06-02-2024, 04:49 AM
(This post was last modified: 18-08-2024, 07:41 PM by rohitkapoor. Edited 4 times in total. Edited 4 times in total.)
फिर कुछ देर बाद कईं लोग ईद मिलने आये और दोपहर के बाद तक घर काफी बिज़ी रहा। जब सब जा चुके तो, असलम गले मिलते मिलते थक चुका था। अब वो बेडरूम में जाकर बोतल खोलकर बैठ गया और मुझे भी बुला लिया, “आओ बेगम शबाना! दो-दो जाम हो जायें इस मुबरक मौके पर!” मैंने देखा कि आज कोई बहुत ही महंगी इंपोर्टेड शराब की बोतल थी जो शायद उसे किसी ने रिश्वत में दी थी। अगले आधे घंटे में मैंने भी दो पैग पी गयी। वाकय में बेहद उमदा शराब थी। शौहर असलम भी इतने में चार-पाँच पैग गटक चुका था। फिर हमेशा की तरह मेरी हसरतों की ज़रा भी परवाह किये बगैर मेरे खुदगर्ज़ नामर्द शौहर ने मुझे अपना लण्ड चूसने का हुक्म दिया। मैंने भी फ़र्ज़ी तौर पर उसका लण्ड चूस कर उसका पानी पिया। फिर मैंने अपने लिये तीसरा पैग ग्लास में डाल लिया और पीने लगी। आमतौर पर मैं दो पैग से ज्यादा नहीं लेती पर शराब माशा अल्लाह बेहद उमदा थी और बलराम के बारे में सोचते-सोचते मैं चौथा पैग भी पी गयी। पहले तो हल्का सा ही सुरूर था पर फिर अचानक तेज़ नशा महसूस होने लगा और मैं हवा में उड़ने लगी। शौहर असलम के भी कुछ ही देर में टुन्न होकर खर्राटे भरने शुरू हो गये।
मैं आज बहुत हसीन लग रही थी। हाथों में मेहंदी, लाल रंग का कीमती सलवार सूट, लाल रंग के ही पैरों में ऊँची पेंसिल हील के खूबसूरत सैंडल और मेरी हसीन मुस्लि़म नशीली अदायें! बलराम की आज की हरकत ने मेरी मुस्लि़म चूत को पहले ही बहुत जोश दे रखा था। अब शराब के नशे में तो मेरी आँखों के सामने उसका अनकटा गोरा हलब्बी ह़िंदू लण्ड नाचने लगा और मेरी चूत में चिंगारियाँ उठने लगीं। नशे में झूमती हुई मैं उठी तो चलते हुए ऊँची हील की सैंडल में मेरे कदम लड़खड़ा रहे थे पर मुझे तो कोई होश या परवाह नहीं थी। मैं नशे में झूमती लड़खड़ाती हुई सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर जाने लगी इस उम्मीद में कि शायद बलराम से छत्त पर मुलाकात हो जाये। लेकिन हाय अल्लाह ये क्या! वो तो पहले से ही मेरे घर की ऊपर वाली सीढ़ियों पर बैठा हुआ था। मैंने नशे में बहकी आवाज़ में कहा, “जनाब पहले से मौजूद हैं! बड़े बेकरार लग रहे हो?” और खिलखिला कर हंस पड़ी।
“मोहतरमा भी खूब नशे में बदमस्त हैं! लगता है शराब की पुरी बोतल ही खाली करके आ रही हैं!” बलराम ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे ज़ोर से अपनी तरफ़ खींचा तो मैं बलखा कर बलराम की ह़िंदू गोदी में जा गिरी। उफ़्फ़! बलराम की ह़िंदू साँसें मेरे मुस्लि़म कानों में थीं। मैं बहकी आवाज़ में गाना गुनगुनाने लगी, “थोड़ी सी जो पी ली है... चोरी तो नहीं की है!” फिर मैंने इठलाते हुए नशीली आँखों से बलराम की आँखों में देखा और नशे में फिर हंसने लगी। “शराब से भी ज्यादा तो नशा तो तुम्हारे उस नज़राने ने किया है जो तुमने इन सैंडलों में छिपा कर दिया था! अब तक उसकी मस्त खुशबू मेरे ज़हन में महक रही है!” मैं फिर हंसते हुए बोली। “मैं तो उस दिन दुकान में ही समझ गया था कि तू एक नंबर की मुसल्ली राँड है!” उसने कहा और कमीज़ के ऊपर से मेरा एक मम्मा मसल दिया!
