03-03-2025, 11:17 PM
मैं शाम को छः बजे ब्यूटी-पॉर्लर से मेक-अप करवा कर लौटी थी। ब्यूटीशियन ने बहुत मेहनत से साँवारा था। मैं वैसे भी बहुत खूबसूरत थी इसलिये थोड़ी मेहनत से ही एक दम अप्सराओं की तरह लगने लगी। सुनहरी रंग की लहँगा-चोली और सुनहरी रंग के ही हाई हील सैंडलों में एकदम राजकुमारी सी लग रही थी। रिटा हर वक्त साथ ही थी। काफी देर से केशव कहीं नहीं दिखा था। शादी के लिये एक मैरिज हाल बुक किया गया था। उसके फर्स्ट फ्लोर पर मेरे ठहरने का स्थान था। मैं अपनी सहेलियों से घिरी हुई बैठी थी। रात को लगभग नौ बजे बैंड वालों का शोर सुनकर पता चला कि बारात आ रही है। मेरी सहेलियाँ दौड़ कर खिड़की से झाँकने लगी। वहाँ अँधेरा होने से किसी की नजर ऊपर खिड़की पर नहीं पड़ती थी।
अब मेरी सहेलियाँ वहाँ से एक-एक कर के खिसक गयीं। कुछ को तो बारात पर फूल वर्षा करनी थी और कुछ दुल्हा और बारात देखने के लिये भाग गयी। मैं कुछ देर के लिये बिल्कुल अकेली पड़ गयी। एक दरवाजा पास के कमरे में खुलता था। अचानक वो दरवाजा खुला और केशव अंदर आया। मैं इस वक्त उसे देख कर एक दम घबरा गयी। उसने आकर बाहर के दरवाजे को बँद कर दिया।
"केशव अब कोई गलत हर्कत मत करना... किसी को पता चल गया तो मेरी ज़िंदगी बर्बाद हो जायेगी... सब थूकेंगे मुझ पर और मैं किसी को मुँह दिखाने के भी काबिल नहीं रह जाऊँगी।" मैंने अपने हाथ जोड़ दिये और वो चुप रहा। "देखो शादी के बाद जो चाहे कर लेना... जहाँ चाहे बुला लेना मगर आज नहीं। आज मुझे छोड़ दो।"
"अरे मैं कोई रेपिस्ट थोड़ी हूँ जो तेरा रेप करने चला हूँ। आज इतनी सुंदर लग रही हो कि तुमसे मिले बिना नहीं रह पाया। बस एक बार प्यार कर लेने दो।"
वो आकर मुझसे लिपट गया। मैं उससे अपने को अलग नहीं कर पा रही थी। डर था सारा मेक-अप खराब नहीं हो जाये। मैंने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया। उसने मेरे बूब्स पर हल्के से हाथ फिराये। शायद उसे भी मेक-अप बिगड़ जाने का डर था। "आज तुझे इस वक्त एक बार प्यार करना चाहता हूँ" कहकर उसने मेरे लहँगे को पकड़ा। मैं उसका मतलब समझ कर उसे मना करने लगी मगर उसने सुना नहीं और मेरे लहँगे को कमर तक उठा दिया। फिर उसने मेरी पिंक रंग की पारदर्शी पैंटी को खींच कर निकाल दिया और उसे अपनी पैंट की जेब में भर लिया। फिर मुझे खुली हुई खिड़की पर झुका कर मेरे पीछे से सट गया। उसने अपनी पैंट की ज़िप खोली और अपने खड़े लंड को मेरी चूत में ठेल दिया। मैं खिड़की की चौखट को पकड़ कर झुकी हुई थी और वो पीछे से मुझे चोद रहा था।
सामने बारात आ रही थी और उसके स्वागत में भीड़ उमड़ी पड़ी थी। और मैं - दुल्हन - किसी और से चुद रही थी। अँधेरा और सामने एक पेड़ होने के कारण किसी की नज़र वहाँ नहीं पड़ रही थी वरना गज़ब ढा जाता। सामने नाच गाना चल रहा था। सब उसे देखने में व्यस्त थे और हम किसी और काम में। कुछ देर में उसने ढेर सार वीर्य मेरी चूत में झाड़ दिया। मेरा भी उसके साथ ही चूत-रस निकल गया। बारात अंदर आ चुकी थी। तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया। केशव झपट कर बगल वाले कमरे की और लपका। मैंने उसके हाथ को थाम लिया। "मेरी पैंटी तो देते जाओ।" मैंने कहा।
