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Misc. Erotica हिंदी की सुनी-अनसुनी कामुक कहानियों का संग्रह
बहरहाल अपने स्टूडेंट्स और बाकी जानवरों के साथ मेरी चुदाइयाँ और ऐयाशियाँ पहले की तरह बरकरार रहीं और जल्दी ही एक और नया जानवार मेरी शहूत का शिकार बनकर मेरी बादकारियों की बढ़ती लिस्ट में शुमार हो गया। हुआ ये कि एक दफ़ा मुझे अचानक दो रोज़ के लिये देहरादून के सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंड्री एजुकेशन (सीबीएसई) के रीजनल ऑफिस में स्कूल के काम से जाना पड़ा। दर असल जाना तो हमारी प्रिंसपल मैडम को था लेकिन किसी वजह से उनको अपना प्रोग्राम रद्द करना पड़ा और ये जिम्मेदारी मेरे ऊपर आ गयी। अब तक स्कूल में मेरी ऐडमिनिस्ट्रेटिव जिम्मेदारियाँ काफ़ी बढ़ गयीं थीं और नवीं से बारहवीं क्लासों को इंगलिश पढ़ाने के साथ-साथ गैर-सरकारी तौर पे एक तरह से वाइस-प्रिंसीपल की जिम्मेदारियाँ भी मेरे सिर पे आ गयी थीं।  

मुझे एक रोज़ पहले ही दोपहर को मालूम हुआ कि अगली सुबह मुझे निकलना है और मेरी सबसे बड़ी परेशानी थी कि मैं चुदाई के बगैर कैसे रहुँगी। अचानक प्रोग्राम बनने से मैं कोई मुतबदिल इंतज़ाम भी नहीं कर सकी। इसके अलावा अपने अम्मी-अब्बू के कहने पर मुझे ना चाहते हुए भी देहरादून में रात को एक रिश्तेदार के घर रुकना था जबकि वो रिश्तेदार खुद तो बंगलौर अपने बेटे के घर गये हुए थे। मेरी खिदमत के लिये वहाँ पर एक नौकर था। खैर बड़ी बेदिली से मैं सुबह-सुबह अपनी स्कोरपियो चला कर देहरादून के लिये रवाना हो गयी। रास्ते में से खुद-लज़्ज़ती के लिये कच्चे केले ज़रूर खरीद लिये और देहरादून पहुँचने तक मैं रास्ते में कमज़ कम तीन चार जगह किसी रेस्टोरेंट के टॉयलेट में मुश्त ज़नी के लिये रुकी। दोपहर तलक देहरादून पहुँच कर मैं सीधे सीबीएसई के ऑफिस गयी और शाम तलक वहाँ काफ़ी मसरूफ़ रही लेकिन इस दौरान भी मौका मिलने पर एक दफ़ा लेडिज़ बाथरूम में जाकर खुद लज़्ज़ती करने से बाज़ नहीं आयी।
 
शाम को जब मैं वहाँ से निकली तो निम्फोमैनियक होने की नाते मैं चुदाई की शदीद तलब में काफ़ी हाल-बेहाल महसूस कर रही थी। चुदाई के बगैर मेरी हालत बिल्कुल ऐसी थी जैसे ड्रग्स ना मिलने पर किसी ड्रग आडिक्ट की हो जाती है। अपने इलाके में होती तो सुबह से अब तक कमज़ कम दोन-तीन दफ़ा चुदवा चुकी होती और अब शाम को भी ट्यूशन के बहाने चार-पाँच लड़कों के जवान लौड़ों से चुदवाने वाली होती और इसके अलावा किसी जानवर के साथ भी चुदाई के मज़े लूटने का इम्कान भी होता। आज तो रात को भी अपनी हवस पूरी करने के लिये खुद-लज़्ज़ती के अलावा कोई और चारा नज़र नहीं आ रहा था। वैसे तो उस वक़्त अपनी शहूत पूरी करने के लिये किसी अजनबी से चुदवाने की भी मैंने कईं तदबीरें की लेकिन उनपे अमल करने की कोई सूरत नज़र आयी। इसके अलावा देहरादून में किसी एस्कॉर्ट एजेंसी की भी जानकारी नहीं थी। यही सोचकर सीबीएसई के दफ़्तर से अपने रिश्तेदार के घर जाते हुए रास्ते में से रात को खुद-लज़्ज़ती के लिये फिर से कच्चे केले और खीरे खरीद लिये और शराब की बोतल तो मैं अपने साथ लायी ही थी।
 
