03-03-2025, 11:25 PM
चारों मुझे खींच कर मुँडेर पर ले गये और मुझे वहाँ मुँडेर की रेलिंग पकड़ कर आगे झुका कर सुरेश ने मेरे पीछे से अपना लंड अंदर डाल दिया और तेजी से अंदर बाहर करने लगा। उन लोगों का उतावलापन देख कर मुझे मजा आ रहा था।
"ठहरो थोड़ा रुको" मैंने कहा "इस तरह एक-एक को संतुष्ट करने में सारी रात लग जायेगी... समय नहीं है ज्यादा... चारों एक साथ आ जाओ।"
मुझे इस तरह गरम बातें करते देख बाकी तीनों मस्त हो गये। मैंने एक को जमीन पर लेटने को कहा। अब मैंने किसी बात की परवाह किये बिना अपनी पैंटी अपनी टाँगों से निकाल दी और ब्रा का भी हुक खोल कर के उतार दी और अब मैं सिर्फ हाई पेन्सिल हील के सैंडल पहने बिल्कुल नंगी थी। चुदाई की गरमी के कारण मुझे मौसम की सर्दी का एहसास नहीं हो रहा था। वहाँ एक दरी का इंतज़ाम करके एक तो उस पर लेट गया। मैंने अपने पैर फैला कर उसके लंड को अपनी चूत में सटा कर उसे अपने अंदर ले लिया। मेरे मुँह से एक "हुम्म्म्फफ" की आवाज निकली और मैं उसके लंड पर बैठ गयी । मैंने अपने शरीर को दो चार बार ऊपर-नीचे किया। चूत-रस से लंड गीला हो जाने के कारण कोई तकलीफ नहीं हुई। फिर मैं उसके ऊपर झुक गयी और मैंने अपने पैर फैला कर सुरेश को पीछे से आने को कहा। सुरेश ने मेरे चूत्तड़ों को खोल कर गाँड के मुहाने पर अपना लंड सटा कर एक जोर का झटका लगाया। "ऊऊऊऊऊऊईईईईईईईई मैं मरररर गयीईईईईई," मैं चींख उठी, "अरे इसे कुछ गीला तो करो काफी दर्द हो रहा है।"
"तेरी गाँड में आज तो सुखा ही डालूँगा" कह कर उसने एक और झटका दिया और उसके लंड के आगे का सुपाड़ा अंदर चला गया। मेरी आँखें दर्द से उबल रही थी।
"नहींईंईंईंईं प्लीज़ज़ज़ ऐसे नहींईंईंईंईं," मैं चींख रही थी, "प्लीज़ज़ ऊऊऊऊऊऊ मेरी माँ...आआआ"
"चुप, चुप किसी ने सुन लिया तो गज़ब हो जायेगा," सुरेश ने कहा तो मैंने अपने निचले होंठ को अपनी दाँतों से काट लिया और दर्द को झेलने की कोशिश करने लगी। मैंने अपने दोनों हाथों में बाकी दोनों के लंड पकड़ रखे थी। दर्द के मारे उनके लंड पर मेरी पकड़ काफी मजबूत हो गयी। सुरेश ने एक और झटका मारा अपनी कमर को और आधा लंड अंदर था। ऐसा लग रहा था मानो किसी ने अंदर गरम लोहे का रॉड डाल दिया हो। मेरे अलावा बाकी चारों को मजा आ रहा था। दर्द से मेरे आँसू आ रहे थे। एक और झटके में उसने सारा लंड अंदर डाल दिया और मैं कराह उठी।
"अबे तू तो इसकी सूखी गाँड मार लेगा लेकिन ये हम दोनों के लंड को जड़ से ही उखाड़ देगी", पास खड़े एक आदमी ने कहा। मैं अपने शरीर को ढीला छोड़ कर सारा दर्द सहने की कोशिश कर रही थी। कुछ देर बाद जब दर्द कम हुआ तो उसने अपने लंड को अंदर-बाहर करना चालू कर दिया। मैं बाकी दोनों के लंड को बारी-बारी चूस रही थी। छत पर चाँदनी में पाँच शरीर एक दूसरे से गुँथे हुए चमक रहे थे। एक ऊपर से झटके दे रहा था, दूसरा नीचे से अपनी कमर उचका रहा था। सबसे पहले सुरेश ने मेरी गाँड को अपने लंड की पिचकारी