03-03-2025, 11:23 PM
"अनिता" उसने आवाज लगायी। मैं रुक गयी। "क्या बात है मुझे बहुत जल्दी भूल गयी लगता है"
"कौन है तू... मेरा रास्ता छोड़ नहीं तो अभी आवाज लगाती हूँ... तेरी ऐसी हजामत होगी कि खुद को आईने में नहीं पहचान पायेगा" मैंने नासमझ बन कर कहा।
"नो बेबी तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगी..." उसने कड़कते हुए कहा, "मेरे पास तेरी सी.डी अभी भी है... बोल चला दूँ क्या तेरे ससुराल वालों के सामने... कहीं भी मुँह नहीं दिख पायेगी।"
यह सुनते ही मैं सकपका गयी। "क्या चाहते हो तुम? देखो मैं वैसी लड़की नहीं हूँ... एक अच्छे घर की बहू हूँ... तुम मुझे जाने दो।" मैंने उससे कहा।
"तो हम भी कौनस तुझे कुछ कहने वाले हैं। इतने दिनों बाद मिली हो... बस एक बार हमारे ग्रुप का मन रख लो... फिर तुम अपने घर हम अपने घर।" उसने मुझे मेरा हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा।
"देखो मैं अगर लेट हो गयी तो लोग मुझे ढूँढते हुए यहाँ आ जायेंगे... छोड़ो मुझे।"
"ठीक है अभी तो छोड़ देते हैं लेकिन तुझे रात को आना पड़ेगा... नहीं तो उस फ़िल्म की कॉपियाँ तेरी ससुराल में सबको फ़्री में बँटवा दुँगा" कहकर उसने मेरा हाथ छोड़ दिया। मैं छूटते ही भागी तो उसने पीछे से आवाज लगायी "हमें इशारा कर देना कि कहाँ चलना है... जगह ढूँढना तेरा काम है"
मैं भाग गयी वहाँ से लेकिन एक टेंशन तो घुस ही गयी दिमाग में। समझ में नहीं आ रहा था कि मैं कैसे मकड़ी के जाल में उलझती जा रही हूँ। इसका कोई अँत ही नहीं दिख रहा था। लेकिन इतना तो मालूम था कि वो झूठ नहीं बोल रहा था। केशव के साथ होटल में हुई पहली मुलाकत में उसने मूवी कैमरे से सब कुछ खींचा था। अब अगर मैंने उसकी बात नहीं मानी तो वो मुझे बदनाम कर देगा। इसलिये मैंने उससे मिल ही लेने का विचार किया। सुबह तीन बजे फेरे थे, इसलिये मैंने सुरेश को इशारा किया। वो मेरे पीछे हो लिया। मैं अपनी सासू माँ को कुछ देर घर से हो कर आने को कह कर वहाँ से निकल गयी। रात के ग्यारह बज रहे थे और ज्यादा तर लोग सो चुके थे। जो मंडप में थे वो ही सिर्फ़ जागे हुए थे। इसलिये पकड़े जाने का कोई सवाल ही नहीं था। सुरेश के साथ तीन और आदमी थे। मैं उन्हें घर ले गयी। छत पर अँधेरा था और मैं उन्हें वहाँ ले गयी।
"देखो जो करना है जल्दी करो... अभी शादी का माहौल है... कभी भी कोई आ सकता है" मैंने कहा।
चारों ने मुझे पकड़ लिया और मेरे बदन से लिपट गये। मेरे कपड़ों पर हाथ लगते ही मैंने कहा, "इन्हें मत उतारो... मैं साड़ी उठा देती हूँ ... तुम्हें जो करना है कर लो। मेक-अप बिगड़ गया तो कोई भी समझ जायेगा"
"तू यहाँ चुदवाने आयी है या हम पर एहसान कर रही है... साली रंडी कितने ही मर्दों से चुदवा चुकी है... अब सती-सावित्री बन रही है। उतार साली अपने कपड़े" उसने दहाड़ कर कहा। मैंने भी देखा कि चारों मानने वाले हैं नहीं, इसलिये मैंने अपने कपड़े उतारने शुरू किये। साड़ी उतार कर मैंने उनसे फिर मिन्नतें की "प्लीज़ ऐसे ही जो करना है कर लो मेरे सारे कपड़े मत उतारो" मैंने सुरेश को कहा।
"नहीं ब्लाऊज़ और पेटीकोट तो उतारना ही पड़ेगा"
मैंने धीरे-धीरे अपना ब्लाऊज़ और पेटीकोट उतार दिया। अब मैं सिर्फ ब्रा-पैंटी और हाई हील सैंडल पहने ठंडी रात में छत पर उन चारों के सामने खड़ी थी। फिर उनकी तरफ देखते हुए अपनी ब्रा के स्ट्रैप कँधे सी नीचे सरका दी। मैंने हुक नहीं खोला लेकिन ब्रा से चूंचियों को आजाद कर दिया। अब चारों ने झपट कर मुझे पकड़ लिया और मेरे अँगों को सहलाने लगे। एक मेरे होंठों को चूस रहा था और मेरे होंठों से लिपस्टिक का स्वाद चख रहा था। दूसरा मेरी चूंचियों को मसल रहा था। एक मेरे पैरों के बीच बैठ कर मेरी पैंटी नीचे खिसका कर मेरे चूत के ऊपर अपनी जीभ फिरा रहा था। चौथे आदमी को जगह नहीं मिल रही थी इसलिये मैंने उसे भी शामिल करने के लिये हाथ बढ़ा कर उसके लंड को थाम लिया और हाथ से उसे प्यार करने लगी।
