06-02-2024, 04:46 AM
रमेश के अनकटे लण्ड से अपनी चूत चुदवाते हुए दो साल निकल गये। एक दिन शौहर असलम इज़्ज़त शरीफ के साथ मैं कुछ खरीददारी करने गयी। वैसे तो हम कभी-कभार ही साथ में बाहर जाते थे लेकिन उस दिन असलम मियाँ को रिश्वत में कहीं से मोटी रकम मिली थी और वो काफी खूश और खर्चा करने के मूड में थे। मैंने भी पूरा फायदा उठाया और अपने लिये खूब खरीददारी की और शौहर असलम शरीफ ने भी कोई आनाकानी नहीं की। आखिर में मेरे लिये सेन्डल खरीदने हम लेडीज़ जूतों के शो-रूम में पहुँचे। वहाँ दुकान का मालिक और एक असिसटेंट मौजूद था।
मेरे शौहर तो हमेशा की तरह दुकान के काऊँटर के पास ही सोफे पर बैठ गये क्योंकि उन्हें तो मेरे कपड़े-लत्ते सैंडल वगैरह पसंद करने में कोई दिल्चस्पी थी ही नहीं। दुकान का असिसटेंट सैंडलों के डब्बे निकाल- निकाल कर लाने लगा और दुकान का मालिक मेरे पैरों में बहुत ही इत्मिनान से नये-नये सैंडल पहना कर दिखाने लगा। मैंने बुऱका पहना हुआ था और हमेशा की तरह नकाब हटा रखी थी। दुकान का मालिक बुऱके में से ही मेरे उभरे हुए ३६-सी के मम्मे और ३८ की गाँड को लुच्ची नज़रों से घूर रहा था और सैंडल पहनाते हुए मेरे गोरे-नर्म पैर सहला रहा था। मुझे भी उसकी इस हरकत से मज़ा आ रहा था और मेरी चुप्पी से उसकी हिम्मत और बढ़ गयी। वो बहुत ही प्यार से मेरे पैरों में सैंडल पहनाते हुए पैरों से ऊपर मेरी टाँगों को भी छूने लगा। बीच-बीच में सेल्ज़मन्शिप के बहाने मेरी तारीफ भी कर देता, “ये वाली सैंडल में तो आप करीना-कपूर लगेंगी… ये पाँच इंच की पेंसिल हील के सैंडल तो आपके खूबसूरत पैरों में कितने जंच रहे हैं…!” मैं एक जोड़ी सैंडल खरीदने आयी थी और अब तक दो जोड़ी पसंद करके अलग रखवा चुकी थी।
दुकान के मालिक की पैंट में से उसके लण्ड का उभार मुझे नज़र आने लगा था। उसकी हरकतों और बातों से मेरी चूत भी रिसने लगी थी। रमेश के लंड से चुदवाते-चुदवाते मैं भी ठरकी और बे-शर्म हो गयी थी लेकिन शौहर की मौजूदगी का भी एहसास था। इसी बीच में दुकान के मालिक ने एक सैंडल पहनाते हुए मेरा पैर अपने लंड के उभार पर रख दिया तो मैंने भी शरारत से सैंडल उसके लंड पर दबा दी। उसने सिर उठा कर मेरी तरफ देखा तो मैं धीरे से मुस्कुरा दी। आखिर में मैंने चार जोड़ी ऊँची हील वाली सैंडलें पसंद किये और दुकान मालिक के साथ बाहर काऊँटर पर आ गयी।
“बेगम ले ली आपने सैंडल!” शौहर का मिजाज़ कुछ उखड़ा हुआ सा लग रहा था पर मैंने ज्यादा त्वज्जो नहीं दी और दुकान के मालिक के हाथों में मौजूद डब्बों की तरफ इशारा करते हुए कहा, “हाँ... मुझे पसंद आ गयीं तो चार जोड़ी ले लीं!” शौहर ने दुकन मालिक से पूछा, “कितने पैसे हुए?” तो दुकान मालिक ने बताया “नौ हज़ार तीन सौ पचास! बहुत ही हाई-क्लास पसंद है मोहतरमा की!” मेरे शौहर ने पैसे निकाल कर उसे दिये और इतने में मेरा मोबाइल फोन बजने लगा तो मैं अपनी सहेली असमा से बात करने लगी। इतने में मुझे एहसास हुआ कि मेरे शौहर और दुकान मालिक में झगड़ा शुरू हो गया है। मैंने जल्दी से मोबाइल बंद किया और शौहर को समझाते हुए बोली कि, “महंगे हैं तो एक जोड़ी कम कर देती हूँ!”
