23-07-2023, 07:22 PM
“मैं अकेले नहीं आ सकती! तू जानता है कि वहाँ तक पैदल आने के लिये उस सुनसान रास्ते से आना होगा!” शबाना के दिल की धड़कने तेज़ हो गयी थी। वो जानती थी पगडंडी बिल्कुल सुनसान होती है। “आपा कुछ नहीं होगा! आप आ जाओ!” अशरफ़ ने बिना उसका जवाब सुने फोन काट दिया।
शबाना ने अपना बैग और पर्स उठाया और पगडंडी की तरफ़ चल पड़ी। गनिमत ये थी कि बैग हल्का ही था क्योंकि उसमें दो जोड़ी कपड़े, सैंडल और ब्रा पैंटी वगैरह ही थी। अभी दस मिनट ही चली थी कि उसे लगा कोई उसके पीछे है। वो बिल्कुल डर गयी और अपनी चलने की रफ्तार तेज़ कर दी। उसने अपने आपको बुऱके में पूरी तरह से ढक रखा था - सर से पैर तक। तभी उसे अपने पीछे से कदमों की आवाज़ तेज़ होती महसूस हुई। वो अभी अपनी रफ्तार और बढ़ाने वाली ही थी कि उसे सामने एक परछांयी नज़र आयी। वो उसी की तरफ़ आ रही थी। अब शबाना की डर के मारे बुरी हालत थी। तभी उसे अपनी कमर पर किसी का हाथ महसूस हुआ। उसे पता ही नहीं चला कब वो पीछे वाला आदमी इतना करीब आ गया। उसने झट से उसका हाथ झटक दिया और पगडंडी से उतर कर खेतों की तरफ़ भागी जहाँ उसे थोड़ी रोश्नी नज़र आ रही थी। उसका बैग और पर्स वहीं छूट गया। वो दोनों परछांइयाँ अब उसका पीछा कर रही थी। “पकड़ रंडी को! हाथ से निकाल ना जाये! देख साली की गाँड देख कैसे हिल रही है आज तो मज़ा आ जायेगा छेद्दीलाल!” शबाना के कानों में ये आवाज़ें साफ़ सुनायी दे रही थीं और अचानक उसकी पीठ पर एक धक्का लगा और वो सीधे मुँह के बल घास के ढेर पर गिर गयी। घास की वजह से उसे चोट नहीं आयी।
“बचाओ, बचाओ, अशरफ़!” वो ज़ोर से चिल्लायी। तभी एक आदमी ने उसके बुरक़े को ज़ोर से खींच दिया और वो फर्रर्र की आवाज़ के साथ फट गया। उसकी साड़ी तो पहले से ही बे-तरतीब सी थी और इस भाग-दौड़ की वजह से और भी खुल सी गयी थी। उस आदमी ने उसकी साड़ी भी पकड़ कर खींच के उतार दी। शबाना की पूरी जवानी जैसे कैद से बाहर निकाल आयी। अब उसने सिर्फ़ पेटीकोट, ब्लाऊज़ और सैंडल पहन रखे थे। फिर एक आदमी उसपर झपट पड़ा तो शबाना ने उसे ज़ोर से धक्का दिया और एक लात जमायी। वो अब भी अपनी इज़्ज़त बचाने के लिये कशाकश कर रही थी। तभी एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा और उसकी आँखों के आगे जैसे तारे नाचने लगे और कानों में सीटियाँ बजने लगी। वो ज़ोर से चींख पड़ी। तभी उन दोनों में से एक ने उसके पेटीकोट को ऊपर उठाया और उसकी जाँघों को पकड़ लिया। पैंटी तो शबाना ने जगबीर से चुदाई के बाद घर से निकलते हुए पहनी ही नहीं थी। उसने अपनी दोनों जाँघों को मज़बूती से भींच लिया। उस आदमी का हाथ उसकी जाँघों के बीच उसकी नंगी चूत पर था, और शबाना उस आदमी के बाल पकड़ कर उसे ज़ोर से पीछे धकेलने लगी। तभी उसे एक और ज़ोरदार थप्पड़ पड़ा। ये उस दूसरे आदमी ने मारा था। शबाना के पैर खुल गये और उसके हाथों की पकड़ ढीली हो गयी। तभी पहला आदमी, छेद्दीलाल खुश होते हुए बोला, “शम्भू! साली की चूत एक दम साफ़ है, आज तो मज़ा आ जायेगा! क्या माल हाथ लगा है!’ ये कहते हुए छेद्दीलाल ने शबाना के ब्लाऊज़ को पकड़ कर फाड़ दिया और शबाना के मम्मे एक झटके से बाहर झूल गये। ब्रा जैसा छोटा सा ब्लाउज़ फटते ही शबना के गोल-गोल मम्मे नंगे हो गये और पेटीकोट उसकी कमर तक उठा हुआ था। ब्रा तो उसने पहनी ही नहीं हुई थी क्योंकि ब्लाऊज़ खुद ही किसी ब्रा के साइज़ का ही था।
