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24-01-2021, 07:06 PM
आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07
गुरूजी के कहे अनुसार मैं किचन में गयी और सब्जी काटने में राजेश की मदद की.
उसके बाद कमरे में वापस आकर मैंने जड़ी बूटी वाले पानी से स्नान (हर्बल बाथ) किया. हर्बल बाथ से मैंने बहुत तरोताज़ा महसूस किया. नहाने के बाद मैं थोड़ी देर तक बाथरूम में उस बड़े से मिरर में अपने नंगे बदन को निहारती रही. उस बड़े से मिरर के आगे नहाने से , मुझे हर समय अपना नंगा बदन दिखता था, मुझे लगने लगा था की इससे मुझमे थोड़ी बेशर्मी आ गयी है.
कुछ देर बाद 10 बजे परिमल ने मेरा दरवाजा खटखटाया.
परिमल – मैडम , तैयार हो जाओ. गुरुजी ने आपको टेलर के पास ले जाने को कहा है, वो ब्लाउज आपको फिट नही आ रहा है ना इसलिए.
“लेकिन मैंने तो सुबह गुरुजी को इस बारे में कुछ नही बताया था. उन्हे कैसे पता चला ?”
परिमल – गुरुजी को मंजू ने बता दिया था.
मैंने मन ही मन मंजू का शुक्रिया अदा किया. उसने मुझे गुरुजी के सामने ब्लाउज की बात करने से बचा लिया. और गुरुजी जिस तरह से बिना घुमाए फिराए सीधे प्रश्न करते हैं उससे तो ये सब मेरे लिए एक और शर्मिंदगी भरा अनुभव होता.
ठिगने परिमल की हरकतें हमेशा मेरा मनोरंजन करती थी. मैंने देखा उसकी नज़रें मेरे बदन के निचले हिस्से में ज़्यादा घूम रही हैं. ये देखकर मैंने उससे बातें करते हुए इस बात का ध्यान रखा की उसकी तरफ मेरी पीठ ना हो. कल रात टॉवेल उठाने के चक्कर में ना जाने उसने क्या देख लिया था.
“टेलर आश्रम में ही रहता है ?”
परिमल – नही मैडम , टेलर यहाँ नही रहता. लेकिन यहाँ से ज़्यादा दूर नही है. उसकी दुकान में जाने में 5-10 मिनट लगते हैं. मैडम आपके साथ मैं नही जाऊँगा. आश्रम से बाहर के काम विकास करता है , वो आपको टेलर के पास ले जाएगा.
“ठीक है परिमल. विकास को भेज देना.”
परिमल – और हाँ मैडम, आश्रम से बाहर जाते समय दवाई लेना मत भूलना और पैड भी पहन लेना.
ऐसा बोलते समय परिमल के चेहरे पर दुष्टता वाली मुस्कान थी . फिर वो बाहर चला गया.
मैं अवाक रह गयी . ये ठिगना भी जानता है की मुझे पैंटी के अंदर पैड पहनना है.
हे भगवान ! इस आश्रम में हर किसी को मेरे बारे में एक एक चीज़ मालूम है.
मैंने दरवाज़ा बंद कर दिया और गुरुजी की बताई हुई दवाई ली , जो मुझे आश्रम से बाहर जाते समय खानी थी. फिर मैं पैड पहनने के लिए बाथरूम चली गयी. बाथरूम में मैंने साड़ी और पेटीकोट उतार दी. पैंटी को थोड़ा नीचे उतारकर मैंने अपनी चूत के छेद के ऊपर पैड रखा और पैंटी को ऊपर खींच लिया. उस पैड के मेरी चूत के होठों को छूने से मुझे सनसनी सी हुई. लेकिन फिर मैंने अपना ध्यान उससे हटाकर साड़ी और पेटीकोट पहन ली. टाइट ब्लाउज के ऊपर के दो हुक खुले हुए थे और वो मेरी चूचियों पर कसा हुआ था लेकिन राहत की बात ये थी की टेलर के पास जाने से ये समस्या तो सुलझ जाएगी.
थोड़ी देर बाद विकास आ गया. विकास आकर्षक व्यक्तित्व और गठीले बदन वाला था. उसने बताया की वो आश्रम में योगा सिखाता है और खेल कूद जैसे खो खो , कबड्डी , स्विमिंग भी वही सिखाता है. कोई भी औरत उसकी शारीरिक बनावट को पसंद करती और सच बताऊँ तो मुझे भी उसकी फिज़ीक अच्छी लगी थी.
हम आश्रम से बाहर आ गये और उस बड़े से तालब के किनारे बने रास्ते से होते हुए जाने लगे. वहाँ मुझे ज़्यादा मकान नही दिखे . कुछ ही मकान थे और वो भी दूर दूर बिखरे हुए.
विकास तेज चल रहा था तो मुझे भी उसके साथ तेज चलना पड़ रहा था. तेज चलने से मेरी पैंटी नितंबों की दरार की तरफ सिकुड़ने लगी. मैं जानती थी की अगर मैं ऐसे ही तेज चलती रही तो थोड़ी देर में ही पैंटी पूरी तरह से सिकुड़कर नितंबों के बीच में आ जाएगी. ये मेरे लिए कोई नयी समस्या नही थी , ऐसा अक्सर मेरे साथ होता था. पैंटी के सामने लगा हुआ पैड तो अपनी जगह फिट था, पर पीछे से पैंटी सिकुड़ती जा रही थी. मुझे अनकंफर्टेबल महसूस होने लगा तो मैंने अपनी चाल धीमी कर दी.
मुझे धीमे चलते हुए देखकर विकास भी धीमे चलने लगा. वो तो अच्छा हुआ की विकास ने मुझसे पूछा नही की मेरी चाल धीमी क्यूँ हो गयी है.
जल्दी ही हम टेलर की दुकान में पहुँच गये. गांव का एक कच्चा सा मकान था या फिर झोपड़ा भी कह सकते हैं.
विकास ने दरवाज़े पर खटखटाया तो एक आदमी बाहर आया. वो लगभग 55 – 60 बरस का होगा , दिखने में कमज़ोर लग रहा था. उसने मोटा चश्मा लगाया हुआ था और एक लुंगी पहने हुआ था.
विकास – गोपालजी , ये मैडम को ब्लाउज फिट नही आ रहा है. आप देख लो क्या प्राब्लम है.
गोपालजी – अभी तो मैं नाप ले रहा हूँ. कुछ समय लगेगा.
विकास – ठीक है गोपालजी.
टेलर ने मुझे देखा. उसकी नज़र कमज़ोर लग रही थी क्यूंकी उस मोटे चश्मे से वो मुझे कुछ पल तक देखता रहा. तभी एक और आदमी बाहर आया , वो भी दुबला पतला था. लगभग 40 बरस का होगा. वो भी लुंगी पहने हुए था.
गोपालजी – मंगल , मैडम को अंदर ले जाओ. मैं बाथरूम होकर अभी आता हूँ.
विकास ने धीरे से मुझे बताया की मंगल गोपालजी का भाई है. और ये दोनों एक ब्लाउज कुछ ही घंटे में सिल देते हैं. मैं इस बात से इंप्रेस हुई क्यूंकी हमारे शहर का लेडीज टेलर तो ब्लाउज सिलने में एक हफ़्ता लगाता था.
विकास – मैडम , मेरे ख्याल से गोपालजी से नया ब्लाउज सिलवा लो. मैं पास में गांव जा रहा हूँ. एक घंटे बाद आपको लेने आऊँगा.
फिर विकास चला गया.
मंगल – मेरे साथ आओ मैडम.
मंगल की आवाज़ बहुत रूखी थी और दिखने में भी वो असभ्य लगता था. सभी मर्दों की तरह वो भी मेरी चूचियों को घूर रहा था. वो मुझे अंदर एक छोटे से कमरे में ले गया. दाहिनी तरफ एक सिलाई मशीन रखी थी और बायीं तरफ एक साड़ी लंबी करके लटका रखी थी जैसे परदा बना हो. कमरे में कपड़ों का ढेर लगा हुआ था. कमरे में कोई खिड़की ना होने से थोड़ी घुटन थी. एक हल्की रोशनी वाला बल्ब लगा हुआ था और एक टेबल फैन भी था.
मैं बाहर की तेज रोशनी से अंदर आई थी तो मेरी आँखों को एडजस्ट होने में थोड़ा टाइम लगा. फिर मैंने देखा एक कोने में एक लड़की खड़ी है.
मंगल – मैडम सॉरी , यहाँ ज़्यादा जगह नही है. गोपालजी इस लड़की की नाप लेने के बाद आपका काम करेंगे. तब तक आप स्टूल में बैठ जाओ.
मंगल ने स्टूल मेरी तरफ खिसका दिया लेकिन स्टूल को उसने पकड़े रखा. अगर मैं स्टूल में बैठूं तो मेरे नितंबों का कुछ हिस्सा उसकी अंगुलियों पर लगेगा. मुझे गुस्सा आ गया.
“अगर तुम ऐसे पकड़े रखोगे तो मैं बैठूँगी कैसे ?”
मंगल – मैडम आप गुस्सा मत होओ. मुझे भरोसा नही है की ये स्टूल आपका वजन सहन करेगा या नही. कल ही एक आदमी इसमे बैठते वक़्त गिर गया था , इसलिए मैंने पकड़ रखा है.
स्टूल की हालत देखकर मुझे हँसी आ गयी.
“ये स्टूल भी सेहत में तुम्हारे जैसा ही है.”
मेरी बात पर वो लड़की हंसने लगी. मंगल भी अपने दाँत दिखाते हुए हंसने लगा पर उसने अपने हाथ नही हटाए. अब मुझे स्टूल पर ऐसे ही बैठना पड़ा. मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश करी की स्टूल के बीच में बैठूं फिर भी उसकी अंगुलियों का कुछ हिस्सा मेरे नितंबों के नीचे दब गया.
मंगल को कैसा महसूस हुआ ये तो मैं नही जानती लेकिन साड़ी के बाहर से भी मेरे गोल नितंबों के स्पर्श का आनंद तो उसे आया होगा. उसको जो भी महसूस हुआ हो पर अपने नितंबों के नीचे उसकी अंगुलियों के स्पर्श से मेरी तो धड़कने बढ़ गयी. मैंने फ़ौरन मंगल से हाथ हटाने को कहा और फिर ठीक से बैठ गयी.
अब मैंने उस लड़की को ध्यान से देखा, वो घाघरा चोली पहने हुई थी. उसकी पतली सी चोली से उसके निप्पल की शेप दिख रही थी , जाहिर था की वो ब्रा नही पहनी थी. मैंने मंगल की तरफ देखा की कहीं वो लड़की की छाती को तो नही देख रहा है. पर पाया की वो बदमाश तो मेरी छाती को घूर रहा था. मेरा पल्लू थोड़ा खिसक गया था और ब्लाउज के ऊपरी दो हुक खुले होने से मंगल को मेरी चूचियों का कुछ हिस्सा दिख रहा था. मैंने जल्दी से अपना पल्लू ठीक किया और मंगल जिस फ्री शो के मज़े ले रहा था वो बंद हो गया.
तब तक गोपालजी भी वापस आ गये.
गोपालजी – मैडम , आपको इंतज़ार करना पड़ रहा है. मैं बस 5 मिनट में आपके पास आता हूँ.
अब जो हुआ उससे तो मैं शॉक्ड रह गयी और इससे पहले किसी भी टेलर की दुकान में मैंने ऐसा अपमानजनक दृश्य नही देखा था.
गोपालजी उस लड़की के पास गये जो अपनी चोली सिलवाने आई थी. गोपालजी ने सारे नाप अपने हाथ से लिए , मेरा मतलब है अपनी उंगलियों को फैलाकर. वहाँ कोई नापने का टेप नही था. मैं तो अवाक रह गयी.
गोपालजी ने उस लड़की की बाँहें, कंधे, उसकी पीठ, उसकी कांख और उसकी छाती , सबको अपनी उंगलियों से नापा. मंगल ने एक नापने वाली रस्सी से वेरिफाइ किया और एक कॉपी में लिख लिया.
गोपालजी ने नापते वक़्त उस लड़की की छोटी चूचियों पर कई बार हाथ लगाया पर वो लड़की चुपचाप खड़ी रही , जैसे ये कोई आम बात हो.
फिर गोपालजी ने अपने अंगूठे से उस लड़की के निप्पल को दबाया और अपनी बीच वाली उंगली उसकी चूची की जड़ में रखी और इस तरह से उसकी चोली के कप साइज़ की नाप ली , ये सीन देखकर मुझे लगा जैसे मेरी सांस ही रुक गयी. क्या बेहूदगी है ! ऐसे किसी लड़की के बदन पर आप कैसे हाथ फिरा सकते हो ?
जब सब नाप ले ली तो वो लड़की चली गयी.
अब मेरे दिमाग़ में घूम रहा प्रश्न मुझे पूछना ही था.
“गोपालजी , आप नाप लेने के लिए टेप क्यूँ नही यूज करते ?”
गोपालजी – मैडम , टेप से ज़्यादा भरोसा मुझे अपने हाथों पर है. मैं 30-35 साल से सिलाई कर रहा हूँ और शायद ही कभी ऐसा हुआ हो की मेरे ग्राहक ने कोई शिकायत की हो.
मैडम , आप ये मत समझना की मैं सिर्फ़ गांव वालों के कपड़े सिलता हूँ. मेरे सिले हुए कपड़े शहर में भी जाते हैं. पिछले 10 साल से मैं अंडरगार्मेंट भी सिल रहा हूँ और वो भी शहर भेजे जाते हैं. उसमे भी कोई शिकायत नही आई है. और ये सब मेरे हाथ की नाप से ही बनते हैं.
गोपालजी मुझे कन्विंस करने लगे की हाथ से नाप लेने की उनकी स्टाइल सही है.
गोपालजी – मैडम, उस कपड़ों के ढेर को देखो. ये सब ब्रा , पैंटी शहर भेजी जानी हैं और शहर की दुकानों से आप जैसे लोग इन्हें अच्छी कीमत में ख़रीदेंगे. अगर मेरे नाप लेने का तरीका ग़लत होता , तो क्या मैं इतने लंबे समय से इस धंधे को चला पाता ?
मैंने कपड़ों के ढेर को देखा. वो सब अलग अलग रंग की ब्रा , पैंटीज थीं. कमरे के अंदर आते समय भी मैंने इस कपड़ों के ढेर को देखा था पर उस समय मैंने ठीक से ध्यान नहीं दिया था. मुझे मालूम नहीं था की ब्रा , पैंटी भी ब्लाउज के जैसे सिली जा सकती हैं.
“गोपालजी मैं तो सोचती थी की अंडरगार्मेंट्स फैक्ट्रीज में मशीन से बनाए जाते हैं. “
गोपालजी – नहीं मैडम, सब मशीन से नहीं बनते हैं. कुछ हाथ से भी बनते हैं और ये अलग अलग नाप की ब्रा , पैंटीज मैंने विभिन्न औरतों की हाथ से नाप लेकर बनाए हैं.
मैडम, आप शहर से आई हो , इसलिए मुझे ऐसे नाप लेते देखकर शरम महसूस कर रही हो. लेकिन आप मेरा विश्वास करो , इस तरीके से ब्लाउज में ज़्यादा अच्छी फिटिंग आती है.
आपको समझाने के लिए मैं एक उदाहरण देता हूँ. बाजार में कई तरह के टूथब्रश मिलते हैं. किसी का मुँह आगे से पतला होता है, किसी का बीच में चौड़ा होता है , होता है की नहीं ? लेकिन मैडम , एक बात सोचो की ये इतनी तरह के टूथब्रश होते क्यूँ हैं ? उसका कारण ये है की टूथब्रश उतना फ्लेक्सिबल नहीं होता है जितनी हमारी अँगुलियाँ. आप अपनी अंगुलियों को दाँतों में कैसे भी घुमा सकते हो ना , लेकिन टूथब्रश को नहीं.
मैं गोपालजी की बातों को उत्सुकता से सुन रही थी. वो गांव का आदमी था लेकिन बड़ी अच्छी तरह से अपनी बात समझा रहा था.
गोपालजी – ठीक उसी तरह , औरत के बदन की नाप लेने के लिए टेप सबसे बढ़िया तरीका नहीं है. अंगुलियों और हाथ से ज़्यादा अच्छी तरह से और सही नाप ली जा सकती है. ये मेरा पिछले 30 साल का अनुभव है.
गोपालजी ने अपनी बातों से मुझे थोड़ा बहुत कन्विंस कर दिया था. शुरू में जितना अजीब मुझे लगा था अब उतना नहीं लग रहा था. मैं अब नाप लेने के उनके तरीके को लेकर ज़्यादा परेशान नहीं होना चाहती थी , वैसे भी नाप लेने में 5 मिनट की ही तो बात थी.
गोपालजी – ठीक है मैडम. अब आप अपनी समस्या बताओ. ब्लाउज में आपको क्या परेशानी हो रही है ? ये ब्लाउज भी मेरा ही सिला हुआ है.
हमारी इस बातचीत के दौरान मंगल सिलाई मशीन में किसी कपड़े की सिलाई कर रहा था.
“गोपालजी , आश्रम वालों ने इस ब्लाउज का साइज़ 34 बताया है पर ब्लाउज के कप छोटे हो रहे हैं.”
गोपालजी – मंगल , ट्राइ करने के लिए मैडम को 36 साइज़ का ब्लाउज दो.
मुझे हैरानी हुई की गोपालजी ने मेरे ब्लाउज को देखा भी नहीं की कैसे अनफिट है.
“लेकिन गोपालजी मैं तो 34 साइज़ पहनती हूँ.”
गोपालजी – मैडम , आपने बताया ना की ब्लाउज के कप फिट नहीं आ रहे. तो पहले मुझे उसे ठीक करने दीजिए , बाकी चीज़ें तो मशीन में 5 मिनट में सिली जा सकती हैं ना .
मंगल ने अलमारी में से एक लाल ब्लाउज निकाला. फिर ब्लाउज को फैलाकर उसने ब्लाउज के कप देखे और मेरी चूचियों को घूरा. फिर वो ब्लाउज मुझे दे दिया. उस लफंगे की नज़रें इतनी गंदी थीं की क्या बताऊँ. बिलकुल तमीज नहीं थी उसको. गंवार था पूरा.
मंगल – मैडम , उस साड़ी के पीछे जाओ और ब्लाउज चेंज कर लो.
“लेकिन मैं यहाँ चेंज नहीं कर सकती …..”
पर्दे के लिए वो साड़ी तिरछी लटकायी हुई थी. उस साड़ी से सिर्फ़ मेरी छाती तक का भाग ढक पा रहा था. वो कमरा भी छोटा था , इसलिए मर्दों के सामने मैं कैसे ब्लाउज बदल सकती थी ?
गोपालजी – मैडम , आपने मेरा चश्मा देखा ? इतने मोटे चश्मे से मैं कुछ ही फीट की दूरी पर भी साफ नहीं देख सकता. मैडम , आप निसंकोच होकर कपड़े बदलो , मेरी आँखें बहुत कमजोर हैं.
“नहीं , नहीं , मैं ऐसा नहीं कह रही हूँ…...”
गोपालजी – मंगल , हमारे लिए चाय लेकर आओ.
गोपालजी ने मंगल को चाय लेने बाहर भेजकर मुझे निरुत्तर कर दिया. अब मेरे पास कहने को कुछ नहीं था. मैं कोने में लगी हुई साड़ी के पीछे चली गयी. मैंने दीवार की तरफ मुँह कर लिया क्यूंकी साड़ी से ज़्यादा कुछ नहीं ढक रहा था और वो जगह भी काफ़ी छोटी थी तो गोपालजी मुझसे ज़्यादा दूर नहीं थे.
गोपालजी – मैडम , फर्श में धूल बहुत है , ये आस पास के खेतों से उड़कर अंदर आ जाती है. आप अपनी साड़ी का पल्लू नीचे मत गिराना नहीं तो साड़ी खराब हो जाएगी.
“ठीक है, गोपालजी.”
साड़ी का पल्लू मैं हाथ मे तो पकड़े नहीं रह सकती थी क्यूंकी ब्लाउज उतारने के लिए तो दोनों हाथ यूज करने पड़ते. तो मैंने पल्लू को कमर में खोस दिया और ब्लाउज उतारने लगी. पुराना ब्लाउज उतारने के बाद अब मैं सिर्फ़ ब्रा में थी. मंगल के बाहर जाने से मैंने राहत की सांस ली क्यूंकी उस गंवार के सामने तो मैं ब्लाउज नहीं बदल सकती थी. फिर मैंने नया ब्लाउज पहन लिया. 36 साइज़ का ब्लाउज मेरे लिए हर जगह कुछ ढीला हो रहा था, मेरे कप्स पर, कंधों पर और चूचियों की जड़ में .
अपना पल्लू ठीक करके मैं गोपालजी को ब्लाउज दिखाने उनके पास आ गयी. पल्लू तो मुझे उनके सामने हटाना ही पड़ता फिर भी मैंने ब्लाउज के ऊपर कर लिया.
गोपालजी – मैडम , मेरे ख्याल से आप साड़ी उतार कर रख दो. क्यूंकी एग्ज़ॅक्ट फिटिंग के लिए बार बार ब्लाउज बदलने पड़ेंगे तो साड़ी फर्श में गिरकर खराब हो सकती है.
“ठीक है गोपालजी.”
मंगल वहाँ पर नहीं था तो मैंने साड़ी उतार दी. गोपालजी ने एक कोने से साड़ी पकड़ ली ताकि वो फर्श पर ना गिरे. आश्चर्य की बात थी की एक अंजाने मर्द के सामने बिना साड़ी के भी मुझे अजीब नहीं लग रहा था, शायद गोपालजी की उमर और उनकी कमज़ोर नज़र की वजह से. अब ब्लाउज और पेटीकोट में मैं भी उसी हालत में थी जिसमे वो घाघरा चोली वाली लड़की थी , फरक सिर्फ़ इतना था की उसने अंडरगार्मेंट्स नहीं पहने हुए थे.
तभी मंगल चाय लेकर आ गया.
मंगल – मैडम, ये चाय लो , इसमे खास…...
मुझे उस अवस्था में देखकर मंगल ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी और मुझे घूरने लगा. मेरी ब्लाउज में तनी हुई चूचियाँ और पेटीकोट में मांसल जांघें और सुडौल नितंब देखकर वो गँवार पलकें झपकाना भूल गया. मैंने उसकी तरफ ध्यान ना देना ही उचित समझा.
मंगल – …….. अदरक मिला है.
अब उसने अपना वाक्य पूरा किया.
मेरे रोक पाने से पहले ही उस गँवार ने चाय की ट्रे गंदे फर्श पर रख दी. फर्श ना सिर्फ़ धूल से भरा था बल्कि छोटे मोटे कीड़े मकोडे भी वहाँ थे.
“गोपालजी , आप इस कमरे को साफ क्यूँ नहीं रखते ?”
गोपालजी – मैडम , माफ़ कीजिए कमरा वास्तव में गंदा है पर क्या करें. पहले मैंने इन कीड़े मकोड़ो को मारने की कोशिश की थी पर आस पास गांव के खेत होने की वजह से ये फिर से आ जाते हैं , अब मुझे इनकी आदत हो गयी है.
गोपालजी मुस्कुराए , पर मुझे तो उस कमरे में गंदगी और कीड़े मकोडे देखकर अच्छा नहीं लग रहा था.
गोपालजी – चाय लीजिए मैडम, फिर मैं ब्लाउज की फिटिंग देखूँगा.
गोपालजी ने झुककर ट्रे से चाय का कप उठाया और चाय पीने लगे. मंगल भी सिलाई मशीन के पास अपनी जगह में बैठकर चाय पी रहा था. मैं भी एक दो कदम चलकर ट्रे के पास गयी और झुककर चाय का कप उठाने लगी. जैसे ही मैं झुकी तो मुझे एहसास हुआ की उस ढीले ब्लाउज की वजह से मेरे गले और ब्लाउज के बीच बड़ा गैप हो गया है , जिससे ब्रा में क़ैद मेरी गोरी चूचियाँ दिख रही है. मैंने बाएं हाथ से ब्लाउज को गले में दबाया और दाएं हाथ से चाय का कप उठाया. खड़े होने के बाद मेरी नज़र मंगल पर पड़ी , वो कमीना मुझे ऐसा करते देख मुस्कुरा रहा था. गँवार कहीं का !
फिर मैं चाय पीने लगी.
गोपालजी – ठीक है मैडम , अब मैं आपका ब्लाउज देखता हूँ.
ऐसा कहकर गोपालजी मेरे पास आ गये. गोपालजी की लंबाई मेरे से थोड़ी ज़्यादा थी , इसलिए मेरे ढीले ब्लाउज में ऊपर से उनको चूचियों का ऊपरी हिस्सा दिख रहा था.
गोपालजी – मैडम ये ब्लाउज तो आपको फिट नहीं आ रहा है. मैं देखता हूँ की कितना ढीला हो रहा है.
गोपालजी मेरे नज़दीक़ खड़े थे. उनकी पसीने की गंध मुझे आ रही थी. सबसे पहले उन्होने ब्लाउज की बाँहें देखी. मेरी बायीं बाँह में ब्लाउज के स्लीव के अंदर उन्होने एक उंगली डाली और देखा की कितना ढीला हो रहा है. ब्लाउज के कपड़े को छूते हुए वो मेरी बाँह पर धीरे से अपनी अंगुली को रगड़ रहे थे.
गोपजी – मंगल , बाँहें एक अंगुली ढीली है. अब मैं पीठ पर चेक करता हूँ. मैडम आप पीछे घूम जाओ और मुँह मंगल की तरफ कर लो.
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बहुत सुंदर कहानी हैं पर सारी कहानी एक ही thread मे करे।
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Ye kahani nhi kar sakti bu next story ek trend me likhungi
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(25-01-2021, 11:21 PM)Sumit1234 Wrote: Ye story phele bhi yahi par ruk gayi thi...... Iske aage bhi to likho
Ha likhungi bahut jald
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13-11-2021, 04:27 PM
(This post was last modified: 19-11-2021, 06:41 PM by aamirhydkhan1. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
गुरुजी के आश्रम में सावित्री
इस कहानी "गुरूजी का ट्रीटमेंट" के मूल लेखक समित भाई है जिन्होंने ये कहानी इंग्लिश में लिखी है . कुछ हिस्सों का हिंदी में अनुवाद मेरे दोस्त दीपक ने किया है कुछ भाग नेट पर अन्यत्र भी उपलभ्ध हैं . ये एक महिला की कहानी है जिसकी कोई संतान नहीं है . वो एक आश्रम में जाती है और वहां उसे क्या क्या अनुभव होते हैं.?
इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने अन्यत्र नहीं पढ़ी है .
मेरा प्रयास है इसी कहानी को थोड़ा आगे बढ़ाने का जिसमे रजोनिवृति , परिकरमा, योनि पूजा , लिंग पूजा और महा यज्ञ में उस महिला के साथ क्या क्या हुआ लिखने का प्रयास करूँगा .. अभी कुछ थोड़ा सा प्लाट दिमाग में है और आपके सुझाव आमनत्रित है और मैं तो चाहता हूँ के बाकी लेखक भी यदि कुछ लिख सके तो उनका भी स्वागत है
वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा जी स्वामी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर 10% खराब भी होते हैं. इन 10% खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.
फिर भी जिन्हे ऐसे विषयो से कोई भी दिक्क्त है वे इस कहानी से दूर रहे .
दीपक कुमार
अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . धर्म या मजहब का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा कही पर भी संभव है .
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13-11-2021, 04:44 PM
(This post was last modified: 19-11-2021, 06:40 PM by aamirhydkhan1. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
गुरुजी के आश्रम में सावित्री
CHAPTER 3
दूसरा दिन
दरजी (टेलर) की दूकान
Update 1
मंगल एक कॉपी में नोट कर रहा था। अब मैं पीछे को मुड़ी और मंगल की तरफ़ मुँह कर लिया। मंगल खुलेआम मेरी तनी हुई चूचियों को घूरने लगा। मुझे बहुत इरिटेशन हुई लेकिन क्या करती। उस छोटे से कमरे में गर्मी से मुझे पसीना आने लगा था। मैंने देखा ब्लाउज में कांख पर पसीने से गीले धब्बे लग गये हैं। फिर मैंने सोचा पीछे मुड़ने के बावजूद गोपालजी मेरी पीठ पर ब्लाउज क्यूँ नहीं चेक कर रहा है?
गोपालजी--मैडम, बुरा मत मानो, लेकिन आपकी पैंटी इस ब्लाउज से भी ज़्यादा अनफिट है।
"क्या...?"
गोपालजी--मैडम, प्लीज़ मेरी बात पर नाराज़ मत होइए. जब आप पीछे मुड़ी तो रोशनी आप पर ऐसे पड़ी की मुझे पेटीकोट के अंदर दिख गया। अगर आपको मेरी बात का विश्वास ना हो तो, मंगल से कहिए की वह इस तरफ़ आकर चेक कर ले।
"नही नहीं, कुछ चेक करने की ज़रूरत नही। मुझे आपकी बात पर विश्वास है।"
मुझे यक़ीन था कि टेलर ने मेरे पेटीकोट के अंदर पैंटी देख ली होगी। तभी मैंने जल्दी से मंगल को चेक करने को मना कर दिया। वरना वह गँवार भी मेरे पीछे जाकर उस नज़ारे का मज़ा लेता। शरम से मेरे हाथ अपने आप ही पीछे चले गये और मैंने अपनी हथेलियों से नितंबों को ढकने की कोशिश की।
"लेकिन आप को कैसे पता चला की ...? "
अच्छा ही हुआ की गोपालजी ने मेरी बात काट दी क्यूंकी मुझे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे बोलूँ । मेरी बात पूरी होने से पहले ही वह बीच में बोल पड़ा।
गोपालजी--मैडम, आप ऐसी पैंटी कहाँ से ख़रीदती हो, ये तो पीछे से एक डोरी के जैसे सिकुड गयी है।
मैं थोड़ी देर चुप रही । फिर मैंने सोचा की इस बुड्ढे आदमी को अपनी पैंटी की समस्या बताने में कोई बुराई नहीं है। क्या पता ये मेरी इस समस्या का हल निकाल दे। तब मैंने सारी शरम छोड़कर गोपालजी को बताया की चलते समय पैंटी सिकुड़कर बीच में आ जाती है और मैंने कई अलग-अलग ब्रांड की पैंटीज को ट्राइ किया पर सब में मुझे यही प्राब्लम है।
गोपालजी--मैडम, आपकी समस्या दूर हो गयी समझो। उस कपड़ों के ढेर को देखो। कम से कम 50--60 पैंटीज होंगी उस ढेर में। मेरी बनाई हुई कोई भी पैंटी ऐसे सिकुड़कर बीच में नहीं आती। मंगल, एक पैंटी लाओ, मैं मैडम को दिखाकर समझाता हूँ।
उन दोनों मर्दों के सामने अपनी पैंटी के बारे में बात करने से मुझे शरम आ रही थी तो मैंने बात बदल दी।
"गोपालजी, पहले ब्लाउज ठीक कर दीजिए ना। मैं ऐसे ही कब तक खड़ी रहूंगी?"
गोपालजी--ठीक है मैडम । पहले आपका ब्लाउज ठीक कर देता हूँ।
गोपालजी ने पीछे से गर्दन के नीचे मेरे ब्लाउज को अंगुली डालकर खींचा, कितना ढीला हो रहा है ये देखने के लिए. गोपालजी की अंगुलियों का स्पर्श मेरी पीठ पर हुआ, उसकी गरम साँसें मुझे अपनी गर्दन पर महसूस हुई, मेरे निप्पल ब्रा के अंदर तनकर कड़क हो गये।
मुझे थोड़ा अजीब लगा तो मैंने अपनी पोज़िशन थोड़ी शिफ्ट की। ऐसा करके मैं बुरा फँसी क्यूंकी इससे मेरे नितंब गोपालजी की लुंगी में तने हुए लंड से टकरा गये। गोपालजी ने भी मेरे सुडौल नितंबों की गोलाई को ज़रूर महसूस किया होगा।
उसका सख़्त लंड अपने नितंबों पर महसूस होते ही शरमाकर मैं जल्दी से थोड़ा आगे को हो गयी। मुझे आश्चर्य हुआ, हे भगवान! इस उमर में भी गोपालजी का लंड इतना सख़्त महसूस हो रहा है। ये सोचकर मुझे मन ही मन हँसी आ गयी।
गोपालजी--मैडम, ब्लाउज पीठ पर भी बहुत ढीला है। मंगल पीठ में दो अंगुल ढीला है।
फिर गोपालजी मेरे सामने आ गया और ब्लाउज को देखने लगा। उसके इतना नज़दीक़ होने से मेरी साँसें कुछ तेज हो गयी। सांसो के साथ ऊपर नीचे होती चूचियाँ गोपालजी को दिख रही होंगी। ब्लाउज की फिटिंग देखने के लिए वह मेरे ब्लाउज के बहुत नज़दीक़ अपना चेहरा लाया। मुझे अपनी चूचियों पर उसकी गरम साँसें महसूस हुई. लेकिन मैंने बुरा नहीं माना क्यूंकी उसकी नज़र बहुत कमज़ोर थी।
गोपालजी--मैडम, ब्लाउज आगे से भी बहुत ढीला है।
मेरे ब्लाउज को अंगुली डालकर खींचते हुए गोपालजी बोला ।
गोपालजी ने मेरे ब्लाउज को खींचा तो मंगल की आँखे फैल गयी, वह कमीना कल्पना कर रहा होगा की काश
गोपालजी की जगह मैं होता तो ऐसे ब्लाउज खींचकर अंदर का नज़ारा देख लेता।
गोपालजी--मैडम, अब आप अपने हाथ ऊपर कर लो। मैं नाप लेता हूँ।
मैंने अपने हाथ ऊपर को उठाए तो मेरी चूचियाँ आगे को तन गयी। ब्लाउज में मेरी पसीने से भीगी हुई कांखें भी एक्सपोज़ हो गयी। उन दो मर्दों के लिए तो वह नज़ारा काफ़ी सेक्सी रहा होगा, जो की मंगल का चेहरा बता ही रहा था।
अब गोपालजी ने अपनी बड़ी अंगुली मेरी बायीं चूची की साइड में लगाई और अंगूठा मेरे निप्पल के ऊपर। उनके ऐसे नाप लेने से मेरे बदन में कंपकपी दौड़ गयी। ये आदमी नाप लेने के नाम पर मेरी चूची को दबा रहा है और मैं कुछ नहीं कर सकती। उसके बाद गोपालजी ने निप्पल की जगह अंगुली रखी और हुक की जगह अंगूठा रखा।
गोपालजी--मंगल, कप वन फुल एच(H) l
मंगल ने नोट किया और गोपालजी की फैली हुई अंगुलियों को एक डोरी से नापा।
गोपालजी--मैडम, अब मैं ये जानना चाहता हूँ की आपका ब्लाउज कितना टाइट रखना है, ठीक है?
