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Misc. Erotica हिंदी की सुनी-अनसुनी कामुक कहानियों का संग्रह
फिर उस आदमी ने पतली सी चादर के एक कोने को आगे वाली सीट के हेड-रेस्ट से बाँध दिया और दूसरे सिरे को अपनी सीट के पीछे हेड-रेस्ट से। अब वो जैसे कोई अलग केबिन बन गया था... जैसे ट्रेन के सेकेंड क्लास कम्पार्ट्मेंट में होता है। फिर उसने शबाना को एक तरफ टेढ़ा कर दिया। अब शबाना का मुँह आगे वाली सीट की तरफ़ नहीं बगल वाली खिड़की की तरफ़ था। चूत में लण्ड घुसा हुआ था और आगे कुछ पकड़ने के लिये नहीं था, तो शबाना के हाथ सीधे नीचे बस के फ़र्श पर छूने लगे। उस आदमी ने अब उठकर अपनी सीट और शबाना की सीट को ऊँचा कर दिया और अब शबाना बिल्कुल कुत्तिया की तरह झुकी हुई थी और उसकी चूत में लण्ड घुसा हुआ था। उस शख्स ने फिर बिना देर किये ज़ोर-ज़ोर से धक्के लगाने शुरू कर दिये और शबाना ने अपने होंठों को दाँतों से दबा लिया। बड़ी मुश्किल हो रही थी उसे अपनी सिसकारियाँ रोकने में। फिर उसकी टाँगें फैलने लगीं और उसकी चूत पर पड़ने वाले हर धक्के के साथ उसकी चूत उसका साथ छोड़कर लण्ड के साथ मिलने लगी। उसकी चूत लण्ड को कसकर पकड़ रही थी और जब भी उसकी गाँड पर उस शख्स का जिस्म टकराता तो उसके पेट में हलचल मच जाती। उसकी कमर को पकड़े हुए वो शख्स उसे किसी बच्चे की तरह आगे पीछे झुला रहा था, और अपने लण्ड पर स्लाइड करवा रहा था। उसकी चूत जैसे किसी फिसलपट्टी पर फिसल कर नीचे आती और उसी रफ्तार से फिर ऊपर चढ़ जाती। उसकी बंद आँखों के सामने जैसे तेज़ रोश्नी-सी चमकी और उसकी चूत से रस का परनाला बहने लगा और वो एक दम से निढाल होकर बस के फ़र्श पर झुक गयी। लण्ड उसकी चूत को शाँत कर चुका था। लण्ड और चूत से निकलकर एक हो चुका रस उसकी जाँघों से होते हुए उसके घुटनों तक पहुँच रहा था। लण्ड अब भी उसकी चूत में था। फिर उस शख्स ने उसकी चूत से अपना लण्ड निकाला और सीट पर बैठ गया। शबाना थोड़ी देर ऐसे ही लेटी रही। उसका बुऱका कमर के ऊपर तक उठा हुआ था और कमर के नीचे उसका नंगा जिस्म बुऱके से बाहर थ। फिर वो भी उठकर उस शख्स की बगल में खिड़की वाली सीट पर बैठ गयी। उस आदमी के पैंट के बटन और ज़िप बंद करने से पहले ही उसके अंडरवीयर में शबाना ने अपना हाथ घुसाया और उसका लण्ड बाहर निकाल लिया। फिर झुककर उसे खूब चूमा, चाटा और साफ़ किया। फिर उसने अपना बुऱका ठीक किया और खिड़की पर सर रख कर सो गयी। गहरी और ज़बरदस्त चुदाई के बाद,  बहुत ही शानदार नींद आयी थी उसे।

शबाना! उठो शबाना! सुनकर चौंक गयी शबाना। उसने आँखें खोली तो परवेज़ उठा रहा था उसे। चलो स्टॉप आ गया! अब शबाना को थोड़ा होश आया। उसका स्टॉप आ गया था और परवेज़ उसे ही उठा रहा था। उसने बगल में देखा तो कोई नहीं था। शायद वो आदमी उसे छोड़कर अपने स्टॉप पर पहले ही उतार गया था।
 
कुछ भी कहो कमाल का रहा ये सफ़र! शबाना बुदबुदायी।
 
 क्या?”
 
कुछ नहीं मैंने कहा कमाल की नींद आयी रात में! शबाना ने बात को संभाला। बुऱके के नीचे बिल्कुल ही नंगी थी वो और पैरों तक उसकी टाँगें और जाँघें चिपचिपा रही थीं। उसका खुला हुआ ब्लाउज़ भी नदारद था जो या तो बस में ही कहीं सीट के नीचे गिर गया था या हो सकता है वो शख्स ही यादगार के लिये ले गया हो।
 
बस से उतरकर दोनों सीधे घर आ गये। परवेज़ को काम पर जाना था इसलिये वो उसे घर छोड़कर तुरंत निकाल गया। शबाना तो रात की बस वाली चुदाई के बारे में ही सोच रही थी। उस शख्स का नाम पता कुछ नहीं मालूम था लेकिन चूत उसे ही याद कर रही थी। अब तो गाँड भी उस लण्ड को खाने के लिये लालयित हो रही थी। तभी शबाना का ध्यान अपने बुऱके में बंधी हुई गाँठ पर गया। उसने उस गाँठ को खोला - उसमें फोन नम्बर लिखा हुआ था और नाम कि जगह बस का साथी...
 
शबाना के चेहरे पर मुस्कान फैल गयी और उसकी आँखों में चमक आ गयी। वो जानती थी उसे क्या करना है। वो जानती थी, अब उसकी गाँड की प्यास भी बुझ जायेगी। शबाना की चूत किसी लण्ड को खाये और गाँड उसे छोड़ दे... ऐसा होना मुश्किल था। वो भी ऐसा लण्ड जिसने उसकी प्यासी चूत को किसी बियाबान रेगिस्तान में पानी पिलाया हो!!
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RE: हिंदी की सुनी-अनसुनी कामुक कहानियों का संग्रह - by rohitkapoor - 23-07-2023, 07:38 PM



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