से भर दिया। फिर जो आदमी नीचे था, उसके भी लंड का पानी निकल गया। एक ने तो उत्तेजना में अपनी धार मेरे चेहरे पर छोड़ दी लेकिन चौथे का अभी तक नहीं निकला था। उसने मुझे उठा कर घोड़ी बना दिया और पीछे से मेरी चूत में लंड डाल कर चोदने लगा। पहले से उत्तेजित होने के कारण ज्यादा देर वो टिक नहीं सका और मेरी चूत में ढेर सारा वीर्य भर दिया। मैं उसी तरह झुकी हुई हाँफ रही थी। चारों चुपचाप रात के अँधेरे में नीचे जा कर गायब हो गये। मैं उठी और अपने कपड़ों को समेटते हुए नीचे झाँका। नीचे किसी की आवाज ना सुन कर मैं उसी हालत में नीचे आयी और आइने के सामने जा कर अपने बदन को निहारा। चूंचियों पर दाँतों के दाग लगे थे। चेहरे पर और दोनों चूंची के बीच झूलते मंगल सुत्र पर ढेर सारा वीर्य लगा था। जो बूँद-बूँद नीचे की ओर चू रहा था। कुछ वीर्य के कतरे मेरे चूंचियों पर भी थे। टाँगों के बीच से और पीछे से वीर्य मेरी जाँघों से बहता हुआ मेरे सैंडलों तक बह रहा था। मैंने बाथरूम में जा कर अपना बदन साफ़ किया और फिर वापस अपने मेक-अप को ठीक कर के लड़खड़ाते कदमों से शादी के मंडप में पहुँची। रिटा मुझे खा जाने वली निगाहों से देख रही थी। मुझे अपने पास बुला कर कान में धीरे से कहा "कहाँ थी अब तक?"
"वो... वो सुरेश और केशव के कुछ साथी मुझे जबरदस्ती ब्लैकमेल करके ले गये थे" मैंने भी उसके कानों में धीरे से कहा। वो समझ गयी... करती भी क्या... उसी ने तो आज मुझे इस जगह पहुँचा दिया था। उसी की खातिर... अपनी सहेली की खातिर ही तो मैं चुदाई के इस दलदल में फँस कर चुदक्कड़ बन गयी थी।
"ठहरो थोड़ा रुको" मैंने कहा "इस तरह एक-एक को संतुष्ट करने में सारी रात लग जायेगी... समय नहीं है ज्यादा... चारों एक साथ आ जाओ।"
मुझे इस तरह गरम बातें करते देख बाकी तीनों मस्त हो गये। मैंने एक को जमीन पर लेटने को कहा। अब मैंने किसी बात की परवाह किये बिना अपनी पैंटी अपनी टाँगों से निकाल दी और ब्रा का भी हुक खोल कर के उतार दी और अब मैं सिर्फ हाई पेन्सिल हील के सैंडल पहने बिल्कुल नंगी थी। चुदाई की गरमी के कारण मुझे मौसम की सर्दी का एहसास नहीं हो रहा था। वहाँ एक दरी का इंतज़ाम करके एक तो उस पर लेट गया। मैंने अपने पैर फैला कर उसके लंड को अपनी चूत में सटा कर उसे अपने अंदर ले लिया। मेरे मुँह से एक "हुम्म्म्फफ" की आवाज निकली और मैं उसके लंड पर बैठ गयी । मैंने अपने शरीर को दो चार बार ऊपर-नीचे किया। चूत-रस से लंड गीला हो जाने के कारण कोई तकलीफ नहीं हुई। फिर मैं उसके ऊपर झुक गयी और मैंने अपने पैर फैला कर सुरेश को पीछे से आने को कहा। सुरेश ने मेरे चूत्तड़ों को खोल कर गाँड के मुहाने पर अपना लंड सटा कर एक जोर का झटका लगाया। "ऊऊऊऊऊऊईईईईईईईई मैं मरररर गयीईईईईई," मैं चींख उठी, "अरे इसे कुछ गीला तो करो काफी दर्द हो रहा है।"
"तेरी गाँड में आज तो सुखा ही डालूँगा" कह कर उसने एक और झटका दिया और उसके लंड के आगे का सुपाड़ा अंदर चला गया। मेरी आँखें दर्द से उबल रही थी।
