03-03-2025, 11:22 PM
मैं उसे कुछ देर तक हाथ से सहलाती रही। सहलाने से उसके लंड में हल्की सी हर्कत हुई। मुझसे नहीं रहा जा रहा था। मैं किसी बात की परवाह किये बिन उठा कर बैठ गयी और उसके ढीले लंड को अपने मुँह में भर लिया। उसके लंड को जीभ से और होंठों से चाटने लगी। उसका लंड अब खड़ा होने लगा। मैं उत्तेजना में अपने चूंचियों को अपने हाथों से मसल रही थी। मेरी चूत से पानी रिस रहा था। जब मैंने देखा कि उसका लंड पूरी तरह तन गया है तो मैं ऊपर उठी और उसके कमर के दोनों ओर अपने पैरों को फैला कर बैठ गयी। मैंने अपने हाथों से उसके लंड को पकड़ कर अपनी गीली चूत पर सैट किया और दूसरे हाथ से अपनी चूत की फाँक को फैला कर लंड के सामने के सुपाड़े को अंदर किया। फिर अपने हाथों को वहाँ से हटा कर उसके सीने पर रखा और अपने बदन का बोझ उसके लंड पर डाल दिया। उसका लंड काफी मोटा था। वो मेरी चूत की दीवरों को रगड़ता हुआ पूरा अंदर चला गया। मैं उसके लंड पर बैठ गयी थी। मेरी इस हर्कत से उसकी नींद खुल गयी। मैं उसके शरीर में हर्कत देख कर झट उसके सीने पर झुक गयी और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिये जिससे कि वो अचानक नींद से उठ कर कुछ बोल नहीं पड़े। मगर मैंने देखा कि वो चुप ही रहा। उसके हाथ मेरे बदन पर फिरने लगे और फिर उसके हाथों ने मेरी दोनों चूंचियों को थाम लिया। मैंने उसके सीने का सहार लेकर अपनी कमर ऊपर नीचे करने लगी। वो भी मेरे चूंचियों को मसलता हुआ हर धक्के के साथ अपनी कमर ऊपर उठा रहा था। मेरी चूंचियों को जोर जोर से चूसते हुए अपने दाँतों से काट रहा था। दाँतों से काटने की वजह से काफी दर्द हो रहा था मगर मैं अपने निचले होंठ को दाँतों में दबा कर मुँह से कोई भी आवाज निकलने से रोक रही थी।
मेरे बाल मेरे चेहरे पर खुल कर बिखर गये थे। अँधेरे में पता ही नहीं चल रहा था कि मैं किस का लंड अपनी चूत के अंदर ले रखी हूँ। शायद उसे भी खबर नहीं होगी। कुछ देर तक इसी तरह उसे ऊपर से धक्के लगाने के बाद मेरी चूत ने पानी चोड़ दिया मगर मेरी चूत की प्यास अभी नहीं बुझी थी। उसने अब मुझे नीचे लिटा दिया और मेरे टाँगों को फैला कर दोनों हाथों से पकड़ लिया। अब वो अपना लंड मेरी चूत से सटा कर धक्का लगाने लगा। फिर से धक्के शुरू हुए। काफी देर तक इसी तरह करने के बाद मुझे उठाकर अपनी गोद में पैर फैला कर बिठा लिया और मैं उसकी गोद में बैठ कर कमर उचकाने लगी। उसने मेरे निप्पलों को मुँह में भर लिया और उन्हें चूसने लगा। मैंने अपने हाथों से उसके मुँह को अपने सीने पर दबा दिया। वो मेरी चूंचियों को मुँह में भर कर चूसने लगा। मेरे निप्पलों को दाँतों से दबा रहा था। कुछ देर तक इस तरह करने के बाद मुझे वापस बिस्तर पर लिटा कर मेरे टाँगों को अपने कँधे पर रख लिया और फिर जोर जोर से चोदने लगा। अब वो झड़ने के करीब था। मैं उसकी उत्तेजना को समझ रही थी। वो अब मेरे चूंची के साथ बहुत सख्ती से पेश आ रहा था। उसकी अँगुलियाँ मेरी नाज़ुक चूंचियों को बुरी तरह मसल रही थी। दर्द के कारण कईं बार मुँह से चीख निकलते निकलते रह गयी। मैंने अपने निचले होंठ को दाँतों में दबा लिया। उसने एक जोर का धक्का लगाया और उसके लंड से गरम गरम फ़ुहार मेरी चूत के अंदर पड़ने लगी। मैंने उसे खींच लिया और उसके होंठों और चेहरे पर कईं चुंबन दिये। उसी के साथ मैं भी तीसरी बार झड़ गयी। मैंने उत्तेजना में अपने लम्बे नाखून उसकी नंगी पीठ पर गड़ा दिये। वो थक कर मेरे ऊपर ही लेट गया। जब उसका लंड ढीला पड़ गया तो वो मेरे सीने से उतर कर मुझसे लिपट कर सो गया। मैं भी तीन बार स्खलित होके उसके होंठों से अपने होंठ लगाये हुए सो गयी।