मैंने हाँ में सर हिला दिया, पर मुझे मालूम नहीं था कि ये बात वह कैसे पता करेगा।
गोपालजी--मैडम, आपको थोड़ा अजीब लगेगा, लेकिन मेरा तरीक़ा यही है। आप ये समझ लो की मेरी हथेली आपका ब्लाउज कवर है। मैं आपकी छाती अपनी हथेली से धीरे से अंदर को दबाऊँगा और जहाँ पर आपको सबसे ठीक लगे वहाँ पर रोक देना, वहीं पर ब्लाउज के कप सबसे अच्छी तरह फिट आएँगे।
हे भगवान! ये हरामी बुड्ढा क्या बोला। एक 28 साल की शादीशुदा औरत की चूचियों को खुलेआम दबाना चाहता है और कहता है आपको थोड़ा अजीब लगेगा। थोड़ा अजीब? कोई मर्द मेरे साथ ऐसा करे तो मैं तो एक थप्पड़ मार दूँगी ।
"लेकिन गोपालजी ऐसा कैसे .........कोई और तरीक़ा भी तो होगा।"
गोपालजी--मैडम, आश्रम से जो 34 साइज़ का ब्लाउज आपको मिला है, उसको मैंने जिस औरत की नाप लेकर बनाया था वह आपसे कुछ पतली थी। अगर आप एग्ज़ॅक्ट साइज़ नापने नहीं दोगी तो ब्लाउज आपको कप में कुछ ढीला या टाइट रहेगा।
"गोपालजी, अगर टेप से नाप लेते तो मुझे कंफर्टेबल रहता। प्लीज़।"
मैं विनती करने के अंदाज़ में बोली। गोपालजी ने ना जाने क्या सोचा पर वह मान गया।
गोपालजी--ठीक है मैडम, अगर आपको अच्छा नहीं लग रहा तो मैं ऐसे नाप नहीं लूँगा। मैं ब्लाउज को आपके कप साइज़ के हिसाब से सिल दूँगा। लेकिन ये आपको थोड़ा ढीला या टाइट रहेगा, आप एडजस्ट कर लेना।
उसकी बात सुनकर मैंने राहत की सांस ली। चलो अब ये ऐसे खुलेआम मेरी चूचियों को तो नहीं दबाएगा। ऐसे नाप लेने के बहाने ना जाने कितनी औरतों की चूचियाँ इसने दबाई होंगी।
कहानी जारी रहेगी
NOTE
1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब अलग होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा कही पर भी संभव है .
2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा जी स्वामी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर 10% खराब भी होते हैं. इन 10% खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.
3. इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने अन्यत्र नहीं पढ़ी है .
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1. मजे - लूट लो जितने मिले
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13-11-2021, 04:53 PM
(This post was last modified: 19-11-2021, 06:39 PM by aamirhydkhan1. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
गुरुजी के आश्रम में सावित्री
CHAPTER 3
दूसरा दिन
दरजी (टेलर) की दूकान
Update 2
सामने आया सांपो का जोड़ा
तभी मंगल ज़ोर से चीखा और मेरी तरफ़ कूद गया, मुझसे टकराते-टकराते बचा। गोपालजी दो तीन क़दम पीछे हो गया और मेरा हाथ खींचकर मुझे भी दो तीन क़दम खींच लिया। मैंने पीछे मुड़कर देखा की क्या हुआ । दरवाजे पर दो साँप खड़े थे।
मंगल--ये तो साँपों का जोड़ा है।
गोपालजी--हाँ, मैंने देख लिया है। कोई भी अपनी जगह से मत हिलना।
साँप दरवाज़े पर थे और अगर वह हमारी तरफ़ बढ़ते तो बचने के लिए कोई जगह नहीं थी क्यूंकी कमरा छोटा था। साँप हमारी तरफ़ देख रहे थे पर कमरे के अंदर को नहीं आ रहे थे। अपने इतने नज़दीक़ साँप देखकर मैं बहुत डर गयी थी। मंगल भी डरा हुआ लग रहा था लेकिन गोपालजी शांत था। गोपालजी ने बताया की साँप तो पहले भी आस पास खेतों में दिखते रहते थे पर ऐसे दरवाज़े पर कभी नहीं आए।
कुछ देर तक गोपालजी ने साँपों को भगाने की कोशिश की। उनकी तरफ़ कोई चीज़ फेंकी, फिर कपड़ा हिलाकर उन्हें भगाने की कोशिश की, पर वह साँप दरवाज़े से नहीं हिले।
साँपों को दरवाज़े से ना हिलते देख डर से मेरा पसीना बहने लगा।
गोपालजी--अब तो एक ही रास्ता बचा है। साँपों को दूध देना पड़ेगा। क्या पता दूध पीकर चले जाएँ, नहीं तो किसी भी समय अंदर की तरफ़ आकर हमें काट सकते हैं।
मुझे भी ये उपाय सही लगा ।
मंगल--लेकिन दूध लेने के लिए मैं बाहर कैसे जाऊँ? दरवाज़े पर तो साँप हैं।
"हाँ गोपालजी, बाहर तो कोई नहीं जा सकता। अब क्या करें?"
गोपालजी ने कुछ देर सोचा, फिर बोला, "मैडम, अब तो सिर्फ़ आप ही इस मुसीबत से बचा सकती हो।"
" मैं? ।मैं क्या कर सकती हूँ?
गोपालजी--मैडम, आपके पास तो नेचुरल दूध है। प्लीज़ थोड़ा-सा दूध निकालकर साँपों को दे दो, क्या पता साँप चले जाएँ।
मैं तो अवाक रह गयी। इस हरामी बुड्ढे की बात का क्या मतलब है? मैं अपनी चूचियों से दूध निकालकर साँपों को पिलाऊँ?
गोपालजी--मैडम, ज़रा ठंडे दिमाग़ से सोचो। दूध पीकर ही ये साँप जाएँगे। आपको चूचियों से दूध निकालने में 2 मिनट ही तो लगेंगे।
मंगल--मैडम, ये छोटा-सा कटोरा है। इसमें दूध निकाल दो।
मैं तो निसंतान थी इसलिए मेरी चूचियों में दूध ही नहीं था। ये बात उन दोनों मर्दों को मालूम नहीं थी। मेरे पास और कोई चारा नहीं था, मुझे बताना ही पड़ा।
"गोपालजी, मैं तो ......मेरा मतलब ......अभी तक मेरा कोई बच्चा नहीं हुआ है। इसलिए वो...। शायद आप समझ जाओगे...।"
गोपालजी समझ गया की मेरी चूचियों में दूध नहीं है।
गोपालजी--ओह, मैं समझ गया मैडम। अब तो आख़िरी उम्मीद भी गयी।
गोपालजी मेरी बात समझ गया, पर कमीना मंगल मेरे पीछे पड़ा रहा।
मंगल--मैडम, मैंने सुना है कि अगर अच्छे से चूचियों को चूसा जाए तो कुँवारी लड़कियों का भी दूध निकल जाता है।
"बकवास बंद करो। गोपालजी प्लीज़!"
गोपालजी--मंगल, बकवास मत करो। क्या मतलब है तुम्हारा? तुम मैडम की चूचियों को चूसोगे और दूध निकल आएगा? मैडम की चूचियों में दूध तभी बनेगा जब मैडम गर्भवती होगी। तुमने सुना नहीं मैडम अभी तक गर्भवती नहीं हुई है।
मैं बहुत एंबरेस्ड फील कर रही थी। मंगल ने एक जनरल सेंस में बात कही थी पर गोपालजी ने सीधे मेरे बारे में ऐसे बोल दिया। शरम से मैं गोपालजी से आँखें नहीं मिला पा रही थी। लेकिन उनके शब्दों से मेरी चूचियाँ कड़क हो गयी।
घबराहट और गर्मी से मुझे इतना पसीना आ रहा था कि ब्लाउज गीला हो गया था और अंदर से सफेद ब्रा दिखने लगी थी। कमर से नीचे भी मैं अश्लील दिखने लगी थी क्यूंकी मेरी जांघों पर पसीने से पेटीकोट चिपक गया था। जिससे मेरी जांघों का शेप दिखने लगा था। मैंने हाथ से पेटीकोट को खींचा और जांघों से अलग कर दिया।
एक बात मुझे हैरान कर रही थी की साँप कमरे के अंदर को नहीं आ रहे थे, वहीं दरवाज़े पर ही कुंडली मारे बैठे थे।
मंगल--अब क्या करें?
कुछ देर तक चुप्पी रही। फिर गोपालजी को एक उपाय सूझा, जिससे अजीब और बेतुकी बात मैंने पहले कभी नहीं सुनी थी।
गोपालजी--हाँ, मिल गया । एक उपाय मिल गया।
गोपालजी ज़ोर से ताली बजाते हुए बोला। मंगल और मैं हैरान होकर गोपालजी को देखने लगे।
गोपालजी--ध्यान से सुनो मंगल। तुम हमें बचा सकते हो।
मेरी ही तरह मंगल की भी कुछ समझ में नहीं आया।
गोपालजी--मेरी बात ध्यान से सुनो। एक ही उपाय है जिससे इन साँपों से छुटकारा मिल सकता है। मैडम की चूचियों में दूध नहीं है इसलिए मैंने ये तरीक़ा सोचा है।
गोपालजी कुछ पल चुप रहा। मैं सोचने लगी अब कौन-सा उपाय बोलेगा ये।
गोपालजी--मैडम, हमारे पास दूध नहीं है लेकिन हम दूध जैसे ही किसी सफेद पानी से साँपों को बेवक़ूफ़ बना सकते हैं। साँप उसमे अंतर नहीं कर पाएँगे। मंगल तुम मुठ मारकर अपना वीर्य इस कटोरे में निकालो और फिर हम इस कटोरे को साँपों के आगे रख देंगे।
कमरे में एकदम चुप्पी छा गयी। गोपालजी का उपाय था तो ठीक, लेकिन उस छोटे से कमरे में एक अनजान आदमी मेरे सामने मुठ मारेगा, ये तो बड़ी शरम वाली बात थी।
मुझे बहुत अनकंफर्टेबल फील हो रहा था लेकिन मेरे पास कोई और उपाय भी नहीं था। कैसे भी साँपों से छुटकारा पाना था । गोपालजी की बात का मैं विरोध भी नहीं कर सकती थी।
मंगल--ये उपाय काम करेगा क्या?
गोपालजी--काम कर भी सकता है और नहीं भी। मैडम, मैं जानता हूँ की आपको थोड़ा अजीब लगेगा पर आपकी चूचियों में दूध नहीं है तो हमारे पास कोई और चारा भी नहीं है।
"मैं समझ सकती हूँ गोपालजी।"
मैं और क्या बोलती। एक तो वैसे ही मैं बहुत देर से सिर्फ़ ब्लाउज पेटीकोट में थी, अब ये ऐसा बेतुका उपाय। मुझे तो इसके बारे में सोचकर ही बदन में झुरजुरी होने लगी थी।
गोपालजी--मंगल। जल्दी करो। साँप किसी भी समय हमारी तरफ़ आ सकते हैं।
मंगल--कैसे जल्दी करूँ। मुझे समय तो लगेगा। कुछ सोचना तो पड़ेगा ना।
उसकी बात पर मुझे हँसी आ गयी। मेरी हँसी देखकर मंगल की हिम्मत बढ़ गयी।
मंगल--मैडम, इस बुड्ढे आदमी को ये भी याद नहीं होगा की कितने साल मुठ मारे हो गये और मुझसे जल्दी करो कह रहा है।
मुझे फिर से उसकी बात पर हँसी आ गयी । माहौल ही कुछ ऐसा था। एक तरफ़ साँपों का डर और दूसरी तरफ़ ऐसी बेहूदा बातें हो रही थी। पर इन सब बातों से मुझे कुछ उत्तेजना भी आ रही थी। उस समय मुझे पता नहीं था कि आश्रम से आते वक़्त जो मैंने दवाई ली है, ये उसका असर हो रहा है।
गोपालजी--ऐसी बात नहीं है। अगर ज़रूरत पड़ी तो मैं तुम्हें दिखाऊँगा की इस उमर में भी मैं क्या कर सकता हूँ।
मंगल--अगर तुम ये करोगे तो तुम्हें हार्ट अटैक आ जाएगा । ग़लत बोल रहा हूँ मैडम?
इस बेहूदे वार्तालाप को सुनकर मुझे मुस्कुराकर सर हिलाना पड़ रहा था।
मंगल अब मुठ मारना शुरू करने वाला था। मेरा दिल जोरो से धड़कने लगा और मेरे निप्पल तनकर कड़क हो गये। मंगल ने दीवार की तरफ़ मुँह कर लिया और अपनी लुंगी उतार दी। अब वह सिर्फ़ अंडरवियर और बनियान (वेस्ट) में था। मैंने देखा उसने अपने दोनों हाथ आगे किए और मुठ मारना शुरू किया। बीच-बीच में पीछे मुड़कर वह दरवाज़े पर साँपों को भी देख रहा था।
कुछ देर बाद मंगल की आवाज़ आई।
मंगल--मैं कुछ सोच ही नहीं पा रहा हूँ। मेरे मन में साँपों का डर हो रहा है। मेरा लंड खड़ा ही नहीं हो पा रहा है।
कमरे में चुप्पी छा गयी। अब मंगल ने हमारी तरफ़ मुँह कर लिया। अंडरवियर के अंदर हाथ डालकर उसने अपने लंड को पकड़ा हुआ था। अंडरवियर पतले कपड़े का था जिससे उसके लटके हुए बड़े लंड की शेप दिख रही थी।
गोपालजी--हम्म्म!.अब क्या करें? मैडम?
मेरे पास बोलने को कुछ नहीं था।
गोपालजी--देखो मंगल, एक काम करो। तुम मैडम की तरफ़ देखो और मुठ मारने की कोशिश करो। औरत को देखने से तुम्हारा काम बनेगा।
"क्या?" ।मैं ज़ोर से चिल्ला पड़ी।
गोपालजी--मैडम, आपको देखने से उसका काम बनता है तो देखने दो ना। हमको सफेद पानी चाहिए बस और कुछ थोड़ी करना है।
"लेकिन गोपालजी, ये तो बिल्कुल ग़लत.....!! "
मुझे इतनी शरम आ रही थी की मेरी आवाज़ ही बंद हो गयी। मेरे विरोध से वह दोनों आदमी रुकने वाले नहीं थे।
गोपालजी--मैडम, प्लीज़ आप सहयोग करो। अगर आपको बहुत शरम आ रही है तो दीवार की तरफ़ मुँह कर लो। मंगल आपको पीछे से देखकर मुठ मारने की कोशिश करेगा।
मंगल--हाँ मैडम, मैं ऐसे कोशिश करूँगा।
मंगल कमीना बेशर्मी से मुस्कुरा रहा था और कोई चारा ना देख मैं राज़ी हो गयी और दीवार की तरफ़ मुँह कर लिया।
मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था क्यूंकी पहले कभी ऐसे परिस्थिति में नहीं फँसी थी। रास्ते में चलते हुए मर्दों की निगाहें मेरी चूचियों और हिलते हुए नितंबों पर मैंने महसूस की थी पर ऐसे जानबूझकर कोई मर्द मेरे बदन को देखे ऐसा तो कभी नहीं हुआ था।
मंगल पेटीकोट में मेरे उभरे हुए नितंबों को देख रहा होगा। मुझे याद है एक बार मैं अपने बेडरूम में बालों में कंघी कर रही थी तो मेरे पति ने पेटीकोट में मेरे नितंबों को देख कर कहा था, 'डार्लिंग तुम्हारे नितंब तो बड़े कद्दू की तरह लग रहे हैं' । शायद मंगल भी वही सोच रहा होगा। मेरे उभरे हुए सुडौल नितंब उन दोनों मर्दों को बड़े मनोहारी लग रहे होंगे।
और कम्बख्त पैंटी भी सिकुड़कर नितंबों के बीच की दरार में आ गयी थी। मेरे लिए वह बड़ी शर्मनाक स्थिति थी की एक अनजान गँवार आदमी मेरे बदन को देखकर मुठ मार रहा था और वह भी मेरी सहमति से।
मंगल--मैडम, आप पीछे से बहुत सुंदर लग रही हो। भगवान का शुक्र है, आपने साड़ी नहीं पहनी है, वरना ये सब ढक जाता।
गोपालजी--मैडम, मंगल सही बोल रहा है। पीछे से आप बहुत आकर्षक लग रही हो।
अब गोपालजी भी मंगल के साथ मेरे बदन की तारीफ कर रहा था।
मैं क्या बोलती । 'प्लीज़ जल्दी करो' इतना ही बोल पाई।
मंगल--मैडम, आप पीछे से बहुत सुंदर लग रही हो। भगवान का शुक्र है, आपने साड़ी नहीं पहनी है, वरना ये सब ढक जाता।
गोपालजी--मैडम, मंगल सही बोल रहा है। पीछे से आप बहुत आकर्षक लग रही हो।
अब गोपालजी भी मंगल के साथ मेरे बदन की तारीफ कर रहा था।
मैं क्या बोलती । 'प्लीज़ जल्दी करो' इतना ही बोल पाई।
कुछ देर बाद फिर से उस लफंगे मंगल की आवाज़ आई ।
मंगल--मैडम, मैं अभी भी नहीं कर पा रहा हूँ। ये साँप अपनी मुंडी हिला रहे हैं, मेरी नज़र बार-बार उन पर चली जा रही है।
"अब उसके लिए मैं क्या कर सकती हूँ?"
मुझे इरिटेशन होने लगी थी।
गोपालजी--मंगल, तुम मैडम के नज़दीक़ आ जाओ. मैं साँपों पर नज़र रखूँगा, डरो मत। मैडम, आप भी इसको जल्दी मुठ मारने में मदद करो।
कहानी जारी रहेगी
NOTE
1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब अलग होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा कही पर भी संभव है .
2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा जी स्वामी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर 10% खराब भी होते हैं. इन 10% खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.
3. इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने अन्यत्र नहीं पढ़ी है .
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14-11-2021, 12:10 PM
(This post was last modified: 19-11-2021, 06:39 PM by aamirhydkhan1. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
गुरुजी के आश्रम में सावित्री
CHAPTER 3 दूसरा दिन
दरजी (टेलर) की दूकान
Update 3
सांपो को दूध
“अब और क्या करू मैं ?”
गोपालजी – मैडम, आप बहुत कुछ कर सकती हो. अभी आप एक मूर्ति के जैसे चुपचाप खड़ी हो. अगर आप थोड़ा सहयोग करो……… मेरा मतलब अगर आप अपनी कमर थोड़ा हिलाओ तो मंगल को आसानी होगी.
“क्या मतलब है आपका , गोपालजी ?”
गोपालजी – मैडम, आप दीवार पर हाथ रखो और एक डांसर के जैसे अपनी कमर हिलाओ. मैडम थोड़ा मंगल के बारे में भी सोचो. दरवाज़े पर साँप मुंडी हिला रहे हैं और हम मंगल से मुठ मारने को कह रहे हैं.
“ठीक है. मैं समझ गयी.”
क्या समझी मैं ? यही की मुझे पेटीकोट में अपने नितंब गोल गोल घुमाने पड़ेंगे जिससे ये कमीना मंगल एक्साइटेड हो जाए और इसका लंड खड़ा हो जाए. हे ईश्वर ! कहाँ फँस गयी थी मैं . पर कोई चारा भी तो नही था. मैंने समय बर्बाद नही किया और जैसा गोपालजी ने बताया वैसा ही करने लगी.
मैंने अपने दोनों हाथ आँखों के लेवल पर दीवार पर रख दिए. ऐसा करने से मेरे बड़े सुडौल नितंब पेटीकोट में पीछे को उभर गये. अब मैं अपनी कमर मटकाते हुए नितंबों को गोल गोल घुमाने लगी. मुझे अपने कॉलेज के दिनों में डांस क्लास की याद आई जब हमारी टीचर एक लय में नितंबों को घुमाने को कहती थी.
गोपालजी और मंगल दोनों मेरे इस भद्दे और अश्लील नृत्य की तारीफ करने लगे. मैंने उन्हें बताया की कॉलेज के दिनों में मैंने डांस सीखा था. मैंने एक नज़र पीछे घुमा कर देखा मंगल मेरे नज़दीक़ आ गया था और उसकी आँखें मेरे हिलते हुए नितंबों पर गड़ी हुई थीं. इस अश्लील नृत्य को करते हुए मैं अब गरम होने लगी थी.
मैंने अपने नितंबों को घुमाना जारी रखा , पीछे से मंगल की गहरी साँसें लेने की आवाज़ सुनाई दे रही थी. एक जाहिल गँवार को मुठ मारने में मदद करने के लिए अश्लील नृत्य करते हुए अब मैं खुद भी उत्तेजना महसूस कर रही थी. मेरी चूचियाँ तन गयी थी और चूत से रस बहने लगा था. ये बड़ी अजीब लेकिन कामुक सिचुएशन थी.
फिर कुछ देर तक पीछे से कोई आवाज़ नही आई तो मुझे बेचैनी होने लगी. मैंने पीछे मुड़कर गोपालजी और मंगल को देखा. मंगल के अंडरवियर में उसका लंड एक रॉड के जैसे तना हुआ था और वो अपने अंडरवियर में हाथ डालकर तेज तेज मुठ मार रहा था. मैं शरमा गयी , लेकिन उस उत्तेजना की हालत में मेरा मन उस तने हुए लंड को देखकर ललचा गया.
मेरे पीछे मुड़कर देखने से मंगल का ध्यान भंग हुआ.
मंगल – अभी नही हुआ मैडम.
अब उस सिचुयेशन में मैं रोमांचित होने लगी थी और मैं खुद को नटखट लड़की जैसा महसूस कर रही थी. मुझे हैरानी हुई की मैं ऐसा क्यूँ महसूस कर रही हूँ ? मैं तो बहुत ही शर्मीली हाउसवाइफ थी, हमेशा बदन ढकने वाले कपड़े पहनती थी. मर्दों के साथ चुहलबाज़ी , अपने बदन की नुमाइश, ये सब तो मेरे स्वभाव में ही नही था.
फिर मैं इन दो अनजाने मर्दों के सामने ऐसे अश्लील नृत्य करते हुए रोमांच क्यूँ महसूस कर रही थी ? ये सब गुरुजी की दी हुई उस दवाई का असर था जो उन्होने मुझसे आश्रम से बाहर जाते हुए खाने को कहा था. मेरे शर्मीलेपन पर वो जड़ी बूटी हावी हो रही थी.
मंगल की आँखों में देखते हुए शायद मैं पहली बार मुस्करायी.
“कितना समय और लगेगा मंगल ?”
गोपालजी – मैडम , मेरे ख्याल से मंगल को आपकी थोड़ी और मदद की ज़रूरत है.
“क्या बात है ? मुझे बताओ गोपालजी . मैं कोई ज्योतिषी नही हूँ. मैं उसके मन की बात थोड़ी पढ़ सकती हूँ.”
मंगल के खड़े लंड से मैं आँखें नही हटा पा रही थी. अंडरवियर के अंदर तने हुए उस रॉड को देखकर मेरा बदन कसमसाने लगा था और मेरी साँसें भारी हो चली थीं.
गोपालजी – मैडम , आप अपना डांस जारी रखो और प्लीज़ मंगल को छूने दो अपने…….
गोपालजी ने जानबूझकर अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया. वो देखना चाहता था मैं उसकी बात पर कैसे रियेक्ट करती हूँ. गोपालजी अनुभवी आदमी था , उसने देख लिया था की अब मैं पूरी गरम हो चुकी हूँ और शायद उसकी बात का विरोध नही करूँगी.
गोपालजी – मैडम , मैं वादा करता हूँ , मंगल आपको कहीं और नही छुएगा. मेरे ख्याल से , आपको छूने से मंगल का पानी जल्दी निकल जाएगा.
आश्रम में आने से पहले , अगर किसी आदमी ने मुझसे ये बात कही होती की वो मेरे नितंबों को छूना चाहता है तो मैं उसे एक थप्पड़ मार देती. वैसे ऐसा नही था की किसी अनजाने आदमी ने मुझे वहाँ पर छुआ ना हो. भीड़भाड़ वाली जगहों में, ट्रेन , बस में कई बार साड़ी या सलवार के ऊपर से , मेरे नितंबों और चूचियों पर , मर्दों को हाथ फेरते हुए मैंने महसूस किया था.
पर वैसा तो सभी औरतों के साथ होता है. भीड़ भरी जगहों पर औरतों के नितंबों और चूचियों को दबाने का मौका मर्द छोड़ते कहाँ हैं , वो तो इसी ताक में रहते हैं. लेकिन जो अभी मेरे साथ हो रहा था वैसा तो किसी औरत के साथ नही हुआ होगा.
लेकिन सच्चाई ये थी की मैं बहुत उत्तेजित हो चुकी थी. उस छोटे कमरे की गर्मी और खुद मेरे बदन की गर्मी से मेरा मन कर रहा था की मैं ब्लाउज और ब्रा भी उतार दूं. वो अश्लील नृत्य करते हुए पसीने से मेरी ब्रा गीली हो चुकी थी और मेरी आगे पीछे हिलती हुई बड़ी चूचियाँ ब्रा को फाड़कर बाहर आने को आतुर थीं.
उत्तेजना के उन पलों में मैं गोपालजी की बात पर राज़ी हो गयी , लेकिन मैंने ऐसा दिखाया की मुझे संकोच हो रहा है.
“ठीक है गोपालजी , जैसा आप कहो.”
मैं फिर से दीवार पर हाथ टिकाकर अपने नितंबों को गोल गोल घुमाने लगी. इस बार मैं कुछ ज़्यादा ही कमर लचका रही थी. मैं वास्तव में ऐसा करते हुए बहुत ही अश्लील लग रही हूँगी , एक 28 साल की औरत सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में अपने नितंबों को ऐसे गोल गोल घुमा रही है. ये दृश्य देखकर मंगल की लार टपक रही होगी क्यूंकी मेरे राज़ी होते ही वो तुरंत मेरे पीछे आ गया और मेरे हिलते हुए नितंबों पर उसने अपना बायां हाथ रख दिया.
मंगल – मैडम , क्या मस्त गांड है आपकी. बहुत ही चिकनी और मुलायम है.
गोपालजी – जब दिखने में इतनी अच्छी है तो सोचो टेस्ट करने में कितनी बढ़िया होगी.
मंगल और गोपालजी की दबी हुई हँसी मैंने सुनी. रास्ते में चलते हुए मैंने कई बार अपने लिए ये कमेंट सुना था ‘ क्या मस्त गांड है ‘ , पर ये तो मेरे सामने ऐसा बोल रहा था.
मंगल एक हाथ से मेरे नितंब को ज़ोर से दबा रहा था और दूसरे हाथ से मुठ मार रहा था. मेरी पैंटी पीछे से सिकुड गयी थी इसलिए मंगल की अंगुलियों और मेरे नितंब के बीच सिर्फ़ पेटीकोट का पतला कपड़ा था.
गोपालजी – मैडम , आप पीछे से बहुत सेक्सी लग रही हो. मंगल तू बड़ी किस्मत वाला है.
मंगल – गोपालजी , अब इस उमर में इन चीज़ों को मत देखो . बेहतर होगा साँपों पर नज़र रखो.
उसकी बात पर हम सब हंस पड़े. मैं बेशर्मी से हंसते हुए अपने नितंबों को हिला रही थी. और वो कमीना मंगल मेरे नितंबों पर हाथ फेरते हुए चिकोटी काट रहा था. अगर कोई मेरा पेटीकोट कमर तक उठाकर देखता तो उसे मेरे नितंब चिकोटी काटने से लाल हो गये दिखते. अब तक मेरी चूत रस बहने से पूरी गीली हो चुकी थी.
फिर मुझे अपने दोनों नितंबों पर मंगल के हाथ महसूस हुए. अब वो अपना लंड हिलाना छोड़कर मेरे दोनों नितंबों को अपने हाथों से हॉर्न के जैसे दबा रहा था. अपने नितंबों के ऐसे मसले जाने से मैं और भी उत्तेजित होकर नितंबों को ज़ोर से हिलाने लगी.
गोपालजी – मंगल जल्दी करो. साँप अंदर को आ रहे हैं.
गोपालजी ने मंगल को सावधान किया पर मंगल ने उसकी बात सुनी भी की नही. क्यूंकी वो तो दोनों हाथों से मेरी गांड को मसलने में लगा हुआ था. एक अनजान आदमी के अपने संवेदनशील अंग को ऐसे मसलने से मैं कामोन्माद में अपने बदन को हिला रही थी. मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थी.
तभी मंगल ने मेरी गांड से अपने हाथ हटा लिए. मैंने सोचा उसने गोपालजी की बात सुन ली होगी , इसलिए डर गया होगा.
लेकिन नही, ऐसा कुछ नही था. उस कमीने को मुझसे और ज़्यादा मज़ा चाहिए था. अभी तक तो वो पेटीकोट के बाहर से मेरी गांड को मसल रहा था और फिर बिना मेरी इजाजत लिए ही मंगल मेरा पेटीकोट ऊपर को उठाने लगा.
ये तुम क्या कर रहे हो ? रूको . रूको. …….गोपालजी !! “
पेटीकोट के बाहर से अपने नितंबों पर मंगल के हाथों के स्पर्श से मुझे बहुत मज़ा मिल रहा था , इसमे कोई दो राय नही थी. लेकिन अब वो मेरा पेटीकोट ऊपर उठाने की कोशिश कर रहा था. अब मुझे डर होने लगा था की ये बदमाश कहीं मेरी इस हालत का फायदा ना उठा ले.
मेरे मना करने पर भी मंगल ने मेरे घुटनों तक पेटीकोट उठा दिया और दोनों हाथों से मेरी मांसल जांघें दबोच ली. उसके खुरदुरे हाथ मेरी मुलायम जांघों को दबा रहे थे और फिर उसने अपने चेहरे को पेटीकोट के बाहर से मेरी गांड में दबा दिया. ये मेरे लिए बड़ी कामुक सिचुयेशन थी. एक अनजाने गँवार मर्द ने मुझे पीछे से पकड़ रखा है.
मेरी पेटीकोट को घुटनों तक उठा दिया , मेरी मांसल जांघों को दबोच रहा है और साथ ही साथ मेरी गांड में अपने चेहरे को भी रगड़ रहा है.
गोपालजी ने मंगल को नही रोका , जबकि उसने वादा किया था की मंगल मुझे कहीं और नही छुएगा. मुझे हल्का विरोध करते हुए कुछ देर तक ऐसी कम्प्रोमाइज़िंग पोजीशन में रहना पड़ा.
फिर उस कमीने ने पेटीकोट के बाहर से मेरे नितंब पर दाँत गड़ा दिए और मेरी गांड की दरार में अपनी नाक घुसा दी. मेरे मुँह से ज़ोर से चीख निकल गयी…………..ऊईईईईईईईईई……………..
एक तो मेरी पैंटी सिकुड़कर बीच की दरार में आ गयी थी और अब ये गँवार उस दरार में अपनी नाक घुसा रहा था. वैसे सच कहूँ तो मुझे भी इससे बहुत मज़ा आ रहा था. दिमाग़ कह रहा था की ये ग़लत हो रहा है पर जड़ी बूटी का असर था की मैं बहुत ही उत्तेजित महसूस कर रही थी.
मंगल के हाथ पेटीकोट के अंदर मेरी जांघों को मसल रहे थे. अब मैं और बर्दाश्त नही कर पाई और चूत से रस बहाते हुए मुझे बहुत तेज ओर्गास्म आ गया.
…………..आआहह………………. ओह्ह ………………..ऊईईईईईईईईई……………….आआहह………….
मेरा पूरा बदन कामोन्माद से कंपकपाने लगा और मेरी पैंटी के अंदर पैड चूत रस से पूरा भीग गया. अब मेरा विरोध बिल्कुल कमजोर पड़ गया था.
मंगल ने मेरी हालत का फायदा उठाने में बिल्कुल देर नही लगाई. मेरी जांघों पर उसके हाथ ऊपर को बढ़ते गये और उसने अपनी अंगुलियों से मेरे उस अंग को छू लिया जिसे मेरे पति के सिवा किसी ने नही छुआ था. हालाँकि मेरा पेटीकोट घुटनों तक था पर मंगल ने अंदर हाथ डालकर पैंटी के बाहर से ही मेरी चूत को मसल दिया.
बहुत ही अजीब परिस्थिति थी, एक तरफ साँपों का डर और दूसरी तरफ एक अनजाने मर्द से काम सुख का आनंद. मुझे याद नही इतना तेज ओर्गास्म मुझे इससे पहले कब आया था. एक नयी तरह की सेक्सुअल फीलिंग आ रही थी.
मंगल भी मेरे साथ ही झड़ गया और इस बार मुझे उसका ‘लंड दर्शन ‘ भी हुआ , जब उसने कटोरे में अपना वीर्य निकाला. ये पहली बार था की मैं अपने पति के सिवा किसी पराए मर्द का लंड देख रही थी. उसका काला तना हुआ लंड कटोरे में वीर्य की धार छोड़ रहा था. मेरे दिल की धड़कने बढ़ गयी . क्या नज़ारा था . सभी औरतें लंड को ऐसे वीर्य छोड़ते हुए पसंद करती हैं पर ऐसे बर्बाद होते नही बल्कि अपनी चूत में.
अब मैं अपने दिमाग़ पर काबू पाने की कोशिश करने लगी, जैसा की सुबह गुरुजी ने बताया था की ‘माइंड कंट्रोल’ करना है. गुरुजी ने कहा था, कहाँ हो , किसके साथ हो, इसकी चिंता नही करनी है, जो हो रहा है उसे होने देना. गुरुजी के बताए अनुसार मुझे दो दिन में चार ओर्गास्म लाने थे जिसमे पहला अभी अभी आ चुका था.
ओर्गास्म आने से बदन की गर्मी निकल चुकी थी और अब मैं पूरे होशो हवास में थी. मैंने जल्दी से अपने कपड़े ठीक किए.
मंगल अधनंगा खड़ा था , झड़ जाने के बाद उसका काला लंड केले के जैसे लटक गया था. मेरी हालत भी उसके लंड जैसी ही थी , बिल्कुल थकी हुई, शक्तिहीन.
गोपालजी ने मंगल से कटोरा लिया और साँपों से कुछ दूरी पर रख दिया. मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ , साँप उस कटोरे में सर डालकर पीने लगे. कुछ ही समय बाद वो दोनों साँप दरवाज़े से बाहर चले गये.
साँपों के जाने से हम सबने राहत की साँस ली.
कहानी जारी रहेगी
NOTE
1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब अलग होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा कही पर भी संभव है .
2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा जी स्वामी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर 10% खराब भी होते हैं. इन 10% खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.
3. इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने अन्यत्र नहीं पढ़ी है .
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15-11-2021, 09:01 PM
(This post was last modified: 19-11-2021, 06:38 PM by aamirhydkhan1. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
गुरुजी के आश्रम में सावित्री
CHAPTER 3 दूसरा दिन
मेला
Update 1
उसके बाद कुछ खास नही हुआ. गोपालजी ने मेरी नाप का ब्लाउज मुझे दिया. मैंने दीवार की तरफ मुँह करके पुराना ब्लाउज उतारा. गोपालजी और मंगल को मेरी गोरी नंगी पीठ के दर्शन हुए जिसमे सिर्फ़ ब्रा का स्ट्रैप था. फिर मैंने नया ब्लाउज पहन लिया , जिसके सभी हुक लग रहे थे , और फिटिंग सही थी.
