20-07-2022, 12:27 AM
मेरे पास दूसरा कोई रास्ता तो था नहीं इसलिये मैंने मुस्कुराते हुए रज़ामंदी में गर्दन हिला दी। ये देख कर ढाबेवाला इस कदर खुश हुआ जैसे उसकी ज़िंदगी भर की ख्वाहिश पूरी हो गयी हो। वो धीरे से मेरे करीब आया और बेहद हिचकिचाते हुए मेरी चुनरी खींची जिसने मेरे नंगे मम्मों को ढका हुआ था। अब मेरे मम्मे उसकी नज़रों के सामने इस तरह नंगे हो गये जैसे बेहद प्यारे सो दो कबूतर अपनी चोंचों से अपने करीब आने वाली किसी भी चीज़ को चूमने को तैयार हों। ढाबेवाला बहुत ही धीरे-धीरे मेरे मम्मे सहलाने लगा जैसे उसे इस बात का खौफ हो कि अगर वो मेरे बड़े-बड़े मम्मों के साथ बेरुखी से पेश आया तो मैं एतराज़ करुँगी और उसे और आगे बढ़ने नहीं दूँगी।
ये देख कर टाँगेवाला बोला, “अरे तुझे बोला था ना - इसके मम्मों को जी भर कर दबा… तो ऐसे औरतों के जैसे क्यों हाथ लगा रहा है… मर्द के जैसे पूरी ताकत के साथ भींच इनको… तो इस साली छिनाल को भी मज़ा आयेगा नहीं तो मादरचोद कहेगी कि मेरे दोस्त ने इसको अच्छे से इस्तेमाल नहीं किया!” ये सुनकर ढाबेवाला मेरे और करीब आ गया और पूरी ताकत से मेरे मम्मों को दबाने और मेरे निप्पलों को चिकोटते और खिंचते हुए मरोड़ने लगा। मैंने नोटिस किया कि उस आदमी ने जो धोती पहनी हुई थी उसके नीचे उसका लंड खड़ा होने लगा था।
वो बेचारा खुद को फुसफुसाने से रोक नहीं सका, “ऊऊऊहह हाय… क्या मम्में हैं इस औरत के… जी करता है कि रात भर यूँ ही दबाता रहूँ… हाय क्या चूचियाँ हैं इसकी! अपने गाँव में ऐसे लाल निप्पल किसी के भी नहीं होंगे! हाय मेरे दोस्त! तू क्या माल लाया है चुन कर… आज तो मज़ा आ जायेगा… सच में इसकी चूत और गाँड को तो मज़े से रौंद-रौंद कर चोद कर ही मज़ा आयेगा!”
इस दौरान शहरी माल के साथ चुदाई के मज़े करने की उन देहातियों की तड़प का मैं भी लुत्फ लेने लगी थी। एक खास बात मुझे समझ आ रही थी कि इस सर-ज़मीन पर हर इंसान कुछ बदलाव चाहता है। जैसे कि कोई देहाती किसी शहरी माल को चोदने के लिये कोई भी कीमत देने को तैयार हो जायेगा और कोई शहरी मर्द भी किसी देहातन की चूत लेने के लिये कुछ भी करेगा। खुद मैं भी तो पढ़ी लिखी शहरी औरत होकर इन गैर-मज़हबी और देहाती मर्दों के लंड लेने के लिये अपनी इज़्ज़त और अपना सोशल-स्टेटस भुल गयी थी। जबकि हकीकत में, किसी भी सूरत में सब एक जैसे ही होते हैं… बस लिबास और ज़ुबान का फर्क होता है। वर्ना तो खुदा ने सभी को एक जैसा ही बनाया है। किसी ने ठीक फरमाया है कि अंधेरे में सभी बिल्लियाँ काली होती हैं।
खैर, मैंने टाँगेवाले की तरफ नज़र डाली जो आराम से चटाई पर लेटा हुआ हमारी तरफ देखते हुए अपना लंड सहला रहा था। लुंगी तो उसने मुझे चोदने से पहले ही उतार दी थी और उसी हालत में नंगा लेटा हुआ अपना लंड सहलाते हुए आराम से बीढ़ी पी रहा था। उसने कहीं से ठर्रे का पव्वा निकाल लिया था और बोतल से ही मुँह लगा कर चुस्कियाँ लेते हुए बोला, “बहुत ज़ोर की मूत लगी है ओये राँड… मेरा मूत पीयेगी?” उसने इस तरह से कहा कि मैं घबरा गयी। “अपने भाइयों से चुदी है कभी… वैसे तेरे पड़ोसी तो रोज़ाना चोदते होंगे तुझे?”
