21-12-2022, 03:22 AM
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प्यासी शबाना
लेखक: अन्जान
भाग - १
सुबह के आठ बज रहे थे। परवेज़ ने जल्दी से अपना पायजामा पहना और बाहर निकल गया। शबाना अभी बिस्तर पर ही लेटी हुई थी, बिल्कुल नंगी। उसकी चूत पर अब भी पठान का पानी नज़र आ रहा था, और टाँगें और जाँघें फैली हुई थी। आज फिर पठान उसे प्यासा छोड़ कर चला गया था।
“हरामज़ादा छक्का!” पठान को गाली देते हुए शबाना ने अपनी चूत में उंगली डाली और जोर-जोर से अंदर बाहर करने लगी। फिर एक भारी सिसकरी के साथ वो शिथिल पड़ने लगी। उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। लेकिन चूत में अब भी आग लगी हुई थी। लण्ड की प्यासी चूत को उंगली से शाँत करना मुश्किल था।
नहाने के बाद अपना जिस्म पोंछ कर वो बाथरूम से बाहर निकाली और नंगी ही आईने के सामने खड़ी हो गयी। आईने में अपने जिस्म को देखकर वो मुस्कुराने लगी। उसे खुद अपनी जवानी से जलन हो रही थी। शानदार गुलाबी निप्पल, भरे हुए मम्मे, पतली कमर, क्लीन शेव चूत के गुलाबी होंठ… जैसे रास्ता बता रहे हों - जन्नत का।
उसने एक ठंडी आह भरी, अपनी चूत को थपथपाया और थाँग पैंटी पहन ली। फिर अपने गदराये हुए एक दम गोल और कसे हुए मम्मों को ब्रा में ठूँस कर उसने हुक बंद कर ली और अपने उरोज़ों को ठीक से सेट किया। वो तो जैसे उछल कर ब्रा से बाहर आ रहे थे। ब्रा का हुक बंद करने के बाद उसने अलमारी खोली और सलवार कमीज़ निकाली, लेकिन फिर कुछ सोचकर उसने कपड़े वापस अलमारी में रख दिये और बुरक़ा निकाल लिया।
फिर उसने ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठ कर थोड़ा मेक-अप किया और इंपोर्टेड परफ्यूम लगाया। उसके बाद उसने ऊँची पेन्सिल ऐड़ी के सैंडल पहने। अब वो बिल्कुल तैयार थी। सिर्फ़ एक ही फ़र्क था, आज उसने बुऱके में सिर्फ़ पैंटी और ब्रा पहनी थी। फिर अपना छोटा सा ‘क्लच पर्स’ जो कि मुठ्ठी में आ सके और जिसमें कुछ रुपये और घर की चाबी वगैरह रख सके, लेकर निकल गयी। अब वो बस स्टॉप पर आकर बस का इंतज़ार करने लगी। उसे पता था इस वक्त बस में भीड़ होगी और उसे बैठने की तो क्या, खड़े होने की भी जगह नहीं मिलेगी। यही तो मक्सद था उसका। शबाना सर से पैर तक बुरक़े में ढकी हुई थी। सिर्फ़ उसकी आँखें और ऊँची पेन्सिल हील के सैंडल में उसके गोरे-गोरे पैर नज़र आ रहे थे। किसी के भी उसे पहचान पाने कि कोई गुंजाइश नहीं थी।