मेरे रिश्तेदार का घर जहाँ मैं रात को रुकने वाली थी... वो देहरादून से थोड़ी दूर... बाहरी इलाके में मसूरी रोड पे था। जब मैं वहाँ पहुँची तो करीब पैंसठ साल के उम्र-दराज़ नौकर, जमील मियाँ ने मेरा इस्तकबाल किया। काफ़ी बड़ा फार्म-हाऊज़ जैसा घर था। जमील मियाँ ने मुझे ड्राइंग-रूम में बिठाया और पानी पिलाने के बाद उन्होंने चाय-नाश्ते के लिये पूछा तो मैंने मना कर दिया कि मैं रात के खाने से पहले डेढ़-दो घंटे सोना चाहती हूँ। दर असल मुझे सोने की नहीं... शराब और चुदाई की शदीद तलब हो रही थी। जमील मियाँ ने मुझे बेडरूम दिखाया और फिर कार में से मेरा सामान भी उसी कमरे में ला कर रख दिया। उनके जाते ही मैंने दरवाज़ा बंद किया और नंगी होकर बेड पे बैठ के सिगरेट और शराब पीते हुए अपने लैपटॉप पे पोर्न-मूवी देखने लगी और अगले एक-डेढ़ घंटे के दौरान कच्चे केले और खीरे से खुद लज़्ज़ती करते हुए छः-सात दफ़ा अपनी चूत का पानी छुड़ाया। मेरे जैसी निम्फोमानियक को खुद लज़्ज़ती के ज़रिये सिर्फ़ लम्हाती तौर पे ही तसल्ली हासिल हुई और बल्कि इससे मेरी हवस और बेकरारी और ज्यादा परवान चढ़ गयी थी।
 
जमील मियाँ ने जब दरवाजे पे दस्तक देकर कहा कि उन्होंने खाना लगा दिया है तो मैं अपने हवास थोड़े बहाल करके कमरे से बाहर आयी। पैरों में हस्बे-मामूल हाई पेन्सिल हील के सैंडलों के अलावा उस वक़्त मेरे जिस्म पे पैरों तक मुकम्मल लंबाई का रेशमी रोब था। शराब का हल्का नशा भी छाया हुआ था। ऊपरी तौर पे बिल्कुल ज़ाहिर नहीं था कि रेशमी रोब के नीचे मैं बिल्कुल नंगी थी। मैंने थोड़ा ही खाया क्योंकि मुझे उस वक़्त खाने की नहीं बल्कि जिस्म की भूख तड़पा रही थी। एक बार तो सोचा कि उस उम्र-दराज़ जमील मियाँ से ही चुदवा लूँ लेकिन उनका कमज़ोर बुढ़ापा देख कर ये इरादा मनसूख कर दिया। फिर मैं अल्लआह तआला से दुआ करने लगी कि किसी इंसान या जानवार का कहीं से बंदोबस्त हो जाये। चुदने की शदीद बेकरारी के आलम में मैं फिर तदबीर करने लगी कि खाने के बाद टहलने के बहाने बाहर जा कर क्यों ना गली के किसी आवारा कुत्ते को ही फुसला कर ले आऊँ। ये कोई नयी बात नहीं थी क्योंकि मैंने कईं दफ़ा गली के आवारा कुत्तों से चुदवा चुकी थी।
 
खाने के बाद मैंने जमील मियाँ को बताया कि मैं टहलने के लिये थोड़ी देर बाहर जाऊँगी। उन्होंने गुज़रिश की कि मैं अपने बेडरूम का एक दरवाजा जो घर के पिछली तरफ़ बाहर खुलता है उससे होकर बाहर जाऊँ ताकि वो अगला मेन दरवाजा लॉक करके खुद सोने जा सकें क्योंकि उनकी तबियत थोड़ी ढीली है। मैंने अपने दिल में सोचा कि “यार तबसुम... ये भी अच्छा है कि जमील मियाँ जल्दी सो जायेंगे... क्योंकि किसमत से अगर चुदवाने के लिये कोई कुत्ता मिल गया तो उसे अपने कमरे में लाने में बड़ी आसानी हो जायेगी तुझे!” अपने कमरे में आ कर मैंने दरवाजा लॉक किया और फिर शराब का एक पैग पीने के बाद पीछे वाला दरवाजा खोलकर चुदवाने के लिये कुत्ता ढूँढने बाहर निकल गयी। घर के पिछले हिस्से में भी काफ़ी ज़मीन थी और थोड़ी दूर चारदीवारी के नज़दीक मुझे एक छोटा सा छप्पर भी नज़र आया। उस वक़्त मैंने उसके जानिब कोई तवज्जो नहीं दी और घर के अगले हिस्से कि तरफ़ चल पड़ी। मेरे जिस्म पे अभी भी सिर्फ़ वो रेशमी रोब था और पैरों में हाई पेन्सिल हील के सैंडल थे। सिगरेट के कश लगाते हुए जब मैं घर के सामने गेट पे पहुँची तो एहसास हुआ कि जमील मियाँ ने उसपर भी ताला लगा दिया था। मुझे उनपे बेहद गुस्सा आया और वहाँ खड़े-खड़े बुढ्ढे को खूब लानत भेजी। गुस्से और बेचैनी की हालत में समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ।
 
