती थी की घुटनो से नीचे तक लंबी स्कर्ट ही पहनु. मैं दीदी के साथ सोती थी और सोते समय मैं पुरानी स्कर्ट पहन लेती थी जो बहुत छोटी हो गयी थी.

पिछले दो साल से मैं घर पे भी हमेशा ब्रा पहने रखती थी. क्यूंकी मेरी मम्मी कहती थी,”तेरी दूध अब बड़ी हो गयी है रश्मि. हमेशा ब्रा पहना कर.”

मैंने चाकू लिया और चाचू के कमरे में चली गयी. जब मैं अंदर घुसी तो वो कपड़े बदल रहे थे. अगर चाची घर में होती तो वो निसचीत ही टॉवेल यूज करते या दीवार की तरफ मुँह करते , लेकिन आज वो खुले में क्पडे बदल रहे थे. मुझे ऐसा लगा जैसे वो मेरा ही इंतज़ार कर रहे थे. जैसे ही मैं अंदर आई वो अपनी लुंगी उतरने लगे. बनियान उन्होने पहले ही उतार दी थी. अब वो सिर्फ़ कच्छे में थे. मैंने शरम से नज़रें झुका ली और चाकू टेबल पर रखकर जाने लगी.

चाचू – सावित्री , अलमारी से मेरी एक लुंगी देना.

“जी चाचू…”

ने अलमारी खोली और एक लुंगी निकाली. जब मैं मूडी तो देखा चाचू मुझसे सिर्फ़ दो फीट पीछे खड़े हैं. वो बड़े अजीब लग रहे थे , पुर नंगे सिर्फ़ एक कच्छे में, और उस कच्छे में बड़ा सा उभार सॉफ दिख रहा था. मुझे बहुत अनकंफर्टबल महसूस हो रहा था और बार बार मेरी निगाहें उनके कच्छे पर चली जा रही थी. मैंने चाचू को लूँगी दी और जल्दी से कमरे से बाहर आ गयी. मैं अपने कमरे में आकर सोचने लगी आज चाचू अजीब सा व्यवहार क्यूँ कर रहे हैं. ऐसे मेरे सामने तो उन्होने कभी अपने कपड़े नही उतारे थे.

दीदी की किताबें देखकर मुझे पहले ही कुछ अजीब हो रहा था और अब चाचू के व्यवहार से मैं और कन्फ्यूज़ हो गयी. दिमाग़ को शांत करने के लिए मैंने हेडफोन लगाया और म्यूज़िक सुनने लगी.आधे घंटे बाद मैं नहाने चली गयी. हमारा घर पुराना था इसलिए उसमेंसबके लिए एक ही बाथरूम था. मैंने दूसरे कपड़े लिए, फिर ब्रा पैंटी और टॉवेल लेकर नहाने के लिए बाथरूम चली गयी.

हमारा घर पुराना था इसलिए उसमें सबके लिए एक ही बाथरूम था. मैंने दूसरे कपड़े लिए, फिर ब्रा, पैंटी और टॉवेल लेकर नहाने के लिए बाथरूम चली गयी.

मैंने नहा लिया था तभी चाचू की आवाज़ आई…….

चाचू – सावित्री, एक बार दरवाज़ा खोल जल्दी, मेरी अंगुली कट गयी है.

धप, धप……चाचू बाथरूम के दरवाज़े को खटखटा रहे थे. पर मैं उलझन में थी. क्यूंकी मैंने नहा तो लिया था पर मैं नंगी थी और मेरा बदन पानी से गीला था.

“चाचू मैं तो नहा रही हूँ.”

चाचू – सावित्री , मेरा बहुत खून निकल रहा है, जल्दी से दरवाज़ा खोल.

चाचू दरवाज़ा खोलने पर ज़ोर दे रहे थे इसलिए मैं जल्दी जल्दी अपने गीले बदन को टॉवेल से पोछने लगी.

“चाचू, एक मिनट प्लीज़. कपड़े तो पहनने दो.”

चाचू अब कठोर आवाज़ में हुक्म देने लगे.

चाचू – इतना खून निकल रहा है इधर, तुझे कपड़े की पड़ी है. तू नंगी ही निकल आ.

चाचू की बेहूदी बात सुनकर मुझे झटका लगा पर मैंने सोचा शायद उनका बहुत खून निकल रहा है इसलिए वो चाह रहे हैं की मैं बाथरूम से तुरंत बाहर आ जाऊँ. मैं जल्दी जल्दी टॉवेल से बदन पोछने लगी पर चाचू अधीर हो रहे थे.

चाचू – सावित्री, क्या हुआ ? अरे नंगी आने में शरम आती है तो टॉवेल लपेट ले. लेकिन भगवान के लिए जल्दी निकल.

“जी चाचू.”

मैंने जल्दी से अपने बदन पर टॉवेल लपेट लिया लेकिन मुझे लग रहा था की मेरे जवान बदन को टॉवेल अच्छे से नही ढक पा रहा है. लेकिन इस बारे में सोचने का वक़्त नही था क्यूंकी चाचू दरवाज़े को पीटने लगे थे और मुझे दरवाज़ा खोलना पड़ा. दरवाज़ा खोलते ही चाचू तुरंत अंदर घुस आए और नल के निचे हाथ दे दिए

खून इतना भी नहीं निकला था जितना हल्ला वो मचा रहे थे और ज़बरदस्ती मुझसे दरवाज़ा खुलवा लिया था , उसे देखकर तो मुझे लगा था शायद ज़्यादा कट गया होगा.

चाचू – कितना खून निकल रहा है, देख रश्मि.

“हाँ चाचू.”


कहानी जारी रहेगी




NOTE

1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .


2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.


3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .


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#22
गुरुजी के आश्रम में सावित्री

CHAPTER 4 तीसरा दिन

पुरानी यादें - Flashback

Update 2


मुझे चाचू के खून से ज़्यादा अपने बिना कपड़ों के बदन की फिक्र हो रही थी. मैंने टॉवेल से अपनी हिलती डुलती चूचियों को ढक रखा था पर मेरी गोरी जाँघें और टाँगें पूरी नंगी थीं. मैंने अपनी चूचियों के ऊपर टॉवेल में गाँठ लगा रखी थी पर मुझे हिलने डुलने में डर लग रहा था , कहीं टॉवेल खुल ना जाए और मैं नंगी हो जाऊँ. चाचू अपनी अंगुली धोते हुए बीच बीच में मुझे देख रहे थे.

चाचू – सावित्री , तू तो अब सचमुच बड़ी हो गयी है.

मैं हँसी और मासूमियत से जवाब दिया.

“चाचू , आज मालूम पड़ा आपको ?”

चाचू – नही सावित्री वो बात नही. टॉवेल में तो तुझे आज पहली बार देख रहा हूँ ना , इसलिए.

मैं शरमा गयी और खी खी कर हँसने लगी. मुझे समझ ही नही आया क्या जवाब दूँ.

चाचू – आज तक टॉवेल में तो मैंने सिर्फ़ तेरी चाची को देखा है.

हम दोनों हंस पड़े.

चाचू – गुड , अब खून बहना लगभग रुक गया है . अब किसी चीज़ को लपेट लेता हूँ.

ऐसा कहते हुए चाचू इधर उधर देखने लगे. मैंने अपने कपड़े उतार कर धोने के लिए बाल्टी में रखे हुए थे और पहनने वाले कपड़े , मेरी नीली स्कर्ट और सफेद टॉप हुक में लटका रखे थे. मेरी ब्रा और पैंटी नल के ऊपर रखी हुई थी क्यूंकी टॉवेल से बदन पोछकर उनको मैं पहनने ही वाली थी पर चाचू ने जल्दबाज़ी मचा कर दरवाज़ा खुलवा दिया. चाचू ने नल के ऊपर से मेरी पैंटी उठा ली, मैं तो हैरान रह गयी.

चाचू – फिलहाल इसी से काम चला लेता हूँ. बाद में पट्टी बांध लूँगा.

“पर चाचू वो तो मेरी ……”

चाचू ने मेरी गुलाबी पैंटी उठा ली थी , मैंने ऐतराज किया.

चाचू – ‘वो तो मेरी’ क्या ? तू भी ना. जा कमरे में जा और दूसरी पैंटी पहन ले.

ऐसा कहते हुए चाचू ने मेरी पैंटी को फैलाया और देखने लगे. मुझे बहुत शरम आई क्यूंकी वो अपने चेहरे के नज़दीक़ लाकर ध्यान से मेरी पैंटी को देख रहे थे. मैंने वहाँ पर खड़े रहना ठीक नही समझा और अपने कमरे में जाने लगी.

“चाचू मैं कमरे में जाकर कपड़े पहन लेती हूँ. फिर आकर आपकी पट्टी बांध दूँगी.”

चाचू – ठीक है जा, पर जल्दी आना.

अपने कमरे में आकर मैंने राहत की सांस ली और जल्दी से दरवाज़ा बंद कर दिया. इतनी देर तक चाचू के पास नंगे बदन पर सिर्फ टॉवेल लपेट कर खड़े रहने से अब मेरी साँसें भारी हो गयी थीं. मैंने कपड़ों की अलमारी खोली और एक सफेद ब्रा और सफेद पैंटी निकाली. उसके ऊपर नीला टॉप और मैचिंग नीली स्कर्ट पहन ली. लेकिन जब मैंने अपने को शीशे में देखा तो उस नीली स्कर्ट में मेरी टाँगें दिख रही थी. वो स्कर्ट पुरानी थी और छोटी हो गयी थी. मैं हिचकिचायी की पहनूं या उतार दूं, फिर मैंने सोचा घर में ही तो हूँ. वो स्कर्ट मेरे घुटनों से ऊपर आ रही थी और मेरी आधी जाँघें दिख रही थीं.

फिर मैं चाचू की अंगुली में पट्टी बांधने उनके कमरे में चली गयी. चाचू बेड में बैठे हुए थे . जैसे ही मैं अंदर गयी उन्होंने मुझसे बड़ा अजीब सवाल पूछा.

चाचू – सावित्री, तू मुझसे झूठ क्यूँ बोली ?

मैं चाचू के पास आई. मैंने देखा उन्होंने अपनी अंगुली में मेरी गुलाबी पैंटी को लपेट रखा है. ये देखकर मुझे बहुत शरम महसूस हुई.

“झूठ ? कौन सा झूठ चाचू ?”

चाचू – तू बोली की ये तेरी पैंटी है.

“हाँ चाचू , ये मेरी ही तो है.”

चाचू – एक बात बता सावित्री. तू तेरी चाची से बड़ी है या छोटी ?

मुझे समझ नही आ रहा था , चाचू कहना क्या चाहते हैं.

“छोटी हूँ. चाचू ये भी कोई पूछने वाली बात है ?”

चाचू – वही तो. अब बोल की ये कैसे हो सकता है की तेरी चाची तुझसे छोटी पैंटी पहनती है ?

“क्या..??”

मुझे आश्चर्य हुआ और चाचू के ऐसे भद्दे कमेंट पर झुंझुलाहट भी हुई. पर चाचू बात को लंबा खींचते रहे.

चाचू – तू जब चली गयी तो मैंने देखा की ये पैंटी तो तेरी चाची जो पहनती है उससे बड़ी है. ये कैसे हो सकता है ?

मैं मासूमियत से बहस करते रही पर इससे सिचुयेशन मेरे लिए और भी ज़्यादा ह्युमिलियेटिंग हो गयी.

“चाचू, आप को कैसे पता होगा चाची के अंडरगार्मेंट्स के बारे में ? आप तो खरीदते नही हो उनके लिए .”

चाचू – सिर्फ़ खरीदने से ही पता चलता है ? सावित्री तू भी ना.

“चाचू , आप हवा में बात करोगे तो मैं मान लूँगी क्या ?”

चाचू – सावित्री, मैं तेरी चाची को रोज देखता हूँ . सुबह नहाकर मेरे सामने पैंटी पहनती है. और तू बोल रही है मैं हवा में बात फेंक रहा हूँ ?

अपनी चाची के बारे में ऐसा कमेंट सुनकर मैं स्तब्ध रह गयी. मेरी चाची का मेरी मम्मी के मुक़ाबले भारी बदन था. उसकी बड़ी चूचियाँ और बड़े नितंब थे. मैं अपने मन में उस दृश्य की कल्पना करने लगी , जैसा की चाचू ने बताया था , चाची नहाकर बाथरूम से बाहर आ रही है और चाचू के सामने पैंटी पहन रही है.

मैं सोचने लगी , चाची क्या नंगी बाहर आती है बाथरूम से ? या फिर आज जैसे मैं निकली चाचू के सामने वैसे ?

अपने चाचू के सामने ऐसी बातें सोचकर मेरा गला सूखने लगा.

चाचू – ठीक है, तू यकीन नही कर रही है ना. मेरे साथ आ इधर.

चाचू खड़े हो गये और अपनी अलमारी के पास गये. मैं भी उनके पीछे गयी. उन्होंने अलमारी खोली और कुछ पल कपड़े उलटने पुलटने के बाद चाची की दो पैंटीज निकाली. चाचू ने चाची की पैंटी मुझे दिखाई , मेरे बदन में गर्मी बढ़ने लगी. वो पैंटी इतनी छोटी थी की शरम से मेरा सर झुक गया.

चाचू – अब बोल सावित्री , क्या मैं ग़लत बोल रहा था ?

चाचू ने अपनी अंगुली से मेरी पैंटी खोल दी और चाची की पैंटी से नापने लगे.

चाचू – तू 18 साल की है और तेरी चाची 35 साल की है. दोनों की पैंटी देखकर मुझे तो उल्टा लग रहा है.

चाचू अपनी बात पर खुद ही हंस पड़े. मुझे कुछ जवाब देना था, पर जो मैंने कहा उससे मैं और भी फँस गयी.

“जी चाचू मुझे तो इसकी साइज देखकर शरम आ रही है.”

चाचू – तू शरम की बात कर रही है, लेकिन तेरी चाची तो बोलती है आजकल ये सब फैशन है. ये देख . ये सब मैगजीन्स देखके तो वो ये सब ख़रीदती है.

चाचू ने दो तीन इंग्लिश मैगजीन्स मेरे आगे रख दी. मैंने एक मैगजीन उठाकर देखी, उसका नाम ‘कॉस्मोपॉलिटन’था. मैंने उसके पन्ने पलटे तो उसमें सिर्फ़ ब्रा और पैंटी पहनी हुई लड़कियों की बहुत सारी फोटोज थीं. कुछ लड़कियाँ टॉपलेस भी थीं, इतनी सारी अधनंगी फोटोज देखकर मेरा सर चकराने लगा. मुझे बहुत हैरानी हुई की चाची ऐसी मैगजीन्स देखती है. मेरी मम्मी तो हमें फिल्मी मैगजीन्स भी नही देखने देती थी क्यूंकी उनमें हीरोइन्स की बदन दिखाऊ फोटोज होती थीं.

मैं चाचू के सामने ऐसी अधनंगी फोटोज देखकर बहुत शर्मिंदगी महसूस कर रही थी. मुझे समझ नही आ रहा था की क्या करूँ , कैसे इस सिचुयेशन से बाहर निकलूं ? लेकिन चाचू ने मुझे और भी ज़्यादा ह्युमिलियेटिंग बातों और सिचुयेशन में घसीट लिया.

मुझे समझ नही आ रहा था की क्या करूँ , कैसे इस सिचुयेशन से बाहर निकलूं ? लेकिन चाचू ने मुझे और भी ज़्यादा ह्युमिलियेटिंग बातों और सिचुयेशन में घसीट लिया.

चाचू – तो सावित्री मैंने साबित कर दिया ना की ये पैंटी तेरी नहीं हो सकती. मुझे लगता है की ये जरूर तेरी मम्मी की होगी.

मेरी पैंटी की तरफ इशारा करते हुए चाचू बोले. मैं अभी भी मासूमियत से अपनी बात रख रही थी.

“नहीं नहीं ये मम्मी की नहीं है. मम्मी तो …..”

मेरी ज़ुबान से मेरी मम्मी का राज चाचू के सामने खुल ही गया था की मैं चुप हो गयी. मेरी मम्मी तो अक्सर पैंटी पहनती ही नहीं थी सिर्फ पीरियड्स के दिनों को छोड़कर. लेकिन ये बात मैं चाचू से कैसे बोल सकती थी ? मैंने जल्दी से बात बदलनी चाही.

“चाचू एक काम करते हैं. चलिए मैं आपको अपनी अलमारी दिखाती हूँ , अगर उसमें इसी साइज की और भी पैंटी मिल जाएँ तब तो आपको यकीन हो जाएगा ना ?”

चाचू – ये ठीक रहेगा चल.

मैंने मन ही मन भगवान का शुक्रिया अदा किया की ठीक समय पर मैंने अपनी जबान को लगाम लगाई और मम्मी का राज खुलने से बच गया पर मुझे क्या पता था की कुछ ही देर में मुझे बहुत से राज खोलने पड़ेंगे. चाचू और मैं मम्मी के कमरे में आ गये. चाचू मेरे मम्मी पापा के बेडरूम में शायद ही कभी आते थे.

मैंने चाचू के सामने कपड़ों की अलमारी खोली. इसमें सिर्फ औरतों के कपड़े थे. मेरी मम्मी , नेहा दीदी और मेरे. उसमें तीन खाने थे. सबसे ऊपर के खाने में मम्मी के कपड़े थे, बीच वाले खाने में मेरे और सबसे नीचे वाले खाने में नेहा दीदी के कपड़े थे. मैंने अपने वाले खाने में कपड़े उल्टे पुल्टे और एक पैंटी निकालकर चाचू को दिखाई.

“ये देखिए चाचू, सेम साइज की है की नहीं ?”

चाचू ने पैंटी को पकड़ा और दोनों हाथों से फैलाकर देखने लगे. ऐसा लग रहा था की पैंटी फैलाकर वो देखना चाह रहे हैं की वो पैंटी मेरे नितंबों को कितना ढकती है. उनके खुलेआम ऐसा करने से मुझे बड़ी शरम आई. तभी उनकी नजर एक पैंटी पर पड़ी जो सबसे नीचे वाले खाने में थोड़ी बाहर को निकली थी.

चाचू – ये किसकी है ? भाभी की ?

“नहीं चाचू. ये तो नेहा दीदी की है.”

मैंने मासूमियत से जवाब दिया. चाचू ने उस पैंटी को भी निकाल लिया और दोनों पैंटी को कंपेयर करने लगे. नेहा दीदी की पैंटी भी मेरी पैंटी से थोड़ी छोटी थी. इसकी वजह ये थी की मेरी पैंटी मम्मी ख़रीदती थी और वो बड़ी पैंटी लाती थी जिससे स्कर्ट के अंदर मेरे नितंबों का अधिकतर हिस्सा ढका रहे. लेकिन नेहा दीदी अपनी पैंटी खुद ही ख़रीदती थी.

कई बार मैंने देखा था की नेहा दीदी की पैंटी उसके बड़े नितंबों को ढकती कम है और दिखाती ज़्यादा है. जब मैंने उससे पूछा,”दीदी इस पैंटी में तो तुम्हारा आधा पिछवाड़ा भी नहीं ढक रहा”. तो नेहा दीदी ने जवाब दिया, “जब तू बड़ी हो जाएगी ना तब समझेगी ऐसी पैंटी पहनने का मज़ा.”

चाचू – सावित्री ये देख. ये पैंटी भी तेरी वाली से छोटी है.

“चाचू इसमें मैं क्या कर सकती हूँ. मम्मी मेरे लिए इसी टाइप की ख़रीदती है.”

चाचू – अरे तो ऐसा बोल ना. इसीलिए मुझे समझ में नहीं आ रहा था.

भगवान का शुक्र है. चाचू को समझ में तो आया.

चाचू अभी भी नेहा दीदी की पैंटी को गौर से देख रहे थे.

चाचू – सावित्री एक बात बता. तू बोली की भाभी तेरे लिए ख़रीदती है. तो नेहा के लिए भी ख़रीदती है क्या ?

“नहीं चाचू. दीदी अपनी इनर खुद ख़रीदती है. एक दिन तो मम्मी और दीदी की इस बारे में लड़ाई भी हुई थी. मम्मी को तो इस टाइप की अंडरगार्मेंट्स बिल्कुल नापसंद है.”

चाचू – देख सावित्री, मैं तो भाभी को इतने सालों से देख रहा हूँ. वो बड़ी कन्सर्वेटिव किस्म की औरत है.

अब मैं अपने को रोक ना सकी और मासूमियत से मम्मी के निजी राज खोल दिए. उस उमर में मैं नासमझ थी और नहीं समझ पाई की चाचू बातों में फँसाकर मुझसे अंदरूनी राज उगलवा रहे हैं और उनका मज़ा ले रहे हैं.

“चाचू आप नहीं जानते , मम्मी सिर्फ मेरे और दीदी के बारे में ही कन्सर्वेटिव है.”

चाचू – नहीं नहीं , ये मैं नहीं मान सकता. भाभी जिस स्टाइल से साड़ी पहनकर बाहर जाती है. घर में जिस किस्म की नाइटी पहनती है…..


मैंने अलमारी के सबसे ऊपरी खाने से कपड़ों के नीचे दबी हुई एक नाइटी निकाली और चाचू की बात काट दी.

“ये देखिए चाचू. ये क्या कन्सर्वेटिव ड्रेस है ?”

वो गुलाबी रंग की नाइटी थी और साधारण कद की औरत के लिए बहुत ही छोटी थी.

चाचू – वाउ.

“मम्मी ये कभी कभार सोने के वक़्त पहनती है.”

चाचू – ये तो कोई फिल्मी ड्रेस से कम नहीं.

“हाँ चाचू.”

चाचू अब मम्मी की नाइटी को बड़े गौर से देख रहे थे, ख़ासकर कमर से नीचे के हिस्से को. और फैलाकर उसकी चौड़ाई देख रहे थे.

चाचू – इसकी जो लंबाई है और भाभी की जो हाइट है, ये पहनने के बाद भाभी तो आधी नंगी रहेगी. तूने तो देखा होगा तेरी मम्मी को ये पहने हुए, मैं क्या ग़लत बोल रहा हूँ सावित्री ?

चाचू की बात सुनकर मैं शरमा गयी और सिर्फ सर हिलाकर हामी भर दी. मैंने ज़्यादा बार मम्मी को इस नाइटी में नहीं देखा था.

चाचू – लेकिन इस नाइटी के साथ तो भाभी की कन्सर्वेटिव पैंटी नहीं जमेगी. इसके साथ तो तेरी चाची जैसी पहनती है, वो वाली पैंटी चाहिए.

वो कुछ पल के लिए चुप रहे फिर मुस्कुराते हुए गोला दाग दिया.

चाचू – क्या रे सावित्री, भाभी इस नाइटी के नीचे पैंटी पहनती भी है या नहीं ?

“आप बड़े बेशरम हो. क्या सब पूछ रहे हो चाचू.लेकिन मुझे याद था की एक बार मम्मी को जब मैंने ये वाली नाइटी पहने हुए देखा था तो उन्होंने इसके अंदर कुछ भी नहीं पहना था. रात को मम्मी बेड में लेटी हुई थी और पापा उस समय नहा रहे थे. मुझे मम्मी की चूत भी साफ दिख गयी थी. मुझे देखकर मम्मी ने जल्दी से अपने पैरों में चादर डाल ली थी.

चाचू नाइटी को ऐसे देख रहे थे जैसे मम्मी को उसे पहने हुए कल्पना कर रहे हों. मुझे उनकी लुंगी में उभार दिखने लगा था. वो ऐसा लग रहा था जैसे उनकी लुंगी में कोई छोटा सा पोल खड़ा हो. उसको देखते ही मैं असहज महसूस करने लगी. पर जल्दी ही चाचू की रिक्वेस्ट ने मेरी असहजता की सभी सीमाओं को लाँघ दिया.

चाचू – सावित्री तू थोड़ी हेल्प करेगी ? मैं एक चीज देखना चाहता हूँ.

“क्या चीज चाचू ?”

मैंने मासूमियत से पूछा. चाचू मेरी आँखों में बड़े अजीब तरीके से देख रहे थे. उन्होंने मम्मी की सेक्सी नाइटी अपने हाथों में पकड़ी हुई थी.

चाचू – सावित्री मैं तेरी चाची के लिए एक ऐसी नाइटड्रेस खरीदना चाहता हूँ.

“तो खरीद लीजिए ना, किसने रोका है ? लेकिन आप क्या चीज देखने की बात कर रहे हो ?”

चाचू – देख सावित्री, भाभी को तो मैं देख नहीं सकता इस ड्रेस में. लेकिन खरीदने से पहले किसी को तो देख लूँ इस ड्रेस में. तू क्यू ना एक बार पहन इसको ? कम से कम मुझे आइडिया तो हो जाएगा.

“क्या……???”

चाचू – सावित्री इसमें सोचने वाली तो कोई बात है नहीं. तेरी मम्मी जब पहन सकती है, तो तू क्यू नहीं ? और आज तो घर में कोई नहीं है.

मैं ऐसा तो नहीं कहूँगी की मेरी कभी इच्छा नहीं हुई उस ड्रेस को पहनने की. पर मुझे कभी उसको पहनने का मौका ही नहीं मिला. पर ये तो मैं सपने में भी नहीं सोच सकती थी की उसको किसी मर्द के सामने पहनूं. लेकिन अब मैं चाचू को सीधे सीधे मना भी तो नहीं कर सकती थी.

“पर चाचू….”

अब चाचू की टोन भी रिक्वेस्ट से हुकुम देने की हो गयी.

चाचू – सावित्री अभी तो तू मेरे सामने सिर्फ टॉवेल में खड़ी थी. तो इसे पहनने में शरम कैसी ?

“लेकिन चाचू….”

चाचू – बकवास बंद. ये स्कर्ट और टॉप उतार और ये ड्रेस पहन ले.


कहानी जारी रहेगी


NOTE

1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .


2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.


3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .


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1. मजे - लूट लो जितने मिले
2. दिल्ली में सुलतान V रफीक के बीच युद्ध
3.अंतरंग हमसफ़र
4. पड़ोसियों और अन्य महिलाओ के साथ एक नौजवान के कारनामे
5. गुरुजी के आश्रम में सावित्री
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#23
गुरुजी के आश्रम में सावित्री

CHAPTER 4 तीसरा दिन

पुरानी यादें - Flashback

Update 3


अब मुझे चाचू का हुकुम मानना ही पड़ा. मैंने चाचू से नाइटी ली और अपने कमरे में जाकर दरवाज़ा बंद कर दिया. उन दिनों मेरी लंबाई तेज़ी से बढ़ रही थी और मैं मम्मी से भी थोड़ी लंबी हो गयी थी. आज मैंने और दिनों की अपेक्षा कुछ छोटी स्कर्ट पहनी हुई थी पर ये नाइटी तो और भी छोटी थी. मुझे लगा इस ड्रेस में तो मैं बहुत एक्सपोज हो जाऊँगी.


मैंने अपने सर के ऊपर से टॉप उतार दिया और फिर स्कर्ट को फर्श पे गिरा दिया. मैंने दोनों को हुक पर टाँग दिया. अब मैं सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी. मेरी कसी हुई चूचियाँ सफेद ब्रा में गर्व से तनी हुई थीं. मेरी पैंटी मेरे नितंबों का ज़्यादातर हिस्सा ढके हुए थी. मैंने वो नाइटी अपने बदन के आगे लगा कर देखी तो मुझे लगा की ये तो मेरे नितंबों तक ही पहुँचेगी. मैंने कभी भी इतनी छोटी ड्रेस नहीं पहनी थी. मेरी छोटी से छोटी स्कर्ट भी मेरी आधी जांघों तक आती थी. स्वाभाविक शरम से मेरा हाथ अपनेआप मेरे नितंबों पर पहुँच गया और मैंने पैंटी के कपड़े को खींचकर अपने नितंबों पर फैलाने की कोशिश की ताकि मेरे मांसल नितंब ज़्यादा से ज़्यादा ढक जाए, पर पैंटी जितनी हो सकती थी उतनी फैली हुई थी और अब उससे ज़्यादा बिल्कुल नहीं खिंच रही थी.

चाचू – सावित्री सो गयी क्या ? एक सिंपल सी ड्रेस पहनने में तू कितना टाइम लेगी ?

“चाचू जरा सब्र तो कीजिए.”

मैंने मम्मी की नाइटी अपने सर से नीचे को डाल ली. खुशकिस्मती से ड्रेस मेरी चूचियों को ठीक से ढक रही थी लेकिन कंधों पर बड़ा कट था. इससे मेरी सफेद ब्रा के स्ट्रैप दोनों कंधों पर खुले में दिख रहे थे. ये बहुत भद्दा लग रहा था पर उस नाइटी के कंधे ऐसी ही थे. नाइटी की लंबाई कम होने से वो सिर्फ मेरे गोल नितंबों को ही ढक पा रही थी.

उस नाइटी का बीच वाला हिस्सा बहुत झीना था. इस बात पर पहले मेरा ध्यान नहीं गया था. पर पहनने के बाद मैंने देखा , इस पतली नाइटी में तो मेरी नाभि और पेट का कुछ हिस्सा दिख रहा है. मैं सोचने लगी,” मम्मी ऐसी ड्रेस कैसे पहन लेती है ? इस उमर में भी वो इतनी बेशरम कैसे बन जाती है ?”

मैंने अपने को शीशे में देखा और मुझे बहुत लज्जा आई , मेरा मुँह शरम से लाल हो गया. मैं ऐसी बनके चाचू के पास जाऊँ या नहीं ? मैं दुविधा में पड़ गयी.

खट …खट …..चाचू दरवाज़ा खटखटाने लगे.

चाचू – सावित्री जल्दी आ.

अब मेरे पास कोई चारा नहीं था सिवाय इसके की मैं दरवाज़ा खोलूं और उस बदन दिखाऊ नाइटी में चाचू के सामने आऊं.

खट …खट …..चाचू दरवाज़ा खटखटाने लगे.

चाचू – सावित्री जल्दी आ.

अब मेरे पास कोई चारा नहीं था सिवाय इसके की मैं दरवाज़ा खोलूं और उस बदन दिखाऊ नाइटी में चाचू के सामने आऊं. हिचकिचाते हुए मैंने दरवाज़ा खोल दिया पर शरम की वजह से मैं कमरे से बाहर नहीं आ पाई. दरवाज़ा खुलते ही चाचू अंदर आ गये और मुझे देखने लगे. मैं सर झुकाए और अपनी टाँगों को चिपकाए हुए खड़ी थी. चाचू की आँखों के सामने मेरी गोरी जाँघें और टाँगें पूरी नंगी थीं.

चाचू – वाउ! सावित्री तू तो बड़ी सेक्सी लग रही है इस ड्रेस में. किसी हीरोइन से कम नहीं.

चाचू के मुँह से ‘सेक्सी’शब्द सुनकर मुझे एक पल को झटका लगा . वो मुझसे काफी बड़ी उम्र के थे और मैंने पहले कभी चाचू से इस तरह के कमेंट्स नहीं सुने थे. लेकिन सच कहूँ तो उस समय अपनी तारीफ सुनकर मुझे खुशी हुई थी. वो मेरे नजदीक़ आए और मेरे पेट को ऐसे छुआ जैसे उन्हें उस ड्रेस में मैं अच्छी लगी हूँ. मैंने देखा उनकी नजरें मेरे पूरे बदन में घूम रही थीं. मैं उस कमरे में चाचू के सामने अधनंगी हालत में खड़ी थी. मैंने ख्याल किया की अब चाचू बाएं हाथ से अपनी लुंगी के आगे वाले हिस्से को रगड़ रहे हैं, बल्कि लुंगी के अंदर वो अपने लंड को सहला रहे थे, ये देखकर मैं बहुत असहज महसूस करने लगी.

चाचू – सावित्री एक काम करते हैं , मेरे कमरे में चलते हैं.

ऐसा कहते हुए चाचू ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे कमरे से बाहर खींच लिया. फिर वो अपने कमरे की तरफ जाने लगे. मेरे पास भी उनके पीछे जाने के सिवा कोई चारा नहीं था. चलते समय ड्रेस का पतला कपड़ा मेरे हर कदम के साथ ऊपर उठ जा रहा था. मुझे चिंता होने लगी की कहीं पीछे से मेरी पैंटी तो नहीं दिख जा रही है. मैं खुद अपने पीछे नहीं देख सकती थी इसलिए मुझे और भी ज़्यादा घबराहट होने लगी. पर जल्दी ही ये बात मुझे खुद चाचू से पता चल गयी.

जब हम चाचू के कमरे में पहुचे तो उन्होंने लाइट्स ऑन कर दी. कमरे में पहले से ही उजाला था इसलिए मुझे समझ नहीं आया की चाचू ट्यूबलाइट और एक तेज बल्ब को क्यूँ जला रहे हैं. कमरे में तेज रोशनी होने से मुझे ऐसा लगा जैसे मैं और भी ज़्यादा एक्सपोज हो गयी हूँ.

“चाचू, लाइट्स क्यूँ जला रहे हो ? उजाला तो वैसे ही हो रहा है.”

चाचू – क्यूँ ? तुझे क्या परेशानी है लाइट्स से ?

“नहीं चाचू परेशानी नहीं है. पर ये ड्रेस इतनी छोटी है की…….”

चाचू – की तुझे शरम आ रही है. है ना ?

मैंने हामी में सर हिला दिया.

चाचू – चल तू आधी नंगी है तो मैं भी वही हो जाता हूँ. तब चीज बराबर हो जाएगी और तुझे शरम नहीं आएगी.

“नहीं चाचू मेरा वो मतलब नहीं……..”

मैं अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी की चाचू ने अपनी लुंगी फर्श पर गिरा दी. मुझे कुछ कहने का मौका दिए बिना उन्होंने अपनी बनियान भी उतार दी. अब वो मेरे सामने सिर्फ कच्छे में खड़े थे और उसमें उभार मुझे साफ दिखाई दे रहा था. कच्छे के अंदर उनका लंड कपड़े को बाहर को ताने हुए बहुत अश्लील लग रहा था. उस समय तक मैंने कभी किसी मर्द को अपने सामने ऐसे नंग धड़ंग नहीं देखा था. मुझे अपने जवान बदन में गर्मी बढ़ती हुई महसूस हुई.

चाचू ने मुझे तेज रोशनी वाले बल्ब के नीचे खड़े होने को कहा. मैंने वैसा ही किया , मेरी आँखें चाचू के कच्छे में खड़े लंड पर टिकी हुई थीं. चाचू की नजरें मेरी गोरी टाँगों पर थी. अब वो मेरे बहुत नजदीक़ आ गये और गौर से मेरे पूरे बदन को देखने लगे.

चाचू – सावित्री, तेरी ब्रा तो दिख रही है.

“जी चाचू. कंधों पर कोई कवर नहीं है ना इसलिए ब्रा के स्ट्रैप दिख रहे हैं.”

चाचू – ये एक एडवांटेज है तेरी चाची को अगर वो ये ड्रेस पहनती है. क्यूंकी उसके बाल लंबे हैं तो कंधा उससे ढक जाएगा.

“जी चाचू.”

अब चाचू ने मेरे कंधे में ब्रा के स्ट्रैप को छुआ. मेरे कंधे नंगे थे, वहाँ पर सिर्फ ड्रेस के फीते और ब्रा के स्ट्रैप थे. चाचू के मेरी ब्रा के स्ट्रैप को छूने से मेरे बदन में कंपकपी दौड़ गयी.

चाचू – ये क्या फ्रंट ओपन ब्रा है सावित्री ?

वो मेरी ब्रा के स्ट्रैप को छूते हुए पूछ रहे थे. मेरे बहुत नजदीक़ खड़े होने से उनको मेरी थोड़ी सी क्लीवेज भी दिख रही थी. मैं उनको ऐसे अपना बदन दिखाते हुए और उनके अटपटे सवालों का जवाब देते हुए बहुत शर्मिंदगी महसूस कर रही थी.

“नहीं चाचू. ये बैक ओपन है. फ्रंट ओपन इतनी रिस्की होती है , एक बार हुक खुल गया था तो……..”

चाचू – हम्म्म ……लेकिन तेरी उमर की बहुत सारी लड़कियाँ फ्रंट ओपन ब्रा पहनती हैं क्यूंकी बैक ओपन ब्रा की हुक खोलना और लगाना आसान नहीं है.

“हाँ वो तो है. मैं भी तो कितनी बार नेहा दीदी को बोलती हूँ हुक लगाने के लिए.”

शुक्र कर आज किसी को बुलाना नहीं पड़ा, नहीं तो मुझे तेरी ब्रा का हुक लगाना पड़ता.

मैं शरमा गयी और खी खी कर हंसने लगी. वो मेरी मासूमियत से खेल रहे थे पर उस समय मुझे इतनी समझ नहीं थी.

चाचू – सावित्री, मैं यहाँ कुर्सी में बैठता हूँ. तू एकबार मेरे सामने से दरवाज़े तक जा और फिर वापस आ.

“पर क्यूँ चाचू ?”

चाचू – तू जब यहाँ आ रही थी मुझे लगा की ड्रेस के नीचे से तेरी पैंटी दिख रही है, तेरे चलने पर दिख रही है. ऐसा तो होना नहीं चाहिए.

ये सुनकर मैं अवाक रह गयी. मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा. शर्मिंदगी से मैं सर भी नहीं उठा पा रही थी.

मैंने वैसा ही किया जैसा चाचू ने हुकुम दिया था. चलने से पहले मैंने ड्रेस को नीचे खींचने की कोशिश की पर बदक़िस्मती से वो छोटी ड्रेस बिल्कुल भी नीचे नहीं खिंच रही थी.

चाचू – सावित्री तेरी पैंटी तो साफ दिख रही है ड्रेस के नीचे से. तूने सफेद रंग की पैंटी पहनी है ना ?

चाचू के कमेंट से मैंने बहुत अपमानित और शर्मिंदगी महसूस की. मुझे समझ नहीं आ रहा था की क्या करूँ , इसलिए चुपचाप सहन कर लिया. मैंने सर हिलाकर हामी भर दी की सफेद पैंटी पहनी है.

चाचू – अच्छा अब एक बार मेरे पास आ. मैं जरा देखूं इसे कुछ किया जा सकता है की नहीं.

मेरे पास कहने को कुछ नहीं था , मैं चाचू की कुर्सी के पास आ गयी. वो मेरे सामने झुक गये और अब उनकी आँखें मेरी गोरी गोरी जांघों के सामने थीं. अब दोनों हाथों से उन्होंने मेरी ड्रेस के सिरों को पकड़ा और नीचे खींचने की कोशिश की पर वो नीचे नहीं आई.

चाचू – सावित्री, ये ड्रेस तो और नीचे नहीं आएगी. लेकिन एक काम हो सकता है शायद.

मैंने चाचू को उलझन भरी निगाहों से देखा. वो खड़े हो गये.

चाचू – ये जो ड्रेस के फीते तूने कंधे पर बाँधे हैं ना , उनको थोड़ा ढीला करना पड़ेगा, तब ये ड्रेस थोड़ा नीचे आएगी.

उनके सुझाव से मेरे दिल की धड़कन एक पल के लिए बंद हो गयी.

“पर चाचू उनको ढीला करने से तो नेकलाइन डीप हो जाएगी.”

चाचू – देख सावित्री, ये ड्रेस तो तेरी मम्मी की चॉइस है. दाद देनी पड़ेगी भाभी को. या तो पैंटी एक्सपोज करो या फिर ब्रा.

अब ये तो मेरे लिए उलझन वाली स्थिति हो गयी थी. मैंने चाचू पर ही बात छोड़ दी.

“चाचू मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है. मम्मी ने ये कैसी ड्रेस खरीदी है.”

चाचू – तू सिर्फ चुपचाप खड़ी रह. मैं देखता हूँ.

अब चाचू ने मेरे कंधों पर ड्रेस के फीतों को ढीला कर दिया. फीते ढीले करते हुए चाचू ने ड्रेस के अंदर झाँककर मेरी ब्रा से ढकी हुई चूचियों को देखा जो मेरे सांस लेने से ऊपर नीचे हो रही थीं. चाचू ने शालीनता की सभी सीमाओं को लाँघते हुए मेरी ड्रेस को इतना नीचे कर दिया की मेरी आधी ब्रा दिखने लगी और ब्रा के दोनों कप्स के बीच पूरी क्लीवेज दिख रही थी. ड्रेस को इतना नीचे करके अब वो मेरे कंधों पर फीते बाँधने लगे. मैंने विनती करते हुए विरोध करने की कोशिश की .

“चाचू, प्लीज ऐसे नहीं. मेरी आधी दूध दिख रही हैं.”

चाचू – कहाँ दिख रही हैं. मैं तो सिर्फ ब्रा देख पा रहा हूँ.

“आप आज बड़े बेशरम हो गये हो चाचू.”

चाचू ने मेरे कंधों पर फीते ढीले करके बाँध दिए और अब ड्रेस मेरे नितंबों से थोड़ी नीचे तक आ गयी.

चाचू – अब जाके तेरी पैंटी सेफ हुई. एकबार घूम जा.

मैं चाचू की तरफ पीठ करके घूम गयी. वो फिर से कुर्सी में झुक गये थे , इससे मेरे बड़े नितंब उनके चेहरे के सामने हो गये. तभी चाचू ने मेरी पैंटी देखने के लिए मेरी नाइटी ऊपर उठा दी. उनकी इस हरकत से मैं स्तब्ध रह गयी और शर्मिंदगी से पीछे भी नहीं मुड़ पायी.

“आउच. चाचू क्या कर रहे हो ?”

मैंने पैंटी से ढके हुए अपने नितंबों पर चाचू की अँगुलियाँ घूमती हुई महसूस की. वो धीमे से मेरे नितंबों को दबा रहे थे. एक हाथ से उन्होंने मेरी ड्रेस को ऊपर उठाया हुआ था और दूसरा हाथ मेरे नितंबों पर घूम रहा था. उनकी इस हरकत से मैं बहुत अटपटा महसूस कर रही थी और शरम से मेरा मुँह लाल हो गया था पर सच कहूँ तो मेरी चूत से रस बहने लगा था. फिर चाचू ने अपना हाथ आगे ले जाकर पैंटी के ऊपर से मेरी चूत को छुआ और उसे सहलाया. मैं अब और बर्दाश्त नहीं कर पायी और शरम से चाचू से थोड़ी दूर छिटक गयी.

चाचू – क्या हुआ सावित्री ?

मेरे मुँह से आवाज ही नहीं निकल रही थी. मैं अपने चाचू की तरफ पीठ करके अधनंगी खड़ी थी और वो भी सिर्फ कच्छा पहने हुए थे. मेरी दोनों चूचियाँ ड्रेस नीचे करने के कारण ब्रा के ऊपर से दिख रही थीं.

अब चाचू कुर्सी से उठ गये और मेरे पास आए.

“चाचू , ये आप ठीक नहीं कर रहे हो.”

हिम्मत जुटाते हुए मैंने अपने पीछे खड़े चाचू से कहा.

चाचू – क्या ठीक नहीं किया मैंने ? मतलब क्या है तेरा ?

अचानक चाचू के बोलने का लहज़ा बदल गया और उनकी आवाज कठोर हो गयी.

चाचू – क्या बोलना चाहती है तू ?

चाचू में अचानक आए इस बदलाव से मैं थोड़ी डर गयी.

“चाचू मेरा वो मतलब नहीं था.”

चाचू ने मुझे अपनी तरफ घुमाया और मुझसे जवाब माँगने लगे. उनके डर से मेरे मुँह से कोई शब्द ही नहीं निकल रहे थे.

चाचू – सावित्री मैं जानना चाहता हूँ की क्या ठीक नहीं किया मैंने ?

चाचू गुर्राते हुए बोले. मैं बहुत डर गयी थी.

चाचू – तू मेरी गोद में खेल कूद के बड़ी हुई है. तेरी हिम्मत कैसे हुई ऐसा बोलने की ?

चाचू का गुस्सा देखकर मैं इतना डर गयी की मैंने उनके आगे समर्पण कर दिया. घबराहट से मेरी आँखों में आँसू आ गये. मैं चाचू के गले लग गयी और माफी माँगने लगी.

“चाचू मुझे माफ कर दीजिए . मेरा वो मतलब नहीं था.”

मैंने नहीं समझा था की चाचू इस स्थिति का ऐसा फायदा उठाएँगे.

चाचू – क्या माफ. अभी तूने बोला की मैं ये ठीक नहीं कर रहा हूँ. तू बता मुझे क्या ग़लत किया है मैंने ? नहीं तो भाभी को आने दे , मैं उनसे बात करता हूँ.

वो थोड़ा रुके फिर…….

चाचू – भाभी को अगर पता लगा की उनकी ये प्राइवेट ड्रेस मैं देख चुका हूँ तेरे जरिए . तू सोच ले क्या हालत होगी तेरी.

मम्मी से शिकायत की बात सुनते ही मैं बहुत घबरा गयी. चाचू उल्टा मुझे फँसाने की धमकी दे रहे थे. उस समय मैं नासमझ थी और मम्मी का जिक्र आते ही डर गयी. और उस बेवक़ूफी भरे डर की वजह से कुछ ही देर बाद चाचू के हाथों मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा अपमान मुझे सहना पड़ा.

चाचू ने मुझे अपने से अलग किया और मेरे नंगे कंधों को पकड़कर कठोरता से मेरी आँखों में देखा. मम्मी का जिक्र आने से मेरी आवाज काँपने लगी.

