06-02-2024, 04:58 AM
(This post was last modified: 18-08-2024, 08:54 PM by rohitkapoor. Edited 5 times in total. Edited 5 times in total.)
उधर मेरी नज़र नाज़िया की तरफ़ गयी। उफफ उसकी आँखें भी बस मेरी तरफ़ देख रही थीं और विजय शिंदे का लंड भी मलाई से भरा हुआ था। विजय शिंदे का मोटा लंड मुँह में भरा होने की वजह से नाज़िया के मुँह से कम ही आवाज़ आ रही थी। मैंने नाज़िया की गाँड की तरफ़ देखा तो विशाल जो नाज़ू की मुसल्ली गाँड चोद रह था, वो भी जोशिले अंदाज़ में आखिरी मरहले में था और उसके अज़ीम त्रिशूल से भी पानी निकल रहा था शायद। इधर किशन ने लगातार कुछ देर झटके मारते हुए अपने धार्मिक लंड से सारा पानी मेरी मुस़्लिमा चूत में भर दिया और गाँड को सहलाने लगा। चारों हि़न्दू मर्दों ने अपना-अपना पानी हमारी हमारे छेदों में भर दिया और लंड निकाल कर खड़े हो गये।
हम दोनों नंगी मुस्लि़म मस्तानी हिजाबी औरतें उन चार जवान वरज़िशी पहलवान मर्दों के बीच बस ऊँची हील के सैंडल पहने बिल्कुल नंगी ज़मीन पर बैठी हुई थीं। अब उन्होंने हमारे नकाब हमारे हाथ में देकर कहा, “ज़रा अब इन नकाबों से हमारे जवान गदाधारी हि़न्दू लौड़ों को साफ़ करो हमारी रखैलों!” हम दोनों ने नंगे जिस्मों पर सिर्फ़ नकाब पहना और चारों का लंड नकाब से समेट कर मुँह में लेकर साफ़ किया। चारों ने फिर लंगोट बाँधे और हमारे बुऱके हाथ में दिये और कहा “अब ऐसे ही सिर्फ नकाब और सैंडल पहन कर नंगी रंडी बनकर दोनों हि़ंन्दू दंगल से अपने घर जाओगी।” फिर चारों ने हमारे तरफ़ बारी-बारी देखते हुए कहा, “खुदा हाफ़िज़ छिनाल मुल्लनियों! तुम्हारी छिनाल चूत और गाँड हमेशा हमारी रखैल रहेंगी।” फिर हम दोनों ने भी शरारत से वैसे ही नकाब पहने और दंगल के दरवाजे से पहले बाहर झाँका लेकिन कोई नहीं था। नशे की खुमारी अब तक बरकरार थी और ऊँची पेंसिल हील की सैंडलों में डगमगाते हुए जितना तेज़ हो सकता था हम अपनी मुस्लि़म चूचियाँ उछालती और गाँड मटकाती हुई अपने घर में आ गयी।
मेरी चूत और नाज़िया की गाँड में से गाढ़ी हि़न्दू मलाई बाहर बह रही थी। हमने शराब का एक-एक पैग खींचा और फिर मैं नाज़िया से खुशी से लिपट गयी और बोली, “नाज़ू छिनाल तूने सच में आज मेरी उस्तानी चूत को बहुत मज़े दिलवाये... मेरी रंडी सहेली.. जब से इस शहर में आयी हूँ.... ऐसी चुदाई के लिये तरस गयी थी।” नाज़िया भी अपनी मुस्लि़म चूची मेरी चूची से चिपकाते हुए गले लगी और बोली, “रंडी शब्बो आज तूने भी मेरे साथ आकर मेरी मुसल्ली गाँड को और मज़े से चुदवाने का मौका दिया!”