“बेहद पाज़ी हो तुम! वैसे सैंडल हैं बेहद खूबसूरत… हैं भी बहुत कीमती!” मैंने अपना एक पैर उठा कर हवा में हिलाते हुए कहा। “अरे तेरे जैसी हसीना के लिये तो मेरी दुकान में मौजूद हर सैंडल की जोड़ी निसार है!” वो बोला तो मैं फिर हंसते हुए इठला कर बोली, “हाय सच! बेहद शौकीन हूँ मैं ऊँची हील के सैंडलों की! ज़ेवरों से भी ज्यादा… और शौहर की ऊपरी कमाई का बेशतर हिस्सा सैंडल पर खर्च करती हूँ!” उसने भी हंसते हुए कहा, “तू चिंता मत कर! अपनी दुकान समझ और जब चाहे मेरी दुकान पर आकर अपनी पसंद के सैंडल ले जा!”
“सोच लो बलराम जी! लुट जाओगे!” मैंने शरारत से हंसते हुए कहा। नशे में मैं बात-बात पर हंस रही थी। बलराम बोला, “लुटुँगा मैं नहीं बल्कि तेरा शौहर! तेरे शौहर की तो खैर नहीं है आज!” मैंने हल्के से शरारती अंदाज़ में बलराम के सीने पर मार कर कहा, “क्या मतलब है आपका बलराम जी!” वो बोला, “साला हरामी मुझसे झगड़ता है… उसका बदला मैं तेरी मुस्लि़म चूत को चोद कर लुँगा! तुझे अपनी रखैल बना लुँगा!”
मैं जोर से हंसी और बोली, “पहले ज़रा शीर-खोरमा तो ले आऊँ… तुम्हें जो ताना मारा था मैंने, तुम्हारी मर्दानगी को पिला ही दुँगी शीर-खोरमा!” मैं बलराम की गोदी से झूमती हुई उठी। “संभल कर जा मुसल्ली राँड! नशे में लुढ़क ना जाना!” मुझे नशे में लहराते देख बलराम हंस कर बोला। मैं भी ज़ोर से खिलखिला कर हंश दी और बोली, “लुढ़क भी गयी तो तुम हो ना मुझे संभालने के लिये!” मैं फिर उसी गाने के टूटे-फूटे से जुमले गुनगुनाती हुई और बीच-बीच में हंसती हुई सीड़ियों की हैंड-रेल पकड़ कर नशे में झूमती लहराती नीचे जाने लगी।
“थोड़ी सी जो पी ली है... चोरी तो... कोई तो संभालो... कहीं हम गिर ना पड़ें.... कैसे ना पियूँ प्यासी ये रात है... कहीं हम गिर ना पड़ें... थोड़ी सी... पी ली...!”