“चाचू प्लीज , मम्मी को कुछ मत बोलना.”

चाचू – क्यूँ ? मुझे तो बोलना है भाभी को की उनकी छोटी लड़की अब इतनी बड़ी हो गयी है की अपने चाचा पर अंगुली उठा रही है.

“चाचू प्लीज. मैं बोल तो रही हूँ, आप जो बोलोगे मैं वही करूँगी. सिर्फ मम्मी को मत बोलिएगा.”

चाचू – देख रश्मि , एक बार तेरी चाची भी ग़लत इल्ज़ाम लगा रही थी मुझ पर . लेकिन अंत में उसको मेरे आगे समर्पण करना पड़ा. वो भी यही बोली थी , ‘आप जो बोलोगे मैं वही करूँगी’.

चाचू कुछ पल रुके फिर ….

चाचू – वो मेरी बीवी है जरूर लेकिन मुझ पर ग़लत इल्ज़ाम लगाने का सबक सीख गयी थी उस दिन. पूछ क्या करना पड़ा था तेरी चाची को ?

“क्या करना पड़ा था चाची को ?”

चाचू – बंद कमरे में एक गाने की धुन पर नाचना पड़ा था उसको , नंगी होकर.

“नंगी …………???”

मैंने चाची को नंगी होकर नाचते हुए कल्पना करने की कोशिश की, उसका इतना मोटा बदन था , देखने में बहुत भद्दी लग रही होगी. फिर मुझे डर लगने लगा ना जाने चाचू मुझसे क्या करने को कहेंगे. मैंने चाचू से विनती करने की कोशिश की.

“चाचू मुझ पर रहम करो प्लीज.”

चाचू – चल किया.

मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ. मैंने चाचू को विस्मित नजरों से देखा.

“सच चाचू ?”

चाचू – हाँ सच. तुझे मैं नहीं बोलूँगा की तू मेरे सामने नंगी होकर नाच.

मुझ पर जैसे बिजली गिरी. मैं चुप रही और सांस रोककर इंतज़ार करने लगी की वो मुझसे क्या चाहते हैं.

चाचू – तुझे कुछ खास नहीं करना सावित्री. सिर्फ मेरे सामने ये ड्रेस उतार दे और अब तो मेरे लंच का टाइम हो गया है, मुझे खाना परोस दे. फिर तेरी छुट्टी.

अगले कुछ पलों तक मुझे ये विश्वास ही नहीं हो रहा था की चाचू मुझसे अपने सामने मेरी ड्रेस उतारने को कह रहे हैं. फिर मैं चाचू से विनती करने लगी पर उनपर कुछ असर नहीं हुआ. अब मैं अपनी ड्रेस उतारने के बाद होने वाली शर्मिंदगी की कल्पना करके सुबकने लगी थी. जब मुझे एहसास हुआ की मैं चाचू को अपना मन बदलने के लिए राज़ी नहीं कर सकती तब मैं कमरे के बीच में चली गयी और ड्रेस उतारने के लिए अपने मन को तैयार करने लगी.

मैंने अपने कंधों से ड्रेस के फीते खोले और मुझे कुछ और करने की जरूरत नहीं पड़ी. फीते खोलते ही ड्रेस मेरे पैरों में गिर गयी. अब मैं चाचू के सामने सिर्फ ब्रा और पैंटी में खड़ी थी. मेरे जवान गोरे बदन के उतार चढ़ाव तेज लाइट में चमक रहे थे. चाचू मुझे कामुक नजरों से देख रहे थे. शर्मिंदगी से मुझे अपना मुँह कहाँ छुपाऊँ हो गयी.

चाचू – चल अब खाना परोस दे.

“चाचू आप एक मिनट रूको, मैं जल्दी से अपने कमरे से एक मैक्सी पहन लेती हूँ . फिर आपका खाना परोस देती हूँ.”

चाचू – सावित्री मैंने क्या बोला था ? मैंने बोला था ‘मेरे सामने ये ड्रेस उतार दे और मुझे खाना परोस दे’. मतलब ये ब्रा और पैंटी पहने हुए तू किचन में जाएगी और मेरे लिए खाना परोसेगी.

मैं गूंगी गुड़िया की तरह चाचू का मुँह देख रही थी.

चाचू – सावित्री, फालतू में मेरा टाइम बर्बाद मत कर. आगे आगे चल. मुझे देखना है की तेरी गांड सिर्फ पैंटी में कैसी लगती है.

चाचू का हुकुम मानने के सिवा मेरे पास कोई चारा नहीं था. मैं सिर्फ ब्रा और पैंटी में चाचू के कमरे से बाहर आई और चाचू मेरे पीछे चल रहे थे . वो अश्लील कमेंट्स कर रहे थे और मैं शर्मिंदगी से सुबक रही थी. उसी हालत में मैं किचन में गयी और चाचू के लिए खाना गरम करने लगी. चाचू किचन के दरवाज़े में खड़े होकर मुझे देख रहे थे. किचन में जब भी मैं किसी काम से झुकती तो मेरी दोनों चूचियाँ ब्रा से बाहर निकलने को मचल उठती, उन्हें उछलते देखकर चाचू अश्लील कमेंट्स कर रहे थे.

फिर मैंने डाइनिंग टेबल में चाचू के लिए खाना लगा दिया. वो खाना खा रहे थे और मैं उनके सामने सर झुकाए हुए अधनंगी खड़ी थी. मुझे ऐसा लग रहा था की एक मर्द के सामने ऐसे अंडरगार्मेंट्स में खड़े रहने से तो नंगी होना ज़्यादा अच्छा है. आख़िरकार चाचू के खाना खा लेने के बाद मेरा ह्युमिलिएशन खत्म हुआ.

चाचू – जा सावित्री , अब अपने कमरे में जाकर स्कर्ट ब्लाउज पहन ले. दिल खट्टा मत कर. और एक बात याद रख, आज जो भी हुआ इसका जिक्र अगर तूने किसी से किया तो तेरी खैर नहीं.

मैं अपने कमरे में चली गयी और दरवाज़ा बंद कर दिया. बहुत अपमानित महसूस करके मेरी रुलाई फूट पड़ी और मैं बेड में लेटकर रोने लगी. कुछ देर बाद मैं नॉर्मल हुई और फिर मैंने स्कर्ट टॉप पहनकर अपने बदन को ढक लिया.

………………. फ्लैशबैक समाप्त ………………

कहानी जारी रहेगी


NOTE

1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .


2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.


3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .


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2. दिल्ली में सुलतान V रफीक के बीच युद्ध
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#24
सबको नए साल की बधाईया
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#25
गुरुजी के आश्रम में सावित्री

CHAPTER 4 चौथा दिन

सुबह सुबह

Update 1



“विकास ये थी मेरी कहानी. उस दिन को याद करके मुझे बाद के दिनों में भी शर्मिंदगी महसूस होती थी. मैंने उस दिन इतना अपमानित महसूस किया की दिन भर रोती रही. “

विकास – सही बात है मैडम. कैसे हमारे अपने रिश्तेदार हमारा शोषण करते हैं और हम कुछ नहीं कर पाते. मेरी भावनाएँ तुम्हारी भावनाओं जैसी ही हैं.

हमने इस बारे में कुछ और बातें की . कुछ देर बाद हमारी नाव नदी किनारे आ गयी और वहाँ से हम वापस मंदिर आ गये. बैलगाड़ी पहले से मंदिर के पास खड़ी थी. मैं आधी संतुष्ट (विकास के साथ ओर्गास्म से) और आधी डिप्रेस्ड ( बचपन की उस घटना को याद करने से) अवस्था में आश्रम लौट आई

आश्रम पहुँचते पहुँचते काफ़ी देर हो चुकी थी. मैं अपने कमरे में आकर सीधे बाथरूम गयी और नहाने लगी. अपने सभी ओर्गास्म के बाद मेरा यही रुटीन था, दो दिनों में ये चौथी बार मुझे ओर्गास्म आया था. मेरा मन बहुत प्रफुल्लित था क्यूंकी पिछले 48 घंटो में मैं बहुत बार कामोत्तेजना के चरम पर पहुंची थी.

मुझे इतना अच्छा महसूस हो रहा था की मेरी बेशर्मी से की गयी हरकतों पर भी मुझे कोई अपराधबोध नहीं हो रहा था. मेरी शादीशुदा जिंदगी में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था की इतने कम समय में इतनी ज़्यादा बार चरम उत्तेजना से कामसुख मिला हो. मन ही मन मैंने इसके लिए गुरुजी को धन्यवाद दिया और मुझे आशा थी की उनके उपचार से मेरी गर्भवती होने की चाह ज़रूर पूरी होगी.

जब मैं नहाते समय नीचे झुकी तो मुझे गांड के छेद में दर्द हुआ . विकास ने तेल लगाकर मुझे बहुत ज़ोर से चोदा था पर शायद कामोत्तेजना की वजह से उस समय मुझे ज़्यादा दर्द नहीं महसूस हुआ था. पर अब मुझे गांड में थोड़ा दर्द महसूस हो रहा था. मैंने सोचा रात में अच्छी नींद आ जाएगी तो सुबह तक दर्द ठीक हो जाएगा. इसलिए मैंने जल्दी से डिनर किया और फिर सो गयी.

डिनर से पहले मंजू मेरा पैड लेने आई थी. उसने याद दिलाया की सुबह 6: 30 बजे गुरुजी के पास जाना होगा और फिर वो मुझे देखकर मुस्कुराते हुए चली गयी. मैं शरमा गयी , ऐसा लग रहा था जैसे मंजू मेरी आँखों में झाँककर सब जान चुकी है. डिनर करने के बाद मैंने गुरु माता द्वारा दी गई क्रीम का उपयोग अपने पूरे शरीर जिसमें मेरी योनि, स्तन, कमर, कूल्हों और गुदा शामिल थे पर किया मैंने नाइटी पहन ली और लाइट ऑफ करके सो गयी.

“खट……..खट…….खट ….”

सुबह किसी के दरवाज़ा खटखटाने से मेरी नींद खुली. मैं थोड़ी देर और सोना चाह रही थी. मैंने चिड़चिड़ाते हुए जवाब दिया.

“ठीक है. मैं उठ गयी हूँ. आधे घंटे बाद गुरुजी के पास आती हूँ.”

वो लोग मुझे आधा घंटा पहले उठा देते थे, ताकि गुरुजी के पास जाने से पहले तब तक मैं बाथरूम जाकर फ्रेश हो जाऊँ. इसलिए मैंने वही समझा और बिना पूछे की दरवाज़े पर कौन है, जवाब दे दिया.

“खट……..खट…….खट ….”

“अरे बोल तो दिया अभी आ रही हूँ.”

“खट……..खट…….खट ….”

अब मैं हैरान हुई. ये कौन है जो मेरी बात नहीं सुन रहा है ? अब मुझे बेड से उठना ही पड़ा. मैंने नाइटी के अंदर कुछ भी नहीं पहना हुआ था. मैंने सोचा मंजू या परिमल मुझे उठाने आया होगा . मैंने ब्रा और पैंटी पहनने की ज़रूरत नहीं समझी और नाइटी को नीचे को खींचकर सीधा कर लिया.

“कौन है ?”

बिना लाइट्स ऑन किए हुए दरवाज़ा खोलते हुए मैं बुदबुदाई. मेरे कुछ समझने से पहले ही मैं किसी के आलिंगन में थी और उसने मेरे होठों का चुंबन ले लिया. अब मेरी नींद पूरी तरह से खुल गयी, बाहर अभी भी हल्का अंधेरा था इसलिए मैं देख नहीं पाई की कौन था. मैं अभी अभी गहरी नींद से उठी थी इसलिए कमज़ोरी महसूस कर रही थी. इससे पहले की मैं कुछ विरोध कर पाती उस आदमी ने अपने दाएं हाथ से मेरी कमर पकड़ ली और बाएं हाथ से मेरी दायीं चूची को पकड़ लिया. नाइटी के अंदर मैंने ब्रा नहीं पहनी थी इसलिए मेरी चूचियाँ हिल रही थीं. उसने मेरी चूची को दबाना शुरू कर दिया. वो जो भी था मजबूत बदन वाला था.

“आहह…….. ..कौन हो तुम. रूको……..”

विकास – मैडम , मैं हूँ. विकास. तुमने मुझे नहीं पहचाना ?

विकास के वहां होने की तो मैं सोच भी नहीं सकती थी क्यूंकी वो तो आश्रम से बाहर ले जाने ही आता था. मुझे हैरानी भी हुई पर साथ ही साथ मैं रोमांचित भी हुई. दरवाज़ा खोलते ही जैसे उसने मुझे आलिंगन कर लिया था और मेरा चुंबन ले लिया , उससे मुझे ये देखने का भी मौका नहीं मिला था की कौन है. विकास है जानकर मैंने राहत की सांस ली.

“अभी तो बाहर अंधेरा है. वो लोग तो मुझे 6 बजे उठाने आते हैं.”

विकास – हाँ मैडम. अभी सिर्फ़ 5 बजा है. मुझे बेचैनी हो रही थी इसलिए मैं तुम्हारे पास आ गया.

“अच्छा. तो ये तरीका है तुम्हारा किसी औरत से मिलने का ?”

अब हम दोनों मेरे कमरे में एक दूसरे के आलिंगन में थे और कमरे की लाइट्स अभी भी ऑफ ही थी. विकास के होंठ मेरे चेहरे के करीब थे और उसके हाथ मेरी कमर और पीठ पर थे. कभी कभी वो मेरे नितंबों को नाइटी के ऊपर से सहला रहा था.

“नहीं. सिर्फ़ तुमसे मिलने का. तुम मेरे लिए ख़ास हो.”

“हम्म्म ……..तुम भी मेरे लिए खास हो डियर…..”

हम दोनों ने एक दूसरे का देर तक चुंबन लिया. हमारी जीभों ने एक दूसरे के मुँह का स्वाद लिया. मैंने उसको कसकर अपने आलिंगन में लिया हुआ था और उसके हाथ मेरे बड़े नितंबों को दबा रहे थे.

विकास – मैडम, नाव में एक चीज़ अधूरी रह गयी . मैं उसे पूरा करना चाहता हूँ.

“क्या चीज़ ..?”

मैं विकास के कान में फुसफुसाई. मुझे समझ नहीं आया वो क्या चाहता है.

विकास – मैडम, नाव में बाबूलाल भी था इसलिए मैं तुम्हें पूरी नंगी नहीं देख पाया.

विकास के मेरे बदन से छेड़छाड़ करने से मैं उत्तेजना महसूस कर रही थी. मैं उसके साथ और वक़्त बिताना चाहती थी. उसकी इच्छा सुनकर मैं खुश हुई पर ये बात मैंने उस पर जाहिर नहीं होने दी.

“लेकिन विकास तुमने नाव में मेरा पूरा बदन देख तो लिया था.”

विकास – नहीं मैडम, बाबूलाल की वजह से मैंने तुम्हारी पैंटी नहीं उतारी थी. लेकिन अभी यहाँ कोई नहीं है, मैं तुम्हें पूरी नंगी देखना चाहता हूँ. तुमने अभी पैंटी पहनी है, मैडम ?

उसने मेरे जवाब का इंतज़ार नहीं किया और दोनों हाथों से मेरी नाइटी के ऊपर से मेरे नितंबों पर हाथ फेरा, उन्हें सहलाया और दबाया , जैसे अंदाज़ कर रहा हो की पैंटी पहनी है या नहीं.

विकास – मैडम, पैंटी के बिना तुम्हारी गांड मसलने में बहुत अच्छा लग रहा है.

वो मेरे कान में फुसफुसाया. मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और उसकी हरकतों का मज़ा लेती रही. मेरे नितंबों को मलते हुए उसने मेरी नाइटी को मेरे नितंबों तक ऊपर उठा दिया. नाइटी छोटी थी और उसके ऐसे ऊपर उठाने से मेरी टाँगें और जाँघें पूरी नंगी हो गयीं , मैं उस पोज़ में बहुत नटखट लग रही थी.

विकास थोड़ा झुका और मुझे अपनी गोद में उठा लिया , मेरी दोनों टाँगें उसकी कमर के दोनों तरफ थीं. मुझे ऐसे गोद में उठाकर उसने गोल गोल घुमाया जैसे फिल्मों में हीरो हीरोइन को घुमाता है. मुझे बहुत मज़ा आ रहा था . मेरे पति ने कभी मुझे ऐसे गोद में लेकर प्यार नहीं किया, ना हनीमून में और ना ही घर में. विकास अच्छी तरह से जानता था की एक औरत को कैसे खुश करना है.

“विकास, प्लीज़ मुझे नीचे उतारो.”

विकास – मैडम , नीचे कहाँ ? बेड में ?

हम दोनों हँसे. उसने मुझे थोड़ी देर अपनी गोद में बिठाये रखा. अपने हाथों और चेहरे से मेरे अंगों को महसूस करता रहा. फिर मुझे नीचे उतार दिया. अब वो मेरे होठों को चूमने लगा और उसके हाथ मेरी नाइटी को ऊपर उठाने लगे. मुझे महसूस हुआ की नाइटी मेरे नितंबों तक उठ गयी है और मेरे नितंब खुली हवा में नंगे हो गये हैं. उन पर विकास के हाथों का स्पर्श मैंने महसूस किया . मैंने विकास के होठों से अपने होंठ अलग किए और उसे रोकने की कोशिश की.

“विकास, प्लीज़……”

विकास – हाँ मैडम , मैं तुम्हें खुश ही तो कर रहा हूँ.

उसने मेरी नाइटी को पेट तक उठा दिया और मेरी चूत देखने के लिए झुक गया. फिर उसने मेरी नंगी चूत के पास मुँह लगाया और उसे चूमने लगा. मैं शरमाने के बावज़ूद उत्तेजना से कांप रही थी. वो मेरे प्यूबिक हेयर्स में अपनी नाक रगड़ रहा था और वहाँ की तीखी गंध को गहरी साँसें लेकर अपने नथुनों में भर रहा था. अब उसकी जीभ मेरी चूत के होठों को छेड़ने लगी , मेरी चूत बहुत गीली हो चुकी थी.

दोनों हाथों से उसने मेरे सुडौल नितंबों को पकड़ा हुआ था. मेरे पति ने भी मेरी चूत को चूमा था पर हमेशा बेड पर. मैं बिना पैंटी के नाइटी में थी और नाइटी मेरी कमर तक उठी हुई थी और एक मर्द जो की मेरा पति नहीं था , मेरी चूत को चूम रहा था , ऐसा तो मेरी जिंदगी में पहली बार हुआ था.

कुछ ही देर में मुझे ओर्गास्म आ गया और मेरे रस से विकास का चेहरा भीग गया. मेरी चूत को चूसने के बाद वो उठ खड़ा हुआ . फिर उसने अपने दाएं हाथ की बड़ी अंगुली को मेरी चूत में डाल दिया और अंदर बाहर करने लगा. मैंने भी मौका देखकर उसकी धोती में मोटा कड़ा लंड पकड़ लिया और अपने हाथों से उसे सहलाने और उसके कड़ेपन का एहसास करने लगी .

विकास मुझे बहुत काम सुख दे रहा था , अब मैं उसके साथ चुदाई का आनंद लेना चाहती थी. कल मैं जड़ी बूटियों के प्रभाव में थी लेकिन आज तो मैं अपने होशोहवास में थी और मेरा मन हो रहा था की विकास मुझे रगड़कर चोदे. मेरे मन के किसी कोने में ये बात जरूर थी की मैं शादीशुदा औरत हूँ और मुझे विकास के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए. लेकिन मुझे इतना मज़ा आ रहा था की मैंने अपनी सारी शरम एक तरफ रख दी और एक रंडी की तरह विकास से चुदाई के लिए विनती की.

“ विकास, प्लीज़ अब करो ना. मैं तुम्हें अपने अंदर लेने को मरी जा रही हूँ.”

तब तक विकास ने मेरी नाइटी को चूचियों के ऊपर उठा दिया था और अब नाइटी सिर्फ़ मेरे कंधों को ढक रही थी. मेरा बाकी सारा बदन विकास के सामने नंगा था. मेरी चूचियाँ दो बड़े गोलों की तरह थीं जो मेरे हिलने डुलने से ऊपर नीचे उछल रही थीं और विकास का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर रही थीं. मेरे गुलाबी निपल्स उत्तेजना से कड़े हो चुके थे और अंगूर की तरह बड़े दिख रहे थे. विकास ने उन्हें चूमा, चाटा और चूसा और अपनी लार से उन्हें गीला कर दिया. अब मैं इतनी गरम हो चुकी थी की मैंने खुद अपनी नाइटी सर से निकालकर फेंक दी और विकास के सामने पूरी नंगी हो गयी.

मैं पहली बार किसी गैर मर्द के सामने पूरी नंगी खड़ी थी. मुझे बिल्कुल भी शरम नहीं महसूस हो रही थी बल्कि मुझे चुदाई की बहुत इच्छा हो रही थी.

विकास – मैडम , चलो बेड में .

वो मेरे कान में फुसफुसाया और तभी जैसे वो प्यारा सपना टूट गया.

“खट……..खट…….”

विकास एक झटके से मुझसे अलग होकर दूर खड़ा हो गया और अपने होठों पर अंगुली रखकर मुझसे चुप रहने का इशारा करने लगा.

विकास – मैडम , दरवाज़ा मत खोलना. मैं परेशानी में पड़ जाऊँगा. ऐसे ही बात कर लो.

“हाँ , कौन है ?”

मैंने उनीदी आवाज़ में जवाब देकर ऐसा दिखाने की कोशिश की जैसे मैं गहरी नींद में हूँ और दरवाज़ा खटखटाने से अभी अभी मेरी नींद खुली है. मेरा दिल ज़ोरों से धड़क रहा था. मैं अभी भी पूरी नंगी खड़ी थी.

परिमल – मैडम , मैं हूँ परिमल. 6 बज गये हैं.

“ठीक है. मैं उठ रही हूँ. आधे घंटे में तैयार होकर गुरुजी के पास चली जाऊँगी. उठाने के लिए धन्यवाद.”

परिमल – ठीक है मैडम.

फिर परिमल के जाने की आवाज़ आई और हम दोनों ने राहत की सांस ली.

विकास – उफ …..बाल बाल बच गये. मैडम अब मुझे जाना चाहिए.

“लेकिन विकास मुझे इस हालत में छोड़कर ….”

मैं बहुत उत्तेजित हो रखी थी और मेरे पूरे बदन में गर्मी चढ़ी हुई थी. मैं गहरी साँसें ले रही थी और मेरी चूत से रस टपक रहा था. और विकास मुझे ऐसी हालत में छोड़कर जाने की बात कर रहा था.

विकास – मैडम समझने की कोशिश करो. अब मुझे जाना ही होगा. किसी ने यहाँ पकड़ लिया तो मैं परेशानी में पड़ जाऊँगा. क्यूंकी मैंने आश्रम का नियम तोड़ा है.

विकास ने मेरे जवाब का इंतज़ार नहीं किया और दरवाज़ा थोड़ा सा खोलकर इधर उधर देखने लगा. और फिर दरवाज़ा बंद करके चला गया. मुझे उस उत्तेजित हालत में अकेला छोड़ गया. मेरी ऐसी हालत हो रखी थी की उसके चले जाने के बाद मैं बेड में बैठकर अपनी चूचियों को दबाने लगी और अपनी चूत में अंगुली करने लगी.

कुछ देर बाद मुझे एहसास हुआ की ऐसे कब तक बैठी रहूंगी. फिर मैं बाथरूम चली गयी. अभी भी मेरी चूत से रस निकल रहा था. जैसे तैसे मैंने नहाया पर मेरे बदन की गर्मी नहीं निकल पाई. नहाने के बाद मैंने नयी साड़ी, ब्लाउज और पेटीकोट पहन लिए, अपनी दवा ली और फिर गुरुजी के कमरे में चली गयी.

कहानी जारी रहेगी


NOTE


1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .


2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.


3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .


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#26
गुरुजी के आश्रम में सावित्री

CHAPTER 5- चौथा दिन

Medical चेकअप

Update 1


नहाने के बाद मैंने नयी साड़ी, ब्लाउज और पेटीकोट पहन लिए, अपनी दवा ली और फिर गुरुजी के कमरे में चली गयी.

गुरुजी – आओ सावित्री. दो दिन पूरे हो गये. अब कैसा महसूस कर रही हो ?

“अच्छा महसूस कर रही हूँ गुरुजी. ऐसा लग रहा है की आपके उपचार से मुझे फायदा हो रहा है. मैं शारीरिक और मानसिक रूप से तरोताजा और ज़्यादा ऊर्जावान महसूस कर रही हूँ.”

गुरुजी – बहुत अच्छा.

“गुरुजी , वो …वो मेरे …..मेरा मतलब……. मेरे पैड्स का क्या नतीजा आया ?”

गुरुजी – सावित्री, नतीजे खराब नहीं हैं पर बहुत अच्छे भी नहीं हैं. बाद के दो पैड्स में तुम्हें पहले से बेहतर स्खलन हुआ है पर अभी भी ये पर्याप्त नहीं है.

गुरुजी की बात सुनकर मुझे निराशा हुई. मुझे पूरी उम्मीद थी की पैड्स के नतीजे अच्छे आएँगे क्यूंकी पिछले दो दिनों में मुझे कई बार चरम कामोत्तेजना हुई थी और मेरे चूतरस से पैड्स पूरे भीग गये थे. पर यहाँ गुरुजी कह रहे थे की ये पर्याप्त नहीं है. शायद गुरुजी ने मेरी निराशा को भाँप लिया.

गुरुजी – सावित्री तुम्हें इस बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है. मैं किसलिए हूँ यहाँ ? तुम बस पूरे मन से वो किए जाओ जो मैं तुम्हें करने को कहूँ. ठीक है ?

मैं निराश तो थी पर मैंने गुरुजी की बात पर हाँ में सर हिला दिया. मैं सोचने लगी पैड तो दो दिन के लिए थे , पता नहीं गुरुजी अब क्या उपचार करेंगे.

गुरुजी – अब मैं लिंगा महाराज की पूजा करूँगा . तुम भी मेरे साथ पूजा करना. उसके बाद मैं तुम्हारा चेकअप करूँगा. क्यूंकी मैं जानना चाहता हूँ की चरम उत्तेजना के बाद भी तुम्हें पर्याप्त स्खलन क्यूँ नहीं हो रहा है ?

गुरुजी थोड़ा रुके. वो सीधे मेरी आँखों में देख रहे थे.

गुरुजी – सावित्री, ये बताओ तुम्हारे ये दोनों मंदिर वाले ओर्गास्म कैसे रहे ?

मुझे झूठ बोलना पड़ा क्यूंकी शाम को तो मैं मंदिर की बजाय विकास के साथ नाव में थी.

“ठीक ही रहे गुरुजी. लेकिन वो पांडेजी का व्यवहार थोड़ा ग़लत था.”

गुरुजी – वो मैं समझ सकता हूँ. पांडेजी को भी कसूरवार नहीं ठहरा सकते क्यूंकी तुम्हारा बदन है ही इतना आकर्षक.

गुरुजी के मुँह से ऐसी बात सुनकर मुझे झटका लगा पर गुरुजी ने जल्दी से बात सँभाल ली.

गुरुजी – मेरे कहने का मतलब है की पांडेज़ी और बाकी सभी लोग तुम्हारे उपचार का ही एक हिस्सा हैं. इसलिए अगर कोई बहक भी गये तो तुम्हें बुरा नहीं मानना चाहिए और उन्हें माफ़ कर दो. तुम अपना सारा ध्यान मेरे उपचार द्वारा अपने गर्भवती होने के लक्ष्य पर केंद्रित करो. ठीक है सावित्री ?

“हाँ गुरुजी, इसीलिए तो मैंने अपने को काबू में रखा और सब कुछ सहन किया.”

गुरुजी – हाँ , यही तो तुम्हें करना है. अपने दिमाग को अपने वश में करना है. माइंड कंट्रोल इसी को कहते हैं.

मेरे मन में गुरुजी की यही बात घूम रही थी की मुझे पर्याप्त स्खलन नहीं हुआ है. जबकि मुझे लगा था की अपने पति के साथ संभोग के दौरान भी मुझे इतना ज़्यादा स्खलन नहीं होता था जितना यहाँ हुआ था.

“लेकिन गुरुजी , सच में मुझे चरम उत्तेजना हुई थी और इतना ….”

गुरुजी ने मेरी बात बीच में ही काट दी.

गुरुजी – सावित्री , सिर्फ़ उत्तेजना की ही बात नहीं है, इसमें कुछ और चीज़ें भी शामिल रहती हैं. मुझे तुम्हारे पल्स रेट, प्रेशर , हार्ट रेट और ऐसी ही खास बातों को जानना पड़ेगा इसीलिए मैं तुम्हारा डॉक्टर के जैसे चेकअप करूँगा. समझ लो मैं भी एक डॉक्टर ही हूँ , बस मेरे उपचार का तरीका थोड़ा अलग है.

मैं बिना पलक झपकाए गुरुजी की बातें सुन रही थी.

गुरुजी – कभी कभी ऐसा होता है की किसी अंग में कोई खराबी आने से योनि में स्खलन की मात्रा पर्याप्त नहीं हो पाती. उदाहरण के लिए अगर योनि मार्ग में कोई बाधा है या किसी और अंग में कुछ समस्या है. इसलिए तुम्हारे आगे के उपचार से पहले तुम्हारा चेकअप करना ज़रूरी है. जब मुझे पता होगा की क्या कमी है उसी हिसाब से तो मैं तुम्हें दवा दूँगा.

“हाँ गुरुजी ये तो है.”

गुरुजी – लिंगा महाराज में भरोसा रखो. वो तुम्हारी नैय्या पार लगा देंगे. सावित्री तुम्हें फिकर करने की कोई ज़रूरत नहीं. आज से तुम्हारी दवाइयाँ शुरू होंगी और तुम्हारे शरीर से सारी नकारात्मक चीज़ों को हटाने के लिए कल ‘महायज्ञ’होगा , जिसके बाद तुम गर्भवती होने के अपने लक्ष्य को अवश्य प्राप्त कर सकोगी.

गुरुजी थोड़ा रुके. मैं आगे सुनने को उत्सुक थी.

गुरुजी – महायज्ञ दो दिन में पूर्ण होगा. सावित्री ये बहुत कठिन और थका देने वाला यज्ञ है परंतु इसका फल अमृत के समान मीठा होगा. लेकिन सिर्फ़ यज्ञ से ही सब कुछ नहीं होगा, दवाइयाँ भी खानी होंगी तब असर होगा. और अगर तुम लिंगा महाराज को महायज्ञ के ज़रिए संतुष्ट कर दोगी तो वो तुम्हारी माँ बनने की इच्छा को अवश्य पूर्ण करेंगे , जिसके लिए तुम कबसे तरस रही हो. जय लिंगा महाराज.

“मैं अपना पूरा प्रयास करूँगी गुरुजी. जय लिंगा महाराज.”

गुरुजी – चलो अब पूजा करते हैं फिर मैं तुम्हारा चेकअप करूँगा.

“ठीक है गुरुजी.”

मैंने चेकअप के लिए हामी भर दी पर मुझे क्या पता था की चेकअप के नाम पर गुरुजी बड़ी चालाकी से और बड़ी सूक्ष्मता से मेरी जवानी का उलट पुलटकर हर तरह से भरपूर मज़ा लेंगे.

अब गुरुजी ने आँखें बंद कर ली और मंत्र पढ़ने शुरू कर दिए. मैंने भी हाथ जोड़ लिए और लिंगा महाराज की पूजा करने लगी. 15 मिनट तक पूजा चली. उसके बाद गुरुजी उठ खड़े हुए और हाथ धोने के लिए बाथरूम चले गये. वो भगवा वस्त्रा पहने हुए थे. जब वो उठ के बाथरूम जाने लगे तो लाइट उनके शरीर के पिछले हिस्से में पड़ी. मैं ये देखकर शॉक्ड रह गयी की गुरुजी अपनी धोती के अंदर चड्डी नहीं पहने हैं. जब वो थोड़ा साइड में मुड़े तो लाइट उनकी धोती में ऐसे पड़ी की मुझे उनका केले जैसे लटका हुआ लंड दिख गया. मैंने तुरंत अपनी नज़रें मोड़ ली पर उस एक पल में जो कुछ मैंने देखा उससे मेरे निप्पल तन गये.

पूजा के बाद गुरुजी कमरे से बाहर चले गये और मुझे भी आने को कहा. हम बगल वाले कमरे में आ गये, यहाँ मैं पहले कभी नहीं आई थी. आज वहाँ गुरुजी का कोई शिष्य भी नहीं दिख रहा था शायद सब आश्रम के कार्यों में व्यस्त थे. उस कमरे में एक बड़ी टेबल थी जो शायद एग्जामिनेशन टेबल थी. एक और टेबल में डॉक्टर के उपकरण जैसे स्टेथेस्कोप, चिमटे , वगैरह रखे हुए थे.

गुरुजी – सावित्री टेबल में लेट जाओ. मैं चेकअप के लिए उपकरणों को लाता हूँ.

मैं टेबल के पास गयी पर वो थोड़ी ऊँची थी. चेकअप करने वेल की सुविधा के लिए वो टेबल ऊँची बनाई गयी होगी , क्यूंकी गुरुजी काफ़ी लंबे थे पर मेरे लिए उसमें चढ़ना मुश्किल था. मैंने एक दो बार चढ़ने की कोशिश की. मैंने अपनी साड़ी का पल्लू कमर में खोसा और दोनों हाथों से टेबल को पकड़ा , फिर अपना दायां पैर टेबल पर चढ़ने के लिए ऊपर उठाया. लेकिन मैंने देखा ऐसा करने से मेरी साड़ी बहुत ऊपर उठ जा रही है और मेरी गोरी टाँगें नंगी हो जा रही हैं. तो मैंने टेबल में चढ़ने की कोशिश बंद कर दी. फिर मैं कमरे में इधर उधर देखने लगी शायद कोई स्टूल मिल जाए पर कुछ नहीं था.

“गुरुजी , ये टेबल तो बहुत ऊँची है और यहाँ पर कोई स्टूल भी नहीं है.”

गुरुजी – ओह…..तुम ऊपर चढ़ नहीं पा रही हो. असल में ये एग्जामिनेशन टेबल है इसलिए इसकी ऊँचाई थोड़ी ज़्यादा है. ….सावित्री , एक मिनट रूको.

मैं टेबल के पास खड़ी रही और कुछ पल बाद गुरुजी मेरे पास आ गये.

गुरुजी – सावित्री तुम चढ़ने की कोशिश करो, मैं तुम्हें टेबल तक पहुँचने में मदद करूँगा.

“ठीक है गुरुजी.”

मैंने दोनों हाथों से टेबल को पकड़ा और अपने पंजो के बल ऊपर उठने की कोशिश की. मैंने अपनी जांघों के पिछले हिस्से पर गुरुजी के हाथों को महसूस किया. उन्होंने वहाँ पर पकड़ा और मुझे ऊपर को उठाया . मुझे उस पोज़िशन में बहुत अटपटा लग रहा था क्यूंकी मेरी बड़ी गांड ठीक उनके चेहरे के सामने थी. इसलिए मैंने जल्दी से टेबल पर चढ़ने की कोशिश की पर आश्चर्यजनक रूप से गुरुजी ने मुझे और ऊपर उठाना बंद कर दिया और मैं उसी पोज़िशन में रह गयी. अगर मैं अपना पैर टेबल पर रखती तो मेरी साड़ी बहुत ऊपर उठ जाती इसलिए मुझे गुरुजी से ही मदद के लिए कहना पड़ा.

“गुरुजी थोड़ा और ऊपर उठाइए, मैं ऊपर नहीं चढ़ पा रही हूँ.”

गुरुजी – ओह….मुझे लगा अब तुम चढ़ जाओगी.

मेरी बड़ी गांड गुरुजी के चेहरे के सामने थी और अब उन्होंने मेरे दोनों नितंबों को पकड़कर मुझे टेबल पर चढ़ाने की कोशिश की. मुझे उनकी इस हरकत पर हैरानी हुई क्यूंकी वो ऊपर को धक्का नहीं दे रहे थे बल्कि उन्होंने मेरे मांसल नितंबों को दोनों हाथों में पकड़कर ज़ोर से दबा दिया.

“आउच….”

मेरे मुँह से अपनेआप ही निकल गया क्यूंकी मुझे गुरुजी से ऐसे व्यवहार की उम्मीद नहीं थी.

गुरुजी – ओह…..सॉरी सावित्री , वो क्या है की मैं थोड़ा फिसल गया था.

“ओह…..कोई बात नहीं गुरुजी….”

मुझे ऐसा कहना पड़ा पर मैं श्योर थी की गुरुजी ने जानबूझकर मेरे नितंबों को दबाया था. फिर उन्होंने मुझे पीछे से धक्का दिया और मैं टेबल तक पहुँच गयी. मुझे ऐसा लगा की जब तक मैं पूरी तरह से टेबल पर नहीं चढ़ गयी तब तक गुरुजी ने मेरे नितंबों से अपने हाथ नहीं हटाए और वो साड़ी से ढके हुए मेरे निचले बदन को महसूस करते रहे.

विकास ने सुबह सवेरे मुझे उत्तेजित कर दिया था पर नहाने के बाद मैं थोड़ी शांत हो गयी थी. अब फिर से गुरुजी ने मेरे नितंबों को दबाकर मुझे गरम कर दिया था. मुझे एहसास हुआ की मेरी पैंटी गीली होने लगी थी. इस तरह से टेबल पर चढ़ने में मुझे बहुत अटपटा लगा था की मेरी गांड एक मर्द के चेहरे के सामने थी और फिर वो मेरे नितंबों को धक्का देकर मुझे ऊपर चढ़ा रहा था.

शरम से मेरे कान लाल हो गये और मेरी साँसें भारी हो गयी थीं. गुरुजी के ऐसे व्यवहार से मैं थोड़ा अनकंफर्टेबल फील कर रही थी पर मुझे अभी भी पूरा भरोसा नहीं था की उन्होंने जानबूझकर ऐसा किया होगा. मैं सोच रही थी की कहीं गुरुजी सचमुच तो नहीं फिसल गये थे. या फिर जानबूझकर उन्होंने मेरी गांड दबाई थी ? वो मुझे टाँगों को पकड़कर भी तो उठा सकते थे जैसा की उन्होंने शुरू में किया था . मैं कन्फ्यूज़ सी थी .

अब मैं टेबल में बैठ गयी और गुरुजी फिर से दूसरी टेबल के पास चले गये.

अब मैं टेबल में बैठ गयी और गुरुजी फिर से दूसरी टेबल के पास चले गये. मैंने अपनी कमर से साड़ी का पल्लू निकाला और साड़ी ठीक ठाक करके पीठ के बल लेट गयी. लेटने से पल्लू मेरी छाती के ऊपर खिंच गया , मैंने देखा मेरी चूचियाँ दो बड़े पहाड़ों की तरह , मेरी साँसों के साथ ऊपर नीचे हिल रही हैं. मैंने पल्लू को ब्लाउज के ऊपर फैलाकर उन्हें ढकने की कोशिश की.

अब गुरुजी मेरी टेबल के पास आ गये थे. दूसरी टेबल से वो बीपी नापने वाला मीटर, स्टेथेस्कोप और कुछ अन्य उपकरण ले आए थे.

गुरुजी – सावित्री तुम तैयार हो ?

“हाँ गुरुजी.”

गुरुजी – सबसे पहले मैं तुम्हारा बीपी चेक करूँगा. तुम्हें अपने बीपी की रेंज मालूम है ?

“नहीं गुरुजी.”

गुरुजी – ठीक है. अपनी बाई बाँह को थोड़ा ऊपर उठाओ.

मैंने अपनी बायीं बाँह थोड़ी ऊपर उठाई. गुरुजी ने मेरी बाँह में बीपी नापने के लिए मीटर का काला कपड़ा कस के बाँध दिया और पंप करने लगे. मेरा बीपी 130/80 आया , गुरुजी ने कहा नॉर्मल ही है . वैसे ऊपर की रीडिंग थोड़ी ज्यादा है . फिर वो मेरी बाँह से मीटर का कपड़ा खोलने लगे. मैंने देखा बीच बीच में उनकी नज़रें मेरी ऊपर नीचे हिलती हुई चूचियों पर पड़ रही थी.

गुरुजी – अब तुम्हारी नाड़ी देखता हूँ.

ऐसा कहते हुए उन्होंने मेरी बायीं कलाई पकड़ ली. उनके गरम हाथों का स्पर्श मेरी कलाई पर हुआ , पता नहीं क्यूँ पर मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा. शायद कुछ ही देर पहले विकास ने जो मुझे अधूरा गरम करके छोड़ दिया था उस वजह से ऐसा हुआ हो.

गुरुजी – अरे …..

“क्या हुआ गुरुजी ..?”

गुरुजी – सावित्री , तुम्हारी नाड़ी तो बहुत तेज चल रही है , जैसे की तुम बहुत एक्साइटेड हो . लेकिन तुम तो अभी अभी पूजा करके आई हो , ऐसा होना तो नहीं चाहिए था……फिर से देखता हूँ.

गुरुजी ने मेरी कलाई को अपनी दो अंगुलियों से दबाया. मुझे मालूम था की मेरी नाड़ी तेज क्यूँ चल रही है. मैं उनके नाड़ी नापने का इंतज़ार करने लगी, पर मुझे फिकर होने लगी की कहीं कुछ और ना पूछ दें की इतनी तेज क्यूँ चल रही है .

गुरुजी – क्या बात है सावित्री ? तुम शांत दिख रही हो पर तुम्हारी नाड़ी तो बहुत तेज भाग रही है.

“मुझे नहीं मालूम गुरुजी.”

मैंने झूठ बोलने की कोशिश की पर गुरुजी सीधे मेरी आँखों में देख रहे थे .

गुरुजी – तुम्हारी हृदयगति देखता हूँ.

कहते हुए उन्होंने मेरी कलाई छोड़ दी. फिर स्टेथेस्कोप को अपने कानों में लगाकर उसका नॉब मेरी छाती में लगा दिया. उनका हाथ पल्लू के ऊपर से मेरी चूचियों को छू गया. मुझे थोड़ा असहज महसूस हो रहा था. . गुरुजी मेरी छाती के ऊपर झुके हुए थे पर मेरी आँखों में देख रहे थे. मेरा गला सूखने लगा और मेरा दिल और भी ज़ोर से धड़कने लगा. अब गुरुजी ने नॉब को थोड़ा सा नीचे खिसकाया , मेरे बदन में कंपकपी सी दौड़ गयी. वो पल्लू के ऊपर से मेरी बायीं चूची के ऊपर नॉब को दबा रहे थे. मेरी साँसें भारी हो गयीं.

गुरुजी – सावित्री तुम्हारी हृदयगति भी तेज है. कुछ तो बात है.

मैंने मासूम बनने की कोशिश की.

“गुरुजी , पता नहीं ऐसा क्यूँ हो रहा है ?”


कहानी जारी रहेगी

NOTE

1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .


2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.

3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .


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#27
गुरुजी के आश्रम में सावित्री

CHAPTER 5- चौथा दिन

Medical चेकअप

Update 2



गुरुजी ने अभी भी नॉब को मेरी बायीं चूची के ऊपर दबाया हुआ था. उनके ऐसे दबाने से अब ब्लाउज के अंदर मेरी चूचियाँ टाइट होने लगीं. फिर उन्होंने मेरी छाती से स्टेथेस्कोप हटा लिया लेकिन उनकी नज़रें मेरी चूचियों पर ही थीं. औरत की स्वाभाविक शरम से मैंने चूचियों के ऊपर पल्लू ठीक करने की कोशिश की पर ठीक करने को कुछ था ही नहीं क्यूंकी गुरुजी ने पल्लू नहीं हटाया था.

गुरुजी –सावित्री तुम कोई छोटी बच्ची नहीं हो की तुम्हें मालूम ही ना हो की तुम्हारी नाड़ी और हृदयगति तेज क्यूँ हैं. तुम एक परिपक़्व औरत हो और तुम्हें मुझसे कुछ भी छुपाना नहीं चाहिए.

अब मैं दुविधा में थी की क्या कहूँ और कैसे कहूँ ? गुरुजी से कुछ तो कहना ही था . मैंने बात को घुमा दिया.

“गुरुजी वो …मेरा मतलब……मुझे रात में थोड़ा वैसा सपना आया था शायद उसका ही प्रभाव हो …”

गुरुजी – लेकिन तुम कम से कम एक घंटा पहले उठ गयी होगी. अब तक उस सपने का प्रभाव इतना ज़्यादा तो नहीं हो सकता .

मैं ठीक से जवाब नहीं दे पा रही थी. इस सब के दौरान मैं टेबल पर लेटी हुई थी और गुरुजी मेरी छाती के पास खड़े थे.

गुरुजी – सावित्री जिस तरह से तुम्हारी चूचियाँ ऊपर नीचे उठ रही हैं , मुझे लगता है कुछ और बात है.

अपनी चूचियों के ऊपर गुरुजी के डाइरेक्ट कमेंट करने से मैं शरमा गयी . मैंने उनका ध्यान मोड़ने की भरसक कोशिश की.

