23-07-2023, 07:29 PM
तभी उसे अपने मुँह पर लण्ड महसूस हुआ, जिसे उसने अपने मुँह में ले लिया और चूमने लगी। जब उसने अपनी आँख खोली तो, “अशरफ़ तू??? अपनी आपा को लण्ड चुसा रहा है... शरम नहीं आती???”
“क्या आपा! मैंने परसों रात आपको तीन-तीन लण्ड दिलवाये और आप मेरा लण्ड नहीं लोगी?” अशरफ़ मुस्कुराया। शबाना समझ गयी कि उस रात जो हुआ वो अशरफ़ का ही प्लान था।
“तूने ये सब क्यों किया?” शबाना ने पूछा। शबाना की ज़ुबान नशे में बहक रही थी।
“आपा मैं गंडियाल हूँ और मुझे गाँड मरवाने में मज़ा आता है। मुझे लड़कियों में कोई दिलचस्पी नहीं है.... ये लोग मेरी गाँड मारने के बदले तुम्हें माँग रहे थे तो मुझे ये सब करना पड़ा!” अशरफ़ की आवाज़ में कोई पछतावा नहीं था।
“तो गाँडू तू शादी क्यों कर रहा है?”
“इनके लिये! अब मैं तुम्हें तो हर रोज़ नहीं बुला सकता ना? यही चोदेंगे मेरी बीवी नफीसा को भी!”
सन्न रह गयी शबाना ये सुनकर। खैर, अगले दो घंटे उसने और शराब पी कर नशे में खूब जी भर कर चुदाई करवायी। अशरफ़ का भी लण्ड चूस कर पानी पी लिया। अशरफ़ इससे ज़्यादा कुछ कर नहीं सकता था। बाकी तीनों के लण्ड भी अपने हर छेद में लेकर मज़े लूटे। सबसे ज़्यादा मज़ा तो उसे तब अया जब एक ही साथ उसकी चूत में शंभू का लण्ड और गाँड में लखन का लण्ड और मूँह में छेद्दीलाल का लण्ड चोद रहा था।
फिर अशरफ़ ने उसे वापस बस-स्टैंड पर छोड़ दिया और वो उसी तरह बस में सवार हो गयी जैसे उतर कर गयी थी। सिर्फ इतना फर्क़ था कि अब वो शराब के नशे में थी। बस में पहुँची तो कंडक्टर ने सीटें बदल दी थीं। शबाना की सीट काफी पीछे थी और उसकी सीट के पीछे सिर्फ़ एक ही कतार और थी। उसके पास एक अधेड़ उम्र की औरत बैठी हुई थी। उम्र कोई पचास के करीब थी। शबाना ने सीट बदलने के लिये कंडक्टर से काफी मशक्कत की मगर उसे उसी सीट पर बैठना पड़ा। शबाना उसके पास जाकर बैठ गयी। बड़ी कोफ़्त हुई उसे... खिड़की के पास वाली सीट भी नहीं मिली। अच्छा हुआ सिर्फ़ बुरक़ा ही पहन कर आ गयी, उसने सोचा, अगर बुरक़े में कपड़े पहन लेटी तो गर्मी से दम निकाल जाता। जी हाँ! छेद्दीलाल के यहाँ से निकलते वक्त उसने अपनी साड़ी और पेटीकोट पहनने कि बजाय अपनी अटैची में रख लिये थे और इस वक्त वो बुऱके के नीचे सिर्फ छोटा सा बिकिनी-ब्लाउज़ ही पहने हुए थी और कुछ भी नहीं!
“क्या आपा! मैंने परसों रात आपको तीन-तीन लण्ड दिलवाये और आप मेरा लण्ड नहीं लोगी?” अशरफ़ मुस्कुराया। शबाना समझ गयी कि उस रात जो हुआ वो अशरफ़ का ही प्लान था।
“तूने ये सब क्यों किया?” शबाना ने पूछा। शबाना की ज़ुबान नशे में बहक रही थी।
“आपा मैं गंडियाल हूँ और मुझे गाँड मरवाने में मज़ा आता है। मुझे लड़कियों में कोई दिलचस्पी नहीं है.... ये लोग मेरी गाँड मारने के बदले तुम्हें माँग रहे थे तो मुझे ये सब करना पड़ा!” अशरफ़ की आवाज़ में कोई पछतावा नहीं था।
“तो गाँडू तू शादी क्यों कर रहा है?”
“इनके लिये! अब मैं तुम्हें तो हर रोज़ नहीं बुला सकता ना? यही चोदेंगे मेरी बीवी नफीसा को भी!”
सन्न रह गयी शबाना ये सुनकर। खैर, अगले दो घंटे उसने और शराब पी कर नशे में खूब जी भर कर चुदाई करवायी। अशरफ़ का भी लण्ड चूस कर पानी पी लिया। अशरफ़ इससे ज़्यादा कुछ कर नहीं सकता था। बाकी तीनों के लण्ड भी अपने हर छेद में लेकर मज़े लूटे। सबसे ज़्यादा मज़ा तो उसे तब अया जब एक ही साथ उसकी चूत में शंभू का लण्ड और गाँड में लखन का लण्ड और मूँह में छेद्दीलाल का लण्ड चोद रहा था।
फिर अशरफ़ ने उसे वापस बस-स्टैंड पर छोड़ दिया और वो उसी तरह बस में सवार हो गयी जैसे उतर कर गयी थी। सिर्फ इतना फर्क़ था कि अब वो शराब के नशे में थी। बस में पहुँची तो कंडक्टर ने सीटें बदल दी थीं। शबाना की सीट काफी पीछे थी और उसकी सीट के पीछे सिर्फ़ एक ही कतार और थी। उसके पास एक अधेड़ उम्र की औरत बैठी हुई थी। उम्र कोई पचास के करीब थी। शबाना ने सीट बदलने के लिये कंडक्टर से काफी मशक्कत की मगर उसे उसी सीट पर बैठना पड़ा। शबाना उसके पास जाकर बैठ गयी। बड़ी कोफ़्त हुई उसे... खिड़की के पास वाली सीट भी नहीं मिली। अच्छा हुआ सिर्फ़ बुरक़ा ही पहन कर आ गयी, उसने सोचा, अगर बुरक़े में कपड़े पहन लेटी तो गर्मी से दम निकाल जाता। जी हाँ! छेद्दीलाल के यहाँ से निकलते वक्त उसने अपनी साड़ी और पेटीकोट पहनने कि बजाय अपनी अटैची में रख लिये थे और इस वक्त वो बुऱके के नीचे सिर्फ छोटा सा बिकिनी-ब्लाउज़ ही पहने हुए थी और कुछ भी नहीं!