15-01-2023, 01:30 AM
“अब उंगली ही करेगा य चूसेगा भी... आग लगी हुई है चूत में... जग्गू खा ले इसे... मेरी चूत को आज फाड़ कर रख दे जग्गू!” तभी जगबीर ने उसकी चूत को फैलाया और उसके दाने को अपने मुँह में भर लिया और नीचे से अंगुठा घुसा दिया। ऊपर जीभ घुसा कर चूत को अपनी जीभ से मसल कर रख दिया। पागल हो गयी ताज़ीन - उसने अपनी टाँगें जगबीर की गर्दन में लपेट ली और अपनी गाँड उठा कर चूत उसके मुँह में ठूँस दी। जगबीर भी पक्का सयाना था। उसने चूत चूसना ज़ारी रखा और अब अंगुठा चूत से निकाल कर उसकी गाँड में घुसा दिया, जिससे ताज़ीन की पकड़ थोड़ी ढीली हो गयी। जगबीर फिर चूत का रस पीने लगा - और ताज़ीन की गाँड फिर उछलने लगी। उसकी गाँड में जगबीर का अंगुठा आराम से जा रहा था। फिर जगबीर ने उसकी चूत को छोड़ा और ताज़ीन को सोफ़े पर बिठा दिया और उसके सामने खड़ा हो गया। ताज़ीन ने जल्दी से उसकी पैंट कि ज़िप खोली और पैंट निकाल दी और फिर अंडरवीयर भी। अब जगबीर बिल्कुल नंगा खड़ा था ताज़ीन के सामने।
“यार इस पूरे लण्ड का मज़ा ही कुछ और है!” नशे में धुत्त ताज़ीन ने जगबीर के लण्ड को आगे पीछे करते हुए कहा। जैसे-जैसे वो उसे आगे पीछे करती उसके ऊपर की चमड़ी आगे आकर सुपाड़े को ढक देती। फिर वो उसे फिर से खोल देती, जैसे कोई साँप अंदर बाहर हो रहा हो। “मज़ा आ जायेगा लण्ड खाने में!” तभी जगबीर ने उसके सर को पकड़ा और अपना लण्ड ज़ोर से उसके मुँह पर हर जगह रगड़ने लगा। ताज़ीन की आँखें बंद हो गयी और जगबीर अपना लण्ड उसके मुँह पर यहाँ-वहाँ सब जगह रगड़े जा रहा था। ताज़ीन ने लण्ड मुँह में लेने के लिये अपना मुँह खोल दिया। मगर जगबीर ने सीधे अपनी गोटियाँ उसके मुँह में डाल दी, और ताज़ीन उन गोटियों को चूसने लगी और उन्हें अपने मुँह में भरकर दाँतों में दबाकर खींचने लगी। फिर गोलियो से होती हुई वो जगबीर के लण्ड की जड़ को मुँह में लेने लगी। उसके बाद जड़ से होती हुई वो टोपी पर पहुँच गयी और लण्ड को मुँह में खींच लिया। अब वो बेतहाशा लण्ड चूसे जा रही थी। ग़ज़ब का तजुर्बा था उसे लण्ड चूसने का... जगबीर की तो सिसकारियाँ निकल रही थी।
“यार इस पूरे लण्ड का मज़ा ही कुछ और है!” नशे में धुत्त ताज़ीन ने जगबीर के लण्ड को आगे पीछे करते हुए कहा। जैसे-जैसे वो उसे आगे पीछे करती उसके ऊपर की चमड़ी आगे आकर सुपाड़े को ढक देती। फिर वो उसे फिर से खोल देती, जैसे कोई साँप अंदर बाहर हो रहा हो। “मज़ा आ जायेगा लण्ड खाने में!” तभी जगबीर ने उसके सर को पकड़ा और अपना लण्ड ज़ोर से उसके मुँह पर हर जगह रगड़ने लगा। ताज़ीन की आँखें बंद हो गयी और जगबीर अपना लण्ड उसके मुँह पर यहाँ-वहाँ सब जगह रगड़े जा रहा था। ताज़ीन ने लण्ड मुँह में लेने के लिये अपना मुँह खोल दिया। मगर जगबीर ने सीधे अपनी गोटियाँ उसके मुँह में डाल दी, और ताज़ीन उन गोटियों को चूसने लगी और उन्हें अपने मुँह में भरकर दाँतों में दबाकर खींचने लगी। फिर गोलियो से होती हुई वो जगबीर के लण्ड की जड़ को मुँह में लेने लगी। उसके बाद जड़ से होती हुई वो टोपी पर पहुँच गयी और लण्ड को मुँह में खींच लिया। अब वो बेतहाशा लण्ड चूसे जा रही थी। ग़ज़ब का तजुर्बा था उसे लण्ड चूसने का... जगबीर की तो सिसकारियाँ निकल रही थी।