“नहीं नहीं गुरुजी. ये तो आपके …”

मैंने जानबूझकर अपनी बात अधूरी छोड़ दी और अपने दाएं हाथ से इशारा करके बताया की उनके मेरी चूची पर स्टेथेस्कोप लगाने से ये हुआ है. मेरे इशारों को देखकर गुरुजी का मनोरंजन हुआ और वो ज़ोर से हंस पड़े.

गुरुजी – अगर इस बेजान स्टेथेस्कोप के छूने से तुम्हारी हृदयगति इतनी बढ़ गयी तो किसी मर्द के छूने से तो तुम बेहोश ही हो जाओगी.

वो हंसते रहे. मैं भी मुस्कुरा दी.

गुरुजी – ठीक है सावित्री. मैं तुम्हारी बात मान लेता हूँ की तुम्हें रात में उत्तेजक सपना आया था. और अब मेरे चेकअप करने से तुम थोड़ी एक्साइटेड हो गयी.

ये सुनकर मैंने राहत की साँस ली.

गुरुजी –लेकिन मैं तुम्हें बता दूं की ये अच्छे लक्षण नहीं हैं. तुम्हारी नाड़ी और हृदयगति इतनी तेज चल रही हैं की अगर तुम संभोग कर रही होती तब भी इतनी नहीं होनी चाहिए थी.

मैंने गुरुजी को प्रश्नवाचक नज़रों से देखा क्यूंकी मेरी समझ में नहीं आया की इसके दुष्परिणाम क्या हैं ?

गुरुजी – अब मैं तुम्हारे शरीर का तापमान लूँगा. इसको अपनी बायीं कांख में लगाओ.

कहते हुए गुरुजी ने थर्मामीटर दिया. अब मेरे लिए मुश्किल हो गयी. घर में तो मैं मुँह में थर्मामीटर लगाती थी पर यहाँ गुरुजी कांख में लगाने को बोल रहे थे. लेकिन मैं तो साड़ी ब्लाउज पहने हुए थी और कांख में लगाने के लिए तो मुझे ब्लाउज उतारना पड़ता.

“गुरुजी , इसको मुँह में रख लूँ ?”

गुरुजी – नहीं नहीं सावित्री. ये साफ नहीं है और अभी यहाँ डेटोल भी नहीं है. मुँह में डालने से तुम्हें इन्फेक्शन हो सकता है.

अब मेरे पास कोई चारा नहीं था और मुझे कांख में ही थर्मामीटर लगाना था.

गुरुजी – अपने ब्लाउज के दो तीन हुक खोल दो और ….

गुरुजी ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी . पूरी करने की ज़रूरत भी नहीं थी. मैं उठ कर बैठ गयी और पल्लू की ओट में अपने ब्लाउज के हुक खोलने लगी. गुरुजी सिर्फ़ एक फुट दूर खड़े थे और मुझे ब्लाउज खोलते हुए देख रहे थे. मैंने ब्लाउज के ऊपर के दो हुक खोले और थर्मामीटर को कांख में लगाने को पकड़ा.

गुरुजी – सावित्री एक हुक और खोलो नहीं तो थर्मामीटर ठीक से नहीं लगेगा. और फिर ग़लत रीडिंग आएगी.

मेरे ब्लाउज के हुक्स के ऊपर उनके डाइरेक्ट कमेंट से मैं चौंक गयी . मेरे पति को मेरे ब्लाउज को खोलने का बड़ा शौक़ था. अक्सर वो मेरे ब्लाउज के हुक खुद खोलने की ज़िद करते थे. मुझे हैरानी होती थी की मेरी चूचियों से भी ज़्यादा मेरा ब्लाउज क्यूँ उनको आकर्षित करता है .

मैं गुरुजी को मना नहीं कर सकती थी. मैंने थर्मामीटर टेबल में रख दिया और पल्लू के अंदर हाथ डालकर ब्लाउज का तीसरा हुक खोलने लगी. मैंने देखा पल्लू के बाहर से मेरी गोरी गोरी चूचियों का ऊपरी भाग साफ दिख रहा था. मैंने अपनी आँखों के कोने से देखा गुरुजी की नज़रें वहीं पर थी. मुझे मालूम था की अगर मैं ब्लाउज का तीसरा हुक भी खोल दूं तो मेरे अधखुले ब्लाउज से ब्रा भी दिखने लगेगी. लेकिन मेरे पास कोई और चारा नही था और मुझे तीसरा हुक भी खोलना पड़ा.

गुरुजी – हाँ अब ठीक है. अब थर्मामीटर लगा लो.

मैंने अपनी बायीं बाँह थोड़ी उठाई और आधे खुले ब्लाउज के अंदर से थर्मामीटर कांख में लगा लिया. फिर मैंने पल्लू को एडजस्ट करके गुरुजी की नज़रों से अपनी चूचियों को छुपाने की कोशिश की.

गुरुजी – दो मिनट तक लगाए रखो.

ये मेरे लिए बड़ा अटपटा था की मैं आधे खुले ब्लाउज में एक मर्द के सामने ऐसे बैठी हूँ. इसीलिए मैं चेकअप वगैरह के लिए लेडी डॉक्टर को दिखाना ही पसंद करती थी. वैसे मैं गुरुजी के सामने ज़्यादा शरम नहीं महसूस कर रही थी ख़ासकर की पिछले दो दिनों में मैंने जितनी बेशर्मी दिखाई थी उसकी वजह से. वरना पहले तो मैं बहुत ही शरमाती थी.

गुरुजी – टाइम हो गया. सावित्री अब निकाल लो.

मैंने थर्मामीटर निकाल लिया और गुरुजी को दे दिया. फिर फटाफट अपने ब्लाउज के हुक लगाने लगी , मुझे क्या पता था कुछ ही देर में फिर से खोलना पड़ेगा.

गुरुजी –तापमान तो ठीक है. लेकिन इतनी सुबह तुम्हें पसीना बहुत आया है.

ऐसा कहते हुए उन्होंने थर्मामीटर के बल्ब में अंगुली लगाकर मेरे पसीने को फील किया. मुझे शरम आई और मेरे पास जवाब देने लायक कुछ नहीं था.

फिर मैंने जो देखा उससे मैं शॉक्ड रह गयी. गुरुजी ने थर्मामीटर के बल्ब को अपनी नाक के पास लगाया और मेरी कांख के पसीने की गंध को अपने नथुनों में भरने लगे. उनकी इस हरकत से मेरी भौंहे तन गयीं पर उनके पास हर बात का जवाब था.

गुरुजी – सावित्री, तुम्हें ज़रूर हैरानी हो रही होगी की मैं ऐसे क्यूँ सूंघ रहा हूँ. लेकिन गंध से इस बात का पता चलता है की हमारे शरीर का उपापचन (मेटाबॉलिज़म) कैसा है. अगर दुर्गंध आ रही है तो समझ लो उपापचन ठीक से नहीं हो रहा है. इसीलिए मुझे ये भी चेक करना पड़ता है.

ये सुनकर मैंने राहत की साँस ली. अब गुरुजी ने थर्मामीटर , बीपी मीटर एक तरफ रख दिए. मैं टेबल में बैठी हुई थी. गुरुजी अब मेरे अंगों का चेकअप करने लगे. पहले उन्होंने मेरी आँख, कान और गले को देखा. उनकी गरम अंगुलियों से मुझे बहुत असहज महसूस हो रहा था. उनके ऐसे छूने से मुझे कुछ देर पहले विकास के अपने बदन को छूने की याद आ जा रही थी. गुरुजी का चेहरा मेरे चेहरे के बिल्कुल पास था और किसी किसी समय उनकी गरम साँसें मुझे अपने चेहरे पर महसूस हो रही थी , जिससे मेरे बदन में कंपकपी दौड़ जा रही थी. उसके बाद उन्होंने मेरी गर्दन और कंधों की जाँच की. कंधों को जाँचने के लिए उन्होंने वहाँ पर से साड़ी हटा दी. मुझे ऐसा लग रहा था विकास के अधूरे काम को ही गुरुजी आगे बढ़ा रहे हैं. मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था पर मैंने बाहर से नॉर्मल दिखने की भरसक कोशिश की.

गुरुजी – सावित्री अब तुम लेट जाओ. मुझे तुम्हारे पेट की जाँच करनी है.

मैं फिर से टेबल में लेट गयी. गुरुजी बिना मुझसे पूछे मेरे पेट के ऊपर से साड़ी हटाने लगे. स्वाभाविक शरम से मेरे हाथों ने अपनेआप ही साड़ी को फिर से पेट के ऊपर फैलाने की कोशिश की पर गुरुजी ने ज़ोर लगाकर साड़ी को मेरे पेट के ऊपर से हटा दिया. मेरे पल्लू के एक तरफ हो जाने से ब्लाउज के ऊपर से साड़ी हट गयी और चूचियों का निचला भाग एक्सपोज़ हो गया.

गुरुजी ने मेरे पेट को अपनी अंगुलियों से महसूस किया और हथेली से पेट को दबाकर देखा. मैंने अपने पेट की मुलायम त्वचा पर उनके गरम हाथ महसूस किए. उनके ऐसे छूने से मेरे बदन में कंपकपी सी हो रही थी. मेरे पेट को दबाकर उन्होंने लिवर आदि अंदरूनी अंगों को टटोला. फिर अचानक गुरुजी मेरी नाभि में उंगली घुमाने लगे, उससे मुझे गुदगुदी होने लगी . गुदगुदी होने से मैं खी खी कर हंसने लगी और लेटे लेटे ही मेरे पैर एक दूसरे के ऊपर आ गये.

गुरुजी – हँसो मत सावित्री. मैं जाँच कर रहा हूँ. और अपने पैर अलग अलग करो.

“गुरुजी , मैं वहाँ पर बहुत सेन्सिटिव हूँ.”

मैंने साड़ी के अंदर अपने पैर फिर से अलग कर लिए. पर उनके ऐसे मेरी नाभि में उंगली करने से गुदगुदी की वजह से मैं अपने नितंबों को हिलाने लगी और मुझे हँसी आती रही.

गुरुजी – ठीक है. हो गया.

मैंने राहत की साँस ली पर उनकी ऐसी जाँच से मेरी पैंटी गीली हो गयी थी.

गुरुजी –  सावित्री अब पलटकर नीचे को मुँह कर लो.

ये एक औरत ही जानती है की किसी मर्द के सामने ऐसे उल्टा लेटना कितना अटपटा लगता है. मैं टेबल में अपने पेट के बल लेट गयी. अब मेरे बड़े नितंब गुरुजी की आँखों के सामने ऊपर को थे और मेरी चूचियाँ मेरे बदन से दबकर साइड को फैल गयी थीं. अब गुरुजी ने स्टेथेस्कोप लगाकर मेरी पीठ में जाँच की. उन्होंने एक हाथ से स्टेथो के नॉब को मेरे ब्लाउज के ऊपर दबाया हुआ था और दूसरा हाथ मेरी पीठ के ऊपर रखा हुआ था. मैंने महसूस किया की उनका हाथ ब्लाउज के ऊपर से मेरी ब्रा को टटोल रहा था.

गुरुजी – सावित्री एक गहरी साँस लो.

मैंने उनके निर्देशानुसार लंबी साँस ली. लेकिन तभी उनकी अँगुलियाँ मुझे ब्रा के हुक के ऊपर महसूस हुई . उनकी इस हरकत से मैं साँस रोक नहीं पाई और मेरी साँस टूट गयी.

गुरुजी – क्या हुआ ?

“क…..क…..कुछ नहीं गुरुजी. मैं फिर से कोशिश करती हूँ.”

मेरा दिल इतनी ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था की शायद उन्हें भी सुनाई दे रहा होगा. मैंने अपने को संयत करने की कोशिश की. गुरुजी ने भी मेरी ब्रा के ऊपर से अपनी अँगुलियाँ हटा ली . मैंने फिर से लंबी साँस ली.

स्टेथो से जाँच पूरी होने के बाद , मैंने गुरुजी के हाथ ब्लाउज और साड़ी के बीच अपनी नंगी कमर पर महसूस किए. मुझे नहीं मालूम वहाँ पर गुरुजी क्या चेक कर रहे थे पर ऐसा लगा जैसे वो कमर में मसाज कर रहे हैं. गुरुजी की अँगुलियाँ मुझे अपने ब्लाउज के नीचे से अंदर घुसती महसूस हुई. मैं कांप सी गयी. मेरी कमर की नंगी त्वचा पर और ब्लाउज के अंदर उनके हाथ के स्पर्श से मेरे बदन की गर्मी बढ़ने लगी.

मैं सोचने लगी अब गुरुजी कहीं नीचे को भी ऐसे ही अँगुलियाँ ना घुसा दें और ठीक वैसा ही हुआ. गुरुजी ने मेरे ब्लाउज के अंदर से अँगुलियाँ निकालकर अब नीचे को ले जानी शुरू की. और फिर साड़ी और पेटीकोट के अंदर डाल दी. उनकी अँगुलियाँ पेटीकोट के अंदर मेरी पैंटी तक पहुँच गयी.

“आईईईईई…….”

मेरे मुँह से एक अजीब सी आवाज़ निकल गयी. उस आवाज़ का कोई मतलब नहीं था वो बस गुरुजी के हाथों में मेरी असहाय स्थिति को दर्शा रही थी.

गुरुजी – सॉरी सावित्री. आगे की जाँच के लिए मुझे तुमसे साड़ी उतारने को कहना चाहिए था.

उन्होंने मेरी कमर से हाथ हटा लिए. और मुझसे साड़ी उतारने को कहने लगे.

गुरुजी – सावित्री , साड़ी उतार दो. मैं तुम्हारे श्रोणि प्रदेश (पेल्विक रीजन) की जाँच के लिए ल्यूब, टॉर्च और स्पैचुला (मलहम फैलाने का चपटा औजार) लाता हूँ.

ऐसा कहकर गुरुजी दूसरी टेबल के पास चले गये. अब मैं दुविधा में पड़ गयी, साड़ी कैसे उतारूँ ? टेबल बहुत ऊँची थी. अगर टेबल से नीचे उतरकर साड़ी उतारूँ तो फिर से गुरुजी की मदद लेकर ऊपर चढ़ना पड़ेगा. मैं फिर से उनके हाथों अपने नितंबों को मसलवाना नहीं चाहती थी जैसा की पहली बार टेबल में चढ़ते वक़्त हुआ था. दूसरा रास्ता ये था की मैं टेबल में खड़ी होकर साड़ी उतारूँ. मैंने यही करने का फ़ैसला किया.

गुरुजी – सावित्री देर मत करो. फिर मुझे अपने एक भक्त के घर ‘यज्ञ’ करवाने भी जाना है.

मैं टेबल में खड़ी हो गयी . उतनी ऊँची टेबल में खड़े होना बड़ा अजीब लग रहा था. मैंने साड़ी उतारनी शुरू की और देखा की गुरुजी की नज़रें भी मुझ पर हैं , इससे मुझे बहुत शरम आई. अब ऐसे टेबल में खड़े होकर कौन औरत अपने कपड़े उतारती है, बड़ा अटपटा लग रहा था. साड़ी उतारने के बाद मैं सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में टेबल में खड़ी थी और मुझे लग रहा था की जरूर मैं बहुत अश्लील लग रही हूँगी.

गुरुजी – ठीक है सावित्री. अगर तुमने पैंटी पहनी है तो उसे भी उतार दो क्यूंकी मुझे तुम्हारी योनि की जाँच करनी है.

गुरुजी ने योनि शब्द ज़ोर देते हुए बोला, शरम से मेरी आँखें बंद हो गयी. उन्होंने ये भी कहा की अगर चाहो तो पेटीकोट रहने दो और इसके अंदर से सिर्फ़ पैंटी उतार दो. मैंने पैंटी उतारने के लिए अपने पेटीकोट को ऊपर उठाया, शरम से मेरा मुँह लाल हो गया था. फिर मैंने पेटीकोट के अंदर हाथ डालकर अपनी पैंटी को नितंबों से नीचे खींचने की कोशिश की. टेबल में खड़ी होकर पेटीकोट उठाकर पैंटी नीचे करती हुई मैं बहुत भद्दी दिख रही हूँगी और एक हाउसवाइफ की बजाय रंडी लग रही हूँगी. तब तक गुरुजी भी अपने उपकरण लेकर मेरी टेबल के पास आ गये थे. और वो नीचे से मेरी पेटीकोट के अंदर पैंटी उतारने का नज़ारा देखने लगे. लेकिन मैं असहाय थी और मुझे उनके सामने ही पैंटी उतारनी पड़ी.

गुरुजी – सावित्री, अपनी साड़ी और पैंटी मुझे दो. मैं यहाँ रख देता हूँ.

ऐसा कहकर उन्होंने मेरे कुछ कहने का इंतज़ार किए बिना टेबल से मेरी साड़ी उठाई और मेरे हाथों से पैंटी छीनकर दूसरी टेबल के पास रख दी. मैं फिर से टेबल में लेट गयी. अब गुरुजी का व्यवहार कुछ बदला हुआ था . उन्होंने मुझसे कहने की बजाय सीधे खुद ही मेरे पेटीकोट को मेरी कमर तक ऊपर खींच दिया और मेरी टाँगों को फैला दिया. उसके बाद उन्होंने मेरी टाँगों को उठाकर टेबल में बने हुए खाँचो में रख दिया. अब मैं लेटी हुई थी और मेरी दोनों टाँगें ऊपर उठी हुई थी. मेरी गोरी जाँघें और चूत गुरुजी की आँखों के सामने बिल्कुल नंगी थी. शरम और घबराहट से मेरे दाँत भींच गये.

मैं लेटे लेटे गुरुजी को देख रही थी. अब गुरुजी ने मेरी चूत के होठों को अपनी अंगुलियों से अलग किया. गुरुजी ने मेरी चूत के होठों पर अपनी अंगुली फिराई और फिर उन्हें फैलाकर खोल दिया. उसके बाद उन्होंने अपनी तर्जनी अंगुली (दूसरी वाली) में ल्यूब लगाकर धीरे से मेरी चूत के अंदर घुसायी. मेरी चूत पहले से ही गीली हो रखी थी, पहले विकास की छेड़छाड़ से और अब चेकअप के नाम पर गुरुजी के मेरे बदन को छूने से . मेरी चूत के होंठ गीले हो रखे थे और गुरुजी की अंगुली आराम से मेरी चूत में गहराई तक घुसती चली गयी.

“ओओओऊओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह…..”

मेरी सिसकारी निकल गयी.

गुरुजी – सावित्री रिलैक्स ,ये सिर्फ़ जाँच हो रही है. मुझे गर्भाशय ग्रीवा (सर्विक्स) की जाँच करनी है.

गुरुजी ने अपनी अंगुली मेरी चूत से बाहर निकाल ली , मैंने देखा वो मेरे चूतरस से सनी हुई थी. उन्होंने फिर से अंगुली चूत में डाली और गर्भाशय ग्रीवा को धीरे से दबाया. गुरुजी के मेरी चूत में अंगुली घुमाने से मैं उत्तेजना से टेबल में लेटे हुए कसमसाने लगी. गुरुजी अपनी जाँच करते रहे. फिर मैंने महसूस किया की अब उन्होंने मेरी चूत में दो अँगुलियाँ डाल दी थी.

गुरुजी – मुझे तुम्हारे गर्भाशय (यूटरस) और अंडाशय (ओवारीस) की भी जाँच करनी है की उनमे कोई गड़बड़ी तो नहीं है.

गुरुजी के हाथ बड़े बड़े थे और उनकी अँगुलियाँ भी मोटी और लंबी थीं. उनके अँगुलियाँ घुमाने से ऐसा लग रहा था जैसे कोई मोटा लंड मेरी चूत में घुस गया हो. मुझे साफ समझ आ रहा था की गुरुजी जाँच के नाम पर मेरी चूत में अँगुलियाँ ऐसे अंदर बाहर कर रहे थे जैसे मुझे अंगुलियों से चोद रहे हों. मेरा पेटीकोट कमर तक उठा हुआ था और मेरा निचला बदन बिल्कुल नंगा था. मेरी चूत उस उम्रदराज बाबा की आँखों के सामने नंगी थी. ऐसी हालत में लेटी हुई मैं उनकी हरकतों से उत्तेजना से कसमसा रही थी.

“ओओओओऊओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह……गुरुजी….”

मुझे अपनी चूत के अंदर गुरुजी की अँगुलियाँ हर तरफ घूमती महसूस हो रही थीं. गुरुजी ने एक हाथ की अँगुलियाँ चूत में डाली हुई थीं और दूसरे हाथ से मेरी चूत के ऊपर के काले बालों को सहला रहे थे. फिर उन्होंने एक हाथ में स्पैचुला को पकड़ा और दूसरे हाथ से चूत के होठों को फैलाकर स्पैचुला को मेरी चूत में डाल दिया.

“आआआअह्ह्ह्ह्ह्ह……….गुरुजी प्लीज़ रुकिये . मैं इसे नहीं ले पाऊँगी.”

मैं बेशर्मी से चिल्लाई. मेरे निप्पल तन गये और ब्रा के अंदर चूचियाँ टाइट हो गयीं. ठंडे स्पैचुला के मेरी चूत में घुसने से मैं कसमसाने लगी. उत्तेजना से मैं तड़पने लगी. स्पैचुला ने मेरी चूत के छेद को फैला रखा था . इससे गुरुजी को चूत के अंदर गहराई तक दिख रहा होगा. कुछ देर तक जाँच करने के बाद गुरुजी ने स्पैचुला को बाहर निकाल लिया.

गुरुजी – ठीक है सावित्री. इसकी जाँच हो गयी. अब तुम अपनी टाँगें मिला सकती हो.

लेकिन मैं ऐसा करने की हालत में नहीं थी. मैं एक मर्द के सामने अपनी टाँगें, जांघों और चूत को बिल्कुल नंगी किए हुए थोड़ी देर तक उसी पोजीशन में पड़ी रही. फिर कुछ पलों बाद मैंने अपने को संयत किया और अपने पेटीकोट को नीचे करके चूत को ढकने की कोशिश की.

गुरुजी – सावित्री पेटीकोट नीचे मत करो. अब मुझे तुम्हारी गुदा (रेक्टम) की जाँच करनी है.

मैं इसकी अपेक्षा नहीं कर रही थी पर क्या कर सकती थी.

गुरुजी – सावित्री पेट के बल लेट जाओ. जल्दी करो मेरे पास समय कम है.

मुझे उस कामुक अवस्था में टेबल में पलटते हुए देखकर गुरुजी की आँखों में चमक आ गयी . उन्होंने पेटीकोट को जल्दी से ऊपर उठाकर मेरी बड़ी गांड को पूरी नंगी कर दिया. मुझे मालूम था की मेरी सुडौल गांड मर्दों को आकर्षित करती है , उसको ऐसे ऊपर को उठी हुई नंगी देखना गुरुजी के लिए क्या नज़ारा रहा होगा. अब गुरुजी ने मेरी जांघों को फैलाया , इससे मेरी चूत भी पीछे से साफ दिख रही होगी. मुझे उस शर्मनाक पोजीशन में छोड़कर गुरुजी फिर से दूसरी टेबल के पास चले गये.

फिर वो हाथों में लेटेक्स के दस्ताने पहन कर आए. अपनी तर्जनी अंगुली के ऊपर उन्होंने थोड़ा ल्यूब लगाया. फिर गुरुजी ने अपने बाएं हाथ से मेरे नितंबों को फैलाया और दाएं हाथ की तर्जनी अंगुली मेरी गांड के छेद में धीरे से घुसा दी.

“ओओओओऊऊह्ह्ह्ह्ह…..”

मैं हाँफने लगी और मैंने टेबल के सिरों को दोनों हाथों से कसकर पकड़ लिया.

गुरुजी – रिलैक्स सावित्री. तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी.

गुरुजी मुझसे रिलैक्स होने को कह रहे थे पर मुझे कल रात विकास के साथ नाव में गांड चुदाई की याद आ गयी थी. सुबह पहले विकास के साथ और अब गुरुजी के मेरे बदन को हर जगह छूने से मैं बहुत उत्तेजित हो चुकी थी. मेरी चूत से रस बहने लगा. उनके मेरी गांड में ऐसे अंगुली घुमाने से मुझे मज़ा आने लगा था , पर ये वाली जाँच जल्दी ही खत्म हो गयी. अंगुली अंदर घुमाते वक़्त गुरुजी दूसरे हाथ से मेरे नंगे मांसल नितंबों को दबाना नहीं भूले.

जाँच पूरी होने के बाद मैं टेबल में सीधी हो गयी और पेटीकोट को नीचे करके अपने गुप्तांगो को ढक लिया. फिर गुरुजी ने मुझे टेबल से नीचे उतरने में मदद की. मैं इतनी उत्तेजित हो रखी थी की जब मैं टेबल से नीचे उतरी तो मैंने सहारे के बहाने गुरुजी को आलिंगन कर लिया. और जानबूझकर अपनी तनी हुई चूचियाँ उनकी छाती और बाँह से दबा दी. मुझे हैरानी हुई की बाकी मर्दों की तरह गुरुजी ने फायदा उठाकर मुझे आलिंगन करने या मेरी चूचियों को दबाने की कोशिश नहीं की और सीधे सीधे मुझे टेबल से नीचे उतार दिया. मुझे एहसास हुआ की गुरुजी जल्दी में हैं, पर उनका चेहरा बता रहा था की मेरे गुप्तांगों को देखकर वो संतुष्ट हैं.

गुरुजी – सावित्री साड़ी पहनकर अपने कमरे में चली जाओ. चेकअप के नतीजे मैं तुम्हें शाम को बताऊँगा.

मैंने सर हिलाकर हामी भर दी और गुरुजी कमरे से बाहर चले गये. मैं एक बार फिर से अधूरी उत्तेजित होकर रह गयी. मुझे बहुत फ्रस्ट्रेशन फील हो रही थी . विकास और गुरुजी दोनों ने ही मुझे उत्तेजना की चरम सीमा तक पहुँचाया और बिना चोदे ही छोड़ दिया. सच्ची बताऊँ तो अब मैं चुदाई के लिए तड़प रही थी. मैं विकास को कोसने लगी की सुबह मेरे कमरे में आया ही क्यूँ और मुझे गरम करके तड़पता छोड़ गया.

मैं अपने कमरे में चली आई और दरवाज़ा बंद करके बेड में लेट गयी. मेरा दिल अभी भी जोरो से धड़क रहा था और अधूरे ओर्गास्म से मुझे बहुत बेचैनी हो रही थी. मैंने तकिये को कसकर अपनी छाती से लगा लिया और ये सोचकर उसे दबाने लगी की मैं विकास को आलिंगन कर रही हूँ. वो तकिया लंबा नहीं था इसलिए मैं तकिये में अपनी टाँगें नहीं लपेट पा रही थी और मुझे काल्पनिक एहसास भी सही से नहीं हो पा रहा था. मेरी फ्रस्ट्रेशन और भी बढ़ गयी. मुझे चूत में बहुत खुजली हो रही थी जैसा की औरतों को चुदाई की जबरदस्त इच्छा के समय होती है. मैंने अपनी साड़ी उतार कर बदन से अलग कर दी.

मेरे निप्पल सुबह से तने हुए थे और अब दर्द करने लगे थे. मैंने अपना ब्लाउज भी खोल दिया और ब्रा को खोलकर चूचियों को आज़ाद कर दिया. अब मैं ऊपर से नंगी होकर बेड में लेटी हुई थी और एक हाथ से अपनी चूचियों को सहला रही थी और दूसरे हाथ से पेटीकोट के ऊपर से अपनी चूत को खुज़ला रही थी. मैं बहुत चुदासी हो रखी थी.

मेरी बेचैनी बढ़ती गयी और अपने बदन की आग को मैं सहन नहीं कर पा रही थी. मैंने अपना पेटीकोट भी उतार दिया और गीली पैंटी को फर्श में फेंक दिया. अब मैं बिल्कुल नंगी थी. मैं बाथरूम में गयी और अपने बदन को उस बड़े शीशे में देखा. मैं शीशे के सामने खड़ी होकर अपने बदन से खेलने लगी और कल्पना करने लगी की विकास मेरे बदन से खेल रहा है.

लेकिन मुझे हैरानी हुई की मेरे मन में वो दृश्य घूमने लगा की जब कुछ देर पहले गुरुजी मेरी चूत में अपनी अँगुलियाँ घुमा रहे थे. मेरी चूत से फिर से रस बहने लगा. मैंने अपने तने हुए निपल्स को मरोड़ा और दोनों हाथों से अपनी चूचियों को मसला. लेकिन इससे मेरी बेचैनी शांत नहीं हुई.

अब मैं शीशे के बिल्कुल नज़दीक़ खड़ी हो गयी और अपनी बाँहों को ऊपर उठाकर शीशे को पकड़ लिया और अपनी नंगी चूचियों को शीशे में रगड़ने लगी. मैं अपने चेहरे और गालों को भी शीशे से रगड़ने लगी. मैं पूरी तरह से बेकाबू हो चुकी थी. ऐसे अपने नंगे बदन को शीशे से रगड़ते हुए मैं बेशर्मी से अपनी बड़ी गांड को मटका रही थी. फिर मैंने नल की टोंटी से अपनी चूत को रगड़ना शुरू किया.


मैं इतनी बेकरार थी की ऐसे रगड़कर ही मैंने आनंद लेने की कोशिश की. मैंने अपनी जांघों के संवेदनशील अंदरूनी हिस्से को अपने हाथों से मसला . फिर अपनी तर्जनी अंगुली को गीली चूत में घुसाकर तेज़ी से अंदर बाहर करने लगी और अपनी क्लिट को बुरी तरह मसलकर ओर्गास्म लाने की कोशिश की. कुछ देर बाद मुझे ओर्गास्म आ गया और मैं थकान से पस्त हो गयी.

मैंने जैसे तैसे अपने बदन को बाथरूम से बाहर धकेला और बिस्तर में गिर गयी. मेरे बदन में कपड़े का एक टुकड़ा भी नहीं था. ऐसे ही मुझे गहरी नींद आ गयी , सुबह विकास ने मुझे जल्दी उठा दिया था इसलिए मेरी नींद भी पूरी नहीं हो पाई थी. पता नहीं कितनी देर बाद मेरी नींद खुली . ऐसे नंगी बिस्तर में पड़ी देखकर मुझे अपनेआप पर बहुत शरम आई. मैं बिस्तर से उठी और बाथरूम जाकर अपने को अच्छी तरह से धोया और फिर कपड़े पहन लिए.

मैं सोचने लगी सिर्फ़ दो तीन दिनों में ही मैं कितनी बोल्ड और बेशरम हो गयी हूँ. मैं अपने कमरे में आराम से नंगी घूम रही थी , मेरी बड़ी चूचियाँ उछल रही थीं और मेरे हिलते हुए नंगे नितंब मेरी बेशर्मी को बयान कर रहे थे. सिर्फ़ कुछ दिन पहले मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती थी. जब मैं अपने पति के साथ बेडरूम में होती थी और मुझे बेड से उतरना होता था तो मैं पैंटी ज़रूर पहन लेती थी और अक्सर ब्रा से अपनी चूचियों को ढक लेती थी. कभी अपने बेडरूम में ऐसे नंगी नहीं घूमती थी. कितना परिवर्तन आ गया था मुझमें. मुझे खुद ही अपने आप से हैरानी हो रही थी.

कहानी जारी रहेगी


NOTE


1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .


2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.

3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .

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  5. गुरुजी के आश्रम में सावित्री
  6. छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता एव उभरता प्रेम
  7.  मेरे निकाह मेरी कजिन के साथ
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#28
गुरुजी के आश्रम में सावित्री


CHAPTER 5- चौथा दिन

मालिश

Update 1


अब 11:30 बज गये थे और मैं नहाने की सोच रही थी . तभी किसी ने मेरा दरवाज़ा खटखटाया.

“कौन है ?”

जवाब देने वाले को मैं पहचान नहीं पाई. मैं सोचने लगी ये किसकी आवाज़ है , सुनी हुई तो लग रही है. मैंने दरवाजा खोला तो बाहर राजकमल खड़ा था.

राजकमल – मैडम , मैं मालिश के लिए आया हूँ. गुरुजी ने आपको इसके बारे में जरूर बताया होगा.

मैंने कुछ पल के लिए सोचा फिर मुझे याद आया की उस दिन गुरुजी ने तेल देते समय कहा था की राजकमल मालिश का तरीका बताएगा.

“अरे हाँ हाँ. अंदर आ जाओ.”

राजकमल – थैंक्स , मैडम.

राजकमल गुरुजी के शिष्यों में सबसे छोटा था , करीब 21 – 22 बरस का होगा. वो दुबला पतला था और इस वजह से और भी कम उम्र का दिखता था. वो आश्रम के भगवा वस्त्र पहने हुआ था. उसके हाथ में एक बैग था जिसमें से चटाई का एक कोना बाहर निकला हुआ था.

राजकमल – मैडम , आप अभी मालिश के लिए तैयार हो ?

मुझे थोड़ी उलझन हुई. क्या ये मेरी मालिश करेगा ? गुरुजी की बातों से तो मुझे लगा था की ये मुझे बताएगा की कैसे करनी है और मालिश मुझे खुद करनी होगी.

“तुम मुझे बताओगे नहीं की मालिश कैसे करनी है ?”

राजकमल – मैडम , ये तो जड़ी बूटी वाले तेलों से पूरे बदन की खास किस्म की मालिश है. आप अपनेआप नहीं कर पाओगी. मैं आपको तरीका सीखा दूँगा लेकिन फिर भी आपको मेरी मदद की ज़रूरत तो पड़ेगी ही.

लेकिन उस जवान लड़के से मालिश के लिए मेरा मन राज़ी नहीं हो पा रहा था.

“अच्छा ये बताओ की तुम्हारी उम्र क्या है ? और तुम कब से इस आश्रम में हो ?”

राजकमल – मैं 21 साल का हूँ मैडम. जब मैं बहुत छोटा था तबसे गुरुजी के आश्रम में हूँ.

हे भगवान ! मैंने बिल्कुल सही अनुमान लगाया था. वो सिर्फ़ 21 बरस का था और मैं 28 बरस की शादीशुदा औरत. मैं सोचने लगी इस लड़के से मैं कैसे मालिश करवा सकती हूँ ?

राजकमल – मैडम , मुझे गुरुजी ने प्रशिक्षित किया है. आप चिंता मत करो. मेरी मालिश से आपको पूर्ण संतुष्टि मिलेगी.

ये लड़का मेरे जवान बदन की मालिश करेगा, सोचकर मेरी नज़रें औरत की स्वाभाविक शरम से झुक गयीं. मैंने कोई और तरीका सोचने की कोशिश की.

“अगर तुम मंजू को मालिश का तरीका बता दो तो मंजू मेरी मालिश कर देगी. ऐसा हो सकता है ?”

राजकमल – मैडम, मंजू दीदी भी कर सकती है और आप खुद भी कर सकती हो. लेकिन मैडम ये तो महज खानापूर्ति वाली बात होगी. मालिश का असली फायदा तो तभी होगा जब वो मेरे प्रशिक्षित हाथों से होगी.

“हाँ ये तो है.”

राजकमल – जड़ी बूटी वाले तेलों का भी मालिश में अहम रोल है और मेरे प्रशिक्षित हाथों का भी.

“हम्म्म …..मैं समझ रही हूँ.”

राजकमल की बातों से मैं मालिश के लिए राज़ी हो गयी.

“इसमें कितना समय लगेगा ?”

राजकमल – मैडम, आधा घंटा लगेगा, अगर आप सहयोग करोगी तो.

मेरी भौंहे तन गयीं.

“सहयोग ? क्या मतलब है तुम्हारा ?”

राजकमल – मैडम, मैं पिछले एक साल से ये मालिश कर रहा हूँ. मैंने आश्रम में बहुत सी औरतों की मालिश की है लेकिन उनमें से कुछ औरतों ने मालिश के तरीके पर ऐतराज किया और बेवजह मालिश में देर कर दी.

“मैं समझी नहीं ….”

राजकमल – मैडम , अगर आप उन क़िस्सों को सुनोगी तो हंस पड़ोगी. एक औरत आई थी आश्रम में, मुझसे कहने लगी पीठ की मालिश ब्लाउज के ऊपर से करो. ज़रा कल्पना करो , सोच के भी हँसी आती है.

वो थोड़ा रुका और मेरे रिएक्शन को भाँपने की कोशिश की.

राजकमल – पिछले महीने की बात है ये. ऐसा कैसे संभव है ? एक औरत आई थी , उसने मालिश के लिए मुझे अपनी टाँगें छूने से मना कर दिया. एक औरत ने अपने बालों में जड़ी बूटी वाला तेल लगाने से इनकार कर दिया. मैडम , ऐसी औरतों को समझाने में बहुत वक़्त बर्बाद हो जाता है और मालिश में बेवजह देर हो जाती है. इसलिए मैंने सहयोग के लिए कहा.

मैं थोड़ा हँसी, जैसे की ये बता रही हूँ की मैं उन औरतों जैसी नहीं हूँ. राजकमल ने मुझे देखा और वो भी मुस्कुराया , जैसे की वो समझ गया हो की मैं उससे इस तरह के ऐतराज नहीं करूँगी.

उसने फर्श में चटाई बिछा दी. फिर वो मुड़ा और दरवाज़े को बंद करके अंदर से कुण्डी लगा दी. उसके अंदर से दरवाज़ा बंद करने से मैं थोड़ा घबरा गयी और बेवक़ूफी भरा सवाल कर बैठी.

“तुमने दरवाज़े में कुण्डी क्यूँ लगा दी ?”

शायद राजकमल को मेरे सवाल से और भी ज़्यादा आश्चर्य हुआ और कुछ पलों के लिए उसे जवाब नहीं सूझा.

राजकमल – वो….वो….मेरा मतलब आपके लिए बंद किया मैडम. आपको कपड़े उतारने होंगे ना …..इसलिए.

“ओह्ह ……ठीक है. असल में मैंने कभी ऐसे मालिश नहीं करवाई है ना इसलिए मुझे अंदाज़ा नहीं है.”

राजकमल – आश्रम में आने वाली सभी औरतें ऐसा ही कहती हैं मैडम. लेकिन मालिश के बाद वो कहती हैं की ऐसी संतुष्टि उन्हें कभी नहीं मिली.

वो अर्थपूर्ण तरीके से मुस्कुराया.

“हम्म्म …..”

मैंने सोचा इसकी मालिश से मुझे कुछ आराम मिल जाएगा . विकास और गुरुजी ने जो संभोग की इच्छा जगा दी थी , मालिश से मुझे थोड़ी मानसिक शांति मिल जाएगी. वैसे गहरी नींद आ जाने से बेचैनी अब काफ़ी हद तक कम हो गयी थी.

राजकमल – मैडम , गुरुजी के जड़ी बूटी वाले तेल जादुई असर करते हैं. आप देख लेना.

मैंने सर हिला कर हामी भर दी और उम्मीद की ऐसा ही हो.

राजकमल – आप इस चटाई में बैठो , मैं तेलों को तैयार करता हूँ.

एक अच्छी बात ये थी की राजकमल बाकी मर्दों की तरह मेरे बदन को लालच भरी निगाहों से नहीं घूर रहा था और इससे मुझे सहज महसूस हो रहा था. लेकिन ये लड़का मेरे बदन की मालिश करेगा , इस ख्याल से ही मेरे निप्पल ब्रा के अंदर तन गये थे. राजकमल अब और वक़्त बर्बाद करने के मूड में नहीं था और उसने एक सुगंधित तेल की बोतल खोलकर थोड़ा तेल अपनी हथेली में डाल लिया.

राजकमल – मैडम , मैं आपके बालों से शुरू करूँगा. आप अपना जूड़ा खोलकर बाल पीठ में फैला दो.

मैं भगवा रंग की सूती साड़ी और ब्लाउज में चटाई में बैठी हुई थी. राजकमल मेरे पीछे बैठा था. मैंने अपने लंबे बाल खोल दिए. उसने बालों वाला तेल मेरे बालों में लगाना शुरू किया और वास्तव में उस तेल की सुगंध मदहोश करने वाली थी. मैंने गहरी साँस ली और मुझे अच्छा महसूस हो रहा था.

राजकमल – मैडम , आपके बाल बहुत अच्छे हैं.

मुझे उसकी तारीफ का जवाब देने का मन नहीं हुआ. पूरे कमरे में तेल की सुगंध फैल गयी थी. उसने सावधानी से मेरे सर में तेल लगाया और फिर अपनी अंगुलियों से मेरे लंबे बालों में लगाया.

मैं अभी भी थोड़ी नर्वस हो रखी थी क्यूंकी एक मर्द के हाथों से अपने बदन की मालिश करवाने में मैं कंफर्टेबल फील नहीं कर रही थी , वो भी अपने से छोटे लड़के से. . जब वो मेरे सर में तेल लगा रहा था तो मैं कल्पना कर रही थी की वो मेरी पीठ की मालिश कैसे करेगा ? मुझे अपना ब्लाउज खोलना पड़ेगा और बदन ढकने के लिए कमरे में कुछ नहीं था. टॉवेल भी बाथरूम में छोड़ आई थी. मुझे ध्यान रखना चाहिए था. तभी राजकमल के घुटने मेरे गोल नितंबों से छू गये , मेरे बदन में कंपकपी सी दौड़ गयी.

पिछले कुछ दिनों में दिखाई बेशर्मी के बावजूद , इस मालिश को लेकर मेरे मन में शरम, घबराहट और असहजता के मिले जुले भाव आ रहे थे. अब मेरे सर की मालिश खत्म होने को आई थी, मेरे दिल ने ज़ोर से धड़कना शुरू कर दिया.

राजकमल – मैडम , आपने ख्याल किया होगा की मैं कैसे आपके बालों को फैला रहा था और आपके सर की मालिश कर रहा था. आपको भी ऐसे ही करना होगा , जब आप खुद करोगी या किसी और से करवाओगी.

ठीक है.

राजकमल ने अब मालिश का तेल अपनी दोनों हथेलियों में लगाया और मेरे माथे पर मलने लगा.

राजकमल – मैडम , एक अच्छी मालिश हमेशा बदन के ऊपरी हिस्से से शुरू होनी चाहिए और धीरे धीरे नीचे को जानी चाहिए. और हर हिस्से के लिए अलग अलग तेल होते हैं. ये तेल चेहरे के लिए है.

मैंने सहमति में सर हिलाया और मालिश का आनंद लेने लगी. वास्तव में अच्छा महसूस कर रही थी. राजकमल की अंगुलियों ने मेरे माथे की मालिश की और फिर मेरे नरम गालों की. जब वो अपनी अंगुलियों से मेरे गालों को किसी छोटी लड़की के जैसे दबा रहा था तो मुझे बहुत शरम आ रही थी. उसने मेरे गालों में देर तक गोल गोल करके मालिश की , इससे मेरे गाल लाल हो गये थे. पर मुझे नहीं मालूम वो कितना मेरे शरमाने से लाल हुए थे और कितना उसके मलने से.

चेहरे की मालिश के बाद उसके हाथ मेरे कानो के पास आए. उसने अपने बैग में से रुई लगी हुई कान साफ करने वाली तिल्ली निकाली और मेरे कानों को सावधानी से साफ किया. उसके बाद मेरे कानों में तेल लगाया.

“आआअहह….”

मैंने संतुष्टि से आह भरी. मुझे बहुत रिलैक्स फील हो रहा था और बहुत मज़ा आ रहा था. मैंने मन ही मन गुरुजी को मालिश के लिए धन्यवाद दिया. मैं चाह रही थी की कुछ देर और मेरे चेहरे की मालिश होती रहे पर राजकमल को और जगह भी मालिश करनी थी. उसने एक दूसरी बोतल निकाली और अपने हाथों में तेल लगा लिया. अब वो मेरी गर्दन में और गले में तेल लगाने लगा. उसने ध्यान रखा की तेल से मेरा ब्लाउज खराब ना हो.

राजकमल – मैडम, ये तेल गर्दन और पीठ के लिए है. वैसे बोतल में ये लिखा हुआ है.

फिर उसने मेरी दायीं हथेली को पकड़ा और उसमें मालिश करने लगा. एक मर्द के ऐसे मेरी हथेली को मलने से मुझे फिर से शरम आने लगी. राजकमल ने मेरी हर एक नाज़ुक अंगुली में एक एक करके मालिश की और फिर ऐसा ही बायीं हथेली में भी किया. वो बीच बीच में बातें भी कर रहा था जिससे माहौल थोड़ा सहज हो जा रहा था. मेरे नाखूनों में गुलाबी नेलपॉलिश लगी हुई थी . तेल लगने से मेरे नाख़ून चमकने लगे .

उसके बाद राजकमल ने मेरे गोरे हाथों की मालिश शुरू की. वो ज़ोर से मालिश कर रहा था और कभी कभी हाथों को दबा भी रहा था. मेरे खून का दौरा बढ़ने लगा और मुझे गर्मी महसूस होने लगी. मेरा ब्लाउज कोहनी से थोड़ा ऊपर तक था , वहाँ तक राजकमल मेरी मालिश कर रहा था. फिर उसकी अंगुलियां मेरे ब्लाउज तक पहुँच गयी. उसने धीरे से मेरे कान में कहा ….

राजकमल – मैडम , आपका ब्लाउज ….

