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Misc. Erotica हिंदी की सुनी-अनसुनी कामुक कहानियों का संग्रह
दोहरी ज़िन्दगी (लेखिका तबस्सुम अख्तर)....  अब आगे... 

 

नशे की हालत में झूमती हुई बड़ी मुश्किल से ऊँची ऐड़ी की सैंडल में चलती हुई मैं घर तक पहुँची। अगर अंधेरा ना हुआ होता और कोई मुझे इस तरह चलते हुए देख लेता तो झट सारा माजरा समझ जाता। हमारे घर ‘आख्तर-हाऊज़’ के गेट पे एक सिक्युरिटी गार्ड अपनी चौंकी में मौजूद होता है लेकिन किस्मत से उस वक़्त वो शायद खाना खाने चला गया था। घर के अंदर भी एक नौकरानी के अलावा कोई नहीं था और वो भी अपने कमरे में मौजूद थी। घर आते ही मैं एक दफ़ा फिर नहाने के लिये बाथरूम में घुस गयी और फिर कपड़े बदल कर उसे खाना लगाने के लिये आवाज़ दी। खाना खा कर मैंने वो आई-पिल की गोली भी ली। बाद में अपने बेडरूम में लेटी हुई मैं सोचने लगी कि कैसे मेरे लुच्चे कमीने स्टूडेंट्स ने अपनी पिटाई का बदला लेने के लिये अपनी टीचर ही चोद  डाली। उनका भी क्या कसूर... जब मैं खुद भी तो अपनी हवस की आग की चपेत में अपने तमाम इखलाक़ भूल कर अपनी इज़्ज़त-आबरू और स्टेटस की भी परवाह किये बिना एक ही दिन में एक साथ कितनी ही हरामकारियों में शामिल हो गयी। मुझे तो ज़िनाकारी और शराब के नाम से भी नफ़रत थी और आज मैंने खुद अपनी रज़ामंदी से शराब के नशे में मस्त हो कर चार-चार नौजवान स्टूडेंट्स के साथ हर किस्म की चुदाई का लुत्फ़ उठाया। लेकिन फिर भी मुझे गुनाह या गिल्ट का ज़रा भी एहसास नहीं हो रहा था बल्कि निहायत सुकून और खुशनुदी महसूस हो रही थी। यही सब सोचते-सोचते मेरी आँख लग गयी। उस रात जैसी गहरी और अच्छी नींद मुझे पहले कभी नही आयी।

उस दिन के बाद तो मेरी ज़िंदगी का रुख ही बदल गया... मेरा जीने का अंदाज़... मेरा नज़रिया बिल्कुल बदल गया और मेरे कदम बस बहकते ही चले गये और मैं निहायत ही चुदक्कड़ और ऐय्याश बन गयी। शराब और सिगरेट भी मामूलन पीने लगी। अगले सात दिन मैं घर में अकेली थी क्योंकि अम्मी और अब्बू अजमेर गये हुए थे। उनकी गैर-मौजूदगी का फ़ायदा उठा कर मैं हर रोज़ कॉलेज के बाद शाम के वक़्त चारों स्टूडेंट्स को अपने ही घर पे बुला लेती और कईं घंटों तक उनके साथ शराब के नशे में दिल खोल कर ऐयाशी करती। चारों मिलकर मेरी चूत और जिस्म चूमते चाटते और मुझे खूब मसलते। मैं भी उनके लौड़े मुँह में ले कर चूसती और कभी वो एक-एक करके मेरी चूत चोदते या गाँड मारते और कभी एक साथ दो तो कभी तीन लड़के मेरी चूत और गाँड और मुँह में एक साथ अपने लौड़े डाल कर चोदते। मुझे भी सबसे ज्यादा मज़ा अपनी गाँड और चूत एक साथ दो लौड़ों से चुदवाने में आने लगा। प्रेग्नेन्सी से बचने के लिये मैंने कान्ट्रासेप्टिव पिल्स लेना भी शुरू कर दिया।
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वो एक हफ़्ता तो रोज़ शाम को खूब दिल खोल के ऐय्याशी की लेकिन मेरे अम्मी और अब्बू के लौटने के बाद तो हर रोज़ शाम को इस तरह अपने स्टूडेंट्स से मिलना मुमकिन नहीं था। मुझे तो चुदवाने का शद्दीद चस्का लग चुका था। मैं कॉलेज की बस से कॉलेज जाने की बजाय अब फिर से अपनी स्कोरपियो ड्राइव करके जाने लगी। छुट्टी के बाद चारों लड़के मेरे साथ मेरी स्कोरपियो में घर जाते लेकिन उससे पहले रास्ते में हाइवे से एक सुनसान कच्चे रास्ते से होते हुए हम एक पुरानी खंडहर बनी फैक्ट्री के पीछे कार रोकते और कार में ही मैं नंगी होकर उनसे चुदवाती। हफ़्ते के पाँच दिन इस ज़ल्दबाज़ी की चुदाई के अलावा कोई चारा भी तो नहीं था। शाम को फोन पे उनके सैक्सी मेसेज आते तो मैं भी वैसे ही जवाब दे देती। रात को सोने से पहले इंटरनेट पे पोर्न वेबसाइट देखती या फोन पे उन चारों स्टूडेंट्स के साथ गरम-गरम शहवत-अंगेज़ बातें करते हुए मोटे केले या लंबे बैंगन से खुद-लज़्ज़ती का लुत्फ़ उठाती। उनकी टीचर होते हुए भी उन चारों नालायकों की इंगलिश तो मैं ज्यादा सुधार नहीं सकी लेकिन मैं उनसे गंदी-गंदी गालियाँ और फ़ाहिशी गंदी ज़ुबान ज़रूर सीख गयी। उनके साथ गंदे अल्फ़ाज़ों में बात करने में अजीब-सा लुत्फ़ महसूस होता था और फिर आहिस्ता-आहिस्ता मेरी ज़ुबान में भी गालियाँ और गंदे अल्फ़ाज़ इस तरह शामिल हो गये कि अब तो किसी से आमतौर पे बातचीत के दौरान मुझे एहतियात बरतनी पड़ती है।
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RE: हिंदी की सुनी-अनसुनी कामुक कहानियों का संग्रह - by rohitkapoor - 20-08-2023, 01:58 AM



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