“तो क्या तूने आज से पहले कभी गाँड नहीं चुदवायी थी…?” मैंने हैरत से पूछा तो नाज़िया बोली, “तो तुझे बहुत तजुर्बा है क्या गाँड मरवाने का? तेरा कटवा शौहर तेरी गाँड चोदता है क्या?” “उस नामर्द से तो मेरी चूत भी नहीं चोदी जाती गाँड क्या खाक मारेगा!” मैं बोली और फिर मैंने उसे रमेश और बलराम से अपनी चुदाई के बारे में बताया। इसी दौरान नाज़िया मेरे होंठों पर अपने होंठ रख कर चूमते हुए मेरी चूचियाँ दबाने लगी। किसी औरत के साथ ये मेरा पहला मौका था। फिर उसने मेरी चूत चाट कर साफ की और मैंने उसकी गाँड अपनी ज़ुबान से साफ की।
अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई। मैंने कहा, “जा आ गया तेरा ढीला कटवा शौहर!” नाज़ू हंसती हुई बोली, “आज इसके लंड पर सोते हुए पैर रख कर ज़ोर से सैंडल की हील घुसेड़ दुँगी... फिर किस्सा तमाम!” हम दोनों ज़ोर से हंसने लगी। उस दिन के बाद तो मैं हर रोज़ मदरसे से लौटते हुए नाज़िया के घर के पीछे दंगल में पहुँच जाती और उन चारों हि़न्दूमर्दों से खूब चुदवा-चुदवा कर घर वापस आती। कईं बार अगर नाज़िया मेरे साथ नहीं होती तो भी मैं अकेली उन चारों मर्दों से एक साथ रंडी की तरह चुदवाती और उनका पेशाब भी पीती।
हम दोनों नंगी मुस्लि़म मस्तानी हिजाबी औरतें उन चार जवान वरज़िशी पहलवान मर्दों के बीच बस ऊँची हील के सैंडल पहने बिल्कुल नंगी ज़मीन पर बैठी हुई थीं। अब उन्होंने हमारे नकाब हमारे हाथ में देकर कहा, “ज़रा अब इन नकाबों से हमारे जवान गदाधारी हि़न्दू लौड़ों को साफ़ करो हमारी रखैलों!” हम दोनों ने नंगे जिस्मों पर सिर्फ़ नकाब पहना और चारों का लंड नकाब से समेट कर मुँह में लेकर साफ़ किया। चारों ने फिर लंगोट बाँधे और हमारे बुऱके हाथ में दिये और कहा “अब ऐसे ही सिर्फ नकाब और सैंडल पहन कर नंगी रंडी बनकर दोनों हि़ंन्दू दंगल से अपने घर जाओगी।” फिर चारों ने हमारे तरफ़ बारी-बारी देखते हुए कहा, “खुदा हाफ़िज़ छिनाल मुल्लनियों! तुम्हारी छिनाल चूत और गाँड हमेशा हमारी रखैल रहेंगी।” फिर हम दोनों ने भी शरारत से वैसे ही नकाब पहने और दंगल के दरवाजे से पहले बाहर झाँका लेकिन कोई नहीं था। नशे की खुमारी अब तक बरकरार थी और ऊँची पेंसिल हील की सैंडलों में डगमगाते हुए जितना तेज़ हो सकता था हम अपनी मुस्लि़म चूचियाँ उछालती और गाँड मटकाती हुई अपने घर में आ गयी।
मेरी चूत और नाज़िया की गाँड में से गाढ़ी हि़न्दू मलाई बाहर बह रही थी। हमने शराब का एक-एक पैग खींचा और फिर मैं नाज़िया से खुशी से लिपट गयी और बोली, “नाज़ू छिनाल तूने सच में आज मेरी उस्तानी चूत को बहुत मज़े दिलवाये... मेरी रंडी सहेली.. जब से इस शहर में आयी हूँ.... ऐसी चुदाई के लिये तरस गयी थी।” नाज़िया भी अपनी मुस्लि़म चूची मेरी चूची से चिपकाते हुए गले लगी और बोली, “रंडी शब्बो आज तूने भी मेरे साथ आकर मेरी मुसल्ली गाँड को और मज़े से चुदवाने का मौका दिया!”
“तो क्या तूने आज से पहले कभी गाँड नहीं चुदवायी थी…?” मैंने हैरत से पूछा तो नाज़िया बोली, “तो तुझे बहुत तजुर्बा है क्या गाँड मरवाने का? तेरा कटवा शौहर तेरी गाँड चोदता है क्या?” “उस नामर्द से तो मेरी चूत भी नहीं चोदी जाती गाँड क्या खाक मारेगा!” मैं बोली और फिर मैंने उसे रमेश और बलराम से अपनी चुदाई के बारे में बताया। इसी दौरान नाज़िया मेरे होंठों पर अपने होंठ रख कर चूमते हुए मेरी चूचियाँ दबाने लगी। किसी औरत के साथ ये मेरा पहला मौका था। फिर उसने मेरी चूत चाट कर साफ की और मैंने उसकी गाँड अपनी ज़ुबान से साफ की।
अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई। मैंने कहा, “जा आ गया तेरा ढीला कटवा शौहर!” नाज़ू हंसती हुई बोली, “आज इसके लंड पर सोते हुए पैर रख कर ज़ोर से सैंडल की हील घुसेड़ दुँगी... फिर किस्सा तमाम!” हम दोनों ज़ोर से हंसने लगी। उस दिन के बाद तो मैं हर रोज़ मदरसे से लौटते हुए नाज़िया के घर के पीछे दंगल में पहुँच जाती और उन चारों हि़न्दूमर्दों से खूब चुदवा-चुदवा कर घर वापस आती। कईं बार अगर नाज़िया मेरे साथ नहीं होती तो भी मैं अकेली उन चारों मर्दों से एक साथ रंडी की तरह चुदवाती और उनका पेशाब भी पीती।