लेकिन वो झगड़ा पैसे का नहीं बल्कि इस बात का था कि मेरे शौहर ने दुकान मालिक को मेरे बुऱके में से मेरे जिस्म को मज़े लेकर घुरते हुए देख लिया था। मेरे शौहर असलम शरीफ चिल्लाते हुए दुकान मालिक को औरतों के साथ तमीज़ से पेश आने की बात कह रहे थे। अब दुकान मालिक काऊँटर छोड़ कर बाहर आ गया और दोनों एक दूसरे को धक्का देने लगे लेकिन वो दुकानदार काफी तगड़ा था। उसने शौहर असलम को इतनी ज़ोर से धक्का दिया के वो ज़मीन पर गिर गये।
वो दुकानदार फिर से शौहर को मारने के लिये आगे बढ़ा पर मैं बीच में आ गयी और वो मेरे जिस्म से टकरा गया। मेरे बीच में होने की वजह से मेरे बुऱके में उभरी हुई गोल मखमली चूचियाँ उस दुकानदार से कईं बार टकरा कर दब गयीं। फिर मैंने मिन्नतें की तब जाकर दुकानदार ने कहा, “ले जाओ मोहतरमा इस साले को वरना इसकी गाँड पर इतना मारुँगा कि साला फिर पतलून कभी नहीं पहन सकेगा।”
शौहर असलम को गुस्सा करते हुए मैं बाहर ले जाने लगी। जैसे ही दरवाजे से उनको बाहर किया और मैं भी सैंडलों की थैलियाँ ले कर बाहर जाने वाली थी कि दुकानदार ने ज़ोर से मेरे चूतड़ों को दबा दिया। “ऊँह अल्लाहऽऽ!” मेरे मुँह से निकला और मैं बाहर आ गयी और भूरी नशीली आँखों से पलट कर दुकानदार को देखकर शरारत से मुस्कुरा दी। फिर शौहर को लेकर घरगर आ गयी।
मेरे शौहर तो हमेशा की तरह दुकान के काऊँटर के पास ही सोफे पर बैठ गये क्योंकि उन्हें तो मेरे कपड़े-लत्ते सैंडल वगैरह पसंद करने में कोई दिल्चस्पी थी ही नहीं। दुकान का असिसटेंट सैंडलों के डब्बे निकाल- निकाल कर लाने लगा और दुकान का मालिक मेरे पैरों में बहुत ही इत्मिनान से नये-नये सैंडल पहना कर दिखाने लगा। मैंने बुऱका पहना हुआ था और हमेशा की तरह नकाब हटा रखी थी। दुकान का मालिक बुऱके में से ही मेरे उभरे हुए ३६-सी के मम्मे और ३८ की गाँड को लुच्ची नज़रों से घूर रहा था और सैंडल पहनाते हुए मेरे गोरे-नर्म पैर सहला रहा था। मुझे भी उसकी इस हरकत से मज़ा आ रहा था और मेरी चुप्पी से उसकी हिम्मत और बढ़ गयी। वो बहुत ही प्यार से मेरे पैरों में सैंडल पहनाते हुए पैरों से ऊपर मेरी टाँगों को भी छूने लगा। बीच-बीच में सेल्ज़मन्शिप के बहाने मेरी तारीफ भी कर देता, “ये वाली सैंडल में तो आप करीना-कपूर लगेंगी… ये पाँच इंच की पेंसिल हील के सैंडल तो आपके खूबसूरत पैरों में कितने जंच रहे हैं…!” मैं एक जोड़ी सैंडल खरीदने आयी थी और अब तक दो जोड़ी पसंद करके अलग रखवा चुकी थी।
