03-03-2025, 11:20 PM
कुछ देर बाद दिनेश ने अपना लंड मेरे मुँह से निकाला। उसका लंड मेरे थूक से लिसड़ा हुआ चमक रहा था। मैंने उसकी तरफ देखा कि वो क्या करना चाहता है। मगर उसका जवाब दिया दीपक ने जब उसने मेरे निप्पलों को बुरी तरह मसलते हुए अपनी तरफ खींचा। मैं उसके सीने पर लेट गयी। दिनेश ने पीछे से आकर मेरे दोनों चूत्तड़ों को अलग कर के अपना लंड मेरी गाँड के छेद पर लगा कर ठेला मगर उसका लंड काफी मोटा होने के कारण अंदर नहीं जा पाया। उसने दोबारा मेरी गाँड के छेद को जितना हो सकता था उतना फैला कर अंदर ठेला मगर इस बार भी अंदर नहीं जा पाया। फिर उसने अपनी दो अँगुलियाँ दीपक के लंड के साथ-साथ मेरी चूत में डाल दीं। जब अँगुलियाँ बाहर निकालीं तो उनमें मेरी चूत का रस लगा हुआ था। उसे उसने अपने लंड पर लगाया और दोबारा चूत के अंदर अँगुली डाल कर रस बाहर निकाला और मेरी गाँड की छेद में अँगुली डाल कर उस जगह को गीला किया। फिर उसने अपना लंड वहाँ लगा कर जोर से ठोका।
उसका लंड किसी तरह थोड़ा अंदर घुसा। दर्द की एक तेज लहर मेरे बदन में फैल गयी और मैं "आआआआहहहह" कर उठी। अपने सुपाड़े को अंदर कर वो कुछ देर के लिये रुका तो थोड़ा दर्द कम हुआ। कुछ देर बाद एक झटके में ही उसने पूरा का पूरा लंड मेरी गाँड के अंदर कर दिया। फिर तो दोनों भाइयों में होड़ लग गयी मुझे चोदने की। एक ऊपर से ठोक रहा था तो दूसरा नीचे से कमर उठा रहा था। "हहहहम्म्म्म्म्फफफफफ उउउउहहहहह उफफफफफ" जैसी आवाजें तीनों के मुँह से निकल रही थीं। तीनों पसीने से तरबतर हो गये। बहुत शक्ति थी दोनों में। करीब घंटे भर तक चलती रही मेरी चूत और गाँड की चुदाई। फिर पहले दीपक के लंड ने अपनी पिचकारी छोड़ी और फिर दिनेश ने मेरी गाँड को अपने लंड के पानी से भर दिया। मैं तो पहले ही अपनी चूत का रस कईं बार छोड़ चुकी थी। हम तीनों एक दूसरे के ऊपर ही कुछ देर तक लेटे रहे।
फिर दूसरे दौर के लिये तैयारी करने लगे। कईं घंटों तक यूँ ही चुदाई का दौर चलता रहा जब तक हम तीनों थक कर चूर न हो गये। शाम को तीनों उठ कर कपड़े पहन कर सन-सेट पाईंट देखने गये। मुझे उन्होंने पैंटी और ब्रा नहीं पहनने दीं। सीने पर सिर्फ साड़ी लपेट रखी थी क्योंकि ब्लाऊज़ भी उन्होंने पहनने से रोक दिया था। शॉल ओढ़ रखी थी इसलिये किसी को पता नहीं चल रहा था। मगर रास्ते में दोनों मेरे चूंचियाँ मसलते रहे।