नीचे बेडरूम में झाँक कर देखा तो असलम के खर्राटे अभी भी उरूज पर थे। फिर डगमगाती हुई किचन में जा कर मैंने अबड़-धबड़ किसी तरह शीर-खोरमा कटोरे में डाला क्योंकि नशे में हाथ भी बेतरतीब चल रहे थे। फिर नशे में झूमती लड़खड़ाती हुई ऊपर सीढ़ियों में जाकर बलराम की गोद में जा गिरी और फिर गाँड टिका कर बैठ गयी।
“हाय अल्लाह! ये क्या है?” मैं अचानक चिहुक पड़ी तो वो ज़ोर से हंसा, “तेरी मुस्लि़म गाँड और मेरा अनकटा लौड़ा है शबाना राँऽऽड!” मैंने झट से चम्मच भर कर शीर-खोरमा बलराम के मुँह में डाला और बोली, “मेरे हि़ंदू दिलबर लो पियो अब!” उसे शीर-खोरमा पिलाते हुए बीच-बीच में नशे में लहकते मेरे हाठ से थोड़ा मेरी चूचियों पर भी ढलक जाता था। बलराम ने थोड़ा ही शीर-खोरमा पीया और फिर बोला, “राँड! क्या अब मेरे मुँह में ही डालती रहेगी?” और कहते हुए उसने अपना ह़िंदू त्रिशूल पैंट से बाहर निकाला और मुझे गोद से उठा कर सीढ़ी पर बिठा दिया। फिर वो कटोरा लेकर मेरे सामने नंगा ह़िंदू लंड लेकर खड़ा हो गया। उसने चम्मच निकाल कर बाजू में रख दिया और शीर-खुरमे में अपना अनकटा ह़िंदूलंड डाल दिया। “हाय तौबा ये क्या करा...?” अभी मैं बोल ही रही थी कि बलराम ने अपने लंड को शीर-खुरमे में भिगोया और मेरे मुँह में डाल दिया।
मैं आज बहुत हसीन लग रही थी। हाथों में मेहंदी, लाल रंग का कीमती सलवार सूट, लाल रंग के ही पैरों में ऊँची पेंसिल हील के खूबसूरत सैंडल और मेरी हसीन मुस्लि़म नशीली अदायें! बलराम की आज की हरकत ने मेरी मुस्लि़म चूत को पहले ही बहुत जोश दे रखा था। अब शराब के नशे में तो मेरी आँखों के सामने उसका अनकटा गोरा हलब्बी ह़िंदू लण्ड नाचने लगा और मेरी चूत में चिंगारियाँ उठने लगीं। नशे में झूमती हुई मैं उठी तो चलते हुए ऊँची हील की सैंडल में मेरे कदम लड़खड़ा रहे थे पर मुझे तो कोई होश या परवाह नहीं थी। मैं नशे में झूमती लड़खड़ाती हुई सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर जाने लगी इस उम्मीद में कि शायद बलराम से छत्त पर मुलाकात हो जाये। लेकिन हाय अल्लाह ये क्या! वो तो पहले से ही मेरे घर की ऊपर वाली सीढ़ियों पर बैठा हुआ था। मैंने नशे में बहकी आवाज़ में कहा, “जनाब पहले से मौजूद हैं! बड़े बेकरार लग रहे हो?” और खिलखिला कर हंस पड़ी।
“मोहतरमा भी खूब नशे में बदमस्त हैं! लगता है शराब की पुरी बोतल ही खाली करके आ रही हैं!” बलराम ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे ज़ोर से अपनी तरफ़ खींचा तो मैं बलखा कर बलराम की ह़िंदू गोदी में जा गिरी। उफ़्फ़! बलराम की ह़िंदू साँसें मेरे मुस्लि़म कानों में थीं। मैं बहकी आवाज़ में गाना गुनगुनाने लगी, “थोड़ी सी जो पी ली है... चोरी तो नहीं की है!” फिर मैंने इठलाते हुए नशीली आँखों से बलराम की आँखों में देखा और नशे में फिर हंसने लगी। “शराब से भी ज्यादा तो नशा तो तुम्हारे उस नज़राने ने किया है जो तुमने इन सैंडलों में छिपा कर दिया था! अब तक उसकी मस्त खुशबू मेरे ज़हन में महक रही है!” मैं फिर हंसते हुए बोली। “मैं तो उस दिन दुकान में ही समझ गया था कि तू एक नंबर की मुसल्ली राँड है!” उसने कहा और कमीज़ के ऊपर से मेरा एक मम्मा मसल दिया!
“बेहद पाज़ी हो तुम! वैसे सैंडल हैं बेहद खूबसूरत… हैं भी बहुत कीमती!” मैंने अपना एक पैर उठा कर हवा में हिलाते हुए कहा। “अरे तेरे जैसी हसीना के लिये तो मेरी दुकान में मौजूद हर सैंडल की जोड़ी निसार है!” वो बोला तो मैं फिर हंसते हुए इठला कर बोली, “हाय सच! बेहद शौकीन हूँ मैं ऊँची हील के सैंडलों की! ज़ेवरों से भी ज्यादा… और शौहर की ऊपरी कमाई का बेशतर हिस्सा सैंडल पर खर्च करती हूँ!” उसने भी हंसते हुए कहा, “तू चिंता मत कर! अपनी दुकान समझ और जब चाहे मेरी दुकान पर आकर अपनी पसंद के सैंडल ले जा!”