"नहींईंईंईंईं प्लीज़ज़ज़ ऐसे नहींईंईंईंईं," मैं चींख रही थी, "प्लीज़ज़ ऊऊऊऊऊऊ मेरी माँ...आआआ"
"चुप, चुप किसी ने सुन लिया तो गज़ब हो जायेगा," सुरेश ने कहा तो मैंने अपने निचले होंठ को अपनी दाँतों से काट लिया और दर्द को झेलने की कोशिश करने लगी। मैंने अपने दोनों हाथों में बाकी दोनों के लंड पकड़ रखे थी। दर्द के मारे उनके लंड पर मेरी पकड़ काफी मजबूत हो गयी। सुरेश ने एक और झटका मारा अपनी कमर को और आधा लंड अंदर था। ऐसा लग रहा था मानो किसी ने अंदर गरम लोहे का रॉड डाल दिया हो। मेरे अलावा बाकी चारों को मजा आ रहा था। दर्द से मेरे आँसू आ रहे थे। एक और झटके में उसने सारा लंड अंदर डाल दिया और मैं कराह उठी।
"अबे तू तो इसकी सूखी गाँड मार लेगा लेकिन ये हम दोनों के लंड को जड़ से ही उखाड़ देगी", पास खड़े एक आदमी ने कहा। मैं अपने शरीर को ढीला छोड़ कर सारा दर्द सहने की कोशिश कर रही थी। कुछ देर बाद जब दर्द कम हुआ तो उसने अपने लंड को अंदर-बाहर करना चालू कर दिया। मैं बाकी दोनों के लंड को बारी-बारी चूस रही थी। छत पर चाँदनी में पाँच शरीर एक दूसरे से गुँथे हुए चमक रहे थे। एक ऊपर से झटके दे रहा था, दूसरा नीचे से अपनी कमर उचका रहा था। सबसे पहले सुरेश ने मेरी गाँड को अपने लंड की पिचकारी से भर दिया। फिर जो आदमी नीचे था, उसके भी लंड का पानी निकल गया। एक ने तो उत्तेजना में अपनी धार मेरे चेहरे पर छोड़ दी लेकिन चौथे का अभी तक नहीं निकला था। उसने मुझे उठा कर घोड़ी बना दिया और पीछे से मेरी चूत में लंड डाल कर चोदने लगा। पहले से उत्तेजित होने के कारण ज्यादा देर वो टिक नहीं सका और मेरी चूत में ढेर सारा वीर्य भर दिया। मैं उसी तरह झुकी हुई हाँफ रही थी। चारों चुपचाप रात के अँधेरे में नीचे जा कर गायब हो गये। मैं उठी और अपने कपड़ों को समेटते हुए नीचे झाँका। नीचे किसी की आवाज ना सुन कर मैं उसी हालत में नीचे आयी और आइने के सामने जा कर अपने बदन को निहारा। चूंचियों पर दाँतों के दाग लगे थे। चेहरे पर और दोनों चूंची के बीच झूलते मंगल सुत्र पर ढेर सारा वीर्य लगा था। जो बूँद-बूँद नीचे की ओर चू रहा था। कुछ वीर्य के कतरे मेरे चूंचियों पर भी थे। टाँगों के बीच से और पीछे से वीर्य मेरी जाँघों से बहता हुआ मेरे सैंडलों तक बह रहा था। मैंने बाथरूम में जा कर अपना बदन साफ़ किया और फिर वापस अपने मेक-अप को ठीक कर के लड़खड़ाते कदमों से शादी के मंडप में पहुँची। रिटा मुझे खा जाने वली निगाहों से देख रही थी। मुझे अपने पास बुला कर कान में धीरे से कहा "कहाँ थी अब तक?"
"वो... वो सुरेश और केशव के कुछ साथी मुझे जबरदस्ती ब्लैकमेल करके ले गये थे" मैंने भी उसके कानों में धीरे से कहा। वो समझ गयी... करती भी क्या... उसी ने तो आज मुझे इस जगह पहुँचा दिया था। उसी की खातिर... अपनी सहेली की खातिर ही तो मैं चुदाई के इस दलदल में फँस कर चुदक्कड़ बन गयी थी।
॥॥॥ समाप्त ॥॥॥