23-04-2022, 08:15 PM
वापस आने के बाद मेरा तो काया पलट ही चुका था। हर वक्त दिमाग में बस चुदाई का ख्याल रहता। हर जगह हर मर्द को मैं बूरी नज़र से ही देखने लगी। ससुर जी तो मेरे दिवाने हो ही चुके थे और हमारे बीच अब कोई शरम या रिश्ते का लिहाज बाकी नहीं रह गया था। इसलिये सासू जी की नजरें बचा कर कभी रात को तो कभी घर से बाहर, किसी होटल में तो कभी उनके केबिन में मिलते थे। सासूजी को हमारे जिस्मानी ताल्लुकात की भनक नहीं लगी। चुदाई के अलावा मुझे दूसरी बुरी आदतें भी लग गयी थीं। शराब पीने की तो मैं पहले से ही शौकीन थी लेकिन रोज़ाना पीने की आदत नहीं थी। अब तो हर रोज़ सिगरेट-शराब की तलब होने लगी। ससुरजी को फुसला बहका कर शराब का इंतज़ाम तो हो जाता लेकिन सिगरेट तो मुझे बहुत छुपछुपा कर कभी-कभी ही स्मोक करने को मिलती। ससुर जी के साथ चुदाई में मज़ा तो बहुत आता था पर वो हर वक्त तो मेरे साथ हो नहीं सकते थे। वैसे भी मैं तो इतनी बिगड़ गयी थी कि अक्सर मेरा मन करता कि दो या तीन मर्दों से एक साथ चुदवाऊँ। लेकिन ये मुमकीन नहीं था। जब ससुर जी के साथ मौका नहीं मिलता तो अपने कमरे में ब्लू-फिल्मों की डी-वी-डी चला कर या फिर पैरिस की अय्याशियाँ याद करते-करते अपने नये डिल्डो से अपनी प्यास बुझाती। हालत ये थी कि घर के नौकरों तक को मैं गंदी निगाह से देखती लेकिन सास-ससुर की वजह से कुछ भी करने की हिम्मत नहीं होती थी।
अभी जावेद की वापसी में काफी वक्त बाकी था। इसी बीच में जेठ जी भी मुझे लेने आ गये। काफी दिनों से उनके पास आकर ठहरने के लिये ज़िद कर रहे थे, लेकिन मैं ही टालती रही। मगर इस बार ना कहा नहीं गया। मैं उनके साथ उनके घर हफ़्ते भर रही। हम दोनों औरतें उनकी दो बीवियों की तरह उनके अगल-बगल सोती थीं। रात को फिरोज़ भाई जान हम दोनों को ही खुश कर देते। उनमें अच्छा स्टैमिना था। नसरीन भाभी जान तो मुझ पर जान छिड़कने लगी थी। हमारे बीच अब कुछ भी राज़ नहीं रहा। मेरा डिल्डो देख कर तो वो बहुत उत्तेजित हुईं। फिरोज़ जब ऑफिस में होते तो हम दोनों शराब पी कर दिन भर लेस्बियन सैक्स इंजॉय करतीं। नसरीन भाभी जान को भी मैंने सिगरेट शुरू करवा दी। फिरोज़ जब ऑफिस से लौटते तो उसके पहले वो खुद बन संवर कर तैयार होती और फिर मुझे भी सजाती संवारती। हम दोनों उनके आने के बाद छोटे-छोटे सैक्सी कपड़ों में उनसे लिपट जातीं और उनके साथ चुदाई का खेल शुरू हो जाता।
अभी जावेद की वापसी में काफी वक्त बाकी था। इसी बीच में जेठ जी भी मुझे लेने आ गये। काफी दिनों से उनके पास आकर ठहरने के लिये ज़िद कर रहे थे, लेकिन मैं ही टालती रही। मगर इस बार ना कहा नहीं गया। मैं उनके साथ उनके घर हफ़्ते भर रही। हम दोनों औरतें उनकी दो बीवियों की तरह उनके अगल-बगल सोती थीं। रात को फिरोज़ भाई जान हम दोनों को ही खुश कर देते। उनमें अच्छा स्टैमिना था। नसरीन भाभी जान तो मुझ पर जान छिड़कने लगी थी। हमारे बीच अब कुछ भी राज़ नहीं रहा। मेरा डिल्डो देख कर तो वो बहुत उत्तेजित हुईं। फिरोज़ जब ऑफिस में होते तो हम दोनों शराब पी कर दिन भर लेस्बियन सैक्स इंजॉय करतीं। नसरीन भाभी जान को भी मैंने सिगरेट शुरू करवा दी। फिरोज़ जब ऑफिस से लौटते तो उसके पहले वो खुद बन संवर कर तैयार होती और फिर मुझे भी सजाती संवारती। हम दोनों उनके आने के बाद छोटे-छोटे सैक्सी कपड़ों में उनसे लिपट जातीं और उनके साथ चुदाई का खेल शुरू हो जाता।