“सोच लो बलराम जी! लुट जाओगे!” मैंने शरारत से हंसते हुए कहा। नशे में मैं बात-बात पर हंस रही थी। बलराम बोला, “लुटुँगा मैं नहीं बल्कि तेरा शौहर! तेरे शौहर की तो खैर नहीं है आज!” मैंने हल्के से शरारती अंदाज़ में बलराम के सीने पर मार कर कहा, “क्या मतलब है आपका बलराम जी!” वो बोला, “साला हरामी मुझसे झगड़ता है… उसका बदला मैं तेरी मुस्लि़म चूत को चोद कर लुँगा! तुझे अपनी रखैल बना लुँगा!”
मैं जोर से हंसी और बोली, “पहले ज़रा शीर-खोरमा तो ले आऊँ… तुम्हें जो ताना मारा था मैंने, तुम्हारी मर्दानगी को पिला ही दुँगी शीर-खोरमा!” मैं बलराम की गोदी से झूमती हुई उठी। “संभल कर जा मुसल्ली राँड! नशे में लुढ़क ना जाना!” मुझे नशे में लहराते देख बलराम हंस कर बोला। मैं भी ज़ोर से खिलखिला कर हंश दी और बोली, “लुढ़क भी गयी तो तुम हो ना मुझे संभालने के लिये!” मैं फिर उसी गाने के टूटे-फूटे से जुमले गुनगुनाती हुई और बीच-बीच में हंसती हुई सीड़ियों की हैंड-रेल पकड़ कर नशे में झूमती लहराती नीचे जाने लगी।
“थोड़ी सी जो पी ली है... चोरी तो... कोई तो संभालो... कहीं हम गिर ना पड़ें.... कैसे ना पियूँ प्यासी ये रात है... कहीं हम गिर ना पड़ें... थोड़ी सी... पी ली...!”
नीचे बेडरूम में झाँक कर देखा तो असलम के खर्राटे अभी भी उरूज पर थे। फिर डगमगाती हुई किचन में जा कर मैंने अबड़-धबड़ किसी तरह शीर-खोरमा कटोरे में डाला क्योंकि नशे में हाथ भी बेतरतीब चल रहे थे। फिर नशे में झूमती लड़खड़ाती हुई ऊपर सीढ़ियों में जाकर बलराम की गोद में जा गिरी और फिर गाँड टिका कर बैठ गयी।
“हाय अल्लाह! ये क्या है?” मैं अचानक चिहुक पड़ी तो वो ज़ोर से हंसा, “तेरी मुस्लि़म गाँड और मेरा अनकटा लौड़ा है शबाना राँऽऽड!” मैंने झट से चम्मच भर कर शीर-खोरमा बलराम के मुँह में डाला और बोली, “मेरे हि़ंदू दिलबर लो पियो अब!” उसे शीर-खोरमा पिलाते हुए बीच-बीच में नशे में लहकते मेरे हाठ से थोड़ा मेरी चूचियों पर भी ढलक जाता था। बलराम ने थोड़ा ही शीर-खोरमा पीया और फिर बोला, “राँड! क्या अब मेरे मुँह में ही डालती रहेगी?” और कहते हुए उसने अपना ह़िंदू त्रिशूल पैंट से बाहर निकाला और मुझे गोद से उठा कर सीढ़ी पर बिठा दिया। फिर वो कटोरा लेकर मेरे सामने नंगा ह़िंदू लंड लेकर खड़ा हो गया। उसने चम्मच निकाल कर बाजू में रख दिया और शीर-खुरमे में अपना अनकटा ह़िंदूलंड डाल दिया। “हाय तौबा ये क्या करा...?” अभी मैं बोल ही रही थी कि बलराम ने अपने लंड को शीर-खुरमे में भिगोया और मेरे मुँह में डाल दिया।