मैंने अंदाज़ा लगाया की शिष्टतावश उसने अपना वाक्य पूरा नहीं किया पर मैं समझ गयी थी की अब मुझे अपने बदन से ब्लाउज अलग करना पड़ेगा. मालिश शुरू होने से पहले मुझे इसी बात की फिकर थी , लेकिन मैं उस लड़के की मालिश में इतनी तल्लीन थी की ब्लाउज उतारने में मुझे ज़्यादा झिझक नहीं हुई. मैंने आगे से ब्लाउज के हुक खोले और राजकमल ने मेरी बाँहों से ब्लाउज उतारने में मदद की. पहली बार कोई लड़का ऐसे मेरा ब्लाउज उतार रहा था. मैं रोज़ ही बेशर्मी की नयी ऊँचाइयों को छू रही थी.

कहानी जारी रहेगी


NOTE



1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .


2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.

3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .

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  1. मजे - लूट लो जितने मिले
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  5. गुरुजी के आश्रम में सावित्री
  6. छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता एव उभरता प्रेम
  7.  मेरे निकाह मेरी कजिन के साथ
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#29
(29-11-2021, 02:15 PM)aamirhydkhan1 Wrote:
गुरुजी के आश्रम में सावित्री

CHAPTER 4 तीसरा दिन

नौका विहार

Update 3

अपराध बोध


“आआआआहह……” मैं उत्तेजना से सिसकने लगी. विकास मेरी पूरी बायीं चूची को जीभ लगाकर छत रहा था और दायीं चूची को हाथों से सहला रहा था. मैं हाथ नीचे ले जाकर उसके खड़े लंड को सहलाने लगी. फिर वो मेरी दायीं चूची के निप्पल को ज़ोर से चूसने लगा जैसे उसमें से दूध निकालना चाह रहा हो. और बायीं चूची को ज़ोर से मसल रहा था , इससे मुझे बहुत आनंद मिल रहा था. जब उसने मेरी चूचियों को छोड़ दिया तो मैंने देखा चाँद की रोशनी में मेरी चूचियाँ विकास की लार से पूरी गीली होकर चमक रही थीं. मेरे निपल्स उसने सूज़ा दिए थे. शरम से मैंने आँखें बंद कर ली.

विकास अब मेरे चेहरे और गर्दन को चाट रहा था. पहली बार मेरे पति की बजाय कोई गैर मर्द मेरे बदन पर इस तरह से चढ़ा हुआ था. पर जो आनंद मेरे पति ने दिया था निश्चित ही उससे ज़्यादा मुझे अभी मिल रहा था. विकास के हाथ मेरी चूचियों पर थे और हमारे होंठ एक दूसरे से चिपके हुए थे. हम दोनों एक दूसरे के होंठ चबा रहे थे और एक दूसरे की लार का स्वाद ले रहे थे. फिर विकास खड़ा हो गया और मेरे निचले बदन पर उसका ध्यान गया.

विकास – मैडम , प्लीज़ ज़रा पलट जाओ.

मैं नाव के फर्श पर लेटी हुई थी और अब नीचे को मुँह करके पलट गयी. मेरी पैंटी सिर्फ़ मेरे नितंबों के बीच की दरार को ही ढक रही थी , इसलिए विकास की आँखों के सामने मेरी बड़ी गांड नंगी ही थी. पैंटी उतरने से मेरी चूत के आगे लगा पैड गिर जाता इसलिए विकास ने नितंबों के बीच की दरार से पैंटी के कपड़े को उठाया और दाएं नितंब के ऊपर खिसका दिया. फिर उसने मेरी जांघों को फैलाया और मेरी गांड की दरार में मुँह लगाकर जीभ से चाटने लगा.

“उूउऊहह……”

मैं कामोत्तेजना से काँपने लगी. मेरी नंगी गांड को चाटते हुए विकास भी बहुत कामोत्तेजित हो गया था. पहले उसने मेरे दोनों नितंबों को एक एक करके चाटा फिर दोनों नितंबों को अपनी अंगुलियों से अलग करके मेरी गांड की दरार को चाटने लगा. वो मेरी गांड के मुलायम माँस पर दाँत गड़ाने लगा और मेरी गांड के छेद को चाटने लगा. उसके बाद विकास मेरी गांड के छेद में धीरे से अंगुली करने लगा.

“आआआअहह…… ओह्ह ….”

उसकी अंगुली के अंदर बाहर होने से मेरी सांस रुकने लगी. उसने छेद में अंगुली की और उसे इतना चाटा की मुझे लगा छेद थोड़ा खुल रहा है और अब थोड़ा बड़ा दिख रहा होगा. मैंने भी अपनी गांड को थोड़ा फैलाया ताकि छेद थोड़ा और खुल जाए.

विकास – बाबूलाल , नाव में तेल है क्या ?

मैं विकास के अचानक किए गये सवाल से काँप गयी. कामोत्तेजना में मैं तो भूल ही गयी थी की नाव में कोई और भी है जो हमारी कामक्रीड़ा देख रहा है.

बाबूलाल – हाँ विकास भैय्या. मैं ला के दूँ क्या ?

विकास ने हाँ में सर हिलाया और वो एक छोटी तेल की शीशी ले आया. मैं नीचे को मुँह किए लेटी थी इसलिए मुझे बाबूलाल के सिर्फ़ पैर दिख रहे थे. वो मेरे नंगे बदन से सिर्फ़ एक फीट दूर खड़ा था. तेल देकर बाबूलाल चला गया. विकास ने अपने खड़े लंड पर तेल लगाकर उसे चिकना किया.

विकास – मैडम अब आपको थोड़ा सा दर्द होगा पर उसके बाद बहुत मज़ा आएगा.

अब तेल से भीगे हुए लंड को उसने मेरी गांड के छेद पर लगाया.

“विकास प्लीज़ धीरे से करना….”

मैंने विकास से विनती की. विकास ने धीरे से झटका दिया , उसके तेल से चिकने लंड का सुपाड़ा मेरी गांड के छेद में घुसने लगा. लंड को गांड में अंदर घुस नहीं पाया. मैंने नाव के फर्श को पकड़ लिया . विकास ने मेरे बदन के नीचे हाथ घुसाकर मेरी चूचियों को पकड़ लिया और उन्हें दबाने लगा.

“ओह्ह …..बहुत मज़ा आ रहा है……”

मैंने विकास को और ज़्यादा मज़ा देने के लिए अपनी गांड को थोड़ा ऊपर को धकेला और अपनी कोहनियों के बल लेट गयी . इससे मेरी चूचियाँ हवा में उठ गयी और दो आमों की तरह विकास ने उन्हें पकड़ लिया. सच कहूँ तो मुझे थोड़ा दर्द हो रहा था पर शुक्र था की विकास ने तेल लगाकर चिकनाई से थोड़ा आसान कर दिया था. और वैसे भी वो किसी हड़बड़ाहट में नही था बल्कि बड़े आराम आराम से मेरी गांड पर टकरा रहा था. हम दोनों ही धीरे धीरे से कामक्रीड़ा कर रहे थे. वो धीरे धीरे अपना लंड घुसा रहा था और मैं अपनी गांड पीछे को धकेल रही थी , अब उसने धक्के लगाने शुरू किए और मैं उसके हर धक्के के साथ कामोन्माद में डूबती चली गयी.

मेरे पति ने पहले कई बार मेरी गांड मरी थी पर आज गांड टाइट हो गयी थी या विकास का लंड बड़ा था पर विकास का लंड अंदर नहीं घुस रहा था.

कुछ देर तक वो धक्के लगाते रहा और मैं काम सुख लेती रही. कुछ देर बाद मैं चरम पर पहुँच गयी और मुझे ओर्गास्म आ गया.

“आआआअहह……ओह्ह ….”

पैंटी में लगे पैड को मैंने चूतरस से पूरा भिगो दिया. मेरे साथ ही विकास भी झड़ गया. हम दोनों कुछ देर तक वैसे ही लेटे रहे और ठंडी हवा और नदी की पानी के आवाज़ को सुनते हुए नाव में उस प्यारी रात का आनंद लेते रहे. फिर विकास उठा और अपने अंडरवियर से मेरी गांड में लगा हुआ अपना वीर्य साफ किया. मुझे पता भी नही चला था की कब उसने अपना अंडरवियर उतार दिया था और वो पूरा नंगा कब हुआ. मेरी गांड पोंछने के बाद उसने मेरी पैंटी के सिरों को पकड़कर मेरे दोनों नितंबों के ऊपर फैला दिया. अब मैं कोई शरम नही महसूस कर रही थी , वैसे भी मुझे लगने लगा था की अब मुझमें थोड़ी सी ही शरम बची थी. फिर मैं सीधी हुई और बैठ गयी , मेरा मुँह बाबूलाल की तरफ था. वो मेरी नंगी चूचियों को घूर रहा था. लेकिन मैंने उन्हें छुपाने की कोशिश नही की बल्कि बाबूलाल की तरफ पीठ कर दी. मैंने विकास के लंड को देखा जो अब सारा रस निकलने के बाद केले की तरह नीचे को लटक रहा था.


“विकास , प्लीज़ मेरे कपड़े दो. मैं ऐसी हालत में अब और नही रह सकती.”

विकास – बाबूलाल , मैडम के कपड़े ले आओ. मैडम , अब तुम नदी के किनारे की तरफ जाना चाहोगी या कुछ देर और नदी में ही ?

“यहीं थोड़ा और वक़्त बिताते हैं.”

विकास – ठीक है मैडम, अभी बैलगाड़ी के मंदिर में आने में कुछ और वक़्त बाकी है.

बाबूलाल ने विकास को मेरे कपड़े लाकर दिए और मैं जल्दी से कपड़े पहनने लगी . मैंने ब्रा पहनी और विकास ने पीछे से हुक लगा दिया. मैं इतना कमज़ोर महसूस कर रही थी की मैंने उसके ‘पति की तरह’ व्यवहार को भी मंजूर कर लिया. मेरी ब्रा का हुक लगाने के बाद वो फिर से मेरी चूचियों को सहलाने लगा.

“विकास अब मत करो. दर्द कर रहे हैं.”

विकास – लेकिन ये तो फिर से तन गये हैं मैडम.

मेरे तने हुए निपल्स को छूते हुए विकास बोला. वो ब्रा के ऊपर से ही अपने अंगूठे और अंगुली के बीच निपल्स को दबाने लगा. मैंने भी उसके मुरझाए हुए लंड को पकड़कर उसको माकूल जवाब दिया.

“लेकिन ये तो तैयार होने में वक़्त लेगा, डियर.”

हम दोनों हंस पड़े और एक दूसरे को आलिंगन किया. फिर मैंने ब्लाउज पहन लिया और पेटीकोट अपने ऊपर डाल लिया. विकास ने मुझे साड़ी नही पहनने दी और कुछ देर तक उसी हालत में बिठाए रखा.

विकास – मैडम, ऐसे तुम बहुत सेक्सी लग रही हो.

बाबूलाल को भी काफ़ी देर तक मेरे आधे ढके हुए बदन को देखने का मौका मिला और इस नाव की सैर के हर पल का उसने भरपूर लुत्फ़ उठाया होगा. समय बहुत धीरे धीरे खिसक रहा था और उस चाँदनी रात में ठंडी हवाओं के साथ नाव नदी में आगे बढ़ रही थी. हम दोनों एक दूसरे के बहुत नज़दीक़ बैठे हुए थे, एक तरह से मैं विकास की गोद में थी और उस रोमांटिक माहौल में मुझे नींद आने लगी थी. नाव चुपचाप आगे बढ़ती रही और मुझे ऐसा लग रहा था की ये सफ़र कभी खत्म ही ना हो.

नाव चुपचाप आगे बढ़ती रही और मुझे ऐसा लग रहा था की ये सफ़र कभी खत्म ही ना हो.

तभी विकास की आवाज़ ने चुप्पी तोड़ी.

विकास – मैडम , जानती हो अब मुझे अपराधबोध हो रहा है.

“तुम ऐसा क्यूँ कह रहे हो?”

विकास – मैडम , आज पहली बार मैंने गुरुजी के निर्देशों की अवहेलना की है. उन्होने मंदिर में आरती के लिए ले जाने को बोला था और हम यहाँ आकर मज़े कर रहे हैं.

वहाँ का वातावरण ही इतना शांत था की आदमी दार्शनिक बनने लग जाए. मुझे लगा विकास का भी यही हाल हो रहा है.

“लेकिन विकास, लक्ष्य तो मुझे……..”

विकास – नही नही मैडम . मैं अपने आचरण से भटक गया. अब मुझे बहुत अपराधबोध हो रहा है.

“कभी कभी जिंदगी में ऐसी बातें हो जाती हैं. विकास मुझे देखो. मैं एक शादीशुदा औरत हूँ और मैं भी तुम्हारे साथ बहक गयी.”

विकास – मैडम , तुम्हारी ग़लती नही है. तुम यहाँ अपने उपचार के लिए आई हो और गुरुजी के निदेशों के अनुसार तुम्हारा उपचार चल रहा है. मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं एक अपराधी हूँ. जो कुछ भी मैंने किया उसे मैं कभी भी गुरुजी को बता नही सकता , मुझे ये बात उनसे छुपानी पड़ेगी.

विकास कुछ देर चुप रहा . फिर बोलने लगा. वो एक दार्शनिक की तरह बोल रहा था.

विकास – मैडम , क्या कोई ऐसी घटना हुई है जिसके बाद तुम्हें गिल्टी फील हुआ हो ? जब तुमने मजबूरी या अंजाने में कुछ किया हो ? अगर नही तो फिर तुम नही समझ पाओगी की इस समय मैं कैसा महसूस कर रहा हूँ.

मैं सोचने लगी. तभी मुझे याद आया…..

“हाँ विकास, शायद तुम सही हो.”


कहानी जारी रहेगी



NOTE

1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .


2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.


3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .


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#30


CHAPTER 5- चौथा दिन

मालिश

Update 2



मैं ब्लाउज के अंदर सफेद ब्रा पहने हुई थी . ब्लाउज उतारने के बाद मैंने तुरंत अपनी नंगी पीठ को साड़ी के पल्लू से ढक दिया. राजकमल की अँगुलियाँ अब मेरी कोहनियों से लेकर कंधों तक और कांखों में घूमने लगीं.

राजकमल – मैडम आपकी त्वचा तैलीय (आयली स्किन) टाइप की है, इसलिए मैं तेल कम लगा रहा हूँ. आप भी जब खुद से मालिश करोगी तो इस बात का ध्यान रखना.

अब वो मेरी पूरी बाँह में ज़ोर लगाकर मालिश करने लगा. उसके ज़ोर लगाने से मुझे अच्छा लग रहा था. मैं चाह रही थी की वो ऐसे ही मेरी बाँहों को ज़ोर ज़ोर से मलता रहे.वैसे वो दिखने में दुबला था पर मालिश पूरी ताक़त लगाकर करता था. सच कहूँ तो वाक़ई अच्छी मालिश करता था इसमें कोई शक़ नहीं. फिर वो मेरे कंधों में मालिश करने लगा और वहाँ से मेरे पल्लू को हटा दिया.

राजकमल – मैडम, कैसा लग रहा है ? रिलैक्स फील हो रहा है ?

“हाँ, बहुत आराम मिल रहा है.”

राजकमल की अंगुलियों में जादू था . मैं उसकी मालिश में इतनी मगन थी की , जब उसकी काँपती अंगुलियों ने मेरी पीठ में ब्रा का हुक खोला तो मैंने कोई विरोध नहीं किया. ब्रा का हुक खुलने के बाद मुझे होश आया.

हे भगवान ! मैं इसके लिए तैयार नहीं थी. उस लड़के ने एक झटके में मेरी ब्रा उतार दी. वैसे सच कहूँ तो मैं उसकी मालिश से खुश थी और ब्रा उतारने में मुझे ज़्यादा ऐतराज नहीं था. अब मेरे पास अपनी बड़ी चूचियों को पल्लू से ढकने के सिवा कोई चारा नहीं था. राजकमल मेरे पीछे बैठा था और मेरी नंगी पीठ पर मालिश करने लगा. उसने मेरे मेरुदण्ड (स्पाइनल कॉर्ड) और उसके आस पास से मालिश शुरू की. मेरी चिकनी पीठ पर उसकी अँगुलियाँ ऊपर नीचे फिसलने लगीं.

एक बार मुझे उसकी अँगुलियाँ मेरी हिलती डुलती चूचियों के पास महसूस हुई. किसी भी 20 – 21 साल के लड़के के लिए एक जवान औरत की नंगी पीठ पर ऐसे हाथ फिराना कोई सपने से कम नहीं. मैं सोचने लगी अगर इसकी अँगुलियाँ मेरी रसीली चूचियों को ग़लती से छू जाएँ तो क्या होगा. इस ख्याल से मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा और मेरे कान लाल हो गये.

किसी भी सूरत में उस लड़के के साथ मैं यौन गतिविधियों (सेक्सुअल एक्टिविटीस) में संलिप्त होना नहीं चाहती थी. लेकिन मेरे बदन में राजकमल के छूने से मुझे कामोत्तेजना भी आ रही थी. मैं शरम और उत्तेजना के बीच झूल रही थी. मैं महसूस कर रही थी की आराम की अवस्था से मैं उत्तेजना की अवस्था में जा रही हूँ. मैं राजकमल को रोक भी नहीं सकती थी क्यूंकी मुझे मज़ा आ रहा था. मैं भ्रमित थी की क्या करूँ ? राजकमल मेरे देवर की उमर का था , मुझे अपने देवर का चेहरा याद आ रहा था और ऐसा लग रहा था जैसे मेरा छोटा देवर मेरे बदन की मालिश कर रहा हो.

उफ़फ्फ़ नहीं. मैं अपने देवर के सामने ऐसे नंगे बदन कभी नहीं बैठ सकती. क्या मैं सारी सामाजिक मर्यादाओं को भूल गयी हूँ ? क्या मैं अपने होश खो बैठी हूँ ? मेरा चेहरा लाल होने लगा , मेरी आँखें जलन करने लगी, मैं अपने होंठ काटने लगी. मुझे अपनी टाँगों के बीच सनसनी होने लगी. जिसका डर था वही हुआ , मैं फिर से कामोत्तेजित होने लगी थी. मैं चाह रही थी की राजकमल के हाथ मेरी चूचियों को मसल दें. मैं बेकरारी से चाह रही थी की ग़लती से या कैसे भी उसके हाथ साड़ी के पल्लू से ढकी मेरी नंगी चूचियों को छू जाएँ. लेकिन नहीं. ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. राजकमल मेरी चूचियों से थोड़ी दूरी बनाए रहा और पीठ की मालिश करते रहा , उसके हाथ जब भी मेरी चूचियों के पास आए , बिना छुए निकल गये.

अब मुझे बेचैनी होने लगी . मैंने देखा राजकमल अब भी मेरी पीठ में ही मालिश कर रहा है. फिर मैंने ऐसा दिखाया जैसे मेरा पल्लू ग़लती से मेरी चूचियों के ऊपर से फिसल गया हो. अब दोनों बड़ी चूचियाँ नंगी थीं और मैंने उन्हें ढकने में कोई जल्दबाज़ी नहीं दिखाई, जबकि कोई भी औरत पल्लू से तुरंत ढक लेती.

मुझे पूरा यकीन था की राजकमल को साइड से मेरी सुडौल गोरी चूचियों , भूरे रंग का ऐरोला और उसके बीच में घमंड से तने हुए मेरे निप्पल का भरपूर नज़ारा दिख रहा होगा . मैंने अपनी भरी हुई छाती को कम से कम 10 सेकेंड्स तक खुला रखा. मैंने राजकमल के गले से थूक निगलने की आवाज़ सुनी और कुछ पल के लिए उसके हाथ मेरी पीठ में रुक गये. मैं मन ही मन मुस्कुरायी और फिर से अपनी चूचियों को पल्लू से ढक लिया.

अपनी आँखों के कोने से मैंने राजकमल की धोती में देखने की कोशिश की. उसके खड़े लंड ने वहाँ पर तंबू सा बनाया हुआ था और मुझे पता चल गया था की वो भी मेरी तरह कामोत्तेजित हो गया था. मैंने उसकी धोती के अंदर ढके लंड की कल्पना करने की कोशिश की , कैसा होगा ? इस ख्याल से मेरी चूत में अजीब सी सनसनाहट महसूस हुई. जैसा की अपेक्षित था, मेरी पल्लू गिराने की चाल ने तुरंत काम कर दिया था. ये उसके खड़े हो चुके लंड ने साबित कर दिया था.

राजकमल – मैडम, पीठ की मालिश पूरी हो गयी है. अगर आप अनुमति दें तो मैं आपकी ….वो …मेरा मतलब चूचियों की मालिश शुरू करूँ.

वो थोड़ा हकलाया. स्वाभाविक था. राजकमल अब और इंतज़ार नहीं कर पा रहा था. मैंने देखा उसने दूसरी बोतल से तेल निकालकर अपनी हथेलियों में लगा लिया.

राजकमल – मैडम ये तेल चूचियों के लिए है.

वो मेरे सामने घुटनों के बल बैठ गया और मेरी चूचियों के ऊपर से पल्लू हटाने का इंतज़ार करने लगा. अब ये मेरे लिए थोड़ी अटपटी स्थिति थी, एक लड़का मेरे आगे बैठा हुआ है और मुझे मालिश के लिए अपनी चूचियाँ नंगी करनी हैं. मुझे इसमें शरम आ रही थी और असहज महसूस कर रही थी . मैंने दूसरा तरीका सुझाया.

“राजकमल तुम ये पीछे से कर सकते हो ? मेरा मतलब पीछे बैठ कर ….”

उसने ऐसा मुँह बनाया जैसे उसे कुछ समझ नहीं आया.

मेरा मतलब अगर तुम मेरी …..वो….. मेरी चूचियों की मालिश मेरे पीछे से करोगे तो मुझे कंफर्टेबल रहेगा.”

वो समझ गया. भगवान का शुक्र है. मैंने साड़ी का पल्लू चूचियों के ऊपर से नहीं हटाया .

राजकमल – ठीक है मैडम. मैं आपकी बात समझ गया. पर मेरे सामने शरमाओ नहीं. ये तो मेरा पेशा है.

राजकमल ने पेशेवर दिखने की कोशिश की लेकिन उसकी धोती के अंदर खड़ा लंड कुछ और ही कहानी बयान कर रहा था.

अब राजकमल मेरे पीछे बैठ गया और मेरी नंगी चूचियों को अपनी हथेलियों में भर लिया, मेरे बदन में कंपकपी दौड़ गयी.

“ऊऊहह……उम्म्म्मममम…..”

उत्तेजना से मेरा बदन ऐंठ गया.

“निचोड़ दो इन्हें. और निचोड़ दो.” ………यही मैं चिल्लाना चाहती थी पर मुझे अपनी ज़ुबान पर लगाम लगानी पड़ी. राजकमल शुरू में मेरी गोल चूचियों को धीरे से पकड़ रहा था और उनमें तेल लगा रहा था. पर तेल लगाने के बाद वो उन्हें ज़ोर से दबाने लगा जैसा की पिछले कुछ दिनों में कई मर्दों से मुझे अनुभव हुआ था. अब वो मेरे तने हुए निपल्स को गोल गोल घुमा रहा था, उन्हें मरोड़ रहा था और मनमर्ज़ी से दबा रहा था. मैं उत्तेजना से पागल हो गयी. वो अपनी दोनों हथेलियों से मेरी चूचियों की कभी हल्के से कभी ज़ोर से मालिश कर रहा था.

“उम्म्म्मममह………..…आआहह………………”

इस लड़के को एक प्रेमी की तरह ऐसे प्यार करना किसने सिखाया ? गुरुजी ने ?

राजकमल मेरी साड़ी के पल्लू के अंदर हाथ डालकर मेरी चूचियों को मसल रहा था . मुझे अपनी चूचियों को नंगी करने में शरम आ रही थी इसलिए मैंने अपना पल्लू हटाया नहीं था. वैसे तो मेरी चूचियाँ उसके क़ब्ज़े में थी लेकिन मेरे लिए सांत्वना की बात ये थी की वो उन्हें सीधे नहीं देख सकता था क्यूंकी वो मेरे पीछे बैठा था. अब अचानक उसने जो किया उससे मेरी साँस ही रुक गयी. राजकमल ने अपने तेल लगे हाथों से मेरे निपल्स को उछालना शुरू कर दिया और दो अंगुलियों के बीच में दबाकर मेरे तने हुए निपल्स को मरोड़ने लगा.

“अरे , ये तुम क्या कर रहे हो ?”

राजकमल – मैडम , टोको मत. ये खास किस्म की मालिश है.

मैं चुप हो गयी. लेकिन उसकी इस हरकत से मैं असहज हो गयी और मेरी पैंटी गीली होने लगी. मेरे कानों के पास उसकी भारी साँसें मुझे मह हुई. मैं समझ रही थी की मालिश के नाम पर एक शादीशुदा जवान औरत के बदन से ऐसे मज़े लेने का जो अवसर उसे मिल रहा है उससे वो भी बहुत कामोत्तेजित हो गया था. वो मेरी चूचियों से मनमर्ज़ी से खेल रहा था, कभी उन्हें उछालता, कभी पकड़ लेता , कभी मसल देता .उसके ऐसा करने से मुझे उत्तेजना आ रही थी पर साथ ही साथ शर्मिंदगी भी हो जा रही थी. मेरी जिंदगी में कभी किसी ने मेरी चूचियों से ऐसे नहीं खेला था, ना तो मेरे पति ने ना ही पिछले कुछ दिनों में और मर्दों ने.

कुछ देर बाद राजकमल ने ये खेल बंद कर दिया . मैंने राहत की सांस ली. उसकी इस कामुक हरकत से मैं पसीने पसीने हो गयी थी. उसने मुझे थोड़ी देर सांस लेने का मौका दिया.

राजकमल – मैडम अब आप चटाई में लेट जाओ.

मैंने अभी भी साड़ी पहनी हुई थी और पल्लू से अपनी चूचियों को ढके हुए थी. मैं पेट के बल चटाई में लेट गयी और छाती को साड़ी से ढक लिया. मुझे मालूम था की उस पतली साड़ी में मेरे तने हुए निप्पल और तेल से चमकते हुए ऐरोला राजकमल को अच्छे से दिख रहे होंगे. राजकमल ने एक दूसरी बोतल से तेल लिया और मेरी गहरी नाभि में डाल दिया. और अपनी तर्जनी उस तेल के कुँवें में डाल दी. मुझे गुदगुदी के साथ अजीब सी सनसनाहट हुई. फिर वो नाभि के आसपास थपथपाने लगा.

मैं सोचने लगी अब इसके बाद ये कहाँ पर मालिश करेगा ? मेरी कमर में और पेट के निचले भाग में शायद. इससे ज़्यादा की मैं कल्पना नहीं कर पाई और मैंने आँखें बंद कर ली. मालिश के दौरान बार बार मेरे देवर का चेहरा मेरी आँखों के सामने आ जा रहा था, पता नहीं क्यूँ , शायद वो भी राजकमल की उमर का ही था इसलिए. मैंने कल्पना करने की कोशिश की मैं अपने बेड में ऐसे ही लेटी हूँ और मेरा देवर मेरी मालिश कर रहा है. वो करीब करीब मेरे बदन के ऊपर बैठा है और मैंने ब्रा और ब्लाउज कुछ नहीं पहना है. उफ़फ्फ़…..नहीं…..ये तो हो ही नहीं सकता , बिल्कुल नहीं. लेकिन राजकमल के साथ तो मैं बिल्कुल यही कर रही हूँ.

हे भगवान ! अब मैं और कल्पना नहीं कर सकती थी. मेरी चुदाई के लिए तड़पती चूत से फिर से रस बहने लगा. अब तो वहां पर दर्द होने लगा था. मुझे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था की मेरी जैसी शर्मीली हाउसवाइफ , जो अपने पति के प्रति इतनी वफ़ादार थी , वो गुरुजी के आश्रम में आकर इतनी बोल्ड कैसे हो गयी ? मुझमें इतना बदलाव कैसे आ गया ? मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं था.

तभी राजकमल की आवाज़ ने मेरा ध्यान भंग किया.

राजकमल – मैडम , आपके ऊपरी बदन की मालिश पूरी हो गयी है. मैं अब सर से कमर तक संक्षिप्त मालिश करूँगा. इसलिए अगर आप…………..

मुझे उसकी बात समझ नहीं आयी. मैं लेटी हुई थी , क्या वो मुझे फिर से बैठने को कह रहा था ?

“अगर क्या ? फिर से बैठना है क्या ?”

राजकमल – नहीं नहीं मैडम. आप ऐसे ही लेटी रहो. मैं आपके सर से कमर तक मालिश करूँगा , इसलिए ……..

उसने फिर से अपनी बात अधूरी छोड़ दी. पर इस बार उसका इशारा स्पष्ट था. वो चाहता था की मैं अपनी चूचियों के ऊपर से साड़ी का पल्लू हटा दूं ताकि वो सर से कमर तक मालिश कर सके. मुझे अपनी छाती से पल्लू हटाना ही पड़ा और अब मैं उसके सामने टॉपलेस होकर लेटी थी. मेरी नंगी रसीली चूचियों को देखकर राजकमल की आँखें बाहर निकल आई , उसके मालिश करने से चूचियाँ गरम और लाल हो रखी थीं. मेरी पूरी नंगी छाती तेल से चमक रही थी. राजकमल ने वहाँ कोई भी हिस्सा नहीं छोड़ा था , उसकी अंगुलियों ने मुझे हर जगह पर छुआ था. उस लड़के के सामने ऐसी टॉपलेस होकर लेटे हुए मुझे बहुत शरम आ रही थी और मैंने आँखें बंद कर लीं.

जब थोड़ी देर तक उसने मुझे नहीं छुआ तो मुझे फिर से आँखें खोलनी पड़ी . मैंने देखा वो नयी बोतल से तेल निकालकर अपनी हथेलियों में मल रहा था. मैंने अपनी आँखों के कोने से देखा की मुझे ऐसे खुले बदन में देखकर वो कुछ टेन्स लग रहा है , मुझे उसकी धोती में देखने की उत्सुकता हुई. मैंने देखा उसके लंड ने धोती में खड़े होकर तंबू सा बनाया हुआ है और वहाँ पर कुछ गीले धब्बे से भी दिख रहे थे. वो राजकमल का प्री-कम था. सच कहूँ तो अब मैं अपने ऊपर काबू खोती जा रही थी. उस जवान लड़के के बड़े लंड को छूने के लिए मेरे हाथ बेताब होने लगे थे पर मेरे मन में कहीं हिचकिचाहट भी थी. मेरी गीली चूत में खुजली होने लगी थी और मैंने अपने मन से हिचकिचाहट को हटाने की कोशिश की.

मैं मालिश के बहाने अपनी हवस को पनपने देना चाहती थी. अब उसने मेरे सर के बालों को धीरे से खींचकर मालिश शुरू की. फिर मेरे गालों को मला , उसके बाद मेरी गर्दन और फिर मेरी हिलती डुलती चूचियों पर उसके हाथ आ गये. वो मेरे कड़े तने हुए निपल्स को मरोड़ने लगा , जैसा की संभोग के दौरान मेरे पति करते थे. मैंने ज़ोर से सिसकारी ली और अपनी कामोत्तेजना जाहिर होने दी. अब राजकमल मेरी चूचियों को ज़ोर से मसलने लगा. मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा पूरा बदन उसकी मालिश की आग में जल रहा हो.

“ओह्ह …….और करो……….”

मेरी बात सुनकर राजकमल उत्तेजित हो गया और मेरी तेल लगी हुई चूचियों को और भी ज़्यादा ताक़त लगाकर दबाने और मसलने लगा. मेरी टाँगें अपनेआप पेटीकोट के अंदर अलग अलग होने लगीं. अभी तक वो मेरी साइड में बैठा था पर अब उसकी हिम्मत बढ़ने लगी. मैंने ख्याल किया अब उसने मेरी नंगी चूचियों पर बेहतर पकड़ बनाने के लिए अपना एक घुटना मेरी जांघों पर रख दिया था. थोड़ी देर तक ऐसा चलता रहा और फिर शायद वो उत्तेजना बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसने मालिश रोक दी. मैंने देखा वो बुरी तरह हाँफ रहा था और मेरा भी यही हाल था. फिर उसने अपने बैग से एक कपड़ा निकाला और अपनी हथेलियां पोंछ दी.

राजकमल – मैडम , अब निचले बदन की मालिश करनी है. आपकी साड़ी……..

“हाँ, तुम उसे उतार दो प्लीज़. अब मुझसे बैठा नहीं जा रहा.”

वास्तव में मुझमें उठने की ताक़त नहीं थी. मेरा पूरा बदन उत्तेजना से कांप रहा था. एक शादीशुदा औरत की साड़ी उतारने का मौका मिलने से वो लड़का खुश लग रहा था.

राजकमल – ठीक है मैडम. आप बस आराम से लेटी रहो.

उसने मेरी कमर को देखा जहाँ पर साड़ी बँधी थी और पल्लू चटाई में पड़ा हुआ था.

राजकमल – मैडम , आप अपने पेट को थोड़ा नीचे कर लो ताकि मैं साड़ी के फोल्ड निकाल सकूँ.

मैंने वैसा ही किया और उसने मेरे पेटीकोट से साड़ी के फोल्ड निकाल दिए.

राजकमल – मैडम, थोड़ा अपने वो …..मेरा मतलब नितंबों को उठा दो जिससे मैं आपके नीचे से साड़ी निकाल सकूँ.

मुझे वैसा ही करना पड़ा. मुझे एहसास हुआ वो बड़ा अश्लील दृश्य था, एक गदराये हुए बदन वाली हाउसवाइफ टॉपलेस लेटी हुई है और अपनी गांड ऊपर को उठा रही है और एक जवान लड़का उसकी साड़ी उतार रहा है. मैंने अपने भारी नितंबों को थोड़ा उठाया और राजकमल ने एक झटके में मेरे नीचे से साड़ी खींच ली. मैंने सोचा राजकमल ने पहले भी और औरतों की मालिश करते हुए ऐसा किया होगा. अब मेरे निचले बदन को सिर्फ़ पेटीकोट ढक रहा था.

राजकमल – मैडम अब पेट के बल लेट जाओ.

“ठीक है.”

मैंने फिर से उसका कहना माना, बल्कि मेरी नंगी हिलती हुई चूचियों को अपने बदन के नीचे ढककर मुझे बेहतर महसूस हुआ. लेकिन राजकुमार के प्लान कुछ और ही थे.

राजकमल – मैडम, अगर मैं आपका पेटीकोट भी उतार दूँ तो बेहतर रहेगा वरना ये तेल से खराब हो जाएगा.

मेरा मुँह चटाई की तरफ था और मेरे नितंब ऊपर को थे. मैंने वैसे ही जवाब दिया.

“मैं अपना पेटीकोट खराब नहीं करना चाहती.”

मैंने शांत स्वर में जवाब दिया और अप्रत्यक्ष रूप से (इनडाइरेक्ट्ली) उसे मेरा पेटीकोट उतारने की अनुमति दे दी.

राजकमल – ठीक है मैडम. आप बस आराम से लेटी रहो , मैं उतारता हूँ.

ऐसा कहकर उसने मेरे बदन के नीचे अपने हाथ डाल दिए, जगह बनाने के लिए मुझे अपना पेट ऊपर को उठाना पड़ा. उसकी अँगुलियाँ मेरे पेटीकोट के नाड़े में पहुँच गयी , नाड़ा खोलने में मैंने मदद की. लेकिन मुझे क्या मालूम था की वो मेरे पेटीकोट के साथ पैंटी भी नीचे खींच देगा. मेरे को जब तक मालूम पड़ता तब तक वो पेटीकोट के साथ पैंटी भी कमर से नीचे को खींचने लगा.

“अरे अरे , ये क्या कर रहे हो …???”

राजकमल एक मासूम लड़के की तरह भोला बनने का नाटक करने लगा.

राजकमल – क्या हुआ मैडम ? मैंने कुछ ग़लत किया क्या ?

ये हमारी बातचीत मेरी उस हालत में हो रही थी जब पैंटी उतरने से मेरी गांड की आधी दरार दिखने लगी थी और राजकमल की अँगुलियाँ अब भी मेरी पैंटी के एलास्टिक में थी.

“उसको क्यूँ नीचे कर रहे हो ?”

राजकमल अब बदमाशी पर उतर आया था.

राजकमल – किसको मैडम ?

“मेरी पैंटी को और किसको, बेवक़ूफ़.”

अब मुझे थोड़ा गुस्सा आ गया था.

राजकमल – लेकिन मैडम , निचले बदन में मालिश के लिए तो आपको नंगा होना ही पड़ेगा.

“लेकिन तुम्हें पहले मुझसे पूछना तो चाहिए था ना ?”

राजकमल – सॉरी मैडम, मैंने सोचा……

उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी और इससे मैं और ज़्यादा खीझ गयी. लेकिन उस नंगी हालत में मैं सीधे चटाई में बैठ भी तो नहीं सकती थी.

“क्या सोचा तुमने ?”

राजकमल – मैडम , मैंने देखा है की ज़्यादातर औरतें अपनी ब्रा और पैंटी को उतारने में शरमाती हैं. इसलिए मैंने अलग से पैंटी का नाम नहीं लिया. फिर से सॉरी मैडम.

“ह्म्म्म्म………..”

उसके माफी माँगने से मैं थोड़ी शांत हो गयी.

राजकमल – मैडम, क्या करूँ फिर ?

वाह क्या सवाल पूछा है.

“आधी तो उतार ही दी है , बाकी भी उतार दो. और क्या.”

मैंने थोड़ा कड़े स्वर में जवाब दिया. राजकमल ने एक सेकेंड भी बर्बाद नहीं किया और मेरे पेटीकोट के साथ पैंटी को भी मेरे गोल नितंबों से नीचे खींचने लगा. उसने मेरी मांसल जांघों , फिर टाँगों और फिर पंजों से होते हुए पेटीकोट और पैंटी निकाल दिए. अब मैं उस 21 बरस के लड़के के सामने बिल्कुल नंगी लेटी हुई थी.

राजकमल ने एक सेकेंड भी बर्बाद नहीं किया और मेरे पेटीकोट के साथ पैंटी को भी मेरे गोल नितंबों से नीचे खींचने लगा. उसने मेरी मांसल जांघों , फिर टाँगों और फिर पंजों से होते हुए पेटीकोट और पैंटी निकाल दिए. अब मैं उस 21 बरस के लड़के के सामने बिल्कुल नंगी लेटी हुई थी.

मैं उस मालिश वाले लड़के से बातें कर रही थी लेकिन मेरी चूत में अलग ही कंपन हो रहा था , मुझे लग रहा था जैसे उसमें से रस की बाढ़ आने को है. कामोत्तेजना से मैं अपनी सारी शरम छोड़कर एक नयी स्थिति में पहुँच गयी , जहाँ उस जवान लड़के के सामने अपनी नग्नता का मैंने आनंद उठाया और इससे मेरी उत्तेजना और भी बढ़ गयी. मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और उस जवान मालिश वाले के आगे पूर्ण समर्पण कर दिया.

राजकमल के हाथ मुझे अपने सुडौल नितंबों में महसूस हुए. वो दोनों हाथों से मेरे बड़े नितंबों को मसलने लगा.

“आहह……………उम्म्म्ममममम…………………. ओह्ह ……….”

राजकमल मेरे नितंबों में तेल लगा रहा था और मैं कामोत्तेजना से सिसकारियाँ ले रही थी. वो मेरे नंगे नितंबों को कभी थपथपा रहा था , कभी मल रहा था , कभी दबा रहा था और क्या क्या नहीं कर रहा था. यहाँ तक की एक बार वो मेरे नितंबों पर थप्पड़ भी मारने लगा.

“आउच………….आआआहह..……..”

मुझे वास्तव में बहुत मज़ा आ रहा था. आज तक किसी मर्द ने मुझे वहाँ पर थप्पड़ मारने की जुर्रत नहीं की थी और ये लड़का मालिश के नाम पर बड़े आराम से ऐसा कर रहा था. राजकमल मेरे गोल मांसल नितंबों को दोनों हाथों में पकड़कर ऐसे दबा रहा था की जैसे वो कचौड़ी बनाने के लिए मैदा गूंद रहा हो.

“अच्छे से करो ……हर तरफ. ”

मैंने उससे कहा पर हर तरफ का मतलब नहीं बताया. वो और ज़ोर ज़ोर से मेरे नितंबों को निचोड़ने लगा , मुझे अपनी चूत से ज़्यादा रस निकलता महसूस हुआ. मेरा हाथ अपनेआप ही मेरी चूत में चला गया और मैंने दाएं हाथ की बड़ी अंगुली गीली चूत के अंदर डाल दी. राजकमल की ओर देखने की मेरी हिम्मत नहीं हुई , पता नहीं उसकी क्या हालत हो रखी थी. मैंने अनुमान लगाया की उसका लंड पूरी तरह तन गया होगा और ज़रूर वो झड़ने के करीब होगा. वो अपनी कामोत्तेजना पर काबू पाने की कोशिश कर रहा होगा ताकि धोती खराब होने से मेरे सामने उसको शर्मिंदा ना होना पड़े. राजकमल की तेल लगी हुई हथेलियां मेरे नितंबों के शिखर तक गयी और धीरे धीरे ढलान से नीचे को उतरी.

“आआआआअहह…………”

बहुत ही अच्छा महसूस हो रहा था. उसकी आधी हथेली मेरी गांड की गहरी दरार में घुसी हुई थी. मुझे मालूम पड़ रहा था की वो मेरी गांड के छेद को ढूँढने की कोशिश कर रहा है. उसको ढूँढने के बाद राजकमल ने छेद पर तेल भी लगाया. उसमें भी एक अजीब सा नाजायज किस्म का आनंद था की मेरे देवर की उमर का एक लड़का मेरी गांड के छेद में तेल मल रहा है.

फिर वो मेरी मांसल जाँघों के पिछले हिस्से की मालिश करने लगा. उसकी अँगुलियाँ लगातार मेरे बदन में फिसल रही थीं. वो बिल्कुल भी थका हुआ नहीं लग रहा था बल्कि उसके हाथों की ताक़त और भी बढ़ गयी थी. उसके बाद वो नीचे को बढ़ा और मेरे घुटनों, टाँगों और मेरे पैरों की अंगुलियों की मालिश की. मैं बता नहीं सकती की कितनी अच्छी तरह से उसने ये सब किया. जिसने पूरे नंगे बदन की मालिश ना करवाई हो वो इसके रोमांच को नहीं समझ सकता. मेरा रोम रोम आनंद से कांप रहा था और ऐसा मैंने पहले कभी अनुभव नहीं किया था. संभोग करने से जो आनंद मिलता है और इस मालिश से जो आनंद मुझे मिला था , उन दोनों में अंतर था.

ईमानदारी से कहूँ तो अब मैं एक तने हुए कड़े लंड से रगड़कर चुदाई को बेताब थी. सुबह भी मुझे ऐसी इच्छा हुई थी जब विकास मुझे कामोत्तेजित करके चला गया था. फिर एग्जामिनेशन टेबल में गुरुजी के सामने भी मुझे ऐसी ही इच्छा हुई थी.

मेरे पैरों के अंगूठो की मालिश करके राजकमल रुक गया. हम दोनों ही अवाक थे , कोई कुछ नहीं बोला. कमरे में अजीब सी बेचैनी भरी शांति थी .

मेरे जवान बदन में कोई भी ऐसा हिस्सा नहीं बचा था जहाँ मालिश ना हुई हो सिर्फ़ बालों से भरे त्रिकोणीय भाग को छोड़कर. और मैं उस भाग को यों ही छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी. शायद राजकमल भी बेसब्री से मेरे इशारे का इंतज़ार कर रहा था. मेरे से कोई संकेत ना पाकर उसने फिर से मेरी पीठ और नितंबों की मालिश करनी शुरू कर दी. मैंने अपनी आँखों के कोनों से देखा वो अब नीचे झुककर मालिश कर रहा था. तभी मेरे कानों में उसकी फुसफुसाहट सुनाई पड़ी………

राजकमल – मैडम , वो………

राजकमल क्या कहना चाहता था , उसकी बात अधूरी रह गयी क्यूंकी किसी ने दरवाज़ा खटखटा दिया.

कहानी जारी रहेगी



NOTE



1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .


2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.

3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .

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  1. मजे - लूट लो जितने मिले
  2. दिल्ली में सुलतान V रफीक के बीच युद्ध
  3. अंतरंग हमसफ़र
  4. पड़ोसियों और अन्य महिलाओ के साथ एक नौजवान के कारनामे
  5. गुरुजी के आश्रम में सावित्री
  6. छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता एव उभरता प्रेम
  7.  मेरे निकाह मेरी कजिन के साथ
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#31

औलाद की चाह

CHAPTER 5- चौथा दिन


मालिश



Update 3




खट खट से मैं हड़बड़ा गयी. मुझे याद आया की कैसे सुबह दरवाज़े पर खट खट से विकास मुझे अधूरी उत्तेजित करके छोड़ गया था , मैं फिर से वही सब नहीं होने देना चाहती थी. मैं इतना रिलैक्स फील कर रही थी की मैं वहाँ से उठना ही नहीं चाह रही थी. लेकिन मुझे कुछ तो जवाब देना ही था पर राजकमल ने पहले पूछ लिया.

राजकमल – कौन है ?

परिमल – राजकमल, कोई मैडम से मिलने आया है.

