20-08-2023, 02:01 AM
(This post was last modified: 20-08-2023, 03:58 AM by rohitkapoor. Edited 4 times in total. Edited 4 times in total.)
मेरी हवस और चुदाई-परस्ती में रोज़-बरोज़ इज़ाफ़ा होता चला गया। हालत ये हो गयी कि हर वक़्त लुत्फ़े-चुदाई की मुस्तक़िल तलब रहने लगी और मैं निहायत सैक्साहोलिक बन गयी। चुदाई से मेरा दिल ही नहीं भरता और हर वक़्त ज़हन में और जिस्म पे शहूत सवार रहने लगी। कुछ ही महीनों में मेरी ऐय्याशियों का दायरा भी तेज़ी से बढ़ने लगा। उन चारों लड़कों ने कॉलेज में और दुसरे तीन-चार जूनियर स्टूडेंट्स से मेरी जान-पहचान करवायी जिन्हें पहले चुदाई का तजुर्बा भी नहीं था। इन लड़कों को चुदाई का सबक सिखा कर उनके कुंवारे वर्जिन लौड़ों से चुदने में इस कदर बे-इंतेहा मज़ा आया कि मैं बयान नहीं कर सकती।
फिर वो चारों लुच्चे लड़के और वो दोनों चुदैल लड़कियाँ भी साल भर पहले मेरी नाजायज़ मदद से जैसे तैसे बारहवीं क्लास पास कर ही गये। उसके बाद अपने सबसे अज़ीज़ इन चारों लड़कों से रोज़-रोज़ चुदवाने का सिलसिला खतम हो गया। सन्जय और कुलद़ीप ने तो करीब ही गाज़ियाबाद के एक प्राइवेट आर्ट्स कॉलेज में दाखिला ले लिया जिस वजह से रोज़-रोज़ ना सही लेकिन कमज़-कम हर फ्राईडे को तो पहले की तरह उनके खेत या फिर फार्महाउज़ पे सारी-सारी रात उन दोनों के साथ चुदाई और ऐय्याशियाँ ज़ारी रही। बाकी दोनों लड़कों में से एक रोहतक और दूसरा कानपूर चला गया इसलिये इन दोनों से चुदवाने का सबब तो तभी हो पाता है जब कभी ये किसी वीकेन्ड या छुट्टियों में घर आते हैं। फ़तिमा और सुह़ाना से तो ताल्लुकात बिल्कुल खतम हो गये क्योंकि एक भोपाल में है और दूसरी बरेली में।
उन चार लड़कों के अलावा अब तक करीब पच्चीस-छब्बीस वर्जिन स्टूडेंट्स को मैं हवस का शिकार बना कर अपने हुस्न का गुलाम बना चुकी हूँ। इन सभी नौजवान लड़कों को उनकी ज़िंदगी में चुदाई के लुत्फ़ से मैंने ही वाकिफ़ करवाया है। एक किस्म से मैंने इन स्टूडेंट्स के ज़रिये अपने लिये पर्सनल हरम बना रखा है और किसी मल्लिका की तरह मैं अपनी बेइम्तेहा जिन्सी हवस की तस्कीन के लिये इन लड़कों का हर तरह से इस्तेमाल करती हूँ। इन लड़कों पे मेरा पूरा इख्तियार है और मैं जब और जहाँ और जैसे भी चाहती हूँ ये मेरे हुक्म की तामिल करते हुए मुझे चोदने के लिये तैयार रहते हैं।
फिर वो चारों लुच्चे लड़के और वो दोनों चुदैल लड़कियाँ भी साल भर पहले मेरी नाजायज़ मदद से जैसे तैसे बारहवीं क्लास पास कर ही गये। उसके बाद अपने सबसे अज़ीज़ इन चारों लड़कों से रोज़-रोज़ चुदवाने का सिलसिला खतम हो गया। सन्जय और कुलद़ीप ने तो करीब ही गाज़ियाबाद के एक प्राइवेट आर्ट्स कॉलेज में दाखिला ले लिया जिस वजह से रोज़-रोज़ ना सही लेकिन कमज़-कम हर फ्राईडे को तो पहले की तरह उनके खेत या फिर फार्महाउज़ पे सारी-सारी रात उन दोनों के साथ चुदाई और ऐय्याशियाँ ज़ारी रही। बाकी दोनों लड़कों में से एक रोहतक और दूसरा कानपूर चला गया इसलिये इन दोनों से चुदवाने का सबब तो तभी हो पाता है जब कभी ये किसी वीकेन्ड या छुट्टियों में घर आते हैं। फ़तिमा और सुह़ाना से तो ताल्लुकात बिल्कुल खतम हो गये क्योंकि एक भोपाल में है और दूसरी बरेली में।
खैर मैं तो निहायत लंडखोर बन चुकी थी तो मैंने दसवीं से बारहवीं क्लास के नये-नये लड़कों को अपने हुस्न और अदाओं से फुसला कर उनके वर्जिन लौड़ों से चुदवाना शुरू कर दिया। शुरू-शुरू में तो नये लड़कों को यकीन ही नहीं होता कि ऊपर से इतनी शरीफ और मुतमद्दिन या सफिस्टिकेटिड नज़र आने वाली उनकी इंगलिश की टीचर ‘तबस्सुम अखतर’ हकीकत में दो टके की रंडियों की तरह गंदी-गंदी गालियाँ बकने वाली और बेहद फ़ाहिश ज़ुबान में बोलने वाली पियक्कड़ और बेहद ऐय्याश और चुदक्कड़ औरत है। वक़्त के साथ-साथ मैं नये-नये लड़्कों को फुसला कर उन्हें इब्तेदायी शर्म और खौफ़ या झिझक से निज़ात दिलाने में भी बेहद माहिर हो गयी।


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