वो जगह बहुत ही रोमाँटिक लगी। घनी पहाड़ियों के बीच सूरज अस्त हो रहा था। बर्फ की चोटियाँ लाल रंग से नहायी हुई थीं और ऐसा लग रहा था मानो बर्फ में आग लग गयी हो। बहुत ही रोमाँटिक दृश्य था। हल्का-हल्का अँधेरा होने लगा तो दोनों मुझे बारी-बारी अपने सीने से लिपटा रहे थे। मैं भी उनसे लिपट कर किस कर रही थी। वहाँ से हम घर लौटे। घर में हम आपस में सामान्य बर्ताव करने लगे। राज की तबियत थोड़ी ठीक हुई थी मगर अभी भी एक दम स्वस्थ होने में समय लगने वाला था। दोनों ने डिनर के वक्त सबको सुनाते हुए कहा, "अनिता कल यहाँ से कोई अस्सी किलोमिटर दूर एक बहुत ही प्यारी जगह है... सुबह वहाँ के लिये निकलना है और लौटते हुए देर रात हो जायेगी"
बुआ जी यह सुनते ही बोलीं, "नहीं कोई जरूरत नहीं रात को इन पहाड़ियों में ड्राइव करने की। दिनेश ये तो नई है लेकिन तू क्या पागल हो गया है। रात को वहीं रुक जाना। तेरा दोस्त है ना बाबू उसके घर रुक जाना।" मैंने पल भर के लिये दिनेश और दीपक की तरफ देखा तो दोनों कुटिलता से मुस्कुरा रहे थे। मैं समझ गयी थी कि दोनों मुझे क्या क्या दिखाने वाले हैं रात भर। अगले दिन सुबह हम वहाँ के लिये निकल पड़े।
दो घंटे में वहाँ पहुँच गये। वहाँ सारी जगह घूमने के बाद उनके दोस्त बाबू के घर गये। वहाँ उनका भरा पूरा परिवार था इसलिये एक होटल में ही कमरा बुक किया। शाम को बाबू भी आ गया था। तीनों की महफिल जमी। मैंने बदल कर एक पारदर्शी ब्लाऊज़ और पेटीकोट और साथ में बहुत ही हाई हील के सैंडल पहन लिये था। उन्होंने और कुछ पहनने ही नहीं दिया। मैंने तीनों के ग्लास में पैग बनाये। स्टीरियो पर एक डाँस नम्बर लगा दिया था। उनके कहने पर मैंने भी ज़िंदगी में पहली बार व्हिस्की पी। किसी तरह नाक सिकोड़ कर दो ग्लास खाली कर दिये। लेकिन इसी में ही मेरा सिर घूमने लगा। मेरे साथ तीनों बारी-बारी थिरक रहे थे और डाँस करते-करते कामुक्ता से मेरे बदन पर हाथ फिराते हुए मेरे होंठों को चूस रहे थे। मैं भी उनके साथ पूरे मूड में थी और मैं उनके साथ ही खूब अपने बदन को रगड़ रही थी। तभी डाँस करते-करते मुझे दिनेश ने पीछे से पकड़ा और मेरे ब्लाऊज़ के बटन खोलने लगा। बाबू मेरे पेटीकोट को ऊँचा कर के मेरी चूत के ऊपर से सहलाने लगा। दीपक मेरे पेटीकोट के नाड़े से उलझा हुआ था। उसमें गाँठ पड़ गयी तो उसने एक झटके में नाड़े को तोड़ दिया। तब तक दिनेश मेरे ब्लाऊज़ को बदन से अलग कर चुका था। अब मैं पूरी तरह नंगी हो गयी और सिर्फ हाई हील सैंडल पहने थिरकने लगी। फिर मैंने भी तीनों के कपड़े उतार कर उन्हें बिल्कुल नंगा कर दिया और हम एक दूसरे के बदन मसलने लगे। तीनों ने मुझे घुटनों पर बिठा दिया और तीन मोटे तगड़े लंड मेरे सामने झटके खा रहे थे। मैं बारी-बारी से तीनों के लंड चूस रही थी। एक के लंड को कुछ देर तक मुँह में लेकर चूसती और फिर पूरे लंड पर जीभ फिराती और बीच बीच में अन्ड-कोशों पर भी अपनी जीभ फिराती। फिर उसे छोड़ कर यही सब दूसरे लंड के साथ करती। तीनों बहुत ज्यादा उत्तेजित हो चुके थे। फिर उन्होंने मुझे उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया। दिनेश को मेरी चूत चाटने में बहुत मजा आता था इसलिये वो मेरी चूत पर अपना मुँह रख कर अपनी जीभ अंदर डाल कर मेरे रस को चाटने लगा। दीपक मेरी चूंचियों पर चढ़ बैठा। उसके लंड को दोनों चूंचियों के बीच में लेकर मैंने अपनी दोनों चूंचियों को अपने हाथों से जोड़ रखा था। वो मेरी चूंचियों के बीच अपना लंड आगे पीछे करने लगा। बाबू ने मेरी बगल में आकर अपना लंड मेरे मुँह में घुसेड़ दिया।
उसका लंड किसी तरह थोड़ा अंदर घुसा। दर्द की एक तेज लहर मेरे बदन में फैल गयी और मैं "आआआआहहहह" कर उठी। अपने सुपाड़े को अंदर कर वो कुछ देर के लिये रुका तो थोड़ा दर्द कम हुआ। कुछ देर बाद एक झटके में ही उसने पूरा का पूरा लंड मेरी गाँड के अंदर कर दिया। फिर तो दोनों भाइयों में होड़ लग गयी मुझे चोदने की। एक ऊपर से ठोक रहा था तो दूसरा नीचे से कमर उठा रहा था। "हहहहम्म्म्म्म्फफफफफ उउउउहहहहह उफफफफफ" जैसी आवाजें तीनों के मुँह से निकल रही थीं। तीनों पसीने से तरबतर हो गये। बहुत शक्ति थी दोनों में। करीब घंटे भर तक चलती रही मेरी चूत और गाँड की चुदाई। फिर पहले दीपक के लंड ने अपनी पिचकारी छोड़ी और फिर दिनेश ने मेरी गाँड को अपने लंड के पानी से भर दिया। मैं तो पहले ही अपनी चूत का रस कईं बार छोड़ चुकी थी। हम तीनों एक दूसरे के ऊपर ही कुछ देर तक लेटे रहे।
फिर दूसरे दौर के लिये तैयारी करने लगे। कईं घंटों तक यूँ ही चुदाई का दौर चलता रहा जब तक हम तीनों थक कर चूर न हो गये। शाम को तीनों उठ कर कपड़े पहन कर सन-सेट पाईंट देखने गये। मुझे उन्होंने पैंटी और ब्रा नहीं पहनने दीं। सीने पर सिर्फ साड़ी लपेट रखी थी क्योंकि ब्लाऊज़ भी उन्होंने पहनने से रोक दिया था। शॉल ओढ़ रखी थी इसलिये किसी को पता नहीं चल रहा था। मगर रास्ते में दोनों मेरे चूंचियाँ मसलते रहे।
वो जगह बहुत ही रोमाँटिक लगी। घनी पहाड़ियों के बीच सूरज अस्त हो रहा था। बर्फ की चोटियाँ लाल रंग से नहायी हुई थीं और ऐसा लग रहा था मानो बर्फ में आग लग गयी हो। बहुत ही रोमाँटिक दृश्य था। हल्का-हल्का अँधेरा होने लगा तो दोनों मुझे बारी-बारी अपने सीने से लिपटा रहे थे। मैं भी उनसे लिपट कर किस कर रही थी। वहाँ से हम घर लौटे। घर में हम आपस में सामान्य बर्ताव करने लगे। राज की तबियत थोड़ी ठीक हुई थी मगर अभी भी एक दम स्वस्थ होने में समय लगने वाला था। दोनों ने डिनर के वक्त सबको सुनाते हुए कहा, "अनिता कल यहाँ से कोई अस्सी किलोमिटर दूर एक बहुत ही प्यारी जगह है... सुबह वहाँ के लिये निकलना है और लौटते हुए देर रात हो जायेगी"
