15-12-2023, 09:50 PM
शबाना की चुदाई
लेखक: अन्जान
लेखक: अन्जान
मेरा नाम शबाना इज़्ज़त शरीफ़ है। मैं शादीशुदा हूँ और उम्र तीस साल है। मैं भी-ए पास हूँ। खुदा ने मुझे बेपनाह हुस्न से नवाजा है। मेरा रंग दूध की तरह गोरा है, हल्की भूरी आँखें और तीखे नयन नक्श और मेरा फिगर ३६-सी की उभरी हुई चूचियाँ, २८ की मस्तानी कमर, और ३८ की मचलती हुई गाँड। मैं अक्सर बुऱका पहन कर ही बाहर जाती हूँ लेकिन मेरे बुऱके भी फैशनेबल और डिज़ाइनदार होते हैं। हमेशा रास्ते में चलते लोग मेरी मस्त जवानी को नंगी नज़रों से देखते और कुछ तो कमेन्ट भी कसते कि, “क्या माल है... साली बुऱके में भी होकर लंड को पागल कर रही है.... ऊँची सेंडिल में इसकी मस्त चाल तो देखो...!”
मेरे शौहर असलम इज़्ज़त शरीफ़ सरकारी महकमे में ऑफिसर हैं। हम एक अच्छी मिडल-क्लास कालोनी में तीन बेडरूम वाले किराये के मकान में रहते हैं। घर में आराम की तमाम चीज़ें हैं और मारूति वेगन-आर कार भी है। सरकारी नौकरी की वजह से मेरे शौहर की ऊपरी कमाई भी हो जाती है जिसके चलते मैं कपड़े-लत्ते, जूते और गहनों वगैरह पर खुल कर खर्च करती हूँ।
तीस की उम्र में वैसे तो मुझे दो -तीन बच्चों की अम्मी बन जाना चाहिये था। लेकिन ऐसा है नहीं और इसकी वजह है मेरे शौहर की नामर्दगी। मेरा शौहर “असलम इज़्ज़त शरीफ़” अपनी बच्चे जैसी लुल्ली से मेरी जिस्मानी ज़रूरतें पूरी नहीं कर पाता। इसके अलावा असलम को शाराब पीने की भी बहुत आदत है और अक्सर देर रात को नशे में चूर होकर घर आता है या फिर घर में ही शाम होते ही शराब की बोतल खोल कर बैठ जाता है। शुरू-शुरू में मैं बहुत कोशिश करती थी उसे तरह-तरह से चुदाई के लिये लुभाने की। मेरे जैसी हसीना की अदाओं और हुस्न के आगे तो मुर्दों के लण्ड भी खड़े हो जायें तो मेरे शौहर असलम का लण्ड भी आसानी से खड़ा तो हो जाता है पर चूत में घुसते ही दो-चार धक्कों में ही उसका पानी निकल जाता है और कईं बार तो चूत में घुसने से पहले ही तमाम हो जाता है। उसने हर तरह की देसी दवाइयाँ-चुर्ण और वयाग्रा भी इस्तेमाल किया पर कुछ फर्क़ नहीं पड़ा।
अब तो बस हर रोज़ मुझसे अपना लण्ड चुसवा कर ही उसकी तसल्ली हो जाती है और कभी-कभार उसका मन हो तो बस मेरे ऊपर चढ़ कर कुछ ही धक्कों में फारीग होकर और फिर करवट बदल कर खर्राटे मारने लगता है। मैंने भी हालात से समझौता कर लिया और असलम को लुभाने की ज्यादा कोशिश नहीं करती। कईं बार मुझसे रहा नहीं जाता और मैं बेबस होकर असलम को कभी चुदाई के लिये ज़ोर दे दूँ तो वो गाली-गलौज करने लगाता है और कईं बार तो मुझे पीट भी चुका है।
असलम मुझे भी अपने साथ शराब पीने के लिये ज़ोर देता था। पहले-पहले तो मुझे शराब पीना अच्छा नहीं लगता था लेकिन फिर धीरे-धीरे उसका साथ देते-देते मैं भी आदी हो गयी और अब तो मैं अक्सर शौक से एक-दो पैग पी लेती हूँ। चुदाई के लुत्फ़ से महरूम रहने की वजह से मैं बहुत ही प्यासी और बेचैन रहने लगी थी और फिर मेरे कदम बहकते ज्यादा देर नहीं लगी। अपनी बदचलनी और गैर-मर्दों के साथ नाजायज़ रिश्तों के ऐसे ही कुछ किस्से यहाँ बयान कर रही हूँ।