एक सिगरेट खतम करके उसे अपने सैंडल के तलवे के नीचे खूब बरहमी से तिलमिलाते हुए ज़ोर से रगड़ा और फिर रोब की जेब में से एक और सिगरेट और लाइटर निकाल कर सुलगा ली। नीचे चूत में शोले भड़क रहे थे और चूत चुदाई के लिये बुरी तरह चुलचुला रही थी। अपने कमरे में वापस जा कर खुद लज़्ज़ती करने के अलावा मुझे कोई और सूरत नज़र नहीं आ रही थी। मायूस और हाल-बेहाल सी होकर मैं अपने कमरे की तरफ़ चल पड़ी। शराब का नशा भी इस दौरान गहरा हो गया था और मेरे कदम ज़रा लड़खड़ा रहे थे। उस वक़्त मैं इस बात से बेखबर थी कि अल्लाह त्‍आला ने मेरे लिये आज एक बेहद मुखतलिफ़ और बे-मिसाल और बेइंतेहा लज़्ज़त-अमेज़ तजुर्बा मुकर्रर कर रखा है। जब मैं अपनी किस्मत को कोसती हुई वापस घर के पिछले हिस्से में अपने कमरे के दरवाजे के करीब पहुँची तो मेरी नज़र फिर उस छप्पर पे पड़ी। चाँदनी रात में मुझे अंधेरे में भी छप्पर के खुले दरवाजे के अंदर एक सफ़ेद गाय नज़र आयी और ना जाने क्यों मेरे लड़खड़ाते कदम खुद बखुद उस तरफ़ बढ़ गये।
 
अपनी चुदास मिटाने के लिये गायों से तो मुझे बिल्कुल भी कोई उम्मीद थी नहीं। मुमकिन है कि मेरा मुकद्दर ही मुझे गायों के छप्पर के जानिब ले गया। छप्पर के बाहर ही स्विच-बाक्स था और मैंने बिजली का स्विच ऑन किया तो छप्पर ट्यूबलाइट से रोशन हो गया और पहले तो मुझे सामने ही दो गायें बैठी नज़र आयीं लेकिन जैसे ही मैंने कदम अंदर बढ़ा के आगे देखा तो एक नयी उम्मीद में मेरी धड़कनें तेज़ हो गयीं। छप्पर के अंदर पीछे वाले हिस्से में एक अलग बाड़े में बंधा हुआ एक हट्टा-कट्टा और खूबसूरत बैल खड़ा था और मेरी हवस ज़दा नज़रें तो उसके पेट के नीचे बालों वाले खोल में से ज़रा सा बाहर निकले हुए लंड पर टिक गयीं। उसके लंड के आगे का ज़रा सा नोकीला हिस्सा बड़ी सी लाल गाजर जैसा बाहर नुमायाँ हो रहा था। मुझे तो जैसे दो जहाँ मिल गये थे। उसे देखते ही मेरी चूत और मुँह दोनों में पानी आ गया था। उस बैल के लंड को चुदास नज़रों से निहारते हुए मुझे ज़रा सा भी एहसास-ए-गुनाह नहीं था क्योंकि एक चुलचुलाती और तड़पती गरम चूत को बिला-चुदे बेज़ार छोड़ देने से ज्यादा संगीन गुनाह क्या हो सकता था।
 