उसके बाद मैंने साड़ी पहन ली. अब जाकर मुझे चैन आया , साड़ी उतारते समय मैंने ये थोड़ी सोचा था की इतनी देर तक मुझे इन दो मर्दों के सामने सिर्फ़ ब्लाउज पेटीकोट में रहना पड़ेगा.
गोपालजी – ठीक है मैडम. हम साँपों से बच गये. सहयोग करने के लिए आपका शुक्रिया. चलो अंत भला तो सब भला. मैडम , अगर आपको इस ब्लाउज में कोई परेशानी हुई तो मुझे बता देना.
“शुक्रिया गोपालजी.”
गोपालजी – और हाँ मैडम , अगर शाम को आपको समय मिले तो यहाँ आ जाना. मैं आपकी पैंटी की समस्या भी दूर कर दूँगा.
मैंने सर हिला दिया और उस कमरे से बाहर आ गयी. मैं बहुत थक गयी थी और जो कुछ उस कमरे में हुआ उससे बहुत शर्मिंदगी महसूस कर रही थी . मैं जल्दी से जल्दी वहाँ से जाना चाहती थी पर मुझे विकास का इंतज़ार करना पड़ा. करीब 10 मिनट बाद विकास गांव से वापस लौटा तब तक मुझे अपने बदन पर मंगल की घूरती नजरों को सहन करना पड़ा.
आश्रम में आने के बाद सबसे पहले मैंने जड़ी बूटी वाले पानी से नहाया. उससे मुझे फिर से तरो ताज़गी महसूस हुई. नहाने से पहले परिमल आकर मेरा पैड ले गया था, जो मैंने पैंटी में पहना हुआ था.. उसने बताया की आश्रम से हर ‘आउटडोर विज़िट’ के बाद गुरुजी मेरा पैड बदलकर नया पैड देंगे.
दोपहर बाद लंच लेकर मैंने थोड़ी देर बेड में लेटकर आराम किया. लेटे हुए मेरे मन में वही दृश्य घूम रहे थे जो टेलर की दुकान में घटित हुए थे. गोपालजी का मेरे ब्लाउज की नाप लेना,मंगल के मुठ मारने के लिए मेरा वो अश्लील नृत्य करना और फिर मंगल के खुरदुरे हाथों द्वारा मेरे नितंबों और जांघों को मसला जाना.
ये सब सोचते हुए मेरा चेहरा शरम से लाल हो गया. इन सब कामुक दृश्यों को सोचते हुए मुझे ठीक से नींद नही आई.
शाम करीब 5 बजे मंजू ने मेरा दरवाज़ा खटखटाया.
मंजू – मैडम , बहुत थक गयी हो क्या ?
“नही नही. बल्कि मैं तो……”
क्या मंजू जानती है की टेलर की दुकान में क्या हुआ ? विकास ने तो लौटते वक़्त मुझसे कुछ नही पूछा. मंजू से ये बात सीधे सीधे पूछने में मुझे शरम आ रही थी की उसे मालूम है या नही .
मंजू – ठीक है मैडम. तब तो आप मेला देखने जा सकती हो. थोड़ी दूरी पर है , लेकिन अगर आप अभी चली जाओ तो टाइम पर वापस आ जाओगी.
“कौन सा मेला ?”
मंजू – मैडम, ये मेला पास के गांव में लगा है. मेले में आस पास के गांववाले खरीदारी करने जाते हैं. बहुत फेमस है यहाँ. हम लोग तो अपने काम में बिज़ी रहेंगे आप बोर हो जाओगी. इसलिए मेला देख आओ.
मैंने सोचा मंजू ठीक ही तो कह रही है , आश्रम में अभी मेरा कोई काम नही है. अभी ये लोग भी यहाँ बिज़ी रहेंगे , क्यूंकी अभी गुरुजी का ‘दर्शन’ का समय है तो आश्रम में थोड़ी बहुत भीड़ भाड़ होगी . मैं मेला जाने को राज़ी हो गयी.
मंजू – ठीक है मैडम , ये लो नया पैड. और हाँ जाते समय दवाई खाना मत भूलना. जब भी आश्रम से बाहर जाओगी तो वो दवाई खानी है. आप तैयार हो जाओ , मैं 5 मिनट बाद विकास को भेज दूँगी.
मंजू अपने बड़े नितंबों को मटकाते हुए चली गयी. उसको जाते हुए देखती हुई मैं सोचने लगी , वास्तव में इसके नितंब आकर्षित करते हैं.
फिर मैंने दरवाज़ा बंद कर दिया और बाथरूम में चली गयी. ये हर बार पैड बदलना भी बबाल था. पैंटी नीचे करो फिर चूत के छेद पर पैड फिट करो. खैर , ऐसा करना तो था ही. मैंने पैंटी में ठीक से पैड लगाया और हाथ मुँह धोकर कमरे में आ गयी. फिर नाइटगाउन उतारकर साड़ी ब्लाउज पहन लिया.
तब तक विकास आ गया था.
विकास – मैडम , मेला तो थोड़ा दूर है , पैदल नही जा सकते.
“फिर कैसे जाएँगे ?”
विकास – मैडम, हम बैलगाड़ी से जाएँगे. मैंने बैलगाड़ीवाले को बुलाया है वो आता ही होगा.
“ठीक है. कितना समय लगेगा जाने में ?”
मैं कभी बैलगाड़ी में नही बैठी थी , इसलिए उसमें बैठने को उत्सुक थी.
विकास – मैडम, बैलगाड़ी से जाने में थोड़ा समय तो लगेगा पर आप गांव के दृश्य, हरे भरे खेत इन सब को देखने का मज़ा ले सकती हो.
कुछ ही देर में बैलगाड़ी आ गयी और हम उसमें बैठ गये.
गांव के खेतों के बीच बने रास्ते से बैलगाड़ी बहुत धीरे धीरे चल रही रही थी. बहुत सुंदर हरियाली थी हर तरफ, ठंडी हवा भी चल रही थी. विकास मुझे मेले के बारे में बताने लगा.
करीब आधा घंटा ऐसे ही गुजर गया , पर हम अभी तक नही पहुचे थे. मुझे बेचैनी होने लगी.
“विकास, कितना समय और लगेगा ?”
विकास – मैडम, अभी तो हमने आधा रास्ता तय किया है, इतना ही और जाना है. बैलगाड़ी धीरे चल रही है इसलिए टाइम लग रहा है.
शुरू शुरू में तो बैलगाड़ी में बैठना अच्छा लग रहा था पर अब मेरे घुटने दुखने लगे थे. गांव की सड़क भी कच्ची थी तो बैलगाड़ी में बहुत हिचकोले लग रहे थे. मेरी कमर भी दर्द करने लगी थी. बैलगाड़ी में ज़्यादा जगह भी नही थी इसलिए विकास भी सट के बैठा था और मेरे हिलने डुलने को जगह भी नही थी. हिचकोलो से मेरी चूचियाँ भी ब्रा में बहुत उछल रही थीं , शरम से मैंने साड़ी का पल्लू अच्छे से अपने ब्लाउज के ऊपर लपेट लिया.
आख़िर एक घंटे बाद हम मेले में पहुँच ही गये. बैलगाड़ी से उतरने के बाद मेरी कमर, नितंब और घुटने दर्द कर रहे थे. विकास का भी यही हाल हो रहा होगा क्यूंकी उतरने के बाद वो अपने हाथ पैरों की एक्सरसाइज करने लगा. लेकिन मैं तो औरत थी ऐसे सबके सामने हाथ पैर कैसे फैलाती. मैंने सोचा पहले टॉयलेट हो आती हूँ , वहीं हाथ पैर की एक्सरसाइज कर लूँगी.
“विकास, मुझे टॉयलेट जाना है.”
विकास – ठीक है मैडम, लेकिन ये तो गांव का मेला है. यहाँ टॉयलेट शायद ही होगा. अभी पता करता हूँ.
विकास पूछताछ करने चला गया.
विकास – मैडम ,यहाँ कोई टॉयलेट नही है. मर्द तो कहीं पर भी किनारे में कर लेते हैं. औरतें दुकानो के पीछे जाती हैं.
मैं दुविधा में थी क्यूंकी विकास से कैसे कहती की मुझे पेशाब नही करनी है. मुझे तो हाथ पैर की थोड़ी स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज करनी थी.
विकास – मैडम , मैं यहीं खड़ा रहता हूँ , आप उस दुकान के पीछे जाकर कर लो.
मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ. ये आदमी मुझसे खुली जगह में पेशाब करने को कह रहा है, जहाँ पर सबकी नज़र पड़ रही है.
“यहाँ कैसे कर लूँ ?”
मैं कोई छोटी बच्ची तो हूँ नही जो सबके सामने फ्रॉक ऊपर करके कर लूँ. उस दुकान के पीछे एक छोटी सी झाड़ी थी जिससे कुछ भी नही ढक रहा था. वैसे तो शाम हो गयी थी लेकिन अभी अंधेरा ना होने से साफ दिखाई दे रहा था. आस पास गांववाले भी खड़े थे , उन सबके सामने मैं कैसे करती.
विकास – मैडम ये शहर नही गांव है. यहाँ सभी औरतें ऐसे ही कर लेती हैं. शरमाओ मत.
“क्या मतलब ? गांव है तो मैं शरमाऊं नही ? इन सब गांववालों के सामने अपनी साड़ी उठा दूं ?”
विकास – मैडम , मैडम , नाराज़ क्यूँ होती हो. मेरे कहने का मतलब है गांव में शहर के जैसे बंद टॉयलेट नही होते. ज़्यादा से ज़्यादा टाट लगाकर पर्दे बना देते हैं टॉयलेट के लिए, यहाँ वो भी नही है.
“विकास, यहाँ इतने लोग खड़े हैं. मैं बेशरम होकर इनके सामने तो नही बैठ सकती. गांववाली औरतें करती होंगी , मैं ऐसे नही कर सकती. चलो मेले में चलते हैं.”
मेले में धक्का मुक्की
विकास ने ज़्यादा ज़ोर नही दिया और हम दुकानों की तरफ बढ़ गये. मेले में बहुत सारी दुकानें थी और गांववालों की बहुत भीड़भाड़ थी. मेले में घूमने में हमें करीब एक घंटा लग गया. भीड़ की वजह से मुझे विकास से सट के चलना पड़ रहा था. चलते हुए मेरी चूचियों पर विकास की कोहनी कई बार छू गयी.
पहले तो मैंने इससे बचने की कोशिश की लेकिन भीड़ की वजह से उसकी बाँह मुझसे छू जा रही थी , मैंने सोचा कोई बात नही भीड़ की वजह से ऐसा हो जा रहा है.
कुछ देर बाद मुझे लगा की विकास जानबूझकर अपनी बाँह मेरी चूचियों पर रगड़ रहा है. क्यूंकी जहाँ पर कम भीड़ थी वहाँ भी उसकी कोहनी मेरी चूचियों से रगड़ खा रही थी. उसके ऐसे छूने से मुझे भी थोड़ा मज़ा आ रहा था , पर मुझे लगा इतने लोगों के सामने विकास कुछ ज़्यादा ही कर रहा है.
मैं विकास के दायीं तरफ चल रही थी और मेरी बायीं चूची पर विकास अपनी दायीं कोहनी चुभा रहा था. सामने से हमारी तरफ आते लोगों को सब दिख रहा होगा. मैं शरम से विकास से कुछ नही कह पाई , वैसे भी वो कहता भीड़ की वजह से छू जा रहा है , तो कहने से फायदा भी क्या था.
लेकिन उसके ऐसे कोहनी रगड़ने से मेरी चूचियाँ कड़क होकर तन गयीं , मैं भी गरम होने लगी थी. मुझे कुछ ना कहते देख उसकी हिम्मत और बढ़ गयी और उसने अपनी कोहनी को मेरी चूचियों पर दबा दिया. शायद उसे बहुत मज़ा आ रहा था , किसी औरत की चूचियाँ ऐसे दबाने का मौका रोज़ रोज़ थोड़े ही मिलता है.
फिर मैं एक दुकान के आगे रुक गयी और कान के झुमके देखने लगी. विकास भी मेरे से सट के खड़ा था. उसकी गरम साँसें मुझे अपने कंधों पर महसूस हो रही थी.
विकास – मैडम , ये आप पर अच्छे लगेंगे.
ऐसा कहते हुए उसने मुझे कान का झुमका और एक हार दिया. मैंने उससे सुझाव नही माँगा था पर देख लेती हूँ. मैंने वो झुमका पहन कर देखा , ठीक लग रहा था.
विकास – मैडम, हार भी ट्राइ कर लो , अच्छा लगे तो खरीद लेना, मेरे पास पैसे हैं.
दुकानदार ने भी कहा, मैचिंग हार है , झुमके के साथ पहन कर देखो. मैं गले में हार पहनने लगी तभी विकास जबरदस्ती मेरी मदद करने लगा.
विकास – मैडम , आप छोड़ दो , मैं आपके गले में हार पहना देता हूँ.
मैंने देखा विकास की बात पर वो दुकानदार मुस्कुरा रहा है. दुकान में 2-3 और ग्राहक भी थे , वो भी हमें देखने लगे. मैंने सोचा विकास से बहस करूँगी तो और लोगों का भी ध्यान हम पर चला जाएगा , इसलिए चुप रही. लेकिन विकास ने जो किया वो शालीनता की सीमा को लाँघने वाला काम था , वो भी सबके सामने.
विकास मेरे पीछे आया और हार को मेरे गले में डाला और गर्दन के पीछे हुक लगाने लगा. फिर मुझे पीछे से आलिंगन करते हुए हार को आगे से ठीक करने के बहाने से ब्लाउज के ऊपर से मेरी चूचियों पर हाथ फेर दिया.
दुकानदार और उसके ग्राहकों की नज़र भी हम पर थी और उन्होने भी विकास को मेरी चूचियों पर हाथ फेरते हुए देखा. सबके सामने मुझसे ऐसे भद्दे तरह से बिहेव करने से मुझे बुरा लगा. वो लोग मेरे बारे में क्या सोच रहे होंगे ?
अब वो दुकानदार भी मुझमें कुछ ज़्यादा ही इंटरेस्ट लेने लगा और मेरे आगे शीशा पकड़कर कुछ और झुमके , हार दिखाने लगा.
विकास – मैडम , इसको ट्राइ करो. ये भी अच्छा लग रहा है.
“नही विकास, यही ठीक है.”
मैं उसकी मंशा समझ रही थी लेकिन दुकानदार भी पीछे पड़ गया की ये वाला ट्राइ करो. मैंने दूसरा झुमका पहन लिया और विकास मुझे उसका मैचिंग हार पहनाने लगा. इस बार वो और भी ज़्यादा बोल्ड हो गया. हार पहनाने के बहाने विकास, दुकानदार के सामने ही मेरी चूचियाँ छूने लगा. ये वाला हार थोड़ा लंबा था तो मेरी चूचियों से थोड़ा नीचे तक लटक रहा था.
इससे विकास को मेरी चूचियाँ दबाने का बहाना मिल गया. उसने मेरी गर्दन के पीछे हार का हुक लगाया और आगे से हार को एडजस्ट करने के बहाने मेरी तनी हुई चूचियों के ऊपर अपनी बाँह रख दी. एक आदमी मेरे पीछे खड़ा होकर अपनी बाँह मेरी छाती से चिपका रहा है और मैं सबके सामने बेशरम बनकर चुपचाप खड़ी हूँ.
फिर विकास ने दुकानदार से शीशा ले लिया और बड़ी चालाकी से अपने बाएं हाथ में शीशा पकड़कर मेरी छाती के आगे लगा दिया , जैसे मुझे शीशे में हार दिखा रहा हो. उसके ऐसा करने से दुकानदार की आँखों के आगे शीशा लग गया और वो मेरी छाती नही देख सकता था. इस बात का फायदा उठाते हुए विकास ने अपने दाहिने हाथ से मेरी दायीं चूची को पकड़ा और ज़ोर से मसल दिया.
विकास – ये वाला हार ज़्यादा अच्छा है. आपको क्या लगता है मैडम ?
मैं कुछ बोलने की हालत में नही थी क्यूंकी उसके हाथ ने मेरी चूची को दबा रखा था. मैंने अपनी नज़रें दूसरी तरफ घुमाई तो देखा दो लड़के हमें ही देख रहे थे. विकास की नज़र उन पर नही पड़ी थी वो तो कुछ और ही काम करने में व्यस्त था.
इस बार उसने मेरी दायीं चूची को अपनी पूरी हथेली में पकड़ा और तीन चार बार ज़ोर से दबा दिया, हॉर्न के जैसे. ये सब कुछ ही सेकेंड्स की बात थी और खुलेआम सब लोगों के सामने विकास ने मुझसे ऐसे छेड़छाड़ की और मैं कुछ ना कह पायी.
फिर मैंने ये दूसरा वाला झुमके और हार का सेट ले लिया और हम उस दुकान से आगे बढ़ गये.
शाम होने के साथ ही मेले में लोगों की भीड़ बढ़ गयी थी. दुकानों के बीच पतले रास्ते में धक्कामुक्की हो रही थी. मैंने विकास का हाथ पकड़ लिया , और कोई चारा भी नही था वरना मैं पीछे छूट जाती. दूसरा हाथ मैंने अपनी छाती के आगे लगा रखा था नही तो सामने से आने वाले लोगों की बाँहें मेरी चूचियों से छू जा रही थीं.
मैंने विकास से नार्मल बिहेव किया और जो उसने दुकान में मेरे साथ किया , उसको भूल जाना ही ठीक समझा. शायद विकास भी मेरे रिएक्शन की थाह लेने की कोशिश कर रहा था और मुझे कोई विरोध ना करते देख उसकी हिम्मत बढ़ गयी.
विकास – मैडम , ये गांववाले सभ्य नही हैं. थोड़ा बच के रहना.
“हाँ , वो तो मुझे दिख ही रहा है. धक्कामुक्की कर रहे हैं.”
विकास – मैडम , ऐसा करो. मेरा हाथ पकड़कर पीछे चलने की बजाय आप मेरी साइड में आ जाओ. उससे मैं आपको प्रोटेक्ट कर सकूँगा.
मैंने सोचा , ठीक ही कह रहा है , एक तरफ से तो सेफ हो जाऊँगी. फिर मैं उसकी दायीं तरफ आ गयी. लेकिन विकास का कुछ और ही प्लान था. मेरे आगे आते ही उसने लोगो से बचाने के बहाने मेरे दाएं कंधे में अपनी बाँह डाल दी और मुझे अपने से सटा लिया. चलते समय मेरा पूरा बदन उसके बदन से छू रहा था. उसके दाएं हाथ की अंगुलियां मेरी दायीं चूची से कुछ ही इंच ऊपर थीं.
धीरे धीरे उसका हाथ नीचे सरकने लगा और फिर उसकी अंगुलियां मेरी चूची को छूने लगीं. कुछ ही देर बाद उसने हथेली से मेरी दायीं चूची को पकड़ लिया , जैसे दुकान में किया था. अबकी बार वो बहुत कॉन्फिडेंट लग रहा था और चलते हुए आराम से अपनी अंगुलियां मेरी चूची के ऊपर रखे हुए था. उसकी अंगुलियां मेरी चूची की मसाज करने लगीं.
अपनी चूची पर विकास की अंगुलियों के मसाज करने से मैं उत्तेजित होने लगी. थोड़ी देर तक ऐसा ही चलता रहा. कुछ समय बाद विकास मेरी चूची को ज़ोर से दबाने लगा. फिर उसकी अंगुलियां ब्रा और ब्लाउज के बाहर से मेरे निप्पल को ढूंढने लगीं. मैंने देखा सामने की तरफ से आने वाले लोगों की निगाहें विकास के हाथ और मेरी चूची पर ही थी.
अब मेरी बर्दाश्त के बाहर हो गया, सब लोगों के सामने विकास मुझसे ऐसे बिहेव कर रहा था , मुझे बहुत शरम महसूस हो रही थी. उसके ऐसे छूने से मुझे मज़ा आ रहा था और मेरी चूत गीली हो चुकी थी लेकिन सबके सामने खुलेआम ऐसा करना ठीक नही था. सुबह जब टेलर की दुकान पर मैं बेशरम बन गयी थी तब भी कम से कम एक कमरे में तो थी , ये तो खुली जगह थी. मुझे विकास को रोकना ही था.
“विकास, प्लीज़ ठीक से रहो.”
विकास – सॉरी मैडम , लेकिन भीड़ से बचाने के लिए करना पड़ रहा है , वरना लोग आपके बदन से टकरा जाएँगे.
विकास ने अपना बहाना बना दिया. मैं बहस करने के मूड में नही थी. लेकिन उत्तेजित होने के बाद अब मुझे पेशाब लग गयी थी.
आगे क्या हुआ ? कहानी आगे जारी रहेगीl
दीपक कुमार
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16-11-2021, 08:09 PM
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गुरुजी के आश्रम में सावित्री
CHAPTER 3 दूसरा दिन
मेला
Update 2
मेले में टॉयलेट
“विकास मुझे टॉयलेट जाना है. उस समय मैं नही जा पाई थी………”
विकास ने मेरी चूची पर से हाथ हटा लिया और मुझे एक गली से होते हुए दुकानों के पीछे ले गया. मेले में बल्ब जले हुए थे लेकिन दुकानों के पीछे थोड़ा अंधेरा था . दूर खड़े लोगों के लिए साफ देख पाना मुश्किल था. पर मैं अभी भी हिचक रही थी क्यूंकी वहाँ कोई झाड़ी नही थी जिसके पीछे मैं बैठ सकूँ.
विकास – मैडम , अब क्या दिक्कत है ?
“देख नही रहे , यहाँ कोई झाड़ी नही है. कैसे करूँ ?”
विकास – लेकिन मैडम, यहाँ अंधेरे में कौन देख रहा है. उस कोने में जाओ और कर लो.
“इतना अंधेरा भी नही है. मैं तो तुम्हें साफ देख सकती हूँ.”
विकास – मैडम , आप भी ….. ठीक है , मैं आपकी तरफ नही देखूँगा.
वो शरारत से मुस्कुराया लेकिन मैंने उसकी तरफ ध्यान नही दिया. मुझे तो यही फिकर थी की कैसे करूँ.
“कोई आ गया तो ….?”
विकास – मैडम , इसमें टाइम ही कितना लगना है. कुछ ही सेकेंड्स में तो हो जाएगा.
मुझे तो ज़्यादा समय लगना था , क्यूंकी ऐसा तो था नहीं की साड़ी कमर तक उठाओ ,फिर बैठ जाओ और कर लो. मुझे तो पैंटी भी नीचे करनी थी और उसमे लगे पैड को भी सम्हालना था.
विकास – मैडम , अगर आप ऐसे ही देर करोगी तो कोई ना कोई आ जाएगा. इसलिए उस कोने में जाओ और कर लो , मैं यहाँ खड़े होकर ख्याल रखूँगा , कोई आएगा तो बता दूँगा.
विकास ऐसे बोल रहा था जैसे उसकी मौजूदगी से मुझे कोई फरक नही पड़ता. अरे कोई आए ना आए वो खुद भी तो एक मर्द ही है ना.
मैंने फिर से एक नज़र हर तरफ दौड़ाई. वहाँ थोड़ा अंधेरा ज़रूर था पर वो जगह तीन तरफ से खुली थी क्यूंकी एक तरफ दुकानों का पिछला हिस्सा था. और अगर कोई वहाँ आ जाता तो मुझे साफ देख सकता था. लेकिन मेरे पास कोई चारा नही था . मुझे बहुत शरम आ रही थी पर मुझे उस खुली जगह में ही करना पड़ रहा था.
“ विकास, प्लीज़ इस तरफ पीठ कर लो और कोई आए तो मुझे बता देना.”
विकास – मैडम , अगर मैं इस तरफ पीठ करूँगा तो मुझे कैसे पता चलेगा , कोई उस तरफ से आ रहा है या नही ?
मैं सब समझ रही थी की विकास मुझे देखने का मौका हाथ से जाने नही देगा. मगर मजबूरी थी की उसका यहाँ खड़ा रहना भी ज़रूरी था क्यूंकी कोई आएगा तो कम से कम बता तो देगा.
कोई और चारा ना देख मैं राज़ी हो गयी. मैंने देखा मुझे कोने में जाते देख विकास की आँखों में चमक आ गयी है. मैं विकास से 10 – 12 फीट की दूरी पर दुकानों के पीछे चली गयी. उससे आगे जाने जैसा नही था क्यूंकी वहाँ पर दुकानों से लाइट पड़ रही थी.
मैंने विकास की तरफ पीठ कर ली पर मुझे वहाँ बैठने में शरम आ रही थी. पता नही विकास को कितना दिख रहा होगा. मैं थोड़ा सा झुकी और दोनों हाथों से साड़ी और पेटीकोट को अपने नितंबों तक ऊपर उठाया. मेरी नंगी जांघों पर ठंडी हवा का झोंका लगते ही बदन में कंपकपी दौड़ गयी. मुझसे रहा नही गया और मैंने एक नज़र पीछे मुड़कर विकास को देखा.
विकास – मैडम , पीछे मत देखो. जल्दी करो.
विकास मेरी नंगी जांघों को देख रहा था और मुझसे ही कह रहा था की पीछे मत देखो. एक झलक मुझे दिखी की उसका हाथ अपने पैंट पर है. शायद एक औरत को ऐसी हालत में देखकर वो अपने लंड को सहला रहा होगा. मैंने और समय बर्बाद नही किया. जल्दी से पैंटी घुटनों तक नीचे की और पैड एक हाथ में पकड़ लिया.
पैंटी उतरने से विकास को मेरी नंगी गांड का नज़ारा दिख रहा होगा , वैसे मैंने जितना हो सके , साड़ी से उसे ढकने की कोशिश की थी. फिर जब मैं बैठ गयी तो विकास को मेरी बड़ी गांड पूरी तरह से नंगी दिख रही होगी.
मेरे पेशाब करते वक़्त निकलती …….श्ईईई……….की आवाज़ मेरी शरम को और बढ़ा रही थी. मैंने एक बार और पीछे मुड़कर देखा की कहीं कोई आ तो नही रहा है और विकास क्या कर रहा है. लेकिन मुझे हैरानी हुई विकास तो वहाँ था ही नही. उस बैठी हुई पोजीशन में मैं अपने सर को ज़्यादा नही मोड़ पा रही थी.
मेरी पेशाब पूरी होने ही वाली थी और मुझे राहत हुई क्यूंकी वो …… श्ईईई ………..की निकलती आवाज़ से मुझे ज़्यादा शरम आ रही थी. मैं सोच रही थी की विकास कहाँ गया होगा तभी…….
विकास – मैडम, बच के…..
मैं शॉक्ड रह गयी , विकास की आवाज़ बिल्कुल मेरे नजदीक से आई थी. अभी अभी पीछे मुड़कर वो मुझे नही दिखा था क्यूंकी वो तो मेरे आगे आ गया था. मैं उसको अपने सामने खड़ा देखकर सन्न रह गयी क्यूंकी आगे से मेरी चूत , मेरी टाँगें और जांघें नंगी थी और अभी भी थोड़ी पेशाब निकल रही थी. विकास मेरी चूत और उसके ऊपर के काले बाल साफ देख सकता था.
हे भगवान ! ऐसा ह्युमिलिएशन , ऐसी बेइज़्ज़ती तो मेरी कभी नही हुई थी. विकास खुलेआम मेरी नंगी चूत को देख रहा था , मेरा चेहरा बता रहा था की मुझे किस कदर शॉक लगा है और मुझे कितनी शरम आ रही है.
विकास – मैडम , मैडम घबराओ नही. असल में आप चींटियों की बांबी पर बैठ गयी हो इसलिए मैं आपको सावधान करने आ गया.
“ तुम जाओ यहाँ से.”
विकास – मैडम, आपने उनकी बांबी गीली कर दी है, अब चींटियां बाहर आ जाएँगी. संभाल कर…..
विकास एक कदम भी नही हिला और उसकी नज़र एक औरत को पेशाब करते हुए सामने से देखने के नज़ारे का मज़ा ले रही थी, शायद जिंदगी में पहली बार उसे ये मौका मिला होगा.
मैं अब उसके सामने ऐसे नही बैठ सकती थी और उठ खड़ी हुई जबकि मेरे छेद से पेशाब की बूंदे अभी भी निकल रही थीं. अपने बाएं हाथ से मैंने जल्दी से साड़ी और पेटीकोट नीचे कर ली क्यूंकी दाएं हाथ में तो पैड पकड़ा हुआ था.
विकास ने मुझे उस चींटियों की बांबी से धक्का देते हुए हटा दिया. मैंने देखा वो सही कह रहा था क्यूंकी बहुत सारी लाल चींटियां बांबी से निकल आई थीं. मेरी पेशाब से उनमें खलबली मच गयी थी.
मैं ठीक से नही चल पा रही थी क्यूंकी पैंटी अभी भी घुटने में फंसी थी. मुझे पैंटी ऊपर करने से पहले पैड भी लगाना था.
मैं शरम से विकास से आँखें नही मिला पा रही थी. मुझे अभी भी यकीन नही हो रहा था की विकास ने मुझे ऐसे पेशाब करते हुए देख लिया था. मुझे नही पता की उसके दिमाग़ में क्या चल रहा था पर वो नार्मल लग रहा था.
विकास – मैडम , अब हम लेट हो रहे हैं. हमें वापस जाना चाहिए.
“हाँ , मैं भी यहाँ अब और नही रहना चाहती हूँ.”
मैं सोच रही थी की विकास से कैसे कहूं की मुझे अपने कपड़े ठीक करने हैं ,पैड लगाना है.
विकास – ठीक है मैडम, आप यही इंतज़ार करो या दुकानों के आगे. मैं बैलगाड़ीवाले को लेकर आता हूँ.
“नही नही विकास. बैलगाड़ी में नही. मेरे घुटनों और कमर में और दर्द नही चाहिए.”
विकास – लेकिन मैडम……
मैंने उसकी बात काट दी.
“कुछ और आने जाने का साधन भी तो होगा.”
विकास – मैडम, मैंने बताया ना इस रास्ते में ज़्यादा चोइस नही है.
मेरे ज़िद करने पर विकास बैलगाड़ी के सिवा कुछ और साधन ढूँढने चला गया और मुझसे उस झुमके वाली दुकान के आगे इंतज़ार करने को कहा. मैं सोचने लगी अगर कुछ और नही मिला तो उस बैलगाड़ी में ही जाना पड़ेगा, बड़ी मुश्किल हो जाएगी. एक तो बहुत धीरे धीरे चलती है और कमर दर्द अलग से.
अब विकास चला गया तो मैं पैंटी में पैड लगाकर ऊपर करने की सोचने लगी. तभी मैंने देखा वहाँ पर कुछ लोग आ गये हैं तो मुझे उस जगह से जाना पड़ा.
मैं छोटे छोटे कदम से चल रही थी क्यूंकी पैंटी घुटनों में फंसी होने से ठीक से नही चल पा रही थी. मैंने सोचा कोई और जगह देखती हूँ. जल्दी ही मुझे एक दुकान के पीछे कुछ जगह मिल गयी , वहाँ थोड़ा अंधेरा भी था और कोई आदमी भी नही था. मुझे वो जगह सेफ लगी. मैं एक कोने में गयी और जल्दी से साड़ी और पेटीकोट को कमर तक ऊपर उठा लिया.
उसके बाद्र पैंटी को भी घुटनों से थोड़ा ऊपर खींच लिया. फिर से मैंने अपनी नंगी जांघों पर ठंडी हवा का झोंका महसूस किया. जैसे ही पैड को पैंटी में चूत के छेद के ऊपर फिट करने लगी , तभी मुझे किसी की आवाज़ सुनाई दी. मैं एकदम से घबरा गयी क्यूंकी मेरी जवानी बिल्कुल नंगी थी. मैंने इधर उधर देखा पर मुझे कोई नही दिखा.
कोई आवाज़ तो मैंने पक्का सुनी थी पर थोड़ा अंधेरा था तो कुछ पता नही चल रहा था. कुछ पल ऐसे ही ठिठकने के बाद मैंने पैड लगाकर पैंटी ऊपर कर ली और साड़ी पेटीकोट नीचे कर ली. फिर मैं अपनी चूचियों के ऊपर पल्लू ठीक से कर रही थी तो मुझे फिर से किसी की आवाज़ सुनाई दी.
फिर मैं अपनी चूचियों के ऊपर पल्लू ठीक से कर रही थी तो मुझे फिर से किसी की आवाज़ सुनाई दी.
कहानी जारी रहेगी
NOTE
1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब अलग होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा कही पर भी संभव है .
2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा जी स्वामी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर 10% खराब भी होते हैं. इन 10% खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.
3. इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने अन्यत्र नहीं पढ़ी है .
My Stories Running on this Forum
1. मजे - लूट लो जितने मिले
2. दिल्ली में सुलतान V रफीक के बीच युद्ध
3.अंतरंग हमसफ़र
4. पड़ोसियों और अन्य महिलाओ के साथ एक नौजवान के कारनामे
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18-11-2021, 07:22 AM
(This post was last modified: 19-11-2021, 06:41 PM by aamirhydkhan1. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
गुरुजी के आश्रम में सावित्री
CHAPTER 3 दूसरा दिन
मेला
Update 3
लाइव शो
“अरे , कोई आ जाएगा.”
“यहाँ कोई नही है. फिकर मत करो.”
वहाँ थोड़ा अंधेरा था इसलिए मेरी आँखों को एडजस्ट होने में कुछ समय लगा . पर अब मुझे सब साफ दिख रहा था. मुझसे कुछ ही दूरी पर एक पेड़ के पीछे एक लड़की और एक आदमी खड़े थे. वो आपस में ही मस्त थे इसलिए उन्होने मुझे नही देखा था. आदमी करीब 30-35 का होगा लेकिन लड़की 18–19 की थी. लड़की ने घाघरा चोली पहना हुआ था.
आदमी ने लड़की को अपनी बाँहों के घेरे में पकड़ा हुआ था और उसके होठों का चुंबन लेने की कोशिश कर रहा था. लड़की अपना चेहरा इधर उधर घुमाकर उसको चुंबन लेने नही दे रही थी.
फिर उस आदमी ने चोली के बाहर से लड़की की चूची को पकड़ लिया और उसे दबाने लगा. अब लड़की का विरोध धीमा पड़ने लगा. कुछ ही देर में लड़की की अंगुलियां आदमी के बालों को सहलाने लगीं और उस आदमी ने अपने होंठ लड़की के होठों से चिपका दिए. फिर चुंबन लेते हुए ही आदमी ने एक हाथ लड़की के घाघरे के बाहर से ही उसकी गांड पर रख दिया और उसे मसलने लगा.
उनकी कामुक हरकतों से मेरे निप्पल तन गये. उन्हें छुपकर देखने में मुझे बहुत मज़ा आ रहा था. लड़की की छोटी चूचियों को वो आदमी अपने हाथ से मसल रहा था , मेरा दायां हाथ अपने आप ही मेरी चूची पर चला गया.
