22-08-2024, 11:35 PM
"क्या?" मैंने पूछा।
"तुम!" उसने कहा तो मैं उछल पड़ी। "क्या? क्या कहा?" मेरा मुँह खुला का खुला रह गया।
"हाँ उसने कहा है कि वो मुझ से तभी शादी कर सकता है जब मैं तुझे उसके पास ले जाऊँ"
"और तूने... तूने मान लिया?" मैं चिल्लाई।
"धीरे बोल मम्मी को पता चल जायेगा। वो तुझे एक बार प्यार करना चाहता है। मैंने उसे बहुत समझाया मगर उसे मनाना मेरे बस में नहीं है।"
"तुझे मालूम है तू क्या कह रही है?" मैंने गुर्रा कर उस से पूछा।
"हाँ... मेरी प्यारी सहेली से मैं अपने प्यार की भीख माँग रही हूँ। तू केशव के पास चली जा... मैं तुझे अपनी भाभी बना लुँगी।"
मेरे मुँह से कोई बात नहीं निकली। कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है।
"अगर तूने मुझे बर्बाद किया तो मैं भी तुझे कोई मदद नहीं करूँगी।"
मैं चुपचाप वहाँ से उठकर घर चली आयी। मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था कि क्या करूँ। एक तरफ कुआँ तो दूसरी तरफ खायी। राज के बिन मैं नहीं रह सकती और उसके साथ रहने के लिये मुझे अपनी सबसे बड़ी दौलत गँवानी पड़ रही थी। रात को काफी देर तक नींद नहीं आयी। सुबह मैंने एक फैसला कर लिया। मैं रिटा से मिली और कहा, "ठीक है तू जैसा चाहती है वैसा ही होगा। केशव को कहना मैं तैयार हूँ।" वो सुनते ही खुशी से उछल पड़ी। "लेकिन सिर्फ एक बात और... किसी को पता नहीं चलना चाहिये... एक बात और...।"
"हाँ बोल जान तेरे लिये तो जान भी हाजिर है।"
"उसके बाद तू मेरी शादी अपने भाई से करवा देगी और तेरी शादी होती है या नहीं मैं इसके लिये जिम्मेदार नहीं होऊँगी" मैंने उससे कहा। वो तो उसे पाने के लिये कुछ भी करने को तैयार थी।
रिटा ने अगले दिन मुझे बताया कि केशव मुझसे होटल ललित में मिलेगा। वहाँ उसका सुइट बुक है। शनिवार शाम आठ बजे वहाँ पहुँचना था। रिटा ने मेरे घर पर चल कर मेरी मम्मी को शनिवार की रात को उसके घर रुकने के लिये मना लिया। मैं चुप रही। शनिवार के बारे में सोच-सोच कर मेरा बुरा हाल हो रहा था। समझ में नहीं आ रहा था की मैं ठीक कर रही हूँ या नहीं।
शनिवार सुबह से ही मैं कमरे से बाहर नहीं निकली। शाम को रिटा आयी। उसने मम्मी को मनाया अपने साथ ले जाने के लिये। उसने मम्मी से कहा कि दोनों सहेलियाँ रात भर पढ़ाई करेंगी और मैं उसके घर रात भर रुक जाऊँगी। उसने बता दिया कि वो मुझे रविवार को छोड़ जायेगी। मुझे पता था कि मुझे शनिवार रात उसके साथ नहीं बल्कि उस आवारा केशव के साथ गुजारनी थी।
हम दोनों तैयार होकर निकलीं। मैंने हल्का सा मेक-अप किया। एक सिम्पल सा कुर्ता पहन कर निकलना चाहती थी मगर रिटा मुझसे उलझ पड़ी। उसने मेरा सब से अच्छा सलवार-कुर्ता निकाल कर मुझे पहनने को दिया और मुझे खूब सजाया और ऊँची हील के सैंडल अपने हाथों से मुझे पहनाये। फिर हम निकले। वहाँ से निकलते-निकलते शाम के साढ़े सात बज गये थे। "रिटा मुझे बहुत घबड़ाहट हो रही है। वो मुझे बहुत जलील करेगा। पता नहीं मेरी क्या दुर्गती बनाये।" मैंने रिटा का हाथ दबाते हुए कहा।
"अरे नहीं मेरा केशू ऐसा नहीं है!"