कुछ पलों के लिये वहीं खड़े-खड़े उसे बड़ी हसरत से उसे निहारने के बाद मैंने सिगरेट का आखिरी कश लेकर टोटा बाहर फेंक दिया और छप्पर के अंदर गायों के पीछे से होते हुए उस बैल के बाड़े में पहुँच गयी। बैल ने सिर घुमाकर एक दफ़ा मेरी तरफ़ देखा। करीब ही मुझे एक छोटा सा स्टूल नज़र आया जो कि शायाद गायों का दूध दोहने के वक़्त इस्तेमाल होता होगा... और मेरे मक़सद के लिये भी बिल्कुल मुनासिब था... बैल के लंड से गरम-गरम मनी निचोड़ कर निकालने के लिये।
 
मैंने अपने रोब की बेल्ट खोल कर उसे उतार के बाड़े की लकड़ी की रेलिंग के ऊपर  उछालते हुए फेंक दिया और पैरों में ऊँची पेन्सिल हील के सैंडल के अलावा बिल्कुल मादरजात नंगी हो गयी। फिर उस स्टूल पे बैल के पेट के पास बैठ गयी और नीचे झुक कर दोनों हाथों से उसका नुमाया लंड और उसके खोल और टट्टों को सहलाने लगी। अब तक कईं कुत्तों और गधों, घोड़ों और एक बकरे से चुदवा-चुदवा कर मुझे इतना तजुर्बा हो चुका था कि इस बैल से चुदवाने की सलाहियत पर मुझे पूरा एतमाद था। इसके अलावा नशे और हवस में उस वक़्त मैं अपनी आतिश ज़दा बेकरार चूत की तस्कीन की खातिर चुदने के लिये इस कदर आमादा थी कि उस वक़्त बैल की जगह अगर हाथी भी होता तो मैं उससे भी चुदने में हिचकिचाती नहीं। जब मुझे उसका लंड तन कर सख्त होता हुआ महसूस हुआ तो मेरे जिस्म में हवस और मस्ती मौजे मारने लगी। इतने में बैल का बेहद बड़ा लंड बाहर निकल आया था और बढ़ कर लम्बा.... और लंबा... मोटा... और मोटा होता जा रहा था और उसके तने हुए लंबे गुलाबी लंड पर सुर्ख धारियाँ दौड़ रही थीं। उसके टट्टे भी क्रिकेट की दो गेंदों जैसे लटक रहे थे।
 
बैल के लंड की जसामत घोड़े या गधे के लंड जैसी ही थी लेकिन बनावट मुख्तलीफ़ थी। बैल का लंबा लंड आगे से नोकीला और थोड़ा पतला था और पीछे की तरफ़ मोटाई बढ़ती जाती थी। उसका शानदार लंड से सफ़ेद मज़ी के कतरे टपकने लगे थे जिसे देख कर मुझसे रहा नहीं गया और मैंने झुक कर उस मोटी गाजर को अपने नर्म होंठों में ले लिया और उसपे ज़ुबान फिराती हुई चूसने लगी। एक मुख्तलीफ़ सी महक मेरी साँसों में घुल गयी। उसकी मज़ी का दूध जैसा मीठा सा ज़ायका बेहद लाजवाब और बाकी जानवरों से मुख्तलीफ़ था। जितना मुमकिन हो सकता था उतना लंड मैं अपने हलक तक लेकर चूसने लगी। मुझे उसका लंड चूसने और चाटने में बेहद मज़ा आ रहा था। किसी  लड़के का लंड हो या जानवर का। मैं हमेशा उसकी मनी का ज़ायक़ा चखने के लिये तलबगार रहती हूँ और इस वक़्त भी बैल के लंड और उसकी लज़्ज़त दार मज़ी का ज़ायका लेते हुए मैं उसकी मनी का ज़ायका चखने के लिये बेताब हो रही थी लेकिन चूत की बेकरारी अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी। मेरी पुर-सोज़ चूत को आज सारा दिन लंड नसीब नहीं हुआ था। इतने अज़ीम लौड़े से अपनी चूत चुदवाने की तवक्को में मेरी चूत में से भाप उठने लगी थी और चूत का पानी स्टूल पे रिसने लगा था।
 
