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Misc. Erotica हिंदी की सुनी-अनसुनी कामुक कहानियों का संग्रह
दो-एक दिन तक सब ठीक था लेकिन फिर एक दिन अचानक मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने कोई चीज़ मेरे पीछे मेरे चूतड़ों के बीच घुसा दी हो। मैं एक दम काँप गयी। मेरा पूरा जिस्म ठंडा पड़ गया। मेरे शौहर को गुज़रे हुए सात-आठ महीने हुए थे और इस दौरान मैंने अपनी जिस्मनी ख्वाहिशों को बिल्कुल दबा कर रखा था। कभी-कभार रात को अपनी उंगलियों से अगर खुद-लज़्ज़ती कर भी लेती थी तो तसव्वुर हमेशा अपने मरहूम शौहर का ही होता था। मैं बेहद पाक और नेक तरबियत वाली औरत थी। वैसे तो मैं गोरी-चिट्टी बेहद खूबसूरत और स्लिम और सैक्सी हूँ और अपने शौहर के साथ बेहद एक्टिव और अच्छी सैक्स लाईफ़ थी मेरी। लेकिन मेरे शौहर के अलावा किसी गैर-मर्द ने मुझे कभी छुआ तक नहीं था और ना ही मैंने कभी उनके अलावा किसी को ऐसी नज़र से देखा था।

 
लेकिन उस पल मुझे जैसे बिजली का झटका लगा। इतने महीनों में पहली मर्तबा मैंने किसी को अपने जिस्म के एक नाज़ुक हिस्से के अंदर शरारत करते हुए महसूस किया था। मेरी टाँगें कमज़ोर हो गयीं और हाई हील सैंडल में मेरा बैलेंस बिगड़ने लगा। एक लम्हे के लिये मेरे होश उड़ गये... चेहरे का रंग एक दम फ़ीका पड़ गया... गला सूख गया... मैं लड़खड़ा कर गिरने लगी लेकिन फिर बस की सीट पर लगे हैंडल को पकड़ कर अपने आप को संभाला। मेरे हाथ काँप रहे थे। उन लड़कियों ने पूछा, “तवस्सुम मैम आप ठीक तो हैं?”
 
“हाँ मैं ठीक हूँ”, मैंने कहा लेकिन मेरे चेहरे के उतरे रंग को देख कर मेरी साथी टीचरों ने जब यही सवाल मुझसे पूछा तो मैंने कहा कि शायद मुझे बुखार हो रहा है। उस दिन रात को देर तक मुझे नींद नहीं आयी। पूरी रात मुझे अपने चूतड़ों के बीच वो चीज़ सरकती महसूस होती रही। उस एहसास ने मेरे अंदर दबी हुई चिंगारी को जैसे हवा दे दी थी। मैंने उस रात करीब तीन मर्तबा अपनी उंगलियों से मैस्टरबेशन किया। मैं अगले दो दिन स्कूल भी नहीं गयी और बिमार होने का बहाना कर दिया।
 
जिस दिन मैं स्कूल गयी भी तो उस दिन बस में मैं आगे अपनी सीट पर जा कर चुपचाप बैठ गयी। वो लड़कियाँ उतरे से चेहरे के साथ मेरी जानिब देखती रही। मुझे टीचरों ने भी पूछा, “आज आपने स्टूडेंट्स के साथ खड़े नहीं होना क्या? क्या बात है? सब ठीक तो है ना तब्बू मैम?” सब टीचर्स मुझे त़ब्बू कह कर बुलाती थीं।
 
“सब ठीक है... बस थोड़ी वीकनेस लग रही है”, मैंने बहाना किया। अगले दिन वो लड़कियाँ फिर मेरे पास आयी और मुझसे बोली, “तबस्सुम मैम आपको क्या हुआ? मैम जब आप हमारे साथ खड़ी नहीं होती हैं तो वो लोग हमें फिर तंग करना शुरू कर देते हैं! मैम आप प्लीज़ हमारे साथ पीछे खड़ी हो जाया कीजिये... प्लीज़!”
 
मैंने कहा, “अच्छा ठीक है!” और वो चली गयी लेकिन मैं पूरा दिन टेंशन में रही और उस दिन का वाक़या याद करती रही। छुट्टी के बाद किसी तरह हिम्मत जुटा कर मैं पीछे जा कर खड़ी हो गयी। तकरीबन पूरा सफ़र आराम से कट गया और मैं भी इत्मिनान से हो गयी थी लेकिन मेरा स्टॉप आने से तीन-चार मिनट पहले ही किसी ने फिर पीछे से मेरे चूतड़ों में हाथ दे दिया और इस दफ़ा अच्छी तरह एक झटके में मेरे चूतड़ों के बीचों-बीच नीचे से सरकाते हुए ऊपर तक ले गया। मैं एक दम से पीछे पलटी तो सभी लड़के इधर-उधर देख रहे थे और मुझे पता भी नहीं चला कि ये किसने किया है। सुहाना और फ़ातिमा भी मेरे साथ ही खड़ी थीं। उन्होंने पूछा, “तब़स्सुम़ मैम सब ठीक है ना?” उन लड़कियों के पूछने के अंदाज़ में मुझे फ़िक्र की बजाय तंज़ महसूस हुआ और ऐसा लगा जैसे कि उन्हें पता था कि मेरे साथ किसी ने क्या हरकत की है। “हाँ!” मैंने जवाब दिया।
 
उस रात भी मैं ठीक से सो नहीं पायी। आज भी उन लड़कों की हरकत ने मेरे अंदर दबी हुई जिस्मानी हसरतें भड़का दी थी जो मैं बिल्कुल नहीं चाहती थी। ये मेरे तहज़िबे-इख्लाक़ के खिलाफ़ था लेकिन अपने जिस्म में उठती मीठी सी सनसनाहट मुझे कमज़ोर कर रही थी। अपनी अजीब सी जिस्मानी और ज़हनी हालत के लिये मुझे उन लड़कों पे बेहद गुस्सा आ रहा था। अगले दिन क्लॉस में जाते ही मैंने जानबूझ कर उन चारों से इंगलिश के ऐसे मुश्किल सवाल पूछे जिनका मुझे पता था कि वो नालायक जवाब नहीं दे सकेंगे और इस बहाने से उनकी खूब पिटाई की। उस दिन शाम को बस में चढ़ते ही जब लड़कियों ने मुझे पीछे बुलाया तो मैं कॉन्फिडेंस के साथ उन लड़कों को घूरती हुई पीछे जा कर खड़ी हो गयी। अब इतनी पिटाई होने के बाद भला वो क्यों नहीं सुधरेंगे। लेकिन बस चलने के थोड़ी देर बाद ही किसी ने मेरे चूतड़ों में फिर हाथ दे दिया। जब मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो इस बार चारों ने मेरी आँखों में देखा और मुस्कुरा पड़े। मैं आगे देखने लगी।
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RE: हिंदी की सुनी-अनसुनी कामुक कहानियों का संग्रह - by rohitkapoor - 26-07-2023, 01:19 AM



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