31-08-2023, 01:38 AM
मुझे किसी ओर से उम्मीद की कोई किरण नहीं दिखायी दे रही थी। आखिरकार मैंने भोगी भाई से मिलने का फैसला किया। शायद उसे मुझ पर रहम आ जाये। शाम के लगभग आठ बज गये थे। मैं भोगी भाई के घर पहुँची। गेट पर दर्बान ने रोका तो मैंने कहा, "साहब को कहना मिसेज सिद्दिकी आयी हैं।"
गार्ड अंदर चला गया। कुछ देर बाद बाहर अकर कहा, "अभी साहब बिज़ी हैं, कुछ देर इंतज़ार कीजिये।" पंद्रह मिनट बाद मुझे अंदर जाने दिया। मकान काफी बड़ा था। अंदर ड्राईंग रूम में भोगी भाई दिवान पर आधा लेटा हुआ था। उसके तीन चमचे कुर्सियों पर बैठे हुए थे। सबके हाथों में शराब के ग्लास थे। सामने टेबल पर एक बोतल खुली हुई थी। मैं कमरे की हालत देखते हुए झिझकते हुए अंदर घुसी।
"आ बैठ" भोगी भाई ने अपने सामने एक खाली कुर्सी की तरफ़ इशारा किया।
"वो... वो मैं आपसे नदीम के बारे में बात करना चाहती थी।" मैं जल्दी वहाँ से भागना चाहती थी।
"ये अपने सुदर्षन कपड़ा मिल के इंजीनियर की बीवी है... बड़ी सैक्सी चीज है।" उसने अपने ग्लास से एक घूँट लेते हुए कहा। सारे मुझे वासना भरी नज़रों से देखने लगे। उनकी आँखों में लाल डोरे तैर रहे थे।
"हाँ बोल क्या चाहिये?"
"नदीम ने कुछ भी नहीं किया" मैंने उससे मिन्नत की।
"मुझे मालूम है"
" सिक्युरिटी कहती है कि आप अपना बयान बदल लेंगे तो वो छूट जायेंगे"
"क्यों? क्यों बदलूँ मैं अपना बयान?"
"प्लीज़, हम पर...?"
"सड़ने दो साले को बीस साल जेल में... आया था मुझसे लड़ने।"
"प्लीज़ आप ही एक आखिरी उम्मीद हो।"
"लेकिन क्यों? क्यों बदलूँ मैं अपना बयान? मुझे क्या मिलेगा" भोगी भाई ने अपने होंठों पर मोटी जीभ फ़ेरते हुए कहा।
"आप कहिये आपको क्या चाहिए... अगर बस में हुआ तो हम जरूर देंगे" कहते हुए मैंने अपनी आँखें झुका ली। मुझे पता था कि अब क्या होने वाला है। भोगी भाई अपनी जगह से उठा। अपना ग्लास टेबल पर रख कर चलता हुआ मेरे पीछे आ गया। मैं सख्ती से आँखें बंद कर उसके पैरों की पदचाप सुन रही थी। मेरी हालत उस खरगोश की तरह हो गयी थी जो अपना सिर झाड़ियों में डाल कर सोचता है कि भेड़िये से वो बच जायेगा। उसने मेरे पीछे आकर साड़ी के आँचल को पकड़ा और उसे छातियों पर से हटा दिया। फिर उसके हाथ आगे आये और सख्ती से मेरी चूचियों को मसलने लगे।
"मुझे तुम्हारा जिस्म चाहिए पूरे एक दिन के लिये" उसने मेरे कानों के पास धीरे से कहा। मैंने रज़ामंदी में अपना सिर झुका लिया।
"ऐसे नहीं अपने मुँह से बोल" वो मेरे ब्लाऊज़ के अंदर अपने हाथ डाल कर सख्ती से चूचियों को निचोड़ने लगा। इतने लोगों के सामने मैं शरम से गड़ी जा रही थी। मैंने सिर हिलाया।
"मुँह से बोल"
"हाँ" मैं धीरे से बुदबुदायी।
"जोर से बोल... कुछ सुनायी नहीं दिया! तुझे सुनायी दिया रे चपलू?" उसने एक से पूछा।
"नहीं" जवाब आया।
"मुझे मंजूर है!" मैंने इस बार कुछ जोर से कहा।
"क्यों फूलनदेवी जी, मैंने कहा था ना कि तू खुद आयेगी मेरे घर और कहेगी कि प्लीज़ मुझे चोदो। कहाँ गयी तेरी अकड़? तू पूरे २४ घंटों के लिये मेरे कब्जे में रहेगी। मैं जैसा चाहुँगा तुझे वैसा ही करना होगा। तुझे अगले २४ घंटे बस अपनी चूत खोल कर रंडियों की तरह चुदवाना है। उसके बाद तू और तेरा मर्द दोनो आज़ाद हो जाओगे" उसने कहा, "और नहीं तो तेरा मर्द तो २० साल के लिये अंदर होगा ही तुझे भी रंडीबाज़ी के लिये अंदर करवा दूँगा। फिर तो तू वैसे ही वहाँ से पूरी रंडी बन कर ही बाहर निकलेगी।"
"मुझे मंजूर है" मैंने अपने आँसुओं पर काबू पाते हुए कहा। वो जाकर वापस अपनी जगह बैठ गया।
"चल शुरू हो जा... आपने सारे कपड़े उतार... मुझे औरतों के जिस्म पर कपड़े अच्छे नहीं लगते" उसने ग्लास अपने होंठों से लगाया, “अब ये कपड़े कल शाम के दस बजे के बाद ही मिलेंगे। चल इनको भी दिखा तो सही कि तुझे अपने किस हुस्न पर इतना गरूर है। वैसे आयी तो तू काफी सज-धर कर है!”
