23-07-2023, 07:09 PM
भाग - ५
“हाय जगबीर!”
“हाय! कौन?”
“अच्छा, तो अब आवाज़ भी नहीं पहचानते हैं जनाब!”
“ओहो! शबाना जी! बड़े दिनों बाद याद किया?” बड़े अदब से चुटकी ली जगबीर ने।
“क्या करें! तुम तो याद करते नहीं... सो मैंने ही फोन कर लिया... एक महीने तुम्हारे फोन की राह देखी है!” शिकायत भरे लहज़े में कहा शबाना ने।
“आप बुला लेती तो मैं हाज़िर हो जाता!” जगबीर के पास जवाब तैयार था।
“अभी आ सकते हो?”
“अभी नहीं... कल आ जाता हूँ अगर आपको आपत्ति ना हो तो!”
“ठीक है... तो कल ग्यारह बजे?”
“ओके शबाना जी!” और फिर शबाना के जवाब का इंतज़ार किये बिना फोन काट दिया जगबीर ने।
“सरदार बहुत तेज़ है... लेकिन साला है बहुत ही दिलचस्प!” शबाना ने मन ही मन खुद से कहा।
उसने दोबारा फोन लगाया “हाँ ज़रीना, मैं घर पर ही हूँ, तुम ज़ीनत को भेज सकती हो!”
ज़रीना शबाना से उम्र में पंद्रह साल बड़ी थी लेकिन सबसे अच्छी सहेली थी और थोड़ी ही दूरी पर रहती थी। इसलिये कभी-कभी आ जाती थी। उसकी बेटी ज़ीनत के बी-एस-सी फर्स्ट ईयर के इग़्ज़ैम थे और उसने शबाना से रिक्वेस्ट की थी थोड़ी मदद कर देने के लिये क्योंकि शबाना कैमिस्ट्री में एम-एस-सी थी। दरवाज़े की दस्तक से शबाना का ध्यान भंग हुआ। कोई था शायद बाहर।
ज़ीनत आयी थी। उसे अंदर बुला कर उसने दरवाज़ा बंद कर लिया। ज़ीनत काफी खूबसूरत थी और उसके मम्मे उसकी उम्र को काफी पीछे छोड़ चुके थे। उसका जिस्म देखकर कोई भी यही सोचेगा कि तेईस-चौबीस की है। पहनावा भी काफी मॉडर्न किस्म का था। कॉनवेंट में पढ़ी-लिखी ज़ीनत रोज़ घुटनों के ऊपर तक की स्कर्ट पहन कर कॉलेज जाती थी और ज़रीना ने काफी छूट दे रखी थी उसे। आखिर इकलौती औलाद थी वो।