बैल का लंड भी फौलाद की तरह सख्त हो कर फड़क रहा था लेकिन वो बैल बड़े आराम से चुपचाप खड़ा हुआ मेरे होंठों और हाथों के सहलाने का मज़ा ले रहा था। उसका करीब दो फुट लंबा तना हुआ लंड तन कर खड़ा होके उसकी अगली टाँगों के करीब पहुँच रहा था। मैंने वो स्टूल बैल के नीचे उसकी अगली टाँगों के करीब खिसकाया और उस स्टूल पे इस तरह बैठ गयी की मेरे कंधे पीछे बाड़े की लकड़ी की रेलिंग पे टिके थे। बैल का लंड अपनी चूत में घुसेड़ने की सलाहियत की खातिर मुझे अपने पीछे रेलिंग के सहारे की जरूरत थी। स्टूल की उँचाई भी बिल्कुल मुनासिब थी। रेलिंग के सहारे कंधे टिका कर कमर मोड़ते हुए जब मैंने अपनी चूत ऊपर उठाई तो बैल का लंड बिल्कुल मेरी रानों के दर्मियान चूत के ठीक ऊपर सट गया। अपनी टाँगें चौड़ी फैलाते हुए अपने दोनों हाथ नीचे लेजाकर बैल का लौड़ा अपनी बेकरार चूत में घुसेड़ने लगी।
 
हालाँकि मुझे आहिस्ता-आहिस्ता बैल का मोटा लंड अपनी चूत में घुसेड़ना पड़ रहा था लेकिन इसमें भी मुझे बेहद मज़ा आ रहा था। अपने चूतड़ों को एक-एक करके आहिस्ता से आगे ठेलते हुए मैं उसका लंड रफ़्ता-रफ़्ता अपनी चूत के अंडर दाखिल करने लगी। ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कि अजगर किसी बकरे को निगल रहा हो। बैल का करीब आधा लंड अंदर लेने के बाद मुझे अपनी चूत ठसाठस भरी हुई महसूस होने लगी लेकिन घोड़ों और गधे के साथ हसीन तजुर्बों से मुझे मालूम था कि इससे और ज्यादा लंड अंदर लेने की गुंजाईश बाकी थी अभी। मैं सिसकते और कसमसाते हुए अपने चूतड़ आहिस्ता-आहिस्ता आगे ठेलती रही। गनिमत थी कि वो बैल बगैर हिलेडुले खड़ा रहा। “ओं... ऊँहह... आँह... औंहह...” उसके मोटे लंड पे अपनी चूत की दीवारों के फैलने और चिकने सख्त लंड पे अपने बाज़र के रगड़ने की कैफ़ियत में मेरे मुँह से मस्ती भरी सिसकारियाँ निकल रही थी। 
 
अब मुझे बिल्कुल भी गिला बाकी नहीं था कि जमील मियाँ ने गेट को ताला लगा दिया था। कुत्तों से तो मैं बाकायदा चुदवाती ही रहती थी और आज अगर गेट पे ताला नहीं लगा होता तो मैं इस बैल के लंड से चुदवाने के बेमिसाल और लज़्ज़त-अमेज़ तजुर्बे से महरूम रह जाती। अल्ळाह के फ़ज़ल से इस वक़्त बैल का भारी जसीम लवड़ा मेरी चूत के अंदर धड़क रहा था और मेरी चूत के लब बैल के मोटे लवड़े पे जकड़ कर चिपके हुए थे। उसका लंड मुझे अपने जिस्म के अंदर लोहे के तपते हुए रॉड की तरह महसूस हो रहा था। मेरी चूत की दीवारें उसके लौड़े पर ऐंठ-ऐंठ कर जकड़ते हुए उसे चूसने और निचोड़ने लगी। मैं मस्ती में कराहती हुई अपने चूतड़ आगे ढकेल कर और ज्यादा लंड अपनी चूत में घुसेड़ने लगी। घोड़ों या गधे के लौड़े भी करीब आधे ही मैं अपनी चूत में ले पाती थी और इस वक़्त भी अपने चूतड़ हिला-हिला कर अपनी गाँड आगे ठेलते हुए मैं इसी कोशिश में बैल का लौड़ा एक-एक इंच करके अपनी चूत की गहराइयों में घुसेड़ रही थी। जल्दी ही जितना मुमकिन हो सकता था मैंने उसका ज्यादा से ज्याद लंड अपनी चूत में आखिर तक ठूँस लिया।
 