फिर उस आदमी ने चुंबन लेना बंद कर दिया और लड़की की चूचियों को चोली के बाहर से ही दांतो से काटने लगा. उसने लड़की के घाघरे के अंदर हाथ डालकर घाघरे को उसकी जांघों तक ऊपर उठा दिया और लड़की की चिकनी जांघों पर हाथ फिराने लगा. इस लाइव शो को देखकर मैं अपने हाथ से अपनी चूची दबाने लगी और मेरी चूत गीली हो गयी.
“पारो , पारो , तुम कहाँ हो ?”
अचानक उस आवाज़ को सुनकर वो दोनों और मैं चौंक पड़े. एक बुड्ढा आदमी जो शायद उस लड़की का पिता या कोई रिश्तेदार था, आवाज़ देकर उसे ढूंढने की कोशिश कर रहा था. वो दोनों एकदम बुत बनकर चुपचाप रहे. आवाज़ देते हुए वो बुड्ढा आगे बढ़ गया. उसके कुछ दूर जाने के बाद लड़की ने अपने कपड़े ठीक किए और बुड्ढे के पीछे दौड़ गयी और वो आदमी भी वहाँ से चला गया.
मैं उस बुड्ढे को कोसने लगी, इतना मज़ा आ रहा था , ना जाने आगे वो दोनों और क्या क्या करने वाले थे , पर अब तो लाइव शो खत्म हो गया था. मैं भी वहाँ से निकल आई और झुमके की दुकान के सामने खड़ी होकर विकास का इंतज़ार करने लगी.
कुछ मिनट बाद विकास मुस्कुराते हुए आया.
कहानी जारी रहेगी
NOTE
1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब अलग होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा कही पर भी संभव है .
2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा जी स्वामी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.
3. इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने अन्यत्र नहीं पढ़ी है .
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1. मजे - लूट लो जितने मिले
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18-11-2021, 09:40 PM
(This post was last modified: 19-11-2021, 06:42 PM by aamirhydkhan1. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
गुरुजी के आश्रम में सावित्री
CHAPTER 3 दूसरा दिन
मेले से वापसी
Update 1
विकास – मैडम, आपकी किस्मत अच्छी है , बैलगाड़ी में नही जाना पड़ेगा.
मैं बड़ी खुश हुई लेकिन मुझे मालूम नही था की आगे मेरे साथ क्या होनेवाला है.
“शुक्रिया विकास. क्या जुगाड़ किया तुमने ?”
विकास – मैडम , ऑटो मिल गया.
“भगवान का शुक्र है.”
विकास – लेकिन मैडम यहाँ लोग ऑटो से सफ़र नही करते हैं. यहाँ ऑटो सामान ले जाने के काम आता है. उसमें सामान भरा होने से आपको थोड़ी दिक्कत हो सकती है.
"फिर भी उस बैलगाड़ी से तो दस गुना अच्छा ही होगा और जल्दी भी पहुँचा देगा.”
विकास – हाँ मैडम , ये तो है. बैलगाड़ी में एक घंटा लग गया था , ऑटो में 15 मिनट लगेंगे.
फिर हम मेले से बाहर आ गये . ऑटो कुछ दूरी पर खड़ा था. मैंने देखा ऑटो की छत और साइड्स पर रस्सियों से सामान बँधा हुआ था.
ऑटो के पास एक मोटा , गंजा आदमी खड़ा था जो 50 से तो ऊपर का होगा. वो धोती और हाफ कमीज़ पहने हुआ था.
विकास – मैडम ,ये शर्माजी हैं. ये ऑटो इन्ही का है. हमारी किस्मत अच्छी है की ये भी आश्रम की तरफ ही जा रहे हैं.
शर्माजी – बेटी , तुम्हें थोड़ी दिक्कत होगी क्यूंकी सामान भरा होने से ऑटो में जगह कम है. लेकिन 15 मिनट की परेशानी है फिर तो आश्रम पहुँच ही जाओगी.
मैं उसकी तरफ देखकर मुस्कुरा दी. वो मुझसे बेटी कहकर बात कर रहा था तो मुझे राहत हुई की अच्छा आदमी है , और बुजुर्ग भी है.
ऑटो में आगे की सीट पर भी सामान भरा हुआ था. इसलिए मैं , विकास और शर्माजी पीछे की सीट पर बैठा गये.
ऑटो में बैठने के बाद मुझे एक छोटा कुत्ता दिखा जो शर्माजी के पैरों में बैठा हुआ था.
शर्माजी – ये मोती है , मेरे साथ ही रहता है. बहुत शांत कुत्ता है , कुछ नही करेगा.
मैं शर्माजी के बगल में बैठी थी और मोती मुझे ही देख रहा था . अंजान लोगों को देख कर भी नही भौंका , शांत स्वभाव का ही लग रहा था.
शर्माजी – बेटी , मेरे शरीर को तो देख ही रही हो. इस छोटी सी जगह में आधी जगह तो मैंने ही घेर ली है, तुम्हें परेशानी तो होगी इसलिए मुझे खूब कोसना. क्या पता तुम्हारे कोसने से मैं थोड़ा पतला हो जाऊँ.
उसकी बात पर हम सब हंस पड़े. वास्तव में उस ऑटो में बहुत कम जगह थी. शर्माजी के बगल में मैं बैठी थी और विकास के लिए जगह ही नही थी. मैं थोड़ा शर्माजी की तरफ खिसकी और जैसे तैसे विकास भी बैठ गया. थोड़ी जगह बनाने के लिए शर्माजी ने अपनी बाई बाँह मेरे पीछे सीट के ऊपर रख दी. मेरा चेहरा उसकी कांख के इतना पास था की उसके पसीने की बदबू मेरी नाक में आ रही थी.
शर्माजी – बेटी , अब जगह हो रही है ?
मैंने हाँ बोल दिया. विकास के लिए सबसे कम जगह थी. उसकी दायीं कोहनी मेरी बायीं चूची को छू रही थी. शर्माजी के सामने मैं विकास की कोई ग़लत हरकत नही चाहती थी इसलिए मैंने अपने हाथ से उसकी कोहनी को धकेल दिया.
शर्माजी – हम तीनो को कार पार्क करने के लिए बड़े गेराज की ज़रूरत है.
उसकी बात पर विकास हंस पड़ा पर मुझे समझ नही आया.
“शर्माजी , मैं समझी नही.”
शर्माजी – बेटी , मेरा मतलब था की हम तीनो के पिछवाड़े बड़े बड़े हैं तो इनको पार्क करने के लिए जगह भी बड़ी चाहिए ना.”
अबकी बार हम सब हंस पड़े. मैंने सोचा शर्माजी तो बड़े मजाकिया मालूम होते हैं. तभी मैंने देखा, ऑटो में अंधेरे का फायदा उठाकर विकास अपनी कोहनी मुझसे छुआ रहा है. इस बार मैंने उसकी कोहनी नही हटाई. मुझे विरोध ना करते देखकर विकास अपनी कोहनी से मेरी मुलायम चूची को दबाने लगा.
शर्माजी – अरे..अरे ….मेरा सर……
ऑटो ने किसी गड्ढे में तेज झटका खाया और शर्माजी का सर टकरा गया. ड्राइवर ने तुरंत स्पीड कम कर दी. मैंने शिष्टाचार के नाते शर्माजी से पूछा ज़्यादा तो नही लगी.
शर्माजी – ये रॉड से लग गयी बेटी.
शर्माजी ने अपने माथे की तरफ इशारा किया. मैं उसकी तरफ मुड़ी और उसके माथे को देखने लगी.
“आप अपना हाथ हटाइए , मैं देखती हूँ कोई कट तो नही लगा है.”
उसने अपना हाथ हटा लिया और मैं दाएं हाथ से उसके माथे को देखने लगी. उसकी कोहनी से मेरी दायीं चूची दबने लगी लेकिन मैंने ज़्यादा ध्यान नही दिया क्यूंकी वो बुजुर्ग आदमी था और मुझे बेटी भी कह रहा था. वो मुझसे लंबे कद का था इसलिए उसके माथे पर देखने के लिए मुझे अपनी बाँह उठानी पड़ रही थी. मेरी खड़ी बाँह के नीचे दायीं चूची पर शर्माजी की कोहनी का बढ़ता दबाव मैंने महसूस किया. मैंने सोचा जगह की कमी से ऐसा हो रहा होगा.
शर्माजी – कटा तो नही है ना ?
“साफ तो नही देख पा रही हूँ , लेकिन कटा तो नही दिख रहा है.”
शर्माजी – प्लीज़ थोड़ा ठीक से देख लो बेटी.
मैं अपनी अंगुलियों से उसके माथे पर देखने लगी की कहीं सूजन तो नही आ गयी है , उसकी कोहनी मेरी चूची को दबा रही थी. विकास भी मौके का फायदा उठाने में पीछे नही रहा. वो भी अपनी कोहनी से मेरी बायीं चूची को ज़ोर से दबाने लगा. अपनी कोहनी को वो मेरी चूची पर गोल गोल घुमाकर दबा रहा था. हालत ऐसी थी की ऑटो चल रहा था और दो आदमी मेरी दोनों चूचियों को अपनी कोहनी से दबा रहे थे. विकास का तो मुझे पता था की वो जानबूझकर ऐसा कर रहा है पर शर्माजी के बारे में मैं पक्का नहीं कह सकती ।
शर्माजी का माथा देख लेने के बाद मैं अपना हाथ नीचे लाने को हुई तभी उसका कुत्ता पैरों से उठकर उसकी गोद में आ गया. कुत्ते को जगह देने के चक्कर में उसकी कोहनी से मेरी चूची ज़ोर से दब गयी. अब मुझे अपनी दायीं बाँह शर्माजी के पीछे सीट पर रखनी पड़ी क्यूंकी शर्माजी ने मेरे पीछे से अपनी बाँह हटा ली थी तो जगह कम हो रही थी. पर ऐसा करने से मेरी दायीं चूची को मेरी बाँह का प्रोटेक्शन मिलना बंद हो गया.
विकास – मैडम , हाँ ये सही तरीका है. इससे थोड़ी जगह हो जाएगी. जैसे आपने शर्माजी के पीछे अपनी बाँह रखी हुई है वैसे ही मैं भी अपनी बाँह आपके पीछे रख देता हूँ, इससे आपके लिए भी थोड़ी और जगह बन जाएगी.
शर्माजी – विकास भी समझदार होते जा रहा है. है ना बेटी ?
फिर से सब हंस पड़े. तभी आगे से एक साइकिल वाला आया और हाथ हिलाकर रुकने का इशारा करने लगा. ड्राइवर ने ऑटो रोका तो उस आदमी ने बताया की आगे एक्सीडेंट हुआ है इसलिए रोड बंद है. यहाँ से बायीं रोड से जाना होगा.
विकास – मैडम , ये तो गड़बड़ हो गयी. वो तो बहुत लंबा रास्ता है.
“उस रास्ते से कितना समय लगेगा ?”
विकास – कम से कम 45 मिनट तो लगेंगे.
शर्माजी – और क्या कर सकते हैं. आगे रोड बंद है तो लंबे रास्ते से ही जाना होगा. आधा घंटा ही तो एक्सट्रा लगेगा.
ड्राइवर ने ऑटो मोड़ा और हम दूसरे रास्ते पर आ गये.
शर्माजी – और क्या कर सकते हैं. आगे रोड बंद है तो लंबे रास्ते से ही जाना होगा. आधा घंटा ही तो एक्सट्रा लगेगा.
ड्राइवर ने ऑटो मोड़ा और हम दूसरे रास्ते पर आ गये.
इस दूसरी वाली रोड की हालत खराब थी , बार बार ऑटो में झटके लग रहे थे. इन झटकों से मेरी बड़ी बड़ी चूचियाँ ब्रा में ऊपर नीचे उछलने लगी. विकास ने ये बात नोटिस की. मेरा दायां हाथ शर्माजी के पीछे सीट पर था और विकास का दायां हाथ मेरे पीछे सीट पर था. धीरे धीरे वो अपना हाथ नीचे को सरकाने लगा और मेरी उठी हुई बाँह के नीचे ले आया.
मैंने तिरछी नज़रों से शर्माजी को देखा , शुक्र था की उसका ध्यान अपनी गोद में बैठे हुए कुत्ते मोती पर था. अब विकास मेरी साड़ी के पल्लू के अंदर दायीं चूची को दबाने लगा. मेरी बाँह ऊपर होने से विकास को पूरी आज़ादी मिल गयी थी. ऑटो को लगते हर झटके के साथ विकास ज़ोर से मेरी चूची दबा देता. मुझे भी मज़ा आ रहा था , मैंने पल्लू को थोड़ा दाहिनी तरफ कर दिया ताकि विकास का हाथ ढक जाए और शर्माजी देख ना सके.
तभी ड्राइवर ने ऑटो में अचानक से ब्रेक लगाया , शायद आगे कोई गड्ढा था. लेकिन उससे मुझे शर्मिंदगी हो गयी. विकास का हाथ मेरी चूची पर था. शर्माजी ने अपना दायां हाथ मोती के सर पर रखा हुआ था , उसकी अंगुलियां मेरी दायीं चूची से कुछ ही इंच दूर थी. जब अचानक से ब्रेक लगा तो उसका हाथ मेरी चूची से टकरा गया . इससे मेरी चूची विकास और शर्माजी दोनों के हाथों से एक साथ दब गयी , एक की हथेली के ऊपर दूसरे की हथेली.
शर्माजी – ये क्या तरीका है ? ठीक से चलाओ और आगे रास्ते पर नज़र रखो. जल्दबाज़ी करने की ज़रूरत नही है.
शर्माजी ने ड्राइवर को डाँट दिया और उसने माफी माँग ली. लेकिन उस झटके में मेरी चूची दबाने के लिए किसी आदमी ने मुझसे माफी नही माँगी. शर्माजी के हाथ से टकराने के बाद विकास ने अपना हाथ मेरी चूची से हटाकर मेरे पीछे कंधे पर रख दिया था. उस झटके से मोती भी अपनी जगह से हिल गया था और उसका सर मेरी तरफ खिसक गया था. अब उसके सर के ऊपर रखी हुई शर्माजी की अंगुलियां कभी कभी मेरी चूची से छू जा रही थी.
शर्माजी – बेटी , तुम ठीक हो ? कहीं लगी तो नही ?
मैं थोड़ी कन्फ्यूज़ हुई. ये बुड्ढा मेरा हाल चाल पूछ रहा है और इसकी अंगुलियां मेरी चूची को छू रही हैं . फिर मैंने सोचा मैं इस बुजुर्ग आदमी के बारे में ग़लत सोच रही हूँ , इसे तो मेरी फिकर हो रही है.
“नही , नही. मैं बिल्कुल ठीक हूँ.”
शर्माजी के डाँटने के बाद अब ड्राइवर ऑटो धीमा चला रहा था.
विकास के अपना हाथ मेरी चूची से हटा लेने के बाद मैंने राहत की सांस ली, चलो अब ठीक से बैठेगा. लेकिन उसको चैन कहाँ. वो अपना हाथ मेरे कंधे पर ब्लाउज के ऊपर फिराने लगा. उसकी अंगुलियां मेरे कंधे पर ब्रा के स्ट्रैप को छूती हुई नीचे को जाने लगी और पीछे ब्लाउज के हुक पर आ गयी, मेरे बदन में कंपकपी सी दौड़ गयी. विकास की शरारती हरकतों पर शर्माजी का ध्यान ना जाए , इसलिए मैं मोती से बात करने लगी.
“मोती मोती , यू ….उ…… यू ……”
शर्माजी – मोती , सर हिलाओ.
मैं मोती से ये फालतू बातें कर रही थी . उधर विकास अपनी अंगुलियों से पकड़कर मेरी ब्रा के स्ट्रैप को पीछे खींच रहा था. स्ट्रैप को पीछे की ओर खींचता फिर झटके से छोड़ देता. उसका यही खेल हो रहा था. अगर किसी औरत की ब्रा से कोई ऐसे करे तो वो आराम से कैसे बैठ सकती है ? फिर भी मैं चुपचाप से बैठने की पूरी कोशिश कर रही थी. विकास की इस छेड़छाड़ से मैं उत्तेजित होने लगी थी.
कुछ समय बाद विकास बोर हो गया और उसने मेरी ब्रा के स्ट्रैप से खेलना बंद कर दिया. अब उसका हाथ मेरी पीठ पर ब्लाउज से नीचे को जाने लगा. मेरी स्पाइन को छूते हुए उसका हाथ ब्लाउज और साड़ी के बीच मेरी कमर पर आ गया.
शर्माजी का ध्यान बँटाने के लिए मैं मोती से खेल रही थी. ऑटो को लगते झटको से शर्माजी की अंगुलियां मेरी चूची से छू जा रही थी. बुजुर्ग होने की वजह से मैं ध्यान नही दे रही थी पर एक बार उसका अंगूठा मैंने अपने निप्पल के ऊपर महसूस किया. मुझे लगा ऐसा अंजाने में हो गया होगा लेकिन ऐसे छूने से मेरे निप्पल तन गये.
शर्माजी – बेटी , मोती तुम्हें अच्छा लग रहा है तो अपनी गोद में बैठा लो.
“नही नही , काट लिया तो ?”
शर्माजी – बेटी , उस पर भरोसा करो. तुम्हें दाँत नही गड़ाएगा. ये तुम्हारा पति थोड़े ही है.
उसकी बात से मैं शरमा गयी. मुझे शरमाते देख शर्माजी हंस पड़ा , शायद मुझे हंसाने के लिए.
शर्माजी – बेटी , मेरे मज़ाक से तुम बुरा तो नहीं मान रही हो ना ?
“ना ना. ऐसी कोई बात नही.”
लेकिन मैं अभी भी उसकी बात पर शरमा रही थी. मैंने शर्माजी के पीछे से अपना हाथ हटाया और दोनों हाथों से मोती को अपनी गोद में बिठाने लगी पर मोती अंजाने की गोद में जाने में घबरा रहा था.
शर्माजी – बेटी डरो मत. मोती कुछ नही करेगा. मोती उछल कूद मत करो.
शर्माजी ने मेरी तरफ मुड़कर मोती को मेरी गोद में रख दिया पर मोती उछल कूद कर रहा था इसलिए अभी भी उसने दोनों हाथों से मोती को पकड़ा हुआ था. विकास का हाथ मेरी कमर में था और वो मेरी पेटीकोट के अंदर अपनी अंगुली घुसाने की कोशिश कर रहा था. लेकिन शर्माजी को मेरी तरफ मुड़ा हुआ देखकर विकास ने अपनी हरकत रोक दी.
पर अब दूसरी मुसीबत सामने से थी. मोती को कंट्रोल करने के चक्कर में शर्माजी के हाथों से मेरी चूचियाँ दब जा रही थी. हालाँकि वो बुजुर्ग आदमी था और मुझे लगा की ये अंजाने में हो रहा है पर ऐसे छूने से मुझे उत्तेजना आ रही थी.
कुछ देर बाद मोती शांत हो गया और मेरी गोद में बैठ गया , तब तक शर्माजी की अंगुलियों से कई बार मेरी चूचियाँ दब चुकी थी. विकास ने देखा अब मोती शांत बैठ गया है. उसने फिर से अपनी अंगुली मेरी पेटीकोट में घुसानी शुरू कर दी और मेरी पैंटी छूने की कोशिश करने लगा. वो तो अच्छा था की मैंने पेटीकोट कस के बांधा हुआ था तो विकास ज़्यादा अंदर तक अंगुली नही डाल पा रहा था.
शर्माजी – बेटी , मैं एक हाथ मोती के ऊपर रखता हूँ ताकि ये अगर फिर से उछल कूद करे तो मैं सम्हाल लूँगा.
मैं क्या कहती ? वो मेरी हेल्प के लिए ऐसा बोल रहा था लेकिन मोती के ऊपर हाथ रखने से उसकी अंगुलियां मेरी तनी हुई चूचियों को छूने लगती. मैंने हाँ में सर हिला दिया.
शर्माजी मुझसे और भी सट गया और मोती के सर पर अपना हाथ रख दिया. मोती अपना सर इधर उधर हिला रहा था और शर्माजी की अंगुलियां मेरी चूची पर रगड़ रही थी.
शर्माजी – बेटी , मोती के ऊपर मेरा हाथ है , अब तुम्हें डरने की ज़रूरत नही.
उसके बेटी कहने से मुझे अपने ऊपर ग्लानि हो रही थी की मैं इसके बारे में ग़लत ख्याल कर रही हूँ. मैंने उसकी अंगुलियों के छूने को नज़रअंदाज़ कर दिया. विकास ने मेरी पेटीकोट में अंगुली घुसाने का खेल भी बंद कर दिया था. अब वो हाथ और नीचे ले जाकर साड़ी के बाहर से मेरे नितंबों को छू रहा था. मेरे मक्खन जैसे मुलायम बड़े नितम्बों में बहुत रस था , उन्हें दबाने में उसे बहुत मज़ा आ रहा होगा. उसका पूरा हाथ नही जा पा रहा था इसलिए मैं थोड़ा आगे खिसक गयी.
मेरे आगे खिसकने से उसके हाथ के लिए जगह हो गयी और मज़े लेते हुए मेरे नितंबों पर हाथ फिराने लगा. उसके ऐसे हाथ फिराने से मुझे भी बहुत मज़ा आ रहा था. एक ही दिन में आज ये दूसरा मर्द था जो मेरी गांड दबा रहा था.
अब अंधेरा बढ़ने लगा था. शर्माजी की हथेली भी मोती के सर से खिसक गयी थी. मोती के सर पर उसकी बाँह थी और हथेली ब्लाउज और पल्लू के बाहर से मेरी चूची के ऊपर. एक आदमी पीछे से मेरे बड़े नितंबों से मज़े ले रहा था और दूसरा आगे से चूची पर हाथ फिरा रहा था. मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी. गुरुजी की जड़ी बूटी के असर से उन दोनों के बीच मेरी हालत एक रंडी की जैसी हो गयी थी.
मोती कुछ देर शांत बैठने के बाद फिर से उछल कूद करने लगा. उसको सम्हालने के चक्कर में शर्माजी मेरी चूचियों की मालिश कर दे रहा था.
शर्माजी – बेटी , मोती को तुम्हारी गोद में चैन नही आ रहा. इसको नीचे रख दो.
“हाँ , एक पल के लिए भी ठीक से नही बैठ रहा.”
शर्माजी – शायद मोती से भी ( तुम्हारी ) गर्मी सहन नही हो रही.
उसकी बात पर विकास ज़ोर से हंस पड़ा और शर्माजी के कमेंट की दाद देने के लिए मेरे नितंबों पर ज़ोर से चिकोटी काट ली. मैं भी बेशर्मी से हंस दी.
फिर मैंने मोती को नीचे रख दिया. पर वो नीचे भी शांत नही बैठा और मेरी टांगों को सूंघने लगा. कुछ ही देर में सूंघते सूंघते उसने अपना सर मेरी साड़ी के अंदर घुसा दिया. अब ये मेरे लिए बड़ी अजीब स्थिति हो गयी थी. विकास को भी आश्चर्य हुआ और उसने मेरे नितंबों को दबाना बंद कर दिया.
फिर मैंने मोती को नीचे रख दिया. पर वो नीचे भी शांत नही बैठा और मेरी टांगों को सूंघने लगा. कुछ ही देर में सूंघते सूंघते उसने अपना सर मेरी साड़ी के अंदर घुसा दिया. अब ये मेरे लिए बड़ी अजीब स्थिति हो गयी थी. विकास को भी आश्चर्य हुआ और उसने मेरे नितंबों को दबाना बंद कर दिया.
कहानी जारी रहेगी
NOTE
1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब अलग होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा कही पर भी संभव है .
2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा जी स्वामी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.
3. इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने अन्यत्र नहीं पढ़ी है .
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1. मजे - लूट लो जितने मिले
2. दिल्ली में सुलतान V रफीक के बीच युद्ध
3.अंतरंग हमसफ़र
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गुरुजी के आश्रम में सावित्री
CHAPTER 3 दूसरा दिन
मेले से वापसी
Update 2
औटो में मोती
शर्माजी – मोती , क्या कर रहा है ?
लेकिन मोती अपने मालिक की बात नही सुन रहा था. साड़ी के अंदर मेरी टाँगों पर उसकी गीली नाक मैंने महसूस की.
“आउच….”
शर्माजी – क्या हुआ बेटी ?
मुझे कुछ जवाब देने की ज़रूरत नही थी , मोती ने अपना सर मेरी दोनों टाँगों के बीच साड़ी के अंदर घुसा दिया था ये सबको पता था. मोती अब मेरी जांघों पर जीभ लगाकर पसीने की बूंदे चाट रहा था. उसकी खुरदूरी गीली जीभ से मुझे गुदगुदी और अजीब सी सनसनी हो रही थी.
“ऊऊहह……आआहह…..प्लीज़ इसे बाहर निकालो. “
शर्माजी – बेटी , घबराओ नही. मैं इसे बाहर निकलता हूँ.
विकास – मैडम , हिलो नही, मोती वहाँ काट भी सकता है.
शर्माजी – मोती , मोती चल बाहर आजा …..आजा…..
लेकिन मोती शर्माजी की नही सुन रहा था. वो पेटीकोट के अंदर मेरी नंगी जांघों के निचले हिस्से पर अपनी गीली नाक और जीभ लगाने में व्यस्त था. अपनी त्वचा पर उसकी नाक और जीभ लगने से मेरे बदन में कंपकपी हो रही थी और उत्तेजना आ रही थी. मेरी चूत से रस बहने लगा था.
शर्माजी – बेटी , मोती मेरी नही सुन रहा. तुम अपनी साड़ी थोड़ी ऊपर करो तो मैं इसका सर बाहर निकालूँ.
“प्लीज़ कुछ भी करो पर इसे जल्दी बाहर निकालो…..ऊऊओह…….”
मोती अपनी नाक ऊपर को खिसकाते जा रहा था. उसकी जीभ लगने से मेरी जांघें गीली हो गयी थीं. और ठंडी नाक लगने से अजीब गुदगुदी हो रही थी.
शर्माजी – ठीक है. तुम शांत रहो बेटी. मैं तुम्हारी साड़ी उठाकर मोती को बाहर निकाल देता हूँ.
वो ऐसे कह रहा था जैसे मैंने उसे अपनी साड़ी उठाने की अनुमति दे दी हो.
अब उन दोनों मर्दों के सामने मेरी हालत खराब हो गयी थी. मेरा सीट पर बैठना मुश्किल हो गया था. बदमाश मोती की हरकतों से मेरे बदन में कंपकपी दौड़ जा रही थी. ऊऊहह…..आअहह……करते हुए मैं अपना बदन इधर से उधर हिला रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे कोई मर्द मेरी जांघों को चाट रहा हो और मैं सिसकारियाँ ले रही हूँ. बिल्कुल वैसी ही हालत थी मेरी.
फिर शर्माजी थोड़ा झुका और साड़ी के साथ पेटीकोट को ऊपर उठाने लगा. मेरी हालत देखकर विकास ने अपने बाएं हाथ से मेरा बायां हाथ पकड़ लिया और दाएं हाथ को पीछे से ले जाकर मेरा दायां कंधा पकड़ लिया. उसकी बाँहों का सहारा मिलने से मैं पीछे को उसके बदन पर ढल गयी . इस बात का उसने पूरा फायदा उठाया और मेरी दायीं चूची पर हथेली रख दी. शर्माजी ना देख पाए इसलिए उसने साड़ी के पल्लू के अंदर हाथ डाला और ब्लाउज के बाहर से मेरी चूची सहलाने लगा.
शर्माजी ने मेरी गोरी टाँगों को नंगा करने में ज़रा भी देर नही की और साड़ी को पेटीकोट के साथ घुटनों तक उठा दिया. शर्माजी के साड़ी ऊपर उठाने से मोती और भी ऊपर नाक घुसाने को कोशिश करने लगा. शर्माजी भी अब अपनी उमर का लिहाज भूलकर मौके का फायदा उठाने में लगा था. मेरी साड़ी उठाने के बहाने वो मेरी टाँगों पर हाथ फिराने लगा. मोती को बाहर निकालने में उसकी कोई दिलचस्पी नही थी. अब वो मेरी नंगी जांघों को देखने के लिए जबरदस्ती मेरी साड़ी को घुटनों से ऊपर उठाने लगा.
चूँकि मोती मेरी टाँगों के बीच था इसलिए मेरी टाँगें फैली हुई थीं. अब साड़ी को और ऊपर करना शर्माजी के लिए मुश्किल हो रहा था. लेकिन बुड्ढे को जोश चढ़ा हुआ था. उसने मेरे नितंबों के नीचे हाथ डाला और दायीं जाँघ को थोड़ा ऊपर उठाकर साड़ी ऊपर करने के लिए पूरी जान लगा दी.
“आउच…..प्लीज़ मत करो….”
अब उस हरामी बुड्ढे की वजह से मेरी दायीं जाँघ बिल्कुल नंगी हो गयी थी. मोती अब साड़ी उठने से ढका हुआ नही था पर शर्माजी ने मुझे कोई मौका नही दिया और विकास की तरफ से भी साड़ी ऊपर उठा दी. अब मेरी साड़ी और पेटीकोट पूरी ऊपर हो चुकी थी. वो तो मैंने पैंटी पहनी हुई थी वरना उस चलते हुए ऑटो में मेरी नंगी चूत दिख गयी होती.
मैं मत करो कहती रही , लेकिन ना विकास रुका , ना शर्माजी और ना ही मोती.
साड़ी पूरी ऊपर हो जाने से मोती मेरी पैंटी को सूंघ रहा था. मेरी जांघें उसकी लार से गीली हो गयी थीं. मैं अपने दाएं हाथ से अपनी जांघों को पोंछने लगी क्यूंकी बायां हाथ विकास ने पकड़ा हुआ था. शर्माजी ने मुझे एक बेशरम औरत की तरह कमर तक नंगा कर दिया था. मैं औरत होने की वजह से स्वाभाविक रूप से मत करो कह रही थी पर उन तीनो की हरकतों से मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी. मेरी चूत से रस बह रहा था. मोती मेरे घुटनों पर पैर रखकर पैंटी में नाक लगाकर रस सूंघ रहा था.
विकास पहले साड़ी के पल्लू के अंदर हाथ डालकर धीरे से मेरी चूची सहला रहा था. पर अब मुझे उस हालत में देखकर वो भी पूरा फायदा उठाने लगा. उसने अपने दाएं हाथ से मेरी दायीं चूची को अंगुलियों में पकड़ लिया और ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा. मैं उसके बदन पर सहारे के लिए ढली हुई थी. उसके ज़ोर ज़ोर से चूची दबाने से मेरे लिए सांस लेना मुश्किल हो गया. मेरा बायां हाथ उसने अपने हाथ में पकड़ा हुआ था , मैं उस हालत में उत्तेजना से तड़प रही थी.
शर्माजी उस चलते हुए ऑटो में मुझे नंगा करने पर तुला हुआ था. सब शरम लिहाज छोड़कर वो बुड्ढा अब मेरी नंगी मांसल जांघों को अपने हाथों से मसल रहा था. मैं अपने दाएं हाथ से मोती की लार अपनी जांघों से पोंछने की कोशिश कर रही थी. शर्माजी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और अपने दूसरे हाथ से मेरी जांघों को पोंछने लगा. उसके खुरदुरे हाथों का मेरी मुलायम और चिकनी जांघों पर स्पर्श मुझे पागल कर दे रहा था. वो अपने हाथ को मेरे घुटनों से पैंटी तक लार पोंछने के बहाने से फिरा रहा था.
उसकी अंगुलियां मेरी पैंटी को छू रही थीं. मोती की ठंडी नाक भी मुझे अपनी पैंटी के ऊपर महसूस हो रही थी. वो तो गुरुजी का पैड चूत के ऊपर लगा हुआ था वरना शर्माजी की अंगुलियां और मोती की नाक मेरी चूत को छू देती.
ऑटो धीमे चल रहा था और अंदर तीनो ने मेरा बुरा हाल कर रखा था. अब मैं कोई विरोध भी नही कर सकती थी क्यूंकी एक एक हाथ दोनों ने पकड़ रखा था. मोती अब मेरी नंगी जांघों पर बैठकर पैंटी सूंघ रहा था और कभी नाक ऊपर उठाकर मेरी चूचियों पर लगा देता.
शर्माजी मेरी जांघों पर हाथ फिराने के बाद फिर से मेरी साड़ी के पीछे पड़ गया. उसने मेरे नितंबों को सीट से थोड़ा ऊपर उठाकर साड़ी और पेटीकोट को मेरे नीचे से ऊपर खींच लिया. अब कमर से नीचे मैं पूरी नंगी थी सिवाय एक छोटी सी पैंटी के. पैंटी भी पीछे से सिकुड़कर नितंबो की दरार में आ गयी थी. जब साड़ी और पेटीकोट मेरे नीचे से निकल गये तो मुझे अपने नितंबों पर ऑटो की ठंडी सीट महसूस हुई. मेरे बदन में कंपकपी की लहर सी दौड़ गयी. और चूत से रस बहाते हुए मैं झड़ गयी.
“ऊऊओ…. आह…….प्लीज़……ये क्या कर रहे हो ?”
अब बहुत हो गया था. सिचुयेशन आउट ऑफ कंट्रोल होती जा रही थी. मुझे विरोध करना ही था. पर मुझे सुनने वाला कौन था.
“कम से कम मोती को तो हटा दो.”
शर्माजी और उसके मोती की वजह से मुझे ओर्गास्म आ गया. विकास ने मुझे सहारा देते हुए पकड़े रखा था लेकिन मेरी दायीं चूची पूरी निचोड़ डाली थी. मेरी साड़ी का पल्लू ब्लाउज के ऊपर दायीं तरफ को खिसक गया था. विकास ने अपना हाथ छिपाने के लिए पल्लू को दायीं चूची के ऊपर रखा था. अब मोती अपनी नाक ऊपर करके मेरी चूचियों पर लगा रहा था.
शर्माजी ने अब मेरा हाथ छोड़ दिया और अपना बायां हाथ मेरे पीछे ले गया. मैंने सोचा पीछे सीट पर हाथ रख रहा है पर वो तो नीचे मेरी पैंटी की तरफ हाथ ले गया. फिर अपने दाएं हाथ से उसने मुझे थोड़ा खिसकाया और अपनी बायीं हथेली मेरे नितंबों के नीचे डाल दी.
“आउच….”
अब मैं शर्माजी की हथेली के ऊपर बैठी थी और ऑटो को लगते हर झटके के साथ मेरे नितंबों और सीट के बीच में उसकी हथेली दब जा रही थी. ऐसा अनुभव तो मुझे कभी नही हुआ था. पर सच बताऊँ तो मुझे बहुत मज़ा आ रहा था. मेरी पैंटी बीच में सिकुड़ी हुई थी , एक तरह से पूरे नंगे नितंबों के नीचे उसकी हथेली का स्पर्श मुझे पागल कर दे रहा था. मेरी चूत से रस निकल कर पैंटी पूरी गीली हो गयी थी. मोती भी अपने मालिक की तरह मेरे पीछे पड़ा था. अब वो मेरी बायीं चूची को , जिसके ऊपर से साड़ी का पल्लू हट गया था, ब्लाउज के ऊपर से चाट रहा था.