मुझसे मिलने ? यहाँ आश्रम में ? मैं हैरान हुई. लेकिन मैं राजकमल की मालिश से इतनी रोमांचित थी की परिमल की बात का जवाब नहीं दे सकी.

परिमल – राजकमल, मैडम की मालिश हो गयी क्या ?

राजकमल – वो …. हाँ.

परिमल – ठीक है फिर . मैडम को भेज दो , उनका इंतज़ार हो रहा है.

अब तो मुझे कुछ बोलना ही पड़ा. मैंने काँपती आवाज़ में पूछा.

“ कौन है परिमल ? मेरा मतलब आदमी है या औरत ?”

परिमल – कोई बड़ी उमर का आदमी है मैडम. आप आ जाना , मैं जा रहा हूँ.

कौन हो सकता है ? मैं सोचने लगी. मैं चटाई में नंगी लेटी हुई थी और अब मुझे उठना ही पड़ रहा था. व्यवधान पड़ जाने से राजकमल का हाल अब एक गूंगे की तरह हो गया था क्यूंकी उसकी आँखों में बेताबी को मैं देख सकती थी और उसकी धोती में खड़ा लंड उसकी हालत बयान कर रहा था. मैं कन्फ्यूज्ड थी की क्या करूँ ?

जब मैं चटाई में उठकर बैठ गयी तो मैंने देखा चटाई में गीले धब्बे लगे हैं जो मेरे चूतरस से लगे थे. राजकमल भी उनको ही देख रहा था. शर्मिंदगी से मैंने अपनी नज़रें झुका ली जबकि मैं बेशर्मी से उसके सामने नंगी बैठी हुई थी और मैंने अपनी जवानी को ढकने की कोई कोशिश नहीं की थी.

काम वासना से मेरा बदन तप रहा था और राजकमल भली भाँति ये बात समझ रहा था. लेकिन हम दोनों ही थोड़ी शालीनता बनाए रखने की कोशिश कर रहे थे ना की एकदम से भोंडा व्यवहार . लेकिन मुझे लगा की ऐसे तो मेरी यौन इच्छा पूरी नहीं होने वाली . आज सुबह से ये तीसरा मौका है जब मैं बिना चुदे इतनी ज़्यादा कामोत्तेजित हो गयी हूँ. पिछले दो दिन तो मैं जड़ी बूटी के प्रभाव में थी इसलिए कामोत्तेजित होने के बावजूद मुझे अपनी चूत में लंड लेने की इतनी तीव्र इच्छा नहीं हुई थी.

अब मैंने अपनी सारी शरम , संकोच , अंतर्बाधा और शालीनता के पर्दों को फाड़ डाला और राजकमल के नज़दीक़ खिसक गयी.

राजकमल – मैडम , कोई आपका इंतज़ार…………

“अपना मुँह बंद रखो और मेरी मालिश पूरी करो. तुम मुझे ऐसे छोड़ के नहीं जा सकते.”

मैं उस जवान लड़के को अपने नियंत्रण में लेने की कोशिश कर रही थी.

राजकमल – लेकिन मैडम , आपकी मालिश तो पूरी हो गयी है इसलिए …….

“मैंने कहा ना की अपना मुँह बंद रखो वरना मैं तुम्हारे होंठ सिल दूँगी समझे.”

मैं बोल्ड होते जा रही थी और ना जाने कहाँ से मुझमें इतनी हिम्मत आ गयी थी की मैं उस जवान लड़के को अपने काबू में करने की कोशिश कर रही थी और बेशर्मी की नयी ऊँचाइयों को छू रही थी. मैं बैठे बैठे ही उसके एकदम करीब आ गयी और उसको अपने आलिंगन में लेकर उसके होठों पे अपने होंठ रख दिए. अब मैंने उसके होंठ चूसने शुरू कर दिए पर वो मेरे आलिंगन से छूटने की कोशिश करने लगा. मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ.

राजकमल – मैडम , ये ठीक नहीं है. मैं गुरुजी के निर्देशों से नहीं भटक सकता.

मैं उस लड़के के रवैये से (एटिट्यूड ) इतना गुस्सा हो गयी की अपने ऊपर काबू नहीं रख पाई.

“ तुम्हारे गुरुजी ने तुम्हें क्या सिखाया है ? यही की एक औरत को नंगा करो और फिर उसके बदन की मालिश करो और फिर वैसी हालत में उसको छोड़कर चले जाओ ?”

राजकमल – मैडम , प्लीज़ धैर्य रखो.

“तो फिर ये क्यूँ खड़ा हो गया है ?”

मैंने सीधे उसका तना हुआ लंड पकड़ लिया और खींच दिया. वो दर्द से चिल्ला पड़ा. फिर उसने मुझे धक्का दिया और खड़ा हो गया. मैं अभी भी चटाई पर नंगी बैठी थी , मेरा पूरा बदन तेल से चमक रहा था. अब मैं निराशा से गुस्सा छोड़कर विनती करने लगी.

“प्लीज़, मुझे ऐसी हालत में छोड़कर मत जाओ. प्लीज़……..”

राजकमल – बाथरूम में आओ.

मैं चटाई में खड़ी हो गयी. मेरी चूत बहुत गीली थी पर अब रस नहीं टपका रही थी. मेरा बालों से भरा त्रिकोण उसकी नज़रों के सामने था. मैं उस नंगी हालत में उसके पीछे वफादार कुत्ते की तरह चलने लगी.

राजकमल – मैडम , मैं आपकी ज़रूरत समझ रहा हूँ लेकिन मैं असहाय हूँ और चाहकर भी आपकी इच्छा पूरी नहीं कर सकता. और वैसे भी कोई आपका इंतज़ार कर रहा है. मैं जल्दी से आपको कुछ राहत देने की कोशिश करता हूँ.

वो मेरे नज़दीक़ आया और पहली बार मुझे आलिंगन किया. उसका दुबला पतला शरीर मेरी इच्छा को पूरा नहीं कर पा रहा था. मेरी मुलायम चूचियाँ उसकी सपाट छाती से दब रही थीं . फिर एक झटके में उसने मुझे पलट दिया और अब मेरी गांड पर उसका लंड चुभ रहा था. अब उसने अपने दाएं हाथ की बड़ी अंगुली मेरी गीली चूत में डाल दी और अंदर बाहर करने लगा. उसकी अँगुलियाँ पतली थीं तो उसने आराम से दो अँगुलियाँ मेरी चूत के छेद में डाल दीं.

“आआआआआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह………………………..उन्न्ञननननननगगगगग………………..और करो …………आआआअहह…………….”

मैं कामोत्तेजना में बेशर्मी से ज़ोर ज़ोर से सिसकारियाँ लेने लगी . अब राजकमल ने दूसरे हाथ से मेरी चूचियों को पकड़ लिया और निप्पल को मरोड़ने लगा. सुबह से मैं कई बार कामोत्तेजित हो चुकी थी इसलिए जल्दी ही मैं चरम उत्तेजना पर पहुँच गयी और मुझे ओर्गास्म आ गया. मेरी चूत से रस बहने लगा . राजकमल अपनी अंगुलियों से मेरी चूत को चोद रहा था , उसकी अँगुलियाँ मेरे रस से सन गयी. मैं उसकी अंगुलियों को ही लंड समझकर अपनी चुदाई की प्यास को बुझाने की कोशिश कर रही थी. ओर्गास्म आने से उसकी बाँहों में मेरा बदन ऐंठ गया .

मुझे इतनी कमज़ोरी महसूस हो रही थी की मैं बाथरूम के फर्श में ही बैठ गयी. मेरा नंगा बदन तेल और पसीने से चमक कर अदभुत लग रहा था, मैंने खुद अपने मन में उसकी सराहना की. राजकमल ने मेरे ऊपर ठंडा पानी डालकर मुझे ताज़गी देने की कोशिश की. कुछ देर बाद मैं अपने पूरे होशोहवास में आ गयी और मुझे अपनी नंगी हालत का अंदाज़ा हुआ.

मैं किसी की पत्नी थी और अंगुलियों से चुदाई के बाद अब इस आश्रम के बाथरूम के फर्श में बैठी हुई थी . मेरे जवान बदन में कपड़े का एक टुकड़ा भी नहीं था , मेरी बड़ी चूचियाँ , मेरी बालों वाली चूत , मेरे बड़े नितंब, मेरी मांसल गोरी जाँघें सब कुछ एक जवान लड़के के सामने नंगा था.

हे भगवान ! मेरी होश वापस ला दो.

एक झटके में मैं बाथरूम के फर्श से उठ खड़ी हुई और जल्दी से अपने बदन को टॉवेल से ढक लिया. मैंने देखा राजकमल मेरी इस हरकत पर मुस्कुरा रहा है. वो बाथरूम से बाहर निकल गया और कमरे से मेरी साड़ी , पेटीकोट, ब्लाउज , ब्रा और पैंटी लाकर दी. फिर उसने मेरे मुँह पर बाथरूम का दरवाज़ा बंद कर दिया और मुझे और भी ज़्यादा शर्मिंदा कर दिया.

मैंने जल्दी से टॉवेल से अपने बदन से तेल को पोछा और फटाफट कपड़े पहन लिए. अब मेरी यौन इच्छा कुछ हद तक शांत हो गयी थी और ओर्गास्म आने से मैं पूरी स्खलित हो गयी थी. अब मेरा ध्यान इस बात पर गया की आख़िर इस आश्रम में मुझसे मिलने कौन आया है ?

राजकमल ने अपने बैग में तेल की बॉटल्स और चटाई रखी और मेरे बाथरूम से बाहर आने तक वो कमरे से बाहर जा चुका था. उलझन भरे मन से मैं आश्रम के गेस्ट हाउस की तरफ चल दी. मैंने अंदाज़ा लगाने की कोशिश की कौन हो सकता है ? पर ऐसा कोई भी परिचित मुझे याद नहीं आया जो यहाँ आस पास रहता हो.

कहानी जारी रहेगी


NOTE





1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .





2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.



3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .



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  1. मजे - लूट लो जितने मिले
  2. दिल्ली में सुलतान V रफीक के बीच युद्ध
  3. अंतरंग हमसफ़र
  4. पड़ोसियों और अन्य महिलाओ के साथ एक नौजवान के कारनामे
  5. गुरुजी के आश्रम में सावित्री
  6. छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता एव उभरता प्रेम
  7.  मेरे निकाह मेरी कजिन के साथ
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#32
next update pls
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#33


औलाद की चाह

CHAPTER 5- चौथा दिन

ममिया ससुर

Update 1


उलझन भरे मन से मैं आश्रम के गेस्ट रूम की तरफ चल दी. मैंने अंदाज़ा लगाने की कोशिश की कौन हो सकता है ? पर ऐसा कोई भी परिचित मुझे याद नहीं आया जो यहाँ आस पास रहता हो. मैं कमरे के अंदर गयी और वहाँ बैठे आदमी को देखकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ. वो मेरी सास के छोटे भाई थे और इस नाते मेरे ममिया ससुरजी लगते थे.


“अरे आप ? यहाँ ?”

ममिया ससुरजी – हाँ , बहू.

उनकी उम्र करीब 50 -52 की होगी और उन्होंने शादी नहीं की थी. मेरी शादी के दिनों में मैंने उन्हें देखा था. उसके बाद एक दो बार और मुलाकात हुई थी. लेकिन काफ़ी लंबे समय से वो हमारे घर नहीं आए थे. उन्हें कैसे मालूम पड़ा की मैं यहाँ हूँ ?

ममिया ससुरजी – असल में मेरा घर यहाँ से ज़्यादा दूर नहीं है , करीब 80 किमी पड़ता है, डेढ़ दो घंटे का रास्ता है. जब तुम्हारी सास ने मुझे फोन पे बताया तो मैंने कहा की मैं बहू से मिलने ज़रूर जाऊँगा.

अब मेरी समझ में पूरी बात आ गयी. मैंने उनके चरण छूकर प्रणाम किया. उन्होंने मेरे सर पे हाथ रखकर आशीर्वाद दिया.

ममिया ससुरजी – कैसा चल रहा है फिर यहाँ, बहू ?

“ठीक ही चल रहा है , मैंने दीक्षा ले ली है.”

ममिया ससुरजी – वाह. मैं आशा करता हूँ की गुरुजी के आशीर्वाद से तुम्हें ज़रूर संतान प्राप्त होगी.

वो मुस्कुराए और उनका चेहरा देखकर मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा. मैं सोचने लगी ससुरजी आश्रम के बारे में कितना जानते हैं ? क्या वो जानते हैं की यहाँ क्या होता है ? क्या वो आश्रम के उपचार के तरीके के बारे में जानते हैं ? गुरुजी के बारे में उन्हें क्या मालूम है ?

मैं भी मुस्कुरा दी और नॉर्मल दिखने की कोशिश की. लेकिन मुझे बड़ी उत्सुकता हो रही थी की आख़िर वो आश्रम के बारे में कितना जानते हैं.

“आप यहाँ कैसे पहुँचे ? आपको मालूम थी यहाँ की लोकेशन ?”

मैं उनके सामने खड़ी थी. उनका जवाब सुनकर मेरे बदन में कंपकपी दौड़ गयी.

ममिया ससुरजी – हाँ , दो साल पहले मैं यहाँ आया था. गुरुजी के बारे में तो मैंने बहुत पहले से सुन रखा था पर मैं इन चीज़ों में विश्वास नहीं करता था. उस समय मेरी नौकरानी को कुछ समस्या थी और उसने मुझसे यहाँ ले चलने को कहा. शायद तीसरी या चौथी बार आज मैं यहाँ आया हूँ.

“अच्छा ……..”

मैंने नॉर्मल दिखने की कोशिश की पर उनकी बात सुनकर मेरे हाथ पैर ठंडे पड़ गये थे. मैंने थोड़ा और जानने की कोशिश की.

“क्या समस्या थी आपकी नौकरानी को ?”

ममिया ससुरजी – बहू , तुम तो जानती होगी इन लोवर क्लास लोगों को. इनके घरों में कोई ना कोई समस्या होते रहती है. मेरी नौकरानी के पति के किसी दूसरी औरत से शारीरिक संबंध थे. वो अपने पति का उस औरत से संबंध खत्म करवाना चाहती थी.

“क्या हुआ फिर ? समस्या सुलझी की नहीं ?”

ममिया ससुरजी – हाँ बहू , सुलझ गयी पर वो एक लंबी कहानी है.

उसी समय वहाँ परिमल आ गया. वो संतरे का जूस लेकर आया था. अब हम सोफे में बैठ गये और ससुरजी जूस पीने लगे.

ममिया ससुरजी – तुम्हारी सास ने कहा था की बहू से पूछ लेना उसको कुछ चाहिए तो नहीं ? अगर तुम्हें कुछ चाहिए तो मैं बाजार से ले आता हूँ.

“नहीं . कुछ नहीं चाहिए.”

अब परिमल ट्रे और ग्लास लेकर चला गया.

ममिया ससुरजी – बहू , जब मैं पुष्पा की शादी में तुम्हारे घर आया था तब तुम्हें देखा था , तब से आज देख रहा हूँ. है ना ?

ससुरजी की घरेलू बातों से मैं नॉर्मल होने लगी. मैंने सोचा और उम्मीद की ससुरजी को शायद गुरुजी के उपचार के तरीके के बारे में पता ना हो.

“हाँ , दो साल हो गये. आपकी याददाश्त अच्छी है.”

ममिया ससुरजी – दो साल से भी ज़्यादा हो गया. लेकिन देखकर अच्छा लगा की तुम्हारी सास अच्छे से तुम्हारा ख्याल रख रही है.

वो हंसते हुए बोले.

“आप ऐसा क्यों कह रहे हो ?”

उन्हें हंसते देख मैं भी मुस्कुरायी.

ममिया ससुरजी – बहू, शीशे में देखो तुम्हें खुद ही पता चल जाएगा. बदन भर गया है तुम्हारा.

वो फिर हंस पड़े और धीरे से अपना हाथ मेरी जाँघ पर रख दिया. मैंने उसका बुरा नहीं माना और उनकी बात से शरमाकर मुस्कुराने लगी. अब मैं उनकी बातों से बिल्कुल नॉर्मल हो गयी थी और मेरे मन से ये डर निकल गया था की ना जाने वो इस आश्रम के बारे में कितना जानते हैं. अब मैं उनके साथ बातों में मशगूल हो गयी थी.

“मोटी दिख रही हूँ क्या मैं ?”

ससुरजी ने मुझे देखा और उनके होठों पर मुस्कान आ गयी.

“बताइए ना प्लीज़. आपने मुझे लंबे समय से नहीं देखा है, आप सही सही बता सकते हो.”

ममिया ससुरजी – नहीं नहीं. मोटी नहीं दिख रही हो लेकिन………..

“लेकिन क्या ? पूरी बात बताइए ना. आप सभी मर्द एक जैसे होते हो. अनिल से पूछती हूँ तो वो भी ऐसा ही करते हैं. आधी अधूरी बात.”

हे भगवान ! शुक्र है मुझे अपने पति का नाम अभी तक याद है. पिछले तीन दिनों में इतने मर्दों के साथ क्या कुछ नहीं किया उसको देखते हुए तो ये भी किसी चमत्कार से कम नहीं की मुझे ये याद है की मेरा कोई पति भी है

ममिया ससुरजी – बहू, एक बार खड़ी हो जाओ.

मैं सोफे से उठकर उनके सामने साइड से खड़ी हो गयी. उन्होंने मेरे दाएं नितंब पर हाथ रखा और बोले…….

ममिया ससुरजी – बहूरानी, यहाँ पर तो तुमने माँस चढ़ा लिया है. पिछली बार जब मैंने तुम्हें देखा था तब ये इतने बड़े नहीं थे.

मुझे तुरंत ध्यान आया की मैंने पैंटी नहीं पहनी है. जब राजकमल ने मुझे बाथरूम में कपड़े लाकर दिए थे तो उनमें पैंटी नहीं थी पर उस समय मुझे ओर्गास्म की वजह से उतनी होश नहीं थी. ससुरजी का हाथ मेरे दाएं नितंब पर था और साड़ी और पेटीकोट के बाहर से मेरे सुडौल नितंबों की गोलाई का अंदाज़ा उन्हें हो रहा होगा.

“हाँ, मुझे मालूम है.”

ममिया ससुरजी – और तुम्हारा पेट भी थोड़ा बढ़ गया है. ये अच्छी बात नहीं है.

मैंने ससुरजी की नज़रों को देखा, मुझे पता चला की मेरा पल्लू थोड़ा खिसक गया है और उनको मेरे ब्लाउज से ढकी चूचियों के निचले हिस्से और पेट का नज़ारा दिख रहा है. वो सोफे में बैठे हुए थे और मैं उनके सामने साइड से खड़ी थी . मैं एकदम से उनके सामने से नहीं हट सकती थी क्यूंकी उन्हें बुरा लग सकता था. इसलिए मैंने साड़ी के पल्लू को नीचे करके अपनी चूचियों और पेट को ढक दिया.

ममिया ससुरजी – बहू, बच्चा होने के बाद तो तुम्हारा वजन बढ़ जाएगा. इसलिए तुम्हें ध्यान रखना चाहिए. अनिल क्या करता है ? उसने तुम्हें एक्सरसाइज करवानी चाहिए ……….

वो एक पल को रुके और फिर धीरे से बोले – “सिर्फ़ बेड पर ही नहीं……….”

वो ज़ोर से हंस पड़े और मैं बहुत शरमा गयी. मुझे शरमाते देखकर उन्होंने हंसते हंसते मेरे नितंबों में धीरे से एक चपत लगा दी. उनका हाथ मेरी गांड की दरार के ऊपर पड़ा , मैंने पैंटी पहनी नहीं थी , वहाँ चपत लगने से एक पल के लिए मेरे दिल की धड़कनें बंद हो गयीं. वो ऐसे नॉर्मली हँसी मज़ाक कर रहे थे , मैं कुछ कह भी नहीं सकती थी.

“आप बड़े …….”

मैं आगे बोल नहीं पाई. वो ज़ोर से हँसे और मेरी बाँह पकड़कर मुझे अपने साथ सोफे पर बिठा लिया. मेरी बाँह पकड़ने से उन्हें तेल महसूस हुआ. वैसे तो मैंने टॉवेल से पोंछ दिया था पर चिकनाहट तो थी ही.

ममिया ससुरजी – तुम्हारी बाँह इतनी चिपचिपी क्यूँ हो रही है ? कुछ लगाया है क्या ?

“हाँ, तेल लगाया है.”

मैंने जानबूझकर उनको अपनी मालिश के बारे में नहीं बताया पर जो जवाब उन्होंने दिया उससे मैं सन्न रह गयी.

ममिया ससुरजी – ओह. लगता है गुरुजी ने सालों से अपने उपचार का तरीका नहीं बदला है. मुझे याद है उन्होंने मेरी नौकरानी को भी कुछ मालिश वाले तेल दिए थे. तुमने भी मालिश करवाई ?
मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा और मुझे समझ नहीं आया क्या बोलूँ ? वो उम्रदराज आदमी थे तो उनके सामने अपनी मालिश की बात करने में मुझे शरम आ रही थी . वो मेरे पति की तरफ के रिश्तेदार थे तो और भी अजीब लग रहा था. मेरी ससुरालवाले तो सोच भी नहीं सकते थे की मेरे साथ यहाँ क्या क्या हो रहा है. और कौन औरत चाहेगी की ऐसी बातें उसके घरवालों को पता लगें.

“नहीं……….मेरा मतलब मैं खुद तेल मालिश करती हूँ.”

ममिया ससुरजी – अजीब बात है. मुझे अच्छी तरह याद है की जब मेरी नौकरानी यहाँ आई थी तो गुरुजी ने उसे बताया था की मालिश खुद नहीं करनी है. बल्कि एक दिन जब उसकी बहन कहीं गयी हुई थी तो मेरी नौकरानी ने मुझसे कहा था मालिश के लिए.

मैं उनकी बात सुनकर काँप गयी. मुझे बड़ी चिंता होने लगी की ससुरजी तो मालिश के बारे में इतना कुछ जानते हैं. पर औरत होने की वजह से मुझे ये जानने की भी उत्सुकता हो रही थी की ससुरजी ने नौकरानी के साथ क्या किया ? क्या उन्होंने नौकरानी के पूरे बदन में तेल लगाया ? कितनी उमर थी उसकी ? वो शादीशुदा थी इसलिए 18 से तो ऊपर की होगी. मालिश के समय वो क्या पहने थी ? क्या वो मालिश के लिये ससुरजी के सामने नंगी हुई , जैसे मैं राजकमल के सामने हुई थी ? ससुरजी ने मालिश के बाद उसे चोदे बिना छोड़ दिया होगा ? हे भगवान ! इन सब बातों को सोचकर मेरी गर्मी बढ़ने लगी. ससुरजी ने शादी नहीं की थी लेकिन उनके किसी कांड के बारे में मैंने कभी नहीं सुना था.

थोड़ी देर के लिए ऐसी बातों पर मेरा ध्यान गया फिर मैंने अपने को मन ही मन फटकारा की मैं ऐसे उम्रदराज और सम्मानित आदमी के बारे में उल्टा सीधा सोच रही हूँ.

ममिया ससुरजी – बहू , तुम्हारा बदन तेल से चिपचिपा हो रहा है , तुम्हें नहा लेना चाहिए.

“कोई बात नहीं . आप बैठिए ना. आपसे इतने लंबे समय बाद मुलाकात हो रही है .”

वो सोफे से उठ गये. मैं समझ गयी अब वो जाना चाहते हैं. मैं भी सोफे से उठ गयी.

ससुरजी सोफे से उठ गये. मैं समझ गयी अब वो जाना चाहते हैं. मैं भी सोफे से उठ गयी.

ममिया ससुरजी – अभी तुम यहाँ कितने दिन और रहोगी ? गुरुजी ने कुछ कहा इस बारे में ?

“हाँ. यहाँ 6 दिन रहने का बताया है. सोमवार को आश्रम आई थी, आज चौथा दिन है.”

ममिया ससुरजी – ठीक है फिर मैं शनिवार को दुबारा आऊँगा. ताकि तुम्हें आश्रम में अकेले बोरियत ना हो और तुम्हें अच्छा भी लगेगा.

मैंने मुस्कुराते हुए हामी भर दी.

ममिया ससुरजी – ठीक है बहूरानी , मैं चलता हूँ.

मैंने रिवाज़ के अनुसार जाते समय उनके पैर छू लिए. जब आते समय मैंने झुककर ससुरजी के पैर छुए थे तो उन्होंने मुझे बाँह पकड़कर उठाया था पर इस बार उन्होंने मेरी कमर पर हाथ रख दिए. उनकी अँगुलियाँ मुझे अपने मुलायम नितंबों पर महसूस हुई , मैं जल्दी से उनके पैर छूकर सीधी खड़ी हो गयी.

ममिया ससुरजी – खुश रहो बहू. मैं भगवान से प्रार्थना करूँगा की अनिल और तुम्हें जल्दी ही एक सुंदर सा बच्चा हो जाए.

ऐसा कहते हुए उन्होंने मुझे आलिंगन कर लिया. मैं भी थोड़ी भावुक हो गयी , उनके हाथ मेरी कमर में थे. ये कोई पहली बार नहीं था की किसी उम्रदराज रिश्तेदार ने मुझे आलिंगन किया हो , लेकिन मुझे अजीब लग रहा था. सभी औरतों के पास छठी चेतना होती है और हम औरतें किसी मर्द के स्नेह भरे आलिंगन और किसी दूसरे इरादे से किए आलिंगन में भेद कर लेती हैं.

ससुरजी ने पहले तो मुझे कमर से पकड़कर उठाया और फिर आलिंगन कर लिया और अब मैं उनकी छाती से लगी हुई थी. मुझे मालूम पड़ रहा था की उनकी अँगुलियाँ मेरी पीठ में धीरे धीरेऊपर को बढ़ रही हैं. मैंने अपनी चूचियों के आगे अपनी बाँह लगा रखी थी ताकि वो ससुरजी की छाती से ना छू जाए. अब उन्होंने दोनों हाथों से मेरा सर पकड़ा और मेरे माथे का चुंबन ले लिया.

अगर कोई ये सब देख रहा होता तो उसको लगता की ससुरजी बहू को स्नेह दे रहे हैं. लेकिन मुझे उनके स्नेह पर भरोसा नहीं हो रहा था. मेरे माथे को चूमकर अपना स्नेह दिखाने के बाद उन्होंने मुझे छोड़ देना चाहिए था क्यूंकी अब और कुछ करने को तो था नहीं. लेकिन वो मुस्कुराए और अपने हाथों को मेरे सर से कंधों पर ले आए. मुझे तो कुछ कहना ही नहीं आया , उनकी अँगुलियाँ मेरी गर्दन को सहलाती हुई मेरे कंधों पर आ गयीं.

ममिया ससुरजी – अपने ऊपर भरोसा रखो बहू. सब ठीक होगा.

उनकी अँगुलियाँ मेरे कंधों पर ब्लाउज के ऊपर से ब्रा स्ट्रैप को टटोल रही थीं. अब वो मेरे कंधों को पकड़कर मुझसे बात कर रहे थे तो मुझे भी अपनी बाँहें नीचे करनी पड़ी. उससे पहले जब वो मुझे आलिंगन कर रहे थे तो मैंने अपनी छाती के ऊपर बाँह आड़ी करके रख ली थी. पर अब मेरी तनी हुई चूचियाँ ससुरजी की छाती से कुछ ही इंच दूर थीं.

ममिया ससुरजी – बहूरानी फिकर मत करना. अगर तुम्हें कुछ चाहिए तो मुझसे कहो. मैं अपना फोन नंबर आश्रम के ऑफिस में दे जाऊँगा ताकि अगर तुम्हें किसी चीज़ की ज़रूरत पड़े तो वो मुझे फोन कर देंगे.

ये सब बोलते वक़्त ससुरजी ने मेरे कंधों को धीरे से अपनी ओर खींचा और अब मेरी चूचियाँ उनकी छाती से छूने लगी थीं. ये मेरे लिए बड़ी अटपटी स्थिति थी, ससुरजी मेरे कंधों को छोड़ नहीं रहे थे बल्कि मुझे अपने नज़दीक़ खींच रहे थे, और अब मैं उनके सामने खड़ी थी और मेरी नुकीली चूचियाँ उनकी सपाट छाती को छूने लगी थीं. ससुरजी ने मुझे वैसे ही पकड़े रखा और बातें करते रहे.

ममिया ससुरजी – मैंने तुम्हारी सास को कह दिया है की बिल्कुल चिंता मत करो और गुरुजी पर भरोसा रखो. तुम्हें तो मालूम ही होगा वो कितनी चिंतित रहती है.

ससुरजी की छाती से रगड़ खाने से मेरे निप्पल कड़े होने लगे . उस पोज़िशन में मेरी चूचियाँ उनकी छाती से दब नहीं रही थीं बल्कि छू जा रही थीं. मैंने थोड़ा पीछे हटने की कोशिश की पर मेरे कंधों पर ससुरजी की मजबूत पकड़ होने से मैं ऐसा ना कर सकी. मेरी 28 बरस की जवान चूचियाँ साड़ी ब्लाउज के अंदर सांस लेने से ऊपर नीचे हिल रही थीं और 50 बरस के ससुरजी की शर्ट से ढकी छाती से रगड़ खाते रहीं.

ममिया ससुरजी – बहूरानी , आज मैं तुम्हारे घर फोन करूँगा और उन्हें तुम्हारी खबर दूँगा.

“ठीक है ससुरजी. आप भी अपना ध्यान रखना.”

मैंने जल्दी से बातचीत को खत्म करने की कोशिश की क्यूंकी उनके साथ उस पोज़िशन में खड़े खड़े मुझे बहुत अटपटा लग रहा था पर ससुरजी ने मुझे नहीं छोड़ा.

ममिया ससुरजी – बहू तुम भी अपना ख्याल रखना………………..

ऐसा कहते हुए उन्होंने अपना दायां हाथ मेरे कंधे से हटा लिया और मेरे मुलायम गाल पर चिकोटी काट ली. मैं उनसे ऐसे व्यवहार की अपेक्षा नहीं कर रही थी और एक मंदबुद्धि की तरह चुपचाप खड़ी रही. मेरे बाएं कंधे को पकड़कर उन्होंने अभी भी मुझे अपने नज़दीक़ खड़े रखा था. फिर उन्होंने मेरे बदन से अपने हाथ हटा लिए और मेरे सुडौल नितंबों में एक चपत लगा दी.

ममिया ससुरजी – ………….ख़ासकर यहाँ पर.

ससुरजी की चपत हल्की नहीं थी और उनकी इस हरकत से मेरे नितंब साड़ी के अंदर हिल गये. मैंने महसूस किया था की चपत लगाकर उन्होंने अपने हाथ से मेरे बिना पैंटी के नितंबों को थोड़ा दबा दिया था. अब तक मेरी ब्रा के अंदर निप्पल उत्तेजना से पूरे तन चुके थे और ससुरजी की छाती में चुभ रहे थे. मुझे अब बहुत अनकंफर्टेबल फील हो रहा था , और कोई चारा ना देख मुझे उनके सामने ही अपनी ब्रा एडजस्ट करनी पड़ी. मैंने अपने दोनों हाथों से अपनी चूचियों को साइड से थोड़ा ऊपर को धक्का दिया और फिर जल्दी से अपना दायां हाथ पल्लू के अंदर डालकर ब्रा के कप को थोड़ा खींच दिया ताकि मेरी तनी हुई चूचियाँ ठीक से एडजस्ट हो जाएँ.

आख़िरकार ससुरजी ने मेरे कंधे से हाथ हटा लिया और दुबारा आऊँगा बोलकर चले गये. मैं भी ससुरजी के व्यवहार को लेकर उलझन भरे मन से अपने कमरे में वापस आ गयी. मुझे पूरा यकीन था की उनकी हरकतें जैसे की मेरे कंधों पर ब्रा स्ट्रैप को टटोलना, मेरे नितंबों में दो बार चपत लगाना और वहाँ पर दबाना , ये सब जानबूझकर ही किया गया था. लेकिन वो तो मुझे बहूरानी कह रहे थे और लगभग मुझसे दुगनी उमर के थे , फिर उन्हें मेरी जवानी की हवस कैसे हो सकती है ? क्या पिछले कुछ दिनों की घटनाओ से मैं कुछ ज़्यादा ही सोचने लगी हूँ ? लेकिन उनका वैसे छूना ? कुछ तो गड़बड़ थी.

मैं बाथरूम चली गयी और देर तक नहाया क्यूंकी बदन से तेल हटाने में समय लग गया , ख़ासकर की मेरी पीठ और नितंबों पर से. फिर मैंने लंच किया और नींद लेने की सोच रही थी तभी समीर आ गया.

कहानी जारी रहेगी


NOTE


1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .

2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.


3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .

जब मैंने ये कहानी यहाँ डालनी शुरू की थी तो मैंने भी इसका अधूरा भाग पढ़ा था और मैंने कुछ आगे लिखने का प्रयास किया और बाद में मालूम चला यह कहानी अंग्रेजी में "समितभाई" द्वारा "गुरु जी का (सेक्स) ट्रीटमेंट" शीर्षक से लिखी गई थी और अधूरी छोड़ दी गई थी। बाद में 2017 में समीर द्वारा हिंदी अनुवाद शुरू किया गया, जिसका शीर्षक था "एक खूबसूरत हाउस वाइफ, गुरुजी के आश्रम में" और लगभग 33% अनुवाद "Xossip" पर किया गया था। अभी तक की कहानी मुलता उन्ही की कहानी पर आधारित है या उसका अनुवाद है और अब कुछ हिस्सों का अनुवाद मैंने किया है ।

कहानी काफी लम्बी है और मेरा प्रयास जारी है इसको पूरा करने का ।



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  2. दिल्ली में सुलतान V रफीक के बीच युद्ध
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  5. गुरुजी के आश्रम में सावित्री
  6. छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता एव उभरता प्रेम
  7.  मेरे निकाह मेरी कजिन के 
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#34

औलाद की चाह

CHAPTER 5- चौथा दिन


बिमारी के निदान


Update 1 




समीर – मैडम, अभी आपको डिस्टर्ब करने के लिए सॉरी. लेकिन गुरुजी आपसे तुरंत मिलना चाहते हैं.

मुझे समीर की बात सुनकर हैरानी हुई क्यूंकी गुरुजी ने मेरे चेकअप के बाद कहा था की वो मुझसे शाम को मिलेंगे.

“लेकिन गुरुजी ने तो कहा था की वो चेकअप के नतीजे शाम को बताएँगे.”

समीर – हाँ मैडम, लेकिन शाम को गुरुजी को शहर में गुप्ताजी के घर जाना है. असल में उनकी श्रीमतीजी अपनी बेटी के लिए आज ही यज्ञ करवाना चाहती हैं.

“अच्छा. गुरुजी दूसरों के घरों में भी यज्ञ करवाने जाते हैं क्या ?”

समीर – ना ना. वैसे तो नहीं जाते लेकिन गुप्ताजी गुरुजी के पुराने भक्त हैं और दुर्भाग्यवश वो विकलांग हैं इसलिए ………..

“ओह अच्छा , मैं समझ गयी.”

ये सुनकर गुरुजी के लिए मेरी रेस्पेक्ट बढ़ गयी.

“गुरुजी ये यज्ञ क्यूँ कर रहे हैं ?”

समीर – असल में गुप्ताजी की लड़की पिछले साल १२वीं के बोर्ड एग्जाम्स में फेल हो गयी थी. इस बार भी क्लास टेस्ट में बड़ी मुश्किल से पास हुई है . इसलिए श्रीमती गुप्ता उसके बोर्ड एग्जाम्स से पहले यज्ञ करवाना चाहती हैं.

“अच्छा, लेकिन उनको इतनी जल्दी क्यूँ है ? मतलब यज्ञ आज ही क्यूँ करवाना है ?”

समीर – मैडम, गुप्ताजी को चेकअप के लिए दो हफ्ते के लिए मुंबई जाना है. इसलिए उनको यज्ञ की जल्दी है.

“अच्छा……”

फिर मैंने ज़्यादा समय बर्बाद नहीं किया क्यूंकी मुझे भी चेकअप के नतीजे जानने की उत्सुकता हो रही थी. और मैं समीर के पीछे पीछे गुरुजी के कमरे की ओर चल दी. गुरुजी अपने भगवा वस्त्रों में लिंगा महाराज की मूर्ति के सामने बैठे हुए थे.

गुरुजी – आओ रश्मि.

मैंने गुरुजी को प्रणाम किया और नीचे बैठ गयी . समीर मेरे पास खड़ा रहा.

गुरुजी – रश्मि , मुझे शाम को शहर जाना है.

“हाँ गुरुजी, समीर ने मुझे बताया था.”

गुरुजी – असल में मैं आज गुप्ताजी के घर ही ठहरूँगा , वहाँ यज्ञ करवाना है. समीर और मंजू भी मेरे साथ जाएँगे.

वो थोड़ा रुके और फिर बोले………

गुरुजी – इसलिए मैं तुम्हें चेकअप के नतीजे अभी बता देता हूँ और आगे क्या करना है वो भी.

चेकअप के नतीजों की बात से मुझे चिंता होने लगी.

“गुरुजी क्या पता चला आपको ?”

गुरुजी – समीर मेरी नोटबुक ले आओ. रश्मि , नतीजे बहुत उत्साहवर्धक नहीं हैं लेकिन बहुत खराब भी नहीं हैं.

मेरा दिल डर से ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा. गुरुजी को मुझमें ना जाने क्या खराबी मिली है.

“गुरुजी………..”

मैं आगे नहीं बोल पाई और मेरी आँख से आँसू की एक बूँद टपक गयी.

गुरुजी – रश्मि , तुम औरतों की यही समस्या है. तुम पूरी बात सुनती नहीं हो और सीधे निष्कर्ष निकाल लेती हो.

उनके शब्द कड़े थे. मैंने अपनेआप को सम्हाला. समीर ने उन्हें नोटबुक लाकर दी और गुरुजी ने उसमें एक पन्ना खोलकर देखा और फिर मेरी ओर देखा.

गुरुजी – देखो रश्मि, तुम्हारे योनिमार्ग में कुछ रुकावट है और गुदाद्वार के अंत में जो शिराएं होती हैं उनमें सूजन है .

मुझे मेडिकल की नालेज नहीं थी इसलिए मैंने कन्फ्यूज़्ड सा मुँह बनाकर गुरुजी को देखा.

गुरुजी – देखो रश्मि, तुम्हें ऐसी कोई बड़ी शारीरिक समस्या नहीं है जिससे तुम गर्भ धारण ना कर सको. पर कभी कभी छोटी बाधायें बड़ी समस्या पैदा कर देती हैं. महायज्ञ से तुम्हारे शरीर की सभी बाधायें दूर हो जाएँगी जैसा की मैंने तुम्हें पहले भी बताया है. वास्तव में महायज्ञ तुम्हें शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से , गर्भधारण के लिए तैयार होने में मदद करेगा और तुम्हारे योनिमार्ग को सभी बाधाओं से मुक्त कर देगा.

एक यज्ञ मेरे योनिमार्ग को बाधारहित बना देगा ? पर कैसे ? मुझे उनकी इस बात से उलझन हुई.

“लेकिन गुरुजी एक यज्ञ मुझे कैसे ठीक कर सकता है ?

गुरुजी – रश्मि, तुम क्या सोच रही हो की महायज्ञ में अग्नि के सामने बैठकर सिर्फ मंत्र पढ़े जाएँगे और पूजा करनी होगी ? इसमें और भी बहुत कुछ होता है और तुमको पूरी तरह समर्पण से ये करना होगा. तुम सिर्फ़ मुझ पर भरोसा रखो और बाकी लिंगा महाराज पर छोड़ दो.

ये सुनकर मुझे बहुत राहत हुई.

“जय लिंगा महाराज. “

गुरुजी – जय लिंगा महाराज.

“लेकिन गुरुजी आप कुछ शिराओं के बारे में भी बता रहे थे …”

गुरुजी – हाँ, गुदाद्वार के अंत में जो शिराएं होती है उनमें सूजन आ जाने को बवासीर कहते हैं. मैं उसमें आयुर्वेदिक लेप लगा दूँगा. तुम उसकी चिंता मत करो रश्मि.

गुदाद्वार में लेप लगाने की बात सुनकर मैं शरमा गयी और मुझे अपनी नज़रें झुकानी पड़ी.

गुरुजी – रश्मि अब तुम अपने कमरे में जाओ और आराम करो. कल और परसों तुम्हारे लिए महायज्ञ होगा. तब तक तुम जो दवाइयाँ दी हैं उन्हें लेती रहो.

“ठीक है गुरुजी.”

गुरुजी – रश्मि अब तुम अपने कमरे में जाओ और आराम करो. कल और परसों तुम्हारे लिए महायज्ञ होगा. तब तक तुम जो दवाइयाँ दी हैं उन्हें लेती रहो.

“ठीक है गुरुजी.”

मैं उठकर कमरे से बाहर जाने लगी तभी उन्होंने मुझसे पूछा.

गुरुजी – रश्मि तुम्हें राजकमल की मालिश पसंद आई ?

समीर और गुरुजी दोनों मुझे ही देख रहे थे और उनके इस प्रश्न का उत्तर देना मेरे लिए शर्मिंदगी वाली बात थी लेकिन मुझे जवाब तो देना ही था.

“हाँ, अच्छी थी.”

गुरुजी – उसके हाथों में जादू है. एक बात का ध्यान रखना, अगर तुम उससे मालिश करवाओगी तो उसको अपनी गांड पर मालिश मत करने देना क्यूंकी वहाँ पर मुझे चेकअप के दौरान सूजन मिली थी.

मुझे उनकी बात से इतनी शरम आई की मैं सर हिलाकर हामी भी नहीं भर सकी.

समीर – गुरुजी क्षमा करें पर मेरी राय अलग है. मेरे ख्याल से मैडम राजकमल से अपनी गांड पर मालिश करवा सकती हैं लेकिन इन्हें राजकमल को सिर्फ़ ये बताना पड़ेगा की गांड के छेद पर तेल ना लगाए बस.

गुरुजी – हाँ रश्मि . समीर सही कह रहा है. तुम गांड की मालिश करवा सकती हो लेकिन उसे छेद को मत छूने देना.

गुरुजी ने मुस्कुराते हुए मुझे देखा. मैं उन दोनों मर्दों की मेरी गांड की मालिश के बारे में बातचीत से शरम से मरी जा रही थी. मेरा मुँह शरम से लाल हो गया था. मुझे कुछ कहना ही नहीं आ रहा था.

समीर – गुरुजी मेरे ख्याल से मालिश के समय मैडम को अपनी पैंटी नहीं उतारनी चाहिए , उससे छेद सेफ रहेगा.

गुरुजी और समीर दोनों मेरा मुँह देख रहे थे और मैं किसी भी तरह वहाँ से चले जाना चाहती थी. मैं उनकी नज़रों से नज़रें नहीं मिला पा रही थी. मुझे उनकी बातों से पता चल गया था की ये दोनों जानते हैं की राजकमल के सामने मैंने अपने अंडरगार्मेंट्स उतार दिए थे. मैं उनके सामने बहुत लज़्ज़ित महसूस कर रही थी.

गुरुजी – सही कहा समीर. पैंटी से बचाव हो जाएगा. रश्मि ये ठीक रहेगा. तुम पैंटी के बाहर से ही मालिश करवा लेना…………

अब मुझसे और नहीं सुना गया. मैंने गुरुजी की बात को बीच में ही काट दिया.

“गुरुजी…………मैं समझ गयी.”

शायद गुरुजी मेरी हालत समझ गये. भगवान का शुक्र है.

गुरुजी – ठीक है रश्मि. अब तुम अपने कमरे में जाओ. मुझे समीर और मंजू से गुप्ताजी के यज्ञ के बारे में बात करनी है.

कहानी जारी रहेगी


NOTE



1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .



2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.





3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .



जब मैंने ये कहानी यहाँ डालनी शुरू की थी तो मैंने भी इसका अधूरा भाग पढ़ा था और मैंने कुछ आगे लिखने का प्रयास किया और बाद में मालूम चला यह कहानी अंग्रेजी में "समितभाई" द्वारा "गुरु जी का (सेक्स) ट्रीटमेंट" शीर्षक से लिखी गई थी और अधूरी छोड़ दी गई थी। बाद में 2017 में समीर द्वारा हिंदी अनुवाद शुरू किया गया, जिसका शीर्षक था "एक खूबसूरत हाउस वाइफ, गुरुजी के आश्रम में" और लगभग 33% अनुवाद "Xossip" पर किया गया था। अभी तक की कहानी मुलता उन्ही की कहानी पर आधारित है या उसका अनुवाद है और अब कुछ हिस्सों का अनुवाद मैंने किया है ।

कहानी काफी लम्बी है और मेरा प्रयास जारी है इसको पूरा करने का ।






My Stories Running on this Forum



  1. मजे - लूट लो जितने मिले
  2. दिल्ली में सुलतान V रफीक के बीच युद्ध
  3. अंतरंग हमसफ़र
  4. पड़ोसियों और अन्य महिलाओ के साथ एक नौजवान के कारनामे
  5. गुरुजी के आश्रम में सावित्री
  6. छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता एव उभरता प्रेम
  7.  मेरे निकाह मेरी कजिन के 
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#35
गुरुजी के आश्रम में सावित्री

CHAPTER 5- चौथा दिन

बिमारी के निदान


Update 2



उस कमरे से बाहर आकर मैंने राहत की साँस ली. भारी साँसों और शरम से लाल मुँह लेकर मैं अपने कमरे में वापस आ गयी. ऐसा लग रहा था जैसे गुरुजी और समीर की बातचीत अभी भी मेरे कानों में गूँज रही है. मैंने बहुत अपमानित महसूस किया. मैंने थोड़ी देर बेड में बैठकर आराम किया फिर सोने के लिए लेट गयी. लेकिन मेरे मन में बहुत सी बातें घूम रही थीं. गुरुजी ने कहा था की दो दिन तक महायज्ञ चलेगा और इससे मेरे योनिमार्ग की रुकावट दूर हो जाएगी. लेकिन कैसे ? दो दिन तक मुझे क्या करना होगा ? उन्होंने ऐसा क्यूँ कहा की यज्ञ थका देने वाला होगा ? लेकिन इन सवालों का मेरे पास कोई जवाब नहीं था.