मैं अपनी गाँड हिलाते डुलाते हुए किसी पेंच पर नट की तरह अपनी चूत उस बैल के लंड पे जोर-जोर से घुमाने लगी और आहिस्ता-आहिस्ता मेरी चूत उसके जसीम लंड की मोटाई के बिल्कुल मुवाफिक़ हो गयी। मैंने अपनी चूत उसके लौड़े पे आगे-पीछे चोदने की कोशिश की तो चूत अभी भी काफ़ी कसी हुई थी। मैं कसमसाते हुए बैल के लौड़े से ठंसाठस भरी हुई अपनी चूत थोड़ी और देर गोल-गोल घुमा-घुमा कर फैलाते हुए अपने पानी से चिकना करने लगी। इसके बाद मैंने फिर चोदने की कोशिश की तो मेरी चूत बैल के लंड पे आगे-पीछे फिसलने लगी। जब मैं उसके लंड पे अपनी चूत पीछे खींचती तो चूत के लब घिसटते हुए बाहर के जानिब पलट जाते और जब मैं अपनी चूत उसके लंड पे आगे पेलती तो चूत के लब वापस अंदर मुड़ जाते। मैं मस्ती में सिसकती कराहती हुई अपनी चूत बैल के लंड पे आगे-पीछे चोद रही थी और बैल भी खड़ा-खड़ा अपना लौड़ा आहिस्ता से आगे-पीछे झुला रहा था। मेरी चूत बैल के लौड़े पे ऐसे पिघली जा रही थी जैसे कि जलती शमा के धागे के इर्द-गिर्द मोम पिघलता है और मेरे बाज़र (क्लिट) में भी मुसलसल धमाके हो रहे थे। मेरे होंठों से मस्ती में जोर-जोर से कराहें और चींखें निकलने लगी और बैल भी घुरघुराते हुए अपने एक पैर से ज़मीन पे खुरचने लगा और उसकी गर्दन आगे-पीछे झूलने लगी।
 
अपने पीछे बाड़े की रेलिंग के सहारे टिके हुए मैंने कच्चे फर्श में अपनी सैंडलों की ऊँची ऐड़ियाँ गड़ा कर जुनूनी ताल में अपनी गाँड हिला-हिला कर चोदने की रफ़्तार तेज़ कर दी और बैल के लंड की जुम्बिश भी मुझे तेज़ होती हुई महसूस हुई। चुदाई की रफ़्तार अब पूरे परवान पे थी और मैं लुत्फ़-अंदोज़ी और मस्ती के आलम में बदमस्त होकर जोर-जोर से सिसकने और अनाप-शनाप गालियाँ और फ़ाहिश अल्फ़ाज़ बड़बड़ाने लगी। अचानक मेरा जिस्म अकड़ कर थरथराने लगा और मेरी चूत पानी छोड़ने लगी। अभी मेरी चूत का झड़ना खतम हुआ ही था कि कुछ ही पलों में एक दफ़ा फिर मेरी चूत में धमाका हुआ और मैं चींखते हुए दोबारा झड़ने लगी। अपनी चूत की गहराइयों में बिल्कुल आखिर तक बैल के धड़कते-फड़कते लंड से चुदते हुए फिर तो मेरी चूत में मस्ती भरे धमाकों की बौछाड़ों का ऐसा सिलसिला शुरू हो गया कि मैं मशीनगन की गोलियों की तरह मुसलसल बार-बार झड़ने लगी। मैं झड़ते हुए मस्ती में मुसलसल बेहद जोर-जोर से सिसक रही थी... कराह रही थी... चींख रही थी और बैल के लंड को बार-बार अपनी चूत के पानी से नहलाये जा रही थी। अपने ही पानी से भीग-भीग कर मेरी चूत खुद भी और ज्यादा चिकनी हुई जा रही थी जिससे उस बैल का लौड़ा ज्यादा आसानी से मेरी चूत में तेज रफ़्तार से अंदर बाहर होने लगा।
 
तभी मुझे उस बैल के जोर से डकारने की आवाज़ आयी और उसकी गरम-गरम मनी की तेज़ धार अपनी चूत में छूटती हुई महसूस हुई। बैल की मलाई दार मनी अपनी चूत में लबालब भरने के मस्ती भरे एहसस से मेरी खुद की चूत के सिलसिलावार ऑर्गैज़्म और ज्यादा ज़बरदस्त होकर नयी बुलंदियों को छूने लगे। वो बैल तो जैसे बाल्टी भर-भर के अपनी गाढ़ी मनी मेरी चूत में बहा रहा था और मेरी चूत का गरम पानी भी तेज़ी से इखराज़ हो-हो कर बैल की मनी में घुल रहा था। अपनी तमाम मनी मेरी चूत में भरने के बाद बैल के टट्टे आखिरकार थोड़ी देर में खाली हुए तो उसका जसीम लौड़ा ऊपर-नीचे हिचकोले खाने लगा और अपनी चूत में उसके ताकतवर लंड के फ़ंसे होने से मेरी गाँड भी स्टूल से ऊपर उठ जाती और मेरा जिस्म उसके साथ-साथ ऊपर-नीचे हिचकोले खाने लगा। बेहद लंबे और ज़बरदस्त क़यामत खेज़ ऑर्गैज़्म की आखिरी चिंगारियों की लज़्ज़त और मस्ती की कैफ़ियत में मैं उसके लौड़े पे अपनी चूत कसमसाने लगी।
 