"नहीं ये मेरे पास रहेगी।" कह कर वो भाग गया। दोबरा दरवाजा खटखटाया गया तो मैंने उठ कर दरवाजा खोल दिया। दो-तीन सहेलियाँ अंदर आयीं।
"क्या हुआ?" उन्होंने पूछा
"कुछ नहीं... आँख लग गयी थी... थकान के कारण।" मैंने बात को टाल दिया मगर रिटा समझ गयी कि दाल में काला है। मैंने उसे अपने को घूरते पाया और मैंने अपनी आँखें झुका लीं।
"चलो चलो। बारात आ गयी है। आँटी अंकल जय माला के लिये बुला रहे हैं" सब ने मुझे उठाया और मेरे हाथों में माला थमा दी। मैं उनके साथ माला थामे लोगों के बीच से धीरे-धीरे चलते हुए स्टेज पर पहुँची। केशव का वीर्य बहता हुआ मेरे घुटनों तक आ रहा था। पैंटी नहीं होने के कारण दोनों जाँघें चिपचिपी हो रही थी। मैंने उसी हालत में शादी की। पूरी शादी में जब भी केशव नज़र आया उसके हाथों के बीच मेरी पिंक पैंटी झाँकती हुई मिली। एक आदमी से शादी हो रही थी और दूसरे का वीर्य मेरी चूत से टपक रहा था। कैसी अजीब स्तिथि थी।
खैर मेरी शादी राज से हो गयी। शादी के बाद हम हनीमून पर नैनीताल घूमने गये। वहाँ मेन चौंक में राज की बुआ रहती थी। उनके दो जवान लड़के थे जो वहीं पर बिज़नेस करते थे- दिनेश और दीपक। दोनों ही राज से बड़े थे। दिनेश की शादी हो चुकी थी और दीपक अभी कुँवारा था। हम हफ़्ते भर के लिये वहाँ पहुँचे। रास्ते में राज की तबियत बिगड़ गयी। जब हम वहाँ पहुँचे तो राज का बदन बुखार से तप रहा था। डॉक्टर से चेक-अप करवाया तो डॉक्टर ने बेड रेस्ट की सलाह दी। मेरा मन उदास हो गया। हफ़्ते भर के लिये तो आये थे घूमने वो भी अगर कमरे में ही बीत जाये तो कितना बुरा लगता है। राज ने मेरी परेशानी को समझ कर अपने भाइयों से मुझे घुमा लाने को कहा। मगर मैं शर्म के मारे नहीं गयी। दिनेश की बीवी अरुणा थी नहीं। वो मायके गयी हुई थी नहीं तो मैं चली जाती। दोनों भाई काफी हैंडसम थे। उनके साथ का सोच कर ही मेरे गालों में लाली दौड़ जाती थी। वो दोनों भी मुझे गहरी नज़रों से देखते थे। दोनों इनसे बड़े थे लेकिन बुआ ने साफ कह रखा था कि हमारे यहाँ किसी प्रकार का घूँघट नहीं चलेगा। जैसे अपने मायके में रहती हो वैसे ही यहाँ रहना। इसलिये अब लुकाव या ढकाव का कोई सवाल ही नहीं था।