मैं सुबह पाँच बजे उठ जाती हूँ। आज जब उठी तो कमरे में अँधेरा था। मैं अपने बगल वाले से चिपकी हुई थी। दूसरी तरफ वाला भी अपनी एक टाँग मेरे ऊपर चढ़ा रखा था। मैंने अपने को उन दोनों से छुड़ाया और धीरे-धीरे उनके नीचे से अपने कपड़ों को खींच और फिर अँधेरे में ही उन्हें पहन कर कमरे से बाहर निकलने लगी। तभी खयाल आया कि एक बार देखूँ तो सही कि कौन थे रात को मेरे साथ। मैंने लाईट जलायी तो उन्हें देखते ही चौंक गयी। वहाँ एक तरफ तो नैनीताल वाले फ़ुफ़ा-ससुर सोये हुए थे और मुझे रात भर चोदने वाला और कोई नहीं मेरे अपने ससुर जी थे यानी रिटा और राज के पिताजी। मैं तुरंत लाईट बँद करके वहाँ से भाग गयी।
मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। मैं ये सोच कर अपने दिल को तसल्ली दे रही थी कि शायद उन्हें पता नहीं चला है कि रात को उन्होंने किसके साथ चुदाई की है। मैंने एक सलवार कुर्ता पहन रखा था, जिसका गला काफी खुला हुआ था। मैं सुबह अपने ससुर को चाय देने के लिये जब झुकी तो मेरा गला और ज्यादा खुल गया। उठते हुए मेरी नज़र उनसे मिली वो मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे। मैंने अपनी चूंचियों की तरफ देखा। खुले गले से लाल-लाल दाँतों से बने निशान उनकी आँखों के सामने रात की कहानी का ब्योरा दे रहे थे। मैं शर्मा कर अपनी नज़र झुका कर वहाँ से भाग गयी। उस दिन शाम को उन्होंने अकेले में मुझे पकड़ लिया। मैं तो एक दम घबड़ा गयी थी। उन्होंने मेरी चूंचियों को मसल कर कहा "अब रोज हमारे साथ ही सोया कर। तेरे नैनीताल वाले ससुर जी भी यही कह रहे थे।" "धत्त" कह कर मैं अपने आप को छुड़ा कर वहाँ से भाग गयी लेकिन हर दिन मैं वहीं सोयी। उन दोनों बुढ्ढों के बीच। दोनों के साथ खूब खेली कुछ दिनों तक। शादी वाले दिन बारात के साथ सुरेश आया था। मैं उसे देख कर शर्मा गयी। उससे नज़र बचा कर थोड़ा अलग हो गयी। मगर उसकी निगाहें तो मुझे ही ढूँढ रही थी। शादी घर से कुछ दूर हो रही थी। एक बार मैं किसी काम के लिये शादी के मंडप से घर आ रही थी। गाँव में जैसा होता है... रास्ते में अँधेरा था। अचानक भूत की तरह सुरेश सामने आया।
मेरे बाल मेरे चेहरे पर खुल कर बिखर गये थे। अँधेरे में पता ही नहीं चल रहा था कि मैं किस का लंड अपनी चूत के अंदर ले रखी हूँ। शायद उसे भी खबर नहीं होगी। कुछ देर तक इसी तरह उसे ऊपर से धक्के लगाने के बाद मेरी चूत ने पानी चोड़ दिया मगर मेरी चूत की प्यास अभी नहीं बुझी थी। उसने अब मुझे नीचे लिटा दिया और मेरे टाँगों को फैला कर दोनों हाथों से पकड़ लिया। अब वो अपना लंड मेरी चूत से सटा कर धक्का लगाने लगा। फिर से धक्के शुरू हुए। काफी देर तक इसी तरह करने के बाद मुझे उठाकर अपनी गोद में पैर फैला कर बिठा लिया और मैं उसकी गोद में बैठ कर कमर उचकाने लगी। उसने मेरे निप्पलों को मुँह में भर लिया और उन्हें चूसने लगा। मैंने अपने हाथों से