बैल का लवड़ा ढीला पड़ने लगा तो मैं कसमसाते हुए उसे अपनी चूत में से आहिस्ता-आहिस्ता थोड़ा-थोड़ा करके बाहर निकालने लगी। इसी दौरान चूत के किनारों से बैल की मनी के साथ मेरी चूत का पानी फूट-फूट कर बाहर बहने लगा और मेरी टाँगों को भिगोता हुआ बिखरे हुए दूध की तरह नीचे ज़मीन पे फैलने लगा। मेरी रानों और टाँगों के साथ-साथ मेरे सैंडल और पैर भी पूरी तरह मनी से सन गये थे। उसका लंड मेरी चूत में से बाहर निकल कर भी ऊपर-नीचे हिचकोले खा रहा था। मनी और चूत के पानी से सने हुए उसके लंड की नोक से बूँदें टपक रही थीं और कुछ गाढ़ी बूँदें मेरे पेट पर भी बिखर गयीं। मैं स्टूल से फिसल कर बैल के नीचे ज़मीन पे फैली मनी में ही बैठ गयी। उसका लौड़ा मेरे चेहरे के सामने हिचकोले खाता हुआ बेहद लज़ीज़ नज़र आ रहा था। मुझसे रहा नहीं गया और मैं लपक कर आगे झुकते हुए लंड को अपनी ज़ुबान से चाटने लगी जो कि मनी और चूत के पानी से सना हुआ था। उसके लंड की नोक से ले कर पीछे तक तमाम लौड़े पे अपनी ज़ुबान फ़िरा-फ़िरा कर चाटते हुए मैं बैल की मनी और अपनी चूत के पानी के मिलेजुले लज़ीज़ ज़ायके का तब तक मज़ा लेती रही जब तक उसका लंड छोटा होके ढीला पड़ कर नीचे नहीं लटकने लगा। उसकी मनी का मीठा सा मलाई जैसा ज़ायका इस कदर लज़्ज़तदार था कि पहले तो मैं अपनी चूत और रानों को अपनी हाथ से पोंछ कर चाटा और फिर कच्चे फर्श पे फैली मनी भी अपने चुल्लू में इक्कट्ठा करके खूब मज़े से चाट गयी।  
 
बैल के साथ लज़्ज़त- अमेज़ मुनफ़रीद चुदाई से मेरी चुदैल चूत झड़-झड़ कर निहाल हो गयी थी। मैं मुतमईन होकर उठी और बाड़े की रेलिंग पे पड़ा हुआ अपना रोब उठा कर नंगी ही छप्पर से बाहर निकल आयी। चलते हुए मेरी चूत में से बैल की मनी मुझे अपनी रानों पे रिसती हुई महसूस हो रही थी। मेरी रानों और टाँगों से लेकर मेरे सैंडल वाले पैरों तक मेरा जिस्म वैसे भी बैल की मनी से सना हुआ चिपचिपा रहा था। छप्पर से बाहर निकल कर मैंने रोब की जेब में से सिगरेट निकाल कर सुलगायी और ऊँची पेंसिल हील की सैंडल में बिल्कुल मादरजात नंगी मैं झुमती हुई अपने कमरे की तरफ़ चल पड़ी। अगले दिन मैं सुबह नौ बजे तक सोती रही। ग्यारह बजे से तीन बजे तक सी-बी-एस-ई के ऑफिस फिर मेरी मीटिंग थी और उसके बाद रात तक मुझे वापस अपने घर पहुँचना था। लेकिन मैंने एक और रात यहाँ रुककर अगले दिन सुबह अपने घर वापस जाने का फैसला किया। ज़ाहिर है उस रात भी मैंने बैल के साथ चुदाई के खूब मज़े लिये। बैल से अपनी चुदाई के हसीन मज़ेदार तजुर्बे को मैंने उन चारों लड़कों को भी ज़ाहिर नहीं किया और उस वाक़िये के बाद मुझे दोबारा कभी किसी बैल से चुदवाने का मौका भी नहीं मिला।
 
