12-07-2022, 11:52 PM
अब मुझे तड़पाने की बारी उसकी थी। इसलिये उसने अपनी लुंगी इस तरह धीरे से सरकायी कि उसकी जाँघें बिल्कुल नंगी हो गयी और एक झटके में ही वो किसी भी पल अपना लंड मेरे सामने नुमाया कर सकता था। मैं तो उसका लण्ड देखने के मरी जा रही थी। लुंगी के पतले से कपड़े में से उसके लंड की पूरी लंबाई नामोदार हो रही थी। करीब आठ-नौ इंच लंबे उस गोश्त को अपने हाथों में पकड़ने की मुझे बेहद आरज़ू हो रही थी। इसलिये टाँगेवाले को और उकसाने के लिये मैं मासूमियत का नाटक करते हुए अपने मम्मे उसके कंधे पर और ज्यादा दबाने लगी जिससे उसे ये ज़ाहिर हो कि टाँगे के हिचकोलों की वजह से ये हो रहा है। मेरे मम्मों की गर्मी उसे महसूस हो रही थी जिसके असर से लुंगी में उसका तंबू और बुलंद होने लगा और खासा बड़ा होकर खतरनाक नज़र आने लगा। मैं समझ नहीं पा रही थी कि अब भी वो टाँगेवाला खुद पे काबू कैसे कायम रखे हुए था। फिर लालटेन की मद्धम रोशनी में मैंने नोटिस किया कि उसके लंड का सुपाड़ा लुंगी के किनारे से नज़र आ रहा था।
“या मेरे खुदा!” मैं हैरानी से सिहर गयी। उसके लंड का सुपाड़ा वाकय में बेहद बड़ा था - किसी बड़े पहाड़ी आलू और लाल टमाटर की तरह। रात के अंधेरे में वो पूरी शान और अज़मत से चमक रहा था। मैं जानती थी कि इतना बड़ा सुपाड़ा देखने के बाद अब मैं ज्यादा देर तक खुद पे काबू नहीं रख पाऊँगी। उसे अपने हठों में लेकर उसे चूमने और उसे चाटने के लिये मैं तड़प उठी थी।
सूरत-ए-हाल अब बिल्कुल बदल चुके थे। उसे अपने हुस्न और अदाओं से दीवाना बनाने की जगह अब वो मुझे ही अपने बड़े लण्ड के जलवे दिखा कर ललचा रहा था। मैं अब और आगे बढ़ने से खुद को रोक नहीं सकी और अपनी चोली का एक और हुक खोल दिया। वैसे भी मेरी चोली में तीन ही हुक थे और उसमें से एक तो पहले ही खुला हुआ था और अब दूसरा हुक खुलते ही मेरे दोनों मम्मे चोली में से करीब-करीब बाहर ही कूद पड़े और अब खुली हवा में ऐसे थिरक रहे थे जैसे अपनी आज़ादी का जश्न मना रहे हों।
टाँगेवाले ने ये नज़ारा देखा तो शरारत से मेरे कान में धीरे से फुसफुसा कर बोला, “अरे मेमसाब! ये क्या… आपने तो अपने मम्मों को पूरा ही खुला छोड़ दिया, क्या हुआ आपको?”
मैंने कहा, “क्या करूँ! गर्मी बहुत है ना… इन बेचारों को भी तो रात की थोड़ी ठंडी हवा मिलनी चाहिये… बेचारे दिन भर तो कैद में रहते हैं!” सच कहूँ तो रात की ठंडक में अपने नंगे मम्मे को टाँगे के हिचकोलों के साथ झुलाते हुए उस ठरकी की बगल में बैठना बेहद अच्छा लग रहा था।
लहंगे में छुपी मेरी चूत की तरफ देखते हुए टाँगेवाला बोला, “तो फिर तो मेमसाब नीचे वाली को भी तो थोड़ी हवा लगने दो ना! उसे क्यों बंद कर रखा है!” ये कहते हुए उसने अपने हाथ मेरी जाँघों पर रख दिये और मेरी मुलायम और गोरी सुडौल टाँगों को नामूदार करते हुए लहंगा मेरी जाँघों के ऊपर खिसकने लगा - जैसे कि इशारा कर रहा हो कि मैं अपना लहंगा पूरा ऊपर खिसका कर अपनी चूत का नज़ारा उसे करा दूँ।
“या मेरे खुदा!” मैं हैरानी से सिहर गयी। उसके लंड का सुपाड़ा वाकय में बेहद बड़ा था - किसी बड़े पहाड़ी आलू और लाल टमाटर की तरह। रात के अंधेरे में वो पूरी शान और अज़मत से चमक रहा था। मैं जानती थी कि इतना बड़ा सुपाड़ा देखने के बाद अब मैं ज्यादा देर तक खुद पे काबू नहीं रख पाऊँगी। उसे अपने हठों में लेकर उसे चूमने और उसे चाटने के लिये मैं तड़प उठी थी।
सूरत-ए-हाल अब बिल्कुल बदल चुके थे। उसे अपने हुस्न और अदाओं से दीवाना बनाने की जगह अब वो मुझे ही अपने बड़े लण्ड के जलवे दिखा कर ललचा रहा था। मैं अब और आगे बढ़ने से खुद को रोक नहीं सकी और अपनी चोली का एक और हुक खोल दिया। वैसे भी मेरी चोली में तीन ही हुक थे और उसमें से एक तो पहले ही खुला हुआ था और अब दूसरा हुक खुलते ही मेरे दोनों मम्मे चोली में से करीब-करीब बाहर ही कूद पड़े और अब खुली हवा में ऐसे थिरक रहे थे जैसे अपनी आज़ादी का जश्न मना रहे हों।
टाँगेवाले ने ये नज़ारा देखा तो शरारत से मेरे कान में धीरे से फुसफुसा कर बोला, “अरे मेमसाब! ये क्या… आपने तो अपने मम्मों को पूरा ही खुला छोड़ दिया, क्या हुआ आपको?”
मैंने कहा, “क्या करूँ! गर्मी बहुत है ना… इन बेचारों को भी तो रात की थोड़ी ठंडी हवा मिलनी चाहिये… बेचारे दिन भर तो कैद में रहते हैं!” सच कहूँ तो रात की ठंडक में अपने नंगे मम्मे को टाँगे के हिचकोलों के साथ झुलाते हुए उस ठरकी की बगल में बैठना बेहद अच्छा लग रहा था।
लहंगे में छुपी मेरी चूत की तरफ देखते हुए टाँगेवाला बोला, “तो फिर तो मेमसाब नीचे वाली को भी तो थोड़ी हवा लगने दो ना! उसे क्यों बंद कर रखा है!” ये कहते हुए उसने अपने हाथ मेरी जाँघों पर रख दिये और मेरी मुलायम और गोरी सुडौल टाँगों को नामूदार करते हुए लहंगा मेरी जाँघों के ऊपर खिसकने लगा - जैसे कि इशारा कर रहा हो कि मैं अपना लहंगा पूरा ऊपर खिसका कर अपनी चूत का नज़ारा उसे करा दूँ।