गार्ड अंदर चला गया। कुछ देर बाद बाहर अकर कहा, "अभी साहब बिज़ी हैं, कुछ देर इंतज़ार कीजिये।" पंद्रह मिनट बाद मुझे अंदर जाने दिया। मकान काफी बड़ा था। अंदर ड्राईंग रूम में भोगी भाई दिवान पर आधा लेटा हुआ था। उसके तीन चमचे कुर्सियों पर बैठे हुए थे। सबके हाथों में शराब के ग्लास थे। सामने टेबल पर एक बोतल खुली हुई थी। मैं कमरे की हालत देखते हुए झिझकते हुए अंदर घुसी।
"आ बैठ" भोगी भाई ने अपने सामने एक खाली कुर्सी की तरफ़ इशारा किया।
"वो... वो मैं आपसे नदीम के बारे में बात करना चाहती थी।" मैं जल्दी वहाँ से भागना चाहती थी।
"ये अपने सुदर्षन कपड़ा मिल के इंजीनियर की बीवी है... बड़ी सैक्सी चीज है।" उसने अपने ग्लास से एक घूँट लेते हुए कहा। सारे मुझे वासना भरी नज़रों से देखने लगे। उनकी आँखों में लाल डोरे तैर रहे थे।
"हाँ बोल क्या चाहिये?"
"नदीम ने कुछ भी नहीं किया" मैंने उससे मिन्नत की।
"मुझे मालूम है"
" सिक्युरिटी कहती है कि आप अपना बयान बदल लेंगे तो वो छूट जायेंगे"
"क्यों? क्यों बदलूँ मैं अपना बयान?"
"प्लीज़, हम पर...?"
"सड़ने दो साले को बीस साल जेल में... आया था मुझसे लड़ने।"
"प्लीज़ आप ही एक आखिरी उम्मीद हो।"
"लेकिन क्यों? क्यों बदलूँ मैं अपना बयान? मुझे क्या मिलेगा" भोगी भाई ने अपने होंठों पर मोटी जीभ फ़ेरते हुए कहा।
"आप कहिये आपको क्या चाहिए... अगर बस में हुआ तो हम जरूर देंगे" कहते हुए मैंने अपनी आँखें झुका ली। मुझे पता था कि अब क्या होने वाला है। भोगी भाई अपनी जगह से उठा। अपना ग्लास टेबल पर रख कर चलता हुआ मेरे पीछे आ गया। मैं सख्ती से आँखें बंद कर उसके पैरों की पदचाप सुन रही थी। मेरी हालत उस खरगोश की तरह हो गयी थी जो अपना सिर झाड़ियों में डाल कर सोचता है कि भेड़िये से वो बच जायेगा। उसने मेरे पीछे आकर साड़ी के आँचल को पकड़ा और उसे छातियों पर से हटा दिया। फिर उसके हाथ आगे आये और सख्ती से मेरी चूचियों को मसलने लगे।
"मुझे तुम्हारा जिस्म चाहिए पूरे एक दिन के लिये" उसने मेरे कानों के पास धीरे से कहा। मैंने रज़ामंदी में अपना सिर झुका लिया।
"ऐसे नहीं अपने मुँह से बोल" वो मेरे ब्लाऊज़ के अंदर अपने हाथ डाल कर सख्ती से चूचियों को निचोड़ने लगा। इतने लोगों के सामने मैं शरम से गड़ी जा रही थी। मैंने सिर हिलाया।
"मुँह से बोल"
"हाँ" मैं धीरे से बुदबुदायी।
"जोर से बोल... कुछ सुनायी नहीं दिया! तुझे सुनायी दिया रे चपलू?" उसने एक से पूछा।
"नहीं" जवाब आया।
"मुझे मंजूर है!" मैंने इस बार कुछ जोर से कहा।
"क्यों फूलनदेवी जी, मैंने कहा था ना कि तू खुद आयेगी मेरे घर और कहेगी कि प्लीज़ मुझे चोदो। कहाँ गयी तेरी अकड़? तू पूरे २४ घंटों के लिये मेरे कब्जे में रहेगी। मैं जैसा चाहुँगा तुझे वैसा ही करना होगा। तुझे अगले २४ घंटे बस अपनी चूत खोल कर रंडियों की तरह चुदवाना है। उसके बाद तू और तेरा मर्द दोनो आज़ाद हो जाओगे" उसने कहा, "और नहीं तो तेरा मर्द तो २० साल के लिये अंदर होगा ही तुझे भी रंडीबाज़ी के लिये अंदर करवा दूँगा। फिर तो तू वैसे ही वहाँ से पूरी रंडी बन कर ही बाहर निकलेगी।"
"मुझे मंजूर है" मैंने अपने आँसुओं पर काबू पाते हुए कहा। वो जाकर वापस अपनी जगह बैठ गया।
"चल शुरू हो जा... आपने सारे कपड़े उतार... मुझे औरतों के जिस्म पर कपड़े अच्छे नहीं लगते" उसने ग्लास अपने होंठों से लगाया, “अब ये कपड़े कल शाम के दस बजे के बाद ही मिलेंगे। चल इनको भी दिखा तो सही कि तुझे अपने किस हुस्न पर इतना गरूर है। वैसे आयी तो तू काफी सज-धर कर है!”