08-09-2023, 10:26 PM
(This post was last modified: 08-09-2023, 11:41 PM by rohitkapoor. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
"उसे यहीं भेज दे।" मैं उठने लगी तो उसने कंधे पर जोर लगा कर कहा, "तू कहाँ उठ रही है... चल अपना काम करती रह।" कहकर उसने वापस मेरे मुँह से अपना लंड सटा दिया। मैंने भी मुँह खोल कर उसके लंड को वापस अपने मुँह में ले लिया। तभी गावलेकर अंदर आया। वो कोई छ: फ़ीट का लंबा कद्दावर जिस्म वाला आदमी था। मेरे ऊपर नजर पड़ते ही उसका मुँह खुला का खुला रह गया। मैंने कातर नज़रों से उसकी तरफ़ देखा।
"आह भोगी भाई क्या नजारा है! इस हूर को कैसे वश में किया।" गावलेकर ने हंसते हुए कहा।
"आ बैठ... बड़ी शानदार चीज है... मक्खन की तरह मुलायम और भट्टी की तरह गरम।" भोगी भाई ने मेरे सिर को पकड़ कर उसकी तरफ़ घुमाया, "ये है ताहिरा सिद्दिकी! अपने नदीम की बीवी! इसने कहा मेरे शौहर को छोड़ दो... मैंने कहा रात भर के लिए मेरे लंड पर बैठक लगा, फ़िर देखेंगे। समझदार औरत है... मान गयी। अब ये रात भर तेरे पहलू को गर्म करेगी... जितनी चाहे ठोको"
गावलेकर आकर पास में बैठ गया। भोगी भाई ने मुझे उसकी ओर ढकेल दिया। गावलेकर ने मुझे खींच कर अपनी गोद में बिठा लिया और मुझे चूमने लगा। मुझे तो अब अपने ऊपर घिन्न सी आने लगी थी। मगर इनकी बात तो माननी ही थी वरना ये तो मुर्दे को भी नोच लेते थे। मेरे जिस्म को भोगी भाई ने साफ़ करने नहीं दिया था। इसलिए जगह-जगह वीर्य सूख कर सफ़ेद पपड़ी की तरह दिख रहा था। दोनों चूचियों पर लाल-लाल दाग देख कर गावलेकर ने कहा, "तू तो लगता है काफी जमानत वसूल कर चुका है।"
"हँ सोचा पहले देखूँ तो सही कि अपने स्टैंडर्ड की है या नहीं" भोगी भाई ने कहा।
"प्लीज़ साहब मुझे छोड़ दीजिये... सुबह तक मैं मर जाऊँगी" मैंने गावलेकर से मिन्नतें की।
"घबरा मत... सुबह तक तो तुझे वैसे ही छोड़ देंगे। ज़िंदगी भर तुझे अपने पास थोड़े ही रखना है।" गावलेकर ने मेरे निप्प्लों को दो अंगुलियों के बीच मसलते हुए कहा।
"तूने अगर अब और बकवास की ना तो तेरा टेंटुआ दबा दूँगा" भोगी भाई ने गुर्राते हुए कहा, "तेरी अकड़ पूरी तरह गयी नहीं है शायद" कहकर उसने मेरी दोनों चूचियों को पकड़ कर ऐसा उमेठा कि मेरी तो जान ही निकल गयी।
"ओओओऊऊऊऊऊईईईईईई माँआँआँ मर गयीईईईई" मैं पूरी ताकत से चींख उठी।
"जा जाकर गावलेकर के लिये शराब का एक पैग बना ला और टेबल तक घुटनों के बल जायेगी समझी।" भोगी भाई ने तेज आवाज में कहा। इतनी जलालत तो शायद किसी को नहीं मिली होगी। मैं हाथों और घुटनों के बल डायनिंग टेबल तक गयी। मेरी चूचियाँ पके अनारों की तरह झूल रही थीं। मैं उसके लिये एक पैग बना कर लौट आयी।