मेरे मन में ससुरजी की बातें भी घूम रही थीं. उन्होंने कहा था की दुबारा आऊँगा. सच कहूँ तो मैं उनके बारे में कोई राय नहीं बना पा रही थी. मेरे जवान बदन को उन्होंने जैसे छुआ था वो मुझे अजीब सा लगा था. पहले जब भी उनसे मुलाकात हुई थी तो उनका व्यवहार ऐसा नहीं था लेकिन हम अकेले कभी नहीं मिले थे. ससुराल में कोई ना कोई होता था. लेकिन मुझे उनकी उमर को देखते हुए दुविधा भी हो रही थी की वो ऐसा कैसे कर सकते हैं. यही सब सोचते हुए ना जाने कब मुझे गहरी नींद आ गयी.

“खट , खट ….”

“मैडम, उठिए प्लीज़.”

मैं बेड से उठी और दरवाज़ा खोलने को बढ़ी तभी मुझे ध्यान आया की मैंने साड़ी तो पहनी ही नहीं है. दरअसल बेड में लेटते समय मैंने साड़ी उतार दी थी. मैं दरवाज़े से वापस आई और जल्दी से साड़ी को पल्लू के जैसे अपने ब्लाउज के ऊपर डाल लिया और दरवाज़ा खोला. दरवाज़े में परिमल खड़ा था. लेकिन मुझे उठाने की उसे इतनी जल्दी क्यूँ पड़ी थी ?

“क्या हुआ …?”

परिमल – मैडम आपको गुरुजी ने तुरंत बुलाया है.

“क्यूँ ? क्या बात है ?”

परिमल – मुझे नहीं मालूम मैडम.

“ठीक है . तुम जाओ और गुरुजी को बताओ की मैं अभी आ रही हूँ.”

परिमल की नज़रें मेरे पेटीकोट से ढके निचले बदन पर थी. मैंने दोनों हाथों में साड़ी पकड़ी हुई थी और ब्लाउज के ऊपर पल्लू की तरह डाली हुई थी पर नीचे सिर्फ़ पेटीकोट था. परिमल को इतनी जल्दी थी की मुझे ठीक से साड़ी पहनने का वक़्त नहीं मिला था. फिर परिमल चला गया. मैंने दरवाज़ा बंद किया और बाथरूम चली गयी. फिर ठीक से साड़ी पहनी , बाल बनाए और गुरुजी के कमरे की तरफ चल दी. क्या हुआ होगा ? अभी तो उनके कमरे से आई थी फिर क्यूँ बुलाया ? मैं सोच रही थी.

“गुरुजी , आपने मुझे बुलाया ?”

गुरुजी – हाँ रश्मि. एक समस्या आ गयी है और मुझे तुम्हारी मदद चाहिए.

गुरुजी को मेरी मदद की क्या आवश्यकता पड़ गयी ?

“ऐसा मत कहिए गुरुजी. आज्ञा दीजिए.”

गुरुजी – रश्मि तुम्हें तो मालूम है की मुझे यज्ञ के लिए शहर जाना है. समीर और मंजू भी मेरे साथ जानेवाले थे लेकिन मंजू को तेज बुखार आ गया है.

“ओह……अरे….”

गुरुजी – मैंने उसको दवाई दे दी है लेकिन वो मेरे साथ आने की हालत में नहीं है. लेकिन यज्ञ में गुप्ताजी का माध्यम बनने के लिए मुझे एक औरत की ज़रूरत पड़ेगी. इसलिए…..

“ जी गुरुजी ..?”

गुरुजी हिचकिचा रहे थे.

गुरुजी – मेरा मतलब अगर तुम मेरे साथ आ सको.

“कोई परेशानी नहीं है गुरुजी. आप इतना हिचकिचा क्यूँ रहे हैं ? अगर मैं आपकी कोई सहायता कर सकी तो ये मेरे लिए बड़ी खुशी की बात होगी.”

गुरुजी – धन्यवाद रश्मि. लेकिन हमें आज रात वहीं रहना होगा क्यूंकी यज्ञ में देर हो जाएगी.

“ठीक है गुरुजी.”

समीर – मैडम, गुप्ताजी का मकान बहुत बड़ा है. और उनके गेस्ट रूम्स बहुत आरामदायक हैं . आपको कोई परेशानी नहीं होगी.

“अच्छा. गुरुजी किस समय जाना होगा ?”

गुरुजी – अभी 5:30 हुआ है. हम 7 बजे जाएँगे. रश्मि एक काम करो. मंजू के कमरे में जाओ और उससे यज्ञ के बारे में थोड़ी जानकारी ले लो क्यूंकी यज्ञ में तुम्हें मेरी मदद करनी पड़ेगी.

“ठीक है गुरुजी.”

वहाँ से मैं मंजू के कमरे में चली गयी. उसके कमरे में धीमी रोशनी थी और मंजू बेड में लेटी हुई थी. कोई उसके सिरहाने बैठा हुआ था और उसके माथे में कुछ लेप लगा रहा था. कम रोशनी की वजह से मैं ठीक से देख नहीं पाई की वो कौन है.

“कैसी हो मंजू ?”

मंजू – गुरुजी ने दवाई दी है लेकिन बुखार उतरा नहीं है.

मैं बेड के पास आई तो देखा सिरहाने पर राजकमल बैठा है. मैंने मंजू के गालों पर हाथ लगाया , वो गरम थे , वास्तव में उसको बुखार था.

“हम्म्म……..अभी भी बुखार है.”

राजकमल – 102 डिग्री है मैडम. अभी थोड़ी देर पहले चेक किया है.

मंजू – मैडम, गुरुजी ने आपसे शहर चलने को कहा ?

“हाँ. उन्होंने अभी बताया मुझे.”

मंजू – आपको परेशानी के लिए सॉरी मैडम. लेकिन मैं ऐसी हालत में जा भी तो नहीं सकती.

“कोई बात नहीं. तुम आराम करो.”

मैं बाहर से आई तो धीमी रोशनी में मेरी आँखों को एडजस्ट होने में समय लगा. लेकिन अब मैंने देखा की मंजू बेड में बड़ी लापरवाही से लेटी हुई है , जबकि वहाँ राजकमल भी था. मुझे ये देखकर बड़ी हैरानी हुई की उसका पल्लू ब्लाउज के ऊपर से पूरी तरह सरका हुआ था और उसकी बड़ी चूचियों का करीब आधा हिस्सा साफ दिख रहा था. राजकमल उसके सिरहाने बैठा हुआ था तो उसको और भी अच्छे से दिख रहा होगा. मंजू का सर तकिया पर नहीं बल्कि राजकमल की गोद में था. राजकमल उसके माथे में कोई लेप लगा रहा था और जिस तरह से मंजू गहरी साँसें ले रही थी उससे मुझे कुछ शक़ हुआ.

मंजू – मैडम, मैं गुप्ताजी के घर पहले भी गयी हूँ , वहाँ आपको कोई परेशानी नहीं होगी.

“ठीक है. पर यज्ञ में मुझे क्या करना होगा ?”

मंजू – मैडम , ज़्यादा कुछ नहीं करना है. यज्ञ के लिए सामग्री जैसे तेल, लकड़ी, फूल, और इस तरह के और भी आइटम की व्यवस्था करनी होगी. समीर आपको बता देगा और आप ये समझ लो की जैसे आप घर में पूजा करती हो वैसे ही होगा बस.

ये सुनकर मैंने राहत की साँस ली क्यूंकी मुझे यज्ञ के बारे में कुछ पता नहीं था इसलिए थोड़ी चिंता हो रही थी.

“गुरुजी कुछ माध्यम की बात कर रहे थे. वो क्या होता है ?”

मंजू – मैडम, यज्ञ में आदमी को एक माध्यम की ज़रूरत होती है जिसके द्वारा उसको यज्ञ का फल प्राप्त हो सके और गुरुजी के अनुसार अच्छे परिणामों के लिए उनके लिंग भिन्न होने चाहिए.

“भिन्न मतलब ?”

मंजू – मतलब ये की मर्द के लिए माध्यम औरत होनी चाहिए और औरत के लिए मर्द.

“अच्छा , मैं समझ गयी.”

मेरे ऐसा कहने पर मंजू बड़े अर्थपूर्ण तरीके से मुस्कुरायी. उस मुस्कुराहट की वजह मुझे समझ नहीं आई.

मंजू – मुझे प्यास लग रही है.

राजकमल – पानी लाता हूँ.

मंजू ने उसकी गोद से अपना सर उठाया और राजकमल बेड से उठकर एक ग्लास पानी ले आया. मंजू ने उठने की कोशिश की लेकिन राजकमल ने उसको वैसे ही लेटे लेटे पानी पिला दिया. थोड़ा पानी मंजू की ठुड्डी से होते हुए उसकी छाती में बहने लगा. राजकमल ने तुरंत उसकी चूचियों के ऊपरी भाग से पानी को पोछ दिया. मैं थोड़ा चौंकी लेकिन मैंने सोचा बीमार है इसलिए पोछ रहा होगा लेकिन फिर उसके बाद राजकमल ने जो किया वो मेरे लिए पचाना मुश्किल था.

राजकमल ने ग्लास बगल में टेबल में रख दिया. और फिर से सिरहाने में बैठ गया और मंजू ने उसकी गोद में सर रख दिया.

राजकमल – पानी तुम्हारे ब्लाउज में गिरा क्या ?

मंजू – मुझे नहीं मालूम. गिरा भी होगा तो मुझे नहीं पता चला.

राजकमल – ठीक है. तुम आराम से लेटी रहो मैं देखता हूँ.

मंजू – मैडम, आप कपड़े भी ले जाना क्यूंकी यज्ञ के बाद आपको नहाना पड़ेगा.

“हाँ, मैं ले जाऊँगी.”

हम दोनों बातें कर रही थीं और ब्लाउज में पानी देखने के बहाने राजकमल मंजू की चूचियों पर हर जगह हाथ फिरा रहा था. हैरानी इस बात की थी की मंजू को इससे कोई फरक नहीं पड़ रहा था और उसने अपना पल्लू तक ठीक नहीं किया. फिर मुझे तो कुछ कहना ही नहीं आया जब मैंने देखा की मंजू की क्लीवेज में चूचियों के ऊपरी भाग पर राजकमल ने अपनी अँगुलियाँ लगा कर देखा की वहाँ पर गीला तो नहीं है.

राजकमल – मैडम, अलमारी से एक कपड़ा ला दोगी ?

“कपड़ा ? क्यूँ ?”

राजकमल – असल में इसका ब्लाउज कुछ जगहों पर गीला हो गया है. मैं ब्लाउज के अंदर एक कपड़ा डालना चाह रहा हूँ ताकि इसको सर्दी ना लगे.

एक 35 बरस की भरे पूरे बदन वाली औरत के ब्लाउज के अंदर वो कपड़ा डालना चाहता था. मैं बेड से उठी और अलमारी से कपड़ा ले आई. मैंने मंजू को शर्मिंदगी से बचाने की कोशिश की.

“कहाँ पर गीला है राजकमल ? मैं डाल देती हूँ कपड़ा.”

मंजू – मैडम, आप परेशान मत हो. राजकमल कर लेगा.

उस औरत का रवैया देखकर मैं तो हैरान रह गयी. वो अपने ब्लाउज के अंदर मेरा नहीं बल्कि एक मर्द का हाथ चाहती थी. मेरे पास अब कोई चारा नहीं था और मैंने वो कपड़ा राजकमल को दे दिया.

राजकमल – धन्यवाद मैडम.

अब राजकमल ने मेरे सामने बेशर्मी से मंजू के ब्लाउज का ऊपरी हिस्सा उठा दिया और उसकी चूचियों और ब्लाउज के बीच में कपड़ा लगा दिया. मंजू की बड़ी चूचियाँ साँस लेने के साथ ऊपर नीचे को उठ रही थीं. कपड़ा घुसाने के बहाने राजकमल को मंजू की चूचियों को छूने और पकड़ने का मौका मिल गया.

उसके बाद राजकमल फिर से उसके माथे पर लेप लगाने लगा. मैंने सोचा यहाँ पर बैठकर इनकी बेशरम हरकतों को देखने का कोई मतलब नहीं है .

“ठीक है मंजू. तुम आराम करो. अब मैं जाती हूँ.”

मंजू – ठीक है मैडम.

राजकमल – बाय मैडम.

मैं अपने कमरे में वापस चली आई और गुप्ताजी के घर जाने की तैयारी करने लगी.

हानी जारी रहेगी


NOTE

1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .

2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.

3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .

जब मैंने ये कहानी यहाँ डालनी शुरू की थी तो मैंने भी इसका अधूरा भाग पढ़ा था और मैंने कुछ आगे लिखने का प्रयास किया और बाद में मालूम चला यह कहानी अंग्रेजी में "समितभाई" द्वारा "गुरु जी का (सेक्स) ट्रीटमेंट" शीर्षक से लिखी गई थी और अधूरी छोड़ दी गई थी। बाद में 2017 में समीर द्वारा हिंदी अनुवाद शुरू किया गया, जिसका शीर्षक था "एक खूबसूरत हाउस वाइफ, गुरुजी के आश्रम में" और लगभग 33% अनुवाद "Xossip" पर किया गया था। अभी तक की कहानी मुलता उन्ही की कहानी पर आधारित है या उसका अनुवाद है और अब कुछ हिस्सों का अनुवाद मैंने किया है ।

कहानी काफी लम्बी है और मेरा प्रयास जारी है इसको पूरा करने का ।



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  1. मजे - लूट लो जितने मिले
  2. दिल्ली में सुलतान V रफीक के बीच युद्ध
  3. अंतरंग हमसफ़र
  4. पड़ोसियों और अन्य महिलाओ के साथ एक नौजवान के कारनामे
  5. गुरुजी के आश्रम में सावित्री
  6. छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता एव उभरता प्रेम
  7.  मेरे निकाह मेरी कजिन के 
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#36
गुरुजी के आश्रम में सावित्री

CHAPTER 5 - चौथा दिन -कुंवारी लड़की

Update-1




मैं अपने कमरे में वापस चली आई और गुप्ताजी के घर जाने की तैयारी करने लगी. मैंने सोचा अगर यज्ञ पूरा होने में देर रात हो भी जाती है तो मुझे परेशानी नहीं होगी क्यूंकी मैं दोपहर बाद गहरी नींद ले चुकी थी. मैंने अपने बैग में एक साड़ी, ब्लाउज , पेटीकोट और एक सेट ब्रा पैंटी रख लिए. और फिर बाथरूम जाकर फ्रेश होकर आ गयी. 6:30 बजे परिमल मुझे देखने आया की मैं तैयार हो रही हूँ या नहीं. मैं तैयार होकर बैठी थी तो उसके साथ ही गुरुजी के कमरे में चली गयी. गुरुजी भी तैयार थे. समीर और विकास यज्ञ के लिए ज़रूरी सामग्री को एकत्रित कर रहे थे. गुप्ताजी ने हमारे लिए कार भेज दी थी. 15 मिनट बाद हम तीनो आश्रम से कार में निकल पड़े.

कार में ज़्यादा बातें नहीं हुई . गुरुजी और समीर ने मुझसे कहा की यज्ञ के लिए चिंता करने की ज़रूरत नहीं , जो भी करना होगा हम बता देंगे. करीब एक घंटे बाद हम गुप्ताजी के घर पहुँच गये. तब तक 8 बज गये थे और अंधेरा हो चुका था. वो दो मंज़िला मकान था और हम सीढ़ियों से होते हुए सीधे दूसरी मंज़िल में गये. वहाँ श्रीमती गुप्ता ने गुरुजी का स्वागत किया. मैंने देखा श्रीमती गुप्ता करीब 40 बरस की भरे बदन वाली औरत थी. वो हमें ड्राइंग रूम में ले गयी वहाँ सोफे में उसका पति गुप्ताी बैठा हुआ था. गुप्ताजी की उम्र ज़्यादा लग रही थी , 50 बरस से ऊपर का ही होगा. उसने चश्मा लगा रखा था और चेहरे पर दाढ़ी भी घनी थी. वो सफेद कुर्ता पैजामा पहने हुआ था और उसके बायें पैर में लकड़ी का ढाँचा बँधा हुआ था. सहारे के लिए उसके पास एक छड़ी थी. जब वो खड़ा हुआ तो उसकी पत्नी ने उसे सहारा दिया. साफ दिख रहा था की वो आदमी विकलांग था.

गुप्ताजी ने भी गुरुजी का स्वागत किया. लेकिन जिस लड़की के लिए गुरुजी यज्ञ करने आए थे वो मुझे नहीं दिखी. गुरुजी गुप्ताजी को कुमार और उनकी पत्नी को नंदिनी नाम से संबोधित कर रहे थे. फिर गुरुजी ने उन दोनों पति पत्नी से मेरा परिचय करवाया और बताया की मंजू बीमार है इसलिए नहीं आ सकी.

गुरुजी – नंदिनी , काजल कहाँ है ? दिख नहीं रही.

नंदिनी – गुरुजी वो अभी नहा रही है. मैंने उससे कहा यज्ञ से पहले नहा लो.

गुरुजी – बढ़िया.

नंदिनी – गुरुजी हम तो उसकी पढ़ाई को लेकर परेशान हैं. पिछले साल वो फेल हो गयी थी और इस बार भी ……

गुरुजी ने बीच में ही बात काट दी.

गुरुजी – नंदिनी, लिंगा महाराज में भरोसा रखो. यज्ञ से तुम्हारी बेटी की सब बाधायें दूर हो जाएँगी. चिंता मत करो.

नंदिनी गुप्ताजी को सहारा दिए खड़ी थी और मुझे लग रहा था की वो अपने पति का बहुत ख्याल रखती है. तभी एक सुंदर सी चुलबुली लड़की कमरे में आई. मैं समझ गयी की ये लड़की ही काजल है. उसने हरे रंग का टॉप और काले रंग की लंबी स्कर्ट पहनी हुई थी. वो 18 बरस की थी . उसके चेहरे पर मुस्कान थी और वो बहुत आकर्षक लग रही थी.

काजल – प्रणाम गुरुजी.

काजल गुरुजी के पास आई और उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया. मैंने देखा झुकते समय टॉप के अंदर उसकी चूचियाँ थोड़ा हिली डुली. ज़रूर उसने ढीली ब्रा पहनी हुई थी, जैसा की हम औरतें कभी कभी घर में पहनती हैं. मैंने ख्याल किया समीर की नज़रें भी काजल की हिलती चूचियों पर थीं.

गुरुजी – काजल बेटा, तुम्हारी पढ़ाई के क्या हाल हैं ?

काजल – गुरुजी , मैं पूरी कोशिश कर रही हूँ. लेकिन जो मैं घर में पढ़ती हूँ वैसा एग्जाम्स में नहीं लिख पाती.

गुरुजी – हम्म्म ……….ध्यान लगाने की समस्या है. चिंता मत करो बेटी , अब मैं आ गया हूँ, सब ठीक हो जाएगा.

काजल – गुरुजी मुझे बहुत फिकर हो रही है. इस बार भी मेरे मार्क्स बहुत कम आ रहे हैं.

गुरुजी – काजल बेटी, यज्ञ से तुम्हारा दिमाग़ ऐसा खुलेगा की तुम्हें पढ़ाई में ध्यान लगाने में कोई दिक्कत नहीं होगी.

गुरुजी के शब्दों से काजल और उसके मम्मी पापा बहुत खुश लग रहे थे. मैंने देखा काजल और गुरुजी की बातचीत के दौरान कुमार (गुप्ताजी) मुझे घूर रहा था. नंदिनी अभी भी उसके साथ ही खड़ी थी. पहले तो मैंने ध्यान नहीं दिया लेकिन अब मुझे लगा की वास्तव में वो मुझे घूर रहा था. औरत होने की शरम से मैंने अपनी छाती के ऊपर साड़ी के पल्लू को ठीक किया जबकि वो पहले से ही ठीक था. मैंने नंदिनी को देखा की उसे अपने पति की नज़रें कहाँ पर हैं , मालूम है क्या, पर ऐसा लग रहा था की उसका ध्यान गुरुजी की बातों पर है.

गुरुजी – ठीक है फिर. नंदिनी पूजा घर में चलो.

गुरुजी और समीर नंदिनी के साथ जाने लगे और मैं भी उनके पीछे चल दी. कुमार की नज़रों से पीछा छूटने से मुझे खुशी हुई. फिर नंदिनी सीढ़ियों से ऊपर जाने लगी उसके पीछे गुरुजी थे फिर मैं और अंत में समीर था. मेरी नज़र सीढ़ियां चढ़ती नंदिनी की मटकती हुई गांड पर पड़ी. साड़ी में उसकी हिलती हुई गांड गुरुजी के चेहरे के बिल्कुल सामने थी. तभी मुझे ध्यान आया की ऐसा ही दृश्य तो मेरे पीछे सीढ़ियां चढ़ते समीर को भी मेरी मटकती गांड का दिख रहा होगा. वो तो अच्छा था की कुछ ही सीढ़ियां थी फिर दूसरी मंज़िल की छत पर पूजा घर था.

गुरुजी – नंदिनी तुम तो थोड़ी सी सीढ़ियां चढ़ने पर भी हाँफने लगी हो.

नंदिनी – जी गुरुजी. ये समस्या मुझे कुछ ही समय पहले शुरू हुई है.

गुरुजी – समीर ज़रा नंदिनी की नाड़ी देखो.

समीर – जी गुरुजी.

उन दोनों को वहीं पर छोड़करगुरुजी और मैं पूजा घर की तरफ बढ़ गये. मैंने एक नज़र पीछे डाली तो देखा समीर नंदिनी से सट के खड़ा था , उन्हें ऐसे देखकर मेरे दिमाग़ में उत्सुकता हुई. पूजा घर एक छोटा सा कमरा था जिसमें देवी देवताओं के चित्र लगे हुए थे. गुरुजी आश्रम से लाई हुई यज्ञ की सामग्री निकाल कर रखने लगे और मुझसे फूल और मालायें अलग अलग रखने को कहा. लेकिन मुझे ये देखने की उत्सुकता हो रही थी की समीर नंदिनी के साथ क्या कर रहा है ? इसलिए मैं अपनी जगह से खिसककर दरवाज़े के पास बैठ गयी.

नंदिनी – समीर मैं एलोपैथिक दवाइयों पर भरोसा नहीं करती. डॉक्टर ने मुझे कुछ दवाइयां दी हैं लेकिन मैंने नहीं खायी.

समीर – लेकिन मैडम, अगर आप दवाई नहीं लोगी तो आपकी समस्या और बढ़ जाएगी ना.

नंदिनी – समीर अब और क्या समस्यायें बढ़नी बची हैं ? कुमार को तो तुम जानते ही हो. वो पक्का शराबी है. ऊपर से 5 साल से विकलांग भी हो गया है. काजल पिछले साल फेल हो गयी. समीर क्या करूँ मैं ?

मैं उन दोनों को देख नहीं पा रही थी लेकिन उनकी बातें साफ सुन पा रही थी. उनकी बातें छुप कर सुनने में मुझे अजीब सा रोमांच हो रहा था. मुझे ये महसूस हो रहा था की समीर के नंदिनी से अच्छे संबंध हैं क्यूंकी वो उससे खुल कर अपने घर की बातें कर रही थी.

समीर – लेकिन नंदिनी मैडम, आप अपनी किस्मत तो नहीं बदल सकती ना. जो भी मुझसे बन पड़ता है मैं करता हूँ.

अब मैं थोड़ा और दरवाज़े की तरफ खिसकी. मैंने अपनी आँखों के कोनों से गुरुजी की तरफ देखा, वो यज्ञ की सामग्री को ठीक से रखने में व्यस्त थे. अब मैं नंदिनी और समीर को साफ देख पा रही थी. पति के सामने और अब पति की अनुपस्थिति में , नंदिनी के व्यवहार में मुझे साफ अंतर दिख रहा था. मुझे तो झटका सा लगा जब मैंने देखा की समीर ने नंदिनी को करीब करीब आलिंगन में लिया हुआ है.

मुझे विश्वास ही नहीं हुआ और ये दृश्य देखकर मेरी आँखें फैलकर बड़ी हो गयीं. समीर का एक हाथ नंदिनी की कमर और नितंबों पर घूम रहा था और वो भी उसके ऊपर ऐसे झुकी हुई थी की उसके नितंब बाहर को उभरे हुए थे और उसकी चूचियाँ समीर की तरफ बाहर को तनी हुई थी. एक औरत होने की वजह से मैं नंदिनी का वो पोज़ देखते ही उसकी नियत समझ गयी.

नंदिनी – मैं तुम पर दोष नहीं लगा रही समीर. ये तो मेरी किस्मत है जिसे मैं 5 साल से भुगत रही हूँ.

समीर चुप रहा. मैं अच्छी तरह से समझ रही थी की इन दोनों का कुछ तो नज़दीकी रिश्ता है , शायद जिस्मानी रिश्ता होगा क्यूंकी कोई भी शादीशुदा औरत किसी दूसरे मर्द को वैसे नहीं छूने देगी जैसे समीर ने उसे पकड़ा हुआ था. पति भी विकलांग था तो मुझे समझ आ रहा था की नंदिनी की कामेच्छायें अधूरी रह जाती होंगी.

अब मुझे साफ दिख रहा था की समीर का दायां हाथ नंदिनी के चौड़े नितंबों को साड़ी के ऊपर से दबा रहा है और नंदिनी भी उसके ऊपर और ज़्यादा झुके जा रही थी. समीर का बायां हाथ मुझे नहीं दिख पा रहा था. क्या वो नंदिनी की चूचियों पर था ? मेरे ख्याल से वहीं पर होगा क्यूंकी जिस तरह खड़े खड़े नंदिनी अपनी भारी गांड हिला रही थी उससे तो ऐसा ही लग रहा था. उन दोनों को उस कामुक पोज़ में देखकर ना जाने क्यूँ मुझे बहुत मज़ा आ रहा था.

समीर – नंदिनी मैडम, चलो अंदर चलते हैं नहीं तो गुरुजी…….

नंदिनी – हाँ हाँ चलो. कुमार भी हॉल से चुपचाप यहाँ आ सकता है.

मुझे मालूम चल गया था की अब ये दोनों पूजा घर में आ रहे हैं तो मैंने फूलों के काम में व्यस्त होने का दिखावा किया. पहले समीर अंदर आया उसके बाद नंदिनी आई.

गुरुजी – समीर नंदिनी की नाड़ी तेज चल रही है क्या ?

समीर – नहीं गुरुजी. नॉर्मल है.

नंदिनी – गुरुजी , काजल को यहाँ कब बुलाना है ?

गुरुजी – शुरू में तुम तीनो की यहाँ ज़रूरत पड़ेगी. जब बुलाना होगा तो मैं समीर को भेज दूँगा. अभी यहाँ सब ठीक करने में कम से कम आधा घंटा और लगेगा.

नंदिनी – ठीक है गुरुजी.

गुरुजी – तुम्हें तो मालूम है , यज्ञ के लिए तुम लोगों को साफ सुथरे सफेद कपड़ों में बैठना होगा.

नंदिनी – हाँ गुरुजी , मुझे याद है.

उसके बाद आधे घंटे में यज्ञ के लिए सब तैयारी हो गयी. कमरे के बीच में अग्नि कुंड में आग जलाई गयी. उसके पीछे लिंगा महाराज का चित्र रखा हुआ था. यज्ञ के लिए बहुत सी सामग्री वहाँ पर बड़े करीने से रखी हुई थी. मैंने मन ही मन उस सारे अरेंजमेंट की तारीफ की. फिर समीर ने पूजा घर का दरवाज़ा बंद कर दिया और गुरुजी ने यज्ञ शुरू कर दिया. उस समय रात के 9 बजे थे. यज्ञ के लिए चंदन की अगरबत्तियाँ जलाई गयी थीं. गुरुजी अग्नि कुंड के सामने बैठे थे , समीर उनके बाएं तरफ और मैं दायीं तरफ बैठी थी. गुरुजी के ज़ोर ज़ोर से मंत्र पढ़ने से कमरे का माहौल बदल गया.

समीर ने गुप्ता परिवार को पहले ही बुला लिया था. कुमार ने सफेद कुर्ता पैजामा पहना हुआ था. वो अपनी पत्नी के ऊपर झुका हुआ था और थोड़ा कांप रहा था. नंदिनी में एकदम से बदलाव आ गया था. अपने पति को पूजा घर लाते हुए वो अपने पति का बड़ा ख्याल रखने वाली पत्नी लग रही थी. उसने अपने कपड़े बदल लिए थे और अब वो सफेद सूती साड़ी और सफेद ब्लाउज पहने हुए थी जो बिल्कुल पारदर्शी था. उस पारदर्शी कपड़े के अंदर कोई भी उसकी सफेद ब्रा और गोरे बदन को देख सकता था. काजल ने कढ़ाई वाला सफेद सलवार सूट पहना हुआ था. उसने चुनरी नहीं डाली हुई थी और उस टाइट सूट में वो आकर्षक लग रही थी. वो तीनो हमारे सामने अग्नि कुंड की दूसरी तरफ बैठे हुए थे.

कहानी जारी रहेगी




NOTE


1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .



2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.



3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .



जब मैंने ये कहानी यहाँ डालनी शुरू की थी तो मैंने भी इसका अधूरा भाग पढ़ा था और मैंने कुछ आगे लिखने का प्रयास किया और बाद में मालूम चला यह कहानी अंग्रेजी में "समितभाई" द्वारा "गुरु जी का (सेक्स) ट्रीटमेंट" शीर्षक से लिखी गई थी और अधूरी छोड़ दी गई थी। बाद में 2017 में समीर द्वारा हिंदी अनुवाद शुरू किया गया, जिसका शीर्षक था "एक खूबसूरत हाउस वाइफ, गुरुजी के आश्रम में" और लगभग 33% अनुवाद "Xossip" पर किया गया था। अभी तक की कहानी मुलता उन्ही की कहानी पर आधारित है या उसका अनुवाद है और अब कुछ हिस्सों का अनुवाद मैंने किया है ।

कहानी काफी लम्बी है और मेरा प्रयास जारी है इसको पूरा करने का ।






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  1. मजे - लूट लो जितने मिले
  2. दिल्ली में सुलतान V रफीक के बीच युद्ध
  3. अंतरंग हमसफ़र
  4. पड़ोसियों और अन्य महिलाओ के साथ एक नौजवान के कारनामे
  5. गुरुजी के आश्रम में सावित्री
  6. छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता एव उभरता प्रेम
  7.  मेरे निकाह मेरी कजिन के 
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#37
गुरुजी के आश्रम में सावित्री

औलाद की चाह

CHAPTER 5 - चौथा दिन -कुंवारी लड़की

Update-2

माध्यम



शुरू में करीब 20 मिनट तक मंत्रोचार और पूजा पाठ होता रहा. मुझे कुछ नहीं करना पड़ा.कमरा छोटा था इसलिए अगरबत्ती के धुएं और यज्ञ की आग से धुएं से भरने लगा. मैं अग्नि के नज़दीक़ बैठी थी तो मुझे पसीना आने लगा और मेरी कांख और पीठ पसीने से गीले हो गये.

गुरुजी – अब मैं काजल के लिए व्यक्तिगत अनुष्ठान शुरू करूँगा. माता पिता दोनों को इसमें एक एक कर भाग लेना होगा. उसके बाद मुख्य अनुष्ठान में सिर्फ़ काजल बेटी को ही भाग लेना होगा.

गुरुजी – अब मैं काजल के लिए व्यक्तिगत अनुष्ठान शुरू करूँगा. माता पिता दोनों को इसमें एक एक कर भाग लेना होगा. उसके बाद मुख्य यज्ञ में सिर्फ़ काजल बेटी को ही भाग लेना होगा.

कुमार – गुरुजी, अगर आप मुझसे शुरू करें तो ….

गुरुजी – हाँ कुमार, मैं तुमको बेवजह कष्ट नहीं देना चाहता. मैं तुमसे ही शुरू करूँगा और फिर तुम आराम कर सकते हो.

कुमार – धन्यवाद गुरुजी.

नंदिनी – गुरुजी , जब कुमार का काम पूरा हो जाए तो मुझे बुला लेना.

गुरुजी ने सर हिलाकर हामी भर दी. नंदिनी और काजल पूजाघर से चले गये और समीर ने कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया.

कुमार फिर से मुझे घूर रहा था लेकिन मेरा ध्यान अपने पसीने पर ज़्यादा था. मेरा ब्लाउज भीग कर गीला हो गया था. मैंने अपने पल्लू से गर्दन और पीठ का पसीना पोंछ दिया. तभी पहली बार कुमार ने मुझसे बात की.

कुमार – गुरुजी , मुझे लगता है रश्मि को गर्मी लग रही है. हम ये दरवाज़ा खुला नहीं रख सकते क्या ?

मुझे हैरानी हुई की उसने सीधे मेरे नाम से मुझे संबोधित किया. मैं समझ गयी थी की वो मुझे बड़े गौर से देख रहा था की मुझे पसीना आ रहा है , इससे मुझे थोड़ी इरिटेशन हुई.

गुरुजी – नहीं कुमार. उससे ध्यान भटकेगा.

कुमार – जी. सही कहा.

गुरुजी – रश्मि , अब यज्ञ में तुम कुमार का माध्यम बनोगी.

मैं बेवकूफ की तरह पलकें झपका रही थी क्यूंकि मुझे पता ही नहीं था की माध्यम बनकर मुझे करना क्या होगा ?

गुरुजी – कुमार और रश्मि मेरी बायीं तरफ आओ. समीर तुम भोग तैयार करो.

समीर भोग तैयार करने लगा. अब मुझे कुमार को खड़े होने में मदद करने जाना पड़ा. मैं अपनी जगह से उठ कर खड़ी हो गयी . बैठने से मेरी पेटीकोट और साड़ी मेरे नितंबों में फँस गयी थी तो मुझे उन तीन मर्दों के सामने अपने हाथ पीछे ले जाकर कपड़े ठीक करने पड़े. फिर मैं सामने बैठे कुमार के पास गयी.

“गुप्ताजी आप खुद से खड़े हो जाओगे ?”

कुमार – नहीं रश्मि, मुझे तुम्हारी सहायता चाहिए.

वो फिर से सीधा मेरा नाम ले रहा था तो मेरी खीझ बढ़ रही थी लेकिन गुरुजी के सामने मैं उसे टोक भी नहीं सकती थी. मेरे कुछ करने से पहले ही उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और दूसरे हाथ से अपनी छड़ी टेककर खड़ा होने लगा. मैंने उसका हाथ और कंधा पकड़कर उसे उठने में मदद की. चलते समय वो बहुत काँप रहा था , उसकी विकलांगता देखकर मुझे बुरा लगा. मैंने देखा था की उसने नंदिनी के कंधे का सहारा लिया हुआ था तो मैंने भी अपना कंधा आगे कर दिया. मेरे कंधे में हाथ रखकर वो थोड़ा ठीक से चलने लगा.

गुरुजी – रश्मि इस थाली को पकड़ो और इसे अग्निदेव को चढ़ाओ. कुमार तुम रश्मि को पीछे से पकड़ो और जो मंत्र मैं बताऊंगा , उसे रश्मि के कान में धीमे से बोलो. रश्मि माध्यम के रूप में तुम्हें उस मंत्र को ज़ोर से अग्निदेव के समक्ष बोलना है. ठीक है ?

“जी गुरुजी.”

मैंने गुरुजी से थाली ले ली और अग्नि के सामने खड़ी हो गयी. अब मैं गुरुजी के ठीक सामने अग्निकुण्ड के दूसरी तरफ खड़ी थी. मैंने देखा कुमार मेरे पीछे छड़ी के सहारे खड़ा था.

गुरुजी – कुमार , छड़ी को रख दो और एक हाथ में इस किताब को पकड़ो.

मैंने तुरंत ही अपनी कमर में उसकी गरम अंगुलियों की पकड़ महसूस की. उसकी अंगुलियां थोड़ी मेरी साड़ी के ऊपर थीं और थोड़ी मेरे नंगे पेट पर. मुझे समझ आ रहा था की छड़ी हटाने के बाद उसे किसी सहारे की ज़रूरत पड़ेगी, लेकिन उसके ऐसे पकड़ने से मेरे पूरे बदन में कंपकपी दौड़ गयी. मुझे अजीब लगा और मैंने प्रश्नवाचक निगाहों से गुरुजी को देखा. शुक्र है की गुरुजी समझ गये की मैं क्या कहना चाह रही हूँ.

गुरुजी – कुमार , रश्मि का कंधा पकड़ो और किताब में जहाँ पर निशान लगा है उस मंत्र को रश्मि के कान में बोलना शुरू करो.

कुमार – जी गुरुजी.

उसने मेरी कमर से हाथ हटा लिया और मेरे कंधे को पकड़ लिया.

गुरुजी – रश्मि तुम मंत्र को ज़ोर से अग्निदेव के समक्ष बोलोगी और मैं उसे लिंगा महाराज के समक्ष दोहराऊंगा. तुम दोनों आँखें बंद कर लो. जय लिंगा महाराज.

मैंने आँखें बंद कर ली और अपने कंधे पर कुमार की गरम साँसें महसूस की. वो मेरे कान में मंत्र बोलने लगा और मैंने ज़ोर से उस मंत्र का जाप कर दिया और फिर गुरुजी ने और ज़ोर से उसे दोहरा दिया. शुरू में कुछ देर तक ऐसे चलता रहा फिर मुझे लगा की मेरे कान में मंत्र बोलते वक़्त कुमार मेरे और नज़दीक़ आ रहा है. मैंने पहले तो उसकी विकलांगता की वजह से इस पर ध्यान नहीं दिया. मैंने उसके घुटने अपनी जांघों को छूते हुए महसूस किए फिर उसका लंड मेरे नितंबों को छूने लगा. मैंने थोड़ा आगे खिसकने की कोशिश की लेकिन आगे अग्निकुण्ड था. धीरे धीरे मैंने साफ तौर पर महसूस किया की वो मेरे सुडौल नितंबों पर अपने लंड को दबाने की कोशिश कर रहा था.

मैं मन ही मन अपने को कोसने लगी की कुछ ही मिनट पहले मैं इस आदमी की विकलांगता पर दुखी हो रही थी और अब ये अपना खड़ा लंड मेरे नितंबों में चुभो रहा है. मैं सोच रही थी की अब क्या करूँ ? क्या मैं इसको एक थप्पड़ मार दूं और सबक सीखा दूं ? लेकिन मैं वहाँ यज्ञ के दौरान कोई बखेड़ा खड़ा करना नहीं चाहती थी. इसलिए मैं चुप रही और यज्ञ में ध्यान लगाने की कोशिश करने लगी. लेकिन वो कमीना इतने में ही नहीं रुका. अब मंत्र पढ़ते समय वो मेरे कान को अपने होठों से छूने लगा. मुझे अनकंफर्टबल फील होने लगा और मैं कामोत्तेजित होने लगी क्यूंकी उसका कड़ा लंड मेरी मुलायम गांड में लगातार चुभ रहा था और उसके होंठ मेरे कान को छू रहे थे. स्वाभाविक रूप से मेरे बदन की गर्मी बढ़ने लगी.

खुशकिस्मती से कुछ मिनट बाद मंत्र पढ़ने का काम पूरा हो गया. मैंने राहत की साँस ली. लेकिन वो राहत ज़्यादा देर तक नहीं रही.

गुरुजी – धन्यवाद रश्मि. तुमने बहुत अच्छे से किया. अब ये थाली मुझे दे दो. ये कटोरा पकड़ लो और इसमें से बहुत धीरे धीरे तेल अग्नि में चढ़ाओ. कुमार तुम भी इसके साथ ही कटोरा पकड़ लो.

मैं गुरुजी से कटोरा लेने झुकी और उस चक्कर में ये भूल गयी की सहारे के लिए कुमार ने मेरे कंधे पर हाथ रखा हुआ है. मेरे आगे झुकने से उसका हाथ मेरे कंधे से छूट गया और उसका संतुलन गड़बड़ा गया.

गुरुजी – रश्मि, उसे पकड़ो.

गुरुजी एकदम से चिल्लाए. मुझे अपनी ग़लती का एहसास हुआ और मैं तुरंत पीछे मुड़ने को हुई. लेकिन मैं पूरी तरह पीछे मुड़ कर उसे पकड़ पाती उससे पहले ही वो मेरी पीठ में गिर गया. मैंने उसे चलते समय काँपते हुए देखा था इसलिए मुझे सावधान रहना चाहिए था. कुमार मेरे जवान बदन के ऊपर झुक गया और उसका चेहरा मेरी गर्दन के पास आ गिरा. गिरने से बचने के लिए उसने मुझे पीछे से आलिंगन कर लिया.

“आउच…….”

जब वो मेरे ऊपर गिरा तो मेरे मुँह से खुद ही आउच निकल गया. वैसे देखने वाले को ये लगेगा की वो मेरे ऊपर गिर गया और अब सहारे के लिए मेरी कमर पकड़े हुए है लेकिन असलियत मुझे मालूम पड़ रही थी. कुछ देर से मैं उसका घूरना और उसकी छेड़छाड़ सहन कर रही थी पर इस बार तो उसने सारी हदें पार कर दी. मेरी पीठ में ब्लाउज के U कट के ऊपर उसकी जीभ और होंठ मुझे महसूस हुए और उसकी नाक मेरी गर्दन के निचले हिस्से पर छू रही थी. जब सहारे के लिए उसने मुझे पकड़ लिया तो उसके दाएं हाथ ने मेरी बाँह पकड़ ली लेकिन उसके बाएं हाथ ने मुझे पीछे से आलिंगन करके मेरी पैंटी के पास पकड़ लिया. मैं जल्दी से कुछ ही सेकेंड्स में संभल गयी लेकिन तब तक मैंने साड़ी के ऊपर से अपनी पैंटी के अंदर चूत पर उसके हाथ का दबाव महसूस किया और मेरे ब्लाउज के ऊपर नंगी पीठ को उसने अपनी जीभ से चाट लिया.

कुमार – सॉरी रश्मि. तुम अचानक झुक गयी और मैं संतुलन खो बैठा.

मुझे उसके व्यवहार से बहुत इरिटेशन हो रही थी फिर भी मुझे माफी माँगनी पड़ी. वो इतनी बड़ी उमर का था और ऊपर से विकलांग भी था और ऐसा अशिष्ट व्यवहार कर रहा था. मैं गुरुजी की वजह से कुछ बोल नहीं पाई वरना मन तो कर रहा था इस कमीने को कस के झापड़ लगा दूं.

गुरुजी – कुमार तुम ठीक हो ?

कुमार – हाँ गुरुजी. मैंने सही समय पर रश्मि को पकड़ लिया था.

गुरुजी – चलो कोई बात नहीं. रश्मि, मैं मंत्र पढूंगा और तुम तेल चढ़ाना. काजल की पढ़ाई के लिए हम पहले अग्निदेव की पूजा करेंगे और फिर लिंगा महाराज की.

हमने हामी भर दी और कुमार फिर से मेरे नज़दीक़ आ गया और मेरे पीछे से कटोरा पकड़ लिया. इस बार उसके पूरे बदन का भार मेरे ऊपर पड़ रहा था और उसकी अंगुलियां मेरी अंगुलियों को छू रही थीं. गुरुजी ने ज़ोर ज़ोर से मंत्र पढ़ने शुरू किए और मैं कटोरे से यज्ञ की अग्नि में तेल चढ़ाने लगी. . मुझे साफ महसूस हो रहा था की अब कुमार बिना किसी रुकावट के पीछे से मेरे पूरे बदन को महसूस कर रहा है. मेरे सुडौल नितंबों पर वो हल्के से धक्के भी लगा रहा था. उस कमीने की इन हरकतों से मैं कामोत्तेजित होने लगी थी.

जब मैं अग्निकुण्ड में तेल डालने लगी तो उसमे तेज लपटें उठने लगी इसलिए मुझे थोड़ा सा पीछे को खिसकना पड़ा. इससे कुमार के और भी मज़े आ गये और वो मेरी साड़ी के बाहर से अपना सख़्त लंड चुभाने लगा. उसने मेरे पीछे से कटोरा पकड़ा हुआ था तो उसकी कोहनियां मुझे साइड्स से दबा रही थी, एक तरह से उसने मुझे पीछे से आलिंगन करके कटोरा पकड़ा हुआ था और उसका सारा वज़न मुझ पर पड़ रहा था. गुरुजी मंत्र पढ़ते रहे और मैं बहुत धीरे से अग्नि में तेल डालती रही. तेल चढ़ाने का ये काम लंबा खिंच रहा था.