“विकास मोती को हटाओ. मुझे वहाँ पर काट लेगा तो….”
मुझे बहुत मस्ती चढ़ी हुई थी. इन तीनो की हरकतों से मैं कामोन्माद में थी. शर्माजी की हथेली का मेरे नंगे नितंबों पर स्पर्श मुझे रोमांचित कर दे रहा था.
शर्माजी – बेटी , फिकर मत करो. मैं तुम्हें बचा लूँगा.
शर्माजी ने मोती के मुँह के आगे अपनी दूसरी हथेली लगाकर मेरी बायीं चूची ढक दी. उसके लिए तो बहाना हो गया. अब मोती की जीभ और मेरे ब्लाउज के बीच उसकी हथेली थी. उसने अपनी हाथ से मेरी चूची को पकड़ा और ज़ोर से दबाना शुरू कर दिया. अब दोनों चूचियों को दो मर्द दबा रहे थे और मोती चुपचाप देख रहा था.
“ऊऊऊहह………आआआहह……….मत करो प्लीज़ईईई…..”
मुझे एक और ओर्गास्म आ गया.
शर्माजी और विकास दोनों ने मेरी एक एक चूची पकड़ी हुई थी और शर्माजी दूसरे हाथ से मेरे नितंबों को मसल रहा था. विकास ने अब मेरा हाथ छोड़ दिया और अपना बायां हाथ आगे ले जाकर मेरी पैंटी को छूने लगा. दोनों मर्द मेरी हालत का फायदा उठाने में कोई कसर नही छोड़ रहे थे. शर्माजी की भारी साँसें मुझे अपने कंधे के पास महसूस हो रही थी , अपनी उमर के लिहाज से उसके लिए भी शायद ये बहुत ज़्यादा हो गया था.
गुरुजी के दिए पैड को मैंने चूतरस से पूरी तरह भिगो दिया था. और अब मैं निढाल पड़ गयी थी. विकास ने अपना हाथ मेरी दायीं चूची से हटा लिया. पर शर्माजी का मन अभी नही भरा था. वो अभी भी मेरी बायीं चूची को दबा रहा था. मेरे नितंबों की गोलाई नापता हुआ हाथ भी उसने नही हटाया था. आज तक किसी ने भी ऐसे मेरे नंगे नितंबों को नही मसला था.
तभी ड्राइवर ने बताया की अब हम मेन रोड पर आ गये हैं. खुशकिस्मती से वो हमें नही देख सकता था क्यूंकी उसकी सीट के पीछे भी समान भरा हुआ था.
शर्माजी – बेटी , अपनी साड़ी ठीक कर लो , नही तो सामने से आते ऑटोवालों का एक्सीडेंट हो जाएगा.
उसकी बात पर विकास हंस पड़ा. मैं भी मुस्कुरा दी , पूरी बेशरम जो बन गयी थी. मैंने अपने कपड़ों की हालत को देखकर एक लंबी सांस ली. मुझे हैरानी हो रही थी की इतनी उत्तेजना आने के बाद भी मुझे चुदाई की बहुत इच्छा नही हुई. मैंने सोचा शायद गुरुजी की जड़ी बूटी का असर हो . क्यूंकी नॉर्मल सिचुयेशन में कोई भी औरत अगर इतनी ज़्यादा एक्साइटेड होती तो बिना चुदाई किए नही रह पाती.
उत्तेजना खत्म होने के बाद मैं अब होश में आई और कपड़े ठीक करने लगी, पर साड़ी अटकी हुई थी क्यूंकी बुड्ढे का हाथ अभी भी मेरे नितंबों के नीचे था. मैं एक जवान शादीशुदा औरत , एक अंजाने आदमी की हथेली में बैठी हूँ , क्या किया मैंने ये, अब मुझे बहुत शरम आई. मैंने अपने नितंबों को थोड़ा सा ऊपर उठाया और बुड्ढे ने अपना हाथ बाहर निकाल लिया. फिर उसने मोती को मेरी गोद से नीचे उतार दिया.
मैंने जल्दी से साड़ी नीचे की और अपनी नंगी जांघों और टाँगों को ढक दिया , जो इतनी देर से खुली पड़ी थीं. फिर मैंने ब्लाउज के ऊपर साड़ी के पल्लू को ठीक किया और इन दोनों मर्दों के हाथों से बुरी तरह निचोड़ी गयी चूचियों को ढक दिया. उसी समय मैंने देखा शर्माजी अपनी धोती में लंड को एडजस्ट कर रहा है. शायद मुझे चोद ना पाने के लिए उसे सांत्वना दे रहा होगा.
शर्माजी – बेटी , तुम्हारा ब्लाउज गीला हो गया है, शायद दूध निकल आया है. रुमाल दूं पोंछने के लिए ?
“नही नही. ये दूध नही है. मोती ने जीभ से गीला कर दिया.”
विकास – मैडम को अभी बच्चा नही हुआ है. उसी के इलाज़ के लिए तो गुरुजी की शरण में आई है.
शर्माजी – ओह सॉरी बेटी. लेकिन गुरुजी की कृपा से तुम ज़रूर माँ बन जाओगी.
मैंने मन ही मन सोचा, माँ तो पता नही लेकिन अगर अंजाने मर्दों को ऐसे ही मैंने अपने बदन से छेड़छाड़ करने दी तो मैं जल्दी ही रंडी ज़रूर बन जाऊँगी.
फिर हम आश्रम पहुँच गये. शर्माजी और उसके मोती से मेरा पीछा छूटा. लेकिन ऑटो से उतरते समय मुझे उतरने में मदद के बहाने उसने एक आखिरी बार अपने हाथ से , साड़ी के बाहर से मेरे नितंबों को दबा दिया.
कहानी जारी रहेगी
NOTE
1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब अलग होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा कही पर भी संभव है .
2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा जी स्वामी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.
3. इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने अन्यत्र नहीं पढ़ी है .
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20-11-2021, 01:53 PM
(This post was last modified: 20-11-2021, 02:01 PM by aamirhydkhan1. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
गुरुजी के आश्रम में सावित्री
CHAPTER 4 तीसरा दिन
मुलाकात
Update 1
फिर हम आश्रम पहुँच गये. शर्माजी और उसके मोती से मेरा पीछा छूटा. लेकिन ऑटो से उतरते समय मुझे उतरने में मदद के बहाने उसने एक आखिरी बार अपने हाथ से , साड़ी के बाहर से मेरे नितंबों को दबा दिया.
ऑटो के जाने के बाद मैं और विकास अकेले रह गये. ऑटो में जो हुआ उसकी शरम से मैं विकास से आँखें नही मिला पा रही थी और तुरंत अपने कमरे में चली गयी. मुझे नहाने की सख्त ज़रूरत थी , पूरा बदन चिपचिपा हो रखा था. मैं सीधे बाथरूम में घुसी और फटाफट अपने कपड़े उतार दिए. मेरी पैंटी हमेशा की तरह नितंबों की दरार में फंसी हुई थी उसे भी निकाल फेंका.
तभी मैंने देखा मेरे ब्लाउज का तीसरा हुक टूट कर लटक गया है. वहाँ पर थोड़ा कपड़ा भी फट गया था. ऑटो में मुझे दिखा नही था. ज़रूर विकास के लगातार चूची दबाने से ब्लाउज फटा होगा. इतना मेरी चूचियों को तो किसी ने नही निचोड़ा जितना उस ऑटो में विकास ने निचोड़ा था. ब्लाउज तो फटना ही था. गोपालजी से ठीक करवाना पड़ेगा. मेरी ब्रा भी पसीने से भीग गयी थी. ब्रा का स्ट्रैप सही सलामत है यही गनीमत रही वरना इसको भी बहुत निचोड़ा था उन दोनों ने.
सब कपडे फटाफट उतारकर मैं नंगी हो गयी. पैंटी से गीला पैड निकालकर मैंने एक कोने में रख दिया और नहाने लगी. दिन भर जो मेरे साथ हुआ था , पहले टेलर की दुकान में , फिर मेले में और फिर ऑटो में , उससे मेरे मन में एक अपराधबोध हो रहा था. मैंने देर तक नहाया जैसे उस गिल्ट फीलिंग को बहा देना चाहती हूँ.
उसके बाद कुछ खास नही हुआ. परिमल मेरे कमरे में आया और पैड ले गया. बाद में डिनर भी लाया. मंजू भी आई और मेले के बारे में पूछने लगी. उसके चेहरे की मुस्कुराहट बता रही थी की जो कुछ मेरे साथ हुआ उसे सब पता है. समीर गोपालजी के भेजे हुए दो एक्सट्रा ब्लाउज लेकर आया और ये भी बता गया की सुबह 6:30 पर गुरुजी के पास जाना होगा.
एक ही दिन में इतना सब कुछ होने के बाद मैं बुरी तरह थक गयी थी. दो दो बार मैंने पैड पूरे गीले कर दिए थे. तीन मर्दों ने मेरे बदन को हर जगह पर निचोड़ा था.
डिनर के बाद गुरु माता द्वारा दी गई क्रीम का उपयोग करने की याद आई और अपने पूरे शरीर पर क्रीम लगा दी जिसमें मेरी योनि, स्तन, कमर, कूल्हों और गुदा शामिल थे, मैं सीधे बेड पर लेट गयी. मुझे अपने बदन में इतनी गर्मी महसूस हो रही थी की मैंने अपनी नाइटी पेट तक उठा रखी थी , अंदर से ब्रा पैंटी कुछ नही पहना था. ऐसे ही आधी नंगी लेटी हुई जल्दी ही मुझे गहरी नींद आ गयी. रात में मुझे अजीब से सपने आए , साँप दिखे , शर्माजी और उसका मोती भी सपने में दिखे.
सुबह किसी के दरवाज़ा खटखटाने से मेरी नींद खुली. मैंने अपनी नाइटी नीचे को खींची और बेड से उठ गयी. दरवाज़ा खोला तो बाहर मंजू खड़ी थी. उसने कहा, तैयार होकर आधे घंटे में गुरुजी के कमरे में आ जाओ.
मैं बाथरूम चली गयी और नहा लिया. आश्रम से मिली हुई नयी साड़ी पहन ली और गोपालजी का भेजा हुआ ब्लाउज पहन लिया. ये वाला ब्लाउज फिट आ रहा था. मैंने पेटीकोट के अंदर पैंटी नही पहनी . पैड लगाने के लिए फिर से नीचे करनी पड़ती है, बाद में पहनूँगी. नहा धो के मैं तरोताजा महसूस कर रही थी. फिर मैं गुरुजी के कमरे में चली गयी.
गुरुजी पूजा कर रहे थे. उस कमरे में अगरबत्तियों के जलने से थोड़ा धुआँ हो रखा था. गुरुजी अभी अकेले ही थे. मुझे उनकी पूजा खत्म होने तक 5 मिनट इंतज़ार करना पड़ा.
गुरुजी – जय लिंगा महाराज. सावित्री, मुझे बताओ तुम्हारा कल का दिन कैसा रहा ?
“जय लिंगा महाराज. जी वो ….मेरा मतलब……”
मैं क्या बोलती ? यही की अंजाने मर्दों ने मेरे बदन को मसला , मेरी चूचियों को जी भरके दबाया , मेरी नंगी जांघों और नितंबों पर खूब हाथ फिराए और मैंने एक बेशरम औरत की तरह से इन सब का मज़ा लिया ?
गुरुजी शायद मेरी झिझक समझ गये.
गुरुजी – ठीक है सावित्री. मैं समझता हूँ की तुम एक हाउसवाइफ हो और नैतिक रूप से तुम्हारे लिए इन हरकतों को स्वीकार करना बहुत कष्टदायी रहा होगा. तुम्हें ये सब ग़लत लगा होगा और अपराधबोध भी हुआ होगा. लेकिन तुम्हारे गीले पैड देखकर मुझे अंदाज़ा हो गया की तुमने इसका कितना लुत्फ़ उठाया.
“जी , मुझे दोनों बार ज़्यादा स्खलन हुआ था.”
गुरुजी – ये तो अच्छी बात है सावित्री. देखो , मैं चाहता हूँ की तुम इस बारे में कुछ मत सोचो. अभी नैतिक अनैतिक सब भूल जाओ और जो मैंने तुम्हें लक्ष्य दिया है , दिन में दो बार स्खलन का , सिर्फ़ उस पर ध्यान दो. आज भी कल के ही जैसे , जो परिस्थिति तुम्हारे सामने आए तुमने उसी के अनुसार अपना रेस्पॉन्स देना है. जो हो रहा है, उसे होने देना, कहाँ हूँ , किसके साथ हूँ , ये मत सोचना. दिमाग़ को भटकने मत देना और खुद को परिस्थिति के हवाले कर देना.
“गुरुजी , मैं कुछ पूछ सकती हूँ ?”
गुरुजी – मुझे मालूम है तुम क्या पूछना चाहती हो. यही की तुम्हें कामस्खलन हुआ लेकिन संभोग की तीव्र इच्छा नही हुई. यही पूछना चाहती थी ना तुम ?
मैंने अपना सर हिला दिया क्यूंकी बिल्कुल यही प्रश्न मेरे दिमाग़ में था.
गुरुजी – ये जड़ी बूटी जो मैंने तुम्हें दवाई के रूप में दी हैं उसी की वजह से तुम्हें बहुत कामोत्तेजित होते हुए भी संभोग की तीव्र इच्छा नही हुई. मुझे बस तुम्हारे स्खलन की मात्रा मापनी है और कुछ नही. उसके लिए तुम्हें थोड़ा कम्प्रोमाइज ज़रूर करना पड़ रहा है , बस इतना ही.
“गुरुजी ‘थोड़ा’मत कहिए. मुझे इसके लिए बहुत ही बेशरम बनना पड़ रहा है.”
गुरुजी – हाँ , मैं समझ रहा हूँ सावित्री! लेकिन तुम्हारे उपचार के लिए मेरा ये जानना भी तो ज़रूरी है ना. स्खलन की मात्रा से तुम्हारे गर्भवती होने की संभावना के बारे में पता लगेगा.
गुरुजी कुछ पल चुप रहे.
गुरुजी – मैं चाहता हूँ की आज तुम शिरायण मंदिर में पूजा के लिए जाओ. विकास तुम्हें वहाँ ले जाएगा. शाम को आरती के लिए मुक्तेश्वरी मंदिर चली जाना.
“ ठीक है गुरुजी.”
गुरुजी – जय लिंगा महाराज.
“जय लिंग महाराज.”
कहानी जारी रहेगी
NOTE
1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब अलग होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा कही पर भी संभव है .
2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा जी स्वामी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.
3. इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने अन्यत्र नहीं पढ़ी है .
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(20-11-2021, 01:53 PM)aamirhydkhan1 Wrote: गुरुजी के आश्रम में सावित्री
CHAPTER 4 तीसरा दिन
मुलाकात
Update 1
फिर हम आश्रम पहुँच गये. शर्माजी और उसके मोती से मेरा पीछा छूटा. लेकिन ऑटो से उतरते समय मुझे उतरने में मदद के बहाने उसने एक आखिरी बार अपने हाथ से , साड़ी के बाहर से मेरे नितंबों को दबा दिया.
ऑटो के जाने के बाद मैं और विकास अकेले रह गये. ऑटो में जो हुआ उसकी शरम से मैं विकास से आँखें नही मिला पा रही थी और तुरंत अपने कमरे में चली गयी. मुझे नहाने की सख्त ज़रूरत थी , पूरा बदन चिपचिपा हो रखा था. मैं सीधे बाथरूम में घुसी और फटाफट अपने कपड़े उतार दिए. मेरी पैंटी हमेशा की तरह नितंबों की दरार में फंसी हुई थी उसे भी निकाल फेंका.
तभी मैंने देखा मेरे ब्लाउज का तीसरा हुक टूट कर लटक गया है. वहाँ पर थोड़ा कपड़ा भी फट गया था. ऑटो में मुझे दिखा नही था. ज़रूर विकास के लगातार चूची दबाने से ब्लाउज फटा होगा. इतना मेरी चूचियों को तो किसी ने नही निचोड़ा जितना उस ऑटो में विकास ने निचोड़ा था. ब्लाउज तो फटना ही था. गोपालजी से ठीक करवाना पड़ेगा. मेरी ब्रा भी पसीने से भीग गयी थी. ब्रा का स्ट्रैप सही सलामत है यही गनीमत रही वरना इसको भी बहुत निचोड़ा था उन दोनों ने.
सब कपडे फटाफट उतारकर मैं नंगी हो गयी. पैंटी से गीला पैड निकालकर मैंने एक कोने में रख दिया और नहाने लगी. दिन भर जो मेरे साथ हुआ था , पहले टेलर की दुकान में , फिर मेले में और फिर ऑटो में , उससे मेरे मन में एक अपराधबोध हो रहा था. मैंने देर तक नहाया जैसे उस गिल्ट फीलिंग को बहा देना चाहती हूँ.
उसके बाद कुछ खास नही हुआ. परिमल मेरे कमरे में आया और पैड ले गया. बाद में डिनर भी लाया. मंजू भी आई और मेले के बारे में पूछने लगी. उसके चेहरे की मुस्कुराहट बता रही थी की जो कुछ मेरे साथ हुआ उसे सब पता है. समीर गोपालजी के भेजे हुए दो एक्सट्रा ब्लाउज लेकर आया और ये भी बता गया की सुबह 6:30 पर गुरुजी के पास जाना होगा.
एक ही दिन में इतना सब कुछ होने के बाद मैं बुरी तरह थक गयी थी. दो दो बार मैंने पैड पूरे गीले कर दिए थे. तीन मर्दों ने मेरे बदन को हर जगह पर निचोड़ा था.
डिनर के बाद गुरु माता द्वारा दी गई क्रीम का उपयोग करने की याद आई और अपने पूरे शरीर पर क्रीम लगा दी जिसमें मेरी योनि, स्तन, कमर, कूल्हों और गुदा शामिल थे, मैं सीधे बेड पर लेट गयी. मुझे अपने बदन में इतनी गर्मी महसूस हो रही थी की मैंने अपनी नाइटी पेट तक उठा रखी थी , अंदर से ब्रा पैंटी कुछ नही पहना था. ऐसे ही आधी नंगी लेटी हुई जल्दी ही मुझे गहरी नींद आ गयी. रात में मुझे अजीब से सपने आए , साँप दिखे , शर्माजी और उसका मोती भी सपने में दिखे.
सुबह किसी के दरवाज़ा खटखटाने से मेरी नींद खुली. मैंने अपनी नाइटी नीचे को खींची और बेड से उठ गयी. दरवाज़ा खोला तो बाहर मंजू खड़ी थी. उसने कहा, तैयार होकर आधे घंटे में गुरुजी के कमरे में आ जाओ.
मैं बाथरूम चली गयी और नहा लिया. आश्रम से मिली हुई नयी साड़ी पहन ली और गोपालजी का भेजा हुआ ब्लाउज पहन लिया. ये वाला ब्लाउज फिट आ रहा था. मैंने पेटीकोट के अंदर पैंटी नही पहनी . पैड लगाने के लिए फिर से नीचे करनी पड़ती है, बाद में पहनूँगी. नहा धो के मैं तरोताजा महसूस कर रही थी. फिर मैं गुरुजी के कमरे में चली गयी.
गुरुजी पूजा कर रहे थे. उस कमरे में अगरबत्तियों के जलने से थोड़ा धुआँ हो रखा था. गुरुजी अभी अकेले ही थे. मुझे उनकी पूजा खत्म होने तक 5 मिनट इंतज़ार करना पड़ा.
गुरुजी – जय लिंगा महाराज. सावित्री, मुझे बताओ तुम्हारा कल का दिन कैसा रहा ?
“जय लिंगा महाराज. जी वो ….मेरा मतलब……”
मैं क्या बोलती ? यही की अंजाने मर्दों ने मेरे बदन को मसला , मेरी चूचियों को जी भरके दबाया , मेरी नंगी जांघों और नितंबों पर खूब हाथ फिराए और मैंने एक बेशरम औरत की तरह से इन सब का मज़ा लिया ?
गुरुजी शायद मेरी झिझक समझ गये.
गुरुजी – ठीक है सावित्री. मैं समझता हूँ की तुम एक हाउसवाइफ हो और नैतिक रूप से तुम्हारे लिए इन हरकतों को स्वीकार करना बहुत कष्टदायी रहा होगा. तुम्हें ये सब ग़लत लगा होगा और अपराधबोध भी हुआ होगा. लेकिन तुम्हारे गीले पैड देखकर मुझे अंदाज़ा हो गया की तुमने इसका कितना लुत्फ़ उठाया.
“जी , मुझे दोनों बार ज़्यादा स्खलन हुआ था.”
गुरुजी – ये तो अच्छी बात है सावित्री. देखो , मैं चाहता हूँ की तुम इस बारे में कुछ मत सोचो. अभी नैतिक अनैतिक सब भूल जाओ और जो मैंने तुम्हें लक्ष्य दिया है , दिन में दो बार स्खलन का , सिर्फ़ उस पर ध्यान दो. आज भी कल के ही जैसे , जो परिस्थिति तुम्हारे सामने आए तुमने उसी के अनुसार अपना रेस्पॉन्स देना है. जो हो रहा है, उसे होने देना, कहाँ हूँ , किसके साथ हूँ , ये मत सोचना. दिमाग़ को भटकने मत देना और खुद को परिस्थिति के हवाले कर देना.
“गुरुजी , मैं कुछ पूछ सकती हूँ ?”
गुरुजी – मुझे मालूम है तुम क्या पूछना चाहती हो. यही की तुम्हें कामस्खलन हुआ लेकिन संभोग की तीव्र इच्छा नही हुई. यही पूछना चाहती थी ना तुम ?
मैंने अपना सर हिला दिया क्यूंकी बिल्कुल यही प्रश्न मेरे दिमाग़ में था.
गुरुजी – ये जड़ी बूटी जो मैंने तुम्हें दवाई के रूप में दी हैं उसी की वजह से तुम्हें बहुत कामोत्तेजित होते हुए भी संभोग की तीव्र इच्छा नही हुई. मुझे बस तुम्हारे स्खलन की मात्रा मापनी है और कुछ नही. उसके लिए तुम्हें थोड़ा कम्प्रोमाइज ज़रूर करना पड़ रहा है , बस इतना ही.
“गुरुजी ‘थोड़ा’मत कहिए. मुझे इसके लिए बहुत ही बेशरम बनना पड़ रहा है.”
गुरुजी – हाँ , मैं समझ रहा हूँ सावित्री! लेकिन तुम्हारे उपचार के लिए मेरा ये जानना भी तो ज़रूरी है ना. स्खलन की मात्रा से तुम्हारे गर्भवती होने की संभावना के बारे में पता लगेगा.
गुरुजी कुछ पल चुप रहे.
गुरुजी – मैं चाहता हूँ की आज तुम शिरायण मंदिर में पूजा के लिए जाओ. विकास तुम्हें वहाँ ले जाएगा. शाम को आरती के लिए मुक्तेश्वरी मंदिर चली जाना.
“ ठीक है गुरुजी.”
गुरुजी – जय लिंगा महाराज.
“जय लिंग महाराज.”
कहानी जारी रहेगी
NOTE
1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब अलग होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा कही पर भी संभव है .
2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा जी स्वामी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.
3. इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने अन्यत्र नहीं पढ़ी है .
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गुरुजी के आश्रम में सावित्री
CHAPTER 4 तीसरा दिन
दर्शन
Update 1
लाइन में धक्कामुक्की
उसके बाद मैं कमरे से बाहर आ गयी. मुझे आज फिर से ऐसा महसूस हुआ की ज़मीन में बैठे हुए गुरुजी की नज़रें पीछे से मेरे लहराते हुए बड़े नितंबों पर हैं. मैंने आज पैंटी नही पहनी थी , शायद इसलिए थोड़ी सतर्क थी.
फिर मैं अपने कमरे में आ गयी. आज पूजा के लिए जाना था इसलिए मैंने नाश्ता नही किया. कुछ देर बाद मैं कमरे से बाहर आ गयी और आश्रम में टहलने लगी. थोड़ी देर मंजू से गप मारी , फिर मंदिर जाने के लिए तैयार होने कमरे में आ गयी.
मैंने बाहर जाने से पहले दवाई खा ली और पैंटी के अंदर नया पैड लगा लिया.
तभी विकास आ गया.
विकास – मैडम , आप तैयार हो ?
“हाँ . मंदिर कितना दूर है ?
कल की घटना के बावज़ूद हम दोनों एक दूसरे के साथ नॉर्मली बिहेव करने की कोशिश कर रहे थे. आज विकास शेव करके आया था. हैंडसम लग रहा था. कल मैं काफ़ी देर तक उसके साथ थी. अब मुझे उसका साथ अच्छा लगने लगा था. आश्रम में एक वही था जिसके साथ मैं इतना घुल मिल गयी थी.
विकास – ज़्यादा दूर नही है . हम बस से जाएँगे. 10 मिनट लगेंगे.
हम खेतों के बीच पैदल रास्ते से जाने लगे. आज विकास मेरे काफ़ी नज़दीक़ चल रहा था. कभी कभी जब मेरी चाल धीमी हो जाती थी तो मैं उसके साथ चलने के लिए उसका हाथ पकड़ ले रही थी. मुझे पता नही क्या हो रहा था लेकिन उसका साथ मुझे अच्छा लग रहा था. उसके साथ होने से मन में एक खुशी सी होती थी.
फिर हम मेन रोड में पहुँच गये और वहाँ से हमें बस मिल गयी. बस में थोड़ी भीड़भाड़ थी. हम बस में चढ़ गये और विकास मेरे पीछे खड़ा हो गया. विकास आज सही मायनों में मुझे प्रोटेक्ट कर रहा था. और मैं भी ज़रूरत से ज़्यादा ही उसकी मदद ले रही थी. जैसे की जब हम भीड़ के बीच लोगों को हटाते हुए अपने लिए जगह बना रहे थे तो मैं उसका हाथ पकड़े हुए थी.
मैंने सपोर्ट के लिए अपने सर के ऊपर रॉड को एक हाथ से पकड़ा हुआ था. विकास ने भी वहीं पर पकड़ा हुआ था उसका हाथ मेरे हाथ से बार बार छू जा रहा था. बस के झटकों से बचने के लिए मैंने उसके गठीले बदन का सहारा लिया हुआ था. मेरे बड़े नितंब उसके पैंट पर दब रहे थे. लेकिन आज विकास बहुत तमीज़ से पेश आ रहा था. शायद सफ़र छोटा होने की वजह से. क्यूंकी जल्दी ही मंदिर आ गया.
मंदिर में और भी लोग बस से उतरे. अब उतरते समय विकास मेरे आगे था मेरी बड़ी चूचियाँ उसकी पीठ से दब गयीं. मैंने भी कोई संकोच नही किया और उसकी पीठ से अपनी छाती चिपका दी. विकास थोड़ा पीछे को मुड़ा और मुझे देखकर मुस्कुराया. शायद वो समझ गया होगा मैं उसे अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए ऐसा कर रही हूँ.
बस से उतरने के बाद मेरा मन विकास के साथ समय बिताने को हो रहा था , मंदिर जाने को मैं उत्सुक नही थी. लेकिन विकास सीधे मंदिर की तरफ बढ़ रहा था.
“विकास , मैं कुछ बोलूँ ?”
विकास – ज़रूर मैडम.
“मेरा मंदिर जाना ज़रूरी है क्या ? मेरा मतलब अगर ना जाऊँ तो ?”
विकास – हाँ मैडम. आपको मंदिर जाना होगा. ये गुरुजी का आदेश है. और उनके हर आदेश का कोई उद्देश्य और लक्ष्य होता है. ये बात तो अब आप भी जानती हो.
“हाँ मैं जानती हूँ. लेकिन मेरा मतलब…..अगर हम ….. मैं ये कहना चाह रही हूँ की …..”
विकास – मैडम , आपको कुछ कहने की ज़रूरत नही. आप मंदिर में जाओ और पूजा करके आओ.
“लेकिन विकास . मैं चाहती हूँ की…….मैं कैसे कहूँ ?”
विकास – मैडम, आपको कहने की ज़रूरत नही. मैं समझ रहा हूँ.
“तुम बिल्कुल बुद्धू हो. अगर तुम समझते तो अभी मुझे मंदिर जाने को नही कहते.”
विकास – मैडम, अभी आप पूजा करो. शाम को गुरुजी ने आपको मुक्तेश्वरी मंदिर ले जाने को कहा है, मैं आपको वहाँ नही ले जाऊँगा.
“पक्का ? वादा करो ?”
विकास – हाँ मैडम. वादा रहा.
अब मैं खुश थी की विकास मेरी मर्ज़ी के आगे कुछ तो झुका. आज मुझे गुरुजी के आदेशानुसार दो बार ओर्गास्म लाने थे और सच बताऊँ तो मैं चाहती थी की उनमें से एक तो विकास से आए.
फिर हम मंदिर पहुँच गये.
“हे भगवान ! इतनी लंबी लाइन !”
विकास – हाँ मैडम. यहाँ लंबी लाइन लगी है. ‘गर्भ गृह’में देवता के दर्शन में काफ़ी समय लगेगा.
विकास और मैं लाइन में नही लगे. विकास मुझे मंदिर के पीछे ले गया. वहाँ एक आदमी हमारा इंतज़ार कर रहा था. विकास ने उससे कुछ बात की और फिर मेरा परिचय कराया.
विकास – ये पांडे जी हैं.
पांडे जी – मैडम आप लाइन की चिंता मत करो. असल में नियम ये है की एक बार में एक ही व्यक्ति गर्भ गृह के अंदर पूजा कर सकता है , इसलिए ज़्यादा समय लग जाता है.
“अच्छा.”
फिर विकास वहाँ से चला गया.
पांडे जी करीब 40 बरस का होगा. मजबूत बदन , बिना शेव किया हुआ चेहरा , हाथों में भी उसके बहुत बाल थे. मुझे लगा ज़रूर इसका बदन ज़्यादा बालों वाला होगा. साफ कहूं तो मुझे बालों वाले मर्द पसंद हैं. खुशकिस्मती से मेरे पति के भी ऐसी ही बाल हैं.
पांडे जी सफेद धोती और सफेद कमीज़ पहने था. एक लड़का भी वहीं पर खड़े होकर हमारी बात सुन रहा था. 18 बरस का रहा होगा.
पांडे जी – छोटू , तू लाइन को सम्हालना और फिर जल्दी नहा भी लेना. मैडम , आप मेरे साथ आओ. धूप में लाइन में खड़े होने की ज़रूरत नही है. जब लाइन मंदिर के अंदर पहुँच जाएगी फिर लग जाना.
छोटू चला गया और मैं पांडे जी के पीछे चली गयी. वहाँ छोटी झोपड़ीनुमा ढाँचे मंदिर के पंडों के लिए बने हुए थे.
पांडे जी मुझे एक झोपड़ी के आँगन में ले गया. वहाँ एक पेड़ से दो गाय बँधी हुई थीं. धूप से आकर वहाँ छाया में मुझे राहत महसूस हुई. पांडे जी ने मुझसे वहाँ रखी खटिया में बैठने को कहा.
पांडे जी मुझे एक झोपड़ी के आँगन में ले गया. वहाँ एक पेड़ से दो गाय बँधी हुई थीं. धूप से आकर वहाँ छाया में मुझे राहत महसूस हुई. पांडे जी ने मुझसे वहाँ रखी खटिया में बैठने को कहा.
खटिया रस्सियों से बनी हुई थी. मैं खटिया में बैठ गयी. बैठने के कुछ ही देर में वो सख़्त रस्सियां मेरे मुलायम नितंबों में चुभने लगीं. मुझे अनकंफर्टेबल फील होने लगा और मैंने साड़ी के अंदर पैंटी को नितंबों पर फैलाने की कोशिश की पर उस बैठी पोज़िशन में पैंटी खिंच नही रही थी. थोड़ी राहत पाने के लिए मैं अपने वजन को कभी एक नितंब कभी दूसरे नितंब में डालने लगी. इससे एक नितंब दबता और दूसरे में आराम हो रहा था. खटिया की रस्सी इतनी सख़्त थी की मेरी साड़ी और पेटीकोट के बाहर से भी चुभ रही थी. मैं शरम की वजह से पांडेज़ी से भी कुछ नही कह पा रही थी.
पांडे जी – मैडम , खटिया में ठीक से नही बैठ पा रही हो क्या ?
मैंने बता दिया की रस्सी चुभ रही है.
पांडे जी – मैडम , मैं आपकी परेशानी समझ सकता हूँ. आपको खटिया में बैठने की आदत नही है ना इसलिए रस्सी आपके मुलायम बदन में चुभ रही है.
पांडेज़ी ने मेरे बदन के ऊपर कमेंट कर दिया , मैं चुप रही.
वो एक चादर ले आया. खटिया नीची थी और मेरे बैठने से रस्सियां और भी नीचे झूल गयी थीं. जब पांडेज़ी चादर ले आया तो मैं खटिया से उठने लगी. नीचे को धँसी रस्सियों से उठते समय मेरा पल्लू कंधे से गिर गया . मैंने जल्दी से अपनी छाती को पल्लू से ढक दिया फिर भी तब तक पांडेज़ी को मेरी बड़ी चूचियों के ऊपरी हिस्से और क्लीवेज का नज़ारा दिख गया.
क्यूंकी वो ठीक मेरे सामने खड़ा था और मैं झुकी पोज़िशन से ऊपर को उठ रही थी तो उसे ऊपर से साफ दिख रहा होगा. पल्लू ब्लाउज के ऊपर करते समय मैंने देखा की मेरी बायीं चूची के ऊपर का ब्रा का स्ट्रैप दिख रहा है. मैंने ब्लाउज के अंदर अँगुलियाँ डालकर स्ट्रैप को ब्लाउज से ढक दिया . ये सब मुझे एक अंजाने मर्द के सामने करना पड़ा. और इस दौरान स्वाभाविक रूप से पांडेज़ी की निगाहें मेरी चूचियों पर ही थी.
जब पांडेज़ी खटिया में चादर बिछा रहा था , तब मैंने अपनी पैंटी को नितंबों पर खींच लिया. मेरे नितंब रस्सी चुभने से दर्द कर रहे थे, इसलिए दोनों हाथों से नितंबों को थोड़ा मला और दबा दिया , ताकि उनमें रक्त संचार ठीक से हो जाए. मैंने सोचा मुझे कोई नही देख रहा है क्यूंकी पांडेज़ी तो चादर बिछा रहा था पर मुझे पता नही चला की वो लड़का छोटू वापस आ गया है और ठीक मेरे पीछे खड़ा है.
जब मेरी नज़र उस पर पड़ी तो मुझे बड़ी शरम महसूस हुई. मैं अपने नितंबों को दबा रही थी और इसने सब देख लिया वो भी ठीक मेरे पीछे खड़े होकर. मैंने देखा वो मुझे देखकर मुस्कुरा रहा था और बार बार मेरे उभरे हुए नितंबों को ही देख रहा था. वैसे तो वो 18 बरस का छोटा लड़का था पर शरम से मैं उससे आँखें नही मिला पा रही थी.