"गुड अब कुछ पालतू होती लग रही है" गावलेकर ने मेरे हाथ से ग्लास लेकर मुझे खींच कर वापस अपनी गोद में बिठा लिया। फिर मेरे होंठों से ग्लास को छुआते हुए बोला, "ले एक सिप कर।" मैंने अपना चेहरा मोड़ लिया। मैंने ज़िंदगी में कभी शराब को हाथ भी नहीं लगाया था। हमारे घरों में ये सब चलता था मगर मेरे नदीम ने भी कभी शराब को नहीं छुआ था। उसने वापस ग्लास मेरे होंठों से लगाया। मैंने साँस रोक कर थोड़ा सा अपने मुँह में लिया। बदबू इतनी थी कि उबकायी आने लगी। वे नाराज़ हो जायेंगे, ये सोच कर जैसे तैसे उसे पी लिया।
"आह भोगी भाई क्या नजारा है! इस हूर को कैसे वश में किया।" गावलेकर ने हंसते हुए कहा।
"आ बैठ... बड़ी शानदार चीज है... मक्खन की तरह मुलायम और भट्टी की तरह गरम।" भोगी भाई ने मेरे सिर को पकड़ कर उसकी तरफ़ घुमाया, "ये है ताहिरा सिद्दिकी! अपने नदीम की बीवी! इसने कहा मेरे शौहर को छोड़ दो... मैंने कहा रात भर के लिए मेरे लंड पर बैठक लगा, फ़िर देखेंगे। समझदार औरत है... मान गयी। अब ये रात भर तेरे पहलू को गर्म करेगी... जितनी चाहे ठोको"
गावलेकर आकर पास में बैठ गया। भोगी भाई ने मुझे उसकी ओर ढकेल दिया। गावलेकर ने मुझे खींच कर अपनी गोद में बिठा लिया और मुझे चूमने लगा। मुझे तो अब अपने ऊपर घिन्न सी आने लगी थी। मगर इनकी बात तो माननी ही थी वरना ये तो मुर्दे को भी नोच लेते थे। मेरे जिस्म को भोगी भाई ने साफ़ करने नहीं दिया था। इसलिए जगह-जगह वीर्य सूख कर सफ़ेद पपड़ी की तरह दिख रहा था। दोनों चूचियों पर लाल-लाल दाग देख कर गावलेकर ने कहा, "तू तो लगता है काफी जमानत वसूल कर चुका है।"
"हँ सोचा पहले देखूँ तो सही कि अपने स्टैंडर्ड की है या नहीं" भोगी भाई ने कहा।
"प्लीज़ साहब मुझे छोड़ दीजिये... सुबह तक मैं मर जाऊँगी" मैंने गावलेकर से मिन्नतें की।
"घबरा मत... सुबह तक तो तुझे वैसे ही छोड़ देंगे। ज़िंदगी भर तुझे अपने पास थोड़े ही रखना है।" गावलेकर ने मेरे निप्प्लों को दो अंगुलियों के बीच मसलते हुए कहा।
"तूने अगर अब और बकवास की ना तो तेरा टेंटुआ दबा दूँगा" भोगी भाई ने गुर्राते हुए कहा, "तेरी अकड़ पूरी तरह गयी नहीं है शायद" कहकर उसने मेरी दोनों चूचियों को पकड़ कर ऐसा उमेठा कि मेरी तो जान ही निकल गयी।
"ओओओऊऊऊऊऊईईईईईई माँआँआँ मर गयीईईईई" मैं पूरी ताकत से चींख उठी।
"जा जाकर गावलेकर के लिये शराब का एक पैग बना ला और टेबल तक घुटनों के बल जायेगी समझी।" भोगी भाई ने तेज आवाज में कहा। इतनी जलालत तो शायद किसी को नहीं मिली होगी। मैं हाथों और घुटनों के बल डायनिंग टेबल तक गयी। मेरी चूचियाँ पके अनारों की तरह झूल रही थीं। मैं उसके लिये एक पैग बना कर लौट आयी।
"गुड अब कुछ पालतू होती लग रही है" गावलेकर ने मेरे हाथ से ग्लास लेकर मुझे खींच कर वापस अपनी गोद में बिठा लिया। फिर मेरे होंठों से ग्लास को छुआते हुए बोला, "ले एक सिप कर।" मैंने अपना चेहरा मोड़ लिया। मैंने ज़िंदगी में कभी शराब को हाथ भी नहीं लगाया था। हमारे घरों में ये सब चलता था मगर मेरे नदीम ने भी कभी शराब को नहीं छुआ था। उसने वापस ग्लास मेरे होंठों से लगाया। मैंने साँस रोक कर थोड़ा सा अपने मुँह में लिया। बदबू इतनी थी कि उबकायी आने लगी। वे नाराज़ हो जायेंगे, ये सोच कर जैसे तैसे उसे पी लिया।