06-07-2022, 10:24 PM
इतना बेहतरीन मौका देने के लिये मैंने दिल ही दिल में अल्लाह का शुक्रिया अदा किया क्योंकि हमारा ट्रेन का सफ़र बहुत ही उबाऊ और बेरंग था। हम ए-सी फर्स्ट क्लास में सफर कर रहे थे इसलिये किसी भी मस्ती-मज़े और छेड़-छाड़ का कोई ज़रिया नहीं था। खैर हम लोग टाँगे पर बैठे। मैं और मेरी सास पीछे वाली सीट पर बैठे और मेरा देवर आगे वाली सीट पर टाँगे वाले की बगल में बैठा। करीब पंद्रह मिनट के बाद हम पक्की सड़क से एक सुनसान कच्ची सड़क पर मुड़े। इस सड़क पे कोई रोशनी नहीं थी और ऐसा महसूस हो रहा था जैसे जंगल में से गुज़र रहे हों। कोई और गाड़ी उस सड़क पर नज़र नहीं आ रही थी। मेरी सास तो टाँगे पर बैठते ही सो गयी थी और अब खर्राटे मार रही थी। यही हाल मेरे देवर का भी था जो टाँगे का साईड का डंडा पकड़े सोया हुआ था।
ठीक ऐसे वक्त पर टाँगेवाले ने टाँगा रोक दिया और बोला, “मेमसाब! आप आगे आके बैठिये, क्योंकि पीछे की तरफ लोड ज्यादा हो गया है घोड़ा बेचारा इतना लोड कैसे खींचेगा, और इस बच्चे को भी पीछे आराम से बिठा दीजिये!”
मैं फौरन समझ गयी कि उसका असली इरादा क्या है लेकिन फिर भी अंजान बनते हुए बोली, “नहीं रहने दो ना ऐसे ही ठीक है!”
“ऐसे नहीं चलेगा… घोड़ा तो आपके घाँव तक पहुँचने से पहले ही मर जायेगा… आइये - आप आगे बैठिये!”
मैंने देखा कि मेरी सास अभी भी खर्राटे मार रही थी और मेरे देवर का भी यही हाल था। मजबूरी का नाटक करते हुए मैं टाँगे से उतरी और आगे जा कर अपने देवर को जगाया। “असलम उठो! जाकर पीछे बैठो… मैं इधर आगे बैठुँगी!”
असलम बहुत ही सुस्त सा नींद में वहाँ से उठा और बिना कुछ बोले पीछे वाली सीट पर जा कर बैठ गया और मैं आगे की सीट पर टाँगेवाले की बगल में बैठ गयी। टाँगा फिर धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। पंद्रह-बीस मिनट के बाद मैंने देखा कि असलम फिर सो गया है और इस बार उसने अपना सिर मेरी सास की गोद में रखा हुआ था। अब अगर वो अचानक जाग भी जाता तो हमें आगे देख नहीं सकता था। अब मैं बहुत खुश थी क्योंकि उस ठरकी टाँगेवाले को तड़पाने और लुभाने का और अब तक के बेरंग सफ़र में कुछ मज़ा लेने का ये बेहतरीन मौका था।
ठीक ऐसे वक्त पर टाँगेवाले ने टाँगा रोक दिया और बोला, “मेमसाब! आप आगे आके बैठिये, क्योंकि पीछे की तरफ लोड ज्यादा हो गया है घोड़ा बेचारा इतना लोड कैसे खींचेगा, और इस बच्चे को भी पीछे आराम से बिठा दीजिये!”
मैं फौरन समझ गयी कि उसका असली इरादा क्या है लेकिन फिर भी अंजान बनते हुए बोली, “नहीं रहने दो ना ऐसे ही ठीक है!”
“ऐसे नहीं चलेगा… घोड़ा तो आपके घाँव तक पहुँचने से पहले ही मर जायेगा… आइये - आप आगे बैठिये!”
मैंने देखा कि मेरी सास अभी भी खर्राटे मार रही थी और मेरे देवर का भी यही हाल था। मजबूरी का नाटक करते हुए मैं टाँगे से उतरी और आगे जा कर अपने देवर को जगाया। “असलम उठो! जाकर पीछे बैठो… मैं इधर आगे बैठुँगी!”
असलम बहुत ही सुस्त सा नींद में वहाँ से उठा और बिना कुछ बोले पीछे वाली सीट पर जा कर बैठ गया और मैं आगे की सीट पर टाँगेवाले की बगल में बैठ गयी। टाँगा फिर धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। पंद्रह-बीस मिनट के बाद मैंने देखा कि असलम फिर सो गया है और इस बार उसने अपना सिर मेरी सास की गोद में रखा हुआ था। अब अगर वो अचानक जाग भी जाता तो हमें आगे देख नहीं सकता था। अब मैं बहुत खुश थी क्योंकि उस ठरकी टाँगेवाले को तड़पाने और लुभाने का और अब तक के बेरंग सफ़र में कुछ मज़ा लेने का ये बेहतरीन मौका था।