उसके मुँह को अपने सीने पर दबा दिया। वो मेरी चूंचियों को मुँह में भर कर चूसने लगा। मेरे निप्पलों को दाँतों से दबा रहा था। कुछ देर तक इस तरह करने के बाद मुझे वापस बिस्तर पर लिटा कर मेरे टाँगों को अपने कँधे पर रख लिया और फिर जोर जोर से चोदने लगा। अब वो झड़ने के करीब था। मैं उसकी उत्तेजना को समझ रही थी। वो अब मेरे चूंची के साथ बहुत सख्ती से पेश आ रहा था। उसकी अँगुलियाँ मेरी नाज़ुक चूंचियों को बुरी तरह मसल रही थी। दर्द के कारण कईं बार मुँह से चीख निकलते निकलते रह गयी। मैंने अपने निचले होंठ को दाँतों में दबा लिया। उसने एक जोर का धक्का लगाया और उसके लंड से गरम गरम फ़ुहार मेरी चूत के अंदर पड़ने लगी। मैंने उसे खींच लिया और उसके होंठों और चेहरे पर कईं चुंबन दिये। उसी के साथ मैं भी तीसरी बार झड़ गयी। मैंने उत्तेजना में अपने लम्बे नाखून उसकी नंगी पीठ पर गड़ा दिये। वो थक कर मेरे ऊपर ही लेट गया। जब उसका लंड ढीला पड़ गया तो वो मेरे सीने से उतर कर मुझसे लिपट कर सो गया। मैं भी तीन बार स्खलित होके उसके होंठों से अपने होंठ लगाये हुए सो गयी।
मैं सुबह पाँच बजे उठ जाती हूँ। आज जब उठी तो कमरे में अँधेरा था। मैं अपने बगल वाले से चिपकी हुई थी। दूसरी तरफ वाला भी अपनी एक टाँग मेरे ऊपर चढ़ा रखा था। मैंने अपने को उन दोनों से छुड़ाया और धीरे-धीरे उनके नीचे से अपने कपड़ों को खींच और फिर अँधेरे में ही उन्हें पहन कर कमरे से बाहर निकलने लगी। तभी खयाल आया कि एक बार देखूँ तो सही कि कौन थे रात को मेरे साथ। मैंने लाईट जलायी तो उन्हें देखते ही चौंक गयी। वहाँ एक तरफ तो नैनीताल वाले फ़ुफ़ा-ससुर सोये हुए थे और मुझे रात भर चोदने वाला और कोई नहीं मेरे अपने ससुर जी थे यानी रिटा और राज के पिताजी। मैं तुरंत लाईट बँद करके वहाँ से भाग गयी।
मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। मैं ये सोच कर अपने दिल को तसल्ली दे रही थी कि शायद उन्हें पता नहीं चला है कि रात को उन्होंने किसके साथ चुदाई की है। मैंने एक सलवार कुर्ता पहन रखा था, जिसका गला काफी खुला हुआ था। मैं सुबह अपने ससुर को चाय देने के लिये जब झुकी तो मेरा गला और ज्यादा खुल गया। उठते हुए मेरी नज़र उनसे मिली वो मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे। मैंने अपनी चूंचियों की तरफ देखा। खुले गले से लाल-लाल दाँतों से बने निशान उनकी आँखों के सामने रात की कहानी का ब्योरा दे रहे थे। मैं शर्मा कर अपनी नज़र झुका कर वहाँ से भाग गयी। उस दिन शाम को उन्होंने अकेले में मुझे पकड़ लिया। मैं तो एक दम घबड़ा गयी थी। उन्होंने मेरी चूंचियों को मसल कर कहा "अब रोज हमारे साथ ही सोया कर। तेरे नैनीताल वाले ससुर जी भी यही कह रहे थे।" "धत्त" कह कर मैं अपने आप को छुड़ा कर वहाँ से भाग गयी लेकिन हर दिन मैं वहीं सोयी। उन दोनों बुढ्ढों के बीच। दोनों के साथ खूब खेली कुछ दिनों तक। शादी वाले दिन बारात के साथ सुरेश आया था। मैं उसे देख कर शर्मा गयी। उससे नज़र बचा कर थोड़ा अलग हो गयी। मगर उसकी निगाहें तो मुझे ही ढूँढ रही थी। शादी घर से कुछ दूर हो रही थी। एक बार मैं किसी काम के लिये शादी के मंडप से घर आ रही थी। गाँव में जैसा होता है... रास्ते में अँधेरा था। अचानक भूत की तरह सुरेश सामने आया।