अगर कोई मर्द ऐसे देख ले तो कोई भी औरत बहुत शर्मिंदगी महसूस करेगी. मेरे दिमाग़ में वो सीन दोहराने लगा की इस लड़के को क्या नज़ारा दिखा होगा. सबसे पहले मैंने नितंबों पर साड़ी फैलाई थी जो बैठने से दब गयी थी. फिर मैंने अपनी अंगुलियों से पैंटी के कोने ढूंढे जो नितंबों की दरार में सिकुड गये थे , और फिर पैंटी को नितंबों पर फैलाने की कोशिश की. ऐसा करने के लिए मैं थोड़ा आगे को झुक गयी थी और मेरे गोल नितंब पीछे को उभर गये थे, उसके बाद मैंने दोनों नितंबों को हाथों से थोड़ा मल दिया था. ये सब उस लड़के ने मेरे पीछे खड़े होकर देख लिया.
फिर मैं चादर बिछी खटिया में बैठ गयी. पांडेज़ी झोपड़ी के अंदर गया और कुछ देर बाद एक थाली लेकर आया जिसमें पूजा का समान था.
पांडे जी – छोटू तू जल्दी से नहा ले , तब तक मैं मैडम की थाली के लिए दूध लेकर आता हूँ.
खटिया से कुछ ही फीट दूर एक नल लगा था , छोटू वहाँ नहाने की तैयारी करने लगा. पांडेज़ी भी पेड़ के पास गाय से दूध लाने चला गया , वो पेड़ खटिया से तकरीबन 10 – 12 फीट दूर होगा. छोटू एक शर्ट और निक्कर ( हाफ पैंट ) पहने था. उसने शर्ट उतार दी और कमर में एक तौलिया लपेट कर निक्कर उतार दिया.
पांडे जी – छोटू तौलिया गीला मत कर.
छोटू – फिर नहाऊँ कैसे ?
पांडे जी –ऐसे ही नहा ले. मैडम से क्यूँ शरमा रहा है ?
छोटू चुप रहा.
पांडे जी – मैडम देखो छोटा ही तो है. आपके सामने नहाने में शरमा रहा है.
मैं धीरे से हँसी और कुछ कहने वाली थी तभी……
पांडे जी – अरे यार मैडम क्या छोटी लड़की है तेरी दोस्त रूपा की जैसी , जो तू शरमा रहा है ? मैडम ने तो तेरे जैसे कितने लड़के अपने सामने नहाते हुए देखे होंगे. है ना मैडम ?
मैंने उसकी बकवास को इग्नोर कर दिया और चुप रही. फिर पांडेज़ी एक बर्तन में गाय से दूध निकालने लगा.
“छोटू तुम नहा लो. मुझे कोई प्राब्लम नही है.”
मैंने छोटू से नहाने को कह दिया पर मैं छोटू और पांडेजी के बीच बातचीत को ठीक से समझी नही थी. ये तो मैं सपने में भी नही सोच सकती थी की पांडेज़ी छोटू से मेरे सामने नंगा नहाने को कह रहा है. मुझे क्या पता था की उसने निक्कर के अंदर अंडरवियर ही नही पहना है.
छोटू – ठीक है मैडम , आपको कोई दिक्कत नही तो मैं नहा लेता हूँ. पर रूपा आई तो मुझे बता देना.
“ये रूपा कौन है ?”
पांडे जी – रूपा पास वाले झोपडे में रहती है मैडम. इसकी दोस्त है.
पांडेज़ी और मैं हल्का सा हंस पड़े.
अब छोटू ने बेधड़क अपना तौलिया उतार दिया. वो मुझसे कुछ ही फीट दूर था और शायद जानबूझकर अब उसने मेरी तरफ मुँह कर लिया था. उसको नंगा देखकर मैं हैरान रह गयी. उसका लंड तना हुआ था, शायद जब मेरे पीछे खड़ा होकर मेरे नितंबों को देख रहा होगा तभी से तन गया होगा. अब मेरा ध्यान बार बार उसके लंड पर ही जाए. इधर उधर देखूं तो भी नज़र फिर वही चली जा रही थी. वो अपने बदन में पानी डालने लगा. उसका लंड केले के जैसे हवा में खड़ा था. लंड के आस पास बहुत कम बाल थे.
उस लड़के को मेरे इतने नज़दीक़ नंगा नहाते देख , अब मेरी साँसें भारी हो गयी थीं और मेरे निप्पल तन गये थे. वो बेशरम मेरी तरफ मुँह करके अपने खड़े लंड को मल मल कर साबुन लगा रहा था. उसके ज़रा सा भी बदन हिलाने से उसका लंड हवा में नाच जैसा कर रहा था और ये देखकर मेरे दिल की धड़कनें बढ़ जा रही थी. स्वाभाविक कामोत्तेजना से मेरी टाँगें थोड़ी खुलने लगी और मुझे अपने ऊपर कंट्रोल करना पड़ा.
पांडे जी – ऐ छोटू , बदन में ठीक से साबुन लगा.
छोटू – अब इससे ठीक कैसे लगाऊँ ?
पांडे जी – रुक , मैं लगा देता हूँ.
पांडे जी ने दूध का बर्तन मेरे सामने लाकर रख दिया.
पांडे जी – मैडम ,मैं इसको ठीक से साबुन लगाता हूँ. आप अपने दूध पर नज़र रखना.
पांडेज़ी मुस्कुराते हुए बोला. मैं सोचने लगी, ‘अपने दूध’से इसका क्या मतलब है ?
फिर पांडे जी छोटू के पास गया और उसके बदन पर साबुन लगाने लगा. उसने छोटू के ऊपरी बदन पर बस थोड़ी ही देर मला और फिर उसके लंड पर आ गया. एक हाथ में उसने छोटू का लंड पकड़ा और दूसरे हाथ से उसकी गोलियों को सहलाने लगा. लंड पर साबुन क्या लगा रहा था एक तरह से मूठ मार रहा था.
ये सीन देखकर मेरे हाथ अपनेआप ही मेरी चूचियों पर चले गये और मेरी जाँघें साड़ी के अंदर अलग अलग हो गयीं. मुझे लगा अगर थोड़ी देर और पांडेज़ी वैसा करता तो छोटू पक्का झड़ जाता. शुक्र है जल्दी ही ये खत्म हो गया और फिर छोटू ने तौलिया से अपना नंगा बदन पोंछ लिया. उसने एक दूसरी शर्ट और निक्कर पहन लिया.
पांडेज़ी हाथ धोकर मेरे पास आया. उसने पूजा की थाली में रखे एक छोटे से कटोरे में दूध डाला.
पांडे जी – मैडम, देखो कितना गाढ़ा दूध है.
“हाँ, इसमें पानी नही मिला है ना, जैसे हमको शहर में मिलता है.”
पांडे जी – नही मैडम. ये बिल्कुल शुद्ध है , चूची के दूध जैसा शुद्ध .
मेरी तनी हुई चूचियों की तरफ देखते हुए उसने कहा.
मैं उसकी बात के जवाब में कुछ नही बोल पाई. कहाँ की तुलना कहाँ कर रहा था.
छोटू अब तक तैयार हो गया था. अब हम मंदिर की तरफ चल पड़े. मेरे हाथ में पूजा की थाली थी.
“पांडे जी , लाइन में खड़ी सभी औरतों के माथे पर कुमकुम क्यूँ लगा है ?”
पांडे जी – मैडम , ये मंदिर का रिवाज़ है. आपको भी लगेगा. मैडम, अब इस लंबी लाइन में खड़े होने की तकलीफ़ झेलनी पड़ेगी. यहाँ सबको लाइन में खड़ा रहना पड़ता है, हमको भी. चल छोटू लाइन में लग जा.
लाइन अब मंदिर की छत के नीचे थी. हम उस लंबी लाइन में लग गये. यहाँ पर जगह कम थी. एक पतले गलियारे में औरत और आदमी एक ही लंबी लाइन में खड़े थे. वो लोग बहुत देर से लाइन में खड़े थे इसलिए थके हुए , उनींदे से लग रहे थे. मेरे आगे छोटू लगा हुआ था और पांडेज़ी पीछे खड़ा था. उस छोटी जगह में भीड़भाड़ की वजह से दोनों से मेरा बदन छू जा रहा था.
लाइन अब मंदिर की छत के नीचे थी. हम उस लंबी लाइन में लग गये. यहाँ पर जगह कम थी. एक पतले गलियारे में औरत और आदमी एक ही लंबी लाइन में खड़े थे. वो लोग बहुत देर से लाइन में खड़े थे इसलिए थके हुए , उनींदे से लग रहे थे. मेरे आगे छोटू लगा हुआ था और पांडेजी पीछे खड़ा था. उस छोटी जगह में भीड़भाड़ की वजह से दोनों से मेरा बदन छू जा रहा था.
पांडेजी मुझसे लंबा था और ठीक मेरे पीछे खड़ा था. मुझे ऐसा लगा की वो मेरे ब्लाउज में झाँकने की कोशिश कर रहा है. लाइन में लगने के दौरान मेरा पल्लू थोड़ा खिसक गया था इससे मेरी गोरी छाती का ऊपरी हिस्सा दिख रहा था. मैंने पूजा की बड़ी थाली दोनों हाथों से पकड़ रखी थी तो मैं पल्लू ठीक नही कर पाई और पांडेजी की तांकझांक को रोक ना सकी.
तभी एक पंडा एक कटोरे में कुमकुम लेकर आया और मेरे माथे में कुमकुम का टीका लगा गया.
लाइन में धक्कामुक्की हो रही थी . पांडेजी इसका फायदा उठाकर मुझे पीछे से दबा दे रहा था. मेरा पल्लू भी अब कंधे से सरक गया था और कुछ हिस्सा बाँह में आ गया था. मेरे ब्लाउज का ऊपरी हिस्सा अब पल्लू से ढका नही था. मेरी बड़ी चूचियों का ऊपरी हिस्सा पांडेजी को साफ दिखाई दे रहा था. मुझे पूरा यकीन है की उसे ये नज़ारा देखकर बहुत मज़ा आ रहा होगा.
मुझे कुछ ना कहते देख , पांडेजी की हिम्मत बढ़ गयी. पहले तो जब लाइन में धक्के लग रहे थे तब पांडेजी मुझे पीछे से दबा रहा था पर अब तो वो बिना धक्का लगे भी ऐसा कर रहा था. मेरे बड़े मुलायम नितंबों में वो अपना लंड चुभा रहा था. कुछ देर बाद वो अपनी जाँघों के ऊपरी भाग को मेरी बड़ी गांड पर ऊपर नीचे घुमाने लगा.
मैं घबरा गयी और इधर उधर देखने लगी की कोई हमें देख तो नही रहा. पर उस पतले गलियारे में अगल बगल कोई ना होने से सिर्फ़ पीछे से ही किसी की नज़र पड़ सकती थी. सभी लोग दर्शन के लिए अपनी बारी आने की चिंता में थे. मेरे आगे खड़ा छोटू कोई गाना गुनगुना रहा था , उसे कोई मतलब नही था की उसके पीछे क्या चल रहा है.
पांडेजी – मैडम, आज बहुत भीड़ है. दर्शन में समय लगेगा.
“कर ही क्या सकते हैं. कम से कम धूप में तो नही खड़ा होना पड़ रहा है. यहाँ गलियारे में कुछ तो राहत है.”
पांडेजी – हाँ मैडम ये तो है.
लाइन बहुत धीरे धीरे आगे खिसक रही थी. और अब हम जहाँ पर खड़े थे वहाँ पतले गलियारे में दोनों तरफ दीवार होने से रोशनी कम थी और लाइट का भी कोई इंतज़ाम नही था. पांडेजी ने इसका फायदा उठाने में कोई देर नही लगाई. पांडेजी का चेहरा मेरे कंधे के पास था मेरे बालों से लगभग चिपका हुआ. उसकी साँसें मुझे अपने कान के पास महसूस हो रही थी. खुशकिस्मती से मेरे ब्लाउज की पीठ में गहरा कट नही था इससे मेरी पीठ ज़्यादा एक्सपोज़ नही हो रही थी. एक पल को मुझे लगा की पांडेजी की ठुड्डी मेरे कंधे पर छू रही है. उसी समय छोटू ने भी मुझे आगे से धक्का दिया. मुझे अपनी थाली गिरने से बचाने के लिए थोड़ी ऊपर उठानी पड़ी.
छोटू – सॉरी मैडम, आगे से धक्का लग रहा है.
“कोई बात नही. अब मुझे इसकी कुछ आदत हो गयी है.”
अब छोटू मुझे पीछे को दबाने लगा और उन दोनों के बीच मेरी हालत सैंडविच जैसी हो गयी. फिर पांडेजी ने मेरे सुडौल नितंबों पर हाथ रख दिया. उसने शायद मेरा रिएक्शन देखने के लिए कुछ पल तक अपने हाथ को बिना हिलाए वहीं पर रखा. औरत की स्वाभाविक शरम से मैंने थोड़ा खिसकने की कोशिश की पर आगे से छोटू पीछे को दबा रहा था तो मेरे लिए खिसकने को जगह ही नही थी.
कुछ ही पल बाद पांडेजी के हाथ की पकड़ मजबूत हो गयी. वो मेरे नितंबों की सुडौलता और उनकी गोलाई का अंदाज़ा करने लगा. मेरी साड़ी के बाहर से ही उसको मेरे नितंबों की गोलाई का अंदाज़ा हो रहा था. उसकी अँगुलियाँ मेरे नितंबों पर घूमने लगी और जब भी पीछे से धक्का आता तो वो नितंबों को हाथों से दबा देता.
अचानक छोटू मेरी तरफ मुड़ा और फुसफुसाया.
छोटू – मैडम, ये जो आदमी मेरे आगे खड़ा है , इससे पसीने की बहुत बदबू आ रही है. मेरा मुँह इसकी कांख के पास पहुँच रहा है . मुझसे अब सहन नही हो रहा.
मैं उसकी बात पर मुस्कुरायी और उसको दिलासा दी.
“ठीक है. तुम ऐसा करो मेरी तरफ मुँह कर लो और ऐसे ही खड़े रहो. इससे तुम्हें उसके पसीने की बदबू नही आएगी.”
छोटू मेरी बात मान गया और मेरी तरफ मुँह करके खड़ा हो गया. पर इससे मेरे लिए परेशानी बढ़ गयी. क्यूंकी छोटू की हाइट कम थी तो उसका मुँह ठीक मेरी तनी हुई चूचियों के सामने पहुँच रहा था. पीछे से पांडेजी मुझे सांस भी नही लेने दे रहा था. अब वो दोनों हाथों से मेरे नितंबों को मसल रहा था. एक बार उसने बहुत ज़ोर से मेरे मांसल नितंबों को निचोड़ दिया. मेरे मुँह से ‘आउच’ निकल गया.
छोटू – क्या हुआ मैडम ?
“वो…..वो …..कुछ नही.. …लाइन में बहुत धक्कामुक्की हो रही है.”
छोटू ने सहमति में सर हिला दिया. उसके सर हिलाने से उसकी नाक मेरी बायीं चूची से छू गयी. अब आगे से धक्का आता तो उसकी नाक मेरी चूची पर छू जाती. मैंने हाथ ऊँचे करके पूजा की थाली पकड़ रखी थी ताकि धक्के लगने से गिरे नही तो मैं अपना बचाव भी नही कर पा रही थी. छोटू को शायद पता नही चल रहा होगा पर उसकी नाक मेरे ब्लाउज के अंदर चूची के निप्पल पर छू जा रही थी.
कहानी जारी रहेगी
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NOTE
1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब अलग होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा कही पर भी संभव है .
2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा जी स्वामी, पंडित, पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.
3. इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने अन्यत्र नहीं पढ़ी है .
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गुरुजी के आश्रम में सावित्री
CHAPTER 4 तीसरा दिन
दर्शन
Update 2
मेरे पति ने कभी भी ऐसे अपनी नाक से मेरे निप्पल को नही दबाया था. छोटू के ऐसा करने से मैं उत्तेजित होने लगी. मेरे निप्पल एकदम से तन गये. शायद पांडेजी के नितंबों को दबाने से भी ज़्यादा मुझे छोटू की ये हरकत उत्तेजित कर दे रही थी.
पांडेजी मेरे नितंबों को दबाकर अब संतुष्ट हो गया लगता था. उसकी अँगुलियाँ साड़ी के बाहर से मेरी पैंटी के सिरों को ढूंढने लगी. मेरे नितंबों पर उसको पैंटी मिल नही रही थी क्यूंकी वो तो हमेशा की तरह सिकुड़कर बीच की दरार में आ गयी थी. पर उसकी घूमती अंगुलियों से मेरी चूत पूरी गीली हो गयी.
अब पांडेजी मेरे नितंबों के बीच की दरार में अँगुलियाँ घुमा रहा था और आख़िरकार उसको पैंटी के सिरे मिल ही गये. वो दो अंगुलियों से पकड़कर पैंटी के सिरों को दरार से उठाने की कोशिश करने लगा. उसकी इस हरकत से मैं बहुत उत्तेजित हो गयी. अब ऐसे कोई मर्द अँगुलियाँ फिराएगा तो कोई भी औरत उत्तेजना महसूस करेगी ही.
मैंने शरमाकर फिर से इधर उधर देखा पर किसी को देखते हुए ना पाकर थोड़ी राहत महसूस की. वहाँ पर थोड़ी रोशनी भी कम थी तो ये भी राहत वाली बात थी. आगे से छोटू को धक्के लगे तो सहारे के लिए उसने मेरी कमर पकड़ ली. दो तीन बार ज़ोर से उसका मुँह मेरी चूचियों पर दब गया. उसने माफी मांगी और मेरी चूचियों से मुँह दूर रखने की कोशिश करने लगा.
पर मैं जल्दी ही समझ गयी की ये लड़का छोटू है बहुत बदमाश, सिर्फ़ नाम का छोटू है. क्यूंकी अब अपना मुँह तो उसने दूर कर लिया पर सहारे के लिए दोनों हाथों से मेरी कमर पकड़ ली , मेरे बदन को हाथों से छूने का मौका उसे मिल गया.
मुझे लगा आगे पीछे से इन दोनों की ऐसी हरकतों से जल्दी ही मुझे ओर्गास्म आ जाएगा. पर मुझे ये उत्सुकता भी हो रही थी की ये दोनों मेरे साथ किस हद तक जा सकते हैं , ख़ासकर ये छोटू.
छोटू ने ब्लाउज और साड़ी के बीच की नंगी कमर पर अपने हाथ रखे थे. उसकी अँगुलियाँ और हथेली मुझे अपने बदन पर ठंडी महसूस हो रही थी क्यूंकी उसने अभी ठंडे पानी से नहाया था. कुछ देर तक उसने अपने हाथ नही हिलाए. फिर धीरे धीरे नीचे को खिसकाने लगा. अब उसके हाथ साड़ी जहाँ पर फोल्ड करते हैं वहाँ पर पहुँच गये.
मेरी नंगी त्वचा पर उसके ठंडे हाथों के स्पर्श से मैं बहुत कमज़ोरी महसूस कर रही थी. मुझे ऐसा मन हो रहा था की थाली को फेंक दूं और छोटू का सर पकड़कर उसका मुँह अपनी चूचियों पर ज़ोर से दबा दूं.
पांडेजी को अच्छी तरह से पता था की मैं भले ही कोई रिएक्शन नही दे रही हूँ पर उसकी हरकतों से बेख़बर नही हूँ. उसकी अंगुलियों ने मेरी पैंटी के सिरों को पकड़ा , खींचा फिर खींचकर फैला दिया. अब वो इस खेल से बोर हो गया लगता था. कुछ देर तक उसके हाथ शांत रहे. मुझे लग रहा था अब ये कुछ और खेल शुरू करेगा और ठीक वैसा ही हुआ. सभी मर्दों की तरह अब वो मेरी रसीली चूचियों के पीछे पड़ गया.
हम उस पतले गलियारे में दीवार का सहारा लेकर खड़े थे. मैंने महसूस किया की पांडेजी ने अपना दायां हाथ दीवार और मेरे बीच घुसा दिया और मेरी कांख को छू रहा है. मुझे बड़ी शरम आई क्यूंकी अभी तक तो जो हुआ उसे कोई नही देख रहा था पर अब अगर पांडेजी मेरी चूचियों को छूता है तो छोटू देख लेगा क्यूंकी छोटू मेरी तरफ मुँह किए था. मुझे कुछ करना होगा. लेकिन उन दोनों मर्दों के सामने मैं एक गुड़िया साबित हुई. उन दोनों ने मुझे कोई मौका ही नही दिया और उनकी बोल्डनेस देखकर मैं अवाक रह गयी.
अब लाइन जहाँ पर खिसक गयी थी वहाँ और भी अंधेरा था जिससे उन दोनों की हिम्मत और ज़्यादा बढ़ गयी. एक तरह से उन दोनों ने मुझ पर दोहरा आक्रमण कर दिया. छोटू अपने हाथ मेरी कमर से खिसकाते हुए साड़ी के फोल्ड पर ले आया था और अब एक झटके में उसने अपना दायां हाथ मेरी नाभि के पास लाकर साड़ी के अंदर डाल दिया.
उसकी इस हरकत से मैं ऐसी भौंचक्की रह गयी की मेरी आवाज़ ही बंद हो गयी. क्या हो रहा है , ये समझने तक तो छोटू ने एक झटके में अपना हाथ साड़ी के अंदर घुसा दिया. उसकी इस हरकत से मैं उछल गयी और मेरी बाँहें और भी ऊपर उठ गयी. मेरी बाँह उठने का पांडेजी ने पूरा फायदा उठाया और मेरी कांख से अपना हाथ खिसकाकर मेरी दायीं चूची को ज़ोर से दबा दिया.
“आआआअहह……..” मैं बुदबुदाई. पर मैं ज़ोर से आवाज़ नही निकाल सकती थी , मुझे अपनी आवाज़ दबानी पड़ी. क्यूंकी छोटू का हाथ मेरी साड़ी के अंदर था और पांडेजी का हाथ मेरे ब्लाउज के ऊपर था. अगर लोगों का ध्यान हमारी तरफ आकर्षित हो जाता तो मुझे बहुत शर्मिंदगी उठानी पड़ती.
अब तो मुझे कुछ करना ही था. भले ही वहाँ कुछ अंधेरा था पर हम अकेले तो नही थे. आगे पीछे सभी लोग थे. मुझे शरम और घबराहट महसूस हुई. मैंने दाएं हाथ में थाली पकड़ी और बाएं हाथ को अपनी नाभि के पास लायी और छोटू का हाथ साड़ी से बाहर खींचने की कोशिश करने लगी. मैं अपनी जगह पर खड़े खड़े कुलबुला रही थी और कोशिश कर रही थी की लोगों का ध्यान मेरी तरफ आकर्षित ना हो. लेकिन तभी छोटू ने नीचे को एक ज़ोर का झटका दिया और मैं एक मूर्ति के जैसे जड़वत हो गयी. शर्मिंदगी से मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और मेरे दाँत भींच गये . मैं बहुत असहाय महसूस कर रही थी . हालाँकि बहुत कामोत्तेजित हो गयी थी.
छोटू का हाथ मेरी साड़ी में अंदर घुस गया था और अब मेरी चूत के ऊपरी हिस्से को पैंटी के ऊपर से छू रहा था. उस अंधेरे गलियारे में वो लड़का छोटू मेरे सामने खड़े होकर करीब करीब मेरा रेप कर दे रहा था. अब वो अपना हाथ मेरी पैंटी के ऊपर नीचे करने लगा. कुछ पल तक मेरी आँखें बंद रही और मेरे दाँत भिंचे रहे.
उसके माहिर तरीके से हाथ घुमाने से मुझे ऐसा लगा की छोटू शायद पहले भी कुछ औरतों के साथ ऐसा कर चुका है. ज़रूर वो इस बात को जानता होगा की अगर तुम्हारा हाथ किसी औरत की चूत के पास पहुँच जाए तो फिर वो कोई बखेड़ा नही करेगी.
पांडेजी का हाथ मेरी दायीं चूची को कभी मसल रहा था , कभी दबा रहा था , कभी उसका साइज़ नापने की कोशिश कर रहा था , कभी निप्पल को ढूंढ रहा था. अब मैं पूरी तरह से कामोत्तेजित होकर गुरुजी के दिए पैड को चूतरस से भिगो रही थी.
अब मुझे अपनी आँखें खोलनी ही थी. मैं ऐसे कैसे लाइन में खड़ी रह सकती थी ये कोई मेरा बेडरूम थोड़ी था यहाँ और लोग भी तो थे. मैं कमजोर से कमजोर होते जा रही थी. थाली पर भी मेरी पकड़ कमजोर हो गयी थी , मैं तो ठीक से खड़ी भी नही हो पा रही थी. ये दो मर्द मेरी जवानी को ऑक्टोपस के जैसे जकड़े हुए थे. पांडेजी मेरी गोल गांड पर हल्के से धक्के लगा रहा था जैसे मुझे पीछे से चोद रहा हो. मैं इतनी कमज़ोर महसूस कर रही थी की विरोध करने लायक हालत में भी नही थी.
और सच बताऊँ तो उन दोनों मर्दों के मेरे बदन को मसलने से मुझे जो आनंद मिल रहा था उसे मैं बयान नही कर सकती. मैं चुपचाप खड़ी रही और छोटू के हाथ का अपनी पैंटी पर छूना, पांडेजी के मेरे भारी नितंबों पर धक्के और मेरी दायीं चूची पर उसका मसलना महसूस करती रही. सहारे के लिए मैं पीछे पांडेजी के ऊपर ढल गयी थी.
छोटू अब मेरी पैंटी के कोनो से झांट के बालों को छू रहा था. आज तक मेरे पति के अलावा किसी ने वहाँ नही छुआ था. मैं कामोन्माद में तड़पने लगी. वो तो खुश-किस्मती थी की मेरे पेटीकोट का नाड़ा कस के बँधा हुआ था और अब उसका हाथ और नीचे नही जा पा रहा था क्यूंकी हथेली का अंतिम हिस्सा मोटा होता है तो वहाँ पर उसका हाथ पेटीकोट के टाइट नाड़े में अड़ गया था.
मेरी चूत से बहुत रस बह रहा था और कमज़ोरी से सहारे के लिए मेरा सर पांडेजी की छाती से टिक गया था. मुझे मालूम था की मेरे ऐसे सर टिकाने से मैं उन्हें और भी मनमानी की खुली छूट दे रही हूँ पर मैं बहुत कमज़ोरी महसूस कर रही थी. पांडेजी तो इससे बहुत उत्साहित हो गया क्यूंकी उसे मालूम पड़ गया था की उनकी हरकतों से मुझे बहुत मज़ा आ रहा है.
अब पांडेजी अपने बाएं हाथ से मेरे नितंबों को दबाने लगा और दायां हाथ तो पहले से ही मेरी दायीं चूची और निप्पल को निचोड़ रहा था. मेरे निप्पल भी अब अंगूर के दाने जितने बड़े हो गये थे. पता नही पांडेजी के पीछे खड़े आदमी को ये सब दिख रहा होगा या नही. भले ही वहाँ थोड़ा अंधेरा था पर उसकी खुलेआम की गयी हरकत किसी ने देखी या नही मुझे नही मालूम. अब लाइन गलियारे के अंतिम छोर पर थी और यहाँ दिन में भी बहुत अंधेरा था. हवा आने जाने के लिए कोई खिड़की भी नही थी वहाँ पर.
कुछ फीट की दूरी पर एक दरवाज़ा था जो मैं समझ गयी की मंदिर के गर्भ ग्रह का था. उसे देखकर मैंने अपनी भावनाओं पर काबू पाने की कोशिश की पर मैं ऐसा ना कर सकी. मैं इतनी कामोत्तेजित हो चुकी थी की मेरा ध्यान कहीं और लग ही नही पा रहा था. सिर्फ़ अपने बदन को मसलने से मिलते आनंद पर ही मेरा ध्यान था.
छोटू जल्दी ही समझ गया की अब उसका हाथ और नीचे नही जा पा रहा तो उसने मेरी साड़ी के अंदर से हाथ बाहर निकाल लिया. ये मेरे लिए बहुत ही राहत की बात थी.
छोटू जल्दी ही समझ गया की अब उसका हाथ और नीचे नहीं जा पा रहा तो उसने मेरी साड़ी के अंदर से हाथ बाहर निकाल लिया. ये मेरे लिए बहुत ही राहत की बात थी. लेकिन अब उसका इरादा कुछ और था. वो थोड़ा झुका और मेरी साड़ी के निचले सिरों को पकड़कर मेरी टाँगों के ऊपर साड़ी खिसकाने लगा. मैं उसको रोक नहीं पायी क्यूंकी उस लड़के की बदमाशी से मुझे बहुत मज़ा आ रहा था. बिना समय लगाए छोटू ने मेरे घुटनों तक साड़ी ऊपर खिसका दी और एक अनुभवी मर्द की तरह मेरी मांसल जांघों को अपने हाथों से मसलने लगा.
पांडेजी भी मौके का फायदा उठाने में पीछे नहीं रहा. उसने तुरंत अपना बायां हाथ मेरी जाँघ में रख दिया और वो मेरी साड़ी को कमर तक उठाने की जल्दी में था. पांडेजी थोड़ा बायीं तरफ खिसक गया ताकि पीछे से किसी की नज़र मेरी नंगी टाँगों पर ना पड़े. बाहर से कोई देखे तो उसे मेरी साड़ी नॉर्मल दिखती पर अगर ध्यान से देखे तो मेरी साड़ी ऊपर उठी हुई दिखती. साड़ी के अंदर उन दोनों मर्दों के हाथ मेरी जांघों पर थे. मैं तो सपने में भी नहीं सोच सकती थी की ऐसी हालत में एक मंदिर में खड़ी होऊँगी और दो अंजाने मर्द मेरी टाँगों पर ऐसे हाथ फिराएँगे.
पांडेजी ने ज़बरदस्ती मेरी साड़ी और पेटीकोट को कमर तक उठा दिया. मेरी टाँगें और जाँघें पूरी नंगी हो गयीं.
“आउच……प्लीज़ मत करो.”
मैं धीरे से बुदबुदाई ताकि कोई और ना सुन ले.
पांडेजी शायद बहुत उत्तेजित हो गया था. उसने मेरी दायीं चूची के ऊपर से अपना हाथ हटा लिया था और दोनों हाथों से मेरी साड़ी ऊपर खींचने लगा. मैं घबरा गयी क्यूंकी उन दोनों ने मुझे नीचे से नंगी कर दिया था. छोटू खुलेआम मेरे नंगे नितंबों को दबा रहा था. मेरे एक हाथ में थाली थी . मैंने बाएं हाथ से पांडेजी को रोकने की कोशिश की और अपनी साड़ी नीचे करने की कोशिश की पर वो मेरे पीछे खड़ा था और उसके लिए मेरी साड़ी को ऊपर खींचना आसान था , मेरे विरोध से उसे कुछ फ़र्क नहीं पड़ा.
“पांडेजी आप हद से बाहर जा रहे हो. अब बंद करो ये सब. लोगों के बीच में मैं ऐसे नहीं खड़ी रह सकती.”
मैं मना करने लगी पर उसने जवाब देना भी ज़रूरी नहीं समझा. उसकी ताक़त के आगे मेरा बायां हाथ क्या करता. उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी की मैं साड़ी नीचे नहीं कर पायी. मैं बिल्कुल असहाय महसूस कर रही थी. मेरी कमर तक साड़ी उठाकर उन दोनों ने मुझे नीचे से गी कर दिया था.
“पांडेजी रुक जाओ. अब बहुत हो गया.”
पांडेजी – चुपचाप खड़ी रहो वरना मैं तुम्हारी ये हालत सबको दिखा दूँगा.
उसकी धमकी सुनकर मैं शॉक्ड रह गयी. ऐसा लग रहा था कुछ ही पलों में ये आदमी बदल गया है.
“लेकिन….”
पांडेजी – लेकिन वेकिन कुछ नहीं मैडम. अगर तुमने शोर मचाया तो मैं यहाँ अंधेरे से निकालकर तुमको इस हालत में सबके सामने धूप में ले जाऊँगा. इसलिए चुपचाप रहो.
“लेकिन मैं गुरुजी के आश्रम से आई हूँ….”
पांडेजी – भाड़ में गया गुरुजी. अगर एक शब्द भी और बोला ना तो मैं तुम्हारी पैंटी नीचे खींच दूँगा और सबके सामने ले जाकर खड़ी कर दूँगा. समझी ?
मैं समझ नहीं पा रही थी की क्या करूँ. एक तरफ तो उनके मसलने और मुझे ऐसे नंगी करने से मैं बहुत कामोत्तेजित हो रखी थी. लेकिन अब पहली बार मैं डरी हुई भी थी. मैंने शांत रहने की कोशिश की ताकि कोई बखेड़ा ना हो और लोगों का ध्यान मेरी इस हालत पर ना जाए. एक 28 साल की शादीशुदा औरत के लिए मंदिर की लाइन में ज़बरदस्ती ऐसे अधनंगी खड़ी रहना, ये तो बहुत हो गया था, पर मैंने अपने मन को दिलासा दी और शांत रहने की कोशिश की.
लाइन बहुत धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी. पांडेजी ने मेरी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर मोडकर कमर में घुसा दिया था. और मैं इसी हालत में अधनंगी होकर बेशर्मी से लाइन में आगे चल रही थी. ठंडी हवा मेरी नंगी टाँगों में महसूस हो रही थी. उनके ऐसे ज़बरदस्ती मुझे अधनंगी करने से मैं आगे चलते हुए शरम से मरी जा रही थी. अपमानित महसूस करके आश्रम में आने के बाद पहली बार मेरी आँखों में आँसू आ गये . इससे पहले जो भी हुआ था उसमें मर्दों के मेरे बदन को छूने का मैंने भी पूरा मज़ा लिया था. पर यहाँ पांडेजी मुझसे ज़बरदस्ती कर रहा था. और मैं असहाय महसूस कर रही थी.
छोटू की नज़रें मेरी नग्नता पर ही थी. उस अधनंगी हालत में मेरे लाइन में खड़े होने और चलने का वो मज़ा ले रहा था. छोटू और पांडेजी मेरी नंगी मांसल जांघों और नितंबों पर मनमर्ज़ी से हाथ फिरा रहे थे.
अचानक मुझे महसूस हुआ पांडेजी ने धोती से अपना लंड बाहर निकालकर मेरे नंगे नितंबों पर छुआ दिया. मैंने एकदम से चौंक कर पीछे को सर घुमाया और मेरी आँखें बड़ी होकर फैल गयीं.
“उफ…..कितना बड़ा लंड “ मैंने मन ही मन कहा.
पांडेजी का लंड बहुत बड़ा था. कोई भी औरत उसके लंड को देखकर चौंके बिना नहीं रहती. पांडेजी अपने लंड को मेरे नंगे नितंबों पर छुआने लगा. मुझे विश्वास नहीं हो रहा था की लाइन में हमारे आगे और पीछे लोग हैं लेकिन अंधेरे और पतले गलियारे की वजह से कोई नहीं देख पा रहा था की मेरे साथ क्या हो रहा है. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था की अब आगे मेरे साथ वो दोनों क्या करने वाले हैं. मेरे नंगे नितंबों पर गरम लंड के छूने से ही मैं गीली होने लगी और अब मेरे डर की जगह कामोत्तेजना ने ले ली.