बुआ जी यह सुनते ही बोलीं, "नहीं कोई जरूरत नहीं रात को इन पहाड़ियों में ड्राइव करने की। दिनेश ये तो नई है लेकिन तू क्या पागल हो गया है। रात को वहीं रुक जाना। तेरा दोस्त है ना बाबू उसके घर रुक जाना।" मैंने पल भर के लिये दिनेश और दीपक की तरफ देखा तो दोनों कुटिलता से मुस्कुरा रहे थे। मैं समझ गयी थी कि दोनों मुझे क्या क्या दिखाने वाले हैं रात भर। अगले दिन सुबह हम वहाँ के लिये निकल पड़े।
दो घंटे में वहाँ पहुँच गये। वहाँ सारी जगह घूमने के बाद उनके दोस्त बाबू के घर गये। वहाँ उनका भरा पूरा परिवार था इसलिये एक होटल में ही कमरा बुक किया। शाम को बाबू भी आ गया था। तीनों की महफिल जमी। मैंने बदल कर एक पारदर्शी ब्लाऊज़ और पेटीकोट और साथ में बहुत ही हाई हील के सैंडल पहन लिये था। उन्होंने और कुछ पहनने ही नहीं दिया। मैंने तीनों के ग्लास में पैग बनाये। स्टीरियो पर एक डाँस नम्बर लगा दिया था। उनके कहने पर मैंने भी ज़िंदगी में पहली बार व्हिस्की पी। किसी तरह नाक सिकोड़ कर दो ग्लास खाली कर दिये। लेकिन इसी में ही मेरा सिर घूमने लगा। मेरे साथ तीनों बारी-बारी थिरक रहे थे और डाँस करते-करते कामुक्ता से मेरे बदन पर हाथ फिराते हुए मेरे होंठों को चूस रहे थे। मैं भी उनके साथ पूरे मूड में थी और मैं उनके साथ ही खूब अपने बदन को रगड़ रही थी। तभी डाँस करते-करते मुझे दिनेश ने पीछे से पकड़ा और मेरे ब्लाऊज़ के बटन खोलने लगा। बाबू मेरे पेटीकोट को ऊँचा कर के मेरी चूत के ऊपर से सहलाने लगा। दीपक मेरे पेटीकोट के नाड़े से उलझा हुआ था। उसमें गाँठ पड़ गयी तो उसने एक झटके में नाड़े को तोड़ दिया। तब तक दिनेश मेरे ब्लाऊज़ को बदन से अलग कर चुका था। अब मैं पूरी तरह नंगी हो गयी और सिर्फ हाई हील सैंडल पहने थिरकने लगी। फिर मैंने भी तीनों के कपड़े उतार कर उन्हें बिल्कुल नंगा कर दिया और हम एक दूसरे के बदन मसलने लगे। तीनों ने मुझे घुटनों पर बिठा दिया और तीन मोटे तगड़े लंड मेरे सामने झटके खा रहे थे। मैं बारी-बारी से तीनों के लंड चूस रही थी। एक के लंड को कुछ देर तक मुँह में लेकर चूसती और फिर पूरे लंड पर जीभ फिराती और बीच बीच में अन्ड-कोशों पर भी अपनी जीभ फिराती। फिर उसे छोड़ कर यही सब दूसरे लंड के साथ करती। तीनों बहुत ज्यादा उत्तेजित हो चुके थे। फिर उन्होंने मुझे उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया। दिनेश को मेरी चूत चाटने में बहुत मजा आता था इसलिये वो मेरी चूत पर अपना मुँह रख कर अपनी जीभ अंदर डाल कर मेरे रस को चाटने लगा। दीपक मेरी चूंचियों पर चढ़ बैठा। उसके लंड को दोनों चूंचियों के बीच में लेकर मैंने अपनी दोनों चूंचियों को अपने हाथों से जोड़ रखा था। वो मेरी चूंचियों के बीच अपना लंड आगे पीछे करने लगा। बाबू ने मेरी बगल में आकर अपना लंड मेरे मुँह में घुसेड़ दिया।