केशव ने मुझे ग्रूप सेक्स की ऐसी आदत डाल दी थी कि अब मैं एक से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो पाती थी। उस दिन मैं नहीं गयी मगर हल्के एक्सपोज़र से दोनों को एक्साइट करती रही। ठंड काफी थी। मैंने एक पारदर्शी गाऊन पहना था और उसके अंदर कुछ भी नहीं था। ऊपर से मोटी उनी शॉल कुछ इस तरह ले रखी थी कि उनके सामने वो बार-बार मेरे सीने से सरक जाती और उन्हें अपनी चूंचियों की झलक दिखला कर मैं वापस शॉल ओढ़ लेती थी। वो दोनों मुझ से काफी खुल गये और हमारे बीच हॉट चर्चा और सैक्सी चुटकुलों के आदान-प्रदान होने लगे थे। कई बार अंजाने में मेरे बदन से टकरा जाते थे या कभी किसी बात पर मुझे छूते तो मेरे सरे बदन में करंट जैसा बहने लगता।
अब मेरी सहेलियाँ वहाँ से एक-एक कर के खिसक गयीं। कुछ को तो बारात पर फूल वर्षा करनी थी और कुछ दुल्हा और बारात देखने के लिये भाग गयी। मैं कुछ देर के लिये बिल्कुल अकेली पड़ गयी। एक दरवाजा पास के कमरे में खुलता था। अचानक वो दरवाजा खुला और केशव अंदर आया। मैं इस वक्त उसे देख कर एक दम घबरा गयी। उसने आकर बाहर के दरवाजे को बँद कर दिया।
"केशव अब कोई गलत हर्कत मत करना... किसी को पता चल गया तो मेरी ज़िंदगी बर्बाद हो जायेगी... सब थूकेंगे मुझ पर और मैं किसी को मुँह दिखाने के भी काबिल नहीं रह जाऊँगी।" मैंने अपने हाथ जोड़ दिये और वो चुप रहा। "देखो शादी के बाद जो चाहे कर लेना... जहाँ चाहे बुला लेना मगर आज नहीं। आज मुझे छोड़ दो।"
"अरे मैं कोई रेपिस्ट थोड़ी हूँ जो तेरा रेप करने चला हूँ। आज इतनी सुंदर लग रही हो कि तुमसे मिले बिना नहीं रह पाया। बस एक बार प्यार कर लेने दो।"
वो आकर मुझसे लिपट गया। मैं उससे अपने को अलग नहीं कर पा रही थी। डर था सारा मेक-अप खराब नहीं हो जाये। मैंने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया। उसने मेरे बूब्स पर हल्के से हाथ फिराये। शायद उसे भी मेक-अप बिगड़ जाने का डर था। "आज तुझे इस वक्त एक बार प्यार करना चाहता हूँ" कहकर उसने मेरे लहँगे को पकड़ा। मैं उसका मतलब समझ कर उसे मना करने लगी मगर उसने सुना नहीं और मेरे लहँगे को कमर तक उठा दिया। फिर उसने मेरी पिंक रंग की पारदर्शी पैंटी को खींच कर निकाल दिया और उसे अपनी पैंट की जेब में भर लिया। फिर मुझे खुली हुई खिड़की पर झुका कर मेरे पीछे से सट गया। उसने अपनी पैंट की ज़िप खोली और अपने खड़े लंड को मेरी चूत में ठेल दिया। मैं खिड़की की चौखट को पकड़ कर झुकी हुई थी और वो पीछे से मुझे चोद रहा था।
सामने बारात आ रही थी और उसके स्वागत में भीड़ उमड़ी पड़ी थी। और मैं - दुल्हन - किसी और से चुद रही थी। अँधेरा और सामने एक पेड़ होने के कारण किसी की नज़र वहाँ नहीं पड़ रही थी वरना गज़ब ढा जाता। सामने नाच गाना चल रहा था। सब उसे देखने में व्यस्त थे और हम किसी और काम में। कुछ देर में उसने ढेर सार वीर्य मेरी चूत में झाड़ दिया। मेरा भी उसके साथ ही चूत-रस निकल गया। बारात अंदर आ चुकी थी। तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया। केशव झपट कर बगल वाले कमरे की और लपका। मैंने उसके हाथ को थाम लिया। "मेरी पैंटी तो देते जाओ।" मैंने कहा।