फिर पांडेजी ने एक झटका दिया और लंड को मेरी गांड की दरार में घुसाने लगा.
“ऊऊओह…..”
मैं कामोत्तेजना से तड़पने लगी. पांडेजी मेरे कान में मुँह लगाकर मेरे जवान बदन और बड़े नितंबों के बारे में अनाप शनाप बोलने लगा. वो मेरी गांड की दरार में ज़ोर से लंड घुसा रहा था पर खुशकिस्मती से लंड अंदर नहीं जा पा रहा था क्यूंकी मैंने पैंटी पहनी हुई थी. फिर वो मेरे मुलायम नितंबों को अपने तने हुए मोटे लंड से दबाने लगा. मेरे आँखें फैल गयी और उत्तेजना से मैंने छोटू का हाथ पकड़ लिया.
मेरे मुलायम नितंबों में पांडेजी का लोहे जैसा सख़्त लंड बहुत चुभ रहा था. मैं बहुत ही उत्तेजित हो गयी . वो पीछे से धक्के लगाने लगा जैसे मुझे चोद रहा हो. मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और मज़ा लेने लगी. छोटू ने मुझसे अपना हाथ छुड़ा लिया और मेरी दायीं चूची पकड़ ली. अब वो ज़ोर ज़ोर से चूची को दबाने लगा. मुझे लगा अगर ये ऐसे ही चूची दबाएगा तो मेरे ब्लाउज के सारे बटन तोड़ देगा. पांडेजी मेरे सुडौल नंगे नितंबों में हर जगह अपने लंड को चुभा रहा था , सिर्फ़ गांड के बीच की दरार पैंटी से ढकी हुई थी.
मेरा बदन भी पांडेजी के धक्कों की ताल से ताल मिलाकर हिलने लगा. मेरे होंठ खुल गये , मुझे उन पर चुंबन की इच्छा होने लगी. अब मैं हल्की सिसकारियाँ लेने लगी और उत्तेजना से छोटू को अपने बदन से भींच लिया. मेरी चूत रस से पूरी गीली हो चुकी थी. मुझे लगा इन दोनों की छेड़खानी से मुझे ओर्गास्म आने ही वाला है. मैंने छोटू को अपने बदन से चिपका लिया था . उसका मुँह मेरी तनी हुई चूचियों पर दब रहा था. अब छोटू ने मेरे बाएं हाथ को पकड़ा और अपने निक्कर पर लगा दिया. उसने झट से अपने निक्कर की ज़िप खोली और मेरा हाथ निक्कर के अंदर डाल दिया.
“आआआआअहह…….ऊऊहह…..”
मैं सिसकारियाँ ले रही थी. मैंने छोटू का तना हुआ लंड हाथ में पकड़ा हुआ था और पांडेजी का मोटा लंड मेरी मुलायम गांड को मसल रहा था. उत्तेजना से मैं छोटू के लंड को अपनी अंगुलियों से सहलाने लगी. मैं बहुत कामोत्तेजित हो गयी थी और एक रंडी की तरह व्यवहार कर रही थी. कामोन्माद से मेरा बदन तड़प रहा था और अब मेरी चूत से बहुत रस बहने लगा.
पांडेजी और छोटू की कामातुर नज़रों के सामने ही मुझे ओर्गास्म आ गया और मैं लाइन में खड़े खड़े झड़ने लगी. मुँह से सिसकारियाँ ज़ोर से ना निकले इसके लिए मुझे अपना मुँह पांडेजी के चौड़े कन्धों से चिपटाना पड़ा. ये अश्लील दृश्य कुछ पल तक चलता रहा जब तक की मैं पूरी तरह झड़ नहीं गयी.
जब मेरा ओर्गास्म खत्म हो गया तो मैं होश में आई. मुझे इतनी शर्मिंदगी महसूस हो रही थी की मैं छोटू और पांडेजी से आँखें नहीं मिला पा रही थी.
पांडेजी – हाँ अब तुम एक अच्छी लड़की के जैसे व्यवहार कर रही हो.
मैंने अपने कान में पांडेजी की फुसफुसाहट सुनी. उसने फुसफुसाते हुए कुछ गंदे कमेंट्स भी किए. अब हम गर्भ गृह के पास पहुँच गये थे.
“पांडेजी अब लोग देख लेंगे. मुझे कपड़े ठीक करने दो.”
पांडेजी ने कोई जवाब नहीं दिया और मेरी कमर से साड़ी और पेटीकोट को निकालकर नीचे कर दिया. आख़िरकार अब मैं पूरी ढकी हुई थी. छोटू ने भी आगे को मुँह कर लिया और पांडेजी ने अपनी धोती ठीक कर ली. पलक झपकते ही सब कुछ नॉर्मल लग रहा था. लेकिन जो कुछ हुआ था उससे मैं अभी भी हाँफ रही थी.
कुछ ही देर में हमारी बारी आ गयी और मैं ‘गर्भ गृह ‘ के पास वाले कमरे के अंदर चली गयी. वो दोनों भी मेरे साथ ही अंदर घुस गये और कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया.
पांडेजी – मैडम, मुझे नहीं लगता की इस हालत में तुम पूजा कर पाओगी.
“हाँ, मैं पूजा करने की हालत में नहीं हूँ.”
पांडेजी – लेकिन तुम मुझे तो कुछ करने दे सकती हो.
“क्या ?????”
पांडेजी – मैडम, तुम्हारा काम तो हो गया. लेकिन अभी मेरा नहीं हुआ है.
“क्या मतलब ?”
पांडेजी – मतलब ये की तुम्हारा ओर्गास्म तो निकल गया. मेरा क्या मैडम ?
उसकी बात से मैं अवाक रह गयी . कुछ कहती इससे पहले ही छोटू ने मेरे हाथ से पूजा की थाली ली और एक तरफ रख दी. पांडेजी भी मेरे एकदम नज़दीक़ आ गया.
“लेकिन……तुम…….तुम ऐसा नहीं कर सकते……”
पांडेजी – मैडम , अगर तुम शोर मचाओगी तो फिर मैं क्या कर सकता हूँ तुम अच्छी तरह से जानती हो.
वो फिर से मुझे रौबीली आवाज़ में धमकाने लगा.
“ लेकिन प्लीज़ समझने की कोशिश करो. मैं शादीशुदा हूँ और वैसी औरत नहीं हूँ जैसी तुम समझ रहे हो.”
पांडेजी – मैं जानता हूँ की तुम रंडी नहीं हो . इसीलिए मैं तुम्हें अपने बिस्तर पर नहीं ले गया. समझी ?
मेरी समझ में नहीं आ रहा था की अब क्या करूँ ? मैं मन ही मन गुरुजी और विकास को कोसने लगी की उन्होने मुझे यहाँ भेज दिया.
पांडेजी – हमारे पास समय नहीं है. छोटू इसे यहाँ ला.
पांडेजी पीछे आने का इशारा कर कर रहा था , वहाँ छोटी सी जगह थी. छोटू जल्दी से मेरे पीछे आया और मेरे हाथ पकड़े और मुझे खींचते हुए पीछे ले गया. पांडेजी ने मुझे सामने से आलिंगन में कस लिया , मेरी तनी हुई चूचियाँ उसकी छाती से दब गयी. मैं अपने को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी पर ज़्यादा कुछ नहीं कर पा रही थी , क्यूंकी छोटू ने मेरे हाथ पीछे को पकड़े हुए थे.
पांडेजी मेरे नितंबों को दोनों हाथों से पकड़कर दबा रहा था और मेरी गर्दन और कंधे में अपना चेहरा रगड़ रहा था. मुझे थोड़ी हैरानी हुई की पांडेजी ने मेरे होठों और गालों को चूमने की कोशिश नहीं की , जैसा की मर्दों का स्वभाव होता है. उसने मुझे अपने बदन से चिपकाए रखा.
मैं चिल्ला भी नहीं सकती थी क्यूंकी इससे लोगों के सामने और भी अपमानित होना पड़ता. तो मैंने उसकी छेड़खानी का आनंद उठाने की कोशिश की. मुझे अभी कुछ ही मिनट पहले बहुत तेज ओर्गास्म आया था लेकिन पांडेजी के मेरे बदन को छूने से मैं फिर से कामोत्तेजित होने लगी.
मेरी उछलती हुई बड़ी चूचियाँ उसकी चौड़ी छाती में दब रही थीं और उनकी सुडौलता और गोलाई उसे महसूस हो रही होगी. मेरे हाथ पीछे छोटू ने पकड़े हुए थे पर मैं अपने पैरों को हिलाकर विरोध करने की कोशिश कर रही थी पर पांडेजी ने मुझे मजबूती से जकड़ रखा था.
थोड़ी देर तक मेरे सुडौल नितंबों और चूचियों को दबाने , मसलने और सहलाने के बाद उसने मुझे छोड़ दिया. उसके ऐसे मुझे अधूरा उत्तेजित करके छोड़ देने से मुझे हैरानी भी हुई और इरिटेशन भी हुई. लेकिन जल्दी ही मुझे उसके इरादे का पता चल गया. वो मेरे पीछे आया , अपनी धोती खोल दी और दोनों हाथों से एक झटके में मेरी साड़ी और पेटीकोट मेरी कमर तक ऊपर उठा दी.
एक बार फिर से उन्होंने मुझे बेशर्मी से नीचे से नंगी कर दिया. अब छोटू ने मुझे सामने से आलिंगन कर लिया और पांडेजी ने मेरे हाथ पीछे को पकड़ लिए. अब पांडेजी अपने तने हुए मोटे लंड को मेरी गांड में चुभाने लगा. दो मर्दों ने आगे पीछे से मेरे बदन को जकड़ लिया था. मुझे कभी ऐसा अनुभव नहीं हुआ था और मैं हांफने लगी. उन दोनों मर्दों के बीच दबने से मैं स्वाभाविक रूप से कामोत्तेजित होने लगी.
मैंने अब उन दोनों के आगे समर्पण कर दिया. छोटू मुझे कस के पकड़े हुए था और मैं भी अपनी रसीली चूचियों को उसके मुँह में दबा रही थी. वो मेरे ब्लाउज के बाहर से ही चूचियों पर दाँत गड़ा रहा था. पांडेजी पीछे से धक्के लगाए जा रहा था और उसका मोटा सख़्त लंड मेरे मुलायम नितंबों को गोद रहा था. मुझे बहुत मज़ा मिल रहा था. पर दो मिनट में ही पांडेजी चरम पर पहुँच गया और उसने मेरे नंगे नितंबों पर वीर्य छोड़ दिया.
छोटू को अपने से बड़ी उमर की जवान औरत को बिना किसी रोकटोक के आलिंगन करने में बहुत मज़ा आ रहा था. उसने मुझे सभी गुप्तांगों पर छुआ. पांडेजी ने मेरे हाथ पीछे को पकड़े हुए थे इसलिए मैं छोटू को रोक नहीं पायी. उसने मुझे ब्लाउज के ऊपर से छुआ , मेरी ब्रा के स्ट्रैप को छुआ , मेरी पैंटी के ऊपर से छुआ , पैंटी के कपड़े को बाहर को खींचकर अंदर झाँका और यहाँ तक की मेरे प्यूबिक हेयर्स (झांट के बालों ) को भी खींचा.
पांडेजी ने मेरे नितंबों पर वीर्य गिरा दिया था. फिर उसने अपनी धोती से मेरे नितंबों को पोंछ दिया. उतने समय तक मेरी साड़ी कमर तक ऊपर उठी हुई थी और मैं बेशर्मी से अधनंगी खड़ी थी. शुक्र है की ये सब देवता के पीछे हो रहा था.
आधे घंटे बाद विकास आ गया. वापसी में रास्ते भर गुस्से से मैं उससे कुछ नहीं बोली. मैं विकास से इस बात पर बहुत गुस्सा थी की मुझे पांडेजी जैसे आदमी के पास भेजा.
आश्रम में अपने कमरे में आकर मैंने देर तक नहाया और फिर लंच करने के बाद मैंने बेड में आराम किया.
जिस तरह का व्यवहार उस लुच्चे लफंगे पांडेज़ी ने मेरे साथ किया , उसके कारण मैं विकास से बहुत नाराज़ हो गयी थी और मन ही मन उसे कोस रही थी की मुझे ऐसे लफंगे के पास भेजा. लेकिन बाद में मुझे अहसास हुआ की विकास की इसमें कोई ग़लती नही है , वो तो सिर्फ़ गुरुजी के आदेश का पालन कर रहा था. मुझे याद आया की गुरुजी ने इस दो दिन के उपचार के शुरू में क्या कहा था. उन्होने कहा था की दो दिन तक रोज़ कम से कम दो बार ओर्गास्म लाने हैं.
और इसके लिए जो भी सिचुयेशन वो देंगे वहाँ मुझे सिर्फ़ अपने शरीर से स्वाभाविक प्रतिक्रिया देनी है और अच्छा बुरा ये सब दिमाग में नही सोचना है, जो हो रहा है उसे होने देना. बिस्तर में लेटे हुए मेरे मन में मंदिर की घटना घूमने लगी. मुझे ऐसा लगा , मेरे खूबसूरत बदन की वजह से पांडेजी बहक गया होगा और मेरा ओर्गास्म निकलने के बाद भी उसने मुझे नही छोड़ा.
अपना पानी निकालने के लिए उसने मेरे बदन का इस्तेमाल किया. शायद कामोत्तेजना में वो गुरुजी के निर्देशों से भटक गया होगा. आख़िरकार वो था तो एक मर्द ही , अपने ऊपर काबू नही रख पाया.
ये सब सोचकर अब मेरा मन शांत हो गया था. बल्कि मैं गर्व महसूस करने लगी थी की 30 वर्ष के करीब पहुँचने वाली हूँ और अब भी छोटू से लेकर पांडेजी और गोपालजी जैसे छोटी बड़ी सभी उम्र के मर्द मेरे खूबसूरत बदन की तरफ आकर्षित हो रहे हैं. मुझे अब सिर्फ इस बात का अपराधबोध रह गया था की मंदिर के गर्भ गृह जैसी पवित्र जगह के पास में मैंने उन दो मर्दों को अपने बदन से छेड़खानी करने दी. मैंने भगवान से प्रार्थना की और इस ग़लत काम के लिए क्षमा माँगी.
कहानी जारी रहेगी
NOTE
1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब अलग होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा कही पर भी संभव है .
2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा जी स्वामी, पंडित, पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.
3. इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने अन्यत्र नहीं पढ़ी है .
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2. दिल्ली में सुलतान V रफीक के बीच युद्ध
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गुरुजी के आश्रम में सावित्री
CHAPTER 4 तीसरा दिन
नौका विहार
Update 1
नदी के किनारे
बिस्तर में लेटे हुए मेरे दिमाग़ में मंदिर के वही दृश्य घूम रहे थे. और इन सब में वो दृश्य सबसे शर्मिंदगी भरा था जब पांडेजी ने मुझे लाइन में अधनंगी चलने पर मजबूर किया था, मेरी साड़ी और पेटीकोट कमर तक उठा रखी थी. वो दृश्य याद आते ही मैं बहुत ही अपमानित महसूस कर रही थी. पांडेजी ने बहुत ही बेशर्म होने पर मजबूर किया. मैंने कभी इतना ह्युमिलिएटेड नही महसूस किया था.
यही सब सोचते हुए पता नही कब मुझे नींद आ गयी. परिमल ने जब दरवाज़ा खटखटाया तो मेरी नींद खुली. वो चाय और बिस्किट्स लेकर आया था. परिमल ने ट्रे रख दी और उसकी नज़रें मेरी चूचियों पर ही थी. मैं सो रही थी इसलिए मैंने ब्रा नही पहनी हुई थी , इसलिए मेरी बड़ी चूचियाँ इधर उधर हिल रही थी.
मुझे आश्चर्य हुआ की बिना ब्रा के भी ऐसे एक मर्द के सामने खड़े होकर मुझे शरम नही महसूस हो रही थी. मैंने अपनी चूचियों को देखा तो पाया की ब्लाउज में मेरे निप्पल साफ दिख रहे हैं , तभी परिमल की नज़रें बार बार उन पर जा रही थी. मैं जल्दी से पीछे मुड़ी और ब्रा पहनने के लिए बाथरूम जाने लगी.
परिमल – मैडम, जब आप आरती देखने मुक्तेश्वरी मंदिर जाओगी , उससे पहले मैं आपके लिए नया पैड ले आऊँगा.
“ठीक है. प्लीज़ जाते समय दरवाज़ा बंद कर देना.”
परिमल चला गया और मैं बाथरूम चली गयी. मैं 15 मिनट में तैयार हो गयी. फिर पैंटी में पैड लगा लिया और आश्रम से बाहर जाने से पहले दवा खा ली. जब मैं कमरे से बाहर आई तो देखा अंधेरा होने लगा था. मैं काफ़ी देर तक सो गयी थी. पर अच्छी नींद आने से अब मैं बहुत ताज़गी महसूस कर रही थी.
विकास मुझे ले जाने के लिए नही आया था मैं उसे ढूंढने लगी. आश्रम के प्रांगण में मुझे वो खो खो खेलते हुए दिख गया. उसके साथ समीर, राजकमल , मंजू और कुछ लड़के लड़कियाँ खेल रहे थे. विकास ने मुझे देखकर हाथ हिलाया और इंतज़ार करने का इशारा किया. खेलते हुए वो इधर उधर दौड़ रहा था, मैं सिर्फ़ उसको ही देख रही थी.
उसका मजबूत बदन दौड़ते हुए मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. ये साफ था की मैं विकास की तरफ आकर्षित होने लगी थी. मुझे अपने दिल की धड़कनें तेज होती हुई महसूस हुई ठीक वैसे जब कॉलेज के दिनों में मैं पहली बार एक लड़के की तरफ आकर्षित हुई थी. वो मेरा पहला और अंतिम अफेयर था.
जल्दी ही उनका खेल खत्म हो गया. विकास ने अपने हाथ पैर धोए और हम आश्रम से बाहर आ गये. आज फिर बैलगाड़ी से जाना था.
विकास – मैडम, सुबह मंदिर की घटनाओ के लिए तुम मुझसे नाराज़ हो ?
“हाँ बिल्कुल हूँ. तुम मुझे उस लफंगे के पास छोड़कर चले गये. ”
मैंने ऐसा दिखाया जैसे मैं विकास से नाराज़ हूँ. मैं चाहती थी की विकास मुझे मनाए , मुझसे विनती करे.
विकास – मैडम, मेरा विश्वास करो. मेरा इसमे कोई रोल नही है. ये तो गुरुजी का आदेश था .
“मुझे नही मालूम , क्या सच है. पर वो आदमी मुझसे बहुत बदतमीज़ी से पेश आया.”
विकास – मैडम, अगर उसने कोई बदतमीज़ी की तो ये आकस्मिक रूप से हो गया होगा. शायद तुम्हारी खूबसूरती देखकर वो अपने ऊपर काबू नही रख पाया होगा.
मैं चुप रही और विकास की तरफ से मुँह मोड़ लिया. मैं उसका रिएक्शन देखना चाहती थी की मुझे कैसे मनाता है. उसने मेरी कोहनी पकड़ी और मुझे मनाने लगा.
विकास – मैडम, प्लीज़ बुरा मत मानो. प्लीज़ मैडम.
मैं उसकी तरफ मुड़ी और मुस्कुरा दी. इस तरह से मैंने ये जता दिया की मेरे ओर्गास्म निकलने के बाद भी पांडेजी ने मेरे साथ जो किया , अब मैं उसका बुरा नही मान रही हूँ. विकास भी मुस्कुराया और बड़ी बेशर्मी से मेरी दायीं चूची को अपने अंगूठे से दबा दिया. मैं शरमा गयी पर बिल्कुल बुरा नही माना. एक ऐसा आदमी जिसे मैं सिर्फ़ दो दिनों से जानती थी , उसके ऐसे अभद्र व्यवहार का भी मैं बुरा नही मान रही थी. मैं खुद ही हैरान होने लगी थी की हर गुज़रते पल के साथ मैं बेशर्मी की नयी ऊंचाइयों को छू रही हूँ.
जल्दी ही बैलगाड़ी आ गयी. विकास ने कहा की पहले मुक्तेश्वरी मंदिर ही जाना पड़ेगा वरना बैलगाड़ीवाला आश्रम में बता भी सकता है. विकास ने मुझसे वादा किया था की शाम को वो मंदिर नही ले जाएगा पर उसकी बात भी सही थी. आश्रम में किसी के पूछने पर बैलगाड़ीवाला बता भी सकता था की हम मंदिर नही गये.
मैं बैलगाड़ी में बैठ गयी और विकास मुझसे सट के बैठ गया. हमारी तरफ बैलगाड़ीवाले की पीठ थी और बाहर भी अंधेरा होने लगा था , इससे मैं एक कम उम्र की लड़की के जैसे रोमांचित थी . मेले को जाते वक़्त बैलगाड़ी का सफ़र बोरियत भरा था पर आज का सफ़र मज़ेदार होने वाला था.
विकास – मैडम, रोड पर नज़र रखना. लोगों को हम बहुत नज़दीक़ बैठे हुए नही दिखने चाहिए.
विकास मेरे कान में फुसफुसाया. उसके मोटे होंठ मेरे कान को छू रहे थे और उसने अपनी बाँह पीछे से डालकर मुझे हल्के से आलिंगन में लिया हुआ था. इस रोमांटिक हरकत से मेरे बदन में कंपकपी दौड़ गयी और मैं बहुत शरमा गयी. मुझे ऐसा लग रहा था की जैसे मैं एक कॉलेज की लड़की हूँ और अपनी पहली डेट पर जा रही हूँ.
बैलगाड़ी में हमारी सीट के ऊपर गोलाई में मुड़ा हुआ कवर था , जो पीछे से खुला हुआ था. कोई भी पीछे से आता आदमी हमें देख सकता था इसलिए विकास ने जल्दी ही मेरी पीठ से हाथ हटा लिया. हमारी टाँगें एक दूसरे से सटी हुई थीं . बैलगाड़ी में झटके बहुत लगते थे और जब भी ऐसा कोई झटका लगता तो मैं विकास को टाँगों से छूने की कोशिश करती. मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था और मेरी भावनायें बिल्कुल वैसी ही थी जैसे कॉलेज के दिनों में डेटिंग पर जाते हुए हुआ करती थीं.
मैं विकास का हाथ पकड़े हुए थी और वो मेरी पतली अंगुलियों से खेल रहा था. उसकी हथेली गरम महसूस हो रही थी और इससे मुझे और भी उत्तेजना आ रही थी. हम गांव की रोड में धीमे धीमे आगे बढ़ रहे थे. एक जगह पर सुनसानी देखकर विकास ने मेरी साड़ी के पल्लू के अंदर हाथ डाल दिया और मेरी मुलायम चूचियों को सहलाने लगा.
उसके प्यार से मेरी चूचियों को सहलाने से मैं मन ही मन मुस्कुरायी क्यूंकी अभी तक तो जो भी मुझे यहाँ अनुभव हुए थे उनमे सभी मर्दों ने मेरी चूचियों को कामवासना से निचोड़ा था. बैलगाड़ी की हर हलचल के साथ विकास धीरे से मेरी चूची को दबा रहा था. मुझे इतना अच्छा लग रहा था की मैंने आँखें बंद कर ली. उसकी अंगुलियों को मैं अपने ब्लाउज के ऊपर घूमती हुई महसूस कर रही थी. उसकी अँगुलियाँ ब्लाउज के ऊपर से मेरी ब्रा में निपल को ढूंढने की कोशिश कर रही थीं.
विकास – मैडम, तुमने अपने निपल्स कहाँ छुपा दिए ? मैं ढूंढ नही पा रहा.
मैंने शरमाकर बनावटी गुस्से से उसके हाथ में थप्पड़ मार दिया. अब उत्तेजना से मेरे कान गरम होने लगे थे. पर विकास कुछ और करता तब तक मुक्तेश्वरी मंदिर आ गया. ये सुबह के मंदिर के मुक़ाबले बहुत छोटा मंदिर था. विकास ने बैलगाड़ी वाले से दो घंटे बाद आने को कहा और हम मंदिर की तरफ बढ़ गये.
विकास – मैडम, हम भगवा कपड़ों में हैं इसलिए हर कोई हमें पहचान लेगा की हम आश्रम से आए हैं. पहले हमें अपने कपड़े बदलने होंगे. मैं अपने लिए और तुम्हारे लिए बैग में कुछ कपड़े लाया हूँ. चलो मंदिर के पीछे चलते हैं और कपड़े बदल लेते हैं.
मैंने सहमति में सर हिलाया और हम मंदिर के पीछे चले गये. वहाँ कोई नही था. विकास ने बैग में से एक हाफ शर्ट और पैंट निकाला . फिर वो अपने आश्रम के कपड़े बदलने के लिए पास में ही एक पेड़ के पीछे चला गया. मैं उसका बैग पकड़े वहीं पर खड़ी रही. मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था की कहीं कोई आ ना जाए . पर कुछ नही हुआ और एक मिनट में ही विकास कपड़े बदलकर आ गया.
विकास – मैडम, अब तुम अपनी साड़ी और ब्लाउज जल्दी से बदल लो.
ऐसा कहते हुए विकास ने बैग में से एक साड़ी और ब्लाउज निकाला. मैंने उससे कपड़े ले लिए और उसी पेड़ के पीछे चली गयी. मैंने जल्दी से साड़ी उतार दी और ब्लाउज उतारने से पहले इधर उधर नज़र दौड़ाई. वहाँ कोई नही था और शाम का अंधेरा भी था , इससे मेरी हिम्मत बढ़ी और मैंने अपना ब्लाउज भी खोल दिया.
अब मैं सिर्फ़ ब्रा और पेटीकोट में खड़ी थी. मैं मन ही मन अपने को दाद दे रही थी की आश्रम में आकर कुछ ही दिनों में कितनी बोल्ड हो गयी हूँ. वो ब्लाउज मेरे लिए बहुत ढीला हो रहा था. ज़रूर किसी बहुत ही बड़ी छाती वाली औरत का होगा. नयी साड़ी ब्लाउज पहनकर मैं पेड़ के पीछे से निकल आई. विकास ने मेरी आश्रम की साड़ी और ब्लाउज जल्दी से बैग में डाल दिए.
“ये किसकी साड़ी और ब्लाउज है ?”
विकास – मेरी गर्लफ्रेंड की है.
मैंने बनावटी गुस्से से विकास को देखा पर उसने जल्दी से मेरा हाथ पकड़ा और मंदिर से बाहर ले आया. रोड में गांव वाले आ जा रहे थे पर अब हम नॉर्मल कपड़ों में थे इसलिए किसी ने ज़्यादा ध्यान नही दिया.
विकास – मैडम, नदी के किनारे चलते हैं. सबसे सेफ जगह वही है. 5 मिनट में पहुँच जाएँगे.
“ठीक है. इस जगह को तुम ही बेहतर जानते हो.”
विकास – अभी इस समय वहाँ कोई नही होगा.
जल्दी ही हम नदी के किनारे पहुँच गये और वास्तव में वो बहुत ही प्यारी जगह थी.
जल्दी ही हम नदी के किनारे पहुँच गये और वास्तव में वो बहुत ही प्यारी जगह थी. हम दोनों के सिवा वहाँ कोई नही था. नदी किनारे काफ़ी घास उगी हुई थी और वहाँ ठंडी हवा चल रही थी. चाँद भी धीमी रोशनी दे रहा था और हम दोनों नदी किनारे घास पे चल रहे थे , बहुत ही रोमांटिक माहौल था.
विकास – कैसा लग रहा है मैडम ?
विकास मेरा हाथ पकड़े हुए था. फिर उसने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया. उसके पौरुष की गंध, चौड़ी छाती और मजबूत कंधों से मैं होश खोने लगी और मैंने भी उसे मजबूती से अपने आलिंगन में कस लिया. विकास मेरे जवान बदन पर अपने हाथ फिराने लगा और मेरे चेहरे से अपना चेहरा रगड़ने लगा. मैं बहुत उत्तेजित हो गयी और उसके होठों को चूमना चाहती थी.
उसके चूमने से पहले ही अपनी सारी शरम छोड़कर मैंने उसके होठों का चुंबन ले लिया. तुरंत ही उसके मोटे होंठ मेरे होठों को चूमने लगे और उसकी लार से मेरे होंठ गीले हो गये. मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे होठों का रस वो एक ही बार में निचोड़ लेना चाहता है. जब उसने मेरे होंठ कुछ पल के लिए अलग किए तो मैं बुरी तरह हाँफने लगी.
“विकास….”
मैं विकास के चूमने और बाद पर हाथ फिराने से बहुत उत्तेजित हो गयी थी और सिसकारियों में उसका नाम ले रही थी. मेरी टाँगें काँपने लगी पर उसकी मजबूत बाँहों ने मुझे थामे रखा. मेरा पल्लू कंधे से गिरकर मेरी बाँहों में आ गया था. चूँकि विकास का दिया हुआ ब्लाउज बहुत ढीला था इसलिए मेरी चूचियों का ऊपरी हिस्सा साफ दिख रहा था.
विकास ने अपना मुँह मेरी क्लीवेज पर लगा दिया और मेरी चूचियों के मुलायम ऊपरी हिस्से को चूमने और चाटने लगा. मैं उत्तेजना से पागल सी हो गयी. मैंने भी मौका देखकर अपने दाएं हाथ से उसके पैंट में खड़े लंड को पकड़ लिया.
“ऊऊऊऊहह……”
विकास के मोटे लंड को पैंट के बाहर से हाथ में पकड़कर मैंने ज़ोर से सिसकारी ली . उसके लंड को पैंट के बाहर से छूना भी बहुत अच्छा लग रहा था. उसके पैंट की ज़िप खोलने में विकास ने मेरी मदद की . उसके अंडरवियर में लंड पोले की तरह खड़ा था. मैं उसके अंडरवियर के बाहर से ही खड़े लंड को सहलाने लगी. अचानक विकास ने मेरी चूचियों से मुँह हटा लिया.
मैं कुछ समझ नही पाई की क्या हुआ . मेरा पल्लू गिरा हुआ था और बड़ी क्लीवेज दिख रही थी और एक हाथ में मैंने विकास का लंड पकड़ा हुआ था , मैं वैसी हालत में खड़ी थी. तभी मैंने देखा विकास नदी की ओर देख रहा है. मैंने भी नदी की तरफ देखा, एक नाव हमारी तरफ आ रही थी.
विकास – मैडम , लगता है आज हमारी किस्मत अच्छी है. मेरे साथ आओ.
कहानी जारी रहेगी
NOTE
1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब अलग होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा कही पर भी संभव है .
2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा जी स्वामी, पंडित, पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.
3. इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने अन्यत्र नहीं पढ़ी है .
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26-11-2021, 09:21 PM
(This post was last modified: 26-11-2021, 09:43 PM by aamirhydkhan1. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
गुरुजी के आश्रम में सावित्री
CHAPTER 4 तीसरा दिन
नौका विहार
Update 2
झंडा लगा कर नौका विहार
विकास ने नाव की तरफ हाथ हिलाया और नदी की तरफ दौड़ा. मैं भी उसके पीछे जाने लगी. उसने नाववाले से बात की और उसको 50 रुपये का नोट दिया. नाववाला लड़का ही लग रहा था, 18 बरस का रहा होगा.
विकास – मैडम , इसका नाम बाबूलाल है. मैं इसको जानता हूँ ,बहुत अच्छा लड़का है. इसलिए कोई डर नही , हम सेफ हैं यहाँ. ये हमको आधा घंटा नाव में घुमाएगा.
“विकास , तुम तो एकदम जीनियस हो.”
बाबूलाल – विकास भैय्या, जल्दी बैठो. यहाँ पर ऐसे खड़े रहना ठीक नही .
मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा, बहुत ही रोमांटिक माहौल था. चाँद की धीमी रोशनी , नदी में छोटी सी नाव में हम दोनों. मेरी पैंटी गीली होने लगी थी अब मैं और सहन नही कर पा रही थी.
“विकास , बाबूलाल से दूसरी तरफ मुँह करने को बोलो. वो हमें देख लेगा.”
विकास – मैडम, उधर को मुँह करके बाबूलाल नाव कैसे चलाएगा ? ऐसा करते हैं, हम ही उसकी तरफ पीठ कर लेते हैं.
“लेकिन विकास , वो तो हमारे इतना नज़दीक़ है. मुझसे नही होगा.”
विकास – मैं मदद करूँगा मैडम.
“अपने कपड़े उतारो” विकास मेरे कान में फुसफुसाया.
मैंने बनावटी गुस्से से विकास को एक मुक्का मारा.
विकास – मैडम, देखो कितना सुहावना दृश्य है. बाबूलाल की तरफ ध्यान मत दो , वो तो छोटा लड़का है. ये समझो यहाँ सिर्फ़ मैं और तुम हैं और कोई नही.
सुबह मंदिर में उस छोटे लड़के छोटू ने मेरे साथ जो किया उसके बाद अब मैं इस छोटे लड़के को पूरी तरह से इग्नोर भी नही कर सकती थी . सुबह छोटू को मैंने नहाते हुए देखा था , उसका लंड देखा और फिर मेरे पूरे बदन में उसने हाथ फिराया था.
नाव बहुत छोटी थी और बाबूलाल मुश्किल से 7 – 8 फीट की दूरी पर बैठा था. अगर मैं या विकास कुछ भी करते तो उसको सब दिख जाता. किसी दूसरे मर्द के सामने विकास के साथ कुछ करना तो बहुत ही शर्मिंदगी भरा होता . पर सच्चाई ये थी की मैं अब और देर भी बर्दाश्त नही कर पा रही थी. पिछले दो दिनों से मेरे ब्लाउज और ब्रा के ऊपर से मेरी चूचियों को बहुत दबाया और निचोड़ा गया था , पर ऐसे आधे अधूरे स्पर्श से मैं उकता चुकी थी.
अब मैं चाहती थी की विकास की अँगुलियाँ मेरे ब्लाउज और ब्रा को उतार दें, मैं अपनी चूचियों पर उसकी अंगुलियों का स्पर्श चाहती थी. लेकिन ये नाववाला मेरे अरमानो पर पानी फेर रहा था. फिर से एक अजनबी आदमी के सामने अपने बदन से छेड़छाड़ को मैं राज़ी नही हो पा रही थी.मेरी उलझन देखकर विकास मेरे कान में फुसफुसाया.
विकास – मैडम , तुम इस बाबूलाल के ऊपर क्यूँ समय बर्बाद कर रही हो. ये तो छोटा लड़का है.
छोटा लड़का है , इसका मतलब ये नही की मैं इसके सामने कपड़े उतार दूं. सिर्फ़ 7 – 8 फीट दूर बैठा है. लेकिन मैं विकास से कुछ और बहस करती इससे पहले ही उसने मुझे पकड़ा और बैठे हुए ही घुमा दिया और मेरी पीठ बाबूलाल की तरफ कर दी.