"कौन है तू... मेरा रास्ता छोड़ नहीं तो अभी आवाज लगाती हूँ... तेरी ऐसी हजामत होगी कि खुद को आईने में नहीं पहचान पायेगा" मैंने नासमझ बन कर कहा।
"नो बेबी तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगी..." उसने कड़कते हुए कहा, "मेरे पास तेरी सी.डी अभी भी है... बोल चला दूँ क्या तेरे ससुराल वालों के सामने... कहीं भी मुँह नहीं दिख पायेगी।"
यह सुनते ही मैं सकपका गयी। "क्या चाहते हो तुम? देखो मैं वैसी लड़की नहीं हूँ... एक अच्छे घर की बहू हूँ... तुम मुझे जाने दो।" मैंने उससे कहा।
"तो हम भी कौनस तुझे कुछ कहने वाले हैं। इतने दिनों बाद मिली हो... बस एक बार हमारे ग्रुप का मन रख लो... फिर तुम अपने घर हम अपने घर।" उसने मुझे मेरा हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा।
"देखो मैं अगर लेट हो गयी तो लोग मुझे ढूँढते हुए यहाँ आ जायेंगे... छोड़ो मुझे।"
"ठीक है अभी तो छोड़ देते हैं लेकिन तुझे रात को आना पड़ेगा... नहीं तो उस फ़िल्म की कॉपियाँ तेरी ससुराल में सबको फ़्री में बँटवा दुँगा" कहकर उसने मेरा हाथ छोड़ दिया। मैं छूटते ही भागी तो उसने पीछे से आवाज लगायी "हमें इशारा कर देना कि कहाँ चलना है... जगह ढूँढना तेरा काम है"
मैं भाग गयी वहाँ से लेकिन एक टेंशन तो घुस ही गयी दिमाग में। समझ में नहीं आ रहा था कि मैं कैसे मकड़ी के जाल में उलझती जा रही हूँ। इसका कोई अँत ही नहीं दिख रहा था। लेकिन इतना तो मालूम था कि वो झूठ नहीं बोल रहा था। केशव के साथ होटल में हुई पहली मुलाकत में उसने मूवी कैमरे से सब कुछ खींचा था। अब अगर मैंने उसकी बात नहीं मानी तो वो मुझे बदनाम कर देगा। इसलिये मैंने उससे मिल ही लेने का विचार किया। सुबह तीन बजे फेरे थे, इसलिये मैंने सुरेश को इशारा किया। वो मेरे पीछे हो लिया। मैं अपनी सासू माँ को कुछ देर घर से हो कर आने को कह कर वहाँ से निकल गयी। रात के ग्यारह बज रहे थे और ज्यादा तर लोग सो चुके थे। जो मंडप में थे वो ही सिर्फ़ जागे हुए थे। इसलिये पकड़े जाने का कोई सवाल ही नहीं था। सुरेश के साथ तीन और आदमी थे। मैं उन्हें घर ले गयी। छत पर अँधेरा था और मैं उन्हें वहाँ ले गयी।
"देखो जो करना है जल्दी करो... अभी शादी का माहौल है... कभी भी कोई आ सकता है" मैंने कहा।
चारों ने मुझे पकड़ लिया और मेरे बदन से लिपट गये। मेरे कपड़ों पर हाथ लगते ही मैंने कहा, "इन्हें मत उतारो... मैं साड़ी उठा देती हूँ ... तुम्हें जो करना है कर लो। मेक-अप बिगड़ गया तो कोई भी समझ जायेगा"
"तू यहाँ चुदवाने आयी है या हम पर एहसान कर रही है... साली रंडी कितने ही मर्दों से चुदवा चुकी है... अब सती-सावित्री बन रही है। उतार साली अपने कपड़े" उसने दहाड़ कर कहा। मैंने भी देखा कि चारों मानने वाले हैं नहीं, इसलिये मैंने अपने कपड़े उतारने शुरू किये। साड़ी उतार कर मैंने उनसे फिर मिन्नतें की "प्लीज़ ऐसे ही जो करना है कर लो मेरे सारे कपड़े मत उतारो" मैंने सुरेश को कहा।
"नहीं ब्लाऊज़ और पेटीकोट तो उतारना ही पड़ेगा"
मैंने धीरे-धीरे अपना ब्लाऊज़ और पेटीकोट उतार दिया। अब मैं सिर्फ ब्रा-पैंटी और हाई हील सैंडल पहने ठंडी रात में छत पर उन चारों के सामने खड़ी थी। फिर उनकी तरफ देखते हुए अपनी ब्रा के स्ट्रैप कँधे सी नीचे सरका दी। मैंने हुक नहीं खोला लेकिन ब्रा से चूंचियों को आजाद कर दिया। अब चारों ने झपट कर मुझे पकड़ लिया और मेरे अँगों को सहलाने लगे। एक मेरे होंठों को चूस रहा था और मेरे होंठों से लिपस्टिक का स्वाद चख रहा था। दूसरा मेरी चूंचियों को मसल रहा था। एक मेरे पैरों के बीच बैठ कर मेरी पैंटी नीचे खिसका कर मेरे चूत के ऊपर अपनी जीभ फिरा रहा था। चौथे आदमी को जगह नहीं मिल रही थी इसलिये मैंने उसे भी शामिल करने के लिये हाथ बढ़ा कर उसके लंड को थाम लिया और हाथ से उसे प्यार करने लगी।