ये देख कर टाँगेवाला बोला, “अरे तुझे बोला था ना - इसके मम्मों को जी भर कर दबा… तो ऐसे औरतों के जैसे क्यों हाथ लगा रहा है… मर्द के जैसे पूरी ताकत के साथ भींच इनको… तो इस साली छिनाल को भी मज़ा आयेगा नहीं तो मादरचोद कहेगी कि मेरे दोस्त ने इसको अच्छे से इस्तेमाल नहीं किया!” ये सुनकर ढाबेवाला मेरे और करीब आ गया और पूरी ताकत से मेरे मम्मों को दबाने और मेरे निप्पलों को चिकोटते और खिंचते हुए मरोड़ने लगा। मैंने नोटिस किया कि उस आदमी ने जो धोती पहनी हुई थी उसके नीचे उसका लंड खड़ा होने लगा था।
वो बेचारा खुद को फुसफुसाने से रोक नहीं सका, “ऊऊऊहह हाय… क्या मम्में हैं इस औरत के… जी करता है कि रात भर यूँ ही दबाता रहूँ… हाय क्या चूचियाँ हैं इसकी! अपने गाँव में ऐसे लाल निप्पल किसी के भी नहीं होंगे! हाय मेरे दोस्त! तू क्या माल लाया है चुन कर… आज तो मज़ा आ जायेगा… सच में इसकी चूत और गाँड को तो मज़े से रौंद-रौंद कर चोद कर ही मज़ा आयेगा!”
इस दौरान शहरी माल के साथ चुदाई के मज़े करने की उन देहातियों की तड़प का मैं भी लुत्फ लेने लगी थी। एक खास बात मुझे समझ आ रही थी कि इस सर-ज़मीन पर हर इंसान कुछ बदलाव चाहता है। जैसे कि कोई देहाती किसी शहरी माल को चोदने के लिये कोई भी कीमत देने को तैयार हो जायेगा और कोई शहरी मर्द भी किसी देहातन की चूत लेने के लिये कुछ भी करेगा। खुद मैं भी तो पढ़ी लिखी शहरी औरत होकर इन गैर-मज़हबी और देहाती मर्दों के लंड लेने के लिये अपनी इज़्ज़त और अपना सोशल-स्टेटस भुल गयी थी। जबकि हकीकत में, किसी भी सूरत में सब एक जैसे ही होते हैं… बस लिबास और ज़ुबान का फर्क होता है। वर्ना तो खुदा ने सभी को एक जैसा ही बनाया है। किसी ने ठीक फरमाया है कि अंधेरे में सभी बिल्लियाँ काली होती हैं।
खैर, मैंने टाँगेवाले की तरफ नज़र डाली जो आराम से चटाई पर लेटा हुआ हमारी तरफ देखते हुए अपना लंड सहला रहा था। लुंगी तो उसने मुझे चोदने से पहले ही उतार दी थी और उसी हालत में नंगा लेटा हुआ अपना लंड सहलाते हुए आराम से बीढ़ी पी रहा था। उसने कहीं से ठर्रे का पव्वा निकाल लिया था और बोतल से ही मुँह लगा कर चुस्कियाँ लेते हुए बोला, “बहुत ज़ोर की मूत लगी है ओये राँड… मेरा मूत पीयेगी?” उसने इस तरह से कहा कि मैं घबरा गयी। “अपने भाइयों से चुदी है कभी… वैसे तेरे पड़ोसी तो रोज़ाना चोदते होंगे तुझे?”