21-12-2022, 03:23 AM
शबाना मस्त हो चुकी थी और उसकी साँसें तेज़ चलने लगी थीं। उसने नज़रें उठायीं और इत्मीनान किया कि उनपर किसी की नज़र तो नहीं। यकीन होने के बाद उसने अपनी आँखें बंद की और मज़े लेने लगी। अब प्रताप की उंगलियाँ चूत के ऊपर से थाँग पैंटी की पट्टी को एक तरफ खिसका कर चूत पर चली गयी थीं। शबाना कि भीगी हुई चूत पर प्रताप की उंगलियाँ जैसे कहर बरपा रही थीं। ऊपर नीचे, अंदर-बाहर - शबाना की चूत जैसे तार-तार हो रही थी और प्रताप की उंगलियाँ खेत में चल रहे हल की तरह उसकी लम्बाई, चौड़ाई और गहरायी नाप रही थी। प्रताप का पूरा हाथ शबाना की चूत के पानी से भीग चुका था। फिर उसने अपनी दो उंगलियाँ एक साथ चूत में घुसायी और दो-तीन ज़ोर के झटके दिये। शबाना ऊपर से नीचे तक हिल गयी और उसके पैर उखड़ गये। एक दम से निढाल होकर वो प्रताप पर गिर पड़ी। वो झड़ चुकी थी। आज तक इतना शानदार स्खलन नहीं हुआ था उसका। उसने अपना हाथ पीछे किया और प्रताप के लण्ड को पकड़ लिया। इतने में झटके के साथ बस रुकी और बहुत से लोग उतार गये। बस तकरीबन खाली हो गयी। शबाना ने अपना बुरक़ा झट से नीचे किया और सीधी नीचे उतार गयी। आज उसे भरपूर मज़ा मिला था। आज तक तो रोज़ ही लोग सिर्फ़ पीछे से लण्ड रगड़ कर छोड़ देते थे। आज जो हुआ वो पहले कभी नहीं हुआ था। आप ठीक समझे - शबाना यही करके आज तक मज़े लूट रही थी क्योंकि पठान उसे कभी खुश नहीं कर पाया था।
उसने नीचे उतरकर सड़क क्रॉस की और रिक्शा पकड़ ली। ऐसा मज़ा ज़िंदगी में पहली बार आया था। वो बार-बार अपना हाथ देख रही थी और उसकी मुठ्ठी बनाकर प्रताप के लण्ड के बारे में सोच रही थी। उसने घर से थोड़ी दूर ही रिक्शा छोड़ दिया ताकि किसी को पता ना चले कि वो रिक्शा से आयी है। वो ऊँची पेन्सिल हील की सैंडल में मटकते हुए पैदल चलकर अपने घर पहुँची और ताला खोलकर अंदर चली गयी।
अभी उसने दरवाज़ा बंद किया ही था कि घंटी की आवाज़ सुनकर उसने फिर दरवाज़ा खोला। सामने प्रताप खड़ा था। वो समझ गयी कि प्रताप उसका पीछा कर रहा था। इस डर से कि कोई और ना देख ले उसने प्रताप का हाथ पकड़ कर उसे अंदर खींच लिया। दरवाज़ा बंद करके उसने प्रताप की तरफ़ देखा। वो हैरान थी प्रताप की इस हरकत से।
“क्यों आये हो यहाँ?”
“ये तो तुम अच्छी तरह जानती हो!”
“देखो कोई आ जायेगा!”
“कोई आने वाला होता तो तुम इस तरह बस में मज़े लेने के लिये नहीं घूम रही होती!”
“मैं तुम्हें जानती भी नहीं हूँ…!”
“मेरा नाम प्रताप है! अपना नाम तो बताओ!”
“मेरा नाम शबाना है, अब तुम जाओ यहाँ से…”
बातें करते-करते प्रताप बुरक़े के ऊपर से शबाना के जिस्म पर हाथ फिरा रहा था। प्रताप के हाथ उसके मम्मों से लेकर उसकी कमर और पेट और जाँघों को सहला रहे थे। शबाना बार-बार उसका हाथ झटक रही थी और प्रताप बार-बार उन्हें फिर शबाना के जिस्म पर रख रहा था। लेकिन प्रताप समझ गया था कि शबाना की ‘ना’ में ‘हाँ’ है।
उसने नीचे उतरकर सड़क क्रॉस की और रिक्शा पकड़ ली। ऐसा मज़ा ज़िंदगी में पहली बार आया था। वो बार-बार अपना हाथ देख रही थी और उसकी मुठ्ठी बनाकर प्रताप के लण्ड के बारे में सोच रही थी। उसने घर से थोड़ी दूर ही रिक्शा छोड़ दिया ताकि किसी को पता ना चले कि वो रिक्शा से आयी है। वो ऊँची पेन्सिल हील की सैंडल में मटकते हुए पैदल चलकर अपने घर पहुँची और ताला खोलकर अंदर चली गयी।
अभी उसने दरवाज़ा बंद किया ही था कि घंटी की आवाज़ सुनकर उसने फिर दरवाज़ा खोला। सामने प्रताप खड़ा था। वो समझ गयी कि प्रताप उसका पीछा कर रहा था। इस डर से कि कोई और ना देख ले उसने प्रताप का हाथ पकड़ कर उसे अंदर खींच लिया। दरवाज़ा बंद करके उसने प्रताप की तरफ़ देखा। वो हैरान थी प्रताप की इस हरकत से।
“क्यों आये हो यहाँ?”
“ये तो तुम अच्छी तरह जानती हो!”
“देखो कोई आ जायेगा!”
“कोई आने वाला होता तो तुम इस तरह बस में मज़े लेने के लिये नहीं घूम रही होती!”
“मैं तुम्हें जानती भी नहीं हूँ…!”
“मेरा नाम प्रताप है! अपना नाम तो बताओ!”
“मेरा नाम शबाना है, अब तुम जाओ यहाँ से…”
बातें करते-करते प्रताप बुरक़े के ऊपर से शबाना के जिस्म पर हाथ फिरा रहा था। प्रताप के हाथ उसके मम्मों से लेकर उसकी कमर और पेट और जाँघों को सहला रहे थे। शबाना बार-बार उसका हाथ झटक रही थी और प्रताप बार-बार उन्हें फिर शबाना के जिस्म पर रख रहा था। लेकिन प्रताप समझ गया था कि शबाना की ‘ना’ में ‘हाँ’ है।