मौका देखकर कुमार ने कटोरे में अपनी अंगुलियों को मेरी अंगुलियों पर इतनी ज़ोर से कस लिया की मुझे थोड़ा पीछे मुड़ के गुस्से से उसको घूरना पड़ा. वो कमीनेपन से मुस्कुराया और मेरी खीझ और भी बढ़ गयी जबकि वास्तव में मर्दाने टच से मुझे कामानंद मिल रहा था. मैंने गुरुजी को देखा पर वो आँख बंद कर मंत्र पढ़ रहे थे और समीर एक कोने में भोग बना रहा था इस तरह किसी का ध्यान हम पर नहीं था. तभी वो मेरे कान में फुसफुसाया……

कुमार – रश्मि , मैं कटोरे से एक हाथ हटा रहा हूँ. मुझे खुजली लग रही है.

मुझे क्या मालूम की उसे कहाँ पर खुजली लग रही है. उसने अपना दांया हाथ कटोरे से हटा लिया और अपने लंड को खुज़लाने लगा. मुझे ये बात जानने के लिए पीछे मुड़ के देखने की ज़रूरत नहीं थी क्यूंकी उसका हाथ मुझे अपने नितंबों और उसके लंड के बीच महसूस हो रहा था. वो बेशरम बुड्ढा अपने लंड पर खुज़ला रहा था और अब मैं समझ गयी थी की उसे कहाँ खुजली लगी थी. खुज़लाने के बाद वो अपना हाथ कटोरे पर वापस नहीं लाया और अपने हाथ को मेरे बड़े नितंबों पर फिराने लगा.

उसने मेरे सुडौल नितंबों को अपने हाथ में पकड़कर दबाया तो मेरे निपल तनकर कड़क हो गये. मेरी चूचियां ब्रा में तन गयीं. मैंने दोनों हाथों से तेल का कटोरा पकड़ा हुआ था , उसकी इस अश्लील हरकत को बंद करवाने के लिए मुझे पीछे मूड कर गुस्से से उसे घूरना पड़ा. उसने तुरंत अपना हाथ मेरे नितंबों से हटा लिया और फिर से कटोरा पकड़ लिया. उसके एक दो मिनट बाद तेल चढ़ाने का वो काम खत्म हो गया. यज्ञ की अग्नि के साथ साथ कुमार की मेरे बदन से छेड़छाड़ से अब मुझे बहुत पसीना आने लगा था.

गुरुजी – अग्निदेव की पूजा पूरी हो चुकी है. अब हम लिंगा महाराज की पूजा करेंगे. जय लिंगा महाराज.

कुमार (गुप्ताजी) और मैंने भी जय लिंगा महाराज बोला. गुरुजी मंत्र पढ़ते हुए विभिन्न प्रकार की यज्ञ सामग्री को अग्निकुण्ड में चढ़ाने लगे. करीब 5 मिनट तक ऐसा चलता रहा. समीर अभी भी भोग को तैयार करने में व्यस्त था.

गुरुजी – रश्मि, मैं जानता हूँ की यज्ञ का ये भाग तुम्हें थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन एक माध्यम को ये कष्ट उठाना ही पड़ता है. तुम्हें कुमार के लिए लिंगा महाराज की पूजा करनी होगी.

मुझे गुरुजी की बात समझ में नहीं आई की पूजा करने में अजीब क्यूँ लगेगा ? गुरुजी ने कष्ट की बात क्यूँ की ? मैंने गुरुजी की तरफ संशय से देखा.

गुरुजी – माध्यम के रूप में तुम कुमार को साथ लेकर फर्श पर लेटकर लिंगा महाराज को प्रणाम करोगी. तुम्हारी नाभि और घुटने फर्श को छूने चाहिए.

मैंने हामी भर दी जबकि मुझे अभी भी ठीक से बात समझ नहीं आई थी. मैंने कुमार को छड़ी दे दी और अब वो छड़ी के सहारे था. गुरुजी ने गंगा जल से मेरे हाथ धुलाए और मुझे वो जगह बताई जहाँ पर मुझे प्रणाम करना था. मैं वहाँ पर गयी और घुटनों के बल बैठ गयी. फिर मैं पेट के बल फर्श पर लेट गयी.

गुरुजी – प्रणाम के लिए अपने हाथ सर के आगे लंबे करो. तुम्हारी नाभि फर्श को छू रही है ? मैं देखता हूँ.

गुरुजी ने मुझे कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया और मेरे पेट से साड़ी हटाकर वहाँ अपनी एक अंगुली डालकर देखने लगे की मेरी नाभि फर्श को छू रही है या नहीं ? मैंने अपने नितंबों को थोड़ा सा ऊपर को उठाया ताकि गुरुजी मेरे पेट के नीचे अंगुली से चेक कर सकें. उनकी अंगुली मेरी नाभि पर लगी तो मुझे गुदगुदी होने लगी लेकिन मैंने जैसे तैसे अपने को काबू में रखा.

गुरुजी – हाँ, ठीक है.

ऐसा कहते हुए उन्होने मेरे पेट के नीचे से अंगुली निकाल ली और मेरे नितंबों पर थपथपा दिया. मैंने उनका इशारा समझकर अपने नितंब नीचे कर लिए. मैंने दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में सर के आगे लंबे किए हुए थे. उन मर्दों के सामने मुझे ऐसे उल्टे लेटना भद्दा लग रहा था. फिर मैंने देखा गुरुजी कुमार को मेरे पास आने में मदद कर रहे थे.

गुरुजी – रश्मि अब तुम कुमार की पूजा को लिंगा महाराज तक ले जाओगी.

“कैसे गुरुजी ?”

मुझे समझ नहीं आ रहा था की मुझे करना क्या है ? मैंने देखा गुरुजी कुमार को मेरे पास बैठने में मदद कर रहे हैं.

गुरुजी – रश्मि , मैंने तुम्हें बताया तो था. तुम्हें कुमार को साथ लेकर पूजा करनी है.

गुरुजी को दुबारा बताना पड़ा इसलिए वो थोड़े चिड़चिड़ा से गये थे लेकिन मैं उलझन में थी की करना क्या है ? साथ लेकर मतलब ?

गुरुजी – कुमार तुम रश्मि की पीठ पर लेट जाओ और इस किताब में से रश्मि के कान में मंत्र पढ़ो.

कुमार – जी गुरुजी.

हे भगवान ! अब तो मुझे कुछ न कुछ कहना ही था. गुरुजी इस आदमी को मेरी पीठ में लेटने को कह रहे थे. ये ऐसा ही था जैसे मैं बेड पर उल्टी लेटी हूँ और मेरे पति मेरे ऊपर लेटकर मुझसे मज़ा ले रहे हों.

“गुरुजी, लेकिन ये…..”

गुरुजी – रश्मि, ये यज्ञ का नियम है और माध्यम को इसे ऐसे ही करना होता है.

“लेकिन गुरुजी, एक अंजान आदमी को इस तरह………….”

गुरुजी – रश्मि , जैसा मैं कह रहा हूँ वैसा ही करो.

गुरुजी तेज आवाज़ में आदेश देते हुए बोले. एकदम से उनके बोलने का अंदाज़ बदल गया था. अब कुछ और बोलने का साहस मुझमें नहीं था और मैंने चुपचाप जो हो रहा था उसे होने दिया.

गुरुजी – कुमार तुम किसका इंतज़ार कर रहे हो ? समय बर्बाद मत करो. काजल के यज्ञ के लिए शुभ समय मध्यरात्रि तक ही है.

मुझे अपनी पीठ पर कुमार चढते हुए महसूस हुआ. मैं बहुत शर्मिंदगी महसूस कर रही थी. गुरुजी ने उसको मेरे जवान बदन के ऊपर लेटने में मदद की. कितनी शरम की बात थी वो. मैं सोचने लगी अगर मेरे पति ये दृश्य देख लेते तो ज़रूर बेहोश हो जाते. मैंने साफ तौर पर महसूस किया की कुमार अपने लंड को मेरी गांड की दरार में फिट करने के लिए एडजस्ट कर रहा है. फिर मैंने उसके हाथ अपने कंधों को पकड़ते हुए महसूस किए , उसके पूरे बदन का भार मेरे ऊपर था. एक जवान शादीशुदा औरत के ऊपर ऐसे लेटने में उसे बहुत मज़ा आ रहा होगा.

गुरुजी – जय लिंगा महाराज. कुमार अब शुरू करो. रश्मि तुम ध्यान से मंत्र सुनो और ज़ोर से लिंगा महाराज के सामने बोलना.

मैंने देखा गुरुजी ने अपनी आँखें बंद कर ली. अब कुमार ने मेरे कान में मंत्र पढ़ना शुरू किया. लेकिन मैं ध्यान नहीं लगा पा रही थी. कौन औरत ध्यान लगा पाएगी जब ऐसे उसके ऊपर कोई आदमी लेटा हो. मेरे ऊपर लेटने से कुमार के तो मज़े हो गये , उसने तुरंत मेरी उस हालत का फायदा उठाना शुरू कर दिया. अब वो मेरे मुलायम नितंबों पर ज़्यादा ज़ोर डाल रहा था और अपने लंड को मेरी गांड की दरार में दबा रहा था. शुक्र था की मैंने पैंटी पहनी हुई थी जिससे उसका लंड दरार में ज़्यादा अंदर नहीं जा पा रहा था.

मेरे कान में मंत्र पढ़ते हुए उसकी आवाज़ काँप रही थी क्यूंकी वो धीरे से मेरी गांड पर धक्के लगा रहा था जैसे की मुझे चोद रहा हो. मुझे ज़ोर से मंत्र दोहराने पड़ रहे थे इसलिए मैंने अपनी आवाज़ को काबू में रखने की कोशिश की. गुरुजी ने अपनी आँखें बंद कर रखी थी और समीर हमारी तरफ पीठ करके भोग तैयार कर रहा था इसलिए उस विकलांग आदमी की मौज आ रखी थी. उसका लकड़ी वाला पैर मुझे अपने पैरों के ऊपर महसूस हो रहा था. पर उसको छोड़कर उस बुड्ढे में कोई कमी नहीं थी. धक्के लगाने की उसकी स्पीड बढ़ने लगी थी और उसके लंड का कड़कपन भी.

अब मंत्र पढ़ने के बीच में गैप के दौरान कुमार मेरे कान और गालों पर अपनी जीभ और होंठ लगा रहा था. मैं जानती थी की मुझे उसे ये सब नहीं करने देना चाहिए लेकिन जिस तरह से गुरुजी ने थोड़ी देर पहले तेज आवाज़ में बोला था, उससे अनुष्ठान में बाधा डालने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी. अब मैं गहरी साँसें ले रही थी और कुमार तो हाँफने लगा था. इस उमर में इतना आनंद उसके लिए काफ़ी था. तभी उसने कुछ ऐसा किया की मेरे दिल की धड़कनें रुक गयीं.

मैं अपनी बाँहें सर के आगे किए हुए प्रणाम की मुद्रा में लेटी हुई थी. मेरी चूचियाँ ब्लाउज के अंदर फर्श में दबी हुई थी. कुमार मेरे ऊपर लेटा हुआ था और उसने एक हाथ में किताब और दूसरे हाथ से मेरा कंधा पकड़ा हुआ था. कुमार ने देखा की गुरुजी की आँखें बंद हैं. अब उसने किताब फर्श में रख दी और अपने हाथ मेरे कंधे से हटाकर मेरे अगल बगल फर्श में रख दिए. अब उसके बदन का कुछ भार उसके हाथों पर पड़ने लगा , इससे मुझे थोड़ी राहत हुई क्यूंकी पहले उसका पूरा भार मेरे ऊपर पड़ रहा था. लेकिन ये राहत कुछ ही पल टिकी. कुछ ही पल बाद उसने अपने हाथों को अंदर की तरफ खिसकाया और मेरे ब्लाउज के बाहर से मेरी चूचियों को छुआ.

शरम, गुस्से और कामोत्तेजना से मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं. जबसे यज्ञ शुरू हुआ था तबसे कुमार मेरे बदन से छेड़छाड़ कर रहा था और अब तक मैं भी कामोत्तेजित हो चुकी थी इसलिए उसके इस दुस्साहस का मैंने विरोध नहीं किया और मंत्र पढ़ने में व्यस्त होने का दिखावा किया. पहले तो वो हल्के से मेरी चूचियों को छू रहा था लेकिन जब उसने देखा की मैंने कोई रिएक्शन नहीं दिया और ज़ोर से मंत्र पढ़ने में व्यस्त हूँ तो उसकी हिम्मत बढ़ गयी.

उसके बदन के भार से वैसे ही मेरी चूचियाँ फर्श में दबी हुई थी अब उसने दोनों हाथों से उन्हें दबाना शुरू किया. कहीं ना कहीं मेरे मन के किसी कोने में मैं भी यही चाहती थी क्यूंकी अब मैं भी कामोत्तेजना महसूस कर रही थी. उसने मेरे बदन के ऊपरी हिस्से में अपने वजन को अपने हाथों पर डालकर मेरे ऊपर भार थोड़ा कम किया मैंने जैसे ही राहत के लिए अपना बदन थोड़ा ढीला किया उसने दोनों हाथों से साइड्स से मेरी बड़ी चूचियाँ दबोच लीं और उनकी सुडौलता और गोलाई का अंदाज़ा करने लगा.

उस समय मुझे ऐसा महसूस हो रहा था की मेरा पति राजेश मेरे ऊपर लेटा हुआ है और मेरी जवान चूचियों को निचोड़ रहा है. घर पे राजेश अक्सर मेरे साथ ऐसा करता था और मुझे भी उसके ऐसे प्यार करने में बड़ा मज़ा आता था. राजेश दोनों हाथों को मेरे बदन के नीचे घुसा लेता था और फिर मेरी चूचियों को दोनों हथेलियों में दबोच लेता था और मेरे निपल्स को तब तक मरोड़ते रहता था जब तक की मैं नीचे से पूरी गीली ना हो जाऊँ.

शुक्र था की गुप्ताजी ने उतनी हिम्मत नहीं दिखाई शायद इसलिए क्यूंकी मैं किसी दूसरे की पत्नी थी. लेकिन साइड्स से मेरी चूचियों को दबाकर उसने अपने तो पूरे मज़े ले ही लिए. अब तो उत्तेजना से मेरी आवाज़ भी काँपने लगी थी और मुझे खुद ही नहीं मालूम था की मैं क्या जाप कर रही हूँ.

गुरुजी – जय लिंगा महाराज.

गुरुजी जैसे नींद से जागे हों और कुमार ने जल्दी से मेरी चूचियों से हाथ हटा लिए. उसकी गरम साँसें मेरी गर्दन, कंधे और कान में महसूस हो रही थी और मुझे और ज़्यादा कामोत्तेजित कर दे रही थीं. तभी मुझे एहसास हुआ की अब मंत्र पढ़ने का कार्य पूरा हो चुका है.

गुरुजी – कुमार ऐसे ही लेटे रहो और जो तुम काजल के लिए चाहते हो उसे एक लाइन में रश्मि के कान में बोलो.

कुमार – गुरुजी मैं बस ये चाहता हूँ की काजल 12 वीं के एग्जाम्स में पास हो जाए.

गुरुजी – ठीक है. रश्मि के कान में इसे पाँच बार बोलो और रश्मि तुम लिंगा महाराज के सामने दोहरा देना. तुम्हारे बाद मैं भी काजल के लिए प्रार्थना करूँगा और फिर मेरे बाद तुम बोलना. आया समझ में ?

मैंने और गुप्ताजी ने सहमति में सर हिला दिया.

गुरुजी – सब आँखें बंद कर लो और प्रार्थना करो.

ऐसा बोलकर गुरुजी ने आँखें बंद कर ली और फिर मैंने भी अपनी आँखें बंद कर ली.

कुमार – लिंगा महाराज, काजल 12 वीं के एग्जाम्स में पास हो जाए.

गुप्ताजी ने मेरे कान में ऐसा फुसफुसा के कह दिया. उसने ये बात कहते हुए अपने होंठ मेरे कान और गर्दन से छुआ दिए और मेरे सुडौल नितंबों को अपने बदन से दबा दिया. उसकी इस हरकत से लग रहा था की वो मुझसे कुछ और भी चाहता था. मैं समझ रही थी की उसको अब और क्या चाहिए , उसको मेरी चूचियाँ चाहिए थी. मैं तब तक बहुत गरम हो चुकी थी. मैंने अपनी बाँहों को थोड़ा अंदर को खींचा और कोहनी के बल थोड़ा सा उठी ताकि कुमार मेरी चूचियों को पकड़ सके. मैं काजल के लिए प्रार्थना को ज़ोर से बोल रही थी और गुरुजी उस प्रार्थना के साथ कुछ मंत्र पढ़ रहे थे.

मेरी आँखें बंद थी और तभी कुमार ने दोनों हाथों से मेरी चूचियाँ दबा दी. वो गहरी साँसें ले रहा था और पीछे से ऐसे धक्के लगा रहा था जैसे मुझे चोद रहा हो. मेरी उभरी हुई गांड में लगते हर धक्के से मेरी पैंटी गीली होती जा रही थी. मैंने ख्याल किया जब हम दोनों चुप होते थे और गुरुजी मंत्र पढ़ रहे होते थे उस समय कुमार के हाथ मेरे ब्लाउज में चूचियों को दबा रहे होते थे. मैं भी उसकी इस छेड़छाड़ का जवाब देने लगी थी और धीरे से अपने नितंबों को हिलाकर उसके लंड को महसूस कर रही थी.

जल्दी ही पाँच बार काजल के लिए प्रार्थना पूरी हो गयी . मैं सोच रही थी की अब क्या होने वाला है ?

गुरुजी – जय लिंगा महाराज.

गुप्ताजी ने मेरी गांड को चोदना बंद कर दिया और मेरे ऊपर चुपचाप लेटे रहा. मुझे अपनी गांड में उसका लंड साफ महसूस हो रहा था और अब तो मेरा मन हो रहा था की मैं पैंटी उतार दूँ क्यूंकी पैंटी की वजह से उसका लंड मेरी गांड की दरार में अंदर नहीं जा पा रहा था और इससे मुझे पूरा मज़ा नहीं मिल पा रहा था.

गुरुजी – ठीक है. अब थोड़ा विराम लेते हैं. फिर उसके बाद अंतिम भाग में काजल बेटी के लिए ध्यान लगाना होगा.

कहानी जारी रहेगी








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#38
गुरुजी के आश्रम में सावित्री

CHAPTER 5 - चौथा दिन -कुंवारी लड़की

Update-4


दिल की धड़कनें 





बिल्कुल वैसा ही हुआ. हम मुस्किल से दस कदम चले होंगे कि समीर हमारे पास लौट आया. उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि हम ना तो गॅलरी में मिले, ना बाथरूम में, तो हम थे कहाँ ? मैं तो कुछ नही बोली , गुप्ता जी ने ही बात संभाल ली और हम पूजा घर के अंदर आ गये.

गुरुजी – अरे तुम लोगो ने इतनी देर लगा दी. मुझे तो चिंता हुई की ….

कुमार – नही गुरुजी. मैं गिरा नही लेकिन बाथरूम में मुझे थोड़ा समय लग गया.

गुरुजी – ठीक है. अब यज्ञ में ध्यान लगाओ और बचे हुए अनुष्ठान को पूरा करो.

कुमार – जी गुरुजी.

गुरुजी – हम ने अग्निदेव और लिंगा महाराज की पूजा कर ली है. अब हम काजल बेटी के लिए ध्यान करेंगे.

हम दोनो अग्निकुण्ड के सामने खड़े थे और गुरुजी हमारे सामने बैठे थे. मैने देखा समीर ने भोग तय्यार कर लिया था और अब वो भी हमारे पीछे खड़ा था.

गुरुजी – रश्मि तुम पहले के जैसे प्रणाम की मुद्रा में लेट जाओ.

मैं घुटने के बल बैठ गयी और पल्लू को अपनी कमर में खोसा ताकि जब मैं पेट के बल उल्टी लेट जाउ तो इन तीन मर्दों के सामने मेरी पीठ धकि रहे. फिर पेट के बल लेट कर मैने प्रणाम की मुद्रा में अपनी दोनो बाँहे सर के आगे कर ली. मेरे फर्श में लेटते समय समीर ने गुप्ता जी को पकड़ा हुआ था.

गुरुजी – कुमार तुम भी पहले के जैसे माध्यम के उपर लेट जाओ.

मैने फिर से अपने उपर गुप्ता जी के बदन का भार और उसका खड़ा लंड मेरे मुलायम नितंबों में महसूस किया. अब मैने पैंटी उतार दी थी तो ज़्यादा अच्छी तरह से महसूस हो रहा था. मुझे याद आया कि मेरे बेडरूम में मेरे पति लूँगी में ऐसे ही मेरे उपर लेटते थे और मैं सिर्फ़ नाइटी पहने रहती थी और अंदर से कुछ नही. मैने अपने उपर काबू रखने की कोशिश की और लिंगा महाराज के उपर ध्यान लगाने की कोशिश की पर कोई फ़ायदा नही हुआ.

गुरुजी – समीर ये कटोरा लो और कुमार के पास रख दो.

मैने देखा समीर एक छोटा सा कटोरा लेकर आया और मेरे सर के पास रख दिया. उसमे कुछ सफेद दूध जैसा था और एक चम्मच भी थी.

गुरुजी – कुमार तुम काजल बेटी के लिए पूरे ध्यान से प्रार्थना करो और उसको रश्मि के कान में बोलो. फिर एक चम्मच यज्ञ रस रश्मि को पिलाओ. ठीक है ?

कुमार – जी गुरुजी.

गुरुजी – रश्मि इस बार पहले से थोड़ा अलग करना है.

“क्या गुरुजी ?”

मैने लेटे लेटे ही गुरुजी की तरफ सर घुमाया और देखा कि उनकी आँखे पहाड़ की तरह उपर को उठे मेरे नितंबों पर हैं. जैसे ही हमारी नज़रें मिली गुरुजी ने मेरी गान्ड से अपनी नज़रें हटा ली.

गुरुजी – कुमार के रस पिलाने के बाद तुम अपने मन में लिंगा महाराज को प्रार्थना दोहराओगी और फिर पलट जाओगी. ऐसा 6 बार करना है. 3 बार उपर की तरफ और 3 बार नीचे की तरफ. ठीक है ?

गुरुजी की बात समझने में मुझे कुछ समय लगा और तभी समीर ने बेहद खुली भाषा में मुझे समझाया कि अब मुझे कितनी बेशर्मी दिखानी होगी.

समीर – मेडम , बड़ी सीधी सी बात है. गुरुजी के कहने का मतलब है कि अभी तुम उल्टी लेटी हो. गुप्ता जी को पहली प्रार्थना इसी पोज़िशन में करनी है. फिर आप सीधी लेट जाओगी जैसे कि हम बेड पर लेटते हैं. गुप्ता जी को दूसरी प्रार्थना उस पोज़िशन में करनी होगी. ऐसे ही कुल 6 बार प्रार्थना करनी होगी. बस इतना ही. ज़य लिंगा महाराज.

गुरुजी – ज़य लिंगा महाराज. रश्मि मैं जानता हूँ कि एक औरत के लिए ऐसा करना थोडा अभद्र लग सकता है , लेकिन यज्ञ के नियम तो नियम है. मैं इसे बदल नही सकता.

गुरुजी की अग्या मानने के सिवा मेरे पास कोई चारा नही था. लेकिन उस दृश्य की कल्पना करके मेरे कान लाल हो गये. दूसरी प्रार्थना के लिए मुझे सीधा लेटना होगा और गुप्ता जी मेरे उपर लेटेगा. पहले भी वो मेरे उपर लेटा था लेकिन तब कम से कम ये तो था कि मेरा मुँह फर्श की तरफ था. लेकिन अब तो ये ऐसा होगा जैसे की मैं बेड में सीधी लेटी हूँ और मेरे पति मेरे उपर लेट कर मुझे आलिंगन कर रहे हो. और उपर से दो आदमी भी मुझे इस बेशरम हरकत को करते हुए देख रहे होंगे. मेरी नज़रें झुक गयी और मैने प्रणाम की मुद्रा में हाथ आगे करते हुए सर नीचे झुका लिया.

गुरुजी – समीर तुम कुमार के पास खड़े रहो और उसे उपर नीचे उतरने में मदद करना.

समीर मेरे पास आकर बैठ गया.

गुरुजी – ठीक है. कुमार अब तुम पहली प्रार्थना शुरू करो. सभी लोग ध्यान लगाओ. जय लिंगा महाराज.

गुप्ताजी ने मेरे कान में प्रार्थना कहनी शुरू की. उसका पैजामे में खड़ा लंड मुझे अपने नितंबों में चुभ रहा था. इस बार मैंने पैंटी उतार दी थी तो ज़्यादा अच्छी तरह से महसूस हो रहा था. शायद ऐसा ही गुप्ताजी को भी लग रहा होगा. धीरे धीरे वो मेरे नितंबों पर ज़्यादा दबाव डालने लगा और हल्के से धक्के लगाने लगा. मैं सोच रही थी की ये अपनी लड़की के लिए प्रार्थना कैसे कर पा रहा है.

प्रार्थना कहने के बाद अब गुप्ताजी ने कटोरे में से एक चम्मच यज्ञ रस मुझे पिलाया. मेरी पीठ में उसकी हरकतों से मेरे होंठ खुले हुए ही थे. समीर ने रस पिलाने में गुप्ताजी की मदद की. रस का स्वाद अच्छा था. उसके बाद मैंने आँखें बंद की और प्रार्थना को लिंगा महाराज का ध्यान करते हुए मन ही मन दोहरा दिया.

समीर – मैडम, अब मैं गुप्ताजी को नीचे उतारूँगा और आप सीधी लेट जाना.

समीर मेरे ऊपर से गुप्ताजी को नीचे उतारने में मदद कर रहा था. समीर का हाथ मैंने अपने बाएं नितंब के ऊपर टेका हुआ महसूस किया, फिर गुप्ताजी के पैर मुझे अपने पैरों से हटते हुए महसूस हुए. गुप्ताजी ने सहारे के लिए मेरे कंधों को पकड़ा हुआ था. दो दो मर्दों के हाथ मेरे बदन पर थे. मेरी टाँगों के ऊपर से गुप्ताजी के विकलांग पैर को हटाने के बजाय समीर मेरी मांसल जाँघों के ऊपर हाथ रखे हुए था और साड़ी के बाहर से उन्हें महसूस कर रहा था. मेरी ऐसी हालत थी की मैं पीछे मुड़ के देख भी नहीं सकती थी . फिर गुप्ताजी मेरी पीठ से उतर गया और समीर ने मेरी जाँघों से अपने हाथ हटा लिए.

अब मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था. मुझे सीधा लेटकर ऊपर की तरफ मुँह करना था. जब मैं पलटी तो मुझे समझ आ रहा था की इस हाल में मैं बहुत मादक दिख रही हूँ. मैंने ख्याल किया की गुप्ताजी और समीर मेरे जवान बदन को ललचाई नज़रों से देख रहे थे. मैंने नज़रें उठाई तो देखा की गुरुजी भी मुस्कुराते हुए मुझे ही देख रहे थे.

गुरुजी – कुमार अब तुम दूसरी प्रार्थना करोगे. रश्मि, माध्यम के रूप में तुम कुमार को पूरी तरह से अपने बदन के ऊपर चढ़ाओगी. विधान ये है की माध्यम को भक्त के दिल की धड़कनें सुनाई देनी चाहिए.

इन तीन मर्दों के सामने ऐसे लेटे हुए मुझे इतनी शर्मिंदगी महसूस हो रही थी की क्या बताऊँ. मैंने गुरुजी की बात में सर हिलाकर हामी भर दी. गुप्ताजी मेरे ऊपर चढ़ने को बेताब था और जैसे ही वो मेरे ऊपर चढ़ने लगा मैंने शरम से आँखें बंद कर लीं. मुझे बहुत ह्युमिलिएशन फील हो रहा था. औरत होने की स्वाभाविक शरम से मैंने अपनी छाती के ऊपर बाँहें आड़ी करके रखी हुई थीं.

समीर – मैडम, प्लीज़ अपने हाथ प्रणाम की मुद्रा में सर के आगे लंबे करो.

“वैसे करने में मुझे अनकंफर्टेबल फील हो रहा है.”

मैंने कह तो दिया लेकिन बाद में मुझे लगा की मैंने बेकार ही कहा क्यूंकी गुरुजी ने अपने शब्दों से मुझे और भी ह्युमिलियेट कर दिया.

समीर – लेकिन मैडम…….

गुरुजी – रश्मि , हम सबको मालूम है की अगर एक मर्द तुम्हारे बदन के ऊपर चढ़ेगा तो तुम अनकंफर्टेबल फील करोगी. लेकिन हर कार्य का एक उद्देश्य होता है. अगर तुम अपनी छाती के ऊपर बाँहें रखोगी तो तुम कुमार के दिल की धड़कनें कैसे महसूस करोगी ? अगर तुम्हारी छाती उसकी छाती से नहीं मिलेगी तो एक माध्यम के रूप में उसकी प्रार्थना के आवेग को कैसे महसूस करोगी ?

वो थोड़ा रुके. पूजा घर के उस कमरे में एकदम चुप्पी छा गयी थी. वो तीनो मर्द मेरी उठती गिरती चूचियों के ऊपर रखी हुई मेरी बाँहों को देख रहे थे.

गुरुजी – अगर ये तंत्र यज्ञ होता और तुम माध्यम के रूप में होती तो मैं तुम्हारे कपड़े उतरवा लेता क्यूंकी उसका यही नियम है.

उन मर्दों के सामने ये सब सुनते हुए मैं बहुत अपमानित महसूस कर रही थी और अपने को कोस रही थी की मैंने चुपचाप हाथ आगे को क्यूँ नहीं कर दिए. ये सब तो नहीं सुनना पड़ता. अब और ज़्यादा समय बर्बाद ना करते हुए मैंने अपने हाथ सर के आगे प्रणाम की मुद्रा में कर दिए. अब बाँहें ऐसे लंबी करने से मेरा ब्लाउज थोड़ा ऊपर को खींच गया और चूचियाँ ऊपर को उठकर तन गयीं , और भी ज्यादा आकर्षक लगने लगीं.

जल्दी ही गुप्ताजी मेरे ऊपर चढ़ गया और मैंने शरम से अपने जबड़े भींच लिए. मेरे बेडरूम में जब मैं ऐसे लेटी रहती थी और मेरे पति मेरे ऊपर चढ़ते थे तो पहले वो मेरी गर्दन को चूमते थे , फिर कंधे पर और फिर मेरे होठों का चुंबन लेते थे. उनका एक हाथ मेरी नाइटी या ब्लाउज के ऊपर से मेरी चूचियों पर रहता था और मेरे निपल्स को मरोड़ता था. उसके बाद वो मेरी नाइटी या पेटीकोट जो भी मैंने पहना हो , उसको ऊपर करके मेरी गोरी टाँगों और जाँघों को नंगी कर देते थे , चाहे उनका मन संभोग करने का नहीं हो और सिर्फ़ थोड़ा बहुत प्यार करने का हो तब भी. अभी गुप्ताजी के मेरे ऊपर चढ़ने से मुझे अपने पति के साथ बिताए ऐसे ही लम्हों की याद आ गयी.

मेरी बाँहें सर के पीछे लंबी थीं इसलिए गुप्ताजी के लिए कोई रोक टोक नहीं थी और उसने मेरे बदन के ऊपर अपने को एडजस्ट करते समय मेरी दायीं चूची को अपनी कोहनी से दो बार दबा दिया और यहाँ तक की अपनी टाँग एडजस्ट करने के बहाने साड़ी के ऊपर से मेरी चूत को भी छू दिया. उसने अपने को मेरे ऊपर ऐसे एडजस्ट कर लिया जैसे चुदाई का परफेक्ट पोज़ हो . कमरे में दो मर्द और भी थे जो हम दोनों को देख रहे थे और मैं उनकी आँखों के सामने ऐसे लेटी हुई बहुत अपमानित महसूस कर रही थी.

अब गुप्ताजी ने मेरे कान में प्रार्थना कहनी शुरू की और इसी बहाने मेरे कान को चूम और चाट लिया. वैसे तो मैंने शरम से अपनी आँखें बंद कर रखी थी लेकिन मैं समझ रही थी की समीर जो मेरे इतना पास बैठा हुआ था उसने इस बुड्ढे की हरकतें ज़रूर देख ली होंगी.

अब गुप्ताजी ने मुझे चम्मच से यज्ञ रस पिलाया और पिलाते समय उसने अपना दायां हाथ मेरी बायीं चूची के ऊपर टिकाया हुआ था और वो अपनी बाँह से मेरे निप्पल को दबा रहा था. समीर ने फिर से रस पिलाने में उसकी मदद की और फिर मैंने लिंगा महाराज को उसकी प्रार्थना दोहरा दी. मैं ही जानती थी की मैंने लिंगा महाराज से क्या कहा क्यूंकी प्रार्थना के नाम पर वो बुड्ढा मेरे बदन से जो छेड़छाड़ कर रहा था उससे मैं फिर से कामोत्तेजित होने लगी थी.

ऐसे करके कुल 6 बार प्रार्थना हुई और हर बार मुझे ऊपर नीचे को पलटना पड़ा और गुप्ताजी आगे से और पीछे से मेरे ऊपर चढ़ते रहा. अंत में ना सिर्फ़ मैं पसीने से लथपथ हो गयी बल्कि मुझे बहुत तेज ओर्गास्म भी आ गया. बाद बाद में तो गुप्ताजी कुछ ज़्यादा ही कस के आलिंगन करने लगा था और एक बार तो उसने मेरे नरम होठों से अपने मोटे होंठ भी रगड़ दिए और चुंबन लेने की कोशिश की. लेकिन मैंने अपना चेहरा हटाकर उसे चुंबन नहीं लेने दिया. वो मेरे ऊपर धक्के भी लगाने लगा था और मेरे पूरे बदन को उसने अच्छी तरह से फील कर लिया. और मेरे बदन पर गुप्ताजी को चढ़ाते उतारते समय समीर ने मेरे निचले बदन पर जी भरके हाथ फिरा लिए. गुप्ताजी की मदद के बहाने उसने कम से कम दो या तीन बार मेरे नितंबों को पकड़ा और मेरी जाँघों पर तो ना जाने कितनी बार अपना हाथ फिराया.

मैंने पैंटी नहीं पहनी थी तो तेज ओर्गास्म आने के बाद मेरी चूत का रस मेरी जांघों के अंदरूनी हिस्से में बहने लगा और मेरा पेटीकोट गीला हो गया. उस समय मैं सोच रही थी की पैंटी उतारकर ग़लती की. प्रार्थना पूरी होने के बाद गुरुजी और समीर ने जय लिंगा महाराज का जाप किया और आख़िरकार गुप्ताजी मेरे बदन से उतर गया.

समीर – गुरुजी कमरा बहुत गरम हो गया है. हम सब को पसीना आ रहा है. थोड़ा विराम कर लेते हैं गुरुजी.

गुरुजी – हाँ थोड़ा विराम ले सकते हैं लेकिन मध्यरात्रि तक ही शुभ समय है तब तक यज्ञ पूरा हो जाना चाहिए.

तब तक मैं फर्श से उठ के बैठ गयी थी और मुझे पता चला की मेरा बायां निप्पल ब्रा कप से बाहर आ गया है जो की गुप्ताजी के मेरी छाती को लगातार दबाने से हुआ था तो मुझे ब्रा एडजस्ट करनी थी. लेकिन इन मर्दों के सामने मैं अपनी ब्रा एडजस्ट नहीं कर सकती थी इसलिए बाथरूम जाने की सोच रही थी. पर अभी तो मेरा और भी ह्युमिलिएशन होना था , रही सही कसर भी पूरी हो गयी.

समीर – ठीक है गुरुजी. गुप्ताजी एक बार अपना रुमाल दे सकते हैं ? मुझे बहुत पसीना आ रहा है.

गुप्ताजी उलझन में पड़ गया. मैं तुरंत समझ गयी की समीर जिसे गुप्ताजी का रुमाल समझ रहा है वो तो मेरी पैंटी है जो की उसके कुर्ते की जेब में मुड़ी तुड़ी रखी थी.

अब मैं बहुत नर्वस हो गयी और समझ में नहीं आ रहा था की क्या करूँ ? यही हालत गुप्ताजी की भी थी.

कुमार – ये तो ….मेरा मतलब …ये मेरा रुमाल नहीं है.

समीर – तो किसी और का है क्या ?

कुमार – नहीं नहीं. मेरा मतलब ये रुमाल नहीं है.

समीर – ओह…..पर लग तो रुमाल जैसा ही रहा है. तो फिर ये क्या है ?

अब गुप्ताजी मेरा मुँह देखने लगा और मैं तो वहीं पर जम गयी.

समीर – कुछ परेशानी है क्या ? मैंने कुछ ग़लत पूछ लिया क्या?

अब गुप्ताजी को कुछ तो जवाब देना ही था.

कुमार – ना ना ऐसी कोई बात नहीं. मेरा मतलब ….

वो थोड़ा रुका, मेरी तरफ देखा और फिर बता ही दिया.

कुमार – असल में जब हम बाथरूम में गये , मेरा मतलब जब रश्मि बाथरूम गयी तो उसे कुछ असुविधा हो रही थी इसलिए उसने अपनी पैंटी उतार दी. और उसके पास इसे रखने के लिए जगह नहीं थी तो मैंने अपनी जेब में रख ली.

ऐसा कहते हुए गुप्ताजी ने अपनी जेब से मेरी पैंटी निकाली और फैलाकर समीर को दिखाई. उन मर्दों के सामने मैं शरम से मर ही गयी और मैंने अपनी नज़रें नीची कर ली. वो तीनो मर्द गौर से मेरी छोटी सी पैंटी को देख रहे थे. इतना ह्युमिलिएशन क्या कम था जो अब समीर ने एक फालतू बात कहना ज़रूरी समझा.

समीर – ओह. मैडम तब तो आप बिना पैंटी के हो अभी ?

मैंने उसके सवाल का जवाब नहीं दिया और वहाँ से जाने में ही भलाई समझी.

“गुरुजी, एक बार बाथरूम जाना चाहती हूँ.”

गुरुजी – ज़रूर जाओ रश्मि. लेकिन 5 मिनट में आ जाना. अब अनुष्ठान में नंदिनी की बारी है.

मैं फर्श से उठ खड़ी हुई और गुप्ताजी के हाथ से , सबके देखने के लिए प्रदर्शित , अपनी पैंटी छीन ली और कमरे से बाहर निकल गयी. मैंने समीर और गुप्ताजी के धीरे से हंसने की आवाज़ सुनी और बहुत अपमानित महसूस किया. मैंने खुद को बहुत कोसा की मैंने क्यूँ इस बुड्ढे को अपनी पैंटी रखने को दी. मैं बाथरूम गयी और मुँह धोया. फिर अपनी साड़ी और पेटीकोट उठाकर चूत और जांघों को भी धो लिया , जो मेरे चूतरस से चिपचिपी हो रखी थी. और फिर अपनी पैंटी पहन ली जो की थोड़ी गीली हो रखी थी. फिर मैंने अपने कपड़े ठीकठाक किए और थोड़ा शालीन दिखने की कोशिश की.

जब मैं वापस आई तो गुप्ताजी पूजा घर से चला गया था और उसकी पत्नी नंदिनी वहाँ आ गयी थी.

कहानी जारी रहेगी
NOTE


1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .

2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.

3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .

4. जब मैंने ये कहानी यहाँ डालनी शुरू की थी तो मैंने भी इसका अधूरा भाग पढ़ा था और मैंने कुछ आगे लिखने का प्रयास किया और बाद में मालूम चला यह कहानी अंग्रेजी में "समितभाई" द्वारा "गुरु जी का (सेक्स) ट्रीटमेंट" शीर्षक से लिखी गई थी और अधूरी छोड़ दी गई थी। बाद में 2017 में समीर द्वारा हिंदी अनुवाद शुरू किया गया, जिसका शीर्षक था "एक खूबसूरत हाउस वाइफ, गुरुजी के आश्रम में" और लगभग 33% अनुवाद "Xossip" पर किया गया था। अभी तक की कहानी मुलता उन्ही की कहानी पर आधारित है या उसका अनुवाद है और अब कुछ हिस्सों का अनुवाद मैंने किया है ।

कहानी काफी लम्बी है और मेरा प्रयास जारी है इसको पूरा करने का ।



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#39
गुरुजी के आश्रम में सावित्री

औलाद की चाह

CHAPTER 5 - चौथा दिन -कुंवारी लड़की

Update-4-A

सुंदरता का आकर्षण





नंदिनी को देखकर मैं मुस्कुरायी और वो भी मुस्कुरा दी. मैं सोचने लगी की तुम क्या जानो तुम्हारा पति मेरे साथ इतनी देर से क्या कर रहा था. नंदिनी सफेद साड़ी ब्लाउज में थी. समीर और नंदिनी अग्निकुण्ड के सामने साथ बैठे हुए थे . अग्निकुण्ड के दूसरी तरफ गुरुजी बैठे हुए थे.

गुरुजी – नंदिनी, अभी तक कुमार ने काजल बेटी के लिए प्रार्थना की है. इस यज्ञ में माध्यम की ज़रूरत पड़ती है जो तुम्हारी प्रार्थना को अग्निदेव और लिंगा महाराज तक पहुँचाएगा. तुम्हारे लिए समीर माध्यम का काम करेगा.

नंदिनी – ठीक है गुरुजी.

गुरुजी – रश्मि , अगर तुम चाहो तो थोड़ी देर आराम कर सकती हो क्यूंकी अभी यज्ञ में तुम्हारी ज़रूरत नहीं है.

मैंने सोचा ठीक है थोड़ी देर ड्राइंग रूम में बैठ जाती हूँ. लेकिन मुझे ध्यान आया की वहाँ तो गुप्ताजी भी होगा और उसकी बीवी तो यहाँ बैठी है तो वो मुझे ज़रूर परेशान करेगा. लेकिन पूजा घर में धुएँ और गर्मी से मेरा मन वहाँ बैठने का भी नहीं हो रहा था ख़ासकर की जब यज्ञ में मेरी ज़रूरत भी नहीं थी.

नंदिनी – तुम अगर चाहो तो मेरी बेटी के साथ थोड़ा समय बिता सकती हो. वो भी बोर हो रही होगी.

ये मुझे ठीक लगा क्यूंकी बेटी के साथ रहूंगी तो गुप्ताजी भी मुझे परेशान नहीं कर पाएगा.

“ठीक है. कहाँ है वो ?”

नंदिनी – तुम सीढ़ियों से नीचे उतरकर गैलरी में सीधे ड्राइंग रूम में जाने की बजाय बायीं तरफ वाले कमरे में जाना. काजल अपने कमरे में होगी.

“ठीक है. गुरुजी तो मैं….”

गुरुजी – ज़रूर रश्मि. तुम काजल बेटी के साथ बातें करो तब तक मैं नंदिनी की पूजा करवाता हूँ.

मैंने सर हिलाकर हामी भरी और पूजा घर से बाहर आ गयी. मुझे बहुत उत्सुकता हो रही थी की गुरुजी और समीर के सामने नंदिनी कैसे पूजा करेगी ? माध्यम अब समीर होगा तो नंदिनी को क्या करना होगा ? ना जाने क्यूँ पर मुझे फिर से इस तरह की फालतू उत्सुकता हो रही थी . लेकिन जो भी हो अब तो मैं पूजा घर से बाहर आ चुकी थी तो नंदिनी को देख नहीं सकती थी. लेकिन मन कर रहा था की पूजा घर में चुपचाप कहीं से झाँककर देखूं. मैं चलते जा रही थी पर मन पूजा घर में ही अटका हुआ था फिर सीढ़ियां उतरकर मैं गैलरी में आ गयी. मैं बायीं तरफ काजल के कमरे की ओर जाने लगी तभी एक आदमी दिखा जो शायद इनका नौकर था.

“काजल का कमरा कौन सा है ?”

नौकर ने कमरे के दरवाज़े की तरफ इशारा किया .

“धन्यवाद.”

फिर नौकर चला गया और मैंने कमरे का दरवाज़ा खटखटाया. लेकिन कोई जवाब नहीं आया तो मैंने दुबारा खटखटा दिया.

काजल – कौन है ?

अंदर से चिड़चिड़ी आवाज़ में उसने पूछा. साफ जाहिर था की दरवाज़ा खटखटाना उसे पसंद नहीं आया था. मैं सोचने लगी की क्या जवाब दूँ क्यूंकी मेरे नाम से तो वो मुझे पहचानेगी नहीं. तभी उसने थोड़ा सा दरवाज़ा खोला और पर्दे से चेहरा बाहर निकालकर झाँका.

काजल – ओह…..आंटी आप हो . मैंने सोचा…..

उसने अपनी बात पूरी नहीं की और मेरे लिए दरवाज़ा खोल दिया.

“तुम्हारी मम्मी अभी यज्ञ में बिज़ी हैं इसलिए मैंने सोचा तुम्हारे साथ थोड़ा समय बिता लूँ.”