दुकान के मालिक की पैंट में से उसके लण्ड का उभार मुझे नज़र आने लगा था। उसकी हरकतों और बातों से मेरी चूत भी रिसने लगी थी। रमेश के लंड से चुदवाते-चुदवाते मैं भी ठरकी और बे-शर्म हो गयी थी लेकिन शौहर की मौजूदगी का भी एहसास था। इसी बीच में दुकान के मालिक ने एक सैंडल पहनाते हुए मेरा पैर अपने लंड के उभार पर रख दिया तो मैंने भी शरारत से सैंडल उसके लंड पर दबा दी। उसने सिर उठा कर मेरी तरफ देखा तो मैं धीरे से मुस्कुरा दी। आखिर में मैंने चार जोड़ी ऊँची हील वाली सैंडलें पसंद किये और दुकान मालिक के साथ बाहर काऊँटर पर आ गयी।
“बेगम ले ली आपने सैंडल!” शौहर का मिजाज़ कुछ उखड़ा हुआ सा लग रहा था पर मैंने ज्यादा त्वज्जो नहीं दी और दुकान के मालिक के हाथों में मौजूद डब्बों की तरफ इशारा करते हुए कहा, “हाँ... मुझे पसंद आ गयीं तो चार जोड़ी ले लीं!” शौहर ने दुकन मालिक से पूछा, “कितने पैसे हुए?” तो दुकान मालिक ने बताया “नौ हज़ार तीन सौ पचास! बहुत ही हाई-क्लास पसंद है मोहतरमा की!” मेरे शौहर ने पैसे निकाल कर उसे दिये और इतने में मेरा मोबाइल फोन बजने लगा तो मैं अपनी सहेली असमा से बात करने लगी। इतने में मुझे एहसास हुआ कि मेरे शौहर और दुकान मालिक में झगड़ा शुरू हो गया है। मैंने जल्दी से मोबाइल बंद किया और शौहर को समझाते हुए बोली कि, “महंगे हैं तो एक जोड़ी कम कर देती हूँ!”
लेकिन वो झगड़ा पैसे का नहीं बल्कि इस बात का था कि मेरे शौहर ने दुकान मालिक को मेरे बुऱके में से मेरे जिस्म को मज़े लेकर घुरते हुए देख लिया था। मेरे शौहर असलम शरीफ चिल्लाते हुए दुकान मालिक को औरतों के साथ तमीज़ से पेश आने की बात कह रहे थे। अब दुकान मालिक काऊँटर छोड़ कर बाहर आ गया और दोनों एक दूसरे को धक्का देने लगे लेकिन वो दुकानदार काफी तगड़ा था। उसने शौहर असलम को इतनी ज़ोर से धक्का दिया के वो ज़मीन पर गिर गये।
वो दुकानदार फिर से शौहर को मारने के लिये आगे बढ़ा पर मैं बीच में आ गयी और वो मेरे जिस्म से टकरा गया। मेरे बीच में होने की वजह से मेरे बुऱके में उभरी हुई गोल मखमली चूचियाँ उस दुकानदार से कईं बार टकरा कर दब गयीं। फिर मैंने मिन्नतें की तब जाकर दुकानदार ने कहा, “ले जाओ मोहतरमा इस साले को वरना इसकी गाँड पर इतना मारुँगा कि साला फिर पतलून कभी नहीं पहन सकेगा।”
शौहर असलम को गुस्सा करते हुए मैं बाहर ले जाने लगी। जैसे ही दरवाजे से उनको बाहर किया और मैं भी सैंडलों की थैलियाँ ले कर बाहर जाने वाली थी कि दुकानदार ने ज़ोर से मेरे चूतड़ों को दबा दिया। “ऊँह अल्लाहऽऽ!” मेरे मुँह से निकला और मैं बाहर आ गयी और भूरी नशीली आँखों से पलट कर दुकानदार को देखकर शरारत से मुस्कुरा दी। फिर शौहर को लेकर घरगर आ गयी।