करीब दो सालों से इस तरह मैं दोहरी ज़िंदगी में बखूबी तालमेल बनाये हुए खूब मज़े से जी रही हूँ। दुनिया की नज़रों में मैं बेहद शाइस्ता और मोहज़्ज़ब... परहेज़गार और पाकीज़ा औरत हूँ। लोग मुझे एक बेहद स्ट्रिक्ट और पुर-ख़ुलूस इज़्ज़तदार टीचर की हैसियत से पहचानते हैं। अक्सर लोग इस बात की सरहाना करते हैं कि मैं पढ़ाई में कमज़ोर स्टूडेंट्स को रोज़ाना शाम को भी वक़्त निकाल कर अपने घर पे मुफ़्त में पढ़ाती हूँ। स्कूल में पढ़ाने के अलावा दूसरी इंतेज़ामी जिम्मेदारियाँ भी बखूबी निभाती हूँ। हालांकि मेरी एय्याशियों की वजह से मेरी एम-ए की पढ़ाई तो बिल्कुल नज़र-अंदाज़ हो चुकी है लेकिन फिर भी जल्दी ही सरकारी तौर पे भी वाइस प्रिंसीपल मुकर्रर होने की उम्मीद है। अपना रुत्बा इसी तरह क़ायम रखने के लिहाज़ से ऊपरी तौर पे मेरे लिबास वगैरह में भी पहले के मुकाबले ज़रा भी तब्दीली नहीं आयी है। आज भी पहले की तरह ही फैशनेबल लेकिन मुनासिब और शाइस्ता कपड़े ही पहनती हूँ। कपड़ों के मामले में अगर एक तब्दीली हुई है तो वो ये कि सहुलियत के लिहाज़ से पैंटी पहनना ज़रूर छोड़ दिया है।
 
नेकी और शराफ़त के इस सतही नक़ाब के पीछे मेरी दूसरी असल ज़िंदगी बिल्कुल मुख्तलीफ़ है। सिर्फ़ गिने-चुने लोग खासतौर पे मेरे कुछ स्टूडेंट्स ही मेरी चुदई-परस्त, निंफोमानियक पर्वर्टिड शख्सियत से रुबरू हैं। मुझे ज़रा भी पछतावा या शर्मिंदगी नहीं है कि मैं एक शराब-सिगरेट पीने वाली निहायत सैक्साहोलिक और लंडखोर औरत हूँ जिस पर हर वक़्त शहूत सवार रहती है। दीन-दुनिया की बन्दिशों से आज़ाद मैं खुल कर अपने चुदास जिस्म की तमाम पर्वर्टेड हसरतें बे-ज़ब्त पूरी करती हूँ। मैं इमानदारी से कुबूल करती हूँ कि चुदाई मेरे लिये एक बुनियादी ज़रूरत है जिसकी तकमील के लिये मैं दिन भर कईं-कईं दफ़ा मुख्तलीफ़ नौजवान लड़कों और जानवरों से चुदवाने और कभी-कभार लेस्बियन चुदाई का लुत्फ़ उठाने में ज़रा भी गुरेज़ नहीं करती। अब तो मैंने अल्सेशियन कुत्ते का एक बच्चा भी पाल लिया है जो अभी सिर्फ़ तीन महीने का है लेकिन डेढ़-दो साल में मुझे चोदने के काबिल हो जायेगा। वर्जिन लड़कों को अपनी हवस का शिकार बनाने का भी कोई मुनासिब मौका नहीं छोड़ती हूँ और इसके बंदोबस्त के लिये स्कूल सबसे अच्छी और मुनासिब जगह है। 
 
मैं तो अपनी जिस्मनी ख्वाहिशों को बिल्कुल दबा कर बेज़ार सी ज़िंदगी जी रही थी लेकिन मेरे जिस्म में दबी शहूत की चिंगारी को भड़का कर मुझे चुदक्कड़ निंफोमानियक औरत बनाने का सेहरा यकीनन मेरे उन चारों स्टूडेंट्स को जाता है जिसके लिये मैं हमेशा उनकी एहसानमंद रहुँगी।
 
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RE: हिंदी की सुनी-अनसुनी कामुक कहानियों का संग्रह - by rohitkapoor - 31-08-2023, 01:17 AM



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