काजल मुस्कुरायी और मेरे अंदर आने के बाद उसने दरवाज़ा बंद कर दिया. उसका कमरा काफ़ी बड़ा था और उसमें फर्नीचर भी बढ़िया लगा हुआ था, टीवी, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स वगैरह भी थे. कमरे में चारों तरफ देखने के बाद मैंने काजल की तरफ ध्यान दिया तो मुझे हैरानी हुई की उसने अपने सफेद सूट का सलवार नहीं पहना हुआ था और वो सिर्फ़ सफेद कुर्ते में थी. कुर्ता उसके घुटनों तक लंबा था इसलिए पहले मेरी नज़र नहीं पड़ी थी . मैं सोचने लगी की ये ऐसे क्यूँ खड़ी है, थोड़ी देर पहले तो सफेद सूट में थी.

काजल – आंटी, आप गुरुजी के साथ कब से हो ?

“बस कुछ ही दिनों से.”

बोलते समय काजल कुछ असहज दिख रही थी और गहरी साँसें ले रही थी. गहरी साँसें लेने से उसके टाइट कुर्ते में चूचियाँ ऊपर नीचे हिल रही थीं.

“तुम्हारी पढ़ाई में क्या दिक्कत आ रही है ?”

मैंने सोफे में बैठते हुए पूछा. काजल अभी भी खड़ी थी और कुछ हिचकिचा रही थी. मैंने प्रश्नवाचक निगाहों से उसे देखा.

काजल – आंटी, आप बैठो. मैं बाथरूम होकर आती हूँ. असल में मैं बाथरूम ही जा रही थी और इसीलिए सलवार भी उतार दी थी.

“ओह….. अच्छा. ठीक है. तुम जाओ. मेरे लिए टीवी ऑन कर दो.”

तभी मैंने देखा की टीवी के नीचे रखा हुआ वीडियो प्लेयर ऑन है.

“तुम कोई मूवी देख रही थी क्या ?”

मेरे सवाल से काजल के चेहरे का रंग उड़ गया. वो कुछ परेशान सी दिख रही थी.

“आपको कैसे पता चला की मैं….”

“वो वीडियो प्लेयर ऑन है ना, इसलिए मैंने पूछ लिया.”

काजल – ओह..…

उसने ऐसी आवाज़ में कहा जैसे की उससे कोई भूल हो गयी हो. मैंने देखा की टीवी तो ऑफ है . अब मैं समझ गयी थी की काजल कोई मूवी देख रही थी और मेरे दरवाज़ा खटखटाने से उसे डिस्टर्ब हुआ होगा तभी वो थोड़ा इरिटेट हो गयी थी. और जब उसने मेरे लिए दरवाज़ा खोला तो टीवी ऑफ कर दिया पर वीडियो प्लेयर ऑफ करना भूल गयी थी. काजल की हालत ऐसी हो रखी थी जैसे उसकी कोई चोरी पकड़ी गयी हो . अब उसने बात टालने की कोशिश की.

काजल – हाँ आंटी , लेकिन वो बड़ी बोरिंग मूवी थी. मैं आपके लिए टीवी ऑन कर देती हूँ.

अब तो मुझे बड़ी उत्सुकता होने लगी थी की काजल कौन सी मूवी देख रही थी जो मुझसे छुपा रही है. कह तो रही थी की मैं बाथरूम जा रही थी इसलिए सलवार उतार दी है लेकिन मुझे उसकी बात पर भरोसा नहीं हो रहा था. वो टीवी ऑन करने गयी तो मैंने उसके कुर्ते के कट में से देखा की उसने गुलाबी पैंटी पहनी हुई थी. वैसे तो मैं जो सलवार कमीज़ पहनती थी उनमें जो साइड्स में कट होता था वो कमर से थोड़ा नीचे तक होता था . लेकिन काजल के कुर्ते का कट उसकी कमर से भी ऊपर था और साइड्स से उसकी पैंटी का काफ़ी हिस्सा दिख रहा था. मैंने मन ही मन उसके आकर्षक बदन की तारीफ की.

“क्या नाम है मूवी का ?”

काजल – आंटी , ये एक डब्ड मूवी है. बहुत स्लो है, आपको पसंद नहीं आएगी.

मैं सब समझ रही थी की काजल पूरी कोशिश कर रही है की मैं वो मूवी ना देखूँ. लेकिन अब तो मुझे देखनी ही थी की आख़िर उसमें ऐसा क्या है.

“काजल, टाइमपास ही तो करना है. 10 – 15 मिनट में तो गुरुजी तुम्हें बुला लेंगे. तब तक जो तुम देख रही थी उसी को देख लेते हैं.”

मैंने काजल के लिए कोई चारा नहीं छोड़ा और उसने अनमने मन से टीवी ऑन कर दिया. फिर वो जल्दी से अपना सफेद सलवार लेकर अटैच्ड बाथरूम में भाग गयी. मैंने टीवी स्क्रीन पर ध्यान लगाया और कुछ झिलमिलाहट के बाद मूवी जहाँ पर रुकी थी वहीं से स्टार्ट हो गयी.

“ओह्ह ….”

पहले ही सीन में जबरदस्त चुम्मा चाटी चल रही थी. हीरो ने हीरोइन को अपने आलिंगन में पकड़ा हुआ था और उसके होठों को चूस रहा था. हीरोइन भी उसकी पीठ पर हाथ फिरा रही थी और उसके बाल खींच रही थी. वो दोनों एक कमरे में खड़े थे. वो हॉट सीन था, हीरोइन ने थोड़े से कपड़े पहने हुए थे और हीरो उसको हर जगह छू रहा था. कैमरा हीरोइन की पीठ दिखा रहा था और फिर साइड पोज़ से दिखा रहा था. कभी चुंबन का क्लोज़ अप दिखा रहा था. हीरोइन ने चोली पहन रखी थी जो उसकी बड़ी चूचियों को सम्हाल नहीं पा रही थी और छोटी सी स्कर्ट में उसके बड़े नितंब दिख रहे थे. हीरोइन ने ब्रा भी नहीं पहनी हुई थी और उन छोटे कपड़ो में बहुत सेक्सी लग रही थी. वो बहुत लंबा चुंबन दृश्य था और वो दोनों एक दूसरे के बदन में हर जगह हाथ फिरा रहे थे . कैमरा हीरोइन के बदन पर फोकस कर रहा था. और हीरो वो सब कुछ कर रहा था जो थोड़ी देर पहले बाथरूम में गुप्ताजी मेरे साथ कर रहा था.

अब मैं समझ गयी थी की क्यूँ काजल की साँसें उखड़ी हुई थीं और उसने सलवार क्यूँ उतार दी थी. शायद वो चूत में उंगली कर रही थी जब मैंने दरवाज़ा खटखटा दिया. वो एक डब्ड साउथ इंडियन बी -ग्रेड मूवी थी. और उसमें एक से एक हॉट सीन आ रहे थे. फिर हीरोइन ने अपनी चोली भी उतार दी और टॉपलेस हो गयी. अपनेआप मेरे हाथ मेरी चूचियों पर चले गये और ब्लाउज के बाहर से मेरे निप्पल को छुआ. मेरे कान गरम हो गये और मेरी साँसें भी काजल की तरह भारी हो गयीं. मैं काजल से 10 साल बड़ी थी लेकिन दोनों पर मूवी का असर एक जैसा था.

मैंने ऐसी फिल्म कम ही देखी थी. शादी के शुरुवाती दिनों में राजेश ने मुझे कुछ पॉर्न फिल्म्स दिखाई थीं लेकिन वो सब इंग्लिश थीं. उन सभी में सब कुछ सीधे सीधे शुरू हो जाता था, फिल्म शुरू होते ही लड़की तुरंत कपड़े उतार देती थी, मर्द भी नंगा हो जाता था और सीधे चुदाई शुरू. लेकिन ऐसे देसी मसाला वीडियो मैंने कम ही देखे थे. उन अँग्रेज़ी पॉर्न फिल्म्स की बजाय ऐसी देसी फिल्म को देखकर मुझे ज़्यादा मज़ा आ रहा था जिसमें सीधे चुदाई की बजाय चूमना चाटना और एक दूसरे के बदन पर हाथ फिराना ये सब हो रहा था.

अब हीरोइन ने सिर्फ़ एक काली पैंटी पहनी हुई थी और वो बेशर्मी से अपनी बड़ी चूचियों का प्रदर्शन कर रही थी. हीरो भी अब सिर्फ़ एक चड्डी में था और उसका खड़ा लंड देखकर मुझे बेचैनी होने लगी. तभी उस कमरे का दरवाज़ा खुला और एक और लड़की आ गयी जो हीरोइन की बहन थी और दोनों लड़कियां हीरो को प्यार करती थीं. हीरो ने दरवाज़ा बंद कर दिया और बिना देर किए उस लड़की के कपड़े भी उतार दिए. अब हीरो को आगे से नयी लड़की ने आलिंगन किया हुआ था जो सिर्फ़ ब्रा पैंटी में थी और पीछे से हीरोइन ने जो सिर्फ़ पैंटी में थी. दोनों लड़कियाँ हीरो के बदन से अपनी बड़ी चूचियों को दबा रही थी.

“ओह्ह ….हे भगवान !…”

ऐसा हॉट सीन चल रहा था तभी बाथरूम का दरवाज़ा खुला और काजल कमरे में आ गयी. मैंने देखा उसकी नज़रें भी टीवी स्क्रीन पे जम गयीं. ऐसा गरम सीन देखकर किसी भी जवान लड़की या औरत के निप्पल खड़े हो जाएँगे. लेकिन मैं इस लड़की के साथ ऐसी नंगी फिल्म नहीं देख सकती थी , वैसे सच कहूँ तो मेरा उस मूवी को देखते रहने का मन हो रहा था.

“ये क्या है ? ऐसी मूवी देखती हो तुम ?”

काजल तुरंत माफी माँगने लगी.

काजल – आंटी मेरा विश्वास करो , मुझे नहीं मालूम था ये ऐसी फिल्म है. मेरे भाई ने लाकर दी और अकेले में देखना बोला. आंटी प्लीज़ , मम्मी पापा को मत बताना.

“भाई ?”

काजल – वो मेरे ताऊजी का लड़का है. कॉलेज में पढ़ता है.

काजल बहुत नर्वस हो गयी थी और उसने मेरे पास आकर मेरे हाथ पकड़ लिए.

“तुम्हारे मम्मी पापा तुम्हारी पढ़ाई को लेकर इतना परेशान हैं और तुम इन गंदी चीज़ों में वक़्त बर्बाद कर रही हो.”

मैं उसके साथ सख्ती से पेश आई तो वो मेरे गले लग कर रोने लगी. वो मेरे ऊपर झुकी हुई थी और उसकी टाइट चूचियाँ मेरे हाथों को छू रही थीं उनको देखकर मुझे अपने कॉलेज के दिनों की याद आ गयी. मैं भी 12वीं में आकर्षक लगती थी लेकिन काजल ज़्यादा सुंदर लग रही थी.

“काजल , मासूम बनने की कोशिश मत करो. तुम कोई छोटी बच्ची नहीं हो.”

मैंने उसे अपने बदन से हटाने की कोशिश की. वो अभी भी मेरे ऊपर झुकी हुई थी और अपनी आँखें पोंछ रही थी. सुबकने से उसकी साँसें भारी हो गयीं और उसके टाइट कुर्ते से जवान चूचियाँ बाहर को उभर आयीं.

पता नहीं मेरे दिमाग़ में क्या आया की मैंने एक सख़्त टीचर की तरह व्यवहार करना शुरू कर दिया जिसने अपने किसी स्टूडेंट को ग़लती करते हुए पकड़ लिया हो. क्या मुझे उसके आकर्षक बदन से ईर्ष्या हुई या इस बात से की उसका चेहरा मुझसे ज़्यादा सुंदर है या फिर अभी वो मेरे सामने विनती करने की हालत में थी ? मुझे नहीं मालूम क्यूँ पर मैंने उसके साथ सख्ती से व्यव्हार किया.

“बस बहुत हो गया. अब सीधी खड़ी रहो.”

काजल के बाथरूम से बाहर आने के बाद मैंने मूवी को पॉज़ कर दिया था. अब काजल सीधी खड़ी हो गयी और नज़रें झुका लीं.

“काजल, मुझे सच बताओ और मैं तुम्हारी मम्मी को कुछ नहीं बताऊँगी. मैंने थोड़ी सी मूवी देखी लेकिन तुमने तो पूरी देखी होगी ना ?”

काजल ने नजरें नीचे किए हुए ही सर हाँ में हिला दिया.

“तो फिर मुझे इसकी पूरी स्टोरी बताओ.”

काजल – आंटी ये तो …. मेरा मतलब इसमें तो ज़्यादातर ….

वो हकलाने लगी.

“जो भी स्टोरी है मुझे बताओ.”


काजल – ठीक है आंटी. लेकिन प्लीज़ गुस्सा मत होना. मैं बताती हूँ. एक लड़की अपने परिवार के साथ समुंदर किनारे घूमने आती है. उसकी दो बहनें भी साथ में होती हैं. यहाँ एक दूसरे ग्रुप से उनकी मुलाकात होती है. तीनो बहनों का तीन लड़कों से अफेयर चलता है. और उनके पेरेंट्स का भी दूसरों से अफेयर चलता है. आंटी स्टोरी में कुछ नहीं है बस यही है.

काजल ने पूरी स्टोरी सर झुकाकर ही सुना दी और इस प्यारी लड़की को मेरे आगे दबते देखकर मुझे मज़ा आ रहा था. अभी वो पूरी तरह से मेरे काबू में थी.

“कौन सा पार्ट तुम्हें सबसे अच्छा लगा, काजल ?”

काजल – आंटी , मैंने आपको बताया ना की ये बहुत बोरिंग मूवी है. सारे उस टाइप के सीन भरे पड़े हैं इसमें. मुझे बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी.

“तो फिर तुमने अपनी सलवार क्यूँ उतार दी थी ?”

काजल – आंटी वो …. मैंने बताया तो था की मैं बाथरूम जा रही थी….

“तो क्या मैं ये समझूँ की तुम जब भी बाथरूम जाती हो , कमरे में सलवार उतार कर जाती हो ?”

वो सर झुकाए चुपचाप खड़ी रही.

“मुझे सच बताओ.”

काजल – आंटी असल में वो हॉट सीन्स देखकर मुझे बेचैनी होने लगी थी इसलिए ….

“कितनी बार देखी है ये मूवी ?”

काजल – सिर्फ़ दूसरी बार देख रही थी आंटी, कसम से.

“पहली बार कब देखी थी ?”

वो अपने होंठ काटने लगी और चुपचाप खड़ी रही. इस सेक्सी लड़की से सवाल जवाब करने में मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था.

काजल – आंटी प्लीज़ मम्मी को मत बताना. वो तो मुझे मार ही डालेंगी.

“मैं नहीं बताऊँगी पर तुम जवाब तो दो.”

काजल – कल शाम मम्मी शॉपिंग के लिए गयी थी और पापा अपने कमरे में थे तब देखी थी.

“कल भी तुम्हें वैसी ही फीलिंग्स आयी , जैसी आज आयी थी ?”

काजल – हाँ आंटी.

“कल भी सलवार खोली थी ?”

मैं जानती थी की ये कुछ ज़्यादा ही हो रहा है और बहुत से प्राइवेट सवाल पूछ रही हूँ लेकिन उसके साथ मज़ा आ रहा था. मेरे इस सवाल से उसका चेहरा लाल हो गया और उसके हाथ अपनेआप नीचे जाकर चूत के आगे क्रॉस पोज़िशन में आ गये जैसे की उसे ढक रही हो. काजल ने ना में सर हिला दिया.

“काजल सच बताओ.”

काजल – आंटी मैं सच बता रही हूँ. कल मैंने स्कर्ट पहनी हुई थी तो…

“अच्छा. ऐसा कहो ना .”

मैं समझ रही थी की जरूर इसने अपनी स्कर्ट उठा कर अंगुली की होगी.

“काजल, एक काम करो. ये रिमोट लो और जो सीन तुम्हें सबसे ज़्यादा पसंद आया , उसको लगाओ.”

मैंने उसको रिमोट दे दिया लेकिन वो हिचकिचा रही थी और कुछ सोच रही थी.

“क्या हुआ ?”

काजल – आंटी , मूवी में सिर्फ़ उस टाइप के सीन्स हैं.

“लेकिन उन्हें देखकर तुम्हें मज़ा आया , है की नहीं ? मैं देखना चाहती हूँ कौन सा पार्ट तुम्हें सबसे ज़्यादा पसंद आया. घबराओ मत. मैं कुछ नहीं कहूँगी. बस वो सीन लगा दो.”

काजल हिचकिचा रही थी लेकिन मेरी बात टालने का साहस उसमें नहीं था. उसने रिमोट से फास्ट फॉरवर्ड करना शुरू कर दिया और एक जगह पर रोक कर प्ले कर दिया. हम दोनों का ध्यान टीवी स्क्रीन पर था. अब वो सीन शुरू हुआ. एक लड़की एक लड़के के साथ समुंदर किनारे टहल रही थी. दोनों टीनएजर्स थे. ये लड़की वो वाली नहीं थी जो मैंने देखी थी ,

मैंने अंदाज़ा लगाया ये तीसरी बहन होगी. चलते चलते उसकी मिनीस्कर्ट बार बार हवा से ऊपर उठ जा रही थी तो उसे अनकंफर्टेबल फील हो रहा था. वो बार बार अपनी स्कर्ट नीचे कर रही थी तभी लड़के ने रेत में बैठने के लिए कहा. लड़की मान गयी पर जैसे ही बैठने लगी तेज हवा से उसकी स्कर्ट ऊपर उठ गयी और पैंटी से ढकी हुई उसकी गांड स्क्रीन में दिख गयी.

मैंने आँखों के कोनों से काजल को देखा , उसकी साँसें भारी हो चली थीं. लड़की अभी ठीक से बैठी भी नहीं थी की लड़का उसके ऊपर चढ़ गया और उसके कपड़े ऊपर करने लगा. वो सीन बड़ा अजीब लग रहा था लेकिन मैं समझ रही थी की दर्शकों को उत्तेजित क

रने के लिए रखा होगा क्यूंकी बार बार वो लड़का लड़की की स्कर्ट को कमर तक उठा दे रहा था और लड़की की सफेद पैंटी दिख जा रही थी. और वो लड़की अपनी स्कर्ट को नीचे करने की कोशिश कर रही थी. थोड़ी देर बाद लड़के ने उसका टॉप ऊपर कर दिया और अब वो सिर्फ़ सफेद ब्रा में थी . वैसे तो वो टीनएजर थी लेकिन उसकी चूचियाँ बड़ी थीं और लड़के ने उनको खूब दबाया और सहलाया. लड़का अब लड़की का चुंबन ले रहा था और ब्रा के बाहर से उसकी बड़ी चूचियों को दबा रहा था.

मैंने देखा काजल भी सीन में मगन थी. हमारी उमर में बहुत अंतर था और मैं तो शादीशुदा थी लेकिन काजल कुँवारी थी पर दोनों को नशा चढ़ रहा था. मेरे अंदर तो गुप्ताजी की हरकतों से गर्मी चढ़ी हुई ही थी और अब इस मूवी को देखकर मेरी चूचियाँ टाइट हो गयी थीं.

सीन चलते रहा और काजल बड़ी बड़ी आँखों से टीवी स्क्रीन को ही देख रही थी. और क्यूँ ना देखे ? अगर मुझे भी अपने बचपन के दिनों में ऐसी हॉट मूवी देखने का मौका मिला होता तो मुझे भी ऐसा ही रोमांच होता. अब लड़के ने अपनी जीन्स और टीशर्ट उतार दी थी और चड्डी में था और लड़की भी सिर्फ़ ब्रा पैंटी में थी. लड़का दोनों हाथों से उसकी चूचियाँ दबाते हुए चोदने के अंदाज़ में धक्के लगा रहा था. लड़की हर तरह की कामुक आवाज़ें निकाल रही थी और कैमरा उसके चेहरे, चूचियों और उन दोनों की चिपकी हुई कमर पर फोकस कर रहा था.

“थोड़ी साउंड कम करो.”

काजल ने तुरंत साउंड कम कर दी और वो इस हॉट सीन को देखने में इतनी मगन थी की उसने मेरी तरफ देखा भी नहीं. कुछ ही देर में लड़की सब कपड़े उतारकर नंगी हो गयी और लड़के ने भी अपनी चड्डी उतार फेंकी और नंगा हो गया. लड़के का लंड देखकर मैं फिर से कामोत्तेजित हो गयी और वो लड़का खुले बीच में लड़की को चोदने के लिए उसके ऊपर चढ़ गया. मैं सोचने लगी की ये शूटिंग कहाँ हुई होगी. बीच खाली था

लेकिन मुझे हैरानी हो रही थी की हमारे देसी अभिनेता और अभिनेत्रियां भी इतने बोल्ड हो गये हैं की पूरे नंगे होकर खुले बीच में चुदाई कर रहे हैं. कैमरा लड़की की चूत को क्लोज़ अप में दिखा रहा था पर मेरा मन लड़के का लंड देखने का हो रहा था और उसे बहुत कम दिखाया गया था. अजीब बात ये हुई की वो चुदाई का सीन ज़्यादा लंबा नहीं दिखाया और अचानक से अगला सीन आ गया जिसमें दो लड़कियाँ बेड में बैठकर बातें कर रही थी.

काजल – आंटी सीन खत्म हो गया.

“वो तो मुझे भी दिख रहा है.”

मुझे थोड़ी निराशा हुई की चुदाई सीन जल्दी ही खत्म कर दिया लेकिन अभी और भी हॉट सीन्स आने वाले थे. दोनों लड़कियों का जल्दी ही लेस्बियन सीन शुरू हो गया और पहली बार मैंने कोई लेस्बियन सीन देखा वो भी देसी लड़कियों का. दोनों लड़कियों ने सेक्सी बदन दिखाऊ नाइटी पहन रखी थी. बातें करते करते वो नज़दीक़ आयीं और एक दूसरे को चूमने लगीं . दोनों एक दूसरे की चूचियाँ भी दबा रही थीं. वो चुंबन दृश्य लंबा चला और लड़कियाँ एक दूसरे के होठों को चाट और चूस रही थीं , अब मेरी पैंटी गीली होने लगी थी.एक लड़की किसी दूसरी लड़की को चूम रही है , ऐसा सीन मैंने पहले कभी नहीं देखा था. अब मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा था और पहले चुदाई सीन फिर ये लेस्बियन देखकर मेरे हाथ अपनेआप ही मेरी चूचियों पर चले गये.

मैंने काजल को देखा और उसकी हालत भी ऐसी ही थी. वो गहरी साँसें ले रही थी और उसके टाइट कुर्ते में गिरती उठती चूचियाँ और भी आकर्षक लग रही थीं. मैंने फिर से मूवी को देखा. अब तो दोनों लड़कियों ने सारी हदें पार कर दी थी. दोनों ने अपनी नाइटी उतार दी थी और सिर्फ़ पैंटी में थीं. दोनों की बड़ी बड़ी चूचियाँ थीं और दोनों टॉपलेस होकर आकर्षक लग रही थीं. दोनों लड़कियों की नंगी चूचियाँ हिल डुल रही थीं और वो दोनों एक दूसरे के निप्पल को मरोड़ रही थीं. अब उन दोनों ने एक दूसरे की चूचियों को चाटना शुरू कर दिया और पैंटी के बाहर से नितंबों को मसलने लगीं.

तभी मुझे एक अजीब सा ख्याल आया. एक बार तो मैंने सोचा की सही नहीं रहेगा लेकिन काजल मेरे काबू में थी तो मैंने सोचा कर के देखती हूँ. मैं ये जो नये किस्म का आनंद टीवी पे देख रही थी इसको अनुभव करना चाह रही थी. दोनों लड़कियों ने अब पैंटी भी उतार दी थी और बड़ी बेशर्मी से एक दूसरे की चूत चाटने में लगी हुई थीं. इस देसी लेस्बियन सीन को देखकर मुझे बहुत कामोत्तेजना आ रही थी. अब मैंने अपना मन बना लिया.

“काजल…”

मैंने सख़्त लहजे में बोलने की कोशिश की लेकिन उत्तेजना से मेरी आवाज़ कांप गयी. काजल उस हॉट सीन को देखने में मस्त थी और मेरे आवाज़ देने से चौंक गयी. उसने मेरी तरफ उलझन भरी निगाहों से देखा.

“यहाँ आओ.”

काजल मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी.

“मैंने फ़ैसला किया है की मैं तुम्हारे पेरेंट्स को सब कुछ सच बता दूँगी की तुम किन गंदी चीज़ों में वक़्त बर्बाद करती हो. ये तुम्हारी पढ़ाई का सवाल है और मैं कोई ….”

काजल – आंटी प्लीज़. क्या हुआ ? क्या अब मैंने कुछ ग़लत कर दिया ? प्लीज़ ऐसा मत करो. मम्मी मुझे मार डालेगी. आंटी प्लीज़.

“नहीं नहीं. मुझे सच बताना ही होगा.”

काजल अब मुझसे विनती करने लगी. उसने मेरे हाथ पकड़ लिए.

काजल – आंटी प्लीज़. अगर मम्मी को पता चल गया तो वो मेरा जीना दूभर कर देंगी. आंटी मैं आपके लिए कुछ भी करूँगी. प्लीज़ आंटी मम्मी को मत बताना, प्लीज़…

“ठीक है. लेकिन एक काम करना होगा.”

काजल – मैं कुछ भी करूँगी पर प्लीज़ आंटी मम्मी को मत बताना.

“काजल, मैं चाहती हूँ की जो सीन मूवी में चल रहा है वैसा ही तुम भी करो.”

काजल ने ऐसा मुँह बनाया जैसे उसे कुछ समझ नहीं आया.

काजल – क्या ??

मैंने सीधे उसकी आँखों में सख्ती से देखा.

“जो टीवी में देख रही हो तुम्हें वैसा ही करना है.”

काजल – आंटी, मैं आपकी बात ठीक से समझ नहीं पा रही हूँ. आपका मतलब…

“हाँ काजल. अगर तुम इसे देखने के लिए इतनी उत्सुक हो तो मुझे लगता है की करने के लिए भी उतनी ही उत्सुक होगी. है ना ?”

काजल ने बहुत आश्चर्य से मुझे देखा. वो मुझसे इस तरह के व्यवहार की उम्मीद नहीं कर रही होगी. लेकिन अभी मेरे लिए अपनी कामोत्तेजना को शांत करना ज़्यादा ज़रूरी था ना की इस बात की फिक्र करना की ये लड़की मेरे बारे में क्या सोचेगी.



कहानी जारी रहेगी

NOTE




1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .

2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.


3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .


4. जब मैंने ये कहानी यहाँ डालनी शुरू की थी तो मैंने भी इसका अधूरा भाग पढ़ा था और मैंने कुछ आगे लिखने का प्रयास किया और बाद में मालूम चला यह कहानी अंग्रेजी में "समितभाई" द्वारा "गुरु जी का (सेक्स) ट्रीटमेंट" शीर्षक से लिखी गई थी और अधूरी छोड़ दी गई थी। बाद में 2017 में समीर द्वारा हिंदी अनुवाद शुरू किया गया, जिसका शीर्षक था "एक खूबसूरत हाउस वाइफ, गुरुजी के आश्रम में" और लगभग 33% अनुवाद "Xossip" पर किया गया था। अभी तक की कहानी मुलता उन्ही की कहानी पर आधारित है या उसका अनुवाद है और अब कुछ हिस्सों का अनुवाद मैंने किया है ।

कहानी काफी लम्बी है और मेरा प्रयास जारी है इसको पूरा करने का ।


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गुरुजी के आश्रम में सावित्री


औलाद की चाह

CHAPTER 5 - चौथा दिन -कुंवारी लड़की

Update-4-B

सुंदरता का आकर्षण



काजल – आंटी, आपका मतलब मैं वैसा करूँ जैसा ये लड़कियाँ मूवी में कर रही हैं ?

“हाँ और जल्दी करो वरना….”

मुझे अपना वाक्य पूरा करने की ज़रूरत नहीं पड़ी क्यूंकी अब काजल राज़ी हो गयी.

काजल – ठीक है आंटी. मैं वैसा ही करूँगी.

इन सब बातों से काजल के चेहरे में घबराहट, चिंता और एक्साइट्मेंट के मिले जुले भाव आ रहे थे.

“मूवी को सीन के शुरू में लगाकर पॉज़ कर दो.”

अब मैं सोफे से उठ गयी और बेड में बैठकर काजल को बेड में आने का इशारा किया. उसने वीडियो को रीवाइंड करके लेस्बियन सीन के शुरू में लगाकर पॉज़ कर दिया. उसके बाद वो भी बेड में आ गयी. वो बहुत बड़े साइज़ का डबल बेड था. काजल बेड में घुटने के बल चलते हुए मेरे पास आई तो उसके कुर्ते की लटकी हुई नेकलाइन से मुझे उसकी कसी हुई चूचियाँ दिख रही थीं.

“तुम्हारा बदन आकर्षक है.”

अब काजल कुछ बोल नहीं पा रही थी. उसके चेहरे से साफ पता लग रहा था की वो मेरे ऐसे व्यवहार से शंकित है. मैंने उसकी ब्रा साइज़ का अंदाज़ा लगाने की कोशिश की, 32 होगा. मैं जानती थी की जल्दी ही ये कॉलेज चली जाएगी और वहाँ बॉयफ्रेंड बना लेगी और उसकी मदद से इसकी चूचियाँ साइज़ में बढ़ जाएँगी.

“वीडियो को स्लो मोशन में ऑन कर दो और जैसा दिखे ठीक वैसा ही करना. ठीक है काजल ?”

काजल – ठीक है आंटी.

काजल अभी भी हिचकिचा रही थी. वीडियो स्लो मोशन में स्टार्ट हो गया और उसमें दो लड़कियाँ बेड में लेटे हुए बातें कर रही थीं. मैंने काँपते हाथों से काजल को अपने नज़दीक़ खींच लिया. मेरा पहला लेस्बियन अनुभव शुरू होने वाला था और मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था. मैं भी अब नर्वस फील कर रही थी. मेरे छूने से काजल ने अपनी नज़रें झुका लीं और उसका खूबसूरत चेहरा लाल होने लगा. उसकी हथेलियाँ ठंडी थीं , शायद घबराहट की वजह से. मेरे बदन की गर्मी ने मेरे दिमाग़ को काबू में कर लिया था और मैंने काजल को.

मूवी में अब लड़कियाँ एक दूसरे से चिपटने लगी थीं. मैंने काजल को आलिंगन में ले लिया और उसकी कसी हुई नुकीली चूचियाँ मेरी बड़ी चूचियों से टकरा गयीं. वो मुझे पकड़ने में बहुत हिचकिचा रही थी. मैंने उसको अपनी पीठ पकड़ने को मजबूर किया और हम दोनों ने एक दूसरे के बदन पर हाथ फिराना शुरू कर दिया.

काजल – आंटी, मुझे बहुत अनकंफर्टेबल फील हो रहा है.

वो मेरे कान में फुसफुसाई. मैंने उसको और भी कस के आलिंगन में लिया और आश्वासित किया.

“अगर तुम्हें देखते समय अनकंफर्टेबल नहीं लगा तो अब क्यूँ शरमा रही हो ? सिर्फ़ मूवी देखो और कुछ मत सोचो.”

मैंने अपने गालों से उसके गालों को छुआ. उसकी त्वचा बहुत मुलायम थी. मूवी में लड़कियों ने चुंबन शुरू कर दिया था पर मुझे इस सेक्सी लड़की को चूमने की हिम्मत नहीं हो रही थी. मैंने उसकी कसी हुई चूचियाँ को पकड़ लिया और उसे गरम करने की कोशिश की. उसकी चूचियाँ बड़ी नहीं थीं पर कसी हुई और नुकीली थीं. मैंने उसके कुर्ते के ऊपर से निप्पल को अंगुली से छुआ तो काजल बहुत शरमा गयी.

“काजल, तुम्हारी त्वचा बहुत मुलायम है.”

काजल शरमाते हुए मुस्कुरायी. मैंने उसकी नुकीली चूचियों से एक हाथ हटा लिया और उसका हाथ पकड़कर अपनी चूचियों पर रख दिया. उसने मेरे ब्लाउज के बाहर से मेरी बड़ी चूचियों को महसूस किया और धीमे धीमे दबाने लगी. मूवी में लड़कियों की कामुक हरकतें देखकर मेरी कामोत्तेजना और भी बढ़ गयी. मैंने अपना पल्लू बेड में गिरा दिया और साड़ी और पेटीकोट को अपने घुटनों तक ऊपर खींच लिया. फिर काजल का कुर्ता भी उसकी छाती तक ऊपर कर दिया जिससे उसकी ब्रा दिखने लगी.

“काजल, अब मेरे हुक खोलो.”

मैं उसके कान में फुसफुसाई और उसका कुर्ता सर के ऊपर उठा दिया. काजल के ऊपरी बदन में अब सिर्फ़ ब्रा थी , मेरे ऐसा करने से उसके बदन में कंपकपी दौड़ गयी.

काजल – आंटी प्लीज़, ऐसा मत करो.

मैंने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया. मैं चाहती थी जैसी आग मेरे बदन में लगी है वैसी ही काजल के बदन में भी लगे. मैंने उसको अपने और नज़दीक़ खींचा और अपना बायां हाथ उसकी ब्रा के अंदर डालकर उसकी चूची को अपनी हथेली में पकड़ लिया. उसकी नंगी चूची में मेरे हाथ के स्पर्श से वो बहुत उत्तेजित हो गयी. मैंने उसके निप्पल को ज़ोर से मरोड़ दिया और वो कामोत्तेजना से सिसकने लगी. अब तक उसने भी मेरे ब्लाउज के हुक खोल दिए थे. अब हम दोनों ब्रा में थीं और एक दूसरे को आलिंगन किया हुआ था. अब मैंने उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया और उसको नीचे लिटाकर मैं उसके ऊपर आ गयी.

काजल – आउच….

हमारी ब्रा से ढकी हुई चूचियाँ आपस में टकरा रही थीं और फिर मैंने उसकी ब्रा उतारकर कसी हुई चूचियों को नंगा कर दिया. मैंने उन्हें छुआ और सहलाया. वो बहुत मुलायम महसूस हो रही थीं. काजल ने भी मुझे दोनों हाथों से अपने आलिंगन में कस लिया और मेरी ब्रा उतार दी , अब हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में टॉपलेस थीं.

अब टीवी की तरफ देखने की भी ज़रूरत नहीं थी क्यूंकी हम दोनों पूरी गरम हो चुकी थीं. काजल के छूने और कस कर आलिंगन करने से मुझे भी मज़ा आ रहा था और उत्तेजना आ रही थी. वैसे उतनी नहीं जितनी की अगर काजल मर्द होती तो तब आती , लेकिन फिर भी मेरे लिए ये नया अनुभव था. मैं अभी भी काजल के ऊपर थी और वो मेरी चूचियों को सहला और दबा रही थी और मैं कामोत्तेजना से पागल हुई जा रही थी. मेरी पैंटी गीली हो गयी थी और अब मुझे नीचे भी कुछ चाहिए था.

“काजल डियर, अब कुछ और करो.”

काजल – क्या करूँ आंटी ?

“मेरी पैंटी खोलो और ….

मुझे अपनी बात पूरी करने की ज़रूरत नहीं पड़ी क्यूंकी काजल शरमाते हुए मुस्कुरायी और उसने सर हिलाकर हामी भर दी. मैं उसके ऊपर से उठी और बेड में लेट गयी. काजल तुरंत उठी और मेरे पैरों की तरफ जाने लगी. उसकी नंगी चूचियाँ हिलती हुई बहुत मनोहारी लग रही थीं. उसने मेरी साड़ी और पेटीकोट को कमर तक ऊपर उठाया और पैंटी के बाहर से मेरी चूत के ऊपर अपना हाथ रख दिया , मेरे बदन में सिहरन दौड़ गयी. मैंने अपनी बड़ी गांड उठाई और काजल को पैंटी उतारने में मदद की.

उसने मेरे घुटनों तक पैंटी नीचे कर दी और अपना दायां हाथ मेरी चूत पर रख दिया. वो मेरे प्यूबिक हेयर्स पर अंगुली फिरा रही थी और कुछ बाल उसने खींच भी दिए.

“आआअहह…….”

काजल – आंटी आपने तो यहाँ जंगल उगा रखा है.

हम दोनों ही उसकी बात पर हंस पड़े और फिर उसने मेरी चूत को सहलाना शुरू किया.

“आआहह , बहुत मज़ा आ रहा है.”

मेरे पति को भी ऐसा करना बहुत पसंद था. अपने हाथ से मेरी चूत को सहलाना, मेरे प्यूबिक हेयर्स को सहलाना , चूत की पूरी लंबाई में अंगुली फेरना और फिर चूत में अंगुली करना. लेकिन वो मुझे नीचे से नंगी करके ये सब करते थे जबकि काजल ने मेरे कपड़े नहीं उतारे थे , कोई भी औरत नंगी होने में अनकंफर्टेबल फील करती है. वैसे तो मैं अपने पति के साथ बेड पे नाइटी पहने रहती थी

लेकिन शादी के शुरुवाती दिनों में कभी कभी वो मुझे स्कर्ट पहनने पर मजबूर करते थे और स्कर्ट उठाकर बेशर्मी से मेरी जवानी का मज़ा लेते थे. पर मैं चाहे कुछ भी पहनूं , स्कर्ट या नाइटी , वो मुझे पूरी नंगी करके ही मेरी चूत को सहलाते थे , जो मुझे सही नहीं लगता था क्यूंकी ज़्यादातर वो बनियान और पैजामा या शॉर्ट्स पहने रहते थे और मुझे अनकंफर्टेबल फील होता था की मैं ऐसे नंगी लेटी हुई हूँ और मेरे पैरों के पास मेरे पति अभी भी कपड़ों में हैं.

थोड़ी देर तक काजल मेरी चूत को सहलाती रही और अंगुली करती रही और मैं दोनों हाथों से अपनी चूचियों को मसलती रही और मज़ा लेती रही. मैंने टीवी की तरफ देखा तो मूवी में लेस्बियन सीन खत्म हो चुका था और एक दूसरा सीन चल रहा था जिसमें एक औरत जो करीब 35 बरस की होगी , फर्श पर पोछा लगा रही थी और सामने बैठे आदमी को अपनी बड़ी सी क्लीवेज दिखा रही थी. मैंने वापस काजल पर ध्यान दिया. कुछ ही देर बाद मुझे ओर्गास्म आ गया…..आआआआआआआआअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह.

“अब बस करो और मेरे पास आओ.”

काजल ने साड़ी के अंदर से हाथ निकाल लिए और घुटनों पे चलती हुई मेरे पास आ गयी. उसके ऐसे चलने से दो संतरों की तरह लटकी हुई उसकी चूचियाँ ज़ोर से हिल रही थीं. कोई भी मर्द उन्हें देखकर मदहोश हो जाता. मैं सोचने लगी की मदहोश तो मुझे ऐसी टॉपलेस लेटी देखकर भी हो जाता. अपने ख्यालों पर मैं खुद ही मुस्कुराने लगी.

“तुम्हें भी ऐसा ही मज़ा चाहिए ?”

काजल – नहीं आंटी. मैं ठीक हूँ.

मैंने उसे अपने ऊपर खींच लिया और उसके गालों को अपने होठों से छुआ. और फिर उसके नरम होठों का चुंबन ले ही लिया. चुंबन ज़्यादा देर तक नहीं चला क्यूंकी हम दोनों ही अनकंफर्टेबल थीं क्यूंकी पहली बार किसी लड़की का चुंबन ले रही थीं. चुंबन लेने के बाद काजल हाँफने लगी और फिर से नर्वस दिखने लगी. मैंने उसे सहलाया और उसके मन से गिल्टी फीलिंग को हटाने की कोशिश की. मेरे पहले लेस्बियन अनुभव से मैं काफ़ी हद तक संतुष्ट थी. वैसे तो दोनों बार मैं चुदी नहीं थी, पहले गुप्ताजी के साथ बाथरूम में और अब काजल के साथ, लेकिन फिर भी मैं फ़्रस्ट्रेटेड नहीं फील कर रही थी.

“कौन पहले बाथरूम जाएगा ?”

काजल – आंटी अगर बुरा ना मानो तो मैं पहले जाना चाहती हूँ.

मैं मुस्कुरायी और सर हिलाकर हामी भर दी. काजल बेड से उतरी और टॉपलेस ही बाथरूम जाने लगी , वो बहुत सुंदर लग रही थी. उसने बेड से अपनी ब्रा और कुर्ता उठाया और एक नयी पैंटी निकालकर बाथरूम चली गयी. मुझे यहाँ दो ओर्गास्म आ चुके थे इसलिए कुछ थकान सी महसूस कर रही थी. मेरी पैंटी चूतरस से पूरी गीली हो चुकी थी. मैंने आँखें बंद कर लीं और थोड़ी देर तक काजल के बेड में आराम किया.

काजल – आंटी अब आप जाओ.

काजल फ्रेश होकर बाहर आ गयी और पहले से भी ज़्यादा सुंदर लग रही थी. मैं अभी भी बेड पर लेटी हुई थी और मेरी नंगी चूचियों पर तने हुए निप्पल छत को देख रहे थे. मैंने साड़ी से अपनी छाती ढकी और बेड से उतर गयी. मैंने बेड से अपनी ब्लाउज और ब्रा उठाई और बाथरूम को जाने लगी तभी काजल ने मुझे टोक दिया.

काजल – आंटी, मैंने पानी गिरा दिया था इसलिए बाथरूम का फर्श गीला हो गया है. आप साड़ी यही उतार दो तो सही रहेगा.

“हाँ ठीक है.”

मैंने साड़ी उतार दी और अब सिर्फ़ पेटीकोट में खड़ी थी. मेरी चूचियाँ मेरे हिलने डुलने से इधर उधर डोल रही थीं. मैंने ख्याल किया की काजल मेरी चूचियों को प्रशंसा के अंदाज़ में देख रही है , मुझे अपने फिगर पर गर्व महसूस हुआ. और मेरा मन हुआ की उसको अपना पूरा बदन दिखाऊँ.

“पेटीकोट भी यहीं उतारना ठीक रहेगा.”

काजल – जैसा आपको ठीक लगे आंटी.

मैंने पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और वो फर्श पर गिर गया. अब मैं काजल के सामने सिर्फ़ पैंटी में थी. काजल ने कुछ कहा नहीं, लेकिन मेरे नंगे बदन पर जमी उसकी नज़रों में प्रशंसा के भाव थे.

काजल – आंटी आपकी पैंटी खराब हो गयी है. ये पूरी गीली हो चुकी है.

ये सुनकर मैं थोड़ा शरमा गयी और नीचे झुककर देखा की पैंटी के सामने एक गोल धब्बा लगा हुआ है.

“इसको उतारना ही पड़ेगा. और कोई चारा नहीं है. ”

मैं बाथरूम चली गयी और दरवाज़ा बंद कर दिया. वैसे दरवाज़ा बंद करने की कोई ज़रूरत नहीं थी क्यूंकी मैं बेशर्मी से काजल को अपना नंगा बदन दिखा चुकी थी. पैंटी उतारकर मैंने अपने को पानी से साफ किया. और फिर टॉवेल से बदन पोंछ लिया. उसके बाद कमर में टॉवेल लपेटकर ऐसे ही बाथरूम से बाहर आ गयी.

“ऊइईइईइईइई …………”

मैं तो इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकती थी की कमरे में काजल के सिवा कोई और भी हो सकता है. इसलिए मैंने अपनी चूचियाँ भी नहीं ढकी थीं और कमर में लापरवाही से टॉवेल लपेट के बाथरूम से बाहर आ गयी. टॉवेल भी मैंने ठीक से नहीं लपेटा था क्यूंकी अभी तो काजल के सामने मैं सिर्फ़ पैंटी में ही थी तो उससे क्या शरमाना. मेरा पूरा ऊपरी बदन और जांघों से नीचे का हिस्सा पूरा नंगा था. ऐसी हालत में एक हाथ में पैंटी पकड़े मैं लापरवाही से बाथरूम से बाहर आ गयी तो कमरे में क्या देखती हूँ ?




कहानी जारी रहेगी

NOTE





1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब  अलग  होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर  कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा  कही पर भी संभव है  .



2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा  जी  स्वामी, पंडित,  पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन   खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.



3.  इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने  अन्यत्र नहीं पढ़ी है  .



4. जब मैंने ये कहानी यहाँ डालनी शुरू की थी तो मैंने भी इसका अधूरा भाग पढ़ा था और मैंने कुछ आगे लिखने का प्रयास किया और बाद में मालूम चला यह कहानी अंग्रेजी में "समितभाई" द्वारा "गुरु जी का (सेक्स) ट्रीटमेंट" शीर्षक से लिखी गई थी और अधूरी छोड़ दी गई थी। बाद में 2017 में समीर द्वारा हिंदी अनुवाद शुरू किया गया, जिसका शीर्षक था "एक खूबसूरत हाउस वाइफ, गुरुजी के आश्रम में" और लगभग 33% अनुवाद "Xossip" पर किया गया था। अभी तक की कहानी मुलता उन्ही की कहानी पर आधारित है या उसका अनुवाद है और अब कुछ हिस्सों का अनुवाद मैंने किया है ।

कहानी काफी लम्बी है और मेरा प्रयास जारी है इसको पूरा करने का ।




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