"तुम!" उसने कहा तो मैं उछल पड़ी। "क्या? क्या कहा?" मेरा मुँह खुला का खुला रह गया।
"हाँ उसने कहा है कि वो मुझ से तभी शादी कर सकता है जब मैं तुझे उसके पास ले जाऊँ"
"और तूने... तूने मान लिया?" मैं चिल्लाई।
"धीरे बोल मम्मी को पता चल जायेगा। वो तुझे एक बार प्यार करना चाहता है। मैंने उसे बहुत समझाया मगर उसे मनाना मेरे बस में नहीं है।"
"तुझे मालूम है तू क्या कह रही है?" मैंने गुर्रा कर उस से पूछा।
"हाँ... मेरी प्यारी सहेली से मैं अपने प्यार की भीख माँग रही हूँ। तू केशव के पास चली जा... मैं तुझे अपनी भाभी बना लुँगी।"
मेरे मुँह से कोई बात नहीं निकली। कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है।
"अगर तूने मुझे बर्बाद किया तो मैं भी तुझे कोई मदद नहीं करूँगी।"
मैं चुपचाप वहाँ से उठकर घर चली आयी। मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था कि क्या करूँ। एक तरफ कुआँ तो दूसरी तरफ खायी। राज के बिन मैं नहीं रह सकती और उसके साथ रहने के लिये मुझे अपनी सबसे बड़ी दौलत गँवानी पड़ रही थी। रात को काफी देर तक नींद नहीं आयी। सुबह मैंने एक फैसला कर लिया। मैं रिटा से मिली और कहा, "ठीक है तू जैसा चाहती है वैसा ही होगा। केशव को कहना मैं तैयार हूँ।" वो सुनते ही खुशी से उछल पड़ी। "लेकिन सिर्फ एक बात और... किसी को पता नहीं चलना चाहिये... एक बात और...।"
"हाँ बोल जान तेरे लिये तो जान भी हाजिर है।"
"उसके बाद तू मेरी शादी अपने भाई से करवा देगी और तेरी शादी होती है या नहीं मैं इसके लिये जिम्मेदार नहीं होऊँगी" मैंने उससे कहा। वो तो उसे पाने के लिये कुछ भी करने को तैयार थी।
रिटा ने अगले दिन मुझे बताया कि केशव मुझसे होटल ललित में मिलेगा। वहाँ उसका सुइट बुक है। शनिवार शाम आठ बजे वहाँ पहुँचना था। रिटा ने मेरे घर पर चल कर मेरी मम्मी को शनिवार की रात को उसके घर रुकने के लिये मना लिया। मैं चुप रही। शनिवार के बारे में सोच-सोच कर मेरा बुरा हाल हो रहा था। समझ में नहीं आ रहा था की मैं ठीक कर रही हूँ या नहीं।
शनिवार सुबह से ही मैं कमरे से बाहर नहीं निकली। शाम को रिटा आयी। उसने मम्मी को मनाया अपने साथ ले जाने के लिये। उसने मम्मी से कहा कि दोनों सहेलियाँ रात भर पढ़ाई करेंगी और मैं उसके घर रात भर रुक जाऊँगी। उसने बता दिया कि वो मुझे रविवार को छोड़ जायेगी। मुझे पता था कि मुझे शनिवार रात उसके साथ नहीं बल्कि उस आवारा केशव के साथ गुजारनी थी।
हम दोनों तैयार होकर निकलीं। मैंने हल्का सा मेक-अप किया। एक सिम्पल सा कुर्ता पहन कर निकलना चाहती थी मगर रिटा मुझसे उलझ पड़ी। उसने मेरा सब से अच्छा सलवार-कुर्ता निकाल कर मुझे पहनने को दिया और मुझे खूब सजाया और ऊँची हील के सैंडल अपने हाथों से मुझे पहनाये। फिर हम निकले। वहाँ से निकलते-निकलते शाम के साढ़े सात बज गये थे। "रिटा मुझे बहुत घबड़ाहट हो रही है। वो मुझे बहुत जलील करेगा। पता नहीं मेरी क्या दुर्गती बनाये।" मैंने रिटा का हाथ दबाते हुए कहा।
"अरे नहीं मेरा केशू ऐसा नहीं है!"