“आउच…”
विकास ने मुझे कुछ और नही बोलने दिया और बैठे हुए ही अपने आलिंगन में कसकर मुझे चूमने लगा. पहले तो मैंने विरोध करना चाहा क्यूंकी नाववाले के सामने वो खुलेआम मुझे अपने आलिंगन में बांधकर चूम रहा था पर कुछ ही पलों बाद मैं भी सब कुछ भूलकर विकास का साथ देने लगी.
विकास – मैडम, तुमने शुरू तो किया पर अधूरा छोड़ दिया.
“क्या…?”
विकास – तुमने मेरी ज़िप खोली , अब अंडरवियर नीचे कौन करेगा ?
“क्यूँ ? अपनी गर्लफ्रेंड को बोलो, जिससे तुम मेरे लिए ये साड़ी लाए हो.”
हम दोनों खी खी करके हँसने लगे और एक दूसरे को आलिंगन में कस लिया. मैंने विकास को निचले होंठ पर चूमा और उसने मेरे निचले होंठ को देर तक चूसा. उसने मेरे हाथ को अपने पैंट की ज़िप में डाल दिया. फिर विकास ने मेरा पल्लू हटाया और मेरे ब्लाउज के बटन खोलने लगा. वो दोनों हाथों से मेरे ब्लाउज के हुक एक एक करके खोलने लगा और मेरे होंठ उसके होठों से चिपके हुए थे.
मुझे पीछे बैठे लड़के का ख्याल आया और मैंने विरोध करने की कोशिश की पर उसके चुंबन ने मुझे बहुत कमज़ोर बना दिया. मैं फिर से उसकी ज़िप में हाथ डालकर खड़े लंड को सहलाने लगी.
“ऊऊहह…..”
विकास का लंड हाथ में पकड़ना बहुत अच्छा लग रहा था. अपने पति का खड़ा लंड मैंने कई बार हाथों में पकड़ा था पर विकास का लंड पकड़ने में बहुत मज़ा आ रहा था , सच कहूं तो मेरे पति से भी ज्यादा. मैंने उसके अंडरवियर की साइड में से लंड को बाहर निकाल लिया. उसका लंड लंबा और तना हुआ था. मैं उसके सुपाड़े की खाल को सहलाने लगी और मेरी पैंटी हर गुज़रते पल के साथ और भी गीली होती जा रही थी.
मैं विकास के गरम लंड को सहला रही थी और अपने होठों पर उसके चुंबन का आनंद ले रही थी तभी मेरी चूचियों पर ठंडी हवा का झोंका महसूस हुआ. मैंने देखा विकास ने मेरे ब्लाउज के सारे हुक खोल दिए थे और अब मेरी सफेद ब्रा उसे दिख रही थी.
“उम्म्म्मम…..उम्म्म्म….”
मैं नही नही कहना चाह रही थी पर मेरे होंठ उसके होठों से चिपके हुए थे इसलिए मेरे मुँह से यही निकला. विकास मेरे बदन से ब्लाउज को निकालने की कोशिश कर रहा था.
विकास ने ज़बरदस्ती मेरे ब्लाउज को खींचकर निकाल दिया , वो ब्लाउज ढीला था इसलिए उसे खींचने में ज़्यादा परेशानी भी नही हुई. जब तक उसने मेरा पूरा ब्लाउज नही उतार दिया तब तक उसने मुझे चूमना नही छोड़ा.
ब्लाउज उतरने के बाद मेरी पीठ में कंपकपी दौड़ गयी. मैंने ब्लाउज को विकास से छीनने की कोशिश की पर उसने ब्लाउज को पीछे फेंक दिया और अब मेरी साड़ी उतारने लगा. उसने मुझे खड़ा कर दिया और कमर से साड़ी उतारने लगा. देखते ही देखते अब मैं विकास की बाँहों में सिर्फ ब्रा और पेटीकोट में खड़ी थी. मैंने पीछे मुड़कर देखा और मैं तो जैसी जड़वत हो गयी क्यूंकी बाबूलाल मेरी साड़ी और ब्लाउज को नाव से उठा रहा था और मेरी तरफ कामुकता से देख रहा था. औरत होने की स्वाभाविक शरम से मेरी बाँहें मेरी ब्रा के ऊपर आ गयीं .
विकास – मैडम , अपने कपड़ों की चिंता मत करो. बाबूलाल उनको सम्हाल कर रखेगा.
उस बदमाश बाबूलाल को देखकर मैं बहुत शरम महसूस कर रही थी , वो मेरी साड़ी और ब्लाउज को अपनी गोद में लिए हुए बैठा था और मुस्कुरा रहा था.
विकास – मैडम , तुम इतना क्यूँ शरमा रही हो ? वो छोटा सा लड़का है.
“कुछ तो शरम करो विकास. मैं उसके सामने अपने कपड़े नही उतार सकती, छोटा लड़का है तो क्या हुआ.”
विकास ने बहस करने में कोई रूचि नही दिखाई और मुझे फिर से आलिंगन करके चूमना शुरू कर दिया. अब वो खुलेआम मेरे अंगों को छूने लगा था. एक हाथ से वो मेरी चूचियों को दबा रहा था और दूसरे हाथ से मेरे नितंबों को सहला रहा था , साथ ही साथ मेरे होठों को चूम रहा था. मैं उसकी हरकतों से उत्तेजित होकर कसमसाने लगी. मैंने उसके मजबूत बदन को आलिंगन में कस लिया और उसकी पीठ और नितंबों पर नाखून गड़ाने लगी.
विकास – मैडम , एक बार मुझे छोड़ो.
“क्यूँ….?”
मेरे सवाल का जवाब दिए बिना , विकास अपने कपड़े उतारने लगा. मैं मुस्कुराते हुए उसे कपड़े उतारते हुए देखने लगी. कुछ ही पलों बाद अब वो सिर्फ अंडरवियर में था और बहुत सेक्सी लग रहा था. नाव अब बीच नदी में थी और चाँद की रोशनी में पानी चमक रहा था. अंधेरे की वजह से नदी के किनारे अब साफ नही दिखाई दे रहे थे. विकास कुछ कदम चला और बाबूलाल को अपने कपड़े दे आया क्यूंकी हवा चल रही थी और सम्हाल कर ना रखने पर कपड़ों के पानी में गिरने का ख़तरा था.
अब माहौल बहुत गरमा गया था और सच कहूँ तो मैं भी अब उस रोमांटिक माहौल में विकास की बाँहों में नंगी होने को उत्सुक थी. सिर्फ़ बाबूलाल की वजह से मैं दुविधा में थी. कपड़े उतरने के बाद विकास ने मुझे अपनी बाँहों में लिया और मेरी ब्रा को चूचियों के ऊपर उठाने की कोशिश करने लगा. मैंने उसे वैसा करने नही दिया तो उसने मेरी चिकनी पीठ में हाथ ले जाकर मेरी ब्रा के हुक खोलने की कोशिश की. मुझे मालूम था की बाबूलाल मेरी नंगी गोरी पीठ देखने का मज़ा ले रहा होगा क्यूंकी सिर्फ 1 इंच का ब्रा का स्ट्रैप पीठ पर था.
“विकास प्लीज़ , मत खोलो.”
मैंने अपनी आँखें बंद कर ली क्यूंकी विकास ने मेरी ब्रा का हुक खोल दिया था और अब मेरी पीठ पूरी नंगी हो गयी थी और मेरी चूचियां ढीली ब्रा में उछल गयीं. मैं उस हालत में उत्तेजना में काँपते हुए खड़ी थी और ठंडी हवा मेरी उत्तेजना को और भी बढ़ा दे रही थी. विकास ने जबरदस्ती मेरी बाँहों को मेरी छाती से हटाया और मेरी ब्रा को खींचकर निकाल दिया.
अब मैं ऊपर से पूरी नंगी थी , शरम से मैंने अपनी आँखें बंद कर रखी थी. मैं अब बीच नदी में एक खुली नाव में एक ऐसे आदमी की बाँहों में अधनंगी खड़ी थी जो मेरा पति नही था और वो भी उस नाववाले की आँखों के सामने.
विकास – बाबूलाल यहाँ आओ , ये भी रखो.
बाबूलाल – ठीक है विकास भैय्या.
मैंने थोड़ी सी आँखें खोली और देखा उस हिलती हुई नाव में बाबूलाल मेरी ब्रा लेने आ रहा था. मुझे शरम महसूस हो रही थी पर मैं जानती थी की अगर सम्हाल के नही रखी तो तेज हवा से पानी में गिर सकती है. मैंने अपना सर विकास की छाती में टिकाया हुआ था और मेरी नंगी चूचियों को भी उसकी छाती से छुपा रखा था. मैं बाबूलाल के वापस अपनी जगह में जाने का इंतज़ार करने लगी.
बाबूलाल – विकास भैय्या , मैडम की ब्रा तो पसीने से भीगी हुई है. इसको पहनकर तो उसे ठंड लग जाएगी.
बाबूलाल अब मेरी ब्रा को उलट पुलट कर देख रहा था और मेरी ब्रा के कप्स के अंदर देख रहा था. विकास ने मुझे अपने आलिंगन में लिया हुआ था और बाबूलाल से बात करते हुए उसका एक हाथ मेरे तने हुए निपल्स को मरोड़ रहा था.
विकास – इसको खुले में रखो ये ….
बाबूलाल ने विकास की बात काट दी.
बाबूलाल – विकास भैय्या , मैं इसको पोल में बाँध देता हूँ. तेज हवा से मैडम की ब्रा जल्दी ही सूख जाएगी.
“क्या…???”
ऐसी बेतुकी बात सुनकर मैं चुप नही रह सकी. बाबूलाल मेरी ब्रा को एक पोल से हवा में लटका कर लहराने के लिए छोड़ देगा. मैं सीधे बाबूलाल से बात करने के लिए सामने नही आ सकती थी क्यूंकी मेरे बदन के ऊपरी हिसे में कपड़े का एक धागा भी नही बचा था इसलिए मैं विकास के बदन से छुपी हुई थी.
“विकास प्लीज़ इस लड़के को रोको.”
विकास – मैडम , यहाँ कौन देख रहा है. अगर कोई दूर से देख भी लेगा तो समझेगा की पोल में कोई सफेद कपड़ा लटका हुआ है. कोई ये नही समझ पाएगा की हवा में ये तुम्हारी ब्रा लहरा रही है.
ऐसा कहते हुए विकास मुझे बाबूलाल के सामने चूमने लगा. उसके ऐसा करने से मेरी नंगी चूचियां बाबूलाल को दिखने लगी. वो एक निक्कर पहने हुआ था और उसमें बना तंबू बता रहा था की इस लाइव शो को देखकर उसे बहुत मज़ा आ रहा है. मैं विकास के चुंबन का आनंद ले रही थी पर मुझे उस लड़के को देखकर शरम भी आ रही थी. देर तक चुंबन लेकर विकास ने मेरे होंठ छोड़ दिए. तब तक बाबूलाल ने एक पोल में मेरी ब्रा लटका दी थी और उस तेज हवा में मेरी ब्रा सफेद झंडे की तरह लहरा रही थी.
बाबूलाल ने एक पोल में मेरी ब्रा लटका दी थी और उस तेज हवा में मेरी ब्रा सफेद झंडे की तरह लहरा रही थी.
विकास ने बाबूलाल की इस हरकत पर रिएक्ट करने का मुझे मौका नही दिया. उसने बाबूलाल की तरफ पीठ कर ली और मुझे भी दूसरी तरफ घुमा दिया. अब मैं बाबूलाल की तरफ पीठ करके खड़ी थी और मेरे पीछे विकास खड़ा था. विकास का लंड उसके अंडरवियर से बाहर निकला हुआ था और पेटीकोट के बाहर से मेरे गोल नितंबों पर चुभ रहा था. शरम से मेरी बाँहें अपनेआप मेरी नंगी चूचियों पर चली गयी और मैंने हथेलियों से तने हुए निपल्स और ऐरोला को ढकने की कोशिश की. मेरे हल्के से हिलने डुलने से भी मेरी बड़ी चूचियाँ उछल जा रही थीं , विकास ने पीछे से अपने हाथ आगे लाकर मेरी चूचियों को दबोचना और मसलना शुरू कर दिया.
मैं अपनी जिंदगी में कभी भी ऐसे खुले में टॉपलेस नही हुई थी , सिर्फ़ अपने पति के साथ बेडरूम में होती थी. लेकिन पानी के बीच उस हिलती हुई नाव में मुझे स्वर्ग सा आनंद आ रहा था. विकास के हाथों से मेरी चूचियों के दबने का मैं बहुत मज़ा ले रही थी . उसके ऐसा करने से मेरी चूचियाँ और निपल्स तनकर बड़े हो गये और मेरी चूत पूरी गीली हो गयी. मैं धीमे धीमे अपने मुलायम नितंबों को उसके खड़े लंड पर दबाने लगी.
विकास ने अब अपना दायां चूचियों से हटा लिया और नीचे को मेरे नंगे पेट की तरफ ले जाने लगा. मेरी नाभि के चारो ओर हाथ को घुमाया फिर नाभि में अंगुली डालकर गोल घुमाने लगा.
“आआआह………उहह……”
मैं धीमे धीमे सिसकारियाँ ले रही थी और मेरे रस से गुरुजी के दिए पैड को भिगो रही थी. विकास मेरी नंगी कमर पर हाथ फिराने लगा फिर उसने अपना हाथ मेरे पेटीकोट के अंदर डाल दिया. उसकी अँगुलियाँ मेरी प्यूबिक बुश (झांट के बालों) को छूने लगीं और धीरे से वहाँ के बालों को सहलाने लगीं. अपनेआप मेरी टाँगें आपस में चिपक गयी लेकिन विकास ने पीछे से मेरे नितंबों पर एक धक्का लगाकर जताया की मेरा टाँगों को चिपकाना उसे पसंद नही आया. मैंने खड़े खड़े ही फिर से टाँगों को ढीला कर दिया. विकास ने फ़ौरन मेरे पेटीकोट के नाड़े को खोल दिया , जैसे ही पेटीकोट नीचे गिरने को हुआ मुझे घबराहट होने लगी. मैंने तुरंत हाथों से पेटीकोट पकड़ लिया और अपने बदन में बचे आख़िरी कपड़े को निकालने नही दिया.
“विकास , प्लीज़ इसे मत उतारो. मैं पूरी …..” (नंगी हो जाऊँगी)
विकास – मैडम , मैं तुम्हारा नंगा बदन देखना चाहता हूँ.
वो मेरे कान में फुसफुसाया और मेरे पेटीकोट को कमर से नीचे खींचने की कोशिश करने लगा.
“विकास , प्लीज़ समझो ना. वो हमें देख रहा होगा.”
विकास – मैडम , बाबूलाल की तरफ ध्यान मत दो. वो छोटा लड़का है. वैसे भी जब मैं तुम्हें चूम रहा था तब उसने तुम्हारी चूचियाँ देख ली थीं , है ना ? अब अगर वो तुम्हारी टाँगें देख लेता है तो क्या फर्क पड़ता है ? बोलो .”
विकास ने मेरे जवाब का इंतज़ार नही किया और मेरे हाथों को पेटीकोट से हटाने की कोशिश करने लगा. उसने पेटीकोट को मेरी जांघों तक खींच दिया और फिर मेरे हाथों से पेटीकोट छुड़ा दिया. पेटीकोट मेरे पैरों में गिर गया और अब मैं पूरी नंगी खड़ी थी सिवाय एक छोटी सी पैंटी के , जो इतनी छोटी थी की मेरे बड़े नितंबों को भी ठीक से नही ढक रही थी. मुझे ऐसा लगा जैसे मैं अपने बाथरूम में खड़ी हूँ क्यूंकी खुले में ऐसे नंगी तो मैं कभी नही हुई.
विकास – मैडम , तुम बिना कपड़ों के बहुत खूबसूरत लग रही हो. शादी के बाद भी तुम्हारा बदन इतना सेक्सी है …..उम्म्म्म……
विकास मेरे होठों को चूमने लगा और मेरे नंगे बदन पर हर जगह हाथ फिराने लगा. विकास ने मुझे नंगी कर दिया था पर फिर भी हैरानी की बात थी की इतनी कामोत्तेजित होते हुए भी मुझे चुदाई की तीव्र इच्छा नही हो रही थी. सचमुच गुरुजी की दवा अपना असर दिखा रही थी. मुझे ऐसा लगा की शायद विकास इस बात को जानता है. अब उसने धीरे से मुझे नाव के फर्श में लिटा दिया . अभी तक मैं विकास के बदन से ढकी हुई थी पर नीचे लिटाते समय बाबूलाल की आँखें बड़ी और फैलकर मुझे ही देख रही थी. फिर मैं शरम से जड़वत हो गयी जब मैंने देखा वो हमारी ही तरफ आ रहा था.
“विकास…..”
मैंने शरम से आँखें बंद कर ली और विकास को अपनी तरफ खींचा और उसके बदन से अपने नंगे बदन को ढकने की कोशिश की. लेकिन विकास ने मेरी बाँहों से अपने को छुड़ाया और मेरा पेटीकोट उठाकर बाबूलाल को दे दिया. और मुझे बेशरमी सी एक्सपोज़ कर दिया. मैं एक 28 बरस की हाउसवाइफ , बीच नदी में एक नाव में नाववाले के सामने पूरी नंगी थी सिवाय एक छोटी सी पैंटी के. मेरी भारी साँसों से मेरी गोल चूचियाँ गिर उठ रही थी और उनके ऊपर तने हुए गुलाबी निपल्स , उस दृश्य को बाबूलाल और विकास के लिए और भी आकर्षक बना रहे थे. मेरे पेटीकोट को विकास से लेते समय बाबूलाल ने अपनी जिंदगी का सबसे मस्त सीन देखा होगा. उस छोटे लड़के के सामने मैं नंगी पड़ी हुई थी और वो मेरे पूरे नंगे बदन को घूर रहा था , मुझे बहुत शरम आ रही थी पर उसके ऐसे देखने से मेरी चूत से छलक छलक कर रस बहने लगा.
बाबूलाल – विकास भैय्या, तेज हवा चल रही है , इसलिए मुझे बार बार उठकर यहाँ आने में परेशानी हो रही है. अगर मैडम पैंटी उतार दें तो मैं साथ ही ले जाऊँ.
उसकी बात सुनकर मैं अवाक रह गयी. अब यही सुनना बाकी रह गया था. मुझे कुछ समझ नही आ रहा था की मैं कैसे रिएक्ट करूँ इसलिए मैं चुपचाप पड़ी रही.
विकास – बाबूलाल , अपनी हद में रहो. अगर तुम्हारी मदद की ज़रूरत होगी तो मैं तुमसे कहूँगा.
विकास ने उस लड़के को डांट दिया . मुझे बड़ी खुशी हुई. पर मेरी खुशी कुछ ही पल रही.
विकास – तुम क्या सोचते हो ? मैडम क्या इतनी बेशरम है की वो तुम्हारे सामने पूरी नंगी हो जाएगी ?
बाबूलाल – सॉरी विकास भैय्या.
विकास – क्या तुम नही जानते की अगर कोई औरत सब कुछ उतार भी दे तब भी उसकी पैंटी उसकी इज़्ज़त बचाए रखती है ? अगर पैंटी सही सलामत है तो समझो औरत सुरक्षित है. है ना मैडम ?
विकास ने मेरी पैंटी से ढकी चूत की तरफ अंगुली से इशारा करते हुए मुझसे ये सवाल पूछा. मुझे समझ नही आया क्या बोलूँ और उन दोनों मर्दों के सामने वैसी नंगी हालत में लेटे हुए मैंने बेवक़ूफ़ की तरह हाँ में सर हिला दिया. पता नही बाबूलाल को कुछ समझ में आया भी या नही पर वो मुड़ा और नाव के दूसरे कोने में अपनी सीट में जाकर बैठ गया. विकास ने अब और वक़्त बर्बाद नही किया. वो मेरे बदन के ऊपर लेट गया और मुझे अपने आलिंगन में ले लिया. हम फुसफुसाते हुए आपस में बोल रहे थे.
विकास – मैडम, तुम्हारा बदन इतना खूबसूरत है. तुम्हारा पति तुम्हें अपने से अलग कैसे रहने देता है ?
मैंने उसे देखा और अपने बदन पर उसके हाथों के स्पर्श का आनंद लेते हुए बोली…..
“अगर वो मुझे अलग नही रहने देता तो तुम मुझे कैसे मिलते ?”
विकास ने मेरे चेहरे और बालों को सहलाया और मेरे होठों के करीब अपने होंठ ले आया. मैंने अपने होंठ खोल दिए. उसके हाथ मेरे पूरे बदन को सहला रहे थे और ख़ासकर की मेरी तनी हुई रसीली चूचियों को. फिर विकास मेरी गर्दन और कानों को अपनी जीभ से चाटने लगा , मैंने आँखें बंद कर ली और धीमे से सिसकारियाँ लेने लगी. और फिर वो पहली बार मेरे निपल्स को चूसने लगा , एक निप्पल को चूस रहा था और दूसरे को अंगुलियों और अंगूठे के बीच मरोड़ रहा था. इससे मैं बहुत कामोत्तेजित हो गयी.
कहानी जारी रहेगी
NOTE
1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब अलग होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा कही पर भी संभव है .
2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा जी स्वामी, पंडित, पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.
3. इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने अन्यत्र नहीं पढ़ी है .
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गुरुजी के आश्रम में सावित्री
CHAPTER 4 तीसरा दिन
नौका विहार
Update 3
अपराध बोध
“आआआआहह……” मैं उत्तेजना से सिसकने लगी. विकास मेरी पूरी बायीं चूची को जीभ लगाकर छत रहा था और दायीं चूची को हाथों से सहला रहा था. मैं हाथ नीचे ले जाकर उसके खड़े लंड को सहलाने लगी. फिर वो मेरी दायीं चूची के निप्पल को ज़ोर से चूसने लगा जैसे उसमें से दूध निकालना चाह रहा हो. और बायीं चूची को ज़ोर से मसल रहा था , इससे मुझे बहुत आनंद मिल रहा था. जब उसने मेरी चूचियों को छोड़ दिया तो मैंने देखा चाँद की रोशनी में मेरी चूचियाँ विकास की लार से पूरी गीली होकर चमक रही थीं. मेरे निपल्स उसने सूज़ा दिए थे. शरम से मैंने आँखें बंद कर ली.
विकास अब मेरे चेहरे और गर्दन को चाट रहा था. पहली बार मेरे पति की बजाय कोई गैर मर्द मेरे बदन पर इस तरह से चढ़ा हुआ था. पर जो आनंद मेरे पति ने दिया था निश्चित ही उससे ज़्यादा मुझे अभी मिल रहा था. विकास के हाथ मेरी चूचियों पर थे और हमारे होंठ एक दूसरे से चिपके हुए थे. हम दोनों एक दूसरे के होंठ चबा रहे थे और एक दूसरे की लार का स्वाद ले रहे थे. फिर विकास खड़ा हो गया और मेरे निचले बदन पर उसका ध्यान गया.
विकास – मैडम , प्लीज़ ज़रा पलट जाओ.
मैं नाव के फर्श पर लेटी हुई थी और अब नीचे को मुँह करके पलट गयी. मेरी पैंटी सिर्फ़ मेरे नितंबों के बीच की दरार को ही ढक रही थी , इसलिए विकास की आँखों के सामने मेरी बड़ी गांड नंगी ही थी. पैंटी उतरने से मेरी चूत के आगे लगा पैड गिर जाता इसलिए विकास ने नितंबों के बीच की दरार से पैंटी के कपड़े को उठाया और दाएं नितंब के ऊपर खिसका दिया. फिर उसने मेरी जांघों को फैलाया और मेरी गांड की दरार में मुँह लगाकर जीभ से चाटने लगा.
“उूउऊहह……”
मैं कामोत्तेजना से काँपने लगी. मेरी नंगी गांड को चाटते हुए विकास भी बहुत कामोत्तेजित हो गया था. पहले उसने मेरे दोनों नितंबों को एक एक करके चाटा फिर दोनों नितंबों को अपनी अंगुलियों से अलग करके मेरी गांड की दरार को चाटने लगा. वो मेरी गांड के मुलायम माँस पर दाँत गड़ाने लगा और मेरी गांड के छेद को चाटने लगा. उसके बाद विकास मेरी गांड के छेद में धीरे से अंगुली करने लगा.
“आआआअहह…… ओह्ह ….”
उसकी अंगुली के अंदर बाहर होने से मेरी सांस रुकने लगी. उसने छेद में अंगुली की और उसे इतना चाटा की मुझे लगा छेद थोड़ा खुल रहा है और अब थोड़ा बड़ा दिख रहा होगा. मैंने भी अपनी गांड को थोड़ा फैलाया ताकि छेद थोड़ा और खुल जाए.
विकास – बाबूलाल , नाव में तेल है क्या ?
मैं विकास के अचानक किए गये सवाल से काँप गयी. कामोत्तेजना में मैं तो भूल ही गयी थी की नाव में कोई और भी है जो हमारी कामक्रीड़ा देख रहा है.
बाबूलाल – हाँ विकास भैय्या. मैं ला के दूँ क्या ?
विकास ने हाँ में सर हिलाया और वो एक छोटी तेल की शीशी ले आया. मैं नीचे को मुँह किए लेटी थी इसलिए मुझे बाबूलाल के सिर्फ़ पैर दिख रहे थे. वो मेरे नंगे बदन से सिर्फ़ एक फीट दूर खड़ा था. तेल देकर बाबूलाल चला गया. विकास ने अपने खड़े लंड पर तेल लगाकर उसे चिकना किया.
विकास – मैडम अब आपको थोड़ा सा दर्द होगा पर उसके बाद बहुत मज़ा आएगा.
अब तेल से भीगे हुए लंड को उसने मेरी गांड के छेद पर लगाया.
“विकास प्लीज़ धीरे से करना….”
मैंने विकास से विनती की. विकास ने धीरे से झटका दिया , उसके तेल से चिकने लंड का सुपाड़ा मेरी गांड के छेद में घुसने लगा. लंड को गांड में अंदर घुस नहीं पाया. मैंने नाव के फर्श को पकड़ लिया . विकास ने मेरे बदन के नीचे हाथ घुसाकर मेरी चूचियों को पकड़ लिया और उन्हें दबाने लगा.
“ओह्ह …..बहुत मज़ा आ रहा है……”
मैंने विकास को और ज़्यादा मज़ा देने के लिए अपनी गांड को थोड़ा ऊपर को धकेला और अपनी कोहनियों के बल लेट गयी . इससे मेरी चूचियाँ हवा में उठ गयी और दो आमों की तरह विकास ने उन्हें पकड़ लिया. सच कहूँ तो मुझे थोड़ा दर्द हो रहा था पर शुक्र था की विकास ने तेल लगाकर चिकनाई से थोड़ा आसान कर दिया था. और वैसे भी वो किसी हड़बड़ाहट में नही था बल्कि बड़े आराम आराम से मेरी गांड पर टकरा रहा था. हम दोनों ही धीरे धीरे से कामक्रीड़ा कर रहे थे. वो धीरे धीरे अपना लंड घुसा रहा था और मैं अपनी गांड पीछे को धकेल रही थी , अब उसने धक्के लगाने शुरू किए और मैं उसके हर धक्के के साथ कामोन्माद में डूबती चली गयी.
मेरे पति ने पहले कई बार मेरी गांड मरी थी पर आज गांड टाइट हो गयी थी या विकास का लंड बड़ा था पर विकास का लंड अंदर नहीं घुस रहा था.
कुछ देर तक वो धक्के लगाते रहा और मैं काम सुख लेती रही. कुछ देर बाद मैं चरम पर पहुँच गयी और मुझे ओर्गास्म आ गया.
“आआआअहह……ओह्ह ….”
पैंटी में लगे पैड को मैंने चूतरस से पूरा भिगो दिया. मेरे साथ ही विकास भी झड़ गया. हम दोनों कुछ देर तक वैसे ही लेटे रहे और ठंडी हवा और नदी की पानी के आवाज़ को सुनते हुए नाव में उस प्यारी रात का आनंद लेते रहे. फिर विकास उठा और अपने अंडरवियर से मेरी गांड में लगा हुआ अपना वीर्य साफ किया. मुझे पता भी नही चला था की कब उसने अपना अंडरवियर उतार दिया था और वो पूरा नंगा कब हुआ. मेरी गांड पोंछने के बाद उसने मेरी पैंटी के सिरों को पकड़कर मेरे दोनों नितंबों के ऊपर फैला दिया. अब मैं कोई शरम नही महसूस कर रही थी , वैसे भी मुझे लगने लगा था की अब मुझमें थोड़ी सी ही शरम बची थी. फिर मैं सीधी हुई और बैठ गयी , मेरा मुँह बाबूलाल की तरफ था. वो मेरी नंगी चूचियों को घूर रहा था. लेकिन मैंने उन्हें छुपाने की कोशिश नही की बल्कि बाबूलाल की तरफ पीठ कर दी. मैंने विकास के लंड को देखा जो अब सारा रस निकलने के बाद केले की तरह नीचे को लटक रहा था.
“विकास , प्लीज़ मेरे कपड़े दो. मैं ऐसी हालत में अब और नही रह सकती.”
विकास – बाबूलाल , मैडम के कपड़े ले आओ. मैडम , अब तुम नदी के किनारे की तरफ जाना चाहोगी या कुछ देर और नदी में ही ?
“यहीं थोड़ा और वक़्त बिताते हैं.”
विकास – ठीक है मैडम, अभी बैलगाड़ी के मंदिर में आने में कुछ और वक़्त बाकी है.
बाबूलाल ने विकास को मेरे कपड़े लाकर दिए और मैं जल्दी से कपड़े पहनने लगी . मैंने ब्रा पहनी और विकास ने पीछे से हुक लगा दिया. मैं इतना कमज़ोर महसूस कर रही थी की मैंने उसके ‘पति की तरह’ व्यवहार को भी मंजूर कर लिया. मेरी ब्रा का हुक लगाने के बाद वो फिर से मेरी चूचियों को सहलाने लगा.
“विकास अब मत करो. दर्द कर रहे हैं.”
विकास – लेकिन ये तो फिर से तन गये हैं मैडम.
मेरे तने हुए निपल्स को छूते हुए विकास बोला. वो ब्रा के ऊपर से ही अपने अंगूठे और अंगुली के बीच निपल्स को दबाने लगा. मैंने भी उसके मुरझाए हुए लंड को पकड़कर उसको माकूल जवाब दिया.
“लेकिन ये तो तैयार होने में वक़्त लेगा, डियर.”
हम दोनों हंस पड़े और एक दूसरे को आलिंगन किया. फिर मैंने ब्लाउज पहन लिया और पेटीकोट अपने ऊपर डाल लिया. विकास ने मुझे साड़ी नही पहनने दी और कुछ देर तक उसी हालत में बिठाए रखा.
विकास – मैडम, ऐसे तुम बहुत सेक्सी लग रही हो.
बाबूलाल को भी काफ़ी देर तक मेरे आधे ढके हुए बदन को देखने का मौका मिला और इस नाव की सैर के हर पल का उसने भरपूर लुत्फ़ उठाया होगा. समय बहुत धीरे धीरे खिसक रहा था और उस चाँदनी रात में ठंडी हवाओं के साथ नाव नदी में आगे बढ़ रही थी. हम दोनों एक दूसरे के बहुत नज़दीक़ बैठे हुए थे, एक तरह से मैं विकास की गोद में थी और उस रोमांटिक माहौल में मुझे नींद आने लगी थी. नाव चुपचाप आगे बढ़ती रही और मुझे ऐसा लग रहा था की ये सफ़र कभी खत्म ही ना हो.
नाव चुपचाप आगे बढ़ती रही और मुझे ऐसा लग रहा था की ये सफ़र कभी खत्म ही ना हो.
तभी विकास की आवाज़ ने चुप्पी तोड़ी.
विकास – मैडम , जानती हो अब मुझे अपराधबोध हो रहा है.
“तुम ऐसा क्यूँ कह रहे हो?”
विकास – मैडम , आज पहली बार मैंने गुरुजी के निर्देशों की अवहेलना की है. उन्होने मंदिर में आरती के लिए ले जाने को बोला था और हम यहाँ आकर मज़े कर रहे हैं.
वहाँ का वातावरण ही इतना शांत था की आदमी दार्शनिक बनने लग जाए. मुझे लगा विकास का भी यही हाल हो रहा है.
“लेकिन विकास, लक्ष्य तो मुझे……..”
विकास – नही नही मैडम . मैं अपने आचरण से भटक गया. अब मुझे बहुत अपराधबोध हो रहा है.
“कभी कभी जिंदगी में ऐसी बातें हो जाती हैं. विकास मुझे देखो. मैं एक शादीशुदा औरत हूँ और मैं भी तुम्हारे साथ बहक गयी.”
विकास – मैडम , तुम्हारी ग़लती नही है. तुम यहाँ अपने उपचार के लिए आई हो और गुरुजी के निदेशों के अनुसार तुम्हारा उपचार चल रहा है. मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं एक अपराधी हूँ. जो कुछ भी मैंने किया उसे मैं कभी भी गुरुजी को बता नही सकता , मुझे ये बात उनसे छुपानी पड़ेगी.
विकास कुछ देर चुप रहा . फिर बोलने लगा. वो एक दार्शनिक की तरह बोल रहा था.
विकास – मैडम , क्या कोई ऐसी घटना हुई है जिसके बाद तुम्हें गिल्टी फील हुआ हो ? जब तुमने मजबूरी या अंजाने में कुछ किया हो ? अगर नही तो फिर तुम नही समझ पाओगी की इस समय मैं कैसा महसूस कर रहा हूँ.
मैं सोचने लगी. तभी मुझे याद आया…..
“हाँ विकास, शायद तुम सही हो.”
कहानी जारी रहेगी
NOTE
1. अगर कहानी किसी को पसंद नही आये तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ. ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसका किसी से कोई लेना देना नही है . मेरे धर्म या मजहब अलग होने का ये अर्थ नहीं लगाए की इसमें किसी धर्म विशेष के गुरुओ पर या धर्म पर कोई आक्षेप करने का प्रयास किया है , ऐसे स्वयंभू गुरु या बाबा कही पर भी संभव है .
2. वैसे तो हर धर्म हर मज़हब मे इस तरह के स्वयंभू देवता बहुत मिल जाएँगे. हर गुरु जी, बाबा जी स्वामी, पंडित, पुजारी, मौलवी या महात्मा एक जैसा नही होते . मैं तो कहता हूँ कि 90-99% स्वामी या गुरु या प्रीस्ट अच्छे होते हैं मगर कुछ खराब भी होते हैं. इन खराब आदमियों के लिए हम पूरे 100% के बारे मे वैसी ही धारणा बना लेते हैं. और अच्छे लोगो के बारे में हम ज्यादा नहीं सुनते हैं पर बुरे लोगो की बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता है तो लगता है सब बुरे ही होंगे .. पर ऐसा वास्तव में बिलकुल नहीं है.
3. इस कहानी से स्त्री मन को जितनी अच्छी विवेचना की गयी है वैसी विवेचना और व्याख्या मैंने अन्यत्र नहीं पढ़ी है .
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