"नहीं ये मेरे पास रहेगी।" कह कर वो भाग गया। दोबरा दरवाजा खटखटाया गया तो मैंने उठ कर दरवाजा खोल दिया। दो-तीन सहेलियाँ अंदर आयीं।
"क्या हुआ?" उन्होंने पूछा
"कुछ नहीं... आँख लग गयी थी... थकान के कारण।" मैंने बात को टाल दिया मगर रिटा समझ गयी कि दाल में काला है। मैंने उसे अपने को घूरते पाया और मैंने अपनी आँखें झुका लीं।
"चलो चलो। बारात आ गयी है। आँटी अंकल जय माला के लिये बुला रहे हैं" सब ने मुझे उठाया और मेरे हाथों में माला थमा दी। मैं उनके साथ माला थामे लोगों के बीच से धीरे-धीरे चलते हुए स्टेज पर पहुँची। केशव का वीर्य बहता हुआ मेरे घुटनों तक आ रहा था। पैंटी नहीं होने के कारण दोनों जाँघें चिपचिपी हो रही थी। मैंने उसी हालत में शादी की। पूरी शादी में जब भी केशव नज़र आया उसके हाथों के बीच मेरी पिंक पैंटी झाँकती हुई मिली। एक आदमी से शादी हो रही थी और दूसरे का वीर्य मेरी चूत से टपक रहा था। कैसी अजीब स्तिथि थी।
खैर मेरी शादी राज से हो गयी। शादी के बाद हम हनीमून पर नैनीताल घूमने गये। वहाँ मेन चौंक में राज की बुआ रहती थी। उनके दो जवान लड़के थे जो वहीं पर बिज़नेस करते थे- दिनेश और दीपक। दोनों ही राज से बड़े थे। दिनेश की शादी हो चुकी थी और दीपक अभी कुँवारा था। हम हफ़्ते भर के लिये वहाँ पहुँचे। रास्ते में राज की तबियत बिगड़ गयी। जब हम वहाँ पहुँचे तो राज का बदन बुखार से तप रहा था। डॉक्टर से चेक-अप करवाया तो डॉक्टर ने बेड रेस्ट की सलाह दी। मेरा मन उदास हो गया। हफ़्ते भर के लिये तो आये थे घूमने वो भी अगर कमरे में ही बीत जाये तो कितना बुरा लगता है। राज ने मेरी परेशानी को समझ कर अपने भाइयों से मुझे घुमा लाने को कहा। मगर मैं शर्म के मारे नहीं गयी। दिनेश की बीवी अरुणा थी नहीं। वो मायके गयी हुई थी नहीं तो मैं चली जाती। दोनों भाई काफी हैंडसम थे। उनके साथ का सोच कर ही मेरे गालों में लाली दौड़ जाती थी। वो दोनों भी मुझे गहरी नज़रों से देखते थे। दोनों इनसे बड़े थे लेकिन बुआ ने साफ कह रखा था कि हमारे यहाँ किसी प्रकार का घूँघट नहीं चलेगा। जैसे अपने मायके में रहती हो वैसे ही यहाँ रहना। इसलिये अब लुकाव या ढकाव का कोई सवाल ही नहीं था।
केशव ने मुझे ग्रूप सेक्स की ऐसी आदत डाल दी थी कि अब मैं एक से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो पाती थी। उस दिन मैं नहीं गयी मगर हल्के एक्सपोज़र से दोनों को एक्साइट करती रही। ठंड काफी थी। मैंने एक पारदर्शी गाऊन पहना था और उसके अंदर कुछ भी नहीं था। ऊपर से मोटी उनी शॉल कुछ इस तरह ले रखी थी कि उनके सामने वो बार-बार मेरे सीने से सरक जाती और उन्हें अपनी चूंचियों की झलक दिखला कर मैं वापस शॉल ओढ़ लेती थी। वो दोनों मुझ से काफी खुल गये और हमारे बीच हॉट चर्चा और सैक्सी चुटकुलों के आदान-प्रदान होने लगे थे। कई बार अंजाने में मेरे बदन से टकरा जाते थे या कभी किसी बात पर मुझे छूते तो मेरे सरे बदन में करंट जैसा बहने लगता।