शबाना ने अपना बैग और पर्स उठाया और पगडंडी की तरफ़ चल पड़ी। गनिमत ये थी कि बैग हल्का ही था क्योंकि उसमें दो जोड़ी कपड़े, सैंडल और ब्रा पैंटी वगैरह ही थी। अभी दस मिनट ही चली थी कि उसे लगा कोई उसके पीछे है। वो बिल्कुल डर गयी और अपनी चलने की रफ्तार तेज़ कर दी। उसने अपने आपको बुऱके में पूरी तरह से ढक रखा था - सर से पैर तक। तभी उसे अपने पीछे से कदमों की आवाज़ तेज़ होती महसूस हुई। वो अभी अपनी रफ्तार और बढ़ाने वाली ही थी कि उसे सामने एक परछांयी नज़र आयी। वो उसी की तरफ़ आ रही थी। अब शबाना की डर के मारे बुरी हालत थी। तभी उसे अपनी कमर पर किसी का हाथ महसूस हुआ। उसे पता ही नहीं चला कब वो पीछे वाला आदमी इतना करीब आ गया। उसने झट से उसका हाथ झटक दिया और पगडंडी से उतर कर खेतों की तरफ़ भागी जहाँ उसे थोड़ी रोश्नी नज़र आ रही थी। उसका बैग और पर्स वहीं छूट गया। वो दोनों परछांइयाँ अब उसका पीछा कर रही थी। “पकड़ रंडी को! हाथ से निकाल ना जाये! देख साली की गाँड देख कैसे हिल रही है आज तो मज़ा आ जायेगा छेद्दीलाल!” शबाना के कानों में ये आवाज़ें साफ़ सुनायी दे रही थीं और अचानक उसकी पीठ पर एक धक्का लगा और वो सीधे मुँह के बल घास के ढेर पर गिर गयी। घास की वजह से उसे चोट नहीं आयी।
“बचाओ, बचाओ, अशरफ़!” वो ज़ोर से चिल्लायी। तभी एक आदमी ने उसके बुरक़े को ज़ोर से खींच दिया और वो फर्रर्र की आवाज़ के साथ फट गया। उसकी साड़ी तो पहले से ही बे-तरतीब सी थी और इस भाग-दौड़ की वजह से और भी खुल सी गयी थी। उस आदमी ने उसकी साड़ी भी पकड़ कर खींच के उतार दी। शबाना की पूरी जवानी जैसे कैद से बाहर निकाल आयी। अब उसने सिर्फ़ पेटीकोट, ब्लाऊज़ और सैंडल पहन रखे थे। फिर एक आदमी उसपर झपट पड़ा तो शबाना ने उसे ज़ोर से धक्का दिया और एक लात जमायी। वो अब भी अपनी इज़्ज़त बचाने के लिये कशाकश कर रही थी। तभी एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा और उसकी आँखों के आगे जैसे तारे नाचने लगे और कानों में सीटियाँ बजने लगी। वो ज़ोर से चींख पड़ी। तभी उन दोनों में से एक ने उसके पेटीकोट को ऊपर उठाया और उसकी जाँघों को पकड़ लिया। पैंटी तो शबाना ने जगबीर से चुदाई के बाद घर से निकलते हुए पहनी ही नहीं थी। उसने अपनी दोनों जाँघों को मज़बूती से भींच लिया। उस आदमी का हाथ उसकी जाँघों के बीच उसकी नंगी चूत पर था, और शबाना उस आदमी के बाल पकड़ कर उसे ज़ोर से पीछे धकेलने लगी। तभी उसे एक और ज़ोरदार थप्पड़ पड़ा। ये उस दूसरे आदमी ने मारा था। शबाना के पैर खुल गये और उसके हाथों की पकड़ ढीली हो गयी। तभी पहला आदमी, छेद्दीलाल खुश होते हुए बोला, “शम्भू! साली की चूत एक दम साफ़ है, आज तो मज़ा आ जायेगा! क्या माल हाथ लगा है!’ ये कहते हुए छेद्दीलाल ने शबाना के ब्लाऊज़ को पकड़ कर फाड़ दिया और शबाना के मम्मे एक झटके से बाहर झूल गये। ब्रा जैसा छोटा सा ब्लाउज़ फटते ही शबना के गोल-गोल मम्मे नंगे हो गये और पेटीकोट उसकी कमर तक उठा हुआ था। ब्रा तो उसने पहनी ही नहीं हुई थी क्योंकि ब्लाऊज़ खुद ही किसी ब्रा के साइज़ का ही था।