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Misc. Erotica हिंदी की सुनी-अनसुनी कामुक कहानियों का संग्रह
उसने मेरे मुलायम सुर्ख होंठों पर अपना लंड टिकाया तो मैंने होंठ खोल कर उसके लंड का आधा सुपाड़ा मुँह में ले लिया। एक लम्हे बाद ही बलराम आहिस्ता-आहिस्ता मेरे मुँह में पेशाब करने लगा। जब मेरा मुँह उसके गरम पेशाब से भर गया तो उसने अपना लंड मेरे होंठों से पीछे हटा लिया। मैंने मुँह में भरे फेशब को धीरे-धीरे मुँह में ही घुमाया और फिर आहिस्ता से अपने हलक में उतार दिया। मेरे मुँह में एक साथ कितनी ही तरह के ज़ायके एक-एक करके फूट पड़े। नमकीन, कसैला, थोड़ी सी खट्टास, थोड़ी सी कड़वाहट और फिर हल्की सी मिठास। उफ्फ अल्लाह! क्या कहुँ! इतने सारे ज़ायकों का गुलदस्ता था। फिर बलराम ने इसी तरह मेरे मुँह में सात-आठ बार अपना पेशाब भरा और हर बार मैं मुँह में पेशाब घुमा-घुमा कर पीते हुए आँखें बंद करके एक साथ इतने सारे ज़ायकों की लज़्ज़त लेने लगी। बलराम के पेशाब का आखिरी कतरा पीने के बाद मैं अपने होंठों पर जीभ फिराते हुए बलराम की आँखों में देखते हुए बोली, शुक्रिया मेरे हिंदू सरताज़! मुझे पेशाब के मज़ेदार ज़ायके से वाकिफ कराने के लिये! वाकय में बेहद लज़िज़ और नशीली शराब है ये!
 
उसके बाद हम नंगे ही उस बेडरूम में गये जहाँ मेरा शौहर असलम शरीफ खर्राटे मार कर नशे में धुत्त सो रहा था। क्योंकि हमारे कपड़े उसी कमरे में थे। मेरा नशा इतनी देर में ज़रा भी कम नहीं हुआ था और मैं बलराम के मर्दाना हिंदू जिस्म के सहारे ही लड़खड़ाती हुई चल रही थी। कमरे में आ कर बलराम अपने कपड़े पहनने लगा और मैं नशे में झूमती हुई नंगी ही बिस्तर पर बैठ कर उसे देखने लगी। शौहर असलम मेरे पास ही लेटा हुआ खर्राटे मार रहा था । अपने कपड़े पहनते हुए बलराम बोला,  ज़रा अपने शौहर का लंड कितना बड़ा है मुझे भी बता! बलराम की बात सुनकर मैं हंस पड़ी और शौहर असलम के पास खिसक कर मैं आहिस्ते से शौहर का पजामा खोलने लगी। उसने अंदर चड्डी नहीं पहनी थी तो मैंने आहिस्ता से पजामा खींच कर नीचे कर दिया और उसकी लुल्ली की तरफ इशारे करके हंसने लगी। बलराम ने देखा तो वो भी ज़ोर से हंसने लगा।
 
शौहर असलम की लुल्ली छोटी होने की वजह से ठीक से नज़र भी नहीं आ रही थी। मैंने हंसते हुए बलराम को इशारे से अपनी दो उंगलियाँ फैला कर बताया कि जब असलम की लुल्ली खड़ी होती है तो तीन इंच की होती है। बलराम ने पास आकर अपने हिंदू बड़े कड़क मूसल जैसे लंड पर मेरा हाथ रखा और मसलते हुए बड़ा करने लगा और मेरी आँखों में देखने लगा। उसकी हिंदू अदायें मेरी मुस्लि़म चूत को शर्मिंदा कर रही थी लेकिन मैं अपनी चूत और गाँड में उसके हिंदू लंड का पानी लेकर चुदक्कड़ हो चुकी थी।
 
उसने अपने सारे कपड़े पहन लिये और मैं नंगी ही नशे झूमती उसके साथ फिर से बाहर हॉल में आ गयी। हम दोनों अभी भी मेरे शौहर का मज़ाक उड़ाते हुए हंस रहे थे। बाहर हॉल में आ कर फिर हम दोनों ने कुछ देर किस किया और मैंने उसकी पैंट की चेन खोलकर अपना एक हाथ अंदर डाल कर उसका लंड पकड़ लिया। मेरे होंठों को चूमते हुए बलराम बोला,लगता है शबाना बेगम का अभी भी मन नहीं भरा!
 
ऊँहुँ! मैंने ना में सिर हिलाया और फिर बोली, वादा करो मुझे हर रोज़ इसी तरह चोदोगे!” वो हंसने लगा और पिर बोला, तेरी मुस्लि़मा चूत और गाँड कि तो हर रोज़ रात को छत्त पर अपने हिंदू लण्ड से चुदाई करुँगा मुसल्ली राँड! फिर उसकी पैंट में आगे से हाथ डाले हुए मैं उसका हिंदू लंड पकड़ कर दरवाजे तक ले जाकर  अलविदा कहा।
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RE: हिंदी की सुनी-अनसुनी कामुक कहानियों का संग्रह - by rohitkapoor - 06-02-2024, 04:53 AM



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