15-01-2023, 01:36 AM
“अरे इतनी जल्दी क्या है... रात का एक ही बज रहा है!” ताज़ीन ने कहा, “परवेज़ तो कल शाम को आयेगा... सुबह यहीं से नहा धोकर चले जाना... तब तक एक और राऊँड हो जाये चुदाई का...!”
“अरे मोहतर्मा! जिनकी बीवी इतनी खूबसूरत हो, वो जितनी जल्दी हो घर पहुँचना चाहेगा!” कहकर हँस दिया जगबीर।
“अच्छा तो वो क्या ऐसे ही काम छोड़ कर आ जायेगा... शहर से बाहर ही नहीं जायेगा?” शबाना ने बीच में चुटकी ली। शराब का नशा बरकरार था उसपर।
“अरे भाई, वो शहर से बाहर जायेगा तो भी यही कहेगा कि शहर में ही है... हो सकता है परवेज़ सुबह छः बजे आ जाये, रिस्क क्यों लेना?”
“चलो ठीक है! वैसे भी सुबह जल्दी ऑफिस जाना है!” प्रताप ने सोफ़े पर से उठते हुए कहा और कपड़े पहनने लगा।
शबाना और ताज़ीन ने भी ज़्यादा ज़िद्द नहीं की। प्रताप और जगबीर दोनों निकाल गये।
शबाना और ताज़ीन ने अपने बिस्तर ठीक किये और दोनों एक दम तस्कीन से खुश होकर सो गयी।
सुबह छः बजे घंटी बजने पर शबाना ने दरवाज़ा खोला दूध लेने के लिये। “परवेज़ तुम? इतनी जल्दी? तुम तो शाम को आने वाले थे ना?” एक दम चौंक गयी थी शबाना।
“क्यों मेरा जल्दी आना अच्छा नहीं लगा तुम्हें?”
“नहीं ऐसी कोई बात नहीं, यूँ ही पूछ लिया!”
शबाना ने चैन की साँस ली। वो आज मरते-मरते बची थी। अगर जगबीर ने जाने के लिये ज़ोर नहीं दिया होता तो प्रताप भी वहीं होता और आज उसकी शामत ही आने वाली थी। ये सोचकर उसका दिमाग एक दम घूम गया। उसके कानों में जगबीर के अल्फाज़ गूँजने लगे “हो सकता है सुबह छः बजे ही आ जायें।” उसका दिमाग चक्कर घिन्नी की तरह घूम गया। उसे शक होने लगा कि जगबीर को पहले ही पता था कि परवेज़ सुबह आने वाला है।
सुबह छः बजे आने के बावजूद परवेज़ नौ बजे ही घर से फिर निकल गया।
“ताज़ीन आपा, आपको जगबीर की बात याद है?”
“कौनसी?” बेफ़िक्र ताज़ीन ने जवाब दिया।
“वही जो उसने जाने से पहले कही थी...!” शबाना ने ताज़ीन की आँखों में झाँकते हुए पूछा।
“जिसकी बीवी इतनी सुन्दर हो... वो वाली? वो तो उसने सच ही कहा था!”
“वो नहीं...! सुबह छः बजे वाली... परवेज़ सुबह छः बजे ही आये थे... ठीक उसी वक्त जो जगबीर ने बताया था।” शबाना की आवाज़ में डर और चिंता दोनों साफ़ झलक रही थी।
“ऐसे ही तुक्का लगा दिया होगा!” ताज़ीन अब भी बेफ़िक्र थी।
“अरे मोहतर्मा! जिनकी बीवी इतनी खूबसूरत हो, वो जितनी जल्दी हो घर पहुँचना चाहेगा!” कहकर हँस दिया जगबीर।
“अच्छा तो वो क्या ऐसे ही काम छोड़ कर आ जायेगा... शहर से बाहर ही नहीं जायेगा?” शबाना ने बीच में चुटकी ली। शराब का नशा बरकरार था उसपर।
“अरे भाई, वो शहर से बाहर जायेगा तो भी यही कहेगा कि शहर में ही है... हो सकता है परवेज़ सुबह छः बजे आ जाये, रिस्क क्यों लेना?”
“चलो ठीक है! वैसे भी सुबह जल्दी ऑफिस जाना है!” प्रताप ने सोफ़े पर से उठते हुए कहा और कपड़े पहनने लगा।
शबाना और ताज़ीन ने भी ज़्यादा ज़िद्द नहीं की। प्रताप और जगबीर दोनों निकाल गये।
शबाना और ताज़ीन ने अपने बिस्तर ठीक किये और दोनों एक दम तस्कीन से खुश होकर सो गयी।
सुबह छः बजे घंटी बजने पर शबाना ने दरवाज़ा खोला दूध लेने के लिये। “परवेज़ तुम? इतनी जल्दी? तुम तो शाम को आने वाले थे ना?” एक दम चौंक गयी थी शबाना।
“क्यों मेरा जल्दी आना अच्छा नहीं लगा तुम्हें?”
“नहीं ऐसी कोई बात नहीं, यूँ ही पूछ लिया!”
शबाना ने चैन की साँस ली। वो आज मरते-मरते बची थी। अगर जगबीर ने जाने के लिये ज़ोर नहीं दिया होता तो प्रताप भी वहीं होता और आज उसकी शामत ही आने वाली थी। ये सोचकर उसका दिमाग एक दम घूम गया। उसके कानों में जगबीर के अल्फाज़ गूँजने लगे “हो सकता है सुबह छः बजे ही आ जायें।” उसका दिमाग चक्कर घिन्नी की तरह घूम गया। उसे शक होने लगा कि जगबीर को पहले ही पता था कि परवेज़ सुबह आने वाला है।
सुबह छः बजे आने के बावजूद परवेज़ नौ बजे ही घर से फिर निकल गया।
“ताज़ीन आपा, आपको जगबीर की बात याद है?”
“कौनसी?” बेफ़िक्र ताज़ीन ने जवाब दिया।
“वही जो उसने जाने से पहले कही थी...!” शबाना ने ताज़ीन की आँखों में झाँकते हुए पूछा।
“जिसकी बीवी इतनी सुन्दर हो... वो वाली? वो तो उसने सच ही कहा था!”
“वो नहीं...! सुबह छः बजे वाली... परवेज़ सुबह छः बजे ही आये थे... ठीक उसी वक्त जो जगबीर ने बताया था।” शबाना की आवाज़ में डर और चिंता दोनों साफ़ झलक रही थी।
“ऐसे ही तुक्का लगा दिया होगा!” ताज़ीन अब भी बेफ़िक्र थी।